Thursday, December 24, 2020

डाटा साइंस में बनाएं अपना करियर

देश-दुनिया में डाटा साइंस प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। जितनी इनकी डिमांड है, उस हिसाब से प्रोफेशनल्स नहीं मिल पा रहे हैं। आउटबाउंड हायरिंग स्टार्टअप बिलॉन्ग की टैलेंट सप्लाई इंडेक्स 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में चार गुना तेजी से डाटा साइंटिस्ट्स की मांग बढ़ी है। पिछले एक साल में डाटा साइंटिस्ट्स की मांग में 417 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आइए, जानते हैं कैसे इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाया जा सकता है?

टेक्नोलॉजी की दुनिया तेजी से बदल रही है। आज तकरीबन हर फील्ड में इसका इस्तेमाल होने लगा है। जिसकी वजह से जॉब्स के नए-नए अवसर भी सामने आ रहे हैं। इस फील्ड में खासकर डाटा साइंटिस्ट प्रोफेशनल्स की डिमांड पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है।

इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, 2018 में देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के तहत डाटा साइंटिस्ट सहित डाटा से जुड़े करीब पांच लाख विशेषज्ञों की मांग है, जो 2021 तक बढ़कर 7.5 लाख से ज्यादा हो जाएगी। आईटी मंत्रालय के मुताबिक, एआई के तहत डाटा साइंटिस्ट के अलावा, डाटा आर्किटेक्ट और सॉफ्टवेयर इंजीनियर की मांग भी बढ़ रही है।

सबसे ज्यादा डिमांड डाटा साइंटिस्ट की है, जो खोए हुए डाटा खोजने, गड़बड़ियों को दूर करने और तमाम खामियों से बचाव करने में मददगार होते हैं। फिलहाल सर्विस प्रोवाइडर के बीच 2.5 लाख, स्टार्टअप में 25 हजार, आईटी कंपनियों में 26 हजार, अन्य क्षेत्र की कंपनियों को 1.40 लाख और विदेशी कंपनियों में 92 हजार डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत है।

  

डिमांड है भरपूर

रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन साल में करीब पांच लाख से ज्यादा डाटा साइंटिस्ट की जरूरत होगी। कंपनियों, संस्थानों और हेल्थकेयर क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में इसकी डिमांड बढ़ी है। आने वाले दिनों में डिजिटल क्षेत्र में भारत दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाएगा।

डाटा साइंटिस्ट गायब हुए डाटा को खोजने में मुख्य भूमिका निभाता है। साथ ही, यह तकनीक का इस्तेमाल करके डाटा का अध्ययन और उस पर निर्णय लेता है। वैसे देखा जाए, तो कुल 5.11 लाख डाटा साइंटिस्ट की मांग की तुलना में देश में महज 1.44 लाख कुशल प्रोफेशनल्स मौजूद हैं।

नेचर ऑफ वर्क

डाटा साइंटिस्ट, डाटा से जुड़ी स्टडी करते हैं। इसके तहत डाटा को जुटाकर उनके अध्ययन और एनालिसिस के माध्यम से भविष्य की योजना बनाई जा सकती है। साथ ही, डाटा साइंटिस्ट अपनी कंपनी के लिए डाटा एनालिसिस करते हैं, जिससे उसे बिजनेस में फायदा हो। डाटा साइंस में आंकड़े के विश्लेषण को तीन भागों में बांटा जाता है।

पहले डाटा को जुटाया जाता है और उनको स्टोर किया जाता है। उसके बाद डाटा की पैकेजिंग यानी विभिन्न श्रेणियों के हिसाब से उनकी छंटाई की जाती है और अंत में डाटा की डिलिवरी की जाती है। डाटा साइंटिस्ट के पास प्रोग्रामिंग, स्टेटिस्टिक्स, मैथमेटिक्स और कंप्यूटर की अच्छी जानकारी होती है।

वे डाटा को जमा करके उनका बहुत ही बारीकी से विश्लेषण करते हैं। इसके लिए वे स्टेटिस्टिक्स और मैथ्स के टूल्स का उपयोग करते हैं। इसको वे पॉवर प्वाइंट, एक्सल, गूगल विजुअलाइजेशन के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इनके पास किसी भी तरह के डाटा को बेहतर तरीके से विजुअलाइज करने की क्षमता होती है।

साथ ही, विभिन्न सेक्टरों द्वारा दिए गए उलझाऊ और जटिल डाटा में से अहम जानकारियों को बारीकी से खंगालते हैं। वे यह भी पता लगाते हैं कि किस वजह से कंपनी की स्थिति में गिरावट आ रही है या कंपनी के लिए कौन-सा नया उद्यम ज्यादा फायदेमंद होगा।

क्वालिफिकेशन

डाटा साइंटिस्ट बनने के लिए कैंडिडेट के पास मैथ्स, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, अप्लाइड साइंस, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक और एमएस की डिग्री होना जरूरी है। यही नहीं कैंडिडेट्स को सांख्यिकी मॉडलिंग, प्रॉबेबिलिटी की नॉलेज होना बहुत जरूरी है।

इसके अलावा, पाइथन, जावा, आर, एसएएस जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की समझ होना भी बेहद जरूरी है। एडवांस्ड सर्टिफिकेट और एडवांस्ड प्रोग्राम जैसे कुछ प्रोग्राम के लिए इंजीनियरिंग या मैथ्स या स्टेटिस्टिक्स में बैचलर डिग्री या मास्टर डिग्री होने के साथ-साथ दो वर्ष का अनुभव भी चाहिए। 

मेन कोर्सेस

डाटा साइंटिस्ट की पढ़ाई के लिए देश में कई संस्थानों द्वारा बिजनेस एनालिटिक्स स्पेशलाइजेशन में शॉर्ट टर्म कोर्स कराए जा रहे हैं। आईआईएम कोलकाता, आईएसआई कोलकाता और आईआईटी खड़गपुर ने मिल कर दो वर्षीय फुलटाइम पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स प्रोग्राम की शुरुआत की है।

इसके अलावा, एडवांस्ड सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एग्जिक्युटिव प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एडवांस्ड बिजनेस एनालिटिक्स एंड बिजनेस ऑप्टिमाइजेशन प्रोग्राम, मास्टर्स इन मैनेजमेंट, पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन मार्केट रिसर्च एंड डाटा एनालिटिक्स, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स जैसे कोर्स किए जा सकते हैं।

  

जॉब्स ऑप्शन

इस फील्ड में आप डाटा साइंटिस्ट, डाटा एनालिस्ट, सीनियर इंफॉर्मेशन एनालिस्ट, इंफॉर्मेशन ऑफिसर, डाटा ऑफिसर, सॉफ्टवेयर टेस्टर, सपोर्ट एनालिस्ट और बिजनेस एनालिस्ट के तौर पर करियर बना सकते हैं। इस फील्ड में सरकारी और प्राइवेट दोनों क्षेत्रों में जॉब के बहुत मौके हैं।

अगर प्राइवेट सेक्टर की बात करें, तो आइटी, बैंक्स, इंश्योरेंस, फाइनेंस, टेलीकॉम, ई-कॉमर्स, रिटेल और आउटसोर्सिंग कंपनीज में ऐसे प्रोफेशनल्स की बहुत डिमांड है। इसके अलावा, युवाओं के लिए कंस्ट्रक्शन, यूटिलिटी, ऑयल/गैस/माइनिंग, हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्टेशन, कंसल्टिंग और मैन्युफेक्चरिंग कंपनीज में भी काफी संभावनाएं हैं।

अगर चाहें तो कॉलेज या यूनिवर्सिटीज के रिसर्च विंग से भी जुड़ सकते हैं। डाटा प्रोफेशनल्स की डिमांड अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भी बहुत है। कई बड़ी कंपनियों जैसे गूगल, अमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, ईबे, लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनीज को भी डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत पड़ती है।

सैलरी

डाटा साइंटिस्ट्स की सैलरी उसके अनुभव पर भी निर्भर करती है। लेकिन यह काफी हाई-पेइंग जॉब है। अगर एवरेज सैलरी की बात की जाए, तो डाटा साइंटिस्ट्स को करीब 70-80 लाख रुपए सालाना तक मिल सकता है। हालांकि शुरुआती दौर में प्रोफेशनल्स को 8 से 10 लाख रुपए का सालाना पैकेज आसानी से मिल जाता है। 

प्रमुख संस्थान

आईएसआई, कोलकाता 

वेबसाइट: www.isical.ac.in 

आईआईएम, कोलकाता, लखनऊ

वेबसाइट: www.iimcal/l.ac.in 

आईआईटी, खड़गपुर

वेबसाइट: www,iitkgp.ac.in 

एमआईसीए, अहमदाबाद

वेबसाइट: www.mica.ac.in 

-आईआईएससी, बेंगलुरु 

वेबसाइट: www,iisc.ernet.in 

 

एक्सपर्ट व्यू अनिल सेठी, करियर एक्सपर्ट

डाटा प्रोफेशनल्स की बढ़ेगी मांग 

इंडिया ही नहीं, पूरी दुनिया में बिजनेस एनालिटिक्स का उपयोग बढ़ रहा है। आज बैंकिंग, फाइनेंस, इंश्योरेंस, ई-कॉमर्स और डाटा एनालिटिक्स से जुड़ी स्टार्टअप्स कंपनियां इसे ज्यादा से ज्यादा यूज करने पर जोर दे रही हैं। कंपनियां भी इस क्षेत्र में लगातार इंवेस्टमेंट कर रही हैं। ऐसे में डाटा वॉल्यूम बढ़ने से बहुत-सी कंपनियों के लिए डाटा एनालिस्ट और डाटा साइंटिस्ट्स को हायर करना अनिवार्य हो गया है।

वैसे, देखा जाए, तो आजकल कमोबेश सभी कंपनियां बिजनेस एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए डाटा को नए तरीके से यूज करने की कोशिश कर रही हैं। साथ में, बिजनेस प्रोसेस की लागत भी कम करना चाहती हैं और कस्टमर को अच्छा शॉपिंग एक्सपीरिएंस भी फील कराना चाहती हैं। इसलिए डाटा को फिल्टर करके सटीक जानकारी निकालना अब आसान हो गया है। ऐसे में डाटा प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है।


Sunday, December 13, 2020

डिप्लोमा इन आर्किटेक्चर

किसी इमारत की डिज़ाइन, योजना और उसका निर्माण करने वाले को आर्किटेक्चर कहते है। अगर आप कोई बड़ी बिल्डिंग बनाना चाहते है तो उसके लिए पहले डिज़ाइन बनाई जाती है। जो आर्किटेक्चर के द्वारा ही बनाई जाती है। आर्किटेक्चर उस डिज़ाइन के द्वारा आपको बताता है की वह बिल्डिंग कैसी दिखेगी। आर्किटेक्चर द्वारा पहले किसी इमारत की संरचना के लिए प्लान बनाया जाता है। प्लान बनाने के बाद आर्किटेक्चर द्वारा उसकी डिज़ाइन तैयार की जाती है जिसके बाद वह उसका निर्माण करवाता है।

किसी इमारत का निर्माण करने में आर्किटेक्चर की जरुरत होती है। सामान्य तौर पर आर्किटेक्चर का काम होता है किसी बिल्डिंग या इमारत की प्लानिंग के साथ उसकी डिज़ाइन तैयार करना। इसके साथ ही उसके और भी बहुत से कार्य होते है।

डिज़ाइन बनाना

आर्किटेक्चर का पहला काम किसी इमारत की डिज़ाइन को बनाने का होता है। इसमें बिल्डर जिस तरह की बिल्डिंग का निर्माण करना चाहते है उसके अनुसार डिज़ाइन बनाने के लिए आर्किटेक्ट को नियुक्त करते है और क्लाइंट जिस तरह की डिज़ाइन चाहता है उसके अनुसार इमारत का नक्शा या डिज़ाइन आर्किटेक्ट को बनाना होता ।

दस्तावेज़ बनाना

ग्राहक द्वारा जो डिज़ाइन बताई गयी होती है आर्किटेक्ट उसे पेपर पर उतारता है। डिज़ाइन को समझने के लिए तथा उसकी वास्तविकता को जानने के लिए चित्रों को बनाना होगा। इसमें आर्किटेक्ट को ग्राहक की सुविधा, बजट, आवश्यकता इन सभी के अनुसार दस्तावेज़ में संशोधन करने की आवश्यकता होती है।

निर्माण की भूमिकाएँ

इसमें निर्माण दस्तावेज़ों को बनाना होता है और जो डिज़ाइन बनाई जाती है उसे ठेकेदारों और निर्माण विशेषज्ञों के निर्देशों के अनुसार रूपांतरित किया जाता है। जिससे की वह इसे देखकर ही बिल्डिंग का निर्माण कर सके और जब पूरी तरह से यह परियोजना निर्माण के कार्य तक पहुँच जाती है तो आर्किटेक्ट का काम निर्माण की देखरेख करना, हस्ताक्षर करना, साईट के दौर और बैठकों में शामिल होना रहता है।

आर्किटेक्चर बनने के लिए आपको B.Arch कोर्स करना होता है। बहुत से आर्किटेक्चर कॉलेज NATA (National Aptitude Test in Architecture) के द्वारा एडमिशन करवाते है। तो आर्किटेक्चर बनने के लिए 12 वीं के बाद NATA की एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करना होती है। यह एप्टीट्यूड टेस्ट नेशनल लेवल पर आयोजित किया जाता है।

यह एग्जाम Critical Thinking, Architecture की समझ के लिए आपकी योग्यता को मापता है। इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने के लिए आपको इस एग्जाम को पास करना होता है और इसके लिए कुछ योग्यताएं भी होती है जिन्हें पूरा करना होता है। तो जानते है

शैक्षिक योग्यता

  • B.Arch कोर्स करने के लिये आपको 12 वीं में गणित विषय से पास होना अनिवार्य है।
  • 12 वीं आपने 50 % से उत्तीर्ण की हो।
  • आपने 10 वीं के बाद किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से 3 वर्ष का डिप्लोमा किया हुआ हो।

आयु सीमा

NATA परीक्षा के आवेदन के लिए किसी तरह की न्यूनतम आयु सीमा नहीं है।

NATA की प्रवेश प्रक्रिया

  1. NATA परीक्षा के लिए ऑनलाइन ही Apply करना होगा।
  2. इस परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाएँगे।
  3. परीक्षा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से होगी।

NATA Syllabus

NATA का Syllabus तीन विषय पर आधारित होता है। इन्हीं विषयों से सम्बन्धित प्रश्न परीक्षा में आपसे पूछे जाते है। जानते है NATA Exam का Syllabus क्या है।

Mathematics

इस विषय में Algebra (बीज-गणित), Matrices (मेट्रिक्स), Trigonometry (त्रिकोणमिति), Statistics & Probability (सांख्यिकी और संभाव्यता) पर आधारित प्रश्न आते है।

General Aptitude

इसमें Mathematical Reasoning (गणितीय तर्क), Sets & Relation (सेट्स और संबंध) से प्रश्न आते है।

Drawing Test

इसमें किसी वस्तु की ड्राइंग करना होती है और साथ ही रंगों का प्रयोग भी करना होता है।

NATA Exam Pattern

NATA का परीक्षा पैटर्न किस तरह का होगा, इसमें कितने प्रश्न आते है और कितने मार्क्स दिए जाते है यह आप आगे जानेंगे।

 

 

कुल मिलाकर आपसे 62 प्रश्न पूछे जाएँगे। जिसमें 20 प्रश्न गणित के होंगे, 40 प्रश्न general aptitude के आएँगे और 2 प्रश्न drawing test के होंगे।

 Architecture Courses

आर्किटेक्चर को कुछ कोर्सेज़ की जानकारी भी होना चाहिए। जिससे आप पूरे काम को कर पाओगे जिससे आप आर्किटेक्चर डिज़ाइन तैयार कर सकते है और किसी बिल्डिंग का डिज़ाइन बना पाएँगे। इनमें से किसी भी कोर्स को करके आप आर्किटेक्चर बन सकते है।
डिग्री कोर्स इन आर्किटेक्चर

  • डिप्लोमा कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • मास्टर डिग्री इन आर्किटेक्चर
  • डिग्री इन आर्किटेक्चर
  • पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • सस्टेनेबल कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • एडवांस्ड सर्टिफिकेट कोर्स इन आर्किटेक्चरल
  • बैचलर डिग्री इन आर्किटेक्चर टेक्नोलॉजी एंड कंस्ट्रक्शन
  • मास्टर ऑफ़ लैंडस्केप आर्किटेक्चर कोर्स
  • बेसिक कोर्स इन आर्किटेक्चरल ड्राफ्ट्समैन

यह सारे कोर्स ग्रेजुएशन कोर्स है जिसे करके आप आर्किटेक्चर इंजीनियर बन सकते है।

B.Arch Entrance Exam

B.Arch में एडमिशन के लिए आपको एंट्रेंस एग्जाम देना होती है। यह एग्जाम कॉलेज या किसी इंस्टिट्यूट के द्वारा आयोजित की जाती है लेकिन आर्किटेक्चर में प्रवेश के लिए कुछ मुख्य परीक्षाएं भी होती है।

  • AIEEE
  • AMU Entrance Exam
  • KEAM
  • NATA
  • BEEE
  • IIT-JEE
  • UPTU SEE Exam

B.Arch की फीस

इसकी फ़ीस कॉलेज पर निर्भर करती है की आपने किस कॉलेज में एडमिशन लिया है। अगर आपने सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया है तो आपकी फ़ीस अलग होगी और अगर आपने प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लिया है तो आपकी फ़ीस अलग होगी।

सरकारी कॉलेज

सरकारी कॉलेज में अगर आप एडमिशन लेते है तो आपकी फ़ीस 1.5 लाख से 2.5 लाख तक हो सकती है। यह राज्यों पर भी निर्भर करती है।

प्राइवेट कॉलेज

इस कोर्स की फ़ीस सरकारी कॉलेज के मुकाबले प्राइवेट कॉलेज में ज्यादा होती है। 3 लाख से 6 लाख तक होती है या इससे ज्यादा भी हो सकती है।

Thursday, December 10, 2020

फिजिक्स ऑनर्स और फिजिकल साइंस में क्या फर्क है

अगर स्नातक स्तर पर साइंस की विभिन्न शाखाओं के बीच विचरण करना चाहते हैं, फिजिक्स के साथ-साथ रसायनशास्त्र और गणित जैसे विषयों को भी पढ़ने की तमन्ना है तो बीएससी इन फिजिकल साइंस कोर्स एक बेहतर विकल्प है। जनरल साइंस के रूप में लंबे अरसे तक चलने वाला यह कोर्स आज नाम बदल कर फिजिकल साइंस में तब्दील हो गया है। अब इसे ‘बीएससी जनरल ग्रुप ए’ की जगह बीएससी इन फिजिकल साइंस के नाम से जाना जाता है।

यह कोर्स छात्रों को एमएससी स्तर पर साइंस की विभिन्न शाखाओं में जाने की राह तो दिखाता ही है, उन्हें स्नातक करने के बाद भी करियर की अलग-अलग दिशाओं में जाने का रास्ता अख्तियार कराता है। अगर साइंस ग्रेजुएट बन कर नौकरी करने की इच्छा है तो यह कोर्स ऐसे छात्रों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

कोर्स में क्या है
सीधी-सीधी बात कही जाए तो यह साइंस का खिचड़ी कोर्स है, जो बारहवीं तक भौतिकी, गणित, रसायनशास्त्र और कंप्यूटर साइंस जैसे विषय पढ़ने वाले छात्रों को आगे भी विभिन्न विषयों को पढ़ने की छूट देता है। इसमें छात्र भौतिकी और गणित को मुख्य पेपर के रूप में तीनों साल तो पढ़ते ही हैं, इसके अलावा विकल्प के रूप में एक और पेपर को भी तीनों साल पढ़ना होता है। इसमें छात्रों को कई चॉइस दी जाती है। मसलन कोई चाहे तो तीनों साल भौतिकी और गणित के साथ रसायनशास्त्र को मुख्य पेपर के रूप में चुन सकता है।

जो छात्र रसायनशास्त्र नहीं पढ़ना चाहता, उसे इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक को मुख्य पेपर के रूप में चुनने की छूट मिलती है। तीन साल में तीन विषय के अलावा कई और पेपर भी पढ़ने होते हैं। छात्रों को अब टेक्निकल राइटिंग एंड कम्युनिकेशन यानी अंग्रेजी का एक पेपर पहले साल पढ़ना होता है। इसके अलावा कंप्युटेशनल स्किल का एक पेपर और दूसरे साल में इंट्रोडक्शन टू बायोलॉजी और फिर सोलहवें पेपर के रूप में बायोलॉजी पढ़नी होती है। तीन सालों में कुल 24 पेपर पास करने होते हैं।

छात्रों को कंकरेंट कोर्स के तहत भी दो पेपर चुनने होते हैं। अगर किसी ने फिजिकल साइंस में भौतिकी और गणित के अलावा रसायनशास्त्र के 6 पेपर चुने हैं तो उसे कंप्यूटर साइंस से या इलेक्टॉनिक्स से दो कंकरेंट पेपर का चुनाव करना होता है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटर साइस से 6 पेपर चुनने वालों को भी दो कंकरेंट पेपरों का चुनाव करना होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पहले इस कोर्स को करने के बाद उच्च शिक्षा यानी एमएससी करने में खासी दिक्कत आती थी। उन्हें ऑनर्स कोर्स के मुकाबले काफी नीचे रखा जाता था, लेकिन अब एमएससी में प्रवेश परीक्षा होने के कारण ऐसे छात्रों को भी आगे निकलने का मौका मिलता है। यह कोर्स छात्रों को तीन विषयों को पढ़ने का व्यापक नजरिया प्रदान करता है। इसमें तीन पेपरों पर ज्यादा जोर देने से छात्रों को एमबीए और आइएएस परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलती है।

शाखाएं 
इसमें मुख्य रूप से बीएससी इन फिजिकल साइंस तो है ही, इसके अलावा स्पेशलाइज्ड पेपर चुनने पर फिजिकल साइंस विद कंप्यूटर साइंस और फिजिकल साइंस विद इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विषय भी जुड़ जाते हैं।

दाखिला कैसे 
कॉलेजों में इस कोर्स में दाखिला बारहवीं की मेरिट के आधार पर दाखिला दिया जाता है। साइंस के छात्र के लिए बारहवीं में भौतिकी, गणित और रसायनशास्त्र पढ़ा होना जरूरी है, तभी उसे दाखिला दिया जाता है। 

फैक्ट फाइल

कोर्स कराने वाले संस्थान
दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब 25 कॉलेज ऐसे  हैं, जहां अलग-अलग रूपों में फिजिकल साइंस कोर्स चल रहा है। 
कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थान: 
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय
आगरा विश्वविद्यालय, आगरा
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक
पंजाब विश्वविद्यालय
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ

अवसर कहां
स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद छात्रों को आगे की शिक्षा के लिए किसी न किसी क्षेत्र में स्पेशलाइज्ड रास्ता चुनना पड़ता है। यह कोर्स जनरल साइंस है, इसलिए आगे बढ़ने का विकल्प थोड़ा कठिन होता है। लेकिन बहुत सारे छात्र इन बाधाओं को पार कर मौका पाते हैं।

सामान्य तौर पर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होकर बैंक व अन्य निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरी कर सकते हैं। सरकारी क्षेत्र की ओर देखें तो यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होकर आईएएस, आईपीएस बन सकते हैं। बैंकिंग सेक्टर में जा सकते हैं। एमबीए या एमसीए कर सकते हैं। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में लैब असिस्टेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं। स्कूलों में साइंस के शिक्षक बन सकते हैं।

वेतन

शुरुआती तौर पर 20 से 25 हजार रुपये की नौकरी मिल जाती है। एमएससी के बाद कॉलेज शिक्षण और रिसर्च एसोसिएट के रूप में वेतनमान शुरुआती तौर पर 40 से 45 हजार रुपये है।

एक्सपर्ट व्यू/ डॉ. जीएस चिलाना
दाखिला प्रभारी, फिजिकल साइंस विभाग, 
रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

तुरंत जॉब मिलती है इसमें

फिजिकल साइंस छात्रों के लिए किस रूप में मददगार है?
आमतौर पर यह कोर्स ऐसे छात्रों के लिए है, जो स्नातक करते ही नौकरी की तलाश में रहते हैं। इसे करने के बाद छात्र सीधे रोजगार के बाजार में उतर सकता है। वह लैब में बतौर सहायक काम कर सकता है। दूसरी बात यह कि इसे करने के बाद बीएड में दो विषयों को चुन कर शिक्षक बनने का मौका मिलता है। सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी यह कोर्स मददगार है। एमएससी स्तर पर कई तरह के स्पेशलाइजेशन चुनने का रास्ता दिखाता है।

इसमें किस तरह के विषयों का कॉम्बिनेशन है?
इसमें भौतिकी और गणित, सभी के लिए अनिवार्य होता है। इसके साथ ही छात्र रसायनशास्त्र भी पढ़ते हैं। अगर कोई रसायनशास्त्र नहीं पढ़ना चाहता तो वह कंप्यूटर साइंस ले सकता है। वह इलेक्ट्रॉनिक्स का चुनाव कर सकता है।

यह कोर्स किस तरह के अवसर मुहैया कराता है?
इस कोर्स के छात्रों के लिए स्नातक के बाद सामान्य स्तर की कई तरह की नौकरियों में जाने का रास्ता निकलता है। कोई चाहे तो एमबीए कर सकता है। कोई एमसीए करके नई राह चुन सकता है। स्नातक में पढ़े गए अपने दो विषयों को लेकर सिविल सर्विस की तैयारी कर सकता है। उसे फिजिक्स, रसायनशास्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, गणित और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक में जाने का चुनाव करना होता है। किसी एक में एमएससी करके उच्च शिक्षा के आधार पर मिलने वाली नौकरियों में जा सकता है, चाहे वह साइंटिस्ट का पद हो या रिसर्च एसोसिएट या असिस्टेंट प्रोफेसर का।

इसमें किस तरह के बदलाव आए हैं?

यह कोर्स पहले बीएससी जनरल ग्रुप ए के नाम से जाना जाता था। 2002 के बाद इसे इस तरह का नाम दिया गया। इसमें एप्लायड फिजिकल साइंस विद कंप्यूटर साइंस या इलेक्ट्रॉनिक्स आदि कई कैटेगरी बन गई थीं, जो उलझन पैदा कर रही थीं, लेकिन यह कंफ्यूजन पिछले साल से खत्म कर दिया गया है। अब एप्लायड शब्द हटा दिया गया है। सिर्फ फिजिकल साइंस रह गया है।

फिजिक्स ऑनर्स और फिजिकल साइंस में क्या फर्क है?
फिजिक्स ऑनर्स में तीनों साल भौतिकी से जुड़े पेपर ही पढ़ाए जाते हैं। इसमें तीन विषय मुख्य पेपर के रूप में तीनों साल चलते हैं। यहां स्नातक स्तर की बजाय एमएससी पर स्पेशलाइजेशन चुनना होता है। एमएससी में इस कोर्स के छात्रों की राह ऑनर्स की बजाय थोड़ी कठिन होती है।

Sunday, December 6, 2020

एस्ट्रोनॉमी में कॅरियर

आसमान में लाखों जगमगाते एवं टिमटिमाते तारों को निहारना दिमाग को सुकून से भर देता है। इन्हें देखने पर मन में यही आता है कि अगली रात में पुन: आने का वायदा कर जगमगाते हुए ये सितारे आखिर कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं?  हालांकि,  इसी तरह के कई अन्य सवालों जैसे उल्कावृष्टि, ग्रहों की गति एवं इन पर जीवन जैसे रहस्यों से ओत-प्रोत बातें सोचकर व्यक्ति खामोश रह जाता है। एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) या खगोल विज्ञान वह करियर है, जो इन सभी रहस्यों, सवालों एवं गुत्थियों को सुलझाता है। अगर आप ब्रह्मांड (Universe) के रहस्यों से दो-चार होकर अंतरिक्ष को छूना चाहते हैं तो यह करियर आपके लिए बेहतर है। वैसे भी कल्पना चावला (Kalpana Chawla), राकेश शर्मा (Rakesh Sharma) तथा सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) जैसे प्रतिभावान एस्ट्रोनॉट (Astronaut) के कारण आज यह करियर युवाओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है।


एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) क्या है

एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) वह विज्ञान है, जो पृथ्वी के वातावरण से परे अंतरिक्ष (Space) से संबंधित है। यह ब्रह्मांड में उपस्थित खगोलीय पिंडों (Celestial Bodies) की गति, प्रकृति और संघटन का शास्त्र है। साथ ही इनके इतिहास और संभावित विकास हेतु प्रतिपादित नियमों का अध्ययन भी है। यह एस्ट्रोलॉजी (Astrology) या ज्योतिष विज्ञान जिसमें सूर्य, चंद्र और विभिन्न ग्रहों द्वारा व्यक्ति के चरित्र, व्यक्तित्व एवं भविष्य पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, से पूरी तरह से अलग शास्त्र है। अत्याधुनिक तकनीक एवं गैजेट्स के प्रयोग ने हालांकि एस्ट्रोनॉमी को एक विशिष्ट विधा बना दिया है, परंतु वास्तव में यह बहुत ही पुरानी विधा है। प्राचीन काल से ही मानव ग्रहों (Human Planet) एवं अंतरिक्ष पिंडों (Space Bodies) का अध्ययन करता रहा है, जिनमें आर्यभट्ट (Aryabhatta), भास्कराचार्य (Bhaskaracharya), गैलीलियो (Galileo) और आइजक न्यूटन (Isaac Newton) जैसे महान गणितज्ञों एवं खगोलशास्त्रियों (Astronomers) का महत्वपूर्ण योगदान है। एस्ट्रोनॉमी में अंतरिक्ष पिंडों के बारे में जानकारी संग्रह करने के बाद उपलब्ध आंकडों से तुलना कर निष्कर्ष निकाला जाता है तथा पुराने सिद्घांतों को संशोधित कर नए नियम प्रतिपादित किए जाते हैं।


शैक्षिक योग्यता  (Educational Qualification)

यदि आप भी अंतरिक्ष की रहस्यमय और रोमांचक दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, तो एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) का कोर्स कर सकते हैं। फिजिक्स या मैथमेटिक्स से स्नातक पास स्टूडेंट्स थ्योरेटिकल एस्ट्रोनॉमी (Theoretical Astronomy) के कोर्स में एंट्री ले सकते हैं। इंस्ट्रूमेंटेशन/ एक्सपेरिमेंटल एस्ट्रोनॉमी में प्रवेश के लिए बीई (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक/ इलेक्ट्रिकल/ इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन) की डिग्री जरूरी है। यदि आप पीएचडी कोर्स (फिजिक्स, थ्योरेटिकल व ऑब्जर्वेशनल एस्ट्रोनॉमी, एटमॉस्फेरिक ऐंड स्पेस साइंस आदि) में प्रवेश लेना चाहते हैं, तो ज्वाइंट एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट-जेईएसटी (Joint Entrance Screening Test) से गुजरना होगा। इस एग्जाम में बैठने के लिए फिजिक्स में मास्टर डिग्री या फिर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री जरूरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे (University of Pune) में स्पेस साइंस में एमएससी कोर्स उपलब्ध है। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी (Bangalore University) और कालीकट यूनिवर्सिटी (University of Calicut) से एस्ट्रोनॉमी में एमएससी कोर्स कर सकते हैं।


एस्ट्रोनॉमी के प्रकार (Type of Astronomy)

एस्ट्रोनॉमी में वैज्ञानिक तरीकों से तारे (Stars), ग्रह (Planets), धूमकेतु (Comets) आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल के बाहर किस तरह की गतिविधियां हो रही हैं, यह भी जानने की कोशिश की जाती है। इसकी कई ब्रांचेज हैं..


एस्ट्रोकेमिस्ट्री (Astrochemistry): इसमें केमिकल कॉम्पोजिशन (Chemical Composition) के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही विशेषज्ञ स्पेस में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व के बारे में गहन अध्ययन कर जानकारियां एकत्र करते हैं।


एस्ट्रोमैटेरोलॉजी (Astro Meteorology): एस्ट्रोनॉमी के इस हिस्से में खगोलीय चीजों की स्थिति और गति के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। साथ ही, यह भी जानने की कोशिश की जाती है कि खगोलीय चीजों का पृथ्वी के वायुमंडल पर किस तरह का प्रभाव पडता है। यदि आप वायुमंडल पर पडने वाले खगोलीय प्रभाव को ठीक से समझ गये और इस विद्या का डीप अध्ययन कर लिया तो आपकी डिमांड का ग्राफ बढ जाएगा।


एस्ट्रोफिजिक्स  (Astrophysics): इसके अंतर्गत खगोलीय चीजों की फिजिकल प्रॉपर्टी के बारे में अध्ययन किया जाता है। खगोलीय फिजिकल प्रॉपर्टी को समझना इतना आसान नहीं होता, जितना लोग समझते हैं। इसे समझने में अध्ययन कर रहे स्टूडेंटस को सालों गुजर जाते हैं।


एस्ट्रोजिओलॉजी  (Astrogeology): इसके तहत ग्रहों की संरचना और कॉम्पोजिशन के बारे स्टडी की जाती है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ आप तभी बन सकेंगे जब ग्रहों की तह में जाकर गहन अध्ययन करेंगे। एकाग्रचित होकर की गयी सिस्टमेटिक पढाई ही ग्रहों के फार्मूलों के करीब ले जाएगी। इसे समझने के लिए सोलर सिस्टम, प्लेनेट, स्टार, सेटेलाइट आदि का डीप अध्ययन जरूरी है।

एस्ट्रोबायोलॉजी  (Astrobiology): पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर भी जीवन है? इस बात की पडताल एस्ट्रोबायोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है। एस्ट्रोबायोलॉजी के जानकार ही वायुमंडल के बाहर जीवन होने के रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं, इसके पीछे छुपी होती है उनकी वर्षो की तपस्या।


Career in Astronomyसंभावनाएं (Opportunities)

एस्ट्रोनॉमी का कोर्स पूरा करने के बाद विकल्पों की कमी नहीं रहती है। यदि सरकारी संस्थाओं की बात करें, तो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (Indian Space Research Organisation), नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स पुणे (National Centre for Radio Astrophysics), फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद (Physical Research Laboratory), विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (Vikram Sarabhai Space Center), स्पेस फिजिक्स लेबोरेटरीज, स्पेस ऐप्लिकेशंस सेंटर, इंडियन रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन बेंगलुरु, एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया आदि में नौकरी की तलाश कर सकते हैं। यदि रिसर्च के क्षेत्र में कुछ वर्षो का अनुभव हासिल कर लें, तो अमेरिका की नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) जैसी संस्थाओं में नौकरी हासिल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त समय-समय पर विभिन्न देशों में आयोजित सेमिनार एवं गोष्ठियों में हिस्सा लेने का भी अवसर प्राप्त होता है।


सैलरी (Salary)

शोध के दौरान जूनियर रिसर्चर (Junior Researcher) को 8 हजार एवं सीनियर रिसर्चर (Senior Researcher) को 9 हजार रूपये मिलते हैं। हॉस्टल में रहने-खाने, चिकित्सा तथा ट्रैवल की सुविधा संस्थान द्वारा दी जाती है। साथ ही विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार एवं कांफे्रंस में भाग लेने का भी मौका मिलता है। शोध पूरा करने के पश्चात् विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में वैज्ञानिक एवं एस्ट्रोनामर या एस्ट्रोनाट के पद पर उच्च वेतनमान के साथ अन्य उत्कृष्ट सुविधाएं भी मिलती हैं।


कहां से करें कोर्स (Course)

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, सीवी रमन एवेन्यू, बेंगलुरू

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स,

फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुम्बई

रेडियो एस्ट्रोनॉमी सेंटर, तमिलनाडु

उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद

मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, मदुरै, तमिलनाडु

पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला, पंजाब

महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम, केरला

Wednesday, September 30, 2020

केमिकल इंजीनियरिं में करियर


केमिकल इंजीनियरिंग एक बेहतरीन करियर क्षेत्र है। इस फील्ड में रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है। इसमें करियर के अवसरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं संजीव कुमार सिंह

केमिकल पदार्थों की बढ़ती मात्रा एवं भागीदारी के चलते इसमें रोजगार की संभावना तेजी से बढ़ रही है। इसमें कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स ‘केमिकल इंजीनियर’ व यह पूरी प्रक्रिया ‘केमिकल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। सामान्यत: केमिकल इंजीनियरिंग को इंजीनियरिंग की एक शाखा के रूप में जाना-समझा जाता है, जिसके अंतर्गत कच्चे पदार्थों एवं केमिकल्स को किसी प्रयोग की चीज में बदला जाता है, जबकि मॉडर्न केमिकल  इंजीनियरिंग कच्चे पदार्थों को बदलने के साथ-साथ तकनीक (नैनोटेक्नोलॉजी और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग) पर भी बल देती है। इस विधा के अंतर्गत रासायनिक उत्पादों के निर्माण में आने वाली समस्याओं का हल ढूंढा जाता है। इसके अलावा उत्पादन प्रक्रिया में होने वाले डिजाइन प्रोसेस का कार्य डिजाइन इंजीनियर देखते हैं। अत: इसमें एक ही साथ कई अलग-अलग क्षेत्रों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यह पाठ्यक्रम केमिस्ट्री व  इंजीनियरिंग का मिला-जुला रूप है। इसमें कच्चे पदार्थों या केमिकल्स को विभिन्न प्रक्रियाओं के तहत आवश्यक पदार्थों में तब्दील किया जाता है। इसमें नए मेटेरियल एवं तकनीकों की खोज भी की जाती है। इंजीनियरिंग की ही शाखा होने के कारण इसका कार्यस्वरूप काफी कुछ केमिस्ट्री एवं फिजिक्स से मिलता-जुलता है।

कुछ अलग सी है दुनिया
केमिकल इंजीनियर का कार्य केवल डिजाइन एवं मेंटेनेंस तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि कई परिस्थितियों में उन्हें कॉस्ट कटिंग एवं प्रोडक्शन सरीखे कार्यों को भी अंजाम देना पड़ता है। एक तरह से देखा जाए तो यह क्षेत्र हमेशा हुनर की तलाश में रहता है। नए आने वाले लोगों को पहले अनुभवी इंजीनियरों के साथ किसी तत्कालीन उपयोगिता वाले कार्य या परियोजना पर काम करने का मौका दिया जाता है।

प्रवेश परीक्षा
इसमें प्रवेश लेने के लिए आईआईटी जेईई या अन्य प्रवेश परीक्षाओं में बैठना अनिवार्य है। इसमें कुछ परीक्षा ऑल इंडिया अथवा कुछ स्टेट लेवल पर आयोजित की जाती हैं। इनमें उत्तीर्ण होने के पश्चात ही प्रमुख कोर्सों में प्रवेश मिल पाता है। इसमें मुख्यत: बीई या बीटेक में मुख्य रूप से इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री, पॉलीमर टेक्नोलॉजी, पॉलीमर प्रोसेसिंग, पॉलीमर टेस्टिंग, पॉलीमर सिंथेसिस तथा एम ई स्तर के पाठ्यक्रम में मुख्य रूप से प्लांट डिजाइन, पेट्रोलियम रिफाइन, फर्टिलाइजर टेक्नोलॉजी, पेट्रोकेमिकल्स, सिंथेटिक फाइबर्स, प्रोसेसिंग ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स आदि की जानकारी दी जाती है।

वैज्ञानिक अभिरुचि से प्रगति
विज्ञान में रुचि एवं सिद्धांतों की जानकारी रखने वाले छात्रों के लिए यह एक विशिष्ट क्षेत्र है। चूंकि यह क्षेत्र अनुसंधान कार्य से जुड़ा है। अत: इसमें करियर बनाने वाले छात्रों को परिश्रमी, धैर्यवान, साहसी व लंबे समय तक अकेले कार्य करने की क्षमता रखनी होगी। साथ ही विश्लेषक, कम्युनिकेशन की दृष्टि से मजबूत, तकनीकी रुचि रखने वाला, कम्यूटर पर अच्छी पकड़ तथा आर्ट की कला में माहिर होना भी आवश्यक है। ऐसे व्यक्ति, जिनमें संख्या आकलन और विश्लेषक की क्षमता के साथ-साथ वैज्ञानिक झुकाव हो तो वे आसानी से इस व्यवस्था की तरफ मुड़ सकते हैं।

पाठय़क्रम संबंधी जानकारी
केमिकल इंजीनियरिंग का पाठय़क्रम केमिकल टेक्नोलॉजी से भिन्न होता है। इसमें आर्गेनिक व इनआर्गेनिक केमिकल्स को शामिल किया जाता है। इसके अंतर्गत बड़ी कंपनियों में डिजाइन एवं मैन्युफैक्चरिंग से संबंधित कार्य किए जाते हैं। रेगुलर कोर्सेज के अलावा दूरस्थ शिक्षा के जरिए भी कई तरह के कोर्स संचालित किए जाते हैं। एक केमिकल इंजीनियर का कार्य केमिकल प्लांट्स को डिजाइन, ऑपरेट एवं उसके प्रोडक्शन से जुड़े कार्यों को अंजाम देना होता है।

कुछ प्रमुख कोर्स
डिप्लोमा इन केमिकल इंजीनियरिंग
बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग इन केमिकल इंजीनियरिंग
बैचलर ऑफ साइंस इन केमिकल इंजीनियिरग
बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी इन केमिकल इंजीनियरिंग
मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग इन केमिकल इंजीनियरिंग
मास्टर ऑफ साइंस इन केमिकल इंजीनियिरग
मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी इन केमिकल इंजीनियरिंग
इंट्रिग्रेटेड एमटेक इन केमिकल इंजीनियरिंग
पोस्ट डिप्लोमा इन पेट्रो केमिकल टेक्नोलॉजी

व्यापक है इसका कार्यक्षेत्र
कोर्स करने के बाद सबसे ज्यादा नियुक्तियां केमिकल, प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रिंटिंग, फूड व मिल्क इंडस्ट्री में होती हैं। इसके अलावा प्रोफेशनल्स मिनरल इंडस्ट्री, पेट्रोकेमिकल प्लांट्स, फार्मास्यूटिकल, सिंथेटिक फाइबर्स, पेट्रोलियम रिफाइनिंग प्लांट्स, डाई, पेंट, वार्निश, औषधि निर्माण, पेट्रोलियम टेक्सटाइल एवं डेयरी प्लास्टिक उद्योग आदि क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं। रासायनिक उद्योग की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी उत्तम है। शोध में रुचि रखने वाले रिसर्च इंजीनियरिंग का विभाग संभालते हैं। कुछ लोग विपणन व प्रबंधन का काम देखते हैं। प्राइवेट एवं सरकारी संस्थानों में केमिकल इंजीनियरिंग से संबंधित रोजगार की भरमार है। एक केमिकल इंजीनियर को प्रयोगशाला जैसे सरकारी प्रयोगशाला, उद्योग शोध संघ, निजी परामर्श केंद्र, विश्वविद्यालय शोध दल में भी तरह-तरह के कार्य एवं अनुसंधान करने पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त वे अन्य कई मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज में विश्लेषण, निर्माण संबंधी कार्य देखते हैं। 

इस रूप में मिलेगा काम
सुपरवाइजर या मैनेजर
टेक्निकल स्पेशलिस्ट
प्रोजेक्ट मैनेजर
प्रोजेक्ट इंजीनियर
केमिकल इंजीनियर
केमिकल डेवलपमेंट इंजीनियर
क्वालिटी कंट्रोलर’ लेबोरेटरी असिस्टेंट 

सेलरी
कार्य, अनुभव, योग्यता एवं पद को देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में अधिक पारिश्रमिक दिया जाता है। फ्रेशर्स को प्रारंभ में 15000 से लेकर 25000 रुपए प्रतिमाह तथा अन्य सुविधाएं मिलती हैं, जबकि एक डिप्लोमा धारक को सरकारी संस्थानों द्वारा 14000 से 15000 रुपए प्रतिमाह प्राप्त होते हैं।

कॉलेज के लेक्चरर को प्रारंभिक वेतन 50,000 से 60,000 रुपए प्रतिमाह प्रदान किया जाता है। एक इंजीनियर को सरकारी संस्थानों द्वारा 30,000-40,000 एवं सरकारी आवास तथा अन्य सुविधाएं मिलती हैं।

विज्ञान का ज्ञान आवश्यक
केमिकल इंजीनियर बनने के लिए बीई या बीटेक (स्नातक स्तर) तथा परा स्नातक स्तर पर एमई होना आवश्यक है। ऐसे में जो छात्र आगे चल कर केमिकल इंजीनियर बनना चाहते हैं, उन्हें बारहवीं में विज्ञान विषय लेना होगा। अधिकांश संस्थान ऐसे हैं, जो दसवीं के पश्चात डिप्लोमा या पॉलिटेक्निक से संबंधित कोर्स करवाते हैं। बीई तथा बीटेक चार वर्ष का तथा एमई दो वर्ष का होता है। यदि बारहवीं के पश्चात सीधे एमई में दाखिला लेते हैं तो वह पांच वर्ष का हो जाता है। इसी तरह से केमिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स तीन वर्ष का होता है।

एक्सपर्ट व्यू
प्रो.एएसके सिन्हा

चैलेंज व स्कोप दोनों हैं अनलिमिटेड
आमतौर पर लोगों का मानना है कि केमिकल इंजीनियरिंग का पूरा आधार केमिस्ट्री पर होता है तथा सिलेबस में भी यह सब्जेक्ट ज्यादा हावी होता है, जबकि यह सत्य नहीं है। केमिस्ट्री के अलावा इसमें अन्य कई चीजों को शामिल किया जाता है। आज बायोमास, हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी, आरओ प्लांट आदि सभी के पीछे केमिकल इंजीनियरों की मेहनत छिपी होती है। प्रदूषण दूर करने में भी इसका योगदान सराहनीय होता है। फर्टिलाइजर, यूरिया, अमोनिया व दवाओं आदि को केमिकल इंजीनियरों की मदद से ही तैयार किया जाता है। इस आधार पर कहना गलत न होगा कि केमिकल इंजीनियरिंगजीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी है। जो भी एनर्जी के सोर्स हैं,वे सब केमिकल हैं, इसलिए इसका दायरा व स्कोप काफी बडम है। इसमें प्रोफेशनल्स को कदम-कदम पर तमाम तरह की चुनौतियां भी उठानी पडम्ती हैं। एनर्जी क्राइसेस, मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर के ऑटोमेशन आदि का सामना केमिकल इंजीनियरों को करना पड़ता है। इस फील्ड में लड़कियों की संख्या पहले की अपेक्षा बढ़ी है। कुछ वर्ष पहले तक क्लास में 1-2 प्रतिशत लड़कियां होती थीं, लेकिन अब उनकी संख्या बढ़कर 10-12 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
प्रो. एएसके सिन्हा, हेड केमिकल  इंजीनियरिंगडिपार्टमेंट, आईआईटी, बीएचयू, वाराणसी

फैक्ट फाइल
प्रमुख संस्थान
देश में कई ऐसे संस्थान हैं, जो केमिकल इंजीनियरिंग एवं केमिकल टेक्नोलॉजी के पाठय़क्रम मुहैया कराते हैं। प्रमुख संस्थान निम्न हैं-

इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, चेन्नई, रुड़की आदि में भी शाखाएं मौजूद)

बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट- www.bitmesra.ac.in

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.dce.edu

इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद
वेबसाइट- www.iiita.ac.in

इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीएचयू), वाराणसी
वेबसाइट- www.iitbhu.ac.in

जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, अलीगढ़
वेबसाइट-  www.amu.ac.in

Sunday, September 13, 2020

इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में करियर

इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग क्या है?

इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग (ईईई) की फील्ड इलेक्ट्रिसिटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म के एप्लीकेशन्स से संबद्ध है. इसके कोर्सवर्क में छात्रों को इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट्स को डिज़ाइन करने, विकसित करने और टेस्ट करने के लिये प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देना शामिल है. यह फील्ड छात्रों को कोर इंजीनियरिंग विषयों जैसेकि कम्युनिकेशन्स, कंट्रोल सिस्टम्स, सिग्नल प्रोसेसिंग, रेडियो फ्रीक्वेंसी डिज़ाइन, माइक्रोप्रोसेसर्स, पॉवर जनरेशन आदि में फंडामेंटल नॉलेज की एक व्यापक रेंज उपलब्ध करवाती है.

इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर क्या करता है?

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग पढ़ने वाले छात्र का मेन फोकस इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज, मेकाट्रोनिक्स टेक्नोलॉजीज़, ऑटोमेशन और कंट्रोल सिस्टम्स आदि की डिजाइनिंग, डेवलपमेंट और निर्माण कार्य से संबद्ध होगा. ये छात्र इलेक्ट्रिकली ऑपरेटेड व्हीकल्स, कंप्यूटर्स, इलेक्ट्रॉनिक मेमोरी स्टोरेज डिवाइसेज, इंडस्ट्रियल रोबोट्स, सीएनसी मशीन्स आदि के लिए सर्किट्स डिज़ाइन करने के लिए भी जिम्मेदार होते हैं. इसके साथ ही इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स पॉवर जनरेशन ट्रांसमिशन और टेलीकम्यूनिकेशन सेक्टर्स में भी काम करते हैं.

कोर्सेज और ड्यूरेशन

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की फील्ड छात्रों के बीच बड़ी तेज़ी से लोकप्रिय इंजीनियरिंग करियर ऑप्शन बन रही है. इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के लिए एकेडेमिक क्राइटेरिया को मुख्य तौर पर  निम्नलिखित चार कोर्सेज/ प्रोग्राम्स में बांटा गया है:

  • डिप्लोमा कोर्सेज – यह कोर्स छात्रों को इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में एक पॉलिटेक्निक डिप्लोमा ऑफर करता है और आप 10 वीं और 12 वीं क्लास पास करने के बाद यह कोर्स कर सकते हैं. इस कोर्स की ड्यूरेशन या अवधि 3 वर्ष है.
  • अंडरग्रेजुएट कोर्सेज – यह एक 4 वर्ष की अवधि का कोर्स है जिसे पूरा करने पर आपको इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक (बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी) की डिग्री मिलती है. आप 12 वीं क्लास पास करने के बाद यह कोर्स कर सकते हैं.
  • पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज – यह 2 वर्ष की अवधि का कोर्स है जो इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में एमटेक (मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी) की पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री ऑफर करता है. इस कोर्स में एडमिशन लेने से पहले आपके पास उपयुक्त फील्ड में अंडरग्रेजुएट डिग्री होनी चाहिए.
  • डॉक्टोरल कोर्सेज – यह इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डॉक्टोरल डिग्री या पीएचडी (डॉक्टर ऑफ़ फिलोसोफी की डिग्री) प्राप्त करने के लिए एक 3 वर्ष की अवधि का कोर्स है. यह कोर्स करने के लिए छात्रों के पास किसी उपयुक्त विषय में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री होनी चाहिए.

सबसे लोकप्रिय उप-विषय

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की फील्ड में कई स्पेशलाइजेशन्स होते हैं और छात्र बैचलर डिग्री प्राप्त करने के बाद हायर डिग्रीज प्राप्त करने के लिए इन उप-विषयों में से किसी एक में स्पेशलाइजेशन हेतु अपनी  स्टडीज जारी रख सकते हैं. इस फील्ड के कुछ सबसे लोकप्रिय स्पेशलाइजेशन्स निम्नलिखित हैं:

• सॉफ्टवेयर

• इलेक्ट्रॉनिक्स

• सिग्नल प्रोसेसिंग

• कंप्यूटर इंजीनियरिंग

• पॉवर इलेक्ट्रॉनिक्स

• कम्युनिकेशन्स

• नैनो टेक्नोलॉजी

• एम्बेडेड सिस्टम्स

• बायोमेडिकल इमेजिंग

• हार्डवेयर

• पावर सिस्टम इंजीनियरिंग (रिन्यूएबल एनर्जी सहित)

• कंट्रोल

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की फील्ड में शामि मेन सब्जेक्ट्स

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की फील्ड में शामिल कुछ मेन सब्जेक्ट्स निम्नलिखित हैं:

• एडवांस्ड डिजिटल सिग्नल प्रोसेसिंग

• कम्युनिकेशन सिस्टम्स

• कंट्रोल सिस्टम एनालिसिस

• इलेक्ट्रोमैग्नेटिक

• लो नॉइज़ एम्पलीफायर

• माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स

• पॉवर सिस्टम्स

• सिग्नल सिस्टम्स एंड नेटवर्क्स एनालिसिस

• इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज एंड सर्किट्स

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में कैसे लें एडमिशन?

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में छात्र कई कोर्स कर सकते हैं. यद्यपि इनमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय कोर्स 4 वर्ष का अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम है और छात्र 12 वीं पास करने के बाद इसमें एडमिशन ले सकते हैं. इसके अलावा, इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में विभिन्न कोर्सेज के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया निम्नलिखित है: 

विभिन्न कोर्सेज में एडमिशन लेने के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया

  • डिप्लोमा कोर्सेज – छात्र ने किसी मान्यताप्राप्त शिक्षा बोर्ड से 10 वीं क्लास का एग्जाम पास किया हो.
  • अंडरग्रेजुएट कोर्सेज – यूजी प्रोग्राम में एडमिशन लेने के लिए छात्र को उपयुक्त एंट्रेंस एग्जाम्स देने होते हैं. इसके अलावा, छात्र ने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स आदि मुख्य विषयों के साथ 12 वीं क्लास पास की हो.
  • पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज – पीजी प्रोग्राम्स में एडमिशन लेने के लिए भी छात्र को उपयुक्त एंट्रेंस एग्जाम्स पास करने होते हैं. छात्र के पास किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से संबद्ध विषय में अंडरग्रेजुएट की डिग्री भी होनी चाहिए.

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग कोर्सेज के लिए एंट्रेंस एग्जाम्स

इंजीनियरिंग के विभिन्न विषयों में एडमिशन लेने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और यूनिवर्सिटी लेवल पर एंट्रेंस एग्जाम्स आयोजित किये जाते हैं. इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के लिए छात्र निम्नलिखित लोकप्रिय एग्जाम्स दे सकते हैं:

• जॉयंट एंट्रेंस एग्जाम - मेन (जेईई मेन)

• जॉयंट एंट्रेंस एग्जाम - एडवांस्ड (जेईई एडवांस्ड)

• ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट)

• वीआईटी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (वीआईटीईई)

• वीआईटी यूनिवर्सिटी मास्टर’स एंट्रेंस एग्जाम (वीआईटीएमईई)

• बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस हायर डिग्री एग्जाम (बीआईटीएस एचडी)

• दी महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (एमएचटीसीईटी)

• उत्तर प्रदेश राज्य एंट्रेंस एग्जाम (यूपीएसईई)

• बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एडमिशन टेस्ट (बीआईटीएसएटी)

भारत में टॉप 10 इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट्स

भारत में इंजीनियरिंग कोर्सेज करने के लिए सबसे बढ़िया कॉलेजों के तौर पर ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजीज़’ अर्थात आईआईटी’ज माने जाते हैं. एनआईआरएफ रैंकिंग वर्ष 2018 के अनुसार भी, भारत में यूजीसी से मान्यताप्राप्त टॉप 10 इंजीनियरिंग कॉलेज निम्नलिखित हैं:

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मद्रास, मद्रास

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी बॉम्बे, बॉम्बे

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी खड़गपुर, खड़गपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी दिल्ली, दिल्ली

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कानपुर, कानपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी रुड़की, रुड़की

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी गुवाहाटी, गुवाहाटी

• अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई

• जादवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी हैदराबाद, हैदराबाद

छात्रों के लिए करियर प्रॉस्पेक्ट्स

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की फील्ड इलेक्ट्रिसिटी, इलेक्ट्रॉनिक्स और इलेक्ट्रोमैग्नेटिज्म के एप्लीकेशन्स से संबद्ध है. इन कोर्सेज को करने वाले छात्र इंजीनियरिंग वर्क्स, कंस्ट्रक्शन्स, इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के विभिन्न कार्यक्षेत्रों में करियर ऑप्शन्स तलाश सकते हैं. एक इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के तौर पर आप इलेक्ट्रिकल इक्विपमेंट, सॉफ्टवेयर और नेटवर्किंग सिस्टम्स को डिज़ाइन करने, डेवलप करने और टेस्ट करने के कार्य करेंगे.

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग का फ्यूचर स्कोप

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स के लिए जॉब के काफी अच्छे अवसर और स्कोप मौजूद हैं. एक इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के तौर पर आप उन इंडस्ट्रीज में काम कर सकते हैं जो प्रोडक्ट डेवलपमेंट, कंट्रोल सिस्टम्स, सिस्टम मैनेजमेंट, प्रोडक्ट डिज़ाइन, सेल्स, वायरलेस कम्युनिकेशन, मैन्युफैक्चरिंग, केमिकल, ऑटोमोटिव और स्पेस रिसर्च संगठनों से संबद्ध कार्य करती हैं. इस फील्ड में डॉक्टोरल डिग्री प्राप्त करने के बाद छात्र रिसर्च फील्ड में भी कार्य कर सकते हैं.

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स के लिए लोकप्रिय जॉब प्रोफाइल्स

इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग के विभिन्न कोर्स करने वाले छात्रों के लिए कुछ लोकप्रिय जॉब प्रोफाइल्स निम्नलिखित हैं:

• चीफ इंजीनियर

• क्वालिटी कंट्रोल इंजीनियर

• कंट्रोल एंड इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियर

• डिज़ाइन इंजीनियर

• इलेक्ट्रिकल इंजीनियर

• ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियर

• मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम्स इंजीनियर

• सिस्टम एनालिस्ट

• इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर

• आईटी कंसलटेंट

• सिस्टम्स डेवलपर

• नेटवर्क इंजीनियर

रोज़गार के बढ़िया अवसर ऑफर करने वाले लोकप्रिय रिक्रूटर्स

इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स को रिक्रूट करने वाले कुछ प्रसिद्ध ऑर्गेनाइजेशन्स निम्नलिखित हैं:

गवर्नमेंट सेक्टर

• भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल)

• पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (पीजीसीआईएल)

• स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल)

• इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो)

• नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (एनटीपीसी)

• एनएसपीसीएल

• स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड

• गेल

प्राइवेट सेक्टर

• टाटा मोटर्स

• टाटा स्टील एंड पावर लिमिटेड

• एल एंड टी कंस्ट्रक्शन एंड स्टील

• जेनिथ कंस्ट्रक्शन

• जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड

• ओमेगा एलीवेटर

Friday, September 11, 2020

हाउसकीपिंग क्षेत्र में युवाओं के लिए अवसर

वर्तमान समय में हर परिवार की समस्या है बेरोज़गारी,  आज के समय में मास्टर्स (Masters), एमबीए  (MBA), पीएचडी (PHD) करने के बावजूद भी लोग नौकरी की तलाश में लगे है. हर व्यक्ति चाहता है कि हमारी अच्छी जॉब, अच्छी सैलरी हो तो इसके लिए एक ऐसा क्षेत्र है, जहा आपको अच्छी जॉब के साथ अच्छी सैलरी भी मिल सकती है.

हाउसकीपिंग इंडस्ट्री जो बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. यह आपके लिए सुनहरा मौका साबित हो सकता है.आज के ज्यादातर युवा अब इसमें अपना भविष्य देख रहे है. क्योंकि हाउसकीपिंग मल्टीटास्किंग होता है हर जॉब में हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट अलग -अलग तरीको से काम करता है पर इसकी ज्यादा मांग होटल, हॉस्पिटल और कॉर्पोरेट कंपनियों में है. लोगों के मन में इस प्रोफेशन को लेकर कई तरह की गलतफहमियां है. कई लोगों का मानना है कि हाउसकीपिंग सिर्फ साफ सफाई का काम है. लेकिन ऐसा नहीं है एक हाउस कीपर को सफाई के अलावा और भी बहुत से काम करने पड़ते है. जैसे अतिथियों(Guest) का स्वागत करना या उनका ध्यान रखना हर कार्य को समय पर पूरा करना आपातकालीन स्थिति (Emergency situation ) में सुरक्षा करना आदि.

शैक्षिक योग्यता

हाउसकीपिंग के बहुत सारे कोर्सेस (Courses ) होते है. इस क्षेत्र में मुख्य रूप से 2 तरह के कोर्स होते है -एक जो दसवीं के बाद 3 साल का डिप्लोमा और दूसरा बारहवीं व स्नातक (Graduation ) के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन इन हाउसकीपिंग (Post Graduation in Housekeeping) और मैनेजमेंट का डिप्लोमा जिसके बाद आप हाउस कीपर बन सकते है. यहाँ अलग -अलग पदों में काम किया जाता है. जैसे - एग्जीक्यूटिव हाउसकीपर (Executive House Keeper), असिस्टेंट हाउसकीपर(Assistant House Keeper ), फ्लोर सुपरवाइजर (Floor Supervisor) , स्टोरकीपर (Store Keeper), डेस्क सुपरवाइजर (Desk Supervisor) आदि इस कोर्स को करने के लिए बारहवीं में 50 प्रतिशत अंकों से सफल होना अनिवार्य है. आज कल इस कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षा  (Entrance Exam) को भी पास करना पड़ता है. जिसमे लिखित परीक्षा (Theory ) व ग्रुप डिस्कशन (Group Discussion) में पास होने के बाद ही चुनाव किया जाता है.

हाउसकीपिंग कोर्सेज व डिप्लोमा के टॉप इंस्टिट्यूट:

एशियाई इंस्टिट्यूट ऑफ़ हॉस्पिटैलिटी एंड टूरिज्म

क्रैडल ऑफ़ मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट

फ्रैंकफिन इंस्टिट्यूट

हाउसकीपिंग में करियर व सैलरी

वैसे तो हाउसकीपिंग डिपार्टमेंट हर क्षेत्र में होता है. लेकिन इनकी प्रमुख मान्यताएं होटल्स, हॉस्पिटल, कॉर्पोरेट कंपनी व मीडिया हाउस में ज़्यादा होती है. इसमें शुरुआती दिनों में सैलरी 10  से 15 हज़ार के बीच  होती है. लेकिन काम व अनुभव के साथ -साथ वेतन में भी बढ़ोतरी होती है.

हाउसकीपिंग के लिए टॉप प्रशिक्षण स्थान

ओबेरॉय ग्रुप ऑफ़  होटल्स (Oberoi Group of hotels)

हयात कॉर्पोरेशन (Hayat Corporation)

रैडिसन ब्लू (Radisson Blu)

इम्पीरियल होटल (Imperial Hotel)

अशोका होटल (Ashoka Hotel)

ताज ग्रुप्स ऑफ होटल्स ( Taj Groups of Hotel)

मैक्स  हॉस्पिटल (Max Hospital)

मेदांता हॉस्पिटल गुरुग्राम (Medanta Hospital Gurugram)

फोर्टिस हेल्थ केयर (Fortis Health Care)

एयरपोर्ट्स (Airports)

Saturday, September 5, 2020

मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजी का कोर्स कर सवारें अपना भविष्‍य

अब मेडिकल फील्ड में भी राहों की कमी नहीं है. बायोलॉजी के हर स्टुडेंट की ख्वाहिश होती है कि वह डॉक्टर बने. लेकिन अगर वह उसमें सफल नहीं होते, तो निराश होने की जरूरत नहीं है. मेडिकल में अन्य फील्ड भी हैं जहां जॉब की अच्छी संभावनाएं हैं. उनमें से एक है- मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजी. मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड निजी और गवर्नमेंट फील्ड्स में भी खूब है.

कैसे होती है एंट्री?
लैब टेक्नोलॉजिस्ट के रूप में करियर बनाने के लिए कई रास्ते खुल गए हैं. इसके लिए सर्टिफिकेट इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, बीएससी मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजी, डिप्लोमा इन मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजी जैसे कोर्स किए जा सकते हैं. आम तौर पर ऐसे कोर्स 12वीं के बाद किए जा सकते हैं. डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश के लिए 12वीं में बायोलॉजी सब्जेक्ट होना जरूरी है, जिसकी अवधि दो वर्ष की होती है. ऐसे इंस्टीट्यूट में एडमिशन लें, जहां अच्छे लैब उपकरण हों. इस फील्ड में जॉब तो बीएससी या डिप्लोमा करके ही हासिल किया जा सकता है. लेकिन किसी अच्छे सब्जेक्ट से पोस्ट ग्रेजुएशन कर लेने से ऑप्शन बढ़ जाते हैं और डिमांड एक स्पेशलिस्ट के रूप होने लगती है.

इस फील्ड में दो तरह के प्रोफेशनल्स काम करते हैं- एक मेडिकल लैबोरेट्री टेक्निशियन और दूसरे मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजिस्ट. आम तौर पर टेक्निशियन के काम को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है- नमूना तैयार करना, जांच की मशीनों को ऑपरेट करना और उनका रखरखाव तथा जांच की रिपोर्ट तैयार करना. वहीं मेडिकल लैबोरेटरी टेक्नोलॉजिस्ट रोगी के खून की जांच, टीशू, माइक्रोआर्गनिज्म स्क्रीनिंग, केमिकल एनालिसिस और सेल काउंट से जुड़े परीक्षण को अंजाम देता है

इस फील्ड में हैं कई राहें
पैरा मेडिकल सिर्फ नर्सिंग और हॉस्पिटल के प्रशासनिक कार्यों तक ही सीमित नहीं है. इसके दायरे में कई सारे फील्ड्स, जैसे- मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी और ऑक्यूपेशनल थेरेपी, ऑर्थोटिक और प्रोस्थेटिक टेक्नोलॉजी, फार्मेसी, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन ऐंड मैनेजमेंट, ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरेपी, डेंटल हाइजिन ऐंड डेंटल मैकेनिक और स्वास्थ्य स्वच्छता निरीक्षण आदि आते हैं.

जॉब की संभावनाएं
डीपीएमआइ की प्रिंसिपल डॉ. अरुणा सिंह बताती हैं, ''इसमें गवर्नमेंट फील्ड के जॉब के लिए वैकेंसीज का इंतजार करना पड़ सकता है, लेकिन प्राइवेट सेक्टर में ऐसी बात नहीं है. मेडिकल फील्ड में प्रोडक्ट डेवलपमेंट, मार्केङ्क्षटग सेल्स, क्वालिटी इंश्योरेंस, एन्वायरनमेंट हेल्थ ऐंड इंश्योरेंस जैसे फील्ड्स में भी मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट की डिमांड है.” इस फील्ड में प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 10,000-15,000 रु. प्रति माह है. अनुभव के बाद सैलरी बढऩे के साथ-साथ अपना लैब भी खोला जा सकता है. सरकारी फील्ड में शुरुआत से ही अच्छी सैलरी मिलती है.

हेल्थ सेक्टर में बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए डॉक्टर्स के साथ ही पारा मेडिकल प्रोफेशनल्स की जबरदस्त मांग है. इस सेक्टर में इनकी तादाद करीब 60 फीसदी होती है. एक सर्वे के मुताबिक, देश में 2015 तक 60 लाख से अधिक ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत पड़ेगी. योजना आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में करीब 10,00,000 नर्सों और बड़ी तादाद में ऐसे प्रोफेशनल्स की कमी है. जाहिर है इस फील्ड में करियर की काफी संभावनाएं हैं.

Tuesday, August 25, 2020

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में करियर

मैकेनिकल इंजीनियरिंग क्या है?

मैकेनिकल इंजीनियरिंग सबसे पुराने और व्यापक विषयों में से एक इंजीनियरिंग विषय है. यह मशीन्स और टूल्स की डिजाइनिंग, प्रोडक्शन और ऑपरेशन के लिए हीट और मैकेनिकल पॉवर के उत्पादन और इस्तेमाल से संबद्ध है. इस फील्ड में करियर शुरू करने वाले छात्रों के लिये यह बहुत जरुरी है कि उन्हें कोर कन्सेप्ट्स जैसेकि, मैकेनिक्स, कीनेमेटीक्स, थर्मोडायनामिक्स, मेटीरियल साइंस, स्ट्रक्चरल एनालिसिस आदि की अच्छी समझ होनी चाहिए. इन कोर्सेज में मुख्यतः टेक्निकल एरियाज जैसेकि जनरेटर्स के माध्यम से इलेक्ट्रिसिटी का डिस्ट्रीब्यूशन, ट्रांसफार्मर्स, डिजाइनिंग, इलेक्ट्रिक मोटर्स, ऑटोमोबाइल्स, एयरक्राफ्ट और अन्य हैवी व्हीकल्स शामिल हैं.

मैकेनिकल इंजीनियर्स क्या करते हैं?

मैकेनिकल इंजीनियरिंग आपके जीवन के तकरीबन हरेक पहलू को प्रभावित करती है. अधिकांश चीज़ें, जो हम अपनी रोजाना की जिंदगी में इस्तेमाल करते हैं, उन्हें मैकेनिकल इंजीनियर्स ही डिज़ाइन और डेवलप करते हैं. उदाहरण के लिए, माइक्रो-सेन्सर्स, कंप्यूटर्स, ऑटोमोबाइल्स, स्पोर्ट्स इक्विपमेंट, मेडिकल डिवाइसेज, रोबोट्स और कई अन्य वस्तुएं. हमारे जीवन को ज्यादा बेहतर बनाने के लिए इन नई डिवाइसेज और इक्विपमेंट से मदद मिलती है. 

कोर्सेज एंड ड्यूरेशन

मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इंजीनियरिंग की कोर फ़ील्ड्स में से एक है. यह इंजीनियरिंग के सबसे पुराने विषयों में से भी एक है. आजकल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कई स्पेशलाइजेशन्स को शामिल किया गया है. जो कन्सेप्ट्स यहां शामिल किये गए हैं, वे इंजीनियरिंग की अन्य फ़ील्ड्स से भी परस्पर संबद्ध हैं. उदाहरण के लिए, पेट्रोलियम, ऑटोमोबाइल, एयरोस्पेस, सिविल, केमिकल आदि विषय इंजीनियरिंग के ऐसे विषय हैं जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग से भी अच्छी तरह संबद्ध हैं. जो छात्र मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कोई कोर्स करना चाहते हैं, वे विभिन्न कोर्सेज में दाखिला ले सकते हैं:

  • डिप्लोमा कोर्सेज – यह कोर्स छात्रों को मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एक पॉलिटेक्निक डिप्लोमा ऑफर करता है और आप 10 वीं और 12 वीं क्लास पास करने के बाद यह कोर्स कर सकते हैं. इस कोर्स की ड्यूरेशन या अवधि 3 वर्ष है.  
  • अंडरग्रेजुएट कोर्सेज – यह एक 4 वर्ष की अवधि का कोर्स है जिसे पूरा करने पर आपको मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक (बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी) की डिग्री मिलती है. आप 12 वीं क्लास पास करने के बाद यह कोर्स कर सकते हैं.
  • पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज – यह 2 वर्ष की अवधि का कोर्स है जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक (मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी) की पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री ऑफर करता है. इस कोर्स में एडमिशन लेने से पहले आपके पास उपयुक्त फील्ड में अंडरग्रेजुएट डिग्री होनी चाहिए.
  • डॉक्टोरल कोर्सेज – यह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डॉक्टोरल डिग्री या पीएचडी (डॉक्टर ऑफ़ फिलोसोफी की डिग्री) प्राप्त करने के लिए एक 3 वर्ष की अवधि का कोर्स है. यह कोर्स करने के लिए छात्रों के पास किसी उपयुक्त विषय में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री होनी चाहिए.

सबसे लोकप्रिय उप-विषय

मैकेनिकल इंजीनियरिंग की फील्ड में कई स्पेशलाइजेशन्स होते हैं और छात्र बैचलर डिग्री प्राप्त करने के बाद हायर डिग्रीज प्राप्त करने के लिए इन उप-विषयों में से किसी एक में स्पेशलाइजेशन हेतु अपनी स्टडीज जारी रख सकते हैं. इस फील्ड के कुछ सबसे लोकप्रिय स्पेशलाइजेशन्स निम्नलिखित हैं:

  • मेकाट्रोनिक्स एंड रोबोटिक्स – यह फील्ड कई विषयों जैसे रोबोटिक्स, आर्टिफीशल इंटेलिजेंस, कंप्यूटर साइंस, न्यूरोसाइंस, साइकोलॉजी और कई अन्य विषयों से संबद्ध है. रोबोटिक्स में स्पेशलाइजेशन करने वाले छात्रों के लिए कई बेहतरीन करियर ऑप्शन्स मौजूद हैं. वे विभिन्न इंडस्ट्रीज जैसेकि, मैन्युफैक्चरिंग, हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्टेशन, एंट्री एवं अन्य संबद्ध इंडस्ट्रीज में काम कर सकते हैं.
  • थर्मोडाईनॅमिक्स एंड थर्मो-साइंस – यह फील्ड हीट ट्रांसफर और थर्मोडाईनॅमिक्स के फंडामेंटल प्रिंसिपल्स के साथ ही एडवांस्ड इंजीनियरिंग सिस्टम्स में उनके एप्लीकेशन और डिजाइनिंग से संबद्ध है.
  • नैनोटेक्नोलाजी – इस फील्ड में बहुत ज्यादा छोटे पैमाने पर टेक्नोलॉजी की स्टडी और डेवलपमेंट शामिल हैं. इस फील्ड में स्पेशलाइजेशन करने वाले छात्रों को केमिस्ट्री, इंजीनियरिंग, बायोलॉजी आदि की फ़ील्ड्स में करियर के कई अवसर मिलते हैं.
  • फ्लूइड मैकेनिक्स – रॉकेट इंजन्स, एयर-कंडीशनिंग, आयल पाइपलाइन्स, विंड टरबाइन्स आदि की डिजाइनिंग और समझ रखने के लिए फ्लूइड मैकेनिक्स में स्पेशलाइजेशन करना बहुत आवश्यक है. ओशन करंट्स, टेक्टोनिक प्लेट्स और अन्य संबद्ध टॉपिक्स को एनालाइज करने के लिए भी इस फील्ड का बहुत महत्व है.
  • सॉलिड मैकेनिक्स – सॉलिड मैकेनिक्स में स्पेशलाइजेशन के तहत बिहेवियर, मोशन, डिफोरमेशन और एक्सटर्नल इन्फ्लुएंसेज के अनुसार सॉलिड मेटीरियल्स की स्टडी शामिल है. इस फील्ड में एक्सपरटाइज प्राप्त करने के बाद आपके पास मैन्युफैक्चरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, एयरोस्पेस इंजीनियरिंग और न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी में इंजीनियरिंग करियर शुरू करने के ढेरों अवसर मौजूद हैं. 

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मुख्य विषय

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में शामिल कुछ मुख्य विषय निम्नलिखित हैं:

• कम्प्यूटेशनल फ्लुइड डायनेमिक्स एंड हीट ट्रांसफर

• कंप्यूटर एडेड डिजाइन ऑफ़ थर्मल सिस्टम

• फंडामेंटल्स ऑफ़ कास्टिंग एंड सॉलिडीफिकेशन

• इंडस्ट्रियल इंजीनियरिंग एंड ऑपरेशन रिसर्च

• मॉडलिंग ऑफ़ टरबूलेंट कम्बस्शन

• प्रिंसिपल ऑफ़ वाइब्रेशन कंट्रोल

• रेलरोड व्हीकल डायनामिक्स

• रोबोट मैनिपुलेटर्स डायनामिक्स एंड कंट्रोल

• ट्रांजीशन एंड टर्बुलेंस

• वेव प्रोपेगेशन इन सोलिड्स

एडमिशन प्रोसेस

मैकेनिकल इंजीनियरिंग कोर इंजीनियरिंग विषयों में सबसे ज्यादा पसंदीदा कोर्सेज में से एक है. छात्र विभिन्न लेवल्स जैसेकि डिप्लोमा, अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट, डॉक्टोरल के तहत मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कोई कोर्स कर सकते हैं. लेकिन, उक्त कोर्सेज में से हरेक कोर्स के लिए पहले से जरूरी कुछ एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया हैं और छात्रों के पास अवश्य ये योग्यतायें होनी चाहियें. इसलिये, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में विभिन्न कोर्सेज के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया निम्नलिखित है: 

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में विभिन्न कोर्सेज में एडमिशन लेने के लिए एलिजिबिलिटी क्राइटेरिया

  • डिप्लोमा कोर्सेज – छात्र ने किसी मान्यताप्राप्त शिक्षा बोर्ड से 10 वीं क्लास का एग्जाम पास किया हो.छात्र ने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स आदि मुख्य विषयों के साथ 12 वीं क्लास पास की हो.
  • अंडरग्रेजुएट कोर्सेज – यूजी प्रोग्राम में एडमिशन लेने के लिए छात्र को उपयुक्त एंट्रेंस एग्जाम्स देने होते हैं. इसके अलावा, छात्र ने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स आदि मुख्य विषयों के साथ 12 वीं क्लास पास की हो.
  • पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज – पीजी प्रोग्राम्स में एडमिशन लेने के लिए भी छात्र को उपयुक्त एंट्रेंस एग्जाम्स पास करने होते हैं. छात्र के पास किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से संबद्ध विषय में अंडरग्रेजुएट की डिग्री भी होनी चाहिए.
  • डॉक्टोरल कोर्सेज – डॉक्टोरल प्रोग्राम में एडमिशन लेने के लिए, छात्र के पास किसी मान्यताप्राप्त यूनिवर्सिटी से किसी संबद्ध विषय में पोस्टग्रेजुएशन की डिग्री अवश्य होनी चाहिए.

मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए एंट्रेंस एग्जाम्स

इंजीनियरिंग के विभिन्न विषयों में एडमिशन लेने के लिए राष्ट्रीय, राज्य और यूनिवर्सिटी लेवल पर एंट्रेंस एग्जाम्स आयोजित किये जाते हैं. मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लेने के लिए छात्र निम्नलिखित लोकप्रिय एग्जाम्स दे सकते हैं:

• जॉयंट एंट्रेंस एग्जाम - मेन (जेईई मेन)

• जॉयंट एंट्रेंस एग्जाम - एडवांस्ड (जेईई एडवांस्ड)

• वीआईटी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (वीआईटीईईई)

• दी महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (एमएचटीसीईटी)

• उत्तर प्रदेश राज्य एंट्रेंस एग्जाम (यूपीएसईई)

• बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एडमिशन टेस्ट (बीआईटीएसएटी)

• वीआईटी यूनिवर्सिटी मास्टर’स एंट्रेंस एग्जाम (वीआईटीएमईई)

• ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट)

• बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी एंड साइंस हायर डिग्री एग्जाम (बीआईटीएस एचडी)

मैकेनिकल इंजीनियरिंग के लिए टॉप 10 इंस्टिट्यूट्स 

भारत में इंजीनियरिंग कोर्सेज करने के लिए सबसे बढ़िया कॉलेजों के तौर पर ‘इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजीज़’ अर्थात आईआईटी’ज माने जाते हैं. एनआईआरएफ रैंकिंग वर्ष 2018 के अनुसार, भारत में यूजीसी से मान्यताप्राप्त टॉप 10 इंजीनियरिंग कॉलेज निम्नलिखित हैं:

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी मद्रास, मद्रास

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी बॉम्बे, बॉम्बे

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी खड़गपुर, खड़गपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी दिल्ली, दिल्ली

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कानपुर, कानपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी रुड़की, रुड़की

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी गुवाहाटी, गुवाहाटी

• अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई

• जादवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी हैदराबाद, हैदराबाद

मैकेनिकल इंजीनियर्स के लिए करियर प्रॉस्पेक्ट्स

मैकेनिकल इंजीनियरिंग में कई अन्य कार्यों के साथ ही मशीन्स की डिजाइनिंग और टेस्टिंग के विभिन्न पहलू शामिल हैं. इस जॉब में विभिन्न फ़ील्ड्स जैसेकि, थर्मल पॉवर प्लांट्स, न्यूक्लियर स्टेशन्स, इलेक्ट्रिसिटी जनरेशन आदि में लाइव प्रोजेक्ट्स की प्लानिंग और सुपरविज़न के कार्य आते हैं. इस फील्ड में रिन्यूएबल एनर्जी, ऑटोमोबाइल्स, क्वालिटी कंट्रोल, इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन आदि कुछ नई और ऐमर्जिंग फ़ील्ड्स हैं. इंजीनियरिंग में अंडरग्रेजुएट डिग्रीज प्राप्त करने के बाद छात्रों के लिए मैन्युफैक्चरिंग, प्रोडक्शन, सर्विसेज और डेवलपमेंट की विभिन्न फ़ील्ड्स में जॉब के काफी अच्छे अवसर मौजूद हैं. आजकल हम मशीन्स के युग में जी रहे हैं और जहां एक मशीन है, वहां एक मैकेनिकल इंजीनियर की जरूरत है. इसलिये, मैकेनिकल इंजीनियर्स के लिए कभी भी जॉब ऑप्शन्स की कमी नहीं हो सकती है.     

मैकेनिकल इंजीनियर्स के लिए लोकप्रिय जॉब प्रोफाइल्स

मैकेनिकल इंजीनियर्स अपने स्पेशलाइजेशन के आधार पर बहुत-सी इंडस्ट्रीज में काम कर सकते हैं. मैकेनिकल इंजीनियर्स के लिए कुछ पसंदीदा जॉब प्रोफाइल्स निम्नलिखित हैं: 

  • आर्किटेक्चरल एंड इंजीनियरिंग मैनेजर्स

आर्किटेक्चरल और इंजीनियरिंग मैनेजर्स आर्किटेक्चरल और इंजीनियरिंग कंपनियों में प्लानिंग, डायरेक्टिंग, मैनेजिंग और कोआर्डिनेटिंग एक्टिविटीज से संबद्ध कार्य करते हैं.

  • ड्राफ्टर्स

इस जॉब में इंजीनियर्स और आर्किटेक्ट्स द्वारा बनाये गये डिज़ाइन्स को टेक्निकल ड्राइंग में बदलने के लिए सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना शामिल है ताकि माइक्रोचिप्स और स्काईस्क्रेपर्स जैसी चीज़ों को डिज़ाइन करने में मदद मिल सके. कोई भी उम्मीदवार आर्किटेक्चर, सिविल, इंजीनियरिंग, मैकेनिकल एवं अन्य संबद्ध फ़ील्ड्स में स्पेशलाइजेशन कर सकता है.

  • मेटीरियल इंजीनियर्स

इस प्रोफाइल में नये मेटीरियल्स बनाने के लिए मेटल्स, सिरेमिक्स, प्लास्टिक, कंपोजिट्स, नैनोमेटीरियल्स और विभिन्न अन्य वस्तुओं की प्रॉपर्टीज और स्ट्रक्चर की स्टडी की जाती है. एक मेटीरियल इंजीनियर के तौर पर आप माइक्रोचिप्स से एयरक्राफ्ट्स विंग्स तक और गोल्फ क्लब्स से बायोमेडिकल डिवाइसेज आदि तक प्रोडक्ट्स की व्यापक रेंज तैयार करने के लिए इस्तेमाल होने वाले मेटीरियल्स की प्रोसेसिंग, टेस्टिंग और डेवलपिंग से संबद्ध कार्य भी करेंगे.  

  • मैकेनिकल इंजीनियरिंग टेकनीशियन्स

मैकेनिकल इंजीनियरिंग टेकनीशियन्स विभिन्न मैकेनिकल डिवाइसेज को डिज़ाइन करने, डेवलप करने, उनकी मैन्युफैक्चरिंग और टेस्टिंग में मैकेनिकल इंजीनियर्स की सहायता करते हैं. आपको रफ लेआउट्स बनाने, डाटा एनालाइसिंग और रिकॉर्डिंग, कैलकुलेशन्स करने, एस्टिमेट्स लगाने और प्रोजेक्ट्स के नतीजों की रिपोर्टिंग से संबद्ध कार्य करने होंगे. 

  • न्यूक्लियर इंजीनियर्स 

न्यूक्लियर इंजीनियर्स हमारे फायदे के लिए न्यूक्लियर एनर्जी और रेडिएशन का इस्तेमाल करने के लिए उपयोगी प्रोसेस और सिस्टम्स के रिसर्च और विकास कार्य करते हैं.

  • पेट्रोलियम इंजीनियर्स

एक पेट्रोलियम इंजीनियर के तौर पर आपको ऑयल डिपॉजिट्स से ऑयल और गैस निकालने के लिए विभिन्न मेथड्स को डिज़ाइन और डेवलप करने से संबद्ध कार्य करने होंगे.

  • फिजिसिस्ट्स एंड एस्ट्रोनोमर्स

फिजिसिस्ट्स एंड एस्ट्रोनोमर्स एनर्जी और मैटर के इंटरेक्शन के विभिन्न रूपों के तौर-तरीकों की स्टडी करते हैं. कुछ फिजिसिस्ट्स पार्टिकल एक्सेलरेटर्स, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप्स, लेज़र्स आदि जैसे सोफिस्टिकेटेड इक्विपमेंट को डिज़ाइन करते हैं और उन के साथ एक्सपेरिमेंट्स भी करते हैं.

  • सेल्स इंजीनियर्स

सेल्स इंजीनियर्स विभिन्न बिजनेसेज को जटिल साइंटिफिक और टेक्नोलॉजिकल प्रोडक्ट्स बेचते हैं. एक सेल्स इंजीनियर के तौर पर आपको अपने प्रोडक्ट, इसके पार्ट्स और कार्यों की काफी अच्छी जानकारी होनी चाहिए. आपको प्रोडक्ट के कामकाज में शामिल वैज्ञानिक प्रक्रिया की अच्छी समझ भी होनी चाहिए.

लोकप्रिय रिक्रूटर्स

गवर्नमेंट और प्राइवेट सेक्टर्स में मैकेनिकल इंजीनियर्स को जॉब के बढ़िया अवसर ऑफर करने वाले कुछ लोकप्रिय रिक्रूटर्स के नाम नीचे दिए जा रहे हैं:

गवर्नमेंट सेक्टर

• भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड (बीएचईएल)

• नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (एनटीपीसी)

• इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो)

• डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ)

• कोल इंडिया

• इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ़ इंडिया (ईसीआईएल)

• हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल)

• स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया (सेल)

प्राइवेट सेक्टर

• टाटा मोटर्स

• बजाज ऑटो

• हीरो मोटोकॉर्प

• लेलैंड मोटर्स

• फोर्ड मोटर कंपनी

• होंडा मोटर कंपनी

• भाभा एटॉमिक रिसर्च सेटर (बीएआरसी)

Wednesday, July 1, 2020

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग में करियर

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग क्या है?

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग, इंजीनियरिंग की वह ब्रांच है जो फार्म इक्विपमेंट और मशीनरी के कंस्ट्रक्शन, डिज़ाइन और इम्प्रूवमेंट से संबद्ध कार्य करती है.

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग फार्मिंग में टेक्नोलॉजी को अप्लाई करती है. उदाहरण के लिए, यह नये और उन्नत फार्मिंग इक्विपमेंट्स डिज़ाइन करती है जो ज्यादा कुशलतापूर्वक कार्य करते हैं. यह एग्रीकल्चरल इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसेकि, वाटर रिजर्वोयर्स, वेयरहाउसेज, डेम्स और अन्य स्ट्रक्चर्स को डिज़ाइन और तैयार करती है. यह बड़े फार्म्स में पोल्यूशन कंट्रोल के लिए सॉल्यूशन्स तलाशने की कोशिश भी करती है. कुछ एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स नॉन-फ़ूड रिसोर्सेज जैसेकि एलगी और एग्रीकल्चरल वेस्ट से बायो-फ्यूल्स की नई वैरायटी विकसित कर रहे हैं. ये फ्यूल्स फ़ूड सप्लाई को नुकसान पहुंचाए बिना गैसोलीन को आर्थिक रूप से और स्थाई तौर पर रिप्लेस कर सकते हैं.

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स क्या करते हैं?

अधिकांश एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स एग्रीकल्चरल इक्विपमेंट्स, मशीनरी और उनके पार्ट्स को डिज़ाइन और टेस्ट करने से संबद्ध कार्य करते हैं. वे फ़ूड प्रोसेसिंग प्लांट्स और फ़ूड स्टोरेज स्ट्रक्चर्स को डिज़ाइन करते हैं. कुछ इंजीनियर्स लाइवस्टॉक (पशुधन) के लिए हाउसिंग और एनवायरनमेंट्स भी डिज़ाइन करते हैं. वे फार्म्स में लैंड रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट्स की योजना बनाते हैं और इन प्रोजेक्ट्स की देखरेख करते हैं. कुछ इंजीनियर्स एग्रीकल्चरल वेस्ट से एनर्जी प्रोजेक्ट्स और कार्बन सिक्वेस्ट्रेशन से संबद्ध कार्य करते हैं. हमने इस आर्टिकल में आगे एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स के वर्क प्रोफाइल्स के बारे में और अधिक जानाकारी पेश की है.

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स कहां काम करते हैं?

एक स्टडी के अनुसार, अधिकांश एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स (17%) इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चरल और संबद्ध सर्विसेज में कार्यरत थे. सरकार द्वारा 16% इंजीनियर्स को जॉब्स मुहैया करवाई गईं. अन्य 14% इंजीनियर्स फ़ूड मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े काम कर रहे थे. 13% इंजीनियर्स एग्रीकल्चर, कंस्ट्रक्शन और माइनिंग मशीनरी मैन्युफैक्चरिंग से संबद्ध कार्य कर रहे थे. अन्य 6% लोग एजुकेटर्स के तौर पर कार्य कर रहे थे.

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स इंडोर और आउटडोर स्थानों पर काम करते हैं. वे ऑफिसेज में प्लान्स तैयार करने और प्रोजेक्ट्स मैनेज करने के लिए अपना समय बिताते हैं और एग्रीकल्चरल सेटिंग्स में साइट्स की इंस्पेक्शन, इक्विपमेंट मोनिटरिंग, लैंड रिक्लेमेशन और वाटर मैनेजमेंट प्रोजेक्ट्स की देखरेख करने से संबद्ध कार्य भी करते हैं.

ये इंजीनियर्स लैबोरेट्रीज और क्लासरूम्स में भी काम कर सकते हैं. ये लोग अन्य लोगों के साथ मिलकर किसी भी काम की प्लानिंग और प्रोब्लम्स को सॉल्व करने से संबद्ध कार्य भी करते हैं. उदाहरण के लिए, ये इंजीनियर्स हॉर्टिकल्चरिस्ट्स, एग्रोनोमिस्ट्स, एनिमल साइंटिस्ट्स और जेनेटिक्स के साथ मिलकर काम कर सकते हैं.

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग में बीटेक के लिए टॉप एंट्रेंस एग्जाम्स

इन एंट्रेंस एग्जाम्स में 150 से 200 तक प्रश्न पूछे जा सकते हैं और एग्जाम की कुल अवधि 3 घंटे होती है. एंट्रेंस एग्जाम का सिलेबस निम्नलिखित विषयों से संबद्ध होता है:

  • फिजिक्स
  • केमिस्ट्री
  • मैथमेटिक्स
  • बायोलॉजी

बीटेक कोर्सएग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग के लिए ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट्स

• इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जाम

• कॉमन इंजीनियरिंग एंट्रेंस टेस्ट (हरियाणा सीईटी)

• ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (एआईईईई)

• भारथ यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• इंजीनियरिंग, एग्रीकल्चरल एंड मेडिकल कॉमन एंट्रेंस एग्जाम (ईएएमसीईटी)

• गुजरात कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (जीसीईटी)

• इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (बीएचयू) एंट्रेंस एग्जाम

• नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कंबाइंड प्री-एंट्रेंस टेस्ट

• महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (एमएचसीईटी)

• दिल्ली यूनिवर्सिटी कंबाइंड एंट्रेंस टेस्ट  

• जम्मू एंड कश्मीर स्टेट लेवल एंट्रेंस टेस्ट (एसएलईटी)

• पंजाब यूनिवर्सिटी कॉमन एंट्रेंस एग्जाम (सीईटी)

• जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग, एग्रीकल्चरल एंड मेडिसिन कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (सीईटी)

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम

• तमिलनाडु प्रोफेशनल कोर्सेज एंट्रेंस एग्जाम (टीएनपीसीईई)

• झारखंड कंबाइंड एंट्रेंस कम्पीटीटिव एग्जाम (जेसीईसीई)

• बिहार कंबाइंड एंट्रेंस कम्पीटीटिव एग्जाम (बीसीईसीई)

• बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी सीईटी

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी – ज्वाइन एडमिशन टेस्ट (आईआईटी - जेएएम)

• नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनईआरआईएसटी) एंट्रेंस एग्जाम

• जीजीएसआईपी यूनिवर्सिटी कंबाइंड एंट्रेंस टेस्ट (सीईटी)

• ज्वाइंट एंट्रेंस टेस्ट (जेएटी)

• केरल इंजीनियरिंग एग्रीकल्चरल मेडिकल (केईएएम)

• उत्तर प्रदेश स्टेट इंजीनियरिंग एडमिशन टेस्ट (यूपीएसईएटी)

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग में एमएमटेक एंट्रेंस एग्जाम्स की लिस्ट

• नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (एनईआरआईएसटी) एंट्रेंस एग्जाम

• इंडियन काउंसिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जाम

• ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट, इंजीनियरिंग

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी – ज्वाइन एडमिशन टेस्ट (आईआईटी - जेएएम)

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग में एग्जाम्स लेने वाली यूनिवर्सिटीज की लिस्ट

• तमिलनाडु वेटेरिनरी एंड एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी, चेन्नई

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, हिसार, हरियाणा

• चंद्रशेखर आजाद एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी 

• तमिलनाडु एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु

• सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, मणिपुर

• सरदार वल्लभ भाई पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, उत्तर प्रदेश

• गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी,

• नॉर्थ ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी (नॉर्थ ईस्टर्न रीजनल साइंस एंड टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट, इटानगर)

• आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी 

• इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टिट्यूट )

• चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी 

• केरल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी 

• जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी   

• गुजरात एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, गुजरात

• इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट, नई दिल्ली

• इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़

• असम एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी 

• महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, उदयपुर

• महाराष्ट्र एनिमल एंड फिशरी साइंसेज यूनिवर्सिटी 

• मराठवाड़ा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, परभानी

• मराठवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय 

• उड़ीसा यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, उड़ीसा

• पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना, पंजाब

• राजस्थान एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, बीकानेर

• उत्तर बंगा कृषि विश्वविद्यालय 

• वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ़ एनिमल एंड फिशरी साइंसेज

• इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टिट्यूट, उत्तर प्रदेश

• बिधान चंद्र कृषि विश्वविद्यालय 

• बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, झारखंड

• जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, कृषि नगर

• महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ, राहुरी

• राजेंद्र एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पुसा, समस्तीपुर, बिहार

• यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंस, बैंगलोर

• शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एग्रीकल्चरल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी, श्रीनगर

• इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर, मध्य प्रदेश

• डॉ पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय 

• चौधरी सरवान कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स के लिए रोज़गार

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स विभिन्न सेक्टर्स जैसेकि, फार्मिंग, फॉरेस्ट्री और फ़ूड प्रोसेसिंग आदि में काम करते हैं. वे अनेक तरह के प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स क्लाइमेट कंट्रोल सिस्टम्स विकसित करने का काम करते हैं जो पशुधन की प्रोडक्टिविटी और कम्फर्ट में बढ़ोतरी करता है. इसी तरह, कुछ अन्य इंजीनियर्स रेफ्रिजरेशन की स्टोरेज कैपेसिटी और एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए काम करते हैं.

बहुत से एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स एनिमल वेस्ट डिस्पोजल के लिए बेहतर सॉल्यूशन्स विकसित करने के लिए प्रयास करते हैं. जिन इंजीनियर्स के पास कंप्यूटर प्रोग्रामिंग स्किल्स होते हैं, वे एग्रीकल्चर में जियोस्पेशल सिस्टम्स और आर्टिफीशल इंटेलिजेंस को इंटीग्रेट करने का काम करते हैं. उदाहरण के लिए, ये लोग फ़र्टिलाइज़र एप्लीकेशन में एफिशिएंसी लाने या हार्वेस्टिंग सिस्टम्स को स्वचालित बनाने का काम करते हैं.

एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग में जॉब्स

जैसेकि, अब हमें पता है कि एक एग्रीकल्चरल इंजीनियर अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद कई सारे काम कर सकता/ सकती है. कुछ मुख्य जॉब्स निम्नलिखित हैं:

• एग्रीकल्चरल इंजीनियर

• प्लांट फिजियोलॉजिस्ट

• सर्वे रिसर्च एग्रीकल्चरल इंजीनियर

• एनवायर्नमेंटल कंट्रोल्स इंजीनियर

• माइक्रोबायोलॉजिस्ट  

• फ़ूड सुपरवाइजर

• एग्रीकल्चरल इंस्पेक्टर

• एग्रीकल्चरल स्पेशलिस्ट

• फार्म शॉप मैनेजर

• रिसर्चर

• एग्रोनोमिस्ट

• सोयल साइंटिस्ट

• एग्रीकल्चरल क्रॉप इंजीनियर

एग्रीकल्चरल इंजीनियर्स को हायर करने वाली इंडस्ट्रीज/ कंपनीज़

जब अपने सूटेबल वर्क एरिया से संबद्ध इंडस्ट्री/ कंपनी चुनने का समय आता है तो किसी भी एग्रीकल्चरल इंजीनियर के पास कई ऑप्शन्स होते हैं. कुछ मुख्य इंडस्ट्रीज/ कंपनीज़ निम्नलिखित हैं:

• अमूल डेरी

• नेस्ले इंडिया

• फ्रीगोरिफीको अल्लाना

• आईटीसी

• फार्मिंग इंडस्ट्री कंसल्टेंट्स

• एग्रीकल्चरल कमोडिटीज प्रोसेसर्स

• एस्कॉर्ट्स

• प्रोएग्रो सीड

• पीआरएडीएएन

Saturday, May 23, 2020

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में करियर

बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी या इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक एक 4 वर्ष का अंडरग्रेजुएट लेवल कोर्स है. जैसेकि इसके नाम से पता चलता है, इस कोर्स में इंजीनियरिंग की दो बेसिक फ़ील्ड्स – इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकम्यूनिकेशन – का एक साथ अध्ययन करवाया जाता है. इस कोर्स को पढ़ने वाले स्टूडेंट्स इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज, सर्किट्स, ट्रांसमीटर, रिसीवर, इंटीग्रेटेड सर्किट्स जैसे कम्युनिकेशन इक्विपमेंट्स के बारे में सीखते और जानकारी प्राप्त करते हैं. इस कोर्स में बेसिक इलेक्ट्रॉनिक्स, एनालॉग और डिजिटल ट्रांसमिशन्स के साथ डाटा-रिसेप्शन, माइक्रोप्रोसेसर्स, सेटेलाइट कम्युनिकेशन, माइक्रोवेव इंजीनियरिंग, एंटीना और वेव प्रोग्रेशन आदि का भी अध्ययन शामिल है. यह कोर्स करने पर स्टूडेंट्स को इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन की फील्ड में काम करने के लिए अपेक्षित बेसिक कॉन्सेप्ट्स और थ्योरीज की जानकारी और स्किल सेट्स को बढ़ाने में मदद मिलती है.

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – पात्रता मानदंड

किसी भी अंडरग्रेजुएट लेवल के इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन लेने के लिए, स्टूडेंट्स ने देश के किसी मान्यताप्राप्त शिक्षण बोर्ड से अपनी 12वीं क्लास की परीक्षा अवश्य पास की हो. इसके अलावा:

  • स्टूडेंट ने कम से कम क्वालीफाइंग मार्क्स के साथ साइंस विषय (अर्थात फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स में से कोई एक विषय कोर विषय के तौर पर पढ़ा हो) में 12 वीं क्लास का एग्जाम पास किया हो. (कम से कम क्वालीफाइंग मार्क्स विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अलग-अलग हो सकते हैं).
  • कैंडिडेट को इंजीनियरिंग के लिए जेईई मेंस एंट्रेंस एग्जाम और अन्य उपयुक्त कम्पीटीटिव एग्जाम देने होंगे. जेईई मेंस एंट्रेंस एग्जाम भारत में अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेजों में एडमिशन देने के लिए सीबीएसई द्वारा आयोजित किया जानवे वाला कॉमन नेशनल लेवल एंट्रेंस एग्जाम है. जेईई मेंस एंट्रेंस एग्जाम पास करने के बाद ही स्टूडेंट्स ज्वाइंट एडवांस्ड एंट्रेंस एग्जाम दे सकते हैं. कुछ कॉलेज अपने एंट्रेंस एग्जाम्स भी आयोजित करते हैं.

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – एंट्रेंस एग्जाम्स

भारत में जेईई मेन्स इंजीनियरिंग करने के इच्छुक कैंडिडेट्स के लिए सबसे महत्वपूर्ण एंट्रेंस एग्जाम है. भारत में अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज जेईई मेन्स मेरिट लिस्ट के आधार पर स्टूडेंट्स को एडमिशन देते हैं. सुप्रसिद्ध आईआईटीज में एडमिशन लेने के लिए स्टूडेंट्स को जेईई एडवांस्ड एंट्रेंस एग्जाम पास करना होता है. लेकिन, जेईई एडवांस्ड एंट्रेंस एग्जाम देने के लिए आपको पहले जेईई मेन्स एग्जाम पास करना होगा. राष्ट्रीय, राज्य और विश्वविद्यालय के सत्रों पर कई अन्य इंजीनियरिंग एग्जाम्स भी आयोजित किये जाते हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग के लिए कुछ लोकप्रिय इंजीनियरिंग एग्जाम्स निम्नलिखित हैं:

राष्ट्रीय स्तर:

• ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम – मेन्स (जेईई मेन)

• ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम – एडवांस्ड (जेईई एडवांस्ड)

राज्य स्तर:

• महाराष्ट्र कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (एमएचटी-सीईटी)

• उत्तर प्रदेश राज्य एंट्रेंस एग्जाम (यूपीएसईई)

• कर्नाटक कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (केसीईटी)

विश्वविद्यालय स्तर:

• वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (वीआईटीईई)

• बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एडमिशन टेस्ट (बीआईटीएसएटी)

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक अपने में एक सम्पूर्ण कोर्स है.

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – लोकप्रिय स्पेशलाइजेशन्स

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में कोर्स करने वाले स्टूडेंट्स इस फील्ड के विभिन्न उप-विषयों में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं. कुछ महत्वपूर्ण उप-विषय निम्नलिखित हैं:

  • सिग्नल प्रोसेसिंग – इसमें सिंगल्स के एनालिसिस, सिंथिसिस और मॉडिफिकेशन का अध्ययन शामिल है.
  • टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग – इस फील्ड में टेलीकम्यूनिकेशन सिस्टम्स को सपोर्ट और बढ़ावा दिया जाता है. इसके तहत बेसिक सर्किट डिज़ाइन से लेकर स्ट्रेटेजिक मास डेवलपमेंट्स तक सभी कार्य शामिल होते हैं.
  • कंट्रोल इंजीनियरिंग – यह फील्ड उन कंट्रोलर्स की डिजाइनिंग से संबद्ध है जो मशीन के बिहेवियर को माइक्रो-कंट्रोलर्स, प्रोग्रामेबल लॉजिक कंट्रोलर्स, डिजिटल सिग्नल प्रोसेसर्स और इलेक्ट्रिकल सर्किट्स का इस्तेमाल करके कंट्रोल करते हैं.
  • इंस्ट्रूमेंटेशन इंजीनियरिंग – यह फील्ड प्रेशर, फ्लो और टेम्परेचर की मेजरिंग डिवाइसेज की डिजाइनिंग से संबद्ध है. इस फील्ड के लिए स्टूडेंट्स को फिजिक्स की काफी अच्छी जानकारी और समझ होनी चाहिए.
  • कंप्यूटर इंजीनियरिंग – इस विषय के तहत कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर को डेवलप करने के लिए जरुरी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस की विभिन्न फ़ील्ड्स को एकीकृत किया जाता है.
  • वीएलएसआई डिज़ाइन इंजीनियरिंग – वैरी-लार्ज-स्केल इंटीग्रेशन (वीएलएसआई): यह बिलियन्स ट्रांजिस्टर्स को सिंगल चिप में जोड़ने के द्वारा इंटीग्रेटेड सर्किट (आईसी) बनाने की प्रोसेस है. 

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – मुख्य विषय और सिलेबस

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में शामिल कुछ मुख्य विषय निम्नलिखित हैं:

• रैखिक एकीकृत/ लीनियर इंटीग्रेटेड सर्किट्स

• एम्बेडेड सिस्टम्स

• वीएलएसआई डिजाइन

• मेडिकल इलेक्ट्रॉनिक्स

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – टॉप कॉलेजेज

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग कोर्सेज की लगातार बढ़ती लोकप्रियता और डिमांड के कारण, आजकल अधिकांश संस्थान यह कोर्स ऑफर कर रहे हैं. इनमें से हम आपकी सहूलियत के लिए यूजीसी द्वारा मान्यताप्राप्त कुछ लोकप्रिय इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट्स पेश कर रहे हैं जिन्हें वर्ष 2018 के लिए एनआईआरएफ रैंकिंग में टॉप 10 केटेगरीज में शामिल किया गया है:

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी खड़गपुर, खड़गपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी दिल्ली, दिल्ली

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी कानपुर, कानपुर

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी रुड़की, रुड़की

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी गुवाहाटी, गुवाहाटी

• अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नई

• जादवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता

• इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी हैदराबाद, हैदराबाद

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद करियर के अवसर

एक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियर के तौर पर, कोई भी व्यक्ति एविएशन, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिसिटी प्लांट्स, मैन्युफैक्चरिंग, ट्रांसपोर्टेशन, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर एप्लीकेशन आदि में काम कर सकता है. इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियर्स के लिए कुछ अन्य लोकप्रिय रोज़गार के क्षेत्र निम्नलिखित हैं:

• भारतीय इंजीनियरिंग सेवा (आईईएस)

• भारतीय टेलीफोन उद्योग

• सेमीकंडक्टर, चिप डिजाइन-इंडस्ट्रीज

• इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड

• तेल और प्राकृतिक गैस निगम लिमिटेड

• सिविल एविएशन डिपार्टमेंट

• स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडियन लिमिटेड (सेल)

• पॉवर सेक्टर

• इंडियन रेलवे

• भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड

• भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)

• सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद जॉब के अवसर

यह कोर्स करने पर स्टूडेंट्स ब्राडकास्टिंग, कंसल्टिंग, डाटा कम्युनिकेशन, एंटरटेनमेंट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट, सिस्टम सपोर्ट आदि जैसे अन्य कई मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के संगठनों में काम कर सकते हैं. इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियर्स के लिए कुछ बढ़िया जॉब प्रोफाइल्स निम्नलिखित हैं:

• इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर

• फील्ड टेस्ट इंजीनियर

• नेटवर्क प्लानिंग इंजीनियर

• इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन्स कंसलटेंट

• कस्टमर सपोर्ट इंजीनियर

• इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्निशियन

• एसोसिएट फर्स्टलाइन टेक्निशियन

• रिसर्च एंड डेवलपमेंट सॉफ्टवेयर इंजीनियर

• सर्विस इंजीनियर

• सीनियर सेल्स मैनेजर

• टेक्निकल डायरेक्टर

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक – लोकप्रिय रिक्रूटर्स

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियर्स के लिए जॉब के अच्छे अवसर उपलब्ध करवाने वाले कुछ लोकप्रिय रिक्रूटर्स निम्नलिखित हैं:

सरकारी क्षेत्र की कंपनियां

• दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी)

• रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ)

• भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)

निजी क्षेत्र की कंपनियां

• एक्सेंचर सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड

• कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस

• एचसीएल टेक्नोलॉजीज

• हेवलेट पैकर्ड

• हनीवेल ऑटोमेशन इंडिया लिमिटेड

• इंफोसिस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड

• एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स इंक

• टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस)

• विप्रो लिमिटेड

• सीमेंस

• टेक महिंद्रा

• एनवीआईडीआईए

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद सैलरी प्रॉस्पेक्ट्स

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में सैलरी प्रॉस्पेक्ट्स बहुत बढ़िया हैं. लेकिन, आपको कैसा सैलरी पैकेज मिलेगा?... यह कई फैक्टर्स पर निर्भर करता है जैसेकि, वर्किंग स्किल्स, क्वालिफिकेशन्स, वर्किंग एरिया, रिक्रूटर्स सहित अन्य फैक्टर्स आदि. हालांकि, एक फ्रेश कॉलेज ग्रेजुएट के तौर पर, आप 2-3 लाख प्रति वर्ष सैलरी कमा सकते हैं और 5-7 वर्ष के अनुभव के बाद आप प्रति वर्ष 8-9 लाख रु. कमा सकते हैं. 

कौन से स्टूडेंट्स करें यह कोर्स?

जो स्टूडेंट्स प्रॉब्लम-सॉल्विंग में कुशल होते हैं और सूचनाओं को सटीक, संक्षिप्त और असरदार ढंग से पेश करने में माहिर हैं तथा असंगत फैक्ट्स में से संगत फैक्ट्स चुनने की क्षमता जिनमें होती है, उन स्टूडेंट्स के लिए यह कोर्स बिलकुल सही रहेगा. इसके साथ ही, स्टूडेंट्स के पास जिज्ञासु दिमाग होना चाहिए और वे आलोचना को स्वीकार करके उस पर काम करने की इच्छा जाहिर करें. 

आप क्यों करें यह कोर्स?

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग एक काफी लोकप्रिय इंजीनियरिंग विषय है. प्रति वर्ष हजारों स्टूडेंट्स भारत के विभिन्न संस्थानों में इस कोर्स में एडमिशन लेते हैं. यह कोर्स ऐसे तैयार किया गया है ताकि स्टूडेंट्स को कम्प्लेक्स सिस्टम्स को प्लान, डिज़ाइन, इनस्टॉल, ऑपरेट, कंट्रोल और मेनटेन करना सीखने में मदद मिल सके. यह कोर्स स्टूडेंट्स के लिए बेहतरीन करियर विकल्प पेश करता है. यह कोर्स स्टूडेंट्स को टेलिकॉम इंडस्ट्रीज और सॉफ्टवेयर इंडस्ट्रीज से संबद्ध दो विभिन्न सेक्टर्स में काम करने के अवसर भी उपलब्ध करवाता है.

Friday, May 8, 2020

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में करियर

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग क्या है?

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग, इंजीनियरिंग की वह ब्रांच है जो गारमेंट, कलर और फैब्रिक लाइन की इंडस्ट्रीज से संबद्ध कार्य करती है. यह एक ऐसा विज्ञान है जो टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग की प्रोसेस में शामिल सभी एक्टिविटीज और मेथड्स से संबद्ध है.  

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में लॉ, प्रिंसिपल्स और साइंटिफिक टेक्निक्स शामिल हैं जो सभी किस्म के यार्न्स (धागे) और टेक्सटाइल फैब्रिक्स की मैन्युफैक्चरिंग और विकास करने के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं. यह साइंस के उन प्रिंसिपल्स का भी अध्ययन करती है जो टेक्सटाइल फाइबर को बनाने में इस्तेमाल होने वाले पॉलीमर्स को एनालाइज करते हैं.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग का फोकस फाइबर, मशीनरी और प्रोडक्ट्स, अपैरल और टेक्सटाइल प्रोसेस को डिज़ाइन करने और कंट्रोल करने से जुड़े कार्यों पर होता है.

टेक्सटाइल इंजीनियर्स क्या करते हैं?

हम हर जगह टेक्सटाइल्स देख सकते हैं फिर चाहे वे कपड़े, बेडशीट्स, ड्रेपरीज, कारपेटिंग, अपहोल्स्ट्री फैब्रिक्स या टॉवल्स हों. इन सभी गुड्स के प्रोडक्शन के पीछे जो विज्ञान काम कर रहा है, वही टेक्सटाइल इंजीनियरिंग है. टेक्सटाइल इंजीनियर्स उक्त सभी किस्म के फाइबर्स, फैब्रिक्स और यार्न्स को तैयार करने के लिए प्रोसेसेज, इक्विपमेंट और प्रोसीजर्स को डिज़ाइन और डेवलप करने से संबद्ध कार्य करते हैं.

वे प्लांट में काम कर सकते हैं और डिज़ाइन इंजीनियरिंग, प्रोसेस इंजीनियरिंग, प्रोडक्शन कंट्रोल और सुपरविज़न, प्रोडक्ट डेवलपमेंट, टेक्निकल सेल्स एंड सर्विसेज, क्वालिटी कंट्रोल रिसर्च एंड डेवलपमेंट और कॉरपोरेट मैनेजमेंट से जुड़े सभी कार्य करते हैं.

मेडिकल साइंस भी आर्टिफीशल आर्टरीज और किडनी डायलिसिस मशीन्स के फिल्टर्स के लिए टेक्सटाइल्स पर निर्भर करती है. जार्विक – 7 आर्टिफीसीयल हार्ट 50 परसेंट टेक्सटाइल फाइबर्स से बना होता है और उसमें वेल्क्रो फिटिंग्स होती है.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के कोर सब्जेक्ट्स

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, टेक्सटाइल केमिस्ट्री और टेक्सटाइल प्रोडक्शन शामिल हैं. टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में आने वाले कोर सब्जेक्ट्स निम्नलिखित टेबल में दिए जा रहे हैं:

टेक्सटाइल फाइबर

यार्न फॉर्मेशन

फैब्रिक फॉर्मेशन

केमिकल प्रोसेसिंग ऑफ़ टेक्सटाइल्स

इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इन टेक्सटाइल

डिज़ाइन एंड स्ट्रक्चर ऑफ़ फैब्रिक

कंप्यूटर एप्लीकेशन्स इन टेक्सटाइल्स

डिज़ाइन एंड स्ट्रक्चर ऑफ़ फैब्रिक

टेक्सटाइल टेस्टिंग एंड इंस्ट्रूमेंट्स

प्रोसेसिंग एट टेक्सटाइल लैब

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग का चयन क्यों किया जाए?

आजकल टेक्सटाइल एक निरंतर विकसित होने वाली इंडस्ट्री बन चुकी है और फैशन, गारमेंट्स तथा फाइबर मैन्युफैक्चरिंग की फील्ड में अपनी पहचान बनाने में रूचि रखने वाले कैंडिडेट्स टेक्सटाइल इंजीनियरिंग का कोर्स चुन सकते हैं.

यह कोर्स छात्रों को एक शानदार करीयर के लिए ढेरों अवसर उपलब्ध करवाता है क्योंकि टेक्सटाइल्स की मांग और आपूर्ति कभी कम नहीं होगी. इसलिये, टेक्सटाइल इंजीनियरिंग का टाइम और कार्यक्षेत्र लगातार व्यापक होता जा रहा है और टेक्सटाइल इंजीनियरिंग ने भारत और विदेशों में कई किस्म की जॉब्स के अवसर मुहैया करवाये हैं.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में रिसर्च और क्रिएटिविटी की बहुत अधिक जरूरत होती है और छात्र अपनी क्रिएटिविटी, इनोवेशन तथा साइंटिफिक नॉलेज का इस्तेमाल करते हुए अपने यूनिक आइडियाज को साकार कर सकते हैं.

टेक्सटाइल इंजीनियर्स अपने स्किल्स और क्रिएटिविटी के आधार पर, टॉप टेक्सटाइल प्लांट्स एवं कंपनियों में जॉब प्राप्त करके, सफलता की नई उंचाइयों को छू सकते हैं या फिर, वे अपना नया वेंचर भी शुरू कर सकते हैं.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में कोर्सेज

कई यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों ने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में स्पेशलाइजेशन कोर्सेज शुरू किये हैं. टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के सिलेबस में स्टूडेंट्स को मेटीरियल और मशीन के इंटरेक्शन, एनर्जी कंजरवेशन, नेचुरल और मानव-निर्मित मेटीरियल्स, पोल्यूशन, वेस्ट कंट्रोल और सेफ्टी तथा हेल्थ के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है.

भारत में टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में निम्नलिखित 4 किस्म के प्रोग्राम्स हैं:

पॉलिटेक्निक डिप्लोमा कोर्स:

  • टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी/ टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा
  • फेब्रिकेशन टेक्नोलॉजी एंड इरेक्शन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा

अंडरग्रेजुएट कोर्स

इसे अक्सर बीटेक प्रोग्राम के नाम से जाना जाता है. इस कोर्स की ड्यूरेशन 4 वर्ष है और यह कोर्स 10+2 एग्जाम पास करने के बाद किया जा सकता है.

  • टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में बैचलर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (बीटेक)

पोस्टग्रेजुएट कोर्स

इस कोर्स को एमटेक के नाम से भी जाना जाता है और इस कोर्स की अवधि 2 वर्ष है. इंजीनियरिंग में अंडरग्रेजुएट डिग्री प्राप्त करने के बाद आप यह कोर्स कर सकते हैं.

  • टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी में मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमटेक)
  • टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमटेक)
  • टेक्सटाइल केमिस्ट्री में मास्टर ऑफ़ टेक्नोलॉजी (एमटेक)

डॉक्टोरल डिग्री कोर्स

यह कोर्स पीएचडी डिग्री कोर्स के नाम से जाना जाता है और इस कोर्स की अवधि 1-2 वर्ष होती है. छात्र अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद यह कोर्स कर सकते हैं.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम्स की लिस्ट

ग्रेजुएशन लेवल

• जेएनयू: जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• बीआईएसएटी: बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एग्जाम

• एनआईटी: नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी

• डीसीई सीईई: दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग कंबाइंड एंट्रेंस एग्जाम

• बीआईएचईआर: भारथ यूनिवर्सिटी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• एएमआईई: एसोसिएट मेम्बरशिप ऑफ़ इंस्टिट्यूशन्स ऑफ़ इंजीनियर्स

• वीआईटीईईई: वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• एआईईईई: ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• एआईसीईटी: ऑल इंडिया कॉमन एंट्रेंस टेस्ट

• आईआईटी जेईई: आईआईटी ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम

• उत्तर प्रदेश स्टेट एंट्रेंस एग्जाम

पोस्टग्रेजुएशन लेवल

• बीआईटीएसएटी: बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी एंट्रेंस एग्जाम

• गेट: ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट, इंजीनियरिंग

• एआईईईई: इंडियन इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम

• पीजीईसीईटी: पोस्ट ग्रेजुएशन इंजीनियरिंग कॉमन एंट्रेंस टेस्ट

• आईआईटी जेईई: आईआईटी जॉइंट एंट्रेंस एग्जाम

उक्त एग्जाम्स में हिस्सा लेने वाले इंस्टिट्यूट्स की लिस्ट

• आईआईटी: इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, दिल्ली

• इंस्टिट्यूट ऑफ़ इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, नई दिल्ली

• एलडी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग, गुजरात

• कॉलेज ऑफ़ टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, पश्चिम बंगाल

• एसएसएम इंस्टिट्यूट ऑफ टैक्सटाइल टैक्नोलॉजी एंड पॉलिटेक्निक कॉलेज, तमिलनाडु

• यूनिवर्सिटी ऑफ़ मुंबई, महाराष्ट्र

• बेन्नारी अम्मन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, तमिलनाडु

• इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, उड़ीसा

• जैल सिंह कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, पंजाब

• बंगाल इंजीनियरिंग एंड साइंस यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल

• कलकत्ता यूनिवर्सिटी, कॉलेज ऑफ टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, वेस्ट बंगाल

• सरदार वल्लभभाई पटेल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्सटाइल मैनेजमैंट, तमिलनाडु

• जया इंजीनियरिंग कॉलेज, तमिलनाडु

• एमिटी यूनिवर्सिटी, उत्तर प्रदेश

• दी आर्ट्स इंस्टिट्यूट्स

• डिपार्टमेंट ऑफ़ टेक्सटाइल, आईआईटी, दिल्ली

• टेक्नोलॉजिकल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्सटाइल्स, हरियाणा

• अन्ना यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु

• डीकेटीई सोसाइटी’ज टेक्सटाइल इंजीनियरिंग इंस्टिट्यूट, महाराष्ट्र

• कलकत्ता यूनिवर्सिटी, पश्चिम बंगाल

• कुमारगुरु कॉलेज ऑफ टैक्नोलॉजी, तमिलनाडु

• गवर्नमेंट सेंट्रल टेक्सटाइल इंस्टिट्यूट, उत्तर प्रदेश

• एमएलवी टेक्सटाइल इंस्टिट्यूट, राजस्थान

• एमएस युनिवर्सिटी, गुजरात

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में कोर्सेज

कई यूनिवर्सिटीज और कॉलेजों ने टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में स्पेशलाइजेशन कोर्सेज शुरू किये हैं. टेक्सटाइल इंजीनियरिंग के सिलेबस में स्टूडेंट्स को मेटीरियल और मशीन के इंटरेक्शन, एनर्जी कंजरवेशन, नेचुरल और मानव-निर्मित मेटीरियल्स, पोल्यूशन, वेस्ट कंट्रोल और सेफ्टी तथा हेल्थ के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है.

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में उपलब्ध रोज़गार के अवसर

टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में फैशनेबल कपड़ों की मांग को ध्यान में रखते हुए, बहुत ज्यादा रिसर्च, क्रिएटिविटी और इनोवेशन की जरूरत होती है. एक बार कोर्स पूरा हो जाने के बाद, छात्रों को अपने काम में इस क्रिएटिविटी और साइंटिफिक जानकारी का इस्तेमाल जरुर करना चाहिए ताकि उन्हें अपने काम में बेहतरीन क्वालिटी और अच्छे नतीजे प्राप्त हों. 

टेक्सटाइल इंजीनियर्स को अक्सर टॉप टेक्सटाइल प्लांट्स और कंपनियों द्वारा जॉब ऑफर की जाती है. रोज़गार के अलावा, टेक्सटाइल इंजीनियर्स अपना बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं. टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में जिन छात्रों ने डिग्री हासिल की है, वे निम्नलिखित पोजीशन्स पर काम कर सकते हैं:

• मेडिकल टेक्सटाइल्स इंजीनियर

• प्रोसेस इंजीनियर

• ऑपरेशन्स ट्रेनी

• क्वालिटी कंट्रोल सुपरवाइजर

• प्रोसेस इम्प्रूवमेंट इंजीनियर

• टेक्निकल सेल्सपर्सन

भारत में टेक्सटाइल इंजीनियर्स को जॉब मुहैया करवाने वाले प्रमुख रिक्रूटर्स की लिस्ट

• बॉम्बे डाइंग

• मैसूर सिल्क

• जेसीटी लिमिटेड

• लक्ष्मी मिल्स

• रिलायंस टेक्सटाइल्स

• फैब इंडिया

• ग्रासिम इंडस्ट्रीज

• अरविंद मिल्स लिमिटेड

• लक्ष्मी मशीन वर्क्स

• भीलवाड़ा ग्रुप

• राजस्थान पेट्रो सिंथेटिक्स

• आरआईएल टेक्सटाइल्स

• जेसीटी मिल्स

• मफ्तलाल डेनिम

• रेमंड ग्रुप