Saturday, May 30, 2015

फैशन डिजाइनिंग में है बेहतर करियर


फैशन डिजाइनरों की मांग आज सिर्फ पेरिस और लंदन में ही नहीं है बल्कि अब तो इसके एक्सपर्ट छोटे शहरों में भी छाये हुए हैं.
इससे संबंधित कोर्स करने के बाद इसकी व्यापकता का पता चलता है और फिर आप जान पाते हैं कि वर्तमान में किस तरह के फैशन का जादू सिर चढ़कर बोल रहा है.
करियर का बेहतर आप्शन

आये दिन बाजार में फैशन के नये डिजाइन, नए तरीके का कलर कंबिनेशन देखने को मिलता है. इस कारण फैशन डिजाइन का क्रेज दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है. हमेशा कुछ न कुछ नया करने की ख्वाहिश रखने वाले विद्यार्थियों के लिए यह करियर का बेहतर आप्शन है.

यहां हमेशा नया करने का मौका भी है और इसके माध्यम से खुद को स्थापित करने का अवसर भी. फैशन डिजाइनिंग में रुचि रखने वालों को राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) के कोर्स नई राह दिखाते हैं.

राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान (एनआईडी) डिजाइन शिक्षा, व्यावहारिक शोध, प्रशिक्षण, डिजाइन परामर्शी सेवाएं के अलावा कई क्षेत्रों में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई है.
पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा 

वर्ष 1961 में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन इस स्वायत्त संस्थान की स्थापना की गई. एनआईडी में ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (जीडीपीडी) और पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा प्रोग्राम इन डिजाइन (पीजीडीपीडी) पाठय़क्रमों के लिए वर्ष 2013-14 के लिए आवेदन मांगे हैं.

ग्रेजुएट कोर्स के लिए बारहवीं पास और पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए बैचलर की डिग्री जरूरी है. अनुभवी अभ्यर्थी को प्राथमिकता दी जाती है. अभ्यर्थी के पास विजुअॅल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिं ग, क्रिएटीविटी औ र कम्युनिकेशन स्किल्स का होना जरूरी है.

चयन एनआईडी द्वारा संचालित पाठय़क्रमों में दाखिला लेने के लिए इच्छुक छात्रों को संस्थान द्वारा आयो जित डिजाइन एप्टीटय़ूड टेस्ट (डीएटी) की परीक्षा पास करनी होगी. यह परीक्षा दो चरणों में होगी. पहले चरण में लिखित परीक्षा है. इसमें 100 अंक के प्रश्न पत्र होंगे.
परीक्षा 
लिखित परीक्षा में एनिमेशन, एबस्ट्रैक्ट सिम्बोलिज्म, कम्पोजिशन, मेमोरी ड्रॉइंग, थीमेटिक कलर अरेंजमेंट, विजुअल डिजाइन के अलावा विजुअल परसेप्शन एबिलिटी, ड्राइंग स्किल, लॉजिकल रीजनिंग, क्रिएटिव एंड कम्युनिकेशन स्किल, फंडामेंटल डिजाइन के अलावा डिजाइन से संबंधित प्रॉब्लम सॉ ल्विंग कैपेसिटी आदि से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. इस परीक्षा का मुख्य उद्देश्य उम्मीदवारों की योग्यता, नवीनता और धारणाओं का मूल्यांकन करना है.

लिखित परीक्षा के आधार पर परीक्षार्थियों को शॉर्ट लिस्टेड किया जाएगा. इसके आधार पर योग्य अभ्यर्थी को स्टूडियो टेस्ट और साक्षात्कार के लिए बुलाया जाएगा.
स्टूडियो टेस्ट के माध्यम से अभ्यर्थी की क्रिएटिविटी और फैशन के प्रति लगाव, डिजाइनिंग के प्रति सोच, नए आइडिया, कल्पनाशक्ति और कुछ अलग हटकर सोचने की क्षमता को परखा जाता है.

परीक्षा से संबंधित किसी भी जानकारी के लिए एनआईडी कैम्पस से संपर्क कर सकते हैं या फिर वेबसाइट पर लॉग ऑन कर सकते हैं. तैयारी इसकी तैयारी अन्य परीक्षाओं से काफी अलग है. इसमें विद्यार्थियों को रट्टा लगाने से सफलता नहीं मिल सकती है.
डिजाइनिंग के प्रति रुझान

इसमें कामयाब होने के लिए मौलिकता की सख्त दरकार होती है. अभ्यर्थियों का डिजाइनिंग के प्रति रुझान, उसके प्रति उनकी समझ, विचारों व समस्या को सुलझाने की क्षमता को परखी जाती है. ऐसे में बेहतर करने के लिए जरूरी है कि आप जो भी बनाएं, उसे इलेस्ट्रेशन एवं शब्दों के माध्यम से समझाने की भी क्षमता रखें.

डीएटी और स्टूडियो टेस्ट के जरिये अभ्यर्थी की ऑब्जर्वेशन पावर, डिजाइन करने की काबिलियत और कुछ नया तैयार करने की क्षमताओं को परखा जाता है. ऐसे में आप जो भी डिजाइन और चित्र बनाएं, उसके रंगों के कंबिनेशन पर विशेष ध्यान रखने की जरूरत है.

स्टूडियो टेस्ट में अभ्यर्थी को एक सवाल और उससे संबंधित कुछ सामान उपलब्ध कराया जाता है, जिसके जरिये अभ्यर्थी को उस सवाल के आधार पर सामान तैयार करना होता है. टेस्ट के तुरंत बाद एक्सपर्ट पैनल उसे देखता है और मार्किंग करता है.

स्टूडियो टेस्ट देते समय घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि दाखिले के लिए जो एबिलिटी चाहिए, वह काफी हद तक लिखित परीक्षा में ही परख कर ली जाती है. कम्युनिकेशन और विजुअलाइजे शन एक-दूसरे के पूरक हैं.
 
लीक से हटकर काम करने का जुनून
कम्युनिकेशन ऐसा होना चाहिए कि जैसे शब्द दृश्य का कार्य करें और दृश्य शब्दों के पूरक हों. इसमें संवाद, स्लोगन और कॉपी राइटिंग महत्वपूर्ण है.
आपमें सृजनात्मक सोच, कुछ नया करने का हुनर, ताजातरीन घटनाओं की जानकारी, बेहतर प्लानिंग और लीक से हटकर काम करने का जुनून हो.

इस तरह के गुण इसलिए जरूरी हैं क्योंकि ये लोग वस्तुओं व उत्पादों की डिजाइन तय करते हैं. अगर आपके पास मौलिक सोच है और अपनी सोच को डिजाइन के माध्यम से कहने में सफल होते हैं, तो सफलता के चांस बढ़ते हैं.

डिजाइन के क्षेत्र में यदि देश-विदेश में कुछ नया हो रहा है, तो आपको इस तरह की खबर पर पैनी निगाह रखनी चाहिए. यह न केवल परीक्षा के लिहाज से जरूरी है बल्कि एक डिजाइनर की हैसियत से भी जरूरी है.
फैशन डिजाइनिंग हेतु योग्यताएँ 


बीएससी टेक्सटाइल डिजाइन 
यह भी 3 साल का कोर्स है। इसमें स्टूडेंट्स को कपड़े, जूलरी, लेदर आदि की बारीकियों के बारे में बताया जाता है। इसका उद्योग पूरी दुनिया में फैला हुआ है। यूथ को ध्यान में रखकर कंपनियां फैशन में आए दिन बदलाव कर रही है। अकेले नोएडा और ग्रेटर नोएडा में ही टेक्सटाइल की सैकड़ों कंपनियों हैं। इस कोर्स को करके जॉब के बेहतर ऑफर मिल सकते हैं।


बीएससी फैशन कम्यूनिकेशन डिजाइन 
साल के टाइम पीरियड वाले इस डिग्री कोर्स में स्टूडेंट्स को नेचर ऑफ ब्यूटी लाइफ ड्राइंग पोस्टर प्रेसलेऑउट कंप्यूटर ग्राफिक्स एडवरटाइजिंग फैशन जर्नलिजम फोटोग्राफी और पब्लिक रिलेशन के बारे मेंबताया जाता है। इस कोर्स को करने के बाद स्टूडेंट्स मीडिया के फील्ड से भी जुड़ सकते हैं। यहां आपको पेज थ्रीकी रिपोर्टिंग में भी भेजा जा सकता है। इसमें भी जॉब के व्यापक ऑप्शन हैं। 

फैशन डिजाइनिंग कोर्स की पहली योग्यता रचनात्मकता और कला होते हैं। डिजाइनिंग करने वालों को रंगों और डिजाइन के साथ हमेशा कुछ न कुछ नया प्रयोग करने से नहीं घबराना चाहिए। इस कोर्स के लिए आपके अंदर रचनात्मकता के साथ अच्छी कम्यूनिकेशन स्किल्स का होना भी जरूरी है। फैशन जगत में फैब्रिक और एक्सेसरीज की जानकारी भी बहुत जरूरी है। फैशन जगत से भी रू-ब-रू रहना पड़ता है जिसके अनुसार वे अपने डिजाइंस मार्केट में लाते हैं। 

कहाँ से करें कोर्स 

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली 

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद 

पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन, नई दिल्ली 

स्कूल ऑफ फैशन टैक्नोलॉजी, पुणे 

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग, चंडीगढ़

सत्यम इंस्टीट्यूट नोएडा 

आईएमएस नोएडा 

एफएमजी कॉलेज ग्रेटर नोए डा 


कम्युनिकेशन अच्छा होना चाहिए
गत दस वर्षों में इस क्षेत्र में काफी बदलाव आए हैं। मुंबई और दिल्ली में सालाना फैशन वीक होने लगे हैं और इसमें नामी-गिरामी फैशन डिजाइनरों के अलावा नवोदित फैशन डिजाइनरों को भी अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित करने का मौका दिया जाता है। इस क्षेत्र में आपको कलात्मक होना जरूरी है। 

साथ ही आपको लगातार नवीन डिजाइन देने के लिए काफी मेहनत व रिसर्च भी करना पड़ता है। अगर आप कोई कंसेप्ट पर कार्य कर रहे हैं तब इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें प्रयुक्त डिजाइन पहले किसी और डिजाइनर ने तो नहीं बनाया आदि बातों पर भी गौर करना पड़ता है।

फैशन जगत में फैशन के तौर पर आठ हजार रुपए प्रति माह आसानी से कमाए जा सकते हैं और दो-तीन वर्षों के पश्चात ही यह राशि 50,000 से 60,000 रुपए प्रति माह हो सकती है। यह कोर्स खत्म होते ही नौकरी लगना तय होता है। भारत भी अब इस इंडस्ट्री में किसी से पीछे नहीं है। विश्व फैशन जगत में ख्याति प्राप्त फैशन डिजाइनर रितु बेरी, रोहित बल, सुनित वर्मा, जे जे वालिया आदि नाम भारत के ही हैं।

एनिमेशन ब्राइट करियर का क्रिएटिव स्केच



बाजार का बढ़ता ग्राफ हमारे देश में मल्टीमीडिया एवं एनिमेशन इंडस्ट्री सबसे ज्यादा तेजी से आगे बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक मानी जा रही है। इसका प्रमाण एसोचैम और डेलोइट द्वारा किया एक ताजा अध्ययन है, जिसके मुताबिक यह इंडस्ट्री 30 फीसद की विकास दर के साथ आगे बढ़ रही है और विकास की इस गति को देखते हुए इसके वर्ष 2013 तक वर्तमान 556 करोड़ से बढ़कर 1,154 करोड़ रुपए की इंडस्ट्री हो जाने की उम्मीद की जा रही है। डेलोइट इंडिया कंपनी के डायरेक्टर संदीप विश्वास के अनुसार, भारतीय गेमिंग मार्केट भी अनुमानतः 1,089 करोड़ रुपए का है और 50 फीसद की सालाना बढ़ोत्तरी के साथ इसके वर्ष 2013 तक 59,252 करोड़ रुपए हो जाने की उम्मीद की जा रही है।
आउटसोर्सिंग की राह पर प्रगति की यह रफ्तार भावी एनिमेटर्स के लिए बेहद शुभ मानी जा रही है। इस फील्ड में जो जितना काबिल होगा, वह कामयाबी की सीढ़ियां उतनी ही ज्यादा चढ़ेगा। ग्रीन गोल्ड एनिमेशन प्रालि के संस्थापक और एमडी राजीव चिलाका कहते हैं, पिछले दस वर्षों से भारत में एनिमेशन सेक्टर लगातार प्रगति कर रहा है। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट होने के बावजूद चिलाका एक कामयाब एनिमेशन डायरेक्टर हैं, जिन्होंने छोटा भीम, कृष्णा और विक्रम-बेताल जैसी एनिमेटेड फिल्में डायरेक्ट की हैं। उनका मानना है कि भारतीय एनिमेशन उद्योग सॉफ्टवेयर उद्योग के मार्ग का ही अनुसरण कर रहा है। आने वाले दिनों में भारत से एनिमेशन प्रोजेक्ट भी भारी तादाद में आउटसोर्स किए जाने की उम्मीद जताई जा रही है।
चिलाका कहते हैं कि वर्तमान में अमेरिका और ब्रिटेन के बाजारों के लिए किया जाने वाला काम हमारी इंडस्ट्री की आय का मुख्य जरिया है। व्हिसलिंग वुड्स इंटरनेशनल, मुंबई की प्रेसिडेंट मेघना घई पुरी कहती हैं, एनिमेशन इंडस्ट्री तरक्की इसलिए कर रही है, क्योंकि भारतीय प्रतिभाओं में एनिमेशन और टेक्निकल वर्क करने की अच्छी क्षमता है। उनके पास अमेरिकी और यूरोपीय प्रोफेशनल्स की तुलना में कहीं बेहतर ट्रेनिंग है।
मल्टीमीडिया और एनिमेशन मल्टीमीडिया विभिन्न मीडिया तत्वों, जैसे-टेक्स्ट, ग्राफिक्स, एनिमेशन, कंप्यूटर के साथ ऑडियो एवं वीडियो का कॉम्बिनेशन है। इन सभी के मेल से जब कोई प्रभावशाली प्रोग्राम तैयार किया जाता है, तो उसे मल्टीमीडिया प्रोडक्ट कहा जाता है। मल्टीमीडिया टूल्स का विस्तार बहुत बड़े क्षेत्र में है। इसके तहत साउंड एडिटिंग से लेकर स्पेशल इफेक्ट, वर्चुअल रियालिटी, एनिमेशन गेम्स और मल्टीमीडिया प्रोग्रामिंग सभी कुछ आता है। इसमें एंटरटेनमेंट से लेकर एजुकेशनल ट्यूटर तक सभी शामिल हैं। मल्टीमीडिया के इस दौर में टेलीविजन व सिनेमा ही मनोरंजन के साधन नहीं रहे। कंप्यूटर, वीडियो गेम और इंटरनेट भी तेजी से मनोरंजन के महत्वपूर्ण साधन बनते जा रहे हैं। डिजिटल गेमिंग भी एक संभावनाओं वाला क्षेत्र है। एनिमेशन प्रोग्रामिंग और एनिमेशन प्रोडक्शन के कारोबार का पिछले एक दशक में तीव्र विस्तार हुआ है।
बढ़ता इस्तेमाल नास्कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगले पांच साल में अकेले भारत में एनिमेशन उद्योग में काम करने वाले प्रोफेशनल्स की संख्या पांच लाख से अधिक हो जाएगी। एनिमेशन का प्रयोग जिन क्षेत्रों में हो रहा है, उनमें शामिल हैंः एंटरटेनमेंट (फिल्में, टेलीविजन), बिजनेस (मार्केटिंग डेमोज, प्रोडक्ट प्रोमोज), सेल्स (प्रेजेंटेशन), एजुकेशन (सीबीटी डब्ल्यूबीटी), टूरिज्म, पब्लिकेशंस (ग्राफिक्स एवं प्रिंटिंग), वेब डिजाइनिंग, एडवरटाइजिंग (कॉमर्शियल, प्रिंट एड), इंटीरियर, फैशन डिजाइनिंग, वर्चुअल रियालिटी फॉर सिमुलेशन इन डिफेंस, इंजीनियरिंग आदि। नोएडा स्थित प्रांस मीडिया के डायरेक्टर निखिल प्राण कहते हैं कि एनिमेशन इंडस्ट्री में विजुअलाइजर, इंक व पेंट आर्टिस्ट, स्पेशल इफेक्ट पर्सन, कैरेक्टर एनिमेटर और मॉडलिंग आर्टिस्ट के रूप में प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है। दिल्ली स्थित एरिना इंस्टीट्यूट की एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट अंजू दलाल का कहना है कि एनिमेशन का कोर्स करने के बाद एक स्किल्ड युवा को आरंभ में 20 से 25 हजार रुपए सैलरी मिलती है, जो कुछ वर्ष के अनुभव के बाद 30-50 हजार रुपए  मासिक तक पहुंच जाती है।
गेमिंग है नई शाखा
पिछले कुछ वर्षों में मल्टीमीडिया से जुड़ने वाली यह एक नई शाखा है, जिसका मार्केट पूरी दुनिया में बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के वीडियो कंसोल, कंप्यूटर, मोबाइल और हैंडसेट गेम का निर्माण किया जाता है। मल्टीमीडिया तकनीक की मदद से इसमें मूविंग इमेज और साउंड इफेक्ट्स उत्पन्न किए जाते हैं। इसके बाद गेम इंजन का प्रयोग करके इनकी इमेज को की-बोर्ड
या माउस द्वारा नियंत्रित किया
जाता है।
गेमिंग जैसे आकर्षक और तेजी से उभरते क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक लोगों के लिए असीमित संभावनाएं हैं। भारत में इस समय गेम डेवलपमेंट करने वाले स्किल्ड लोगों की डिमांड बहुत ज्यादा है। इस तरह का कोर्स कंप्लीट कर इंडस्ट्री में आने वाले युवाओं को आरंभ में 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिल जाते हैं। कार्टून फिल्में कार्टून फिल्मों के निर्माण में एनिमेशन व मल्टीमीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ वर्ष पहले तक भारत में कार्टून फिल्में विदेशों से बनकर आती थीं। लेकिन देश में ट्रेंड लोगों की बढ़ती संख्या के कारण अब यहीं इनका निर्माण होने लगा है। इस तरह की फिल्मों में 2-डी, 3-डी एनिमेशन और साउंड इफेक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है।
इंटरेक्टिव मल्टीमीडिया
इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के तेजी से आगे बढ़ने से संचार की एक नई कला सामने आई है। इससे ग्लोबल कम्युनिटी से संपर्क का दरवाजा खुल गया है। इसका सबसे बड़ा माध्यम इंटरनेट है, जिसकी पहुंच दुनिया के प्रत्येक देश तक हो गई है। ई-कॉमर्स और इंटरेक्टिव पोर्टल्स के उभरने से इंटरनेट ने मल्टीमीडिया विशेषज्ञों के लिए खूब संभावनाएं जगाई हैं। आज के समय में इसे मल्टीमीडिया एप्लिकेशन का सबसे अच्छा उदाहरण कहा जा सकता है। इंटरनेट के अलावा इंटरेक्टिव सीडी तैयार करने का भी मल्टीमीडिया इंडस्ट्री में तेजी से विकास हुआ है। इस फील्ड में एंट्री के लिए वेब इंजीनियरिंग का कोर्स करना जरूरी होता है। कोर्स के बाद आप आरंभ में प्रतिमाह 20 हजार रुपए कमा सकते हैं। यदि आप कल्पनाशील और क्रिएटिव हैं, तो और ज्यादा कमाई कर सकते हैं।
एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री
भारत में रेडियो (अब एफएम चैनल्स भी) और टेलीविजन का प्रसार शहरों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक में हो गया है। व्यापक दर्शक वर्ग के चलते नित नए चैनल सामने आ रहे हैं। केबल टीवी और डीटीएच के आने से इसमें और विस्तार हो रहा है। लगातार बढ़ते चैनलों और उनके लिए बनाए जाने वाले प्रोग्राम्स की भारी डिमांड को देखते हुए इस क्षेत्र में डिजाइनर, कैमरामैन, साउंड रिकॉर्डिस्ट, कंपोजिटर, गेम्स डिजाइन स्पेशलिस्ट, एनिमेटर आदि में खूब संभावनाएं हैं। इस क्षेत्र में भी कोर्स करने वाला व्यक्ति शुरुआत में ही 15 से 20 हजार रुपए प्रतिमाह कमाई कर सकता है।
पब्लिशिंग इंडस्ट्री
प्रिंट मीडिया न केवल सबसे पुराना माध्यम है, बल्कि आज भी बाजार पर इसकी जबरदस्त पकड़ बनी हुई है। प्रिंट मीडिया के क्षेत्र में कंप्यूटर टेक्नोलॉजी, इंटरनेट, वेबसाइट्स आदि का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। टेक्नोलॉजी की बदौलत प्रिंट मीडिया आज न केवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भारी पड़ रहा है, अपितु अपना स्थाई असर भी छोड़ रहा है। यहां डिजाइन आर्ट, प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी, डिजिटल प्रिंट मीडिया का काम सीख कर अपने लिए जगह बनाई जा सकती है। इसमें वेतन की शुरुआत 10-12 हजार रुपए प्रतिमाह से होती है और काम अच्छी तरह सीख लेने और अनुभव हासिल कर लेने के बाद 30 से 50 हजार रुपए तक कमाया जा सकता है।
फैशन व इंटीरियर डिजाइनिंग
फैशन और इंटीरियर डिजाइनिंग के क्षेत्र में नित नए डिजाइनों की कल्पना करनी होती है। इसमें मल्टीमीडिया का इस्तेमाल काफी उपयोगी होता है। डिजाइन टूल्स सामने आने के बाद इंटीरियर डिजाइनिंग में काफी विकास हुआ है। स्टैटिक थ्री-डी ऑब्जेक्ट मॉडलिंग एवं कंप्यूटर ग्राफिक्स से इसमें काफी मदद मिलती है। फैशन डिजाइनिंग इंस्टीट्यूट्स से इस तरह का कोर्स करने के बाद प्रतिभाशाली युवा शुरुआती वेतन के रूप में 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह तक कमा सकते हैं।
कौन-सा करें कोर्स
एनिमेशन एवं मल्टीमीडिया का कोर्स सामान्यतया 15 माह का होता है। कोर्स के अंतर्गत पेज सेटिंग, ग्राफिक्स डिजाइन, 2-डी एवं 3-डी एनिमेशन, साउंड एडिटिंग, फोटो एडिटिंग, वीडियो एडिटिंग, साउंड मिक्सिंग, वीडियो मिक्सिंग, स्पेशल इफेक्ट्स, वेब डिजाइनिंग, कंप्यूटराइज्ड ड्रेस डिजाइनिंग, विज्ञापन डिजाइनिंग, कंटेंट राइटिंग आदि का अध्ययन शामिल है।
औपचारिक शिक्षा के बाद मल्टीमीडिया और एनिमेशन सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग लेकर युवा आसानी से कुशल एनिमेटर बन सकते हैं। अगर इस क्षेत्र में उच्च अध्ययन करना चाहते हैं तो एनिमेशन और मल्टीमीडिया में प्रोफेशनल डिप्लोमा प्रोग्राम ज्वाइन कर सकते हैं। इसमें जिन क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की जा सकती है, वे हैं: 3-डी या 2-डी मॉडलिंग, स्पेशल एफओएक्स क्रिएशन, एनिमेशन, कैरेक्टर डिजाइन, गेम्स डिजाइन और इंटरेक्शन डिजाइन। चिलाका का कहना है, आज दुनिया भर में फ्लैश सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जा रहा है। अच्छी ड्राइंग की क्षमता रखने वाले लोगों को 2-डी एनिमेशन पर आधारित फ्लैश पर काम करना चाहिए।
योग्यता
मल्टीमीडिया कोर्स के साथ खास बात यह है कि यह जितना आधुनिक और व्यापक है, उसके हिसाब से इस कोर्स में प्रवेश के लिए किसी बड़ी डिग्री की आवश्यकता नहीं होती। हां, अधिकतर संस्थान कम से कम 12वीं पास स्टूडेंट्स को इस कोर्स में एडमिशन देते हैं। इसके लिए अंग्रेजी भाषा का ज्ञान और क्रिएटिविटी सफलता की शर्त है। कई संस्थानों द्वारा मल्टीमीडिया में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट व पीजी डिप्लोमा कोर्स संचालित किए जाते हैं। कुछ विश्वविद्यालय एनिमेशन में पीजी कोर्स भी संचालित कर रहे हैं। इनमें आप ग्रेजुएशन के बाद एडमिशन ले सकते हैं। अगर आपने बीएफए या एमएफए किया है, तो आप ड्राइंग व विजुअल इफेक्ट्स की बारीकियां आसानी से समझ सकते हैं।

Friday, May 29, 2015

करिअर के लिए कैसा है स्पीच थेरपी कोर्स ?

ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरपी किस प्रकार का कोर्स है और करिअर बनाने के लिहाज से इसका क्या महत्व है ?
आरती भार्गव रोहिणी 
ऑडियोलॉजिस्ट का काम ऐसे लोगों का इलाज़ करना होता है जिनकी सुनने की शक्ति में किसी न किसी प्रकार की कमी होती है जबकि स्पीच थेरपिस्ट उन रोगियों का इलाज करते हैं जिन्हें बोलने या उच्चारण आदि में कठिनाई होती है या जो हकलाते हैं। ये दोनों स्पेशलाइजेशन एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं। यही कारण है कि एक ही कोर्स के माध्यम से दोनों की ट्रेनिंग दी जाती है। हमारे देश में इस प्रकार की समस्याओं का सामना करने वाली आबादी की तुलना में इलाज़ करने वाले ट्रेंड लोगों की संख्या बेहद कम है इसलिए आने वाले समय में इनकी मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी। इस प्रकार के कोर्स बीएससी (ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरपी) ,बीएससी (हियरिंग लैंग्विज ऐंड थेरपी) बीएससी (स्पीच एंड हियरिंग) आदि के रूप में विभिन्न संस्थानों में चलाए जाते हैं। 


इस बारे में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पीजी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (सेक्टर-12 ,चंडीगढ़) से संपर्क कर सकते हैं। मूल रूप से यह पैरामेडिकल कोर्स है और 10 प्लस 2 स्तर पर बायलॉजी की एजुकेशनल बैकग्राउंड वाले युवाओं को इसमें ऐडमिशन दिया जाता है। नामी संस्थानों में ऐडमिशन के लिए एंट्रेन्स एग्ज़ाम होता है जबकि कई संस्थान 10 प्लस 2 के अंकों के आधार पर दाखिले देते हैं। इम्प्लॉइमंट की संभावनाएं गवर्नमंट और प्राइवेट हास्पिटलों के अलावा एनजीओ में भी हो सकती हैं। कुछ अनुभव हासिल करने के बाद आप अलग से भी प्रैक्टिस कर सकते हैं। 

नर्सिन्ग में ट्रेनिंग लेना चाहती हूं। इसके लिए क्या शैक्षणिक योग्यता है 
रतिका दीवान गोल मार्किट 
इस क्षेत्र में जाने के लिए जीव विज्ञान का एजुकेशनल बैकग्राउंड होनी चाहिए। मुख्य तौर पर बीएससी (नर्सिन्ग) नामक कोर्स है। चार साल के इस कोर्स की शुरुआत ज्यादा पुरानी नहीं कही जा सकती। इससे पहले ट्रेडिशनल मिडवाइफरी ऐंड ऑग्जिलरी नर्सिन्ग सरीखे कोर्स के माध्यम से ही इस विषय में ट्रेनिंग दी जाती थी। इस कोर्स में अमूमन एंट्रंस टेस्ट के माध्यम से ऐडमिशन दिए जाते हैं। कोर्स की समाप्ति पर गवर्नमंट अथवा प्राइवेट हॉस्पिटल में जॉब्स मिलने की संभावनाएं होती हैं। जहां तक नर्सिन्ग के क्षेत्र में भविष्य निर्माण का सवाल है तो यह जानकारी देना उपयुक्त होगा कि विश्व भर में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता देखी जा सकती है। इसी कारणवश मेडिकल के गवर्नमंट और प्राइवेट सेक्टर दोनों में निवेश तेजी से बढ़ा है। दूसरी ओर अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों में इस प्रफेशन में युवाओं के न जाने के ट्रेंड के कारण नर्सिन्ग प्रफेशनल की कमी हो गई है। 

यही कारण है कि गल्फ सहित विश्व के अन्य देशों में नर्सिन्ग प्रफेशनलों की मांग में काफी तेजी आई है। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि हर वर्ष 20 से 25 हजार नर्स विदेशों में रोजगार हासिल कर रही हैं। उनके वेतनमान भारतीय नर्सों की तुलना में अधिक आकर्षक होने स्वाभाविक हैं। हमारे देश में भी अन्य प्रफेशनलों की तुलना में नर्सों का वेतनमान कुछ कम नहीं है। इनके अलावा तमाम तरह के भत्ते और शिफ्ट में ड्यूटी व आवास की सुविधाओं के कारण इस क्षेत्र में भी भारत में अन्य प्रफेशनलों की तुलना में बेहतर आय अर्जन के विकल्प हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (नई दिल्ली) लोक नायक हास्पिटल (नई दिल्ली) राजकुमारी अमृत कौर कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग(दिल्ली) अपोलो कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग अपोलो हास्पिटल एजुकेशन ट्रस्ट (चेन्नई) भारती विद्यापीठ कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग (पुणे) सीएमसी (लुधियाना ) पीजी आई (चंडीगढ़) कस्तूरबा मेडिकल कॉलिज (मनीपाल) एमएमएस मेडिकल कॉलिज (जयपुर) आदि। 

बायोटेक्नॉलजी का प्रयोग किन-किन क्षेत्रों में होता है तथा करिअर की किस प्रकार की संभावनाएं हैं 
अंकुर जैन मंडावली 
बायोटेक्नॉलजी मूलत: जीवविज्ञान और टेक्नोलाजी का संगम है। इसकी उपशाखाओं में जेनेटिक्स बायोकैमिस्ट्री ,माइक्रोबायॉलजी इम्यूनॉलजी वाइरॉलजी इत्यादि शामिल हैं। इस विषय का उपयोग महज मेडिकल साइंस तक ही सीमित नहीं है। इनके अलावा एग्रीकल्चर वेटिरिनरी साइंस इन्वाइरन्मंट साइंस स्वाइल सांइस स्वाइल कंजर्वेशन बायो स्टैटिस्टिक्स सीड टेक्नॉलजी सहित अन्य विविध विषयों एवं क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल इन्वाइरन्मंट पॉल्यूशन एवं अन्य व्यर्थ पदार्थों का ट्रीटमंट केमिकल रिएक्शन टैक्सटाइल डेवलपमंट कॉस्मेटिक्स एवं जेनेटिक्स एन्जीनियरिंग प्रमुख हैं। देश में यह कोर्स तीन वर्षीय बीएससी (बायोटेक्नॉलजी) और पांच वर्षीय इंटिग्रेटेड एमएससी (बायोटेक्नॉलजी) के रूप में उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए निम्न संस्थानों से संपर्क किया जा सकता है : 
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर 
अन्ना यूनिवर्सिटी अन्नामलाई नगर 
मनीपाल इंस्टीटयूट आफ टेक्नॉलजी मनीपाल 
गुरु गोबिन्द सिंह इंदप्रस्थ यूनीवर्सिटी नई दिल्ली 
वेल्लोर इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलजी वेल्लोर 

इन्वाइरन्मंटल साइंस की क्या उपयोगिता है कृपया संस्थानों के पते भी बताएं। 
सुप्रिया और मधु द्वारका 
यह विज्ञान की अलग ही शाखा है। इसका जन्म बढ़ते औद्योगिकीकरण और इनसे उपजे प्रदूषण के कारण हुआ है। इन विशेष कार्यकलापों में पर्यावरण को प्रदूषण के खतरों और इससे पड़ने वाले मानव जीवन के प्रभावों से बचाना है। इस क्रम में पर्यावरण सुरक्षा हेतु आवश्यक मापदंडों के निर्धारण से लेकर बचाव के विभिन्न वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक उपायों का निर्धारण करना भी इनके कार्य के विस्तृत दायरे में आता है। सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में इस बारे में वृहद कार्य किए जा रहे हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण हेतु काम करने वाले एनजीओ की संख्या एक लाख से अधिक है। इनके लिए रिसर्च के अलावा प्रदूषण नियंत्रण प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जल प्रदूषण से बचाव पॉल्यूशन मॉनीटरिंग कचरे का निबटान इत्यादि कार्य भी होते हैं। बारहवीं के बाद बीएससी (पर्यावरण विज्ञान) कोर्स किया जा सकता है। मुख्य संस्थानों में पटना यूनिवर्सिटी (पटना)दिल्ली यूनिवर्सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर (मैसूर) यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे मणिपाल यूनिवर्सिटी (मणिपाल) का उल्लेख किया जा सकता है।

एलपीओ क्या है?

लीगल आउटसोर्सिन्ग प्रफेशनल को एलपीओ कहा जाता है। विदेशी लीगल कंपनियों के इस क्षेत्र से संबंधित कामों को भारत में कार्यरत एलपीओ इंटरनेट के जरिए पूरा करके भेजते हैं। तमाम भारतीय लीगल कंपनियां और नामी वकील भी इन्हें काम सौंपते हैं। इन कामों में केस की संपूर्ण फाइल तैयार करने से लेकर विभिन्न ऐतिहासिक फैसलों के संदर्भ की सूची तक तैयार करना शामिल हो सकता है। इस प्रकार का ट्रेंड निरंतर बढ़ता जा रहा है और आमतौर से लीगल एजुकेशन की बैकग्राउंड वाले युवा ही इसमें सफल हो पाते हैं। 

हालांकि, इनके लिए भी इस क्षेत्र के कार्यकलापों की औपचारिक ट्रेनिंग ली जानी आवश्यक है। फिलहाल प्राइवेट एजुकेशनल इंस्टिट्यूट्स ही एलपीओ ट्रेनिंग दे रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए इंटरनेट अथवा दैनिक समाचार-पत्र देख सकते हैं। 

12वीं पास कर चुकी हूं। डिस्टेंस एजुकेशन से कोई प्रफेशनल कोर्स करना चाहाती हूं। कृपया मार्गदर्शन करें। नीलम कपूर, आर के पुरम 

देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में ट्रडिशनल अंडरग्रेजुएट कोर्स के साथ-साथ अब तमाम विषयों में प्रफेशनल कोर्सेज की शुरुआत भी बडे़ पैमाने पर की गई है। ये कोर्सेज विज्ञान, वाणिज्य और कला विषयों से किए जा सकते हैं। कॉरेस्पोंडेंस से उपलब्ध ऐसे प्रमुख कोर्सेज के नाम इस प्रकार हैं : बीए (बिज़नस इकनॉमिक्स), बीबीए (हिस्ट्री एंड हेरिटेज मैनेजमेंट), बीए (सोशल वर्क), बीए (पुलिस एडमिनिस्टेशन), बीकॉम (कंप्यूटर एप्लीकेशन), बीकॉम (बिज़नस स्टडीज), बीकॉम (इंटरनैशनल बिज़नस), बीकॉम (अकाउंटिग एंड फाइनैंस), बीकॉम (मार्केटिन्ग मैनेजमेंट), बीबीए (कंप्यूटर अप्लीकेशन), बीएससी (सायकोलॉजी), बीए (ह्यूूमन राइट्स), बीएससी (इलेक्ट्रॉनिक साइंस) आदि। 

फिलहाल इनके लिए आवेदन मंगाए जा रहे हैं। अधिक जानकारी के लिए अन्नामलाई यूनिवर्सिटी के डायरेक्टोरेट ऑफ एजुकेशन से संपर्क किया जा सकता है। इसके लिए यूनिवर्सिटी की वेबसाइटwww.annamalaiuniversity.ac.in या टेलीफोन नंबर 04144-238610, 238047 पर संपर्क किया जा सकता है।

Wednesday, May 27, 2015

साइंस के स्टूडेंट्स के लिए वरदान KVPI


किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (के. वी. पी. वाई.) का मुख्य उद्देश्य प्रतिभावान विद्यार्थियों की खोज कर उन्हें मूलभूत विज्ञान में अनुसंधान में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह फेलोशिप सिर्फ उन्हीं स्टूडेंट्स को दी जाती है जो साइंस सब्जेक्ट के साथ अपना करियर बनाने के लिए आगे पढ़ना चाहते हैं। योजना में वे स्टूडेंट्स आवेदन कर सकते हैं, जो अभी 11वीं, 12वीं और प्रथम वर्ष स्नातक (B.Sc./B.S./B.Stat./B.Math./Int.) क्लास में मूलभूत विज्ञान (गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान तथा जीव-विज्ञान) का पढ़ रहे हैं। इसके तहत तीन वर्ग बनाए गए हैं, पहला एसए वर्ग है जिसमें 11वीं के छात्र, एसएक्स में 12वीं और एसबी में साइंस स्नातक प्रथम वर्ष के स्टूडेंट्स शामिल किए गए हैं। योजना की शुरुआत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा 1999 में की गई थी।

यह स्कॉलरशिप मिलेगी

तीनों ही वर्गों के लिए निर्धारित विषय में जितने साल का कोर्स है उतने साल फेलोशिप दी जाएगी। यूजी के पाठ्यक्रमों में पहले से तीसरे साल तक 5000 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप मिलेगी। जबकि 20,000 रुपये कंटिन्जेंसी ग्रांट के रूप में स्टेशनरी व अन्य खर्च के लिए दिए जाएंगे। वहीं, पीजी में 7000 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप दी जाएगी, जबकि 28 हजार रुपये कंटिन्जेंसी ग्रांट के रूप में अन्य खर्चों के लिए दिए जाएंगे।

ऑनलाइन होते हैं आवेदन

फेलोशिप के लिए तीनों ही वर्गों में निर्धारित कोर्सों में ऐडमिशन लेने वाले अभ्यर्थी जिन्होंने पूर्व की परीक्षा में 80 प्रतिशत अंक पाए हैं वह आवेदन कर सकते हैं। एसससी और एसटी को दस प्रतिशत की छूट प्राप्त है। इच्छुक अभ्यर्थी केवाईपी की वेबसाइट http://kvpy.iisc.ernet.in/main/applications.htm पर आवेदन कर सकते हैं।

चयन प्रक्रिया

सभी अभ्यर्थियों का ऐप्टिट्यूट टेस्ट लिया जाएगा जो एक नवंबर 2015 को आयोजित किया जाएगा। सभी आवेदनों की जांच करने के बाद एलिजिबिलिटी की जांच होगी जिसके बाद अभ्यर्थियों को ऐडमिट कार्ड जारी कर दिए जाएंगे। ऐप्टिट्यूड टेस्ट के बाद अभ्यर्थियों का इंटरव्यू भी लिया जाएगा। इसे पास करने वाले अभ्यर्थियों को फेलोशिप दी जाएगी। लखनऊ, वाराणसी, दिल्ली, पुणे और नागपुर समेत बीस शहरो में ऐप्टिट्यूट टेस्ट के एग्जामिनेशन सेंटर बनाए जाएंगे।

मॉक टेस्ट भी मौजूद

ऐप्टिट्यूड टेस्ट की तैयारी करने के लिए अभ्यर्थियों को मॉक टेस्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। अभ्यर्थी वेबसाइट पर हिंदी और इंग्लिश दोनों ही भाषाओं में टेस्ट की प्रैक्टिस कर सकते हैं। वेबसाइट पर वर्ग अनुसार प्रैक्टिस सेट उपलब्ध हैं।

यहां करें संपर्क

संयोजक: किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (के. वी. पी. वाई.), भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु - 560 012

फोन: (080) 22932975 / 76, 23601008, 65474150

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साइंस के स्टूडेंट्स के लिए वरदान KVPIसाइंस के स्टूडेंट्स के लिए वरदान KVPI
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किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (के. वी. पी. वाई.) का मुख्य उद्देश्य प्रतिभावान विद्यार्थियों की खोज कर उन्हें मूलभूत विज्ञान में अनुसंधान में करियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। यह फेलोशिप सिर्फ उन्हीं स्टूडेंट्स को दी जाती है जो साइंस सब्जेक्ट के साथ अपना करियर बनाने के लिए आगे पढ़ना चाहते हैं। योजना में वे स्टूडेंट्स आवेदन कर सकते हैं, जो अभी 11वीं, 12वीं और प्रथम वर्ष स्नातक (B.Sc./B.S./B.Stat./B.Math./Int.) क्लास में मूलभूत विज्ञान (गणित, भौतिकी, रसायन विज्ञान तथा जीव-विज्ञान) का पढ़ रहे हैं। इसके तहत तीन वर्ग बनाए गए हैं, पहला एसए वर्ग है जिसमें 11वीं के छात्र, एसएक्स में 12वीं और एसबी में साइंस स्नातक प्रथम वर्ष के स्टूडेंट्स शामिल किए गए हैं। योजना की शुरुआत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा 1999 में की गई थी।

यह स्कॉलरशिप मिलेगी

तीनों ही वर्गों के लिए निर्धारित विषय में जितने साल का कोर्स है उतने साल फेलोशिप दी जाएगी। यूजी के पाठ्यक्रमों में पहले से तीसरे साल तक 5000 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप मिलेगी। जबकि 20,000 रुपये कंटिन्जेंसी ग्रांट के रूप में स्टेशनरी व अन्य खर्च के लिए दिए जाएंगे। वहीं, पीजी में 7000 रुपये प्रतिमाह स्कॉलरशिप दी जाएगी, जबकि 28 हजार रुपये कंटिन्जेंसी ग्रांट के रूप में अन्य खर्चों के लिए दिए जाएंगे।

ऑनलाइन होते हैं आवेदन

फेलोशिप के लिए तीनों ही वर्गों में निर्धारित कोर्सों में ऐडमिशन लेने वाले अभ्यर्थी जिन्होंने पूर्व की परीक्षा में 80 प्रतिशत अंक पाए हैं वह आवेदन कर सकते हैं। एसससी और एसटी को दस प्रतिशत की छूट प्राप्त है। इच्छुक अभ्यर्थी केवाईपी की वेबसाइट http://kvpy.iisc.ernet.in/main/applications.htm पर आवेदन कर सकते हैं।

चयन प्रक्रिया

सभी अभ्यर्थियों का ऐप्टिट्यूट टेस्ट लिया जाएगा जो एक नवंबर 2015 को आयोजित किया जाएगा। सभी आवेदनों की जांच करने के बाद एलिजिबिलिटी की जांच होगी जिसके बाद अभ्यर्थियों को ऐडमिट कार्ड जारी कर दिए जाएंगे। ऐप्टिट्यूड टेस्ट के बाद अभ्यर्थियों का इंटरव्यू भी लिया जाएगा। इसे पास करने वाले अभ्यर्थियों को फेलोशिप दी जाएगी। लखनऊ, वाराणसी, दिल्ली, पुणे और नागपुर समेत बीस शहरो में ऐप्टिट्यूट टेस्ट के एग्जामिनेशन सेंटर बनाए जाएंगे।

मॉक टेस्ट भी मौजूद

ऐप्टिट्यूड टेस्ट की तैयारी करने के लिए अभ्यर्थियों को मॉक टेस्ट की सुविधा भी उपलब्ध है। अभ्यर्थी वेबसाइट पर हिंदी और इंग्लिश दोनों ही भाषाओं में टेस्ट की प्रैक्टिस कर सकते हैं। वेबसाइट पर वर्ग अनुसार प्रैक्टिस सेट उपलब्ध हैं।

यहां करें संपर्क

संयोजक: किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (के. वी. पी. वाई.), भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु - 560 012

फोन: (080) 22932975 / 76, 23601008, 65474150

बीएलएड रजिस्ट्रेशन शुरू, 21 जून को एंट्रेंस


डीयू ने अपने चार साल के इंटीग्रेटिड बैचलर ऑफ एलिमेंटरी एजुकेशन (B.EL.ED) के लिए रजिस्ट्रेशन शेड्यूल जारी कर दिया है। रजिस्ट्रेशन प्रोसेस शुरू हो गया है और 9 जून तक ऑनलाइन अप्लाई किया जा सकता है। एजुकेशन डिपार्टमेंट की वेबसाइट cie.du.ac.in पर ऑनलाइन फॉर्म दे दिया गया है और ई-प्रॉस्पेक्ट्स भी जारी कर दिया गया है।
बीएलएड का एंट्रेंस टेस्ट 21 जून को दोपहर 2 से 5 बजे तक होगा। जहां जनरल व ओबीसी कैटिगरी के स्टूडेंट्स के लिए रजिस्ट्रेशन फीस 500 रुपये है वहीं एससी, एसटी व पीडब्ल्यूडी कैटिगरी के स्टूडेंट्स के लिए रजिस्ट्रेशन फीस 250 रुपये होगी।ऑनलाइन पेमेंट डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड के जरिए भी किया जा सकता है।

सेंट्रलाइज्ड काउंसलिंग के लिए क्वालीफाई करने वाले कैंडिडेट्स की लिस्ट 2 जुलाई को जारी की जाएगी। 8 जुलाई से काउंसलिंग शुरू हो जाएगी जहां एडमिशन के तीन राउंड होंगे और 20 जुलाई से क्लासेज शुरू हो जाएंगी।

गौरतलब है कि बीएलएड का कोर्स अदिति महाविद्यालय, इंस्टिट्यूट ऑफ होम इकनॉमिक्स, गार्गी कॉलेज, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज, लेडी श्री राम कॉलेज, जीसस एंड मेरी कॉलेज, मिरांडा हाउस और माता सुंदरी देवी कॉलेज में पढ़ाया जाता है। जहां कुल 400 सीटें हैं और हर कॉलेज में 50-50 सीटें हैं।

Saturday, May 23, 2015

एग्जीबिशन डिजाइनिंग में भी हैं करियर के शानदार मौके

विभिन्न एग्जीबिशन के लिए स्टॉल्स, बूथ, पैवेलियन, थीम ईवेंट के सेट्स आदि को डिजाइन करने की कला है एग्जीबिशन डिजाइनिंग। किसी खास कॉन्सेप्ट को विशिष्ट तकनीक व रचनाशीलता के माध्यम से इस तरह जीवंत बना देना कि उस स्टॉल, बूथ की तरफ लोग बरबस खिंचे चले आएं, इसी का नाम है एग्जीबिशन डिजाइनिंग।
एक एग्जीबिशन की पूरी जिम्मेदारी एग्जीबिशन डिजाइनर के कंधों पर होती है। यातायात, सुरक्षा और दूसरी सभी सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए जगह का चुनाव करना, उत्पाद चुनना, कौनसा स्टॉल कहां लगेगा यह तय करना, ग्राहकों को कैसे आकर्षित करना है, इन सभी चीजों की व्यवस्था एग्जीबिशन डिजाइनर ही करता है, लेकिन एक डिजाइनर के इन सभी दायित्वों से ऊपर होता है एग्जीबिशन की साज-सज्जा यानी डेकोरेशन करना, ताकि लोगों को उसकी तरफ आकर्षित किया जा सके। इसके लिए एक एग्जीबिशन डिजाइनर अपने क्लाइंट के आइडिया व जरूरतों और अपनी कल्पना शक्ति की बदौलत एग्जीबिशन और डिस्प्ले स्टैंड के लिए स्टॉल्स, बूथ आदि को डिजाइन करता है।

तैयार करने होते हैं रचनात्मक और सटीक डिजाइन
डिजाइन को तैयार करने के लिए एक डिजाइनर थ्रीडी मैक्स, कोरल ड्रॉ, फोटोशॉप, ऑटो कैड आदि सॉफ्टवेयर की मदद लेता है। योजना बनाने और डिजाइन तैयार करने की पूरी प्रक्रिया में एक एग्जीबिशन डिजाइनर ग्राफिक डिजाइनर, कंटेंट स्पेशलिस्ट, आर्किटेक्ट, फैब्रिकेटर, टेक्निकल स्पेशलिस्ट, ऑडियो विजुअल एक्सपर्ट आदि के साथ मिलकर किसी खास आइडिया या कॉन्सेप्ट पर काम करता है। एक डिजाइनर का काम दो चरणों में पूरा होता है। पहले चरण के तहत विषय विशेष से जुड़े हुए रचनात्मक और सटीक डिजाइन तैयार करने होते हैं ताकि प्रस्तुति व्याख्यात्मक और संदेशात्मक लगे। दूसरे चरण में तकनीकी विशेषज्ञता की मदद से दृश्यात्मक भाषा में तैयार डिजाइन को विवरणात्मक दस्तावेज में बदला जाता है।

इन सभी प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद एक डिजाइन प्रदर्शन के लिए तैयार होता है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एक एग्जीबिशन डिजाइनर का काम सही तरीके से एग्जीबिशन की योजना बनाना है। वह एग्जीबिशन की योजना बनाता है और उससे जुड़ी सभी व्यवस्थाओं को निर्देशित करता है, ताकि एक कंपनी अपने उत्पाद की जानकारी अधिक से अधिक ग्राहकों या उपभोक्ताओं तक पहुंचा सके।
क्या हैं रोजगार के अवसर
एक एग्जीबिशन डिजाइनर को किसी स्थापित एग्जीबिशन डिजाइनर या सेट डिजाइनर के सहायक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत करनी होती है। एक अच्छा डिजाइनर सरकारी और निजी दोनों तरह के संगठनों में नौकरी प्राप्त कर सकता है। इसके तहत, वह संग्रहालय, सांस्कृतिक प्रतिष्ठान, हेरिटेज ग्रुप, गैर सरकारी संगठन, व्यावसायिक समूह, ईवेंट मैनेजमेंट कंपनी और इंटीरियर डिजाइन कंपनी से जुड़ सकता है। कुछ सालों के अनुभव के बाद एक डिजाइनर चाहे तो अपनी खुद की कंपनी स्थापित कर सकता है और फैशन डिजाइनर, कलाकार, फोटोग्राफर, फिल्म कंपनी, म्यूजिक कंपनी, डांस ग्रुप आदि के साथ मिलकर काम कर सकता है।
शुरुआती वेतन और पैकेज
एक डिजाइनर का वेतन इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस कंपनी में काम कर रहा है। निजी कंपनियों में काम करने वाले डिजाइनर को प्रोजेक्ट के अनुसार पैसे मिलते हैं। अगर आप बतौर फ्रेशर किसी स्थापित डिजाइनर के साथ काम करते हैं, तो 10,000 से 15,000 रुपए प्रतिमाह वेतन के तौर पर प्राप्त कर सकते हैं। पर्याप्त अनुभव और प्रोजेक्ट की सफलता के बाद एक डिजाइनर प्रति असाइनमेंट 5,000 से 8,000 रुपए तक कमा सकता है। अनुभव और सफलता दोनों इस क्षेत्र में बहुत महत्व रखते हैं। एक टॉप डिजाइनर एक फिल्म के लिए दो लाख से पचास लाख रुपए तक प्राप्त सकता है।
कौन सा कोर्स करें
एग्जीबिशन डिजाइनिंग में फिलहाल भारत में पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स उपलब्ध हैं। जिनमें प्रवेश की योग्यता 10+2 और ग्रेजुएशन है। इस कोर्स में प्रवेश के लिए एक स्टूडेंट को प्रवेश परीक्षा, स्टूडियो जांच और साक्षात्कार से गुजरना होता है।
यहां से कर सकते हैं पढ़ाई
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद, अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट http://www.nid.edu/ पर विजिट करें
  • एपीजे इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, नई दिल्ली, अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट http://www.apeejay.edu/aid/ पर विजिट करें,
  • एमआईटी इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, पुणे, अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट http://www.mitid.edu.in/ पर विजिट करें

Thursday, May 21, 2015

Career in पुरातत्त्व विज्ञान

परिचय

पुरातत्त्व विज्ञान एक अंतःविषय है, जिसमें ऐतिहासिक मानव बसाव या समाज का अध्ययन किया जाता है. ऐतिहासिक जगहों के सर्वेक्षण, खुदाई से निकले अवशेष जैसे बरतन, हथियार, गहने, रोजमर्रा की चीजें, पेड़-पौधे, जानवर, मनुष्यों के अवशेष, स्थापत्य कला आदि से ऐतिहासिक मानव-संस्कृति को जाना जाता है.
खुदाई से निकली कलाकृतियाँ और स्मारकों का विश्लेषण किया जाता है. पुरातत्त्ववेत्ता इन कलाकृतियाँ और स्मारकों के साथ-साथ इस विश्लेषण को रिकॉर्ड में रखता है. भविष्य में ये सामग्रियां संदर्भ के काम आती हैं. छोटी से छोटी, अमहत्त्वपूर्ण चीज जैसे टूटे हुए बरतन, मानव हड्डी आदि भी एक अनुभवी पुरातत्त्ववेता को बहुत कुछ कह जाता है. पुरातात्त्विक खोजों के निष्कर्ष हमारे पहले की जानकारी में एक नया आयाम जोड़ते हैं.
खुदाई से निकली वस्तुओं को एकत्रित करना और उनका विश्लेषण करना हरेक पुरातत्त्ववेता का कर्तव्य होता है, भले ही उसकी विशिष्टता किसी और विषय में हो. पारम्परिक तरीके से सामग्रियां एकत्रित करने के आलावा पुरातत्त्ववेता नई तकनीक का भी इस्तेमाल करता है, जैसे जीन-अध्ययन, कार्बन डेटिंग, तापलेखन (थर्मोग्राफी), सैटेलाइट इमेजिंग, चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग) इत्यादि.
मानव-विज्ञान, कला-इतिहास, रसायन विज्ञान, साहित्य, नृजाति विज्ञान, भू-विज्ञान, इतिहास, सुचना प्रौद्योगिकी, भाषा विज्ञान, प्रागैतिहासिक विज्ञान, भौतिकी, सांख्यिकी आदि विषयों से पुरातत्त्व विज्ञान जुड़ा हुआ है. इस तरह यह एक बहु-विषयक विधा बन जाता है.
कुल मिलाकर चुनौती भरा, प्रेरित करने वाला और संतोषप्रद करियर पुरातत्त्व विज्ञान में है.

पुरातत्त्व विज्ञान: चरणबद्ध प्रक्रिया

ज्यादातर भारतीय विश्वविद्यालयों में जहाँ पुरातत्त्व विज्ञान विभाग है, वहां मुख्यतः स्नातकोत्तर स्तर पर ही इस विषय की पढ़ाई होती है. यानि पुरातत्त्ववेत्ता बनने के लिए स्नातक डिग्री का होना आवश्यक है और यह किसी भी विषय में हो सकता है. परन्तु इतिहास, समाज-शास्त्र या  मानव-विज्ञान में स्नातक की डिग्री पुरातत्त्व विज्ञान को समझने में सहायक होते हैं. साथ ही जिस विश्वविद्यालय से आप पुरातत्त्व विज्ञान पढ़ना चाहते हैं, वहां किन-किन स्नातक विषयों को मान्यता दी जाती है, इसकी भी जानकारी रखें.
हालाँकि महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा में भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व विज्ञान में तीन वर्षीय स्नातक डिग्री की व्यवस्था है. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भी इससे जुड़े दो स्नातक डिग्री कोर्स चलाए जाते हैं : पहला, प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्त्व विज्ञान का तीन वर्षीय ऑनर्स डिग्री कोर्स और दूसरा, संग्रहालय विज्ञान और पुरातत्त्व विज्ञान का तीन वर्षीय वोकेशनल प्रोग्राम.
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के देख-रेख में चल रहे पुरातत्त्व विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली पुरातत्त्व विज्ञान में दो वर्षों का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स करवाती है. इस कोर्स के लिए निम्नतम योग्यता प्राचीन या मध्यकालीन भारतीय इतिहास, मानव विज्ञान या पुरातत्त्व विज्ञान में दो वर्षीय स्नातकोत्तर डिग्री है. साहित्य-भाषा या भू-विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्रीधारी भी इस कोर्स में आवेदन कर सकते हैं. यह कोर्स कुल चार सेमेस्टर में बंटा हुआ है. इसका  पाठ्यक्रम निम्नलिखित है :
•    पेपर – I  पुरातत्त्व के सिद्धांत और पद्धति
•    पेपर – II  पुरातत्त्व में विज्ञान का प्रयोग
•    पेपर – III  प्रागैतिहासिक
•    पेपर – IV  आदिइतिहास (लेखन से पहले का इतिहास) 
•    पेपर – V  ऐतिहासिक पुरातत्त्व
•    पेपर – VI  कला और मूर्ति-विज्ञान
•    पेपर – VII  स्थापत्य कला
•    पेपर – VIII  पुरालेख विधा और मुद्रा-शास्त्र
•    पेपर – IX  संग्रहालय विज्ञान
•    पेपर – X  स्मारकीय संरचना की संरक्षा
•    पेपर – XI  स्मारकों और पुरातात्त्विक वस्तुओं की रासायनिक संरक्षा
•    पेपर – XII  पुरातत्त्व विषयक कानून

प्रायोगिक परीक्षण
प्रायोगिक परीक्षण में विभिन्न कार्य सम्मिलित होते हैं, जैसे सर्वेक्षण, चित्रांकन, फोटोग्राफी, प्रतिरूपण, अन्वेषण एवं उत्खनन, रासायनिक संरक्षण, कंप्यूटर प्रयोग, मौखिक परीक्षा, सामान्य टिप्पणी, ट्यूटोरियल और शोध-निबंध.
स्नातकोत्तर डिग्री के बाद विद्यार्थी आगे शोध स्तर की पढ़ाई कर सकते हैं. वे डॉक्टरेट की डिग्री या विश्वविद्यालय में प्राध्यापक का पद पा सकते हैं. हाँ इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की योग्यता शर्तों पर खड़ा उतरना होता है. स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद विद्यार्थी अपने लिए उपयुक्त सेवा क्षेत्र का चुनाव कर सकते हैं. उनके लिए शिक्षण-अध्यापन या फिर भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में राज्य या केंद्र के स्तर पर पुरातत्त्वविद की नौकरी के रास्ते खुले होते हैं.

पदार्पण

पुरातत्त्व विज्ञान के क्षेत्र में सफल होने के लिए यह जरूरी नहीं पर जितनी जल्दी शुरुआत की जाए, उतना अच्छा रहता है. सबसे पहला व जरूरी कदम नए लोगों के दिमाग में कला और संस्कृति के प्रति भाव पैदा करना होता है. यह प्रोत्साहन स्कूल के साथ-साथ घर पर भी मिलना जरूरी होता है. नए लोगों के मन में अपने देश के ऐतिहासिक वैभव को ज्यादा से ज्यादा जानने की इच्छा, उन्हें इस करियर के नजदीक लाती है.
इसके अलावा संग्रहालय, सांस्कृतिक जगहों, ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्त्विक उत्खनन केन्द्रों के भ्रमण से इस पेशे के प्रति दिलचस्पी बढ़ती है. किताबों, पत्र-पत्रिकाओं से इतिहास, कला-इतिहास, प्राचीन सभ्यताओं संबंधी इकठ्ठी की गई जानकारी भी सहायक होती है. पुरातत्त्व के क्षेत्र में हो रहे नए विकास और खोज पर नज़र बनाए रखना भी भविष्य के पुरातत्त्वविद के लिए आवश्यक होता है.

क्या यह मेरे लिए सही करियर है?

ऐसे व्यक्ति जिन्हें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक खोजों से आत्म-संतुष्टि मिलती है, पुरातत्त्व पेशा उन्हीं के लिए बना है. यह पेशा काफ़ी जुनूनी है क्योंकि इसमें पुरातत्त्वविदों को कई घंटों से लेकर दिनों तक उत्खनन क्षेत्रों में कैम्प में रहना होता है, प्रयोगशाला में समय बिताना पड़ता है. इसलिए एक पुरातत्त्वविद का धैर्यवान होना आवश्यक होता है, ताकि महीनों-वर्षों तक चलने वाले प्रोजेक्ट को पूरा किया जा सके.

इतिहास की विस्तृत जानकारी, ज्यादा से ज्यादा पढ़ने की आदत, अच्छी लेखन क्षमता, विश्लेषणात्मक और केंद्रित दिमाग एक सफल पुरातत्त्वविद बनने के आवश्यक गुण हैं. हाँ यह जरूर है कि इस पेशे में पैसे से ज्यादा नाम-पहचान अहमियत रखती है.

खर्चा कितना होगा?

इसकी पढ़ाई में ज्यादा खर्च नहीं आता है. स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर तक की पढ़ाई में अन्य कला या समाज-शास्त्र विषयों के बराबर ही खर्च आता है.

छात्रवृत्ति

जो विद्यार्थी भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के द्वारा चलाये जा रहे दो वर्षीय पुरातत्त्व विज्ञान के पोस्ट-ग्रेजुएट डिप्लोमा प्रोग्राम में नामांकन पाते हैं, उन्हें 1500 रु का स्टाईपेंड दिया जाता है.
पुरातत्त्व के स्नातकोत्तर विद्यार्थी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (नेट) या जूनियर रिसर्च फेलो-लेक्चररशिप की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर डॉक्टरेट की पढ़ाई के योग्य हो जाते हैं. इसमें शोधार्थियों को 8000 रु मासिक की वित्तीय सहायता दी जाती है.
उपरोक्त के अलावा विद्यार्थियों की योग्यता और क्षमता के अनुसार विश्वविद्यालय स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों स्तर पर स्कॉलरशिप या स्टाईपेंड की सुविधा देता है. हर संस्थान के नियमों के अनुसार विद्यार्थियों के लिए सरकारी या निजी स्कॉलरशिप पाने की योग्यता अलग-अलग होती है.

रोजगार के अवसर

राज्य और केंद्र दोनों ही स्तर पर पुरातत्त्वविदों के लिए भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण नौकरी देता है. संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा विभिन्न पदों के लिए की जाने वाली आयोजित परीक्षा का आवेदन योग्यतापूर्ण विद्यार्थी कर सकते हैं.
साथ ही पुरातत्त्व में स्नातकोत्तर विद्यार्थी विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याख्याता पद का आवेदन भी कर सकते हैं. इसके लिए उन्हें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा या जूनियर रिसर्च फेलो उत्तीर्ण करना होता है.
जूनियर रिसर्च फेलो की परीक्षा उत्तीर्ण किए विद्यार्थी को अनुसंधान वृत्ति मिलने के साथ साथ     डॉक्टरेट की डिग्री के लिए पढ़ने का अवसर भी होता है. हाँ अगर किसी राज्य में व्याख्याता का पद चाहिए तो वहां की राज्य स्तरीय पात्रता परीक्षा उतीर्ण करनी आवश्यक होती है.
पुरातत्त्वविदों के लिए सरकारी या निजी संग्रहालयों में कलाकृतियों के रख-रखाव व प्रबंधन के स्तर पर भी नौकरी के अवसर होते हैं.
पुरातत्त्व से संबंधी ज्यादातर नौकरियां सरकारी होती हैं, यानि सुरक्षित भविष्य. किसी भी अन्य सरकारी कर्मचारी को मिलने वाली सुविधाएँ एक पुरातत्त्ववेत्ता को भी उसके पद और उम्र के हिसाब से मिलती है.

वेतनमान

पुरातत्त्व के विद्यार्थी अन्य योग्यताओं के साथ जूनियर रिसर्च फेलो की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही कमा सकते हैं. एक जूनियर रिसर्च फेलो को दो वर्ष तक प्रति माह 8000 रु मिलते हैं. सीनियर रिसर्च फेलो बन जाने पर मेहनताना भी बढ़ता है. व्याख्याता का वेतन लगभग 20,000 रु है जबकि प्राध्यापक का इससे भी ज्यादा.
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण में सहायक पुरातत्त्वविद का मासिक वेतन लगभग 10000 से 15000 रु के बीच होता है. ऐसे पुरातत्त्वविद जिन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर ली है, उन्हें बेहतर पद मिलने की उम्मीद रहती है. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के महानिदेशक का मासिक वेतन लगभग 30000 रु होता है.

मांग एवं आपूर्ति

भारत का सांस्कृतिक इतिहास काफ़ी समृद्ध और हजारों वर्ष पुराना रहा है. इस कारण किसी नए सर्वेक्षण या परियोजना के लिए योग्य पुरातत्त्वविदों की हमेशा मांग बनी रहती है. साथ ही अनुभवी व्याख्याताओं, क्यूरेटर और संरक्षक की भी मांग रहती है. इस मांग की पूर्ति देश के विश्वविद्यालय और कॉलेज बड़ी बखूबी से कर रहे हैं.

मार्केट वॉच

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, सरकारी तंत्र और अकादमिक संस्थानों में पुरातत्त्वविदों के लिए नौकरियां निकलती ही रहती हैं, यानि नौकरी की कमी नहीं.

अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन

पुरातत्त्वविदों को देश में एक जगह से दूसरे जगह पर उत्खनन और सर्वेक्षण के लिए काफी घूमना पड़ता है. कई अवसरों पर उन्हें अंतरराष्ट्रीय उत्खनन परियोजना में भी बुलाया जाता है. अपनी योग्यता और अनुभव के आधार पर विदेशों में व्याख्याता, प्राध्यापक, संरक्षक, संग्रहालय क्यूरेटर आदि के रूप में नौकरी के भी अवसर मौजूद रहते हैं.

सकारात्मक/नकारात्मक पहलू

सकारात्मक पहलू
•    ऐसे लोगों के लिए आदर्श पेशा जो इतिहास को खंगालने का मन रखते हैं.
•    एक महत्वपूर्ण खोज आपके मान-सम्मान और ख्याति को कई गुना बढ़ा देता है.
•    इतिहास की परतों में छुपी जगहों को खोज कर दुनिया के सामने लाने की अतृप्त प्यास
•    समाज और लोग को अपने समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की जानकारी देना
नकारात्मक पहलू
•    उत्खनन या सर्वेक्षण क्षेत्रों में कठोर मौसम व विपरीत परिस्थितियों में काम करना
•    जंगली जानवरों, डकैत, लुटेरों, क्षेत्रीय भूमि माफियाओं, असंतुष्ट ग्रामीण व असामाजिक तत्वों से सामना या झड़प की गुंजाइश.
•    लंबे समय तक क्षेत्रों का दौरा और सफर तन और मन दोनों के लिए थकाने वाला.

अलग काम, अलग नाम

पुरातत्त्व अपने आप में एक विस्तृत विषय है. इसलिए एक पुरातत्त्वविद का काम उसकी विशेषज्ञता पर निर्भर करती है. इसकी मुख्य शाखाएं निम्नलिखित हैं :
  • वनस्पति पुरातत्त्व (Archaeobotany) – उत्खनन से निकले फसलों या पौधों के अध्ययन के जरिये इतिहास में लोगों के खान-पान, खेती-बाड़ी, उस समय की जलवायु स्थिति आदि को जानना.
  • आर्कियोमेट्री (Archaeometry) -  पुरातत्त्व की प्रक्रिया और उसके विश्लेष्णात्मक इंजीनयरिंग के सिद्धांतों का अध्ययन
  • जीव पुरातत्त्व (Archaeozoology) – वह शाखा जो जीवों के अवशेषों के अध्ययन से उनके घरेलूपन, शिकार की आदतों को जानती है.
  • युद्ध पुरातत्त्व (Battlefield Archaeology) – प्रमुख युद्ध क्षेत्रों के गहन उत्खनन का विषय
  • पर्यावरणीय पुरातत्त्व (Environmental Archaeology) – पर्यावरण का ऐतिहासिक समाज पर असर का अध्ययन
  • मानव जाति विज्ञान पुरातत्त्व (Ethno Archaeology) – वर्तमान समय की मानव जाति विज्ञान के डाटा को इतिहास के मानव जाति समाज से तुलना ताकि उनके बारे में अधिक जानकारी
  • प्रायोगिक पुरातत्त्व (Experimental Archaeology) – विलुप्त हो चुकी सामग्री और प्रकियाओं को प्रायोगिक स्तर पर हू-ब-हू करना ताकि उनकी कार्यशैली की बेहतर समझ हो.
  • भू-पुरातत्त्व (Geoarchaeology) – मिट्टी और पत्थरों का अध्ययन ताकि भूगोल और पर्यावरण में हुए बदलाव को जाना जा सके.
  • समुद्रीय पुरातत्त्व (Marine Archaeology) – वह शाखा जिसमें समुद्र के अंदर डूबे जहाजों और तटीय संस्कृति का अध्ययन किया जाता है.
  • (Palaeontology) – आधुनिक मानव जाति से पहले के जीवन का अध्ययन करने वाली शाखा
  • प्राक्-ऐतिहासिक पुरातत्त्व (Prehistoric Archaeology) – वह शाखा जिसमें लिखित या अंकित इतिहास से पहले की मानव परंपराओं का अध्ययन किया जाता है.
  • शहरी पुरातत्त्व (Urban Archaeology) – ऐतिहासिक शहरों या शहरी क्षेत्रों का अध्ययन करने वाली शाखा
उपरलिखित पुरातत्त्व की शाखाओं के अलावा एक पुरातत्त्ववेत्ता किसी खास समय काल का भी विशेषज्ञ हो सकता है, जैसे बाइबिल काल, आदि काल, मध्य काल आदि. ठीक उसी तरह कोई किसी खास भौगोलिक क्षेत्र का भी विशेषज्ञ हो सकता है, जैसे मिश्र की सभ्यता का, चीनी इतिहास का.

प्रमुख रोजगार संस्थान

1.    भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण
2.    भारतीय ऐतिहासिक शोध परिषद
3.    राष्ट्रीय संग्रहालय
4.    विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय
5.    सरकारी एवं निजी संग्रहालय और सांस्कृतिक गैलरी

रोजगार प्राप्त करने के लिए सुझाव

1.    संतुलित व स्वस्थ तन-मन
2.    अच्छी संचार क्षमता

कुछ अग्रणी संस्थान

आंध्र विश्वविद्यालय : कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड कॉमर्स, विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश
एजम्पशन कॉलेज, चंगनाशेरी, केरल
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ हेरीटेज रिसर्च एंड मैनेजमेंट, नई दिल्ली
डॉ. हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय, सागर, मध्य प्रदेश
गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद, गुजरात
इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी, नई दिल्ली
जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा : कला संकाय, बड़ोदरा, गुजरात
महाराज सयाजीराव विश्वविद्यालय, बड़ौदा : ललित कला संकाय, बड़ोदरा, गुजरात
ओस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश