Wednesday, September 30, 2015

सुगंध चिकित्सा में करियर

ब्रिटेन और यूरोप में लोकप्रियता हासिल करने के बाद सुगंध चिकित्सा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। जहां तक भारत की बात की है तो हमारी सभ्यता में प्राचीनकाल से ही सुगंध चिकित्सा का बोलबाला रहा है। आयुर्वेद में सुगंधित तेलों से शरीर की मालिश करने की विधि का उपयोग होता है। इसके अलावा इत्र, धूप, अगरबत्ती जैसी वस्तुएं भी भारतीय सभ्यता से बहुत लंबे समय से जुड़ी हुई हैं। आज सुगंध चिकित्सा पद्धति न सिर्फ इलाज, बल्कि रोजगार के लिहाज से भी भारत में व्यापक संभावनाओं से भरी है।

बढ़ती लोकप्रियता
प्राकृतिक चीजों के प्रति बढ़ते रुझान के कारण आज सेहत सुधार में भी सुगंध चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाने लगा है। भारत में सुगंध चिकित्सा के माध्यम से प्रकृति की ओर वापसी की धारणा को फिर से प्रचलित करने का श्रेय अगर किसी को दिया जाए तो इस कतार में शहनाज हुसैन, ब्लॉसम कोचर और भारती तनेजा जैसे नाम सामने आते हैं। वर्तमान में आलम यह है कि विज्ञान के विकास के चलते आज यह क्षेत्र बेहद विस्तृत हो गया है और एक इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो चुका है। आज भारी संख्या में लोग अपनी बीमारियों का इलाज प्राकृतिक सुगंध चिकित्सा में खोज रहे हैं। ऐसे में इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़े हैं।

पाठ्यक्रम और शैक्षणिक योग्यता
आज देश के कई शिक्षण संस्थानों ने इस विद्या का व्यावहारिक प्रशिक्षण शुरू कर दिया है। न केवल सरकारी, बल्कि कई गैर सरकारी संस्थान भी सुगंध चिकित्सा से जुड़े डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्स चला रहे हैं। इस थेरेपी से जुड़े सर्टिफिकेट स्तर के पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए शैक्षणिक योग्यता 12वीं है। लेकिन अगर आप डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करना चाहते हैं तो अधिकांश शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए आवेदक के पास 12वीं कक्षा में रसायन विज्ञान का होना जरूरी है। सुगंध चिकित्सा के कई प्रोफेशनल कोर्स में केवल केमिस्ट्री विषय के साथ स्नातक उत्तीर्ण विद्यार्थियों को ही प्रवेश दिया जाता है।

अवसर अनेक
सुगंध चिकित्सा का कोर्स करने के उपरांत वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल कर इलाज करने वाले अस्पतालों, अनुसंधान और विकास संगठनों, सुगंधित तेल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली कंपनियों, स्पा सेंटर, पांच सितारा होटलों, औषधि और पौष्टिक आहार बनाने वाली कंपनियों तथा सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में रोजगार की बेहतर संभावनाएं हैं।

प्रशिक्षण के उपरांत आप सुगंध चिकित्सक, सुगंधित पदार्थ विक्रेता, परामर्शदाता, सुगंधित पदार्थ के उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। अनुभव होने के बाद सुगंध चिकित्सक के रूप में स्वयं का क्लिनिक शुरू किया जा सकता है, जिसमें सौंदर्य की साज-संभाल के अलावा विभिन्न रोगों का इलाज भी किया जा सकता है। सुगंधित पदार्थ परामर्शदाता और इसके उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में भी कार्य किया जा सकता है।

मुख्य संस्थान
शहनाज हुसैन वुमंस इंटरनेशनल स्कूल ऑफ ब्यूटी, ग्रेटर कैलाश, नई दिल्ली
सुगंध और स्वाद विकास केंद्र, मार्कण्ड नगर, कन्नौज, उत्तर प्रदेश
पिवोट प्वॉइंट ब्यूटी स्कूल, कैलाश कॉलोनी, नई दिल्ली
दिल्ली स्कूल ऑफ मैनेजमेंट सर्विस, आकाशदीप बिल्डिंग, नई दिल्ली
वीजी वेज कॉलेज, केलकर एजुकेशन ट्रस्ट, मुंबई

Tuesday, September 29, 2015

वेडिंग प्लानर : करियर की शानदार प्लानिंग

आज के युग में युवा पीढी अपने करियर को लेकर सजग हो गयी है. हर कोई करियर के क्षेत्र में एक दूसरे से आगे बढना चाहता है. युवाओ के लिये करियर बनाने के लिये कई रास्ते है और वह किसी भी क्षेत्र को चुन कर अपना करियर बना सकता है. इंडियन वेडिंग इंडस्ट्री युवाओं के इन्हीं सपनों को पूरा करने का एक मौका दे रही है. आज बडी तादाद में युवा, वेडिंग प्लानर के तौर पर अपने करियर का आगाज कर रहे हैं, क्योंकि वेडिंग प्लानिंग में उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को पेश करने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.
आज के दौर में अगर आपके पास क्रिएटिव आइडिया है और उसे हकीकत में बदलने का हुनर आता है, तो अपनी मनपसंद फील्ड में ऊंची उडान भरने के लिए पूरा आकाश है. इन दिनों अधिकतर युवा अपने पैशन को फॉलो करते हुए ऎसा करियर चुन रहे हैं, जिसमें काम करने का अपना एक अलग मजा हो. जहां मेहनत हो, तो साथ में पैसा भी भरपूर हो.
कोर्स और ट्रेनिंग -
वैसे तो इस फील्ड में आने के लिए किसी विशेष एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्रेजुएशन करना अच्छा रहेगा. इंडिया में कुछ इंस्टीट्यूट्स हैं, जो वेडिंग प्लानिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स संचालित करते हैं. इसके अलावा, आप होटल मैनेजमेंट, इवेंट मैनेजमेंट या फ्लोरल मैनेजमेंट जैसे कोर्स करके भी इसमें एंट्री ले सकते हैं.
स्कोप इन इंडस्ट्री -
इंडिया में थीम या डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन तेजी से बढा है. लोग कुछ नया या भव्य करने के लिए खुलकर खर्च कर रहे हैं, उसे देखते हुए वेडिंग प्लानर की डिमांड भी बढने लगी है. ऎसे में जिन्हें भी नए-नए लोगों से मिलना, उनसे कॉन्टैक्ट स्थापित करना अच्छा लगता है, उनके लिए यह एक परफेक्ट प्रोफेशन है. वे चाहें, तो फ्लोरिस्ट, केटरर, फोटोग्राफर, ट्रैवल एजेंट आदि के रूप में भी काम कर सकते हैं या फिर कंसल्टेंसी या अपना स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं. इसके अलावा होटल, इवेंट मैनेजमेंट कंपनीज, वेडिंग प्लानर फम्र्स में भी हायरिंग होती है.
मंदी का खतरा नहीं -
इंडियन वेडिंग मार्केट करीब 25 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है. मैन्युफैक्चरर्स से लेकर रिटेलर्स तक, हर कोई वेडिंग सीजन का इंतजार करता है. इसके मद्देनजर वेडिंग इंडस्ट्री में कभी मंदी नहीं आ सकती है. लोग अब दिल खोलकर पैसे खर्च कर रहे हैं. ऎसे में पेशेवर वेडिंग प्लानर की डिमांड बढ़ रही है.
 
आज के युग में युवा पीढी अपने करियर को लेकर सजग हो गयी है. हर कोई करियर के क्षेत्र में एक दूसरे से आगे बढना चाहता है. युवाओ के लिये करियर बनाने के लिये कई रास्ते है और वह किसी भी क्षेत्र को चुन कर अपना करियर बना सकता है. इंडियन वेडिंग इंडस्ट्री युवाओं के इन्हीं सपनों को पूरा करने का एक मौका दे रही है. आज बडी तादाद में युवा, वेडिंग प्लानर के तौर पर अपने करियर का आगाज कर रहे हैं, क्योंकि वेडिंग प्लानिंग में उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को पेश करने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.
आज के दौर में अगर आपके पास क्रिएटिव आइडिया है और उसे हकीकत में बदलने का हुनर आता है, तो अपनी मनपसंद फील्ड में ऊंची उडान भरने के लिए पूरा आकाश है. इन दिनों अधिकतर युवा अपने पैशन को फॉलो करते हुए ऎसा करियर चुन रहे हैं, जिसमें काम करने का अपना एक अलग मजा हो. जहां मेहनत हो, तो साथ में पैसा भी भरपूर हो.
कोर्स और ट्रेनिंग -
वैसे तो इस फील्ड में आने के लिए किसी विशेष एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्रेजुएशन करना अच्छा रहेगा. इंडिया में कुछ इंस्टीट्यूट्स हैं, जो वेडिंग प्लानिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स संचालित करते हैं. इसके अलावा, आप होटल मैनेजमेंट, इवेंट मैनेजमेंट या फ्लोरल मैनेजमेंट जैसे कोर्स करके भी इसमें एंट्री ले सकते हैं.
स्कोप इन इंडस्ट्री -
इंडिया में थीम या डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन तेजी से बढा है. लोग कुछ नया या भव्य करने के लिए खुलकर खर्च कर रहे हैं, उसे देखते हुए वेडिंग प्लानर की डिमांड भी बढने लगी है. ऎसे में जिन्हें भी नए-नए लोगों से मिलना, उनसे कॉन्टैक्ट स्थापित करना अच्छा लगता है, उनके लिए यह एक परफेक्ट प्रोफेशन है. वे चाहें, तो फ्लोरिस्ट, केटरर, फोटोग्राफर, ट्रैवल एजेंट आदि के रूप में भी काम कर सकते हैं या फिर कंसल्टेंसी या अपना स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं. इसके अलावा होटल, इवेंट मैनेजमेंट कंपनीज, वेडिंग प्लानर फम्र्स में भी हायरिंग होती है.
मंदी का खतरा नहीं -
इंडियन वेडिंग मार्केट करीब 25 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है. मैन्युफैक्चरर्स से लेकर रिटेलर्स तक, हर कोई वेडिंग सीजन का इंतजार करता है. इसके मद्देनजर वेडिंग इंडस्ट्री में कभी मंदी नहीं आ सकती है. लोग अब दिल खोलकर पैसे खर्च कर रहे हैं. ऎसे में पेशेवर वेडिंग प्लानर की डिमांड बढ़ रही है.
- See more at: http://www.newstracklive.com/news/vedin-planning-created-in-their-careers-1003076-1.html#sthash.Sf4fZ7Oh.dpuf
आज के युग में युवा पीढी अपने करियर को लेकर सजग हो गयी है. हर कोई करियर के क्षेत्र में एक दूसरे से आगे बढना चाहता है. युवाओ के लिये करियर बनाने के लिये कई रास्ते है और वह किसी भी क्षेत्र को चुन कर अपना करियर बना सकता है. इंडियन वेडिंग इंडस्ट्री युवाओं के इन्हीं सपनों को पूरा करने का एक मौका दे रही है. आज बडी तादाद में युवा, वेडिंग प्लानर के तौर पर अपने करियर का आगाज कर रहे हैं, क्योंकि वेडिंग प्लानिंग में उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को पेश करने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.
आज के दौर में अगर आपके पास क्रिएटिव आइडिया है और उसे हकीकत में बदलने का हुनर आता है, तो अपनी मनपसंद फील्ड में ऊंची उडान भरने के लिए पूरा आकाश है. इन दिनों अधिकतर युवा अपने पैशन को फॉलो करते हुए ऎसा करियर चुन रहे हैं, जिसमें काम करने का अपना एक अलग मजा हो. जहां मेहनत हो, तो साथ में पैसा भी भरपूर हो.
कोर्स और ट्रेनिंग -
वैसे तो इस फील्ड में आने के लिए किसी विशेष एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्रेजुएशन करना अच्छा रहेगा. इंडिया में कुछ इंस्टीट्यूट्स हैं, जो वेडिंग प्लानिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स संचालित करते हैं. इसके अलावा, आप होटल मैनेजमेंट, इवेंट मैनेजमेंट या फ्लोरल मैनेजमेंट जैसे कोर्स करके भी इसमें एंट्री ले सकते हैं.
स्कोप इन इंडस्ट्री -
इंडिया में थीम या डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन तेजी से बढा है. लोग कुछ नया या भव्य करने के लिए खुलकर खर्च कर रहे हैं, उसे देखते हुए वेडिंग प्लानर की डिमांड भी बढने लगी है. ऎसे में जिन्हें भी नए-नए लोगों से मिलना, उनसे कॉन्टैक्ट स्थापित करना अच्छा लगता है, उनके लिए यह एक परफेक्ट प्रोफेशन है. वे चाहें, तो फ्लोरिस्ट, केटरर, फोटोग्राफर, ट्रैवल एजेंट आदि के रूप में भी काम कर सकते हैं या फिर कंसल्टेंसी या अपना स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं. इसके अलावा होटल, इवेंट मैनेजमेंट कंपनीज, वेडिंग प्लानर फम्र्स में भी हायरिंग होती है.
मंदी का खतरा नहीं -
इंडियन वेडिंग मार्केट करीब 25 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है. मैन्युफैक्चरर्स से लेकर रिटेलर्स तक, हर कोई वेडिंग सीजन का इंतजार करता है. इसके मद्देनजर वेडिंग इंडस्ट्री में कभी मंदी नहीं आ सकती है. लोग अब दिल खोलकर पैसे खर्च कर रहे हैं. ऎसे में पेशेवर वेडिंग प्लानर की डिमांड बढ़ रही है.
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आज के युग में युवा पीढी अपने करियर को लेकर सजग हो गयी है. हर कोई करियर के क्षेत्र में एक दूसरे से आगे बढना चाहता है. युवाओ के लिये करियर बनाने के लिये कई रास्ते है और वह किसी भी क्षेत्र को चुन कर अपना करियर बना सकता है. इंडियन वेडिंग इंडस्ट्री युवाओं के इन्हीं सपनों को पूरा करने का एक मौका दे रही है. आज बडी तादाद में युवा, वेडिंग प्लानर के तौर पर अपने करियर का आगाज कर रहे हैं, क्योंकि वेडिंग प्लानिंग में उन्हें अपनी क्रिएटिविटी को पेश करने का सुनहरा अवसर मिल रहा है.
आज के दौर में अगर आपके पास क्रिएटिव आइडिया है और उसे हकीकत में बदलने का हुनर आता है, तो अपनी मनपसंद फील्ड में ऊंची उडान भरने के लिए पूरा आकाश है. इन दिनों अधिकतर युवा अपने पैशन को फॉलो करते हुए ऎसा करियर चुन रहे हैं, जिसमें काम करने का अपना एक अलग मजा हो. जहां मेहनत हो, तो साथ में पैसा भी भरपूर हो.
कोर्स और ट्रेनिंग -
वैसे तो इस फील्ड में आने के लिए किसी विशेष एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं होती, लेकिन ग्रेजुएशन करना अच्छा रहेगा. इंडिया में कुछ इंस्टीट्यूट्स हैं, जो वेडिंग प्लानिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा कोर्स संचालित करते हैं. इसके अलावा, आप होटल मैनेजमेंट, इवेंट मैनेजमेंट या फ्लोरल मैनेजमेंट जैसे कोर्स करके भी इसमें एंट्री ले सकते हैं.
स्कोप इन इंडस्ट्री -
इंडिया में थीम या डेस्टिनेशन वेडिंग का चलन तेजी से बढा है. लोग कुछ नया या भव्य करने के लिए खुलकर खर्च कर रहे हैं, उसे देखते हुए वेडिंग प्लानर की डिमांड भी बढने लगी है. ऎसे में जिन्हें भी नए-नए लोगों से मिलना, उनसे कॉन्टैक्ट स्थापित करना अच्छा लगता है, उनके लिए यह एक परफेक्ट प्रोफेशन है. वे चाहें, तो फ्लोरिस्ट, केटरर, फोटोग्राफर, ट्रैवल एजेंट आदि के रूप में भी काम कर सकते हैं या फिर कंसल्टेंसी या अपना स्टार्ट-अप शुरू कर सकते हैं. इसके अलावा होटल, इवेंट मैनेजमेंट कंपनीज, वेडिंग प्लानर फम्र्स में भी हायरिंग होती है.
मंदी का खतरा नहीं -
इंडियन वेडिंग मार्केट करीब 25 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है. मैन्युफैक्चरर्स से लेकर रिटेलर्स तक, हर कोई वेडिंग सीजन का इंतजार करता है. इसके मद्देनजर वेडिंग इंडस्ट्री में कभी मंदी नहीं आ सकती है. लोग अब दिल खोलकर पैसे खर्च कर रहे हैं. ऎसे में पेशेवर वेडिंग प्लानर की डिमांड बढ़ रही है.

Sunday, September 27, 2015

साउंड इंजीनियरिंग: करियर की मीठी धुन

अगर आपको इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर काम करने में आनंद आता है, म्यूजिक और साउंड इफेक्ट्स आपको आकर्षित करते हैं तो आप साउंड इंजीनियिरग के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। यह प्रोफेशन अपने अंदर कई खूबियों को समेटे है। इसमें करियर की संभावनाओं के बारे में बता रही हैं नमिता सिंह

करीब पांच साल पूर्व डैनी बॉयल की स्लमडॉग मिलियनेयर ने शानदार तरीके से म्यूजिक एवं साउंड का अवॉर्ड जीता। इस उपलब्धि से देश को न सिर्फ शानदार म्यूजिक बनाने वाली शक्ति के रूप में जाना गया, बल्कि इस फिल्म ने लोगों को साउंड इंजीनियिरग जैसे प्रोफेशन के प्रति आकर्षित भी किया। आज यह प्रोफेशन अपनी अलग पहचान बना चुका है और लोग इस ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।

क्या है साउंड इंजीनियरिंग
सिनेमैटोग्राफर एवं कैमरामैन की तरह साउंड इंजीनियरों को भी डायरेक्टर के धुंधले विचारों को मूर्त रूप देना होता है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक व मैकेनिकल उपकरणों की सहायता से किसी भी आवाज को कैप्चर करने, रिकॉर्डिंग करने, कॉपी करने, उनमें एडिटिंग करने, मिक्सिंग करने एवं उसे नया रूप देने सरीखे कार्य किए जाते हैं। इसके अंतर्गत प्रोडक्शन एवं पोस्ट प्रोडक्शन जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाता है। प्रोडक्शन में किसी भी घटना अथवा कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग की जाती है, जबकि पोस्ट प्रोडक्शन में रिकॉर्डिग किए गए मटेरियल को अंतिम रूप दिया जाता है। फिल्म में लोकेशन पर पहुंच कर आवाज को रिकॉर्ड करना होता है। उसके बाद इंजीनियरों द्वारा उसमें साउंड इफेक्ट्स डाले जाते हैं। म्यूजिक इंजीनियर, इफेक्ट्स इंजीनियर, री-रिकॉर्डिंग मिक्सर आदि उसमें अपनी क्रिएटिविटी दिखाते हैं। सामान्यत: इस इंडस्ट्री में लोग फिल्मी स्कूल से आते हैं, फिर भी कला के धनी लोगों के लिए रास्ते खुले हुए हैं।

कोर्स से मिलती है सहायता
साउंड इंजीनियिरग कोर्स के दौरान उन सभी तकनीकी एवं रोचक बिन्दुओं को बताया जाता है, जो साउंड रिकॉर्डिग, एडिटिंग एवं मिक्सिंग में प्रयोग किए जाते हैं। इसमें छात्र बेसिक थ्योरी एवं आवाज की फ्रीक्वेंसी से लेकर रिकॉर्डिग की बारीकियों, पोस्ट प्रोडक्शन, लाइव साउंड एवं ब्रॉडकास्टिंग में सहायक बनने आदि का गुण सीखते हैं।

यह कोर्स सिर्फ साउंड मिक्सिंग, स्पेशल इफेक्ट्स देने जैसे तकनीकी बिन्दुओं में ही पारंगत नहीं बनाता, बल्कि कोर्स के दौरान छात्र रिकॉर्डिंग टूल्स एवं माइक्रोफोन आदि का प्रयोग भी कुशलता से करना सीखते हैं।

किस रूप में हैं अवसर
स्टूडियो इंजीनियर
साउंड रिकॉर्डिस्ट
ब्रॉडकास्ट इंजीनियर
साउंड एडिटर
री-रिकॉर्डिंग मिक्सर
डायलॉग एडिटर
म्यूजिक एडिटर
साउंड इफेक्ट्स एडिटर
मास्टरिंग इंजीनियर
लोकेशन साउंड इंजीनियर

काम का समय
इस क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को लंबी अवधि तक काम करने के लिए खुद को तैयार रखना पड़ता है, क्योंकि कार्य दोपहर से शुरू होकर मध्यरात्रि तक चलता है, जबकि फिल्मों में यह टाइमिंग शूटिंग शेडय़ूल एवं पोस्ट प्रोडक्शन के हिसाब से तय होता है।

शैक्षिक योग्यता
इसमें करियर आरंभ करने के लिए सबसे पहला कदम साउंड इंजीनियरिंग में डिग्री अथवा डिप्लोमा का होना आवश्यक है। साइंस बैकग्राउंड इसमें छात्रों की अधिक मदद कर सकता है, क्योंकि इसके जरिए तकनीकी चीजों को आसानी से हैंडिल किया जा सकता है। हालांकि यह जरूरी भी नहीं है। जो भी कोर्स चलन में हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि छात्रों के लिए ग्रेजुएशन के बाद ही राह खुलती है।

आवश्यक स्किल्स
इस क्षेत्र में प्रवेश करने के इच्छुक लोगों की म्यूजिक में रुचि होनी आवश्यक है। साथ ही यह टेक्निकल नॉलेज एवं क्रिएटिविटी का संयोजन भी मांगता है।

इसके अलावा इलेक्ट्रिक, इलेक्ट्रॉनिक एवं मैकेनिकल उपकरणों के साथ काम करने का लगाव भी छात्र को आगे तक ले जाता है। इसमें सफलता की बुनियाद काफी हद तक टीम वर्क के आधार पर रखी जाती है। अत: छात्र में कम्युनिकेशन स्किल्स का होना बहुत जरूरी है।

एजुकेशन लोन
छात्रों को प्रमुख राष्ट्रीयकृत, प्राइवेट अथवा विदेशी बैंकों द्वारा एजुकेशन लोन प्रदान किया जाता है। छात्र को जिस संस्थान में एडमिशन कराना होता है, वहां से जारी एडमिशन लेटर, हॉस्टल खर्च, ट्यूशन फीस एवं अन्य खचरें को ब्योरा बैंक को देना होता है। अंतिम निर्णय बैंक को करना होता है।

संभावनाएं
कोर्स करने के पश्चात फिल्म, टीवी, रेडियो, एडवरटाइजिंग एवं ब्रॉडकास्टिंग, मल्टीमीडिया आर्गेनाइजेशन आदि में जॉब कर सकते हैं। इसमें छात्र सर्वप्रथम रिकॉर्डिग इंजीनियर के असिस्टेंट के तौर पर करियर आरंभ कर सकते हैं। अनुभव बढ़ने के साथ साउंड की विभिन्न विधाओं में पारंगतता हासिल हो जाती है, जिसके पश्चात खुद का रिकॉर्डिंग स्टूडियो स्थापित किया जा सकता है।

वेतनमान
रेडियो, टीवी आदि में ज्वाइन करने पर सेलरी 10,000 से 15,000 रुपए प्रतिमाह अर्जित की जा सकती है। फिल्मों में ज्वाइन करने पर करीब 1500 से 6000 रुपए प्रतिदिन मिल सकते हैं। यह आमदनी फिल्म के बजट के हिसाब से तय होती है। धीरे-धीरे जब इस क्षेत्र में उनका नाम हो जाता है, तब उस दौरान पैसे की कोई बाधा सामने नहीं आती।

सक्सेस स्टोरी
प्रेक्टिकल नॉलेज आती है काम
मैं गुड़गांव का रहने वाला हूं। बारहवीं के बाद मैंने पुणे स्थित एक संस्थान से बीटेक कोर्स ज्वाइन किया। कोर्स के दौरान मुझे इंजीनियरिंग के कई अन्य विकल्पों के बारे में पता चला। कोर्स समाप्त होते ही मैं गुड़गांव चला आया और नौकरी तलाशनी शुरू की। नौकरी में शुरू से ही मेरा मन नहीं लगता था। मेरी ज्यादा रुचि म्यूजिक में थी। फिर मैंने सोचा कि क्यों न साउंड इंजीनियरिंग में ही करियर बनाया जाए। मैंने घर बैठ कर ही इंटरनेट आदि के सहारे इसकी पढ़ाई और बेसिक चीजों को जानना शुरू कर दिया। फिर यूके जाकर मास्टर डिग्री हासिल की। इसके अलावा बारीकियों से अवगत होने के लिए बर्कले से तीन माह का ऑनलाइन शॉर्ट टर्म कोर्स भी किया। नौकरी के चक्कर में न पड़ कर मैंने गुड़गांव में ही अपना स्टूडियो लगा लिया। आज मेरे पास तीन साल से भी ज्यादा का अनुभव हो गया है। मैं इस प्रोफेशन से पूरी तरह से संतुष्ट हूं। इस क्षेत्र में आने वाले छात्रों से मैं यही कहूंगा कि कोर्स के दौरान प्रेक्टिकल नॉलेज जरूर हासिल करें।
नितिन गुप्ता, साउंड इंजीनियर, गुड़गांव

एक्सपर्ट्स व्यू
कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है
कोर्स समाप्त कर इस इंडस्ट्री में आने वाले छात्रों को पहले छह माह की ट्रेनिंग लेनी होती है। साथ ही इसमें कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि स्टूडियो अथवा सेट पर परिस्थितियां बदलती रहती हैं तथा कदम-कदम पर सावधानी बरतनी पडम्ती है। बारीक से बारीक चीजों पर पैनी नजर रखनी पड़ती है। काम के दौरान एक प्रतिशत की लापरवाही भी आपको बाहर का रास्ता दिखा सकती है। इस क्षेत्र में काम बहुत है। बस आपके सम्पर्क अच्छे होने चाहिए। यदि आपका काम अच्छा है और आप मेहनती हैं तो कम्पनी आपको कभी अपने से दूर नहीं जाने देगी। लड़कियों के लिए इस क्षेत्र में कोई मनाही नहीं है, लेकिन उनकी संख्या कम ही देखने को मिलती है।
सैफ, साउण्ड एडिटर, मुंबई

फैक्ट फाइल
प्रमुख संस्थान

फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंडिया, पुणे
वेबसाइट: www.ftindia.com
सत्यजीत राय फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटय़ूट, कोलकाता
वेबसाइट: www.srfti.gov.in
एमजीआर गवर्नमेंट फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटय़ूट, चेन्नई
एशियन एकेडमी ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, नोएडा
वेबसाइट: www.aaft.com
गवर्नमेंट फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीटय़ूट, बेंगलुरू
केल्ट्रॉन एडवांस्ड ट्रेनिंग सेंटर, त्रिवेंद्रम
विस्लिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई

फायदे व नुकसान
चुनौतीपूर्ण एवं रोचकता से भरा काम
एक समय के बाद आकर्षक सेलरी पैकेज
जरा-सी लापरवाही से भारी नुकसान
संतुष्टि न होने पर लम्बे समय तक कार्य


Saturday, September 26, 2015

होम साइंस में भी संभव है बेहतर कॅरियर और रोजगार की तलाश

दसवीं या बारहवीं पास करने वाले छात्रों के लिए साइंस, कॉमर्स और ह्यूमेनिटीज स्ट्रीम के बाद होम साइंस के रूप में एक और विकल्प होता है। करियर के लिहाज से यह विकल्प छात्रों और अभिभावकों के बीच बहुत ज्यादा चर्चित नहीं है। इसकी वजह कुछ गलत धारणाएं हैं, जो होम साइंस स्ट्रीम में मौजूद अवसरों की जानकारी न होने से छात्रों और अभिभावकों में बनी हैं। आज के कॉलम में पढ़िए होम साइंस स्ट्रीम और उससे जुड़े तरक्की के आयामों के बारे में।
क्या है होम साइंस स्ट्रीम
यह एक ऐसी स्ट्रीम है, जिसे भ्रांतिवश सही संदर्भो में न समझकर सिर्फ लड़कियों के लिए मान लिया जाता है। काफी अभिभावक लड़कियों की शिक्षा को जरूरी मानते हैं, लेकिन वह इससे भी ज्यादा अहमियत इस बात को देते हैं कि लड़कियां घर और उसके कामकाज को संभालन में ज्यादा कुशल हों। होम साइंस की पढ़ाई में होम मैनेजमेंट के प्रशिक्षण के अलावा कई तरह के रोजगारों में उपयोगी कौशल का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। इसलिए यह कहना ठीक नहीं है कि यह स्ट्रीम सिर्फ लड़कियों के लिए ही उपयोगी है। इस स्ट्रीम के तहत मिलने वाले प्रशिक्षण का लाभ लड़के भी रोजगार कुशलता (इंप्लॉयबिलिटी स्किल) बढ़ाने में कर सकते हैं।
बदलती सामाजिक परिस्थितियों में घर और पारिवारिक जीवन के कल्याण और उनकी देखरेख के लिए आधुनिक ढंग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से युक्त होम मैनेजमेंट जरूरी है। इस जरूरत को पूरा करने की शिक्षा और उपयोगी प्रशिक्षण देने का कार्य होम साइंस करता है। यह ‘बेहतर जीवनशैली’ पर केंद्रित शिक्षा है और इसकी अवधारणा का मूल बिंदु पारिवारिक पारिस्थितिकी (इकोसिस्टम) का निर्माण है।
होम साइंस का विषय क्षेत्र
इस स्ट्रीम के पाठय़क्रम में साइंस और ह्यूमेनिटीज के विषय भी शामिल होते हैं। इस कारण इस स्ट्रीम का अध्ययन क्षेत्र काफी व्यापक होता है। इसमें केमिस्ट्री, फिजिक्स, फिजियोलॉजी, बायोलॉजी, हाइजिन, इकोनॉमिक्स, रूरल डेवलपमेंट, चाइल्ड डेवलपमेंट, सोशियोलॉजी एंड फैमिली रिलेशन्स, कम्यूनिटी लिविंग, आर्ट, फूड, न्यूट्रिशन, क्लॉथिंग, टेक्सटाइल्स और होम मैनेजमेंट आदि विषय शामिल होते हैं।
10वीं के बाद है उपलब्ध
विषय के रूप में होम साइंस सीबीएसई और ज्यादातर राज्य बोर्डो में 11वीं और 12वीं कक्षा के स्तर पर उपलब्ध है। कॉलेज के स्तर पर इस विषय की उपलब्धता को देखें, तो यह देश के काफी विश्वविद्यालयों में तीन वर्षीय बैचलर डिग्री पाठय़क्रम के रूप में पढ़ाया जा रहा है। इस विषय के साथ बीए या बीएससी डिग्री हासिल की जा सकती है। होम साइंस में ग्रेजुशन के बाद इस विषय में मास्टर डिग्री की पढ़ाई करने के अलावा फैशन डिजाइनिंग, डाइटिटिक्स, काउंसलिंग, सोशल वर्क, डेवलपमेंट स्टडीज, इंटरप्रिन्योरशिप, मास कम्यूनिकेशन और कैटरिंग टेक्नोलॉजी आदि विषयों में भी पोस्ट ग्रेजुएशन किया जा सकता है। इस विषय के छात्रों के पास बीएड करने का भी विकल्प रहता है।
होम साइंस के प्रमुख पांच क्षेत्र
- फूड एंड न्यूट्रिशन ’रिसोर्स मैनेजमेंट
- ह्यूमन डेवलपमेंट ’फैब्रिक एंड अपेरल साइंस
- कम्यूनिकेशन एंड एक्सटेंशन
इन क्षेत्रों के अलावा कुछ अन्य विषय भी होम साइंस के पाठय़क्रमों में शामिल होते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-इंटरप्रिन्योरशिप, फैमिली लाइफ एजुकेशन, चाइल्ड डेवलपमेंट, टेक्सटाइल डिजाइनिंग, होम इकोनॉमिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, पर्सनालिटी डेवलपमेंट, फूड प्रिजर्वेशन और फैशन डिजाइनिंग।
उपलब्ध पाठय़क्रम
- डिप्लोमा इन होम साइंस ’बीएससी (होम साइंस) ’बीएससी (ऑनर्स) होम साइंस
- बीएचएससी ’बीएससी (ऑनर्स)फूड एंड न्यूट्रिशन ’बीएससी (ऑनर्स) ह्यूमन डेवलपमेंट
- एमएससी (होम साइंस) ’पीएचडी
जरूरी गुण
- विश्लेषणात्मक सोच ’प्रायोगिक और तार्किक दृष्टिकोण ’वैज्ञानिक सूझबूझ ’चीजों को व्यवस्थित करने का हुनर - सौंदर्यबोध और रचनाशीलता
- प्रभावी संवाद कौशल
- विवेक के साथ घरेलू जुड़े कार्यों को करने में रुझान हो
- संतुलित नजरिया
रोजगार के मौके
- टेक्सटाइल के क्षेत्र में मर्चेडाइजर या डिजाइनर
- हॉस्पिटल और खाद्य क्षेत्र में न्यूट्रिशनिस्ट या डाइटिशियन
- टूरिस्ट रिजोर्ट, रेस्टोरेंट और होटल में हाउस कीपिंग कार्य की देखरेख
- शैक्षणिक या कामकाजी संस्थानों में कैंटरिंग सुविधा देने का कार्य
- खाद्य उत्पादों के निर्माण और विकास कार्यों का पर्यवेक्षण
- रिसोर्स मैनेजमेंट
- फैमिली काउंसलर
- सोशल वर्क और ह्यूमन डेवलपमेंट
- अनुसंधान और शिक्षण कार्य
- टेक्सटाइल, फूड, बेकिंग और कंफेक्शनरी के क्षेत्र में स्वरोजगार
संबंधित संस्थान
- दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली
- यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे, मुंबई
- आचार्य एनजी रंगा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
- इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद
- चंद्रशेखर आजाद यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, कानपुर
- यूनिवर्सिटी ऑफ कैलकटा, कोलकाता
- राजस्थान एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, बीकानेर
- राजेंद्र एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पूसा
- नरेंद्र देव यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, फैजाबाद
- गोविंद बल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर
- महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, उदयपुर
- सीएसके हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पालमपुर

Friday, September 25, 2015

एस्ट्रोनॉमी में बनाएं अपना कॅरियर

आसमान में लाखों जगमगाते एवं टिमटिमाते तारों को निहारना दिमाग को सुकून से भर देता है। इन्हें देखने पर मन में यही आता है कि अगली रात में पुन: आने का वायदा कर जगमगाते हुए ये सितारे आखिर कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं?  हालांकि,  इसी तरह के कई अन्य सवालों जैसे उल्कावृष्टि, ग्रहों की गति एवं इन पर जीवन जैसे रहस्यों से ओत-प्रोत बातें सोचकर व्यक्ति खामोश रह जाता है। एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) या खगोल विज्ञान वह करियर है, जो इन सभी रहस्यों, सवालों एवं गुत्थियों को सुलझाता है। अगर आप ब्रह्मांड (Universe) के रहस्यों से दो-चार होकर अंतरिक्ष को छूना चाहते हैं तो यह करियर आपके लिए बेहतर है। वैसे भी कल्पना चावला (Kalpana Chawla), राकेश शर्मा (Rakesh Sharma) तथा सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) जैसे प्रतिभावान एस्ट्रोनॉट (Astronaut) के कारण आज यह करियर युवाओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है।
एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) क्या है
एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) वह विज्ञान है, जो पृथ्वी के वातावरण से परे अंतरिक्ष (Space) से संबंधित है। यह ब्रह्मांड में उपस्थित खगोलीय पिंडों (Celestial Bodies) की गति, प्रकृति और संघटन का शास्त्र है। साथ ही इनके इतिहास और संभावित विकास हेतु प्रतिपादित नियमों का अध्ययन भी है। यह एस्ट्रोलॉजी (Astrology) या ज्योतिष विज्ञान जिसमें सूर्य, चंद्र और विभिन्न ग्रहों द्वारा व्यक्ति के चरित्र, व्यक्तित्व एवं भविष्य पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, से पूरी तरह से अलग शास्त्र है। अत्याधुनिक तकनीक एवं गैजेट्स के प्रयोग ने हालांकि एस्ट्रोनॉमी को एक विशिष्ट विधा बना दिया है, परंतु वास्तव में यह बहुत ही पुरानी विधा है। प्राचीन काल से ही मानव ग्रहों (Human Planet) एवं अंतरिक्ष पिंडों (Space Bodies) का अध्ययन करता रहा है, जिनमें आर्यभट्ट (Aryabhatta), भास्कराचार्य (Bhaskaracharya), गैलीलियो (Galileo) और आइजक न्यूटन (Isaac Newton) जैसे महान गणितज्ञों एवं खगोलशास्त्रियों (Astronomers) का महत्वपूर्ण योगदान है। एस्ट्रोनॉमी में अंतरिक्ष पिंडों के बारे में जानकारी संग्रह करने के बाद उपलब्ध आंकडों से तुलना कर निष्कर्ष निकाला जाता है तथा पुराने सिद्घांतों को संशोधित कर नए नियम प्रतिपादित किए जाते हैं।
शैक्षिक योग्यता  (Educational Qualification)
यदि आप भी अंतरिक्ष की रहस्यमय और रोमांचक दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, तो एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) का कोर्स कर सकते हैं। फिजिक्स या मैथमेटिक्स से स्नातक पास स्टूडेंट्स थ्योरेटिकल एस्ट्रोनॉमी (Theoretical Astronomy) के कोर्स में एंट्री ले सकते हैं। इंस्ट्रूमेंटेशन/ एक्सपेरिमेंटल एस्ट्रोनॉमी में प्रवेश के लिए बीई (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक/ इलेक्ट्रिकल/ इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन) की डिग्री जरूरी है। यदि आप पीएचडी कोर्स (फिजिक्स, थ्योरेटिकल व ऑब्जर्वेशनल एस्ट्रोनॉमी, एटमॉस्फेरिक ऐंड स्पेस साइंस आदि) में प्रवेश लेना चाहते हैं, तो ज्वाइंट एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट-जेईएसटी (Joint Entrance Screening Test) से गुजरना होगा। इस एग्जाम में बैठने के लिए फिजिक्स में मास्टर डिग्री या फिर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री जरूरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे (University of Pune) में स्पेस साइंस में एमएससी कोर्स उपलब्ध है। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी (Bangalore University) और कालीकट यूनिवर्सिटी (University of Calicut) से एस्ट्रोनॉमी में एमएससी कोर्स कर सकते हैं।
एस्ट्रोनॉमी के प्रकार (Type of Astronomy)
एस्ट्रोनॉमी में वैज्ञानिक तरीकों से तारे (Stars), ग्रह (Planets), धूमकेतु (Comets) आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल के बाहर किस तरह की गतिविधियां हो रही हैं, यह भी जानने की कोशिश की जाती है। इसकी कई ब्रांचेज हैं..
एस्ट्रोकेमिस्ट्री (Astrochemistry): इसमें केमिकल कॉम्पोजिशन (Chemical Composition) के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही विशेषज्ञ स्पेस में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व के बारे में गहन अध्ययन कर जानकारियां एकत्र करते हैं।
एस्ट्रोमैटेरोलॉजी (Astro Meteorology): एस्ट्रोनॉमी के इस हिस्से में खगोलीय चीजों की स्थिति और गति के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। साथ ही, यह भी जानने की कोशिश की जाती है कि खगोलीय चीजों का पृथ्वी के वायुमंडल पर किस तरह का प्रभाव पडता है। यदि आप वायुमंडल पर पडने वाले खगोलीय प्रभाव को ठीक से समझ गये और इस विद्या का डीप अध्ययन कर लिया तो आपकी डिमांड का ग्राफ बढ जाएगा।
एस्ट्रोफिजिक्स  (Astrophysics): इसके अंतर्गत खगोलीय चीजों की फिजिकल प्रॉपर्टी के बारे में अध्ययन किया जाता है। खगोलीय फिजिकल प्रॉपर्टी को समझना इतना आसान नहीं होता, जितना लोग समझते हैं। इसे समझने में अध्ययन कर रहे स्टूडेंटस को सालों गुजर जाते हैं।
एस्ट्रोजिओलॉजी  (Astrogeology): इसके तहत ग्रहों की संरचना और कॉम्पोजिशन के बारे स्टडी की जाती है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ आप तभी बन सकेंगे जब ग्रहों की तह में जाकर गहन अध्ययन करेंगे। एकाग्रचित होकर की गयी सिस्टमेटिक पढाई ही ग्रहों के फार्मूलों के करीब ले जाएगी। इसे समझने के लिए सोलर सिस्टम, प्लेनेट, स्टार, सेटेलाइट आदि का डीप अध्ययन जरूरी है।
एस्ट्रोबायोलॉजी  (Astrobiology): पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर भी जीवन है? इस बात की पडताल एस्ट्रोबायोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है। एस्ट्रोबायोलॉजी के जानकार ही वायुमंडल के बाहर जीवन होने के रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं, इसके पीछे छुपी होती है उनकी वर्षो की तपस्या।
 संभावनाएं (Opportunities)
एस्ट्रोनॉमी का कोर्स पूरा करने के बाद विकल्पों की कमी नहीं रहती है। यदि सरकारी संस्थाओं की बात करें, तो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (Indian Space Research Organisation), नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स पुणे (National Centre for Radio Astrophysics), फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद (Physical Research Laboratory), विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (Vikram Sarabhai Space Center), स्पेस फिजिक्स लेबोरेटरीज, स्पेस ऐप्लिकेशंस सेंटर, इंडियन रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन बेंगलुरु, एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया आदि में नौकरी की तलाश कर सकते हैं। यदि रिसर्च के क्षेत्र में कुछ वर्षो का अनुभव हासिल कर लें, तो अमेरिका की नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) जैसी संस्थाओं में नौकरी हासिल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त समय-समय पर विभिन्न देशों में आयोजित सेमिनार एवं गोष्ठियों में हिस्सा लेने का भी अवसर प्राप्त होता है।
सैलरी (Salary)
शोध के दौरान जूनियर रिसर्चर (Junior Researcher) को 8 हजार एवं सीनियर रिसर्चर (Senior Researcher) को 9 हजार रूपये मिलते हैं। हॉस्टल में रहने-खाने, चिकित्सा तथा ट्रैवल की सुविधा संस्थान द्वारा दी जाती है। साथ ही विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार एवं कांफे्रंस में भाग लेने का भी मौका मिलता है। शोध पूरा करने के पश्चात् विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में वैज्ञानिक एवं एस्ट्रोनामर या एस्ट्रोनाट के पद पर उच्च वेतनमान के साथ अन्य उत्कृष्ट सुविधाएं भी मिलती हैं।
कहां से करें कोर्स (Course)
रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, सीवी रमन एवेन्यू, बेंगलुरू
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स,
फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुम्बई
रेडियो एस्ट्रोनॉमी सेंटर, तमिलनाडु
उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, मदुरै, तमिलनाडु
पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला, पंजाब
महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम, केरला

Thursday, September 24, 2015

अतीत की खोज बनाएगा भविष्य

हजारों साल पहले मानव जीवन कैसा रहा होगा? किन-किन तरीकों से जीवन से जुड़े अवशेषों को बचाया जा सकता है? एक सभ्यता, दूसरी सभ्यता से कैसे अलग है? क्या हैं इनकी वजहें? ऐसे अनगिनत सवालों से सीधा सरोकार होता है आर्कियोलॉजिस्ट्स का।

अगर आप भी देश की धरोहर और इतिहास में रुचि रखते हैं तो आर्कियोलॉजिस्ट के रूप में एक अच्छे करियर की शुरुआत कर सकते हैं। इसमें आपको नित नई चीजें जानने को तो मिलेंगी ही, सैलरी भी अच्छी खासी है। आर्कियोलॉजी के अंतर्गत पुरातात्विक महत्व वाली जगहों का अध्ययन एवं प्रबंधन किया जाता है।

हेरिटेज मैनेजमेंट के तहत पुरातात्विक स्थलों की खुदाई का कार्य संचालित किया जाता है और इस दौरान मिलने वाली वस्तुओं को संरक्षित कर उनकी उपयोगिता का निर्धारण किया जाता है। इसकी सहायता से घटनाओं का समय, महत्व आदि के बारे में जरूरी निष्कर्ष निकाले जाते हैं।


जरूरी योग्यता


एक बेहतरीन आर्कियोलॉजिस्ट अथवा म्यूजियम प्रोफेशनल बनने के लिए प्लीस्टोसीन पीरियड अथवा क्लासिकल लैंग्वेज, मसलन पाली, अपभ्रंश, संस्कृत, अरेबियन भाषाओं में से किसी की जानकारी आपको कामयाबी की राह पर आगे ले जा सकती है।

पर्सनल स्किल

आर्कियोलॉजी ने केवल दिलचस्प विषय है बल्कि इसमें कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स के लिए यह चुनौतियों से भरा क्षेत्र भी है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए अच्छी विशेलषणात्मक क्षमता, तार्किक सोच, कार्य के प्रति समर्पण जैसे महत्वपूर्ण गुण जरूर होेने चाहिए। कला की समझ और उसकी पहचान भी आपको औरों से बेहतर बनाने में मदद करेगी। इसके अलावा आप में चीजों और उस देशकाल को जानने की ललक भी होनी चाहिए।

संभावनाएं व वेतन

आर्कियोलॉजिस्ट की मांग सरकारी और निजी हर क्षेत्र में है। इन दिनों कॉरपोरेट हाउसेज में भी नियुक्ति हो रही है। वे अपने रिकॉर्ड्स के रख-रखाव के लिए एक्सपर्ट की नियुक्ति करते हैं। इसी तरह रिचर्स के लिए भी इसकी मांग रहती है। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया में आर्कियोलॉजिस्ट पदों के लिए संघ लोक सेवा आयोग हर वर्ष परीक्षा आयोजित करता है। राज्यों के आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट में भी असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट की मांग भी रहती है। वहीं नेट क्वालीफाई करके लेक्चररशिप भी कर सकते हैं। आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में किसी भी पद पर न्यूनतम वेतन 25 हजार रुपए है। उसके बाद वेतन का निर्धारण पद और अनुभव के आधार पर होता है।

कोर्सेज

आर्कियोलॉजी से जुड़े रेगुलर कोर्स जैसे पोस्ट ग्रेजुएशन, एमफिल या पीएचडी देश के अलग-अलग संस्थानों में संचालित किए जा रहे हैं। हालांकि हेरिटेज मैनेजमेंट और आर्किटेक्चरल कंजरवेशन से जुड़े कोर्स केवल गिने-चुने संस्थानों में ही पढ़ाए जा रहे हैं। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया की फंक्शनल बॉडी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी में दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की पढ़ाई होती है। अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के आधार पर इस कोर्स में दाखिला दिया जाता है। इसी तरह गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी नई दिल्ली से एफिलिएटेड इंस्टीट्यूट, दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ हेरिटेज रिसर्च एंड मैनेजमेंट, आर्कियोलॉजी और हेरिटेज मैनेजमेंट में दो वर्षीय मास्टर कोर्स का संचालन होता है।

Wednesday, September 23, 2015

एग्रिकल्चरल इंजीनियरिंग में करियर

एग्रिकल्चरल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में मौजूद अवसरों के बारे में आमतौर पर स्टूडेंट्स को कम ही मालूम होता है। वैसे भी जिन क्षेत्रों के बारे में खूब जानकारी मौजूद है, हम उन्हीं में अपना करियर बनाना चाहते हैं। नए और अपेक्षाकृत कम पॉपुलर क्षेत्रों में करियर बनाने के बारे में हम सोचते ही नहीं हैं। अगर आप एग्रिकल्चरल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं, तो यहां आपके लिए कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां दी जा रही हैं।

जैसा कि नाम से ही जाहिर है एग्रिकल्चरल इंजीनियरिंग में एग्रिकल्चर, फूड और बायॉलजिकल सिस्टम्स में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कराई जाती है। एग्रिकल्चरल इंजीनियर्स एग्रिकल्चरल प्रॉडक्शन और प्रॉसेसिंग के क्षेत्र में इंजीनियरिंग साइंस और टेकनॅलजी में तमाम तरह के डेवलपमेंट करते हैं। साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का मैनेजमेंट भी इनकी जिम्मेदारी में शामिल होता है। एग्रिकल्चरल प्रॉडक्शन बढ़ाने के लिए ये लोग अपनी स्किल्स का इस्तेमाल करते हैं।

एग्रिकल्चरल इंजीनियर्स को इस तरह से ट्रेनिंग दी जाती है, जिससे वे मिट्टी, पानी और फसलों आदि पर अपने इंजीनियरिंग सिद्धांतों का उपयोग कर सकें। इसके अलावा, एग्रिकल्चरल फार्म मशीनरी, फार्म स्ट्रक्चर्स, रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन, बायोगैस से संबंधित मामलों को बेहतर बनाने का काम भी एग्रिकल्चरल इंजीनियर्स ही करते हैं।

जिन लोगों के पास एग्रिकल्चरल इंजीनियरिंग में प्रफेशनल डिग्री है, उनके लिए अवसरों की कोई कमी नहीं है। एग्रिकल्चरल इंजीनियर्स प्रॉडक्शन, सेल्स, मैनेजमेंट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट या एप्लाइड साइंस के क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। एग्रिकल्चर इंजीनियर्स की एक बड़ी संख्या एकेडमिक्स और रिसर्च के क्षेत्र में काम करती है। विभिन्न प्राइवेट और सरकारी संस्थाएं जैसे सेंट्रल एंड स्टेट एग्रिकल्चरल यूनिवसिर्टीज, इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) और विभिन्न राज्यों में मौजूद काउंसिल ऑफ एग्रिकल्चरल रिसर्च में ऐसे लोगों के लिए तमाम तरह के अवसर मौजूद होते हैं। कई अन्य सरकारी और निजी सेक्टर्स में भी आपको नौकरियां मिल सकती हैं। जिन एग्रिकल्चरल इंजीनियर्स के पास डॉक्टोरेट की डिग्री है, वे साइंटिस्ट, असिस्टेंट प्रफेसर, रिसर्च ऑफिसर जैसे पदों पर नौकरियां पा सकते हैं।

विभिन्न स्टेट एग्रिकल्चरल यूनिवसिर्टीज, डीम्ड यूनिवसिर्टीज, सेंट्रल एग्रिकल्चरल यूनिवसिर्टीज और सेंट्रल यूनिवसिर्टीज अंडरग्रैजुएट, पोस्टग्रैजुएट और डॉक्टोरेट लेवल पर कई तरह के कोर्स चलाती हैं। इन संस्थानों द्वारा चलाए जाने वाले बीटेक (एग्रिकल्चर) कोर्स के लिए वे स्टूडेंट्स पात्र हैं, जिन्होंने फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स विषयों के साथ बारहवीं पास कर ली है। एडमिशन एंट्रेंस टेस्ट के जरिए दिया जाता है। इसके अलावा, आईसीएआर स्टेट यूनिवसिर्टीज, डीम्ड यूनिवसिर्टीज और सेंट्रल यूनिवसिर्टीज की 15 परसेंट सीटों के लिए ऑल इंडिया एंट्रेंस टेस्ट का आयोजन करता है। अगर आप पीजी कोर्स में एडमिशन लेना चाहते हैं, तो आपको इंजीनियरिंग में बीटेक होना चाहिए। डॉक्टोरेट डिग्री के लिए स्टूडेंट्स को एमटेक या एमएससी होना चाहिए।

यहां कुछ जानी-मानी एग्रिकल्चरल यूनिवसिर्टीज की लिस्ट दी जा रही है।

1 . आईआईटी खड़गपुर।

2 . नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेकनॅलजी।

3 . रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज।

4 . बिड़ला इंस्टिट्यूट ऑफ टेकनॅलजी (बिट्स), पिलानी और रांची।

5 . दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली।

6. यूनिवसिर्टी ऑफ रुड़की, रुड़की।

Tuesday, September 22, 2015

टेलीकॉम इंडस्ट्री में एंट्री

हर तरफ आसमान छूता हुआ टॉवर .. रिलायंस, एयरटेल, बीएसएनएल, टाटा इंडिकॉम.. दिखाई पड़ रहा है, जो
दिन-ब-दिन मजबूत होते भारतीय दूरसंचार या टेलिकॉम क्षेत्र की सफलता की कहानी को बयां करता है। दूरसंचार देश के शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों की शक्ल-ओ-सूरत को भी बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत में नई-नई कंपनियां भी आ रही हैं और अब तीसरी पीढ़ी की सेवाएं (थ्रीजी) भी शुरू हो चुकी हैं। खास बात यह है कि उपभोक्ताओं की संख्या भी लगातार बढ़ती ही जा रही है। सिर्फ फरवरी 2009 में इंडस्ट्री ने 1.3 करोड़ उपभोक्ताओं को जोड़ा। एक अनुमान के मुताबिक, वर्ष 2010 तक भारत में तकरीबन 500 मिलियन (50 करोड़) मोबाइल यूजर हो जाएंगे। इस क्षेत्र में व्याप्त संभावनाओं को देखते हुए माना जा रहा है कि करियर के लिहाज से यह सेक्टर आने वाले दिनों में भी काफी हॉट रहेगा। टेलिकॉम सेक्टर में तीव्र विकास के साथ ही इसमें रोजगार के अवसर में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। माना जा रहा है कि, इस क्षेत्र में नए ऑपरेटर द्वारा कारोबार की शुरुआत और पुराने ऑपरेटर द्वारा नए क्षेत्र में विस्तार की वजह से टेलिकॉम सेक्टर में इस साल करीब डेढ़ लाख लोगों की जरूरत होगी।
योग्यता
टेलिकम्युनिकेशन इंजीनियर बनने के लिए10+2 में फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथमेटिक्स सब्जेक्ट जरूर होने चाहिए। 12वीं के बाद आईआईटी या ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन टेस्ट में शामिल होकर टेलिकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (बैचरल डिग्री) बनने का सपना पूरा किया जा सकता है। आईआईटी खड़गपुर में कई तरह के कोर्स उपलब्ध हैं, इनमें बीटेक (एच) इन इलेक्ट्रॉनिक ऐंड इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (चार वर्षीय), बीटेक (एच) इन इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग ऐंड एमटेक इन ऑटोमेशन ऐंड कम्प्यूटर विजन (पांच वर्षीय)। इसके अलावा, आईआईटी खड़गपुर से डुअल कोर्स की डिग्री भी प्राप्त कर सकते हैं। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग + माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड वीएलएसआई डिजाइन (पांच वर्षीय) के अलावा, एमटेक इन आरएफ ऐंड माइक्रोवेव इंजीनियरिंग (दो वर्षीय), एमटेक इन टेलिकम्युनिकेशन सिस्टम्स इंजीनियरिंग (दो वर्षीय) आदि कोर्स भी उपलब्ध हैं।
अवसरटेलिकॉम इंडस्ट्री में टेलिकॉम सॉफ्टवेयर इंजीनियर, टेलिकॉम सिस्टम सॉल्युशन इंजीनियर, कम्युनिकेशन इंजीनियर, टेक्निकल सपोर्ट प्रोवाइडर, रिसर्च प्रोजेक्ट सुपरवाइजर, नेटवर्क इंजीनियर के लिए इन दिनों बेहतर संभावनाएं हैं। इसके अलावा, रिटेल ऑउटलेट, प्रीपेड कार्ड सेलर, कस्टमर सर्विस, टावर कंस्ट्रक्शन आदि में भी करियर के रास्ते खुलते जा रहे हैं। इसमें टेक्निकल और नॉन टेक्निकल क्षेत्र- दोनों में करियर बना सकते हैं। टेक्निकल क्षेत्र में टेलिकम्युनिकेशन इंजीनियर की जरूरत होती है, तो नॉन- टेक्निकल फील्ड में बारहवीं या ग्रेजुएशन के बाद करियर बना सकते हैं। नॉन टेक्निकल में कॉर्ड सेलर, कस्टमर केयर सर्विस आदि में नौकरी की तलाश की जा सकती है।
कमाईटेक्निकल क्षेत्र में एंट्री लेवल पर सैलॅरी 15 से 20 हजार रुपये तक होती है, जबकि नॉन टेक्निकल क्षेत्र में कार्य करने वाले पेशेवरों को शुरुआती दौर में 10 से 15 हजार रुपये प्रति माह मिल ही जाते हैं।
संस्थान
 1. भारती स्कूल ऑफ टेलिकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी ऐंड मैनेजमेंट, आईआईटी दिल्ली
 2. बिरला इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी ऐंड साइंस, पिलानी
 3. नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी
 4. इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी)
 5. कोचिन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी
 6. डिपार्टमेंट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन, आईआईटी खड़गपुर
 7. डा.बाबासाहेब अम्बेडकर टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र
 8. फैकल्टी ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी, जादवपुर, कोलकाता
 9. इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
 10. सिम्बायोसिस इंस्टीटयूट ऑफ टेलिकॉम मैनेजमेंट, पुणे

Sunday, September 20, 2015

आयुर्वेद में कैरियर

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें रोग का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट हो जाए और दोबारा उत्पन्न न हो। तमाम सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति आज मुनष्य के लिए चिंता का सबब बन गई है…
आज समस्त विश्व का ध्यान आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हो रहा है। इसके लाभों को देखते हुए विदेशी भी भारत की अनेक जड़ी- बूटियों का उपयोग अपनी चिकित्सा पद्धति में कर रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें रोग का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट हो जाए और दोबारा उत्पन्न न हो। तमाम सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति आज मुनष्य के लिए चिंता का सबब बन गई है। आधुनिकता ने आयाम तो कई स्थापित कर लिए, पर स्वास्थ्य का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। आजकल कई चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं और आयुर्वेद भी उनमें से एक है। इस पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें रोग को जड़ से नष्ट करने पर जोर दिया जाता है। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह कला, विज्ञान और दर्शन का मिश्रण है। आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। आयुर्वेद का उल्लेख वेदों में वर्णित है। इसका विकास विभिन्न वैदिक मंत्रों से हुआ है, जिसमें संसार तथा जीवन, रोगों तथा औषधियों के मूल तत्त्व दर्शन का वर्णन किया गया। आयुर्वेद के ज्ञान को चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में व्यापक रूप से बताया गया है।
इतिहास
आयुर्वेद लगभग 5000 वर्ष पुराना चिकित्सा विज्ञान है। इसे भारतवर्ष के विद्वानों नें भारत की जलवायु, भौगालिक परिस्थितियों, भारतीय दर्शन और भारतीय ज्ञान-विज्ञान के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए विकसित किया। यह मनुष्य के जीवित रहने की विधि तथा उसके पूर्ण विकास के उपाय बतलाता है। इसलिए आयुर्वेद अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह एक चिकित्सा पद्धति मात्र नही है, अपितु संपूर्ण आयु का ज्ञान है। भारत के अलावा अन्य देशों में यथा अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों में आयुर्वेद की औषधियों पर शोध कार्य किए जा रहे हैं। बहुत से एनजीओ और प्राइवेट संस्थान तथा अस्पताल और व्यतिगत आयुर्वेदिक चिकित्सक शोध कार्यों में लगे हुए हैं।
आयुर्वेद के अंग
चिकित्सा के आधार पर आयुर्वेद को आठ अंगों में वर्गीकृत किया गया है। इसे अष्टाङ्ग आयुर्वेद कहते हैं ।
1. शल्य
2. शालाक्य
3. काय चिकित्सा
4. भूत विद्या
5. कौमार भृत्य
6. अगद तंत्र
7. रसायन
8. बाजीकरण
रोजगार के अवसर
आयुर्वेद में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। इसमें सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध होते हैं। चिकित्सा क्षेत्र में तो इसकी अपार संभावनाएं हैं। सरकार आयुर्वेदिक चिकित्सकों को रोजगार देती है। आप अगर सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते तो अपना निजी क्लीनिक भी खोल सकते हैं। इसके अलावा अध्यापन और शोध के क्षेत्र में भी अच्छी संभावनाएं हैं।
क्या है आयुर्वेद
आयुर्वेद आयुर्विज्ञान की प्राचीन भारतीय पद्धति है। यह आयु का वेद अर्थात आयु का ज्ञान है। जिस शास्त्र के द्वारा आयु का ज्ञान कराया जाए,उसका नाम आयुर्वेद है। शरीर, इंद्रिय सत्व और आत्मा के संयोग का नाम आयु है। आधुनिक शब्दों में यही जीवन है। प्राण से युक्त शरीर को जीवित कहते है। आयु और शरीर का संबंध शाश्वत है। आयुर्वेद में इस संबंध में विचार किया जाता है। जिस विद्या के द्वारा आयु के संबंध में सर्वप्रकार के ज्ञातव्य तथ्यों का ज्ञान हो सके या जिस का अनुसरण करते हुए दीर्घ आयुष्य की प्राप्ति हो सके उस तंत्र को आयुर्वेद कहते हैं।
शैक्षणिक योग्यता
बीएएमएस की अवधि एक साल की इंटर्नशिप सहित साढ़े पांच साल की होती है। जो विद्यार्थी इस कोर्स में दाखिला लेना चाहते हैं, उनके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना निर्धारित है। विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर इस कोर्स में दाखिले की योग्यता बनती है। एमबीबीएस कर चुके विद्यार्थी भी आयुर्वेद में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में नामांकन करा सकते हैं। जिनकी रुचि शोधकार्यों में हैं, उन्हें सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेद एंड सिद्धा के माध्यम से मौके मिलते हैं।
क्या है आयुर्वेद चिकित्सा
आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा है जो शरीर, मस्तिष्क और मन के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। आयुर्वेद प्राकृतिक तरीके से व्यक्ति की शारीरिक परेशानियां दूर करता है। इस चिकित्सा के दौरान व्यक्ति के शरीर में उत्पन्न हुए उस असंतुलन का पता लगाया जाता है जो उसकी इस बीमारी का कारण है।
वेतनमान
आरंभिक आय एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में सरकार के मानकों के अनुरूप लगभग 40 हजार रुपए आरंभिक वेतन मिलता है। शोध और अध्यापन में भी इतना ही वेतन सरकार द्वारा दिया जाता है।
धैर्य रखना जरूरी
आयुर्वेद के अनुसार बीमारी की 6 अवस्थाएं होती हैं। आधुनिक चिकित्सा में बीमारी का पाचवीं अवस्था में इलाज किया जाता है। इस अवस्था तक आत-आते रोग बहुत बढ़ जाता है और छठी अवस्था में रोग में कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। आयुर्वेद में बीमारी का पहली अवस्था से इलाज किया जाता है। पहली से लेकर चौथी अवस्था तक रोगी के शरीर में आए असंतुलन का कारण पता कर इसे संतुलित करने की कोशिश की जाती है। इस बात का ध्यान होना चाहिए कि इस पद्धति से बीमारी ठीक होने में समय लगता है, इस पद्धति में रातोंरात कोई चमत्कार नहीं होता।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
*   राजीव गांधी आयुर्वेदिक महाविद्यालय पपरोला, हिमाचल प्रदेश
*   श्री धन्वंतरि कालेज, चंडीगढ़
*   आयुर्वेदिक कालेज कोल्हापुर, महाराष्ट्रए
*   श्री आयुर्वेद महाविद्यालय, नागपुर
*   दयानंद आयुर्वेदिक कालेज जालंधर, पंजाब
*   अष्टांग आयुर्वेद कालेज, इंदौर।
*   इंस्टीच्यूट ऑफ  मेडिकल साइंसेस, बीएचयू, वाराणसी
*   हिमालयीय आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज एंड हास्पिटलए ऋषिकेश
*   डीएवी आयुर्वेदिक कालेज, जालंधर
*   नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  आयुर्वेद, जयपुर
*   गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर
व्यक्तिगत गुण
प्रकृति और प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे जड़ी-बूटी, वनस्पति आदि में स्वाभाविक दिलचस्पी से आप इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। आपकी कम्युनिकेशन स्किल बेहतर होनी चाहिए, तभी आप लोगों को बेहतर परामर्श दे पाएंग। इसके अतिरिक्त रोगियों की बातों को धैर्यपूर्वक सुनने और उनके साथ बेहतर तालमेल बनाए रखने की क्षमता आपके भीतर होनी आवश्यक है।
पंचकर्म क्या है
पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का एक हिस्सा है। इसके जरिए शरीर में होने वाले सभी रोगों को दूर करने के लिए तीनों दोषों अर्थात वात, पित्त और कफ  को विषम से सम बनाया जाता है। ये पांच क्रियाएं हैं.1 वमन 2 विरेचन 3 बस्ति (अनुवासन) 4 बस्ति (अस्थापन) 5 नस्य।
कोर्स
स्नातक स्तर पर बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक चिकित्सा और सर्जरी यानी बीएएमएस जैसा कोर्स विभिन्न   भारतीय आयुर्वेदिक संस्थानों में करवाया जाता है। इसके बाद विद्यार्थी पीजी प्रोग्राम जैसे एमडी इन आयुर्वेद और एमएस इन आयुर्वेद की पढ़ाई कर सकते हैं। कुछ संस्थानों में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी उपलब्ध हैं। जिनकी अवधि तुलनात्मक रूप से कम होती है।
आयुर्वेद के प्रमुख प्राचीन आचार्य
प्राचीनकाल में आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य अश्विनी कुमार, धनवंतरि, दिवोदास, नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि और चरक माने जाते हैं।
आयुर्वेद के मुख्य दो उद्देश्य
*  पहला स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना
*  दूसरा रोगी व्यक्ति के विकारों को दूर कर स्वस्थ बनाना।

Friday, September 18, 2015

होम्योपैथ एक तेजी से उभरता कॅरियर

होम्योपैथी इलाज की एक ऐसी पद्धति है, जो इन दिनों तेजी से लोकप्रिय हो रही है और यह लोकप्रियता केवल मरीजों के बीच ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि जो लोग डॉक्टर बनना चाहते हैं, वे भी इसमें रुचि ले रहे हैं। होम्योपैथी में मौजूद करियर ऑप्शंस के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं: 
होम्योपैथी डॉक्टर को हर कोई पसंद करता है। ऐसा क्यों है, इसके पीछे तमाम कारण हैं। सबसे बड़ी वजह तो यही है कि ये डॉक्टर मीठी गोलियों से इलाज करते हैं और दूसरा कारण यह कि बगैर मरीज को देखे केवल लक्षणों के आधार पर भी कई बार ये इलाज कर देते हैं। भले ही होम्योपैथी डॉक्टर आपको मीठी गोलियां देता हो, लेकिन इस पद्धति से इलाज करना उतना आसान नहीं है। 
होम्योपैथी में इलाज की पद्धति का आधार यह है कि संसार में हर व्यक्ति का अलग मेंटल, फिजिकल और इमोशनल सेटअप होता है। ऐसे में आप तब तक किसी मरीज का इलाज नहीं कर सकते, जब तक कि आप उसके पूरे सेटअप को न जान लें। इस पद्धति की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह रोगी को ट्रीट करने में भरोसा करती है, केवल रोग को नहीं। इसमें दिल के रोगों के अलावा बढ़ती उम्र, वायरल और फंगल इंफेक्शन, गठिया, स्ट्रेस, अस्थमा, पेट में अल्सर, लीवर के रोग सहित तमाम तरह के मर्जों को ट्रीट किया जाता है। 
होम्योपैथी के बारे में आम धारणा है कि पुराने और जटिल रोगों में यह बेहद कारगर है। जर्मनी के फिजिशियन सैम्युल हेनमेन ने होम्योपैथी को सन 1800 में दुनिया के सामने पेश किया और तब से अब तक होम्योपैथी इलाज की एक बड़ी पद्धति के रूप में डिवेलप हो चुकी है। आज हालत यह है कि तमाम बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनियां सदीर्, सिर दर्द, पेट में दर्द जैसी आम बीमारियों के लिए बड़ी मात्रा में होम्योपैथिक दवाएं बना रही हैं। 
होम्योपैथी में आजकल करियर बनाने की तमाम संभावनाएं हैं, क्योंकि विभिन्न कंपनियां इस क्षेत्र में रिसर्च और डिवेलपमेंट के लिए जम कर पैसा इन्वेस्ट कर रही हैं। होम्योपैथिक हॉस्पिटल्स की संख्या पूरे देश में तेजी से बढ़ रही है। 

इलाज का तरीका 
एक बड़ा सवाल यह है कि होम्योपैथिक डॉक्टर इलाज करता कैसे है? दरअसल होम्योपैथिक डॉक्टर मरीज की पूरी मेडिकल हिस्ट्री, टेम्परामेंट, फैमिली बैकग्राउंड, फैमिली मेंबर्स के रोगों का इतिहास, लाइफस्टाइल और इमोशनल स्टेट जैसे पॉइंट्स पर गौर करता है। इन सब चीजों के आधार पर डॉक्टर सिम्पटम्स का एक प्रोफाइल तैयार करता है और फिर दवाएं लिखता है। इस पद्धति में एक ही रोग से पीड़ित दो मरीजों को अलग-अलग दवाएं दी जा सकती हैं, क्योंकि दवाएं सुझाने का फैसला पूरी तरह मरीज की पर्सनल स्थिति पर निर्भर करता है। 
जो लोग होम्योपैथिक में रुचि रखते हैं, उनके लिए जरूरी है कि रोगों को ठीक करने के ऑल्टर्नेटिव तरीकों के प्रति उनका पैशन हो। सवाल पूछना और मरीज की पर्सनल लाइफ को जानना इस पेशे की मांग है। कौन सी दवा की कितनी डोज दी जानी है, यह सब मरीज के लक्षणों पर गौर फरमाने के बाद तय किया जाता है। इस पेशे से जुड़े लोगों को डिटेल्स में गहरी रुचि होनी चाहिए। इस लाइन में धैर्य सबसे ज्यादा जरूरी है, मरीज के लिए भी और डॉक्टर के लिए भी। मरीज जो कुछ भी कहता है, वह उसके लिए दवाएं तय करने में बड़ी भूमिका निभाता है। ऐसा माना जाता है कि आमतौर पर एक होम्योपैथ को मरीज के साथ पहली सिटिंग में एक घंटे तक का समय बिताना चाहिए। बुखार, डायरिया और उलटी जैसे लक्षणों पर गौर किया जाना जरूरी है। इसके अलावा दिमागी लक्षण जैसे गुस्सा, डर और प्रेम का भी ध्यान रखना उतना ही जरूरी है। इन सब चीजों के लिए जरूरी है कि होम्योपैथ अपने मरीज से सीधे बातचीत करे। 


होम्योपैथी पाठ्यक्रम के दो प्रकार उपलब्ध हैं:- 
1.) डिप्लोमा में होम्योपैथी चिकित्सा और सर्जरी (DHMS) 4-वर्ष की अवधि, 1-साल इंटर्नशिप के सहित का. 

2.) स्नातक होम्योपैथी चिकित्सा और शल्य चिकित्सा (BHMS) 4 साल + 1 साल इंटर्नशिप के का। शिक्षा, प्रशिक्षण और होम्योपैथी से संबंधित अन्य मामलों की देखभाल एक शीर्ष निकाय होम्योपैथी की केंद्रीय परिषद, भारत सरकार, के अंतर्गत एक सांविधिक निकाय है. 

सभी पाठ्यक्रमों होम्योपैथी केन्द्रीय परिषद अधिनियम १९७३ द्वारा मान्यता प्राप्त होना चाहिए। वर्तमान में वहाँ लगभग 200 संस्थाओं में देश में होम्योपैथी की डिग्री और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों की पेशकश कर रहे हैं. 

होम्योपैथिक उपचार के लाभ 

1.) होम्योपैथी स्वास्थ्य की प्रकृति के कानून पर काम करता है। यह प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता और आंतरिक शक्ति को उत्तेजित करता है। यह भी शरीर और मन के सद्भाव प्रकृति के साथ बनाता है. 

2.) होम्योपैथी उपचार प्रभावी और तेजी से काम करता है। इसकी उपयोगिता में चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक और मनोदैहिक विकारों साबित कर दिया है। गंभीर परिस्थितियों में, यह दवा के प्रशासन के मिनट के भीतर से राहत देता है. 

3.) होम्योपैथी उपचार कोई साइड इफेक्ट के साथ गैर विषैले है। यह गैर नशे की लत और गैर बनाने की आदत है। यह शिशुओं के लिए भी उपयुक्त है बुजुर्गों और गर्भवती महिलाओं को. 

4.) होम्योपैथी चिकित्सा सक्रिय और निवारक है। यह प्रतिरक्षा को बढ़ावा देता है और बीमारी को विकसित करने से रोकता है. 

5.) होम्योपैथी उपचार पूरे प्रणाली rejuvenates और एक और अधिक आराम और ऊर्जावान बनाता है। यह बढ़ाता है और नींद, पाचन अंत: स्रावी स्राव आदि की तरह शरीर के शारीरिक कार्यों के स्थिर. 

6.) होम्योपैथी चिकित्सा अग्रिम पंक्ति के उपचार के रूप में उपयोग किए गए के रूप में अच्छी तरह से मानार्थ पारंपरिक चिकित्सा करने के लिए किया जा सकता. 

7.) होम्योपैथी बीमारी मानते हैं, शरीर और मन और भावनाओं को पूर्ण और स्थायी राज्य के स्वास्थ्य और खुशी दे भर देता है। यह उच्च रक्तचाप बेजोड़ क्षमता मनोदैहिक तनाव जैसे विकारों का इलाज करने के लिए प्रेरित किया है. 

8.) होम्योपैथिक उपचार गैर suppressive है। पूरे व्यक्ति के बजाय लक्षणों के उपचार के द्वारा, पारंपरिक दवा अक्सर जीव में गहरी बीमारी को दबा. 

9.) होम्योपैथी उपचार के भीतर से और शरीर के आत्म चिकित्सा क्षमता का उपयोग करने पर केंद्रित। परंपरागत चिकित्सा से बिना उपचार पर ध्यान केंद्रित. 
10.) होम्योपैथी की तुलना परंपरागत चिकित्सा उपचार के एक बहुत सुरक्षित और gentler फार्म है। परंपरागत चिकित्सा अभी तक ज्यादा दखल है. 


प्रवेश प्रक्रियाबीएचएमएस में एडमिशन ऑल इंडिया कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (एआईसीईटी) के माध्यम से होता है। यह टेस्ट ऑल इंडिया इंजीनियरिंग एंड मेडिकल कॉलेज एसोसिएशन (एआईएमईसीए) की ओर से आयोजित किया जाता है।  कोर्स करने के बाद गवर्नमेंट या प्राइवेट हॉस्पिटल में होम्योपैथी डॉक्टर के रूप काम कर सकते हैं। इसके अलावा क्लिनिक, चैरिटेबल इंस्टीटयूट, रिसर्च इंस्टीटयूट, मेडिकल कॉलेजों में भी आसानी से काम मिल जाता है। आप चाहे तो प्राइवेट प्रैक्टिस कर सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
 नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ होम्योपैथी, साल्ट लेक, कोलकाता 
गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, कश्मीरी गेट, दिल्ली 
डॉ. बीआर सूर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज, नानकपुरा, नई दिल्ली 
नेहरू होम्यो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, डिफेंस कॉलोनी, नई दिल्ली
कानपुर होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, कानपुर
 नेशनल होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, लखनऊ
 जीडी मेमोरियल होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना

Wednesday, September 16, 2015

ऑक्यूपेशनल थेरेपी: सेवा और संवेदना की झप्पी

ऑक्यूपेशनल थेरेपी के क्षेत्र में रोजगार की संभावनाएं दिन पर दिन बढ़ती जा रही हैं। आइए जानते हैं इस क्षेत्र के बारे में-
बदलती जीवनशैली और काम के सिलसिले में भागमभाग के चलते लोगों के स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहे हैं, जिनमें शारीरिक व मानसिक अशक्तता प्रमुखता से शामिल हैं। इनसे निजात पाने के लिए उन्हें एक्सपर्ट की मदद लेनी पड़ रही है। संबंधित एक्सपर्ट विभिन्न विधियों से इलाज करते हुए उन्हें समस्या से मुक्ति दिलाते हैं। साथ ही उन्हें मानसिक रूप से भी मजबूत बनाते हैं। कई बार डॉंक्टर के देख लेने के बाद इनकी जरूरत पड़ती है तो कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनमें डॉंक्टर के देखने से पहले ही इनकी सेवा ली जाती है। खासकर मेडिकल और ट्रॉमा सेंटर इमरजेंसी व फ्रैक्चर मैनेजमेंट में तो इनकी विशेष जरूरत पड़ती है। यह पूरा ताना-बाना ऑक्यूपेशनल थेरेपी के अंतर्गत बुना जाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल्स को ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट नाम दिया गया है। इनका काम फिजियोथेरेपिस्ट से मिलता-जुलता है। यही कारण है कि मेडिकल व फिटनेस एरिया में इनकी भारी मांग है।
ऑक्यूपेशनल थेरेपी की जरूरत
ऑक्यूपेशनल थेरेपी का सीधा संबंध पैरामेडिकल से है। इसके अंतर्गत शारीरिक व विशेष मरीजों की अशक्तता का इलाज किया जाता है, जिसमें न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी के उपचार से लेकर अन्य कई तरह के शारीरिक व्यायाम कराए जाते हैं। कई बार मानसिक विकार आ जाने पर कागज-पेंसिल के सहारे मरीजों को समझाया जाता है। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट मरीजों का पूरा रिकॉर्ड अपने पास रखते हैं। इसमें हर आयु-वर्ग के मरीज होते हैं। यह सबसे तेजी से उभरते मेडिसिन के क्षेत्रों में से एक है। इसमें शारीरिक व्यायाम अथवा उपकरणों के जरिए कई जटिल रोगों का इलाज किया जाता है। शारीरिक रूप से अशक्त होने या खिलाडियों में आर्थराइटिस व न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर आने पर ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट की मदद ली जाती है। यही कारण है कि प्रोफेशनल्स को ह्यूमन एनाटमी, हड्डियों की संरचना, मसल्स एवं नर्वस सिस्टम आदि की जानकारी रखनी पड़ती है।
बारहवीं के बाद मिलेगा दाखिला
ऑक्यूपेशनल थेरेपी से संबंधित बैचलर, मास्टर और डिप्लोमा और डॉक्टरल कोर्स मौजूद हैं। यदि छात्र बैचलर कोर्स में प्रवेश लेना चाहता है तो उसका फिजिक्स, केमिस्ट्री व बायोलॉजी ग्रुप के साथ बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण होना  जरूरी है। बैचलर के बाद मास्टर और डॉंक्टरल प्रोग्राम में दाखिला मिल सकता है। कोर्स के बाद छह माह की इंटर्नशिप की व्यवस्था है। कई संस्थान अपने यहां प्रवेश देने के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन कराते हैं, जिसमें सफल होने के बाद विभिन्न कोर्सों में दाखिला मिलता है, जबकि कई संस्थान मेरिट के आधार पर प्रवेश देते हैं।
कौन-कौन से हैं कोर्स
बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी (ऑनर्स)
बीएससी इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
बैचलर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी
डिप्लोमा इन ऑक्यूपेशनल थेरेपी
एमएससी इन फिजिकल एंड ऑक्यूपेशनल थेरेपी
मास्टर ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी
कोर्स से जुड़ी जानकारी
इसमें छात्रों को थ्योरी व प्रैक्टिकल पर समान रूप से अपना फोकस रखना पड़ता है। कोर्स के दौरान ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को कई क्लिनिकल व पैरा क्लिनिकल विषयों का अध्ययन करना होता है। इसमें मुख्य रूप से एनाटमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, मेडिसिन एवं सर्जरी (मुख्यत: डायग्नोस्टिक) आदि विषय शामिल हैं। इसके अलावा इन्हें ऑर्थपीडिक्स, प्लास्टिक सर्जरी, हैंड सर्जरी, रिमैटोलॉजी, साइकाइट्री आदि के बारे में भी थोड़ी-बहुत जानकारी दी जाती है।
आवश्यक स्किल्स
यह एक ऐसा प्रोफेशन है, जिसमें छात्रों को संवेदनशील होने से लेकर वैज्ञानिक नजरिया तक अपनाना पड़ता है, क्योंकि इसमें उन्हें मरीजों के दुख को समझ कर उसके हिसाब से उपचार करने की जरूरत होती है। अच्छी कम्युनिकेशन स्किल, टीम वर्क, मेहनती, रिस्क उठाने और दबाव को झेलने जैसे गुण इस प्रोफेशन के लिए बहुत जरूरी हैं। अधिकांश काम मेडिकल उपकरणों के सहारे होता है, इसके लिए उनका ज्ञान बहुत जरूरी है।
सेलरी
ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट को काफी आकर्षक सेलरी मिलती है। कोर्स समाप्ति के बाद उन्हें शुरुआती दौर में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से मिल जाते हैं, जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यह राशि 30-35 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। प्राइवेट सेक्टर में सरकारी अस्पतालों की अपेक्षा ज्यादा सेलरी मिलती है। यदि ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट स्वतंत्र रूप से या अपना सेंटर खोल कर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती। वे 50 हजार से लेकर एक लाख रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं।
रोजगार के पर्याप्त अवसर
रोजगार की दृष्टि से यह काफी विस्तृत क्षेत्र है। यदि छात्र ने गंभीरतापूर्वक कोर्स किया है तो रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। उसे सरकारी अथवा प्राइवेट अस्पताल में नौकरी मिल जाएगी। सबसे ज्यादा जॉब कम्युनिटी मेडिकल हेल्थ सेंटर, डिटेंशन सेंटर, हॉस्पिटल, पॉलीक्लिनिक, साइक्राइटिक इंस्टीटय़ूशन, रिहैबिलिटेशन सेंटर, स्पेशल स्कूल, स्पोर्ट्स टीम में सृजित होती हैं। एनजीओ भी इसके लिए एक अच्छा विकल्प साबित हो सकते हैं। इसमें एक-तिहाई थेरेपिस्ट पार्ट टाइम को तरजीह देते हैं। यदि वे किसी सेंटर अथवा संस्था से जुड़ कर काम नहीं करना चाहते तो स्वतंत्र रूप से काम करने के अलावा अपना सेंटर भी खोल सकते हैं।
फायदे एवं नुकसान
सेवा व समर्पण की भावना
हर दिन कुछ नया सीखने का अवसर
काम के बाद आत्मसंतुष्टि
घंटों काम करने से थकान की स्थिति
अपेक्षित सफलता न मिलने पर कष्ट
अपने काम के लिए नेटवर्किंग जरूरी
एक्सपर्ट व्यू
चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा छात्रों को

अन्य क्षेत्रों की भांति मेडिकल क्षेत्र भी तेजी से दौड़ रहा है। उसमें कदम-कदम पर रोजगार के अवसर भी सामने आ रहे हैं। कमोबेश यही स्थिति ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट के साथ है। आज युवाओं के लिए यह पसंदीदा क्षेत्र बन चुका है और हर साल इसमें छात्रों की भीड़ बढ़ती जा रही है। भले ही इस क्षेत्र में ढेरों विकल्प हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। कोर्स खत्म होने के बाद नौकरी तलाशने से लेकर अपनी यूनिट स्थापित करने तक में छात्रों की खुद की मेहनत रंग लाती है, इसलिए छात्र अपनी मंजिल खुद तय करें तो फायदेमंद होगा। इसमें थ्योरी व प्रैक्टिकल दोनों की समान जानकारी दी जाती है, क्योंकि दोनों का अपना महत्व है। जो चीजें क्लास में पढ़ाई जाती हैं, लैब में उन्हीं का प्रैक्टिकल कराया जाता है। इस पेशे से संबंधित तकनीक व उपकरण दिन-प्रतिदिन बदलते जा रहे हैं। बाजार में बने रहने के लिए छात्रों को उन नई तकनीकों व आधुनिक उपकरणों से अपडेट रहना होगा।     
- डॉ. वीपी सिंह (डायरेक्टर)
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल साइंस, दिल्ली

इन पदों पर मिलेगा काम
ऑक्यूपेशनल थेरेपी टेक्निशियन
कंसल्टेंट
ऑक्यूपेशनल थेरेपी नर्स
रिहैबिलिटेशन थेरेपी 
असिस्टेंट
स्पीच एंड लैंग्वेज थेरेपिस्ट
स्कूल टीचर
लैब टेक्निशियन
मेडिकल रिकॉर्ड
टेक्निशियन
ओटी इंचार्ज
प्रमुख संस्थान
नेशनल इंस्टीटय़ूट फॉर द ऑर्थोपेडिकली हैंडिकैप्ड, कोलकाता
वेबसाइट
- www.niohkol.nic.in
पं. दीनदयाल इंस्टीटय़ूट फॉर फिजिकली हैंडिकैप्ड, नई दिल्ली
वेबसाइट
- www.iphnewdelhi.in
ऑल इंडिया इंस्टीटय़ूट ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन, मुंबई
वेबसाइट
- www.aiipmr.gov.in
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लौर
वेबसाइट-
www.cmch-vellore.edu
केएमसीएच कॉलेज ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी, कोयम्बटूर वेबसाइट- www.kmchcot.ac.in
संतोष कॉलेज ऑफ ऑक्यूपेशनल थेरेपी, चेन्नई
ईमेल
- info@santoshhospital.org
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास, चेन्नई
वेबसाइट-
www.unom.ac.in

Tuesday, September 15, 2015

मेडिकल टूरिज्म में कैरियर संभावनाएं

पिछले कुछ वर्षों से भारत मेडिकल टूरिज्म के लिए आकर्षक डेस्टिनेशन बना हुआ है। सस्ते और क्वालिटी मेडिकल सर्विसेज के कारण दुनियाभर से लोग यहां इलाज करवाने आ रहे हैं। हर साल लाखों की संख्या में आने वाले मेडिकल टूरिस्ट की वजह से इस फील्ड में जॉब के मौके भी खूब देखे जा रहे हैं। अगर आप इस फील्ड से रिलेटेड डिप्लोमा या सर्टिफिकेट कोर्स कर लेते हैं, तो इसमें शानदार करियर बना सकते हैं…देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और जॉब क्रिएशन में इंडियन हेल्थकेयर इंडस्ट्री का बड़ा रोल माना जा रहा है। ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन, बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज की एक ज्वाइंट रिपोर्ट के अनुसार, 2020 तक हेल्थकेयर सेक्टर में करीब 40 मिलियन से ज्यादा जॉब जेनरेट होने का अनुमान है। उम्मीद की जा रही है कि दुनिया के दूसरे विकसित देशों के मुकाबले भारत में उपलब्ध सस्ते मेडिकल ट्रीटमेंट और एजुकेशन सर्विसेज के कारण यह मेडिकल टूरिज्म का ग्लोबल हब बन सकता है। हर साल लाखों की तादाद में मेडिकल ट्रैवलर्स या टूरिस्ट्स भारत का दौरा करते हैं। करीब 60 से ज्यादा देशों के मरीज इंडिया इलाज कराने आते हैं। इस तरह ग्लोबल टूरिज्म में भारत का हिस्सा लगभग तीन प्रतिशत है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2015 तक हेल्थकेयर टूरिज्म का मार्केट 11 हजार करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। जाहिर है, मेडिकल टूरिज्म सेक्टर में युवाओं के लिए अपॉच्र्युनिटीज की कमी नहीं रहेगी।
क्या है मेडिकल टूरिज्म
मेडिकल टूरिज्म को मेडिकल ट्रैवल भी कहते हैं, जिसमें टूरिज्म इंडस्ट्री और मेडिकल केयर के सहयोग से विदेशी या देशी पर्यटकों को कम खर्च पर मेडिकल की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। ट्रीटमेंट के साथ-साथ सैलानियों को उस जगह या देश को एक्सप्लोर करने का मौका भी दिया जाता है। उन्हें अपने घर जैसा एहसास कराया जाता है। लोकेशन या ट्रीटमेंट प्रोसिजर के आधार पर मेडिकल वैकेशन में विदेशी सैलानियों की 10 से लेकर 50 प्रतिशत तक की बचत हो जाती है। वहीं, मेडिकल टूरिज्म प्रोवाइडर्स लोगों को मेडिकल फैसिलिटी, सेफ्टी और लीगल इश्यूज के अलावा हॉस्पिटल्स, क्लीनिक्स, डॉक्टर्स, ट्रैवल एजेंसीज, रिजॉट्र्स, ट्रैवल इंश्योरेंस आदि की जानकारी देता है। इस तरह वह मरीज और हेल्थकेयर प्रोवाइडर के बीच सेतु का काम करता है। पूरे मेडिकल ट्रिप, ट्रीटमेंट के अलावा टूरिज्म एक्टिविटीज की प्लानिंग करता है।
एजुकेशनल क्वालिफिकेशन
अगर आपका रुझान इस क्षेत्र में है, तो आप हायर सेकंडरी या ग्रेजुएशन के बाद मेडिकल टूरिज्म से रिलेटेड कोर्स कर सकते हैं। इंडिया में कई इंस्टीट्यूट्स मेडिकल टूरिज्म में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा और एमबीए कोर्स संचालित करते हैं। इसके तहत कैंडिडेट को ट्रैवल और टूरिज्म इंडस्ट्री के साथ लॉजिस्टिक्स, हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री की भी जानकारी दी जाती है। रेगुलर के अलावा ऑनलाइन और डिस्टेंस एजुकेशन के जरिए भी मेडिकल टूरिज्म से संबंधित कोर्स किए जा सकते हैं। मार्केटिंग, पीआर प्रोफेशनल्स भी इस इंडस्ट्री से जुड़ सकते हैं।
पर्सनल स्किल
मेडिकल टूरिज्म सेक्टर में करियर बनाने के लिए आपके पास स्ट्रॉन्ग कम्युनिकेशन, लीडरशिप और ऑर्गेनाइजेशनल स्किल होनी चाहिए। आपको अलग-अलग जगहों और हॉस्पिटल्स की पूरी नॉलेज होनी चाहिए, ताकि विदेशी सैलानियों को अस्पताल के चुनाव में सही से गाइडेंस दे सकें। आपको हेल्थकेयर से संबंधित कानूनों और सरकारी नियमों की भी जानकारी होनी चाहिए। मेडिकल टूरिज्म के प्रोफेशनल्स के पास प्राइसिंग, कंटेंट, ट्रीटमेंट, हॉस्पिटल रेटिंग, एक्रीडिशन के साथ-साथ अमुक देश की वीजा पॉलिसी की भी जानकारी होनी चाहिए।
करियर अपॉच्र्युनिटी
मेडिकल टूरिज्म प्रोफेशनल्स के लिए हेल्थकेयर के अलावा टूरिज्म सेक्टर में संभावनाओं की कमी नहीं है। आप गेस्ट रिलेशनशिप मैनेजर, हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेटर, मेडिकल टूर कंसल्टेंट, स्पा थेरेपिस्ट, मैनेजर, पब्लिक रिलेशन पर्सनल, ट्रैवल एडवाइजर, इंश्योरेंस फैसिलिटेटर, एंटरप्रेटर, शेफ के तौर पर गवर्नमेंट या प्राइवेट हॉस्पिटल, ट्रैवल फर्म, एयरलाइंस, होटल्स, स्पा सेंटर में काम कर सकते हैं।
सैलरी
प्राइवेट या गवर्नमेंट हॉस्पिटल या ट्रैवल कंपनी में काम करने वाले फ्रेश ग्रेजुएट्स को शुरुआत में 10 से 15 हजार रुपये मिल जाते हैं। वैसे, काफी कुछ कंपनी, आपके अपने क्वालिफिकेशन, एक्सपीरियंस और परफॉर्मेंस पर निर्भर करता है। इस फील्ड में आप कम से कम 20 हजार रुपये से शुरुआत कर सकते हैं। वहीं, एमबीए ग्रेजुएट्स को उनके अनुभव के अनुसार, 30 से 50 हजार रुपये के बीच में आसानी से मिल सकता है।

विशेषज्ञों की राय

जामिया मिलिया इस्लामिया में ट्रेवल एंड टूरिज्म कोर्स के प्रोफेसर जैदी का कहना है कि मेडिकल टूरिज्म हमारे यहां चल रहे ट्रेवल एंड टूरिज्म कोर्स का हिस्सा है। चूंकि विकसित देशों में चिकित्सीय सुविधाएं महंगी हैं इसलिए अरब, नाइजीरिया और फ्रांस आदि से पर्यटक बड़ी संख्या में हमारे देश में ईलाज कराने आते हैं। इसके चलते मेडिकल टूरिज्म के क्षेत्र में प्रतियोगिता बढ़ रही है। इस मामले में भारत की प्रतियोगिता सिंगापुर और फिलिपींस से है।

इस क्षेत्र में और अवसर बढ़ें इसके लिए जरूरी है कि यहां मेडिकल टूरिज्म के लिए आने वाले पर्यटकों को वाजिब दामों में बिना किसी हेर-फेर के जरूरी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं और साथ ही ईलाज कराने के बाद वे अगर किसी धार्मिक स्थल की यात्रा करना चाहें तो उसके लिए भी उन्हें सही सलाह देने के साथ ही बढ़िया पैकेज दिए जाएं।

वहीं इंस्टिट्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, इंडिया के दिल्ली कैंपस की जोनल मैनजर चारू साहनी का कहना है कि भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं और इंफ्रास्ट्रक्चर में अच्छी-खासी प्रगति हो रही है जिसकी वजह से यहां आकर अपना इलाज कराने वाले पर्यटकों की संख्या में भारी इजाफा हो रहा है और इसकी वजह से मेडिकल टूरिज्म को अब हमारे देश में बहुत बढ़ावा मिल रहा है।

इसके चलते इन दिनों कई निजी इंस्टिट्यूट छात्रों को मेडिकल टूरिज्म में स्पेशल कोर्स करवा रहे हैं। इस पेशे में प्रशिक्षित पेशेवरों की इन दिनों खूब मांग है। हमारे देश में मिडिल ईस्ट देशों से काफी पर्यटक खासतौर से अपना ईलाज कराने आते हैं। ऐसे में उन्हें हर तरह की मेडिकल सुविधाएं, होटल इत्यादि मुहैया करना ही मेडिकल टूरिज्म प्रोफेशनल का काम है।

यहां है पेशेवरों की मांग
इन दिनों कई बड़ी ट्रेवल एजेंसियों में मेडिकल टूरिज्म का अलग डिपार्टमेंट होता है। इसके अलावा बड़े अस्पतालों में भी मेडिकल टूरिज्म डेस्क की सुविधा होती है। यह डेस्क उन पर्यटकों की मदद के लिए होता है जो भारत में ईलाज कराने आते हैं। कई प्राइवेट एयरलाइंस में भी मेडिकल टूरिज्म हेल्प डेस्क की सुविधा होती है।

योग्यता
मेडिकल टूरिज्म में इन दिनों कई इंस्टिट्यूट कई तरह के डिग्री, सर्टिफिकेट और बैचलर कोर्स कराते हैं। इसके अलावा हेल्थकेयर में एमबीए भी कई इंस्टिट्यूट करवा रहे हैं। जहां तक बात है सर्टिफिकेट कोर्स की तो इसके लिए आपका किसी भी स्ट्रीम से 12वीं पास होना जरूरी है। इसके अलावा एमबीए प्रोग्राम के लिए बैचलर डिग्री की आवश्कता है।

यहां से करें कोर्स :
1. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय
पता - जामिया नगर, नई दिल्ली।
फोन - 011-26981717, 26984617

2. इंस्टिट्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च
पता - ए-201, ओखला इंडस्ट्रीयल एरिया, फेज-1
फोन - 011-40651000

3. इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड हाईजीन
पता - आरजेड-ए-44, महिपालपुर एक्सटेंशन, नई दिल्ली।
फोन - 011-26781075/76

Monday, September 14, 2015

क्लिनिकल रिसर्च को बनायें अपना करियर

जब कोई नई दवा लांच करने की तैयारी होती है, तो दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार है, इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल होता है। भारत की जनसंख्या और यहां उपलब्ध सस्ते प्रोफेशनल की वजह से यह कारोबार तेजी से फलने-फूलने लगा है। यदि आप भी इस बढ़ते हुए बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो क्लीनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े कोर्स कर सकते हैं…
क्लीनिकल रिसर्च एक ऐसा प्रोसेस है, जिसके माध्यम से तमाम नई दवाओं को बाजार में लांच करने से पहले उन्हें जानवरों और इनसानों पर टेस्ट किया जाता है। मोटे तौर पर किसी दवा को लैब से केमिस्ट की शॉप तक पहुंचने में 12 साल का वक्त लग जाता है। जानवरों पर प्री-क्लीनिकल टेस्ट करने के बाद इन दवाओं को इनसानों पर टेस्ट किया जाता है। जिसके तीन फेज होते हैं। टेस्टिंग के लिए इन तीनों फेजों में पहले के मुकाबले ज्यादा संख्या में लोगों को शामिल किया जाता है। इन तीनों फेजों का टेस्ट हो जाने के बाद कंपनी सभी नतीजों को एफडीए या टीपीडी को सौंप देती है, जिसके आधार पर एनडीए(न्यू ड्रग अप्रूवल) मिलता है। एक बार एनडीए हासिल हो जाने के बाद कंपनी उस ड्रग को मार्केट में उतार सकती है। जब कोई नई दवा लांच करने की तैयारी होती है, तो दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार है, इसके लिए क्लीनिकल ट्रायल होता है। भारत की जनसंख्या और यहां उपलब्ध सस्ते प्रोफेशनल की वजह से क्लीनिकल का कारोबार तेजी से फलन-फूलने लगा है। यदि आप भी इस बढ़ते हुए बाजार का हिस्सा बनना चाहते हैं, तो क्लीनिकल ट्रायल या क्लीनिकल रिसर्च से जुड़े कोर्स कर सकते हैं। भारत में क्लीनिकल ट्रायल इंडस्ट्री करीब 30 करोड़ डॉलर की है और आने वाले समय में बढ़ कर यह इंडस्ट्री दो अरब डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। गौरतलब है कि दुनिया की प्रमुख दवा कंपनियां अब क्लीनिकल रिसर्च संबंधी जरूरतों के लिए भारतीय बाजार की ओर रुख कर रही हैं।
क्या है क्लीनिकल रिसर्च
क्लीनिकल रिसर्च में किसी मेडिकल उत्पाद के फायदे- नुकसान, जोखिम व प्रभावशीलता का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। मोटे तौर पर कहा जाए तो किसी दवाई को बाजार में लांच करने से पहले उसका वैज्ञानिक अध्ययन क्लीनिकल रिसर्च के अंतर्गत ही आता है। क्लीनिकल शोधकर्ताओं द्वारा रोग के कारण और रोग के बढ़ने की प्रक्रिया, रोगी का बेहतर इलाज कैसे हो सकता है, इसका आकलन करने के बारे में भी जानकारी दी जाती है। यह सब अध्ययन क्लीनिकल रिसर्च के दायरे में आता है।
प्रमुख नियोक्ता
सिपला, रेनबैक्सी, फाइजर, जोनसन एंड जोनसन, असेंचर,एक्सेल लाइफ  इंश्योरेंस, पैनेसिया बायोटेक, जुबलिएंट, परसिस्टेंट जैसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र में मौजूद हैं। एमबीए फार्मा इस उद्योग के लिए विशेष कोर्स है। इसमें फार्मास्यूटिकल मैनेजमेंट शामिल है।
प्रमुख कोर्सेज
*   एडवांस प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च
*   डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च
*   बीएससी इन क्लीनिकल लैबोरेटरी टेक्नोलाजी
*   बीएससी इन क्लीनिकल माइक्रोबायोलॉजी
*   सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च
*   इंटिग्रेटेड पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च
*   एमएससी इन क्लीनिक माइक्रोबायोलॉजी
*   पीएचडी इन क्लीनिकल रिसर्च
*   कारेसपोंडेंट कोर्स इन क्लीनिकल रिसर्च
*   डिस्टेंस लर्निंग प्रोग्राम इन क्लीनिकल रिसर्च
*   प्रोफेशनल डिप्लोमा इन क्लीनिकल रिसर्च
*   बैचलर डिग्री इन क्लीनिकल रिसर्च
प्रमुख संस्थान
*   इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज शिमला
*   चित्कारा यूनिवर्सिटी, बरोटीवाला
*   मानव भारती यूनिवर्सिटी, सोलन
*   कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र
*   नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल रिसर्च पटियाला
*   ढिल्लों आयुर्वेदिक चैरिटेबल हास्पिटल एंड रिसर्च सेंटर, जालंधर
*   पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी जालंधर
*   पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़
*   गुरु गोबिंद सिंह इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च, बठिंडा
*   जीएनडी डेंटल कालेज एंड रिसर्च इंस्टीच्यूट, संगरूर
*   एनोवस इंस्टीच्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, चंडीगढ़
*   इंस्टीच्यूट ऑफ  क्लीनिकल रिसर्च, दिल्ली
रोजगार की संभावनाएं
टेलेंटेड लोगों का एक बड़ा पूल और तमाम तरह के मरीजों की बढ़ती संख्या के चलते भारत में क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में अवसर तेजी से बढ़ रहे हैं। क्लीनिकल प्रोफेशनल्स की मांग और सप्लाई में भारी अंतर के कारण ही भारत में कई ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट शुरू किए गए हैं।  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस उद्योग में बहुत अच्छा वेतन मिलता है, जो सालाना 40 हजार डॉलर से लेकर एक लाख डॉलर तक होता है। भारत में शुरुआती सालाना सैलरी 1.8 लाख से लेकर पांच लाख रुपए तक होती है। तेज गति से बढ़ोतरी के बावजूद भारत में अच्छे क्लीनिकल प्रैक्टिस वाले प्रशिक्षित इन्वेस्टिगेटर्स, बायो एनालिटिकल साइंटिस्ट और फार्मा कोकाइनेटिक्स की काफी कमी है। इसके अलावा आप रिसर्च एग्जीक्यूटिव, क्लीनिकल रिसर्च एडवाइजर, प्रोजेक्ट मैनेजर, ग्रुप प्रोजेक्ट मैनेजर और आपरेशन डायरेक्टर के रूप में भी बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। अपनी क्वालिफिकेशन के आधार पर आप इस क्षेत्र में कैरियर बना सकते हैं। अगर आप क्लीनिकल आपरेशंस और प्रोजेक्ट के क्षेत्र में जाना चाहते हैं, तो आपके पास लाइफ साइंस, खासतौर से फार्माकोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, बायोलॉजी, इम्यूनोलॉजी, फिजियोलॉजी में डिग्री होनी चाहिए। इस क्षेत्र से जुड़े लोग ही सीधे तौर पर क्लीनिकल रिसर्च के लिए जिम्मेदार होते हैं। जिन लोगों का केमिस्ट्री या इंजीनियरिंग बैकग्राउंड है, वे क्वालिटी एश्योरेंस या नए कंपाउंड को डिवेलप करने का काम कर सकते हैं। क्लीनिकल डाटा मैनेजर के रूप में काम करने के लिए आपके पास आईटी डिग्री होनी चाहिए।
वेतनमान
आजकल क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में रोजगार की बेहतर संभावनाएं हैं और इस क्षेत्र में योग्य प्रोफेशनल्ज की मांग में भी वृद्धि हुई है। क्लीनिकल रिसर्च के क्षेत्र में एक फ्रेशर का वेतनमान 15000 या इससे अधिक प्रतिमाह हो सकता है। यदि आपके पास मास्टर डिग्री है, तो वेतनमान दोगुना हो जाता है। निजी कंपनियों में अनुभव मायने रखता है और इस आधार पर आप आकर्षक वेतनमान प्राप्त कर सकते हैं।
शैक्षणिक योग्यता
क्लीनिकल रिसर्च के कोर्स में एंट्री के लिए दस जमा दो मेडिकल होना जरूरी है। इसके अलावा डी फार्मा बी फार्मा एम फार्मा आदि के स्टूडेंट्स भी इस कोर्स में प्रवेश ले सकते हैं। कई प्रतिष्ठित संस्थानों से क्लीनिकल रिसर्च में डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि किया जा सकता है।

Sunday, September 13, 2015

ऑप्टोमेट्री में संवारें भविष्य


आँखें हैं तो जहान है।' यह उक्ति शायद इसीलिए कही जाती है क्योंकि आँखों के माध्यम से ही दुनिया के रंगों और प्रकृति की छटाओं के दर्शन किए जा सकते हैं। लेकिन ऐसे करोड़ों लोग हैं जो किसी न किसी तरह के नेत्र रोग से ग्रस्त होकर इस दुनिया को देखनहीं पाते हैं। ऐसे में नेत्र रोग विशेषज्ञ वह शख्स होता है, जो सूनी आँखों को रोशन कर नेत्रहीनों की जिंदगी में उजियारा भर सकता है।

बहुत डिमांड है ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की
भारत में करीब एक करोड़ लोग अंधत्व के शिकार हैं। इनमें से अधिकांश दृष्टिहीन लोग ऐसे हैं जो छोटे-मोटे नेत्र रोगों का शिकार होकर इस स्थिति को पहुँचे हैं। यदि उन्हें समय पर नेत्र चिकित्सा मिल जाती तो उन्हें दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता था। लेकिन योग्य क्वालिफाइड नेत्र रोग विशेषज्ञ के अभाव में अंधत्व बढ़ा है।

लेकिन अब धीरे-धीरे हालात सुधरे हैं और लोगों की नेत्र सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने से नेत्र रोग विशेषज्ञों की माँग बढ़ी है। फिर भी माँग की तुलना में पूर्ति कम है। यही कारण है कि नेत्र रोग विशेषज्ञों की साख भी बढ़ी है और करियर निर्माण के अवसर भी खूब बढ़े हैं।

क्या करते हैं ऑप्थल्मोलॉजिस्ट्स
वस्तुतः ऑप्थल्मोलॉजिस्ट एक मेडिकल डॉक्टर होता है, जो सभी तरह के नेत्र विकारों तथा बीमारियों का मूल्यांकन और जाँच कर उपचार करता है। वह ऑपरेशन और सर्जरी भी करता है। ऑप्थल्मोलॉजिस्ट द्वारा किए जाने वाले उल्लेखनीय कार्यों में दृष्टिबाधिता की रोकथाम तथा निवारण अथवा चिकित्सा और सर्जरी द्वारा दृष्टिदोष को दूर करना तथा मोतियाबिंद को हटाना शामिल है।

इसके अलावा आँखों से जुड़ी अन्य सामान्य स्थितियों- आँखों की लाली, सूखी आँख, ज्यादा आँसू निकलना, दिखाई न देना, ग्लूकोमा, डाइबेटिक रेटिनल रोग, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, मायोनिया, हाइपरमेट्रोपिया, मेक्यूलर डिजनरेशन, आक्यूलर ट्रौमा तथा कंजेक्टिवाइटिस का उपचार भी ऑप्थल्मोलॉजिस्ट करते हैं।

अंतर है ऑप्थल्मोलॉजी और ऑप्टोमेट्री में
ऑप्थल्मोलॉजी और ऑप्टोमेट्री के बीच का अंतर बार-बार भ्रम पैदा करता है। इस तथ्य के अतिरिक्त कि दोनों का संबंध आँखों की देखभाल से है, इस गलतफहमी में योगदान देने वाले अन्य कई घटक हैं। ऐसा ही एक तथ्य यह है कि अक्सर ऑप्टोमेट्रिस्ट को 'आँखों काडॉक्टर' कहकर संबोधित कर दिया जाता है, यद्यपि उसके पास ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की तरह कोई मेडिकल डिग्री नहीं होती है।

यद्यपि ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास डॉक्टर ऑफ ऑप्टोमेट्री (ओडी) की डिग्री होती है, जिसके आधार पर वह ऑप्टोमेट्री की प्रैक्टिस तो कर सकता है, लेकिन मेडिसिन की प्रैक्टिस करने की उसे इजाजत नहीं होती है। परंपरागत रूप से ऑप्टोमेट्री की प्रैक्टिस में करेक्टिव लैंसेस के लिए आँखों की जाँच तथा कुछ हद तक सीमित नेत्र रोगों की पहचान तथा नॉनसर्जिकल मैनेजमेंट शामिल होता है। प्रैक्टिस के ऑप्टोमेट्रिक कार्यक्षेत्र में स्थिति-दर-स्थिति पर्याप्त अंतर होता है, जिनमें से कुछ स्थितियों में अन्य स्थितियों की बनिस्बत ज्यादा फार्मास्युटिकल एजेंट्स के उपयोग की अनुमति होती है।

इसकी तुलना में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस का दायरा काफी विस्तृत होता है। ऑप्थल्मोलॉजिस्ट एक मेडिकल डॉक्टर (एमडी) होता है, जो आँखों की डाइग्नोसिस, आक्यूलर रोगों तथा दोषों के प्रबंधन और सर्जरी सहित आँखों की देखभाल से संबंधित सभी पहलुओं का विशेषज्ञ होता है। किसी ऑप्टोमेट्रिस्ट और ऑप्थल्मोलॉजिस्ट के प्रशिक्षण में काफी अंतर होता है।

आप्टोमेट्रिस्ट को हाईस्कूल के पश्चात सात वर्ष का ही प्रशिक्षण मिलता है, जिसमें तीन से चार साल कॉलेज और तीन साल का किसी ऑप्टोमेट्रिक कॉलेज का प्रशिक्षण शामिल है। जबकि ऑप्थल्मोलॉजिस्ट हाईस्कूल के बाद कम से कम 12 वर्ष की शिक्षा प्राप्त करता है, जिसमें चार साल कॉलेज की शिक्षा, चार साल मेडिकल स्कूल, एक या अधिक वर्ष की जनरल मेडिकल या सर्जिकल ट्रेनिंग और तीन या चार साल का हॉस्पिटल आधारित आई रेसीडेंसी कार्यक्रम शामिल है। इसके बाद प्रायः एक या इससे अधिक वर्ष की स्पेशियलिटी फैलोशिप से भी नेत्र विशेषज्ञों को गुजरना पड़ता है।

ऑप्टोमेट्रिस्ट को दृष्टिदोष को सुधारने के अध्ययन के अलावा उन्हें नेत्र रोगियों पर प्रशिक्षण के सीमित अवसर ही मिल पाते हैं। इसकी तुलना में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की पूर्व चिकित्सीय शिक्षा होती है, जिसके बाद उन्हें ऑप्थल्मोलॉजी के व्यापक सर्जिकल तथा क्लिनिकल प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है।

ऑप्टोमेट्रिस्ट जहाँ दृष्टिदोष दूर करने के लिए आँखों के नंबर की जाँच कर सही नंबर के ग्लास, कांटेक्ट लैंस लगाने की सलाह देते हैं, वहीं ऑप्थल्मोलॉजिस्ट इन कार्यों के अलावा आँखों की बीमारियों की पहचान, उपचार और आवश्यकता पड़ने पर शल्यक्रिया भी करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो ऑप्टोमेट्रिस्ट एक तकनीशियन होता है तो ऑप्थल्मोलॉजिस्ट आँखों का एक्सपर्ट, स्पेशलिस्ट और डॉक्टर होता है।

इन दिनों नेत्र सुरक्षा के प्रति आम लोगों की जागरूकता बढ़ने से ऑप्थल्मोलॉजी के क्षेत्र में करियर निर्माण के अवसर भी विकसित हुए हैं। प्रस्तुत है इस ऑप्थल्मोलॉजी से संबंधित कुछ सवाल-जवाब :-

विगत वर्षों में करियर निर्माण की दृष्टि से ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र किस तरह विकसित हुआ है?

-यह सही है कि कुछ वर्ष पूर्व तक कई छात्रों का ऑप्थल्मोलॉजी के प्रति इतना रुझान नहीं था। यदि उन्हें जनरल सर्जरी अथवा पसंदीदा अध्ययन क्षेत्र नहीं मिलता तब ही वे ऑप्थल्मोलॉजी का विकल्प चुनते थे। लेकिन तब भी इस क्षेत्र में काफी स्कोप था। हमारे यहाँ ऐसे कई नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, जिनका नाम और काम दूर-दूर तक फैला हुआ है।

ऑप्थल्मोलॉजिस्ट के प्रति सत्तर के दशक में सकारात्मक बदलाव आया। उस समय लोगों ने यह महसूस करना आरंभ किया कि रोजगार की दृष्टि से इस क्षेत्र में ढेर सारी संभावनाएँ हैं। आज भी इस क्षेत्र में योग्य प्रोफेशनल्स की कमी के चलते करियर निर्माण की बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं। धीरे-धीरे ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र उन मेडिकल स्टूडेंट्स की पहली पसंद बन गया, जिन्होंने यह महसूस करने के बाद कि ऑप्थल्मोलॉजी का मतलब केवल ग्लुकोमा या मोतियाबिंद का उपचार हीनहीं इससे कहीं ज्यादा है, इस क्षेत्र में करियर आजमाना चाहा है।

क्या यह लड़कियों के लिए आदर्श विकल्प है?-बेशक! यह ऐसा करियर भी है, जिसने लड़कों के साथ लड़कियों को भी समान रूप से आकर्षित किया है। जहाँ तक मेडिकल प्रोफेशन की बात है यहाँ कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनके प्रति लड़कों और लड़कियों में पूर्वाग्रह की स्थिति होती है। उदाहरण के लिए लड़के गायनेकोलॉजी का क्षेत्र पसंद नहीं करते हैं तो लड़कियाँ जनरल सर्जरी से बचना चाहती हैं। फिर भी यदि आप ऑप्थल्मोलॉजी को देखें तो यहाँ लिंगभेद नहीं है।

रोगी को जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती कि पुरुष अथवा लेडी डॉक्टर कौन उसका उपचार कर रहा है। यहाँ ऐसी स्थिति भी कम ही आती है जब डॉक्टर को मरीज की जान बचाने जैसा कोई निर्णय लेना होता है। चूँकि महिलाएँ नाजुक होती हैं उनके हाथों में नजाकत होती है, इसलिए मरीज भी चाहते हैं कि लेडी डॉक्टर उनका उपचार करे। इस दृष्टि से ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र लड़कियों के लिए एक आदर्श विकल्प है।

ऑप्थल्मोलॉजी में प्राइवेट प्रैक्टिस का क्या ट्रेंड है?-यह एक महँगा लेकिन लाभप्रद सौदा है। चूँकि इस क्षेत्र में उपचार की आधुनिक मशीनें विदेशों से आयात की जाती हैं, इसलिए आउट पेशेंट और सर्जिकल प्रैक्टिस के लिए अच्छाखासा निवेश करना जरूरी होता है। जहाँ किसी चिकित्सक के लिए इतना निवेश करना संभव नहीं होता, वहाँ कुछ नेत्र रोग विशेषज्ञ मिलकर ग्रुप प्रैक्टिस कर रहे हैं। इससे फायदा यह होता है कि उपकरणों पर खर्च का अधिकतम उपयोग हो जाता है। अधिकांश मरीज आँखों जैसे नाजुक अंग के लिए भरोसेमंद उपचार चाहते हैं जो प्राइवेट नेत्र चिकित्सकों से संभव है। इसलिए इस क्षेत्र में प्राइवेट प्रैक्टिस का भविष्य उज्ज्वल है।

आप्थल्मोलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च के लिए क्या अवसर उपलब्ध हैं?-इस क्षेत्र में सामान्यतः दो तरह की रिसर्च होती है- बेसिक रिसर्च तथा क्लिनिकल रिसर्च। चूँकि बेसिक रिसर्च के लिए पैसा लगाना मुश्किल होता है और इससे आय भी संभावित नहीं है इसलिए यह रिसर्च मुख्यतः सरकारी संस्थानों में किया जाता है। इस क्षेत्र में किए गए अधिकांशअनुसंधान क्लिनिकल प्रकृति के हैं जैसे कि किस खास तरीके का उपचार अपनाया जाए अथवा विशेष रोग के लिए क्या विशेष उपचार होना आदि। वास्तव में देखा जाए तो हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में रिसर्च हेतु प्रस्तुत पेपर और टॉपिक्स में खासी वृद्धि हुई है। लिहाजा इस क्षेत्र मेंरिसर्च के अच्छे अवसर हैं।

इस क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स को अंतरराष्ट्रीय ख्याति कैसे मिल सकती है?
-वह आपका काम ही होता है जो आपका नाम रोशन करता है। ऑप्थल्मोलॉजी क्षेत्र के कुछ भारतीय प्रोफेशनल्स को विदेशों में व्याख्यान देने तथा सम्मेलनों में प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। कई ऑप्थल्मोलॉजिस्ट पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद साल-दो साल के लिए विदेश जाकर वहाँ की नवीनतम प्रौद्योगिकियों को देखते हैं। अब भारतीय नेत्र रोग विशेषज्ञ इस क्षेत्र में अच्छी तरह से अपडेट हैं। लिहाजा सभी तरह से ऑप्थल्मोलॉजिस्ट का करियर एक अच्छा विकल्प है।

कैसे बनें ऑप्थल्मोलॉजिस्ट या नेत्र रोग विशेषज्ञ?
ऑप्थल्मोलॉजिस्ट बनने के लिए आपको सबसे पहले पीएमटी या अन्य किसी प्रचलित प्रवेश परीक्षा के माध्यम से चयनित होकर एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करनी होगी। उसके बाद आपको ऑप्थल्मोलॉजी में एमएस की डिग्री लेनी होगी। यदि आप चाहें तो डीओएमएस (डिप्लोमा इन ऑप्थल्मिक मेडिसिन एंड सर्जरी) कर सकते हैं तथा आपको अपनी इंटर्नशिप पूर्ण करनी चाहिए। इस क्षेत्र की विशेषज्ञताओं में कार्निया तथा बाह्य रोग, स्ट्रेबिस्मोलॉजी, ऑप्थल्मिक पैथोलॉजी, ऑप्थल्मोप्लॉस्टि, ग्लूकोमा, सुइंट एंड आर्थोप्टिक्स, रेटिना एंड विट्रेयस, न्यूरो ऑप्थल्मोलॉजी तथा पेडिएट्रिक ऑप्थल्मोलॉजी शामिल है।

सॉफ्ट स्किल्स
किसी भी अच्छे ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की सॉफ्ट स्किल्स या कौशल में ये बातें शामिल होनी चाहिए कि वह सहज हो, उसमें कार्य के प्रति निपुणता हो तथा वह पूरी तरह दक्ष हो। आधुनिक चिकित्सा ने दृष्टिदोष दूर करने तथा विकारों को सुधारने में भारी योगदान किया है। इससेइन क्षेत्रों में यह सुनिश्चितता हो गई है कि असामान्यता तथा विकलांगता ठीक हो सकती है तथा नेत्र रोग विशेषज्ञ इन दोषों को दूर कर जहाँ तक संभव हो सामान्य जीवन जीने लायक बना देते हैं।

संस्थान
 1. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, दिल्ली
 2. जामिया हमदर्द, फैकॅल्टी ऑफ मेडिसिन, दिल्ली
 3. स्कूल ऑफ ऑप्टोमेट्री : गांधी नेत्र अस्पताल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
 4. स्कूल ऑफ ऑप्टोमेट्री : जनकल्याण नेत्र अस्पताल, लखनऊ
 5. सीतापुर आई हॉस्पिटल, सीतापुर
 6. वीबीएस पूर्वाचल यूनिवर्सिटी, जौनपुर
 7. इंदिरागांधी इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंस, पटना
 8. पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना
 9. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पटियाला
 10. मेडिकल कॉलेज, अमृतसर
 11. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्टोमेट्रिक साइंस, कोलकाता


नाम भी कमाएँ, दाम भी पाएँ
इन दिनों नेत्र रोगों तथा दोषों को दूर करने में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट आधुनिक शल्यक्रियाओं यथा आरके और लेजर थैरेपी का प्रयोग कर रहे हैं, उसकी सफलता से प्रेरित होकर न केवल गंभीर रोगी बल्कि सामान्य लोग जिनमें लड़कियाँ, खिलाड़ी, एक्जीक्यूटिव, फिल्मी सितारे शामिल हैं, अच्छीखासी रकम खर्च करने को तैयार हैं। इस देश में जहाँ उल्लेखनीय काम कर नाम कमाया जा सकता है, वहीं कॉस्मेटिक सर्जरी अथवा नेत्र सौंदर्य द्वारा अच्छी आय भी अर्जित की जा सकती है।


Friday, September 11, 2015

फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट हेल्थ भी, वेल्थ भी

फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट में कैरियरआमतौर पर यह समझा जाता है कि मेडिसिन की दुनिया डॉक्टरों, मरीजों के इलाज और दवाएं देने तक ही सीमित है लेकिन नहीं। मेडिसिन यानी फार्मास्युटिकल का क्षेत्र आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती इंडस्ट्री में से एक है। यही कारण है कि आज इसमें दवाओं के वितरण, मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस, फार्मा मैनेजमेंट आदि में स्किल्ड लोगों की मांग में काफी तेजी आ गई है। भारत जैसी विशाल आबादी और बेरोजगारी वाले देश में यह क्षेत्र भी जॉब की दृष्टि से संभावनाओं से भरा हुआ है। यदि आपने बीएससी, बीफार्मा या डीफार्मा करके फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट में डिप्लोमा कर लिया, तो फिर राष्ट्रीय/बहुराष्ट्रीय कंपनियों में विभिन्न पदों पर नौकरियां बाहें पसारे खड़ी है। खास बात तो यह है कि इस फील्ड में आकर्षक वेतन भी मिल रहा है और प्रोग्रेस की संभावनाएं भी भरपूर हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के निदेशक प्रो. ऋषि मोहन कहते हैं कि सामान्य उत्पादों की मार्केटिंग के लिए जहां सीधे डीलर या कस्टमर से संपर्क करना होता है, वहीं दवाओं की मार्केटिंग में डॉक्टर एक अहम कड़ी होता है। सबसे पहले दवा की खूबियों के बारे में डाक्टरों को संतुष्ट करना जरूरी होता है, तभी वे इसे अपने मरीजों के प्रिस्क्रिप्शन में लिखते हैं। इसके अलावा डाक्टरों से संपर्क तथा दुकानों में दवा की उपलब्धता के बीच भी सामंजस्य बना कर चलना होता है। फार्मा मैनेजमेंट के क्षेत्र में काम करने के लिए मैनेजमेंट के साथ दवा निर्माण में इस्तेमाल होने वाले पदार्थों एवं तकनीक का भी ज्ञान होना चाहिए। पहले दवाओं एवं चिकित्सा उपकरणों के विपणन के क्षेत्र में किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं समझी जाती थी। कोई भी विज्ञान स्नातक इस काम के लिए नियुक्त कर लिया जाता था। लेकिन मल्टीनेशनल कंपनियों के आने के बाद प्रतिस्पर्धा बढ़ने के कारण आज दवा कंपनियां मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव, मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव अथवा मार्केटिंग ऑफिसर के रूप में प्रशिक्षित लोगों को ही रखना चाहती हैं। इसी जरूरत को देखते हुए फार्मा मार्केटिंग कोर्स की शुरुआत की गई है।


फार्मा इंडस्ट्री में बूम


फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी इंडस्ट्री है, जिसमें पिछले कुछ वर्षों से हर साल 8 से 10 प्रतिशत की गति से इजाफा हो रहा है। इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 42 हजार करोड़ रुपए से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। भारत में फार्मास्युटिकल का विशाल बाजार देखते हुए विदेशी मल्टीनेशनल कंपनियां इसमें काफी रुचि दिखा रही हैं। दिलचस्प बात यह है कि इस समय भारत के मेडिसिन मार्केट के 75 प्रतिशत पर भारतीय कंपनियों का ही कब्जा है, जबकि शेष मात्र 25 प्रतिशत ही एमएनसीज के हाथ में हैं। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 8 बिलियन डॉलर का था, जिसके 2010 तक 25 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है। भारत में इस समय 23 हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं, हालांकि इनमें से करीब 300 ही आर्गेनाइज्ड सेक्टर में हैं। एक अनुमान के अनुसार इस इंडस्ट्री में तकरीबन दो लाख लोगों को काम मिला हुआ है। फार्मा इंडस्ट्री की वर्तमान प्रगति को देखते हुए अगले कुछ वर्षों में इस इंडस्ट्री को दो से तीन गुना स्किल्ड लोगों की जरूरत होगी। भारत में रिसर्च एंड डेवलपमेंट प्रोफेशनल्स की अपार संभावना को देखते हुए मल्टीनेशनल कंपनियां यहां शोध व विकास गतिविधियों के लिए भारी निवेश कर रही हैं। उदाहरण के लिए आर एंड डी (शोध व विकास) पर वर्ष 2000 में जहां महज 320 करोड़ रुपए खर्च किए गए, वहीं 2005 में यह बढ़कर 1,500 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इस संबंध में इंडियन फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के सेक्रेटरी जनरल दिलीप शाह का कहना है कि, भारी मात्रा में निवेश को देखते हुए स्वाभाविक रूप से फार्मा रिसर्च के लिए प्रति वर्ष एक हजार और साइंटिस्टों की जरूरत होगी। इस स्थिति को देखते हुए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर विभिन्न संस्थानों द्वारा अनेक उपयोगी कोर्स चलाए जा रहे हैं।

कार्य और पद


मल्टीनेशनल कंपनियों के इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद दक्ष लोगों की मांग में काफी तेजी आई है। पहले दवाओं व चिकित्सा उपकरणों के विपणन के लिए अनट्रेंड लोग भी रख लिए जाते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है। कंपनियां मार्केटिंग से लेकर टेक्निकल काम तक के लिए वेल-एजुकेटेड व ट्रेंड लोगों को ही प्राथमिकता दे रही हैं-चाहे वह आर एंड डी हो, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव हो, मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव हो या फिर कोई और पद।

उपलब्ध कोर्स


भारत में पहले फार्मास्युटिकल की पढ़ाई गिने-चुने संस्थानों में ही होती थी, लेकिन तेजी से बढ़ते बाजार और ट्रेंड लोगों की मांग को पूरा करने के लिए अब कई संस्थानों में ऐसे कोर्सो की शुरुआत हो गई है। आज देश में 100 से अधिक संस्थानों में फार्मेसी में डिग्री कोर्स और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। बारहवीं के बाद सीधे डिप्लोमा किया जा सकता है। कुछ कॉलेजों में फार्मेसी में फुलटाइम कोर्स संचालित हैं। फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं। दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीटयूट द्वारा फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट में एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स चलाया जा रहा है। इसमें बीएससी (केमिस्ट्री या बायोलॉजी के साथ), बीफार्मा या डीफार्मा कर चुके अभ्यर्थी प्रवेश के पात्र हैं। इस कोर्स के दो सत्रों में से पहले में फार्मास्युटिकल एवं मैनेजमेंट के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान कराया जाता है, जबकि दूसरे सत्र में स्पेशलाइजेशन के तीन विषयों-फार्मास्युटिकल सेल्स एंड मार्केटिंग मैनेजमेंट, फार्मास्युटिकल प्रोडक्ट मैनेजमेंट तथा फार्मास्युटिकल प्रोडक्शन मैनेजमेंट में से किन्हीं दो विषयों का चयन करना होता है। इस कोर्स के तहत स्टूडेंट को मल्टी स्किलिंग ट्रेनिंग दी जाती है। कुछ विश्वविद्यालयों द्वारा फार्मा मैनेजमेंट में एमबीए पाठयक्रमों की शुरुआत की गई है। इसकी अवधि दो वर्ष है तथा इसमें प्रवेश के लिए अभ्यर्थी को किसी भी स्ट्रीम से स्नातक होना चाहिए। एमबीए रेगुलर तथा पत्राचार दोनों तरीके से किया जा सकता है। जामिया मिलिया इस्लामिया, दिल्ली में मार्केटिंग में विशेषज्ञता के साथ एमफार्मा कोर्स भी उपलब्ध है। कुछ जगहों पर बीबीए (फार्मा मैनेजमेंट) कोर्स भी चलाया जा रहा है। यह तीन वर्षीय स्नातक कोर्स है, जिसमें छात्र 10+2 के बाद प्रवेश ले सकते हैं।

इसके साथ-साथ पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एवं हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। इन पाठयक्रमों की अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है। इन पाठयक्रमों में प्रवेश के लिए अभ्यर्थी की न्यूनतम योग्यता बीएससी, बीफार्मा अथवा डीफार्मा निर्धारित की गई है।

विषय की प्रकृति


फार्मा मैनेजमेंट पाठयक्रम में इसके अंतर्गत फार्मा सेलिंग, मेडिकल डिवाइस मार्केटिंग, फार्मा ड्यूरेशन मैनेजमेंट, फार्मा मार्केटिंग कम्युनिकेशन, क्वालिटी कंट्रोल मैनेजमेंट, ड्रग स्टोर मैनेजमेंट, फर्मास्युटिक्स, एनाटॉमी एवं मनोविज्ञान, प्रोडक्शन प्लानिंग, फार्माकोलॉजी इत्यादि विषय पढ़ाए जाते हैं। इन तकनीकी विषयों के अलावा व्यक्तित्व ड्रग डेवलपमेंट और कंप्यूटर की व्यावहारिक जानकारी भी दी जाती है।

जॉब संभावनाएं


दिल्ली स्थित एपिक इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज के डायरेक्टर दीपक कुंवर का कहना है कि यह क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। इसमें दक्ष युवा देशी-विदेशी कंपनियों में कई तरह के आकर्षक काम आसानी से पा सकते हैं, जैसे-बिजनेस एक्जीक्यूटिव व ऑफिसर, प्रोडक्शन एग्जीक्यूटिव, मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव आदि। दो से तीन वर्ष के अनुभव और मेहनत व लगन से काम करने के बाद एरिया मैनेजर, रीजनल मैनेजर, प्रोडक्ट डेवलपर के रूप में प्रॅमोशन पाया जा सकता है। दीपक का यह भी कहना है कि इस क्षेत्र में दक्ष लोगों की लगातार जरूरत को देखते हुए अधिकांश छात्रों को फार्मास्युटिकल कंपनियां कोर्स के दौरान ही आकर्षक वेतन पर नियुक्त कर लेती हैं। ऐसी कंपनियों में रेनबैक्सी, सिप्ला, ग्लैक्सो, कैडिला, डॉ. रेड्डीज, टॉरेंट, निकोलस पीरामल, पीफाइजर, जॉन्सन एंड जॉन्सन, आईपीसीए, पैनासिया बॉयोटेक आदि प्रमुख हैं। इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग, लखनऊ के प्रोफेसर ऋषि मोहन का कहना है कि इस क्षेत्र में प्लेसमेंट की स्थिति बहुत अच्छी है। प्रतिष्ठित कंपनियों द्वारा संस्थानों में सीधी नियुक्ति के लिए कैंपस इंटरव्यू भी आयोजित किए जाते हैं।

कमाई


प्रशिक्षित लोगों की मांग देखते हुए इस क्षेत्र में वेतन भी काफी तेजी से बढ़ रहा है। रिसर्च और एंट्री लेवॅल पर सैलॅरी डेढ़ लाख रुपए वार्षिक मिलती है, जो 20 लाख प्रति वर्ष तक पहुंच सकती है। औषधि उत्पाद के क्षेत्र में भी यही स्थिति है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को तीन-साढ़े तीन लाख वार्षिक मिल जाता है। दीपक कुंवर बताते हैं कि उनके यहां के स्टूडेंट्स को आरंभिक वेतन के रूप में 8 से 15 हजार रुपए तक आसानी से मिल जाता है।

प्रमुख संस्थान


एपिक इंस्टीटयूट ऑफ हेल्थ केयर स्टडीज डी-62 (प्रथम तल), साउथ एक्सटेंशन, पार्ट-1, नई दिल्ली-49, फोन : 011-24649994, 24649965
वेबसाइट : www.apicworld.com

इंस्टीटयूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, 15, आइडियल चेंबर, आइडियल कॉलोनी, प्लॉट न.-8, सीटीएस न.-831, पूना,
ई-मेल : iper@pn4.vsnl.net.in

नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन, मोहाली, चंडीगढ-62 इंडियन इंस्टीटयूट ऑफ फार्मा मार्केटिंग 5/28, विकास नगर, लखनऊ, उ. प्र.
ई-मेल : iict@satyam.net.in

एसपी जैन इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च, मुंशी नगर, दादाभाई रोड, अंधेरी वेस्ट मुंबई,
ई-मेल : spjicom@spjimr.ernet.in

नरसी मुंजे इंस्टीटयूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज जेवीपीडी स्कीम, विले पार्ले, मुंबई-56
ई-मेल : enquiry@nmims.edu

जवाहर लाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बंगलूरू,
वेबसाइट : www.jncasr.ac.in