भूगोल विषय की पढ़ाई करियर के बेहतरीन मौके उपलब्ध कराती है। इस
विषय के अध्ययन और इसमें करियर की संभावनाओं के बारे में बता रही है नमिता
सिंह
भूगोल को पृथ्वी का विज्ञान कहा जाता है। इसके अंतर्गत धरती एवं उसके आसपास पाए जाने वाले तत्वों का अध्ययन किया जाता है। सही मायने में देखा जाए तो ज्योग्राफर की भूमिका एक साइंटिस्ट की भांति होती है। पृथ्वी की संरचना तथा उसके अंदर होने वाली हलचलों, नदी-घाटी परियोजना आदि पर कार्य करने की जिम्मेदारी भी ज्योग्राफर की होती है। एक ज्योग्राफर को कई विभागों से तालमेल बिठा कर काम करना होता है। भूगोल की भी कई शाखाएं (फिजिकल ज्योग्राफी, ह्यूमन ज्योग्राफी, एंवॉयर्नमेंटल ज्योग्राफी) होती है। फिजिकल ज्योग्राफी में जहां पृथ्वी, नदी, खाली स्थानों, जलवायु आदि का अध्ययन किया जाता है, वहीं ह्यूमन ज्योग्राफी में मानव सहित राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह एंवॉयर्नमेंटल ज्योग्राफी में प्रोफेशनल्स पर्यावरण और उसका मानव जीवन पर प्रभाव, मौसम और जलवायु आदि का गहनता से अध्ययन करते हैं।
बारहवीं के बाद रखें कदम
इसमें बैचलर से लेकर पीएचडी लेवल तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र बारहवीं के बाद अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। बीए/बीएससी में दाखिला बारहवीं के बाद और एमएससी में दाखिला स्नातक के बाद मिलता है। इसके बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। पीजी डिप्लोमा भी स्नातक के बाद किया जा सकता है। इसमें कई सर्टिफिकेट कोर्स भी हैं, जिन्हें स्नातक के बाद किया जा सकता है। इसमें रेगुलर व पत्राचार, दोनों तरह के कोर्स मौजूद हैं।
प्रमुख कोर्स एवं अवधि
बीए/बीएससी (ज्योग्राफी) -3 वर्ष
एमएससी (ज्योग्राफी) -2 वर्ष
एमएससी (ज्योइंफॉर्मेटिक्स) -2 वर्ष
पीएचडी (ज्योग्राफी) -2 वर्ष
पीएचडी (ज्योमैग्नेटिज्म) -2 वर्ष
पीजी सर्टिफिकेट कोर्स इन ज्योइंफॉर्मेटिक्स
एंड रिमोट सेंसिंग -छह माह
पीजी डिप्लोमा इन ज्योग्राफिकल काटरेग्राफी -एक वर्ष
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोर्स के अलावा कई तरह के गुण प्रोफेशनल्स को कदम-कदम पर मदद पहुंचाते हैं। मसलन, कम्प्यूटर का ज्ञान, लॉजिकल व एनालिटिकल थिंकिंग, अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, शारीरिक रूप से फिट, आंकड़ों व समस्याओं को सुलझाने का कौशल, आकलन का गुण आदि हमेशा काम आते हैं।
रोजगार की संभावनाएं
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार की कोई कमी सामने नहीं आती। सेटेलाइट टेक्नोलॉजी और ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) के प्रयोग में बढ़ोतरी के चलते संबंधित कोर्स और प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ी है। इसमें सरकारी व प्राइवेट, दोनों क्षेत्रों में काम की प्रचुरता है। इसके अलावा एनजीओ, ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया, मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट, रिसर्च इंस्टीटय़ूट, स्कूल-कॉलेज, मैप पब्लिशर व ट्रेवल एजेंसियां अपने यहां योग्य लोगों को जॉब देती हैं। प्रोफेशनल्स चाहें तो फ्रीलांसर व कंसल्टेंट के अलावा विदेश जाकर अपनी क्षमता आजमा सकते हैं।
इस रूप में मिलेगा अवसर
कार्टोग्राफर- इनका काम नक्शा, चार्ट, ग्लोब और मॉडल तैयार करना होता है। ज्यादातर कार्टोग्राफर न्यूज मीडिया, बुक पब्लिशिंग हाउस, सरकारी एजेंसियों में काम पाते हैं।
सर्वेयर- इस रूप में प्रोफेशनल्स गणितीय गणनाओं और फील्ड वर्क के आधार पर पृथ्वी की सतह का नक्शा लेते हैं। इनकी नियुक्ति सर्वे ऑफ इंडिया, स्टेट सर्वे डिपार्टमेंट या अन्य प्राइवेट संस्थानों में होती है।
ड्राफ्टर- इनका काम इंजीनियर व आर्किटेक्चर के साथ-साथ आगे बढ़ता है, खासकर प्लानिंग, हाउसिंग एवं डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के दौरान स्थान एवं उसकी उपयोगिता तय करने में।
गवर्नमेंट एम्प्लॉयर- केंद्रीय एजेंसियां ज्यादातर ज्योग्राफर को मैपिंग, इंटेलीजेंस वर्क, रिमोट सेंसिंग के रूप में रोजगार देती हैं, जबकि राज्य स्तरीय व स्थानीय एजेंसियां प्रोफेशनल्स को प्लानिंग एवं डेवलपमेंट कमीशन में काम देती हैं।
अर्बन/रीजनल प्लानर- शहरी क्षेत्रों की भूमि पर बसावट व नई कॉलोनियां विकसित करने के अलावा ग्रामीण इलाकों में गैस प्लांट लगाने या अन्य सर्वे से संबंधित काम इन्हीं के जिम्मे होता है। वे प्रॉपर्टी मालिक, डेवलपर के साथ मिलकर काम करते हैं।
जीआईएस स्पेशलिस्ट- स्थानीय सरकार, देश की प्रमुख एजेंसियों व अन्य सरकारी एजेंसियों सहित प्राइवेट एजेंसियों को जीआईएस स्पेशलिस्ट की जरूरत पड़ती है।
क्लाइमैटोलॉजिस्ट- नेशनल वेदर सर्विस, न्यूज मीडिया, वेदर चैनल व अन्य मौसम से संबंधित एजेंसियों को क्लाइमैटोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ती है। मटीरियोलॉजी व क्लाइमैटोलॉजी का गहरा ज्ञान रखने वाले प्रोफेशनल्स इसमें काफी सफल रहते हैं।
ट्रांसपोर्टेशन मैनेजर- शिपिंग व स्थानीय ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी, लॉजिस्टिक व ट्रांसपोर्टेशन कंपनियों को इनकी जरूरत पड़ती है। इसके लिए भूगोल का बैकग्राउंड होना जरूरी है।
एन्वायर्नमेंटल मैनेजर- वातावरण का प्रभाव, वायुमंडल को स्वच्छ बनाने, रिपोर्ट देने और मौसम विभाग से जुड़ी जानकारियों के लिए कंपनियां इन्हें अपने यहां काम देती हैं। आने वाले समय में इसमें रोजगार की व्यापक संभावनाएं नजर आ रही हैं।
साइंस राइटर- विषय का अच्छा ज्ञान रखने और लिखने के शौकीन लोगों को न्यूजपेपर, मैगजीन, टीवी चैनल में कदम-कदम पर अवसर मौजूद हैं। चाहें तो फ्रीलांसर राइटर के रूप में भी काम कर सकते हैं।
रिसर्चर/टीचिंग- कई सरकारी व प्राइवेट एजेंसियां व संस्थान हैं, जो भौगोलिक व मौसम संबंधित सर्वे करवाते रहते हैं। इसमें रिसर्चर की मांग होती है। इसके अलावा स्कूल-कॉलेजों में टीचिंग के रूप में अवसर मौजूद हैं।
मिलने वाली सेलरी
भूगोल में विभिन्न क्षेत्रों में देश-विदेश में काम मिलता है। काम, अनुभव व संस्थान के हिसाब से उन्हें आकर्षक सेलरी भी दी जाती है। सरकारी एजेंसियों की तुलना में प्राइवेट संस्थान प्रोफेशनल्स को ज्यादा मोटा वेतन देते हैं। इसमें प्रोफेशनल्स को शुरुआती चरण में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह की सेलरी मिलती है जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यही सेलरी बढ़ कर 30-35 हजार हो जाती है। जबकि उच्च पदों पर बैठे प्रोफेशनल्स को 1,20,000 रुपए प्रतिमाह का पैकेज मिल रहा है। कंसल्टेंट और फ्रीलांसर के रूप में काम करने पर उनकी विद्वता के हिसाब से भुगतान होता है।
एक्सपर्ट व्यू
मानचित्र को भलीभांति समझें छात्र
भूगोल सभी विषयों की जननी कहलाता है। इसका सीधा संबंध मानव जीवन से है। सही मायने में देखा जाए तो पंचतत्व ही भूगोल है। इसके जरिए कई तरह के मौलिक ज्ञान का समावेश होता है। पिछले दो दशक से भूगोल के क्षेत्र में नई क्रांति आई है। जीपीएस, जीआईएस, रिमोट सेंसिंग, सेटेलाइट आदि कई क्षेत्रों में तकनीकी दखल के चलते भूगोल का महत्व और भी बढ़ गया है। ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज और जैव विविधता के अध्ययन में भूगोल ने खासा योगदान दिया है। आपको हर साल बड़ी संख्या में ऐसे छात्र मिलेंगे, जिन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा में भूगोल के जरिए सफलता हासिल की है। सड़क निर्माण, सरकारी व प्राइवेट विभागों के अलावा आर्मी में भूगोल का ज्ञान काम आता है। आज देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हर देश चिंतित है। पीएचडी व स्कॉलरशिप के रूप में हर देश अपने यहां मोटी रकम खर्च कर रहा है तथा बाहरी छात्रों को मौका दे रहा है। भारत के साथ एक सुखद बात यह है कि यहां के जानकारों की रिमोट सेंसिंग व जीआईएस पर अच्छी पकड़ है, जिससे अधिक संख्या में छात्रों को विदेश में मौका मिल रहा है। छात्रों को यह बात गांठ बांध लेनी होगी कि भूगोल पर तभी अच्छी पकड़ बन सकती है, जब वे मानचित्र का गहराई से अध्ययन करें।
डॉं. बिन्ध्य वासिनी पाण्डेय, एसोसिएट प्रोफेसर भूगोल विभाग, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
प्रमुख संस्थान
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़
वेबसाइट- www.amu.ac.in
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in
एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा
वेबसाइट- www.amity.edu
बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची
वेबसाइट- www.bitmesra.ac.in
इंस्टीटय़ूट ऑफ ज्यो-इंफॉर्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग,कोलकाता
वेबसाइट- www.igrs-gis.com
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jmi.ac.in
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
वेबसाइट- www.du.ac.in
फायदे एवं नुकसान
भूगोल को पृथ्वी का विज्ञान कहा जाता है। इसके अंतर्गत धरती एवं उसके आसपास पाए जाने वाले तत्वों का अध्ययन किया जाता है। सही मायने में देखा जाए तो ज्योग्राफर की भूमिका एक साइंटिस्ट की भांति होती है। पृथ्वी की संरचना तथा उसके अंदर होने वाली हलचलों, नदी-घाटी परियोजना आदि पर कार्य करने की जिम्मेदारी भी ज्योग्राफर की होती है। एक ज्योग्राफर को कई विभागों से तालमेल बिठा कर काम करना होता है। भूगोल की भी कई शाखाएं (फिजिकल ज्योग्राफी, ह्यूमन ज्योग्राफी, एंवॉयर्नमेंटल ज्योग्राफी) होती है। फिजिकल ज्योग्राफी में जहां पृथ्वी, नदी, खाली स्थानों, जलवायु आदि का अध्ययन किया जाता है, वहीं ह्यूमन ज्योग्राफी में मानव सहित राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह एंवॉयर्नमेंटल ज्योग्राफी में प्रोफेशनल्स पर्यावरण और उसका मानव जीवन पर प्रभाव, मौसम और जलवायु आदि का गहनता से अध्ययन करते हैं।
बारहवीं के बाद रखें कदम
इसमें बैचलर से लेकर पीएचडी लेवल तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र बारहवीं के बाद अपनी किस्मत आजमा सकते हैं। बीए/बीएससी में दाखिला बारहवीं के बाद और एमएससी में दाखिला स्नातक के बाद मिलता है। इसके बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। पीजी डिप्लोमा भी स्नातक के बाद किया जा सकता है। इसमें कई सर्टिफिकेट कोर्स भी हैं, जिन्हें स्नातक के बाद किया जा सकता है। इसमें रेगुलर व पत्राचार, दोनों तरह के कोर्स मौजूद हैं।
प्रमुख कोर्स एवं अवधि
बीए/बीएससी (ज्योग्राफी) -3 वर्ष
एमएससी (ज्योग्राफी) -2 वर्ष
एमएससी (ज्योइंफॉर्मेटिक्स) -2 वर्ष
पीएचडी (ज्योग्राफी) -2 वर्ष
पीएचडी (ज्योमैग्नेटिज्म) -2 वर्ष
पीजी सर्टिफिकेट कोर्स इन ज्योइंफॉर्मेटिक्स
एंड रिमोट सेंसिंग -छह माह
पीजी डिप्लोमा इन ज्योग्राफिकल काटरेग्राफी -एक वर्ष
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोर्स के अलावा कई तरह के गुण प्रोफेशनल्स को कदम-कदम पर मदद पहुंचाते हैं। मसलन, कम्प्यूटर का ज्ञान, लॉजिकल व एनालिटिकल थिंकिंग, अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, शारीरिक रूप से फिट, आंकड़ों व समस्याओं को सुलझाने का कौशल, आकलन का गुण आदि हमेशा काम आते हैं।
रोजगार की संभावनाएं
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार की कोई कमी सामने नहीं आती। सेटेलाइट टेक्नोलॉजी और ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) के प्रयोग में बढ़ोतरी के चलते संबंधित कोर्स और प्रोफेशनल्स की डिमांड भी बढ़ी है। इसमें सरकारी व प्राइवेट, दोनों क्षेत्रों में काम की प्रचुरता है। इसके अलावा एनजीओ, ज्योग्राफिकल सर्वे ऑफ इंडिया, मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट, रिसर्च इंस्टीटय़ूट, स्कूल-कॉलेज, मैप पब्लिशर व ट्रेवल एजेंसियां अपने यहां योग्य लोगों को जॉब देती हैं। प्रोफेशनल्स चाहें तो फ्रीलांसर व कंसल्टेंट के अलावा विदेश जाकर अपनी क्षमता आजमा सकते हैं।
इस रूप में मिलेगा अवसर
कार्टोग्राफर- इनका काम नक्शा, चार्ट, ग्लोब और मॉडल तैयार करना होता है। ज्यादातर कार्टोग्राफर न्यूज मीडिया, बुक पब्लिशिंग हाउस, सरकारी एजेंसियों में काम पाते हैं।
सर्वेयर- इस रूप में प्रोफेशनल्स गणितीय गणनाओं और फील्ड वर्क के आधार पर पृथ्वी की सतह का नक्शा लेते हैं। इनकी नियुक्ति सर्वे ऑफ इंडिया, स्टेट सर्वे डिपार्टमेंट या अन्य प्राइवेट संस्थानों में होती है।
ड्राफ्टर- इनका काम इंजीनियर व आर्किटेक्चर के साथ-साथ आगे बढ़ता है, खासकर प्लानिंग, हाउसिंग एवं डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के दौरान स्थान एवं उसकी उपयोगिता तय करने में।
गवर्नमेंट एम्प्लॉयर- केंद्रीय एजेंसियां ज्यादातर ज्योग्राफर को मैपिंग, इंटेलीजेंस वर्क, रिमोट सेंसिंग के रूप में रोजगार देती हैं, जबकि राज्य स्तरीय व स्थानीय एजेंसियां प्रोफेशनल्स को प्लानिंग एवं डेवलपमेंट कमीशन में काम देती हैं।
अर्बन/रीजनल प्लानर- शहरी क्षेत्रों की भूमि पर बसावट व नई कॉलोनियां विकसित करने के अलावा ग्रामीण इलाकों में गैस प्लांट लगाने या अन्य सर्वे से संबंधित काम इन्हीं के जिम्मे होता है। वे प्रॉपर्टी मालिक, डेवलपर के साथ मिलकर काम करते हैं।
जीआईएस स्पेशलिस्ट- स्थानीय सरकार, देश की प्रमुख एजेंसियों व अन्य सरकारी एजेंसियों सहित प्राइवेट एजेंसियों को जीआईएस स्पेशलिस्ट की जरूरत पड़ती है।
क्लाइमैटोलॉजिस्ट- नेशनल वेदर सर्विस, न्यूज मीडिया, वेदर चैनल व अन्य मौसम से संबंधित एजेंसियों को क्लाइमैटोलॉजिस्ट की जरूरत पड़ती है। मटीरियोलॉजी व क्लाइमैटोलॉजी का गहरा ज्ञान रखने वाले प्रोफेशनल्स इसमें काफी सफल रहते हैं।
ट्रांसपोर्टेशन मैनेजर- शिपिंग व स्थानीय ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी, लॉजिस्टिक व ट्रांसपोर्टेशन कंपनियों को इनकी जरूरत पड़ती है। इसके लिए भूगोल का बैकग्राउंड होना जरूरी है।
एन्वायर्नमेंटल मैनेजर- वातावरण का प्रभाव, वायुमंडल को स्वच्छ बनाने, रिपोर्ट देने और मौसम विभाग से जुड़ी जानकारियों के लिए कंपनियां इन्हें अपने यहां काम देती हैं। आने वाले समय में इसमें रोजगार की व्यापक संभावनाएं नजर आ रही हैं।
साइंस राइटर- विषय का अच्छा ज्ञान रखने और लिखने के शौकीन लोगों को न्यूजपेपर, मैगजीन, टीवी चैनल में कदम-कदम पर अवसर मौजूद हैं। चाहें तो फ्रीलांसर राइटर के रूप में भी काम कर सकते हैं।
रिसर्चर/टीचिंग- कई सरकारी व प्राइवेट एजेंसियां व संस्थान हैं, जो भौगोलिक व मौसम संबंधित सर्वे करवाते रहते हैं। इसमें रिसर्चर की मांग होती है। इसके अलावा स्कूल-कॉलेजों में टीचिंग के रूप में अवसर मौजूद हैं।
मिलने वाली सेलरी
भूगोल में विभिन्न क्षेत्रों में देश-विदेश में काम मिलता है। काम, अनुभव व संस्थान के हिसाब से उन्हें आकर्षक सेलरी भी दी जाती है। सरकारी एजेंसियों की तुलना में प्राइवेट संस्थान प्रोफेशनल्स को ज्यादा मोटा वेतन देते हैं। इसमें प्रोफेशनल्स को शुरुआती चरण में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह की सेलरी मिलती है जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यही सेलरी बढ़ कर 30-35 हजार हो जाती है। जबकि उच्च पदों पर बैठे प्रोफेशनल्स को 1,20,000 रुपए प्रतिमाह का पैकेज मिल रहा है। कंसल्टेंट और फ्रीलांसर के रूप में काम करने पर उनकी विद्वता के हिसाब से भुगतान होता है।
एक्सपर्ट व्यू
मानचित्र को भलीभांति समझें छात्र
भूगोल सभी विषयों की जननी कहलाता है। इसका सीधा संबंध मानव जीवन से है। सही मायने में देखा जाए तो पंचतत्व ही भूगोल है। इसके जरिए कई तरह के मौलिक ज्ञान का समावेश होता है। पिछले दो दशक से भूगोल के क्षेत्र में नई क्रांति आई है। जीपीएस, जीआईएस, रिमोट सेंसिंग, सेटेलाइट आदि कई क्षेत्रों में तकनीकी दखल के चलते भूगोल का महत्व और भी बढ़ गया है। ग्लोबल वार्मिंग, क्लाइमेट चेंज और जैव विविधता के अध्ययन में भूगोल ने खासा योगदान दिया है। आपको हर साल बड़ी संख्या में ऐसे छात्र मिलेंगे, जिन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा में भूगोल के जरिए सफलता हासिल की है। सड़क निर्माण, सरकारी व प्राइवेट विभागों के अलावा आर्मी में भूगोल का ज्ञान काम आता है। आज देखा जाए तो ग्लोबल वार्मिंग को लेकर हर देश चिंतित है। पीएचडी व स्कॉलरशिप के रूप में हर देश अपने यहां मोटी रकम खर्च कर रहा है तथा बाहरी छात्रों को मौका दे रहा है। भारत के साथ एक सुखद बात यह है कि यहां के जानकारों की रिमोट सेंसिंग व जीआईएस पर अच्छी पकड़ है, जिससे अधिक संख्या में छात्रों को विदेश में मौका मिल रहा है। छात्रों को यह बात गांठ बांध लेनी होगी कि भूगोल पर तभी अच्छी पकड़ बन सकती है, जब वे मानचित्र का गहराई से अध्ययन करें।
डॉं. बिन्ध्य वासिनी पाण्डेय, एसोसिएट प्रोफेसर भूगोल विभाग, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स
प्रमुख संस्थान
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़
वेबसाइट- www.amu.ac.in
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in
एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा
वेबसाइट- www.amity.edu
बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, रांची
वेबसाइट- www.bitmesra.ac.in
इंस्टीटय़ूट ऑफ ज्यो-इंफॉर्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग,कोलकाता
वेबसाइट- www.igrs-gis.com
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jmi.ac.in
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
वेबसाइट- www.du.ac.in
फायदे एवं नुकसान
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