Sunday, September 20, 2015

आयुर्वेद में कैरियर

आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें रोग का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट हो जाए और दोबारा उत्पन्न न हो। तमाम सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति आज मुनष्य के लिए चिंता का सबब बन गई है…
आज समस्त विश्व का ध्यान आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली की ओर आकर्षित हो रहा है। इसके लाभों को देखते हुए विदेशी भी भारत की अनेक जड़ी- बूटियों का उपयोग अपनी चिकित्सा पद्धति में कर रहे हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की विशेषता यह है कि इसमें रोग का उपचार इस प्रकार किया जाता है कि रोग जड़ से नष्ट हो जाए और दोबारा उत्पन्न न हो। तमाम सुख-सुविधाओं के रहते हुए भी स्वास्थ्य की बिगड़ती स्थिति आज मुनष्य के लिए चिंता का सबब बन गई है। आधुनिकता ने आयाम तो कई स्थापित कर लिए, पर स्वास्थ्य का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। आजकल कई चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित हैं और आयुर्वेद भी उनमें से एक है। इस पद्धति की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें रोग को जड़ से नष्ट करने पर जोर दिया जाता है। आयुर्वेद विश्व की प्राचीनतम चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। यह कला, विज्ञान और दर्शन का मिश्रण है। आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान। यही संक्षेप में आयुर्वेद का सार है। आयुर्वेद का उल्लेख वेदों में वर्णित है। इसका विकास विभिन्न वैदिक मंत्रों से हुआ है, जिसमें संसार तथा जीवन, रोगों तथा औषधियों के मूल तत्त्व दर्शन का वर्णन किया गया। आयुर्वेद के ज्ञान को चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में व्यापक रूप से बताया गया है।
इतिहास
आयुर्वेद लगभग 5000 वर्ष पुराना चिकित्सा विज्ञान है। इसे भारतवर्ष के विद्वानों नें भारत की जलवायु, भौगालिक परिस्थितियों, भारतीय दर्शन और भारतीय ज्ञान-विज्ञान के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए विकसित किया। यह मनुष्य के जीवित रहने की विधि तथा उसके पूर्ण विकास के उपाय बतलाता है। इसलिए आयुर्वेद अन्य चिकित्सा पद्धतियों की तरह एक चिकित्सा पद्धति मात्र नही है, अपितु संपूर्ण आयु का ज्ञान है। भारत के अलावा अन्य देशों में यथा अमरीका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका आदि देशों में आयुर्वेद की औषधियों पर शोध कार्य किए जा रहे हैं। बहुत से एनजीओ और प्राइवेट संस्थान तथा अस्पताल और व्यतिगत आयुर्वेदिक चिकित्सक शोध कार्यों में लगे हुए हैं।
आयुर्वेद के अंग
चिकित्सा के आधार पर आयुर्वेद को आठ अंगों में वर्गीकृत किया गया है। इसे अष्टाङ्ग आयुर्वेद कहते हैं ।
1. शल्य
2. शालाक्य
3. काय चिकित्सा
4. भूत विद्या
5. कौमार भृत्य
6. अगद तंत्र
7. रसायन
8. बाजीकरण
रोजगार के अवसर
आयुर्वेद में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। इसमें सरकारी और निजी दोनों ही क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध होते हैं। चिकित्सा क्षेत्र में तो इसकी अपार संभावनाएं हैं। सरकार आयुर्वेदिक चिकित्सकों को रोजगार देती है। आप अगर सरकारी नौकरी नहीं करना चाहते तो अपना निजी क्लीनिक भी खोल सकते हैं। इसके अलावा अध्यापन और शोध के क्षेत्र में भी अच्छी संभावनाएं हैं।
क्या है आयुर्वेद
आयुर्वेद आयुर्विज्ञान की प्राचीन भारतीय पद्धति है। यह आयु का वेद अर्थात आयु का ज्ञान है। जिस शास्त्र के द्वारा आयु का ज्ञान कराया जाए,उसका नाम आयुर्वेद है। शरीर, इंद्रिय सत्व और आत्मा के संयोग का नाम आयु है। आधुनिक शब्दों में यही जीवन है। प्राण से युक्त शरीर को जीवित कहते है। आयु और शरीर का संबंध शाश्वत है। आयुर्वेद में इस संबंध में विचार किया जाता है। जिस विद्या के द्वारा आयु के संबंध में सर्वप्रकार के ज्ञातव्य तथ्यों का ज्ञान हो सके या जिस का अनुसरण करते हुए दीर्घ आयुष्य की प्राप्ति हो सके उस तंत्र को आयुर्वेद कहते हैं।
शैक्षणिक योग्यता
बीएएमएस की अवधि एक साल की इंटर्नशिप सहित साढ़े पांच साल की होती है। जो विद्यार्थी इस कोर्स में दाखिला लेना चाहते हैं, उनके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ 12वीं उत्तीर्ण होना निर्धारित है। विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर इस कोर्स में दाखिले की योग्यता बनती है। एमबीबीएस कर चुके विद्यार्थी भी आयुर्वेद में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में नामांकन करा सकते हैं। जिनकी रुचि शोधकार्यों में हैं, उन्हें सेंट्रल काउंसिल फॉर रिसर्च इन आयुर्वेद एंड सिद्धा के माध्यम से मौके मिलते हैं।
क्या है आयुर्वेद चिकित्सा
आयुर्वेद एक ऐसी चिकित्सा है जो शरीर, मस्तिष्क और मन के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। आयुर्वेद प्राकृतिक तरीके से व्यक्ति की शारीरिक परेशानियां दूर करता है। इस चिकित्सा के दौरान व्यक्ति के शरीर में उत्पन्न हुए उस असंतुलन का पता लगाया जाता है जो उसकी इस बीमारी का कारण है।
वेतनमान
आरंभिक आय एक आयुर्वेदिक चिकित्सक के रूप में सरकार के मानकों के अनुरूप लगभग 40 हजार रुपए आरंभिक वेतन मिलता है। शोध और अध्यापन में भी इतना ही वेतन सरकार द्वारा दिया जाता है।
धैर्य रखना जरूरी
आयुर्वेद के अनुसार बीमारी की 6 अवस्थाएं होती हैं। आधुनिक चिकित्सा में बीमारी का पाचवीं अवस्था में इलाज किया जाता है। इस अवस्था तक आत-आते रोग बहुत बढ़ जाता है और छठी अवस्था में रोग में कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। आयुर्वेद में बीमारी का पहली अवस्था से इलाज किया जाता है। पहली से लेकर चौथी अवस्था तक रोगी के शरीर में आए असंतुलन का कारण पता कर इसे संतुलित करने की कोशिश की जाती है। इस बात का ध्यान होना चाहिए कि इस पद्धति से बीमारी ठीक होने में समय लगता है, इस पद्धति में रातोंरात कोई चमत्कार नहीं होता।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
*   राजीव गांधी आयुर्वेदिक महाविद्यालय पपरोला, हिमाचल प्रदेश
*   श्री धन्वंतरि कालेज, चंडीगढ़
*   आयुर्वेदिक कालेज कोल्हापुर, महाराष्ट्रए
*   श्री आयुर्वेद महाविद्यालय, नागपुर
*   दयानंद आयुर्वेदिक कालेज जालंधर, पंजाब
*   अष्टांग आयुर्वेद कालेज, इंदौर।
*   इंस्टीच्यूट ऑफ  मेडिकल साइंसेस, बीएचयू, वाराणसी
*   हिमालयीय आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज एंड हास्पिटलए ऋषिकेश
*   डीएवी आयुर्वेदिक कालेज, जालंधर
*   नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ  आयुर्वेद, जयपुर
*   गुजरात आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, जामनगर
व्यक्तिगत गुण
प्रकृति और प्राकृतिक वस्तुओं, जैसे जड़ी-बूटी, वनस्पति आदि में स्वाभाविक दिलचस्पी से आप इस क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हैं। आपकी कम्युनिकेशन स्किल बेहतर होनी चाहिए, तभी आप लोगों को बेहतर परामर्श दे पाएंग। इसके अतिरिक्त रोगियों की बातों को धैर्यपूर्वक सुनने और उनके साथ बेहतर तालमेल बनाए रखने की क्षमता आपके भीतर होनी आवश्यक है।
पंचकर्म क्या है
पंचकर्म आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति का एक हिस्सा है। इसके जरिए शरीर में होने वाले सभी रोगों को दूर करने के लिए तीनों दोषों अर्थात वात, पित्त और कफ  को विषम से सम बनाया जाता है। ये पांच क्रियाएं हैं.1 वमन 2 विरेचन 3 बस्ति (अनुवासन) 4 बस्ति (अस्थापन) 5 नस्य।
कोर्स
स्नातक स्तर पर बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक चिकित्सा और सर्जरी यानी बीएएमएस जैसा कोर्स विभिन्न   भारतीय आयुर्वेदिक संस्थानों में करवाया जाता है। इसके बाद विद्यार्थी पीजी प्रोग्राम जैसे एमडी इन आयुर्वेद और एमएस इन आयुर्वेद की पढ़ाई कर सकते हैं। कुछ संस्थानों में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी उपलब्ध हैं। जिनकी अवधि तुलनात्मक रूप से कम होती है।
आयुर्वेद के प्रमुख प्राचीन आचार्य
प्राचीनकाल में आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य अश्विनी कुमार, धनवंतरि, दिवोदास, नकुल, सहदेव, अर्कि, च्यवन, जनक, बुध, जावाल, पैल, करथ, अगस्त्य, अत्रि और चरक माने जाते हैं।
आयुर्वेद के मुख्य दो उद्देश्य
*  पहला स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना
*  दूसरा रोगी व्यक्ति के विकारों को दूर कर स्वस्थ बनाना।

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