Tuesday, November 29, 2016

पॉलीमर साइंस में करियर

आज की जिंदगी में प्लास्टिक कुछ इस तरह रचा-बसा है कि उसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती. यदि हम आसपास नजर डालें तो कम से कम दस में से आठ चीजें प्लास्टिक निर्मित मिलेंगी. 

प्लास्टिक, फाइबर और रबर- तीनों ही किसी न किसी रूप में एक ही फैमिली से हैं और इन सभी का निर्माण पॉलीमर की मदद से होता है. प्लास्टिक-पॉलीमर उत्पादों की लिस्ट काफी लंबी है. 

पॉलिमर कपड़े, रेडियो, टीवी, सीडी, टायर, पेंट, दरवाजे और चिपकाने वाले पदार्थ इसी उद्योग की देन हैं. अकेले ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में 75 प्रतिशत पार्ट्स इसी उद्योग की मदद से बनाए जाते हैं. 

इतना ही नहीं, हवाई जहाज में भी प्लास्टिक का ही परिमार्जित रूप इस्तेमाल होता है. आंकड़ों पर नजर डालें तो प्लास्टिक की खपत के मामले में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है. 

प्लास्टिक इंडस्ट्री में भारत का प्रतिवर्ष 4,000 करोड़ रुपये का कारोबार है. अकेले पैकेजिंग इंडस्ट्री में ही बड़ी तादाद में प्लास्टिक का उपयोग होता है. इसमें हर साल 30 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है. 

दुनिया में हर एक व्यक्ति औसतन साल में 30 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है, जबकि भारत में यह आंकड़ा फिलहाल चार किलो ग्राम प्रतिवर्ष ही है. लेकिन जिस किस्म की पैकेजिंग जागरूकता भारत में भी बढ़ रही है, आने वाले दिनों में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत का औसत कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा. 

कोर्स-

इसकी इसी व्यापकता को देखते हुए कई तरह के कोर्स की शुरुआत हुई है. हालांकि ये कोर्स अभी कुछ चुनिंदा संस्थानों में ही उपलब्ध हैं. कई बार प्रतिभाशाली होने के बावजूद छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता. 

ऐसे छात्रों के लिए बीएससी पॉलीमर साइंस एक अच्छा विकल्प हो सकता है. कोर्स के बाद छात्र आगे एमएससी या एमटेक कर सकते हैं. अगर नौकरी करना चाहें तो उसके लिए भी काफी बेहतर अवसर हैं यानी आप आईओसी, ओएनजीसी जैसे सरकारी संस्थानों में भी अच्छी नौकरियां पा सकते हैं.

बीएससी पॉलीमर साइंस अवसरों की दृष्टि से उपयोगी कोर्स माना जा रहा है. पॉलीमर और प्लास्टिक के क्षेत्र में डिप्लोमा, बीएससी, एमएससी और इंजीनियरिंग कोर्स उपलब्ध हैं. 

डिप्लोमा कोर्स के लिए अपने राज्य में स्थित पॉलीटेक्निक संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं. इंजीनियरिंग कोर्स में बीई (पॉलीमर साइंस), बीटेक (प्लास्टिक एंड पॉलीमर), बीटेक (प्लास्टिक एंड रबर) हैं, जबकि स्नातकोत्तर स्तर पर एमटेक के लिए प्लास्टिक-पॉलीमर कोर्स हैं. 

इसके अलावा, केमिकल पॉलीमर, बीएससी पॉलीमर साइंस, एमएससी पॉलीमर, केमेस्ट्री कोर्स भी देश के कुछ संस्थानों में पढ़ाए जाते हैं. बीई, बीटेक, बीएससी और बीकॉम कोर्स के लिए 102 पीसीएम विषयों में 50 प्रतिशत अंकों में पास छात्र आवेदन कर सकते हैं.

इसमें बीएससी को छोड़ कर तीनों कोर्स चार वर्ष की अवधि के हैं. कुछ संस्थानों में जैसे आईआईटी दिल्ली, मुंबई यूनिवर्सिटी में एमटेक डेढ़ वर्ष की अवधि का है. 
इसमें केवल संबंधित ब्रांच में बीई और बीटेक पास छात्रों को ही दाखिला मिल सकता है. मद्रास यूनिवर्सिटी में पांच वर्षीय एमएससी इंटीग्रेटेड कोर्स में 102 पीसीएम छात्रों को प्रवेश मिल सकता है. 

अन्य संस्थानों के एमटेक दो वर्षीय कोर्स में इंजीनियरिंग स्नातक में ही प्रवेश ले सकते हैं. एमएससी कोर्स में प्रवेश के लिए इंडस्ट्रियल, केमिकल या केमेस्ट्री ऑनर्स के अलावा वे छात्र भी आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने बीएससी में केमेस्ट्री को एक विषय के रूप में पढ़ा है. 

रोजगार की अपार संभावनाएं 

भारत में प्लास्टिक उद्योग कोई चार मिलियन डॉलर का है. यह हर साल 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. इस लिहाज से प्लास्टिक विशेषज्ञों के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

कंप्यूटर इंडस्ट्री हो या इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, सभी में इसकी मांग है. 

रिसर्च और अध्ययन के अलावा प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर की विभिन्न कंपनियों में नौकरी के अच्छे अवसर हैं. विभिन्न जूते की कंपनियों के अलावा, इस क्षेत्र में मार्केटिंग और प्रबंधन में भी काफी संभावनाएं हैं. यदि आप चाहें तो स्वरोजगार भी कर सकते हैं.

संस्थान- 

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली कोर्स- बीई (पॉलीमर साइंस), एमई (डेढ़ वर्ष का), पीएचडी. 
आईआईटी, नई दिल्ली कोर्स- एमटेक (डेढ़ वर्ष का). 
हरकोर्ट बटलर इंस्टीट्यूट, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक टेक). 
बिड़ला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, रांची कोर्स- बीई पॉलीमर.
भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ अप्लाइड साइंस, नई दिल्ली कोर्स-बीएससी ऑनर्स (पॉलीमर साइंस) 
डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, मुंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई कोर्स- बीकॉम (पॉलीमर), बीएससी, एमटेक (डेढ़ वर्ष). 
लक्ष्मी नारायण इंडस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी, नागपुर कोर्स- बीटेक. 
संत लोंगोवाल इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, संगरूर, पंजाब कोर्स- बीई (पेपर एंड प्लास्टिक) तीन वर्ष का. 
इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कानपुर यूनिवर्सिटी, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक), एमटेक (प्लास्टिक). 
बुंदेलखंड यू निवर्सिटी, झांसी कोर्स- एमएससी (इं टीग्रेटेड), एमएससी (पॉलीमर), एससी (पॉलीमर केमिस्ट्री)

Sunday, November 27, 2016

प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में करियर

वर्तमान समय में प्लास्टिक आदमी के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो गया है। आम आदमी की जरूरतों से लेकर उद्योग जगत तक में प्लास्टिक का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग ने प्लास्टिक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र को बहुत व्यापक बना दिया है। इंडस्ट्री का निरंतर विस्तार होने के कारण इसमें विशेषज्ञों की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। प्लास्टिक टेक्नोलॉजिस्ट का कार्य इस इंडस्ट्री में बहुत ही महत्वपूर्ण है।
कार्य 
प्लास्टिक टेक्नोलॉजिस्ट रॉ मैटीरियल को विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजार कर प्रोडक्ट्स का निर्माण करते हैं। वे शोध व अनुसंधान का कार्य भी करते हैं। इन्हीं कार्यों के फलस्वरूप हर दिन नए प्रकार के प्रोडक्ट्स बाजार में लॉन्च होते हैं।
योग्यता
बीटेक इन प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में प्रवेश पाने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथमेटिक्स विषयों के साथ 10+2 में कम से कम 50 प्रतिशत अंक हासिल करना जरूरी है। एमटेक या पीजी  डिप्लोमा करने के लिए केमिकल इंजीनियरिंग/ प्लास्टिक रबर टेक्नोलॉजी/ मैकेनिकल इंजीनियरिंग/ टेक्सटाइल इंजीनियरिंग में बीटेक/ बीई डिग्री या डिप्लोमा आवश्यक है। फिजिक्स अथवा केमिस्ट्री में एमएससी करने वाले छात्र भी प्लास्टिक टेक्नोलॉजी में एमटेक कर सकते हैं। जिन छात्रों ने गेट परीक्षा पास की है, उन्हें एमटेक में प्राथमिकता दी जाती है।
व्यक्तिगत गुण
इस इंडस्ट्री में भविष्य संवारने के लिए युवाओं के पास शैक्षणिक योग्यता के साथ कठोर परिश्रम, कल्पनाशीलता तथा भौतिक व रसायन विज्ञान में गहरी रुचि आवश्यक है।
अवसरभारत सरकार ने प्लास्टिक उद्योग को उच्च प्राथमिकता वाला क्षेत्र माना है। भारत में प्लास्टिक की मांग प्रतिवर्ष 10 से 14 फीसदी की दर से बढ़ रही है। इस उद्योग में भारत का 3500 करोड रुपये का सालाना कारोबार है, जिसके 2014 तक 6500 करोड रुपये सालाना होने की उम्मीद है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में बढ़ती प्लास्टिक की खपत को देखते हुए आगामी वर्षां में 15 लाख लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकते हैं। प्लास्टिक टेक्नोलॉजी का कोर्स पूरा कर लेने के बाद कंप्यूटर, इलेक्ट्रिकल या इलेक्ट्रॉनिक्स में नौकरी प्राप्त की जा सकती है। सार्वजनिक क्षेत्र में प्लास्टिक टेक्नोलॉजिस्ट को पेट्रोलियम मंत्रालय, ऑयल ऐंड नेचुरल गैस कमीशन, इंजीनियरिंग संयंत्रों, पेट्रोकेमिकल्स, विभिन्न राज्यों में पॉलिमर्स कॉरर्पोरेशन्स, पेट्रोलियम कंजर्वेशन, रिसर्च असोसिएशन ऑफ इंडिया आदि में करियर के अच्छे अवसर हैं। इसके अलावा मार्केटिंग व प्रबंधन के क्षेत्र में भी काफी स्कोप हैं।
कमाईसरकारी क्षेत्र में प्लास्टिक टेक्नोलॉजिस्ट की शुरुआती सैलरी 8 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। प्राइवेट कंपनियों में शुरुआती स्तर पर 10 से 12 हजार रुपये प्रतिमाह या इससे भी अधिक प्राप्त हो सकते हैं। 2 या 3 सालों के अनुभव के बाद 20 से 30 हजार रुपये प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं।
कोर्स • बीटेक इन प्लास्टिक टेक्नोलॉजी (4 वर्ष)
 • एमटेक इन प्लास्टिक टेक्नोलॉजी (2 वर्ष)
 • डिप्लोमा/पीजी डिप्लोमा इन प्लास्टिक टेक्नोलॉजी (3-4 वर्ष)
 • डिप्लोमा/पीजी डिप्लोमा इन प्लास्टिक मोल्ड डिजाइन (3-4 वर्ष)
 • पीजी डिप्लोमा इन प्लास्टिक प्रोसेसिंग ऐंड टेस्टिंग (18 माह)
संस्थान
 1. दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, दिल्ली
 2. गोविंद वल्लभपंत पॉलिटेक्निक, नई दिल्ली
 3. इंडियन प्लास्टिक इंस्टीट्यूट, मुंबई
 4. हरकोर्ट बटलर टेक्नोलॉजिकल इंस्टीट्यूट, कानपुर
 5. लक्ष्मीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, उत्तर प्रदेश
 6. सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लास्टिक इंजीनियरिंग ऐंड टेक्नोलॉजी, ब्रांच :  भोपाल, चेन्नई, लखनऊ, अहमदाबाद, भुवनेश्वर, मैसूर, गुवाहटी
 7. मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई
 8. संत लोंगोवाल इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग ऐंड  टेक्नोलॉजी, पंजाब
 9. जगत राम गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक होशियारपुर, पंजाब
 10. गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज, कोटा, राजस्थान

Saturday, November 26, 2016

पर्यावरण विज्ञान में करिअर

पर्यावरण को हो रही क्षति चिंताजनक स्तर पर पहुंच चुकी है। यह क्षति इस सीमा तक पहुंच गई है कि हम प्रतिदिन कम के कम एक बार तो अवश्य भूमंडलीय तापन, जलवायु परिवर्तन, हिम पिघलने, अम्ल बारिश या प्रदूषण जैसे शब्द सुनने को मिलता है। पर्यावरणीय मामलों पर जानकारी बढ़ने से भूमंडल की सुरक्षा प्रत्येक राष्ट्र, उद्योग, गैर सरकारी संगठन, बुद्धिजीवी और आम व्यक्ति का सामान्य उद्देश्य एवं जिम्मेदारी बन गई है। इस परिदृश्य में पर्यावरण इंजीनियरी या विज्ञान उन व्यक्तियों के लिए करियर का श्रेष्ठ विकल्प है जो पर्यावरण की सुरक्षा तथा धारणीय विकास का दायित्व उठाना चाहते हैं।पर्यावरण विज्ञान पर्यावरण का अध्ययन है। इसमें मानव पर्यावरण संबंध तथा उसके प्रभाव सहित पर्यावरण के विभिन्न घटक तथा पहलू शामिल है। इस क्षेत्र में व्यवसायी, प्राकृतिक पर्यावरण के संकट की चुनौतियों का सामाना करने के प्रयत्न करते हैं। वे सभी व्यक्ति पर्यावरण विज्ञानी होते हैं जिनका अभियान पर्यावरण-प्रकृति पर्यावरण के विभिन्न स्तरों पर परिरक्षा, बहाली और सुधार करना होता है।शैक्षिक विषय के रूप में पर्यावरण विज्ञानी एक ऐसा अंतरविषयीय शैक्षिक क्षेत्र है जो भौतिकीय तथा जैविकीय विज्ञानों को जोड़ता है। इसमें परिस्थितिकी, भौतिकी रसायनविज्ञान, जीवविज्ञान तथा भू विज्ञान शामिल है। पर्यावरण इंजीनियरी पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित है। यह पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए विज्ञान तथा इंजीनियरी के सिद्धांतों का अनुप्रयोग है। पर्यावरण विज्ञान कई क्षेत्रों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से संबंधित है। इस विषय के स्नातक तथा स्नातकोत्तर कई उद्योगों जैसे निर्माण, रसायनिक, विनिर्माण एवं ऊर्जा के क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं।दुनिया भर के बड़े औद्योगिक संगठनों ने पर्यावरण को हो रही क्षति से बचाने के लिए सीएसआर कार्य शुरू किए हैं। पर्यावरण के परीक्षण से संबंधित सीएसआर अपनाने वाली कंपनियां पर्यावरण विज्ञान स्नातकों तथा इंजीनियरों को रोजगार उपलब्ध कराती है। इसके अतिरिक्त गैर लाभभोगी संगठन इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्य कररहे हैं।
सरकारी संगठनों में अवसरों की बात करें तो प्राकृतिक संसाधनों के कार्यों से जुड़े विभाग इन व्यवसायियों को रोजगार दे सकते हैं। चाहे वे प्रदूषण नियंत्रण की नीति तैयार करने, वन एवं वन्य जीन की सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों की परिरक्षा या ऊराजा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास से संबंध हों, उनके प्रयासों की स्पष्ट रूप से उपेक्षा नहीं की जा सकती। अनुसंधान, परामर्श और शिक्षा शास्त्र के भी इस क्षेत्र में अवसर हैं।
पर्यावरण विज्ञानी
इनका कार्य पर्यावरण पर मानव के कार्यकलापों के प्रभाव को समझना तथा परिस्थितिक प्रणाली को क्षति पहुंचाने वाली चुनौतियों का समाधान खोजना है। वे प्रौद्योगिकी विकास जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया अपनाने का परामर्श देते हैं।
पर्यावरण इंजीनियर
वे कूड़ा प्रबंधन, लीन मैन्युफैक्चर, पुनः शोधन, उत्सर्जन नियंत्रण, पर्यावरण धारणीय जैसे इंजीनियरी पहलुओं एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य मामलों से जुड़े कार्य करते हैं। वहीं दूसरी ओर पर्यावरण समर्थक पर्यावरण मामलों तथा नीतियों पर सरकारी कार्मिकों, विधिकर्ताओं एवं संबंधित गैर सरकारी संगठनों को परामर्श देते हैं।
पर्यावरण शिक्षाविद्
ये वे शिक्षाविद् होते हैं जो पर्यावरण विज्ञान या परिस्थितिकी या जल विज्ञान आदि जैसे समवर्गी विषय पढ़ाते हैं। इसके अतिरिक्त पर्यावरण जीवन विज्ञानी, पर्यावरण माडलर, पर्यावरण पत्रकार एवं पर्यावरण से जुड़े प्रौद्योगिकीविद् आदि कुछ अन्य भूमिकाएं भी है।
क्रेडेंशियल्स
पर्यावरण विज्ञान विषय स्नातक (बीएससी), मास्टर (एमएससी) एवं पीएचडी स्तर पर पढ़ाया जाता है। इस विषय पर कुछ एमएससी कार्यक्रमों में पर्यावरण अध्ययन, आपदा प्रबंधन, परिस्थितिकी एवं पर्यावरण तथा धारणीय विकास जैसी विशेषताएं शामिल हैं। पर्यावरण इंजीनियरी विषय बीई/बीटेक तथा एमई/एमटेक कार्यक्रमों के रूप में पढ़ाया जाता है। स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम पर्यावरण ज्योमेटिक्स एवं जल तथा पर्यावरण प्रौद्योगिकी जैसी विशेषज्ञताओं के साथ चलाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त सिविल इंजीनियरी, यांत्रिकी इंजीनियरी, रासायनिक इंजीनियरी, वास्ताकला, भू भौतिकी, महासागर विज्ञान, वनस्पतिविज्ञान, प्राणिविज्ञान, वन्य जीवड वायुमंडल विज्ञान तथा विधि जैसी शैक्षिक पृष्ट भूमि वाले स्नातक भी इस क्षेत्र में आ सकते हैं। यह क्षेत्र सामाजिक विज्ञान, मानविकी, जनसंख्या अद्ययन एवं प्रबंधन के स्नातकों के लिए भी खुला है।
आकर्षक वेतन
कार्य की भूमिका के आधार पर एक स्नातक डिग्री धारी उम्मीदवार 15 हजार से 30 हजार तक वेतन पा सकता है। स्नातकोत्तर व्यक्ति को करीब 35 हजार से 50 हजार रुपए तक का वेतन दिया जाता है। वैज्ञानिक या सलाहकार के रूप में कार्य करने वाले पीएचडी उम्मीदवार 50 हजार से 75 हजार तक वेतन पा सकता है।
कौशल
इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए विवरण पर ध्यान देना जरूरी है। सबसे खास बात यह है कि इस क्षेत्र में सही समय पर सही निर्णय लेने के लिए उद्देश्य के बारे में निश्चिंतता, फोकस और दूर दृष्टि होना जरूरी है। सशक्त तकनीक कौशल के अतिरिक्त अच्छा संचार एवं अंतर वैयक्तिक कौशल होना आवश्यक है। समाधान निकालने के लिए तार्किक कौशल एवं संकल्पनात्मक तथा ज्ञान को प्रयोग में लाने की क्षमता होना अनिवार्य है। इस क्षेत्र में आने वाली सामान्य बाधाओं तथा असफलता के बावजूद धैर्य तथा दृढ़ता बनाए रखने की जरूरत होती है।
चुनौतियां
किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह पर्यावरण व्यवसासियों को भी अपने दायित्वों के निर्वहन में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चुनौतियों एवं उनके निदान से संबंधित सूचना एवं अनुसंधान का अपर्याप्त होना ऐसी ही एक चुनौती है, इसके अतिरिक्त पर्यावरण मामलों की जानकारी होने के बावजूद सरकारों, निगमों एवं व्यक्तियों की प्रतिक्रिया, इन चुनौतियों का निदान करने के लिए वांछित स्तर से कहीं पीछे हैं। उन्हें समझाना तथा उनमें परिवर्तन लाना सहज नहीं है। आधारिक संरचनाओं की अपर्याप्पता तथा निधि का अभाव अन्य महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं।
पर्यावरण अध्ययन एक उद्गामी, प्रभावनीय और शानदार क्षेत्र है। पर्यावरण का सामाना करने वाली आज की चुनौतियों को पूरा करने के लिए नव प्रवर्तित सोच रखने वाले प्रशिक्षत व्यवसायियों तथा पर्यावरण से जुड़े मामलों के प्रति अति संवेदनशील व्यक्तियों की आवश्यकता है। इसलिए जो प्राकृतिक पर्यावरण में सुधार लाकर मानव जीवन स्तर में वृद्धि लाना चाहते हैं। उनके लिए यह क्षेत्र करिअर का उपयुक्त विकल्प है

Friday, November 25, 2016

Genetic Counsellor डिकोडिंग द डिसऑर्डर

ह्यूमन बॉडी में मौजूद क्रोमोजोम्स में करीब 25 से 35 हजार के बीच जीन्स होते हैं। कई बार इन जीन्स का प्रॉपर डिस्ट्रीब्यूशन बॉडी में नहीं होता है, जिससे थैलेसेमिया, हीमोफीलिया, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्लेफ्ट लिप पैलेट, न्यूरोडिजेनेरैटिव जैसी एबनॉर्मलिटीज या हेरेडिटरी प्रॉब्लम्स हो सकती है। इससे निपटने के लिए हेल्थ सेक्टर में ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट और दूसरे इनेशिएटिव्स लिए जा रहे हैं, जिसे देखते हुए जेनेटिक काउंसलिंग का रोल आज काफी बढ गया है। अब जो लोग इसमें करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए स्कोप कहीं ज्यादा हो गए हैं।

जॉब आउटलुक

एक अनुमान के अनुसार, करीब 5 परसेंट आबादी में किसी न किसी तरह का इनहेरेटेड डिसऑर्डर पाया जाता है। ये ऐसे डिसऑर्डर्स होते हैं, जिनका पता शुरुआत में नहीं चल पाता है, लेकिन एक जेनेटिक काउंसलर बता सकता है कि आपमें इस तरह के प्रॉब्लम होने की कितनी गुंजाइश है। काउंसलर पेशेंट की फैमिली हिस्ट्री की स्टडी कर इनहेरेटेंस पैटर्न का पता लगाते हैं। वे फैमिली मेंबर्स को इमोशनल और साइकोलॉजिकल सपोर्ट भी देते हैं।

स्किल्स रिक्वायर्ड

जेनेटिक काउंसलिंग के लिए सबसे इंपॉर्टेट स्किल है कम्युनिकेशन। इसके अलावा, कॉम्पि्लकेटेड सिचुएशंस से डील करने का पेशेंस। एक काउंसलर का नॉन-जजमेंटल होना भी जरूरी है, ताकि सब कुछ जानने के बाद मरीज अपना डिसीजन खुद ले सके। उन्हें पेशेंट के साथ ट्रस्ट बिल्ड करना होगा।

करियर अपॉच्र्युनिटीज

अगर इस फील्ड में ऑप्शंस की बात करें, तो हॉस्पिटल में जॉब के अलावा प्राइवेट प्रैक्टिस या इंडिपेंडेंट कंसलटेंट के तौर पर काम कर सकते हैं। इसी तरह डायग्नॉस्टिक लेबोरेटरीज में ये फिजीशियन और लैब के बीच मीडिएटर का रोल निभा सकते हैं। कंपनीज को एडवाइज देने के साथ टीचिंग में भी हाथ आजमा सकते हैं। वहीं, जेनेटिक रिसर्च प्रोजेक्ट्स में स्टडी को-ओर्डिनेटर के तौर पर काम कर सकते हैं। बायोटेक और फार्मा इंडस्ट्री में भी काफी मौके हैं।

क्वॉलिफिकेशन

जेनेटिक काउंसलर बनने के लिए बायोलॉजी, जेनेटिक्स और साइकोलॉजी में अंडरग्रेजुएट की डिग्री के साथ-साथ लाइफ साइंस या जेनेटिक काउंसलिंग में एमएससी या एमटेक की डिग्री होना जरूरी है।

सैलरी

जेनेटिक काउंसलिंग के फील्ड में फाइनेंशियल स्टेबिलिटी भी पूरी है। हालांकि जॉब प्रोफाइल और सेक्टर के मुताबिक सैलरी वैरी करती है। प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाला प्रोफेशनल महीने में 50 हजार रुपये तक अर्न कर सकता है, जबकि गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में काम करने वाले महीने में 25 से 40 हजार के बीच अर्न कर सकते हैं।

ट्रेनिंग

-गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर

-कामिनेनी इंस्टीट्यूट, हैदराबाद

-संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट, लखनऊ

-सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु

-महात्मा गांधी मिशन, औरंगाबाद

-जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली

-सर गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली

एक्सपर्ट बाइट

जेनेटिक काउंसलिंग इंडिया में काफी तेजी से पॉपुलर हो रहा है। एप्लीकेशन के नजरिए से इसमें बहुत स्कोप है। नई लेबोरेटरीज खुल रही हैं, जिनके लिए जेनेटिक काउंसलर्स की काफी डिमांड है। वैसे, ट्रेडिशनल हॉस्पिटल्स के अलावा फार्मा कंपनीज में, कॉरपोरेट एनवॉयरनमेंट के बीच काम करने के पूरे मौके मिलते हैं। अब तक मेडिकल प्रोफेशन से जुडे स्टूडेंट्स ही इसमें आते थे, लेकिन अब नॉन-मेडिकल स्टूडेंट्स भी आ रहे हैं।

Wednesday, November 23, 2016

वेटरिनरी डॉक्टर के रूप में करियर

पशु-पक्षियों में होने वाली बीमारियों का पता लगाना, सही तरीके से इलाज कर उन्हें उनकी तकलीफों से छुटकारा दिलाना ही वेटरिनरी साइंस है। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में पशुओं की संख्या विश्व में सबसे अधिक है। इनकी देखभाल व इलाज के लिए वर्तमान में वेटरिनरी डॉक्टरों की भारी संख्या में कमी है। यदि किसी की जानवरों, पक्षियों के देखभाल और साथ ही चिकित्सा में रूचि है तो उसके लिए वेटरिनरी डॉक्टर का पेशा कल्याण, प्रतिष्ठा और पैसा के हिसाब से बहुत ही शानदार हो सकता है।
कार्य
वेटरिनरी डॉक्टर्स का कार्य पशुओं के स्वास्थ्य का खयाल रखना, उन्हें बीमारियों से छुटकारा दिलाना, उनके रहन-सहन व खानपान में सुधार करना तथा उनकी उत्पादन तथा प्रजनन क्षमता बढ़ाना होता है। इसके अलावा पशुओं से मनुष्यों में होने वाले रोगों से बचाव के लिए चिकित्सीय उपाय ढूंढने का कार्य भी करते हैं।
योग्यता
वेटरिनरी साइंस में गे्रजुएशन के लिए प्रवेश परीक्षा होती है। इस परीक्षा में आवेदन के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री व बायोलॉजी विषयों में 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं पास करना अनिवार्य है। यह परीक्षा वेटरिनरी काउंसिल ऑफ इंडिया के द्वारा हर वर्ष मई व जून में आयोजित की जाती है। प्रत्येक राज्य के वेटरिनरी कॉलेज की 15 प्रतिशत सीटें इसी परीक्षा के द्वारा भरी जाती है। बाकी सीटें उसी राज्य के प्रतियोगियों के लिए आरक्षित होती हैं, जहां वेटरिनरी कॉलेज स्थित होता है।
अवसर
वेटरिनरी इंडस्ट्री के कमर्शियलाइजेशन तथा भारत सरकार की उदारीकरण नीतियों के कारण यह इंडस्ट्री 35 प्रतिशत वार्षिक दर से वृद्धि कर रही है। फूड मैन्यूफैक्चरिंग, फार्मास्युटिकल्स, वैक्सीन प्रोडक्शन इंडस्ट्री से संबंधित मल्टीनेशनल कंपनियों के आने से वेटरिनरी क्षेत्र में नौकरी की मांग बढ़ रही है। पशु चिकित्सक सरकारी तथा गैर-सरकारी वेटरिनरी अस्पतालों, एनिमल हस्बैंड्री डिपार्टमेंट, पोल्ट्री फार्म, डेयरी इंडस्ट्री, मिल्क ऐंड मीट प्रोसेसिंग इंडस्ट्री, सीड इंडस्ट्री, फार्मास्युटिकल सेक्टर तथा एनिमल बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में कार्य कर सकते हैं। निजी अस्पताल या क्लीनिक खोलकर भी कमाई की जा सकती है। इसके अलावा रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट के क्षेत्र तथा शिक्षण-संस्थानों में शिक्षक के तौर पर कार्य करके भी आमदनी की जा सकती है।
कमाईवेटरिनरी डॉक्टर्स की सैलॅरी उनके पद, अनुभव तथा उसकी प्रैक्टिस के आधार पर तय होती है। सरकारी क्षेत्र में वेटरिनरी डॉक्टर की औसतन सैलरी 8 हजार रुपये प्रतिमाह से 25 हजार रुपये प्रतिमाह होती है। इसके अलावा उन्हें सरकार की ओर से मूल वेतन का 25 प्रतिशत नॉन प्रैक्टिस भत्ता भी दिया जाता है। प्राइवेट सेक्टर में वेटरिनरी डॉक्टर की सैलॅरी सरकारी क्षेत्र की तुलना में कहीं अधिक होती है।
कोर्स
 • बैचलर ऑफ वेटरिनरी साइंस ऐंड एनिमल हसबैंड्री (5 वर्ष)
 • वेटरिनरी ऐंड लाइव स्टॉक डेवलपमेंट डिप्लोमा (2 वर्ष)
 • मास्टर ऑफ वेटरिनरी साइंस (2 वर्ष)
 • पीएचडी इन वेटरिनरी साइंस (2 वर्ष)
संस्थान 1. बिहार वेटरिनरी कॉलेज, पटना
 2. बिरसा एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, रांची
 3. बॉम्बे वेटरिनरी साइंस कॉलेज
 4. मुंबई शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी, श्रीनगर
 5. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
 6. गोविंद वल्लभ पंत कृषि एवं प्रोद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर

Sunday, November 20, 2016

ऐप डेवलपर में करियर

एक स्मार्टफोन कितना भी शानदार और नई टेक्नोलॉजी से अपग्रेडेड क्यों न हो, जब तक उसमें लेटेस्ट ऐप्स न चलते हों, ग्राहक उसे खरीदने में झिझकते हैं। इन ऐप्स के कारण ही स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और इसी के साथ बढ़ रहे हैं, ऐप डेवलपमेंट में करियर बनाने के अवसर। अगर आपको भी स्मार्टफोन्स की लेटेस्ट ऐप्स के बारे में जानने और उनके टेक्निकल पहलुओं को समझने में दिलचस्पी है, तो आप बन सकते हैं बेहतरीन ऐप डेवलपर।
एक अनुमान के मुताबिक स्मार्टफोन्स का बाजार मोबाइल ऐप्स के कारण दोगुनी तेजी से बढ़ रहा है। साफ है कि लोग अपनी सुविधा के लिए हर काम में मोबाइल ऐप्स को इस्तेमाल करना पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि
आज फैशन से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा तक के लिए कई ऐप्स बाजार में अपनी जगह तो बना ही चुके हैं, ऐप डेवलपर्स के लिए भी उपलब्‍ध‍ियों के नए दरवाजे खुल रहे हैं। अगर आपको भी इन मोबाइल ऐप्स के फंक्शन और
टेक्नोलॉजी को जानने व समझने में रुचि है, तो आप ऐप डेवेलपर के तौर पर करियर बना सकते हैं।
क्या है काम?
ऐप डेवलपर्स उन सॉफ्टवेयर इंजीनियर्स या प्रोग्रामर्स को कहते हैं, जो ऐप्स की डिजाइनिंग, डेवलपमेंट और टेस्टिंग का काम किसी एक या सभी मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम्स के लिए करते हैं। मोबाइल ऐप ऐसा सॉफ्टवेयर प्रोग्राम है, जो मोबाइल उपकरणों पर चलता है। कुछ मोबाइल ऐप्स सिर्फ किसी खास मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम जैसे आईओएस, विंडोज या एंड्रॉयड पर ही रन करते हैं। इन्हें नेटिव मोबाइल ऐप्स कहते हैं। जबकि कुछ ऐप्स
मोबाइल वेब-बेस्ड ऐप्स होते हैं, जो हर तरह के मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम पर रन करते हैं।
कौन-से कोर्स?
इस फील्ड में करियर बनाने के लिए 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स और कम्प्यूटर वि‍षय होना जरूरी हैं। इसके बाद आप इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बीटेक या एमसीए कर सकते हैं। ऐप डेवलपर्स के पास सी, सी++ व ऑब्जेक्टिव सी जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस में प्रोफीशिएंसी होनी जरूरी है। ऐप डेवलपिंग कोर्स में आपको यूआई डिजाइन के बेसिक्स सिखाए जाते हैं। आप किसी एक ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए ऐप डेवलपिंग में स्पेशलाइजेशन भी कर सकते हैं।
जरूरी स्किल्स
एक ऐप डेवलपर को कम्प्यूटर और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेस में रुचि होना जरूरी है। चूंकि आपका पूरा दिन मोबाइल ऐप की जरूरतों को लिखने और उन्हें समझने में जाएगा, इसलिए आपमें धैर्य और टेक्निकल व डिजाइनिंग आस्पेक्ट्स को समझने की क्षमता होनी चाहिए। इसके अलावा आपमें यूजर एक्सपीरियंस जानने के लिए बेहतर
कम्युनिकेशन स्किल्स होनी भी जरूरी है।
वर्क प्रोफाइल
ऐप डेवलपर्स की तीन मुख्य भूमिकाएं होती हैं:
मोबाइल यूआई डिजाइनर: ये प्रोफेशनल्स किसी ऐप के कलात्मक और क्रिएटिव दोनों पहलुओं पर काम
करते हैं।
यूजर एक्सपीरियंस एंड यूजेबिलिटी एक्सपर्ट: ये ह्यूमन इंटरैक्शन को समझते हुए मैट्रिक्स के इस्तेमाल के तरीके को आसान बनाते हैं।
एप्लिकेशन डेवलपर या इंजीनियर: ये ऑपरेटिंग सिस्टम के हिसाब से ऐप्स की प्रोग्रामिंग और आर्किटेक्चर पर काम करते हैं। 
भविष्य की संभावनाएं
आप बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनीज जैसे टीसीएस, माइक्रोसॉफ्ट, ओरैकल, एसएपी, सीमैंटेक, एचसीएल आदि के
लिए काम कर सकते हैं। अब तो दूसरी कॉर्पोरेट कंपनीज भी ऐप्स डिजाइन करने के लिए ऐप डेवपलर्स को हायर करती हैं। 
कमाई कितनी?
बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनीज में शुरुआती एनुअल पैकेज 5-6 लाख रुपए तक होगा। अनुभव प्राप्त करने के बाद आपका
एनुअल पैकेज 15-20 लाख रुपए तक हो सकता है। इस क्षेत्र की खासियत है कि इसमें अनुभव के साथ सैलरी में वृद्धि तेजी से होती है और विदेश में काम करने का मौका भी मिलता है।
प्रमुख संस्थान
आईएसएम यूनिवर्सिटी 
सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कम्प्यूटिंग
इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस नेटवर्क टेक्नोलॉजी
इंटरनेशनल अकेडमी फॉर सर्टिफिकेशन एंड ट्रेनिंग
सीमएजु: स्कूल ऑफ प्रो-एक्सप्रेशनिज्म 
एनआईआईटी

Friday, November 18, 2016

माइक्रोबायोलॉजी में करियर

आज रॉकेट साइंस से लेकर नैनो टेक्नोलॉजी तक, स्टूडेंट्स के लिए भविष्य संवारने के तमाम अवसर हैं। ऎसी ही एक फील्ड है माइक्रोबायोलॉजी -
क्या है माइक्रोबायोलॉजी
यह बायोलॉजी की एक ब्रांच है जिसमें प्रोटोजोआ, ऎल्गी, बैक्टीरिया, वायरस जैसे सूक्ष्म जीवाणुओं (माइक्रोऑर्गेनिज्म) का अध्ययन किया जाता है।
इसमें माइक्रोबायोलॉजिस्ट इन जीवाणुओं (माइक्रोब्स) के इंसानों, पौधों व जानवरों पर पड़ने वाले पॉजीटिव व निगेटिव प्रभाव को जानने की कोशिश करते हैं। बीमारियों की वजह जानने में ये मदद करते हैं।
जीन थेरेपी तकनीक के जरिये वे इंसानों में होने वाले सिस्टिक फिब्रियोसिस, कैंसर जैसे दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर्स के बारे में भी पता लगाते है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट आसपास के एरिया, इंसान, जानवर या फील्ड लोकेशन से सैंपल एकत्र करते हैं। फिर उन पर माइक्रोब्स को ग्रो करते हैं और स्टैंडर्ड लैबोरेट्री टेक्निक से विशेष माइक्रोब को अलग करते हैं। मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट खासतौर पर इस तरह की प्रक्रिया अपनाते हैं।
सैलरी पैकेज
माइक्रोबायोलॉजिस्ट की सैलरी उसके स्पेशलाइजेशन पर डिपेंड करती है। शुरूआत में एक फ्रेशर 15 से 20 हजार रूपये महीना आसानी से कमा सकता है। एक्सपीरियंस और एक्सपर्टाइज होने के साथ सैलरी बढ़ती जाती है।
इसके अलावा एक माइक्रो-बायोलॉजिस्ट कुछ नया इनोवेट करने पर उसका पेटेंट करा सकता है और फिर अपने प्रोडक्ट को बेचकर लाखों रूपये कमा सकता है। इसके अलावा अगर वह चाहे तो अपनी इंडिपेंडेंट लैबोरेट्री भी खोल सकता है।
जरूरी क्वालिफिकेशन
कई यूनिवर्सिटीज में माइक्रोबायोलॉजी में अंडरग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज हैं। इसके लिए स्टूडेंट्स को फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स या बायोलॉजी के साथ 12वीं पास होना चाहिए। वहीं, पोस्टग्रेजुएशन करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी या लाइफ साइंस में बैचलर्स डिग्री जरूरी है।
इसके बाद वे अप्लायड माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, फोरेंसिक साइंस जैसे सब्जेक्ट्स में मास्टर्स कर सकते हैं। जो स्वतंत्र रूप से रिसर्च करना चाहते हैं, वे पीएचडी के बाद ऎसा कर सकते हैं।
जरूरी स्किल्स
आज वही इस फील्ड में सक्सेसफुल है, जो आउट ऑफ बॉक्स इनोवेटिव आइडियाज पर काम करता है, जिसकी इमैजिनेशन पॉवर स्ट्रॉन्ग है। इसके अलावा जो टेक्नोलॉजी में भी दखल रखता हो।
करियर में संभावनाएं
दुनिया भर में नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए कई माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीवाणुओं) का अब भी पता लगाया जाना बाकी है। यह काम माइक्रोबायोलॉजिस्ट बखूबी करते हैं। इसलिए उनके लिए अवसरों की कमी नहीं है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट बैक्टीरियोलॉजिस्ट, एनवायरमेंटल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, माइकोलॉजिस्ट, बायोकेमिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट, सेल बायोलॉजिस्ट, इम्युनोलॉजिस्ट, वायरोलॉजिस्ट, इम्ब्रियोलॉजिस्ट आदि के रूप में कॅरियर बना सकते हैं।
इनकी गवर्नमेंट व प्राइवेट सेक्टर के हॉस्पिटल्स, लैबोरेट्रीज, फूड एंड बेवरेज, फार्मासूटिकल, वॉटर प्रोसेसिंग प्लांट्स, होटल्स आदि में काफी मांग है।
फार्मासूटिकल के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में अवसरों की कमी नहीं है। अगर लेखन में रूचि है, तो साइंस राइटर के तौर पर भी भविष्य बनाया जा सकता है। साथ ही कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका भी है।
कॉलेज में पढ़ाने के लिए मास्टर्स डिग्री के साथ सीएसआईआर-नेट क्वालीफाइड होना जरूरी है, जबकि डॉक्टरेट के बाद ऑप्शंस कई गुना बढ़ जाते हैं। विदेश की बात करें, तो नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की काफी डिमांड है।

Thursday, November 17, 2016

रिहैबिलिटेशन थेरेपी में करियर

जो लोग मेडिकल फील्ड में करियर बनाने के साथ-साथ समाज के लिए भी कुछ करना चाहते हैं, वे रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट के रूप में इस सफर की शुरुआत कर सकते हैं। आज इंडिया में जिस तरह से स्पोर्ट्स इंजरीज, आर्थराइटिस, स्ट्रोक, सेरिब्रल पाल्सी, ट्रॉमेटिक ब्रेन सर्जरी, स्पाइनल कॉर्ड इंजरी आदि के मामले बढ़ रहे हैं, उन्हें देखते हुए हेल्थकेयर सेक्टर में एक्सपर्ट्स या स्पेशलिस्ट मेडिकल प्रोफेशनल्स की मांग में भी तेजी आई है मसलन-फिजियोथेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनलिस्ट आदि। लेकिन इनमें अगर रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट की बात करें, तो वह मरीजों को संपूर्ण रूप से किसी भी तरह के ट्रॉमा से निकालने में मददगार साबित होते हैं।
बेसिक स्किल्स
एक सक्सेसफुल रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट बनने के लिए युवाओं के पास धैर्य के साथ-साथ अच्छी कम्युनिकेशन और एनालिटिकल स्किल होनी जरूरी है। इसके अलावा, एकेडमिक और रिसर्च बैकग्राउंड भी स्ट्रॉन्ग होना चाहिए। कैंडिडेट को मोटिवेटेड भी होना होगा। उन्हें स्पीच थेरेपिस्ट, रिहैबिलिटेशन काउंसलर आदि से तालमेल रखना आना चाहिए।
एजुकेशनल क्वालिफिकेशन
रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट बनने के लिए इस फील्ड में बैचलर्स या मास्टर्स डिग्री जरूरी होती है। बैचलर्स कोर्स करने के लिए साइंस स्ट्रीम के साथ हायर सेकंडरी जरूरी है। ज्यादातर इंस्टीट्यूट्स या यूनिवर्सिटीज में एंट्रेंस एग्जाम के जरिए एडमिशन दिया जाता है। इसके अलावा, कई इंस्टीट्यूट रिहैबिलिटेशन थेरेपी में मास्टर्स भी ऑफर करते हैं। आप चाहें, तो रिहैबिलिटेशन थेरेपी में बीएससी या डिप्लोमा कर सकते हैं।
वर्क स्कोप
रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट हॉस्पिटल, साइकाइएट्रिक इंस्टीट्यूट्स से लेकर हेल्थ सेंटर में काम कर सकते हैं। इसके अलावा, स्पेशल स्कूल्स, कम्युनिटी मेंटल हेल्थ सेंटर या स्पोर्ट्स टीम के साथ जुडक़र भी काम किया जा सकता है। अगर कोई समाजसेवा के क्षेत्र में जाना चाहे, तो बुजुर्गो, बच्चों या फिजिकली डिसएबल लोगों के लिए काम करने वाली संस्था के साथ भी काम कर सकता है।
फाइनेंशियल ग्रोथ
रिहैबिलिटेशन थेरेपिस्ट के पास फुलटाइम के अलावा पार्टटाइम काम करने के विकल्प हैं। रिहैबिलिटेशन थेरेपी या इससे संबंधित पेशे से जुड़े प्रोफेशनल्स शुरुआत में हर माह कम से कम 10 से 15 हजार रुपये आसानी से कमा सकते हैं। ट्रेनिंग और एक्सपीरियंस बढऩे के साथ सैलरी 50 हजार रुपये महीने या उससे अधिक जा सकती है। रिहैबिलिटेशन फिजिशियन की सैलरी एलाइड हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स से ज्यादा होती है।
टीम वर्क है रिहैबिलिटेशन
रिहैबिलिटेशन थेरेपी में टीम अप्रोच से काम होता है। इसमें फिजियोथेरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच थेरेपिस्ट आदि की एक पूरी टीम होती है, जो ऑर्थोपेडिक्स, न्यूरोलॉजिस्ट्स, न्यूरोसर्जन्स आदि के साथ मिलकर काम करती है। इनके अलावा रिहैबिलिटेशन फिजिशियन बर्थ डिफेक्ट, सेरिब्रल पाल्सी, स्ट्रोक से ग्रसित मरीजों को देखते हैं। ये एमबीबीएस डिग्री धारी और दूसरे मेडिकल स्पेशलिस्ट्स से भिन्न होते हैं।
क्या है रिहैबिलिटेशन थेरेपी?
हादसों के बाद अक्सर लोगों को गंभीर शारीरिक चोटों के अलावा भी कई तरह की मानसिक और दूसरी परेशानियों से दो-चार होना प?ता है। इससे उबरने के लिए उन्हें फिजिकल के साथ-साथ ऑक्यूपेशनल थेरेपी की जरूरत प?ती है। ऑक्यूपेशनल थेरेपी जहां मरीज को उसके सामान्य दिनचर्या में लौटने में मदद करती है, वहीं फिजियोथेरेपी (एक्सरसाइज) शारीरिक रूप से सशक्त बनाती है। लेकिन रिहैबिलिटेशन थेरेपी को इन दोनों का मिश्रण कहा जा सकता है। इसमें मरीज की शारीरिक, मानसिक या कॉग्निटिव दिक्कतों पर एक साथ फोकस किया जाता है। इसके कई सारे ब्रांच हैं, जैसे-स्पेशल एजुकेशन, क्लीनिकल या साइकोलॉजिकल रिहैबिलिटेशन।

Wednesday, November 16, 2016

एमएलटी में करियर

डॉक्टर नहीं बन सेके तो क्या, मेडिकल फील्ड में और भी ऑप्शन हैं। आप के लिए माइक्रोबायो, बायोटेक या एमएललटी जैसे कोर्स हैं। लेकिन करियर स्कोप के लिहाज से एमएलटी (मेडिकल लैबोरेट्री टेक्नोलॉजी) कोर्स करियर प्रोस्पेक्ट के लिहाज से ज्यादा बढि़या कहा जा सकता है। इसके कई फायदे हैं। एमएलटी में बीएससी करने के बाद आप आगे एनाटोमी समेत नॉन क्लीनिकल साइंस के तमाम सब्जेक्ट की पढ़ाई कर सकते हैं जो एडवांटेज माइक्रोबायो या बायोटेक की पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को नहीं है। 
कई ऑप्शन 
यह एक ऐसा फील्ड है जिसमें सरकारी और प्राइवेट, दोनों सेक्टरों में करियर बनाने के पर्याप्त अवसर हैं। आप अपना करियर बखूबी संवार सकते हैं। लैब टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कई कोर्स हैं। जैसे, बैचलर ऑफ मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (बीएमएलटी), डिप्लोमा इन मेडिकल लेबोरेट्री टेक्नोलॉजी (डीएमएलटी), सर्टिफिकेट कोर्स। बीएससी के बाद आपके पास किसी सब्जेक्ट में स्पेशयलाइजेशन का भी अवसर होता है। 
जिपमेर, पुद्दुचेरी के एक्स स्टूडेंट और चितरंजन रेल फैक्ट्री के अस्पताल में कार्यरत मनोरंजन कुमार बताते हैं कि मेडिकल लैब टेक्नोलॉजिस्ट के लिए बीएससी-एमएलटी कोर्स के तहत स्टूडेंट्स को ब्लड, यूरिन आदि के अलावा शरीर के तमाम फ्लूइड्स की टेस्टिंग में ट्रेंड किया जाता है। जिपमेर के ही एक और एक्स स्टूडेंट अप्पू का कहना है कि लैब टेक्निशियन के तौर पर करियर को ऊंचाई देना चाहते हैं तो किसी सब्जेक्ट में स्पेशयलाइजेशन वाले कोर्स करने के बाद रिसर्च, फॉरेंसिक, फर्मास्युटिकल और इंडस्ट्रीयल लैबोरेट्रीज में भी काम के मौके मिलते हैं। 
बेहतर लैब
एमएलटी कोर्स करने वाले संस्थानों की कीमी नहीं है। लेकिन आप वैसा इंस्टीट्यूट तलाशें जहां लैइक्यूपमेंट्स बेहतर हों। तभी  जॉब में आने के बाद बढ़त हासि कर सकते हैं। इंस्टीट्यूट अच्छा होनेसे आप इस फील्ड की नई तकनीक और मशीनों से परिचित रहते हैं इस फील्ड में बैचलर और पोस्टग्रेजुएट कोर्स करवाने वाले संस्थान करीब करीब देश के हर हिस्से में हैं। दिल्ली की ही बात करें तो यहांवर्धमान महावीर मेडिकल कॉलेज के अलावा भी कई ऑप्शन हैं देश के प्रमुख संस्थानों के रू में पद्दुचेरीस्थित जिपमेरलीगढ़ स्थित एएमयू आदि का नाम लिया जा सकता है। 
जॉब प्रोफाइल
मेडिकल टेक्निशियन का मुख्य काम लैब में विभिन्न चीजों के सैंपल को टेस्ट करना होता है। यह काबहुत ही जिम्मेदारी भरा होता है थोड़ी सी गलती किसी व्यक्ति के लिए जानलेवा भी हो सकती है क्योंकिडॉक्टर लैब रिपोर्ट के अनुसार ही इलाज और दवा चलाते हैं।

एक लैब टेक्निशियन वैसे तो अपना काम स्वयं करते हैंलेकिन लैब में सुपरवाइडर के रूप में उनकेसीनियर भी होते हैं। टेक्निशियन के काम को तीन भाग में बांटा जा सकता हैनमूना तैयार करनाजां कीमशीनों को ऑपरेट करना  उनका रखरखाव और सबसे आखिर में जांच की रिपोर्ट तैयार करना।टेक्निशियन नमूना तैयार करने के बाद मशीनों के सहारे इसे टेस्ट करते हैं और एनालिसिस के आधार पररिपोर्ट तैयार करते हैं। स्पेशलाइज्ड पकरणों और तकनीक का इस्तेमाल कर टेक्निशियन सारे टेस्ट करतेहैं इस तरह ये इलाज में अहम रोल खते हैं।
सैलरी
इस फील्ड में सरकारी और प्राइवे दोनों सेक्टरों में काफी संभावनाएं हैं। सरकारी क्षेत्र में जॉब के आपकोवैकेंसी का इंतजार रना पड़ सकता हैलेकिन प्राइवे सेक्टर में ऐसी बात नहीं है। शुरुआत आप किसीप्राइवेट लैब से कर सकते हैं। औरअगर बीएससी एमएलटी हैंतो अपना लैब भी खोल कते हैं। जॉब कीस्थिति में हो कता है कि