जेनेटिक्स करियर की संभावनाओं से भरपूर एक बेहतरीन विषय है। इसकी पढ़ाई
देश-विदेश में रोजगार के मौके प्रदान करती है। इसकी पढ़ाई और करियर के बारे
में बता रही हैं नमिता सिंह-
आनुवंशिकता (जेनेटिक्स) जन्मजात शक्ति है, जो प्राणी के रूप-रंग, आकृति, यौन, बुद्धि तथा विभिन्न शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करती है। आनुवंशिकता को समझने के लिए आवश्यक है कि पहले वंशानुक्रम को भली-भांति समझा जाए। मुख्यत: वंशानुक्रम उन सभी कारकों को सम्मिलित करता है, जो व्यक्ति में जीवन आरम्भ करने के समय से ही उपस्थित होते हैं यानी वंशानुक्रम विभिन्न शारीरिक व मानसिक गुणों का वह समूह है, जो जन्मजात होते हैं। इस विषय के जानकारों की मानें तो आनुवंशिकता के बिना जीव की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आनुवंशिक क्षमताओं के विकास के लिए उपयुक्त और सुंदर वातावरण काफी सहायक होते हैं। आनुवंशिकता हमें क्षमताएं देती है और वातावरण उन क्षमताओं का विकास करता है।
क्या है जेनेटिक्स
जेनेटिक्स विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें वंशानुक्रम एवं डीएनए में बदलाव का अध्ययन किया जाता है। इस काम में बायोलॉजिकल साइंस का ज्ञान काफी लाभ पहुंचाता है। जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट का काम काफी मिलता-जुलता है। ये जीन्स और शरीर में होने वाली आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करते हैं। आने वाले कुछ दशकों में जेनेटिक्स के चलते कई अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलेंगे। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (बीएलएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट की जॉब संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2022 तक बनी रहने की उम्मीद है।
क्या काम है प्रोफेशनल्स का
जेनेटिक प्रोफेशनल्स का कार्य क्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जीव-जन्तु, पौधे व अन्य मानवीय पहलुओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। जीन्स व डीएनए को सही क्रम में व्यवस्थित करने, पीढियों में बदलाव को परखने, पौधों की उन्नत किस्म के हाइब्रिड का विकास, पौधों की बीमारियों को जीन्स द्वारा दूर भगाने सरीखा कार्य किया जाता है। जीवों में इनका काम वंशानुगत चले आ रहे दुष्प्रभावों को जड़ से खत्म करना है। बतौर जेनेटिसिस्ट आप फिजिशियन के साथ मिल कर या सीधे तौर पर मरीजों या वंशानुक्रम बीमारियों से ग्रसित लोगों का उपचार कर सकते हैं।
जेनेटिक्स के कार्य क्षेत्र
जेनेटिक्स के अंतर्गत निम्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है-
जेनेटिक साइंस- इस भाग के अंतर्गत जेनेटिक साइंटिस्ट पौधों, जीव-जन्तुओं व ह्यूमन टिशू के सैंपल में जीन्स की पहचान करते हैं। यह कार्य शोध से भरा होता है।
बायो जेनेटिक्स- यह डॉक्ट्रल लेवल की विधा है। इसमें जीन्स की संरचना, कार्य व बनावट के अलावा आनुवंशिकी के सिद्धांत एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है।
मॉलिकुलर जेनेटिक्स- इसे बायो केमिकल जेनेटिक्स कहा जाता है। सामान्यत: इसके अंतर्गत सेल के अंदर प्रोटीन्स या डीएनए मॉलिक्यूल्स का अध्ययन किया जाता है।
कैटोजेनेटिक्स- यह जेनेटिक्स के क्षेत्र का काफी प्रचलित विषय है। इसमें सेल की संरचना और क्रोमोजोम्स का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग- इस भाग में जीन की संरचना, परिचालन, पुन: व्यवस्थित करने, उसके संकेतों तथा जेनेटिक्स डिसऑर्डर का अध्ययन किया जाता है।
पॉपुलेशन जेनेटिक्स- इस शाखा के अंतर्गत जीव-जन्तुओं में प्रजनन व उत्परिवर्तन की प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसमें गंभीर रोगों से बचाव विधि का भी अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक काउंसलर्स- जेनेटिक काउंसलर का काम किसी परिवार की मेडिकल हिस्ट्री का अध्ययन करते हुए डिसऑर्डर व अन्य वंशानुगत बीमारियों को दूर करना है।
कब ले सकते हैं दाखिला
इस क्षेत्र में बैचलर से लेकर पीएचडी तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र अपनी योग्यता व सुविधानुसार किसी एक का चयन कर सकते हैं। बैचलर कोर्स में दाखिला बारहवीं (विज्ञान वर्ग) के पश्चात मिलता है, जबकि मास्टर कोर्स में प्रवेश बीएससी व संबंधित स्ट्रीम में बैचलर के बाद होता है।
मास्टर कोर्स के पश्चात डॉक्ट्रल, एमफिल व पीएचडी तक की राह आसान हो जाती है। इनके सभी कोर्सो में प्रैक्टिकल की अधिकता रहती है। कई मेडिकल कॉलेज बारहवीं के पश्चात ह्यूमन बायोलॉजी का कोर्स कराते हैं। यह काफी मनोरंजक विषय है।
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोई भी प्रोफेशनल तभी लंबी रेस का घोडम बन सकता है, जब उसे विषय की अच्छी समझ हो। उसे रिसर्च अथवा वंशानुक्रम खोजों के सिलसिले में कई बार गहराई में जाना पड़ता है, इसलिए उसे अपने अंदर धर्य का गुण अपनाना पड़ता है। इसके अलावा उसके पास मैथमेटिक्स और एनालिटिकल नॉलेज का होना जरूरी है।
कार्य का स्वरूप
जेनेटिक्स साइंटिस्ट का कार्य प्रयोगशाला से संबंधित होता है। इनका ज्यादातर समय माइक्रोस्कोप, कम्प्यूटर एवं अन्य उपकरणों के साथ बीतता है, क्योंकि उन्हें विभिन्न तरह के प्रयोग करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है। ऐसा भी होता है कि वर्षों मेहनत करने के बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता। उन्हें प्रोजेक्ट व रिपोर्ट तैयार करने में भी अधिक समय खर्च करना पड़ता है। इनकी कार्यशैली ऐसी है कि उन्हें साइंटिस्ट की टीम के साथ या प्रयोगशाला में सहायता करनी पड़ती है।
रोजगार की संभावनाएं
पिछले कुछ वर्षों में जेनेटिक प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ी है। इसमें देश व विदेश दोनों जगह समान रूप से अवसर मौजूद हैं। सबसे ज्यादा मौका मेडिकल व फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में मिलता है। एग्रीकल्चर सेक्टर भी रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आया है। सरकारी व प्राइवेट क्षेत्रों के रिसर्च एवं डेवलपमेंट विभाग में पहले से ज्यादा अवसर सामने आए हैं। टीचिंग का विकल्प हमेशा ही उपयोगी रहा है।
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी पैकेज काफी कुछ संस्थान एवं कार्य अनुभव पर निर्भर करता है। शुरुआती चरण में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर प्रोफेशनल्स को 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, उनकी सेलरी में भी इजाफा होता जाता है। आमतौर पर चार-पांच साल के अनुभव के पश्चात प्रोफेशनल्स को 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को मोटी रकम मिलती है। आज कई ऐसे प्रोफेशनल्स हैं, जिनका सालाना पैकेज लाखों में है। विदेश में जॉब मिलने पर सेलरी काफी आकर्षक होती है।
एक्सपर्ट्स व्यू
लैब में अधिक समय व्यतीत करना होगा
वर्तमान समय में वैक्सिनेशन, टेस्ट टय़ूब बेबी, क्लोनिंग आदि का चलन चरम पर है। यह सब जेनेटिक्स की ही देन है। देश-विदेश में क्लोनिंग पर काफी प्रयोग किए जा रहे हैं। अभी यह प्रयोग जानवरों पर ही किए जा रहे हैं। इसके अलावा किसी भी रोग के पैटर्न, थैलीसीमिया, एनीमिया, कलर ब्लाइंडनेस आदि पर भी तेजी से काम चल रहा है।
कोर्स के दौरान छात्रों को बायोलॉजिकल फंक्शन, मैथमेटिक्स व फिजिक्स के बारे में जानकारी बढ़ानी पड़ती है। फिजिक्स के जरिए उन्हें प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप व उसके प्रयोग के बारे में बताया जाता है। छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रयोगशाला में ज्यादा से ज्यादा समय खर्च करें। जेनेटिक्स के क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों में अमेरिका और न्यूजीलैंड में ज्यादा प्रयोग किए जा रहे हैं, जबकि भारत उनकी अपेक्षा काफी पीछे है। विदेशों में काम की अधिकता है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि यहां पर प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उन्हें सही मौका और प्लेटफॉर्म मिलने की जरूरत है। इस समय यहां पर रिसर्च, फूड प्रोसेसिंग, ऑप्टिकल फाइबर, केमिकल इंडस्ट्री में तेजी से अवसर सामने आए हैं।
- निलांजन बोस
वेल्फेयर ऑफिसर
इंस्टीटय़ूट ऑफ जेनेटिक इंजी., कोलकाता
प्रमुख संस्थान
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग, कोलकाता वेबसाइट- www.ige-india.co
इंस्टीटय़ृट ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स, गुजरात
वेबसाइट- www.geneticcentre.org
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
वेबसाइट- www.iitkgp.ac.in
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक्स एंड हॉस्पिटल फॉर जेनेटिक डिजीज, हैदराबाद
वेबसाइट- www.instituteofgenetics.org
आनुवंशिकता (जेनेटिक्स) जन्मजात शक्ति है, जो प्राणी के रूप-रंग, आकृति, यौन, बुद्धि तथा विभिन्न शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करती है। आनुवंशिकता को समझने के लिए आवश्यक है कि पहले वंशानुक्रम को भली-भांति समझा जाए। मुख्यत: वंशानुक्रम उन सभी कारकों को सम्मिलित करता है, जो व्यक्ति में जीवन आरम्भ करने के समय से ही उपस्थित होते हैं यानी वंशानुक्रम विभिन्न शारीरिक व मानसिक गुणों का वह समूह है, जो जन्मजात होते हैं। इस विषय के जानकारों की मानें तो आनुवंशिकता के बिना जीव की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आनुवंशिक क्षमताओं के विकास के लिए उपयुक्त और सुंदर वातावरण काफी सहायक होते हैं। आनुवंशिकता हमें क्षमताएं देती है और वातावरण उन क्षमताओं का विकास करता है।
क्या है जेनेटिक्स
जेनेटिक्स विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें वंशानुक्रम एवं डीएनए में बदलाव का अध्ययन किया जाता है। इस काम में बायोलॉजिकल साइंस का ज्ञान काफी लाभ पहुंचाता है। जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट का काम काफी मिलता-जुलता है। ये जीन्स और शरीर में होने वाली आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करते हैं। आने वाले कुछ दशकों में जेनेटिक्स के चलते कई अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलेंगे। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (बीएलएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट की जॉब संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2022 तक बनी रहने की उम्मीद है।
क्या काम है प्रोफेशनल्स का
जेनेटिक प्रोफेशनल्स का कार्य क्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जीव-जन्तु, पौधे व अन्य मानवीय पहलुओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। जीन्स व डीएनए को सही क्रम में व्यवस्थित करने, पीढियों में बदलाव को परखने, पौधों की उन्नत किस्म के हाइब्रिड का विकास, पौधों की बीमारियों को जीन्स द्वारा दूर भगाने सरीखा कार्य किया जाता है। जीवों में इनका काम वंशानुगत चले आ रहे दुष्प्रभावों को जड़ से खत्म करना है। बतौर जेनेटिसिस्ट आप फिजिशियन के साथ मिल कर या सीधे तौर पर मरीजों या वंशानुक्रम बीमारियों से ग्रसित लोगों का उपचार कर सकते हैं।
जेनेटिक्स के कार्य क्षेत्र
जेनेटिक्स के अंतर्गत निम्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है-
जेनेटिक साइंस- इस भाग के अंतर्गत जेनेटिक साइंटिस्ट पौधों, जीव-जन्तुओं व ह्यूमन टिशू के सैंपल में जीन्स की पहचान करते हैं। यह कार्य शोध से भरा होता है।
बायो जेनेटिक्स- यह डॉक्ट्रल लेवल की विधा है। इसमें जीन्स की संरचना, कार्य व बनावट के अलावा आनुवंशिकी के सिद्धांत एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है।
मॉलिकुलर जेनेटिक्स- इसे बायो केमिकल जेनेटिक्स कहा जाता है। सामान्यत: इसके अंतर्गत सेल के अंदर प्रोटीन्स या डीएनए मॉलिक्यूल्स का अध्ययन किया जाता है।
कैटोजेनेटिक्स- यह जेनेटिक्स के क्षेत्र का काफी प्रचलित विषय है। इसमें सेल की संरचना और क्रोमोजोम्स का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग- इस भाग में जीन की संरचना, परिचालन, पुन: व्यवस्थित करने, उसके संकेतों तथा जेनेटिक्स डिसऑर्डर का अध्ययन किया जाता है।
पॉपुलेशन जेनेटिक्स- इस शाखा के अंतर्गत जीव-जन्तुओं में प्रजनन व उत्परिवर्तन की प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसमें गंभीर रोगों से बचाव विधि का भी अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक काउंसलर्स- जेनेटिक काउंसलर का काम किसी परिवार की मेडिकल हिस्ट्री का अध्ययन करते हुए डिसऑर्डर व अन्य वंशानुगत बीमारियों को दूर करना है।
कब ले सकते हैं दाखिला
इस क्षेत्र में बैचलर से लेकर पीएचडी तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र अपनी योग्यता व सुविधानुसार किसी एक का चयन कर सकते हैं। बैचलर कोर्स में दाखिला बारहवीं (विज्ञान वर्ग) के पश्चात मिलता है, जबकि मास्टर कोर्स में प्रवेश बीएससी व संबंधित स्ट्रीम में बैचलर के बाद होता है।
मास्टर कोर्स के पश्चात डॉक्ट्रल, एमफिल व पीएचडी तक की राह आसान हो जाती है। इनके सभी कोर्सो में प्रैक्टिकल की अधिकता रहती है। कई मेडिकल कॉलेज बारहवीं के पश्चात ह्यूमन बायोलॉजी का कोर्स कराते हैं। यह काफी मनोरंजक विषय है।
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोई भी प्रोफेशनल तभी लंबी रेस का घोडम बन सकता है, जब उसे विषय की अच्छी समझ हो। उसे रिसर्च अथवा वंशानुक्रम खोजों के सिलसिले में कई बार गहराई में जाना पड़ता है, इसलिए उसे अपने अंदर धर्य का गुण अपनाना पड़ता है। इसके अलावा उसके पास मैथमेटिक्स और एनालिटिकल नॉलेज का होना जरूरी है।
कार्य का स्वरूप
जेनेटिक्स साइंटिस्ट का कार्य प्रयोगशाला से संबंधित होता है। इनका ज्यादातर समय माइक्रोस्कोप, कम्प्यूटर एवं अन्य उपकरणों के साथ बीतता है, क्योंकि उन्हें विभिन्न तरह के प्रयोग करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है। ऐसा भी होता है कि वर्षों मेहनत करने के बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता। उन्हें प्रोजेक्ट व रिपोर्ट तैयार करने में भी अधिक समय खर्च करना पड़ता है। इनकी कार्यशैली ऐसी है कि उन्हें साइंटिस्ट की टीम के साथ या प्रयोगशाला में सहायता करनी पड़ती है।
रोजगार की संभावनाएं
पिछले कुछ वर्षों में जेनेटिक प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ी है। इसमें देश व विदेश दोनों जगह समान रूप से अवसर मौजूद हैं। सबसे ज्यादा मौका मेडिकल व फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में मिलता है। एग्रीकल्चर सेक्टर भी रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आया है। सरकारी व प्राइवेट क्षेत्रों के रिसर्च एवं डेवलपमेंट विभाग में पहले से ज्यादा अवसर सामने आए हैं। टीचिंग का विकल्प हमेशा ही उपयोगी रहा है।
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी पैकेज काफी कुछ संस्थान एवं कार्य अनुभव पर निर्भर करता है। शुरुआती चरण में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर प्रोफेशनल्स को 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, उनकी सेलरी में भी इजाफा होता जाता है। आमतौर पर चार-पांच साल के अनुभव के पश्चात प्रोफेशनल्स को 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को मोटी रकम मिलती है। आज कई ऐसे प्रोफेशनल्स हैं, जिनका सालाना पैकेज लाखों में है। विदेश में जॉब मिलने पर सेलरी काफी आकर्षक होती है।
एक्सपर्ट्स व्यू
लैब में अधिक समय व्यतीत करना होगा
वर्तमान समय में वैक्सिनेशन, टेस्ट टय़ूब बेबी, क्लोनिंग आदि का चलन चरम पर है। यह सब जेनेटिक्स की ही देन है। देश-विदेश में क्लोनिंग पर काफी प्रयोग किए जा रहे हैं। अभी यह प्रयोग जानवरों पर ही किए जा रहे हैं। इसके अलावा किसी भी रोग के पैटर्न, थैलीसीमिया, एनीमिया, कलर ब्लाइंडनेस आदि पर भी तेजी से काम चल रहा है।
कोर्स के दौरान छात्रों को बायोलॉजिकल फंक्शन, मैथमेटिक्स व फिजिक्स के बारे में जानकारी बढ़ानी पड़ती है। फिजिक्स के जरिए उन्हें प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप व उसके प्रयोग के बारे में बताया जाता है। छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रयोगशाला में ज्यादा से ज्यादा समय खर्च करें। जेनेटिक्स के क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों में अमेरिका और न्यूजीलैंड में ज्यादा प्रयोग किए जा रहे हैं, जबकि भारत उनकी अपेक्षा काफी पीछे है। विदेशों में काम की अधिकता है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि यहां पर प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उन्हें सही मौका और प्लेटफॉर्म मिलने की जरूरत है। इस समय यहां पर रिसर्च, फूड प्रोसेसिंग, ऑप्टिकल फाइबर, केमिकल इंडस्ट्री में तेजी से अवसर सामने आए हैं।
- निलांजन बोस
वेल्फेयर ऑफिसर
इंस्टीटय़ूट ऑफ जेनेटिक इंजी., कोलकाता
प्रमुख संस्थान
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग, कोलकाता वेबसाइट- www.ige-india.co
इंस्टीटय़ृट ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स, गुजरात
वेबसाइट- www.geneticcentre.org
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
वेबसाइट- www.iitkgp.ac.in
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक्स एंड हॉस्पिटल फॉर जेनेटिक डिजीज, हैदराबाद
वेबसाइट- www.instituteofgenetics.org
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