क्या है बायोटैक्नोलॉजी?
सरल शब्दों में कहें तो बायोटैक्नोलॉजी के तहत जैविक प्रक्रियाओं में बदलाव करके एक ऐसी तकनीक विकसित की जाती है जिसका वाणिज्यीकरण किया जा सके । देश में बायोटैक्नोलॉजी की शुरूआत 1980 के दशक के मध्य में हुई थी जब 1986 में भारत सरकार ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत बायोटैक्नोलॉजी विभाग का गठन किया । बायोलॉजी और टैक्नोलॉजी को मिला कर बना है बायोटैक्नोलॉजी । इसके अंतर्गत बायोकैमिस्ट्री, जैनेटिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, सीड टैक्नोलॉजी, क्रॉप मैनेजमैंट, इकोलॉजी से लेकर सैल बायोलॉजी तक का अध्ययन किया जाता है ।
बायोटैक्नोलॉजी रिसर्च आधारित विज्ञान है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक सिद्धांतों और तकनीक का प्रयोग करते हुए बायोलॉजिकल सिस्टम में सुधार करना है । बायोलॉजी और टैक्नोलॉजी को मिलाकर बने इस फील्ड में बायोकैमिस्ट्री, जैनेटिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, कैमिस्ट्री, इम्युनोलॉजी, इंजीनियरिंग, पेड़-पौधे, हैल्थ और मैडीसिन, क्रॉपिंग सिस्टम व मैनेजमैंट, मृदा-विज्ञान और संरक्षण, इकोलॉजी, बायोस्टैटिस्टिक्स, सैल बायोलॉजी, सीड टैक्नोलॉजी, प्लांट फिजियोलॉजी आदि शामिल हैं । आज के दौर का सबसे विवादास्पद विषय है बायोटैक्नोलॉजी जिसे मुख्यत: शोध आधारित विज्ञान माना जाता है । यह एक विस्तृत फील्ड है जिसके विस्तृत दायरे ने इसे एक बेहतरीन करियर विकल्प बना दिया है । इसका संबंध स्वास्थ्य, चिकित्सा, कृषि, पशुपालन, उद्योग, पर्यावरण से लेकर अनुसंधान तक है ।
विभिन्न उपयोग
बायोटैक्नोलॉजी का प्रयोग विभिन्न प्रकार की दवाइयों और खनिज धातुओं को परिष्कृत करने के काम में भी होता है । बायोटैक्नोलॉजी की सहायता से अधिक पैदावार देने वाली फसलें भी तैयार की जा रही हैं, वहीं इसका प्रयोग जीव-जंतुओं और पौधों में आनुवांशिक प्रवृत्तियां बदलने के लिए भी किया जाता है । बायोटैक्नोलॉजी की बदौलत चिकित्सा के क्षेत्र में कई नई खोजें हुई हैं । इसके अलावा फसलों को बीमारी और कीटाणुरोधी बनाने, ऊर्जा के अतिरिक्त संसाधन जुटाने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने की नई तकनीक विकसित करने और ऐसे ही कई उपलब्धियां हासिल करने में बायोटैक्नोलॉजी से ही मदद मिली है ।
योग्यता
बायोटैक्नोलॉजी में स्नातक स्तर पर आप बी.एससी., बी.ई. और बी.टैक कर सकते हैं तो पोस्ट ग्रैजुएट स्तर पर एम.एससी., एम.टैक या एम.बी.ए. के विकल्प आपके लिए मौजूद हैं । बायोटैक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के लिए विज्ञान का अभ्यर्थी होना जरूरी होगा । बायोलॉजी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री एवं कृषि की जानकारी जरूरी है । आई.आई.टी. संस्थानों में 5 वर्षीय इंट्रीग्रेटेड एम.टैक कोर्स भी उपलब्ध है जो12वीं के बाद किया जा सकता है ।
विदेशों में भी अवसर
बायोटैक्नोलॉजी की शिक्षा प्राप्त के बाद देश के साथ-साथ विदेश में भी काम करने के ढेरों अवसर हैं । मैडीसिन एंड हैल्थकेयर, पशुपालन, कृषि तथा पर्यावरण इंडस्ट्री में आप मार्कीटिंग, रिसर्च और प्रोडक्शन के क्षेत्र में काम कर सकते हैं
बायोटैक्नोलॉजिस्ट के कार्यक्षेत्र के तहत पेड़-पौधों और पशुओं की अच्छी नस्ल के उत्पादन के क्षेत्र में काम करना और अच्छे टीकों का निर्माण करना, रोगों के लक्षणों को शुरूआती स्तर पर पहचानना, डी.एन.ए., जीन प्रोफाइलिंग,माइक्रोबायोलॉजिकल तरीकों से धातु निष्कर्षण, दवा, पॉलिमर, एन्जाइम्स आदि की नई किस्म विकसित करना आदि कार्य आते हैं ।
सम्भावनाएं
इस क्षेत्र में देशी-विदेशी कई कम्पनियां मौजूद हैं जो बायोटैक्नोलॉजिस्ट्स को अनुसंधान और विकास में रोजगार प्रदान करती हैं । सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में भी अवसरों की कमी नहीं है । लैबोरेटरीज और रिसर्च इंस्टीच्यूट्स में बतौर साइंटिस्ट और असिस्टैंट काम कर सकते हैं । कृषि और बागवानी के संस्थानों में भी इनकी मांग है ।
वेतनमान
निजी क्षेत्र की कम्पनियों में बायोटैक्नोलॉजी के छात्र को शुरूआती वेतनमान 12-18 हजार रुपए तक मिल जाता है ।
प्रमुख संस्थान
- ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडिकल साइंस, नई दिल्ली
- आई.आई.टीज (चेन्नई, रुड़की, मुंबई आदि शहरों में केंद्र हैं)
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस, उत्तर प्रदेश
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
- मोतीलाल नेहरू इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
सरल शब्दों में कहें तो बायोटैक्नोलॉजी के तहत जैविक प्रक्रियाओं में बदलाव करके एक ऐसी तकनीक विकसित की जाती है जिसका वाणिज्यीकरण किया जा सके । देश में बायोटैक्नोलॉजी की शुरूआत 1980 के दशक के मध्य में हुई थी जब 1986 में भारत सरकार ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत बायोटैक्नोलॉजी विभाग का गठन किया । बायोलॉजी और टैक्नोलॉजी को मिला कर बना है बायोटैक्नोलॉजी । इसके अंतर्गत बायोकैमिस्ट्री, जैनेटिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, सीड टैक्नोलॉजी, क्रॉप मैनेजमैंट, इकोलॉजी से लेकर सैल बायोलॉजी तक का अध्ययन किया जाता है ।
बायोटैक्नोलॉजी रिसर्च आधारित विज्ञान है जिसका उद्देश्य वैज्ञानिक सिद्धांतों और तकनीक का प्रयोग करते हुए बायोलॉजिकल सिस्टम में सुधार करना है । बायोलॉजी और टैक्नोलॉजी को मिलाकर बने इस फील्ड में बायोकैमिस्ट्री, जैनेटिक्स, माइक्रोबायोलॉजी, कैमिस्ट्री, इम्युनोलॉजी, इंजीनियरिंग, पेड़-पौधे, हैल्थ और मैडीसिन, क्रॉपिंग सिस्टम व मैनेजमैंट, मृदा-विज्ञान और संरक्षण, इकोलॉजी, बायोस्टैटिस्टिक्स, सैल बायोलॉजी, सीड टैक्नोलॉजी, प्लांट फिजियोलॉजी आदि शामिल हैं । आज के दौर का सबसे विवादास्पद विषय है बायोटैक्नोलॉजी जिसे मुख्यत: शोध आधारित विज्ञान माना जाता है । यह एक विस्तृत फील्ड है जिसके विस्तृत दायरे ने इसे एक बेहतरीन करियर विकल्प बना दिया है । इसका संबंध स्वास्थ्य, चिकित्सा, कृषि, पशुपालन, उद्योग, पर्यावरण से लेकर अनुसंधान तक है ।
विभिन्न उपयोग
बायोटैक्नोलॉजी का प्रयोग विभिन्न प्रकार की दवाइयों और खनिज धातुओं को परिष्कृत करने के काम में भी होता है । बायोटैक्नोलॉजी की सहायता से अधिक पैदावार देने वाली फसलें भी तैयार की जा रही हैं, वहीं इसका प्रयोग जीव-जंतुओं और पौधों में आनुवांशिक प्रवृत्तियां बदलने के लिए भी किया जाता है । बायोटैक्नोलॉजी की बदौलत चिकित्सा के क्षेत्र में कई नई खोजें हुई हैं । इसके अलावा फसलों को बीमारी और कीटाणुरोधी बनाने, ऊर्जा के अतिरिक्त संसाधन जुटाने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने की नई तकनीक विकसित करने और ऐसे ही कई उपलब्धियां हासिल करने में बायोटैक्नोलॉजी से ही मदद मिली है ।
योग्यता
बायोटैक्नोलॉजी में स्नातक स्तर पर आप बी.एससी., बी.ई. और बी.टैक कर सकते हैं तो पोस्ट ग्रैजुएट स्तर पर एम.एससी., एम.टैक या एम.बी.ए. के विकल्प आपके लिए मौजूद हैं । बायोटैक्नोलॉजी पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के लिए विज्ञान का अभ्यर्थी होना जरूरी होगा । बायोलॉजी, फिजिक्स, कैमिस्ट्री एवं कृषि की जानकारी जरूरी है । आई.आई.टी. संस्थानों में 5 वर्षीय इंट्रीग्रेटेड एम.टैक कोर्स भी उपलब्ध है जो12वीं के बाद किया जा सकता है ।
विदेशों में भी अवसर
बायोटैक्नोलॉजी की शिक्षा प्राप्त के बाद देश के साथ-साथ विदेश में भी काम करने के ढेरों अवसर हैं । मैडीसिन एंड हैल्थकेयर, पशुपालन, कृषि तथा पर्यावरण इंडस्ट्री में आप मार्कीटिंग, रिसर्च और प्रोडक्शन के क्षेत्र में काम कर सकते हैं
बायोटैक्नोलॉजिस्ट के कार्यक्षेत्र के तहत पेड़-पौधों और पशुओं की अच्छी नस्ल के उत्पादन के क्षेत्र में काम करना और अच्छे टीकों का निर्माण करना, रोगों के लक्षणों को शुरूआती स्तर पर पहचानना, डी.एन.ए., जीन प्रोफाइलिंग,माइक्रोबायोलॉजिकल तरीकों से धातु निष्कर्षण, दवा, पॉलिमर, एन्जाइम्स आदि की नई किस्म विकसित करना आदि कार्य आते हैं ।
सम्भावनाएं
इस क्षेत्र में देशी-विदेशी कई कम्पनियां मौजूद हैं जो बायोटैक्नोलॉजिस्ट्स को अनुसंधान और विकास में रोजगार प्रदान करती हैं । सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों में भी अवसरों की कमी नहीं है । लैबोरेटरीज और रिसर्च इंस्टीच्यूट्स में बतौर साइंटिस्ट और असिस्टैंट काम कर सकते हैं । कृषि और बागवानी के संस्थानों में भी इनकी मांग है ।
वेतनमान
निजी क्षेत्र की कम्पनियों में बायोटैक्नोलॉजी के छात्र को शुरूआती वेतनमान 12-18 हजार रुपए तक मिल जाता है ।
प्रमुख संस्थान
- ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ मैडिकल साइंस, नई दिल्ली
- आई.आई.टीज (चेन्नई, रुड़की, मुंबई आदि शहरों में केंद्र हैं)
- बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, बनारस, उत्तर प्रदेश
- अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
- मोतीलाल नेहरू इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
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