Wednesday, June 19, 2019

वाइल्ड लाइफ में बेहतरीन अवसर

पूरा विश्व लगातार हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों को लेकर चिंतित है। खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में लगातार इज़ाफा हो रहा है, ऐसे में पूरी दुनिया में वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई इस मांग ने इस क्षेत्र को कॅरिअर के एक बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। आने वाले सालों में रिसर्च से लेकर फील्ड में बेहतर माहौल तैयार करने के लिए दुनिया भर के नेशनल पार्क और कंजर्वेशन रिजर्व में ऐसे विशेषज्ञों की भारी मांग होने वाली है।

क्या करते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ

मानवीय गतिविधियों की वजह से पूरी दुनिया की जैव विविधता और संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, पर्यावरण विशेषज्ञ उन प्रभावों के विश्लेषण, उनके दूरगामी असर और उनसे बचाव के रास्ते खोजते हैं। साथ ही वे मौजूदा वन्यजीवन और विविधता को सहेजने की कोशिश भी कर रहे हैं। विश्व के सभी देशों में अब किसी भी बड़ी मानवीय गतिविधि या प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले पर्यावरण संरक्षण संबंधी अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है। इस काम के लिए सरकार और कंपनियां दोनों ही पर्यावरण विशेषज्ञों को नियुक्त करती हैं। इसके अलावा खतरे में पड़ी प्रजातियों के संरक्षण का काम भी ये विशेषज्ञ करते हैं। दुनिया भर के चिड़ियाघरों में ऐसे विशेषज्ञों को सलाह और काम के लिए बुलाया जाता है। 

योग्यता

वन्यजीव विज्ञान, पारिस्थितिकी विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त उम्मीदवार इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे सकते हैं। इसके अलावा कई संस्थान प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी करवाते हैं, जो वन्यजीव वातावरण में व्यावहारिक ज्ञान के साथ इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने की इच्छा रखने वालों के लिए एक बेहतरीन अनुभव है। इन कोर्सेज में प्रवेश लेने के लिए संबंधित विज्ञान विषय में उच्च माध्यमिक या स्नातक उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसके अलावा कुछ संस्थान वन्यजीवन दर्शन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करते हैं जिसमें कला से संबंधित उम्मीदवार भी आवेदन कर सकते हैं। 

अवसर

दुनिया भर की वन्य जीव संरक्षण एजेंसियाँ व संस्थान जैसे वर्ल्डवाइल्ड फंड फॉर नेचर, डब्ल्यूसीएस, डब्ल्यूटीआई और पेटा जैसे एनजीओ तथा राष्ट्रीय पार्कों एवं बाघ अभ्यारण्यों में इस क्षेत्र से जुड़े अवसर उपलब्ध हैं। आप यहां वन्यजीव-जीवविज्ञानी, वन्यजीव पारिस्थितिकी विज्ञानी, वन्यजीव प्रबंधक, वन्यजीव शिक्षक, वन्यजीव संरक्षक, वन्यजीव फॉरेंसिक विशेषज्ञ, वन्यजीव स्वास्थ्य और पशुपालन विशेषज्ञ, वन्यजीव वैज्ञानिक, वन्यजीव शोधकर्ता, वन्यजीव फोटोग्राफर व पत्रकार, पर्यावरणीय प्रभाव विश्लेषक, पक्षीविज्ञानी और वन्यजीव सलाहकार जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा सकते हैं। दुनिया भर के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करने के लिए समय-समय पर आवेदन मांगे जाते हैं।

क्या पढऩा होगा

इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने के लिए वन्यजीव प्रबंधन स्नातकोत्तर डिप्लोमा, पीएचडी, जैविक विज्ञान, एमफिल, वन्यजीव विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान में एमएससी, बीएससी या बीवीएससी एंड ए.एच, एमएससी, जैविक विज्ञान, वानिकी में बीएससी, पारिस्थितिकी विकास में एमएससी, वन्यजीव?बीएससी डिग्री, प्रबंधन स्नातकोत्तर डिग्री और पारिस्थितिकी एवं प्रबंधन में प्रमाण-पत्र प्राप्त कर आप अपनी सेवाएं दे सकते हैं। 

वेतन

रिसर्च और विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले पर्यावरण विशेषज्ञों का शुरुआती वेतन करीबन 25,000 रुपए प्रतिमाह है। कॉर्पोरेट में यह आंकड़ा 50,000 रुपए से दो लाख के बीच होता है। फील्ड में काम करने के लिए शुरुआत किसी विशेषज्ञ के साथ सहायक के तौर पर जुड़कर की जा सकती है। अनुभव बढऩे के साथ वेतन में भी अच्छी बढ़ोतरी होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले विशेषज्ञों को वर्ष भर के लिए 25 लाख रुपए या उससे भी ज्यादा का भुगतान किया जाता है। 

यहां से करें कोर्स

कुवेम्पु विश्वविद्यालय, शिमोगा, कर्नाटक
kuvempu.ac.in/

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई
tifr.res.in/index.php/en/

फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून
fri.icfre.gov.in/

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बेंगलुरु
ncbs.res.in/

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून
envfor.nic.in/wii/wii.html

गुरू घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर
ggu.ac.in/ 

Friday, June 7, 2019

सिविल इंजीनियरिंग में करियर

आज देश प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी विकास की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। रियल एस्टेट के कारोबार में आई चमक ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रोशन किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख क्षेत्र ‘सिविल इंजीनियिरग’ भी है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाले अधिकांश छात्र सिविल इंजीनियरिंग की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। वह रियल एस्टेट के अलावा भी कई सारे कंट्रक्शन कार्य जैसे पुल निर्माण, सड़कों की रूपरेखा, एयरपोर्ट, ड्रम, सीवेज सिस्टम आदि को अपने कौशल द्वारा आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं।

क्या है सिविल इंजीनियरिंग?
जब भी कोई योजना बनती है तो उसके लिए पहले प्लानिंग, डिजाइनिंग व संरचनात्मक कार्यों से लेकर रिसर्च एवं सॉल्यूशन तैयार करने का कार्य किया जाता है। यह कार्य किसी सामान्य व्यक्ति से न कराकर प्रोफेशनल लोगों से ही कराया जाता है, जो सिविल इंजीनियरों की श्रेणी में आते हैं। यह पूरी पद्धति ‘सिविल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों को किसी प्रोजेक्ट, कंस्ट्रक्शन या मेंटेनेंस के ऊपर कार्य करना होता है। साथ ही इस कार्य के लिए उनकी जिम्मेदारी भी तय होती है। ये स्थानीय अथॉरिटी द्वारा निर्देशित किए जाते हैं। किसी भी प्रोजेक्ट एवं परियोजना की लागत, कार्य-सूची, क्लाइंट्स एवं कांट्रेक्टरों से संपर्क आदि कार्य भी सिविल इंजीनियरों के जिम्मे होता है।

काफी व्यापक है कार्यक्षेत्र
सिविल इंजीनियरिंगका कार्यक्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जरूरत इस बात की होती है कि छात्र अपनी सुविधानुसार किस क्षेत्र का चयन करते हैं। इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में हाइड्रॉलिक इंजी..., मेटेरियल इंजी..., स्ट्रक्चरल इंजी.....,  अर्थक्वेक इंजी., अर्बन इंजी..., एनवायर्नमेंटल इंजी..., ट्रांसपोर्टेशन इंजी... और जियो टेक्निकल इंजीनियरिंग आदि आते हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी कार्य की संरचना बढ़ती जा रही है। प्रमुख कंपनियों के भारत आने से यहां भी संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।

सिविल इंजीनियर बनने की योग्यता
सिविल इंजीनियर बनने के लिए पहले छात्र को बीटेक या बीई करना होता है, जो 10+2 (भौतिकी, रसायन शास्त्र व गणित) या समकक्ष परीक्षा में उच्च रैंक प्राप्त करने के बाद ही संभव हो पाता है, जबकि एमएससी या एमटेक जैसे पीजी कोर्स के लिए बैचलर डिग्री होनी आवश्यक है। इन पीजी कोर्स में दाखिला प्रवेश परीक्षा के जरिए हो पाता है। इंट्रिग्रेटेड कोर्स करने के लिए 10+2 होना जरूरी है। बारहवीं के बाद पॉलिटेक्निक के जरिए सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स भी कराया जाता है, जो कि डिप्लोमा श्रेणी में आते हैं।

प्रवेश प्रक्रिया का स्वरूप
इसमें दो तरह से प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। एक पॉलीटेक्निनक तथा दूसरा जेईई व सीईई। इसमें सफल होने के बाद ही कोर्स में दाखिला मिलता है। कुछ ऐसे भी संस्थान हैं, जो अपने यहां अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं। बैचलर डिग्री के लिए आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा जेईई (ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम) के जरिए तथा पीजी कोर्स के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा सीईई (कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम) के आधार पर होती है।

ली जाने वाली फीस
सिविल इंजीनियरिंग के कोर्स के लिए वसूली जाने वाली फीस अधिक होती है। बात यदि प्राइवेट संस्थानों की हो तो वे छात्रों से लगभग डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिवर्ष फीस लेते हैं, जबकि आईआईटी स्तर के संस्थानों में एक से डेढ़ लाख प्रतिवर्ष की सीमा होती है। इसमें काफी कुछ संस्थान के इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है, जबकि प्राइवेट संस्थानों का प्रशिक्षण शुल्क विभिन्न स्तरों में होता है।

आवश्यक अभिरुचि
सिविल इंजीनियर की नौकरी काफी जिम्मेदारी भरी एवं सम्मानजनक होती है। बिना रचनात्मक कौशल के इसमें सफलता मिलनी या आगे कदम बढ़ाना मुश्किल है। नित्य नए प्रोजेक्ट एवं चुनौतियों के रूप में काम करना पड़ता है। एक सिविल इंजीनियर को शार्प, एनालिटिकल एवं प्रैक्टिकल माइंड होना चाहिए। इसके साथ-साथ संवाद कौशल का गुण आपको लंबे समय तक इसमें स्थापित किए रखता है, क्योंकि यह एक प्रकार का टीमवर्क है, जिसमें लोगों से मेलजोल भी रखना पड़ता है।

इसके अलावा आप में दबाव में बेहतर करने, समस्या का तत्काल हल निकालने व संगठनात्मक गुण होने चाहिए, जबकि तकनीकी ज्ञान, कम्प्यूटर के प्रमुख सॉफ्टवेयरों की जानकारी, बिल्डिंग एवं उसके सुरक्षा संबंधी अहम उपाय, ड्रॉइंग, लोकल अथॉरिटी व सरकारी संगठनों से बेहतर तालमेल, प्लानिंग का कौशल आदि पाठय़क्रम का एक अहम हिस्सा हैं।

रोजगार से संबंधित क्षेत्र
एक सिविल इंजीनियर को सरकारी विभाग, प्राइवेट और निजी क्षेत्र की इंडस्ट्री, शोध एवं शैक्षिक संस्थान आदि में काम करने का अवसर प्राप्त होता है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसमें संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण रियल एस्टेट में आई क्रांति ही है। इसके चलते हर जगह बिल्डिंग, शॉपिंग, मॉल, रेस्तरां आदि का निर्माण किया जा रहा है। यह किसी भी यूनिट को रिपेयर, मेंटेनेंस से लेकर कंस्ट्रक्शन तक का कार्य करते हैं। बीटेक के बाद रोड प्रोजेक्ट, बिल्डिंग वक्र्स, कन्सल्टेंसी फर्म, क्वालिटी टेस्टिंग लेबोरेटरी या हाउसिंग सोसाइटी में अवसर मिलते हैं। केन्द्र अथवा प्रदेश सरकार द्वारा भी काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से रेलवे, प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी, मिल्रिटी, इंजीनियरिंग सर्विसेज, कंसल्टेंसी सर्विस भी रोजगार से भरे हुए हैं। अनुभव बढ़ने के बाद छात्र चाहें तो अपनी स्वयं की कंसल्टेंसी सर्विस खोल सकते हैं।

इस रूप में कर सकते हैं काम
सिविल इंजीनियरिंग 
कंस्ट्रक्शन प्लांट इंजीनियर
टेक्निशियन 
प्लानिंग इंजीनियर
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट इंजीनियर 
असिस्टेंट इंजीनियर 
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
सुपरवाइजर
प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर
साइट/प्रोजेक्ट इंजीनियर

सेलरी
इसमें मिलने वाली सेलरी ज्यादातर केन्द्र अथवा राज्य सरकार के विभाग पर निर्भर करती है, जबकि प्राइवेट कंपनियों का हिसाब उससे अलग होता है। बैचलर डिग्री के बाद छात्र को 20-22 हजार रुपए प्रतिमाह तथा दो-तीन साल का अनुभव होने पर 35-40 हजार के करीब मिलने लगते हैं। मास्टर डिग्री करने वाले सिविल इंजीनियरों को 25-30 हजार प्रतिमाह तथा कुछ वर्षों के बाद 45-50 हजार तक हासिल होते हैं। इस फील्ड में जम जाने के बाद आसानी से 50 हजार रुपये तक कमाए जा सकते हैं। विदेशों में तो लाखों रुपए प्रतिमाह तक की कमाई हो जाती है।

एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख व विदेशों में अध्ययन के लिए 20 लाख तक लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी 
आवश्यक है।

प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खडगपुर, चेन्नई, रुड़की में भी इसकी शाखाएं मौजूद हैं)

बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट- www.bitmesra.ac.in

दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली 
वेबसाइट- www.dce.edu

इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट- www.iisc.ernet.in

नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट-  www.nicmar.ac.in( गुड़गांव, बेंग्लुरू, पुणे, मुंबई, गोवा में भी शाखाएं मौजूद)
   
फायदे एवं नुकसान
बड़े शहरों में अन्य प्रोफेशनल्स की अपेक्षा न्यू कमर को अधिक सेलरी 
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बूम आने से प्रोफेशनल्स की भारी मांग
समाज व देश की प्रगति में भागीदार बनने पर अतिरिक्त खुशी
कई बार निर्धारित समय से अधिक काम करने से थकान की स्थिति
चिह्न्ति क्षेत्रों में शिफ्ट के रूप में काम करने की आवश्यकता
जॉब के सिलसिले में अधिक यात्राएं परेशानी का कारण

Sunday, June 2, 2019

अर्थशास्त्र है हर दौर में बेहतर भविष्य की राह

अर्थशास्त्र को एक ऐसे विषय के तौर पर देखा जा सकता है, जिसकी उपयोगिता लगभग हर क्षेत्र में होती है। सरल शब्दों में कहें तो अर्थशास्त्र समाज के सीमित संसाधनों का दक्षतापूर्ण ढंग से उपयोग करने की अनेक प्रणालियों का अध्ययन है। इसी बुनियादी नियम पर हमारी व्यावसायिक व आर्थिक इकाइयों की गतिविधियां टिकी होती हैं। अर्थशास्त्री आर्थिक आंकड़ों का विश्लेषण और विभिन्न नीतिगत विकल्पों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। साथ में इनके भावी प्रभाव पर पैनी नजर रखते हैं, ताकि विकास दर पर नियंत्रण रखा जा सके। अर्थशास्त्री इसी दृष्टिकोण से काम करते हैं। इनका कार्यक्षेत्र एक छोटी कंपनी से लेकर देश की अर्थव्यवस्था जैसा बहुआयामी भी हो सकता है।


छात्र में हों ये विशेषताएं
इस विषय की पढ़ाई करने और अर्थशास्त्रमें सफल पेशेवर बनने के लिए आपमें उपलब्ध डाटा का विश्लेषण कर पाने की क्षमता का बेहतर होना जरूरी है। इसी क्रम में *मैथ्स और स्टैटिस्टिक्स की बुनियादी समझ बेहद जरूरी है। आर्थिक विषमताओं/स्थितियों को समझने-बूझने का निरीक्षण कौशल भी इसमें आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।


अध्ययन के रास्ते हैं विविध
अर्थशास्त्र 12वीं स्तर पर एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है,पर इस विषय में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए अर्थशास्त्र से बीए (ऑनर्स) कोर्स से असली शिक्षा की शुरुआत होती है। हालांकि अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन के स्तर पर कई अन्य कोर्सेज भी संचालित किए जाते हैं। इनमें बीए(बिजनेस इकोनॉमिक्स), बीए(डेवलपमेंटल इकोनॉमिक्स) जैसे कोर्स का नाम लिया जा सकता है। देश के कई विश्वविद्यालयों में ये तमाम कोर्स कराये जाते हैं। अर्थशास्त्र से जुड़े विभिन्न कोर्सेज की मांग इसी बात से समझी जा सकती है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में इसके ग्रेजुएट स्तर के कोर्स में प्रवेश पाने के लिए 90 फीसदी से अधिक अंक चाहिए होते हैं।


विशेषज्ञता की ओर बढ़ाएं कदम
ग्रेजुएशन में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को मास्टर्स स्तर पर अर्थशास्त्र की कई शाखाओं में विशेषज्ञता अर्जित करने के लिए विकल्प दिए जाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से एनालिटिकल एंड एप्लाइड इकोनॉमिक्स, बिजनेस इकोनॉमिक्स, कॉर्पोरेशन एंड एप्लाइड इकोनॉमिक्स, इकोनॉमेट्रिक्स, इंडियन इकोनॉमिक्स का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। इनके अलावा इंडस्ट्रियल इकोनॉमिक्स ,बिजनेस इकोनॉमिक्स, एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स, एन्वायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स, बैंकिंग इकोनॉमिक्स व रूरल इकोनॉमिक्स भी उल्लेखनीय हैं। छात्र चुनिंदा विश्वविद्यालयों में उपलब्ध एमबीए (बिजनेस इकोनॉमिक्स) कोर्स का भी लाभ उठा सकते हैं। अर्थशास्त्र में पीजी डिप्लोमा और पीएचडी की राह भी चुन सकते हैं। देश के ज्यादातर सरकारी विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र से जुड़े कोर्सेज उपलब्ध हैं।


इंडियन इकोनॉमिक सर्विस
कम ही लोग जानते होंगे कि देश में इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस की तरह इंडियन इकोनॉमिक सर्विस भी है। इसमें उपयुक्त प्रत्याशियों के चयन के लिए अखिल भारतीय स्तर पर यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करती है। इस परीक्षा में अर्थशास्त्र/स्टैटिस्टिक्स विषय में कम से कम मास्टर्स डिग्रीधारक युवा ही शामिल हो सकते हैं। प्रत्याशी की आयु 21 वर्ष से लेकर 30 वर्ष तक होनी चाहिए। इस परीक्षा में लिखित परीक्षा के बाद इंटरव्यू लिया जाता है। लिखित परीक्षा में जनरल इंग्लिश, जनरल नॉलेज व अर्थशास्त्र पर आधारित अन्य पेपर्स होते हैं। यह केंद्र सरकार की ग्रुप ‘ए' सर्विस है। सफल प्रत्याशियों को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद इनकी पहली नियुक्ति सहायक निदेशक के पद पर होती है। कार्यानुभव बढ़ने के साथ पदोन्नति पाते हुए प्रिंसिपल इकोनॉमिक एडवाइजर के पद तक पहुंच सकते हैं। 


विदेश में नौकरी के अवसर 
अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों को विदेशी संस्थानों जैसे इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड, वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक के अलावा मल्टी नेशनल कंपनियों में शानदार मौके मिलते हैं। इनकी नियुक्तियां अर्थशास्त्री, नीति-निर्माता, एनालिस्ट, कंसल्टेंट आदि रूपों में होती हैं। विदेशों के सरकारी संस्थानों में भी भारतीय आर्थिक विशेषज्ञों की अच्छी-खासी मांग है। विदेश में बतौर रिसर्च स्कॉलर/प्राध्यापक के पदों पर आकर्षक पैकेज पर नियुक्तियां होती हैं।.


इस विशिष्ट कोर्स का उठाएं लाभ
देश के कुछ चुनिंदा विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन स्तर पर तीन वर्षीय बैचलर ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स कोर्स उपलब्ध है। प्राय: परीक्षा के जरिये इस कोर्स की सीमित सीटों पर प्रवेश दिया जाता है। प्रवेश परीक्षा में वर्बल एबिलिटी, क्वांटिटेटिव एबिलिटी, लॉजिकल रीजनिंग, जनरल अवेयरनेस से जुड़े ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न पूछे जाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के दस कॉलेजों में यह विशिष्ट कोर्स कराया जाता है। इनमें लगभग 480 सीटों पर प्रवेश दिया जाता है।.


रोजगार के अवसर
निजी क्षेत्र की तमाम औद्योगिक इकाइयों, बैंकिंग सेक्टर, फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, कॉमर्स, टैक्सेशन, इंटरनेशनल ट्रेड, एक्चुरियल साइंस आदि में इस क्षेत्र के पेशेवरों की मांग बनी रहती है। हर साल सरकारी क्षेत्र में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नीति आयोग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी, नेशनल सैम्पल सर्वे तथा विभिन्न राज्य सरकारों के संबंधित विभागों आदि में बड़ी संख्या में अर्थशा्त्रिरयों की नियुक्तियां की जाती है। अर्थशास्त्र का शिक्षक भी बना जा सकता है।


चुनौतियां
ग्रेजुएशन के बाद ही इस क्षेत्र में रोजगार के विकल्प बनते हैं। लेकिन ज्यादा अवसर उपलब्ध हो पाएं, उसके लिए उच्च अध्ययन की ओर कदम बढ़ाना जरूरी होता है। 


' चूंकि इस क्षेत्र में आर्थिक विश्लेषण के लिए स्टैटिस्टिक्स, कैल्कुलस और ऊंचे दर्जे की गणित का इस्तेमाल होता है, इसलिए छात्रों को अनिवार्य रूप से गणित विषय पसंद होना चाहिए।


अर्थशास्त्र की पढ़ाई को गंभीरता से लें। बीए (ऑनर्स) अर्थशास्त्र के सिलेबस को काफी कठिन माना जाता है।


प्रमुख संस्थान
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली
यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे, मुंबई
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता