Tuesday, September 1, 2015

गांव के विकास में भविष्य की आस, रूरल डेवलपमेंट

ग्रामीण क्षेत्र में विकास के लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं की भागीदारी इधर तेजी से बढ़ी है। यही कारण है कि यहां रोजगार की संभावनाएं भी तेजी से सामने आ रही हैं। रूरल डेवलपमेंट में क्या हैं 
ग्रामीण भारत का चेहरा बदल रहा है। सरकार ग्रामीण विकास के लिए लगातार अपने बजट में इजाफा कर रही है, विभिन्न मंत्रालय भी लगातार ग्रामीण विकास में अपनी भागीदारी बढ़ा रहे हैं। बेशक डेवलपमेंट एजेंसीज के लिए ग्रामीण विकास एक मिशन हो, लेकिन इस क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर नौकरियों के अवसर काफी बढ़ रहे हैं। एक करियर के रूप में ग्रामीण विकास को इसलिए भी महत्त्व मिल रहा है, क्योंकि यह एक व्यापक क्षेत्र है और इस क्षेत्र में हर साल अवसर बढ़ते जा रहे हैं। विभिन्न शैक्षणिक संस्थान रूरल डेवलपमेंट में प्रोफेशनल कोर्सेज ऑफर कर रहे हैं, जिसके चलते देश में प्रशिक्षित रूरल डेवलपमेंट प्रोफेशनल्स तैयार हो रहे हैं। अपनी सामाजिक जिम्मेदारी के तहत कॉरपोरेट सेक्टर द्वारा इस काम में रुचि लेने के कारण एक पेशे के रूप में रूरल डेवलपमेंट की जड़ें मजबूत होती जा रही हैं।
रूरल डेवलपमेंट के क्षेत्र में कार्यलोगों को सामाजिक, मानसिक और राजनीतिक स्तर पर जागरूक करने के साथ-साथ आत्मनिर्भर बनाने का काम रूरल डेवलपमेंट के अंतर्गत आता है। ग्रामीण लोगों की समस्याओं को समझने और उनको दूर करना, आर्थिक मंदी और महंगाई इत्यादि समस्याओं को समझना व इससे उबरने के उपाय तथा आमजान को आए दिन होने वाली चुनौतियों के बारे में बताना व उनका सामना करने के लिए उन्हें तैयार करना भी इसी क्षेत्र के जुड़े लोग  करते हैं। एंटी करप्शन मूवमेंट चलाना, वुमन हेल्थ पर काम करना, ग्रामीणों के अधिकार के लिए लड़ना व उनका हक उन्हें दिलवाना, अर्बन और इंटरनेशनल लोगों के प्रभाव से इनको मुक्ति दिलाना भी रूरल डेवलपमेंट के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों का है।
कैसे चुनें इस क्षेत्र में करियर
रूरल डेवलपमेंट को प्रोफेशनल कोर्स के अंतर्गत माना जाता है। इस क्षेत्र में सबसे अधिक आपकी स्किल्स और रुचियां मायने रखती हैं। इतना ही नहीं, इस क्षेत्र में जैसे-जैसे आपका अनुभव बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे आप तरक्की करने लगते हैं। आमतौर इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए मास्टर ऑफ सोशल वर्क (एमएसडब्ल्यू) के दौरान आप तीन फील्ड- टीचिंग, रिसर्च और प्रैक्टिस में से किसी एक क्षेत्र में जा सकते हैं। टीचिंग में आप किसी संस्थान या यूनिवर्सिटी में जाकर पढ़ा सकते हैं। जैसे दिल्ली यूनिवर्सिटी में एमएसडब्ल्यू में फर्स्ट डिवीजन आने और मेहनती छात्र होने पर आपको यूनिवर्सिटी टीचर असिस्टेंस (यूटीए) में लगभग 30 हजार रुपए प्रतिमाह पर काम करने का मौका मिल सकता है। इसके साथ ही आप दो साल का अनुभव प्राप्त करते-करते पीएचडी के लिए भी एप्लाई कर सकते हैं।
रिसर्च क्षेत्र में आप एमफिल करके जा सकते हैं या फिर एमएसडब्ल्यू करके आप सरकारी और गैरसरकारी संस्थानों पर रिसर्च कर सकते हैं। इसमें आप रूरल डेवलपमेंट में किए जाने वाले विकास के क्षेत्रों जैसे हेल्थ, कम्युनिटी वर्क, एचआईवी एड्स, ह्यूमन रिलेशंस डेवलपमेंट (एचआरडी) इत्यादि में काम कर सकते हैं।
रिसर्चर के तौर पर आप एसोसिएट रिसर्चर या फिर रिसर्च डिजाइनर या किसी संस्थान के प्रोजेक्ट में पार्टीसिपेट करके काम कर सकते हैं। शुरुआत में आप 20 से 25 हजार रुपए वेतन आराम से पा सकते हैं, लेकिन यह आपके काम, अनुभव, क्षमता, कंपनी और लोकेशन इत्यादि पर भी निर्भर करता है।
प्रैक्टिस के दौरान आप ग्रामीण लोगों के साथ मेलजोल कर अपना काम कर सकते हैं या फिर आप पॉलिसी प्रैक्टिस में ग्रामीणों के लिए बनाई गई पॉलिसीज में कमियां, खूबियां, सोशल एक्टिविज्म, आरटीआई  इत्यादि में ग्रामीण लोगों को जागरूक कर, उनको दी जा रही सुविधाओं को बताने जैसे काम कर सकते हैं। आने वाली आपदाओं से ग्रामीण लोगों को उबारने का काम भी इसी सेक्टर के अंतर्गत आता है। इस क्षेत्र में आप रहने, खाने-पीने की सुविधा के साथ ही 10 हजार रुपए प्रतिमाह से अपना काम कर सकते हैं। लेकिन यदि कैम्पस प्लेसमेंट के जरिए आप जाते हैं तो आप 25 से 35 हजार रुपए प्रतिमाह भी पा सकते हैं।
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प्रमुख संस्थान
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, एमिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी और दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क से अलग-अलग कोर्स करवाए जाते हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के दो कॉलेजों, अदिती महाविद्यालय, बवाना और अंबेडकर कॉलेज से बैचलर ऑफ सोशल वर्क (बीएसडब्ल्यू) करवाया जाता है। दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क से एमएसडब्ल्यू, एमफिल और पीएचडी करवाई जाती है। इसके अलावा भारत में लगभग 150 से भी अधिक यूनिवर्सिटीज और संस्थानों में रूरल डेवलपमेंट और सोशल वर्क के अलग-अलग प्रोग्राम्स करवाए जाते हैं। इनमें लगभग 33 सेंट्रल यूनिवर्सिटीज हैं। हिमाचल, लखनऊ, इंदौर, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक इत्यादि राज्यों में खासतौर पर रूरल डेवलपमेंट और सोशल वर्क संबंधित प्रोग्राम्स चलाने वाले संस्थान उपलब्ध हैं।
कोर्स
’डिप्लोमा इन सोशल वर्क ’बीएसडब्ल्यू ’एमएसडब्ल्यू ’एमफिल ’पीएचडी
इसके अलावा आप इग्नू जैसी अन्य यूनिवर्सिटीज से ऑनलाइन लर्निंग सेंटर्स से भी डिप्लोमा और सर्टिफिकेट या फिर डिस्टेंस लर्निग कोर्स कर सकते हैं।
शैक्षिक योग्यता
रूरल डेवलपमेंट में करियर बनाने के लिए 12वीं के बाद बीए, एमए इत्यादि के बाद सीधे तौर पर ग्रामीण विकास के लिए काम किया जा सकता है, लेकिन करियर को बेहतर बनाने के लिए जरूरी है कि बैचलर ऑफ सोशल वर्क (बीएसडब्ल्यू) या मास्टर्स ऑफ सोशल वर्क (एमएसबीएसडब्ल्यू) किया जाए।
प्रवेश प्रक्रिया
बीएसएच में दाखिला लेने के लिए जहां कुछ यूनिवर्सिटीज में 12वीं में 45 प्रतिशत अंक होने जरूरी हैं, वहीं कुछेक यूनिवर्सिटीज और संस्थानों में 50 प्रतिशत अंक 12वीं में होने जरूरी हैं। हर संस्थान और यूनिवर्सिटीज में दाखिला लेने के अलग-अलग नियम व शर्ते हैं। इसके अलावा कुछेक यूनिवर्सिटीज में क्वालिफिकेशन, परसेंटेज, एलीजिबिलिटी, सेलेक्शन प्रोसेस और प्रवेश परीक्षा इत्यादि पर खासा गौर किया जाता है। दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क में प्रवेश परीक्षा पास करना जरूरी है। वहीं एमएसडब्ल्यू में दाखिला लेने के लिए बीए प्रोग्राम्स या अन्य किसी विषय पर ग्रेजुएशन कर अपनी स्किल्स और मार्क्स के आधार पर दाखिला लिया जा सकता है। एमफिल में दाखिले के लिए एमएसडब्ल्यू में 55 प्रतिशत अंक होने जरूरी हैं। इसके अलावा रिटन टेस्ट और पैनल इंटरव्यू को पास करना भी जरूरी है।
समय सीमा
रूरल डेवलपमेंट क्षेत्र में काम करने के लिए 12वीं के बाद बीएसडब्ल्यू तीन साल करके सीधे फील्ड का काम कर अनुभव पा सकते हैं या फिर बीएसडब्ल्यू के बाद दो साल की एमएसडब्ल्यू करके कैम्पस प्लेसमेंट से जॉब हासिल कर सकते हैं। रिसर्च क्षेत्र में जाने के लिए दो साल की एमफिल भी कर सकते हैं। टीचिंग और रिसर्च, दोनों ही फील्ड में काम करने के लिए चार साल में पीएचडी की डॉक्टरेट डिग्री भी हासिल कर सकते हैं।
संभावनाएं
ग्रामीण लोगों के रहन-सहन, शिक्षा, हेल्थ मामलों से लेकर, सरकार से संबंधित मुद्दों जैसे पंचायतें, अल्पसंख्यक, आरक्षण, रोजगार के तहत योजनाएं, सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के क्रियान्‍वयन, उनमें बदलाव, उनकी कमियों को कम करने, उनका लाभ उठाने और लोगों को जागरूक करने आदि क्षेत्रों में काम किया जा सकता है।
सेलरी
रूरल डेवलपमेंट क्षेत्र में आपकी सेलरी आपके अनुभव और काम करने की क्षमता के साथ ही आप किस संस्थान के साथ काम करने जा रहे हैं, इस पर निर्भर करती है। इसके अलावा आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स भी आपका करियर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आप 12वीं के बाद ही किसी एनजीओ के साथ रूरल डेवलपमेंट क्षेत्र में काम करते हैं तो आप न्यूनतम सेलरी के साथ अपनी पढ़ाई भी आगे जारी रख सकते हैं और फील्ड का अनुभव लगातार पा सकते है। यदि आप सीधे तौर पर कम्युनिटी के लिए काम कर रहे हैं तो कैम्पस प्लेसमेंट में 30 से 35 हजार और सामान्य तौर पर 15 हजार के आसपास सेलरी पा सकते हैं, जो धीरे-धीरे बढ़ कर 60-65 हजार तक जा सकती है

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