Monday, June 22, 2015

चांद-सितारों का कैरियर



किसी समय चांद सिर्फ किस्से-कहानियों में ही होता था। मां बच्चे को लोरी गाकर सुनाती थी कि चंदा मामा दूर के…। अब चांद दूर की वस्तु नहीं रह गया है। चांद को तो मनुष्य ने 1969 मंे ही फतह कर लिया था। अब वह दूसरे ग्रहों तक पहुंच बनाने में जुटा है। हर ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। यह सब संभव 
ब्रह्मांड में अवस्थित आकाशीय पिंडों का प्रकाश,उद्भव और उनके  व्यवहार का अध्ययन खगोल शास्त्र के अंतर्गत किया जाता है। अब तक ब्रह्मांड के जितने हिस्से का हमें पता चला है,उसमें लगभग 19 अरब आकाशगंगाओं का अनुमान है और प्रत्येक आकाशगंगा मंे लगभग 10 हजार तारे हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक महापिंड के विस्फोट से हुई है। सूर्य को एक औसत तारा माना जाता है। सूर्य के चारों और नौ ग्रह चक्कर लगाते है। सूर्य सहित इन नौ ग्रहों को सौरमंडल कहा जाता है। पृथ्वी भी उनमें से एक है। इस ब्रह्मांड में हर एक तारा सूर्य के सदृश है। बहुत से तारे तो  ऐसे हैं कि सूर्य उनके सामने बहुत छोटा प्रतीत होता है।
इतिहास
सभी प्राकृतिक विज्ञानों मंे से अंतरिक्ष विज्ञान सबसे प्राचीन है। इसका आरंभ प्रागैतिहासिक काल में हो चुका था। प्राचीन धार्मिक  और मिथकीय कार्यों मंे इसका प्रयोग होता था। खगोलशास्त्र के साथ ज्योतिष का बड़ा गहरा संबंध रहा है। आज भी कई लोग इन्हें एक ही मानते हैं। प्राचीन खगोलविद् तारों और ग्रहों के बीच के अंतर को समझते थे। उनके अनुसार तारे लगभग शताब्दियों तक एक ही स्थान पर बने रहते हैं, जबकि ग्रह कम समय मंे ही अपने स्थान से हट जाते हैं। खगोल विज्ञान को वेद का नेत्र भी कहा जाता है, क्योंकि संपूर्ण सृष्टियों के होने वाले व्यवहार का निर्धारण काल से होता है और काल का ज्ञान ग्रहीय गति से होता है। ऋगवेद आदि ग्रंथों मंे नक्षत्र, चंद्रमास,सौरमास, मलमास,उत्तरायण, दक्षिणायण इत्यादि के संबंध में उदाहरण मिलते हैं। प्रसिद्ध खगोलविद जॉन प्लेफेयर के अनुसार 6 हजार वर्ष पूर्व भी भारत में खगोल विज्ञान था और यहां की गणनाएं पूरे विश्व मंे प्रयुक्त होती थीं। प्लेफेयर के अनुसार भारत ने ईसा से 3 हजार वर्ष पूर्व अंतरिक्ष विज्ञान ने काफी प्रगति कर ली थी। आर्यभट्ट ने 5वीं और 6वीं शताब्दी में ग्रहों की गति के विषय मंे कई महत्त्वपूर्ण खोजें की। खगोल शास्त्र का आधुनिक युग जर्मन भौतिकविद् किरचाक से आरंभ हुआ। उन्होंने 1859 मंे सूर्य के वातावरण मंे सोडियम, लौह, मैग्नीशियम, कैल्शियम तथा अन्य तत्त्वों का पता लगाया। भारत मंे स्वर्गीय प्रोफेसर मेघनाथ साहा ने सूर्य और तारों के भौतिक तत्त्वों के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण कार्य किया। हमारे देश मंे डा. एस चंद्रशेखर और डा. जयंत विष्णु नारलीकर ने खगोल विज्ञान मंे कई महत्त्वपूर्ण खोजें की।
काल गणना भी अंतरिक्ष विज्ञान की उपज
प्राचीन काल मंे धार्मिक उत्सव और कैलेंडर को सूर्य और चंद्रमा की गति से निर्धारित किया जाता था। दिन, महीने और साल भी सूर्य और चंद्रमा की गति से निर्धारित हुए। आज का कैलेंडर रोमन कैलेंडर पर आधारित है,जो साल को 12 महीनों और महीने को 30 या 31 दिनों में बांटता है।
हिमाचल में खगोल पर्यटन
हिमाचल पर्यटन विकास निगम ने राज्य मंे पर्यटक को लुभाने के लिए खगोल पर्यटन को बढ़ावा देने की योजना बनाई है। इसके लिए राज्य के 47 होटलों को चुना गया है। दिल्ली मंे स्पेस टेक्नोलॉजी एंड एजुकेशन के साथ करार किया गया है। ऑफ सीजन मंे इन होटलों मंे 35 फीसदी की छूट दी जाएगी। अंतरिक्ष विज्ञानी इन होटलों मंे अधिक पावर वाले टेलीस्कोप लगाएंगे। ये होटल चैल, नारकंडा, धर्मशाला, खजियार, काजा, केलांग, कल्पा और खड़ापत्थर मंे हैं।
हिमाचल की भावी योजना
हिमाचल मंे भास्कराचार्य स्पेस एप्लीकेशन एंड जियो इन्फार्मेशन संस्थान की तर्ज पर जियो इन्फार्मेटिक सेंटर स्थापित करने का ऐलान पिछली सरकार ने किया था। विख्यात खगोलविद् आर्यभट्ट के नाम पर आर्यभट्ट जियो इन्फार्मेशन एंड स्पेस एप्लीकेशन सेंटर रखा जाएगा। यह केंद्र विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण विभाग की निगरानी मंे राज्य की डिजिटल योजना बनाएगा।
प्रशिक्षण संस्थान
1-  पुणे विश्वविद्यालय अंतरिक्ष विज्ञान में एमएससी पाठ्यक्रम चलाता है, जिसमें  इसरो का भी कुछ पाठ्यक्रम रखा गया है।

2- तिरुवनंतपुरम में आईआईटी के छात्रों के लिए एक नया संस्थान प्रारंभ किया गया हैै। इसका लक्ष्य इसरो की आवश्यकता के अनुसार इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना है। कई ऐसे पाठ्यक्रम भी हैं, जिनके पूरा होने पर छात्रों को खगोल विज्ञान में प्रमाणपत्र प्रदान किए जाते हैं।
3- बंगलूर में सेंट जोसेफ़  कालेज तथा बिरला इंस्टीच्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में  सर्टिफिकेट कोर्स के साथ  ख्रगोल विज्ञान में एमएससी भी करवाई जाती है।
4- कालीकट विश्वविद्यालय, खगोल विज्ञान में एमएससी कोर्स संचालित करता है।
5-  बाबा साहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय, औरंगाबाद
6- शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर
 7- लखनऊ विश्वविद्यालय,लखनऊ
दूरबीन ने दिखाया रास्ता
दूरबीन के आविष्कार से तो जैसे अंतरिक्ष विज्ञान को जैसे पंख ही लग गए। इटली के अंतरिक्ष विज्ञानी गैलिलीयो गैलिली(1564-1642)ने सन् 1612 में पहली बार आकाशमंडल के अध्ययन मंे दूरदर्शी यंत्र(दूरबीन)का प्रयोग किया। दूरबीन के आविष्कार ने इस विज्ञान को बुलंदियों तक पहुंचाया।
अंतरिक्ष विज्ञान संबंधी वेधशालाएं
आईआईएससी, कोरमंगलम, बंगलूर
वेणूबप्पू वेधशाला(वीबीओ)कावलूर, तमिलनाडु
कोडेकनाल वेधशाला, मद्रास
गौरीविदनूर वेधशाला, बंगलूर
भारतीय खगोल वेधशाला हांले, लेह-लद्दाख
अनुसंधान तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा केंद्र ,बंगलूर (क्रेस्ट)
अंतरिक्ष विज्ञान से आर्थिकी
अगर ज्योतिष किसी व्यक्ति का भविष्य बताता है,तो अंतरिक्ष विज्ञान किसी देश का भविष्य बनाता है। प्राचीन काल में वर्षा, अकाल, मौसम और ज्वार-भाटे की भविष्यवाणी अंतरिक्ष विज्ञान के आंकड़ों पर आधारित थी। आज भी अंतरिक्ष विज्ञान की मदद से वर्षा, अकाल और प्राकृतिक आपदाओं के बारे में जाना जा सकता है। देश की आर्थिकी मंे अंतरिक्ष विज्ञान अहम भूमिका निभाता है।
पात्रता
यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां शैक्षिक कौशल के साथ-साथ  अभिरुचि भी  महत्त्वपूर्ण है। मस्तिष्क की वैज्ञानिक प्रवृत्ति तथा खोज की आकांक्षा होना प्राथमिक आवश्यकता है। यदि आप इसमें जिज्ञासा तथा रुचि रखते हैं तो आप आधी जंग जीत चुके हैं। अन्य तकनीकी योग्यता के साथ-साथ जमा दो स्तर पर तथा स्नातक स्तर पर भौतिकी एवं गणित विषय होना अनिवार्य है। अंतरिक्ष विज्ञान में कैरिअर के लिए छात्रों को सामान्यतः भौतिकी, गणित एव इंजीनियरी तकनीकों का पर्याप्त ज्ञान होना चाहिए। उम्मीदवारों के पास  मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय से भौतिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि में बीई या बीएससी की डिग्री होनी चाहिए।
परीक्षा पैटर्न
वायुमंडलीय एवं अंतरिक्ष विज्ञान में पीएचडी करने के इच्छुक व्यक्तियों के लिए सामान्यतः फरवरी या मार्च में संयुक्त प्रवेश जांच परीक्षा  आयोजित की जाती है। भौतिकी में स्नातकोत्तर या इंजीनियरी में प्रौद्योगिकी मास्टर या इंजीनियरी स्नातक छात्र परीक्षा में बैठने के पात्र हैं। परीक्षा में मल्टीपल च्वायस, आब्जेक्टिव प्रकृति के प्रश्न होते हैं, जिसमें भौतिकी विषय के सामान्य क्षेत्र शामिल होते हैं। परीक्षा मे वैज्ञानिक कौशल विषय के ज्ञान तथा समस्या सुलझाने की क्षमता की जांच की जाती है। अधिकतम आबंटित अंक 150 होते हैं। सभी 50 प्रश्नों के समान अंक होते हैं और नेगेटिव मार्किंग भी होती है। यदि आप यांत्रिक इंजीनियर हैं तो आपके लिए इस क्षेत्र में उज्ज्वल भविष्य के अवसर बढ़ जाते हैं।
वेतनमान
खगोल भौतिकी में कोई पाठ्यक्रम करने के बाद कोई भी अभ्यर्थी  कई अनुसंधान संस्थानों तथा सरकारी संगठनों में अनुसंधान वैज्ञानिक लग सकते हैं। अनुसंधान कार्य पूरा करने के बाद विभिन्न संस्थानों में रोजगार के अवसर बढ़ते हैं। विभिन्न सरकारी संस्थान भी खगोल विशेषज्ञों को वैज्ञानिकों के रूप में भर्ती करते हैं और उन्हें उच्च वेतन तथा अन्य अनुलाभ एवं भत्ते दिए जाते हैं। अनुसंधान कार्य के दौरान वे 30 से 40 हजार रुपए तक मासिक वेतन तथा अन्य अनुदान एवं सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। निजी क्षेत्रों में वेतन अनुभव और योग्यता के आधार पर निर्धारित होता है।
इसरो
इसरो भारत की सबसे बड़ी स्पेस एजेंसी है। इसकी स्थापना 1962 ई. में हुई। इसरो की गिनती विश्व की सबसे बड़ी छह अंतरिक्ष एजेंसियों में होती है। वर्तमान में डा. के राधाकृष्णन इसरो के अध्यक्ष हैं। भारत को स्पेस सुपर पावर बनाने में इसरो की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है।

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