यू.के. की एक यूनिवर्सिटी द्वारा करवाए
जाने वाली ऑटोमोटिव सिस्टम्स इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री इंडस्ट्री की
वर्तमान जरूरतों के अनुरूप छात्रों को शिक्षित करती है।
हाल के वर्षों में दुनिया भर में ईंधन की कीमतों तथा धुएं एवं गैसों के उत्सर्जन में हो रहे इजाफे को देखते हुए ऑटो इंडस्ट्री में तेजी से तकनीकी विकास हुआ है ताकि ग्राहकों की मांग को पूरा करने के साथ-साथ पर्यावरण के हितों का ध्यान भी रखा जा सके। इस सारे तकनीकी विकास के पीछे सबसे महत्वपूर्ण योगदान ऑटोमोटिव सिस्टम्स इंजीनियर्स का है। इन उन्नत तकनीकों की बदौलत ही वाहन पहले की अपेक्षा कम ईंधन का प्रयोग करने लगे हैं तथा अधिक पर्यावरण हितैषी बनते जा रहे हैं।
ऐसे में जाहिर तौर पर यह क्षेत्र बड़ी संख्या में युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। इंजीनियरिंग, डिजाइन एवं नवीनता में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए तो यह क्षेत्र खास है जहां वे अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं।
लफबर यूनिवर्सिटी
इस संबंध में यूनाइटेड किंगडम की लफबर यूनिवर्सिटी में करवाए जाने वाले एक पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स का लक्ष्य छात्रों, प्रोडक्ट डिवैल्पमैंट इंजीनियर्स तथा अन्य इंजीनियर्स को डिजाइन एवं ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में दक्ष बनाना है। यह यूनिवर्सिटी लेस्टरशायर प्रांत के कस्बे लफबर में स्थित है।
कोर्स का विवरण
ऑटोमोटिव सिस्टम्स इंजीनियरिंग में एम.एससी. एक वर्षीय कोर्स है। इसके तीन अनिवार्य भाग हैं-
1. व्हीकल एंड पावरट्रेन फंक्शनल परफोर्मैंस,
2. व्हीकल सिस्टम्स एनालिसिस और
3. मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम्स एंड इंटीग्रेटेड डिजाइन
साथ ही छात्रों को 5 विषयों में से किन्हीं 3 अन्य का चुनाव भी करना पड़ता है। ये 5 विषय हैं -
1.सस्टेनेबल व्हीकल पावरट्रेन्स,
2. बॉडी इंजीनियरिंग,
3. कैलीब्रेशन एंड एमिशन्स,
4. व्हीकल डाइनैमिक्स एंड कंट्रोल,
5. व्हीकल इलैक्ट्रिकल सिस्टम्स इंटीग्रेशन।
इस कोर्स के पाठ्यक्रम को फोर्ड एवं जगुआर लैंड रोवर जैसी ऑटो कम्पनियों में कार्यरत पेशेवरों की मदद से तैयार किया गया है। यूनिवॢसटी के प्रवक्ता के अनुसार, ‘‘इन कम्पनियों के विशेषज्ञ हमारे शिक्षकों को इंडस्ट्री में चल रहे रुझानों के बारे में अवगत करते रहते हैं तथा छात्रों के लिए विभिन्न विषयों पर गैस्ट लैक्चर भी देते हैं।’’
ये विशेषज्ञ न केवल इंडस्ट्री में चल रहे रुझानों तथा नवीन तकनीकों पर रोशनी डालते हैं बल्कि पाठ्यक्रम को अपडेट रखने तथा उसे इंडस्ट्री की भावी जरूरतों के अनुरूप बनाए रखने में भी विशेष सहायता करते हैं।
कोर्स के तहत छात्रों को अनिवार्य रूप से एक प्रोजैक्ट में भी हिस्सा लेना पड़़ता है। इस प्रोजैक्ट की मदद से छात्रों को शोध आधारित शिक्षा प्राप्त होती है। इसके तहत किए जाने वाले कामों में एक्सपैरिमैंटल मेजरमैंट्स, थ्यूरैटिकल एनालिसिस, कम्प्यूटर सिमुलेशन या इनका संयुक्त रूप से प्रयोग आदि शामिल हो सकते हैं।
हालांकि
यूनिवर्सिटी अपनी ओर से इंटर्नशिप नहीं करवाती है, छात्र चाहें तो स्वयं
ऐसा कर सकते हैं। पूर्व में अनेक छात्र कोर्स खत्म करने के बाद विभिन्न ऑटो
कम्पनियों में 3 महीने तक इंटर्नशिप करते रहे हैं। इस कोर्स को
सफलतापूर्वक पूरा करने वाले युवा विभिन्न ऑटो कम्पनियों में बतौर सिस्टम्स
इंजीनियर्स या प्रोडक्ट डिजाइनर्स काम कर सकते हैं। हाल के वर्षों में दुनिया भर में ईंधन की कीमतों तथा धुएं एवं गैसों के उत्सर्जन में हो रहे इजाफे को देखते हुए ऑटो इंडस्ट्री में तेजी से तकनीकी विकास हुआ है ताकि ग्राहकों की मांग को पूरा करने के साथ-साथ पर्यावरण के हितों का ध्यान भी रखा जा सके। इस सारे तकनीकी विकास के पीछे सबसे महत्वपूर्ण योगदान ऑटोमोटिव सिस्टम्स इंजीनियर्स का है। इन उन्नत तकनीकों की बदौलत ही वाहन पहले की अपेक्षा कम ईंधन का प्रयोग करने लगे हैं तथा अधिक पर्यावरण हितैषी बनते जा रहे हैं।
ऐसे में जाहिर तौर पर यह क्षेत्र बड़ी संख्या में युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। इंजीनियरिंग, डिजाइन एवं नवीनता में रुचि रखने वाले युवाओं के लिए तो यह क्षेत्र खास है जहां वे अपना भविष्य उज्ज्वल कर सकते हैं।
लफबर यूनिवर्सिटी
इस संबंध में यूनाइटेड किंगडम की लफबर यूनिवर्सिटी में करवाए जाने वाले एक पोस्ट ग्रैजुएट कोर्स का लक्ष्य छात्रों, प्रोडक्ट डिवैल्पमैंट इंजीनियर्स तथा अन्य इंजीनियर्स को डिजाइन एवं ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में दक्ष बनाना है। यह यूनिवर्सिटी लेस्टरशायर प्रांत के कस्बे लफबर में स्थित है।
कोर्स का विवरण
ऑटोमोटिव सिस्टम्स इंजीनियरिंग में एम.एससी. एक वर्षीय कोर्स है। इसके तीन अनिवार्य भाग हैं-
1. व्हीकल एंड पावरट्रेन फंक्शनल परफोर्मैंस,
2. व्हीकल सिस्टम्स एनालिसिस और
3. मैन्युफैक्चरिंग सिस्टम्स एंड इंटीग्रेटेड डिजाइन
साथ ही छात्रों को 5 विषयों में से किन्हीं 3 अन्य का चुनाव भी करना पड़ता है। ये 5 विषय हैं -
1.सस्टेनेबल व्हीकल पावरट्रेन्स,
2. बॉडी इंजीनियरिंग,
3. कैलीब्रेशन एंड एमिशन्स,
4. व्हीकल डाइनैमिक्स एंड कंट्रोल,
5. व्हीकल इलैक्ट्रिकल सिस्टम्स इंटीग्रेशन।
इस कोर्स के पाठ्यक्रम को फोर्ड एवं जगुआर लैंड रोवर जैसी ऑटो कम्पनियों में कार्यरत पेशेवरों की मदद से तैयार किया गया है। यूनिवॢसटी के प्रवक्ता के अनुसार, ‘‘इन कम्पनियों के विशेषज्ञ हमारे शिक्षकों को इंडस्ट्री में चल रहे रुझानों के बारे में अवगत करते रहते हैं तथा छात्रों के लिए विभिन्न विषयों पर गैस्ट लैक्चर भी देते हैं।’’
ये विशेषज्ञ न केवल इंडस्ट्री में चल रहे रुझानों तथा नवीन तकनीकों पर रोशनी डालते हैं बल्कि पाठ्यक्रम को अपडेट रखने तथा उसे इंडस्ट्री की भावी जरूरतों के अनुरूप बनाए रखने में भी विशेष सहायता करते हैं।
कोर्स के तहत छात्रों को अनिवार्य रूप से एक प्रोजैक्ट में भी हिस्सा लेना पड़़ता है। इस प्रोजैक्ट की मदद से छात्रों को शोध आधारित शिक्षा प्राप्त होती है। इसके तहत किए जाने वाले कामों में एक्सपैरिमैंटल मेजरमैंट्स, थ्यूरैटिकल एनालिसिस, कम्प्यूटर सिमुलेशन या इनका संयुक्त रूप से प्रयोग आदि शामिल हो सकते हैं।
इंडस्ट्री का भविष्य
गत एक दशक के दौरान इस आलोचना के बीच कि ऑटो इंडस्ट्री वाहनों को अधिक पर्यावरण हितैषी नहीं बना रही है, इस फील्ड में इसके लिए काफी तकनीकी विकास किया गया है। इन प्रयासों की बदौलत ही जहां जरा भी धुआं पैदा नहीं करने वाली बिजली चलित कारें तैयार हुई हैं, वहीं पैट्रोल-डीजल से चलने वाले वाहनों से होने वाले धुएं एवं गैसों के उत्सर्जन में काफी कमी लाने में सफलता मिली है। साथ ही अब हाइड्रोजन से वाहनों को चलाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है जो ग्रीनहाऊस गैसों के उत्सर्जन के विपरीत पानी उत्सर्जित करता है।
कौशल
इंडस्ट्री अब कम से कम ईंधन पर चलने वाले वाहन तैयार करने तथा पर्यावरण हितैषी इंजनों पर जोर दे रही है। इसका अर्थ है कि इस क्षेत्र में कदम रखने वाले युवाओं को अपनी सोच को नवीन विधियों के लिए खुला रखना होगा। उन्हें इलैक्ट्रिकल एवं मैकेनिकल इंजीनियरिंग जैसे संबंधित विषयों पर भी काम करने को तैयार रहना होगा। उन्हें किताबी जानकारी की मदद से वाहनों संबंधित वास्तविक समस्याओं के हल तथा नवीन तकनीकों का आविष्कार करने की दिशा में प्रयास करने होते हैं। इस क्षेत्र में बेहद जटिल विधियों एवं विषयों पर काम करना होता है। इन सभी बाधाओं पर पार पाकर ही ऑटो इंडस्ट्री ग्राहकों तथा उद्योग की जरूरतों पर खरी उतर पाती है।
सम्भावनाएं
बेशक हाल के सालों में दुनिया भर की ऑटो इंडस्ट्री में कुछ मंदी देखने को मिली है परंतु चूंकि यह कोर्स छात्रों को इंडस्ट्री की नवीन जरूरतों के अनुरूप तैयार करता है, छात्रों को विभिन्न कम्पनियां अपने यहां सहर्ष नियुक्तियां देती हैं।
एक नजर में
अवधि: एक वर्षीय
योग्यता: प्रथम श्रेणी में इंजीनियरिंग या फिजीकल साइंस डिग्री
सीटों की संख्या: 15 से 18
फीस : लगभग साढ़े 17 लाख रुपए
छात्रवृत्ति : अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के लिए यूनिवर्सिटी 5 छात्रवृत्तियां देती है जो ट्यूशन फीस के 10 प्रतिशत के समान होती हैं।
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