Monday, October 29, 2018

वाटर साइंस में कॅरियर

जल जीवन है और ये जॉब भी देता है। आप शायद ही जानते होंगे कि पानी में भी कॅरियर संवारा जा सकता है। वो भी एक जल वैज्ञानिक के तौर पर। विश्वभर में पानी को लेकर समस्याएं भले ही बढ़ती जा रही हों, लेकिन जल वैज्ञानिकों के लिए इस फील्ड में काफी स्कोप नजर आ रहा है। वाटर साइंटिस्ट के तौर पर आप जहां पानी पर कई प्रयोग कर सकते हैं, वहीं सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में सेवाएं देकर अच्छा वेतनमान प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए आपको वाटर साइंस में कोर्स करना होगा। वाटर साइंस यानी जल विज्ञान अपने आप में बड़ी शाखा है, जिसका अध्ययन आपके कॅरियर में चार चांद लगा सकता है।

क्या है वाटर साइंस


वाटर साइंस पानी की पृथ्वी और भूमिगत क्रियाओं से संबंधित विज्ञान है। इसमें पृथ्वी पर उपस्थित चट्टानों और खनिजों के साथ पानी की भौतिक, रासायनिक और जैविक क्रियाओं के साथ-साथ सजीव शरीर-रचनाओं के साथ इसकी विवेचनात्मक पारस्परिक क्रियाएं शामिल हैं। जल विज्ञान से जुड़े एक्सपर्ट जल विज्ञानी कहलाते हैं। जल विज्ञान के क्षेत्र में हाइड्रोमिटिरोलॉजी, भूतल, जल विज्ञान, हाइड्रोजिओलॉजी, ड्रेनेज बेसिन मैनेजमेंट और जल गुणवत्ता से संबंधित विषय आते हैं। इसकी कई शाखाएं हैं, जैसे- रासायनिक जल विज्ञान, पारिस्थितिकी जल विज्ञान, हाइड्रोइन्फॉरमैटिक्स जल विज्ञान, हाइड्रो मिटियोरोलॉजी, भूतल जल-विज्ञान।

काफी कुछ कर सकते हैं इस क्षेत्र में


जल वैज्ञानिक जलीय पर्यावरण की सुरक्षा, निगरानी और प्रबंधन के लिए व्यापक गतिविधियां संचालित करते हैं। जल विज्ञान के तहत डाटा की व्याख्या तथा विश्लेषण संबंधी गतिविधियां शामिल हैं और जल-वैज्ञानिक निरंतर उनके द्वारा जांच की जाने वाली भौतिक प्रक्रियाओं की अनुकरणात्मकता के लिए गणितीय मॉडल्स का विकास तथा प्रयोग करते हैं। इसके अलावा पानी के नमूने लेना तथा उनका रासायनिक विश्लेषण करना, नदियों तथा झीलों की स्थितियों की निगरानी के लिए जीव-विज्ञानियों और पारिस्थितिकीविदों के साथ कार्य करना भी इनके कार्यक्षेत्र में आता है। साथ ही ये बर्फ, हिम तथा ग्लेशियरों का अध्ययन, सूखे और बाढ़ का अध्ययन, बाढ़ के कारणों और इससे उत्पनन समस्याओं के समाधन की जांच, भूमि प्रयोग में परिवर्तनों के परिणामों की जांच करना जैसे काम करते हैं।

यहां कर सकते हैं काम


वाटर साइंटिस्ट बनकर आप विभिन्न प्रकार के संगठनों के लिए काम कर अच्छी सैलेरी पा सकते हैं। सरकारी व गैर सरकारी संस्थाओं में वाटर साइंटिस्ट को अच्छे वेतनमान पर नियुक्त किया जाता है। इसके अलावा आप परामर्शदाता के रूप में भी काम कर सकते हैं। जैसे- सिविल इंजीनियरिंग, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध कराना। इसके अलावा आप नई विश्लेषणात्मक तकनीकों के जरिए शिक्षण और अनुसंधान कार्य भी कर सकते हैं। यूटिलिटी कम्पनियां और सार्वजनिक प्राधिकरण के साथ जुड़कर आप जलापूर्ति और सीवरेज सेवाएं प्रदान कर सकते हैं।

यह हो स्किल्स


जल संसाधन विकास और प्रबंधन में कॅरियर के लिए उम्मीदवार में सहनशीलता, दृढ़ता, विस्तृत और अच्छा विश्लेषण कौशल होना आवश्यक है। साथ ही टीम वर्क की भावना और प्रभावशाली कम्युनिकेशन इस फील्ड में बने रहने के लिए जरूरी है।

ये हैं कोर्स

देशभर की कई यूनिवर्सिटी जल-विज्ञान और जल-संसाधन विषयों में स्नातक और स्नातकोत्तर कोर्स संचालित करती हैं। इनमें से ज्यादातर कोर्स पूर्ण-कालिक हैं, लेकिन कुछेक में अंश-कालिक आधार पर मॉड्यूलर कोर्स के रूप में प्रवेश लिया जा सकता है। जल-विज्ञान में कॅरियर के लिए प्रथम डिग्री का विकल्प उतना अधिक महत्वपूर्ण नहीं है, लेकिन जहां से आप कोर्स कर रहे हैं, वह संस्थान मान्यता प्राप्त होना चाहिए।

ये हैं संस्थान

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की, उत्तराखंड।
अन्ना यूनिवर्सिटी, ग्विंडी, तमिलनाडु।
एम. एस. बड़ौदा यूनिवर्सिटी, वड़ोदरा।
इग्नू, नई दिल्ली।
श्री गुरूगोबिंद सिंह जी कॉलेज, नांदेड़।
क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज, तिरूचिरापल्ली।
आन्ध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापत्तनम।
अन्नामलाई यूनिवर्सिटी, अन्नामलाई नगर।
दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली।
इंजीनियरिंग कॉलेज, रायपुर, छत्तीसगढ़।

Wednesday, October 24, 2018

शिप बिल्डिंग में करियर

बिग क्रूज या मालवाहक शिप की बढ़ती डिमांड के कारण इस सेक्टर में यूथ का इंट्रेस्ट तजी से बढ़ रहा है..ने जब विस्तार लिया तो ऐसे बड़े-बड़े पानी के जहाज बनकर तैयार हुए, जिनमें एक छोटा-मोटा शहर समा जाए। इन जहाजों को तैयार करने में सालों का वक्त लगता है और इसमें हजारों लोग एक साथ काम करते हैं। पानी के बड़े-बड़े जहाजों को बनाने की जो प्रक्रिया होती है, उसे शिप बिल्डिंग कहा जाता है। आज पूरी दुनिया में होने वाले आयात-निर्यात में सबसे बड़ा योगदान पानी के जहाजों का ही है। इसके बाद ही कोई और माध्यम आता है। चूंकि दुनिया का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा पानी से घिरा हुआ है, ऐसे में जहाज वैश्वीकरण के दौर में दुनिया के लिए वरदान साबित हो रहे हैं।
कोर्स व योग्यता
इस सेक्टर में एंट्री के लिए पीसीएम से 12वीं करने के बाद बीएससी इन शिप बिल्डिंग एंड रिपेयर कोर्स कर सकते हैं, जो तीन साल का है। हां, पीसीएम में कम से कम 55 प्रतिशत अंक होना जरूरी है। 10वीं एवं 12वीं में अंग्रेजी में 50 प्रतिशत अंक हासिल करना भी जरूरी है। इसमें सिर्फ बैचलर स्टूडेंट ही एडमिशन प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए उम्र 17 से 25 साल (एससी/एसटी को सरकारी दिशा निर्देश के अनुसार छूट प्राप्त है) के बीच होनी चाहिए। इसके अलावा इसमें उन्हीं स्टूडेंट्स को आवेदन करने का मौका मिलता है जो सीईटी परीक्षा उत्तीर्ण करते हैं। सीईटी की परीक्षा आइएमयू, चेन्नई कंडक्ट कराता है, जो साल में एक बार होता है। इसके बाद आइएमयू रिटेन टेस्ट लेता है। इस दौरान कैंडिडेट्स की काउंसिलिंग भी की जाती है। लिखित परीक्षा में 180 ऑब्जेक्टिव टाइप के प्रश्न होते हैं जो पीसीएम/इंग्लिश/जनरल नॉलेज व रीजनिंग पर आधारित होते हैं।
संभावनाएं
एक्सप‌र्ट्स के मुताबिक इस कोर्स को पूरा करने के बाद शानदार मौके मिलते हैं। स्किल्ड पर्सन असिस्टेंट मैनेजर/इंटर्न/शॉप फ्लोर एग्जीक्यूटिव के रूप में नियुक्ति हो सकती है। तीन साल के एक्सपीरिएंस के बाद डिप्टी मैनेजर तक बन सकते हैं, लेकिन इसके लिए शिप प्रोडक्शन में पोस्ट ग्रेजुएशन करना जरूरी होता है। शिप बिल्डिंग या पोर्ट मैनेजमेंट में एमबीए करने के बाद आप मैनेजर बन सकते हैं। उसके बाद डीजीएम, जीएम और सीईओ की पोस्ट तक पहुंच सकते हैं।
आमदनी
जैसे-जैसे आपकी योग्यता बढ़ेगी, तरक्की की राह आसान होगी और सेलरी में भी इजाफा होता चला जाएगा। इस सेक्टर में ग्रोथ की कोई सीमा नहीं है। एक असिस्टेंट मैनेजर की सेलरी 30 हजार से शुरू होती है और सीईओ तक पहुंचते-पहुंचते लाखों में पहुंच जाती है।
एक्सपर्ट एडवाइज
बीएससी इन शिप बिल्डिंग एंड रिपेयरिंग बिलकुल नया कोर्स है। इस कोर्स में शत-प्रतिशत जॉब प्लेसमेंट की गुंजाइश है। इस फील्ड के लिए जॉब ऑप्शन सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर कोने में हैं, क्योंकि शिप बिल्डिंग की अधिकतर फैक्ट्रीज विदेशों में हैं

Saturday, October 20, 2018

फैशन डिजाइनर में करियर

आज के समय हर व्यक्ति अपने लुक को लेकर इतना सजग हो गया है कि वह हरदम कुछ ऐसा पहनने की चाह रखता है, जो न सिर्फ दूसरों से अलग हो, बल्कि आपको ट्रैंडी भी दिखाएं। आपकी इस चाहत को पूरा करने का काम करते हैं फैशन डिजाइनर। फैशन डिजाइनर अपने अनोखे आइडिया के बूते ही हर साल मार्केट में कुछ नया लेकर आते हैं। अगर आपके पास भी कपड़े की समझ के साथ−साथ कुछ नया व हटकर करने की चाह है तो आप बतौर फैशन डिजाइनर अपना उज्ज्वल भविष्य बना सकते हैं।
 
कार्यक्षेत्र 
एक फैशन डिजाइनर का कार्यक्षेत्र सिर्फ कपड़ों को डिजाइन करने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसे हर समय इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि वर्तमान में ग्लोबली क्या ट्रैंड हैं। साथ ही उसे ध्यान में रखकर हमेशा कुछ नया करने का प्रयास करना होता है। एक फैशन डिजाइनर के कार्यक्षेत्र में कपड़ों को डिजाइन करने के साथ−साथ उसे पूरा करने तक अपना बेस्ट देना होता है। अर्थात कपड़ों की स्टिचिंग के अतिरिक्त टीम के साथ मिलकर समय पर काम पूरा करना भी उसका कार्यक्षेत्र है। 
 
स्किल्स
फैशन डिजाइनिंग एक ऐसा क्षेत्र है जो अक्सर युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। लेकिन यह जितना ग्लैमरस है, इसमें सफल होने के लिए आपको उतना ही क्रिएटिव होना आवश्यक है। साथ ही इस क्षेत्र में आपकी अलग सोचने की क्षमता के साथ−साथ आपको कपड़ों की बेहतर समझ, सिलाई की बारीकियां और अपने क्लाइंट के हिसाब से कपड़ों को डिजाइन करना आना चाहिए। अर्थात आपको न सिर्फ अपने क्लाइंट की जरूरत को समझना होता है, बल्कि उसे समझकर उसे ऐसे परिणाम देने होते हैं, जिससे आप सफलता की सीढ़ियां चढ़ते चले जाएं।  
योग्यता
इस क्षेत्र में भविष्य देख रहे छात्रों के लिए ग्रेजुएशन करना आवश्यक नहीं है। आप चाहें तो दसवीं या बारहवीं के बाद भी शॉर्ट टर्म कोर्स करके इस क्षेत्र में कदम रख सकते हैं। आपको इस क्षेत्र में तीन माह से लेकर एक वर्ष तक के कोर्स मिलेंगे। वहीं डिप्लोमा कोर्स एक साल से लेकर चार साल तक होता है। आप अपनी सुविधानुसार इनका चयन कर सकते हैं। कोर्स के दौरान छात्रों को न सिर्फ लेटेस्ट डिजाइन व ट्रैंड की जानकारी दी जाती है। बल्कि सिलाई के बेसिक जैसे कपड़े की कटाई से लेकर उसकी सिलाई तक के बारे में बताया जाता है। आपको पहले अपने डिजाइन को कागज पर उतारना होता है, उसके बाद कपड़े पर।
 
संभावनाएं 
फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद आप कई जगह काम की तलाश कर सकते हैं। सबसे पहले खुद के गुणों में निखार करने के लिए आप किसी बड़ी फैशन डिजाइनिंग के अंडर ट्रेनिंग ले सकते हैं। वहीं इसके बाद आप किसी कपड़े की कंपनी या फैशन हाउस में बतौर फैशन डिजाइनर काम कर सकते हैं। अगर आप किसी के साथ जुड़कर काम नहीं करना चाहते तो बतौर फ्रीलांसर भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं। वैसे फिल्म और टीवी इंडस्ट्री में भी अच्छे कॉस्टयूम डिजाइनर व फैशन डिजाइनर की डिमांड रहती है। आप चाहें तो वहां पर भी सपंर्क कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त अगर आप खुद का कुछ शुरू करना चाहते हैं तो आप बुटीक खोल सकते हैं या फिर अपने द्वारा डिजाइन किए गए कपड़ों की प्रदर्शनी लगा सकते हैं या फिर उनका बड़े स्तर पर निर्यात भी किया जा सकता है। आप अपने काम को प्रदर्शित करने के लिए ऑनलाइन बाजार का भी सहारा ले सकते हैं। ऐसे में आप कुछ लेटेस्ट ट्रैंड में यूनिक टिवस्ट के साथ ऑनलाइन दुनिया में अपने डिजाइन पेश कीजिए। धीरे−धीरे आपकी पकड़ इस क्षेत्र में बहुत अच्छी हो जाएगी। 
 
आमदनी
इस क्षेत्र में आपकी आमदनी इस बात पर निर्भर करेगी कि आप किसी कंपनी में जॉब करते हैं या फिर अपना खुद का बिजनेस शुरू करते हैं। अगर आप कहीं पर जॉब करते हैं तो शुरूआती दौर में आप 15000 रूपए प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं, वहीं धीरे−धीरे अनुभव के साथ आपकी आमदनी प्रतिमाह 50000 तक भी आसानी से कमाए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अगर आप अनुभवी और टैलेंटेड हैं तो आप खुद का बिजनेस शुरू करके लाखों कमा सकते हैं। 
 
प्रमुख संस्थान
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली।
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद।
सोफिया पॉलीटेक्निक, मुंबई।
आईआईटीसी, मुंबई।
जेडी इंस्टीटयूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, विभिन्न केन्द्र।
पर्ल फैशन अकादमी, नई दिल्ली, मुंबई, जयपुर।
लेडी इरविन कॉलेज, नई दिल्ली।

Thursday, October 18, 2018

एन्वायरनमेंटल साइंस और इंजीनियरिंग में करियर

सम्पूर्ण विश्व में पर्यावरण प्रदूषण जिस तेजी से बढ़ रहा है, उसे कम करने की दिशा में आये दिन नए शोध और विकास कार्य होते रहते हैं। यही वजह है कि इस दिशा में कार्य कर रहे एन्वायरनमेंटल इंजीनियर्स की माँग न सिर्फ विदेश में, बल्कि देश में भी काफी बढ़ रही है।
एन्वायरनमेंटल विज्ञान और इंजीनियरिंग पर्यावरण और सम्बन्धित विषयों में शोध कार्य करते रहते हैं। इस विषय का मुख्य उद्देश्य ऐसी तकनीक विकसित करना है, जिससे प्रदूषण के प्रभाव को निरस्त या कम किया जा सके, ताकि लोगों को पीने के लिये स्वच्छ पानी, साँस लेने के लिये प्रदूषण रहित हवा और कृषि हेतु उपजाऊ भूमि मिल सके। इस प्रकार ग्रामीण और शहरी नागरिक स्वस्थ जीवनयापन कर सकते हैं।

एन्वायरनमेंटल विशेषज्ञ का कार्य क्षेत्र


एक प्रशिक्षित विज्ञान और इंजीनियरिंग के कार्य और उत्तरदायित्व की रूपरेखा निम्न प्रकार से की जा सकती है-

1. पर्यावरण सम्बन्धी परीक्षण और तकनीकी इत्यादि का निष्पादन और विकास करना।
2. वैज्ञानिक परीक्षण इत्यादि से प्राप्त जानकारी की व्याख्या और विवेचना करना।
3. पर्यावरण सम्बन्धी नियम और कानूनी वैधताओं और नियमों को सदैव नवीनीकृत करना।
4. पर्यावरण सम्बन्धी कानूनी कार्यवाही और सुधार कार्य हेतु वैज्ञानिक विशेषज्ञता उपलब्ध कराना।
5. पर्यावरण के सुधार हेतु कार्यशील योजनाओं का आकलन करना।
6. औद्योगिक प्रतिष्ठानों का निरीक्षण कर ज्ञात करना कि वे नियमों का पालन कर रहे हैं।
7. सरकारी एवं औद्योगिक संस्थाओं को पर्यावरण नीति पर वैज्ञानिक विशेषज्ञता उपलब्ध कराना।
8. पर्यावरण सुधार हेतु योजना एवं वैज्ञानिक प्रारूप तैयार करना, जिनमें मुख्य जल शोधन तंत्र, वायु प्रदूषण प्रणाली और अपशिष्ट प्रबन्धन है।

एन्वायरनमेंटल विशेषज्ञ में अपेक्षित व्यक्तिगत गुण


एन्वायरनमेंटल विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने हेतु आप में प्रकृति प्रेम होना आवश्यक है। यह आपको वातावरण की सुरक्षा के प्रति प्रेरित करेगा। इसके साथ ही आप में तार्किक सोच का होना अनिवार्य है। विज्ञान के नियमों की अच्छी समझ इस कठिन विषय के चुनौती पूर्ण कार्य को आसान बनाती है। समस्या को सुलझाने का कौशल भी उपयोगी सिद्ध होगा।

वैज्ञानिक शोध में कई प्रयत्न लग सकते हैं, इसलिये आप में धैर्य होना चाहिए। निरन्तर प्रयत्न करने की इच्छा और ऊर्जावान सोच आपके कार्य को सरल कर देगी। यह कार्यक्षेत्र चुनौतियों भरा है। अपेक्षा रहेगी की आप पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं के क्रान्तिकारी समाधान प्राप्त करने हेतु सदा प्रयत्नशील रहेंगे।

योग्यता एवं पाठ्यक्रम


पहले सिविल इंजीनियरिंग के अनु-पाठ्यक्रम के रूप में ही एन्वायरनमेंटल विज्ञान और इंजीनियरिंग का अध्ययन उपलब्ध था। परन्तु अब पर्यावरण सम्बन्धित जागरुकता एवं आवश्यकता के कारण, यह एक स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाया जाता है। पिछले कुछ दशकों में इस क्षेत्र में सम्भावनाएँ बढ़ती जा रहीं हैं। स्नातक उपाधि हेतु 12वीं या समकक्ष में उत्तीर्ण छात्र आवेदन कर सकते हैं।

बीएससी पाठ्यक्रम में प्रवेशार्थ भौतिकी, रसायन विज्ञान और जीव विज्ञान अनिवार्य विषय हैं। बीई/बीटेक उपाधि के इच्छुक अभ्यर्थी के लिये भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ गणित अनिवार्य विषय हैं। शैक्षणिक स्तर पर एन्वायरनमेंटल विज्ञान और इंजीनियरिंग तीन स्तरों पर उपलब्ध हैं। सबसे पहला स्तर है स्नातक अध्ययन।

इस स्तर पर अनुमान्य उपाधि हैं बीएससी एन्वायरनमेंटल साइंस और बीई/बीटेक एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग। बीएससी 3 वर्षीय और बीई/ बीटेक 4 वर्षीय कार्यक्रम है। दूसरा स्तर है परास्नातक अध्ययन का जिसके लिये एमएससी में प्रवेश ले सकते हैं।

इस 2 वर्षीय पाठ्यक्रम में प्रवेश की अनिवार्यता बीएससी है। एमटेक इंजीनियरिंग के छात्रों के लिये परास्नातक उपाधि है। एमटेक हेतु एनर्जी एंड एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट एक उभरता हुआ और लोकप्रिय विषय बन गया है। स्नातकोत्तर के अलावा छात्र पीजी डिप्लोमा भी कर सकते हैं, जो इस क्षेत्र में आपके ज्ञान और योग्यताओं को नया आयाम देता है। शोध अध्ययन का तीसरा स्तर है। किसी विशेष समस्या पर शोध करने पर विद्यार्थी को पीएचडी या एमफिल उपाधि प्रदान की जाती है

सम्भावनाएँ


पारम्परिक रूप से एन्वायरनमेंटल प्रोफेशनल्श की माँग केमिकल, जियालाॅजिकल, पेट्रोलियम, सिविल और माइनिंग सेक्टर्स से जुड़े संगठनों में रही है। केमिकल, बायोलाॅजिकल, थर्मल, रेडियोएक्टिव और यहाँ तक कि मैकेनिकल इंजीनियरिंग में प्रशिक्षित छात्रों के लिये भारत में एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग के क्षेत्र में काफी सम्भावनाएँ बन रही हैं।

एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग से जुड़े शोध कार्यक्रम में भी इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्श की अच्छी-खासी माँग है। वेस्ट रिडक्शन मैनेजमेंट, प्रोसेस इंजीनियरिंग, एन्वायरनमेंटल केमिस्ट्री, वाटर एंड सीवेज ट्रीटमेंट, पॉल्यूशन प्रीवेंशन आदि कुछ ऐसे ही क्षेत्र हैं।

एमटेक कर चुके छात्र सरकारी एसेसमेंट कमेटियों में भी कार्य कर सकते हैं। एन्वायरनमेंटल इंजीनियर्स को केन्द्र और राज्य स्तरीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साथ काम करने का अवसर मिलता है। गैर-सरकारी संस्थाएँ और कई सरकारी विभाग भी हरित विकास की दिशा में कार्य कर रहे हैं।

वेतन


स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के साथ काम कर रहे प्रशिक्षितों का वेतन 15 से 30000 रुपए तक हो सकता है। वहीं एन्वायरनमेंटल इंजीनियरिंग में एमटेक कर चुके छात्र इस क्षेत्र में 50000 रुपए तक कमा सकते हैं। इस क्षेत्र में शोध कार्यों से 75000 रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

प्रमुख संस्थान


1. क्वांटम यूनीवर्सिटी, रुड़की (Quamtum University, Roorkee)
2. साउथ गुजरात यूनीवर्सिटी, सूरत (South Gujrat University, Surat)
3. दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली (University of Delhi, Delhi)
4. मैसूर यूनीवर्सिटी, कर्नाटक (University of Mysore, Karnatak)
5. दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली (Delhi collage of Engineering, Delhi)
6. राजीव गाँधी प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, इन्दौर (Rajiv Gandhi Proudyogiki Vishwavidyalaya, Indore)
7. आईआईटी दिल्ली, कानपुर, खड़गपुर और मद्रास (IIT Delhi, kanpur, Kharagpur And Madras)

Tuesday, October 16, 2018

इतिहास में बनाएं करियर

किसी भी देश को जानने-समझने के लिए इतिहास का अध्ययन बहुत आवश्यक होता है। इतिहास केवल घटनाओं का ही ब्योरा मात्र नहीं है, अपितु यह शोधकर्ताओं और इतिहासकारों के लंबे शोध का विषय भी होता है।
इस विषय में करियर की भी अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं। अगर आपकी भी रुचि अतीत को जानने-समझने में है तो इतिहास के जरिए आप अपने भविष्य को भी संवार सकते हैं। इस बारे में विस्तार से जानिए। 
इतिहास के तहत प्राचीन मानव संस्कृति को खंगाला जाता है। प्राचीन मानव के सांस्कृतिक आचार व्यवहार को व्याख्यायित किया जाता है। इसके लिए पुरानी सभ्यताओं द्वारा छोड़ी गई चीजों और खंडहरों, उनकी गतिविधियों, व्यवहार आदि का अध्ययन किया जाता है। इसमें प्राचीन अवशेषों का अध्ययन करना पड़ता है।

प्राचीन सिक्के, बर्तन, चमड़े की किताबें, भोजपत्र पर लिखित पुस्तकें, शिलालेख, मिट्टी के नीचे दफन शहरों के खंडहर या फिर पुराने किले, मंदिर, मस्जिद और हर प्रकार के प्राचीन अवशेष, वस्तुओं आदि का अध्ययन इतिहास के अंतर्गत किया जाता है।
ऑर्कियोलॉजिकल मॉन्यूमेंट्स, आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स, कॉइन, सील, बीड, लिट्रेचर और नेचुरल फीचर्स के संरक्षण और प्रबंधन का कार्य भी इतिहास के तहत किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि भारत का इतिहास हजारों बहुमूल्य पांडुलिपियों, और अभिलेखों आदि से भरा पड़ा है। इनमें से बहुतों को संरक्षित और संगृहीत किया जा चुका है, जबकि कई अभी भी संग्रहित किए जाने की बाट जोह रहे हैं। इनका संकलन बेहद जरूरी है। इतिहास इसमें भरपूर मदद करता है। 
मेन कोर्सेस
अगर विषय के रूप में बात की जाए तो इतिहास ऐसा विषय है, जिसकी सामान्य पढ़ार्ई छठीं कक्षा से ही शुरु हो जाती है। लेकिन ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा में इतिहास एक विषय के रूप में छात्रों को आधारभूत जानकारी उपलब्ध कराता है।
ग्रेजुएशन स्तर पर छात्र बीए में इतिहास की कई शाखाओं का अध्ययन कर सकते हैं। ग्रेजुएशन में इतिहास का अध्ययन आर्कियोलॉजिस्ट या शिक्षक आदि के रूप में कई नए अवसरों की नींव रखता है। इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएशन (एमए) में भी इतिहास की कई शाखाओं का अध्ययन किया जा सकता है।
इसके बाद एमफिल और पीएचडी की राह आसान हो जाती है। कई संस्थान इतिहास से संबंधित क्षेत्रों में डिप्लोमा और शॉर्ट-टर्म कोर्स भी कराते हैं, जो आर्कियोलॉजी, म्यूजियोलॉजी, आर्काइवल स्टडीज आदि से संबंधित होते हैं। 
कुछ विशेष कोर्स
इतिहास के क्षेत्र में रोजगार को ध्यान में रखते हुए कई तरह के स्पेशलाइजेशन कोर्स जैसे आर्काइव्स मैनेजमेंट, हेरिटेज मैनेजमेंट आदि देश में कराए जा रहे हैं। इस प्रकार के कोर्स करने के बाद छात्रों को सबसे ज्यादा अवसर आर्कियोलॉजिस्ट के रूप में मिलते हैं।
गौरतलब है कि आर्कियोलॉजिस्ट प्राचीन भौतिक अवशेषों की खोज करते हैं, उनका अध्ययन/परीक्षण करते हैं और फिर अपने तार्किक निष्कर्ष के आधार पर इतिहास की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं।
इस प्रक्रिया के कारण जहां एक ओर दुनिया को इतिहास की सही जानकारी प्राप्त होती है, वहीं अंधविश्वास और गलतफहमियों का निपटारा भी इस प्रकार की महत्वपूर्ण पुरातात्विक खोजों से संभव होता है।
समय-समय पर पुरातात्विक दस्तावेज और वस्तुएं खोजी जाती रही हैं, जो विगत का सही-सही लेखा-जोखा प्रस्तुत करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती हैं और हमें और अधिक प्रामाणिक ज्ञान प्रदान करती हैं।

विषय की उपयोगिता
इतिहास में करियर बनाने के लिए उन विद्यार्थियों को आगे आना चाहिए, जो लुप्त समाज, सभ्यताओं, उनके इतिहास और अवशेषों के बारे में रुचि रखते हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में इतिहास का अध्ययन बहुत उपयोगी साबित होता है। इतिहास विषय के छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में अच्छे अंक लाकर सफलता प्राप्त करते हैं।
विभिन्न राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं और सिविल सेवा प्रारंभिक परीक्षा में सामान्य अध्ययन के बहुत सारे प्रश्न इतिहास से संबधित होते हैं। इतिहास से जुड़े प्रश्नों को इतिहास के विद्यार्थी पलक झपकते ही हल कर देते हैं। इतिहास से जुड़े सांस्कृतिक पक्ष के निबंध भी बगैर अतिरिक्त मेहनत किए हल किए जा सकते हैं। सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में इतिहास को एक विषय के रूप में भी लिया जा सकता है। 
नौकरी के अवसर
पिछले दिनों विश्व प्रसिद्ध यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक्स द्वारा जारी की गई एक नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि इतिहास विषय से संबंधित रोजगार संपूर्ण विश्व में बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह वृद्धि आने वाले कई वर्षों तक सतत होती रहेगी।
इस रिपोर्ट से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि इतिहास के क्षेत्र में कितनी चमकीली रोजगार की संभावनाएं हैं। इतिहास विषय से जुड़े विभिन्न कोर्सों को सफलतापूर्वक करने के बाद रोजगार की उजली संभावनाएं हैं। इतिहास का कोर्स करने के बाद जो पद प्राप्त किए जा सकते हैं, वे इस प्रकार हैं-म्यूजियम क्यूरेटर, हेरिटेज मैनेजर, कंजर्वेशन ऑफिसर, म्यूजियम एग्जीबिशन ऑफिसर, स्कूल टीचर, लाइब्रेरियन, आर्कियोलॉजिस्ट, आर्किविस्ट, जर्नलिस्ट आदि।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के अलावा देश-विदेश में ऐसे बहुत से पुरातत्व संबंधी संस्थान हैं, जहां निदेशक, शोधकर्ता, सर्वेक्षक और आर्कियोलॉजिस्ट, असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट आदि पदों पर इतिहास के प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार उपलब्ध हैं। विदेश मंत्रालय के हिस्टोरिकल डिवीजन, शिक्षा मंत्रालय, भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार, विश्वविद्यालयों आदि में भी रोजगार के अच्छे मौके मिलते हैं।
सरकारी नौकरी के अंतर्गत जहां प्रोफेशनल्स को सरकारी म्यूजियम, गैलरी, आर्म्ड फोर्सेज, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय आदि में नौकरी के अवसर मिलते हैं, वहीं उच्च शिक्षण संस्थान, पब्लिशिंग कंपनी, हेरिटेज ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल पार्क सर्विसेज आदि कई ऐसे प्राइवेट संस्थान हैं, जो छात्रों को अपने यहां नौकरी देते हैं।
सरकारी संस्थानों और शिक्षण संस्थानों में नौकरी करने वाले पुरातत्वविदों को बहुत अच्छे वेतन पर नियुक्ति मिलती है। इतिहास में डिग्री लेने के बाद शोध संस्थानों, ट्रैवल एंड टूरिज्म इंडस्ट्री आदि जगह भी रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। 
सैलरी
इस क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की सैलरी उनकी योग्यता और संस्थान पर निर्भर करती है। सरकारी संस्थानों में शुरुआती दौर में ही प्रोफेशनल्स को 30 से 40 हजार रुपए प्रतिमाह मिलने लगते हैं।
कॉलेज/यूनिवर्सिटी में टीचिंग के क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स को शुरुआत में ही 40-45 हजार रुपए प्रतिमाह आसानी से मिल जाते हैं। निजी संस्थान भी अच्छी सैलरी ऑफर करते हैं। विदेशों में तो और अच्छा सैलरी पैकेज मिलता है। 
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in 
पंडित रविशंकर शुक्ला यूनिवर्सिटी, रायपुर
वेबसाइट- www.prsu.ac.in 
चौधरी बंसीलाल यूनिवर्सिटी, भिवानी 
वेबसाइट- https://cblu.ac.in/ 
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in 
एबीवी हिंदी विश्वविद्यालय, भोपाल
वेबसाइट- www.abvhv.org 

Friday, October 12, 2018

स्पेस साइंस में करियर

स्पेस साइंस एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है। इसकी पढ़ाई रोजगार के बेहतरीन मौके उपलब्ध कराती है। क्या है स्पेस साइंस और क्या हैं इसमें करियर की संभावनाएं, जानते हैं-
सेटेलाइट व नई तकनीक के जरिए मौसम अथवा ग्रह-उपग्रह के बारे में सटीक सूचना दे पाना अब पहले से ज्यादा आसान हो गया है। वायुमंडल अथवा पृथ्वी की हलचलों का पता लगाना भी ज्यादा आसान हो गया है। यह सब संभव हो पाया है ‘स्पेस साइंस’ से। साल दर साल इसमें नई चीजें शामिल होती जा रही हैं। इसमें एडवांस कम्प्यूटर एवं सुपर कम्प्यूटर से डाटा एकत्र करने का कार्य किया जाता है। डाटा न मिलने की स्थिति में आकलन के जरिए किसी निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश की जाती है। इस काम से जुड़े प्रोफेशनल स्पेस साइंटिस्ट कहलाते हैं। समय के साथ यह एक सशक्त करियर का रूप धारण कर चुका है। इस क्षेत्र में युवाओं की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है। इंडस्ट्री के जानकारों का भी मानना है कि आने वाले पांच सालों में इसमें नौकरियों की संख्या बढ़ेगी।
क्या है स्पेस साइंसयह साइंस की एक ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत हम ब्रह्मांड का अध्ययन करते हैं। इसमें ग्रह, तारों आदि के बारे में जानकारी होती है। छात्रों को कोर्स के दौरान यह भी जानकारी दी जाती है कि किस तरह से पृथ्वी और सौर मंडल की उत्पत्ति हुई तथा उसके विस्तार की प्रक्रिया किस तरह की है। इसमें प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के बारे में भी छात्रों को थ्योरी और प्रैक्टिकल के रूप में जानकारी दी जाती है।
बारहवीं के बाद प्रवेशइसमें जो भी कोर्स हैं, वे बैचलर से लेकर पीएचडी लेवल तक हैं। बैचलर कोर्स में प्रवेश तभी मिल पाएगा, जब छात्र ने बारहवीं की परीक्षा साइंस विषय के साथ (फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथमेटिक्स) पास की हो। इसमें ऑल इंडिया लेवल पर एक प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसमें सफल होने के बाद ही बैचलर प्रोग्राम में दाखिला मिलता है, जबकि मास्टर प्रोग्राम में बीटेक व बीएससी के बाद दाखिला मिलता है। यदि छात्र किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें पीएचडी की डिग्री लेनी अनिवार्य है।
स्पेस साइंस की शाखाएं
एस्ट्रोनॉमी-
 यह स्पेस साइंस की एक ऐसी महत्वपूर्ण शाखा है, जिसके अंतर्गत सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह आदि का अध्ययन किया जाता है। आमतौर पर इसमें एस्ट्रोनॉमी आकलन पर फोकस होता है।
एस्ट्रोफिजिक्स- यह एक ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत तारों के जन्म-मृत्यु व जीवन, ग्रह, आकाश गंगा एवं सौर मंडल के अन्य तत्वों का अध्ययन भौतिकी व रसायन शास्त्र के नियमों के आधार पर किया जाता है।
कॉस्मॉलजी- कॉस्मॉलजी के अंतर्गत ब्रह्मांड का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर उसके विस्तार तक की पूरी प्रक्रिया को शामिल किया जाता है।
प्लैनेटरी साइंस- यह शाखा ग्रह, सेटेलाइट और सौर मंडल के अन्य ग्रहों को समझने की क्षमता में विस्तार करती है। इसमें छात्र वायुमंडल, ग्रहों की सतह से आंतरिक भाग तक का अध्ययन करते हैं।
स्टेलर साइंस- सौर मंडल में सभी तारे एक विशेष पैरामीटर के तहत व्यवस्थित होते हैं। ये बहुत कुछ सूर्य की स्थिति पर निर्भर रहते हैं। स्टेलर साइंस में इसका अध्ययन किया जाता है।
रोजगार के भरपूर अवसरसफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। प्रोफेशनल्स को नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा), इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो), डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआडीओ), हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), नेशनल एयरोनॉटिकल लेबोरेटरी (एनएएल) आदि में प्रमुख पदों पर काम मिलता है। इसके अलावा स्पेसक्राफ्ट सॉफ्टवेयर डेवलपिंग फर्म, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर, स्पेसक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग फर्म, स्पेस टूरिज्म में भी रोजगार की प्रचुरता है। प्रमुख विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज, स्पेस साइंटिस्ट को अपने यहां रख रहे हैं। स्पेस रिसर्च एजेंसी, साइंस म्यूजियम एवं प्लैनेटेरियम में भी हर साल बड़े पैमाने पर नियुक्तियां होती हैं। इसरो व नासा बड़े रोजगार प्रदाता के रूप में जाने जाते हैं।
इन पदों पर मिलता है कामस्पेस साइंटिस्ट 
एस्ट्रोनॉमर   
एस्ट्रोफिजिसिस्ट
मैटीरियोलॉजिस्ट    
क्वालिटी एश्योरेंस स्पेशलिस्ट 
रडार टेक्निशियन  
रोबोटिक टेक्निशियन
सेटेलाइट टेक्निशियन    
जियोलॉजिस्ट
आकर्षक सेलरी पैकेज 
स्पेस इंडस्ट्री में प्रोफेशनल्स को काफी आकर्षक सेलरी मिलती है, बशर्ते उन्हें काम की अच्छी समझ हो। आमतौर पर शुरुआती दौर में एक स्पेस साइंटिस्ट को 25-30 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं, जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यही राशि 40-45 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। रिसर्च के क्षेत्र में आज कई ऐसे साइंटिस्ट हैं, जो सालाना लाखों के पैकेज पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विदेशों में भी प्रोफेशनल्स को आकर्षक पैकेज दिया जाता है।
फायदे एवं नुकसानउच्च पदों पर मिलती है जॉब
प्रोजेक्ट कंप्लीट होने पर सुकून
काम के घंटे अधिक
कई बार काम का नतीजा नहीं
एजुकेशन लोनछात्रों को प्रमुख राष्ट्रीयकृत, प्राइवेट अथवा विदेशी बैंकों द्वारा एजुकेशन लोन प्रदान किया जाता है। छात्र को जिस संस्थान में एडमिशन कराना होता है, वहां से जारी एडमिशन लेटर, हॉस्टल खर्च, ट्यूशन फीस एवं अन्य खर्चो को ब्योरा बैंक को देना होता है। अंतिम निर्णय बैंक को करना होता है।
कुछ प्रमुख कोर्सबीटेक इन स्पेस साइंस (चार वर्षीय)
बीएससी इन स्पेस साइंस (तीन वर्षीय)
एमटेक इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
एमएससी इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
एमई इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
पीएचडी इन स्पेस साइंस (तीन वर्षीय)
साइंस पर कमांड जरूरी
एक अच्छा प्रोफेशनल बनने के लिए साइंस
 
विषयों खासकर फिजिक्स का बेहतर ज्ञान होना जरूरी है। कम्प्यूटर की अच्छी जानकारी व इंजीनियरिंग के बेसिक्स पर मजबूत पकड़ उन्हें काफी आगे तक ले जाती है। कम्युनिकेशन व राइटिंग स्किल्स, प्रेजेंटेशन तैयार करने का कौशल हर मोड़ पर सम्यक सहायता दिलाता है। इसके अलावा प्रोफेशनल्स को परिश्रमी, धर्यवान व जिज्ञासु प्रवृत्ति का बनना होगा, क्योंकि इससे संबंधित अधिकांश कार्य रिसर्च अथवा आकलन पर आधारित 
होते हैं।
प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम
वेबसाइट
www.iist.ac.in
बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची
वेबसाइट-
 www.bitmesra.ac.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट
www.iisc.ernet.in
टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई
वेबसाइट-
  www.univ.tifr.res.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर
वेबसाइट
www.niser.ac.in
आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीटय़ूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेज, नैनीताल
वेबसाइट-
 www.aries.ernet.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंग्लुरू
वेबसाइट-
 www.iiap.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर
वेबसाइट- 
www.iitk.ac.in

Thursday, October 11, 2018

मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में भविष्य

मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में कॅरियर हमारी जरूरतों में वक्त के साथ कई ऐसी चीजें भी जुड़ी हैं, जो प्राकृतिक होकर भी अपने मूल रूप में हम तक नहीं पहुंचतीं। उनमें एक महत्वपूर्ण चीज है मेटल यानी धातु। प्रकृति में कई प्रकार की धातु हैं, जो कई तत्वों (एलीमेंट्स) के रासायनिक संयोग से बनी हैं। इस कारण उनके गुणों (कैरेक्टरीस्टिक) में भी भौतिक और रासायनिक स्तर पर कई तरह की विशेषताएं देखने को मिलती हैं। ये विशेषताएं ही उनकी उपयोगिता (इंसानी जरूरत) का निर्धारण करती हैं। एल्यूमीनियम, तांबा, लोहा और टिन आदि धातुओं का इस्तेमाल वाहन निर्माण, विद्युत उपकरण और मशीनों के निर्माण में बड़े पैमाने पर किया जाता है। प्राकृतिक रूप में ये धातु अयस्क (ओर) के रूप में मिलते हैं। इनमें अशुद्धियों (मिट्टी और अन्य तत्व) की भारी मात्रा होती है। इस कारण इनका तत्काल उपयोग संभव नहीं होता। अयस्क से धातुओं को निकालने और उन्हें उपयोग लायक बनाने का कार्य मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के जरिए होता है। इस विधा के जरिए ही खनन में मिले खनिजों से धातु अयस्क और फिर उससे धातु प्राप्त करने की सुगम प्रक्रियाओं का विकास किया जाता है।
इंजीनियरिंग की इस शाखा के विकास का प्रमाण हैं विभिन्न प्रकार के एलॉय (मिश्रधातु)। औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न धातुओं के मेल से तैयार एलॉय का काफी क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए स्टेनलेस स्टील को लिया जा सकता है, लोहे में निकिल और क्रोमियम के मेल से तैयार यह मिश्रधातु जंगरहित और चमकदार होती है। इसी तरह ड्यूरेलुमिन है, जो एल्युमीनियम के साथ कॉपर, मैंगनीज और मैग्नीशियम के मेल से बना है। इस मिश्रधातु का उपयोग हवाई जहाजों के निर्माण में होता है। इसकी खासियत है हल्का वजन और भारी वहन क्षमता। ऐसे कई मिश्रधातु हैं, जिनका विकास मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के कारण संभव हो पाया है। आने वाले वक्त में भी निर्माण और उत्पादन का क्षेत्र लोगों की बढ़ती भौतिक जरूरतों के कारण बढ़ता रहेगा। स्वाभाविक रूप से इस कारण  सहयोगी के रूप में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग का क्षेत्र भी विस्तृत होगा। ऐसे में उसके पेशेवरों के लिए यह क्षेत्र आगे भी अवसरों की दृष्टि से आकर्षक बना रहेगा।
क्या है मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
मेटलिक एलीमेंट (धातु तत्व) और उनसे बनने वाले यौगिकों (कंपाउंड्स) व मिश्रणों (मिक्सचर्स) के रासायनिक और भौतिक गुणों का अध्ययन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के तहत किया जाता है। मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में धातु अयस्क के प्राकृतिक भंडारों से धातु को प्राप्त करने, उनमें मौजूद अशुद्धियों को दूर करने और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए धातुओं के मेल से मिश्रधातुओं (एलॉय) का निर्माण करने संबंधी प्रकियाओं और सिद्धांतों के बार में बताया जाता है। विभिन्न प्रक्रियाओं की प्रायोगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, स्पेक्ट्रोग्राफ्स और एक्स-रे मशीन आदि तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है।  इंजीनियरिंग की यह शाखा मुख्य रूप से तीन भागों में बंटी है। इनके नाम हैं-फिजिकल मेटलर्जी, एक्सट्रेक्टिव मेटलर्जी और मिनरल प्रोसेसिंग। बैचलर डिग्री में इन भागों के आधारभूत सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है, जबकि मास्टर्स में इनमें से किसी एक को स्पेशलाइजेशन का विषय बनाया जा सकता है।
इंजीनियर के कार्य 
- धातुओं को उपयोग के लायक बनाने की कम खर्चीली और तकनीकी दृष्टि से सुविधाजनक प्रक्रियाओं को विकसित करना। अयस्क में से धातु को अलग करने के लिए अयस्क की काफी बड़ी मात्रा को साफ (रिफाइन) करना पड़ता है।
- उपलब्ध धातुओं से विभिन्न उद्योगों (परिवहन, रक्षा, आटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, निर्माण और मशीनरी आदि) की जरूरत के अनुरूप नए उत्पाद विकसित करना।
-  मेटलर्जी के क्षेत्र में हुए नवीनतम शोध और तकनीकी विकास की जानकारी हासिल करते रहना। इसका इस्तेमाल कार्य को बेहतर बनाने में के लिए जरूरी होता है।
- धातु निर्माण कंपनियों में प्रोडक्शन सुपरवाइजर के तौर पर काम करते हुए प्रयोग में लाई जा रही प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव और ऊर्जा की खपत आदि पहलुओं पर गौर करते हुए उपयोगी उपाय तलाशना।
योग्यता
डिप्लोमा कोर्स

किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या स्कूल शिक्षा बोर्ड से 10वीं पास करने के बाद इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया जा सकता है। मेटलर्जी में डिप्लोमा कोर्स देश के कई विश्वविद्यालयों और पॉलिटेक्नीक संस्थानों में चल रहा है। इनमें दाखिले आमतौर पर प्रवेश परीक्षा के जरिए होते हैं। कुछ संस्थान दसवीं में प्राप्त अंकों के आधार पर भी दाखिला करते हैं। तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करने के बाद लेटरल एंट्री स्कीम के तहत सीधे बीई/ बीटेक कोर्स के दूसरे वर्ष (तीसरा सेमेस्टर) में प्रवेश लिया जा सकता है।
बैचलर कोर्स
विज्ञान विषयों (फिजिक्स और मैथ्स के अलावा केमिस्ट्री जरूरी) के साथ बारहवीं पास करके मेटलर्जी के बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश लिया जा सकता है। शैक्षणिक सत्र 2013-14 से इंजीनियरिंग के सभी कोर्स में प्रवेश के लिए सिंगल एंट्रेंस टेस्ट को माध्यम बनाया गया है। एनआईटी और राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग संस्थानों की सीटें भरने के लिए आईआईटी (मेंस) परीक्षा का आयोजन होगा। इसमें प्राप्त अंक और 12वीं के अंक को मेरिट सूची बनाने में क्रमश: 60 और 40 फीसदी की वेटेज (राज्यों में वेटेज का अनुपात बदल भी सकता है) दी जाएगी। आईआईटी सीटों पर दाखिले के लिए आईआईटी (मेंस) के शीर्ष डेढ़ लाख छात्रों में चुने जाने के अलावा आईआईटी (एडवांस्ड) परीक्षा में पास होना होगा। इस परीक्षा में बैठने के लिए संबंधित स्कूल शिक्षा बोर्ड के शीर्ष 20 पर्सेंटाइल में भी आना होगा। 
मास्टर्स कोर्स
मेटलर्जी में इंजीनियरिंग की बैचलर डिग्री हासिल करने या केमिस्ट्री में एमएससी करने के बाद मेटलर्जी या उससे संबंधित विषयों में एमटेक किया जा सकता है। इसके लिए आईआईटी द्वारा आयोजित गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) को पास करना पड़ता है।
स्पेशलाइजेशन के विषय
- फिजिकल मेटलर्जी
- मिनरल प्रोसेसिंग
- एक्सट्रेक्टिव मेटलर्जी
कार्य का दायरा
इंजीनियरिंग के इस क्षेत्र में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। धातु निर्मित उत्पादों के विकास और निर्माण से जुड़ी कंपनियों में मेटलर्जिकल इंजीनियर की काफी मांग होती है। इसके लिए धातुओं का निर्माण करने वाली कंपनियों (टाटा स्टील, सेल, जिंदल स्टील, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज) में मेटलर्जिकल कंसल्टेंट के पद पर इंजीनियरों की नियुक्ति की जाती है। निजी और सरकारी कंपनियों की शोध व विकास शाखाओं में रिसर्चर के तौर पर मेटलर्जी के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है। इसके लिए मास्टर्स डिग्री का होना जरूरी होता है। मास्टर्स डिग्री और सीएसआईआर-यूजीसी नेट परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग संस्थानों में लेक्चरर के रूप में भी अपनी योग्यता और अनुभव का उपयोग किया जा सकता है। 
इन पदों पर मिलेगा काम
- मेटलर्जिस्ट
-  रिसर्चर
-  वेल्डिंग इंजीनियर
-  प्रोसेस इंजीनियर
-  प्लांट इक्विपमेंट इंजीनियर
- बैलिस्टिक इंजीनियर
-  क्वालिटी प्लानिंग इंजीनियर
वेतन
कोर्स करने के बाद पहली नौकरी में वेतन का स्तर कंपनी की बाजार स्थिति और कारोबार पर निर्भर करता है। डिप्लोमा कोर्स के बाद शुरुआती वेतन 15 से 18 हजार रुपये के बीच होता है, जबकि बैचलर डिग्री के बाद औसत वेतन 30 हजार रुपये मासिक होता है।
प्रमुख कोर्स
- डिप्लोमा इन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
- बीई/ बीटेक इन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
- एमटेक इन मेटलर्जिकल एंड मेटेरियल्स इंजीनियरिंग ऋ एमटेक इन स्टील टेक्नोलॉजी
प्रमुख संस्थान
-  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कानपुर, रुड़की, मद्रास)
-  नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (राउरकेला, जमशेदपुर, दुर्गापुर, वारंगल, तिरुचिरापल्ली)
-  इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
-  इंडियन स्कूल ऑफ माइंस
-  बंगाल इंजीनियरिंग एंड साइंस यूनिवर्सिटी, हावड़ा
-  बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धनबाद
-  जादवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता
-  जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद

Tuesday, October 9, 2018

टूल्स डिजाइनिंग में संवारे करियर


मैन्यूफैक्चरिंग इंजीनियरिंग का ही एक हिस्सा है टूल्स डिजाइनिंग। आज के औद्योगिक माहौल में टूल्स इंजीनियरों की काफी मांग है... उत्पाद का स्वरूप चाहे जैसा भी हों, उनके निर्माण के लिए टूल्स की आवश्यकता होती ही है। टूल्स ही मशीनरी का आधार होते हैं, जिनकी मदद से किसी प्रोडक्ट को मनचाहे रूप में ढाला जा सकता है। उत्पादों के बदलते स्वरूप के अनुसार नई-नई मशीनरी की जरूरत भी निरंतर बनी रहती है। यही कारण है कि वर्तमान औद्योगिक माहौल में टूल्स डिजाइनरों की मांग काफी है। विषय की रूपरेखा टूल्स एनालिसिस, प्लानिंग, डिजाइनिंग और डेवलपमेंट से संबंधित विभिन्न कार्य टूल्स डिजाइनिंग के तहत संपन्न किए जाते हैं। ऐसी डिजाइनिंग का मुख्य मकसद बेहतर टूल्स और मशीनों का निर्माण करके उत्पादकता को सुविधाजनक और गुणवत्तापूर्ण बनाना होता है। मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री की सफलता में टूल्स की बेहतरीन डिजाइनिंग की बेहद खास भूमिका होती है। पाठ्यक्रम और शैक्षणिक योग्यता पीजी डिप्लोमा इन टूल डिजाइन ऐंड सीएडी/सीएएम, मास्टर ऑफ सीएमएम ऐंड सीएनसी टेक्नोलॉजी, बीटेक इन टूल इंजीनियरिंग, मास्टर ऑफ सीएडी, डिप्लोमा इन टूल ऐंड डाई मेकिंग, सर्टिफिकेट कोर्स इन टर्नर/मिलर/फिल्टर, इंटीग्रेटेड कोर्स इन मॉड्यूल डिजाइन आदि इस क्षेत्र के खास पाठ्यक्रम हैं। पाठ्यक्रमों की प्रकृति के अनुसार उनकी अवधि 6 महीने से लेकर 4 वर्ष तक की हो सकती है। जिन विद्यार्थियों ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री अथवा डिप्लोमा किया हो, उनका इन कोर्सेज में नामांकन हो सकता है। इसके अलावा संबंधित स्ट्रीम में आईटीआई करने वाले विद्यार्थी भी एडमिशन के हकदार हैं। कई संस्थान, जैसे सीआईटीडी में विद्यार्थियों को एंट्रेस टेस्ट के माध्यम से दाखिला मिलता है। मौके कहां-कहां टूल्स डिजाइनिंग से संबंधित प्रोफेशनल्स की मांग टूल्स डिजाइन कंपनी, टूल्स मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी आदि में बनी रहती है। औद्योगिक ईकाइयां चाहे जिस भी प्रकृति की हों, टूल्स डिजाइनरों के लिए अवसर उपलब्ध होते हैं।

 दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ टूल इंजीनियरिंग, दिल्ली www.dite.delhigovt.nic.in एनटीटीएफ, बेंगलुरु www.nttftrg.com इंडो-जर्मन टूल रूम, औरंगाबाद www.igtr-aur.org सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ टूल डिजाइन, बेंगलुरु www.citdindia.org इंडियन मशीन टूल मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन, बेंगलुरु www.imtma.in

Thursday, October 4, 2018

फार्माकोविजिलेंस में करियर

बचपन से मेडिसीन की पढ़ाई का सपना था पर सफलता नहीं मिलने की वजह से मेडिकल कॉलेज में एडमिशन नहीं ले पाए तो निराश होने की कोई बात नहीं. अब आपके पास एक ऐसा ऑप्‍शन है जो आपके अधूरे सपने को पूरा कर सकता है. हालांकि इस कोर्स को करने के बाद आप एमबीबीएस की डिग्री तो नहीं पा सकेंगे लेकिन एक डॉक्टर का फर्ज जरूर निभा सकेंगे.
हम यहां जिस कोर्स की बात कर रहे हैं उसका नाम है- फार्माकोविजिलेंस. दरअसल, दवाइयों से होने वाले किसी भी प्रकार के साइड इफेक्ट की पहचान, आकलन और बचाव के लिए फार्माकोलॉजिकल साइंस की मदद ली जाती है ताकि दवाइयों को ज्यादा सुरक्षित और उपयोगी बनाया जा सके. 

अगर आपकी रुचि मेडिकल के क्षेत्र में है तो यह कोर्स आपके लिए ठीक रहेगा. इसके अलावा लोगों को स्वास्थ्य के प्रति सजग और सुरक्षित रखने की भावना रखने वाले लोगों के लिए यह एक बेहतर करियर ऑप्शन है.
फार्माकोविजिलेंस का संबंध दवाइयों की उपलब्धता, डिस्ट्रीब्यूशन, पहुंच, इस्तेमाल और इससे जुड़ी दूसरी समस्‍याओं से भी है. इस फील्‍ड में विदेशों में भी नौकरियों की संभावनाएं हैं.
कोर्सेज:
सर्टिफिकेट इन फार्माकोविजिलेंस 
डिप्लोमा इन फार्माकोविजिलेंस
विषय:
बेसिक प्रिंसिपल ऑफ फार्माकोविजिलेंस
रेगुलेशन इन फार्माकोविजिलेंस
फार्माकोविजिलेंस इन क्लिनिकल रिसर्च
ड्रग रिएक्शन
मैनेजमेंट ऑफ फार्माकोविजिलेंस डाटा
रिस्क मैनेजमेंट इन फार्माकोविजिलेंस
फार्माकोइपिडेमियोलॉजी
योग्यता: 
कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ केमिस्ट्री, बॉटनी, जूलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, जेनेटिक्स और बायोटेक से ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट या फार्मेसी और मेडिसिन में ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट.
चयन प्रक्रिया:
छात्रों का चयन एंट्रेंस टेस्ट, पर्सनल इंटरव्यू और स्क्रीनिंग टेस्ट पर आधारित होता है.
कहां मिलेगी नौकरी:
फार्माकोविजिलेंस से संबंधित कोर्स करने के बाद ग्लैक्सो, सन फार्मा, फाइजर, सिप्ला, निकोलस पिरामल जैसी फार्मास्युटिकल कंपनियों में नौकरी मिल सकती है. विदेशी फार्मा कंपनियां भी इस कोर्स को करने वाले भारतीय छात्रों को अच्छा पैकेज ऑफर करते हैं.
वेतन:
इस फील्ड में शुरुआत में 15 से 20 हजार रुपये मिलते हैं. वहीं, कुछ साल का अनुभव हासिल करने के बाद 30 से 40 हजार रुपये प्रतिमाह तक मिल सकते हैं
कहां से करें कोर्स:
इंस्टीट्यूट ऑफ क्लीनिकल रिसर्च, नई दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरू, अहमदाबाद, हैदराबाद
वेबसाइट: www.icriindia.com
आईसीबीआईओ क्लीनिकल रिसर्च, बेंगलुरू
वेबसाइट: www.icbio.org
एम्पावर स्कूल ऑफ हेल्थ, दिल्ली
वेबसाइट: www.empower.net.in
आईडीडीसीआर, हैदराबाद
वेबसाइट: www.iddcr.com
जीआईटीएस एकेडमी, बेंगलुरू
वेबसाइट: www.gitsacademy.com
एकेडमी ऑफ क्लीनिकल रिसर्च एंड फार्मास्युटिकल मैनेजमेंट, कोलकाता
महाराजा इंस्टीट्यूट मेडिकल साइंसेज, आंध्रप्रदेश
वेबसाइट: www.mimsvzm.org

सिमोजेन इंडिया
वेबसाइट: www.symogen.net

Monday, October 1, 2018

डाटा साइंस में बनाएं करियर

देश-दुनिया में डाटा साइंस प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। जितनी इनकी डिमांड है, उस हिसाब से प्रोफेशनल्स नहीं मिल पा रहे हैं। आउटबाउंड हायरिंग स्टार्टअप बिलॉन्ग की टैलेंट सप्लाई इंडेक्स 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में चार गुना तेजी से डाटा साइंटिस्ट्स की मांग बढ़ी है। पिछले एक साल में डाटा साइंटिस्ट्स की मांग में 417 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आइए, जानते हैं कैसे इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाया जा सकता है?
टेक्नोलॉजी की दुनिया तेजी से बदल रही है। आज तकरीबन हर फील्ड में इसका इस्तेमाल होने लगा है। जिसकी वजह से जॉब्स के नए-नए अवसर भी सामने आ रहे हैं। इस फील्ड में खासकर डाटा साइंटिस्ट प्रोफेशनल्स की डिमांड पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है।
इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, 2018 में देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के तहत डाटा साइंटिस्ट सहित डाटा से जुड़े करीब पांच लाख विशेषज्ञों की मांग है, जो 2021 तक बढ़कर 7.5 लाख से ज्यादा हो जाएगी। आईटी मंत्रालय के मुताबिक, एआई के तहत डाटा साइंटिस्ट के अलावा, डाटा आर्किटेक्ट और सॉफ्टवेयर इंजीनियर की मांग भी बढ़ रही है।
सबसे ज्यादा डिमांड डाटा साइंटिस्ट की है, जो खोए हुए डाटा खोजने, गड़बड़ियों को दूर करने और तमाम खामियों से बचाव करने में मददगार होते हैं। फिलहाल सर्विस प्रोवाइडर के बीच 2.5 लाख, स्टार्टअप में 25 हजार, आईटी कंपनियों में 26 हजार, अन्य क्षेत्र की कंपनियों को 1.40 लाख और विदेशी कंपनियों में 92 हजार डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत है।
  
डिमांड है भरपूर
रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन साल में करीब पांच लाख से ज्यादा डाटा साइंटिस्ट की जरूरत होगी। कंपनियों, संस्थानों और हेल्थकेयर क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में इसकी डिमांड बढ़ी है। आने वाले दिनों में डिजिटल क्षेत्र में भारत दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाएगा।
डाटा साइंटिस्ट गायब हुए डाटा को खोजने में मुख्य भूमिका निभाता है। साथ ही, यह तकनीक का इस्तेमाल करके डाटा का अध्ययन और उस पर निर्णय लेता है। वैसे देखा जाए, तो कुल 5.11 लाख डाटा साइंटिस्ट की मांग की तुलना में देश में महज 1.44 लाख कुशल प्रोफेशनल्स मौजूद हैं।
नेचर ऑफ वर्क
डाटा साइंटिस्ट, डाटा से जुड़ी स्टडी करते हैं। इसके तहत डाटा को जुटाकर उनके अध्ययन और एनालिसिस के माध्यम से भविष्य की योजना बनाई जा सकती है। साथ ही, डाटा साइंटिस्ट अपनी कंपनी के लिए डाटा एनालिसिस करते हैं, जिससे उसे बिजनेस में फायदा हो। डाटा साइंस में आंकड़े के विश्लेषण को तीन भागों में बांटा जाता है।
पहले डाटा को जुटाया जाता है और उनको स्टोर किया जाता है। उसके बाद डाटा की पैकेजिंग यानी विभिन्न श्रेणियों के हिसाब से उनकी छंटाई की जाती है और अंत में डाटा की डिलिवरी की जाती है। डाटा साइंटिस्ट के पास प्रोग्रामिंग, स्टेटिस्टिक्स, मैथमेटिक्स और कंप्यूटर की अच्छी जानकारी होती है।
वे डाटा को जमा करके उनका बहुत ही बारीकी से विश्लेषण करते हैं। इसके लिए वे स्टेटिस्टिक्स और मैथ्स के टूल्स का उपयोग करते हैं। इसको वे पॉवर प्वाइंट, एक्सल, गूगल विजुअलाइजेशन के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इनके पास किसी भी तरह के डाटा को बेहतर तरीके से विजुअलाइज करने की क्षमता होती है।
साथ ही, विभिन्न सेक्टरों द्वारा दिए गए उलझाऊ और जटिल डाटा में से अहम जानकारियों को बारीकी से खंगालते हैं। वे यह भी पता लगाते हैं कि किस वजह से कंपनी की स्थिति में गिरावट आ रही है या कंपनी के लिए कौन-सा नया उद्यम ज्यादा फायदेमंद होगा।
क्वालिफिकेशन
डाटा साइंटिस्ट बनने के लिए कैंडिडेट के पास मैथ्स, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, अप्लाइड साइंस, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक और एमएस की डिग्री होना जरूरी है। यही नहीं कैंडिडेट्स को सांख्यिकी मॉडलिंग, प्रॉबेबिलिटी की नॉलेज होना बहुत जरूरी है।
इसके अलावा, पाइथन, जावा, आर, एसएएस जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की समझ होना भी बेहद जरूरी है। एडवांस्ड सर्टिफिकेट और एडवांस्ड प्रोग्राम जैसे कुछ प्रोग्राम के लिए इंजीनियरिंग या मैथ्स या स्टेटिस्टिक्स में बैचलर डिग्री या मास्टर डिग्री होने के साथ-साथ दो वर्ष का अनुभव भी चाहिए। 
मेन कोर्सेस
डाटा साइंटिस्ट की पढ़ाई के लिए देश में कई संस्थानों द्वारा बिजनेस एनालिटिक्स स्पेशलाइजेशन में शॉर्ट टर्म कोर्स कराए जा रहे हैं। आईआईएम कोलकाता, आईएसआई कोलकाता और आईआईटी खड़गपुर ने मिल कर दो वर्षीय फुलटाइम पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स प्रोग्राम की शुरुआत की है।
इसके अलावा, एडवांस्ड सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एग्जिक्युटिव प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एडवांस्ड बिजनेस एनालिटिक्स एंड बिजनेस ऑप्टिमाइजेशन प्रोग्राम, मास्टर्स इन मैनेजमेंट, पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन मार्केट रिसर्च एंड डाटा एनालिटिक्स, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स जैसे कोर्स किए जा सकते हैं।
  
जॉब्स ऑप्शन
इस फील्ड में आप डाटा साइंटिस्ट, डाटा एनालिस्ट, सीनियर इंफॉर्मेशन एनालिस्ट, इंफॉर्मेशन ऑफिसर, डाटा ऑफिसर, सॉफ्टवेयर टेस्टर, सपोर्ट एनालिस्ट और बिजनेस एनालिस्ट के तौर पर करियर बना सकते हैं। इस फील्ड में सरकारी और प्राइवेट दोनों क्षेत्रों में जॉब के बहुत मौके हैं।
अगर प्राइवेट सेक्टर की बात करें, तो आइटी, बैंक्स, इंश्योरेंस, फाइनेंस, टेलीकॉम, ई-कॉमर्स, रिटेल और आउटसोर्सिंग कंपनीज में ऐसे प्रोफेशनल्स की बहुत डिमांड है। इसके अलावा, युवाओं के लिए कंस्ट्रक्शन, यूटिलिटी, ऑयल/गैस/माइनिंग, हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्टेशन, कंसल्टिंग और मैन्युफेक्चरिंग कंपनीज में भी काफी संभावनाएं हैं।
अगर चाहें तो कॉलेज या यूनिवर्सिटीज के रिसर्च विंग से भी जुड़ सकते हैं। डाटा प्रोफेशनल्स की डिमांड अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भी बहुत है। कई बड़ी कंपनियों जैसे गूगल, अमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, ईबे, लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनीज को भी डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत पड़ती है।
सैलरी
डाटा साइंटिस्ट्स की सैलरी उसके अनुभव पर भी निर्भर करती है। लेकिन यह काफी हाई-पेइंग जॉब है। अगर एवरेज सैलरी की बात की जाए, तो डाटा साइंटिस्ट्स को करीब 70-80 लाख रुपए सालाना तक मिल सकता है। हालांकि शुरुआती दौर में प्रोफेशनल्स को 8 से 10 लाख रुपए का सालाना पैकेज आसानी से मिल जाता है। 
प्रमुख संस्थान
आईएसआई, कोलकाता 
वेबसाइट: www.isical.ac.in 
आईआईएम, कोलकाता, लखनऊ
वेबसाइट: www.iimcal/l.ac.in 
आईआईटी, खड़गपुर
वेबसाइट: www,iitkgp.ac.in 
एमआईसीए, अहमदाबाद
वेबसाइट: www.mica.ac.in 
-आईआईएससी, बेंगलुरु 
वेबसाइट: www,iisc.ernet.in