Tuesday, February 27, 2018

बायो-इन्फॉर्मेटिक्स में करियर

चिकित्सा का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। इसी कडी में बायोइन्फॉर्मेटिक्समें संभावनाओं के मद्देनजर यह युवाओं के लिए पंसदीदा करियर ऑप्शन बनता जा रहा है।
क्या है बायोइन्फॉर्मेटिक्स
यह शब्द इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी से मिल कर बना है। इन दिनों बायोइन्फॉर्मेटिक्स का इस्तेमाल मॉलिक्यूलर बायोलॉजी के क्षेत्र में खासतौर से किया जाता है। यह एक स्पेशलाइज्ड एरिया है। विशेषज्ञों की मानें, तो इन दिनों बायोइन्फॉर्मेटिक एक्सप‌र्ट्स की डिमांड सप्लाई से कहीं ज्यादा है।
क्या करते हैं बायोइन्फॉर्मेटिस्ट
इस फील्ड से जुडे पेशेवर कंप्यूटर टेक्नोलॉजी के माध्यम से बायोलॉजिकल डाटा का सुपरविजन और एनालिसिस करते हैं। साथ ही, इनका काम डेटाज को स्टोर करने के साथ-साथ एकत्र किए गए बायोलॉजिकल डाटा को एक-दूसरे के साथ मिलान भी करना होता है।
इन दिनों बायोइन्फॉर्मेटिक्स का इस्तेमाल रिसर्च के क्षेत्र में खूब होने लगा है। इस फील्ड से जुडे लोगों के लिए ह्यूमन हेल्थ, एग्रीकल्चर, एंवायरनमेंट और ऊर्जा के क्षेत्र में काम करने का भी भरपूर मौका होता है। इन दिनों बायोमॉलिक्यूलर के लिए क्षेत्र में बायोइन्फॉर्मेटिक्स का इस्तेमाल दवाओं की गुणवत्ता को सुधारने के लिए किया जाता है।
कैसे होती है एंट्री
साइंस स्ट्रीम से 12वीं पास करने वाले स्टूडेंट्स बायोइन्फॉर्मेटिक्स की फील्ड में एंट्री ले सकते हैं। यदि इस सब्जेक्ट में अपनी रिसर्च स्किल को और बेहतर करना चाहते हैं, तो ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन में मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, जेनेटिक, माइक्रोबायोलॉजी, केमिस्ट्री, फॉर्मेसी, वेटेनरी साइंस, फिजिक्स और मैथ्स जैसे विषय जरूर होने चाहिए।
संभावनाएं
करियर एक्सपर्ट जितिन चावला कहते हैं, हर फील्ड में तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। साइंस की फील्ड में बायोइन्फॉर्मेटिक्स से जुडे लोगों की मांग इन दिनों तेजी से बढ रही है, खासकर जीवीके बायोसाइंसेज, एस्ट्राजेनेका, डॉ.रेड्डी लेबोरेटरीज, इनजेनोविस, जुबिलेंट बायोसिस, लैंडस्काई सोल्युशंस आदि जैसी बडी कंपनियां लोगों को हायर करती हैं।
इस फील्ड में सरकारी और निजी मेडिकल इंस्टीट्यूशंस, हॉस्पिटल आदि में रिसर्च कार्यो के लिए बायोइन्फॉर्मेटिक्स के क्षेत्र से जुडे पेशेवरों को हायर किया जाता है, लेकिन बायोइन्फॉर्मेटिक्स से जुडे लोगों के लिए फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री रोजगार का सबसे बडा डेस्टिनेशन है।
इस क्षेत्र से जुडे पेशेवर सीक्वेंस एसेंबलिंग, सीक्वेंस एनालिसिस, प्रोटेओमिक्स, फार्माकोजेनोमिक्स, फार्माकोलॉजी, क्लीनिकल फार्माकोलॉजी, इन्फॉर्मेटिक डेवलपमेंट, कंप्यूटेशनल केमिस्ट्री, बायोएनालिटिक्स, एनालिटिक्स आदि में बेहतरीन करियर बना सकते हैं।
पर्सनल स्किल
बायोइन्फॉर्मेटिक्स का फील्ड रिसर्च से जुडा हुआ है, इसलिए इसमें कदम रखने वाले को जिज्ञासु प्रवृत्ति का होना चाहिए। उसमें आ‌र्ब्जेवशन स्किल जरूरी है। उसे टीम भावना में भी विश्वास होना आवश्यक है।
सैलरी वॉच
बायोइन्फॉर्मेटिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री रखने वाले स्टूडेंट्स इस इंडस्ट्री में 12 से 20 हजार रुपये प्रति महीने की उम्मीद कर सकते हैं, वहीं गवर्नमेंट रिसर्च ऑर्गनाइजेशन में शुरुआत में नौ हजार रुपये प्रति माह के अलावा अलाउंसेज भी मिलते हैं। आमतौर पर एमएनसी में इस क्षेत्र से जुडे लोगों को अच्छी सैलरी मिल जाती है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
बंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई
कलकत्ता यूनिवर्सिटी, कोलकाता
मनिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन, मनिपाल
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ट्रेनिंग, पुणे
यूनिवर्सिटी ऑफ हैदराबाद

Monday, February 26, 2018

एकाउंटिंग में करियर

एकाउंटिंग आज के दौर में बेहद डिमांडिंग फील्ड बन गया है। उदारीकरण के दौर में देश में निजी कंपनियों के विस्तार और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से सीए, आइसीडब्ल्यूए, सीएस, कंप्यूटर एकाउंटेंसी के एक्सप‌र्ट्स की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। एकाउंटिंग एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें आपका करियर ग्राफ तेजी से बढ़ता है। वैसे तो ज्यादातर कॉमर्स के स्टूडेंट्स ही एकाउंटिंग के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, लेकिन दूसरे स्ट्रीम के स्टूडेंट्स के लिए भी इसके रास्ते खुले हुए हैं। जानते हैं इससे संबंधित कुछ प्रमुख क्षेत्रों और उनमें एंट्री के बारे में :
सीए
सीए का मतलब है चार्टर्ड एकाउंटेंट। चार्टर्ड एकाउंटेंट ऑडिटिंग, टैक्सेशन और एकाउंटिंग में स्पेशलाइजेशन रखता है। सीए प्रोफेशन निरंतर लोकप्रिय होता जा रहा है। यहां तक कि छोटी कंपनियों और कारोबारियों को भी अपने आर्थिक मसलों के प्रबंधन के लिए सीए की जरूरत होती है। भारतीय चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तो अब विदेशों में भी अच्छी मांग है, खासकर पश्चिम एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर में।
कंपनी अधिनियम के अनुसार भारत में किसी कंपनी में ऑडि¨टग के लिए सिर्फ चार्टर्ड एकाउंटेंट को ही रखा जा सकता है। सीए को चार्टर्ड एकाउंटेंसी का फाइनल एग्जाम पास करने के बाद इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आइसीएआइ) के एसोसिएट के रूप में स्वीकार किया जाता है।
आईसीएआइ का मुख्यालय नई दिल्ली में है। इसके पांच क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, कानपुर, चेन्नई, मुंबई और नई दिल्ली में हैं। चार्टर्ड एकाउंटेंसी के करिकुलम में थ्योरिटिकल एजुकेशन के साथ अनिवार्य प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाती है।
इस प्रोग्राम को करने के लिए किसी
छात्र को बारहवीं या उसके समकक्ष एग्जाम पास होना चाहिए। ऑडिटिंग, कॉमर्शियल लॉ, एकाउंटेंसी के साथ कॉमर्स ग्रेजुएट करने वाले छात्र भी इसे कर सकते हैं। आ‌र्ट्स व
साइंस स्ट्रीम के भी स्टूडेंट भी सीए कोर्स कर सकते हैं।
करिकुलम : सीए कोर्स के तीन चरण होते हैं। पहला, कॉमन प्रोफिसिएंसी टेस्ट (सीपीटी) जिसमें चार विषयों एकाउंटिंग, मर्केटाइल लॉ, जनरल इकोनॉमिक्स और क्वांटिटेटिव एप्टीट्यूड के एंट्री लेवल के टेस्ट होते हैं। दूसरे चरण में इंटीग्रेटेड प्रोफेशनल कॉम्पिटेंस कोर्स (आइपीसीसी) को पूरा करना होता है। यह सीए करिकुलम का पहला ऐसा चरण है जिसमें एकाउंटेंसी प्रोफेशन के कोर एवं अलायड सब्जेक्ट्स के केवल वर्किग नॉलेज को कवर किया जाता है। तीसरा चरण सीए फाइनल कहा जाता है, जिसके तहत फाइनेंशियल रिपोर्टिंग, स्ट्रेटेजिक फाइनेंशियल मैनेजमेंट, एडवांस मैनेजमेंट एकाउंटिंग, एडवांस ऑडिटिंग जैसे विषयों के एडवांस एप्लीकेशन नॉलेज को कवर किया जाता है।
आर्टिकलशिप : आइपीसीसी के ग्रुप को पास करने के बाद किसी अनुभवी सीए के पास तीन साल की अवधि के लिए आर्टिकलशिप करनी होती है। इस दौरान स्टाइपेंड भी मिलता है।
सीएस
सीएस का मतलब है कंपनी सेक्रेटरीशिप। कंपनी सेक्रेटरी ऐसा प्रोफेशनल कोर्स है, जिसका प्रबंधन द इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (आइसीएसआइ) द्वारा किया जाता है। कंपनी अधिनियम के अनुसार जिन कंपनियों की चुकता पूंजी 50 लाख रुपये या उससे ज्यादा है, उन्हें कंपनी सेक्रेटरी रखना जरूरी होता है।
कंपनी सेक्रेटरी बनने के लिए किसी कैंडिडेट को अब फाउंडेशन कोर्स, एग्जिक्यूटिव प्रोग्राम और प्रोफेशनल कोर्स पास करना होता है जिन्हें पहले फाउंडेशन एग्जामिनेशन कहा जाता था। इंस्टीट्यूट एक इंटरमीडिएट और फाइनल एग्जाम आयोजित करता है और बाद में कैंडिडेट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करनी पड़ती है। इसके बाद वह कंपनी सेक्रेटरी की सदस्यता के योग्य माना जाता है।
इस प्रोग्राम को करने के लिए कैंडिडेट को बारहवीं या समकक्ष एग्जाम पास होना चाहिए। आइसीडब्ल्यूएआइ या आइसीएआइ का फाइनल एग्जाम पास करने वाले ग्रेजुएट भी इस प्रोग्राम में शामिल हो सकते हैं।
आइसीडब्ल्यूए
आइसीडब्ल्यूए के तहत कॉस्ट और व‌र्क्स एकाउंटेंसी का कार्य आता है। यह प्रोग्राम इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट ऐंड व‌र्क्स एकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आइसीडब्ल्यूएआइ) द्वारा संचालित किया जाता है। कॉस्ट ऐंड वर्क एकाउंटेंट किसी कंपनी की बिजनेस पॉलिसी तैयार करते हैं और पुराने एवं मौजूदा वित्तीय प्रदर्शन के आधार पर किसी प्रोजेक्ट के लिए अनुमान जाहिर करते हैं।
यह कोर्स करने के लिए छात्र की उम्र कम से कम 17 वर्ष होनी चाहिए और उसे केंद्र या राज्य सरकार के मान्यताप्राप्त बोर्ड से बारहवीं पास होना चाहिए।
कंप्यूटर एकाउंटेंसी
कंप्यूटर एकाउंटेंसी नए जमाने का एकाउंटिंग कोर्स है। खास बात यह है कि इस कोर्स को करने के लिए कॉमर्स का बैकग्राउंड होना कतई जरूरी नहीं है। दिल्ली के पूसा रोड स्थित आइसीए के डायरेक्टर अनुपम के अनुसार बारहवीं या ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद सीआइए प्लस का एडवांस कोर्स करके एकाउंटेंट के रूप में जॉब आसानी से पाई जा सकती है। दरअसल, आजकल ऑफिसेज में एकाउंटिंग पहले जैसे बहीखाते और लेजर के द्वारा नहीं होता, बल्कि एडवांस कंप्यूटर्स और सॉफ्टवेयर के माध्यम से होता है। कंप्यूटराइज्ड एकाउंटिंग असल में आइटी आधारित कोर्स है। आप महज 10 महीने का कोर्स करके ही एकाउंटेंसी के मास्टर बन सकते हैं। कंप्यूटर एकाउंटेंसी के तहत मुख्यत: बिजनेस एकाउंटिंग, बिजनेस कम्युनिकेशन, एडवांस एकाउंट्स, एडवांस एमएस एक्सेल, टैक्सेज, आइएफआरएस, फाइनेंशियल मैनेजमेंट, इनकम टैक्स प्लानिंग आदि की प्रैक्टिकल और जॉब ओरिएंटेड ट्रेनिंग दी जाती है

Friday, February 23, 2018

ह्यूमेनिटीज में करियर

दसवीं और बारहवीं के स्तर पर साइंस और कॉमर्स के बाद छात्रों या अभिभावकों के सामने ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम शेष रह जाती है। इस स्ट्रीम को हालांकि छात्र और अभिभावक अपनी प्राथमिकता में पहले या दूसरे स्थान पर नहीं रखते, लेकिन बदलते वक्त के साथ इस स्ट्रीम से जुड़ी संभावनाओं का आकाश भी काफी विस्तृत हो गया है। इस लेख के माध्यम से छात्रों को ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम और उसमें निहित अवसरों को जानने-समझने में मदद मिलेगी। 
ह्यूमेनिटीज को कुछ वर्ष पहले तक एक ऐसे स्ट्रीम के रूप में देखा जाता था, जो या तो कम बुद्धिमान लोगों के लिए है या शिक्षक बनने की इच्छा रखने वालों के लिए। लेकिन मौजूदा वक्त में यह धारणा अप्रासंगिक हो चुकी है। अब ह्यूमेनिटीज की बदौलत ऊंचे पद, बड़ी उपलब्धियां और तरक्की पाई जा सकती है। शिक्षण के अलावा इसमें सैकड़ों तरह के रोजगार उपलब्ध हैं, जो रुचिकर होने के साथ-साथ अपनी कार्य-प्रकृति में विशिष्ट भी हैं। ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम आपके सामने असीमित विकल्प रखती है। यकीन न हो, तो मानवीय गतिविधियों से जुड़े किसी भी क्षेत्र को देख लीजिए, आप हर क्षेत्र में ह्यूमेनिटीज के छात्रों को सफलता के साथ काम करता हुआ पाएंगे।
क्या है ह्यूमेनिटीज
इस स्ट्रीम के अंतर्गत मुख्य रूप से मानव समाज और उसकी मान्यताओं का अध्ययन किया जाता है। इसके जरिए यह समझने का प्रयास किया जाता है कि लोग स्वयं को कैसे कला, धर्म, साहित्य, वास्तुकला और अन्य रचनात्मक कार्यो आदि के जरिए अभिव्यक्त करते हैं? इस कार्य के लिए इस स्ट्रीम के शोधार्थी एनालिटिकल और  हाइपोथिटिकल मेथड का प्रयोग करते हैं। इस स्ट्रीम को मोटे तौर पर परफॉर्मिग आर्ट्स (म्यूजिक), विजुअल आर्ट्स, रिलिजन, लॉ, एंसिएंट/ मॉडर्न लैंग्वेजेस, फिलॉस्फी, लिटरेचर, हिस्ट्री, जियोग्राफी, पॉलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स, सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी आदि विषयों में बांटा जाता है। ह्यूमेनिटीज में कुई ऐसे विषय हैं, जिनकी पढ़ाई के बाद लॉ, जर्नलिज्म, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, मीडिया एंड एडवर्टाइजिंग और कम्यूनिकेशन आदि प्रोफेशनल पाठय़क्रमों में पोस्ट ग्रेजुएशन किया जा सकता है।
ह्यूमेनिटीज के आम जिंदगी में महत्व को इस बात से भी आंका जा सकता है कि अब आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान भी ह्यूमेनिटीज और सोशल साइंसेज में पाठय़क्रम संचालित कर रहे हैं। आईआईटी मद्रास बारहवीं पास छात्रों के लिए ह्यूमेनिटीज में पांच वर्षीय इंटिग्रेटेड एमए पाठय़क्रम संचालित करता है। इस पाठय़क्रम में दाखिले के लिए यह संस्थान एचएसईई (ह्यूमेनिटीज एंड सोशल साइंसेज एंट्रेंस एग्जामिनेशन) नाम से हर साल एक प्रवेश परीक्षा आयोजित करता है। इसी तरह आईआईटी गांधीनगर पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर एमए इन सोसायटी एंड कल्चर नाम से पाठय़क्रम संचालित कर रहा है। दसवीं या बारहवीं पास करने वाले काफी छात्रों के मन में एक आम-सा प्रश्न होता है कि ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम को चुनने के बाद उनके करियर का स्वरूप कैसा होगा? इस प्रश्न का कोई सीधा जवाब नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि करियर का स्वरूप काफी हद उनके द्वारा चुने गए पाठय़क्रम पर निर्भर होता है। किसी ह्यूमेनिटीज विषय में डिग्री हासिल करने के बाद आप कई क्षेत्रों में रोजगार पा सकते हैं। स्कूलों, म्यूजियमों, एडवर्टाइजिंग एजेंसियों, अखबारों, आर्ट गैलरियों, पत्रिकाओं और फिल्म स्टूडियो आदि में भी काम के मौके तलाशे जा सकते हैं। इन अवसरों को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि समय के साथ ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम पर आधारित संभावनाओं का फलक और विस्तृत हुआ है। सरकारी सेवाओं में जाने की इच्छा रखने वाले छात्र ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम के साथ अपने सपने का साकार कर सकते हैं। वह कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) और राज्य लोक सेवा आयोगों की प्रतियोगी परीक्षाओं के अलावा यूपीएससी की सिविल सर्विस परीक्षा में भी अपनी चुनौती पेश कर सकते हैं। चूंकि बैचलर डिग्री स्तर पर आर्ट्स के पाठय़क्रमों में हिस्ट्री, जियोग्राफी और सिविक्स (नागरिक शास्त्र) आदि विषय पढ़ाए जाते हैं, जो तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी  में सहायक होते हैं।
ह्यूमेनिटीज की पढ़ाई के लिए जरूरी गुण
- किसी मुद्दे को समझने और उसका मूल्यांकन करने की क्षमता
- मानसिक और कामकाजी स्तर पर रचनात्मकता हो
- काम को व्यवस्थित करने और उन्हें तय समयसीमा में निपटाने का हुनर
- लिखित सामग्री को पढ़ने और उससे खास बिंदुओं को चुनने का कौशल हो
- बड़ी मात्रा में सूचनाओं और तथ्यों को समझने और ग्रहण करने की क्षमता
- अलग-अलग शैलियों में अच्छा लिखने का हुनर हो
- अपनी बात को प्रभावी शब्दों में स्पष्ट रूप से रखने में दक्षता हो
- शोध करने और तथ्यों के स्नोतों का मूल्यांकन करने की क्षमता हो
- चर्चाओं में भाग लेने और उनका नेतृत्व करने में रुचि हो
- निजी प्रेरणा से काम करने का जज्बा हो
- विचारों और सुझावों को व्यावहारिक रूप देने की कला हो
- निष्पक्षता और खुद में पूरा विश्वास हो
- अपनी बातों पर विचार-विमर्श को तैयार रहने का लचीलापन हो
- सांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित शोध में निष्कर्ष निकालने की क्षमता हो
इन क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं-
- राइटिंग
- प्रोग्राम प्लानिंग
- टीचिंग
- रिसर्च
- इंटरनल कम्यूनिकेशन
- पब्लिक रिलेशन्स
- पॉलिसी रिसर्च एंड एनालिसिस
- एडमिनिस्ट्रेशन
- सोशल वर्क
- मैनेजमेंट
- इंफॉर्मेशन
- जर्नलिज्म
- आर्कियोलॉजी
- एंथ्रोपोलॉजी
- एग्रीकल्चर
- जियोग्राफी
- एनजीओ
- इंडस्ट्रियल रिलेशन
- लाइब्रेरी साइंस
- लिबरल आर्ट्स
- फिलॉस्फी
- रिसर्च असिस्टेंस
- साइकोलॉजी

Wednesday, February 21, 2018

न्यूक्लियर एनर्जी के क्षेत्र में करियर

भारत-अमेरिकी न्यूक्लियर डील के बाद देश में न्यूक्लियर एनर्जी (परमाणु ऊर्जा) के उत्पादन में अत्यधिक बढ़ोतरी की संभावनाएँ देश-विदेश के इस क्षेत्र से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा जताई जा रही हैं। फिलहाल देश के कुल ऊर्जा उत्पादन में परमाणु रिएक्टरों के जरिए मात्र तीन प्रतिशत विद्युत ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है।
बायोफ्यूल की लगातार घटती मात्रा और देश में बढ़ती ऊर्जा की माँग देखते हुए ऊर्जा उत्पादन पर बल देना सरकार की प्राथमिकता बन गया है। इसी सोच के तहत वर्ष 2050 तक परमाणु रिएक्टरों के माध्यम से कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा उत्पादित करने की दीर्घकालिक योजना तैयार की गई है। इसी क्रम में वर्ष 2020 तक बीस हजार मेगावाट विद्युत का अतिरिक्त उत्पादन परमाणु ऊर्जा स्रोतों से किया जाएगा।

जाहिर है, ऐसे परमाणु रिएक्टरों के निर्माण कार्य से लेकर इनके संचालन और रख-रखाव तक में ट्रेंड न्यूक्लियर प्रोफेशनल की बड़े पैमाने पर आवश्यकता पड़ेगी। इस प्रकार के कोर्स देश के चुनींदा संस्थानों में फिलहाल उपलब्ध हैं लेकिन समय की मांग देखते हुए यह कहा जा सकता है कि न सिर्फ सरकारी बल्कि निजी क्षेत्र के संस्थान भी इस प्रकार के कोर्सेज की शुरुआत बड़े स्तर पर करने की सोच सकते हैं।

यह कतई जरूरी नहीं कि इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए न्यूक्लियर साइंस से संबंधित युवाओं के लिए ही अवसर होंगे बल्कि एनर्जी इंजीनियर, न्यूक्लियर फिजिक्स, सिविल इंजीनियर, मेकेनिकल इंजीनियर, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों के अलावा भी तमाम ऐसे संबंधित प्रोफेशनलों की आवश्यकता आने वाले दिनों में होगी। सही मायने में देखा जाए तो एनर्जी इंजीनियरिंग अपने आप में अंतर्विषयक धारा है जिसमें इंजीनियरिंग की विविध शाखाओं का ज्ञान समाया हुआ देखा जा सकता है। यही कारण है कि सभी इंजीनियरिंग शाखाओं के युवाओं की जरूरत दिन-प्रतिदिन इस क्षेत्र में बढ़ेगी।

ऊर्जा मंत्रालय के अनुमान को अगर रेखांकित किया जाए तो आगामी पांच वर्षों में भारत को इस क्षेत्र पर लगभग पांच लाख करोड़ रुपए का निवेश करना होगा तभी बढ़ती ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति कर पानी संभव होगी। इसमें विद्युत उत्पादन के विभिन्न स्रोतों जल, थर्मल तथा वायु से तैयार होने वाली विद्युत के अलावा परमाणु भट्टियों से निर्मित विद्युत की भी भागीदारी होगी। अमेरिका के साथ हुई परमाणु संधि के बाद ऐसे रिएक्टरों की स्थापना बड़ी संख्या में होने की संभावना है।
न सिर्फ देश की बड़ी-बड़ी कंपनियां (एलएंडटी) बल्कि विश्व की तमाम अन्य बड़ी न्यूक्लियर रिएक्टर सप्लायर कंपनियां (जीई हिटैची, वेस्टिंग हाउस इत्यादि) भी इस ओर नजर गड़ाए बैठी हैं। यह कारोबार जैसा कि उल्लेख किया गया है कि कई लाख करोड़ रुपए के बराबर आने वाले दशकों में होने जा रहा है। इसके अलावा अभी सामरिक क्षेत्र में न्यूक्लियर एनर्जी के इस्तेमाल के विभिन्न विकल्पों की भी बात करें तो समूचे परिदृश्य का अंदाजा और वृहद् रूप में मिल सकता है।

जहां तक न्यूक्लियर इंजीनियरों के कार्यकलापों का प्रश्न है तो उनके ऊपर न्यूक्लियर पावर प्लांट की डिजाइनिंग, निर्माण तथा ऑपरेशन का लगभग संपूर्ण दायित्व होता है। जिसका सफलतापूर्वक संचालन, वे अन्य टेक्नीशियन और विशेषज्ञों की मदद से करते हैं। इनके लिए नौकरी के अवसर मेटेरियल इंजीनियरिंग के कार्यकलापों, एमआरआई उपकरण निर्माता कंपनियों, संबंधित उपकरण उत्पादक कंपनियों के अलावा अध्यापन और शोध में भी देश-विदेश में व्यापक पैमाने पर हो सकते हैं। अंतरिक्ष अनुसंधान, कृषि क्षेत्र, आयुर्विज्ञान तथा अन्य क्षेत्रों में भी ये अपने करियर निर्माण के बारे में सोच सकते हैं।

किस प्रकार की योग्यता जरूरी

विज्ञान की दृढ़ पृष्ठभूमि के साथ भौतिकी एवं गणित में गहन दिलचस्पी रखने वाले युवाओं के लिए यह तेजी से उभरता हुआ क्षेत्र निस्संदेह सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित करने में काफी मददगार साबित हो सकता है। विदेशी विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएट अथवा पोस्ट ग्रेजुएट स्कॉलरों को हाथोहाथ लिया जाता है। अमूमन स्कॉलरशिप मिलना ऐसे युवाओं के लिए मुश्किल नहीं होता।

संस्‍थान:

इंडि‍यन इंस्‍टि‍ट्यूट ऑफ टेक्‍नोलॉजी, कानपुर
इंडि‍यन इंस्‍टि‍ट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
साहा इंस्‍टि‍ट्यूट ऑफ न्‍यूक्‍लि‍यर फि‍जि‍क्‍स कोलकाता

Sunday, February 18, 2018

डर्मेटोलॉजी में करियर

डिसिन में स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विकल्पों में ‘डर्मेटोलॉजी’ काफी लोकप्रिय हो गया है। मौजूदा वक्त में ‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन’ कहावत को इतनी गंभीरता से लिया जा रहा है कि व्यक्ति के रूप को व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग माना जाने लगा है। इस कारण लोगों में अपने रूप और व्यक्तित्व को लेकर चिंता का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक कि कॉलेज जाने वाले छात्र भी खुद को आकर्षक दिखाने की गरज से काफी रुपये खर्च कर रहे हैं।
अपने रूप को लेकर लोगों में गंभीरता का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि वह चेहरे पर छोटा-सा मुंहासा हो जाने भर से परेशान हो उठते हैं। कई बार वह ऐसी परेशानियों को इस कदर अपने ऊपर हावी कर लेते हैं कि घर से बाहर निकलना भी छोड़ देते हैं। ऐसे माहौल में रूप निखारने का दावा करने वाली फेयरनेस क्रीमों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। खुजली और घमौरियों (रैशेज) जैसे त्वचा संबंधी रोग आम हो चुके हैं। गर्मी और बरसात के मौसम में इनकी अधिकता काफी बढ़ जाती है। इनके सही उपचार के लिए डॉंक्टर का परामर्श जरूरी होता है। कई बार उपचार के लिए डॉंक्टर के पास कुछ दिनों या हफ्तों के अंतराल पर बार-बार जाने की जरूरत होती है। ऐसे में लोग अपनी त्वचा के लिए ज्यादा खर्च करने में जरा भी नहीं हिचकते।
त्वचा और रूप के प्रति लोगों के बढ़ती सजगता के कारण डर्मेटोलॉजिस्ट की मांग में इजाफा हो रहा है। डर्मेटोलॉजी मेडिसिन की एक शाखा है, जिसमें त्वचा और उससे संबंधित रोगों के निदान का अध्ययन किया जाता है। यह एक स्पेशलाइज्ड विषय है, जिसकी पढ़ाई एमबीबीएस के बाद होती है। डर्मेटोलॉजिस्ट रोगों के उपचार के अलावा त्वचा, बाल और नाखूनों से संबंधित कॉस्मेटिक समस्याओं का भी निदान करते हैं।
डर्मेटोलॉजिस्ट का काम
इनका मुख्य कार्य लोगों की उन बीमारियों का उपचार करना होता है, जो त्वचा, बाल, नाखूनों और मुंह पर दुष्प्रभाव डालती हैं। एलर्जी से प्रभावित त्वचा, त्वचा संबंधी दागों, सूर्य की रोशनी में झुलसे या अन्य तरह के विकारों से ग्रसित त्वचा को पूर्व अवस्था में लाने में ये रोगियों की मदद करते हैं। इसके लिए वह दवाओं या सर्जरी का इस्तेमाल करते हैं। त्वचा कैंसर और उसी तरह की बीमारियों से जूझ रहे रोगियों के उपचार में भी वह सहयोग करते हैं। क्लिनिक या अस्पताल में वह सबसे पहले मरीजों के रोग प्रभावित अंग का निरीक्षण करते हैं। जरूरी होने पर वह रोग की गंभीरता जांचने के लिए संबंधित अंग से रक्त, त्वचा या टिश्यू का नमूना भी लेते हैं। इन नमूनों के रासायनिक और जैविक परीक्षणों से वह पता लगाते हैं कि रोग की वजह क्या है। रोग का पता लगने के बाद उपचार शुरू कर देते हैं। इस कार्य में वह दवाओं, सर्जरी, सुपरफिशियल रेडियोथेरेपी या अन्य उपलब्ध उपचार विधियों का उपयोग करते हैं।
अन्य कार्य
कई बार शरीर में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी त्वचा संबंधी रोग हो जाते हैं। ऐसे में डर्मेटोलॉजिस्ट रोगियों की स्थिति को देखते हुए उनके लिए ‘डाइट प्लान’ भी तैयार करते हैं। इसी तरह वह रोगियों को व्यायाम के साथ त्वचा और बालों की देखरेख से संबंधित सलाह भी देते हैं। इसके अलावा मरीजों के उपचार से संबंधित चिकित्सकीय दस्तावेजों (दी गई दवाओं और पैथोलॉजिकल जांच से संबंधित) का प्रबंधन भी उनके कार्यक्षेत्र का एक हिस्सा है।
करते हैं कॉस्मेटिक सर्जरी: चेहरे और अन्य अंगों को आकर्षक बनाने के लिए डर्मेटोलॉजिस्ट कॉस्टमेटिक सर्जरी भी करते हैं। त्वचा  की झुर्रियों और दाग-धब्बों को खत्म करने के लिए वह डर्माब्रेशन जैसी तकनीक और बोटोक्स इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं। इन तकनीकों के अलावा वह लेजर थेरेपी का भी उपचार में उपयोग करते हैं। इस तकनीक की मदद से वह झुर्रियों और त्वचा पर होने वाले सफेद दाग का ईलाज करते हैं।
योग्यता: फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ बारहवीं पास करके एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करना डर्मेटोलॉजिस्ट बनने की पहली शर्त है। इसके बाद डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी में तीन वर्षीय एमडी या दो वर्षीय डिप्लोमा पाठय़क्रम की पढ़ाई की जा सकती है।
स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विषय
मेडिकल डर्मेटोलॉजी         सर्जिकल डर्मेटोलॉजी
डर्मेटोपैथोलॉजी                हेअर एंड नेल डिस्ऑर्डर्स
जेनिटल स्किन डिजीज       पीडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी
इम्यूनोडर्मेटोलॉजी             पब्लिस्टरिंग डिस्ऑर्डर्स
कनेक्टिव टिश्यू डिजीज     फोटोडर्मेटोलॉजी
कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजी      जेनेटिक स्किन डिजीज
संभावनाएं
डर्मेटोलॉजी विषय के पोस्ट ग्रेजुएट पाठय़क्रम की पढ़ाई के बाद आप किसी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या सरकारी डिस्पेंसरी में डर्मेटोलॉजिस्ट के तौर पर काम कर सकते हैं। शिक्षण कार्य में रुचि होने पर आप किसी मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी या इंस्टीटय़ूट में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन या शोध-कार्यों का निर्देशन भी कर सकते हैं।
संबंधित शिक्षण संस्थान
एम्स, नई दिल्ली
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी एंड वेनेरियोलॉजी, दिल्ली यूनिवर्सिटी
एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर
एएफएमसी, पुणे
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी, पांडिचेरी इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
डॉं एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु
जरूरी गुण:
अच्छा सौंदर्यबोध और स्वास्थ्य हो
मरीजों के साथ सहानुभूतिपूर्वक संवाद करने में कुशलता हो
हर तरह की स्थितियों से निपटने का पर्याप्त धैर्य हो
भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूत हो
दूसरों की मदद करने की इच्छा हो

Friday, February 16, 2018

कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में करियर

आज के दौर में संचार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे मोबाइल हो या टीवी यह हर इनसान की जरूरत है। क्या आप ऐसे जीवन की कल्पना कर सकते हैं जहाँ मोबाइल काम ना करे। अपने मन पंसद प्रोग्रामों को देखने के लिए आपके पास टेलीविजन ही ना हो। ऐसे जीवन की कल्पना करना भी आपको कितना डरावना लगता है ना। 

आपकी सुविधाओं को हकीकत में बदलने का काम किया है इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरों ने। इनकी कला की बदौलत ही आज हर व्यक्ति पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है। अगर आप चाहें तो इस क्षेत्र में अपना भविष्य तलाश सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत व चुनौतीपूर्ण है। इसके अंतर्गत माइक्रोवेव और ऑप्टिकल कम्युनिकेशन, डिजिटल सिस्टंस, सिग्नल प्रोसेसिंग, टेलीकम्युनिकेशन, एडवांस्ड कम्युनिकेशन, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इंजीनियरिंग की यह शाखा रोजमर्रा की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। साथ ही इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, पॉवर सिस्टम ऑपरेशंस, कम्युनिकेशन सिस्टम आदि क्षेत्रों में भी इसके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।

इस क्षेत्र में करियर बनाने की चाह रखने वाले छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करना होगा। विभिन्न इंस्टिट्यूट छात्रों केलिए ढेर सारे विकल्प प्रस्तुत करता है। इस स्ट्रीम में छात्र विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं या दोहरी डिग्री भी कर सकते हैं। 

कम्युनिकेशन इंजीनियरों का मुख्य काम होता है कि वे न्यूनतम खर्चे पर सर्वश्रेष्ठ संभावित हल उपलब्ध करवाए। इस तरह वे रचनात्मक सुझाव निकालने में सक्षम हो पाते हैं। वे चिप डिजाइनिंग और फेब्रिकेटिंग के काम में शामिल होते हैं, सेटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन जैसे एडवांस्ड कम्युनिकेशन, कम्युनिकेशन नेटवर्क साल्यूशन, एप्लिकेशन ऑफ डिफरेंट इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काम करते हैं और इसलिए कम्युनिकेशन इंजीनियरों की सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी खासी मांग होती है।

इंजीनियरिंग की इस ब्रांच में पेशेवरों के लिए नित नए दरवाजे खुलते रहते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियर टेलीकम्युनिकेशन, सिग्नल, सैटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन आदि क्षेत्रों में काम की तलाश कर सकते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियरों को टीसीएस, मोटोरोला, इन्फोसिस, डीआरडीओ, इसरो, एचसीएल, वीएसएनएल आदि कंपनियों में अच्छी खासी सैलरी पर नौकरी मिलती है। 

एक सर्वे के मुताबिक इंजीनियरिंग क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है। सर्वे के अनुसार अगले 10 सालों में इंजीनियरिंग के क्षेत्र की विकास दर 13.38 प्रतिशत होगी। 2007 में हुए ग्रेजुएट एक्जिट का सर्वे कहता है कि कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पर मंदी का असर ना के बराबर हुआ है। इस क्षेत्र में अभी भी 86 प्रतिशत इंजीनियर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में इनकी भारी माँग रहेगी। ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिक्स की रिपोर्ट का मानना है कि इंजीनियरिंग एक ऐसा क्षेत्र है जो बहुत तेजी से विकास कर रहा है। 

इस क्षेत्र में इंजीनियर को 3.5 से 4 लाख रुपए प्रतिवर्ष औसतन वेतन मिल सकता है। अधिकतम वेतन 12 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक हो सकता है।

कम्युनिकेशन इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले छात्र इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कालीकट से प्रोफेशनल कोर्स कर सकते हैं।

Wednesday, February 14, 2018

सिद्ध चिकित्सा में रोजगार के अवसर


  • सिद्ध शब्द का अर्थ है उपलब्धि। सिद्धकर्ता के रूप प्रसिद्ध संत-समुदाय ने विभिन्न युगों के दौरान सिद्ध चिकित्सा प्रणाली का विकास किया है। ‘सिद्धकर्ता शब्द’ की व्युत्पत्ति सिद्धि से हुइ है, जिसका अर्थ है ‘शाश्वत परमानंद सिद्धकर्ताओं ने जड़ी-बूटी औषधि में सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त किया और आध्यात्मिकता का भी ज्ञान फैलाया है। संक्षेप में सिद्ध औषधि का अर्थ है ‘ऐसी औषधि जो सदा अचूक है।


उद्भव एवं विकास


सिद्ध औषधि प्रणाली लगभग दस हजार वर्ष पुरानी है। सिद्ध प्रणली भारत में सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणाली है। इस चिकित्सा प्रणाली के विकास में अनेक सिद्धकर्ताओं में योगदान दिया है, जिनमें से 18 प्रख्यात सिद्धकर्ता है। इनमें अगस्तियार सबसे प्रमुख माने जाते हैं और सिद्ध औषधि में उनके द्वारा किया गया कार्य श्रेष्ठ माना जाता है। अगस्तियार को वही स्थान प्राप्त है जो औषधि के पितामह माने जाने वाले ग्रीक फिजिशियन हिप्पोक्रेट्स को प्राप्त था। तमिलनाडु में पलानी पर्वत औषधीय पौधों में प्रचुर है और यह सिद्धकर्ताओं की स्थली रहा है। सिद्ध औषधि साहित्य प्राचीन तमिल में उपलब्ध है और यह मुख्य रूप से भारत के दक्षिणी भाग में प्रचलित हैं।

मूल संकल्पना तथा सिद्धांत


सिद्धकर्ताओं की मूल संकल्पना भोजन ही औषधि है और औषधि ही भोजन भारतीय औषधि प्रणाली का आधार है। सिद्ध औषधि के अनुसार सात तत्व अर्थात प्लाविका, रक्त, मांसपेशी, वसा, अस्थि, स्नायु तथा शुक्र मानव शरीर के शारीरिक, शारीरिक क्रिया एवं मनोवैज्ञानिक कार्यों के आधार हैं। ये सातों तत्व तीन तत्वों अर्थात वायु, अग्नि या ऊर्जा तथा जल द्वारा सक्रिय होते हैं। माना जाता है कि सामान्यतः ये तीनों तत्व हमारे शरीर में एक विशेष अनुपात में होते हैं। जब हमारे शरीर में इन तीनों तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तब विभिन्न रोग होते हैं। हमारे शरीर में इन तत्वों को प्रभावित करने वाले कारक हैं:- पथ्य या आहार, शारीरिक गतिविधियां पर्यावरण तथ्य एवं तनाव। 

अन्य भारतीय औषधि प्रणालियों की तुलना में सिद्ध औषधि में धातुओं तथा खनिजों का प्रयोग प्रमुख हैं। शरीर में रोगों का पता लगाने के लिए नाड़ी पठन, शरीर को छूकर, आवाज, रंग, नेत्र, जिह्वा, पेशाब एवं शौच की जांच करना निदान के मुख्य आधार हैं। सिद्ध औषधि मर्मस्थानों के लिए भी उपयोग में लाई जाती है।

सिद्ध चिकित्सा चिकित्सा अवधि के दौरान रोगियों को ‘‘क्या करें और क्या न करें’’ का पालन करने की भी शिक्षा देती है। सिद्ध चिकित्सा उपचार का ध्येय शरीर में तीन तत्वों का संतुलन बनाए रखकर सात तत्वों को सामान्य स्थिति में रखना है ताकि शरीर एवं मस्तिष्क स्वस्थ रह सकें। 

औपचारिक चिकित्सा शिक्षा 


सिद्ध चिकित्साकर्ता बनने के लिए एक औपचारिक चिकित्सा शिक्षा अनिवार्य है। ऐसे कई सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय हैं जो निम्नलिखित अधिस्नातक डिग्री देते हैं, जैसे-सिद्ध औषधि एवं शल्य चिकित्सा स्नातक (बी.एस. एम.एस.) यह 5-1/2 वर्षीय पाठ्यक्रम है, जिसमें छह महीने या एक वर्ष की इंटर्नशिप अवधि भी शामिल है। इस पाठ्यक्रम को पूरा करने के बाद कोई भी व्यक्ति सिद्ध औषधि में स्नातकोत्तर डिग्री अर्थात एम.डी. (सिद्ध) कर सकता है, जो 3 वर्षीय पाठ्यक्रम है। बी.एस.एम.एस. पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए न्यूनतम पात्रता भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव-विज्ञान, या वनस्पति विज्ञान, तथा प्राणिविज्ञान विषयों के साथ हायर सेकेण्डरी पाठ्यक्रम (10+2) है। इस पाठ्यक्रम के लिए प्रवेश/चयन सामान्यतः एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के आधार पर किया जाता है। सिद्ध चिकित्सा में अधिस्नातक और/या स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाने वाले राजकीय तथा निजी चिकित्सा महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों तथा संस्थाओं की सूची नीचे दी गई हैं:- 

1. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, अरुम्पक्कम, चेन्नई -600106 (बी.एस.एम.एस तथा एम.डी.सिद्ध, दोनों पाठ्यक्रम चलाता है) 
2. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलायम कोट्टई 627002, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस एवं एम.डी सिद्ध) 
3. राष्ट्रीय सिद्ध संस्थान, तम्बरम सेनेटोरियम, चेन्नई -600047 (एम.डी.सिद्ध) 
4. तमिलनाडु डॉ.एम.जी.आर. चिकित्सा विश्वविद्यालय, 69, अन्ना सलै, ग्विन्डी, चेन्नई-600032 (एम.डी. सिद्ध) 
5. राजकीय सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, पलानी-624601, डिंडगिल जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.) 
6. श्री साईराम सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, साई लियोनगर पूंथन्डलम, पश्चिम तंबरम, चैन्नई-600044 (बी.एस. एम.एस.) 
7. आर.वी.एस.सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय तथा अस्पताल, कुमारम, कोट्टम, कन्नमपलायम, कोयम्बत्तूर-641402, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.) 
8. ए.टी.एस.वी.एस. सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, मुंचीरई, पुडुक्कइड-डाक, कन्याकुमारी जिला, तमिलनाडु-पिन-629171 (बी.एस.एम.एस) 
9. वेलु मैलु सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, नं.-48, ग्रैंड वेस्ट ट्रंक रोड, श्रीपेरुम्बुदूर-602105, कांचीपुरम जिला, तमिलनाडु (बी.एस.एम.एस.) 
10. सिवराज सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सिद्धार कोविल रोड, थुंवाथुलीपट्टी, सलेम-636307, तमिलनाडु (बी. एस.एम.एस) 
11. सांथिगिरि सिद्ध चिकित्सा महाविद्यालय, सांथिगिरि डाकघर, पोथेन्कोड, तिरुवनंतपुरम-695584, केरल (बी.एस. एम.एस) 

(सूची केवल उदाहरण है) 

सिद्ध चिकित्सा प्रणाली कई तरह से अद्वितीय है, जो कई खतरनाक रोगों को ठीक कर सकती है। इसके श्रेष्ठ संभावित उपयोग के लिए इसे आम जनता में लोकप्रिय किए जाने की आवश्यकता है। मानवता को दर्दनाक रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए अधिकाधिक सिद्ध डॉक्टरों की आवश्यकता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज अधिक से अधिक सिद्ध चिकित्सा कॉलेजों/विश्वविद्यालयों, अनुसंधान संस्थाओं की आवश्यकता है। इसलिए सुझाव है कि भारत के बड़े शहरों या नहीं तो कम से कम महानगरों में अधिकाधिक ऐसी शैक्षिक तथा अनुसंधान संस्थाएं खोली जाएं जो सिद्ध औषधि दे सकें और जो समाज को व्यापक स्तर पर रोगमुक्त रखने में योगदान देंगी।

कार्य-अवसर 


सिद्ध चिकित्सा एक वैकल्पिक औषधि प्रणाली होने तथा आधुनिक औषधि की तुलना में न्यूनतम अन्य विपरीत प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) वाली होने के कारण आज भारत तथा विदेश-दोनों में व्यापक लोकप्रियता प्राप्त कर रही है। कोई भी व्यक्ति इसे अध्यापन या अनुसंधान के क्षेत्रा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर के रूप में चुन सकता है। सिद्ध चिकित्सा में कॅरिअर चुनने वालों के लिए रोज़गार के व्यापक अवसर उपलब्ध हैं। अपनी योग्यता तथा अनुभव के आधार पर कोई भी व्यक्ति देश के विभिन्न स्थानों में स्थित विभिन्न सरकारी तथा निजी अस्पतालों, क्लीनिक्स, नर्सिंग होम्स, स्वास्थ्य विभागों, चिकित्सा महाविद्यालयों, औषधि अनुसंधान संस्थानों, भेषज उद्योगों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। कोई भी व्यक्ति सिद्ध क्लीनिक खोज कर सिद्ध-फिजिशियन के रूप प्राइवेट प्रेक्टिस भी कर सकता है।

Sunday, February 11, 2018

सॉइल साइंस में कॅरिअर

शिक्षण से लेकर रिसर्च और मिट्टी के संरक्षण से लेकर कंसल्टिंग जैसे कई अवसर कॅरिअर विकल्प के रूप में सॉइल साइंटिस्ट के लिए उपलब्ध हैं। एग्रीकल्चरल रिसर्च काउंसिल अपने सभी रिसर्च संस्थानों के साथ मृदा वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी नियोक्ता है। इसके अलावा सॉइल साइंटिस्ट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, विश्वविद्यालयों, कृषि सहकारी समितियों, खाद निर्माताओं और रिसर्च संस्थानों के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। 

एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में मृदा एक अहम तत्व है। मृदा विज्ञान में मिट्टी का अध्ययन एक प्राकृतिक संसाधन के रूप में किया जाता है। इसके अंतर्गत मृदा निर्माण, मृदा का वर्गीकरण, मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों और उर्वरकता का अध्ययन किया जाता है। बीते सालों में फसल उत्पादन, वन उत्पाद और कटाव नियंत्रण में मिट्टी के महत्व को देखते हुए मृदा विज्ञान के क्षेत्र में रोजगार के ढेरों अवसरों का सृजन हुआ है। अब देश भर में बड़ी संख्या में सॉइल टेस्टिंग व रिसर्च लैबोरेट्रीज स्थापित हो रही हैं। इनमें से हरेक को प्रशिक्षित पेशेवरों की जरूरत होती है, जो मिट्टी के मापदंडों का मूल्यांकन कर सकें ताकि उसकी गुणवत्ता को सुधारा जा सके। ऐसे में यह क्षेत्र रोजगार के अवसरों से भरपूर है।

क्या करते हैं सॉइल साइंटिस्ट


सॉइल साइंटिस्ट या मृदा वैज्ञानिक का प्राथमिक काम फसल की बेहतरीन उपज के लिए मृदा का विश्लेषण करना है। मृदा वैज्ञानिक मृदा प्रदूषण का विश्लेषण भी करते हैं, जो उर्वरकों और औद्योगिक अपशिष्ट से उत्पन्न होता है। इन अपशिष्टों को उत्पादक मृदा में परिवर्तित करने के लिए उपयुक्त तरीके और तकनीकियां भी वे विकसित करते हैं। इन पेशेवरों के वर्क प्रोफाइल में बायोमास प्रॉडक्शन के लिए तकनीकियों का इस्तेमाल शामिल है। वनस्पति पोषण, वृद्धि व पर्यावरण गुणवत्ता के लिए भी वे काम करते हैं। उर्वरकों का उपयोग सुझाने में भी मृदा वैज्ञानिक की भूमिका अहम होती है। सॉइल साइंस प्रोफेशनल मृदा प्रबंधन पर मार्गदर्शन करते हैं। चूंकि मृदा वैज्ञानिक रिसर्चर, डवलपर और एडवाइजर होते हैं, इसलिए वे अपने ज्ञान का इस्तेमाल बेहतरीन मृदा प्रबंधन के लिए करते हैं। मिट्टी की उर्वरकता और पानी के सही इस्तेमाल के लिए वे सलाह देते हैं। मिट्टी के अधिकतम सही उपयोग के लिए भी मृदा वैज्ञानिक जिम्मेदार होते हैं। मृदा क्षरण को वे रोकते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं कि मिट्टी की उर्वरकता बरकरार और बेहतर रहे। मृदा वैज्ञानिक फील्ड के साथ-साथ लैबोरेट्री में काम करते हैं। वे डेटा बैंक, सिम्युलेशन मॉडल्स और कम्प्यूटर का उपयोग करते हैं।

क्या पढ़ना होगा


अध्ययन के मुख्य क्षेत्रों में सॉइल केमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, फिजिक्स, पेडोलॉजी, मिनरोलॉजी, बायोलॉजी, फर्टिलिटी, प्रदूषण, पोषण, बायोफर्टिलाइजर, अपशिष्ट उपयोगिता, सॉइल हेल्थ एनालिसिस शामिल हैं। छात्र सॉइल साइंस में बैचलर या मास्टर डिग्री ले सकते हैं। साथ ही वे सॉइल फॉर्मेशन (वह प्रक्रिया जिससे मिट्टी बनती है।), सॉइल क्लासिफिकेशन (गुणों के अनुसार मिट्टी का वर्गीकरण), सॉइल सर्वे (मिट्टी के प्रकारों का प्रतिचित्रण), सॉइल मिनरोलॉजी (मिट्टी की बनावट), सॉइल बायोलॉजी, केमिस्ट्री व फिजिक्स (मिट्टी के जैविक, रसायनिक व भौतिक गुण), मृदा उर्वरकता (मृदा में कितने पोषक तत्व है), मृदा क्षय जैसे क्षेत्रों में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं।

कॅरिअर के विकल्प


शिक्षण से लेकर रिसर्च और संरक्षण से लेकर कंसल्टिंग जैसे कई अवसर कॅरिअर विकल्प के रूप में मृदा वैज्ञानिकों के लिए उपलब्ध हैं। कृषि, वॉटर रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट्स, सॉइल एंड फर्टिलाइजर टेस्टिंग लैबोरेट्रीज, ट्रांसपोर्टेशन प्लानिंग, आर्कियोलॉजी, मृदा उत्पादकता, लैंडस्केप डवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में मृदा वैज्ञानिकों की खासी मांग है। क्रॉप एडवाइजर से लेकर संरक्षणकर्ता बनने तक सॉइल साइंस यानी मृदा विज्ञान में अनगिनत अवसर हैं। पर्यावरण और एग्रो-कंसल्टिंग फर्म्स में इस क्षेत्र के पेशेवरों की प्रबंधकीय और एग्जीक्यूटिव पदों पर खासी जरूरत है। ऐसा चलन न केवल भारत, बल्कि विदेशों में है। इस फील्ड में रिसर्च आपको आईसीएआर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक पहुंचता सकती है। इतना ही नहीं फसल उत्पादकता और मृदा स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए आने वाले सालों में अधिक रोजगार उत्पन्न होगा।

अवसर


एग्रीकल्चरल रिसर्च काउंसिल अपने सभी रिसर्च संस्थानों के साथ मृदा वैज्ञानिक की सबसे बड़ी नियोक्ता है। इसके अलावा मृदा वैज्ञानिक डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, विश्वविद्यालयों, कृषि सहकारी समितियों, खाद निर्माताओं और रिसर्च संस्थानों के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। मृदा वैज्ञानिक अपना व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं। वे एनालिस्ट या मृदा सर्वेक्षक और डवलपमेंट कंसल्टेंट के रूप में काम कर सकते हैं। वे अपने सेवाएं एग्रीकल्चरल इंडस्ट्री, डवलपमेंट, कॉपरेटिव, कॉमर्शिलय बैंक के कृषि विभागों को दे सकते हैं।

यहां से करें कोर्स


इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूसा
http://www.iari.res.in/

तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर
http://www.tnau.ac.in/

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना
http://www.pau.edu/

यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता, कोलकाता
http://www.caluniv.ac.in/

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
http://www.bhu.ac.in/

Saturday, February 10, 2018

लैंडस्केपिंग में करियर

अगर आप बिल्डिंग निर्माण के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो लैडस्केपिंग आर्किटेक्चर आपके करियर के लिए बेहतर विकल्प होगा. यह क्षेत्र समय के साथ तेजी से विकास कर रहा है. अब बिल्डिंगों के इंटीरियर डिजाइन पर जितना ध्यान दिया जाता है उतना ही बिल्डिंग के आस-पास के आर्किटेक्चर पर.
क्या है लैंडस्केपिंग आर्किटेक्चर?
इसमें मुख्य रूप से बिल्डिंग के आउटडोर पब्लिक एरिया को प्राकृतिक रूप से डिजाइन किया जाता है, जिसमें वाटर बॉडी, स्टोन, टाइल्स, पेड़-पौधे को आकर्षक बनाया जाता है.
संबंधित कोर्स: इस कोर्स को करने के लिए साइंस स्ट्रीम से 12वीं पास होना जरूरी है. जिसके बाद आप इस विषय में ग्रेजुएशन तथा पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर सकते हैं. लैंडस्केपिंग कोर्स से जुड़े अन्य कोर्सेज बीआर्क, बीएससी, एग्रीकल्चर में भी एडमिशन ले सकते हैं.
कहां से करें पढ़ाई?
सेंटर फॉर एनवॉयरमेंट प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद
स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर, नई दिल्ली
एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग, नोएडा
डॉ. भानुबेन नानावती कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर फॉर वुमन, पुणे
डॉ. वाईएसपी इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टिकल्चर एंड फॉरेस्टी, सोलन (हिमाचल प्रदेश)
कहां मिलेंगे अवसर:
इस क्षेत्र में निजी सेक्टरों में ज्यादा जॉब की संभावना रहती है. इस क्षेत्र में कंस्ट्रक्शन कंपनियों, हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म कंपनियों, फर्म्स में रोजगार पाने के भरपूर मौके हैं. अगर आप चाहें तो कॉन्ट्रैक्ट लेकर भी अपने हिसाब से काम कर सकते हैं. प्राइवेट के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी अब अधिक से अधिक में रोजगार मिलने की संभावना बन रही है.

Wednesday, February 7, 2018

कमर्शियल पायलट में करियर

कमर्शियल पायलट का काम बेशक रोमांचकारी है, पर यह बेहद जिम्मेदारी और समझदारी की मांग भी करता है। यदि आप इस जिम्मेदारी को उठाने का साहस खुद में पाते हैं तो एविएशन क्षेत्र का यह महत्वपूर्ण काम आपको एक अच्छा करियर बनाने का अवसर प्रदान कर सकता है। कैसे, बता रहे हैं वेदव्रत काम्बोज
एविएशन सेक्टर में हाल की तमाम उठा-पटक के बावजूद भारत में यह क्षेत्र तेजी से विकास कर रहा है। यदि इस विकास को आंकड़ों में आंका जाए तो यह सेक्टर 25 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है। नई-पुरानी लगभग सभी एयरलाइंस जहाजों के नए बेड़े बनाने में जुटी हैं। इसके अलावा देश के बड़े उद्योगपतियों का निजी विमान रखने की ओर रुझान बढ़ रहा है। जब इंडस्ट्री विकास करेगी और विमानों की संख्या में इजाफा होगा तो कमर्शियल पायलटों की मांग भी बढ़ेगी। फिलहाल भारत में कमर्शियल पायलट मांग के हिसाब से काफी कम हैं। परिणामस्वरूप उपलब्ध पायलटों को ऊंचे से ऊंचे वेतन पर रखा जा रहा है। अगर आपने 12वीं साइंस (फिजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथमेटिक्स) से की हुई है या करने जा रहे हैं तो आपके लिए यहां अच्छे अवसर हैं।
एक कमर्शियल पायलट का काम हालांकि काफी रोमांच से भरा होता है, लेकिन इसमें जिम्मेदाराना सोच और समझदारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रोमांच इस रूप में कि पायलट को देश-विदेश में घूमने का अवसर मिलता है, उसकी जीवनशैली काफी आकर्षक होती है, वेतन और भत्ते भरपूर होते हैं और जिम्मेदारी इस रूप में कि उसे रोजाना जटिल मशीनों से जूझना पड़ता है, सैकड़ों यात्रियों की सुरक्षित यात्रा का दबाव रहता है, आकाश में उड़ते समय सामने आने वाले तमाम खतरों से जूझना होता है। पर विमान की सफल लैंडिंग गर्व और सम्मान का अनुभव कराती है।
एक कमर्शियल पायलट सभी तरह के एयरक्राफ्ट जैसे विशाल पैसेंजर जेट, कार्गो और चार्टर्ड विमान उड़ाता है। विमान का सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति होता है पायलट। उसका काम बेहद विशेषज्ञतापूर्ण होता है। उसमें एयर नेविगेशन का ज्ञान, मौसम संबंधी रिपोर्टो की व्याख्या, इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल कंट्रोल को हैंडल करने की दक्षता, विभिन्न हवाई अड्डों के कंट्रोल टावरों से संपर्क और विपरीत परिस्थितियों में विमान का नेतृत्व करने का सामथ्र्य होना चाहिए। विमान का कैप्टन क्रू रिसोर्स मैनेजमेंट और ग्राउंड स्टाफ, केबिन क्रू, यात्रियों, कैटरिंग स्टाफ, विमान इंजीनियरों, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर और अन्य एजेंसीज से सामन्जस्य बना कर रखता है।
पायलट बनने की यात्रा
कमर्शियल पायलट का स्थान कॉकपिट में होता है, लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए उसे पहले स्टूडेंट पायलट लाइसेंस (एसपीएल), फिर प्राइवेट पायलट लाइसेंस (पीपीएल) और इसके बाद कमर्शियल पायलट लाइसेंस (सीपीएल) प्राप्त करना होता है। इसके बाद ही वह व्यावसायिक रूप से पायलट के रूप में कार्य कर सकता है। इस स्तर तक पहुंचने से पहले कुछ योग्यताओं का होना जरूरी है।
योग्यता
स्टूडेंट पायलट लाइसेंस (एसपीएल)

स्टूडेंट पायलट लाइसेंस (एसपीएल) पहला चरण है। इसे हासिल करने के लिए साइंस विषयों (फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथमेटिक्स) में कम से कम 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 पास होना जरूरी है। उम्र न्यूनतम 16 वर्ष होनी चाहिए और ऊंचाई न्यूनतम 5 फुट। आईसाइट 6/6 होनी चाहिए। यदि ये योग्यताएं आप में हैं तो आप किसी फ्लाइंग क्लब में एसपीएल के लिए रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं। यह क्लब डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सिविल एविएशन (डीजीसीए), गवर्नमेंट ऑफ इंडिया से मान्यताप्राप्त होना चाहिए। मान्यताप्राप्त फ्लाइंग क्लब की जानकारी के लिए आप डीजीसीए की वेबसाइट की सहायता ले सकते हैं। रजिस्ट्रेशन के लिए मेडिकल  सर्टिफिकेट, सिक्योरिटी क्लियरेंस और एक बैंक गारंटी का होना जरूरी है। एक ऑब्जेक्टिव टैस्ट होगा, जिसमें एयरक्राफ्ट, इंजिन और एयरोडायनेमिक्स की आधारभूत जानकारी की परख की जाती है। एसपीएल परीक्षा पूरे देश में आयोजित की जाती है। 23 फ्लाइंग क्लब एसपीएल जारी करते हैं। इसे करने में करीब एक लाख रुपए खर्च आता है।
प्राइवेट पायलट लाइसेंस (पीपीएल)
दूसरा चरण है प्राइवेट पायलट लाइसेंस। इसमें प्रैक्टिकल और थ्योरी, दोनों की परीक्षा होती है। पीपीएल की ट्रेनिंग में साठ घंटों की उड़ान शामिल है, जिसमें लगभग 15 घंटों की डय़ूल फ्लाइट है, जो फ्लाइट इंस्ट्रुक्टर के साथ करनी होती है। तकरीबन तीस घंटों की सोलो फ्लाइट्स और लगभग पांच घंटों की क्रॉस कंट्री फ्लाइट होती हैं। इसमें सफलता के बाद पीपीएल परीक्षा के योग्य मान लिया जाता है। इस परीक्षा में एयर रेगुलेशन, एविएशन मीटरोलॉजी, एयर नेविगेशन, एयरक्राफ्ट इंजन और जहाजरानी के बारे में पूछा जाता है। इस परीक्षा को पास करने की उम्र है 17 साल। शैक्षणिक योग्यता है 10+2 और एक मेडिकल सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है, जिसे आम्र्ड फॉर्स सेंट्रल मेडिकल एस्टेब्लिशमेंट (एएफसीएमई) जारी करता है। पीपीएल के लिए दो लाख से पांच लाख के बीच खर्च आता है।
कमर्शियल पायलट लाइसेंस (सीपीएल)
कमर्शियल पायलट लाइसेंस पीपीएल प्राप्त करने के बाद ही हासिल किया जा सकता है। सीपीएल हासिल करने के लिए 250 घंटों की फ्लाइंग जरूरी है (इसमें साठ घंटों की पीपीएल फ्लाइंग भी शामिल है)। इसके अलावा आपको एक मेडिकल फिटनेस टैस्ट भी देना होगा, जो नई दिल्ली में होता है। एक परीक्षा भी देनी होती है, जिसमें एयर रेगुलेशन्स, एविएशन मीटरोलॉजी, एयर नेविगेशन, टेक्निकल, प्लानिंग और रेडियो तथा वायरलेस ट्रांसमिशन के रूप में कम्युनिकेशन की परीक्षा ली जाती है। सीपीएल प्राप्त करने के बाद आप ट्रेनी को-पायलट के रूप में काम कर सकते हैं। छह से आठ माह की ट्रेनिंग के बाद आप को-पायलट के रूप में काम कर सकते हैं। सीपीएल प्राप्त करने के लिए आठ लाख से पंद्रह लाख रुपए तक खर्च आ सकता है।
व्यक्तिगत गुण
यह अनुशासन, धैर्य, जिम्मेदारी, समयनिष्ठा, प्रतिबद्धता और आत्मविश्वास का क्षेत्र है। यह काम कठोर मेहनत, दिमागी सतर्कता, सहनशक्ति, मुश्किल टाइम शेडय़ूल के अनुसार काम करने की शक्ति और अच्छी टीम भावना की मांग करता है। यही वजह है कि आपको हर स्थिति में मानसिक रूप से सतर्क रहना होगा। साथ ही किसी आपातकालीन स्थिति में भावनात्मक रूप से स्थिर रहने का गुण भी होना चाहिए। इन तमाम विशेषताओं के अतिरिक्त अपने काम को व्यावसायिक रूप से करने की इच्छाशक्ति के अलावा आपको शांतचित्त, विनम्र, दयालु, उत्साही और तकनीकी रूप से सशक्त होना चाहिए।
जॉब संभावनाएं
भारत में एविएशन सेक्टर में प्राइवेटाइजेशन के साथ ही कमर्शियल पायलट के लिए अनेक मार्ग खुल गए हैं। वे सरकारी (एयर इंडिया) और प्राइवेट घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस (जेट एयरवेज आदि) में नौकरी की संभावनाएं तलाश सकते हैं। यहां तक कि बड़े कॉरपोरेट घरानों में जहां निजी प्रयोग के लिए विमान रखे हुए हैं, में भी मांग है। कमर्शियल पायलट लाइसेंसधारियों के लिए जॉब की शुरुआत ट्रेनी पायलट के रूप में होती है। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद आप पायलट या फस्र्ट ऑफिसर का पद प्राप्त कर सकते हैं। पदोन्नति फ्लाइंग के घंटों के अनुभव और विभिन्न प्रोग्राम्स को सफलतापूर्वक पूरा करने पर निर्भर करती है। इसके बाद आप कमांडर या कैप्टन का पद प्राप्त कर सकते हैं और उसके बाद सीनियर कमांडर का।
वेतन
ट्रेनी पायलट- 15,000 से 20,000
फर्स्ट ऑफिसर (जूनियर)- 1,00,000 और अधिक
फर्स्ट ऑफिसर (सीनियर)- 1,80,000 और अधिक
कमांडर- 2,50,000 और अधिक
यह हर ग्रेड में न्यूनतम वेतन है। वैसे यह पायलटों की मांग और उनकी योग्यता पर भी निर्भर करता है।
प्रमुख संस्थान
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान एकेडमी, सीएसएम नगर (रायबरेली)
वेबसाइट
:  www.igrua.gov.in
अहमदाबाद एविएशन एंड एरोनॉटिक्स, अहमदाबाद
वेबसाइट
www.aaa.co.in
करवर एविएशन, बारामती
वेबसाइट
www.lvpei.org
चाइम्स एविएशन एकेडमी, सागर
वेबसाइट
www.caindia.com
गुजरात फ्लाइंग क्लब, वडोदरा
वेबसाइट
www.gujaratflyingclub.com