आँखें हैं तो जहान है।' यह उक्ति शायद इसीलिए कही जाती है क्योंकि आँखों के माध्यम से ही दुनिया के रंगों और प्रकृति की छटाओं के दर्शन किए जा सकते हैं। लेकिन ऐसे करोड़ों लोग हैं जो किसी न किसी तरह के नेत्र रोग से ग्रस्त होकर इस दुनिया को देखनहीं पाते हैं। ऐसे में नेत्र रोग विशेषज्ञ वह शख्स होता है, जो सूनी आँखों को रोशन कर नेत्रहीनों की जिंदगी में उजियारा भर सकता है।
बहुत डिमांड है ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की
भारत में करीब एक करोड़ लोग अंधत्व के शिकार हैं। इनमें से अधिकांश दृष्टिहीन लोग ऐसे हैं जो छोटे-मोटे नेत्र रोगों का शिकार होकर इस स्थिति को पहुँचे हैं। यदि उन्हें समय पर नेत्र चिकित्सा मिल जाती तो उन्हें दृष्टिहीन होने से बचाया जा सकता था। लेकिन योग्य क्वालिफाइड नेत्र रोग विशेषज्ञ के अभाव में अंधत्व बढ़ा है।
लेकिन अब धीरे-धीरे हालात सुधरे हैं और लोगों की नेत्र सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने से नेत्र रोग विशेषज्ञों की माँग बढ़ी है। फिर भी माँग की तुलना में पूर्ति कम है। यही कारण है कि नेत्र रोग विशेषज्ञों की साख भी बढ़ी है और करियर निर्माण के अवसर भी खूब बढ़े हैं।
क्या करते हैं ऑप्थल्मोलॉजिस्ट्स
वस्तुतः ऑप्थल्मोलॉजिस्ट एक मेडिकल डॉक्टर होता है, जो सभी तरह के नेत्र विकारों तथा बीमारियों का मूल्यांकन और जाँच कर उपचार करता है। वह ऑपरेशन और सर्जरी भी करता है। ऑप्थल्मोलॉजिस्ट द्वारा किए जाने वाले उल्लेखनीय कार्यों में दृष्टिबाधिता की रोकथाम तथा निवारण अथवा चिकित्सा और सर्जरी द्वारा दृष्टिदोष को दूर करना तथा मोतियाबिंद को हटाना शामिल है।
इसके अलावा आँखों से जुड़ी अन्य सामान्य स्थितियों- आँखों की लाली, सूखी आँख, ज्यादा आँसू निकलना, दिखाई न देना, ग्लूकोमा, डाइबेटिक रेटिनल रोग, न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर, मायोनिया, हाइपरमेट्रोपिया, मेक्यूलर डिजनरेशन, आक्यूलर ट्रौमा तथा कंजेक्टिवाइटिस का उपचार भी ऑप्थल्मोलॉजिस्ट करते हैं।
अंतर है ऑप्थल्मोलॉजी और ऑप्टोमेट्री में
ऑप्थल्मोलॉजी और ऑप्टोमेट्री के बीच का अंतर बार-बार भ्रम पैदा करता है। इस तथ्य के अतिरिक्त कि दोनों का संबंध आँखों की देखभाल से है, इस गलतफहमी में योगदान देने वाले अन्य कई घटक हैं। ऐसा ही एक तथ्य यह है कि अक्सर ऑप्टोमेट्रिस्ट को 'आँखों काडॉक्टर' कहकर संबोधित कर दिया जाता है, यद्यपि उसके पास ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की तरह कोई मेडिकल डिग्री नहीं होती है।
यद्यपि ऑप्टोमेट्रिस्ट के पास डॉक्टर ऑफ ऑप्टोमेट्री (ओडी) की डिग्री होती है, जिसके आधार पर वह ऑप्टोमेट्री की प्रैक्टिस तो कर सकता है, लेकिन मेडिसिन की प्रैक्टिस करने की उसे इजाजत नहीं होती है। परंपरागत रूप से ऑप्टोमेट्री की प्रैक्टिस में करेक्टिव लैंसेस के लिए आँखों की जाँच तथा कुछ हद तक सीमित नेत्र रोगों की पहचान तथा नॉनसर्जिकल मैनेजमेंट शामिल होता है। प्रैक्टिस के ऑप्टोमेट्रिक कार्यक्षेत्र में स्थिति-दर-स्थिति पर्याप्त अंतर होता है, जिनमें से कुछ स्थितियों में अन्य स्थितियों की बनिस्बत ज्यादा फार्मास्युटिकल एजेंट्स के उपयोग की अनुमति होती है।
इसकी तुलना में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की प्रैक्टिस का दायरा काफी विस्तृत होता है। ऑप्थल्मोलॉजिस्ट एक मेडिकल डॉक्टर (एमडी) होता है, जो आँखों की डाइग्नोसिस, आक्यूलर रोगों तथा दोषों के प्रबंधन और सर्जरी सहित आँखों की देखभाल से संबंधित सभी पहलुओं का विशेषज्ञ होता है। किसी ऑप्टोमेट्रिस्ट और ऑप्थल्मोलॉजिस्ट के प्रशिक्षण में काफी अंतर होता है।
आप्टोमेट्रिस्ट को हाईस्कूल के पश्चात सात वर्ष का ही प्रशिक्षण मिलता है, जिसमें तीन से चार साल कॉलेज और तीन साल का किसी ऑप्टोमेट्रिक कॉलेज का प्रशिक्षण शामिल है। जबकि ऑप्थल्मोलॉजिस्ट हाईस्कूल के बाद कम से कम 12 वर्ष की शिक्षा प्राप्त करता है, जिसमें चार साल कॉलेज की शिक्षा, चार साल मेडिकल स्कूल, एक या अधिक वर्ष की जनरल मेडिकल या सर्जिकल ट्रेनिंग और तीन या चार साल का हॉस्पिटल आधारित आई रेसीडेंसी कार्यक्रम शामिल है। इसके बाद प्रायः एक या इससे अधिक वर्ष की स्पेशियलिटी फैलोशिप से भी नेत्र विशेषज्ञों को गुजरना पड़ता है।
ऑप्टोमेट्रिस्ट को दृष्टिदोष को सुधारने के अध्ययन के अलावा उन्हें नेत्र रोगियों पर प्रशिक्षण के सीमित अवसर ही मिल पाते हैं। इसकी तुलना में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की पूर्व चिकित्सीय शिक्षा होती है, जिसके बाद उन्हें ऑप्थल्मोलॉजी के व्यापक सर्जिकल तथा क्लिनिकल प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है।
ऑप्टोमेट्रिस्ट जहाँ दृष्टिदोष दूर करने के लिए आँखों के नंबर की जाँच कर सही नंबर के ग्लास, कांटेक्ट लैंस लगाने की सलाह देते हैं, वहीं ऑप्थल्मोलॉजिस्ट इन कार्यों के अलावा आँखों की बीमारियों की पहचान, उपचार और आवश्यकता पड़ने पर शल्यक्रिया भी करते हैं। वास्तव में देखा जाए तो ऑप्टोमेट्रिस्ट एक तकनीशियन होता है तो ऑप्थल्मोलॉजिस्ट आँखों का एक्सपर्ट, स्पेशलिस्ट और डॉक्टर होता है।
इन दिनों नेत्र सुरक्षा के प्रति आम लोगों की जागरूकता बढ़ने से ऑप्थल्मोलॉजी के क्षेत्र में करियर निर्माण के अवसर भी विकसित हुए हैं। प्रस्तुत है इस ऑप्थल्मोलॉजी से संबंधित कुछ सवाल-जवाब :-
विगत वर्षों में करियर निर्माण की दृष्टि से ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र किस तरह विकसित हुआ है?
-यह सही है कि कुछ वर्ष पूर्व तक कई छात्रों का ऑप्थल्मोलॉजी के प्रति इतना रुझान नहीं था। यदि उन्हें जनरल सर्जरी अथवा पसंदीदा अध्ययन क्षेत्र नहीं मिलता तब ही वे ऑप्थल्मोलॉजी का विकल्प चुनते थे। लेकिन तब भी इस क्षेत्र में काफी स्कोप था। हमारे यहाँ ऐसे कई नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, जिनका नाम और काम दूर-दूर तक फैला हुआ है।
ऑप्थल्मोलॉजिस्ट के प्रति सत्तर के दशक में सकारात्मक बदलाव आया। उस समय लोगों ने यह महसूस करना आरंभ किया कि रोजगार की दृष्टि से इस क्षेत्र में ढेर सारी संभावनाएँ हैं। आज भी इस क्षेत्र में योग्य प्रोफेशनल्स की कमी के चलते करियर निर्माण की बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं। धीरे-धीरे ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र उन मेडिकल स्टूडेंट्स की पहली पसंद बन गया, जिन्होंने यह महसूस करने के बाद कि ऑप्थल्मोलॉजी का मतलब केवल ग्लुकोमा या मोतियाबिंद का उपचार हीनहीं इससे कहीं ज्यादा है, इस क्षेत्र में करियर आजमाना चाहा है।
क्या यह लड़कियों के लिए आदर्श विकल्प है?-बेशक! यह ऐसा करियर भी है, जिसने लड़कों के साथ लड़कियों को भी समान रूप से आकर्षित किया है। जहाँ तक मेडिकल प्रोफेशन की बात है यहाँ कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनके प्रति लड़कों और लड़कियों में पूर्वाग्रह की स्थिति होती है। उदाहरण के लिए लड़के गायनेकोलॉजी का क्षेत्र पसंद नहीं करते हैं तो लड़कियाँ जनरल सर्जरी से बचना चाहती हैं। फिर भी यदि आप ऑप्थल्मोलॉजी को देखें तो यहाँ लिंगभेद नहीं है।
रोगी को जरा भी हिचकिचाहट नहीं होती कि पुरुष अथवा लेडी डॉक्टर कौन उसका उपचार कर रहा है। यहाँ ऐसी स्थिति भी कम ही आती है जब डॉक्टर को मरीज की जान बचाने जैसा कोई निर्णय लेना होता है। चूँकि महिलाएँ नाजुक होती हैं उनके हाथों में नजाकत होती है, इसलिए मरीज भी चाहते हैं कि लेडी डॉक्टर उनका उपचार करे। इस दृष्टि से ऑप्थल्मोलॉजी का क्षेत्र लड़कियों के लिए एक आदर्श विकल्प है।
ऑप्थल्मोलॉजी में प्राइवेट प्रैक्टिस का क्या ट्रेंड है?-यह एक महँगा लेकिन लाभप्रद सौदा है। चूँकि इस क्षेत्र में उपचार की आधुनिक मशीनें विदेशों से आयात की जाती हैं, इसलिए आउट पेशेंट और सर्जिकल प्रैक्टिस के लिए अच्छाखासा निवेश करना जरूरी होता है। जहाँ किसी चिकित्सक के लिए इतना निवेश करना संभव नहीं होता, वहाँ कुछ नेत्र रोग विशेषज्ञ मिलकर ग्रुप प्रैक्टिस कर रहे हैं। इससे फायदा यह होता है कि उपकरणों पर खर्च का अधिकतम उपयोग हो जाता है। अधिकांश मरीज आँखों जैसे नाजुक अंग के लिए भरोसेमंद उपचार चाहते हैं जो प्राइवेट नेत्र चिकित्सकों से संभव है। इसलिए इस क्षेत्र में प्राइवेट प्रैक्टिस का भविष्य उज्ज्वल है।
आप्थल्मोलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च के लिए क्या अवसर उपलब्ध हैं?-इस क्षेत्र में सामान्यतः दो तरह की रिसर्च होती है- बेसिक रिसर्च तथा क्लिनिकल रिसर्च। चूँकि बेसिक रिसर्च के लिए पैसा लगाना मुश्किल होता है और इससे आय भी संभावित नहीं है इसलिए यह रिसर्च मुख्यतः सरकारी संस्थानों में किया जाता है। इस क्षेत्र में किए गए अधिकांशअनुसंधान क्लिनिकल प्रकृति के हैं जैसे कि किस खास तरीके का उपचार अपनाया जाए अथवा विशेष रोग के लिए क्या विशेष उपचार होना आदि। वास्तव में देखा जाए तो हाल के वर्षों में इस क्षेत्र में रिसर्च हेतु प्रस्तुत पेपर और टॉपिक्स में खासी वृद्धि हुई है। लिहाजा इस क्षेत्र मेंरिसर्च के अच्छे अवसर हैं।
इस क्षेत्र से जुड़े प्रोफेशनल्स को अंतरराष्ट्रीय ख्याति कैसे मिल सकती है?
-वह आपका काम ही होता है जो आपका नाम रोशन करता है। ऑप्थल्मोलॉजी क्षेत्र के कुछ भारतीय प्रोफेशनल्स को विदेशों में व्याख्यान देने तथा सम्मेलनों में प्रतिनिधित्व करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। कई ऑप्थल्मोलॉजिस्ट पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद साल-दो साल के लिए विदेश जाकर वहाँ की नवीनतम प्रौद्योगिकियों को देखते हैं। अब भारतीय नेत्र रोग विशेषज्ञ इस क्षेत्र में अच्छी तरह से अपडेट हैं। लिहाजा सभी तरह से ऑप्थल्मोलॉजिस्ट का करियर एक अच्छा विकल्प है।
कैसे बनें ऑप्थल्मोलॉजिस्ट या नेत्र रोग विशेषज्ञ?
ऑप्थल्मोलॉजिस्ट बनने के लिए आपको सबसे पहले पीएमटी या अन्य किसी प्रचलित प्रवेश परीक्षा के माध्यम से चयनित होकर एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त करनी होगी। उसके बाद आपको ऑप्थल्मोलॉजी में एमएस की डिग्री लेनी होगी। यदि आप चाहें तो डीओएमएस (डिप्लोमा इन ऑप्थल्मिक मेडिसिन एंड सर्जरी) कर सकते हैं तथा आपको अपनी इंटर्नशिप पूर्ण करनी चाहिए। इस क्षेत्र की विशेषज्ञताओं में कार्निया तथा बाह्य रोग, स्ट्रेबिस्मोलॉजी, ऑप्थल्मिक पैथोलॉजी, ऑप्थल्मोप्लॉस्टि, ग्लूकोमा, सुइंट एंड आर्थोप्टिक्स, रेटिना एंड विट्रेयस, न्यूरो ऑप्थल्मोलॉजी तथा पेडिएट्रिक ऑप्थल्मोलॉजी शामिल है।
सॉफ्ट स्किल्स
किसी भी अच्छे ऑप्थल्मोलॉजिस्ट की सॉफ्ट स्किल्स या कौशल में ये बातें शामिल होनी चाहिए कि वह सहज हो, उसमें कार्य के प्रति निपुणता हो तथा वह पूरी तरह दक्ष हो। आधुनिक चिकित्सा ने दृष्टिदोष दूर करने तथा विकारों को सुधारने में भारी योगदान किया है। इससेइन क्षेत्रों में यह सुनिश्चितता हो गई है कि असामान्यता तथा विकलांगता ठीक हो सकती है तथा नेत्र रोग विशेषज्ञ इन दोषों को दूर कर जहाँ तक संभव हो सामान्य जीवन जीने लायक बना देते हैं।
संस्थान
1. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, दिल्ली
2. जामिया हमदर्द, फैकॅल्टी ऑफ मेडिसिन, दिल्ली
3. स्कूल ऑफ ऑप्टोमेट्री : गांधी नेत्र अस्पताल, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
4. स्कूल ऑफ ऑप्टोमेट्री : जनकल्याण नेत्र अस्पताल, लखनऊ
5. सीतापुर आई हॉस्पिटल, सीतापुर
6. वीबीएस पूर्वाचल यूनिवर्सिटी, जौनपुर
7. इंदिरागांधी इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंस, पटना
8. पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल, पटना
9. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पटियाला
10. मेडिकल कॉलेज, अमृतसर
11. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ ऑप्टोमेट्रिक साइंस, कोलकाता
नाम भी कमाएँ, दाम भी पाएँ
इन दिनों नेत्र रोगों तथा दोषों को दूर करने में ऑप्थल्मोलॉजिस्ट आधुनिक शल्यक्रियाओं यथा आरके और लेजर थैरेपी का प्रयोग कर रहे हैं, उसकी सफलता से प्रेरित होकर न केवल गंभीर रोगी बल्कि सामान्य लोग जिनमें लड़कियाँ, खिलाड़ी, एक्जीक्यूटिव, फिल्मी सितारे शामिल हैं, अच्छीखासी रकम खर्च करने को तैयार हैं। इस देश में जहाँ उल्लेखनीय काम कर नाम कमाया जा सकता है, वहीं कॉस्मेटिक सर्जरी अथवा नेत्र सौंदर्य द्वारा अच्छी आय भी अर्जित की जा सकती है।
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