Monday, May 29, 2017

एथिकल हैकिंग में करियर

वचरुअल दुनिया का दायरा जिस तरह दिन-दुनी रात-चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है, आईटी (इफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) आधारित सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी परेशानी का सबब बन रही हैं। हर रोज दुनिया के किसी न किसी कोने में नेटवर्क, वेबसाइट और ई-मेल अकाउंट्स की सुरक्षा दांव पर लगी होती है। इंटरनेट पर साइबर अपराध के मामलों में चिंताजनक रफ्तार से वृद्धि देखी जा रही है
इन मामलों में किसी व्यक्ति या संस्था के कंप्यूटर सिस्टम में सेंध लगाकर संवेदनशील डाटा चुराने से लेकर पासवर्ड चोरी करने, भद्दे ई-मेल भेजने और ई-मेल अकाउंट को हैक करने जैसी घटनाएं शामिल होती हैं। इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों से सूचनाओं को अवैध ढंग से प्राप्त करने वालों को हैकर कहा जाता है। मगर जब यही काम कंप्यूटर सिस्टम के सुरक्षा उपायों को जांचने और उसे पुख्ता बनाने के उद्ेदश्य से किया जाता है, तो उसे एथिकल हैकिंग कहते हैं। इस कार्य को करने वाले पेशेवर एथिकल हैकर के नाम से जाने जाते हैं। साइबर अपराधों की बढ़ती तादाद के बीच मूल्यवान इंफॉर्मेशन सिस्टम की सुरक्षा के लिए एथिकल हैकरों की मांग जोर पकड़ रही है। इस कारण यह पेशा नौकरी की आकर्षक संभावनाओं के द्वार खोल रहा है।

एथिकल हैकर का काम

इन पेशेवरों को व्हाइट हैट्स या पेनिशन टेस्टर के नाम से भी जाना जाता है। कंप्यूटर और नेटवर्क से संबंधित तकनीकों में इन्हें विशेषज्ञता प्राप्त होती है।

इनका काम अपने नियोक्ता (कंप्यूटर सिक्योरिटी उत्पाद बनाने वाली कंपनी) के लिए किसी निर्धारित कंप्यूटर सिस्टम पर हमला करना होता है, ताकि सिस्टम की उन कमियों का पता लगाया जा सके, जिन्हें तलाशकर हैकर साइबर अपराधों को अंजाम देते हैं।

एक प्रकार से एथिकल हैकर भी हैकरों (साइबर अपराधी) जैसा ही काम करते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य किसी कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान पहुंचाने की बजाए उसे पहले से ज्यादा सुरक्षित बनाना होता है। इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता के कारण एथिकल हैकर आईटी सिक्योरिटी इंडस्ट्री की अहम जरूरत बन गए हैं। यह एक चुनौतीपूर्ण पेशा है, जो जरूरत पड़ने पर 24 घंटे काम में जुट रहने की भी अपेक्षा रखता है। एथिकल हैकर को हमेशा खुद को कंप्यूटर सिस्टम से संबंधित नई तकनीकों से अपडेट रखना होता है, ताकि वह नई चुनौतियों का तेजी से हल तलाश सकें।

पर्याप्त हैं रोजगार के अवसर
•फिलहाल देश में एथिकल हैकरों की काफी कमी है। इसलिए कई-कई कंपनियां अपने नेटवर्क में मौजूद खामियों को खोजने के लिए एक ही पेशेवर की मदद लेती हैं। इन पेशेवरों की सरकारी क्षेत्र के संस्थानों में भी काफी पूछ है। सेना, पुलिस बलों (सीबीआई और एनआईए शामिल), फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं और रक्षा अनुसंधान संगठनों में विशेष रूप से एथिकल हैकरों की मदद ली जाती है। जासूसी एजेंसियों में भी इनके लिए काफी अवसर हैं।

 योग्यता
•    इस पेशे में आने के लिए कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का अच्छा ज्ञान जरूरी होता है। इसलिए कंप्यूटर साइंस, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी या कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री का होना आवश्यक है। शैक्षणिक योग्यता के साथ उ, उ++ और ढ83ँल्लआदि प्रोग्रामिंग लैंग्वेज और कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम मसलन विंडोज या लिनक्स की जानकारी का होना भी जरूरी है।

•    उपलब्ध पाठय़क्रम
•    सर्टिफिकेट कोर्स इन साइबर लॉ
•    सीसीएनए सर्टिफिकेशन
•    सर्टिफाइड एथिकल हैकर
•    सर्टिफाइड इंफॉर्मेशन सिस्टम सिक्योरिटी प्रोफेशनल
•    एमएससी साइबर फॉरेंसिक्स एंड इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी
•    पीजी डिप्लोमा इन डिजिटल एंड साइबर फॉरेंसिक्स
•    पीजी डिप्लोमा इन साइबर लॉ
•    पीजी डिप्लोमा इन आईटी सिक्योरिटी
•    एडवांस डिप्लोमा इन एथिकल हैकिंग
•    संबंधित संस्थान
•    एनआईईएलआईटी
•    सीईआरटी
•    इंडियन स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग
•    तिलक महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी
•    इन्नोबज नॉलेज सॉल्यूशन्स प्रा. लि.
•    आईएमटी गाजियाबाद
•    इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी

Thursday, May 25, 2017

ड्रामा मे करियर

अभिनय, निर्देशन, डिजाइन या थियेटर से जुड़े अन्य क्षेत्रों मे करियर बनाने का शौक यदि आप भी अपने मन में पाले बैठे हैं और अपने इस शौक को पेशेवर ट्रेनिंग के जरिए निखारना चाहते हैं तो इस क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के डिप्लोमा इन ड्रमैटिक आर्ट्स में आवेदन कर सकते हैं। इस संस्थान में आवेदन वेबसाइट से फॉर्म डाउनलोड करके भी किया जा सकता है और पोस्ट से मंगवाकर भी। इस कोर्स में आवेदन की अंतिम तिथि 8 मई 2015 रखी गई है। चयन प्रक्रिया में ऑडिशन, वर्क शॉप और फिटनेस टैस्ट होगा।
एनएसडी दिल्ली
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तहत आने वाला एक स्वायत्त संस्थान है। इसकी स्थापना संगीत नाटक अकादमी ने वर्ष 1959 मे की थी। थियेटर की विभिन्न विधाओं में कलाकारों के हुनर को प्रशिक्षण के जरिए निखारने वाले इस संस्थान से फिल्म और थियेटर जगत की कई दिग्गज हस्तियां प्रशिक्षण ले चुकी हैं। यह संस्थान नई दिल्ली में स्थित है। थिएटर ट्रेनिंग में इस संस्थान का विश्वभर में एक अहम स्थान है। आप भी यहां थिएटर ट्रेनिंग लेकर अपना कौशल निखार सकते हैं और अच्छा करियर बना सकते हैं।
क्या है योग्यता
नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के तीन वर्षीय कोर्स में वे लोग आवेदन कर सकते हैं, जिन्होंने भारत से या विदेश से ग्रेजुएशन की हो और कम से कम छह माह तक थिएटर प्रोडक्शंस में भागीदारी की हो और हिंदी-अंग्रेजी की जानकारी हो। 1 जुलाई 2015 को आवेदक की उम्र कम से कम 20 साल और अधिक से अधिक 30 साल हो। एससी/ एसटी को इसमें पांच साल की छूट प्राप्त है।
कैसे होगा चयन
एनएसडी के इस कोर्स में प्रवेश के इच्छुक आवेदकों के एप्टीट्यूड और टैलेंट की परख विशेषज्ञों की एक कमेटी करेगी। प्रवेश के इच्छुक कैंडिडेट्स को सबसे पहले एक प्रीलिमिनरी टेस्ट या ऑडिशन देना होगा। यह ऑडिशन/टेस्ट देशभर मे कुल छह केंद्रों पर अलग-अलग दिन करवाया जाएगा। गुवाहाटी में यह टेस्ट 23 मई को होना है। कोलकाता में इसकी तारीख 25 व 26 मई है। बेंगलुरू में यह टैस्ट 28 मई को, मुंबई में 2 और 3 जून को होगा। लखनऊ में यह टेस्ट 5 और 6 जून को और दिल्ली में 8,9,10 व 11 जून को होगा। इस टेस्ट को पास करने वाले आवेदकों को फिर 16 जून से 20 जून तक चलने वाली पांच दिवसीय वर्कशॉप में हिस्सा लेना होगा। इसके बाद इनके अंतिम चयन पर फैसला लिया जाएगा। एडमिशन के लिए चयनित लोगों का फिजिकल फिटनेस की जांच के लिए मेडिकल टेस्ट भी करवाया जाएगा। इसमें उत्तीर्ण होने पर ही एडमिशन दिया जाएगा।
संस्था के संसाधन
एनएसडी से कोर्स करने वाले लोगों को इस संस्थान के उत्कृष्ट संसाधनों के प्रयोग के साथ-साथ यहां के रचनात्मक माहौल में खुद को ज्यादा से ज्यादा निखारने का अवसर मिलता है। यह काफी उपयोगी साबित होता है। यहां के स्टूडेंट्स को थिएटर और फिल्म क्षेत्र की विभिन्न हस्तियों के संपर्क में आने का अवसर तो मिलता ही है, साथ ही यहां की वीडियो-ऑडियो लाइब्रेरी, परफॉर्मिग स्पेस आदि की मदद से वे अपने खास कौशल को ज्यादा रचनात्मक रूप दे पाते हैं। संस्थान में आयोजित होने वाले विभिन्न महोत्सवों में उन्हें अपने कौशल को मंच पर पेश करने का अवसर भी मिलता है। एनएसडी के इस तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में प्रवेश पाने वाले लोगों को प्रतिमाह 6000 रूपए का स्टाइपेंड भी दिया जाता है, ताकि वे अपने अकादमिक और अन्य खर्चे आसानी से चला सकें।
कैसे लें फॉर्म
आवेदन के लिए फॉर्म http://nsd.gov.in/ से डाउनलोड करें। संस्थान के पते पर 225 रूपए का डीडी या पे ऑर्डर भेजकर फॉर्म मंगवा भी सकते हैं। फॉर्म भरकर भेज रहे हैं तो The Director, National School of Drama, New Delhi के पक्ष में 150 रूपए का डीडी भेजें।
फॉर्म भेजने का पता
डाउनलोड किए हुए फॉर्म को पूरा भरकर संस्थान के पते पर आठ मई तक पहुंचाना है। फॉर्म के लिफाफे में 150 रूपए का डिमांड ड्राफ्ट या पे ऑर्डर होना जरूरी है, नहीं तो फॉर्म स्वीकार नहीं किया जाएगा। फॉर्म इस पते पर भेजना है-
Dean Academics, National School of Drama, Bahawalpur House, Bhagwandas Road, New Delhi - 110001
- See more at: http://www.patrika.com/news/career-courses/diploma-in-dramatic-arts-from-nsd-1031444/#sthash.mktB58eO.dpuf

Sunday, May 21, 2017

टॉय डिजाइनिंग में कैरियर

खिलौने सभी बच्चों को बेहद पसंद होते हैं। ये सिर्फ खेलने के नजरिए से नहीं बल्कि उनके मानसिक विकास में भी मदद करते हैं। वैसे भी आजकल बाजार में इतने नए-नए खिलौने आ गए हैं कि कई बार लेने से पहले सोचना पड़ता है। कहते हैं अपने अंदर का बच्चा कभी न मरने दें और खिलौनों की दुनिया का यह नया स्वरूप खिलौने के निर्माण में कैरियर की भी ढेरों संभावनाएं पैदा करता है।
टॉय डिजाइनर का काम खिलौनों से बच्चों का मनोरंजन तो हो ही, साथ ही, ऐसे खिलौने बनाना भी है जिनसे बच्चों को मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा भी मिले। टॉय डिजाइनिंग
खिलौने भी दो प्रकार के होते हैं - एक जिनसे बच्चे कुछ सीखते हैं और जिसे परिवार के साथ भी खेला जा सकता है, दूसरा सिर्फ मौज-मस्ती के लिए। पुराने समय में खिलौने प्राकृतिक चीजों से बनते थे जैसे लकड़ी, पत्थर या मिट्टी लेकिन आजकल यह प्लास्टिक, फर और अन्य कृत्रिम पदार्थ।
टॉय डिजाइनर खिलौनों को डिजाइन करते हैं और फिर बनाते हैं। उनका काम शुरू होता है ड्रॉइंग, स्केचिंग या कंप्यूटर से मॉडल तैयार करने से, फिर यह तय करना कि खिलौने का हर हिस्सा कैसे बनना है और फिर उसका एक नमूना तैयार करना।
खिलौनों को बाजार में दो प्रकार के उपभोक्ताओं के लिए रखा जाता है - एक तो बच्चे जो उनसे खेलते हैं और दूसरे उन ग्राहकों के लिए जो खिलौने एकत्रित करते हैं। गुड़िया से लेकर मैकेनिकल सेट, टॉय डिजाइनर बोर्ड गेम्स, पजल्स, कंप्यूटर गेम्स, स्टफ्ड एनिमल्स, रिमोट कंट्रोल कार, नवजात शिशु के लिए खिलौने आदि बनाते हैं।
आजकल के दौर के हिसाब से खिलौने बनाने के लिए डिजाइनर को न केवल बाजार के ट्रेंड से अवगत रहना चाहिए बल्कि अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चों की जरूरतों को भी पता होना चाहिए। इस कैरियर में ग्राफिक डिजाइन, मैकेनिकल ड्रॉइंग और कलर के चुनाव की जानकारी हो तो अच्छी सफलता प्राप्त हो सकती है। टॉय डिजाइनर बच्चों के विशेषज्ञ के साथ काम करते हैं जिससे उन्हें हर आयु के बच्चों की जरूरत का पता चलता है। उनकी सफलता अच्छे, मनोरंजक, कल्पनाशील और सुरक्षित खिलौने बनाने पर निर्भर करती है। इस कैरियर के लिए व्यापार और प्रबंधन क्षमता होना जरूरी है।

इस कैरियर में विशिष्ट कोर्स कम हैं लेकिन ग्राफिक डिजाइन, इंडस्ट्रियल डिजाइन या कार्टूनिंग की जानकारी के साथ काम किया जा सकता है। इसमें कंप्यूटर की जानकारी होना जरूरी है। इसके अलावा, इंजीनियरिंग और मार्केटिंग में अनुभव भी प्राप्त कर सकते हैं। शिक्षक, विशेषज्ञ, साइकोलॉजिस्ट, इंजीनियर, आर्किटेक्ट और कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट भी टॉय डिजाइनिंग का कोर्स कर सकते हैं।
इंजीनियरिंग का ज्ञान तकनीक द्वारा निर्मित खिलौने के लिए होना जरूरी है। शिक्षक, विशेषज्ञ और मनोवैज्ञानिक हर आयु के बच्चों की जरूरतें आसानी से समझ सकते हैं इसलिए परामर्शदाता के तौर पर वह इस क्षेत्र में पैर जमाने में सक्षम हैं। कंप्यूटर साइंस ग्रेजुएट खिलौनों की सॉफ्टवेयर संबंधित कार्यात्मकता प्रदान कर सकते हैं।
कुछ टॉय डिजाइनर एजुकेशनल खिलौनों में भी विशेषज्ञता प्राप्त कर सकते हैं, कुछ सामान्य खिलौनों में या फिर कोई विशिष्ट क्षेत्र में कोर्स कर सकते हैं जैसे मॉडल मेकिंग, बोर्ड गेम्स, सॉफ्ट टॉय या पुराने खिलौनों की प्रतिकृति आदि। आजकल पालतू जानवरों के लिए खिलौने बनाना भी बढ़ती हुई इंडस्ट्री है।
टॉय डिजाइनर अगर चाहें तो किसी कंपनी में भी काम कर सकते हैं या स्वतंत्र रूप से खिलौने भी बना सकते हैं। अगर चाहें तो अपनी मैनुफैक्चरिंग यूनिट भी खोल सकते हैं। टॉय डिजाइन पर किताब लिख सकते हैं या किसी इंस्टिट्यूट में बतौर शिक्षक भी नौकरी की जा सकती है। इसके अलावा, बतौर इंटीरियर डिजाइनर बच्चों के कमरे या प्ले स्कूल थीम बेस्ड टॉय का इस्तेमाल करके डिजाइन कर सकते हैं। टॉय डिजाइन कंस्लटेंट या इसमें फ्रीलांसिंग भी की जा सकती है। एक बार डिजाइनर के तौर पर अपने आपको स्थापित करने के बाद अवसरों और आय की कमी नहीं होगी। लेकिन इस कैरियर में सफलता आपकी रचनात्मकता पर निर्भर करती है।
यहां से करें कोर्स -
1 नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद

2 इंस्टिट्यूट ऑफ टॉय मेकिंग, कोलकाता

Tuesday, May 16, 2017

एग्रो-फॉरेस्ट्री में करियर

फॉरेस्ट्री के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ एक्सप्लोर किया जाना बाकी है। इसमें नए इनोवेटिव रिसर्च की जरूरत है। फॉरेस्ट्री से ही जुड़ा फील्ड है एग्रो-फॉरेस्ट्री, जिसमें कृषि उत्पाद, वन पैदावार और आजीविका के क्रिएशन, कंजर्वेशन और साइंटिफिक मैनेजमेंट की जानकारी दी जाती है। फॉरेस्ट्री या एग्रीकल्चर या प्लांट साइंसेज में ग्रेजुएट एग्रो-फॉरेस्ट्री में मास्टर्स कर सकते हैं। इसके लिए यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस एग्जाम देना होगा या फिर मेरिट के आधार पर भी दाखिला मिल सकता है। एग्रो फॉरेस्ट्री प्रोफेशनल्स बैंकिंग सेक्टर के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, आइटीसी जैसी प्लांटेशन कंपनी या बायो-फ्यूअल इंडस्ट्री में काम कर सकते हैं।
डॉ. अरविंद बिजलवान, असि. प्रोफेसर (टेक्निकल फॉरेस्ट्री), आइआइएफएम, भोपाल
लाइफ का सेकंड चांस
भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग करने के बाद मैं टीसीएस मुंबई में जॉब कर रही थी। हर दिन कंप्यूटर के सामने एक-सा काम करते हुए मन नहींलग रहा था। बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट-सी गई थी। तब खुद से सवाल पूछा कि आखिर ये मैं क्या कर रही हूं? मैंने जॉब से इस्तीफा दिया और भोपाल स्थित आइआइएफएम में अप्लाई कर दिया। पहली बार इंटरव्यू में मुझे रिजेक्ट कर दिया गया, लेकिन दूसरी बार मैं सक्सेसफुल रही। इंस्टीट्यूट में पहले हफ्ते के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में हमें फील्ड में जाने का मौका मिला। जंगलों के बीच रहने वाले लोगों, महिलाओं से मिली। वह मेरी लाइफ का सबसे बेहतरीन एक्सपोजर रहा। पूरे कोर्स के दौरान और भी बहुत कुछ अलग जानने और सीखने को मिला। जिंदगी ने मुझे सेकंड चांस दिया था। मैंने डेवलपमेंट मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन पूरा करने के बाद प्रदान नामक एनजीओ को ज्वाइन किया। फिलहाल मैं बस्तर के दो ब्लॉक में 4000 परिवारों के बीच काम कर रही हूं। वन संपदा को कैसे बचाकर रखना है, किस तरह उनके संरक्षण से मानव का विकास जुड़ा है, इसे लेकर लोगों को जागरूक करना, उन्हें आजीविका के रास्ते बताना हमारे काम का हिस्सा है। यहां लाइफ टफ है और पैसे भी ज्यादा नहींमिलते, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने का जो अनुभव और सुकून मिल रहा है, वह ऑफिस के कमरे में बैठकर कभी हासिल नहींकर सकती थी।
स्नेहा कौशल
प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव, प्रदान, बस्तर
फॉरेस्ट्री में ऑप्शंस अनलिमिटेड
फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स और फॉरेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए गवर्नमेंट के अलावा प्राइवेट सेक्टर में अनेक अपॉच्र्युनिटीज हैं। गवर्नमेंट सेक्टर में स्टेट फॉरेस्ट सर्विस, एकेडेमिक्स और बैंकों में फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स की नियुक्ति होती है। एसबीआइ, नाबार्ड, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आदि के साथ ही आइसीआइसीआइ और एक्सिस जैसे प्राइवेट बैंकों में एग्रीकल्चर ऑफिसर, रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर की जरूरत होती है, जो ग्रामीण विकास से जुड़ी गतिविधियों को देखते हैं। वहीं, विभिन्न फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, टाइगर फाउंडेशन, बैंबू मिशन, स्टेट लाइवलीहुड मिशन, वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड, इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, एनवॉयर्नमेंटल कंसल्टेंसीज, एनजीओ में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट के लिए अवसरों की कमी नहीं है। इन दिनों माइक्रोफाइनेंस सेक्टर, नॉन-टिंबर प्रोसेसिंग और पेपर इंडस्ट्री में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स या फॉरेस्ट मैनेजमेंट के स्पेशलाइज्ड प्रोफेशनल्स की अच्छी डिमांड देखी जा रही है। आइआइएफएम में 100 परसेंट प्लेसमेंट इस तथ्य की पुष्टि करता है। फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स को शुरू में 25 से 30 हजार रुपये महीने मिल जाते हैं। एसबीआइ जैसे बैंकों में 7 से नौ लाख रुपये का सालाना पैकेज मिल जाता है। स्पेशलाइजेशन के कारण प्रमोशन भी जल्दी मिलता है। वहीं, प्राइवेट सेक्टर की कंपनीज में 10 लाख रुपये तक पैकेज स्टूडेंट्स को मिलता रहा है।
प्रो. अद्वैत एदगांवकर, प्लेसमेंट चेयरपर्सन
आइआइएफएम, भोपाल
कमा लो बूंद-बूंद पानी
प्रकृति को बचाने की मुहिम के परिणामस्वरूप ग्रीन जॉब्स का एक बड़ा मार्केट खड़ा हो रहा है, जहां पे-पैकेज भी अच्छा है। इसमें भी वॉटर कंजर्वेशन का फील्ड इंटेलिजेंट यूथ में काफी पसंद किया जा रहा है....
बिजली की बचत, सोलर व विंड एनर्जी?का मैक्सिमम यूटिलाइजेशन करने वाली इमारतें बनाने वाले आर्किटेक्ट, वॉटर रीसाइकल सिस्टम लगाने वाला प्लंबर, कंपनियों में जल संरक्षण से संबंधित रिसर्च वर्क और सलाह देने वाले, ऊर्जा की खपत कम करने की दिशा में काम करने वाले एक्सपर्ट, पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को कायम रखने के गुर सिखाने वाले एक्सपर्ट, प्रदूषण की मात्रा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के तरीके बताने वाले एक्सपर्ट...अपने आस-पास नजर दौड़ाइए तो ऐसे अनगिनत प्रोफेशनल्स दिख जाएंगे, जो किसी न किसी रूप में ग्रीन कैम्पेन से जुड़े हुए हैं।?
वॉटर कंर्जवेशन पर जोर
नदियों की सफाई, वर्षाजल का भंडारण, मकानों के निर्माण के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली की स्थापना, नदियों की बाढ़ से आने वाले पानी को सूखाग्रस्त इलाकों के लिए संग्रहित करना, सीवेज जल का प्रबंधन कर खेती आदि के कार्यकलापों में इस्तेमाल आदि पर आधारित योजनाओं का क्रियान्वयन सभी देशों में किया जा रहा है। जल प्रबंधन एवं संरक्षण पर आधारित कोर्सेज अब औपचारिक तौर पर तमाम देशों में अस्तित्व में आ गए हैं। पहले परंपरागत विधियों एवं प्रणालियों से जल बर्बादी को रोकने तक ही समस्त उपाय सीमित थे। आज देश में स्कूल स्तर से लेकर यूनिवर्सिटीज में एमई और एमटेक तक के कोर्सेज चलाए जा रहे हैं। वॉटर साइंस, वॉटर कंजर्वेशन वॉटर मैनेजमेंट, वॉटर हार्वेस्टिंग, वॉटर ट्रीटमेंट, वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट कई स्ट्रीम्स हैं जिन्हें चुनकर आप इस फील्ड में करियर बना सकते हैं।
वॉॅटर साइंस
हवा और जमीन पर उपलब्ध पानी और उससे जुड़े प्रॉसेस का साइंस वाटर साइंस कहलाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल वॉटर साइंटिस्ट कहलाते हैं।
वॉटर साइंस का स्कोप
केमिकल वॉटर साइंस : वॉटर की केमिकल क्वालिटीज की स्टडी।
इकोलॉजी : लिविंग क्रिएचर्स और वॉॅटर-साइंस साइकल के बीच इंटरकनेक्टेड प्रॉसेस की स्टडी।
हाइड्रो-जियोलॉजी : ग्राउंड वॉटर के डिस्ट्रिब्यूशन तथा मूवमेंट की स्टडी।
हाइड्रो-इन्फॉरमेटिक्स : वॉटर साइंस और वॉटर रिसोर्सेज के एप्लीकेशंस में आइटी के यूज की स्टडी।
हाइड्रो-मीटियोरोलॉजी : वॉटर एड एनर्जी के ट्रांसफर की स्टडी। पानी के आइसोटोपिक सिग्नेचर्स की स्टडी।
सरफेस वॉटर साइंस : जमीन की ऊपरी सतह के पास होने वाली हलचलों की स्टडी।
वॉटर साइंटिस्ट का काम
-हाइड्रोमीट्रिक और वाटर क्वालिटी का मेजरमेंट
-नदियों, झीलों और भूमिगत जल के जल स्तरों, नदियों के प्रवाह, वर्षा और जलवायु परिवर्तन को दर्ज करने वाले नेटवर्क का रख-रखाव।
-पानी के नमूने लेना और उनकी केमिकल एनालिसिस करना।
-आइस तथा ग्लेशियरों का अध्ययन।
-वॉॅटर क्वालिटी सहित नदी में जल प्रवाह की मॉडलिंग।
-मिट्टी और पानी के प्रभाव के साथ-साथ सभी स्तरों पर पानी की जांच करना।
-जोखिम की स्टडी सहित सूखे और बाढ़ की स्टडी।
किससे जुड़कर काम करते हैं
सरकार : पर्यावरण से संबंधित नीतियों को तैयार करना, एग्जीक्यूट करना और मैनेज करना।
अंतरराष्ट्रीय संगठन : टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आपदा राहत।
एडवाइजरी : सिविल इंजीनियरिंग, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध कराना।
एकेडमिक ऐंड रिसर्च : नई एनालिटिक टेक्निक्स के जरिए टीचिंग ऐंड रिसर्च वर्क करना।
यूटिलिटी कम्पनियां और पब्लिक अथॉरिटीज : वॉटर सप्लाई और सीवरेज की सर्विसेज देना।
एलिजिबिलिटी
-वॉटर साइंस से रिलेटेड सब्जेक्ट में बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री को वरीयता।
-जियोलॉजी, जियो-फिजिक्स, सिविल इंजीनियरिंग, फॉरेस्ट्री ऐंड एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट्स इनमें शामिल हैं।
स्किल्स
-सहनशीलता, डिटरमिनेशन, ब्रॉडर ऑस्पेक्ट और गुड एनालिटिकल स्किल की जरूरत होती है।
-टीम में काम करने की स्किल
-इन्वेस्टिगेशन की प्रवृत्ति
वॉटर मैनेजमेंट
बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण आज पूरी दुनिया पानी की किल्लत से जूझ रही है। इसे देखते हुए वाटर मैनेजमेंट और कंजर्वेशन से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ रही है। आजकल हाउसिंग कॉम्प्लेक्सेज से लेकर उद्योगों आदि में ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है, जो वॉटर हार्वेेस्टिंग से लेकर जल संचयन आदि की तकनीकों को जानते हों।
कोर्स
वॉटर हार्वेस्टिंग ऐंड मैनेजमेंट नाम से यह कोर्स करीब 6 महीने का है। इसके तहत सिखाया जाता है कि बारिश के पानी को किस तरह से मापा जाए, वॉटर टेबल की क्या इंपॉर्र्टेंस है और उसे किस तरह से रिचार्ज किया जाए।
एलिजिबिलिटी
इसमें एडमिशन की मिनिमम एलिजिबिलिटी 10वीं पास है। अगर आपने इग्नू से बैचलर प्रिपरेट्री प्रोग्राम (बीपीपी) किया हुआ है, तो आप सीधे इस कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं।
एक्वाकल्चर
एक्वाकल्चर में समुद्र, नदियों और ताजे पानी के कंजर्वेशन, उनके मौलिक रूप और इकोलॉजी की सेफ्टी के बारे में स्टडी की जाती है। इन दिनों घटते जल स्रोतों, कम होते पेयजल संसाधनों के चलते इस फील्ड में विशेषज्ञों की मांग बढ़ी है।
कोर्स ऐंड एलिजिबिलिटी
इस फील्ड में बीएससी और एमएससी इन एक्वा साइंस जैसे कोर्स प्रमुख हैं। इनमें एडमिशन के लिए बायोलॉजी सब्जेक्ट के साथ 10+2 पास होना अनिवार्य है। इसके अलावा, वाटर कंजर्वेशन और उसकीइकोलॉजी के बारे में गहरा रुझान जरूरी है।
एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग
एनवॉयर्नमेंट कंजर्वेशन के फील्ड में बढ़ती टेक्नोलॉजी के एक्सपेरिमेंट्स से आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियर्स की मांग बढ़ी है। अलग-अलग सेक्टर्स के कई इंजीनियर्स आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग में अपना योगदान दे रहे हैं। इनमें एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, बायोलॉजिस्ट केमिकल इंजीनियरिंग, जियोलॉजिस्ट, हाइड्रो-जियोलॉजिस्ट, वॉटर ट्रीटमेंट मैनेजर आदि कारगर भूमिका निभाते हैं।
इंस्टीट्यूट वॉच
-आइआइटी, रुड़की
(भूजल जल-विज्ञान और वाटरशेड मैनेजमेंट)
-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
-अन्ना विश्वविद्यालय (वाटर मैनेजमेंट)
-एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय
(वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम
-अन्नामलाई विश्वविद्यालय (हाइड्रो-जियोलॉजी)
-दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली
-गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, रायपुर (वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट ऐंड इरिगेशन इंजीनियरिंग)
-आइआइटी, मद्रास (फ्लड साइंस ऐंड वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
-राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की

Wednesday, May 10, 2017

एयरोनॉटिकल इंजीनियर में करियर

एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का क्षेत्र इंजीनियरिंग शिक्षा का सबसे चुनौतीपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। इसमें करियर निर्माण की बहुत ही उजली संभावनाएं हैं। इसके तहत नागरिक उड्डयन, स्पेस रिसर्च, डिफेंस टेक्नोलॉजी आदि के क्षेत्र में नई तकनीकों का विकास किया जाता है। यह क्षेत्र डिजाइनिंग, निर्माण, विकास, परीक्षण, ऑपरेशंस तथा कमर्शियल व मिलिट्री एयरक्राफ्ट के पुर्जों के साथ-साथ अंतरिक्ष यानों, उपग्रहों और मिसाइलों के विकास से भी संबंध‍ित है।
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग ने विश्व का परिदृश्य ही बदल दिया है। यह ऐसा क्षेत्र है, जिसमें नई व आकर्षक
संभावनाओं की कोई सीमा नहीं है। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के तहत डिजाइनिंग, नेविगेशनल गाइडेंस एंड कंट्रोल सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन व कम्युनिकेशन अथवा प्रोडक्शन मैथड के साथ ही साथ वायुसेना के विमान, यात्री
विमान, हेलिकॉप्टर और रॉकेट से जुड़े कार्य शामिल हैं।
क्या है काम?
एयरोनॉटिकल इंजीनियर के प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं: यात्री विमान के यंत्रों, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का रखरखाव एवं प्रबंधन, विमान संबंधी रेडियो और रडार का संचालन, उड़ने से पहले विमान की हर कोण से जांच, विमान में ईंधन की रीफिलिंग, विमान बनाने वाली कंपनियों में विमान संबंधी यंत्रों तथा उपकरणों की डिजाइनिंग तथा डेवलपमेंट आदि।
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कौन-से कोर्स?
इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए आपके पास एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में बीई तथा बीटेक की ग्रेजुएट डिग्री
अथवा कम से कम एयरोनॉटिक्स में तीन वर्षीय डिप्लोमा होना चाहिए। इस क्षेत्र में आईआईटी के अलावा कुछ
इंजीनियरिंग कॉलेजों में डिग्री तथा पोस्ट डिग्री पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का डिप्लोमा पाठ्यक्रम कुछ पॉलीटेक्निक कॉलेजों में भी उपलब्‍ध है। बीई तथा बीटेक पाठ्यक्रम के लिए 12वीं परीक्षा भौतिकी एवं गणित के साथ पास होना जरूरी है। आईआईटी तथा विभिन्न राज्यों में स्थित इंजीनियरिंग कॉलेजों के एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के बीई पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के माध्यम से प्रवेश दिया जाता है। स्नातक पाठ्यक्रमों के लिए चयन प्रवेश परीक्षाओं में प्राप्त मेरिट के आधार पर किया जाता है। जिन संस्थानों में एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, वे सामान्यत: क्वॉलिफाइंग ग्रेड के रूप में जेईई स्कोर को मान्य करते हैं। भारत सरकार द्वारा अध‍िमान्य एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की डिग्री चार वर्ष की पढ़ाई के बाद प्रदान की जाती है, जबकि डिप्लोमा पाठ्यक्रम तीन वर्ष की अवध‍ि के होते हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियर्स द्वारा आयोजित एसोसिएट मेंबरशिप एक्जामिनेशन के माध्यम से सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्रों के कर्मचारी अथवा एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिप्लोमाधारी उम्मीदवार दूरस्थ शिक्षा प्रणाली द्वारा बीई पाठ्यक्रम कर सकते हैं। एसोसिएट मेंबरशिप एक्जामिनेशन की परीक्षा द एयरोनॉटिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा ली जाती है। यह डिग्री एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग डिग्री के समकक्ष मान्यता रखती है। कुछ
संस्थानों द्वारा एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में एमटेक और पीएचडी पाठ्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं।
ये स्किल्स भी जरूरी
एयरोनॉटिकल इंजीनियर बनने के लिए उम्मीदवार के पास व्यापक दृष्टिकोण होना नितांत आवश्यक है। उसके पास गणितीय शुद्धता और डिजाइन कौशल, कम्प्यूटर दक्षता और अच्छी कम्युनिकेशन स्किल होनी चाहिए।
उम्मीदवार को योजना बनाने तथा दबाव में काम करने में भी निपुण होना चाहिए। उसे शारीरिक व मानसिक रूप से पूर्णत: फिट होना चाहिए।
आकर्षक वेतन
सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत एयरोनॉटिकल इंजीनियरों को सरकार द्वारा निर्धारित वेतनमान दिया जाता है जबकि निजी संस्थानों के इंजीनियरों को कंपनी द्वारा निर्धारित बहुत ही आकर्षक वेतनमान प्रदान किया जाता है। जहां सरकारी क्षेत्र का आरंभिक वेतनमान 25 से 35 हजार रुपए मासिक होता है, वहीं निजी क्षेत्र में 50 हजार से डेढ़ लाख रुपए मासिक तक वेतन दिया जाता है। एयरलाइंस के इंजीनियरों को मुफ्त हवाई यात्रा के साथ-साथ चिकित्सा, आवास आदि ढेरों सुविधाएं भी मिलती हैं।
कहां हैं जॉब्स?
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, सरकारी एवं निजी एयरलाइंस के साथ-साथ एयरक्राफ्ट निर्माण इकाइयों में करियर के उजले अवसर उपलब्‍ध हैं। एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का पाठ्यक्रम
सफलतापूर्वक पास कर चुके युवाओं को इंडियन हेलिकॉप्टर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया, निजी तथा सरकारी एयरलाइनों के साथ- साथ एयरक्राफ्ट निर्माण इकाइयों में करियर उपलब्‍ध है। भारतीय एयरोनॉटिकल इंजीनियरों
को फ्लाइंग क्लबों, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड की बंगलुरु, कानपुर, नासिक आदि डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्रीज, नेशनल एयरोनॉटिकल लैब, सिविल एविएशन विभाग के साथ-साथ रक्षा सेवाओं तथा इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) में करियर के उजले अवसर उपलब्ध हैं।
एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग का कोर्स करने के उपरांत सरकारी संस्थानों में प्रवेश परीक्षा के माध्यम से एयरोनॉटिकल इंजीनियर को ग्रेजुएट इंजीनियर ट्रेनी या जूनियर इंजीनियर के पद पर नियुक्ति दी जाती है। इनकी रुचि व एप्टीट्यूट के आधार पर इन्हें एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस, ओवरहॉल या सपोर्ट विभाग में टेक्निकल ट्रेनिंग दी जाती है। प्रशिक्षण के बाद ये असिस्टेंट एयरक्राफ्ट इंजीनियर्स या असिस्टेंट टेक्निकल ऑफिसर के पद पर
नियुक्त किए जाते हैं।
भविष्य में पदोन्नाति के लिए इन्हें विभागीय परीक्षा पास करनी पड़ती है। एयरलाइंस, हवाई जहाज निर्माण कारखानों, एयर टर्बाइन प्रोडक्शन प्लांट्स या एविएशन इंडस्ट्री के डिजाइन डेवलपमेंट विभागों में इनके लिए करियर निर्माण के बहुत अच्छे अवसर हैं।
प्रमुख संस्थान
राईट ब्रदर्स इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, नई दिल्ली
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, देहरादून
हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग टेक्नोलॉजी, चेन्नई
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चेन्नई
नेहरू कॉलेज ऑफ एयरोनॉटिक्स एंड एप्लाइड साइंस, कोयम्बटूर
पार्क कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कोयम्बटूर
इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग एंड इंफर्मेशन टेक्नोलॉजी, पुणे
इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स एंड इंजीनियरिंग, भोपाल

Sunday, May 7, 2017

जोअलॉजी: जीव-जंतुओं संग पाएं मंजिल

जीव-जंतु प्रेमियों को निश्चय ही उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है। आप अपने इसी प्रेम को अपने करियर में भी बदल सकते हैं। प्राणि विज्ञान या जोअलॉजी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें जीव-जंतुओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोटोजोआ, मछली, सरीसृप, पक्षियों के साथ-साथ स्तनपायी जीवों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसमें हम न सिर्फ जीव-जंतुओं की शारीरिक रचना और उनसे संबंधित बीमारियों के बारे में जानते हैं, बल्कि मौजूदा जीव-जंतुओं के व्यवहार, उनके आवास, उनकी विशेषताओं, पोषण के माध्यमों, जेनेटिक्स व जीवों की विभिन्न जातियों के विकास के साथ-साथ विलुप्त हो चुके जीव-जंतुओं के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं।
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि प्राणि विज्ञान में किस-किस प्रकार के जीवों का अध्ययन किया जाता है। जवाब है, इस पाठय़क्रम के तहत आप लगभग सभी जीवों, जिनमें समुद्री जल जीवन, चिडियाघर के जीव-जंतु, वन्य जीवों, यहां तक कि घरेलू पशु-पक्षियों के जीव विज्ञान एवं जेनेटिक्स का अध्ययन करते हैं। आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने का पहला पड़ाव क्या है?
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में आने के लिए सबसे पहले आपको स्नातक स्तर पर जोअलॉजी की डिग्री लेनी होगी। आमतौर पर यह विषय देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विज्ञान के विभिन्न विषयों की तरह ही तीन वर्षीय डिग्री पाठय़क्रम के तहत पढ़ाया जाता है।
योग्यता 
जोअलॉजी या प्राणि विज्ञान में स्नातक में प्रवेश के लिए जरूरी है कि छात्र 12वीं कक्षा विज्ञान विषयों, जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ-साथ गणित से उत्तीर्ण करें। स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए छात्रों का स्नातक स्तर पर 50 प्रतिशत के साथ जोअलॉजी विषय उत्तीर्ण करना जरूरी है।
पाठय़क्रम
बी. एससी. जोअलॉजी (प्राणि विज्ञान)
बी. एससी. जोअलॉजी एंड इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (डबल कोर)
बी. एससी. बायो-टेक्नोलॉजी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
बी. एससी. बॉटनी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
एम. एससी. मरीन जोअलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी विद स्पेशलाइजेशन इन मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी
एम. फिल. जोअलॉजी
पी. एचडी. जोअलॉजी
फीस 
स्नातक स्तर के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में फीस लगभग 6,500-10,000 रुपये तक हो सकती है। स्नातकोत्तर और उससे आगे की शिक्षा के लिए फीस संबंधित जानकारी के लिए संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान से संपर्क करें।
ऋण एवं स्कॉलरशिप 
स्नातक स्तर पर जहां तक ऋण की बात है तो अभी यहां ऋण के लिए कोई खास सुविधा नहीं है, जबकि विभिन्न कॉलेज व विश्वविद्यालय अपने छात्रों के लिए स्कॉलरशिप जरूर मुहैया कराते हैं। स्नातक से आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या यूजीसी के साथ-साथ विभिन्न अनुसंधानों में जुटे विभागों या संस्थानों की ओर से भी स्कॉलरशिप की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।
यह पाठय़क्रम किसी अन्य प्रोफेशनल कोर्स की तरह नहीं है, जहां स्नातक की डिग्री के साथ ही आप काम के लिए तैयार हो जाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ जोअलॉजी की किसी खास शाखा में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद आप इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं देंगे।
शिक्षा सलाहकार अशोक सिंह का कहना है, ‘अगर आप अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो जोअलॉजी में बी.एससी. के बाद आप एम.एससी. और फिर पीएच.डी. करें। लेकिन छात्रों के लिए 12वीं के स्तर पर ही यह निर्णय लेना जरूरी है कि वे अनुसंधान व शोध के क्षेत्र में आगे जाना चाहते हैं या शिक्षा में।
प्राणि विज्ञान चूंकि जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जो जीव-जंतुओं की दुनिया से संबंधित है, इसलिए यहां पक्षियों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले को पक्षी वैज्ञानिक, मछलियों का अध्ययन करने वाले को मत्स्य वैज्ञानिक, जलथल चारी और सरीसृपों का अध्ययन करने वाले को सरीसृप वैज्ञानिक और स्तनपायी जानवरों का अध्ययन करने वालों को स्तनपायी वैज्ञानिक कहा जाता है। जोअलॉजिस्ट की जिम्मेदारी जानवरों, पक्षियों, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों और कृमियों के विभिन्न लक्षणों और आकृतियों पर रिपोर्ट तैयार करना और विभिन्न जगहों पर उन्हें संभालना भी है। एक जोअलॉजिस्ट अपना काम जंगलों आदि के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में भी करता है, जहां वे उच्च तकनीक की मदद से अपने जमा किए आंकड़ों को रिपोर्ट की शक्ल देता है और एक सूचना के डेटाबैंक को बनाता है। जोअलॉजिस्ट सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों पर भी काम करते हैं।
संभावनाएं
जोअलॉजी में कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद छात्रों के सामने विभिन्न विकल्प हैं। सबसे पहला विकल्प है कि वे बी.एड. करने के बाद आसानी से किसी भी स्कूल में अध्यापक पद के लिए योग्य हो जाते हैं। इस क्षेत्र में विविधता की वजह से छात्रों के सामने काफी संभावनाएं मौजूद हैं। वे किसी जोअलॉजिकल या बोटैनिकल पार्क, वन्य जीवन सेवाओं, संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं, राष्ट्रीय उद्यानों, प्राकृतिक संरक्षण संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, फॉरेंसिक विशेषज्ञों, प्रयोगशालाओं, मत्स्य पालन या जल जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों और फार्मा कंपनियों के साथ जुड़ सकते हैं। इसके अलावा कई टीवी चैनल्स मसलन नेशनल जीअग्रैफिक, एनिमल प्लैनेट और डिस्कवरी चैनल आदि को अक्सर शोध और डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के लिए जोअलॉजिस्ट की जरूरत रहती है।
वेतन 
अगर आप शिक्षा जगत से जुड़ते हैं तो सरकारी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से निर्धारित वेतन पर नौकरी करेंगे। आमतौर पर एक बी. एड. अध्यापक का वेतन 32 से 35 हजार रुपये प्रति माह होता है। अगर आप एक फ्रेशर के रूप में अनुसंधान और शोध क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो आप प्रति माह 10 से 15 हजार रुपये कमा सकते हैं।
नए क्षेत्र
करियर काउंसलर जितिन चावला की राय में आजकल जोअलॉजी के छात्रों में वाइल्ड लाइफ से संबंधित क्रिएटिव वर्क और चैनलों पर काम करने के प्रति काफी रुझान है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। ऐसे काम की डिमांड अभी भी सीमित है। हालांकि इन दिनों निजी स्तर पर चलाए जा रहे फिश फार्म्स काफी देखने में आ रहे हैं। जोअलॉजी के छात्रों के लिए यह एक बढिया व नया करियर विकल्प हो सकता है, खासकर प्रॉन्स फार्मिंग शुरू करने का।
मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के जोअलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर स्मिता कृष्णन का कहना है कि जोअलॉजी के छात्रों के लिए इको टूरिज्म, ह्यूमन जेनेटिक्स और वेटरनरी साइंसेज के क्षेत्र खुल रहे हैं। जोअलॉजी में डिग्री के बाद वेटरनरी साइंसेज या एनिमल साइंस से संबंधित कोर्सेज किए जा सकते हैं।
करियर एक्सपर्ट कुमकुम टंडन के अनुसार कम्युनिकेशन जोअलॉजिस्ट के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक संवाद माध्यमों का उपयोग करते हुए आप जोअलॉजी की जानकारी के प्रसार-विस्तार के क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं। ट्रैवल इंडस्ट्री में प्लानिंग और मैनेजमेंट लेवल पर अहम भूमिका निभा सकते हैं। समुद्री जीवों और पशुओं की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में अपना करियर बनाने की सोचें। यह वक्त की जरूरत है कि जोअलॉजिस्ट को जीअग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम और पशुओं की ट्रैकिंग से संबंधित तकनीकों को मिला कर काम करना आता हो।

साक्षात्कार
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं
जोअलॉजी विषय की बारीकियों और देश-विदेश में इस क्षेत्र की संभावनाओं के बारे में बता रही हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनु गुप्ता
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में किस प्रकार के छात्र अपना भविष्य देख सकते हैं?
जोअलॉजी में वही छात्र प्रवेश लें, जिन्हें जीव-जन्तुओं से प्यार हो, साथ ही साथ वे व्यवहारिक भी हों। पहले तो कॉलेजों में प्रैक्टिकल्स के दौरान चीर-फाड़ भी करनी पड़ती थी, जिसे अब एनिमल एथिक्स के चलते बंद किया जा चुका है, बावजूद इसके छात्र को खुद को इतना मजबूत रखना चाहिए कि वे खून या जीवों से जुड़ी अन्य चीजों को देख कर परेशान न हो जाएं। उन्हें जानवरों से डर नहीं लगना चाहिए।
स्नातक के बाद छात्र किस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं?
स्नातक तो जोअलॉजी की पहली सीढ़ी है। इससे आगे छात्र विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ सकते हैं। जो छात्र शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहते हैं, वे स्नातक के बाद बी.एड. करके 8वीं कक्षा के छात्रों को विज्ञान विषय और स्नातकोत्तर के बाद बी.एड. व एम.एड. करके स्कूल में 10वीं व 12वीं तक के छात्रों को पढ़ा सकते हैं। इसके अलावा स्नातकोत्तर कर वे देश की अनुसंधान एवं शोध संस्थाओं में प्रोजेक्ट फेलो के रूप में शुरुआत कर सकते हैं। आज जोअलॉजी में विशेषज्ञता के लिए इतने विषय हैं कि वे जोअलॉजी विषयों के विशेषज्ञों के साथ-साथ माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड टेक्नोलॉजिस्ट, एनवायर्नमेंटलिस्ट, इकोलॉजिस्ट आदि की भूमिका भी निभा सकते हैं।
इस क्षेत्र में करियर के लिहाज से क्या संभावनाएं हैं?
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं है। आप स्नातक के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके आगे एम. फिल. व पीएच.डी. तक कर सकते हैं। अगर आप स्नातकोत्तर हैं तो वन्य जीवन जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों, शिक्षा क्षेत्र आदि में नाम कमा सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, नई दिल्ली
www.dducollege.du.ac.in/
गार्डन सिटी कॉलेज, इंदिरा नगर, बेंगलुरू
www.gardencitycollege.edu/in/
अचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज, दिल्ली
andcollege.du.ac.in
मैत्रेयी कॉलेज, दिल्ली
www.maitreyi.ac.in/
देशबंधु कॉलेज, दिल्ली
www.deshbandhucollege.ac.in
श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली
www.svc.ac.in/academicpage1.html
सेंट एल्बर्ट्स कॉलेज, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोच्चि
www.alberts.ac.in/ug-courses/
पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ऑफ साइंस, ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
www.osmania.ac.in/oupgcs/
किरोड़ी मल कॉलेज, दिल्ली
www.kmcollege.ac.in/
नफा-नुकसान
प्रकृति के करीब रहने व उसे और करीब से जानने का मौका मिलता है।
इस दिशा में ज्ञान हासिल करने की कोई सीमा नहीं है। आप काफी आगे तक जानकारी के लिए देश-विदेश में शिक्षा हासिल कर सकते हैं।
बाकी क्षेत्रों के मुकाबले शुरुआत में यहां वेतन काफी कम है।