राष्ट्रीय
ज्ञान आयोग की पहल पर चार साल पहले देश में राष्ट्रीय अनुवाद मिशन बनाया
गया। करीब 74 करोड़ रुपये बजट वाले इस मिशन का काम विभिन्न भारतीय भाषाओं
को अनुवाद के जरिए जन-जन तक पहुंचाना है। देश में अनुवाद की उपयोगिता की यह
सिर्फ एक बानगी है। व्यापक स्तर पर देखें तो विश्व को एक गांव बनाने का
सपना पूरा करने में अनुवादक आज अहम भूमिका निभा रहा है। चाहे विदेशी
फिल्मों की हिन्दी या दूसरी भाषा में डबिंग हो या फैशन की नकल, इंटीरियर
डेकोरेशन का काम हो या ड्रेस डिजाइनिंग, अनुवादक की हर जगह जरूरत पड़ रही
है। संसद की कार्यवाही का आम जनता तक पलक झपकते पहुंचाने का काम भी अनुवादक
के जरिए ही संभव होता है। इसके जरिए हम कुछ वैसा ही अनुभव करते और सोचते
हैं, जैसा दूसरा कहना चाहता है। एक दूसरे को जोड़ने में और परस्पर संवाद
स्थापित करने में अनुवादक की भूमिका ने युवाओं को भी करियर की एक नई राह
दिखाई है। इस क्षेत्र में आकर कोई अपनी पहचान बनाने के साथ-साथ अच्छा-खासा
पैसा कमा सकता है। अनुवादक और इसी से जुड़ा इंटरप्रेटर युवाओं के लिए करियर
का नया क्षेत्र लेकर हाजिर है।
अनुवादक
की कला से रू-ब-रू कराने के लिए आज विश्वविद्यालयों और विभिन्न शिक्षण
संस्थानों में कोर्स भी चल रहे हैं। यह कोर्स कहीं डिप्लोमा रूप में हैं तो
कहीं डिग्री के रूप में। अनुवाद में आज विश्वविद्यालयों में एम. फिल,
पीएचडी का काम भी जगह-जगह कराया जा रहा है। हालांकि अनुवाद का काम महज
डिग्री व डिप्लोमा से ही सीखा नहीं जा सकता। इसके लिए निरंतर अभ्यास और
व्यापक ज्ञान की भी जरूरत पड़ती है। यह दो भाषाओं के बीच पुल का काम करता
है। अनुवादक को इस कड़ी में स्रोत भाषा से लक्ष्य भाषा में जाने के लिए
दूसरे के इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि का भी ज्ञान हासिल करना पड़ता है।
एक प्रोफेशनल अनुवादक बनने के लिए आज कम से कम स्नातक होना जरूरी है।
इसमें दो भाषाओं के ज्ञान की मांग की जाती है। उदाहरण के तौर पर
अंग्रेजी-हिन्दी का अनुवादक बनना है तो आपको दोनों भाषाओं की व्याकरण और
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का ज्ञान जरूर होना चाहिए।
अनुवाद की कला में दक्ष युवाओं के लिए आज विभिन्न सरकारी संस्थानों, निजी संस्थानों, कंपनियों और बैंकों में काम के कई अवसर हैं।
ज्यादातर राज्यों की राजभाषा और संपर्क भाषा होने के कारण हिन्दी अनुवादक की आज देश के विभिन्न सरकारी संस्थानों में सबसे अधिक मांग है। कर्मचारी चयन आयोग इसके लिए हर वर्ष प्रतियोगिता परीक्षा आयोजित करता है। इसमें हिन्दी या अंग्रेजी से स्नातक व स्नातकोत्तर की योग्यता की मांग की जाती है। डिग्री के अलावा कई जगहों पर अनुवाद में डिप्लोमा की भी जरूरत पड़ती है।
केन्द्रीय
स्तर पर लोकसभा, राज्यसभा और विभिन्न मंत्रालयों में अनुवादक की जरूरत
होती है। सरकारी संस्थानों के अलावा बैंकों, बीमा कंपनियों व कॉरपोरेट
सेक्टर में अनुवादक को काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
बैंकों
में राजभाषा अधिकारी ही अनुवाद के काम को पूरा कराता है, इसलिए वहां
अनुवादक की भूमिका बदल जाती है। वहां अनुवादक की योग्यता रखने वाले युवा को
राजभाषा अधिकारी के रूप में काम करने का मौका मिलता है। कई जगहों पर
हिन्दी सहायक के रूप में काम करने का मौका मिलता है। धीरे-धीरे अनुभव और
उम्र के साथ पदोन्नति होती है। अनुवादक को सहायक निदेशक, उपनिदेशक और
निदेशक के रूप में काम करने का मौका मिलता है। अनुवादक स्वतंत्र रूप से भी
अपना काम कर सकता है। चाहे तो कोई अनुवाद ब्यूरो खोल कर भी विभिन्न निकायों
और संस्थाओं में अनुवाद के काम को कर सकता है।
सरकारी
स्तर से हट कर देखें तो अनुवादक का काम ज्यादातर क्षेत्रों में है। चाहे
मीडिया जगत हो, फिल्म इंडस्ट्री, दूतावास हो या कोई संग्रहालय, व्यापार
मेला हो या फिर शहरों में लगने वाली प्रदशर्नियां।
सामान्यत:
आम लोगों को किसी भाषा और कला का मर्म आमतौर पर अनुवाद के जरिए ही समझाया
जाता है। अनुवाद सिर्फ अंग्रेजी-हिन्दी या हिन्दी-अंग्रेजी ही नहीं, अन्य
भारतीय भाषाओं में भी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विदेशी भाषा का दूसरी
भाषा में अनुवाद कमाई के लिहाज से काफी अच्छा विकल्प है।
मसलन यहां स्पैनिश से अंग्रेजी या हिन्दी या अन्य दूसरी भाषा में अनुवाद करने का पैसा ज्यादा मिलता है।
अनुवादक बनाम इंटरप्रेटर
अनुवाद
एक लिखित विधा है, जिसे करने के लिए कई साधनों की जरूरत पड़ती है। मसलन
शब्दकोश, संदर्भ ग्रंथ, विषय विशेषज्ञ या मार्गदर्शक की मदद से अनुवाद
कार्य को पूरा किया जाता है। इसकी कोई समय सीमा नहीं होती। अपनी मर्जी के
मुताबिक अनुवादक इसे कई बार शुद्धिकरण के बाद पूरा कर सकता है। इंटरप्रेटशन
यानी भाषांतरण एक भाषा का दूसरी भाषा में मौखिक रूपांतरण है। इसे करने
वाला इंटरप्रेटर कहलाता है। इंटरप्रेटर का काम तात्कालिक है। वह किसी भाषा
को सुन कर, समझ कर दूसरी भाषा में तुरंत उसका मौखिक तौर पर रूपांतरण करता
है। लोकसभा के सेवानिवृत्त इंटरप्रेटर सुभाष भूटानी कहते हैं, इसे मूल भाषा
के साथ मौखिक तौर पर आधा मिनट पीछे रहते हुए किया जाता है। बहुत कुछ
यांत्रिक ढंग का भी होता है। हालांकि करियर के लिहाज से देखें तो
इंटरप्रेटर को लोकसभा में प्रथम श्रेणी के अधिकारी का दर्जा प्राप्त है।
यहां यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। भूटानी के मुताबिक संसद में अनेक
भाषा के प्रतिनिधि रहते हैं। उन्हें उनकी भाषाओं में समझाने का काम
इंटरप्रेटर ही करता है। उनकी मूल भाषा में कही गई बात को संसद में भी रखता
है। लोकसभा के अलावा ऐसे सम्मेलन, जहां अनेक भाषा के लोग होते हैं, उन्हें
एक भाषा में कही गई बात को उसी समय दूसरी भाषा में बताने और समझाने का काम
इंटरप्रेटर ही करता है। सरकारी के अलावा विदेशी कंपनियों को किसी देश में
व्यवसाय स्थापित करने या टूरिस्ट को भी इंटरप्रेटर की जरूरत पड़ती है। एक
इंटरप्रेटर यहां भी स्वतंत्र रूप में अपनी सेवा दे सकता है।
विदेश
मंत्रालय में दूसरे देश के प्रतिनिधियों से होने वाली बातचीत या वार्तालाप
को इंटरप्रेटर ही अंजाम देता है। भारत से अगर कोई शिष्ट मंडल दूसरे देश
में जाता है तो वहां भी इंटरप्रेटर साथ में चलता है।
जहां
तक कोर्स का सवाल है, भूटानी कहते हैं, सरकारी संस्थानों में इसके लिए कोई
कोर्स नहीं चल रहा है। दरअसल यह अनुवाद पाठ्यक्रम का ही एक हिस्सा है।
अनुवाद कोर्स में इस विधा के बारे में अलग से बताया जाता है। जब इंटरप्रेटर
की नियुक्ति होती है तो उसे पहले लिखित परीक्षा से गुजरना होता है।
कोर्स
अनुवादक
बनने के लिए विश्वविद्यालयों में मूल तौर पर डिप्लोमा और डिग्री कोर्स है।
डिप्लोमा एक साल का होता है। इसमें दाखिला लेने के लिए किसी भाषा में
स्नातक होना जरूरी है। साथ ही दूसरी भाषा के ज्ञान और पढ़ाई की भी मांग की
जाती है। मसलन अंग्रेजी-हिन्दी डिप्लोमा कोर्स दोनों का ज्ञान होना जरूरी
है। इनमें से छात्र ने किसी एक में स्नातक किया हो और इसके साथ ही साथ
दूसरी भाषा भी पढ़ी हो। एमए कराने का मकसद छात्रों को अनुवादक बनाने के
अलावा अनुवाद के क्षेत्र में शोध और अध्यापन की ओर ले जाना होता है।
विश्वविद्यालयों में अनुवाद में एमफिल और पीएचडी का भी कोर्स कराया जा रहा
है।
एडमिशन अलर्ट
एमएएचएआर का डिग्री कोर्स
देहरादून
स्थित मधुबन एकेडमी ऑफ हॉस्पिटैलिटी एडमिनिस्ट्रेशन एंड रिसर्च (एमएएचएआर)
ने 2010-2013 के शैक्षणिक सत्र के लिए अपने तीन वर्षीय डिग्री कोर्स बीए
इंटरनेशनल हॉस्पिटैलिटी एडमिनिस्ट्रेशन की घोषणा की है। यह इग्नू और सिटी
एंड गिल्ड्स ऑफ लंदन इंस्टीटय़ूट द्वारा मान्यता प्राप्त डिग्री कोर्स है।
यह कोर्स अपनी तरह का पहला लर्निंग सिस्टम है, जो अमेरिका होटल एंड लॉजिंग
एजुकेशन इंस्टीटय़ूट के पाठय़क्रमों को लागू कर रहा है। द्वितीय वर्ष में 22
सप्ताह की इंडस्ट्रियल एक्सपोजर ट्रेनिंग को पूर्ण करने के बाद अगली
शैक्षणिक अवधि में दाखिला निश्चित होगा। इसके लिए छात्र का अंग्रेजी के साथ
12वीं पास होना अनिवार्य है। www.maharedu.com
ट्रांसलेटर/ इंटरप्रेटर के प्रमुख संस्थान
भारतीय अनुवाद परिषद
भारतीय
भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन में अनुवाद की जरूरत को ध्यान में रखते हुए
दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों व प्रोफेसरों के सहयोग से डा. गार्गी
गुप्ता ने 1964 में भारतीय अनुवाद परिषद की स्थापना की। अनुवाद के क्षेत्र
में विशेष तौर पर काम करने के लिए यह संस्था तब से लेकर अब तक निरंतर
प्रगति की राह पर है। यहां कुशल अनुवादक बनाने के लिए एक वर्षीय पीजी
डिप्लोमा का कोर्स कराया जाता है। इसे पार्ट टाइम के रूप में कोई भी छात्र
कर सकता है। कक्षाएं शाम को होती हैं। संस्थान अनुवाद की पत्रिका और
अनुवाद के क्षेत्र में बेहतरीन कार्य के लिए हर वर्ष विभिन्न विद्वानों को
पुरस्कृत भी करती है। इसे मानव संसाधन विकास मंत्रलय ने विशेष तौर पर
स्वीकृति प्रदान की है।
पता : 24 स्कूल लेन, बंगाली माकेट, नई दिल्ली फोन : 23352278 वेबसाइट: www.
अन्य प्रमुख संस्थान
दिल्ली विश्वविद्यालय
हिन्दी विभाग, उत्तरी परिसर
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय,
मैदान गढ़ी, नई दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
न्यू महरौली रोड, नई दिल्ली
कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरूक्षेत्र, हरियाणा
भारतीय विद्या भवन, मेहता भवन, कस्तूरबा गांधी मार्ग, नई दिल्ली
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Monday, August 31, 2015
ट्रांसलेटर/ इंटरप्रेटर दो संस्कृतियों को समझने की कला
Sunday, August 30, 2015
बागवानी : एक फलता-फूलता कॅरिअर
रोजगार समाचार, 15-21 सितंबर 2012 यदि आप किसी व्यावसायिक बागवान के लिए कार्य करते हैं तो खेतों, उद्यानों, बागों और गोल्फ कोर्स के भूदृश्याकंन, जुताई, रखरखाव तथा पैदावार आदि जैसे कार्य आपको करने होंगे, भूदृश्यांकन उद्देश्य वाले होटल, रिसोर्ट तथा विस्तृत भूमि वाले निजी बंगले भी इस क्षेत्र में रोज़गार के अन्य विकल्प हैं। निर्माण कंपनियों और भूदृश्य वास्तुकला फार्मों को पौधों एवं पौधों की देखरेख पर सलाह देने के लिए आप सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं।आपके जन्म-दिन पर आपको उपहार के रूप में कोई विदेशी पौधा मिलता है तो क्या आप हर्ष-विभोर हो जाते हैं? क्या आपको आश्चर्य होता है कि आपके मित्र के मस्तिष्क में यह शानदार विचार कैसे आया! तो, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उपहार के रूप में पौधे देना, पर्यावरण की रक्षा के लिए चिंतित इस विश्व में एक नई परिपाटी है। आपके लिए यह और रुचिकर हो सकता है कि उपहार के पौधे एवं फूल बेचना एक शानदार उद्यम है। इसलिए यदि आप पौधों में रुचि रखते हैं और पौधों के माध्यम से धन-राशि अर्जित करने के विकल्प तलाश रहे हैं तो बागवानी आपके कॅरिअर को दिशा दे सकती है।
बागवानी पौधों की खेती का विज्ञान है, यह फलों, वनस्पति/सब्जियों, फूलों, गिरीदार फलों, मसालों और सजावटी पौधों के उत्पादन से संबंधित है। कार्बनिक उत्पाद, सजावटी फूलों और उपहार में दिए जाने वाले पौधों की मांग के साथ बागवानी क्षेत्र लाभप्रद एवं आकर्षक कॅरिअर के विकल्प के रूप में उभर रहा है।
उद्यानविज्ञानी सरकारी संगठनों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। आप सरकारी अनुसंधान संगठनों में वैज्ञानिक के रूप में या बागवानी विभाग में बागवानी अधिकारी/सहायक/निरीक्षक/फार्म पर्यवेक्षक या निदेशक के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
बागवानी क्षेत्र के वर्तमान लक्ष्य फलों, सब्जियों/वनस्पति तथा फूलों की नई तथा उन्नत किस्मों को पैदा करना, विदेशी किस्मों का विकास करना, फसल की पैदावार में सुधार लाना, गुणवत्ता तथा पोषण महत्वों को बढ़ाना तथा कीड़ों एवं क्षेत्रों के प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाना है। यदि आप अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहते हैं तो पादप शरीर विज्ञान, प्रोपेगेशन, जैव रसायन विज्ञान तथा आनुवांशिक इंजीनियरी वे क्षेत्र हैं, जिनमें आप कार्य कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, भा.कृ.अ.प. नई दिल्ली प्रत्याशित वैज्ञानिकों की भर्ती करता है। जिला बागवानी एवं कृषि अधिकारियों के पद राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षाओं के माध्यम से भरे जाते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र प्रशिक्षक संयोजकों, एसोशिएट तथा सहायक के पदों पर भर्ती करते हैं, सिविल सेवा भी इस क्षेत्र में एक चुनौती पूर्ण विकल्प है।
बैंकों में भी ग्रामीण विकास अधिकारी और कृषि वित्त अधिकारी जैसे पद धारण कर सकते हैं।
निजी क्षेत्र में कई अवसर हैं। आप निजी बीज वैज्ञानिक के अनुसंधान तथा विकास विभागों में वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर सकते हैं या निजी बीज या पेस्टीसाइड कंपनी में विपणन कार्यपालक के रूप में कार्य कर सकते हैं। जड़ी-बूटी दवाइयों पर आधारित भेषज कंपनियां भी उद्यान विज्ञानियों की सेवाएं लेती हैं।
यदि आप किसी व्यावसायिक बागवान के लिए कार्य करते हैं तो खेतों, उद्यानों, बागों और गोल्फ कोर्स के भूदृश्याकंन, जुताई, रखरखाव तथा पैदावार आदि जैसे कार्य आपको करने होंगे, भूदृश्यांकन उद्देश्य वाले होटल, रिसोर्ट तथा विस्तृत भूमि वाले निजी बंगले भी इस क्षेत्र में रोज़गार के अन्य विकल्प हैं। निर्माण कंपनियों और भूदृश्य वास्तुकला फार्मों को पौधों एवं पौधों की देखरेख पर सलाह देने के लिए आप सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
यदि आपकी रुचि शिक्षा के क्षेत्र में है तो आप कृषि एवं बागवानी विश्वविद्यालयों में पढ़ा सकते हैं। इस क्षेत्र में आप लेक्चरर, रीडर, सहायक प्रोफेसर तथा एसोशिएट प्रोफेसर के अवसर तलाश सकते हैं।
उद्यम की संभावनाओं की बात करें तो आपके पास अपना निजी फार्म, व्यावसायिक पौधशाला (नर्सरी) या बाग लगाने के विकल्प हैं। बीज उत्पादन, ड्राइ या कट फ्लॉवर उद्यम, कोल्ड स्टोरेज, उपहार के पौधों की बिक्री एवं फलों/सब्जियों तथा फूलों का निर्यात अन्य संभावित विकल्प हैं। आजकल ग्रीन डेकोर, गुड लक, स्ट्रेस बस्टर, बोन्साइ तथा सजावटी गमलों में पूलों के पौधों की अच्छी मांग है। पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि में बागवानी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किसानों को प्रेरणा तथा सलाह देने के लिए आप तकनीकी सलाहकार के रूप में या विपणन कंपनियों के साथ एक मध्यस्थ के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।
फलों, फूलों और सब्जियों के प्रसंस्करण, परिक्षण तथा विपणन के क्षेत्र में भी अवसर विद्यामान हैं।
अपना निजी व्यवसाय चलाने के लिए पौधों एवं पौधों की सुरक्षा का अच्छा ज्ञान पर्याप्त है। तथापि, औपचारिक गहन प्रशिक्षण आपके विकल्पों को और व्यापक करेगा।
बागवानी या कृषि विश्वविद्यालय बागवानी में शैक्षिक डिग्रियां देते हैं। बागवानी में स्नातक पाठ्यक्रम एक चार वर्षीय कार्यक्रम होता है और बागवानी में एम.एससी. दो वर्ष की अवधि की होती है। अधिकांश विश्वविद्यालय पीएच. डी कार्यक्रम चलाते हैं। कुछ विश्वविद्यालय अल्प-कालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाते हैं।
विषय के प्रति लगाव तथा व्यापक तकनीकी ज्ञान इस क्षेत्र में सफल होने के लिए अनिवार्य है। पौधों पर मिट्टी मौसम तथा उपचार के प्रभाव का ध्यान रखना तथा विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। लंबे समय तक तथा विपरीत मौसम में बाहरी पौधों पर कार्य करने के लिए अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉ. के. पुरुषोत्तम, अनुसंधान निदेशक, वाई एस.आर. बागवानी विश्वविद्यालय की सलाह है कि खेतों में व्यावहारिक रूप में कार्य करके सीखना और फसल के व्यवहार तथा उन पर जलवायु में परिवर्तन के प्रभाव पर ध्यान रखना और उसके बाद निष्ठा, प्रतिबद्धता और कठोर परिश्रम करना अनिवार्य है। अवसरों की प्रतीक्षा न करें, अवसर की तलाश करें। विषय पर तथा साथ ही कॅरिअर के अवसरों पर भी अपने ज्ञान को निरंतर अद्यतन करें।
अपनी रुचि, प्रवृत्ति, योग्यताओं तथा अनुभव के आधार पर आप बागवानी से जुड़े सगठनों में कार्य कर सकते हैं और अपने कॅरिअर में आगे बढ़ सकते हैं। बागवानी के और विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में अतिरिक्त प्रशिक्षण आपकी उन्नति को गति देगा। ये क्षेत्र हैं – भूदृश्य, वास्तुकला, शहरी नियोजन, प्रबंधन तथा उपलब्ध अवसरों के अनुसार अन्य विषय। यदि आपकी, अपना निजी व्यवसाय चलाने की योजना है तो उस पर ध्यान दें। व्यवसाय तथा बाजार के विभिन्न पहलुओं का पता लगाएं। आधुनिक तकनीकों जैसे ऑनलाइन विपणन तथा विक्रय का उपयोग करने से आपका व्यावसायिक टर्न ओवर थोड़े से समय में पर्याप्त रूप में बढ़ जाएगा।
बागवानी के क्षेत्र में कॅरिअर बनाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए प्रचुर अवसर हैं। इसलिए इस मिथक कि इस क्षेत्र में अवसर सीमित हैं, को दूर करके विकल्पों का पता लगाएं और अपनी पसंद पर गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ें। आपके प्रयास निश्चय सफल होंगे।
बागवानी पौधों की खेती का विज्ञान है, यह फलों, वनस्पति/सब्जियों, फूलों, गिरीदार फलों, मसालों और सजावटी पौधों के उत्पादन से संबंधित है। कार्बनिक उत्पाद, सजावटी फूलों और उपहार में दिए जाने वाले पौधों की मांग के साथ बागवानी क्षेत्र लाभप्रद एवं आकर्षक कॅरिअर के विकल्प के रूप में उभर रहा है।
संभावनाएं :
उद्यानविज्ञानी सरकारी संगठनों तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में रोज़गार प्राप्त कर सकते हैं। आप सरकारी अनुसंधान संगठनों में वैज्ञानिक के रूप में या बागवानी विभाग में बागवानी अधिकारी/सहायक/निरीक्षक/फार्म पर्यवेक्षक या निदेशक के रूप में अपनी भूमिका निभा सकते हैं।
बागवानी क्षेत्र के वर्तमान लक्ष्य फलों, सब्जियों/वनस्पति तथा फूलों की नई तथा उन्नत किस्मों को पैदा करना, विदेशी किस्मों का विकास करना, फसल की पैदावार में सुधार लाना, गुणवत्ता तथा पोषण महत्वों को बढ़ाना तथा कीड़ों एवं क्षेत्रों के प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाना है। यदि आप अनुसंधान के क्षेत्र में जाना चाहते हैं तो पादप शरीर विज्ञान, प्रोपेगेशन, जैव रसायन विज्ञान तथा आनुवांशिक इंजीनियरी वे क्षेत्र हैं, जिनमें आप कार्य कर सकते हैं। कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड, भा.कृ.अ.प. नई दिल्ली प्रत्याशित वैज्ञानिकों की भर्ती करता है। जिला बागवानी एवं कृषि अधिकारियों के पद राज्य लोक सेवा आयोग परीक्षाओं के माध्यम से भरे जाते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र प्रशिक्षक संयोजकों, एसोशिएट तथा सहायक के पदों पर भर्ती करते हैं, सिविल सेवा भी इस क्षेत्र में एक चुनौती पूर्ण विकल्प है।
बैंकों में भी ग्रामीण विकास अधिकारी और कृषि वित्त अधिकारी जैसे पद धारण कर सकते हैं।
निजी क्षेत्र में कई अवसर हैं। आप निजी बीज वैज्ञानिक के अनुसंधान तथा विकास विभागों में वैज्ञानिक के रूप में कार्य कर सकते हैं या निजी बीज या पेस्टीसाइड कंपनी में विपणन कार्यपालक के रूप में कार्य कर सकते हैं। जड़ी-बूटी दवाइयों पर आधारित भेषज कंपनियां भी उद्यान विज्ञानियों की सेवाएं लेती हैं।
यदि आप किसी व्यावसायिक बागवान के लिए कार्य करते हैं तो खेतों, उद्यानों, बागों और गोल्फ कोर्स के भूदृश्याकंन, जुताई, रखरखाव तथा पैदावार आदि जैसे कार्य आपको करने होंगे, भूदृश्यांकन उद्देश्य वाले होटल, रिसोर्ट तथा विस्तृत भूमि वाले निजी बंगले भी इस क्षेत्र में रोज़गार के अन्य विकल्प हैं। निर्माण कंपनियों और भूदृश्य वास्तुकला फार्मों को पौधों एवं पौधों की देखरेख पर सलाह देने के लिए आप सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
यदि आपकी रुचि शिक्षा के क्षेत्र में है तो आप कृषि एवं बागवानी विश्वविद्यालयों में पढ़ा सकते हैं। इस क्षेत्र में आप लेक्चरर, रीडर, सहायक प्रोफेसर तथा एसोशिएट प्रोफेसर के अवसर तलाश सकते हैं।
उद्यम की संभावनाओं की बात करें तो आपके पास अपना निजी फार्म, व्यावसायिक पौधशाला (नर्सरी) या बाग लगाने के विकल्प हैं। बीज उत्पादन, ड्राइ या कट फ्लॉवर उद्यम, कोल्ड स्टोरेज, उपहार के पौधों की बिक्री एवं फलों/सब्जियों तथा फूलों का निर्यात अन्य संभावित विकल्प हैं। आजकल ग्रीन डेकोर, गुड लक, स्ट्रेस बस्टर, बोन्साइ तथा सजावटी गमलों में पूलों के पौधों की अच्छी मांग है। पैदावार बढ़ाने के लिए कृषि में बागवानी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किसानों को प्रेरणा तथा सलाह देने के लिए आप तकनीकी सलाहकार के रूप में या विपणन कंपनियों के साथ एक मध्यस्थ के रूप में भी कार्य कर सकते हैं।
फलों, फूलों और सब्जियों के प्रसंस्करण, परिक्षण तथा विपणन के क्षेत्र में भी अवसर विद्यामान हैं।
शिक्षा
अपना निजी व्यवसाय चलाने के लिए पौधों एवं पौधों की सुरक्षा का अच्छा ज्ञान पर्याप्त है। तथापि, औपचारिक गहन प्रशिक्षण आपके विकल्पों को और व्यापक करेगा।
बागवानी या कृषि विश्वविद्यालय बागवानी में शैक्षिक डिग्रियां देते हैं। बागवानी में स्नातक पाठ्यक्रम एक चार वर्षीय कार्यक्रम होता है और बागवानी में एम.एससी. दो वर्ष की अवधि की होती है। अधिकांश विश्वविद्यालय पीएच. डी कार्यक्रम चलाते हैं। कुछ विश्वविद्यालय अल्प-कालीन प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाते हैं।
सफलता मंत्र
विषय के प्रति लगाव तथा व्यापक तकनीकी ज्ञान इस क्षेत्र में सफल होने के लिए अनिवार्य है। पौधों पर मिट्टी मौसम तथा उपचार के प्रभाव का ध्यान रखना तथा विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। लंबे समय तक तथा विपरीत मौसम में बाहरी पौधों पर कार्य करने के लिए अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। डॉ. के. पुरुषोत्तम, अनुसंधान निदेशक, वाई एस.आर. बागवानी विश्वविद्यालय की सलाह है कि खेतों में व्यावहारिक रूप में कार्य करके सीखना और फसल के व्यवहार तथा उन पर जलवायु में परिवर्तन के प्रभाव पर ध्यान रखना और उसके बाद निष्ठा, प्रतिबद्धता और कठोर परिश्रम करना अनिवार्य है। अवसरों की प्रतीक्षा न करें, अवसर की तलाश करें। विषय पर तथा साथ ही कॅरिअर के अवसरों पर भी अपने ज्ञान को निरंतर अद्यतन करें।
उन्नति
अपनी रुचि, प्रवृत्ति, योग्यताओं तथा अनुभव के आधार पर आप बागवानी से जुड़े सगठनों में कार्य कर सकते हैं और अपने कॅरिअर में आगे बढ़ सकते हैं। बागवानी के और विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में अतिरिक्त प्रशिक्षण आपकी उन्नति को गति देगा। ये क्षेत्र हैं – भूदृश्य, वास्तुकला, शहरी नियोजन, प्रबंधन तथा उपलब्ध अवसरों के अनुसार अन्य विषय। यदि आपकी, अपना निजी व्यवसाय चलाने की योजना है तो उस पर ध्यान दें। व्यवसाय तथा बाजार के विभिन्न पहलुओं का पता लगाएं। आधुनिक तकनीकों जैसे ऑनलाइन विपणन तथा विक्रय का उपयोग करने से आपका व्यावसायिक टर्न ओवर थोड़े से समय में पर्याप्त रूप में बढ़ जाएगा।
बागवानी के क्षेत्र में कॅरिअर बनाने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए प्रचुर अवसर हैं। इसलिए इस मिथक कि इस क्षेत्र में अवसर सीमित हैं, को दूर करके विकल्पों का पता लगाएं और अपनी पसंद पर गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ें। आपके प्रयास निश्चय सफल होंगे।
कॉलेज एवं पाठ्यक्रम
कॉलेज | पाठ्यक्रम | पात्रता | प्रवेश | वेबसाइट |
डॉ. वाईएसआर बागवानी विश्वविद्यालय | बी.एससी-बागवानी | भौतिकीय विज्ञान, जैविकीय/प्रकृति विज्ञान, कृषि विज्ञान में से दो विषयों के साथ इंटरमीडिएट या कृषि में व्यावसायिक पाठ्यक्रम | ईएएमसीईटी | www.aphu.edu.in |
फलविज्ञान, वनस्पति/सब्जी विज्ञान सहित बागवानी में एम.एससी. पुष्पोत्पादन तथा भूदृश्यांकन एवं मसाले और औषधीय तथा पौध फसल विशेषज्ञता के रूप में हो। | बीएससी-बागवानी | प्रेवश परीक्षा | ||
बागवानी कॉलेज एवं अनुसंधान संस्थान, तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय | बी.एससी-बागवानी | 10+2 | अर्हता परीक्षा में प्राप्त अंक | www.tnau.ac.in |
डॉ. यशवंत सिंह परमार बागवानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन | बीएससी (ऑनर्स) बागवानी | 10+2 | प्रवेश परीक्षा अर्हता परीक्षा | www.yspuniversity.ac.in |
एम.एससी-बागवानी के साथ जैवप्रौद्योगिकी कीट विज्ञान एवं मधुमक्खी पालन पुष्प उत्पादन तथा भूदृश्याकंन, फल प्रजनन एवं आनुवंशिक संसाधन, कवक विज्ञान और पादप रोगविज्ञान फल विज्ञान, फसलोत्तर प्रौद्योगिकी, वनस्पति/सब्जी विज्ञान में विशेषज्ञता के रूप में। | बीएससी-बागवानी/कृषि | अर्हता परीक्षा में प्राप्त अंक | ||
डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय | बी.एससी.-बागवानी | भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, गणित एवं अंग्रेजी के साथ 10+2 | www.padkv.ac.in | |
एम.एस.सी. (बागवानी) फलविज्ञान, वनस्पति/ सब्जी विज्ञान तथा फसलोत्तर प्रौद्योगिकी सहित | बी.एससी. बागवानी | प्रवेश परीक्षा |
Saturday, August 29, 2015
कंपनी सेक्रेटरी: कॉरपोरेट कंपनी की बैक बोन
कंपनी सेक्रेटरी के रूप में करियर हमेशा से आकर्षक रहा है। एक सीएस के तौर पर आप जहां भी रहेंगे, टॉप पर रहेंगे और आपकी सैलरी भी आसमान छू रही होगी। इस करियर पर एक नजर डाल रहे हैं अमित कुश :
किसी कंपनी में कंपनी सेक्रेटरी के रूप में काम करने के लिए आपको इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (आईसीएसआई) की तरफ से चलाया जाने वाला कोर्स करना जरूरी है। सिर्फ यही संस्थान भारत में कंपनी सेक्रेटरी तैयार करता है और उनके प्रफेशनल एथिक्स पर भी निगाह रखता है। यह संस्थान सीएस का कोर्स डिस्टेंस लर्निंग के जरिए कराता है यानी घर बैठे पढ़ाई का ऑप्शन आपको मनपसंद माहौल में पढ़ाई की सुविधा दे सकता है। आप इंटरमीडिएट या ग्रैजुएशन करने के बाद इस कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। कोर्स की 3 स्टेज होती हैं, फाउंडेशन, इंटरमीडिएट और फाइनल। इंटरमीडिएट के बाद रजिस्ट्रेशन कराने वाले स्टूडेंट्स को फाउंडेशन कोर्स से शुरुआत करनी होगी, जबकि ग्रैजुएशन के बाद सीएस करने के लिए इंटरमीडिएट और फाइनल स्टेज से गुजरना होगा। फाउंडेशन कोर्स में 5 पेपर, इंटरमीडिएट के 2 ग्रुप में 8 पेपर और फाइनल कोर्स के 3 ग्रुप में 9 पेपर होंगे। 3 स्टेज के अलावा 15 महीने की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करनी जरूरी है। यह ट्रेनिंग किसी कंपनी या इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस करने वाले कंपनी सेक्रेट्री के पास की जा सकती है।
योग्यता
इंटरमीडिएट क्लास में आर्ट, साइंस या कॉमर्स, किसी भी तरह के सब्जेक्ट्स से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स सीएस कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। इसी तरह, ग्रैजुएशन में भी फाइन आर्ट्स को छोड़कर बाकी सभी स्ट्रीम में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स सीएस के इंटरमीडिएट कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। लेकिन नॉन कॉमर्स बैकग्राउंड वाले स्टूडेंट्स को फाउंडेशन कोर्स के उन सब्जेक्ट्स की कोचिंग लेनी होगी, जिन्हें उन्होंने ग्रैजुएशन में नहीं पढ़ा है। सीएसफाइनल में सीधे दाखिला नहीं लिया जा सकता, इसके लिए पहले इंटरमीडिएट कोर्स पास करना होगा।
एडमिशन
सीएस में पूरे साल में कभी भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है, जो 3 साल के लिए वैलिड होता है। हालांकि कोर्स के एग्जाम साल में 2 बार जून और दिसंबर में होते हैं। फाउंडेशन कोर्स के एग्जाम आप दिसंबर में देना चाहते हैं, तो आपको उसी साल 31 मार्च तक रजिस्ट्रेशन कराना होता है, यानी इस साल यह मौका आपको नहीं मिलेगा। यह एग्जाम आप अब जून 2008 में दे सकते हैं, जिसके लिए आपको 30 सितंबर तक दाखिला लेना होगा। इसी तरह इंटरमीडिएट कोर्स के दिसंबर के एग्जाम के लिए 28 फरवरी तक रजिस्ट्रेशन कराना होता है। अब आप जून 2008 के एग्जाम के लिए 31 अगस्त तक रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। एडमिशन के फॉर्म इंस्टिट्यूट के दिल्ली स्थित मुख्यालय (आईसीएसआई हाउस, 22 इंस्टिट्यूशनल एरिया, लोदी रोड) या देशभर में मौजूद चैप्टर्स से लिए जा सकते हैं।
फीस
प्रॉस्पेक्टस फाउंडेशन कोर्स : 70 रुपये कैश में, 110 रुपये डाक/कूरियर से
प्रॉस्पेक्टस इंटरमीडिएट कोर्स : 100 रुपये कैश में, 150 रुपये डाक/कूरियर से
फाउंडेशन कोर्स फीस : 3000 रुपये
इंटरमीडिएट कोर्स फीस : 4900 रुपये (फाउंडेशन पास स्टूडेंट्स के लिए) 5250 रुपये (कॉमर्स स्टूडेंट्स के लिए), 5850 (नॉन कॉमर्स के लिए)
फाइनल कोर्स फीस : 4200 रुपये
अवसर
कंपनी सेक्रेट्री का कोर्स पास करने के बाद आप किसी कंपनी में कंपनी सेक्रेट्री की जॉब पा सकते हैं या फिर खुद की प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। दो करोड़ या उससे ज्यादा के पेड-अप शेयर कैपिटल वाली हर कंपनी के लिए कंपनी सेक्रेट्री को नियुक्त करना जरूरी होता है। स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हर कंपनी के लिए भी सीएस रखना जरूरी है। सीएस करने के बाद आप प्राइवेट कंपनीज के अलावा सरकारी कंपनियों या विभागों में भी नौकरी कर सकते हैं। अगर आप जॉब की बजाय खुद की प्रैक्टिस करना चाहते हैं, तो भी आपके लिए काफी मौके हैं। आईसीएसआई से 'सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस' लेने के बाद आप यह प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। दस लाख या ज्यादा, लेकिन दो करोड़ रुपए से कम कैपिटल वाली कंपनी के लिए इंडिपेंडेंट सीएस की सेवाएं लेनी जरूरी हैं। सीएस ही कंपनी को कंप्लायंस सटिर्फिकेट जारी करेगा। इसके अलावा, आप कॉलेजों में कॉमर्स या मैनेजमेंट के लेक्चरर के रूप में भी काम कर सकते हैं। साथ ही पीएचडी भी कर सकते हैं।
प्लेसमेंट सर्विस
आईसीएसआई के सेक्रेट्री और सीईओ एनके जैन बताते हैं कि इंस्टीट्यूट अपने मेंबर्स को प्लेसमेंट सर्विस भी उपलब्ध कराता है। इसके लिए मेंबर सीएस को इंस्टीट्यूट में रजिस्ट्रेशन कराना होता है। फिर उनका डाटा बैंक बनाकर एंप्लायर्स को उपलब्ध करा दिया जाता है। यह डाटा बैंक इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर भी रहता है। मेंबर्स अपना बायो डाटा सीधे भी वेबसाइट पर अपलोड कर सकते हैं।
कामकाज
एक कंपनी सेक्रेट्री को कंपनी लॉ, मैनेजमेंट, फाइनैंस और कॉरपोरेट गवर्नेंस की अच्छी-खासी जानकारी होती है। सीएस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, शेयर होल्डर्स और सरकारी व अन्य एजेंसियों के बीच लिंक का काम करता है। यह कंपनी को किसी मुश्किल से तो निकालता ही है, इसकी कॉरपोरेट ग्रोथ में भी खासा योगदान देता है। यह कंपनी के लीगल एक्सपर्ट, चीफ एडवाइजर, फाइनैंशल एडवाइजर, कॉरपोरेट प्लानर आदि कई रूपों में काम करता है।
सैलरी
कंपनी सेक्रेट्री किसी कॉरपोरेट कंपनी के मैनेजमेंट का अहम हिस्सा होता है। इसी से अंदाजा हो जाता है कि सीएस की सैलरी काफी आकर्षक होती है। एक कंपनी सेक्रेट्री को शुरुआत में ही औसतन 6 लाख रुपये सालाना का पैकेज मिल जाता है।
ऑन लाइन कोर्स
ऑन लाइन एजुकेशन के इस जमाने में इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेट्रीज ऑफ इंडिया भी हाईटेक हो रहा है। इसने कोर्स का सारा कंटेंट (स्टडी मटीरियल) इंटरनेट के माध्यम से दूर-दराज तक के स्टूडेंट्स तक पहुंचाने की तैयारी की है। अगले 2-3 महीने में दुनियाभर में कहीं भी बैठा स्टूडेंट इसका कोर्स मटीरियल इंटरनेट पर पढ़ सकेगा। न सिर्फ रीडिंग, बल्कि फैकल्टी से लाइव इंटरेक्शन की भी ऑन लाइन व्यवस्था रहेगी, जिससे कोई भी स्टूडेंट अपनी समस्याओं का निदान ओरल क्लासेज की तरह कर सकेगा। इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर (पब्लिक रिलेशंस एंड कारपोरेट कम्युनिकेशन) डॉ. अमिता आहुजा का कहना है कि सीएस का कोर्स केवल मेट्रो सिटीज तक ही न सिमटकर रह जाए, इसलिए ऑन लाइन एजुकेशन की भी व्यवस्था की जा रही है, जिससे इसका फायदा दूर-दराज के छोटे और मध्यम शहरों के युवा भी उठा सकें।
किसी कंपनी में कंपनी सेक्रेटरी के रूप में काम करने के लिए आपको इंस्टिट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज ऑफ इंडिया (आईसीएसआई) की तरफ से चलाया जाने वाला कोर्स करना जरूरी है। सिर्फ यही संस्थान भारत में कंपनी सेक्रेटरी तैयार करता है और उनके प्रफेशनल एथिक्स पर भी निगाह रखता है। यह संस्थान सीएस का कोर्स डिस्टेंस लर्निंग के जरिए कराता है यानी घर बैठे पढ़ाई का ऑप्शन आपको मनपसंद माहौल में पढ़ाई की सुविधा दे सकता है। आप इंटरमीडिएट या ग्रैजुएशन करने के बाद इस कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। कोर्स की 3 स्टेज होती हैं, फाउंडेशन, इंटरमीडिएट और फाइनल। इंटरमीडिएट के बाद रजिस्ट्रेशन कराने वाले स्टूडेंट्स को फाउंडेशन कोर्स से शुरुआत करनी होगी, जबकि ग्रैजुएशन के बाद सीएस करने के लिए इंटरमीडिएट और फाइनल स्टेज से गुजरना होगा। फाउंडेशन कोर्स में 5 पेपर, इंटरमीडिएट के 2 ग्रुप में 8 पेपर और फाइनल कोर्स के 3 ग्रुप में 9 पेपर होंगे। 3 स्टेज के अलावा 15 महीने की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग करनी जरूरी है। यह ट्रेनिंग किसी कंपनी या इंडिपेंडेंट प्रैक्टिस करने वाले कंपनी सेक्रेट्री के पास की जा सकती है।
योग्यता
इंटरमीडिएट क्लास में आर्ट, साइंस या कॉमर्स, किसी भी तरह के सब्जेक्ट्स से पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स सीएस कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। इसी तरह, ग्रैजुएशन में भी फाइन आर्ट्स को छोड़कर बाकी सभी स्ट्रीम में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स सीएस के इंटरमीडिएट कोर्स में रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। लेकिन नॉन कॉमर्स बैकग्राउंड वाले स्टूडेंट्स को फाउंडेशन कोर्स के उन सब्जेक्ट्स की कोचिंग लेनी होगी, जिन्हें उन्होंने ग्रैजुएशन में नहीं पढ़ा है। सीएसफाइनल में सीधे दाखिला नहीं लिया जा सकता, इसके लिए पहले इंटरमीडिएट कोर्स पास करना होगा।
एडमिशन
सीएस में पूरे साल में कभी भी रजिस्ट्रेशन कराया जा सकता है, जो 3 साल के लिए वैलिड होता है। हालांकि कोर्स के एग्जाम साल में 2 बार जून और दिसंबर में होते हैं। फाउंडेशन कोर्स के एग्जाम आप दिसंबर में देना चाहते हैं, तो आपको उसी साल 31 मार्च तक रजिस्ट्रेशन कराना होता है, यानी इस साल यह मौका आपको नहीं मिलेगा। यह एग्जाम आप अब जून 2008 में दे सकते हैं, जिसके लिए आपको 30 सितंबर तक दाखिला लेना होगा। इसी तरह इंटरमीडिएट कोर्स के दिसंबर के एग्जाम के लिए 28 फरवरी तक रजिस्ट्रेशन कराना होता है। अब आप जून 2008 के एग्जाम के लिए 31 अगस्त तक रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। एडमिशन के फॉर्म इंस्टिट्यूट के दिल्ली स्थित मुख्यालय (आईसीएसआई हाउस, 22 इंस्टिट्यूशनल एरिया, लोदी रोड) या देशभर में मौजूद चैप्टर्स से लिए जा सकते हैं।
फीस
प्रॉस्पेक्टस फाउंडेशन कोर्स : 70 रुपये कैश में, 110 रुपये डाक/कूरियर से
प्रॉस्पेक्टस इंटरमीडिएट कोर्स : 100 रुपये कैश में, 150 रुपये डाक/कूरियर से
फाउंडेशन कोर्स फीस : 3000 रुपये
इंटरमीडिएट कोर्स फीस : 4900 रुपये (फाउंडेशन पास स्टूडेंट्स के लिए) 5250 रुपये (कॉमर्स स्टूडेंट्स के लिए), 5850 (नॉन कॉमर्स के लिए)
फाइनल कोर्स फीस : 4200 रुपये
अवसर
कंपनी सेक्रेट्री का कोर्स पास करने के बाद आप किसी कंपनी में कंपनी सेक्रेट्री की जॉब पा सकते हैं या फिर खुद की प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। दो करोड़ या उससे ज्यादा के पेड-अप शेयर कैपिटल वाली हर कंपनी के लिए कंपनी सेक्रेट्री को नियुक्त करना जरूरी होता है। स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड हर कंपनी के लिए भी सीएस रखना जरूरी है। सीएस करने के बाद आप प्राइवेट कंपनीज के अलावा सरकारी कंपनियों या विभागों में भी नौकरी कर सकते हैं। अगर आप जॉब की बजाय खुद की प्रैक्टिस करना चाहते हैं, तो भी आपके लिए काफी मौके हैं। आईसीएसआई से 'सर्टिफिकेट ऑफ प्रैक्टिस' लेने के बाद आप यह प्रैक्टिस शुरू कर सकते हैं। दस लाख या ज्यादा, लेकिन दो करोड़ रुपए से कम कैपिटल वाली कंपनी के लिए इंडिपेंडेंट सीएस की सेवाएं लेनी जरूरी हैं। सीएस ही कंपनी को कंप्लायंस सटिर्फिकेट जारी करेगा। इसके अलावा, आप कॉलेजों में कॉमर्स या मैनेजमेंट के लेक्चरर के रूप में भी काम कर सकते हैं। साथ ही पीएचडी भी कर सकते हैं।
प्लेसमेंट सर्विस
आईसीएसआई के सेक्रेट्री और सीईओ एनके जैन बताते हैं कि इंस्टीट्यूट अपने मेंबर्स को प्लेसमेंट सर्विस भी उपलब्ध कराता है। इसके लिए मेंबर सीएस को इंस्टीट्यूट में रजिस्ट्रेशन कराना होता है। फिर उनका डाटा बैंक बनाकर एंप्लायर्स को उपलब्ध करा दिया जाता है। यह डाटा बैंक इंस्टीट्यूट की वेबसाइट पर भी रहता है। मेंबर्स अपना बायो डाटा सीधे भी वेबसाइट पर अपलोड कर सकते हैं।
कामकाज
एक कंपनी सेक्रेट्री को कंपनी लॉ, मैनेजमेंट, फाइनैंस और कॉरपोरेट गवर्नेंस की अच्छी-खासी जानकारी होती है। सीएस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, शेयर होल्डर्स और सरकारी व अन्य एजेंसियों के बीच लिंक का काम करता है। यह कंपनी को किसी मुश्किल से तो निकालता ही है, इसकी कॉरपोरेट ग्रोथ में भी खासा योगदान देता है। यह कंपनी के लीगल एक्सपर्ट, चीफ एडवाइजर, फाइनैंशल एडवाइजर, कॉरपोरेट प्लानर आदि कई रूपों में काम करता है।
सैलरी
कंपनी सेक्रेट्री किसी कॉरपोरेट कंपनी के मैनेजमेंट का अहम हिस्सा होता है। इसी से अंदाजा हो जाता है कि सीएस की सैलरी काफी आकर्षक होती है। एक कंपनी सेक्रेट्री को शुरुआत में ही औसतन 6 लाख रुपये सालाना का पैकेज मिल जाता है।
ऑन लाइन कोर्स
ऑन लाइन एजुकेशन के इस जमाने में इंस्टीट्यूट ऑफ कंपनी सेक्रेट्रीज ऑफ इंडिया भी हाईटेक हो रहा है। इसने कोर्स का सारा कंटेंट (स्टडी मटीरियल) इंटरनेट के माध्यम से दूर-दराज तक के स्टूडेंट्स तक पहुंचाने की तैयारी की है। अगले 2-3 महीने में दुनियाभर में कहीं भी बैठा स्टूडेंट इसका कोर्स मटीरियल इंटरनेट पर पढ़ सकेगा। न सिर्फ रीडिंग, बल्कि फैकल्टी से लाइव इंटरेक्शन की भी ऑन लाइन व्यवस्था रहेगी, जिससे कोई भी स्टूडेंट अपनी समस्याओं का निदान ओरल क्लासेज की तरह कर सकेगा। इंस्टीट्यूट की डायरेक्टर (पब्लिक रिलेशंस एंड कारपोरेट कम्युनिकेशन) डॉ. अमिता आहुजा का कहना है कि सीएस का कोर्स केवल मेट्रो सिटीज तक ही न सिमटकर रह जाए, इसलिए ऑन लाइन एजुकेशन की भी व्यवस्था की जा रही है, जिससे इसका फायदा दूर-दराज के छोटे और मध्यम शहरों के युवा भी उठा सकें।
Friday, August 28, 2015
कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग चुनौती है तो पैसे भी हैं
दुनिया में छाई मंदी से बाजार
को उबारने के लिए वित्त विशेषज्ञ उलझे हुए हैं। बैंक, मैन्युफैक्चरिंग और
सर्विस सेक्टर की कंपनियां और दुनिया भर की सरकारें मंदी की चुनौतियों से
निपटने में जी-जान से लगी हुई हैं। ऐसी स्थिति में कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट
अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स की भूमिका बढ गई है। दरअसल, ये
प्रोफेशनल्स मैनेजमेंट की चुनौतियों का सामना करने और ऑपरेशंस को
कॉस्ट इफेक्टिव बनाने में माहिर होते हैं। ये इन्वेस्टमेंट प्लानिंग,
प्रॉफिट प्लानिंग, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट और मैनेजरियल डिसीजंस लेने जैसे
महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
इंग्लैंड, अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहां कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट
अकाउंटिंग प्रोफेशनल्स को फाइनैंशियल रिपोर्टिग, मैनेजमें ट और
स्ट्रेटेजी के स्तर पर ही काम करना होता है, वहीं भारत में इन्हें
रेग्युलेटरी संबंधित कार्य भी करने होते हैं। इस प्रकार भारत में इनकी
भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाती है। यही वजह है कि भारत में यह कोर्स
अन्य देशों की अपेक्षा अधिक पॉपुलर है और हर युवा इस कोर्स को करना चाहता
है। इस क्षेत्र के बढते क्रेज और संबंधित कोर्सो पर द इंस्टीटयूट ऑफ
कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीडब्ल्यूएआई) के प्रेसिडेंट
कुणाल बनर्जी से जोश के लिए एक्सक्लूसिव बातचीत की गई। क्या कहा श्री
बनर्जी ने, आइए उन्हीं से
जानते हैं..
कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग प्रोफेशनल बनने के लिए कौन-सा कोर्स करना होगा?
कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग प्रोफेशनल बनने के लिए भारत के संसदीय कानून द्वारा स्थापित द इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया द्वारा संचालित कोर्स करना होगा। इस कोर्स के तीन चरण होते हैं- फाउंडेशन कोर्स, इंटरमीडिएट कोर्स और फाइनल कोर्स।
फाउंडेशन कोर्स करने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से बारहवीं पास व्यक्ति इस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसे छात्र जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा दी है, वे भी इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। हां, आवेदन फॉर्म भरते समय अभ्यर्थी की आयु 17 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
फाउंडेशन कोर्स में प्रवेश की प्रक्रिया क्या है?
इस कोर्स में वर्ष में कभी भी एडमिशन लिया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि फाउंडेशन कोर्स में प्रवेश लेने के कम से कम छह माह बाद ही आप परीक्षा में बैठ सकते हैं। फाउंडेशन कोर्स की परीक्षाएं जून और दिसंबर दो सत्रों में होती हैं। इसमें प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 18 दिसंबर और 26 जून है। यदि आप 18 दिसंबर तक एडमिशन लेते हैं, तो छह माह बाद अगले साल जून सत्र में आयोजित होने वाली परीक्षा में भाग ले सकते हैं। जबकि 26 जून तक एडमिशन लेने वाले व्यक्तियों को उस साल दिसंबर में होने वाली परीक्षा में भाग लेने का मौका मिलता है। यानी आप जिस सत्र में परीक्षा देना चाहते हैं, उसके कम से कम छह माह पूर्व आपको फाउंडेशन कोर्स में एडमिशन लेना होगा।
फाउंडेशन कोर्स के पाठ्यक्रम पर प्रकाश डालें।
फाउंडेशन कोर्स में पांच प्रश्नपत्र होते हैं, जिसके तहत निम्नलिखित विषय पढाए जाते हैं :
प्रथम प्रश्नपत्र : ऑर्गनाइजेशन ऐंड मैनेजमेंट फंडामेंटल्स
द्वितीय प्रश्नपत्र : अकाउंटिंग
तृतीय प्रश्नपत्र : इकोनॉमिक्स ऐंड बिजनेस फंडामेंटल्स
चतुर्थ प्रश्नपत्र : बिजनेस मैथमेटिक्स ऐंड स्टैटिस्टिक्स फंडामेंटल्स
जो स्टूडेंट इंटरमीडिएट कोर्स में एडमिशन लेना चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक योग्यता क्या है?
इस कोर्स में ऐसे स्टूडेंट प्रवेश ले सकते हैं, जिन्होंने फाउंडेशन कोर्स कर रखा हो या ऐसे व्यक्ति जिन्होंने म्यूजिक/डांस, फोटोग्राफी, पेंटिंग आदि विषयों को छोडकर किसी भी विषय में किसी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली हो। इंटरमीडिएट कोर्स में एडमिशन के ि लए उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए
इंटरमीडिएट कोर्स में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के बारे में बताएं।
इसका रजिस्ट्रेशन फॉर्म रीजनल काउंसिल ऑफिस से प्राप्त किया जा सकता है। आप जिस टर्म की परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं, उससे कम से कम छह माह पूर्व रजिस्ट्रेशन करा लें। एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद यह पांच साल तक वैध होता है। रजिस्ट्रेशन की फीस पांच सौ रुपये है।
इसमें प्रॉविजनल रजिस्ट्रेशन की सुविधा भी है?
जी हां, ऐसे अभ्यर्थी, जो परीक्षा के परिणाम का इंतजार कर रहे हों, उनके लिए प्रॉविजनल रजिस्ट्रेशन की सुविधा है। इसके अंतर्गत एडमिशन के छह माह के भीतर अपना रिजल्ट जमा करना होता है।
इंटरमीडिएट प्रोग्राम के सिलेबस के बारे में बताएं।
इंटरमीडिएट प्रोग्राम का सिलेबस जनवरी 2008 से और अपडेट हो गया है। वर्तमान सिलेबस इस प्रकार है :
गु्रप-1
पेपर-5 फाइनैंशियल अकाउंटिंग
पेपर-6 कॉमर्शियल ऐंड इंडस्ट्रियल लॉ ऐंड ऑडिटिंग
पेपर-7 अप्लॉयड डायरेक्ट टैक्सेशन
गु्रप-2
पेपर-8 कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग
पेपर-9 ऑपरेशन मैनेजमेंट ऐंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम
पेपर-10 अप्लॉयड इनडाइरेक्ट टैक्सेशन
आईसीडब्ल्यूएआई के फाइनल कोर्स में एडमिशन का प्रॉसेस क्या है?
इंटरमीडिएट परीक्षा को पास करने वाले छात्र ही इसमें प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। एडमिशन फॉर्म के साथ इंटरमीडिएट कोर्स की मार्कशीट लगानी होती है।
फाइनल कोर्स में एडमिशन की अंतिम तिथि के बारे में बताएं।
जून सत्र में परीक्षा देने के लिए 18 दिसंबर तक और दिसंबर में होने वाली परीक्षा के लिए 26 जून तक एडमिशन लेना अनिवार्य होता है। इस प्रकार फाइनल कोर्स में भी परीक्षा से कम से कम छह माह पहले प्रवेश लेना आवश्यक है।
फाइनल कोर्स का सिलेबस क्या है?
इसमें कुल आठ पेपर होते हैं। इसमें निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है।
पेपर-11 कैपिटल मार्केट एनालिसिस ऐंड कॉर्पोरेट लॉ
पेपर-12 फाइनैंशियल मैनेजमेंट ऐंड इंटरनेशनल फाइनैंस
पेपर-13 मैनेजमेंट अकाउंटिंग स्टै्रटेजिक मैनेजमें ट
पेपर-14 इनडायरेक्ट ऐंड डायरेक्ट टैक्स मैनेजमेंट
पेपर-15 मैनेजमेंट अकाउंटिंग एंटरप्राइज परफॉर्मे स मैनेजमेंट
पेपर-16 एडवांस फाइनैंशियल अकाउंटिंग ऐंड रिपो र्टिग
पेपर-17 कॉस्ट ऑडिट ऐंड ऑपरेशनल ऑडिट
पेपर-18 बिजनेस वैल्युएशन मैनेजमेंट
आईसीडब्ल्यूएआई छात्रों को कोचिंग तो प्रदान करता ही होगा?
जी हां, संबंधित कोर्स कर रहे छात्रों को परीक्षा में बैठने के लिए इसमें शामिल होना अनिवार्य है। कोचिंग का उद्देश्य छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार करना और उनमें मैनेजमेंट अकाउंटिंग की प्रोफेशनल स्किल डेवलॅप करना है। कोचिंग दो प्रकार की होती है :
पोस्टल कोचिंग
ओरल कोचिंग
कोचिंग करने वाले छात्रों को संस्थान द्वारा स्टडी मैटीरियल प्रोवाइड किया जाता है। इसके अतिरिक्त छात्रों को विषय से संबंधित अन्य पुस्तकों की जानकारी भी दी जाती है।
क्या कोचिंग के लिए फीस कितनी ली जाती है?
पोस्टल और ओरल कोचिंग की फीस फाउंडेशन कोर्स, इंटरमीडिएट कोर्स और फाइनल कोर्स के छात्रों के लिए अलग-अलग होती है, जो इस प्रकार है :
पोस्टल कोचिंग
फाउंडेशन कोर्स (3500 रुपये)
इंटरमीडिएट कोर्स (7,000 रुपये)
फाइनल कोर्स (9,000 रुपये)
ओरल कोचिंग
फाउंडेशन कोर्स (3,500 रुपये)
इंटरमीडिएट कोर्स (11,000 रुपये)
फाइनल कोर्स (14,000 रुपये)
इसके अलावा इंटरमीडिएट कोर्स कर रहे छात्रों को 100 घंटे की कंप्यूटर ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसकी फीस छह हजार रुपये है।
पोस्टल कोचिंग की प्रक्रिया बताएं।
पोस्टल कोचिंग में छात्रों को टेस्ट पेपर हल करके उसकी आंसर शीट भेजनी होती है। अगर कोई स्टूडेंट किसी एक टेस्ट पेपर की भी आंसर शीट भेजने में असफल होता है, तो रीजनल काउंसिल इस बारे में उसका जवाब मांग सकती है। यदि उसका उत्तर संतोषजनक नहीं पाया जाता है या वह अगले दो महीने के अंदर अपने अध्ययन को नियमित नहीं करता है, तो उसका नामांकन रद्द किया जा सकता है। पोस्टल कोचिंग कर रहे ऐसे छात्र, जो जून माह की परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उन्हें 28 फरवरी तक अपनी आंसर शीट जमा करनी होती है। इसके अतिरिक्त, जो छात्र दिसंबर की परीक्षा में बैठने के इच्छुक हैं, वे 31 अगस्त तक अपनी आंसर शीट जमा कर सकते हैं।
..और ओरल कोचिंग की प्रक्रिया?
जो छात्र ओरल कोचिंग करना चाहते हैं, वे रीजनल कौंसिल या किसी मान्यता प्राप्त ओरल कोचिंग सेंटर से कोचिंग ले सकते हैं। ओरल कोचिंग की अवधि चार माह या कम से कम 72 घंटे होती है। ओरल कोचिंग करने वाले व्यक्तियों को पोस्टल कोचिंग की आवश्यकता नहीं होती। ओरल कोचिंग टेस्ट पास करने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत उपस्थिति आवश्यक है।
कोचिंग पूरी करने वाले छात्रों को कोई प्रमाणपत्र भी तो देते ही होंगे?
पोस्टल/ओरल कोचिंग करने के बाद कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट दिया जाता है। यह सर्टिफिकेट तीन साल तक मान्य होता है। यह सर्टिफिकेट बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि फाउंडेशन कोर्स की परीक्षा में भाग लेने के लिए कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट होना आवश्यक है। जबकि इंटरमीडिएट और फाइनल एग्जामिनेशन में भाग लेने के लिए काउंसिल द्वारा निर्धारित ट्रेनिंग और वैधानिक रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट भी होना चाहिए।
कॉस्ट ऐंड वर्क्स मैनेजमेंट अकाउंटेंट्स के तौर पर करियर की क्या संभावनाएं हैं?
यह कोर्स करने के बाद मैन्युफैक्चरिंग कंपनी या सर्विस सेक्टर में काम किया जा सकता है। इस कोर्स को करने वाले अनेक व्यक्ति चेयरमैन सीईओ/सीएफओ, मैनेजिंग डायरेक् टर, फाइनैंस डायरेक्टर,
फाइनैंशियल कंट्रोलर, चीफ अकाउंटेंट, कॉस्ट कंट्रोलर, मार्केटिंग मैनेजर
आदि जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त आप स्वतंत्र
रूप से प्रैक्टिस कर सकते हैं, एकेडमिक फील्ड में जा सकते हैं या भारत
सरकार की इंडियन कॉस्ट अकाउंटिंग सर्विस ज्वाइन करके क्लास वन ऑफिसर भी बन
सकते हैं। इस कोर्स को करने के बाद निम्नलिखित क्षेत्रों में काम किया जा
सकता है :
कॉस्ट अकाउंटिंग, फाइनैंशियल मैंनेजमे ंट
फाइनैंशियल/बिजनेस एनालिस्ट
ऑडिटिंग/इंटरनल ऑडिटिंग/ स्पेशल ऑडिट्स
डायरेक्ट ऐंड इनडाइरेक्ट टैक्सेशन
सिस्टम एनालिसिस ऐंड सिस्टम्स मैनेजमें ट
ईआरपी इंप्लिमेंटेशन में फंक्शनल कंसल्टेंसी
बीपीओ हाउसेज में प्रॉसेस एनालिसिस
कॉलेज/मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स में एकेडमिक करियर
बिजनेस इंटेलिजेंस सिस्टम का प्रवर्तन
क्या कोर्स पूरा करने के बाद छात्रों का कैम्पस सिलेक्शन भी होता है? पैकेज कितना मिलता है?
कोर्स कम्पलीट करने वाले अधिकतर छात्र कैम्पस सिलेक्शन के जरिए जॉब प्राप्त करते हैं। उनका पैकेज भी काफी अच्छा होता है। इस बार हमारे छात्रों को साढे चार लाख रुपये से लेकर करीब 15 लाख रुपये प्रति वर्ष तक का पैकेज मिला है। नौकरी की बजाय जो स्वतंत्र पै्रक्टिस करना चाहते हैं, उनके अनुभव और प्रैक्टिस पर उनकी आय डिपेंड करती है।
कोर्स करने वालों के लिए क्या स्कोप है?
ग्लोबलाइजेशन और बढते औद्योगीकरण को देखते हुए अगले तीन साल में दस लाख से ज्यादा कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स की आवश्यकता होगी। ये आंकडे पूरी कहानी खुद ही कह देते हैं।
आईसीडब्ल्यूएआई द्वारा संचालित कोर्सो के बारे में और जानकारी के लिए कहां संपर्क किया जा सकता है?
आईसीडब्ल्यूएआई का हेडक्वार्टर वैसे तो कोलकाता में है, लेकिन दिल्ली स्थित मुख्य कार्यालय से जानकारी ली जा सकती है। इसके अलावा मुंबई, चेन्नई, नई दिल्ली व कोलकाता में इसके रीजनल काउंसिल भी हैं। दिल्ली व कोलकाता कार्यालयों के पते इस प्रकार हैं : आईसीडब्ल्यूएआई 3, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड नई दिल्ली-110003
फोन : (011) 2241-8645/ 2242- 2156
वेबसाइट : www.nirc-icwai.org
आईसीडब्ल्यूएआई 12 सदर स्ट्रीट, कोलकाता-700016
वेबसाइट : www.myicwai .com
फोन : (033)2252-1031/1034/ 1602/1492
आईसीडब्ल्यूएआई में प्रवेश की महत्वपूर्ण तिथियां
आईसीडब्ल्यूएआई के विभिन्न कोर्सेज में प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 18 दिसंबर और 26 जून है। यदि आप 18 दिसंबर तक एडमिशन लेते हैं, तो छह माह बाद यानी अगले साल जून सत्र में आयोजित होने वाली परीक्षा में भाग ले सकते हैं। वैसे 26 जून तक एडमिशन लेने वाले व्यक्तियों को उसी साल दिसंबर में होने वाली परीक्षा में भाग लेने का मौका मिलता है।
कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग प्रोफेशनल बनने के लिए कौन-सा कोर्स करना होगा?
कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग प्रोफेशनल बनने के लिए भारत के संसदीय कानून द्वारा स्थापित द इंस्टीट्यूट ऑफ कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया द्वारा संचालित कोर्स करना होगा। इस कोर्स के तीन चरण होते हैं- फाउंडेशन कोर्स, इंटरमीडिएट कोर्स और फाइनल कोर्स।
फाउंडेशन कोर्स करने के लिए क्या योग्यता होनी चाहिए?
किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से बारहवीं पास व्यक्ति इस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं। ऐसे छात्र जिन्होंने बारहवीं की परीक्षा दी है, वे भी इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। हां, आवेदन फॉर्म भरते समय अभ्यर्थी की आयु 17 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए।
फाउंडेशन कोर्स में प्रवेश की प्रक्रिया क्या है?
इस कोर्स में वर्ष में कभी भी एडमिशन लिया जा सकता है, लेकिन ध्यान रहे कि फाउंडेशन कोर्स में प्रवेश लेने के कम से कम छह माह बाद ही आप परीक्षा में बैठ सकते हैं। फाउंडेशन कोर्स की परीक्षाएं जून और दिसंबर दो सत्रों में होती हैं। इसमें प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 18 दिसंबर और 26 जून है। यदि आप 18 दिसंबर तक एडमिशन लेते हैं, तो छह माह बाद अगले साल जून सत्र में आयोजित होने वाली परीक्षा में भाग ले सकते हैं। जबकि 26 जून तक एडमिशन लेने वाले व्यक्तियों को उस साल दिसंबर में होने वाली परीक्षा में भाग लेने का मौका मिलता है। यानी आप जिस सत्र में परीक्षा देना चाहते हैं, उसके कम से कम छह माह पूर्व आपको फाउंडेशन कोर्स में एडमिशन लेना होगा।
फाउंडेशन कोर्स के पाठ्यक्रम पर प्रकाश डालें।
फाउंडेशन कोर्स में पांच प्रश्नपत्र होते हैं, जिसके तहत निम्नलिखित विषय पढाए जाते हैं :
प्रथम प्रश्नपत्र : ऑर्गनाइजेशन ऐंड मैनेजमेंट फंडामेंटल्स
द्वितीय प्रश्नपत्र : अकाउंटिंग
तृतीय प्रश्नपत्र : इकोनॉमिक्स ऐंड बिजनेस फंडामेंटल्स
चतुर्थ प्रश्नपत्र : बिजनेस मैथमेटिक्स ऐंड स्टैटिस्टिक्स फंडामेंटल्स
जो स्टूडेंट इंटरमीडिएट कोर्स में एडमिशन लेना चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक योग्यता क्या है?
इस कोर्स में ऐसे स्टूडेंट प्रवेश ले सकते हैं, जिन्होंने फाउंडेशन कोर्स कर रखा हो या ऐसे व्यक्ति जिन्होंने म्यूजिक/डांस, फोटोग्राफी, पेंटिंग आदि विषयों को छोडकर किसी भी विषय में किसी मान्यताप्राप्त विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री ली हो। इंटरमीडिएट कोर्स में एडमिशन के ि लए उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक होनी चाहिए
इंटरमीडिएट कोर्स में रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के बारे में बताएं।
इसका रजिस्ट्रेशन फॉर्म रीजनल काउंसिल ऑफिस से प्राप्त किया जा सकता है। आप जिस टर्म की परीक्षा में शामिल होना चाहते हैं, उससे कम से कम छह माह पूर्व रजिस्ट्रेशन करा लें। एक बार रजिस्ट्रेशन कराने के बाद यह पांच साल तक वैध होता है। रजिस्ट्रेशन की फीस पांच सौ रुपये है।
इसमें प्रॉविजनल रजिस्ट्रेशन की सुविधा भी है?
जी हां, ऐसे अभ्यर्थी, जो परीक्षा के परिणाम का इंतजार कर रहे हों, उनके लिए प्रॉविजनल रजिस्ट्रेशन की सुविधा है। इसके अंतर्गत एडमिशन के छह माह के भीतर अपना रिजल्ट जमा करना होता है।
इंटरमीडिएट प्रोग्राम के सिलेबस के बारे में बताएं।
इंटरमीडिएट प्रोग्राम का सिलेबस जनवरी 2008 से और अपडेट हो गया है। वर्तमान सिलेबस इस प्रकार है :
गु्रप-1
पेपर-5 फाइनैंशियल अकाउंटिंग
पेपर-6 कॉमर्शियल ऐंड इंडस्ट्रियल लॉ ऐंड ऑडिटिंग
पेपर-7 अप्लॉयड डायरेक्ट टैक्सेशन
गु्रप-2
पेपर-8 कॉस्ट ऐंड मैनेजमेंट अकाउंटिंग
पेपर-9 ऑपरेशन मैनेजमेंट ऐंड इन्फॉर्मेशन सिस्टम
पेपर-10 अप्लॉयड इनडाइरेक्ट टैक्सेशन
आईसीडब्ल्यूएआई के फाइनल कोर्स में एडमिशन का प्रॉसेस क्या है?
इंटरमीडिएट परीक्षा को पास करने वाले छात्र ही इसमें प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं। एडमिशन फॉर्म के साथ इंटरमीडिएट कोर्स की मार्कशीट लगानी होती है।
फाइनल कोर्स में एडमिशन की अंतिम तिथि के बारे में बताएं।
जून सत्र में परीक्षा देने के लिए 18 दिसंबर तक और दिसंबर में होने वाली परीक्षा के लिए 26 जून तक एडमिशन लेना अनिवार्य होता है। इस प्रकार फाइनल कोर्स में भी परीक्षा से कम से कम छह माह पहले प्रवेश लेना आवश्यक है।
फाइनल कोर्स का सिलेबस क्या है?
इसमें कुल आठ पेपर होते हैं। इसमें निम्नलिखित विषयों का अध्ययन किया जाता है।
पेपर-11 कैपिटल मार्केट एनालिसिस ऐंड कॉर्पोरेट लॉ
पेपर-12 फाइनैंशियल मैनेजमेंट ऐंड इंटरनेशनल फाइनैंस
पेपर-13 मैनेजमेंट अकाउंटिंग स्टै्रटेजिक मैनेजमें
पेपर-14 इनडायरेक्ट ऐंड डायरेक्ट टैक्स मैनेजमेंट
पेपर-15 मैनेजमेंट अकाउंटिंग एंटरप्राइज परफॉर्मे
पेपर-16 एडवांस फाइनैंशियल अकाउंटिंग ऐंड रिपो
पेपर-17 कॉस्ट ऑडिट ऐंड ऑपरेशनल ऑडिट
पेपर-18 बिजनेस वैल्युएशन मैनेजमेंट
आईसीडब्ल्यूएआई छात्रों को कोचिंग तो प्रदान करता ही होगा?
जी हां, संबंधित कोर्स कर रहे छात्रों को परीक्षा में बैठने के लिए इसमें शामिल होना अनिवार्य है। कोचिंग का उद्देश्य छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार करना और उनमें मैनेजमेंट अकाउंटिंग की प्रोफेशनल स्किल डेवलॅप करना है। कोचिंग दो प्रकार की होती है :
पोस्टल कोचिंग
ओरल कोचिंग
कोचिंग करने वाले छात्रों को संस्थान द्वारा स्टडी मैटीरियल प्रोवाइड किया जाता है। इसके अतिरिक्त छात्रों को विषय से संबंधित अन्य पुस्तकों की जानकारी भी दी जाती है।
क्या कोचिंग के लिए फीस कितनी ली जाती है?
पोस्टल और ओरल कोचिंग की फीस फाउंडेशन कोर्स, इंटरमीडिएट कोर्स और फाइनल कोर्स के छात्रों के लिए अलग-अलग होती है, जो इस प्रकार है :
पोस्टल कोचिंग
फाउंडेशन कोर्स (3500 रुपये)
इंटरमीडिएट कोर्स (7,000 रुपये)
फाइनल कोर्स (9,000 रुपये)
ओरल कोचिंग
फाउंडेशन कोर्स (3,500 रुपये)
इंटरमीडिएट कोर्स (11,000 रुपये)
फाइनल कोर्स (14,000 रुपये)
इसके अलावा इंटरमीडिएट कोर्स कर रहे छात्रों को 100 घंटे की कंप्यूटर ट्रेनिंग भी दी जाती है। इसकी फीस छह हजार रुपये है।
पोस्टल कोचिंग की प्रक्रिया बताएं।
पोस्टल कोचिंग में छात्रों को टेस्ट पेपर हल करके उसकी आंसर शीट भेजनी होती है। अगर कोई स्टूडेंट किसी एक टेस्ट पेपर की भी आंसर शीट भेजने में असफल होता है, तो रीजनल काउंसिल इस बारे में उसका जवाब मांग सकती है। यदि उसका उत्तर संतोषजनक नहीं पाया जाता है या वह अगले दो महीने के अंदर अपने अध्ययन को नियमित नहीं करता है, तो उसका नामांकन रद्द किया जा सकता है। पोस्टल कोचिंग कर रहे ऐसे छात्र, जो जून माह की परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उन्हें 28 फरवरी तक अपनी आंसर शीट जमा करनी होती है। इसके अतिरिक्त, जो छात्र दिसंबर की परीक्षा में बैठने के इच्छुक हैं, वे 31 अगस्त तक अपनी आंसर शीट जमा कर सकते हैं।
..और ओरल कोचिंग की प्रक्रिया?
जो छात्र ओरल कोचिंग करना चाहते हैं, वे रीजनल कौंसिल या किसी मान्यता प्राप्त ओरल कोचिंग सेंटर से कोचिंग ले सकते हैं। ओरल कोचिंग की अवधि चार माह या कम से कम 72 घंटे होती है। ओरल कोचिंग करने वाले व्यक्तियों को पोस्टल कोचिंग की आवश्यकता नहीं होती। ओरल कोचिंग टेस्ट पास करने के लिए कम से कम 70 प्रतिशत उपस्थिति आवश्यक है।
कोचिंग पूरी करने वाले छात्रों को कोई प्रमाणपत्र भी तो देते ही होंगे?
पोस्टल/ओरल कोचिंग करने के बाद कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट दिया जाता है। यह सर्टिफिकेट तीन साल तक मान्य होता है। यह सर्टिफिकेट बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि फाउंडेशन कोर्स की परीक्षा में भाग लेने के लिए कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट होना आवश्यक है। जबकि इंटरमीडिएट और फाइनल एग्जामिनेशन में भाग लेने के लिए काउंसिल द्वारा निर्धारित ट्रेनिंग और वैधानिक रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ कोचिंग क्लियरेंस सर्टिफिकेट भी होना चाहिए।
कॉस्ट ऐंड वर्क्स मैनेजमेंट अकाउंटेंट्स के तौर पर करियर की क्या संभावनाएं हैं?
यह कोर्स करने के बाद मैन्युफैक्चरिंग कंपनी या सर्विस सेक्टर में काम किया जा सकता है। इस कोर्स को करने वाले अनेक व्यक्ति चेयरमैन सीईओ/सीएफओ, मैनेजिंग डायरेक्
कॉस्ट अकाउंटिंग, फाइनैंशियल मैंनेजमे
फाइनैंशियल/बिजनेस एनालिस्ट
ऑडिटिंग/इंटरनल ऑडिटिंग/ स्पेशल ऑडिट्स
डायरेक्ट ऐंड इनडाइरेक्ट टैक्सेशन
सिस्टम एनालिसिस ऐंड सिस्टम्स मैनेजमें
ईआरपी इंप्लिमेंटेशन में फंक्शनल कंसल्टेंसी
बीपीओ हाउसेज में प्रॉसेस एनालिसिस
कॉलेज/मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स में एकेडमिक करियर
बिजनेस इंटेलिजेंस सिस्टम का प्रवर्तन
क्या कोर्स पूरा करने के बाद छात्रों का कैम्पस सिलेक्शन भी होता है? पैकेज कितना मिलता है?
कोर्स कम्पलीट करने वाले अधिकतर छात्र कैम्पस सिलेक्शन के जरिए जॉब प्राप्त करते हैं। उनका पैकेज भी काफी अच्छा होता है। इस बार हमारे छात्रों को साढे चार लाख रुपये से लेकर करीब 15 लाख रुपये प्रति वर्ष तक का पैकेज मिला है। नौकरी की बजाय जो स्वतंत्र पै्रक्टिस करना चाहते हैं, उनके अनुभव और प्रैक्टिस पर उनकी आय डिपेंड करती है।
कोर्स करने वालों के लिए क्या स्कोप है?
ग्लोबलाइजेशन और बढते औद्योगीकरण को देखते हुए अगले तीन साल में दस लाख से ज्यादा कॉस्ट ऐंड वर्क्स अकाउंटेंट्स की आवश्यकता होगी। ये आंकडे पूरी कहानी खुद ही कह देते हैं।
आईसीडब्ल्यूएआई द्वारा संचालित कोर्सो के बारे में और जानकारी के लिए कहां संपर्क किया जा सकता है?
आईसीडब्ल्यूएआई का हेडक्वार्टर वैसे तो कोलकाता में है, लेकिन दिल्ली स्थित मुख्य कार्यालय से जानकारी ली जा सकती है। इसके अलावा मुंबई, चेन्नई, नई दिल्ली व कोलकाता में इसके रीजनल काउंसिल भी हैं। दिल्ली व कोलकाता कार्यालयों के पते इस प्रकार हैं : आईसीडब्ल्यूएआई 3, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड नई दिल्ली-110003
फोन : (011) 2241-8645/ 2242- 2156
वेबसाइट : www.nirc-icwai.org
आईसीडब्ल्यूएआई 12 सदर स्ट्रीट, कोलकाता-700016
वेबसाइट : www.myicwai .com
फोन : (033)2252-1031/1034/ 1602/1492
आईसीडब्ल्यूएआई में प्रवेश की महत्वपूर्ण तिथियां
आईसीडब्ल्यूएआई के विभिन्न कोर्सेज में प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 18 दिसंबर और 26 जून है। यदि आप 18 दिसंबर तक एडमिशन लेते हैं, तो छह माह बाद यानी अगले साल जून सत्र में आयोजित होने वाली परीक्षा में भाग ले सकते हैं। वैसे 26 जून तक एडमिशन लेने वाले व्यक्तियों को उसी साल दिसंबर में होने वाली परीक्षा में भाग लेने का मौका मिलता है।
Wednesday, August 26, 2015
एपिग्राफी में करियर
क्या है एपिग्राफी?
आज के कम्प्यूटर इंजीनियरिंग तथा इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के दौर में विज्ञान की एक शाखा है जो हमारे शानदार इतिहास के बारे में जानने के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रही है। यह है विभिन्न प्राचीन भाषाओं तथा संकेतों वाली रहस्यमयी हस्तलिपियों को पढ़ने की कला। इसी को एपिग्राफी यानी पुरालेख विद्या के नाम से भी जाना जाता है। एपिग्राफी पाषाण, ताम्र थालियों, लकड़ी आदि पर लिखी प्राचीन व अनजानी हस्तलिपियों को खोजने तथा उन्हें समझने का विज्ञान है। एपिग्राफ्स इतिहास के स्थायी तथा सर्वाधिक प्रमाणिक दस्तावेज हैं। वे ऐतिहासिक घटनाओं की तिथि, सम्राटों के नाम, उनकी पदवियों, उनकी सत्ता के काल, साम्राज्य की सीमाओं से लेकर वंशावली तक के बारे में सटीक व सही सूचना के महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
विभिन्न पदार्थों पर उकेर कर लिखे ये पुरालेख विबिन्न भाषाओं व लिपियों के उद्भव तथा विकास के साथ-साथ प्राचीन भाषाओं के साहित्य के रुझानों तथा इतिहास के विभिन्न पहलुओं के बारे में भी सटीक जानकारी प्रदान करते हैं।
इनकी मदद से हम इतिहास के अनजाने तथ्यों से परिचित हो सकते हैं और पहले से परिचित इतिहास की घटनाओं पर और करीब से रोशनी भी डाल सकते हैं। जो भी इतिहास हम पुस्तकों में पढ़ते हैं वह सारा पुरालेखों पर ही आधारित है।
पुरालेखों को खोजने व समझने की विधि
आर्कियोलॉजी की विभिन्न शाखाओं में से एक एपिग्राफी के तहत किलों, धार्मिक स्थलों, समाधियों, मकबरों जैसे विभिन्न स्मारकों में पुरालेखों या शिलालेखों की खोज की जाती है। इन्हें फोटोग्राफी या स्याही रगड़ कर कागज पर उतार लिया जाता है। इसके बाद इन्हें बेहद ध्यान से समझने का प्रयास किया जाता है। इस दौरान इनमें दिए गए तथ्यों एवं जानकारी की मदद से उनमें जिन लोगों, घटनाओं, तिथियों, स्थानों आदि का जिक्र होता है, उनका पता लगाया जाता है।
ऐसी सभी जानकारी को वार्षिक ‘इंडियन एपिग्राफी रिपोर्ट’ में पेश किया जाता है और महत्वपूर्ण खोजों को वार्षिक ‘इंडियन आर्कियोलॉजी जर्नल’ में प्रमुखता से छापा जाता है। अत्यधिक ऐतिहासिक महत्व के पुरालेखों को सम्पादित विवरण के साथ हूबहू ‘एपिग्राफिया इंडिका’ में छापा जाता है।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की एपिग्राफी शाखा
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ए.एस.आई.) की स्थापना 1861 में की गई थी। तब से ही पुरालेखों की खोज, उनकी पड़ताल तथा उनका संरक्षण ए.एस.आई. की प्रमुख गतिविधियों में से एक है। पुरालेखों के अध्ययन के लिए सर्वे की एक अलग शाखा है। संस्कृत तथा द्रविड़ियन पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए इसका मुख्यालय मैसूर और अरबी व फारसी पुरालेखों व सिक्कों के अध्ययन के लिए मुख्यालय नागपुर में है। ये दोनों मुख्यालय दो अलग निदेशकों के नेतृत्व में कार्य करते हैं एपिग्राफी शाखा के जोनल दफ्तर लखनऊ तथा चेन्नई में हैं।
करियर की सम्भावनाएं
ए.एस.आई. की एपिग्राफी शाखा में संस्कृत, अरबी, फारसी, तेलगु, कन्नड़, तमिल तथा मलयालम भाषा में विभिन्न पद हैं। अनेक राज्य सरकारों के यहां भी आर्कियोलॉजी डिपार्टमैंट्स हैं जहां एपिग्राफिस्ट्स के पद हैं।
इनके अलावा सभी प्रमुख संग्रहालयों में क्यूरेटर तथा कीपर/डिप्टी कीपर/गैलरी असिस्टैंट्स आदि के पद होते हैं जिनके लिए एपिग्राफिस्ट्स की भी जरूरत होती है। नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय, कोलकाता में भारतीय संग्रहालय, नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया तथा विभिन्न राज्य सरकारों के आर्काइव्स को भी अपने कार्यों के लिए एपिग्राफिस्ट्स की जरूरत होती है।
योग्यता
ग्रैजुएशन (जिसमें इतिहास एक विषय हो) सहित उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक में प्रथम क्षेणी मास्टर डिग्री अथवा इतिहास में मास्टर डिग्री सहित ग्रैजुएशन में उपरोक्त वर्णित विषयों में से किसी एक का अध्ययन जरूरी योग्यता है।
कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़ तथा तमिल यूनिवर्सिटी तंजावुर पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा कोर्स इन एपिग्राफी भी करवाती हैं जो चुने जाने के लिए एक अतिरिक्त योग्यता बन सकती है।
कौशल एवं गुण
एक अच्छे एपिग्राफिस्ट साबित होने के लिए संबंधित भाषा में पकड़ के साथ-साथ इतिहास का अच्छा ज्ञान, विश्लेषणात्मकता और तार्किक सोच होना लाजमी है। पढ़ने और नवीनतम जानकारी प्राप्त करते रहने की आदत भी करियर में तरक्की दिलाती है। गौरतलब है कि एपिग्राफी सहित पुरातत्व की सभी शाखाओं में करियर संवारने के लिए फील्ड में कार्य तथा शोध करना जरूरी होता है जिस पर घर से दूर रह कर काफी मेहनत करनी पड़ती है।
इस करियर के लिए तन और मन, दोनों का मजबूत होना जरूरी है। अगर आप शारीरिक रूप से स्वस्थ और ताकतवर नहीं हैं तो काम के दौरान होने वाली थकान को सहन करना आपके लिए मुश्किल होगा। एपिग्राफिस्ट्स की जॉब मेहनत और समय, दोनों की मांग करती है। खराब मौसम हो या मुश्किल परिस्थितियां जरूरत पड़ने पर एपिग्राफिस्ट्स को हर तरह के हालात में काम करना पड़ता है।
प्रमुख संस्थान
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र, हरियाणा
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
जीवाजी यूनिवर्सिटी, ग्वालियर, मध्य प्रदेश
अवधेश प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी, रीवा, मध्य प्रदेश
डैक्कन कॉलेज, पुणे, महाराष्ट्र
महराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा गुजरात
आंध्र यूनिवर्सिटी, विशाखापत्त्तनम, आंध्र प्रदेश
संबंधित संस्थान
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.asi.nic.in
नैशनल आर्काइव्स ऑफ इंडिया, जनपथ, नई दिल्ली
www.nationalarchives.nic.in
इंडियन कॉऊंसिल ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च, 35, फिरोजशाह रोड़, नई दिल्ली
www.ichrindia.org
Sunday, August 23, 2015
खाद्य प्रसंस्करण इंजिनियरी एवं प्रौद्योगिकी में करियर की सम्भावनाएं
खाद्य प्रसंस्करण खाद्य विज्ञान की एक शाखा है और यह ऐसी पद्धतियों तथा
तकनीकों का मिला जुला रूप है जिसके द्वारा कच्ची सामग्रियों (raw
ingredients) को मनुष्यों तथा पशुओं के उपयोग के लिए भोजन में परिवर्तित
किया जाता है। खाद्य प्रसंस्करण खाद्य को परिरक्षित करता है, उसके सुस्वाद
में वृद्धि करता है और खाद्य-उत्पाद में टॉक्सिन्स को कम करता है। आधुनिक
खाद्य प्रसंस्करण तकनीकों ने आज के सुपर-मार्केट्स के विकास की संभावनाओं
को बल दिया है विकसित तथा विकासशील देशों के समाजों में उभर रहे
उपभोक्तावाद ने स्प्रे ड्राइंग, जसू कन्सन्ट्रटेस, फ्रीज ड्राइगं जैसी
तकनीकों वाले खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास तथा कृत्रिम मिठाइयों
कलरेंट्स एवं प्रिजर्वेटिव्स प्रारंभ करने में योगदान दिया है। बीसवीं सदी
के अंत में मध्यम वर्गीय परिवारों माताओं और विशेष रूप से कार्यशील महिलाओं
के लिए ड्राइडइन्स्टेंट सूप्स, रिकंस्टीट्यूटेड फ्रूटस, जूस तथा सेल्फ
कुकिगं मील्स जैसे उत्पादों का विकास किया गया।
आज भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्यागे उपभोक्ता-खाद्य उद्यागे के रूप में गति पकड़ रहा है। एक रिपार्टे के अनुसार देशों में प्रसंसाधित एवं डिब्बाबदं खाद्य के लगभग 300 मिलियन उच्च वगीर्य तथा मध्यम वर्गीय उपभोक्ता हैं और अन्य 200 मिलियन उपभोक्ताओं के इनमें शामिल होने की संभावना है। पूरे देश में 500 खाद्य स्थल स्थापित करने की योजना है। इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास को और बल मिलेगा व इस कार्य के प्रति अभिरुचि रखने वालो के लिए रोजगार के व्यापक अवसर सृजित होंगे खाद्य सामगिय्रों को उद्यागे एवं सरकार की विनिर्दिष्टियों के अनुसार संसाधित, परिरक्षित एवं डिब्बाबदं किया जाता है और रखा जाता है। आज खाद्य प्रसंस्करण उद्यागे का भारत के उद्योगों में पांचवा स्थान है ।
भारतीय खाद्य निगम, जो खाद्यान्न तथा अन्य खाद्य मदों के क्रय, भंडारण, परिवहन एवं वितरण का कार्य करता है, व्यक्तियों की एक बडी़ संख्या को रोजगार देता है। निजी उद्यम ब्रडे , फलों का जूस खाद्य तेल एवं सॉफ्ट ड्रिकं कन्सन्ट्रटे बेचते हैं ।
खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां और खाद्य अनुसंधान प्रयोगशालाएं, खाद्य थोक विक्रेता, अस्पताल, खानपान संस्थापनाएं, रिटेलर, रेस्तरां आदि गृह विज्ञान में डिग्री रखने वालों और खाद्य प्राद्योगिकी, आहार या खाद्य सेवा प्रबंधन में विशेषज्ञता धारी उम्मीदवारों को रोजगार के अवसर देते हैं। बैक्टीरियालोजिस्ट, टोक्सिकालोजिस्ट तथा पैकेजिंग प्रौद्योगिकी, कार्बनिक रसायन विज्ञान, जैव रसायन विज्ञान एवं विश्लेषिक रसायन विज्ञान में प्रशिक्षित व्यक्ति खाद्य प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं या गुणवत्ता नियत्रंण विभागों में रोजगार के अवसर तलाश सकते हैं। इस उद्योग में बेकरी, मीट, कुक्कटु पालन, ट्रीमर्स तथा फिश कटर्स, स्लॉटरर्स, मीट पेकर्स, फूड बैच मेकर्स, फूड मेकिंग मशीन ऑपरेटर्स तथा टेंडर्स, खाद्य एवं तम्बाकू रोस्टिंग, बेकिंग एवं ड्राइंग मशीन ऑपरेटर्स एवं टेंडर्स आदि रोजगार शामिल हैं ।
जो अपना निजी कार्य चलाना चाहते हैं, उनके लिए डिलीवरी नेटवर्क के रूप में स्व-रोजगार के अवसर भी विद्यमान हैं ।
विभिन्न खाद्य उत्पादों के विनिर्माण या उत्पादन, परिरक्षण एवं पैकेजिंग, प्रसंस्करण तथा डिब्बाबंदी के लिए इस उद्योग में खाद्य प्रौद्योगिकिविदों, तकनीशियनों, जैव प्रौद्योगिकीविदों तथा इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। खाद्य प्रसंस्करण के लिए कच्चा माल तैयार करने की आवश्यकता होती है, जिसमें कच्चे माल का चयन या सफाई और उसके बाद उसका वास्तविक प्रसंस्करण करना शामिल है। प्रसंस्करण का कार्य कच्चे माल को काट कर, ब्लेंच करके, पीस कर या मिला कर अथवा पका कर किया जाता है। खाद्य उत्पादों को स्वास्थ्यवर्धक तथा गुणवत्ता पूर्ण बनाए रखने के लिए उनमें परिरक्षण सामग्री को मिलाया जाना और डिब्बाबंद करना आवश्यक होता है ।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कार्य के लिए निम्नलिखित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है:-
• यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई विशेष प्रक्रिया एक निर्दिष्ट रूप में निष्पादित की जा रही है या नहीं ।
• खाद्य परिरक्षण, संरक्षण एवं प्रसंस्करण के लिए नए तरीके विकसित करने तथा पुराने तरीकों में सुधार लाने के लिए ।
• संसाधित किए जाने वाले खाद्य उत्पादों में संदूषण, मिलावट की जांच करने और उनके पोषण-मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिए ।
• बाजार में भेजे जाने वाले खाद्य-उत्पादों के लिए सयंत्र तथा खाद्य में उपयोग में लाई जाने वाली कच्ची सामग्रियों की गुणवत्ता निर्धारित करने के लिए ।
• भडांरण स्थितियों तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर निगरानी रखने के लिए ।
कॉर्बनिक रसायन विज्ञानी: उन पद्धतियों पर परामर्श देते हैं जिनके द्वारा कच्ची सामग्रियों को संसाधित खाद्य में परिवर्तित किया जाता है ।
जैव रसायन विज्ञानी: स्वाद, संरचना, भंडारण एवं गुणवत्ता में सुधार लाने संबंधी सुझाव देते हैं ।
विश्लेषिक रसायन विज्ञानी: खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उनका विश्लेषण करते हैं ।
गृह अर्थशास्त्री: आहार विज्ञान तथा पोषण विशेषज्ञ होते हैं और कंटनेर्स के विनिर्देशों के अनुसार वे खाद्य तथा नुस्खों की जाचं करते हैं ।
इंजीनियर: प्रसंस्करण प्रणालियों के नियोजन, डिजाइन, सुधार एवं रखरखाव के लिए रासायनिक, यांत्रिक, औद्योगिक, वैद्युत कृषि एवं सिविल इंजीनियरों की भी आवश्यकता होती है ।
अनुसंधान वैज्ञानिक: डिब्बाबदं खाद्य के गुण स्वाद, पोषक मूल्यों तथा सामान्य रूप से उसकी स्वीकार्यता में सुधार लाने के लिए प्रयागे करते हैं ।
प्रबंधक एवं लेखाकार: प्रसंस्करण कार्य के पर्यवेक्षण कार्य के अतिरिक्त प्रशासन एवं वित्त-प्रबंधन का कार्य करते हैं ।
ये ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने और कंपनी के लाभपूर्ण तथा कुशल विपणन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उत्पादन की संकल्पना से लेकर उन्हें अंतिम रूप देने की दृष्टि से नए तथा नवप्रवर्तित उत्पादों के विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं ।
कन्फेक्शनरी : तैयार किए जाने वाले उत्पाद के बारे में संकल्पना व अनुभव होना चाहिए और मशीनों के बारे में कुछ तकनीकी ज्ञान होना चाहिए ।
सहायक महाप्रबंधक/वरिष्ठ प्रबंधक-खाद्य प्रसंस्करण: फल एवं सब्जी प्रसंस्करण एकक स्थापित करने के लिए उच्च इंजीनियरी तकनीकों को प्रयोग में लाते हैं और ऐसे विषय क्षेत्र के अंतर्गत उसका विश्लेषण करते हैं जिसमें न्यूनतम पर्यवेक्षण के साथ विकास, डिजाइन, नवप्रवर्तन तथा प्रवीणता आवश्यक होती है ।
खाध्य उद्योग में अपेक्षित व्यक्तिगत गुण: श्रमशीलता, सतर्कता, संगठनात्मक क्षमताएं, विशेष रूप से स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के बारे में बुद्धिमानी एवं परिश्रम तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम देश के विभिन्न भागों में कई ऐसे खाद्य एवं आहार विस्तार केंद्र हैं जो फलों एवं सब्जियों के गृह आधारित परिरक्षण, बेकरी एवं कन्फेक्शनरी मदें राइस-मिलिगं, तिलहन प्रसंस्करण तथा ऐसे ही अन्य अल्प-कालीन पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण देते हैं ।
भारत में कुछ विश्वविद्यालय खाद्य प्रौद्योगिकी एवं खाद्य विज्ञान में डिग्री पाठ्यक्रम चलाते हैं। कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जो खाद्य प्रसंस्करण के विशेषज्ञता पूर्ण पहलुओं में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाते हैं। 10+2 स्तर पर भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित (पी.सी.एम.) या भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान (पी.सी.बी) के उम्मीदवारों को खाद्य प्रौद्योगिकी, खाद्य विज्ञान तथा गृह विज्ञान में अधिस्नातक पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश दिया जाता है। खाद्य प्रौद्योगिकिविदों के पास स्नातक/ स्नातकोत्तर डिग्रियां होती हैं। ये डिग्रियां भारत में स्थित विभिन्न संस्थानों द्वारा चलाई जाती हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों में खाद्य एवं आहार, गृह विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी तथा जैव प्रौद्योगिकी में भी एम.एस.सी. एवं पी.एच.डी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों में उपलब्ध विभिन्न कार्यक्रमों में बी.टेक., बी.एस.सी., एम.टेक, एम.एससी. और पीएच.डी शामिल हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में बी.टेक., बी.एससी. के लिए पात्रता मानदण्ड में विज्ञान के साथ 10+2 या समकक्ष शामिल है। यह चार/तीन-वर्षीय पूर्णकालिक पाठ्यक्रम हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में एम.एससी करने के इच्छुक उम्मीदवारों के पास रसायन विज्ञान के साथ विज्ञान में स्नातक डिग्री होनी चाहिए। यह एम.एससी. पाठ्यक्रम दो वर्षीय पूर्णकालिक पाठ्यक्रम है। एम.एससी. पूरी करने के बाद, उम्मीदवार खाद्य प्रसंस्करण इंजीनियरी तथा प्रौद्योगिकी में पी.एचडी कार्यक्रम कर सकता है। बी.टेक डिग्री वाले उम्मीदवार खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में एम.टेक. पाठ्यक्रम भी कर सकते हैं, जिसकी अवधि दो वर्ष होती है। खाद्य प्रौद्योगिकीविदों की चुनौतियों में, व्यक्तियों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली खाद्य मदों की किस्मों में वृद्धि करना और उनकी गुणवत्ता तथा पोषक मूल्यों में सुधार लाना और साथ ही साथ कुशल निर्माण के माध्यम से इन्हें वहन योग्य स्थिति में बनाए रखना भी शामिल है ।
कारुण्य विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर- 641114 खाद्य प्रसंस्करण इंजीनियरी में बी.टेक. एवं एम.टेक कराता है ।
एम.एस. विश्वविद्यालय, वड़ोदरा, गुजरात ।
केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, मैसूर ।
कृषि विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश ।
फल प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ ।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर ।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल ।
इग्नू (आई.जी.एन.ओ.यू) खाद्य तथा आहार में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाता है ।
एस.आर.एम. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान-प्रौद्योगिकी स्नातक (बी.टेक ) ।
खाद्य एवं प्रसंस्करण इंजीनियरी ।
अन्ना-विश्वविद्यालय, चेन्नै -प्रौद्योगिकी स्नातक (बी.टेक) खाद्य प्रौद्योगिकी ।
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-110007।
गुजरात कृषि विश्वविद्यालय, सरदार कृषि नगर-385506।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड- 580005।
मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर-570005।
महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, प्रियदर्शिनी हिल्स डाकघर, कोट्टयम-686560।
चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, जिला- सतना-485331।
डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद-431004।
बंबई विश्वविद्यालय, फार्टे, मुबंई-400032।
एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, 1, नाथीबाई ठाकरसे रोड, मुंबई-400020।
लक्ष्मी नारायण प्रौद्योगिकी संस्थान, महात्मा गांधी मार्ग, नागपुर-440010।
मणिपुर विश्वविद्यालय, इम्फाल-795003।
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर- 143005।
मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास-600005।
अविनाशीलिगं म महिला गृह विज्ञान एवं उच्चतर शिक्षा संस्थान, काये म्बत्तूर-641043।
जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, पंतनगर-263145।
हारकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर-208002।
कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता- 700073, पश्चिम बंगाल।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खडगपुर, कृषि इंजीनियरी विभाग, खडगपुर-721302।
आज भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्यागे उपभोक्ता-खाद्य उद्यागे के रूप में गति पकड़ रहा है। एक रिपार्टे के अनुसार देशों में प्रसंसाधित एवं डिब्बाबदं खाद्य के लगभग 300 मिलियन उच्च वगीर्य तथा मध्यम वर्गीय उपभोक्ता हैं और अन्य 200 मिलियन उपभोक्ताओं के इनमें शामिल होने की संभावना है। पूरे देश में 500 खाद्य स्थल स्थापित करने की योजना है। इससे खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास को और बल मिलेगा व इस कार्य के प्रति अभिरुचि रखने वालो के लिए रोजगार के व्यापक अवसर सृजित होंगे खाद्य सामगिय्रों को उद्यागे एवं सरकार की विनिर्दिष्टियों के अनुसार संसाधित, परिरक्षित एवं डिब्बाबदं किया जाता है और रखा जाता है। आज खाद्य प्रसंस्करण उद्यागे का भारत के उद्योगों में पांचवा स्थान है ।
भारतीय खाद्य निगम, जो खाद्यान्न तथा अन्य खाद्य मदों के क्रय, भंडारण, परिवहन एवं वितरण का कार्य करता है, व्यक्तियों की एक बडी़ संख्या को रोजगार देता है। निजी उद्यम ब्रडे , फलों का जूस खाद्य तेल एवं सॉफ्ट ड्रिकं कन्सन्ट्रटे बेचते हैं ।
खाद्य प्रसंस्करण कंपनियां और खाद्य अनुसंधान प्रयोगशालाएं, खाद्य थोक विक्रेता, अस्पताल, खानपान संस्थापनाएं, रिटेलर, रेस्तरां आदि गृह विज्ञान में डिग्री रखने वालों और खाद्य प्राद्योगिकी, आहार या खाद्य सेवा प्रबंधन में विशेषज्ञता धारी उम्मीदवारों को रोजगार के अवसर देते हैं। बैक्टीरियालोजिस्ट, टोक्सिकालोजिस्ट तथा पैकेजिंग प्रौद्योगिकी, कार्बनिक रसायन विज्ञान, जैव रसायन विज्ञान एवं विश्लेषिक रसायन विज्ञान में प्रशिक्षित व्यक्ति खाद्य प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं या गुणवत्ता नियत्रंण विभागों में रोजगार के अवसर तलाश सकते हैं। इस उद्योग में बेकरी, मीट, कुक्कटु पालन, ट्रीमर्स तथा फिश कटर्स, स्लॉटरर्स, मीट पेकर्स, फूड बैच मेकर्स, फूड मेकिंग मशीन ऑपरेटर्स तथा टेंडर्स, खाद्य एवं तम्बाकू रोस्टिंग, बेकिंग एवं ड्राइंग मशीन ऑपरेटर्स एवं टेंडर्स आदि रोजगार शामिल हैं ।
स्व-रोजगार के अवसर:
जो अपना निजी कार्य चलाना चाहते हैं, उनके लिए डिलीवरी नेटवर्क के रूप में स्व-रोजगार के अवसर भी विद्यमान हैं ।
विभिन्न खाद्य उत्पादों के विनिर्माण या उत्पादन, परिरक्षण एवं पैकेजिंग, प्रसंस्करण तथा डिब्बाबंदी के लिए इस उद्योग में खाद्य प्रौद्योगिकिविदों, तकनीशियनों, जैव प्रौद्योगिकीविदों तथा इंजीनियरों की आवश्यकता होती है। खाद्य प्रसंस्करण के लिए कच्चा माल तैयार करने की आवश्यकता होती है, जिसमें कच्चे माल का चयन या सफाई और उसके बाद उसका वास्तविक प्रसंस्करण करना शामिल है। प्रसंस्करण का कार्य कच्चे माल को काट कर, ब्लेंच करके, पीस कर या मिला कर अथवा पका कर किया जाता है। खाद्य उत्पादों को स्वास्थ्यवर्धक तथा गुणवत्ता पूर्ण बनाए रखने के लिए उनमें परिरक्षण सामग्री को मिलाया जाना और डिब्बाबंद करना आवश्यक होता है ।
खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में कार्य के लिए निम्नलिखित व्यक्तियों की आवश्यकता होती है:-
खाद्य प्रौध्योगिकीविद् :
• यह निर्धारित करने के लिए कि क्या कोई विशेष प्रक्रिया एक निर्दिष्ट रूप में निष्पादित की जा रही है या नहीं ।
• खाद्य परिरक्षण, संरक्षण एवं प्रसंस्करण के लिए नए तरीके विकसित करने तथा पुराने तरीकों में सुधार लाने के लिए ।
• संसाधित किए जाने वाले खाद्य उत्पादों में संदूषण, मिलावट की जांच करने और उनके पोषण-मूल्यों पर नियंत्रण रखने के लिए ।
• बाजार में भेजे जाने वाले खाद्य-उत्पादों के लिए सयंत्र तथा खाद्य में उपयोग में लाई जाने वाली कच्ची सामग्रियों की गुणवत्ता निर्धारित करने के लिए ।
• भडांरण स्थितियों तथा स्वास्थ्य विज्ञान पर निगरानी रखने के लिए ।
कॉर्बनिक रसायन विज्ञानी: उन पद्धतियों पर परामर्श देते हैं जिनके द्वारा कच्ची सामग्रियों को संसाधित खाद्य में परिवर्तित किया जाता है ।
जैव रसायन विज्ञानी: स्वाद, संरचना, भंडारण एवं गुणवत्ता में सुधार लाने संबंधी सुझाव देते हैं ।
विश्लेषिक रसायन विज्ञानी: खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उनका विश्लेषण करते हैं ।
गृह अर्थशास्त्री: आहार विज्ञान तथा पोषण विशेषज्ञ होते हैं और कंटनेर्स के विनिर्देशों के अनुसार वे खाद्य तथा नुस्खों की जाचं करते हैं ।
इंजीनियर: प्रसंस्करण प्रणालियों के नियोजन, डिजाइन, सुधार एवं रखरखाव के लिए रासायनिक, यांत्रिक, औद्योगिक, वैद्युत कृषि एवं सिविल इंजीनियरों की भी आवश्यकता होती है ।
अनुसंधान वैज्ञानिक: डिब्बाबदं खाद्य के गुण स्वाद, पोषक मूल्यों तथा सामान्य रूप से उसकी स्वीकार्यता में सुधार लाने के लिए प्रयागे करते हैं ।
प्रबंधक एवं लेखाकार: प्रसंस्करण कार्य के पर्यवेक्षण कार्य के अतिरिक्त प्रशासन एवं वित्त-प्रबंधन का कार्य करते हैं ।
खाद्य प्रसंस्करण संयंत्र में वरिष्ठ खाद्य प्रौद्योगिकीविद् एवं प्रधान अभियंताः
ये ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करने और कंपनी के लाभपूर्ण तथा कुशल विपणन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए उत्पादन की संकल्पना से लेकर उन्हें अंतिम रूप देने की दृष्टि से नए तथा नवप्रवर्तित उत्पादों के विकास के लिए जिम्मेदार होते हैं ।
उत्पादन प्रबंधक:
कन्फेक्शनरी : तैयार किए जाने वाले उत्पाद के बारे में संकल्पना व अनुभव होना चाहिए और मशीनों के बारे में कुछ तकनीकी ज्ञान होना चाहिए ।
सहायक महाप्रबंधक/वरिष्ठ प्रबंधक-खाद्य प्रसंस्करण: फल एवं सब्जी प्रसंस्करण एकक स्थापित करने के लिए उच्च इंजीनियरी तकनीकों को प्रयोग में लाते हैं और ऐसे विषय क्षेत्र के अंतर्गत उसका विश्लेषण करते हैं जिसमें न्यूनतम पर्यवेक्षण के साथ विकास, डिजाइन, नवप्रवर्तन तथा प्रवीणता आवश्यक होती है ।
खाध्य उद्योग में अपेक्षित व्यक्तिगत गुण: श्रमशीलता, सतर्कता, संगठनात्मक क्षमताएं, विशेष रूप से स्वच्छता एवं स्वास्थ्य के बारे में बुद्धिमानी एवं परिश्रम तथा व्यावसायिक पाठ्यक्रम देश के विभिन्न भागों में कई ऐसे खाद्य एवं आहार विस्तार केंद्र हैं जो फलों एवं सब्जियों के गृह आधारित परिरक्षण, बेकरी एवं कन्फेक्शनरी मदें राइस-मिलिगं, तिलहन प्रसंस्करण तथा ऐसे ही अन्य अल्प-कालीन पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण देते हैं ।
भारत में कुछ विश्वविद्यालय खाद्य प्रौद्योगिकी एवं खाद्य विज्ञान में डिग्री पाठ्यक्रम चलाते हैं। कुछ ऐसे संस्थान भी हैं जो खाद्य प्रसंस्करण के विशेषज्ञता पूर्ण पहलुओं में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाते हैं। 10+2 स्तर पर भौतिकी, रसायन विज्ञान, गणित (पी.सी.एम.) या भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान (पी.सी.बी) के उम्मीदवारों को खाद्य प्रौद्योगिकी, खाद्य विज्ञान तथा गृह विज्ञान में अधिस्नातक पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश दिया जाता है। खाद्य प्रौद्योगिकिविदों के पास स्नातक/ स्नातकोत्तर डिग्रियां होती हैं। ये डिग्रियां भारत में स्थित विभिन्न संस्थानों द्वारा चलाई जाती हैं। भारतीय विश्वविद्यालयों में खाद्य एवं आहार, गृह विज्ञान, खाद्य प्रौद्योगिकी तथा जैव प्रौद्योगिकी में भी एम.एस.सी. एवं पी.एच.डी पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रमों में उपलब्ध विभिन्न कार्यक्रमों में बी.टेक., बी.एस.सी., एम.टेक, एम.एससी. और पीएच.डी शामिल हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में बी.टेक., बी.एससी. के लिए पात्रता मानदण्ड में विज्ञान के साथ 10+2 या समकक्ष शामिल है। यह चार/तीन-वर्षीय पूर्णकालिक पाठ्यक्रम हैं। खाद्य प्रौद्योगिकी में एम.एससी करने के इच्छुक उम्मीदवारों के पास रसायन विज्ञान के साथ विज्ञान में स्नातक डिग्री होनी चाहिए। यह एम.एससी. पाठ्यक्रम दो वर्षीय पूर्णकालिक पाठ्यक्रम है। एम.एससी. पूरी करने के बाद, उम्मीदवार खाद्य प्रसंस्करण इंजीनियरी तथा प्रौद्योगिकी में पी.एचडी कार्यक्रम कर सकता है। बी.टेक डिग्री वाले उम्मीदवार खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी में एम.टेक. पाठ्यक्रम भी कर सकते हैं, जिसकी अवधि दो वर्ष होती है। खाद्य प्रौद्योगिकीविदों की चुनौतियों में, व्यक्तियों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली खाद्य मदों की किस्मों में वृद्धि करना और उनकी गुणवत्ता तथा पोषक मूल्यों में सुधार लाना और साथ ही साथ कुशल निर्माण के माध्यम से इन्हें वहन योग्य स्थिति में बनाए रखना भी शामिल है ।
खाध्य प्रसंस्करण इंजीनियरी एवं प्रौद्योगिकी पाठ्यक्रम चलाने वाले संस्थान
कारुण्य विश्वविद्यालय, कोयम्बत्तूर- 641114 खाद्य प्रसंस्करण इंजीनियरी में बी.टेक. एवं एम.टेक कराता है ।
एम.एस. विश्वविद्यालय, वड़ोदरा, गुजरात ।
केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थान, मैसूर ।
कृषि विश्वविद्यालय, हिमाचल प्रदेश ।
फल प्रौद्योगिकी संस्थान, लखनऊ ।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, बंगलौर ।
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान, करनाल ।
इग्नू (आई.जी.एन.ओ.यू) खाद्य तथा आहार में प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम चलाता है ।
एस.आर.एम. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान-प्रौद्योगिकी स्नातक (बी.टेक ) ।
खाद्य एवं प्रसंस्करण इंजीनियरी ।
अन्ना-विश्वविद्यालय, चेन्नै -प्रौद्योगिकी स्नातक (बी.टेक) खाद्य प्रौद्योगिकी ।
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली-110007।
गुजरात कृषि विश्वविद्यालय, सरदार कृषि नगर-385506।
कृषि विज्ञान विश्वविद्यालय, धारवाड- 580005।
मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर-570005।
महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, प्रियदर्शिनी हिल्स डाकघर, कोट्टयम-686560।
चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय, जिला- सतना-485331।
डॉ. बाबा साहेब आम्बेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद-431004।
बंबई विश्वविद्यालय, फार्टे, मुबंई-400032।
एस.एन.डी.टी. महिला विश्वविद्यालय, 1, नाथीबाई ठाकरसे रोड, मुंबई-400020।
लक्ष्मी नारायण प्रौद्योगिकी संस्थान, महात्मा गांधी मार्ग, नागपुर-440010।
मणिपुर विश्वविद्यालय, इम्फाल-795003।
गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर- 143005।
मद्रास विश्वविद्यालय, मद्रास-600005।
अविनाशीलिगं म महिला गृह विज्ञान एवं उच्चतर शिक्षा संस्थान, काये म्बत्तूर-641043।
जी.बी. पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, पंतनगर-263145।
हारकोर्ट बटलर प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर-208002।
कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता- 700073, पश्चिम बंगाल।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खडगपुर, कृषि इंजीनियरी विभाग, खडगपुर-721302।
बायोडीजल से बढ़ती रोजगार की संभावनाएं
बायोडीजल जैविक गतिविधियों के द्वारा जैविक मूल पदार्थों के उपयोग से बनाया
गया ईंधन है जिसमें सेलुलोज पदार्थों का किण्व या शुष्क जीवाणुओं एवं
एंजाइमस की क्रियाविधि का उपयोग किया जाता है। इस विधि को
ट्रांसस्टरीफिकेशन (वसा व स्नेहक) एवं फरमेंटेशन (सेलुलोज सबस्ट्रेट) के
रूप में प्रयोग किया जाता है। इस विधि से प्राप्त बायोडीजल का अपने मूल
स्वरूप व डीजल के साथ मिश्रण (गैसोलीन) के रूप में उपयोग किया जा सकता है।
चूंकि बायोडीजल सेलुलोज सभी पदार्थों से बनाया जा सकता है किंतु अधिक बायोडीजल का उत्पादन करने हेतु हम फसल के दानों जैट्रोफा, करंज, गन्ना, सूर्यमुखी, सोयाबीन एवं कृषि उत्पादों से प्राप्त त्याजों द्वारा बायोडीजल प्राप्त कर सकते हैं।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के परिणामस्वरूप हर देश ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में है। हमारे देश में जिन स्रोतों पर तेजी से विचार एवं कार्य हो रहा है उनमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि कई विकल्प शामिल हैं। संभावनाओं की दृष्टि से देखने पर बायोडीजल सबसे प्रमुख रूप में उभरता है क्योंकि यह किसानों के हाथ में है और देश के दस करोड़ से भी अधिक किसान बायोडीजल से लाभ पा सकते हैं और हम स्वयं आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जैट्रोफा द्वारा बायोडीजल उत्पादन में 17 से 19 रुपये प्रति लीटर आय प्राप्त कर सकते हैं तथा इसी के साथ हम इससे सह उत्पाद जैसे बीजों के खल, गिलसरीन, नेलपॉलिश भी प्राप्त कर सकते हैं।
भारत में 142 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि होती है। 69 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन हैं। भारत में 39 करोड़ हेक्टेयर पर घने वन हैं और 31 करोड़ हेक्टेयर पर संग्रहित वन हैं। इनमें भी वनों का 14 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र संयुक्त वन प्रबंधन के अधीन है। जंगल की लगभग 3.0 करोड़ हेक्टेयर (अनुमानित) भूमि पर जैट्रोफा की खेती सरलता से की जा सकती है। इस खेती पर आने वाले व्यय का 62 प्रतिशत अप्रशिक्षित श्रमिकों के सीधे वेतन के रूप में खर्च होगा। बाकी का 38 प्रतिशत विचारणीय अनुपात वेतन पर खर्च होगा। बीज उत्पादन प्रारंभ होने के समय प्रत्येक हेक्टेयर पर 311 व्यक्तियों के लिए रोजगार उत्पन्न होगा। बीज को एकत्र करना भी श्रमाधारित कार्य है। एक बार खेती का कार्य अच्छी तरह स्थापित हो जाने के बाद प्रत्येक हेक्टेयर पर प्रतिदिन 40 लोगों की आवश्यकता होगी। खेती और बीज एकत्र करने में रोजगार उत्पत्ति के अतिरिक्त बीजों को संग्रहित करने और तेल निष्कासन में भी रोजगार उपलब्ध होगा।
देश में लाखों हेक्टेयर बेकार पड़ी जमीन पर बायोडीजल के लिए ऊर्जा फसलों की खेती का भी प्रावधान है। भारत सरकार की उम्मीद है कि 2017 तक वह जैव ईंधन से हमारी यातायात की 10 प्रतिशत जरूरतों को पूरा कर लें। इसके तहत 12 मिलियन हेक्टेयर जमीन ऊर्जा फसलों की खेती में लाई जाएगी और ये वह जमीन है जोकि बंजर व अनुपजाऊ है। किसानों और ग्रामीण रोजगार की दृष्टि से देखने पर बायोडीजल की कई खूबियां नज़र आती हैं। बायोडीज़ल को संग्रहित किया जा सकता है जबकि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि को संग्रहित नहीं किया जा सकता है। जैट्रोफा की खेती को बढ़ावा देने के लिये किसानों को अनुदान (सब्सिडी) देना तथा उत्पादन होने पर उचित मूल्य पर खरीदना आवश्यक है। विदेशों में जहां खाद्य तेल के बीजों से बायोडीजल बनाया जाता है वहां उनके पास सोयाबीन, राई, मूंगफली, सूरजमुखी आदि कई विकल्प हैं किंतु अधिक बायोडीजल का उत्पादन करने हेतु हमारे यहां बायोडीजल उत्पादन के लिये जैट्रोफा (रतनजोत) के पौध सर्वदा उपयुक्त हैं क्योंकि इसे हम अकृषित भूमि तथा कम जल मांग वाले क्षेत्रों में भी उगा सकते हैं। इस पौधे को जानवरों द्वारा किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई जाती है। जैट्रोफा की फसल जल्दी (करीब 3 साल में) आ जाती है तथा एक बार इसकी सघन खेती कर लेने पर तीस-चालीस वर्षों तक इसके फल-बीज उगते रहते हैं। जैट्रोफा दोनों तरह से उपयुक्त प्रजाति है। यह खेतों की मेड़ों पर भी लगाया जा सकता है तथा पूरे खेत में भी लगाया जा सकता है। प्रथम व द्वितीय वर्ष अंतः सस्य क्रिया विधि से भी की जा सकती है। जैट्रोफा करीब तीन-चार मीटर ऊंचा होता है, जिससे फल तोड़ना या छांटना आसान हो जाता है। हर गांव में जो भी बंजर जमीन है उस पर लगाने के लिये यह अत्यंत उपयोगी है। टिशू कल्चर के माध्यम से इसकी पहली फसल तीन के बजाय डेढ़ साल में पाई जा सकती है।
गांव में इस प्रकार के जो अखाद्य बीज पैदा होंगे, उनके छिलका उतारने व घानी से तेल निकालने का व्यवसाय गांव या कस्बे में ही किया जा सकता है। बायोडीजल की शुद्धता परखने का कार्य भी कस्बे स्तर पर किया जा सकता है। आज हमारे देश में एक सौ पचास करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात किया जाता है। इसमें से पांच प्रतिशत यानी साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का फायदा किसान को होगा तो किसान के घर खुशहाली आ जाएगी। इस प्रकार बायोडीजल किसान की समृद्धि के साथ-साथ वैकल्पिक ऊर्जा का अच्छा साधन है। ग्रामीण जनता को रोजगार दिलाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
जैट्रोफा अथवा रतनजोत की विधिवत खेती भारत के मुख्यतः राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा पंजाब राज्यों में की जाती है। संपूर्ण देश में इसकी खेती के लिए भारत सरकार की ओर से कई प्रोत्साहन योजनाएं प्रारंभ की गई हैं एवं इसकी खेती को विशेष बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार, योजना आयोग, तेल मंत्रालय तथा कृषि विभाग इसके तेल को भविष्य के डीजल के रूप में देख रहा है। जैट्रोफा को न सिर्फ बायोडीजल की खेती के रूप में बल्कि और भी कई उपयोगों के लिए उगाया जा सकता है जिनमें दो महत्वपूर्ण रूप निम्नलिखित हैः-
1. जैट्रोफा पौधे का बाड़ के रूप में प्रयोग।
2. जैट्रोफा का नर्सरी के रूप में प्रयोग।
1. जैट्रोफा का पौधा ऊसर, बंजर, शुष्क, अर्द्ध शुष्क पथरीली और अन्य किसी भी प्रकार की भूमि पर आसानी से उगाया जा सकता है। जलभराव वाली जमीन में इसको नहीं उगाया जा सकता है।
2. पौधे को जानवर नहीं खाते हैं और न ही पक्षी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी देखभाल करने की भी आवश्यकता नहीं है।
3. जैट्रोफा का पौधा बहुत ही कम समय में बढ़कर तैयार हो जाता है और लगाने (रोपाई) के दो वर्ष में उत्पादन प्रारंभ कर देता है।
4. जैट्रोफा के पौधे को बार-बार लगाने (रोपाई) की आवश्यकता नहीं है। एक बार लगाने पर निरंतर 45-50 वर्षों तक फसल (बीज उत्पादन) प्राप्त होती रहती है।
5. जैट्रोफा के बीजों में अन्य पौधों के बीजों की तुलना में तेल की मात्रा भी अधिक होती है। इससे 35-40 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है।
6. जैट्रोफा के पौधों को उगाने से वर्तमान खाद्यान्न फसलों का क्षेत्र भी प्रभावित नहीं होगा। इसे देश भर में उपलब्ध लाखों एकड़ बंजर व बेकार पड़ी भूमि में उगाया जा सकेगा।
7. जैट्रोफा की खेती मात्र बायोडीजल उत्पादन की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसकी खेती से देश भर में बेकार पड़ी हुई बंजर भूमि का उपयोग कर उसे सुधारा भी जा सकेगा।
8. जैट्रोफा की खेती से बंजर भूमि का कटाव रोका जा सकेगा, साथ ही यह पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता को बचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान करेगा।
9. इसके पौधे को खेत की मेड़ों (मुंडेरों) पर लगाने से यह उत्पादन के साथ-साथ बाड़ का काम करेगा।
10. जैट्रोफा की खेती से गरीब और सीमांत किसानों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों को खासतौर से गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों और महिलाओं को ग्रामीण/स्थानीय स्तर पर रोजगार और कमाई के अवसर प्राप्त होंगे।
11. इसकी खेती जिस भूमि में होगी उस भूमि को दीमक व व्हाइट ग्रब (सफेद लट्) की समस्या से पूर्ण छुटकारा मिल सकेगा।
1. बायोडीजल के भौतिक और रासायनिक गुण पेट्रोलियम ईंधनों से जरा अलग हैं। यह एक प्राकृतिक तेल है जो परंपरागत वाहनों से इंजन को चलाने में पूर्णतः सक्षम है।
2. इसके प्रयोग से निकलने वाला उत्सर्जन कोई प्रभाव नहीं छोड़ता क्योंकि इसमें धुंआं व गंध न के बराबर है।
3. बायोडीजल पेट्रोल की अपेक्षा जहरीले हाइड्रोकार्बन, कार्बन-मोनोक्साइड, सल्फर इत्यादि से वायु को दूषित नहीं करता है।
4. बायोडीजल स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित ईंधन है।
5. यह सरल जैव निम्नीकृत, न खत्म होने वाला, स्वच्छ और कार्यदक्ष ऊर्जा स्रोत है।
6. यह जैव ईधन अज्वलनशील होने के कारण सुरक्षित है इसलिए इसके भंडारण और परिवहन में कोई खतरा भी नहीं है।
7. जैट्रोफा व डीजल की अपेक्षा बायोडीजल बेहतर आंकटेन नम्बर देता है और यह गाड़ी के इंजन की आयु सीमा भी बढ़ा देता है।
1. यह वायुमंडल से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का अवशोषण करता है। उसी प्रकार रेगिस्तान के विस्तार को रोकता है।
2. बीजों से तेल निकालने के बाद बची खली का उपयोग ग्लिसरीन तथा साबुन बनाने में किया जाता है। खली में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसका उपयोग जानवरों के चारे के रूप में किया जाता है।
3. इसके रोपण से सूखे क्षेत्रों का जल स्तर बढ़ाकर पानी की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
4. जैट्रोफा की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देकर ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है तथा उनके जीवन-स्तर को सुधारा जा सकता है।
5. गांवों में इसके बीजों से दीपक जलाकर घरों में रोशनी उपलब्ध करायी जा सकती है।
6. पौधे के लेटेक्स में खरबूजे के मीजेक वायरस को रोकने की अद्भुत क्षमता पाई गई है।
7. इसके रस का उपयोग रंग बनाने में तथा तेल का साबुन निर्माण एवं मोमबत्तियां बनाने में किया जाता है।
1. जैट्रोफा के पूर्ण विकसित तने से निकलने वाले लाल रस का उपयोग घाव, जला, फोड़े आदि के उपचार में किया जाता है। इसे रक्त बहने वाले स्थान पर लगाने से रक्तस्राव तुरंत रुक जाता है।
2. इससे प्राप्त लेटेक्स में कैंसररोधी गुण पाए गए हैं।
3. बीजों का उपयोग पेट के कीड़े मारने तथा पेट साफ करने में किया जाता है।
4. लेटेक्स का उपयोग दांतों की समस्या में भी होता है।
5. ग्रामीण लोग इसकी पतली टहनियों का दातून के रूप में प्रयोग करते हैं।
6. उत्तरी सूडान में इसके बीज तथा फलों का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में किया जाता है।
7. जैट्रोफा के पत्ते के सत् में दस्तकारी गुण पाए गए हैं।
8. इसके लेटेक्स का उपयोग मक्खी के काटने पर भी किया जाता है।
9. पौधे की जड़ों की छाल गठिया तथा बीजों से ड्राप्सी, गाउट, लकवा और चर्मरोगों का इलाज किया जाता है।
10. होम्योपैथी में इसका उपयोग सर्दी में पसीना आने पर, उदर-शूल, ऐंठन तथा दस्त आदि बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
पौधों में पाए जाने वाले तरल हाइड्रोकार्बन को ईंधन के तौर पर बहुत पहले ही पहचान लिया गया था। प्रसिद्ध जीव शास्त्री मेलविन कालविन जब प्रकाश संश्लेषण पर कार्य कर रहे थे तो उन्होंने अनेक पौधक प्रजातियों को पृथक किया जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा बने जैव पदार्थों के एक महत्वपूर्ण भाग को लेटेक्स में बदलने की क्षमता रखते हैं। कालविन के अनुसार इस लेटेक्स में मौजूद हाइड्रोकार्बन में बदले जा सकते हैं। उन्होंने वनस्पति समुदाय को अनेक पेट्रोलियम प्रजातियों से अवगत कराया। एपोसाइनेसी, एस्कलेपियाडेसी, यूफारबायसी आदि कुटुम्ब के सदस्य पेट्रोलियम गुणों से युक्त हैं जो जैव ऊर्जा के उत्तम स्रोत हैं और पेट्रोल व डीजल का श्रेष्ठ विकल्प हैं। 20वीं सदी के प्रारंभ में डीजल इंजन के आविष्कारक रूडोलफ डीजल ने भी बायोडीजल की उपयोगिता को पहचाना था। उन्होंने वनस्पति तेल से गाड़ी चलाने के कई प्रयोग किए तथा साथ ही भविष्य में पेट्रोलियम भंडार खत्म हो जाने पर जैव ईंधन के इस्तेमाल की सलाह भी 1912 में ही दे दी थी।
भारत में अब तक 60,000 हेक्टेयर जमीन आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से जैट्रोफा की खेती में लाई गई है जोकि 0.3-0.5 बिलियन लीटर बायोडीजल उपलब्ध कराएगी। अमेरिका में ऊर्जा और पर्यावरण योजना के अंतर्गत जैव ऊर्जा कार्यक्रम में बायोडीजल की आपूर्ति हेतु ऊर्जा फसलों की खेती और उसके वैकल्पिक बाजार को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि आगामी दशकों में परंपरागत ऊर्जा स्रोत पर संयुक्त राष्ट्र की निर्भरता को घटाया जा सके।
ब्राजील में बहुत पहले ही पेट्रोल की जगह गन्ने से मिलने वाले एथेनॉल का प्रयोग हो रहा है। ऑस्ट्रिया ने भी नब्बे के दशक की शुरुआत में रेपसीड तेल से निकले मिथाइल एस्टर को ही बिना बदले डीजल इंजन में प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था। कनाडा और कई यूरोपीय देश अब बायोडीजल अपनाने के लिए विभिन्न जांच प्रक्रिया में लगे हुए हैं। स्पेन में सूर्यमुखी के तेल से मिलने वाला बायोडीजल प्रचलन में आ चुका है। डीजल इंजन पर जैव ईंधन की परख उसकी श्यानता स्फुशंक, अम्ल मूल्य इत्यादि के आधार पर की गई इष्टतम व अनुकूलतम ऊर्जा स्रोत का दर्जा दिया गया है। अमेरिका में सोयाबीन तेल से प्राप्त बायोडीजल को शीत सहनीकरण की प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् जैट ईंधन के साथ मिश्रित कर हवाई जहाज उड़ाया गया।
बायोडीजल के लिए भारत में भी कार्य प्रगति पर है। सरकारी एवं गैर-सरकारी सहित अनेक संस्थाओं ने इस कार्य का बीड़ा उठाया है। रक्षा मंत्रालय ने भी इस कार्य में रुचि दिखाकर अनेक कदम उठाए हैं। रक्षा मंत्रालय के निर्देश पर रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन के अंतर्गत रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला, पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड) ने बायोडीजल और ऊर्जा फसलों पर वृहत अनुसंधान कार्य प्रारंभ कर, जैट्रोफा की दो प्रजातियां डीएआरएल-1 व डीएआरएल-2 पता लगाई जिनमें 34.4 प्रतिशत व 36.5 प्रतिशत तेल मौजूद है। इस डीआरडीओ की पहल से सैन्य बल को वाहनों के लिए भविष्य में तेल उपलब्ध कराया जाएगा। इस अनुसंधान के अंतर्गत कई मिलिट्री फार्म महु, सिकंदराबाद, अहमदनगर में बनाए गए हैं। ये केन्द्र न केवल बायोडीजल (जैट्रोफा) पर अनुसंधान कर हमारे सैन्य बल को आत्मसुरक्षा व आत्मविश्वास देगा बल्कि पर्यावरण के संतुलन में भी एक अहम भूमिका निभाएगा। इसके शीघ्र परिणामों की आशा की जा रही है।
देश में लाखों हेक्टेयर बेकार पड़ी जमीन पर बायोडीजल के लिए ऊर्जा फसलों की खेती का भी प्रावधान है। भारत सरकार की उम्मीद है कि 2017 तक वह जैव ईंधन से हमारी यातायात की 10 प्रतिशत जरूरतों को पूरा कर लें। इसके तहत 12 मिलियन हेक्टेयर जमीन ऊर्जा फसलों की खेती में लाई जाएगी और ये वह जमीन है जोकि बंजर व अनुपजाऊ है। भारत में अब तक 60,000 हेक्टेयर जमीन आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से जैट्रोफा की खेती में लाई गई है जोकि 0.3-0.5 बिलियन लीटर बायोडीजल उपलब्ध कराएगी।
चूंकि बायोडीजल सेलुलोज सभी पदार्थों से बनाया जा सकता है किंतु अधिक बायोडीजल का उत्पादन करने हेतु हम फसल के दानों जैट्रोफा, करंज, गन्ना, सूर्यमुखी, सोयाबीन एवं कृषि उत्पादों से प्राप्त त्याजों द्वारा बायोडीजल प्राप्त कर सकते हैं।
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों के परिणामस्वरूप हर देश ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की तलाश में है। हमारे देश में जिन स्रोतों पर तेजी से विचार एवं कार्य हो रहा है उनमें सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि कई विकल्प शामिल हैं। संभावनाओं की दृष्टि से देखने पर बायोडीजल सबसे प्रमुख रूप में उभरता है क्योंकि यह किसानों के हाथ में है और देश के दस करोड़ से भी अधिक किसान बायोडीजल से लाभ पा सकते हैं और हम स्वयं आत्मनिर्भर बन सकते हैं। जैट्रोफा द्वारा बायोडीजल उत्पादन में 17 से 19 रुपये प्रति लीटर आय प्राप्त कर सकते हैं तथा इसी के साथ हम इससे सह उत्पाद जैसे बीजों के खल, गिलसरीन, नेलपॉलिश भी प्राप्त कर सकते हैं।
ग्रामीण रोजगार की संभावनाएं
भारत में 142 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर कृषि होती है। 69 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर वन हैं। भारत में 39 करोड़ हेक्टेयर पर घने वन हैं और 31 करोड़ हेक्टेयर पर संग्रहित वन हैं। इनमें भी वनों का 14 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र संयुक्त वन प्रबंधन के अधीन है। जंगल की लगभग 3.0 करोड़ हेक्टेयर (अनुमानित) भूमि पर जैट्रोफा की खेती सरलता से की जा सकती है। इस खेती पर आने वाले व्यय का 62 प्रतिशत अप्रशिक्षित श्रमिकों के सीधे वेतन के रूप में खर्च होगा। बाकी का 38 प्रतिशत विचारणीय अनुपात वेतन पर खर्च होगा। बीज उत्पादन प्रारंभ होने के समय प्रत्येक हेक्टेयर पर 311 व्यक्तियों के लिए रोजगार उत्पन्न होगा। बीज को एकत्र करना भी श्रमाधारित कार्य है। एक बार खेती का कार्य अच्छी तरह स्थापित हो जाने के बाद प्रत्येक हेक्टेयर पर प्रतिदिन 40 लोगों की आवश्यकता होगी। खेती और बीज एकत्र करने में रोजगार उत्पत्ति के अतिरिक्त बीजों को संग्रहित करने और तेल निष्कासन में भी रोजगार उपलब्ध होगा।
देश में लाखों हेक्टेयर बेकार पड़ी जमीन पर बायोडीजल के लिए ऊर्जा फसलों की खेती का भी प्रावधान है। भारत सरकार की उम्मीद है कि 2017 तक वह जैव ईंधन से हमारी यातायात की 10 प्रतिशत जरूरतों को पूरा कर लें। इसके तहत 12 मिलियन हेक्टेयर जमीन ऊर्जा फसलों की खेती में लाई जाएगी और ये वह जमीन है जोकि बंजर व अनुपजाऊ है। किसानों और ग्रामीण रोजगार की दृष्टि से देखने पर बायोडीजल की कई खूबियां नज़र आती हैं। बायोडीज़ल को संग्रहित किया जा सकता है जबकि सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा आदि को संग्रहित नहीं किया जा सकता है। जैट्रोफा की खेती को बढ़ावा देने के लिये किसानों को अनुदान (सब्सिडी) देना तथा उत्पादन होने पर उचित मूल्य पर खरीदना आवश्यक है। विदेशों में जहां खाद्य तेल के बीजों से बायोडीजल बनाया जाता है वहां उनके पास सोयाबीन, राई, मूंगफली, सूरजमुखी आदि कई विकल्प हैं किंतु अधिक बायोडीजल का उत्पादन करने हेतु हमारे यहां बायोडीजल उत्पादन के लिये जैट्रोफा (रतनजोत) के पौध सर्वदा उपयुक्त हैं क्योंकि इसे हम अकृषित भूमि तथा कम जल मांग वाले क्षेत्रों में भी उगा सकते हैं। इस पौधे को जानवरों द्वारा किसी भी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाई जाती है। जैट्रोफा की फसल जल्दी (करीब 3 साल में) आ जाती है तथा एक बार इसकी सघन खेती कर लेने पर तीस-चालीस वर्षों तक इसके फल-बीज उगते रहते हैं। जैट्रोफा दोनों तरह से उपयुक्त प्रजाति है। यह खेतों की मेड़ों पर भी लगाया जा सकता है तथा पूरे खेत में भी लगाया जा सकता है। प्रथम व द्वितीय वर्ष अंतः सस्य क्रिया विधि से भी की जा सकती है। जैट्रोफा करीब तीन-चार मीटर ऊंचा होता है, जिससे फल तोड़ना या छांटना आसान हो जाता है। हर गांव में जो भी बंजर जमीन है उस पर लगाने के लिये यह अत्यंत उपयोगी है। टिशू कल्चर के माध्यम से इसकी पहली फसल तीन के बजाय डेढ़ साल में पाई जा सकती है।
गांव में इस प्रकार के जो अखाद्य बीज पैदा होंगे, उनके छिलका उतारने व घानी से तेल निकालने का व्यवसाय गांव या कस्बे में ही किया जा सकता है। बायोडीजल की शुद्धता परखने का कार्य भी कस्बे स्तर पर किया जा सकता है। आज हमारे देश में एक सौ पचास करोड़ रुपये का कच्चा तेल आयात किया जाता है। इसमें से पांच प्रतिशत यानी साढ़े सात हजार करोड़ रुपये का फायदा किसान को होगा तो किसान के घर खुशहाली आ जाएगी। इस प्रकार बायोडीजल किसान की समृद्धि के साथ-साथ वैकल्पिक ऊर्जा का अच्छा साधन है। ग्रामीण जनता को रोजगार दिलाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान हो सकता है।
जैट्रोफा की कृषि विधियां
जैट्रोफा अथवा रतनजोत की विधिवत खेती भारत के मुख्यतः राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश तथा पंजाब राज्यों में की जाती है। संपूर्ण देश में इसकी खेती के लिए भारत सरकार की ओर से कई प्रोत्साहन योजनाएं प्रारंभ की गई हैं एवं इसकी खेती को विशेष बढ़ावा दिया जा रहा है। भारत सरकार, योजना आयोग, तेल मंत्रालय तथा कृषि विभाग इसके तेल को भविष्य के डीजल के रूप में देख रहा है। जैट्रोफा को न सिर्फ बायोडीजल की खेती के रूप में बल्कि और भी कई उपयोगों के लिए उगाया जा सकता है जिनमें दो महत्वपूर्ण रूप निम्नलिखित हैः-
1. जैट्रोफा पौधे का बाड़ के रूप में प्रयोग।
2. जैट्रोफा का नर्सरी के रूप में प्रयोग।
जैविक ईंधन के लिए जैट्रोफा एक बेहतरीन विकल्प
1. जैट्रोफा का पौधा ऊसर, बंजर, शुष्क, अर्द्ध शुष्क पथरीली और अन्य किसी भी प्रकार की भूमि पर आसानी से उगाया जा सकता है। जलभराव वाली जमीन में इसको नहीं उगाया जा सकता है।
2. पौधे को जानवर नहीं खाते हैं और न ही पक्षी नुकसान पहुंचाते हैं जिससे इसकी देखभाल करने की भी आवश्यकता नहीं है।
3. जैट्रोफा का पौधा बहुत ही कम समय में बढ़कर तैयार हो जाता है और लगाने (रोपाई) के दो वर्ष में उत्पादन प्रारंभ कर देता है।
4. जैट्रोफा के पौधे को बार-बार लगाने (रोपाई) की आवश्यकता नहीं है। एक बार लगाने पर निरंतर 45-50 वर्षों तक फसल (बीज उत्पादन) प्राप्त होती रहती है।
5. जैट्रोफा के बीजों में अन्य पौधों के बीजों की तुलना में तेल की मात्रा भी अधिक होती है। इससे 35-40 प्रतिशत तेल प्राप्त होता है।
6. जैट्रोफा के पौधों को उगाने से वर्तमान खाद्यान्न फसलों का क्षेत्र भी प्रभावित नहीं होगा। इसे देश भर में उपलब्ध लाखों एकड़ बंजर व बेकार पड़ी भूमि में उगाया जा सकेगा।
7. जैट्रोफा की खेती मात्र बायोडीजल उत्पादन की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है बल्कि इसकी खेती से देश भर में बेकार पड़ी हुई बंजर भूमि का उपयोग कर उसे सुधारा भी जा सकेगा।
8. जैट्रोफा की खेती से बंजर भूमि का कटाव रोका जा सकेगा, साथ ही यह पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता को बचाने में भी महत्वपूर्ण योगदान करेगा।
9. इसके पौधे को खेत की मेड़ों (मुंडेरों) पर लगाने से यह उत्पादन के साथ-साथ बाड़ का काम करेगा।
10. जैट्रोफा की खेती से गरीब और सीमांत किसानों तथा समाज के अन्य कमजोर वर्गों को खासतौर से गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले लोगों और महिलाओं को ग्रामीण/स्थानीय स्तर पर रोजगार और कमाई के अवसर प्राप्त होंगे।
11. इसकी खेती जिस भूमि में होगी उस भूमि को दीमक व व्हाइट ग्रब (सफेद लट्) की समस्या से पूर्ण छुटकारा मिल सकेगा।
बायोडीजल के गुण
1. बायोडीजल के भौतिक और रासायनिक गुण पेट्रोलियम ईंधनों से जरा अलग हैं। यह एक प्राकृतिक तेल है जो परंपरागत वाहनों से इंजन को चलाने में पूर्णतः सक्षम है।
2. इसके प्रयोग से निकलने वाला उत्सर्जन कोई प्रभाव नहीं छोड़ता क्योंकि इसमें धुंआं व गंध न के बराबर है।
3. बायोडीजल पेट्रोल की अपेक्षा जहरीले हाइड्रोकार्बन, कार्बन-मोनोक्साइड, सल्फर इत्यादि से वायु को दूषित नहीं करता है।
4. बायोडीजल स्वास्थ्य और पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित ईंधन है।
5. यह सरल जैव निम्नीकृत, न खत्म होने वाला, स्वच्छ और कार्यदक्ष ऊर्जा स्रोत है।
6. यह जैव ईधन अज्वलनशील होने के कारण सुरक्षित है इसलिए इसके भंडारण और परिवहन में कोई खतरा भी नहीं है।
7. जैट्रोफा व डीजल की अपेक्षा बायोडीजल बेहतर आंकटेन नम्बर देता है और यह गाड़ी के इंजन की आयु सीमा भी बढ़ा देता है।
जैट्रोफा के अन्य महत्व
1. यह वायुमंडल से कार्बन-डाइ-ऑक्साइड का अवशोषण करता है। उसी प्रकार रेगिस्तान के विस्तार को रोकता है।
2. बीजों से तेल निकालने के बाद बची खली का उपयोग ग्लिसरीन तथा साबुन बनाने में किया जाता है। खली में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जिसका उपयोग जानवरों के चारे के रूप में किया जाता है।
3. इसके रोपण से सूखे क्षेत्रों का जल स्तर बढ़ाकर पानी की समस्या से निजात पाया जा सकता है।
4. जैट्रोफा की व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देकर ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है तथा उनके जीवन-स्तर को सुधारा जा सकता है।
5. गांवों में इसके बीजों से दीपक जलाकर घरों में रोशनी उपलब्ध करायी जा सकती है।
6. पौधे के लेटेक्स में खरबूजे के मीजेक वायरस को रोकने की अद्भुत क्षमता पाई गई है।
7. इसके रस का उपयोग रंग बनाने में तथा तेल का साबुन निर्माण एवं मोमबत्तियां बनाने में किया जाता है।
जैट्रोफा के औषधीय गुण
1. जैट्रोफा के पूर्ण विकसित तने से निकलने वाले लाल रस का उपयोग घाव, जला, फोड़े आदि के उपचार में किया जाता है। इसे रक्त बहने वाले स्थान पर लगाने से रक्तस्राव तुरंत रुक जाता है।
2. इससे प्राप्त लेटेक्स में कैंसररोधी गुण पाए गए हैं।
3. बीजों का उपयोग पेट के कीड़े मारने तथा पेट साफ करने में किया जाता है।
4. लेटेक्स का उपयोग दांतों की समस्या में भी होता है।
5. ग्रामीण लोग इसकी पतली टहनियों का दातून के रूप में प्रयोग करते हैं।
6. उत्तरी सूडान में इसके बीज तथा फलों का उपयोग गर्भनिरोधक के रूप में किया जाता है।
7. जैट्रोफा के पत्ते के सत् में दस्तकारी गुण पाए गए हैं।
8. इसके लेटेक्स का उपयोग मक्खी के काटने पर भी किया जाता है।
9. पौधे की जड़ों की छाल गठिया तथा बीजों से ड्राप्सी, गाउट, लकवा और चर्मरोगों का इलाज किया जाता है।
10. होम्योपैथी में इसका उपयोग सर्दी में पसीना आने पर, उदर-शूल, ऐंठन तथा दस्त आदि बीमारियों के इलाज में किया जाता है।
जैट्रोफा का विश्व में उभरता दायरा
पौधों में पाए जाने वाले तरल हाइड्रोकार्बन को ईंधन के तौर पर बहुत पहले ही पहचान लिया गया था। प्रसिद्ध जीव शास्त्री मेलविन कालविन जब प्रकाश संश्लेषण पर कार्य कर रहे थे तो उन्होंने अनेक पौधक प्रजातियों को पृथक किया जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा बने जैव पदार्थों के एक महत्वपूर्ण भाग को लेटेक्स में बदलने की क्षमता रखते हैं। कालविन के अनुसार इस लेटेक्स में मौजूद हाइड्रोकार्बन में बदले जा सकते हैं। उन्होंने वनस्पति समुदाय को अनेक पेट्रोलियम प्रजातियों से अवगत कराया। एपोसाइनेसी, एस्कलेपियाडेसी, यूफारबायसी आदि कुटुम्ब के सदस्य पेट्रोलियम गुणों से युक्त हैं जो जैव ऊर्जा के उत्तम स्रोत हैं और पेट्रोल व डीजल का श्रेष्ठ विकल्प हैं। 20वीं सदी के प्रारंभ में डीजल इंजन के आविष्कारक रूडोलफ डीजल ने भी बायोडीजल की उपयोगिता को पहचाना था। उन्होंने वनस्पति तेल से गाड़ी चलाने के कई प्रयोग किए तथा साथ ही भविष्य में पेट्रोलियम भंडार खत्म हो जाने पर जैव ईंधन के इस्तेमाल की सलाह भी 1912 में ही दे दी थी।
भारत में अब तक 60,000 हेक्टेयर जमीन आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से जैट्रोफा की खेती में लाई गई है जोकि 0.3-0.5 बिलियन लीटर बायोडीजल उपलब्ध कराएगी। अमेरिका में ऊर्जा और पर्यावरण योजना के अंतर्गत जैव ऊर्जा कार्यक्रम में बायोडीजल की आपूर्ति हेतु ऊर्जा फसलों की खेती और उसके वैकल्पिक बाजार को प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि आगामी दशकों में परंपरागत ऊर्जा स्रोत पर संयुक्त राष्ट्र की निर्भरता को घटाया जा सके।
ब्राजील में बहुत पहले ही पेट्रोल की जगह गन्ने से मिलने वाले एथेनॉल का प्रयोग हो रहा है। ऑस्ट्रिया ने भी नब्बे के दशक की शुरुआत में रेपसीड तेल से निकले मिथाइल एस्टर को ही बिना बदले डीजल इंजन में प्रयोग करना प्रारंभ कर दिया था। कनाडा और कई यूरोपीय देश अब बायोडीजल अपनाने के लिए विभिन्न जांच प्रक्रिया में लगे हुए हैं। स्पेन में सूर्यमुखी के तेल से मिलने वाला बायोडीजल प्रचलन में आ चुका है। डीजल इंजन पर जैव ईंधन की परख उसकी श्यानता स्फुशंक, अम्ल मूल्य इत्यादि के आधार पर की गई इष्टतम व अनुकूलतम ऊर्जा स्रोत का दर्जा दिया गया है। अमेरिका में सोयाबीन तेल से प्राप्त बायोडीजल को शीत सहनीकरण की प्रक्रियाओं से गुजरने के पश्चात् जैट ईंधन के साथ मिश्रित कर हवाई जहाज उड़ाया गया।
भारत में ऊर्जा फसलों की खेती
बायोडीजल के लिए भारत में भी कार्य प्रगति पर है। सरकारी एवं गैर-सरकारी सहित अनेक संस्थाओं ने इस कार्य का बीड़ा उठाया है। रक्षा मंत्रालय ने भी इस कार्य में रुचि दिखाकर अनेक कदम उठाए हैं। रक्षा मंत्रालय के निर्देश पर रक्षा अनुसंधान तथा विकास संगठन के अंतर्गत रक्षा कृषि अनुसंधान प्रयोगशाला, पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड) ने बायोडीजल और ऊर्जा फसलों पर वृहत अनुसंधान कार्य प्रारंभ कर, जैट्रोफा की दो प्रजातियां डीएआरएल-1 व डीएआरएल-2 पता लगाई जिनमें 34.4 प्रतिशत व 36.5 प्रतिशत तेल मौजूद है। इस डीआरडीओ की पहल से सैन्य बल को वाहनों के लिए भविष्य में तेल उपलब्ध कराया जाएगा। इस अनुसंधान के अंतर्गत कई मिलिट्री फार्म महु, सिकंदराबाद, अहमदनगर में बनाए गए हैं। ये केन्द्र न केवल बायोडीजल (जैट्रोफा) पर अनुसंधान कर हमारे सैन्य बल को आत्मसुरक्षा व आत्मविश्वास देगा बल्कि पर्यावरण के संतुलन में भी एक अहम भूमिका निभाएगा। इसके शीघ्र परिणामों की आशा की जा रही है।
देश में लाखों हेक्टेयर बेकार पड़ी जमीन पर बायोडीजल के लिए ऊर्जा फसलों की खेती का भी प्रावधान है। भारत सरकार की उम्मीद है कि 2017 तक वह जैव ईंधन से हमारी यातायात की 10 प्रतिशत जरूरतों को पूरा कर लें। इसके तहत 12 मिलियन हेक्टेयर जमीन ऊर्जा फसलों की खेती में लाई जाएगी और ये वह जमीन है जोकि बंजर व अनुपजाऊ है। भारत में अब तक 60,000 हेक्टेयर जमीन आंध्र प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ से जैट्रोफा की खेती में लाई गई है जोकि 0.3-0.5 बिलियन लीटर बायोडीजल उपलब्ध कराएगी।
Saturday, August 22, 2015
वाइल्ड लाइफ जीव संरक्षण का सजीव कैरियर
यदि प्राकृतिक संतुलन
को बनाए रखना है और आने वाले पीढ़ी को एक स्वस्थ पर्यावरण मुहैया करना है,
तो जीव-जंतुओं के बीच की कड़ी को हमेशा बनाए रखना होगा। यही वजह है कि आज
वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स की जरूरत भारत में
ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी खूब है…
कुछ वर्ष पहले तक पक्षियों की चहचहाहट केवल गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी आसानी से सुनी जा सकती थी,लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण पक्षियों का कोलाहल शहरों में अब कम ही सुनने को मिलता है। पक्षी व जानवर अपने आवास को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। कई जीव-जंतु विलुप्त हो गए हैं, तो कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं क्योंकि शहरीकरण बढ़ने लगा है और वन सिमटने लगे हैं। ऐसे में यदि वाइल्ड लाइफ आपको आकर्षित करता है, तो वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के क्षेत्र में आप शानदार कैरियर बना सकते हैं। सच पूछिए, तो वाइल्ड लाइफ और पर्यावरण हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मसलन छोट-छोटे इंसेक्ट्स को भी हम दरकिनार नहीं कर सकते क्योंकि इन्हीं की वजह से फसलें पॉलिनेट हो पाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हर जीव-जंतु प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने में विशेष भूमिका निभाता है।यदि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखना है और आने वाले पीढ़ी को एक स्वस्थ पर्यावरण मुहैया करना है, तो जीव-जंतुओं के बीच की कड़ी को हमेशा बनाए रखना होगा। यही वजह है कि आज वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स की जरूरत भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी खूब है।
योग्यता
इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए विज्ञान विषय से 12वीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है और 12वीं के बाद बायोलॉजिकल साइंस से बीएससी की डिग्री जरूरी है। एग्रीकल्चर में बैचलर डिग्री भी इस क्षेत्र में प्रवेश दिला सकती है। फोरेस्ट्री या एन्वायरनमेंटल साइंस से भी स्नातक की डिग्री ली जा सकती है। बीएससी के बाद वाइल्ड लाइफ साइंस से एमएससी करने वालों के लिए भी यह क्षेत्र असीम संभावनाओं से भरा हुआ है।
क्या हैं कार्य
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट मुख्यता वाइल्ड लाइफ साइंस का हिस्सा होते हैं। वाइल्ड लाइफ साइंस में ईको सिस्टम का अध्ययन और जंगली जानवरों का संरक्षण संबंधी अध्ययन कराया जाता है। वाइल्ड लाइफ रिसोर्स मैनेजमेंट के लिए इस क्षेत्र में आर्थिक व सामाजिक कारणों का पूरा ब्यौरा दिया जाता है। इस क्षेत्र में अध्ययनरत छात्रों को वाइल्ड लाइफ से जुड़े हर पहलू का ज्ञान दिया जाता है। इनसान व जंगली जानवरों के बीच अचानक आमना-सामना होने पर किस तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं और इन्हें कैसे कम किया जा सकता है, इस बारे में ही छात्रों को जानकारी दी जाती है।
जोखिम के साथ पैसा भी
यदि आपको प्रकृति और वन्य जीवों से थोड़ा सा भी लगाव है या इनके क्रियाकलापों और जीवन को जानने में आपकी विशेष रुचि है तो समझ लीजिए आपकी रोजगार की राहें खुल गईं। क्योंकि सरकारी संस्थाओं के अलावा देश-विदेश के एनजीओ भी वाइल्ड लाइफ से जुड़े कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए कुशल वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की तलाश कर रहे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तरह सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन यदि आपमें काम करने का जुनून है तो पैसे कोई मायने नहीं रखते। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के काम को समझते हुए संस्थाएं इस क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों को धन संबंधी समस्याएं नहीं आने देती हैं।
वेतनमान
प्राइवेट सेक्टर में वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट को शुरुआती चरण में 10 से 15 हजार रुपए मासिक वेतनमान मिलता है। मध्य अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते यह 20 हजार रुपए तक हो सकता है। पीएचडी डिग्री होल्डर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की 30 हजार रुपए प्रतिमाह तक आय हो सकती है। इसके विपरीत एनजीओ या सरकारी विभाग में वाइल्ड लाइफ साइंस से जुड़े कर्मचारियों को काफी ऊंचे वेतनमान पर नौकरियां मिलती हैं।
रोजगार के अवसर
जीव-जंतुओं को बचाने के लिए सरकार ने कई वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसमें टाइगर प्रोजेक्ट प्रमुख है। इस प्रोजेक्ट की सहायता से टाइगर को बचाने में काफी मदद मिली है। इतना ही नहीं, भारत सरकार वाइल्ड लाइफ सुरक्षित रखने के लिए वाइल्ड लाइफ रिजर्व और अभयारण्य को खूब बढ़ावा दे रही है। इस क्षेत्र में आज संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। अपेक्षित डिग्री हासिल करने के बाद आप मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, वर्ल्ड वाइल्ड फंड, वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के अलावा कई ऐसे आर्गेनाइजेशंज हैं, जिनमें रिसर्चर और प्रोजेक्ट आफिसर्ज के रूप में काम कर सकते हैं। वाइल्ड बायोलॉजिस्ट के क्षेत्र में भी भरपूर अवसर हैं। इस क्षेत्र में कोर्स पूरा करने के बाद आप वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरीज, एन्वायरनमेंटल एजेंसी, जूलॉजिकल फर्म, एन्वायरनमेंटल कंसल्टेंसी फर्म, नॉन गवर्नमेंटल आर्गेनाइजेशन, एग्रीकल्चरल कंसल्टेंट फर्म, इंडियन काउंसिल आफ फोरेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन और ईको रिहैबिलिटेशन फर्मों में नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। वाइल्ड लाइफ और एनिमल कंजर्वेशन में डिग्री रखने वाले छात्रों के लिए इस फील्ड में जॉब के बेहतर अवसर हैं। छात्रों के लिए इथोलाजिस्ट, इंटोमोलाजिस्ट, सिल्वि कल्चरिस्ट, फोरेस्ट रेंज आफिसर, जू क्यूरेटर्स, एनिमल साइटोलॉजी, जेनेटिक्स, न्यूट्रीशन आदि के रूप में काम करने का बेहतरीन मौका होता है।
कोर्स
1.बीएससी इन वाइल्ड लाइफ
2. एमएससी इन वाइल्ड लाइफ बायोलॉजी
3. एमएससी इन वाइल्ड लाइफ
4. पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री इन वाइल्ड लाइफ साइंस
5. अंडर ग्रेजुएट कोर्स इन वाइल्ड लाइफ
6. पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एडवांस्ड वाइल्ड लाइफ
7. बीएससी इन फोरेस्ट्री इन वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट
8. वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी कोर्स
9. डिप्लोमा इन जू एंड वाइल्ड एनिमल हैल्थ केयर एंड मैनेजमेंट
10. सर्टिफिकेट कोर्स इन वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट
11. सर्टिफिकेट कोर्स इन फोरेस्ट मैनेजमेंट
प्रमुख शिक्षण संस्थान
1. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना
2. हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हिसार
3.वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, नई दिल्ली
4. फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट देहरादून
5. इंडियन इंस्टीच्यूट आफ फोरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल
6. हिमालयन फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट, शिमला
7. कुमाऊं यूनिवर्सिटी, नैनीताल
8. मणिपुर यूनिवर्सिटी, इम्फाल
9. वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, देहरादून
कुछ वर्ष पहले तक पक्षियों की चहचहाहट केवल गांवों में ही नहीं बल्कि शहरों में भी आसानी से सुनी जा सकती थी,लेकिन बढ़ते शहरीकरण के कारण पक्षियों का कोलाहल शहरों में अब कम ही सुनने को मिलता है। पक्षी व जानवर अपने आवास को छोड़ने पर मजबूर हो गए हैं। कई जीव-जंतु विलुप्त हो गए हैं, तो कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं क्योंकि शहरीकरण बढ़ने लगा है और वन सिमटने लगे हैं। ऐसे में यदि वाइल्ड लाइफ आपको आकर्षित करता है, तो वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के क्षेत्र में आप शानदार कैरियर बना सकते हैं। सच पूछिए, तो वाइल्ड लाइफ और पर्यावरण हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मसलन छोट-छोटे इंसेक्ट्स को भी हम दरकिनार नहीं कर सकते क्योंकि इन्हीं की वजह से फसलें पॉलिनेट हो पाती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि हर जीव-जंतु प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने में विशेष भूमिका निभाता है।यदि प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखना है और आने वाले पीढ़ी को एक स्वस्थ पर्यावरण मुहैया करना है, तो जीव-जंतुओं के बीच की कड़ी को हमेशा बनाए रखना होगा। यही वजह है कि आज वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स की जरूरत भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी खूब है।
योग्यता
इस क्षेत्र में प्रवेश के लिए विज्ञान विषय से 12वीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है और 12वीं के बाद बायोलॉजिकल साइंस से बीएससी की डिग्री जरूरी है। एग्रीकल्चर में बैचलर डिग्री भी इस क्षेत्र में प्रवेश दिला सकती है। फोरेस्ट्री या एन्वायरनमेंटल साइंस से भी स्नातक की डिग्री ली जा सकती है। बीएससी के बाद वाइल्ड लाइफ साइंस से एमएससी करने वालों के लिए भी यह क्षेत्र असीम संभावनाओं से भरा हुआ है।
क्या हैं कार्य
वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट मुख्यता वाइल्ड लाइफ साइंस का हिस्सा होते हैं। वाइल्ड लाइफ साइंस में ईको सिस्टम का अध्ययन और जंगली जानवरों का संरक्षण संबंधी अध्ययन कराया जाता है। वाइल्ड लाइफ रिसोर्स मैनेजमेंट के लिए इस क्षेत्र में आर्थिक व सामाजिक कारणों का पूरा ब्यौरा दिया जाता है। इस क्षेत्र में अध्ययनरत छात्रों को वाइल्ड लाइफ से जुड़े हर पहलू का ज्ञान दिया जाता है। इनसान व जंगली जानवरों के बीच अचानक आमना-सामना होने पर किस तरह के नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं और इन्हें कैसे कम किया जा सकता है, इस बारे में ही छात्रों को जानकारी दी जाती है।
जोखिम के साथ पैसा भी
यदि आपको प्रकृति और वन्य जीवों से थोड़ा सा भी लगाव है या इनके क्रियाकलापों और जीवन को जानने में आपकी विशेष रुचि है तो समझ लीजिए आपकी रोजगार की राहें खुल गईं। क्योंकि सरकारी संस्थाओं के अलावा देश-विदेश के एनजीओ भी वाइल्ड लाइफ से जुड़े कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए कुशल वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट की तलाश कर रहे हैं। हालांकि इस क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों की तरह सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन यदि आपमें काम करने का जुनून है तो पैसे कोई मायने नहीं रखते। वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट के काम को समझते हुए संस्थाएं इस क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों को धन संबंधी समस्याएं नहीं आने देती हैं।
वेतनमान
प्राइवेट सेक्टर में वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट को शुरुआती चरण में 10 से 15 हजार रुपए मासिक वेतनमान मिलता है। मध्य अवस्था तक पहुंचते-पहुंचते यह 20 हजार रुपए तक हो सकता है। पीएचडी डिग्री होल्डर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की 30 हजार रुपए प्रतिमाह तक आय हो सकती है। इसके विपरीत एनजीओ या सरकारी विभाग में वाइल्ड लाइफ साइंस से जुड़े कर्मचारियों को काफी ऊंचे वेतनमान पर नौकरियां मिलती हैं।
रोजगार के अवसर
जीव-जंतुओं को बचाने के लिए सरकार ने कई वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन प्रोग्राम की शुरुआत की है। इसमें टाइगर प्रोजेक्ट प्रमुख है। इस प्रोजेक्ट की सहायता से टाइगर को बचाने में काफी मदद मिली है। इतना ही नहीं, भारत सरकार वाइल्ड लाइफ सुरक्षित रखने के लिए वाइल्ड लाइफ रिजर्व और अभयारण्य को खूब बढ़ावा दे रही है। इस क्षेत्र में आज संभावनाओं की कोई कमी नहीं है। अपेक्षित डिग्री हासिल करने के बाद आप मुंबई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी, वर्ल्ड वाइल्ड फंड, वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट आफ इंडिया के अलावा कई ऐसे आर्गेनाइजेशंज हैं, जिनमें रिसर्चर और प्रोजेक्ट आफिसर्ज के रूप में काम कर सकते हैं। वाइल्ड बायोलॉजिस्ट के क्षेत्र में भी भरपूर अवसर हैं। इस क्षेत्र में कोर्स पूरा करने के बाद आप वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरीज, एन्वायरनमेंटल एजेंसी, जूलॉजिकल फर्म, एन्वायरनमेंटल कंसल्टेंसी फर्म, नॉन गवर्नमेंटल आर्गेनाइजेशन, एग्रीकल्चरल कंसल्टेंट फर्म, इंडियन काउंसिल आफ फोरेस्ट रिसर्च एंड एजुकेशन और ईको रिहैबिलिटेशन फर्मों में नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। वाइल्ड लाइफ और एनिमल कंजर्वेशन में डिग्री रखने वाले छात्रों के लिए इस फील्ड में जॉब के बेहतर अवसर हैं। छात्रों के लिए इथोलाजिस्ट, इंटोमोलाजिस्ट, सिल्वि कल्चरिस्ट, फोरेस्ट रेंज आफिसर, जू क्यूरेटर्स, एनिमल साइटोलॉजी, जेनेटिक्स, न्यूट्रीशन आदि के रूप में काम करने का बेहतरीन मौका होता है।
कोर्स
1.बीएससी इन वाइल्ड लाइफ
2. एमएससी इन वाइल्ड लाइफ बायोलॉजी
3. एमएससी इन वाइल्ड लाइफ
4. पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री इन वाइल्ड लाइफ साइंस
5. अंडर ग्रेजुएट कोर्स इन वाइल्ड लाइफ
6. पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन एडवांस्ड वाइल्ड लाइफ
7. बीएससी इन फोरेस्ट्री इन वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट
8. वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी कोर्स
9. डिप्लोमा इन जू एंड वाइल्ड एनिमल हैल्थ केयर एंड मैनेजमेंट
10. सर्टिफिकेट कोर्स इन वाइल्ड लाइफ मैनेजमेंट
11. सर्टिफिकेट कोर्स इन फोरेस्ट मैनेजमेंट
प्रमुख शिक्षण संस्थान
1. पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना
2. हरियाणा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, हिसार
3.वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, नई दिल्ली
4. फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट देहरादून
5. इंडियन इंस्टीच्यूट आफ फोरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल
6. हिमालयन फोरेस्ट रिसर्च इंस्टीच्यूट, शिमला
7. कुमाऊं यूनिवर्सिटी, नैनीताल
8. मणिपुर यूनिवर्सिटी, इम्फाल
9. वाइल्ड लाइफ इंस्टीच्यूट आफ इंडिया, देहरादून
Friday, August 21, 2015
जेनेटिक्स: जीवन से जुड़ा करियर
जेनेटिक्स करियर की संभावनाओं से भरपूर एक बेहतरीन विषय है। इसकी पढ़ाई
देश-विदेश में रोजगार के मौके प्रदान करती है। इसकी पढ़ाई और करियर के बारे
में बता रही हैं नमिता सिंह-
आनुवंशिकता (जेनेटिक्स) जन्मजात शक्ति है, जो प्राणी के रूप-रंग, आकृति, यौन, बुद्धि तथा विभिन्न शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करती है। आनुवंशिकता को समझने के लिए आवश्यक है कि पहले वंशानुक्रम को भली-भांति समझा जाए। मुख्यत: वंशानुक्रम उन सभी कारकों को सम्मिलित करता है, जो व्यक्ति में जीवन आरम्भ करने के समय से ही उपस्थित होते हैं यानी वंशानुक्रम विभिन्न शारीरिक व मानसिक गुणों का वह समूह है, जो जन्मजात होते हैं। इस विषय के जानकारों की मानें तो आनुवंशिकता के बिना जीव की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आनुवंशिक क्षमताओं के विकास के लिए उपयुक्त और सुंदर वातावरण काफी सहायक होते हैं। आनुवंशिकता हमें क्षमताएं देती है और वातावरण उन क्षमताओं का विकास करता है।
क्या है जेनेटिक्स
जेनेटिक्स विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें वंशानुक्रम एवं डीएनए में बदलाव का अध्ययन किया जाता है। इस काम में बायोलॉजिकल साइंस का ज्ञान काफी लाभ पहुंचाता है। जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट का काम काफी मिलता-जुलता है। ये जीन्स और शरीर में होने वाली आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करते हैं। आने वाले कुछ दशकों में जेनेटिक्स के चलते कई अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलेंगे। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (बीएलएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट की जॉब संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2022 तक बनी रहने की उम्मीद है।
क्या काम है प्रोफेशनल्स का
जेनेटिक प्रोफेशनल्स का कार्य क्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जीव-जन्तु, पौधे व अन्य मानवीय पहलुओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। जीन्स व डीएनए को सही क्रम में व्यवस्थित करने, पीढियों में बदलाव को परखने, पौधों की उन्नत किस्म के हाइब्रिड का विकास, पौधों की बीमारियों को जीन्स द्वारा दूर भगाने सरीखा कार्य किया जाता है। जीवों में इनका काम वंशानुगत चले आ रहे दुष्प्रभावों को जड़ से खत्म करना है। बतौर जेनेटिसिस्ट आप फिजिशियन के साथ मिल कर या सीधे तौर पर मरीजों या वंशानुक्रम बीमारियों से ग्रसित लोगों का उपचार कर सकते हैं।
जेनेटिक्स के कार्य क्षेत्र
जेनेटिक्स के अंतर्गत निम्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है-
जेनेटिक साइंस- इस भाग के अंतर्गत जेनेटिक साइंटिस्ट पौधों, जीव-जन्तुओं व ह्यूमन टिशू के सैंपल में जीन्स की पहचान करते हैं। यह कार्य शोध से भरा होता है।
बायो जेनेटिक्स- यह डॉक्ट्रल लेवल की विधा है। इसमें जीन्स की संरचना, कार्य व बनावट के अलावा आनुवंशिकी के सिद्धांत एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है।
मॉलिकुलर जेनेटिक्स- इसे बायो केमिकल जेनेटिक्स कहा जाता है। सामान्यत: इसके अंतर्गत सेल के अंदर प्रोटीन्स या डीएनए मॉलिक्यूल्स का अध्ययन किया जाता है।
कैटोजेनेटिक्स- यह जेनेटिक्स के क्षेत्र का काफी प्रचलित विषय है। इसमें सेल की संरचना और क्रोमोजोम्स का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग- इस भाग में जीन की संरचना, परिचालन, पुन: व्यवस्थित करने, उसके संकेतों तथा जेनेटिक्स डिसऑर्डर का अध्ययन किया जाता है।
पॉपुलेशन जेनेटिक्स- इस शाखा के अंतर्गत जीव-जन्तुओं में प्रजनन व उत्परिवर्तन की प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसमें गंभीर रोगों से बचाव विधि का भी अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक काउंसलर्स- जेनेटिक काउंसलर का काम किसी परिवार की मेडिकल हिस्ट्री का अध्ययन करते हुए डिसऑर्डर व अन्य वंशानुगत बीमारियों को दूर करना है।
कब ले सकते हैं दाखिला
इस क्षेत्र में बैचलर से लेकर पीएचडी तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र अपनी योग्यता व सुविधानुसार किसी एक का चयन कर सकते हैं। बैचलर कोर्स में दाखिला बारहवीं (विज्ञान वर्ग) के पश्चात मिलता है, जबकि मास्टर कोर्स में प्रवेश बीएससी व संबंधित स्ट्रीम में बैचलर के बाद होता है।
मास्टर कोर्स के पश्चात डॉक्ट्रल, एमफिल व पीएचडी तक की राह आसान हो जाती है। इनके सभी कोर्सो में प्रैक्टिकल की अधिकता रहती है। कई मेडिकल कॉलेज बारहवीं के पश्चात ह्यूमन बायोलॉजी का कोर्स कराते हैं। यह काफी मनोरंजक विषय है।
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोई भी प्रोफेशनल तभी लंबी रेस का घोडम बन सकता है, जब उसे विषय की अच्छी समझ हो। उसे रिसर्च अथवा वंशानुक्रम खोजों के सिलसिले में कई बार गहराई में जाना पड़ता है, इसलिए उसे अपने अंदर धर्य का गुण अपनाना पड़ता है। इसके अलावा उसके पास मैथमेटिक्स और एनालिटिकल नॉलेज का होना जरूरी है।
कार्य का स्वरूप
जेनेटिक्स साइंटिस्ट का कार्य प्रयोगशाला से संबंधित होता है। इनका ज्यादातर समय माइक्रोस्कोप, कम्प्यूटर एवं अन्य उपकरणों के साथ बीतता है, क्योंकि उन्हें विभिन्न तरह के प्रयोग करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है। ऐसा भी होता है कि वर्षों मेहनत करने के बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता। उन्हें प्रोजेक्ट व रिपोर्ट तैयार करने में भी अधिक समय खर्च करना पड़ता है। इनकी कार्यशैली ऐसी है कि उन्हें साइंटिस्ट की टीम के साथ या प्रयोगशाला में सहायता करनी पड़ती है।
रोजगार की संभावनाएं
पिछले कुछ वर्षों में जेनेटिक प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ी है। इसमें देश व विदेश दोनों जगह समान रूप से अवसर मौजूद हैं। सबसे ज्यादा मौका मेडिकल व फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में मिलता है। एग्रीकल्चर सेक्टर भी रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आया है। सरकारी व प्राइवेट क्षेत्रों के रिसर्च एवं डेवलपमेंट विभाग में पहले से ज्यादा अवसर सामने आए हैं। टीचिंग का विकल्प हमेशा ही उपयोगी रहा है।
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी पैकेज काफी कुछ संस्थान एवं कार्य अनुभव पर निर्भर करता है। शुरुआती चरण में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर प्रोफेशनल्स को 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, उनकी सेलरी में भी इजाफा होता जाता है। आमतौर पर चार-पांच साल के अनुभव के पश्चात प्रोफेशनल्स को 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को मोटी रकम मिलती है। आज कई ऐसे प्रोफेशनल्स हैं, जिनका सालाना पैकेज लाखों में है। विदेश में जॉब मिलने पर सेलरी काफी आकर्षक होती है।
एक्सपर्ट्स व्यू
लैब में अधिक समय व्यतीत करना होगा
वर्तमान समय में वैक्सिनेशन, टेस्ट टय़ूब बेबी, क्लोनिंग आदि का चलन चरम पर है। यह सब जेनेटिक्स की ही देन है। देश-विदेश में क्लोनिंग पर काफी प्रयोग किए जा रहे हैं। अभी यह प्रयोग जानवरों पर ही किए जा रहे हैं। इसके अलावा किसी भी रोग के पैटर्न, थैलीसीमिया, एनीमिया, कलर ब्लाइंडनेस आदि पर भी तेजी से काम चल रहा है।
कोर्स के दौरान छात्रों को बायोलॉजिकल फंक्शन, मैथमेटिक्स व फिजिक्स के बारे में जानकारी बढ़ानी पड़ती है। फिजिक्स के जरिए उन्हें प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप व उसके प्रयोग के बारे में बताया जाता है। छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रयोगशाला में ज्यादा से ज्यादा समय खर्च करें। जेनेटिक्स के क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों में अमेरिका और न्यूजीलैंड में ज्यादा प्रयोग किए जा रहे हैं, जबकि भारत उनकी अपेक्षा काफी पीछे है। विदेशों में काम की अधिकता है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि यहां पर प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उन्हें सही मौका और प्लेटफॉर्म मिलने की जरूरत है। इस समय यहां पर रिसर्च, फूड प्रोसेसिंग, ऑप्टिकल फाइबर, केमिकल इंडस्ट्री में तेजी से अवसर सामने आए हैं।
- निलांजन बोस
वेल्फेयर ऑफिसर
इंस्टीटय़ूट ऑफ जेनेटिक इंजी., कोलकाता
प्रमुख संस्थान
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग, कोलकाता वेबसाइट- www.ige-india.co
इंस्टीटय़ृट ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स, गुजरात
वेबसाइट- www.geneticcentre.org
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
वेबसाइट- www.iitkgp.ac.in
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक्स एंड हॉस्पिटल फॉर जेनेटिक डिजीज, हैदराबाद
वेबसाइट- www.instituteofgenetics.org
आनुवंशिकता (जेनेटिक्स) जन्मजात शक्ति है, जो प्राणी के रूप-रंग, आकृति, यौन, बुद्धि तथा विभिन्न शारीरिक व मानसिक क्षमताओं का निर्धारण करती है। आनुवंशिकता को समझने के लिए आवश्यक है कि पहले वंशानुक्रम को भली-भांति समझा जाए। मुख्यत: वंशानुक्रम उन सभी कारकों को सम्मिलित करता है, जो व्यक्ति में जीवन आरम्भ करने के समय से ही उपस्थित होते हैं यानी वंशानुक्रम विभिन्न शारीरिक व मानसिक गुणों का वह समूह है, जो जन्मजात होते हैं। इस विषय के जानकारों की मानें तो आनुवंशिकता के बिना जीव की उत्पत्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आनुवंशिक क्षमताओं के विकास के लिए उपयुक्त और सुंदर वातावरण काफी सहायक होते हैं। आनुवंशिकता हमें क्षमताएं देती है और वातावरण उन क्षमताओं का विकास करता है।
क्या है जेनेटिक्स
जेनेटिक्स विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें वंशानुक्रम एवं डीएनए में बदलाव का अध्ययन किया जाता है। इस काम में बायोलॉजिकल साइंस का ज्ञान काफी लाभ पहुंचाता है। जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट का काम काफी मिलता-जुलता है। ये जीन्स और शरीर में होने वाली आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करते हैं। आने वाले कुछ दशकों में जेनेटिक्स के चलते कई अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिलेंगे। यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स (बीएलएस) की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में जेनेटिसिस्ट व बायोलॉजिकल साइंटिस्ट की जॉब संख्या में करीब 19 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह वृद्धि 2022 तक बनी रहने की उम्मीद है।
क्या काम है प्रोफेशनल्स का
जेनेटिक प्रोफेशनल्स का कार्य क्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जीव-जन्तु, पौधे व अन्य मानवीय पहलुओं का विस्तार से अध्ययन किया जाता है। जीन्स व डीएनए को सही क्रम में व्यवस्थित करने, पीढियों में बदलाव को परखने, पौधों की उन्नत किस्म के हाइब्रिड का विकास, पौधों की बीमारियों को जीन्स द्वारा दूर भगाने सरीखा कार्य किया जाता है। जीवों में इनका काम वंशानुगत चले आ रहे दुष्प्रभावों को जड़ से खत्म करना है। बतौर जेनेटिसिस्ट आप फिजिशियन के साथ मिल कर या सीधे तौर पर मरीजों या वंशानुक्रम बीमारियों से ग्रसित लोगों का उपचार कर सकते हैं।
जेनेटिक्स के कार्य क्षेत्र
जेनेटिक्स के अंतर्गत निम्न क्षेत्रों को शामिल किया जाता है-
जेनेटिक साइंस- इस भाग के अंतर्गत जेनेटिक साइंटिस्ट पौधों, जीव-जन्तुओं व ह्यूमन टिशू के सैंपल में जीन्स की पहचान करते हैं। यह कार्य शोध से भरा होता है।
बायो जेनेटिक्स- यह डॉक्ट्रल लेवल की विधा है। इसमें जीन्स की संरचना, कार्य व बनावट के अलावा आनुवंशिकी के सिद्धांत एवं विविधता का अध्ययन किया जाता है।
मॉलिकुलर जेनेटिक्स- इसे बायो केमिकल जेनेटिक्स कहा जाता है। सामान्यत: इसके अंतर्गत सेल के अंदर प्रोटीन्स या डीएनए मॉलिक्यूल्स का अध्ययन किया जाता है।
कैटोजेनेटिक्स- यह जेनेटिक्स के क्षेत्र का काफी प्रचलित विषय है। इसमें सेल की संरचना और क्रोमोजोम्स का विस्तार से अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक इंजीनियरिंग- इस भाग में जीन की संरचना, परिचालन, पुन: व्यवस्थित करने, उसके संकेतों तथा जेनेटिक्स डिसऑर्डर का अध्ययन किया जाता है।
पॉपुलेशन जेनेटिक्स- इस शाखा के अंतर्गत जीव-जन्तुओं में प्रजनन व उत्परिवर्तन की प्रक्रियाएं शामिल हैं। इसमें गंभीर रोगों से बचाव विधि का भी अध्ययन किया जाता है।
जेनेटिक काउंसलर्स- जेनेटिक काउंसलर का काम किसी परिवार की मेडिकल हिस्ट्री का अध्ययन करते हुए डिसऑर्डर व अन्य वंशानुगत बीमारियों को दूर करना है।
कब ले सकते हैं दाखिला
इस क्षेत्र में बैचलर से लेकर पीएचडी तक के कोर्स मौजूद हैं। छात्र अपनी योग्यता व सुविधानुसार किसी एक का चयन कर सकते हैं। बैचलर कोर्स में दाखिला बारहवीं (विज्ञान वर्ग) के पश्चात मिलता है, जबकि मास्टर कोर्स में प्रवेश बीएससी व संबंधित स्ट्रीम में बैचलर के बाद होता है।
मास्टर कोर्स के पश्चात डॉक्ट्रल, एमफिल व पीएचडी तक की राह आसान हो जाती है। इनके सभी कोर्सो में प्रैक्टिकल की अधिकता रहती है। कई मेडिकल कॉलेज बारहवीं के पश्चात ह्यूमन बायोलॉजी का कोर्स कराते हैं। यह काफी मनोरंजक विषय है।
आवश्यक स्किल्स
इसमें कोई भी प्रोफेशनल तभी लंबी रेस का घोडम बन सकता है, जब उसे विषय की अच्छी समझ हो। उसे रिसर्च अथवा वंशानुक्रम खोजों के सिलसिले में कई बार गहराई में जाना पड़ता है, इसलिए उसे अपने अंदर धर्य का गुण अपनाना पड़ता है। इसके अलावा उसके पास मैथमेटिक्स और एनालिटिकल नॉलेज का होना जरूरी है।
कार्य का स्वरूप
जेनेटिक्स साइंटिस्ट का कार्य प्रयोगशाला से संबंधित होता है। इनका ज्यादातर समय माइक्रोस्कोप, कम्प्यूटर एवं अन्य उपकरणों के साथ बीतता है, क्योंकि उन्हें विभिन्न तरह के प्रयोग करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचना पड़ता है। ऐसा भी होता है कि वर्षों मेहनत करने के बावजूद कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाता। उन्हें प्रोजेक्ट व रिपोर्ट तैयार करने में भी अधिक समय खर्च करना पड़ता है। इनकी कार्यशैली ऐसी है कि उन्हें साइंटिस्ट की टीम के साथ या प्रयोगशाला में सहायता करनी पड़ती है।
रोजगार की संभावनाएं
पिछले कुछ वर्षों में जेनेटिक प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ी है। इसमें देश व विदेश दोनों जगह समान रूप से अवसर मौजूद हैं। सबसे ज्यादा मौका मेडिकल व फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री में मिलता है। एग्रीकल्चर सेक्टर भी रोजगार प्रदाता के रूप में सामने आया है। सरकारी व प्राइवेट क्षेत्रों के रिसर्च एवं डेवलपमेंट विभाग में पहले से ज्यादा अवसर सामने आए हैं। टीचिंग का विकल्प हमेशा ही उपयोगी रहा है।
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी पैकेज काफी कुछ संस्थान एवं कार्य अनुभव पर निर्भर करता है। शुरुआती चरण में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर प्रोफेशनल्स को 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, उनकी सेलरी में भी इजाफा होता जाता है। आमतौर पर चार-पांच साल के अनुभव के पश्चात प्रोफेशनल्स को 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स को मोटी रकम मिलती है। आज कई ऐसे प्रोफेशनल्स हैं, जिनका सालाना पैकेज लाखों में है। विदेश में जॉब मिलने पर सेलरी काफी आकर्षक होती है।
एक्सपर्ट्स व्यू
लैब में अधिक समय व्यतीत करना होगा
वर्तमान समय में वैक्सिनेशन, टेस्ट टय़ूब बेबी, क्लोनिंग आदि का चलन चरम पर है। यह सब जेनेटिक्स की ही देन है। देश-विदेश में क्लोनिंग पर काफी प्रयोग किए जा रहे हैं। अभी यह प्रयोग जानवरों पर ही किए जा रहे हैं। इसके अलावा किसी भी रोग के पैटर्न, थैलीसीमिया, एनीमिया, कलर ब्लाइंडनेस आदि पर भी तेजी से काम चल रहा है।
कोर्स के दौरान छात्रों को बायोलॉजिकल फंक्शन, मैथमेटिक्स व फिजिक्स के बारे में जानकारी बढ़ानी पड़ती है। फिजिक्स के जरिए उन्हें प्रयोगशाला में माइक्रोस्कोप व उसके प्रयोग के बारे में बताया जाता है। छात्रों को यह सलाह दी जाती है कि वे प्रयोगशाला में ज्यादा से ज्यादा समय खर्च करें। जेनेटिक्स के क्षेत्र में होने वाले प्रयोगों में अमेरिका और न्यूजीलैंड में ज्यादा प्रयोग किए जा रहे हैं, जबकि भारत उनकी अपेक्षा काफी पीछे है। विदेशों में काम की अधिकता है, लेकिन यह कहना गलत न होगा कि यहां पर प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है। उन्हें सही मौका और प्लेटफॉर्म मिलने की जरूरत है। इस समय यहां पर रिसर्च, फूड प्रोसेसिंग, ऑप्टिकल फाइबर, केमिकल इंडस्ट्री में तेजी से अवसर सामने आए हैं।
- निलांजन बोस
वेल्फेयर ऑफिसर
इंस्टीटय़ूट ऑफ जेनेटिक इंजी., कोलकाता
प्रमुख संस्थान
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक इंजीनियरिंग, कोलकाता वेबसाइट- www.ige-india.co
इंस्टीटय़ृट ऑफ ह्यूमन जेनेटिक्स, गुजरात
वेबसाइट- www.geneticcentre.org
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
वेबसाइट- www.iitkgp.ac.in
इंस्टीटय़ृट ऑफ जेनेटिक्स एंड हॉस्पिटल फॉर जेनेटिक डिजीज, हैदराबाद
वेबसाइट- www.instituteofgenetics.org
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