Friday, February 26, 2016

मौसम विज्ञान में करियर

मौसम जितने मोहक और मादक होते हैं, उनसे जुड़े करियर भी उतने ही महत्वपूर्ण होते हैं। कल तक यह माना जाता था कि मौसम का संबंध केवल खेती-किसानी से ही है तो अब यह धारणा पुरानी हो चुकी है। सैटेलाइट के इस युग में सुनामी तूफान से बचाने की कवायद से लेकर एयरलाइंस की उड़ानों, जहाजों के परिवहन से लेकर खेल मैदानों की हलचल में मौसम विज्ञान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यही कारण है कि सरकारी विभागों से लेकर मौसम विज्ञान की भविष्यवाणी करने वाली प्रयोगशालाओं, अंतरिक्ष विभाग और टेलीविजन चैनल पर मौसम विज्ञान एक अच्छे करियर की दावत दे रहा है। यदि आपको हवा, बादल, समुद्र, बरसात, धुँध-कोहरे, आँधी-तूफान और बिजली में दिलचस्पी है तो मौसम विज्ञान का क्षेत्र न केवल आपकी इन क्षेत्रों की जिज्ञासाओं की पूर्ति करेगा, बल्कि एक शानदार करियर भी प्रदान करेगा, जो बदलते मौसम की तरह ही मोहक होगा।

बहुआयामी करियर 
मौसम विज्ञान के इतने अधिक आयाम हैं कि इस क्षेत्र में अध्ययन कर अपनी अभिरुचि के अनुसार परिचालन, अनुसंधान तथा अनुप्रयोग अर्थात ऑपरेशंस-रिसर्च या एप्लिकेशंस के क्षेत्र में बहुआयामी करियर बनाया जा सकता है। ऑपरेशंस के तहत मौसम उपग्रहों, राडार, रिमोट सेंसर तथा एयर प्रेशर, टेम्प्रेचर, एनवायरमेंट, ह्यूमिडिटी से संबंधित सूचनाएँ एकत्रित कर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है।

यह भविष्यवाणी समुद्र में आने वाले तूफान तथा चक्रवाती हवाओं से मछुआरों तथा समुद्री राह में चलने वाले जहाजों को सुरक्षा प्रदान कर जान-माल के नुकसान से बचाने का कार्य करती है। इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए क्लाइमेटोलॉजी, हाइड्रोमेट्रोलॉजी, मेरिन मीट्रिओलॉजी तथा एविएशन मीट्रिओलॉजी में विशेषज्ञता हासिल करना होता है। शोध-कार्य के लिए मौसम विज्ञान में काफी अच्छी संभावनाएँ हैं।

मौसम के आधार पर ही उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजा जाता है, फसलों का आकलन किया जाता है और अब तो खेल के मैदान में खिलाड़ी भी मौसम का हाल जानकर ही खेलने या न खेलने का निर्णय लेने लगे हैं। मौसम विज्ञान से जुड़े शोधार्थी मौसम के विशेष अवयवों हवा, नमी, तापमान संबंधी सूचनाओं और आँकड़ों का विश्लेषण करते हैं तथा यह तय करते हैं कि मौसम का मिजाज कैसा रहेगा।

मौसम विज्ञान का एप्लिकेशंस क्षेत्र वातावरण के संरचनात्मक अवयवों उनके प्रभावों अर्थात एप्लिकेशंस का अध्ययन कर एनवायरमेंट पर रिपोर्ट तैयार करते हैं जो न केवल सरकारी विभागों के लिए महत्वपूर्ण होती है, बल्कि टीवी चैनल पर मौसम की सूचना देने के काम भी आती है। इसके माध्यम से मछुआरों से लेकर आकाश में उड़ने वाले हवाई जहाजों को मौसम के बिगड़ते मिजाज से अवगत करा जोखिम से बचाया जा सकता है।

कैसे हैं अवसर मौसम विज्ञानियों के लिए?
औद्योगीकरण के इस युग में मौसम विज्ञान का महत्व कुछ ज्यादा ही ब़ढ़ गया है। इस क्षेत्र में बतौर इंडस्ट्रीयल मीट्रिओलॉजिस्ट अर्थात औद्योगिक मौसम विज्ञानी के रूप में आकर्षक करियर बनाया जा सकता है। ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण के प्रति आज सारी दुनिया इतनी जागरूक हो गई है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, जिनमें मौसम विज्ञानियों का सर्वाधिक महत्व है।

यही कारण है कि आज की परिस्थिति में मौसम विज्ञानियों के लिए सारी दुनिया में शानदार प्रतिष्ठापूर्ण करियर बनाने के अवसर उपलब्ध हैं। उद्योग के अतिरिक्त अंतरिक्ष, कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में भी इस क्षेत्र में अच्छे अवसर मौजूद हैं। स्पेशलाइजेशन के इस दौर में मौसम भविष्यवक्ता के रूप में एम्प्लायमेंट के बेहतरीन अवसर सामने दिखाई देते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मौसम विज्ञान कार्यालयों और प्रयोगशालाओं के अतिरिक्त सिविल एविएशन, शिपिंग, सेना में मौसम सलाहकार के पद उपलब्ध हैं।

कर्मचारी चयन आयोग द्वारा नागपुर, चेन्नाई, कोलकाता और नई दिल्ली स्थित मौसम विभागों में भर्ती के लिए प्रतियोगी परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं, जिसमें फिजिक्स विषय लेकर स्नातक उपाधि प्राप्त युवा आवेदन कर सकते हैं। इस परीक्षा में फिजिक्स, मैथ्स का एक पर्चा होता है तथा दूसरा प्रश्न-पत्र जनरल नॉलेज और इंग्लिश पर आधारित होता है। दोनों पेपर ऑब्जेक्टिव होते हैं। चुने गए प्रत्याशियों को मौसम विज्ञान विभाग द्वारा अपने खर्च से प्रशिक्षण देकर नियुक्ति प्रदान की जाती है।

क्या खासियत होनी चाहिए मौसम विज्ञानी में?
मौसम का मिजाज जानना एक विशेष कार्य है, जिसके लिए व्यक्ति में कुछ विशेष गुणों का होना फायदेमंद माना जाता है। आमतौर पर मौसम संबंधी आँकड़ों का संकलन और विश्लेषण का कार्य प्रयोगशालाओं में होता है। कई प्रयोगशालाएँ दूरस्थ बनी होती हैं जैसे अंटार्कटिका की प्रयोगशालाएँ। इसलिए इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों को एकाकी स्थानों पर रहने का अभ्यस्त होना चाहिए।

इस कार्य के लिए ऑफिस की तरह 10 से 5 का समय भी निर्धारित नहीं है। कई बार घंटों खाली बैठे रहना होता है तो कई बार चौबीसों घंटे व्यस्त रहना पड़ता है, जिसके लिए पर्याप्त धैर्य की आवश्यकता होती है। आपातकालीन स्थिति में इस क्षेत्र पर भारी दबाव आता है। साथ ही इसमें टीम वर्क के रूप में काम करना भी अपेक्षित है। इसलिए ये सब काम किसी चुनौती से कम नहीं हैं। इसीलिए इस क्षेत्र का चयन ऐसे युवाओं को ही करना चाहिए, जो चुनौतीपूर्ण और साहसिक कार्य करने में दिलचस्पी रखते हों।

क्या हो योग्यता?
मौसम विज्ञान एक ऑपरेशंस-रिसर्च और एप्लिकेशंस का क्षेत्र है इसलिए इसमें प्रवेश के लिए कम से कम मौसम विज्ञान अथवा पर्यावरण विज्ञान विषय में स्नातकोत्तर उपाधि तो होनी ही चाहिए। इसके लिए स्नातक स्तर पर पीसीएम विषय होना आवश्यक है। हमारे यहाँ कई विश्वविद्यालयों में इस विषय की पढ़ाई होती है।

मौसम विज्ञान संचालित करने वाले प्रमुख संस्थान
- भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरू
- आईआईटी खड़गपुर
- पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला
- आंध्रा यूनिवर्सिटी, विशाखापट्टनम
- मणिपुर यूनिवर्सिटी इम्फाल
- देवी अहिल्या विवि इंदौर-पर्यावरण विज्ञान
- अरतियार विश्वविद्यालय कोयम्बटूर
- कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी
- एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा, बड़ौदा
- शिवाजी यूनिवर्सिटी विद्यानगर, कोल्हापुर

Thursday, February 25, 2016

जोअलॉजी में करियर

जीव-जंतु प्रेमियों को निश्चय ही उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है। आप अपने इसी प्रेम को अपने करियर में भी बदल सकते हैं। प्राणि विज्ञान या जोअलॉजी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें जीव-जंतुओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोटोजोआ, मछली, सरीसृप, पक्षियों के साथ-साथ स्तनपायी जीवों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसमें हम न सिर्फ जीव-जंतुओं की शारीरिक रचना और उनसे संबंधित बीमारियों के बारे में जानते हैं, बल्कि मौजूदा जीव-जंतुओं के व्यवहार, उनके आवास, उनकी विशेषताओं, पोषण के माध्यमों, जेनेटिक्स व जीवों की विभिन्न जातियों के विकास के साथ-साथ विलुप्त हो चुके जीव-जंतुओं के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं।
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि प्राणि विज्ञान में किस-किस प्रकार के जीवों का अध्ययन किया जाता है। जवाब है, इस पाठय़क्रम के तहत आप लगभग सभी जीवों, जिनमें समुद्री जल जीवन, चिडियाघर के जीव-जंतु, वन्य जीवों, यहां तक कि घरेलू पशु-पक्षियों के जीव विज्ञान एवं जेनेटिक्स का अध्ययन करते हैं। आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने का पहला पड़ाव क्या है?
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में आने के लिए सबसे पहले आपको स्नातक स्तर पर जोअलॉजी की डिग्री लेनी होगी। आमतौर पर यह विषय देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विज्ञान के विभिन्न विषयों की तरह ही तीन वर्षीय डिग्री पाठय़क्रम के तहत पढ़ाया जाता है।
योग्यता 
जोअलॉजी या प्राणि विज्ञान में स्नातक में प्रवेश के लिए जरूरी है कि छात्र 12वीं कक्षा विज्ञान विषयों, जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ-साथ गणित से उत्तीर्ण करें। स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए छात्रों का स्नातक स्तर पर 50 प्रतिशत के साथ जोअलॉजी विषय उत्तीर्ण करना जरूरी है।
पाठय़क्रम
बी. एससी. जोअलॉजी (प्राणि विज्ञान)
बी. एससी. जोअलॉजी एंड इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (डबल कोर)
बी. एससी. बायो-टेक्नोलॉजी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
बी. एससी. बॉटनी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
एम. एससी. मरीन जोअलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी विद स्पेशलाइजेशन इन मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी
एम. फिल. जोअलॉजी
पी. एचडी. जोअलॉजी
फीस 
स्नातक स्तर के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में फीस लगभग 6,500-10,000 रुपये तक हो सकती है। स्नातकोत्तर और उससे आगे की शिक्षा के लिए फीस संबंधित जानकारी के लिए संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान से संपर्क करें।
ऋण एवं स्कॉलरशिप 
स्नातक स्तर पर जहां तक ऋण की बात है तो अभी यहां ऋण के लिए कोई खास सुविधा नहीं है, जबकि विभिन्न कॉलेज व विश्वविद्यालय अपने छात्रों के लिए स्कॉलरशिप जरूर मुहैया कराते हैं। स्नातक से आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या यूजीसी के साथ-साथ विभिन्न अनुसंधानों में जुटे विभागों या संस्थानों की ओर से भी स्कॉलरशिप की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।
यह पाठय़क्रम किसी अन्य प्रोफेशनल कोर्स की तरह नहीं है, जहां स्नातक की डिग्री के साथ ही आप काम के लिए तैयार हो जाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ जोअलॉजी की किसी खास शाखा में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद आप इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं देंगे।
शिक्षा सलाहकार अशोक सिंह का कहना है, ‘अगर आप अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो जोअलॉजी में बी.एससी. के बाद आप एम.एससी. और फिर पीएच.डी. करें। लेकिन छात्रों के लिए 12वीं के स्तर पर ही यह निर्णय लेना जरूरी है कि वे अनुसंधान व शोध के क्षेत्र में आगे जाना चाहते हैं या शिक्षा में।’
प्राणि विज्ञान चूंकि जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जो जीव-जंतुओं की दुनिया से संबंधित है, इसलिए यहां पक्षियों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले को पक्षी वैज्ञानिक, मछलियों का अध्ययन करने वाले को मत्स्य वैज्ञानिक, जलथल चारी और सरीसृपों का अध्ययन करने वाले को सरीसृप वैज्ञानिक और स्तनपायी जानवरों का अध्ययन करने वालों को स्तनपायी वैज्ञानिक कहा जाता है। जोअलॉजिस्ट की जिम्मेदारी जानवरों, पक्षियों, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों और कृमियों के विभिन्न लक्षणों और आकृतियों पर रिपोर्ट तैयार करना और विभिन्न जगहों पर उन्हें संभालना भी है। एक जोअलॉजिस्ट अपना काम जंगलों आदि के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में भी करता है, जहां वे उच्च तकनीक की मदद से अपने जमा किए आंकड़ों को रिपोर्ट की शक्ल देता है और एक सूचना के डेटाबैंक को बनाता है। जोअलॉजिस्ट सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों पर भी काम करते हैं।
संभावनाएं
जोअलॉजी में कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद छात्रों के सामने विभिन्न विकल्प हैं। सबसे पहला विकल्प है कि वे बी.एड. करने के बाद आसानी से किसी भी स्कूल में अध्यापक पद के लिए योग्य हो जाते हैं। इस क्षेत्र में विविधता की वजह से छात्रों के सामने काफी संभावनाएं मौजूद हैं। वे किसी जोअलॉजिकल या बोटैनिकल पार्क, वन्य जीवन सेवाओं, संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं, राष्ट्रीय उद्यानों, प्राकृतिक संरक्षण संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, फॉरेंसिक विशेषज्ञों, प्रयोगशालाओं, मत्स्य पालन या जल जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों और फार्मा कंपनियों के साथ जुड़ सकते हैं। इसके अलावा कई टीवी चैनल्स मसलन नेशनल जीअग्रैफिक, एनिमल प्लैनेट और डिस्कवरी चैनल आदि को अक्सर शोध और डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के लिए जोअलॉजिस्ट की जरूरत रहती है।
वेतन 
अगर आप शिक्षा जगत से जुड़ते हैं तो सरकारी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से निर्धारित वेतन पर नौकरी करेंगे। आमतौर पर एक बी. एड. अध्यापक का वेतन 32 से 35 हजार रुपये प्रति माह होता है। अगर आप एक फ्रेशर के रूप में अनुसंधान और शोध क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो आप प्रति माह 10 से 15 हजार रुपये कमा सकते हैं।
नए क्षेत्र
करियर काउंसलर जितिन चावला की राय में आजकल जोअलॉजी के छात्रों में वाइल्ड लाइफ से संबंधित क्रिएटिव वर्क और चैनलों पर काम करने के प्रति काफी रुझान है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। ऐसे काम की डिमांड अभी भी सीमित है। हालांकि इन दिनों निजी स्तर पर चलाए जा रहे फिश फार्म्स काफी देखने में आ रहे हैं। जोअलॉजी के छात्रों के लिए यह एक बढिया व नया करियर विकल्प हो सकता है, खासकर प्रॉन्स फार्मिंग शुरू करने का।
मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के जोअलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर स्मिता कृष्णन का कहना है कि जोअलॉजी के छात्रों के लिए इको टूरिज्म, ह्यूमन जेनेटिक्स और वेटरनरी साइंसेज के क्षेत्र खुल रहे हैं। जोअलॉजी में डिग्री के बाद वेटरनरी साइंसेज या एनिमल साइंस से संबंधित कोर्सेज किए जा सकते हैं।
करियर एक्सपर्ट कुमकुम टंडन के अनुसार कम्युनिकेशन जोअलॉजिस्ट के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक संवाद माध्यमों का उपयोग करते हुए आप जोअलॉजी की जानकारी के प्रसार-विस्तार के क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं। ट्रैवल इंडस्ट्री में प्लानिंग और मैनेजमेंट लेवल पर अहम भूमिका निभा सकते हैं। समुद्री जीवों और पशुओं की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में अपना करियर बनाने की सोचें। यह वक्त की जरूरत है कि जोअलॉजिस्ट को जीअग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम और पशुओं की ट्रैकिंग से संबंधित तकनीकों को मिला कर काम करना आता हो।

साक्षात्कार
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं

जोअलॉजी विषय की बारीकियों और देश-विदेश में इस क्षेत्र की संभावनाओं के बारे में बता रही हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनु गुप्ता
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में किस प्रकार के छात्र अपना भविष्य देख सकते हैं?
जोअलॉजी में वही छात्र प्रवेश लें, जिन्हें जीव-जन्तुओं से प्यार हो, साथ ही साथ वे व्यवहारिक भी हों। पहले तो कॉलेजों में प्रैक्टिकल्स के दौरान चीर-फाड़ भी करनी पड़ती थी, जिसे अब एनिमल एथिक्स के चलते बंद किया जा चुका है, बावजूद इसके छात्र को खुद को इतना मजबूत रखना चाहिए कि वे खून या जीवों से जुड़ी अन्य चीजों को देख कर परेशान न हो जाएं। उन्हें जानवरों से डर नहीं लगना चाहिए।
स्नातक के बाद छात्र किस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं?
स्नातक तो जोअलॉजी की पहली सीढ़ी है। इससे आगे छात्र विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ सकते हैं। जो छात्र शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहते हैं, वे स्नातक के बाद बी.एड. करके 8वीं कक्षा के छात्रों को विज्ञान विषय और स्नातकोत्तर के बाद बी.एड. व एम.एड. करके स्कूल में 10वीं व 12वीं तक के छात्रों को पढ़ा सकते हैं। इसके अलावा स्नातकोत्तर कर वे देश की अनुसंधान एवं शोध संस्थाओं में प्रोजेक्ट फेलो के रूप में शुरुआत कर सकते हैं। आज जोअलॉजी में विशेषज्ञता के लिए इतने विषय हैं कि वे जोअलॉजी विषयों के विशेषज्ञों के साथ-साथ माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड टेक्नोलॉजिस्ट, एनवायर्नमेंटलिस्ट, इकोलॉजिस्ट आदि की भूमिका भी निभा सकते हैं।
इस क्षेत्र में करियर के लिहाज से क्या संभावनाएं हैं?
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं है। आप स्नातक के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके आगे एम. फिल. व पीएच.डी. तक कर सकते हैं। अगर आप स्नातकोत्तर हैं तो वन्य जीवन जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों, शिक्षा क्षेत्र आदि में नाम कमा सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, नई दिल्ली
www.dducollege.du.ac.in/
गार्डन सिटी कॉलेज, इंदिरा नगर, बेंगलुरू
www.gardencitycollege.edu/in/
अचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज, दिल्ली
andcollege.du.ac.in
मैत्रेयी कॉलेज, दिल्ली
www.maitreyi.ac.in/
देशबंधु कॉलेज, दिल्ली
www.deshbandhucollege.ac.in
श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली
www.svc.ac.in/academicpage1.html
सेंट एल्बर्ट्स कॉलेज, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोच्चि
www.alberts.ac.in/ug-courses/
पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ऑफ साइंस, ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
www.osmania.ac.in/oupgcs/
किरोड़ी मल कॉलेज, दिल्ली
www.kmcollege.ac.in/
नफा-नुकसान
प्रकृति के करीब रहने व उसे और करीब से जानने का मौका मिलता है।
इस दिशा में ज्ञान हासिल करने की कोई सीमा नहीं है। आप काफी आगे तक जानकारी के लिए देश-विदेश में शिक्षा हासिल कर सकते हैं।
बाकी क्षेत्रों के मुकाबले शुरुआत में यहां वेतन काफी कम है।

Monday, February 22, 2016

पेशेवर पायलट: रोमांच भी करियर भी

नई दिल्ली। पायलट ’ शब्द जोखिम, ग्लैमर, विशेष भत्तों और ऊंची उड़ान से जुड़ा है। वस्तुत: इस करियर में अत्याधिक आकर्षण है, जबकि अन्य सामान्य नौकरियों में इसका अभाव है। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि सफलता की ऊंची उड़ान भरने के लिए इच्छुक पायलट को अग्निपरीक्षा से गुजरना पड़ता है, जिसमें बहुत कम लोग सफल हो पाते हैं।

यद्यपि यह करियर बहुत पुराना है, फिर भी इस क्षेत्र में नए-नए अवसर मिलते रहते हैं। आज तो भारत के आकाश में घरेलू एवं अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की भरमार होती जा रही है। एयर इंडिया ने सबसे पहले सन 1948 में लंदन की उड़ान भरी थी और आज भारत का सिविल तथा वाणिज्यिक एयरवे क्षेत्र काफी विस्तृत हो चुका है।

पायलट के लिए आवश्यक गुणः-

अगले पांच वर्षों के भीतर वाणिज्यिक पायलट की आवश्यकता दोगुनी हो जाएगी। व्यावसायिक (पेशेवर) पायलट का कार्य काफी मानसिक दबाव वाला होता है, क्योंकि उसके कंधों पर सैकड़ों यात्रियों की जिम्मेदारी होती है। ऐसे पायलट को केवल उड़ान प्रक्रिया से ही भली-भांति परिचित नहीं होना चाहिए बल्कि उसे मौसम-विज्ञान, वायु-संचालन, अत्याधिक अधुनातन उपकरण व यांत्रिकी की जटिलताओं का भी ज्ञान होना चाहिए।

पढ़ें:  देश की रक्षा भी रोजगार का विकल्प

इसके अतिरिक्त सफल पायलट बनने के लिए आपके पास समुचित मानसिक योग्यता एवं शीघ्र प्रतिक्रिया करने की क्षमता भी होनी चाहिए। उच्च स्तरीय मानसिक योग्यता के बलबूते पर पायलट को तूफान, एयर ट्रैफिक नियंत्रण से संपर्क टूट जाने पर अचानक यांत्रिक रुकावट तथा विमान अपहरण जैसे खतरों से बचाव के लिए तुरंत निर्णय लेने पड़ते हैं। इसके बाद पायलट के प्रशासनिक अनुसूचियों से संबंधित कार्य आते हैं।

जिम्मेदारियां:- 

इन्हें उड़ान की समय सारणी, रिफ्यूलिंग अनुसूची, फ्लाइट पाठ्यक्रम आदि तैयार करने होते हैं। उड़ान से पहले पायलट और उनके समूह को मौसम-विज्ञान को पढ़ना, उपकरण की स्थिति, वायुदाब और वायुयान के भीतर का तापमान दो बार जांचना पड़ता है।

ये लोग विमान की यांत्रिक एरोनॉटिकल तथा इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं। पायलट को यह भी सुनिश्चित करना पड़ता है कि वायुयान का भार समुचित रूप से संतुलित तथा इष्टतम है। दूसरे शब्दों में, पायलट सुचारु उड़ान, यात्रा एवं विमान उतरने की प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार होता है।

इसके कार्यक्षेत्र में सहायक पायलट, कर्मीदल की संक्षिप्त जानकारी देना शामिल है। वह रिफ्यूलिंग और कार्गो/सामान रखने (लोडिंग) का पर्यवेक्षण करता है। पायलट को उड़ान के दौरान तनाव के दौर से गुजरना पड़ता है। विमान के उपकरण अति आधुनिक होते हैं और जरा सी त्रुटि जानलेवा साबित हो सकती है।

पायलट को यंत्रों एवं नियंत्रण बोर्ड पर प्रस्तुत डाटा का विश्लेषण करना पड़ता है। वह अति आधुनिक कम्प्यूटर की सहायता से यह कार्य करता है। उड़ान के सर्वाधिक जटिल पहलू- उड़ान भरना तथा जमीन पर उतरना है।

वेतनः-

पायलट को उड़ान के दौरान मौसम की स्थितियों या तकनीकी रुकावटों के आधार पर समायोजन करना होता है। वाणिज्यिक पायलट का प्रारंभिक वेतन काफी अच्छा होता है। यह राशि एयरलाइन और उड़ान घंटों पर निर्भर करती है। बाद में आय की कोई सीमा नहीं है।

उच्च वेतन के अलावा पायलट अनेक विशेष सुविधाओं का भी हकदार है, जैसे ड्यूटी के समय नि:शुल्क आवास सुविधा, उसके एवं परिवार के लिए बिना टिकट विश्व में कहीं भी घूमने की सुविधा आदि।

चूंकि पायलट का कार्य जटिलता से भरा होता है, अत: उसमें आत्मविश्वास, धर्य एवं शांत स्वभाव जैसे गुण होने चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य, आरोग्यता, सामान्य नेत्र दृष्टि आदि महत्वपूर्ण अर्हताएं हैं। वाणिज्यिक उड़ान का लाइसेंस लेना इच्छुक/भावी पायलट की पूर्व अपेक्षा है।
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अतिरिक्त जानकारीः-

लाइसेंसः-

विद्यार्थी पायलट लाइसेंस किसी पंजीकृत उड़ान क्लब से लेना चाहिए। यह क्लब वाणिज्यिक विमानन के महानिदेशक कार्यालय से जुड़ा होता है। एसपीएल लेने के बाद आप निजी पाइलट का लाइसेंस लेते हैं, इसके बाद वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस (सीपीएल) मिलता है।

योग्यता व प्रशिक्षणः- 


सीपीएल वाणिज्यिक पायलट की अंतिम पात्रता है। एसपीएल प्राप्त करने के लिए प्रत्येक राज्य में फ्लाइंग क्लबों द्वारा आयोजित सैद्धांतिक परीक्षा देनी होती है। इस परीक्षा में वायु-नियंत्रण, विमानन-मौसम विज्ञान, वायु-संचालन आदि विषय शामिल हैं।

पढ़ें:  योग: स्वास्थ्य के साथ रोजगार भी 

प्रत्याशी की आयु सोलह वर्ष हो तथा उसने दसवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली हो। इन मूलभूत शर्तों के अलावा प्रत्याशी को चिकित्सा प्रमाण-पत्र देना होता है, साथ ही सुरक्षा संबंधी अनुमति एवं 10,000 की बैंक गारंटी देनी होती है। प्रत्याशियों को परीक्षा से एक मास पूर्व अपना नाम लिखाना पड़ता है। लिखित परीक्षा में चयन हो जाने पर उन्हें साक्षात्कार देना होता है। दोनों स्तरों पर परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद चिकित्सा परीक्षा ली जाती है।

वायुसेना की केंद्रीय चिकित्सा स्थापना बेंगलूरु के पास आरोग्यता प्रमाण-पत्र देने का अंतिम प्राधिकार है। चिकित्सा परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद व्यक्ति को एसपीएल मिलता है। एसपीएल मिलने के बाद शिक्षक द्वारा प्रारंभिक फ्लाइंग प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें पंद्रह घंटे की उड़ानें शामिल हैं। इसके बाद प्रत्याशी स्वतंत्र रूप से हवाई जहाज उड़ाता है। कुल साठ घंटे की अवधि तक उड़ान भरना जरूरी है, जिसमें से बीस घंटे अकेले उड़ान भरनी है तथा पांच घंटे क्षेत्र से पार उड़ान भरनी होती है।

पीपीएल की पात्रता सत्रह वर्ष की आयु तथा +2 परीक्षा है। पी.पी.एल. प्राप्त करने के बाद ही सी.पी.एल. मिल सकता है। अधिकांश फ्लाइंग क्लब एक सौ नब्बे घंटे का व्यावहारिक उड्डयन अनुभव प्रदान करते हैं, जिसमें यथा विनिर्दिष्ट अकेले फ्लाइंग से लेकर क्षेत्र पार मापन यंत्र (इंस्ट्रूमेंट) तथा रात के दौरान उड़ान भरना शामिल है। सीपीएल की परीक्षा के बाद प्रत्याशी को दो सौ पचास घंटे की फ्लाइंग पूरी करनी होती है, जिसमें पीपीएल के साठ घंटे शामिल हैं।

डीजीसीए के अनुसार अपेक्षित है कि सीपीएल आवेदक के पास लाइसेंस की बोली (बिड) की तारीख तक कम से कम छह मास में दस घंटों का फ्लाइंग अनुभव होना चाहिए। इन दस घंटों की फ्लाइंग में कम से कम पांच घंटे रात्रि की उड़ानें हों और दस उड़ानें भरने तथा जमीन पर जहाज उतारने का अनुभव हो।

भारत में दो प्रमुख एयरलाइंस हैं-इंडियन एयरलायंस, जो घरेलू सरकारी एयरलायंस है तथा दूसरी एयर इंडिया है। इसके अलावा निजी घरेलू एयरलाइंस हैं, जैसे -जैट एयरवेज और सहारा। इन एयरलाइंस के अलावा यूनाइटेड एयरलाइंस, लुफ्थांसा, केएलएमजेएएल जैसी अन्य विश्व की प्रमुख एयरलाइंस हैं। भारत में वाणिज्यिक पायलट की रोजगार संभावनाएं काफी व्यापक हैं।

संस्थानः-

भारत में निम्नलिखित फ्लाइंग संस्थान हैं: 
पूर्वी क्षेत्र


1. फ्लाइंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट बेहाला, कोलकाता - 700 060
2. जमशेदपुर को-ऑपरेटिव फ्लाइंग क्लब लि., सांसी हवाई अड्डा, जमशेदपुर
3. बिहार फ्लाइंग इंस्टीट्यूट, सिविल एयरोड्रॉम, पटना
4. गवर्मेंट एविएशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, सिविल एयरोड्रॉम, भुवनेश्वर
5. असम फ्लाइंग क्लब, गुवाहाटी एयरपोर्ट, गुवाहाटी, असम

पश्चिमी क्षेत्र 

1. मुंबई फ्लाइंग क्लब, जुहू एयरोड्रॉम, सांताक्रूज (पश्चिम) मुंबई
2. राजस्थान स्टेट फ्लाइंग स्कूल, सांगनेर एयरपोर्ट, जयपुर
3. नागपुर फ्लाइंग क्लब, सोनगांव एयरोड्रॉम, नागपुर
4. फ्लाइंग क्लब, सिविल एयरोड्रॉम, हांसी रोड, वड़ोदरा
5. अजंता फ्लाइंग क्लब, औरंगाबाद

उत्तरी क्षेत्र

1. स्कूल ऑफ एविएशन, साइंस एंड टेक्नोलॉजी दिल्ली फ्लाइंग क्लब लिमिटेड, सफदरजंग एयरपोर्ट, नई दिल्ली
2. गवर्मेंट फ्लाइंग क्लब, एयरोड्रॉम, लखनऊ
3. स्टेट सिविल एविएशन, उ.प्र. गवर्मेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग सेंटर, कानपुर और वाराणसी
4. पटियाला एविएशन क्लब, पटियाला पंजाब
5. एम.पी. फ्लाइंग क्लब, सिविल एय रोड्रॉम, भोपाल
6. करनाल एविएशन क्लब, कुंजपुर रोड, करनाल हरियाणा

दक्षिणी क्षेत्र

1. गवर्नमेंट फ्लाइंग ट्रेनिंग स्कूल, जाकुर एयरोड्रॉम, बेंगलूरु
2. आंध्र प्रदेश फ्लाइंग क्लब, हैदराबाद एयरपोर्ट
3. मद्रास फ्लाइंग क्लब लि. सिविल एयरपोर्ट, चेन्नई
4. कोयंबतूर फ्लाइंग क्लब लि., सिविल एयरोड्रॉम, कोयम्बतूर
5. करेल एविएशन ट्रेनिंग सेंटर, सिविल एयरोड्रॉम, फेहाह, तिरुवनंतपुरम

निजी फ्लाइंग स्कूल

1. उड़ान, इंदौर
2. अहमदाबाद एविशन अकादमी
3. ऑरिएंट फ्लाइट स्कूल, सेंट थॉमस माउंट, मद्रास
4. बेंगलूरु एयरोनॉटिक्स एंड टेक्निल सर्विस, बेंगलूरु

Saturday, February 20, 2016

एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में करियर

भारत की अर्थव्यवस्था काफी हद तक कृषि पर केंद्रित है। इसलिए यह क्षेत्र रोजगार मुहैया कराने के मामले में भी आगे है। लेकिन देश की लगातार बढती जनसंख्या की वजह से नई तकनीक और बेहतर सिंचाई व्यवस्था आदि की जरूरत महसूस की जा रही है। एग्रीकल्चर इंजीनियर अपनी इंजीनियरिंग स्किल की बदौलत कृषि उत्पाद से जुड़ी समस्याओं को सुलझाने की दिशा में कार्य करते हैं। देश में कृषि के विशाल क्षेत्र को देखते हुए एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में करियर की अच्छी संभावनाएं हैं।
कार्य
एग्रीकल्चर इंजीनियर का काम कृषि उत्पाद से संबंधित तकनीकी समस्या को दूर करना होता है। वाटर सप्लाई और वाटर इरिगेशन की फील्ड में हाइड्रोलॉजिकल, डेम डिजाइन, कैनाल, पाइपलाइन, पम्प सिस्टम, माइक्रो-इरिगेशन सिस्टम्स और ड्रेनेज सिस्टम आदि से जुड़ा होता है, जबकि एग्रिकल्चर मैकेनाइजेशन के तहत इंजीनियर ट्रैक्टर, अन्य मशीनों की टेस्टिंग, नए मशीन, उपकरण के लिए डिजाइन तैयार करने का कार्य करते हैं। मृदा संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले इंजीनियर मृदा संरक्षण से जुड़े उपाय, बाढ़ के पानी का सही तरीके से निकासी आदि संबंधित कार्यो से जुड़े होते हैं।
योग्यता और कोर्स
यदि एग्रीकल्चर इंजीनियर के रूप में करियर बनाना हो तो बारहवीं में साइंस सब्जेक्ट यानी फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स/बायोलॉजी जरूर होने चाहिए। अधिकतर एग्रीकल्चर इंस्टीटयूट और यूनिवर्सिटी एग्रीकल्चर इंजीनियर के बीई/बीटेक प्रोग्राम्स में एडमिशन के लिए एंट्रेंस टेस्ट का आयोजन करती है। इस कोर्स की अवधि चार वर्ष होती है। एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स भी किया जा सकता है। इस कोर्स की अवधि दो-तीन वर्ष होती है। कुछ इंस्टीटयूट में एडमिशन बारहवीं के अंक के आधार पर भी हो जाता है। इसके बाद यदि एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग के एमई/एमटेक प्रोग्राम्स में प्रवेश लेना हो, तो इसके लिए ग्रेजुएट एप्टिटयूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग (GATE) पास करना पड़ता है। आईआईटी, खड़गपुर और इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटयूट, नई दिल्ली में पीएचडी कोर्स भी उपलब्ध हैं।
अवसर
एग्रीकल्चर इंजीनियर के लिए पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर में रोजगार के भरपूर अवसर विद्यमान हैं। मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट, फॉरेस्ट्री, फूड प्रोसेसिंग, रूरल डेवलपॅमेंट आदि में जॉब तलाशा जा सकता हैं। एग्रीकल्चर इंजीनियर एनजीओ के साथ मिलकर विभिन्न प्रोजेक्ट और स्कीम पर भी काम करते हैं। कृषि के क्षेत्र में बड़ी कंपनियों के प्रवेश से इस क्षेत्र में स्टूडेंट्स का भविष्य काफी अच्छा हो गया है। कुछ महत्वपूर्ण अवसर निम्नलिखित हैं:
• पब्लिक सेक्टर:   o एग्रीकल्चर डिपॉर्टमेंट (राज्य और केंद्र सरकार)
   o डेवलॅमेंट ऑर्गनाइजेशन
   o यूनिवर्सिटी/ इंस्टीट्यूट
   o लैब
• प्राइवेट सेक्टर:   o एग्रीकल्चर को-ऑपरेटिव्स
   o एग्रीकल्चर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स
   o फर्टिलाइजर और इरिगेशन कंपनीज
   o फार्रि्मंग कंपनीज
   o सर्विस ऑर्गनाइजेशन
   o स्वयं सेवी संस्थान
कमाई
इस क्षेत्र से जुड़े इंजीनियर की सैलरी इंजीनियरिंग के दूसरे ब्रांच से जुडे प्रोफेसनल्स की तरह ही होती है। शुरुआत में सैलरी 12 से 15 हजार रुपये प्रति माह तक होती है। अनुभव के आधार पर अच्छी सैलरी के प्राप्त कर सकते हैं। कुछ महत्वपूर्ण संस्थान निम्नलिखित हैं:
संस्थान
इस समय देश में लगभग 43 एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटीज (स्टेट, सेंट्रल और डीम्ड) हैं। इन यूनिवर्सिटीज  से एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग से जुड़े अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स कर सकते हैं। इसके अलावा, आईआईटीज भी एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग से जुडे कोर्स ऑफर करते हैं।
1. इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटयूट, नई दिल्ली
2. चौधरी चरण सिंह हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हिसार
3. शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, श्रीनगर
4. पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, लुधियाना
5. महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर ऐंड टेक्नोलॉजी, उदयपुर
6. राजस्थान एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, बीकानेर
7. राजेंद्र एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा
8. गोविंद वल्लभपंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर ऐंड टेक्नोलॉजी,उधमसिंह नगर
9. बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, झारखंड
10. इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टीटयूट
11. इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर
12. जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर
13. सरदार वल्लभ भाई पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर ऐंड टेक्नोलॉजी

Friday, February 19, 2016

केमिकल इंजीनियरिंग में करियर

केमिकल इंजीनियरिंग एक बेहतरीन करियर क्षेत्र है। इस फील्ड में रोजगार के अवसरों की कमी नहीं है। इसमें करियर के अवसरों के बारे में जानकारी दे रहे हैं संजीव कुमार सिंह
केमिकल पदार्थों की बढ़ती मात्रा एवं भागीदारी के चलते इसमें रोजगार की संभावना तेजी से बढ़ रही है। इसमें कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स ‘केमिकल इंजीनियर’ व यह पूरी प्रक्रिया ‘केमिकल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। सामान्यत: केमिकल इंजीनियरिंग को इंजीनियरिंग की एक शाखा के रूप में जाना-समझा जाता है, जिसके अंतर्गत कच्चे पदार्थों एवं केमिकल्स को किसी प्रयोग की चीज में बदला जाता है, जबकि मॉडर्न केमिकल  इंजीनियरिंग कच्चे पदार्थों को बदलने के साथ-साथ तकनीक (नैनोटेक्नोलॉजी और बायोमेडिकल इंजीनियरिंग) पर भी बल देती है। इस विधा के अंतर्गत रासायनिक उत्पादों के निर्माण में आने वाली समस्याओं का हल ढूंढा जाता है। इसके अलावा उत्पादन प्रक्रिया में होने वाले डिजाइन प्रोसेस का कार्य डिजाइन इंजीनियर देखते हैं। अत: इसमें एक ही साथ कई अलग-अलग क्षेत्रों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि यह पाठ्यक्रम केमिस्ट्री व  इंजीनियरिंग का मिला-जुला रूप है। इसमें कच्चे पदार्थों या केमिकल्स को विभिन्न प्रक्रियाओं के तहत आवश्यक पदार्थों में तब्दील किया जाता है। इसमें नए मेटेरियल एवं तकनीकों की खोज भी की जाती है। इंजीनियरिंग की ही शाखा होने के कारण इसका कार्यस्वरूप काफी कुछ केमिस्ट्री एवं फिजिक्स से मिलता-जुलता है।
कुछ अलग सी है दुनिया
केमिकल इंजीनियर का कार्य केवल डिजाइन एवं मेंटेनेंस तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि कई परिस्थितियों में उन्हें कॉस्ट कटिंग एवं प्रोडक्शन सरीखे कार्यों को भी अंजाम देना पड़ता है। एक तरह से देखा जाए तो यह क्षेत्र हमेशा हुनर की तलाश में रहता है। नए आने वाले लोगों को पहले अनुभवी इंजीनियरों के साथ किसी तत्कालीन उपयोगिता वाले कार्य या परियोजना पर काम करने का मौका दिया जाता है।
प्रवेश परीक्षा
इसमें प्रवेश लेने के लिए आईआईटी जेईई या अन्य प्रवेश परीक्षाओं में बैठना अनिवार्य है। इसमें कुछ परीक्षा ऑल इंडिया अथवा कुछ स्टेट लेवल पर आयोजित की जाती हैं। इनमें उत्तीर्ण होने के पश्चात ही प्रमुख कोर्सों में प्रवेश मिल पाता है। इसमें मुख्यत: बीई या बीटेक में मुख्य रूप से इंडस्ट्रियल केमिस्ट्री, पॉलीमर टेक्नोलॉजी, पॉलीमर प्रोसेसिंग, पॉलीमर टेस्टिंग, पॉलीमर सिंथेसिस तथा एम ई स्तर के पाठ्यक्रम में मुख्य रूप से प्लांट डिजाइन, पेट्रोलियम रिफाइन, फर्टिलाइजर टेक्नोलॉजी, पेट्रोकेमिकल्स, सिंथेटिक फाइबर्स, प्रोसेसिंग ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चरल प्रोडक्ट्स आदि की जानकारी दी जाती है।
वैज्ञानिक अभिरुचि से प्रगति
विज्ञान में रुचि एवं सिद्धांतों की जानकारी रखने वाले छात्रों के लिए यह एक विशिष्ट क्षेत्र है। चूंकि यह क्षेत्र अनुसंधान कार्य से जुड़ा है। अत: इसमें करियर बनाने वाले छात्रों को परिश्रमी, धैर्यवान, साहसी व लंबे समय तक अकेले कार्य करने की क्षमता रखनी होगी। साथ ही विश्लेषक, कम्युनिकेशन की दृष्टि से मजबूत, तकनीकी रुचि रखने वाला, कम्यूटर पर अच्छी पकड़ तथा आर्ट की कला में माहिर होना भी आवश्यक है। ऐसे व्यक्ति, जिनमें संख्या आकलन और विश्लेषक की क्षमता के साथ-साथ वैज्ञानिक झुकाव हो तो वे आसानी से इस व्यवस्था की तरफ मुड़ सकते हैं।
पाठय़क्रम संबंधी जानकारी
केमिकल इंजीनियरिंग का पाठय़क्रम केमिकल टेक्नोलॉजी से भिन्न होता है। इसमें आर्गेनिक व इनआर्गेनिक केमिकल्स को शामिल किया जाता है। इसके अंतर्गत बड़ी कंपनियों में डिजाइन एवं मैन्युफैक्चरिंग से संबंधित कार्य किए जाते हैं। रेगुलर कोर्सेज के अलावा दूरस्थ शिक्षा के जरिए भी कई तरह के कोर्स संचालित किए जाते हैं। एक केमिकल इंजीनियर का कार्य केमिकल प्लांट्स को डिजाइन, ऑपरेट एवं उसके प्रोडक्शन से जुड़े कार्यों को अंजाम देना होता है।
कुछ प्रमुख कोर्स
डिप्लोमा इन केमिकल इंजीनियरिंग
बैचलर ऑफ इंजीनियरिंग इन केमिकल इंजीनियरिंग
बैचलर ऑफ साइंस इन केमिकल इंजीनियिरग
बैचलर ऑफ टेक्नोलॉजी इन केमिकल इंजीनियरिंग
मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग इन केमिकल इंजीनियरिंग
मास्टर ऑफ साइंस इन केमिकल इंजीनियिरग
मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी इन केमिकल इंजीनियरिंग
इंट्रिग्रेटेड एमटेक इन केमिकल इंजीनियरिंग
पोस्ट डिप्लोमा इन पेट्रो केमिकल टेक्नोलॉजी
व्यापक है इसका कार्यक्षेत्र
कोर्स करने के बाद सबसे ज्यादा नियुक्तियां केमिकल, प्रोसेसिंग, मैन्युफैक्चरिंग, प्रिंटिंग, फूड व मिल्क इंडस्ट्री में होती हैं। इसके अलावा प्रोफेशनल्स मिनरल इंडस्ट्री, पेट्रोकेमिकल प्लांट्स, फार्मास्यूटिकल, सिंथेटिक फाइबर्स, पेट्रोलियम रिफाइनिंग प्लांट्स, डाई, पेंट, वार्निश, औषधि निर्माण, पेट्रोलियम टेक्सटाइल एवं डेयरी प्लास्टिक उद्योग आदि क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं। रासायनिक उद्योग की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी उत्तम है। शोध में रुचि रखने वाले रिसर्च इंजीनियरिंग का विभाग संभालते हैं। कुछ लोग विपणन व प्रबंधन का काम देखते हैं। प्राइवेट एवं सरकारी संस्थानों में केमिकल इंजीनियरिंग से संबंधित रोजगार की भरमार है। एक केमिकल इंजीनियर को प्रयोगशाला जैसे सरकारी प्रयोगशाला, उद्योग शोध संघ, निजी परामर्श केंद्र, विश्वविद्यालय शोध दल में भी तरह-तरह के कार्य एवं अनुसंधान करने पड़ते हैं। इसके अतिरिक्त वे अन्य कई मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रीज में विश्लेषण, निर्माण संबंधी कार्य देखते हैं।
इस रूप में मिलेगा काम
सुपरवाइजर या मैनेजर
टेक्निकल स्पेशलिस्ट
प्रोजेक्ट मैनेजर
प्रोजेक्ट इंजीनियर
केमिकल इंजीनियर
केमिकल डेवलपमेंट इंजीनियर
क्वालिटी कंट्रोलर’ लेबोरेटरी असिस्टेंट
सेलरी
कार्य, अनुभव, योग्यता एवं पद को देखते हुए प्राइवेट सेक्टर में अधिक पारिश्रमिक दिया जाता है। फ्रेशर्स को प्रारंभ में 15000 से लेकर 25000 रुपए प्रतिमाह तथा अन्य सुविधाएं मिलती हैं, जबकि एक डिप्लोमा धारक को सरकारी संस्थानों द्वारा 14000 से 15000 रुपए प्रतिमाह प्राप्त होते हैं।
कॉलेज के लेक्चरर को प्रारंभिक वेतन 50,000 से 60,000 रुपए प्रतिमाह प्रदान किया जाता है। एक इंजीनियर को सरकारी संस्थानों द्वारा 30,000-40,000 एवं सरकारी आवास तथा अन्य सुविधाएं मिलती हैं।
विज्ञान का ज्ञान आवश्यक
केमिकल इंजीनियर बनने के लिए बीई या बीटेक (स्नातक स्तर) तथा परा स्नातक स्तर पर एमई होना आवश्यक है। ऐसे में जो छात्र आगे चल कर केमिकल इंजीनियर बनना चाहते हैं, उन्हें बारहवीं में विज्ञान विषय लेना होगा। अधिकांश संस्थान ऐसे हैं, जो दसवीं के पश्चात डिप्लोमा या पॉलिटेक्निक से संबंधित कोर्स करवाते हैं। बीई तथा बीटेक चार वर्ष का तथा एमई दो वर्ष का होता है। यदि बारहवीं के पश्चात सीधे एमई में दाखिला लेते हैं तो वह पांच वर्ष का हो जाता है। इसी तरह से केमिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स तीन वर्ष का होता है।
एक्सपर्ट व्यू
प्रो.एएसके सिन्हा

चैलेंज व स्कोप दोनों हैं अनलिमिटेड
आमतौर पर लोगों का मानना है कि केमिकल इंजीनियरिंग का पूरा आधार केमिस्ट्री पर होता है तथा सिलेबस में भी यह सब्जेक्ट ज्यादा हावी होता है, जबकि यह सत्य नहीं है। केमिस्ट्री के अलावा इसमें अन्य कई चीजों को शामिल किया जाता है। आज बायोमास, हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी, आरओ प्लांट आदि सभी के पीछे केमिकल इंजीनियरों की मेहनत छिपी होती है। प्रदूषण दूर करने में भी इसका योगदान सराहनीय होता है। फर्टिलाइजर, यूरिया, अमोनिया व दवाओं आदि को केमिकल इंजीनियरों की मदद से ही तैयार किया जाता है। इस आधार पर कहना गलत न होगा कि केमिकल इंजीनियरिंगजीवन के हर क्षेत्र से जुड़ी है। जो भी एनर्जी के सोर्स हैं,वे सब केमिकल हैं, इसलिए इसका दायरा व स्कोप काफी बडम है। इसमें प्रोफेशनल्स को कदम-कदम पर तमाम तरह की चुनौतियां भी उठानी पडम्ती हैं। एनर्जी क्राइसेस, मेन्युफेक्चरिंग सेक्टर के ऑटोमेशन आदि का सामना केमिकल इंजीनियरों को करना पड़ता है। इस फील्ड में लड़कियों की संख्या पहले की अपेक्षा बढ़ी है। कुछ वर्ष पहले तक क्लास में 1-2 प्रतिशत लड़कियां होती थीं, लेकिन अब उनकी संख्या बढ़कर 10-12 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
प्रो. एएसके सिन्हा, हेड केमिकल  इंजीनियरिंगडिपार्टमेंट, आईआईटी, बीएचयू, वाराणसी
फैक्ट फाइल
प्रमुख संस्थान
देश में कई ऐसे संस्थान हैं, जो केमिकल इंजीनियरिंग एवं केमिकल टेक्नोलॉजी के पाठय़क्रम मुहैया कराते हैं। प्रमुख संस्थान निम्न हैं-
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खड़गपुर, चेन्नई, रुड़की आदि में भी शाखाएं मौजूद)
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट-
www.bitmesra.ac.in
दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.dce.edu
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद
वेबसाइट
- www.iiita.ac.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीएचयू), वाराणसी
वेबसाइट
- www.iitbhu.ac.in
जाकिर हुसैन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, अलीगढ़
वेबसाइट-
  www.amu.ac.in

Thursday, February 18, 2016

इंस्ट्रमेंटेशन इंजीनियर में करियर

इंजीनियरिंग की प्रमुख विधाओं में इंस्ट्रमेंटेशन इंजीनियरिंग को किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इंजीनियरिंग की इस शाखा के अंतर्गत इंटर डिसिप्लिनरी ट्रेनिंग दी जाती है। इन डिसिप्लिन या विषयों में इलेक्ट्रिकल, कैमिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर साइंस शामिल हैं। इनका काम मुख्य रूप से ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स की डिजाइनिंग,मेन्युफेक्चरिंग, मेंटेनेंस और रिपेयरिंग से सम्बंधित है, जिनके माध्यम से टेम्प्रेचर, प्रेशर, फ्लो आदि को मापने का काम किया जाता है। ये इंस्ट्रूमेंट्स घरेलू थर्मामीटर, फ्रिज और एसी में इस्तेमाल होने वाले थर्मोस्टेट से लेकर पावर प्लांट्स, कैमिकल इंडस्ट्री,ऑयल रिफाइनरी, स्टील इंडस्ट्री तक में किसी न किसी रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं।
इंस्ट्रमेंटेशन इंजीनियिरग का महत्व
अमूमन इस तरह की विधा में ट्रेंड इंजीनियर्स ऑटोमेशन प्लांट्स या प्रोसेसिंग से जुड़े कामों में देखे जा सकते हैं। यहां इनका दायित्व सिस्टम प्रोडक्टिविटी में सुधार लाने की दिशा में प्रयास करना तथा सेफ्टी इत्यादि से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर सम्बंधित होता है। इसके अतिरिक्तकम्युनिकेशन, एयरोस्पेस, डिफेन्स, कम्प्यूटर्स एवं सेमी कंडक्टर तथा अन्य आम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उत्पादन के दौरान फाइनल टेस्टिंग इंस्ट्रमेंटेशन इंजीनियर्स द्वारा की जाती है। इंस्ट्रमेंटेशन सिस्टम्स के माध्यम से ही समस्त प्रोडक्शन का काम आजकल किया जा रहा है।  ऐसे में इन सिस्टम्स अथवा इक्विपमेंट्स में जरा सी खराबी आने से समूचा प्रोडक्शन प्लांट ठप होने का खतरा रहता है। इसलिए इन प्रोफेशनल्स को हमेशा ऐसी स्थितियों के समाधान के लिए उपलब्ध होना पड़ता है। दूसरे शब्दों में यह दायित्व अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।
व्यक्तित्व और काबिलियत
जहां तक एकेडेमिक्स की बात है तो मैथ्स और फिजिक्स के फंडामेंटल बहुत क्लियर होने जरूरी हैं। इस प्रोफेशन में आने वाले समय में लगभग समस्त कामकाज का आधार प्राय: यही ज्ञान होगा। इसके अतिरिक्त विभिन्न उपकरणों और इंस्ट्रूमेंट्स में अतिरिक्त दिलचस्पी, इन्हें इस्तेमाल करने का आत्मविश्वास, प्रोडक्शन यूनिट्स के वातावरण में लम्बे समय तक काम कर पाने की क्षमता आदि का होना भी अत्यंत आवश्यक क्वालिटी में शुमार किया जा सकता है। अमूमन दूरदराज के क्षेत्रों में भी इन्हें इंस्टॉल करने के लिए जाना पड़ता है, इसलिए यात्रा करने से परहेज करने वालों को इस प्रोफेशन से दूर ही रहना चाहिए।
एकेडेमिक
बी ई अथवा बी टेक( इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंस्ट्रूमेंटेशन) सरीखी डिग्री किसी नामी संस्थान से हासिल करने पर रास्ते कैम्पस प्लेसमेंट के कारण थोडे आसान हो जाते हैं। इस कोर्स में इलेक्ट्रिकल, इंस्ट्रूमेंट्स, मशीनरी, इलेक्टिसिटी जेनरेशन, ट्रांसमिशन एवं डिस्ट्रीब्यूशन के लिए कंट्रोल इक्विपमेंट्स एवं पावर सिस्टम, टेलीकॉम इंडस्ट्री के लिए आवश्यक उपकरण तथा अन्य प्रकार के प्रोसेस ऑपरेशंस के लिए कंट्रोल सिस्टम्स की डिजाइनिंग एवं उत्पादन से जुड़ी सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसके बाद पी एल सी प्रोग्रामिंग एस सी ए डी ए सर्टिफिकेशन कोर्स करना फायदेमंद रहता है। यही नहीं, एनालिटिकल और लॉजिकल  स्किल का होना भी इनके लिए अहम गुण कहा जा सकता है। जूनियर इंजीनियर के पदों पर इस विधा में डिप्लोमा धारक लोगों को भी मौके मिल सकते हैं।
कार्यकलाप
इलेक्टिकल सिस्टम्स और उपकरणों की डिजाइनिंग एवं निर्माण, सिस्टम्स का इंस्टॉलेशन एवं  मेंटेनेंस का सुपरविजन, हेल्थ एवं सेफ्टी स्टैंडर्ड का पालन, पुराने सिस्टम्स में नए सुधार, सम्बंधित कंप्यूटर सॉफ्टवेयर्स डेवलप करने में अहम भूमिका,  इलेक्टिसिटी जेनरेशन एवं मैनेजमेंट, नए बिजनेस प्रपोजल तैयार करना, भावी क्लाइंट्स से संपर्क इत्यादि। असल में इंस्ट्रमेंटेशन प्रोडक्शन से संबद्ध इतने अधिक क्षेत्र और कम्पनियां हैं कि किसी एक व्यक्ति के लिए सभी विधाओं में पारंगत होना लगभग नामुमकिन है। यही कारण है कि कम्पनियां अपनी जरूरत के अनुसार नव नियुक्त इंस्ट्रमेंटेशन इंजीनियर्स को कुछ समय तक ऑन जॉब ट्रेनिंग की सुविधा उपलब्ध करवाती हैं।
जॉब्स
इनके लिए प्राय: प्रत्येक इंडस्ट्री में जॉब्स पाने के मौके हो सकते हैं। इनमें ऑडियो-वीडियो कम्युनिकेशन सिस्टम, ऑटोमेशन इंडस्ट्री, इलेक्टिकल पावर के अतिरिक्त टेक्सटाइल्स,फार्मास्युटिकल्स, पेपर, मेटलर्जी, मरीन, लोकोमोटिव आदि का उल्लेख प्रमुख रूप से किया जा सकता है। शुरुआती जॉब्स में सेल्स इंजीनियर, एप्लीकेशन इंजीनियर, सर्विस इंजीनियर तथा मार्केटिंग इंजीनियर के पदों पर काम करने का मौका मिल सकता है। इनके अलावा ऑटोमेशन एंड कंट्रोल, प्लांट मेंटेनेंस, इंस्ट्रमेंटेशन डिजाइनिंग, सेल्स, सरकारी और निजी क्षेत्र के आर एंड डी विभागों, कैमिकल एवं फर्टिलाइजर इंडस्ट्री, रिफाइनरी, सीमेंट प्लांट्स, टीचिंग आदि के क्षेत्र में भी रोजगार के अवसर संभव हो सकते हैं। विदेशी कंपनियों में भी काम के अवसर मिलते हैं

Tuesday, February 16, 2016

फॉरेंसिक अकाउंटिंग

देश में आईटी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी सत्यम (अब महिंद्रा सत्यम) में हुए बड़े वित्तीय घोटाले का मामला हो या फिर आए दिन सामने आने वाले आर्थिक साइबर अपराधों, मनी लॉन्डरिंग, बीमा, बैंकिंग और निवेश से संबंधित घोटालों आदि के खुलासे की बात, इनकी प्रभावी जांच के लिए फॉरेंसिक अकाउंटिंग की जरूरत होती है। बढ़ते आर्थिक अपराधों के इस दौर में फॉरेंसिक अकाउंटिंग के पेशेवरों का महत्व और उनकी मांग काफी बढ़ गई है। इस कारण इसे भविष्य के लिहाज से रोजगार का एक बेहतरीन विकल्प माना जा सकता है।
क्या है फॉरेंसिक अकाउंटिंग
यह अकाउंटिंग की ही एक शाखा है, जिसमें कानून व्यवस्था से जुड़े मामलों को सुलझाने के लिए अकाउंटिंग के सिद्धांतों के साथ ऑडिटिंग और जांच-पड़ताल के हुनर का इस्तेमाल किया जाता है। यह काम करने वाले पेशेवरों को फॉरेंसिक अकाउंटेंट कहा जाता है। वह अनुभवी ऑडिटर होते हैं और वित्तीय घपलों का पता लगाने के लिए किसी व्यावसायिक संस्थान (कंपनी, फर्म) के खातों (अकाउंट्स) पर निगरानी रखने का कार्य करते हैं। फॉरेंसिक अकाउंटिंग के लिए सबसे जरूरी होती है अकाउंटिंग की अच्छी जानकारी। इसके बाद ऑडिटिंग, रिस्क असेसमेंट और फ्रॉड डिटेक्शन (घपलों को पहचानना) आदि की व्यावहारिक समझ को इस पेशे में आवश्यक माना जाता है।
इस पेशे से जुड़े लोगों को अपने अकाउंटिंग, ऑडिटिंग और खोजबीन के हुनर से आर्थिक घोटालों से संबंधित साक्ष्यों का विश्लेषण करके उनका अर्थ निकालना होता है। किसी मामले की अदालती कार्यवाही में वह बतौर विशेषज्ञ गवाह के रूप में भी योगदान दे सकते हैं। किसी कानूनी विवाद में लिप्त लोगों या फर्मों के मामले में फॉरेंसिक अकाउंटेंट की मुख्य भूमिका संबंधित वित्तीय रिकार्डों (दस्तावेज) की जांच और उनका विश्लेषण करना होता है। इस कार्य के दौरान वह उन सबूतों को भी जुटाते हैं, जो जांच एजेंसियों को कानूनी प्रक्रिया में मदद देते हैं। अपने पेशेवर जीवन में फॉरेंसिक अकाउंटेंट को अकाउंटेंट, डिटेक्टिव और लीगल एक्सपर्ट जैसी कई भूमिकाएं निभानी होती हैं। वह संदिग्ध लगने वाले वित्तीय दस्तावेजों की तलाश में रहते हैं, ताकि वह उन अपराधों का पर्दाफाश कर सकें, जिसमें कोई एक व्यक्ति या छोटे-बड़े व्यापारिक समूह संलिप्त हैं।
 
प्रमुख कार्य
- वित्तीय साक्ष्यों की जांच और उनका विश्लेषण करना।
- साक्ष्यों (वित्तीय) की प्रस्तुति और उनके विश्लेषण में मदद के लिए कंप्यूटर आधारित एप्लिकेशन तैयार करना।
- जांच में मिलने वाले तथ्यों को रिपोर्ट और दस्तावेजों के संग्रह के रूप में प्रस्तुत करना।
- अदालत की कार्यवाही में मदद करना यानी न्यायालय में विशेषज्ञ के रूप में गवाही देना और सबूतों को मजबूत करने के लिए दृश्यात्मक सामग्री उपलब्ध कराना।
जरूरी हैं फॉरेंसिक अकाउंटेंट
आमतौर पर सभी बड़ी अकाउंटिंग फर्मों में फॉरेंसिक अकाउंटेंट की जरूरत होती है। इन फर्मों में उनका कार्य कंपनियों के बीच होने वाले गठजोड़ों और अधिग्रहण समझौतों की जांच करना, विशेष ऑडिट करना, आर्थिक अपराधों तथा टैक्स की गड़बड़ी से संबंधित मामलों की जांच करना होता है। तलाक, व्यापार और दुर्घटनाओं से संबंधित क्लेम के मामलों  की जांच में भी फॉरेंसिक अकाउंटेंट की जरूरत होती है। वह अपनी इच्छा के अनुसार नौकरी के लिए सरकारी या निजी क्षेत्र की कंपनियों का रुख कर सकते हैं।
प्रमुख रोजगारदाता क्षेत्र
- पब्लिक अकाउंटिंग फर्म
- प्राइवेट कॉर्पोरेशंस
- बैंक
- पुलिस एजेंसियां
- सरकारी एजेंसियां
- इंश्योरेंस कंपनियां
- लॉ फर्म
जरूरी गुण
- गहन विश्लेषणात्मक कौशल
- जांच-पड़ताल का हुनर
- तथ्यों को बारीकी से जानने की इच्छा
- किसी दबाव में न आते हुए काम को पूरा करने की दृढ़ता
- अपने काम के प्रति पूर्ण निष्ठा
- जिज्ञासा
- रचनात्मक सोच
उपलब्ध पाठ्यक्रम
- पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉरेंसिक अकाउंटिंग
- सर्टिफिकेट कोर्स इन फॉरेंसिक अकाउंटिंग प्रोफेशनल
- सर्टिफाइड एंटी-मनी लॉन्डरिंग एक्सपर्ट
- सर्टिफाइड बैंक फॉरेंसिक अकाउंटिंग
- सर्टिफाइड विजिलेंस एंड इंवेस्टिगेशन एक्सपर्ट
योग्यता
- किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से बैचलर डिग्री प्राप्त हो
- दो से चार साल का पेशेवर अनुभव हो
- इंडिया फॉरेंसिक द्वारा आयोजित सीएफएपी परीक्षा न्यूनतम 75 फीसदी अंकों के साथ पास हो (सीपीए एक प्रोफेशनल डिग्री है, जो भारत में सीए की तरह है, इसे अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ सर्टिफाइड पब्लिक अकाउंटेंट्स जारी करता है।)
संबंधित संस्थान
- द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया, नई दिल्ली
- द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड फाइनेंशियल एनालिस्ट्स ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी, त्रिपुरा
- इंडिया फॉरेंसिक, पुणे

Sunday, February 14, 2016

रोबोटिक्स का रोचक करियर

शब्द की उत्पत्ति चेक शब्द 'रोबिट' तथा स्लैव मूल के शब्द रोबोटा से हुई, जिसका अर्थ कार्य तथा गुलामी का काम है। आजकल रोबोट हार्ट सर्जरी करते हैं, बारूदी सुरंगों को हटाते हैं तथा कारों की असेम्बलिंग का कार्य करते हैं। फिर भी भारतीय कंपनियाँ अभी भी बार-बार किए जाने वाले बोरिंग तथा असुखदकर कार्यों में रोबोटों के उपयोग करने से बच रही है। वेल्डिंग, असेम्बलिंग, स्प्रे-पेटिंग, कटिंग तथा पूर्जों को लगाना कुछ ऐसे काम हैं, जिन्हें रोबोट द्वारा कुशलतापूर्वक किया जाता है।

तीन शाखाओं का संगम है रोबोटिक्स
रोबोटिक्स के क्षेत्र में प्रवेश करने के लिए मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल या कम्प्यूटर इंजीनियरिंग का अध्ययन करने की आवश्यकता होती है। वास्तव में रोबोटिक्स इन तीनों के तालमेल का ही रूप है। इसलिए रोबोटिक्स में सुविज्ञता हासिल करने के लिए इन तीनों क्षेत्र का गहन ज्ञान अपेक्षित है। इस क्षेत्र में कुछ इंजीनियरिंग संस्थानों द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, एडवांस्ड रोबोटिक्स सिस्टम्स, इंटेलिजेंस कंट्रोल, इमेजिंग प्रोसेस, न्यूरल नेटवर्क्स तथा फुजी लाजिक्स पर विशेष कोर्स संचालित किए जाते हैं। इसके अलावा पोस्टग्रेजुएट स्तर पर भी स्पेशलाइजेशन किया जा सकता है।

रोबोटिक्स के अध्ययन में बेसिक इंजीनियरिंग प्रिसिपल तथा रोबोट्स का विकास तथा उपयोग करने वाले प्रोफेशनल की सहायता करने के लिए टेक्निकल स्किल्स सिखाई जाती है। इसमें डिजाइन में इंस्ट्रक्शन, ऑपरेशन टेस्टिंग, सिस्टम मैटेनेंस तथा रिपेयर शामिल है।

रोबोटिक्स को जानिए
फिर भी रोबोटिक्स एक या दो दिनों में सीख कर चलाया जाने वाला अल्पकालीन क्षेत्र नहीं है, बल्कि यह एक दीर्घकालीन अनुसंधानपरक करियर है। हो सकता है कि इस क्षेत्र में आज प्रवेश करने वालों को अपनी मंजिल तक पहुँचने में कुछ साल इंतजार करना पड़े। बीएचईएल, बार्क तथा सीएआईआर जैसे संगठनों द्वारा फ्रेश ग्रेजुएटस को साइंटिस्ट के रूप में लेकर रोबोटिक्स के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया जाता है।

रोबोटिक्स विषय से परिचित होने के लिए सबसे पहले रोबोट की अवधारणा को समझना आवश्यक है। इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गनाइजेशन ने रोबोट को परिभाषित करते हुए बताया है कि यह ऐसी स्व-नियंत्रित रि-प्रोगामेबल मल्टीपरपज मशीन है, जिसे लोकोमोशन सहित या उसके बिना इंडस्ट्रियल ऑटोमेशन एप्लिकेशन के लिए उपयोग में लाया जाता है। आज सारी दुनिया में विभिन्न कार्यकलापों में रोबोटों का उपयोग निरंतर लोकप्रिय होकर बढ़ता जा रहा है। चूँकि रोबोट को किसी भी काम के लिए खतरनाक पर्यावरण तक के लिए बार-बार सही रूप से प्रोग्राम किया जा सकता है।

ये विभिन्न रणनीतियुक्त मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रोबोटिक्स के अंतर्गत रोबोट की डिजाइनिंग, उनका अनुरक्षण, नए एप्लिकेशंस का विकास और अनुसंधान जैसे काम आते हैं। इस क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक्स, मैकेनिक्स तथा कम्प्यूटर साइंस जैसे सहयोगी क्षेत्रों का ज्ञान शामिल होता है। इसलिए इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों को इन क्षेत्रों से संबंधित तकनीकों से अवगत होना चाहिए।

रोबोटिक्स के कोर्स
रोबोटिक्स इंजीनियरिंग का वह क्षेत्र है, जो रोबोट की डिजाइन तथा एप्लिकेशन से संबंधित है तथा इसमें मेनिपुलेशन तथा प्रोसेसिंग के लिए कम्प्यूटर का उपयोग किया जाता है। उद्योगों में रोबोट्स का उपयोग निर्माण प्रक्रिया को तेज करने के लिए किया जाता है।

इन्हें न्युक्लियर साइंस, सी-एक्सप्लोरेशन, इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स की ट्रांसमिशन सर्विस, बायोमेडिकल इक्विपमेंट की डिजाइनिंग आदि के लिए उपयोग में लाया जाता है। रोबोटिक्स के लिए कम्प्यूटर इंटीग्रेटेड मैन्यूफैक्चरिंग, मैकेनिकल, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, बायोलॉजिकल मैकेनिक्स, सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग का एप्लिकेशंस आवश्यक होता है।

योग्यता
चूँकि रोबोटिक्स एक इंटर-डिसिप्लिनरी कोर्स है। इसलिए इसमें उन छात्रों के लिए आमंत्रण है, जिन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, इंस्ट्रूमेंटेशनल इंजीनियरिंग या कम्प्यूटर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन किया हो तथा जिनकी रोबोटिक्स तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अभिरुचि हो।

सामान्यतः रोबोटिक्स के लिए बी टेक या बीई कम्प्यूटर, आईटी, मैकेनिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल को आदर्श योग्यता माना जाता है। आईआईटी दिल्ली, कानपुर, मुंबई, चेन्नई, खड़गपुर, गुवाहाटी तथा रूड़की सहित कई इंजीनियरिंग संस्थानों द्वारा रोबोटिक्स तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं।

रोजगार के अवसर
रोबोटिक्स एक उभरता हुआ क्षेत्र है। इसलिए यहाँ रोजगार के नए-नए और बेहतरीन अवसर उपलब्ध हैं। रोबोटिक्स में करियर बनाने वाले या तो इंडस्ट्रीयल रोबोट्स के निर्माण या एप्लिकेशन स्पेसिफिक रोबोट के क्षेत्र जैसे कि बम निष्क्रिय करने के काम तथा अन्य सुरक्षा कार्यों में रोबोट के उपयोग से संबंधित कार्य कर सकता है। रोबोट से वैक्यू क्लीनिंग जैसे घरेलू काम भी लिए जा सकते हैं। रोबोटिक्स के क्षेत्र में सतत अनुसंधान जारी है। इस क्षेत्र में भी करियर निर्माण की अपार संभावना है।

भारत में स्कोप
रोबोटिक्स में एमई करने वाले छात्र इसरो जैसे अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन में रोजगार के विशिष्ट अवसर प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही माइक्रोचिप बनाने वाले उद्योगों में भी उनकी खासी माँग है। उनके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अनुसंधान में कार्य करने के लिए आईआईटी के दरवाजे भी खुले हुए हैं। इतना ही नहीं, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑव बायोलॉजी भी रोबोटिक्स तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में अनुसंधान के लिए फैलोशिप प्रदान की है।

विदेशों में स्कोप
रोबोटिक्स इंजीनियर को अमेरिका की प्लास्टेक जैसी कंपनियों में रोबोटों को प्रोग्राम करने, ट्रबलशूट तथा अनुरक्षण के लिए रोजगार के शानदार अवसर उपलब्ध हैं। मानवीय रोबोटिक्स तथा कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस के क्षेत्र में रिसर्च करने वाली प्रीमियर रिसर्च संस्थान एटीआर में भी रिसर्च फैलोशिप के अवसर भी उपलब्ध हैं। इनटेल जैसी कंपनियों द्वारा माइक्रोचिप निर्माण के लिए रोबोटिक्स तथा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्पेशलिस्ट को नियुक्त करते हैं।

उत्तरी अमेरिका स्थित रोबोटिक्स इंडस्ट्रियल एसोसिएशन रोबोट मैन्यूफैक्चरिंग एंड मेंटेनेंस सिस्टम्स इंटिग्रेशन में रोजगार के अवसर प्रदान करता है। साथ ही जो लोग रोबोटिक्स को अंतरिक्ष विज्ञान में उपयोग में लाने की अभिरुचि रखते हैं, उनके लिए नासा सबसे अच्छा करियर निर्माण स्थल है।

रोबोटिक्स के क्षेत्र
रोबोटिक्स का कोर्स छात्रों को निम्नलिखित क्षेत्र में प्रशिक्षित कर शिक्षा प्रदान करता है-
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस
हकम्प्यूटर एडेड मैन्यूफैक्चरिंग
- इंस्टीट्यूट कम्प्यूटर इंटीग्रेटेड मैन्यूफैक्चरिंग सिस्टम
- कम्प्यूटेशन ज्यामेट्री
- रोबोट मोशन प्लानिंग
- डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स
- माइक्रो प्रोसेसर्स
- रोबोट मेनिपुलेटर्स
कुशल रोबोटिक्स इंजीनियर अपनी सुविज्ञता को मॉडर्न वेलफेयर, सर्जरी, नेनो टेक्नॉलॉजी, स्पेस एक्सप्लोरेशन तथा अन्य कई क्षेत्रों में उपयोग में ला सकता है।

पारिश्रमिक
रोबोटिक्स के क्षेत्र में योग्य और गुणी प्रोफेशनल्स के सामने करियर निर्माण का एक सुनहरा संसार बाहें पसारे खड़ा है। भारत में भी रोबोटिक्स का धड़ाके से आगमन हो रहा है। जहाँ तक इस क्षेत्र में पारिश्रमिक का प्रश्न है, इस क्षेत्र में बेहतरीन पे-पैकेज की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। सामान्यतः आरंभिक वेतन 25 हजार से लेकर 60 हजार के बीच हो सकता है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा योग्य रोबोटिक्स प्रोफेशनल्स को ज्यादा सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

रोबोटिक्स से जुड़े संस्थान
निम्नलिखित प्रमुख संस्थानों के अतिरिक्त देश की कई नेशनल यूनिवर्सिटियों द्वारा अपने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम
में रोबोटिक्स को एक विशेष विषय के रूप में पढ़ाया
जाता है :-
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, दिल्ली
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, मुंबई
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, कानपुर
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, मद्रास
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, गुवाहाटी
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, खड़गपुर
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, रूड़की
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी, हैदराबाद यूनिवर्सिटी
- जादवपुर यूनिवर्सिटी-एमई रोबोटिक्स
- कोचिन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलॉजी, कोचि
- वीरमाता जीजाबाई टेक्नॉलॉजी, इंस्टीट्यूट, मुंबई
- थापर इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नॉलॉजी, पटियाला
- यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद
- उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
- एमएम यूनिवर्सिटी, बड़ौदा

Friday, February 12, 2016

टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में करियर

सिविल, एग्रीकल्चर, कम्प्यूटर, मैकेनिकल के साथ ही टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग भी संभावनाओं के नए द्वार खोल रही है। इस क्षेत्र में करियर के अवसरों के बारे में बता रही हैं नमिता सिंह
आर्थिक उदारीकरण और औद्योगिक आवश्यकताओं ने इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं में अवसरों के नए द्वार खोले हैं। वह दौर बीत गया, जब लोग इंजीनियरिंग को महज कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित मानते थे। आज इसका दायरा कई प्रमुख क्षेत्रों तक बढ़ चुका है। इसी में से एक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग भी है। यह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की एक शाखा है और वैश्वीकरण के दौर में विभिन्न देशों के बीच कम्युनिकेशन का एक सशक्त माध्यम बन कर उभरी है। टेलीकम्युनिकेशन के ही कई सिद्धांतों को मिला कर ट्रांसमिशन, डिजिटल सिग्नल, नेटवर्क, चैनल, मॉडय़ूलेशन संबंधी कार्य आसानी से किए जा सकते हैं। यह इंजीनियरिंग की परंपरागत शाखाओं से कुछ अलग हट कर है। स्पष्ट शब्दों में कहा जा सकता है कि यह सेटेलाइट कम्युनिकेशन, केबल रेडियो, राडार आदि के जरिए दूर-दूर तक सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण जरिया है।
बहुत कुछ सिखाता है कोर्स
टेलीकम्युनिकेशन से संबंधित जो भी कोर्स हैं, वे छात्रों को प्रायोगिक और सैद्धांतिक दोनों तरह की जानकारी प्रदान करते हैं। इंडस्ट्री की डिमांड को देखते हुए इसमें ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा, पीजी डिप्लोमा लेवल के कोर्स चलन में हैं। इनके जरिए नेटवर्क सिस्टम की डिजाइनिंग, इंस्टॉलिंग, टेस्टिंग, रिपेयरिंग आदि कौशल से रूबरू हुआ जा सकता है। सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, टेलीकॉम मार्केटिंग, नेटवर्क मैनेजमेंट, नेटवर्क सिक्योरिटी संबंधी जानकारी भी कोर्स के दौरान दी जाती है।
कौन-कौन से हैं कोर्स
बीई/बीटेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
बीई/बीटेक टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
एमई/एमटेक इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
एमटेक नेटवर्क एंड टेलीकम्युनिकेशन
एमबीए टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम मैनेजमेंट
पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा इन टेलीकम्युनिकेशन
डिप्लोमा इन टेलीकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा इन इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग
ये प्रवेश परीक्षाएं बनेंगी आधार
ग्रेजएट लेवल

एसोसिएट मेंबरशिप ऑफ इंस्टीटय़ूशन ऑफ इंजीनियर्स (एएमआईई)
ऑल इंडिया कॉमन एंट्रेंस टैस्ट (एआईसीईटी)
आईआईटी ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम (आईआईटी जेईई)
जेएनयू इंजीनियरिंग एंट्रेंस एग्जाम (जेएनयूईईई)
उत्तर प्रदेश स्टेट एंट्रेंस एग्जाम (यूपीएसईई)
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी एण्ड साइंस एग्जाम (बीआईटीएसएटी)
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एनआईटी)
पोस्ट ग्रेजुएट लेवल
ग्रेजुएट एप्टीटय़ूड टैस्ट इन इंजीनियरिंग (गेट)
पोस्ट ग्रेजुएट इंजीनियरिंग कॉमन एंट्रेंस टैस्ट
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस एग्जाम (बीआईटीएसएटी)
आईआईटी ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम (आईआईटी जेईई)
शैक्षिक योग्यता
इसमें चार वर्षीय बैचलर (बीई/बीटेक) कोर्स में प्रवेश पाने के लिए छात्र को 10+2 परीक्षा फिजिक्स, केमिस्ट्री एवं मैथ्स के साथ उत्तीर्ण होना आवश्यक है, जबकि दो वर्षीय पोस्ट ग्रेजुएट  कोर्स (एमई/एमटेक/एमबीए) के लिए उसी स्ट्रीम में बीई/बीटेक की डिग्री मांगी जाती है। डिप्लोमा अथवा पीजी डिप्लोमा के लिए भी छात्र का स्नातक होना आवश्यक है। डिप्लोमा व पीजी डिप्लोमा के कोर्स ज्यादातर एक या दो वर्ष के होते हैं।
आवश्यक स्किल्स
यह पूरी तरह से तकनीकी क्षेत्र है, इसलिए छात्रों को अपने अंदर तकनीकी गुण विकसित करना आवश्यक है। इसके साथ ही कम्युनिकेशन स्किल्स, टीम वर्क, कम्यूटर हार्डवेयर व सॉफ्टवेयर की जानकारी, टेक्िनकल राइटिंग जैसे गुण कदम-कदम पर प्रोफेशनल्स की मदद करते हैं।
वेतनमान
इसमें प्रोफेशनल्स की सेलरी काफी कुछ संस्थान पर निर्भर करती है। शुरुआती दौर में उन्हें लगभग 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। दो-तीन साल के अनुभव के पश्चात यह बढ़ कर 35-40 हजार के करीब पहुंच जाते हैं। आज कई ऐसे लोग हैं, जिनका पैकेज लाखों में है। विदेशों में प्रोफेशनल्स को आकर्षक पैकेज मिलता है।
संभावनाएं
इंडस्ट्री में ग्रोथ के कारण इसमें संभावनाएं भी तेजी से पैर पसार रही हैं। प्रोफेशनल्स को टेलीकॉम इंडस्ट्री, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट सेक्टर, रेलवे, एयरोस्पेस इंडस्ट्री, मोबाइल फोन सर्विस प्रोवाइडर में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर, टैस्ट इंजीनियर, कस्टमर सपोर्ट स्टाफ, प्रोडक्ट मैनेजर, पावर डिस्ट्रिब्यूटर्स, पावर रिएक्टर ऑपरेटर, डिजाइन डेवलपर, सेल्स व मार्केटिंग, क्वालिटी एसुरेंश मैनेजर के रूप में रोजगार मिलता है।
एजुकेशन लोन
छात्रों को प्रमुख राष्ट्रीयकृत, प्राइवेट अथवा विदेशी बैंकों द्वारा एजुकेशन लोन प्रदान किया जाता है। छात्र को जिस संस्थान में एडमिशन कराना होता है, वहां से जारी एडमिशन लेटर, हॉस्टल खर्च, ट्यूशन फीस एवं अन्य खर्चो को ब्योरा बैंक को देना होता है। अंतिम निर्णय बैंक को करना होता है।
फीस स्ट्रक्चर
इसमें सेमेस्टर के हिसाब से फीस का भुगतान किया जाता है। यह फीस 12-15 हजार रुपए या उससे अधिक हो सकती है। फीस साल दर साल अपडेट होती रहती है। सरकारी संस्थानों व प्राइवेट संस्थानों की फीस अलग-अलग होती है। अमूमन प्राइवेट संस्थानों की फीस सरकारी की तुलना में कुछ ज्यादा ही होती है।
फैक्ट फाइल
क्या कहती है इंडस्ट्री
भारत में टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री का दायरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि मार्च 2013 तक 898 मिलियन सबस्क्राइबर के साथ भारत टेलीकम्युनिकेशन का दूसरा सबसे बड़ा बाजार बन चुका है।
पिछले दो सालों से यह सेक्टर 13.4 प्रतिशत की दर से ग्रोथ कर रहा है। 2015 तक इसमें 20 प्रतिशत ग्रोथ की संभावना दर्ज की जा रही है।
एक सर्वे रिपोर्ट की मानें तो देश में लगभग 56 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता हैं। इनमें से 30 करोड़ ग्रामीण भारत से हैं।
जहां तक वायरलेस कनेक्टिविटी की बात है तो यह देश में 2012 में 38 प्रतिशत सालाना ग्रोथ कर रही थी, जबकि उम्मीद है कि 2017 तक यह ग्रोथ 40 प्रतिशत तक पहुंच जाएगी।
प्रमुख संस्थान
डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, बेंगलुरू
वेबसाइट
- www.dbatuonline.com
आर्मी इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पुणे
वेबसाइट
- www.aitpune.com
बीएमएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बेंगलुरू
वेबसाइट
- www.bmsce.in
भारती विद्यापीठ कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली
वेबसाइट
- www.bvcoend.ac.in
असम इंजीनियरिंग कॉलेज, गुवाहाटी
वेबसाइट-
www.aec.ac.in
फायदे व नुकसान
मन के अनुरूप मिलता है काम
आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं
हार्ड एवं चैलेंजिंग जॉब
दिक्कत आने पर अधिक समय खर्च
एक्सपर्ट व्यू
चुनौतियों से जूझने का जज्बा अपनाएं

इस इंडस्ट्री में मार्केटिंग, प्रोडक्ट, नेटवर्क, एकाउंट से संबंधित प्रोफेशनल्स के लिए कई तरह के कार्य होते हैं। आज देश में मनी ट्रांसफर, फोन बैंकिंग, एसएमएस सर्विस जैसी हर तरह की सेवा मोबाइल पर उपलब्ध होती जा रही है। आज करीब 80 फीसदी लोगों के हाथ में मोबाइल है। एक दौर ऐसा भी था, जब एक फोन कॉल 32 रुपए के करीब हुआ करती थी। इनकमिंग के भी पैसे देने पड़ते थे, जबकि आज एक पैसे से भी कम कॉल रेट पर बात हो रही है। यह सब टेलीकम्युनिकेशन इंडस्ट्री की ही देन है। काम के दौरान प्रोफेशनल्स का सामना जटिल टेलीकम्युनिकेशन उपकरणों से होता है। इस क्षेत्र में भी चुनौतियों से दो-चार होना पड़ता है। कई बार डाटा गायब हो जाने या सिग्नल न आने के कारण लंबे समय तक प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। लड़कियां भी इस क्षेत्र में तेजी से कदम रख रही हैं। समय के साथ इसमें तेजी से संभावनाएं बढ़ रही हैं। यदि छात्र ने गंभीरतापूर्वक कोर्स किया है तो उसे निराश नहीं होना पड़ेगा।
- राजीव द्विवेदी (सर्किल हेड, यूपी ईस्ट)
रिलायंस कम्युनिकेशन लिमिटेड

Thursday, February 11, 2016

एडवेंचर स्पोर्ट्स में करियर

आप एडवेंचर स्पोर्ट्स की चाहत में कुछ भी छोड़ सकते हैं? क्या आप प्रकृति के करीब रहना पसंद करते हैं? अगर इन सवालों का जवाब आपकी ओर से ‘हां’ है, तो आप एडवेंचर स्पोर्ट्स की दुनिया में अपने लिए बेहतर करियर तलाश सकते हैं। घरेलू पर्यटन में वृद्धि होने की वजह से एडवेंचर स्पोर्ट्स के पेशेवरों की मांग में भी कई गुना का इजाफा हुआ है। इसके अलावा नेशनल जियोग्राफिक, डिस्कवरी, एएक्सएन और एनिमल प्लेनेट जैसे चैनल सामान्य यात्राओं की बजाए रोमांच से भरपूर यात्राओं पर जाने वाले पर्यटकों को विशेष लाभ भी मुहैया कराते हैं।
क्या है एडवेंचर स्पोर्ट्स
इसे एक्शन स्पोर्ट्स, ऐग्रो स्पोर्ट्स और एक्सट्रीम स्पोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। इसके दायरे में वह गतिविधियां (खेल संबंधी) शामिल होती हैं, जिनमें बड़े खतरे अंतर्निहित होते हैं। इन गतिविधियों में गति, उच्च स्तर के शारीरिक दमखम और विशेष कौशल की दरकार होती है।
कई तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स
इन खेलों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- एअर स्पोर्ट्स, लैंड स्पोर्ट्स और वॉटर स्पोर्ट्स। खेलों की इन श्रेणियों में ढेर सारे खेल शामिल हैं, इनमें से कुछ प्रमुख हैं-
एअर स्पोर्ट्स : बंजी जंपिंग, पैराग्लाइडिंग, स्काई डाइविंग और स्काई सर्फिग आदि।
लैंड स्पोर्ट्स : रॉक क्लाइम्बिंग, स्केट बोर्डिग, माउंटेन बाइकिंग, स्कीइंग, स्नो बोर्डिग और ट्रैकिंग आदि।
वाटर स्पोर्ट्स : स्कूबा डाइविंग, व्हाइट वाटर राफ्टिंग, कायकिंग, केनोइंग, क्िलफ डाइविंग,स्नॉर्केलिंग और याट रेसिंग आदि।
एडवेंचर स्पोर्ट्स पेशेवरों का काम
ये पेशेवर भौगोलिक दृष्टि से उन क्षेत्रों की तलाश करते हैं, जहां एडवेंचर स्पोर्ट्स की संभावना हो। इसके साथ ही वह उस क्षेत्र में खेल से जुड़े जोखिमों का आकलन भी करते हैं। इन कार्यों को करने के बाद वह खेल गतिविधियों को संचालित करने का प्रारूप तैयार करते हैं और संभावित खतरों से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की कार्ययोजना भी बनाते हैं। वह किसी एडवेंचर स्पोर्ट्स में शामिल गतिविधियों के लिए आवागमन का मार्ग तय करते हैं और अन्य जरूरी तैयारियों में मदद करते हैं। इसी तरह इन खेलों के लिए आयोजित होने वाले शिविरों में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को वह खेल की सही तकनीकों और जरूरी कौशल की जानकारी देते हैं। एडवेंचर स्पोर्ट्स की हर गतिविधि से सीधे जुड़े होते हुए भी उन्हें प्रशिक्षण और कैंपिंग शिविरों से संबंधित प्रशासकीय कार्य भी करने पड़ते हैं। यह पेशा देखने में भले ही बेहद रोमांचक हो, लेकिन असल जिंदगी में यह काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके पेशेवरों को हमेशा जोखिम उठाते हुए जिंदगी की महीन डोर के सहारे चलना पड़ता है। उन्हें कई बार घबराए हुए और कई बार उत्साही क्लाइंटों को संभालने की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है।
रोजगार के मौके
एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनियां देती हैं। हालांकि इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के पास काम में बदलाव करके भी रोजगार और अपनी पेशेवर रुचि को बरकरार रखने का विकल्प होता है। वह स्कूलों के साथ मिलकर छात्रों के लिए आउटडोर एजुकेशन प्रोग्राम संचालित कर सकते हैं, तो पर्सनल ट्रेनर और कैजुअल टूर गाइड के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा वह अपनी निजी एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनी भी शुरू कर सकते हैं। कुछ लोग तो इस क्षेत्र में काम करने के लिए दुनिया की सैर करने का विकल्प भी चुनते हैं।
प्रमुख रोजगार प्रदाता
-एक्सकर्शन एजेंसियां ’हॉलिडे रिजॉर्ट्स
-लीजर कैम्प्स ’कमर्शियल रीक्रिएशन सेंटर्स
-एडवेंचर स्पोर्ट्स सेंटर्स ’ट्रैवल एंड टूरिज्म एजेंसियां ’एजुकेशनल इंस्टीटय़ूट
-कोचिंग इंस्टीटय़ूट
इन भूमिकाओं में मिलेगा काम
-एडवेंचर स्पोर्ट्स इंस्ट्रक्टर ’एडवेंचर स्पोर्ट्स एथलीट ’आउटबाउंड ट्रेनिंग फेसिलिटेटर एंड ट्रेनर ’एडवेंचर स्पोर्ट्स फोटोग्राफर ’एडवेंचर टूरिज्म फैसिलिटेटर ’एडवेंचर कैंप काउंसलर ’एक्स्ट्रीम स्पोर्ट्स स्पेशलिस्ट ’वाटर एंड एरो स्पोर्ट्स स्पेशलिस्ट ’ट्रैकिंग एंड माउंटेन गाइड ’एडवेंचर टूर गाइड ’कैंप नर्स ’सफारी गाइड ’वाइल्डलाइफ एंड
ट्रैवल फोटोग्राफर : समर कैंप काउंसलर
जरूरी गुण
-रोमांच से लगाव हो
-शारीरिक मजबूती और मानसिक दृढम्ता हो
-जोखिम उठाने की क्षमता हो
-टीम संग मिलकर काम करने की कुशलता हो
-काम के प्रति निष्ठा और जिम्मेदार रवैया हो
-फर्स्ट एड की मूलभूत जानकारी के अलावा कम्पास और नक्शों को पढम्ने का ज्ञान हो
-अलग-अलग संस्कृतियों से जुड़े लोगों से समन्वय करने में दक्षता हो
-साहस और निडरता हो
-अपने खेल के तकनीकी पक्षों की गहरी जानकारी हो
योग्यता
-एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में बतौर पेशेवर काम करने के लिए किसी विषय के साथ बारहवीं या बैचलर डिग्री प्राप्त होना पर्याप्त है। इस योग्यता के आधार पर एडवेंचर स्पोर्ट्स में डिप्लोमा या डिग्री पाठय़क्रम संचालित करने वाले संस्थानों में प्रवेश लिया जा सकता है। इन संस्थानों में प्रशिक्षण पाठय़क्रम पूरा करने के बाद आसानी से रोजगार प्राप्त किया जा सकता है।
-इसके अलावा शारीरिक रूप से मजबूत और स्वस्थ होना भी आवश्यक होता है।
-इस पेशे में जल आधारित खेलों के लिए तैराकी में निपुण होना जरूरी होता है।
-अंग्रेजी और किसी एक विदेशी भाषा में दक्ष होना भी इस पेशे में मददगार होता है।
संबंधित संस्थान
हिमालयन माउंटेनियरिंग इंस्टीटय़ूट, दार्जिलिंग
नेहरू इंस्टीटय़ूट ऑफ माउंटेनियरिंग, उत्तरकाशी
जवाहर इंस्टीटय़ूट ऑफ माउंटेनियरिंग, जम्मू और कश्मीर
विंटर स्पोर्ट्स स्कीइंग सेंटर, कुल्लू
रीजनल माउंटेनियरिंग सेंटर, मैक्लोडगंज
हिमालयन एडवेंचर इंस्टीटय़ूट, मसूरी

Tuesday, February 9, 2016

एथिकल हैकिंग

वचरुअल दुनिया का दायरा जिस तरह दिन-दुनी रात-चौगुनी रफ्तार से बढ़ रहा है, आईटी (इफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी) आधारित सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं भी परेशानी का सबब बन रही हैं। हर रोज दुनिया के किसी न किसी कोने में नेटवर्क, वेबसाइट और ई-मेल अकाउंट्स की सुरक्षा दांव पर लगी होती है। इंटरनेट पर साइबर अपराध के मामलों में चिंताजनक रफ्तार से वृद्धि देखी जा रही है
इन मामलों में किसी व्यक्ति या संस्था के कंप्यूटर सिस्टम में सेंध लगाकर संवेदनशील डाटा चुराने से लेकर पासवर्ड चोरी करने, भद्दे ई-मेल भेजने और ई-मेल अकाउंट को हैक करने जैसी घटनाएं शामिल होती हैं। इंटरनेट से जुड़े कंप्यूटरों से सूचनाओं को अवैध ढंग से प्राप्त करने वालों को हैकर कहा जाता है। मगर जब यही काम कंप्यूटर सिस्टम के सुरक्षा उपायों को जांचने और उसे पुख्ता बनाने के उद्ेदश्य से किया जाता है, तो उसे एथिकल हैकिंग कहते हैं। इस कार्य को करने वाले पेशेवर एथिकल हैकर के नाम से जाने जाते हैं। साइबर अपराधों की बढ़ती तादाद के बीच मूल्यवान इंफॉर्मेशन सिस्टम की सुरक्षा के लिए एथिकल हैकरों की मांग जोर पकड़ रही है। इस कारण यह पेशा नौकरी की आकर्षक संभावनाओं के द्वार खोल रहा है।

एथिकल हैकर का काम

इन पेशेवरों को व्हाइट हैट्स या पेनिशन टेस्टर के नाम से भी जाना जाता है। कंप्यूटर और नेटवर्क से संबंधित तकनीकों में इन्हें विशेषज्ञता प्राप्त होती है।

इनका काम अपने नियोक्ता (कंप्यूटर सिक्योरिटी उत्पाद बनाने वाली कंपनी) के लिए किसी निर्धारित कंप्यूटर सिस्टम पर हमला करना होता है, ताकि सिस्टम की उन कमियों का पता लगाया जा सके, जिन्हें तलाशकर हैकर साइबर अपराधों को अंजाम देते हैं।

एक प्रकार से एथिकल हैकर भी हैकरों (साइबर अपराधी) जैसा ही काम करते हैं, लेकिन उनका उद्देश्य किसी कंप्यूटर सिस्टम को नुकसान पहुंचाने की बजाए उसे पहले से ज्यादा सुरक्षित बनाना होता है। इंटरनेट पर बढ़ती निर्भरता के कारण एथिकल हैकर आईटी सिक्योरिटी इंडस्ट्री की अहम जरूरत बन गए हैं। यह एक चुनौतीपूर्ण पेशा है, जो जरूरत पड़ने पर 24 घंटे काम में जुट रहने की भी अपेक्षा रखता है। एथिकल हैकर को हमेशा खुद को कंप्यूटर सिस्टम से संबंधित नई तकनीकों से अपडेट रखना होता है, ताकि वह नई चुनौतियों का तेजी से हल तलाश सकें।

पर्याप्त हैं रोजगार के अवसर
•फिलहाल देश में एथिकल हैकरों की काफी कमी है। इसलिए कई-कई कंपनियां अपने नेटवर्क में मौजूद खामियों को खोजने के लिए एक ही पेशेवर की मदद लेती हैं। इन पेशेवरों की सरकारी क्षेत्र के संस्थानों में भी काफी पूछ है। सेना, पुलिस बलों (सीबीआई और एनआईए शामिल), फॉरेंसिक प्रयोगशालाओं और रक्षा अनुसंधान संगठनों में विशेष रूप से एथिकल हैकरों की मदद ली जाती है। जासूसी एजेंसियों में भी इनके लिए काफी अवसर हैं।

 योग्यता
•    इस पेशे में आने के लिए कंप्यूटर प्रोग्रामिंग का अच्छा ज्ञान जरूरी होता है। इसलिए कंप्यूटर साइंस, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी या कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री का होना आवश्यक है। शैक्षणिक योग्यता के साथ उ, उ++ और ढ83ँल्लआदि प्रोग्रामिंग लैंग्वेज और कंप्यूटर में इस्तेमाल होने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम मसलन विंडोज या लिनक्स की जानकारी का होना भी जरूरी है।

•    उपलब्ध पाठय़क्रम
•    सर्टिफिकेट कोर्स इन साइबर लॉ
•    सीसीएनए सर्टिफिकेशन
•    सर्टिफाइड एथिकल हैकर
•    सर्टिफाइड इंफॉर्मेशन सिस्टम सिक्योरिटी प्रोफेशनल
•    एमएससी साइबर फॉरेंसिक्स एंड इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी
•    पीजी डिप्लोमा इन डिजिटल एंड साइबर फॉरेंसिक्स
•    पीजी डिप्लोमा इन साइबर लॉ
•    पीजी डिप्लोमा इन आईटी सिक्योरिटी
•    एडवांस डिप्लोमा इन एथिकल हैकिंग
•    संबंधित संस्थान
•    एनआईईएलआईटी
•    सीईआरटी
•    इंडियन स्कूल ऑफ एथिकल हैकिंग
•    तिलक महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी
•    इन्नोबज नॉलेज सॉल्यूशन्स प्रा. लि.
•    आईएमटी गाजियाबाद
•    इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंफॉर्मेशन सिक्योरिटी

Monday, February 8, 2016

ह्यूमेनिटीज में करियर

दसवीं और बारहवीं के स्तर पर साइंस और कॉमर्स के बाद छात्रों या अभिभावकों के सामने ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम शेष रह जाती है। इस स्ट्रीम को हालांकि छात्र और अभिभावक अपनी प्राथमिकता में पहले या दूसरे स्थान पर नहीं रखते, लेकिन बदलते वक्त के साथ इस स्ट्रीम से जुड़ी संभावनाओं का आकाश भी काफी विस्तृत हो गया है। इस लेख के माध्यम से छात्रों को ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम और उसमें निहित अवसरों को जानने-समझने में मदद मिलेगी।
ह्यूमेनिटीज को कुछ वर्ष पहले तक एक ऐसे स्ट्रीम के रूप में देखा जाता था, जो या तो कम बुद्धिमान लोगों के लिए है या शिक्षक बनने की इच्छा रखने वालों के लिए। लेकिन मौजूदा वक्त में यह धारणा अप्रासंगिक हो चुकी है। अब ह्यूमेनिटीज की बदौलत ऊंचे पद, बड़ी उपलब्धियां और तरक्की पाई जा सकती है। शिक्षण के अलावा इसमें सैकड़ों तरह के रोजगार उपलब्ध हैं, जो रुचिकर होने के साथ-साथ अपनी कार्य-प्रकृति में विशिष्ट भी हैं। ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम आपके सामने असीमित विकल्प रखती है। यकीन न हो, तो मानवीय गतिविधियों से जुड़े किसी भी क्षेत्र को देख लीजिए, आप हर क्षेत्र में ह्यूमेनिटीज के छात्रों को सफलता के साथ काम करता हुआ पाएंगे।
क्या है ह्यूमेनिटीज
इस स्ट्रीम के अंतर्गत मुख्य रूप से मानव समाज और उसकी मान्यताओं का अध्ययन किया जाता है। इसके जरिए यह समझने का प्रयास किया जाता है कि लोग स्वयं को कैसे कला, धर्म, साहित्य, वास्तुकला और अन्य रचनात्मक कार्यो आदि के जरिए अभिव्यक्त करते हैं? इस कार्य के लिए इस स्ट्रीम के शोधार्थी एनालिटिकल और हाइपोथिटिकल मेथड का प्रयोग करते हैं। इस स्ट्रीम को मोटे तौर पर परफॉर्मिग आर्ट्स (म्यूजिक), विजुअल आर्ट्स, रिलिजन, लॉ, एंसिएंट/ मॉडर्न लैंग्वेजेस, फिलॉस्फी, लिटरेचर, हिस्ट्री, जियोग्राफी, पॉलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स, सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी आदि विषयों में बांटा जाता है। ह्यूमेनिटीज में कुई ऐसे विषय हैं, जिनकी पढ़ाई के बाद लॉ, जर्नलिज्म, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, मीडिया एंड एडवर्टाइजिंग और कम्यूनिकेशन आदि प्रोफेशनल पाठय़क्रमों में पोस्ट ग्रेजुएशन किया जा सकता है।
ह्यूमेनिटीज के आम जिंदगी में महत्व को इस बात से भी आंका जा सकता है कि अब आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान भी ह्यूमेनिटीज और सोशल साइंसेज में पाठय़क्रम संचालित कर रहे हैं। आईआईटी मद्रास बारहवीं पास छात्रों के लिए ह्यूमेनिटीज में पांच वर्षीय इंटिग्रेटेड एमए पाठय़क्रम संचालित करता है। इस पाठय़क्रम में दाखिले के लिए यह संस्थान एचएसईई (ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइंसेज एंट्रेंस एग्जामिनेशन) नाम से हर साल एक प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। इसी तरह आईआईटी गांधीनगर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर एमए इन सोसायटी एंड कल्चर नाम से पाठय़क्रम संचालित कर रहा है। दसवीं या बारहवीं पास करने वाले काफी छात्रों के मन में एक आम-सा प्रश्न होता है कि ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम को चुनने के बाद उनके करियर का स्वरूप कैसा होगा? इस प्रश्न का कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि करियर का स्वरूप काफी हद उनके द्वारा चुने गए पाठय़क्रम पर निर्भर होता है। किसी ह्यूमेनिटीज विषय में डिग्री हासिल करने के बाद आप कई क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं। स्कूलों, म्यूजियमों, एडवर्टाइजिंग एजेंसियों, अखबारों, आर्ट गैलरियों, पत्रिकाओं और फिल्म स्टूडियो आदि में भी काम के मौके तलाशे जा सकते हैं। इन अवसरों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि समय के साथ ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम पर आधारित संभावनाओं का फलक और विस्तृत हुआ है। सरकारी सेवाओं में जाने की इच्छा रखने वाले छात्र ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम के साथ अपने सपने का साकार कर सकते हैं। वह कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) और राज्य लोक सेवा आयोगों की प्रतियोगी परीक्षाओं के अलावा यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में भी अपनी चुनौती पेश कर सकते हैं। चूंकि बैचलर डिग्री स्तर पर आर्ट्स के पाठय़क्रमों में हिस्ट्री, जियोग्राफी और सिविक्स (नागरिक शास्त्र) आदि विषय पढ़ाए जाते हैं, जो तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सहायक होते हैं।
ह्यूमेनिटीज की पढ़ाई के लिए जरूरी गुण
- किसी मुद्दे को समझने और उसका मूल्यांकन करने की क्षमता
- मानसिक और कामकाजी स्तर पर रचनात्मकता हो
- काम को व्यवस्थित करने और उन्हें तय समयसीमा में निपटाने का हुनर
- लिखित सामग्री को पढ़ने और उससे खास बिंदुओं को चुनने का कौशल हो
- बड़ी मात्रा में सूचनाओं और तथ्यों को समझने और ग्रहण करने की क्षमता
- अलग-अलग शैलियों में अच्छा लिखने का हुनर हो
- अपनी बात को प्रभावी शब्दों में स्पष्ट रूप से रखने में दक्षता हो
- शोध करने और तथ्यों के स्नोतों का मूल्यांकन करने की क्षमता हो
- चर्चाओं में भाग लेने और उनका नेतृत्व करने में रुचि हो
- निजी प्रेरणा से काम करने का जज्बा हो
- विचारों और सुझावों को व्यावहारिक रूप देने की कला हो
- निष्पक्षता और खुद में पूरा विश्वास हो
- अपनी बातों पर विचार-विमर्श को तैयार रहने का लचीलापन हो
- सांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित शोध में निष्कर्ष निकालने की क्षमता हो
इन क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं-
- राइटिंग
- प्रोग्राम प्लानिंग
- टीचिंग
- रिसर्च
- इंटरनल कम्यूनिकेशन
- पब्लिक रिलेशन्स
- पॉलिसी रिसर्च एंड एनालिसिस
- एडमिनिस्ट्रेशन
- सोशल वर्क
- मैनेजमेंट
- इंफॉर्मेशन
- जर्नलिज्म
- आर्कियोलॉजी
- एंथ्रोपोलॉजी
- एग्रीकल्चर
- जियोग्राफी
- एनजीओ
- इंडस्ट्रियल रिलेशन
- लाइब्रेरी साइंस
- लिबरल आर्ट्स
- फिलॉस्फी
- रिसर्च असिस्टेंस
- साइकोलॉजी

Friday, February 5, 2016

डर्मेटोलॉजी में करियर

डिसिन में स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विकल्पों में ‘डर्मेटोलॉजी’ काफी लोकप्रिय हो गया है। मौजूदा वक्त में ‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन’ कहावत को इतनी गंभीरता से लिया जा रहा है कि व्यक्ति के रूप को व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग माना जाने लगा है। इस कारण लोगों में अपने रूप और व्यक्तित्व को लेकर चिंता का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक कि कॉलेज जाने वाले छात्र भी खुद को आकर्षक दिखाने की गरज से काफी रुपये खर्च कर रहे हैं।
अपने रूप को लेकर लोगों में गंभीरता का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि वह चेहरे पर छोटा-सा मुंहासा हो जाने भर से परेशान हो उठते हैं। कई बार वह ऐसी परेशानियों को इस कदर अपने ऊपर हावी कर लेते हैं कि घर से बाहर निकलना भी छोड़ देते हैं। ऐसे माहौल में रूप निखारने का दावा करने वाली फेयरनेस क्रीमों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। खुजली और घमौरियों (रैशेज) जैसे त्वचा संबंधी रोग आम हो चुके हैं। गर्मी और बरसात के मौसम में इनकी अधिकता काफी बढ़ जाती है। इनके सही उपचार के लिए डॉंक्टर का परामर्श जरूरी होता है। कई बार उपचार के लिए डॉंक्टर के पास कुछ दिनों या हफ्तों के अंतराल पर बार-बार जाने की जरूरत होती है। ऐसे में लोग अपनी त्वचा के लिए ज्यादा खर्च करने में जरा भी नहीं हिचकते।
त्वचा और रूप के प्रति लोगों के बढ़ती सजगता के कारण डर्मेटोलॉजिस्ट की मांग में इजाफा हो रहा है। डर्मेटोलॉजी मेडिसिन की एक शाखा है, जिसमें त्वचा और उससे संबंधित रोगों के निदान का अध्ययन किया जाता है। यह एक स्पेशलाइज्ड विषय है, जिसकी पढ़ाई एमबीबीएस के बाद होती है। डर्मेटोलॉजिस्ट रोगों के उपचार के अलावा त्वचा, बाल और नाखूनों से संबंधित कॉस्मेटिक समस्याओं का भी निदान करते हैं।
डर्मेटोलॉजिस्ट का काम
इनका मुख्य कार्य लोगों की उन बीमारियों का उपचार करना होता है, जो त्वचा, बाल, नाखूनों और मुंह पर दुष्प्रभाव डालती हैं। एलर्जी से प्रभावित त्वचा, त्वचा संबंधी दागों, सूर्य की रोशनी में झुलसे या अन्य तरह के विकारों से ग्रसित त्वचा को पूर्व अवस्था में लाने में ये रोगियों की मदद करते हैं। इसके लिए वह दवाओं या सर्जरी का इस्तेमाल करते हैं। त्वचा कैंसर और उसी तरह की बीमारियों से जूझ रहे रोगियों के उपचार में भी वह सहयोग करते हैं। क्लिनिक या अस्पताल में वह सबसे पहले मरीजों के रोग प्रभावित अंग का निरीक्षण करते हैं। जरूरी होने पर वह रोग की गंभीरता जांचने के लिए संबंधित अंग से रक्त, त्वचा या टिश्यू का नमूना भी लेते हैं। इन नमूनों के रासायनिक और जैविक परीक्षणों से वह पता लगाते हैं कि रोग की वजह क्या है। रोग का पता लगने के बाद उपचार शुरू कर देते हैं। इस कार्य में वह दवाओं, सर्जरी, सुपरफिशियल रेडियोथेरेपी या अन्य उपलब्ध उपचार विधियों का उपयोग करते हैं।
अन्य कार्य
कई बार शरीर में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी त्वचा संबंधी रोग हो जाते हैं। ऐसे में डर्मेटोलॉजिस्ट रोगियों की स्थिति को देखते हुए उनके लिए ‘डाइट प्लान’ भी तैयार करते हैं। इसी तरह वह रोगियों को व्यायाम के साथ त्वचा और बालों की देखरेख से संबंधित सलाह भी देते हैं। इसके अलावा मरीजों के उपचार से संबंधित चिकित्सकीय दस्तावेजों (दी गई दवाओं और पैथोलॉजिकल जांच से संबंधित) का प्रबंधन भी उनके कार्यक्षेत्र का एक हिस्सा है।
करते हैं कॉस्मेटिक सर्जरी: चेहरे और अन्य अंगों को आकर्षक बनाने के लिए डर्मेटोलॉजिस्ट कॉस्टमेटिक सर्जरी भी करते हैं। त्वचा की झुर्रियों और दाग-धब्बों को खत्म करने के लिए वह डर्माब्रेशन जैसी तकनीक और बोटोक्स इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं। इन तकनीकों के अलावा वह लेजर थेरेपी का भी उपचार में उपयोग करते हैं। इस तकनीक की मदद से वह झुर्रियों और त्वचा पर होने वाले सफेद दाग का ईलाज करते हैं।
योग्यता: फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ बारहवीं पास करके एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करना डर्मेटोलॉजिस्ट बनने की पहली शर्त है। इसके बाद डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी में तीन वर्षीय एमडी या दो वर्षीय डिप्लोमा पाठय़क्रम की पढ़ाई की जा सकती है।
स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विषय
मेडिकल डर्मेटोलॉजी         सर्जिकल डर्मेटोलॉजी
डर्मेटोपैथोलॉजी                हेअर एंड नेल डिस्ऑर्डर्स
जेनिटल स्किन डिजीज       पीडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी
इम्यूनोडर्मेटोलॉजी             पब्लिस्टरिंग डिस्ऑर्डर्स
कनेक्टिव टिश्यू डिजीज     फोटोडर्मेटोलॉजी
कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजी      जेनेटिक स्किन डिजीज
संभावनाएं
डर्मेटोलॉजी विषय के पोस्ट ग्रेजुएट पाठय़क्रम की पढ़ाई के बाद आप किसी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या सरकारी डिस्पेंसरी में डर्मेटोलॉजिस्ट के तौर पर काम कर सकते हैं। शिक्षण कार्य में रुचि होने पर आप किसी मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी या इंस्टीटय़ूट में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन या शोध-कार्यों का निर्देशन भी कर सकते हैं।
संबंधित शिक्षण संस्थान
एम्स, नई दिल्ली
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी एंड वेनेरियोलॉजी, दिल्ली यूनिवर्सिटी
एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर
एएफएमसी, पुणे
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी, पांडिचेरी इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
डॉं एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु
जरूरी गुण:
अच्छा सौंदर्यबोध और स्वास्थ्य हो
मरीजों के साथ सहानुभूतिपूर्वक संवाद करने में कुशलता हो
हर तरह की स्थितियों से निपटने का पर्याप्त धैर्य हो
भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूत हो
दूसरों की मदद करने की इच्छा हो

Thursday, February 4, 2016

एग्रो-फॉरेस्ट्री में फ्यूचर

फॉरेस्ट्री के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ एक्सप्लोर किया जाना बाकी है। इसमें नए इनोवेटिव रिसर्च की जरूरत है। फॉरेस्ट्री से ही जुड़ा फील्ड है एग्रो-फॉरेस्ट्री, जिसमें कृषि उत्पाद, वन पैदावार और आजीविका के क्रिएशन, कंजर्वेशन और साइंटिफिक मैनेजमेंट की जानकारी दी जाती है। फॉरेस्ट्री या एग्रीकल्चर या प्लांट साइंसेज में ग्रेजुएट एग्रो-फॉरेस्ट्री में मास्टर्स कर सकते हैं। इसके लिए यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस एग्जाम देना होगा या फिर मेरिट के आधार पर भी दाखिला मिल सकता है। एग्रो फॉरेस्ट्री प्रोफेशनल्स बैंकिंग सेक्टर के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, आइटीसी जैसी प्लांटेशन कंपनी या बायो-फ्यूअल इंडस्ट्री में काम कर सकते हैं।
डॉ. अरविंद बिजलवान, असि. प्रोफेसर (टेक्निकल फॉरेस्ट्री), आइआइएफएम, भोपाल
लाइफ का सेकंड चांस
भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग करने के बाद मैं टीसीएस मुंबई में जॉब कर रही थी। हर दिन कंप्यूटर के सामने एक-सा काम करते हुए मन नहींलग रहा था। बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट-सी गई थी। तब खुद से सवाल पूछा कि आखिर ये मैं क्या कर रही हूं? मैंने जॉब से इस्तीफा दिया और भोपाल स्थित आइआइएफएम में अप्लाई कर दिया। पहली बार इंटरव्यू में मुझे रिजेक्ट कर दिया गया, लेकिन दूसरी बार मैं सक्सेसफुल रही। इंस्टीट्यूट में पहले हफ्ते के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में हमें फील्ड में जाने का मौका मिला। जंगलों के बीच रहने वाले लोगों, महिलाओं से मिली। वह मेरी लाइफ का सबसे बेहतरीन एक्सपोजर रहा। पूरे कोर्स के दौरान और भी बहुत कुछ अलग जानने और सीखने को मिला। जिंदगी ने मुझे सेकंड चांस दिया था। मैंने डेवलपमेंट मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन पूरा करने के बाद प्रदान नामक एनजीओ को ज्वाइन किया। फिलहाल मैं बस्तर के दो ब्लॉक में 4000 परिवारों के बीच काम कर रही हूं। वन संपदा को कैसे बचाकर रखना है, किस तरह उनके संरक्षण से मानव का विकास जुड़ा है, इसे लेकर लोगों को जागरूक करना, उन्हें आजीविका के रास्ते बताना हमारे काम का हिस्सा है। यहां लाइफ टफ है और पैसे भी ज्यादा नहींमिलते, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने का जो अनुभव और सुकून मिल रहा है, वह ऑफिस के कमरे में बैठकर कभी हासिल नहींकर सकती थी।
स्नेहा कौशल
प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव, प्रदान, बस्तर
फॉरेस्ट्री में ऑप्शंस अनलिमिटेड
फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स और फॉरेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए गवर्नमेंट के अलावा प्राइवेट सेक्टर में अनेक अपॉच्र्युनिटीज हैं। गवर्नमेंट सेक्टर में स्टेट फॉरेस्ट सर्विस, एकेडेमिक्स और बैंकों में फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स की नियुक्ति होती है। एसबीआइ, नाबार्ड, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आदि के साथ ही आइसीआइसीआइ और एक्सिस जैसे प्राइवेट बैंकों में एग्रीकल्चर ऑफिसर, रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर की जरूरत होती है, जो ग्रामीण विकास से जुड़ी गतिविधियों को देखते हैं। वहीं, विभिन्न फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, टाइगर फाउंडेशन, बैंबू मिशन, स्टेट लाइवलीहुड मिशन, वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड, इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, एनवॉयर्नमेंटल कंसल्टेंसीज, एनजीओ में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट के लिए अवसरों की कमी नहीं है। इन दिनों माइक्रोफाइनेंस सेक्टर, नॉन-टिंबर प्रोसेसिंग और पेपर इंडस्ट्री में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स या फॉरेस्ट मैनेजमेंट के स्पेशलाइज्ड प्रोफेशनल्स की अच्छी डिमांड देखी जा रही है। आइआइएफएम में 100 परसेंट प्लेसमेंट इस तथ्य की पुष्टि करता है। फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स को शुरू में 25 से 30 हजार रुपये महीने मिल जाते हैं। एसबीआइ जैसे बैंकों में 7 से नौ लाख रुपये का सालाना पैकेज मिल जाता है। स्पेशलाइजेशन के कारण प्रमोशन भी जल्दी मिलता है। वहीं, प्राइवेट सेक्टर की कंपनीज में 10 लाख रुपये तक पैकेज स्टूडेंट्स को मिलता रहा है।
प्रो. अद्वैत एदगांवकर, प्लेसमेंट चेयरपर्सन
आइआइएफएम, भोपाल
कमा लो बूंद-बूंद पानी
प्रकृति को बचाने की मुहिम के परिणामस्वरूप ग्रीन जॉब्स का एक बड़ा मार्केट खड़ा हो रहा है, जहां पे-पैकेज भी अच्छा है। इसमें भी वॉटर कंजर्वेशन का फील्ड इंटेलिजेंट यूथ में काफी पसंद किया जा रहा है....
बिजली की बचत, सोलर व विंड एनर्जी?का मैक्सिमम यूटिलाइजेशन करने वाली इमारतें बनाने वाले आर्किटेक्ट, वॉटर रीसाइकल सिस्टम लगाने वाला प्लंबर, कंपनियों में जल संरक्षण से संबंधित रिसर्च वर्क और सलाह देने वाले, ऊर्जा की खपत कम करने की दिशा में काम करने वाले एक्सपर्ट, पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को कायम रखने के गुर सिखाने वाले एक्सपर्ट, प्रदूषण की मात्रा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के तरीके बताने वाले एक्सपर्ट...अपने आस-पास नजर दौड़ाइए तो ऐसे अनगिनत प्रोफेशनल्स दिख जाएंगे, जो किसी न किसी रूप में ग्रीन कैम्पेन से जुड़े हुए हैं।?
वॉटर कंर्जवेशन पर जोर
नदियों की सफाई, वर्षाजल का भंडारण, मकानों के निर्माण के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली की स्थापना, नदियों की बाढ़ से आने वाले पानी को सूखाग्रस्त इलाकों के लिए संग्रहित करना, सीवेज जल का प्रबंधन कर खेती आदि के कार्यकलापों में इस्तेमाल आदि पर आधारित योजनाओं का क्रियान्वयन सभी देशों में किया जा रहा है। जल प्रबंधन एवं संरक्षण पर आधारित कोर्सेज अब औपचारिक तौर पर तमाम देशों में अस्तित्व में आ गए हैं। पहले परंपरागत विधियों एवं प्रणालियों से जल बर्बादी को रोकने तक ही समस्त उपाय सीमित थे। आज देश में स्कूल स्तर से लेकर यूनिवर्सिटीज में एमई और एमटेक तक के कोर्सेज चलाए जा रहे हैं। वॉटर साइंस, वॉटर कंजर्वेशन वॉटर मैनेजमेंट, वॉटर हार्वेस्टिंग, वॉटर ट्रीटमेंट, वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट कई स्ट्रीम्स हैं जिन्हें चुनकर आप इस फील्ड में करियर बना सकते हैं।
वॉॅटर साइंस
हवा और जमीन पर उपलब्ध पानी और उससे जुड़े प्रॉसेस का साइंस वाटर साइंस कहलाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल वॉटर साइंटिस्ट कहलाते हैं।
वॉटर साइंस का स्कोप
केमिकल वॉटर साइंस : वॉटर की केमिकल क्वालिटीज की स्टडी।
इकोलॉजी : लिविंग क्रिएचर्स और वॉॅटर-साइंस साइकल के बीच इंटरकनेक्टेड प्रॉसेस की स्टडी।
हाइड्रो-जियोलॉजी : ग्राउंड वॉटर के डिस्ट्रिब्यूशन तथा मूवमेंट की स्टडी।
हाइड्रो-इन्फॉरमेटिक्स : वॉटर साइंस और वॉटर रिसोर्सेज के एप्लीकेशंस में आइटी के यूज की स्टडी।
हाइड्रो-मीटियोरोलॉजी : वॉटर एड एनर्जी के ट्रांसफर की स्टडी। पानी के आइसोटोपिक सिग्नेचर्स की स्टडी।
सरफेस वॉटर साइंस : जमीन की ऊपरी सतह के पास होने वाली हलचलों की स्टडी।
वॉटर साइंटिस्ट का काम
-हाइड्रोमीट्रिक और वाटर क्वालिटी का मेजरमेंट
-नदियों, झीलों और भूमिगत जल के जल स्तरों, नदियों के प्रवाह, वर्षा और जलवायु परिवर्तन को दर्ज करने वाले नेटवर्क का रख-रखाव।
-पानी के नमूने लेना और उनकी केमिकल एनालिसिस करना।
-आइस तथा ग्लेशियरों का अध्ययन।
-वॉॅटर क्वालिटी सहित नदी में जल प्रवाह की मॉडलिंग।
-मिट्टी और पानी के प्रभाव के साथ-साथ सभी स्तरों पर पानी की जांच करना।
-जोखिम की स्टडी सहित सूखे और बाढ़ की स्टडी।
किससे जुड़कर काम करते हैं
सरकार : पर्यावरण से संबंधित नीतियों को तैयार करना, एग्जीक्यूट करना और मैनेज करना।
अंतरराष्ट्रीय संगठन : टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आपदा राहत।
एडवाइजरी : सिविल इंजीनियरिंग, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध कराना।
एकेडमिक ऐंड रिसर्च : नई एनालिटिक टेक्निक्स के जरिए टीचिंग ऐंड रिसर्च वर्क करना।
यूटिलिटी कम्पनियां और पब्लिक अथॉरिटीज : वॉटर सप्लाई और सीवरेज की सर्विसेज देना।
एलिजिबिलिटी
-वॉटर साइंस से रिलेटेड सब्जेक्ट में बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री को वरीयता।
-जियोलॉजी, जियो-फिजिक्स, सिविल इंजीनियरिंग, फॉरेस्ट्री ऐंड एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट्स इनमें शामिल हैं।
स्किल्स
-सहनशीलता, डिटरमिनेशन, ब्रॉडर ऑस्पेक्ट और गुड एनालिटिकल स्किल की जरूरत होती है।
-टीम में काम करने की स्किल
-इन्वेस्टिगेशन की प्रवृत्ति
वॉटर मैनेजमेंट
बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण आज पूरी दुनिया पानी की किल्लत से जूझ रही है। इसे देखते हुए वाटर मैनेजमेंट और कंजर्वेशन से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ रही है। आजकल हाउसिंग कॉम्प्लेक्सेज से लेकर उद्योगों आदि में ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है, जो वॉटर हार्वेेस्टिंग से लेकर जल संचयन आदि की तकनीकों को जानते हों।
कोर्स
वॉटर हार्वेस्टिंग ऐंड मैनेजमेंट नाम से यह कोर्स करीब 6 महीने का है। इसके तहत सिखाया जाता है कि बारिश के पानी को किस तरह से मापा जाए, वॉटर टेबल की क्या इंपॉर्र्टेंस है और उसे किस तरह से रिचार्ज किया जाए।
एलिजिबिलिटी
इसमें एडमिशन की मिनिमम एलिजिबिलिटी 10वीं पास है। अगर आपने इग्नू से बैचलर प्रिपरेट्री प्रोग्राम (बीपीपी) किया हुआ है, तो आप सीधे इस कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं।
एक्वाकल्चर
एक्वाकल्चर में समुद्र, नदियों और ताजे पानी के कंजर्वेशन, उनके मौलिक रूप और इकोलॉजी की सेफ्टी के बारे में स्टडी की जाती है। इन दिनों घटते जल स्रोतों, कम होते पेयजल संसाधनों के चलते इस फील्ड में विशेषज्ञों की मांग बढ़ी है।
कोर्स ऐंड एलिजिबिलिटी
इस फील्ड में बीएससी और एमएससी इन एक्वा साइंस जैसे कोर्स प्रमुख हैं। इनमें एडमिशन के लिए बायोलॉजी सब्जेक्ट के साथ 10+2 पास होना अनिवार्य है। इसके अलावा, वाटर कंजर्वेशन और उसकीइकोलॉजी के बारे में गहरा रुझान जरूरी है।
एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग
एनवॉयर्नमेंट कंजर्वेशन के फील्ड में बढ़ती टेक्नोलॉजी के एक्सपेरिमेंट्स से आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियर्स की मांग बढ़ी है। अलग-अलग सेक्टर्स के कई इंजीनियर्स आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग में अपना योगदान दे रहे हैं। इनमें एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, बायोलॉजिस्ट केमिकल इंजीनियरिंग, जियोलॉजिस्ट, हाइड्रो-जियोलॉजिस्ट, वॉटर ट्रीटमेंट मैनेजर आदि कारगर भूमिका निभाते हैं।
इंस्टीट्यूट वॉच
-आइआइटी, रुड़की
(भूजल जल-विज्ञान और वाटरशेड मैनेजमेंट)
-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
-अन्ना विश्वविद्यालय (वाटर मैनेजमेंट)
-एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय
(वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम
-अन्नामलाई विश्वविद्यालय (हाइड्रो-जियोलॉजी)
-दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली
-गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, रायपुर (वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट ऐंड इरिगेशन इंजीनियरिंग)
-आइआइटी, मद्रास (फ्लड साइंस ऐंड वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
-राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की
कॉन्सेप्ट ऐंड इनपुट : अंशु सिंह, मिथिलेश श्रीवास्तव