Friday, October 30, 2015

रेशम उद्योग में करियर

रेशम मनुष्य के परिचित सबसे पुराने तन्तुओं में से एक है और दुनिया में सबसे अधिक प्यारा तन्तु है । अपनी भव्यता की वजह से रेशम वस्त्र सदियों से निरपवाद रूप से वस्त्रों की रानी के रूप में विख्यात है । विलासिता, लालित्य, किस्म, प्राकृतिक चमक, रंगों की ओर सहज आकर्षण और चटकीला रंग, हल्के वजन, कमजोर गर्मी प्रवाहक तत्व, लचीलापन तथा उत्कृष्ट वस्त्र विन्यास इसकी कुछ विशेषताएं हैं ।भारत में, रेशम को प्राचीन काल से एक पवित्र तन्तु माना जाता है और कोई भी धार्मिक समारोह रेशम के उपयोग के बिना पूरा नहीं होता ।
सम्भावनाएं
रेशम उद्योग के विस्तार को देखते हुए इसमें रोजगार की काफी संभावनाएं हैं और आने वाले दिनों में इसका कारोबार और फलेगा-फूलेगा । फैशन उद्योग के काफी करीब होने के कारण भी इसमें हमेशा अवसर बने रहते हैं । देश में लम्बी अवधि में कच्चे सिल्क और कपास की उपलब्धता सुनिश्चित करने की रणनीति के तहत कपड़ा मंत्रालय इन उत्पादों की खरीद विदेश से करने की योजना बना रहा है । 

सिल्क उत्पादन के मामले में भारत का स्थान विश्व में दूसरा है, जो कुल वैश्विक उत्पादन में करीब 18 फीसदी का योगदान करता है लेकिन दुनिया में सिल्क का सबसे बड़ा उपभोक्ता है ।  भारत में मलबरी सिल्क उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और जम्मू-कश्मीर । कुल सिल्क उत्पादन में इन राज्यों की हिस्सेदारी कुल मिलाकर 92 फीसदी है । साल 2010-11 में देश में 1,63,060 टन कच्चे सिल्क का उत्पादन हुआ था ।
योग्यता
विभिन्न विश्वविद्यालयों में सेरिकल्चर के पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं, जहां इसके विभिन्न पहलुओं से रू-ब-रू होकर छात्र न सिर्फ सिल्क उत्पादन में अपना योगदान दे सकते हैं, बल्कि अपने करियर को भी एक बेहतरीन सिल्की टच दे सकते हैं ।

कोर्स 
बी.एससी. इन सेरिकल्चर या बी.एससी. इन सिल्क टैक्नोलॉजी जैसे कोर्स कहीं तीन साल तो कहीं चार साल की अवधि के हैं । इन कोर्सों के तहत सिल्क प्रोडक्शन के बारे में छात्रों को पूरी जानकारी दी जाती है । पहले वर्ष में छात्रों को फाऊंडेशन कोर्स पढ़ना होता है । उसमें बॉयोलॉजी, कैमिस्ट्री, फिजिक्स, इलैक्ट्रॉनिक्स, एन्वायरनमैंटल साइंस आदि की पढ़ाई होती है । इसके बाद बॉटनी, जूलॉजी, कैमिस्ट्री के साथ सेरिकल्चर की पढ़ाई होती है ।  

इसी दौरान छात्रों को मृदा विज्ञान के बारे में भी बताया जाता है । बी.एससी. या एम.एससी. कोर्सों में प्रैक्टीकल पर भी काफी बल दिया जाता है । कालेज या संस्थान सिल्क उत्पादन के बारे में जानकारी देने के लिए मल्बरी गार्डन से युक्त होते हैं । मल्बरी सिल्क कीट की खुराक है । गार्डन में कीट पालन, कुकुन बनाने की प्रक्रिया और फिर उससे सिल्क के रेशे बनाने की विधि से छात्रों को अवगत कराया जाता है । इसके अलावा सिल्क की क्वालिटी , डाइंग व उसकी प्रिटिंग प्रक्रिया के बारे में भी बखूबी जानकारी दी जाती है ।

दाखिला
सेरिकल्चर में बी.एससी. में दाखिला 12वीं में प्राप्त हुए अंकों के आधार पर होता है । छात्र के लिए यह जरूरी है कि उसने 12वीं में भौतिकी, रसायन और बॉयोलॉजी (बॉटनी) की पढ़ाई की हो । कई संस्थानों में प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है और फिर तय सीटों के मुताबिक दाखिला दिया जाता है । 

बी.एससी. कोर्स पूरा करने के बाद छात्र आगे एम.एससी.भी कर सकते हैं । वे बॉयोटैक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, बॉटनी, जूलॉजी, जैनेटिक्स आदि में एम.एससी. कर विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं । लाइफ साइंस के अन्य छात्रों की तरह ही सेरिकल्चर के छात्रों को भी इन विषयों में एम.एससी. स्तर पर बराबर अवसर मिलता है । इसके बाद रिसर्च के मौके भी उपलब्ध होते हैं । 

रोजगार के अवसर
इस फील्ड में बी.एससी. करने के बाद छात्र चाहें तो आगे की पढ़ाई कर सकते हैं, अन्यथा वे टैक्सटाइल डिजाइन, फैशन टैक्नोलॉजी, एक्सपोर्ट हाऊस, स्मॉल स्केल इंडस्ट्री आदि में काम कर सकते हैं । एम.एससी. व पी.एचडी. करके अध्यापन क्षेत्र में भी जा सकते हैं । इसके अलावा साइंटिस्ट बनने के अवसर भी मिल सकते हैं ।

कई सरकारी संस्थानों, जैसे दिल्ली स्थित सैंट्रल सिल्क बोर्ड, सिल्क एक्सपोर्ट प्रमोशन कौंसिल, नाबार्ड, कृषि विज्ञान केन्द्र आदि में भी मौके मिल सकते हैं । प्रत्येक राज्य में सेरिकल्चर निदेशालय भी होते हैं, जहां प्रोजैक्ट मैनेजर, सहायक निदेशक, रिसर्च ऑफिसर, मार्कीटिंग अधिकारी आदि के रूप में काम करने का मौका मिलता है । यदि छात्र चाहें तो कोर्स करने के बाद खुद अपना व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं ।

केन्द्रीय रेशम प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान, बेंगलूर मडिवाला, बेंगलूर में स्थित यह देश का एक प्रमुख रेशम पर शोध करने तथा प्रशिक्षण प्रदान करने वाला सरकारी संस्थान है । इसके प्रशिक्षण कार्यक्रमों का लक्ष्य रेशम उत्पादन विभाग के कर्मचारियों से लेकर उद्यमियों, छात्रों, फैशन डिजाइनरों, धागाकारों, रंगाईकारों, एंठनकारों, बुनकरों, निचले स्तर के कार्यकारों आदि को प्रशिक्षण दिलाना है । संस्थान द्वारा प्रस्तुत प्रशिक्षण कार्यक्रम में केन्द्रीय रेशम बोर्ड और जापान अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता अभिकरण के संयुक्त रूप से प्रायोजित तृतीय देशी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी शामिल हैं ।
अन्य प्रमुख संस्थान
- शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंस एंड टैक्नोलॉजी, जम्मू
- दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
- बाबा साहब भीमराव अंबेदकर यूनिवर्सिटी, लखनऊ
- यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज, बेंगलूर
- सैंट्रल सेरिकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीच्यूट, मैसूर

अनुसंधान में सुनहरा भविष्य

जैसे-जैसे समय बीत रहा हैं वैसे वैसे मानव की समस्या भी विकट होती जा रही है। हर दिन एक नई समस्या से उसे दो चार होना पड़ता है। ऐसे में शोध की महत्ता स्वत: ही पैदा हो जाती है। हालांकि मानव की सोच विविधता वाली होती है और उसकी रूचि, प्रकृति, व्यवहार, स्वभाव और योग्यता भिन्न - भिन्न होती है। इस लिहाज से अनेक जटिलताएं भी पैदा हो जाती है। इस लिहाज से मानवीय व्यवहारों की अनिश्चित प्रकृति के कारण जब हम उसका व्यवस्थित ढंग से अध्ययन कर किसी निष्कर्ष पर आना चाहते हैं तो वहां पर हमें शोध का प्रयोग करना होगा। इस तरह सरल शब्दों में कहें तो सत्य की खोज के लिए व्यवस्थित प्रयत्न करना या प्राप्त ज्ञान की परीक्षा के लिए व्यवस्थित प्रयत्न भी शोध कहलाता है। तथ्यों कर अवलोकन करके कार्य- कारण संबंध ज्ञात करना अनुसंधान की प्रमुख प्रक्रिया है। 
किसी भी विषय पर अच्छा काम कर उसे उपयोगी और महत्वपूर्ण बनाया जा सकता है। वैसे इन दिनों मानविकी और समाज विज्ञानों में दलित, आदिवासी, स्त्री, भूमंडलीकरण, गरीबी, निजीकरण, उदारीकरण, बाजारवाद, किसान आदि से जुड़े विषयों का चलन है। प्राकृतिक विज्ञानों में कोई भी नई खोज या प्रयोग महत्वपूर्ण होता है जिसमें नए और उत्तेजक निष्कर्ष निकल रहे हों। चिकित्सा के क्षेत्र में नित-नई खोजें इसी प्रक्रिया का परिणाम हैं। माइक्रोबायोलॉजी और नैनो टैक्नोलॉजी इन दिनों प्राकृतिक विज्ञानों संबंधी शोधकार्यो में लोकप्रिय विषय हैं।
शोध का प्रमुख लक्ष्य वैज्ञानिक पद्वति के प्रयोग द्वारा प्रश्नों के उत्तर खोजना है इसका उद्देश्य अध्ययनरत समस्या के अंदर छुपी हुई यर्थाथता का पता लगाना या उस सबकी खोज करना है जिसकी जानकारी समस्या के बारे में नहीं है। वैसे प्रत्येक शोध के अपने विशेष लक्ष्य होते है फिर भी सामाजिक शोध को निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया हैं- 
1. किसी घटना के बारे में जानकारी प्राप्त करना या इसके बारे में नवीन ज्ञान प्राप्त करना- इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए की जाने वाली शोध को अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक शोध कहते है।
2. किसी व्यक्ति परिस्थिति या समूह की विशेषता का सही चित्रण करने के लिए की जाने वाली शोध को वर्णनात्मक शोध कहते है।
3. किसी वस्तु या घटना के घटित होने की आवृत्ति निर्धारित करना या किसी अन्य वस्तु या घटना के साथ संबंध स्थापित करने के लिए निदानात्मक शोध उपयोग में लाई जाती है।
4. विभिन्न चरो में कार्य कारण संबंधों वाली उपकल्पनाओं का परीक्षण करने के लिए उपकल्पना परीक्षण अनुसंधान या प्रायोगिक शोध उपयोग में लाई जाती है।
आज अध्यापन के अलावा दूसरे क्षेत्रों में विशेषज्ञों की बढ़ती मांग ने शोध के प्रति रुझान बढ़ाया है। आज विश्वविद्यालयी शोध के गिरते स्तर और शोधार्थियों को पेश आ रही मुश्किलों को ध्यान में रखते हुए शोध के बारे में एक बुनियादी समझ बनाना जरूरी हो गया है।
बढ़ता रुझान
नामी शोध संस्थानों से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले वर्षो में शोध उपाधियों में प्रवेश लेने के इच्छुक अभ्यर्थियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। जवाहरलाल नेहरू विश्व-विद्यालय में जहां पांच साल पहले सामान्यत: एम.फिल़ और डायरेक्ट पीएच़ डी. में प्रवेश के लिए आवेदन करने वालों की संख्या क्रमश: 100-150 और 10-15 हुआ करती थी, वहीं अब यह संख्या 500-1000 और 50-100 तक पहुंच गई है। शोध उपाधियों हेतु बढ़ते रुझान के दो प्रमुख कारण हैं- रोजगार के लिए शोध की बढ़ती अनिवार्यता और पिछले वर्षो में शुरू हुई विभिन्न शोधवृत्तियां। अच्छे उच्च शिक्षण संस्थानों में अध्यापन के लिए तो शोध अनिवार्य हो गया है।
इसके साथ ही निजी एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियों, गैर सरकारी संगठनों आदि में भी शोध उपाधि धारकों को वरीयता दी जाती है। सभी बड़े संस्थानों में रिसर्च एण्ड डवलपमेंट (आरएंडडी) विभाग होता है, इसके अलावा निजी संस्थानों और कंपनियों में 'कॉपरेरेट सोशल रेसपॉन्सबिलिटीÓ विभाग होता है, जहां पीएचडी धारकों को वरीयता दी जाती है। गैर सरकारी संगठनों में भी इनकी जरूरत होती है।
विषय चयन 
ठ्ठविषय आपकी रुचि का हो, न कि किसी का थोपा हुआ क्योंकि थोपे हुए विषय पर आप न तो अच्छा शोध कर सकते हैं और न ही बाद में साक्षात्कार में अपेक्षित जवाब दे सकते हैं।
ठ्ठविषय समयसामयिक महत्व का होना चाहिए। ऐसे विषय का चुनाव करें जिसकी आप साक्षात्कार में प्रासंगिकता स्पष्ट कर सकें। 
ठ्ठविषय में अधिक फैलाव से बचना चाहिए। विषय सीधे समस्या पर केंद्रित हो, इसलिए विषय चुनने से पहले समस्या की पड़ताल करें। उदाहरण के लिए अगर आपको भूमंडलीकरण से संबंधित विषय लेना है तो 'दुनिया पर भूमंडलीकरण का प्रभावÓ की जगह किसी छोटे क्षेत्र पर भूमंडलीकरण के खास प्रभाव का अध्ययन ज्यादा अच्छा विषय होगा।
निदेशक का चुनाव
जेएनयू जैसे कुछ विश्वविद्यालय गाइड (शोध निर्देशक) के चयन का अधिकार शोधार्थी को देते हैं। कई विश्वविद्यालयों में सीटों की उपलब्धता के आधार पर गाइड शोधार्थी का चयन करते हैं। अगर शोधार्थी के पास चयन की छूट हो तो गाइड के रूप में ऐसे व्यक्ति का चुनाव करना चाहिए जिसका विशेषज्ञता क्षेत्र आपके शोध विषय से संबंधित हो।
सारांश निर्माण 
सिनॉप्सिस या शोध प्रारूप शोध का पहला चरण है। कुछ विश्वविद्यालयों में प्रवेश के वक्त ही शोध प्रारूप ले लिया जाता है। सिनॉप्सिस आपके भावी शोध की रूपरेखा प्रस्तुत करती है, इसलिए इसे बहुत सावधानी से बनाएं। विषय की बुनियादी जानकारी जरूरी है। अपने क्षेत्र से जुड़ी महत्वपूर्ण किताबें पढऩे के बाद ही सिनॉप्सिस बनाएं। 
अध्याय विभाजन 
क्षेत्र, उद्देश्य और संभावनाएं : इसमें शोधार्थी अपने विषय को स्पष्ट करता है और संबंधित विषय में शोध की उपादेयता सिद्ध करता है। एक हाइपोथीसिस (शोध परिकल्पना) प्रस्तुत करता है कि शोध के संभावित परिणाम कितने महत्वपूर्ण हो सकते हैं।
शोध की वर्तमान स्थिति : इसमें शोधार्थी को अपने विषय से संबंधित अब तक हुए शोध कार्यो का ब्यौरा देना पड़ता है। नई दिल्ली स्थित भारतीय विश्वविद्यालय संघ (एसोशिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटीज) ने भारतीय विवि. में हुए तमाम शोध कार्यो के विषयों का एक वृहद कैटलॉग बनाया है। इससे शोधार्थी यह जान पाता है कि अपने शोध विषय जुड़े क्षेत्र में कहां कहां शोध कार्य हो चुका है। विषय के संबंध में सीनियर्स से बात करना भी अच्छा रहेगा। 
शोध विषय में नवीनता : शोधार्थी का विषय और भावी शोध कार्य कैसे अलग और नया है, यह शोधार्थी को सिनॉप्सिस के इस हिस्से में स्पष्ट करना चाहिए। कई बार शोध का विषय पुराने विषय से बहुत मेल खाता है, ऐसी स्थिति में शोधार्थी को अपने कार्य की भिन्नता को विस्तृत रूप से बताना अनिवार्य होग।
शोध विधि : यह शोध में अपनाई जाने वाली पद्धति है। यह हमारे विषय और अनुशासन पर निर्भर करता है कि हमें कौन सी शोध पद्धति ज्यादा उपयोगी लगेगी। तुलनात्मक, समाजशास्त्रीय, ऐतिहासिक, मनोवैज्ञानिक आदि पद्धतियां मानविकी संबंधी शोधकार्यों में प्रचलित हैं।
अध्याय योजना : इसे आप अपने भावी शोध प्रबंध का मूलाधार कह सकते हैं। यह उन रेखाओं का नाम है जिनमें रंग भरकर हम मुकम्मल तस्वीर बनाते हैं। अच्छी अध्याय योजना बनाने के लिए विषय की समुचित जानकारी होना जरूरी है। सामान्यत: एम.फिल़ में दो या तीन अध्याय होते हैं और पीएचड़ी़  में पांच से सात अध्याय होते हैं। शुरुआती अध्याय विषय से जुड़े सैद्धांतिक प्रश्नों से टकराते हैं और बाद के मूल विषय और समस्या से। अंत में निष्कर्ष या उपसंहार लिखने की परंपरा है।
संदर्भ ग्रंथ सूची : शोध कार्य के दौरान उपयोग में लाई गई किताबों की सूची को संदर्भ ग्रंथ सूची या बिबलियोग्राफी कहते हैं। कुछ शोध विषयों में हम कुछ पाठ (टेक्स्ट) का अध्ययन करते हैं। ऐसे शोध प्रबंध में हम संदर्भ ग्रंथ सूची को दो भागों में बाँटते हैं- प्राथमिक ग्रंथ (प्राइमरी सोर्स) और सहायक ग्रंथ (सैकेंडरी सोर्स)। इनमें किताबों के अलावा उपयोग में लाई गई पत्र-पत्रिकाएं, विश्वकोश, जर्नल, वेबसाइट आदि का भी ब्यौरा देना चाहिए।
शोधार्थी को अपने विषय का नयापन और महत्ता साबित करते हुए संभावित शोध का एक खाका पेश करना होता है। सिनॉप्सिस बनाने में शोधार्थी अपने गाइड की मदद ले सकते हैं। गाइड की सहमति के बाद विभाग के रास्ते विश्वविद्यालय की शोध समिति तक आपकी सिनॉप्सिस जाती है।
ऐसे होगी राह आसान 
पिछले वर्षों में शोध के प्रति रुझान बढऩे का एक कारण यह भी है कि इस बीच भारत सरकार द्वारा नई-नई शोधवृत्तियां (फैलोशिप) शुरू की गईं हैं तथा यूजीसी की जूनियर रिसर्च फैलोशिप और सीनियर रिसर्च फैलोशिप को भी बढ़ाया गया है।
पहले विद्यार्थियों की समझ थी कि बेरोजगारी में शोध के लिए व्यर्थ समय और धन क्यों खर्च करें, लेकिन बढ़ती फैलोशिपों ने इस सोच को बदला है। वैसे भी सरकारी शोध संस्थानों में मानविकी आदि के क्षेत्रों में शोध में ज्यादा खर्चा नहीं आता है। विज्ञान संबंधी शोधों के लिए अतिरिक्त फैलोशिपों और कंटीजेंसी की व्यवस्था की गई है। इसलिए अब शोध करना आर्थिक दृष्टि से आसान हुआ है।
प्रमुख संस्थान
मानविकी और समाज विज्ञानों के क्षेत्र में-
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली  ल्ल दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली 
द्यहैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद 
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई  ल्ल इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद 
कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता
प्राकृतिक विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज, बंगलूरू 
आईआईटी, दिल्ली, मुंबई, चैन्नई, कानपुर, रुड़की आदि। 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली (पूसा) 
स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान, चंडीगढ़, (चिकित्सा) 
एम्स, नई दिल्ली

Wednesday, October 28, 2015

फोरेंसिक साइंस में करियर

आजकल अपराधिक घटनओं में लगातार इजाफा हो रहा है। लेकिन अपराधी कितने भी शातिर क्यों न हों, वे कोई न कोई सुराग छोड ही जाते हैं। और इन्हीं सूक्ष्म से सूक्ष्म साक्ष्य के सहारे फोरेंसिक एक्सपर्ट अपराधियों को बेनकाब करने में सफल हो जाते हैं। फोरेंसिक एक्सपर्ट विज्ञान के सिद्धांतों और नई तकनीकों का उपयोग करते हुए क्राइम का इन्वेस्टिगेशन करते हैं। इसके लिए एक्सपर्ट ब्लड, बॉडी फ्लूड, हेयर, फिंगरप्रिंट, फूटप्रिंट, टिशू आदि की मदद लेते हैं। आमतौर पर फोरेंसिक एक्सपर्ट पुलिस के साथ मिल कर ही काम करते हैं।
हाल के वर्षो में कुछ प्रमुख विश्वविद्यालयों में भी फोरेंसिक साइंस से संबंधित कोर्स शुरू हो गए हैं, जो कि कुछ वर्ष पहले तक नहीं था। इससे यही जाहिर होता है कि आज इस कोर्स की बहुत ज्यादा पॉपुलरिटी है। अमूमन गवर्नमेंट कॉलेजों या विश्वविद्यालयों में फोरेंसिक साइंस से संबंधित कोर्स की फीस प्राइवेट इंस्टीटयूट की तुलना में काफी कम होती है, लेकिन इन दिनों जिस तरह से आपराधिक घटनाओं में वृद्धि हो रही है, उससे फोरेंसिक एक्सपर्ट्स की डिमांड काफी बढ गई है।
 इनके लिए रोजगार के अवसरों की अब कोई कमी नहीं है। गवर्नमेंट सेक्टर के साथ-साथ प्राइवेट संस्थानों में भी नौकरी की भरपूर संभावनाएं मौजूद हैं। आज करीब-करीब हर राज्य में फोरेंसिक लैब हैं। केवल यही नहीं, रीजनल और मोबाइल लैब्स की संख्या भी बढती जा रही है। वैसे, कुछ लैब में फोरेंसिक से जुडे स्टूडेंट्स को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर भी रखा जाने लगा है। ऐसे में इस क्षेत्र से जुडे लोगों के लिए रोजगार की फिलहाल कोई समस्या नहीं है। खास बात यह है कि इन दिनों इस प्रोफेशन के प्रति युवाओं में बेहद क्रेज देखा जा रहा है।

कैसे मिलेगी एंट्री
फोरेंसिक साइंस में एंट्री के लिए साइंस बैकग्राउंड का होना जरूरी है। यदि आप साइंस सब्जेक्ट से 10+2 कर चुके हैं, तो फोरेंसिक साइंस में ग्रेजुएशन कर सकते हैं। ग्रेजुएशन के बाद फोरेंसिक साइंस और क्रिमिनोलॉजी में एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में भी एंट्री ले सकते हैं। फोरेंसिक साइंस से मास्टर डिग्री कोर्स करने के लिए स्नातक में फिजिक्स, केमिस्ट्री, जूलोजी, बॉटनी, बायोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, बी.फार्मा, बीडीएस और अप्लायड साइंस में से किसी एक में 60 प्रतिशत अंक होना जरूरी है। इसके अलावा, फोरेंसिक स्पेशलिस्ट (जो मृत्यु के कारणों का पता लगाने के लिए पोस्टमार्टम करते हैं) बनने के लिए एमबीबीएस की डिग्री जरूरी है। इसके बाद फोरेंसिक साइंस में एमडी भी कर सकते हैं।

प्रमुख उपलब्ध कोर्स

देश में प्रमुख शिक्षण संस्थानों में फोरेंसिक साइंस से जुडे कई तरह के कोर्स उपलब्ध हैं :
u डिप्लोमा इन फोरेंसिक साइंस ऐंड क्रिमिनोलॉजी 

u बीएससी इन फोरेंसिक साइंस 

u पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन क्रिमिनोलॉजी ऐंड पुलिस एडमिनिस्ट्रेशन

u एमएससी इन फोरेंसिक साइंस

u एमएससी इन क्रिमिनोलॉजी ऐंड फोरेंसिक साइंस

u एमएससी इन साइबर फोरेंसिक्स ऐंड इन्फॉर्मेशन सिक्योरिटी

u एमए क्रिमिनोलॉजी ऐंड क्रिमिनल जस्टिस।

कहां मिलेगी नौकरी

फोरेंसिक एक्सपर्ट के लिए गवर्नमेंट और प्राइवेट ऑर्गनाइजेशन में जॉब की अच्छी संभावनाएं हैं। यदि गवर्नमेंट एजेंसी की बात करें, तो फोरेंसिक साइंटिस्ट के लिए इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी), सेंट्रल ब्यूरो ऑफ इंवेस्टिगेशन (सीबीआई), स्टेट पुलिस फोर्स के क्राइम सेल में, गवर्नमेंट व स्टेट फोरेंसिक लैब, प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी आदि में काम करने का भरपूर मौका है। इसके अलावा, फोरेंसिक टीचर के रूप में भी करियर बनाने का भरपूर अवसर होता है। वैसे, गवर्नमेंट ऑर्गनाइजेशन में फोरेंसिक एक्सपर्ट को तकरीबन आठ से 10 हजार रुपये प्रति माह शुरू में सैलॅरी मिल जाती है। हालांकि, प्राइवेट एजेंसी में फोरेंसिक एक्सपर्ट की सैलॅरी आकर्षक होती है।

फोरेंसिक साइंस में स्पेशलाइज्ड फील्ड

इस क्षेत्र में आप निम्न क्षेत्र में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं : क्राइम सीन इन्वेस्टिगेशन, फोरेंसिक पैथोलॉजी/ मेडिसिन, फोरेंसिक एंथ्रोपालॉजी, फोरेंसिक डेंटिस्ट्री, क्लिनिकल फोरेंसिक मेडिसिन, फोरेंसिक एंटोमोलॉजी, फोरेंसिक सेरालॉजी, फोरेंसिक केमिस्ट, फोरेंसिक इंजीनियर, फोरेंसिक आर्टिस्ट व स्कल्पचर, टॉक्सिकोलॉजी आदि।

शिक्षण संस्थान

u इंस्टीट्यूट ऑफ फोरेंसिक साइंस ऐंड क्रिमिनोलॉजी, बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी


u डिपार्टमेंट ऑफ फोरेंसिक साइंस, पंजाब यूनिवर्सिटी



u दिल्ली यूनिवर्सिटी


u डॉ. भीमराव अम्बेदकर यूनिवर्सिटी, आगरा

u लोक नायक जयप्रकाश नारायण नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी ऐंड फोरेंसिक साइंस, दिल्ली

u गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, दिल्ली

Thursday, October 22, 2015

फैशन की दुनिया में करियर

ऐसी है फैशन की दुनिया, जहां कभी शाम ढलती ही नहीं है। यही वजह है कि आज के युवाओं में फैशन को लेकर पैशन है। दिल्ली फैशन वीक, पेरिस, मिलान और न्यूयॉर्क में आकर्षण परिधानों में रैंप पर कैटवॉक करती हुई मॉडल और हर डिजाइन पर लोगों की तालियों की बरसात! सही में यही डिजाइनर की सफलता की कहानी बयां करती है। लोगों को सुंदर बनाने का जुनून आपमें है, तो फैशन डिजाइनिंग का क्षेत्र आपका इंतजार कर रहा है। आज भारतीय फैशन की दुनिया से निकलकर रितु बेरी, मनीष मलहोत्रा, रोहित बल जैसे तमाम डिजाइनर दुनिया भर में अपने हुनर का डंका बजा रहे हैं।

एंट्री
इस क्षेत्र में कदम रखने के लिए फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करना जरूरी है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, पर्ल के अलावा और भी कई इंस्टीट्यूट्स हैं, जहां से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया जा सकता है। फैशन डिजाइनिंग के अंडर ग्रेजुएट कोर्स में एडमिशन के लिए 12वीं पास होना जरूरी है। निफ्ट जैसे इंस्टीट्यूट में एडमिशन के लिए रिटेन एग्जाम, ग्रुप डिसक्शन और पर्सनल इंटरव्यू के दौर से गुजरना पड़ता है। पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश के लिए किसी भी विषय में स्नातक होना आवश्यक है।

फैशन डिजाइनिंग का क्षेत्र तीन ब्रांचों में विभाजित है-गारमेंट डिजाइन, लेदर डिजाइन और एक्सेसरीज व ज्यूलॅरी डिजाइन। इसके अलावा, फैशन बिजनेस मैनेजमेंट, फैशन रिटेल मैनेजमेंट, फैशन मार्केटिंग, डिजाइन प्रोडक्शन मैनेजमेंट आदि कोर्स में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। इन सभी क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त संस्थानों से ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए जा सकते हैं।

फैशन डिजाइनिंग का क्रेज
टीवी सीरियल और फिल्म के दीवानों की देश में कमी नहीं है। खासकर टीवी सीरियल की पैठ तो आज घर-घर में हो चुकी है। टीवी सीरियल्स और फिल्मों में डिजाइन कपड़ों को देख कर लोगों का के्रज फैशन के प्रति अब देखते ही बनता है। यह भी एक वजह है, जिससे पिछले कुछ वर्षों में फैशन इंडस्ट्री में काफी उछाल आया है। उद्योग चैंबर एसोचैम के मुताबिक, भारतीय फैशन इंडस्ट्री वर्ष 2012 तक 7 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगी। जिस तरह से लोगों में आज फैशन एक्सेसिरीज के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही है, उससे इस क्षेत्र का फलक और बड़ा होने की उम्मीद है।

फैशन की दुनिया
अक्सर लोगों को यह लगता है डिजाइनर सपनों की दुनिया में विचरण करते रहते हैं। लेकिन असलियत यह है कि उसका काम काफी चुनौतीपूर्ण होता है, क्योंकि बाजार की मांग के अनुरूप किसी खास प्रोडक्ट, सीजन और प्राइस को ध्यान में रखकर उसे काम करना पड़ता है। पिछले कुछ वर्षों में यह क्षेत्र तेजी से बदला है। देखा जाए, तो कुछ साल पहले तक भारत में एक भी ऐसा फैशन डिजाइनर नहीं था, जिसे वैश्विक स्तर पर पहचाना जाए। लेकिन आज रितु कुमार, रितु बेरी, रोहित बहल, सुनीत वर्मा, जेजे वालिया, तरुण तहिलियानी जैसे नामों की चर्चा दुनिया भर में होती है। रितु बेरी ने तो हॉलीवुड की बड़े स्टार निकोलस किडमन और कैट होम्स के कपड़े भी डिजाइन कर चुकी हैं।

नौकरी के मौके
क्रिएटिव लोगों के लिए यहां मौकों की कमी नहीं है। फैशन डिजाइनिंग का जॉब काफी चकाचौंध भरा होता है। यहां हमेशा कुछ नया करने की चुनौती होती है। इस समय फैशन डिजाइनिंग के क्षेत्र में गारमेंट और एक्सेसरीज डिजाइनर की काफी डिमांड है। फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद फैशन हाउस और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स में रोजगार के अच्छे अवसर हैं। यहां आप प्रोडक्शन, फैशन मार्केटिंग, डिजाइन प्रोडक्शन मैनेजमेंट, फैशन मीडिया, क्वालिटी कंट्रोल, फैशन एक्सेसिरीज डिजाइन और ब्रांड प्रमोशन में काम कर सकते हैं। इसके अलावा, कॉस्ट्यूम डिजाइनर, फैशन कंसल्टेंट, टेक्निकल डिजाइनर, ग्राफिक डिजाइनर, प्रोडक्शन पैटर्न मेकर, फैशन कॉर्डिनेटर आदि के रूप में भी शानदार करियर बना सकते हैं।

जरूरी तैयारी
इस फील्ड में एंट्री करने के पहले यह जरूरी है कि अपना एक पोर्टफोलियो कर लें। इसके लिए जरूरी है कि आप किसी प्रोफेशनल फोटोग्राफर के पास जाकर अपनी कुछ अच्छी तस्वीरें खिंचवाएं, ताकि आपका अच्छा पोर्टफोलियो तैयार हो सके। आप इस पोर्टफोलियो को किसी एडवरटाइजिंग एजेंसी, जरूरत के मुताबिक मॉडलों को उपलब्ध कराने वाली कोऑर्डिनेटिंग एजेंसी या किसी फैशन डिजाइनर को दिखाकर अपनी मॉडलिंग की राह आगे बढ़ा सकते हैं। मॉडलिंग में विकल्प मॉडलिंग कई तरह की होती है। व्यापक तौर पर इसे रैंप मॉडलिंग, टेलीविजन मॉडलिंग और प्रिंट मॉडलिंग बांटा जा सकता है।

टेलीविजन मॉडलिंग: इसमें आपको मूवी कैमरों के सामने मॉडलिंग करनी पड़ती है। जिसका इस्तेमाल टीवी विज्ञापनों, सिनेमा, वीडियो, इंटरनेट आदि में किया जाता है। प्रिंट मॉडलिंग: इसमें स्टिल फोटोग्राफर्स मॉडल्स की तस्वीरें उतारते हैं, जिनका इस्तेमाल अखबार, ब्रोशर्स, पत्रिकाओं, कैटलॉग, कैलेंडरों आदि में किया जाता है।

शोरूम मॉडलिंग: शोरूम मॉडल्स आमतौर पर निर्यातकों, गारमेंट निर्माताओं और बड़े रिटेलरों के लिए काम करते हुए खरीदारों के सामने फैशन के नवीनतम रुझानों को प्रदर्शित करते हैं।

रैंप मॉडलिंग: इसमें मॉडल्स को दर्शकों के सामने गारमेंट्स व ऐसेसरीज प्रदर्शित करनी होती है। यह प्रदर्शनी, फैशन शो या किसी शोरूम की बात भी हो सकती है। रैंप मॉडल की खड़े होने, चलने की शैली और बॉडी लैंग्वेज बेहतर होनी चाहिए।

सैलॅरी की चमक
फैशन डिजाइनिंग में सैलॅरी भी काफी बेहतर है। शुरू-शुरू में आपकी सैलॅरी 10,000 से 14,000 रुपये महीने हो सकती है। लेकिन दो-तीन साल में जब आप डिजाइनिंग में कुशल हो जाते हैं, तो सैलॅरी काफी बढ़ जाती है। जब आप इस फील्ड में एक बार जाने-पहचाने नाम बन जाते हैं, तो लाखों में कमाई कर सकते हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच
-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन, अहमदाबाद
-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइन, चंडीगढ़
-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, हैदराबाद, चेन्नई, गांधीनगर, बेंगलुरु
-नॉर्थ इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, मोहाली
-पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन, नई दिल्ली
-गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट ऑफ गारमेंट टेक्नोलॉजी
-एफडीडीआई, नोएडा
-सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन

Tuesday, October 20, 2015

वकालत में करें करियर को पेटेंट

सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाने का जज्बा सिर्फ गिने-चुने प्रोफेशन में ही है। इन्हीं में से एक ‘लॉ’ भी है। लॉ का महत्त्व वैसे तो हमेशा से ही रहा है, परन्तु जिस हिसाब से लोगों में अपने अधिकारों एवं कानून को लेकर जागरूकता बढ़ी है, वकालत के पेशे ने भी उड़ान भरनी शुरू कर दी है। भारत में सस्ती लॉ सुविधाओं के चलते विदेशी संस्थाएं भी भारतीय वकीलों की ओर देख रही हैं। यही वजह है कि आज वकालत का प्रोफेशन अपने बूम पर है। संजीव चंद की रिपोर्ट
39 वर्षीय बृजेश चन्द्र कौशिक इलाहाबाद हाईकोर्ट में सिविल एवं साइबर कानून विशेषज्ञ के रूप में जाने जाते हैं। उनका वकालत तक का सफर भी काफी रोचक रहा है। इस बारे में कौशिक बताते हैं कि ‘बीएससी एवं एमएससी कैमिस्ट्री में करने के पश्चात सिविल सेवाओं की तैयारी की ओर कदम बढ़ाया। कई बार इंटरव्यू के दौर से भी गुजरा, लेकिन इंटरव्यू देने के बाद भी सफल न होने की वजह से मेरा रुझान धीरे-धीरे सामाजिक चिंतन की ओर होने लगा। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मैंने एलएलबी की तथा लॉ प्रोफेशन में प्रवेश किया।’ शुरुआती कुछ संघर्षो के बाद आज वे सफल हैं तथा अपने प्रोफेशन से खुश भी हैं।
उनका कहना है कि लॉ में करियर बनाने के बाद मेरी सिविल सेवाओं में असफलता की जो टीस थी, वह काफी हद तक कम हो गई। आज भी मैं इसमें बेहतर संभावनाओं की तलाश में रहता हूं। उनका मत है कि इस प्रोफेशन में शुरुआती दौर में हर वकील को कई झंझावातों से होकर गुजरना पड़ता है। इन्हीं झंझावातों से जूझ कर एक पेशेवर वकील बनने का सपना पूरा हो पाता है। इसमें दो राय नहीं कि लॉ का क्षेत्र हमेशा उपयोगी रहा है, क्योंकि समाज में विभिन्न प्रकार के अपराधों की संख्या बढ़ रही है। इनके नियंत्रण के लिए तमाम तरह के कानून बनाए गए हैं। उन कानूनों की जानकारी रखने वाले पेशेवर वकीलों की मांग दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। आज के दौर में कम्प्यूटर क्रांति की वजह से साइबर अपराधों की संख्या में भी तेजी से इजाफा हुआ है। इनके नियंत्रण के लिए साइबर कानून, साइबर न्यायालय इत्यादि बनाए गए हैं।
भारत की लीगल एजुकेशन में हमेशा बदलाव आते रहते हैं। कई यूनिवर्सिटीज एवं नेशनल लॉ स्कूल मिल कर इस दिशा में प्रयास कर रहे हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया एवं यूजीसी की सहायता से इसकी गुणवत्ता को निखारा जा रहा है। यही कारण है कि देश में लीगल एजुकेशन में हालिया कुछ वर्षों में व्यापक बदलाव देखने को मिला है। हालांकि किसी भी संस्थान का पाठय़क्रम या विषय अन्य लॉ स्कूलों से अलग नहीं होते, परंतु संस्थान विशेष में पढ़ाई का तरीका उसे अपने आप में अनोखा बनाता है। सुप्रीम कोर्ट के वकील एसके उपाध्याय का कहना है कि ‘मल्टीनेशनल कंपनियां अच्छे पैकेज पर वकीलों को अपने यहां रखती हैं। भारत के कोर्स की मान्यता विदेशों में भी है। बस वहां के लोकल लॉ का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। जिन-जिन देशों में इंग्लैंड का शासन रहा है, वहां सीआरपीसी एवं आईपीसी संबंधी धाराएं समान रूप से लागू होती हैं।’ इस प्रोफेशन में सफल होने के बारे में श्री उपाध्याय बताते हैं कि ‘एक वकील के पास लॉ का ज्ञान, इंटरप्रीटेशन ऑफ लॉ, अभिव्यक्ति की क्षमता आदि की विशेषज्ञता का विकास होना अधिक मायने रखता है। तभी एक अच्छे वकील के रूप में आप देश-विदेश की विभिन्न लॉ फर्मो को अपनी सेवाएं देकर उचित पारिश्रमिक एवं सम्मान दोनों हासिल कर सकते हैं। इसमें थ्योरी के साथ-साथ प्रैक्टिकल नॉलेज काफी कारगर होती है। वैसे भी यह प्रोफेशन हमेशा से फलदायी रहा है। भारत और विदेशों में बड़ी लॉ फर्मो के आने और आकर्षक सेलरी देने के कारण कई छात्र कानून की शिक्षा ले रहे हैं।’
लॉ में हैं अनेक शाखाएं
लॉ के अंतर्गत आने वाले कोर्स का स्ट्रक्चर काफी फैला हुआ है। इसमें कई विषयों को शामिल किया जाता है। एक वकील अथवा जज को कई विषयों का ज्ञान रखना पड़ता है। अपनी विशेषज्ञता के हिसाब से वे अपनी फील्ड भी चुनते हैं। इसके सब्जेक्ट को लेकर रोचकता इसीलिए बनी रहती है, क्योंकि इसमें हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स तथा एनवायरमेंट जैसे विषयों में से किसी एक का चयन करना पड़ता है। कुछ शाखाएं इस प्रकार हैं-
कॉरपोरेट लॉ- वर्तमान समय में वैश्विक परिस्थितियों को देखते हुए कॉरपोरेट लॉ की उपयोगिता बढ़ गई है। इसके तहत कॉरपोरेट जगत में होने वाले अपराधों के लिए उपाय या कानून बताए गए हैं। कॉरपोरेट कानूनों के बन जाने से कॉरपोरेट जगत में होने वाले अपराधों को रोकने तथा कॉन्ट्रेक्ट नेगोसिएशन, फाइनेंस प्रोजेक्ट, टैक्स लाइसेंस और ज्वॉइंट स्टॉक से संबंधित काम किए जाते हैं। इसमें वकील किसी फर्म से जुड़ कर उसे कॉरपोरेट विधि के बारे में सलाह देते हैं।
पेटेंट अटॉर्नी- पेटेंट अटॉर्नी, पेटेंट लॉ का काफी प्रचलित शब्द है। इसका मतलब है कि एक ऐसा अधिकार, जिसके तहत कोई व्यक्ति अपना पूर्ण स्वामित्व रखता है। बिना उसकी मर्जी या सहमति के कोई अन्य व्यक्ति उस अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। यदि वह अधिकार किसी दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरित (आंशिक या पूर्ण रूप से) करता है तो इसके बदले उस फर्म या व्यक्ति से कॉन्टेक्ट करता है।
साइबर लॉ- हर क्षेत्र में कंप्यूटर के बढ़ते उपयोग से साइबर क्राइम का भी ग्राफ बढ़ा है। आज इस कानून का विस्तार आम आदमी के साथ-साथ लॉ फर्म, बैंकिंग, रक्षा आदि कई क्षेत्रों में हो रहा है। इस कानून के तहत साइबर क्राइम के मुद्दों और उस पर कैसे लगाम लगाई जा सकती है, इसकी जानकारी दी जाती है।
क्रिमिनल लॉ- इसे लॉ की दुनिया का सबसे प्रचलित कानून माना जाता है। इस कानून से हर छात्र का सामना पड़ता है। हालांकि इसमें भी शुरुआती चरण में कई तरह की दिक्कतों से दो-चार होना पड़ता है, परन्तु एक बार नाम हो जाने पर फिर सरपट दौड़ शुरू हो जाती है।
फैमिली  लॉ- यह क्षेत्र महिलाओं का पसंदीदा क्षेत्र है। इसके अंतर्गत पर्सनल लॉ, शादी, तलाक, गोद लेने, गाजिर्यनशिप एवं अन्य सभी पारिवारिक मामलों को शामिल किया जा सकता है। लगभग सभी जिलों में फैमिली कोर्ट की स्थापना की जाती है, ताकि पारिवारिक मामलों को उसी स्तर तक सुलझाया जा सके।
बैंकिंग लॉ- जिस तरह से देश की विकास दर में वृद्धि हो रही है, ठीक वैसे ही बैंकिंग क्षेत्र का दायरा भी बढ़ रहा है। इसमें खासतौर पर लोन, लोन रिकवरी, बैंकिंग एक्सपर्ट आदि से संबंधित कार्यो का निपटारा होता है।
टैक्स लॉ- इस शाखा के अंतर्गत सभी प्रकार के टैक्स जैसे इनकम टैक्स, सर्विस टैक्स, सेल टैक्स से जुड़े मामलों को वकीलों की सहायता से निपटाया जाता है।
कब कर सकते हैं कोर्स
इसमें प्रवेश की पहली सीढ़ी 10+2 के बाद ही मिल जाती है। बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा प्रायोजित पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड एलएलबी कोर्स में छात्रों को बुनियादी चीजों को लेकर स्पेशलाइजेशन तक की जानकारी दी जाती है, जबकि ग्रेजुएशन  के पश्चात एलएलबी (तीन वर्षीय, पार्टटाइम/फुलटाइम) तथा उसके बाद एलएलएम (2 वर्षीय) में दाखिला आसान हो जाता है। बीए एलएलबी में छात्र को किसी स्पेशलाइज्ड फील्ड जैसे कॉरपोरेट लॉ, पेटेंट लॉ, क्रिमिनल लॉ, साइबर लॉ, फैमिली लॉ, बैकिंग लॉ, टैक्स लॉ, इंटरनेशनल लॉ, लेबर लॉ, रीयल एस्टेट लॉ आदि में विशेषता हासिल करनी होती है।
कोर्स के प्रश्चात छात्र को एक से दो वर्ष तक इंटर्नशिप या किसी वरिष्ठ अधिवक्ता के सहायक के रूप में काम करना पड़ता है। उसके बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया या अन्य किसी संस्था में रजिस्ट्रेशन कराया जाता है।
आवश्यक स्किल्स
इस प्रोफेशन की सबसे खास बात यह है कि इसमें छात्र जीवन से ही जुझारू प्रवृत्ति अपनानी पड़ती है। किताबों एवं घटनाओं से निरंतर जुड़े रहना किसी भी प्रोफेशनल को आगे ले जाता है। रिसर्च एवं एनालिसिस के आधार पर ही किसी विषय पर कमांड हासिल हो सकती है, इसलिए मेहनत करने से भागे नहीं।
एक एडवोकेट के रूप में आपको मृदुभाषी, वाकपटु, मेहनती तथा लीडर जैसे गुण भी अपनाने पड़ते हैं। महज परीक्षा पास करने से ही एक अच्छा वकील नहीं बना जा सकता, बल्कि तार्किक, धैर्यवान, एकाग्रता, बहस करने की क्षमता, आत्मविश्वास तथा पिछले केसों के बारे में अच्छी जानकारी रखने वाला भी होना चाहिए। आपके पास एक अच्छी लाइब्रेरी तथा किताबों का संग्रह भी आवश्यक है।
एंट्रेंस एग्जाम का स्वरूप
ज्यादातर बड़े संस्थानों में दाखिला एंट्रेंस एग्जाम के ही जरिये मिलता है। यह एक ऑब्जेक्टिव टाइप पेपर होता है, जिसमें रीजनिंग, जनरल अवेयरनेस, न्यूमेरिक एप्टीटय़ूड, लीगल एप्टीटय़ूड एवं राजनीति शास्त्र से संबंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। थोड़ी- सी मेहनत से ही उम्मीदवार इसमें सफलता हासिल कर सकता है, पर लॉ के क्षेत्र में जाने का फायदा तभी है, जब आपकी इसमें विशेष रुचि हो। दिल्ली विश्वविद्यालय की लॉ फैकल्टी ने अपनी प्रवेश तिथियां घोषित कर दी हैं, जबकि 2008 के पश्चात सात नेशनल लॉ स्कूल मिल कर कॉमन लॉ एडमिशन टैस्ट का आयोजन करते हैं, जिसके पश्चात अंडरग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम में प्रवेश मिलता है।
प्रमुख प्रतियोगी परीक्षाएं
विगत कुछ वर्षो से लॉ के प्रोफेशन में काफी बदलाव आया है। इसमें अच्छे छात्रों के चयन के लिए लगभग सभी बड़े संस्थानों ने एंट्रेंस एग्जाम की प्रथा शुरू कर दी है। इसलिए अच्छे लॉ कॉलेज में पढ़ने की संभावना तभी बन पाएगी, जब एंट्रेंस एग्जाम पास करेंगे। कुछ एंट्रेंस एग्जाम एवं उसे कराने वाले संस्थान निम्न हैं-
क्लैट (कॉमन लॉ एडमिशन टैस्ट)
एसएसएलसी, पुणे (सिम्बायोसिस सोसायटी लॉ कॉलेज)
फैकल्टी ऑफ लॉ, दिल्ली यूनिवर्सटिी
क्यूएलटीटी (क्वालिफाइड लॉयर्स ट्रांसफर टैस्ट)
एमिटी लॉ स्कूल, दिल्ली

कैसे लें लॉ कॉलेज की जानकारी
जहां एक ओर नामी लॉ कॉलेजों की भरमार है, वहीं फर्जी संस्थानों की भी कमी नहीं है। ऐसे फर्जी संस्थान विज्ञापन के माध्यम से अपने संस्थान का 100 प्रतिशत प्लेसमेंट दर्शाते हैं, इसलिए एडमिशन से पूर्व उस संस्थान की सत्यता की जांच-परख अवश्य कर लें। कोई भी इच्छुक छात्र, जो लॉ में अपना करियर बनाना चाहता है या वह संस्थान के बारे में जानकारी हासिल करना चाहता है तो ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ उसकी मददगार साबित हो सकती है। यह संस्थान कानूनी शिक्षा एवं व्यवसाय के साथ-साथ कानूनों में सुधार लाने के लिए अपने परामर्श भी देता है। इसकी वेबसाइट

वकालत के पेशे के लिए भारत का माहौल कैसा है?
देखा जाए तो यह काफी अच्छा प्रोफेशन है, क्योंकि इसमें एक वकील के रूप में कई विषयों की जानकारी होती है। मंदी के दौर में जहां हर प्रोफेशन प्रभावित हुआ, वहां लॉ प्रोफेशन पर कोई असर नहीं पड़ा। पिछले कुछ सालों में इसमें कई बदलाव देखने को मिले हैं। आने वाले समय में यह फील्ड और भी कारगर हो सकती है।
किस तरह के गुण एक वकील को औरों से अलग बनाते हैं?
हालांकि शुरुआती दिनों में इस पेशे में काफी संघर्ष की स्थिति है, लेकिन एक-दो वर्षो के संघर्ष के बाद स्थिति पूरी तरह काबू में आ जाती है। लॉ की अच्छी एवं अपडेट जानकारी, कम्युनिकेशन स्किल्स, ऑन द स्पॉट जवाब देने की योग्यता जैसे गुण एक वकील को अलग श्रेणी में खड़ा कर सकते हैं।
शुरुआती चरण में किस तरह की दिक्कतें आती हैं?
करियर शुरू करने पर सबसे बड़ी दिक्कत पैसे की आती है। यदि पारिवारिक बैकग्राउंड वकालत की है तो काफी फायदा पहुंचता है। एक लंबा वक्त उन्हें अपनी पहचान बनाने में लग जाता है तथा सीनियरों का सहयोग अथवा उनसे काम मिलने में परेशानी आती है, इसलिए इसमें धैर्य की बहुत जरूरत होती है।
दो-तीन साल प्रैक्टिस के बाद वकील कैसे आगे बढ़ सकता है?
हालांकि हाईकोर्ट अथवा सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने में वकील को कई तरह की दिक्कतें आनी स्वाभाविक हैं, इसलिए उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि वे लोअर कोर्ट से ही अपनी प्रैक्टिस शुरू करें। 2-3 साल के बाद रुचि विकसित हो जाने के बाद अपनी फील्ड का चुनाव कर सकते हैं।
विदेशों में वकालत में कितनी संभावनाएं हैं?
सच कहा जाए तो भारत से ज्यादा विदेशों में वकालत में संभावनाएं मौजूद हैं। आजकल बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने विदेशी लोगों को यहां प्रैक्टिस की इजाजत दे रखी है। इसी तरह से यहां के लोग भी विदेशों में जाकर प्रेक्टिस कर रहे हैं। अभी इसमें और भी खुला परिदृश्य नजर आएगा। साथ ही कई सारी एमएनसी एवं लॉ फर्म भी भारत आ चुकी हैं।
रजिस्ट्रेशन संबंधी प्रक्रिया क्या है?
जैसे ही छात्र अपना कोर्स पूरा करते हैं, उन्हें अपने अटेंडेंस सर्टिफिकेट के साथ स्टेट बार काउंसिल में अप्लाई करना होता है। उसके बाद उन्हें प्रैक्टिस संबंधी लाइसेंस दे दिया जाता है।
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प्रमुख संस्थान
नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू)
29 अगस्त सन् 1987 में स्थापित संस्थान लीगल एजुकेशन, लीगल रिसर्च एवं ट्रेनिंग का खास गढ़। संस्थान में ही छात्र-टीचर्स के रहने की व्यवस्था।
संस्थान के फुल टाइम प्रोग्राम के छात्रों को एसबीए मेंबर होना जरूरी है।
पता - एनएलएसआईयू, पो. बॉ. - 7201, नागरभावी, बेंगलुरू-560072
वेबसाइट - www.nis.ac.in
अन्य प्रमुख संस्थान
- एनएएलएसएआर, हैदराबाद
वेबसाइट - www.nalsar.ac.in
- एनयूजेएस, कोलकाता
वेबसाइट - www.nugs.edu
 -  एनएलयू, जोधपुर
वेबसाइट - www.nlujodhpur.ac.in
- फैकल्टी ऑफ लॉ, (डीयू), दिल्ली
वेबसाइट - www.du.ac.in
- एमिटी लॉ स्कूल, नई दिल्ली,
वेबसाइट - www.amity.edu
- फैकल्टी ऑफ लॉ (बीएचयू), वाराणसी,
वेबसाइट - www.bhu.ac.in
- फैकल्टी ऑफ लॉ (एएमयू), अलीगढ़
वेबसाइट - www.amu.ac.in
कोचिंग संस्थान
- करियर लॉन्चर (एलएसटी)
वेबसाइट - www.careerlauncher.com
- पीटी एजुकेशन
वेबसाइट - www.pteducation.com
- श्रीराम लॉ एकेडमी
वेबसाइट - www.lawentrancecoaching.com
स्कॉलरशिप
देश में मिलने वाली स्कॉलरशिप-एनएलएसआईयू स्कॉलरशिप, हेमंत नरिचानिया स्कॉलरशिप, ललित भसीन स्कॉलरशिप एवं शंकर रामा मेमोरियल ट्रस्ट स्कॉलरशिप। विदेशों में लॉ से संबंधित स्कॉलरशिप- अमेरिकन बार एसोसिएशन, यूनिफिकेशन ऑफ प्राइवेट लॉ (यूएनआईडीआरओआईटी) रोम आदि हैं। कुछ प्रमुख वेबसाइट भी निम्न हैं- www.nelliemae.com, www.accessgroup.org लॉ एवं एचआर मिनिस्ट्री से भी सहायता मिलती है।
एजुकेशन लोन
लॉ सरीखे प्रफेशनल कोर्स के लिए देश व विदेश में पढ़ाई के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक 10 से लेकर 20 लाख तक एजुकेशन लोन उपलब्ध कराते हैं। हालांकि फॉरेन एजुकेशन को लेकर कुछ शर्तें जरूर हैं। इलाहाबाद बैंक, आंध्रा बैंक, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया, विजया बैंक प्रमुखता के साथ लोन देते हैं।
नौकरी के अवसर
इसमें प्रोफेशनल्स को सरकारी एवं प्राइवेट, दोनों ही सेक्टर में जॉब के अवसर मिलते हैं। प्राइवेट सेक्टर में जहां एडवोकेट, लीगल कंसल्टेंट, टीचर, राइटर, लीगल एजवाइजर आदि बनने का रास्ता खुलता है, वहीं सरकारी सेक्टर में सॉलीसिटर, लीगल कंसल्टेंट, (पार्टटाइम व फुलटाइम), लॉ ऑफीसर, असिस्टेंट एडवाइजर, डिप्टी लीगल एडवाइजर के रूप में अवसर सामने आते हैं। लॉ सर्विस कमीशन एवं स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा पास करने के बाद मुंशफ एवं प्रमोशन के पश्चात उप न्यायाधीश, जिला एवं सत्र न्यायाधीश बना जा सकता है। एडवोकेट के रूप में हाइकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट तक का रास्ता अख्तियार किया जा सकता है।
वेतन
इसमें प्रारम्भ में किसी भी प्रेक्टिशनर को 5 से 7 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। एक-दो साल का अनुभव होने पर प्रोफेशनल्स को 10-12 हजार प्रतिमाह तक आसानी से मिल जाते हैं, जबकि प्राइवेट प्रेक्टिशनर्स को इस क्षेत्र में अच्छा पारिश्रमिक मिलता है। गवर्नमेंट सर्विस के अंतर्गत जब प्रोफेशनल्स सब जज के रूप में नियुक्त होते हैं तो 8-12 लाख रुपये प्रतिवर्ष का पैकेज लेते हैं।
सेलरी की सीमा काफी कुछ संस्थान, फर्म्स अथवा कंपनी पर निर्भर करती है।

Sunday, October 18, 2015

मैथमेटिक्स: करियर में सफलता का जोड़

प्रोफेशनल और ऑफबीट कोर्सों की भरमार के बीच कई ऐसे परंपरागत क्षेत्र भी हैं, जो न सिर्फ अपनी चमक बरकरार रखे हुए हैं, बल्कि समय के अनुरूप अपने सिलेबस व कोर्स स्ट्रक्चर में बदलाव लाकर छात्रों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। रोजगार देने के मामले में भी इनका कोई सानी नहीं है। उन्हीं प्रचलित क्षेत्रों में से एक मैथमेटिक्स (गणित) भी है। देश में मैथमेटिक्स की पुरानी परम्परा रही है। सबसे पुराने लिखित रिकॉर्डों से भी ऐसे चित्र मिले हैं, जो मूल गणित के ज्ञान की ओर इशारा करते हैं। तारों के आधार पर समय के मापन की बात को स्पष्ट करते हैं। यह एक ऐसा विषय क्षेत्र है, जिसकी जरूरत पढ़ाई के शुरुआती दिनों से ही पड़ती है।
सही मायने में देखा जाए तो मैथमेटिक्स दैनिक गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। विभिन्न वैज्ञानिक पहलुओं में इसका बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। आने वाले समय में भी इसकी जरूरत कम न होकर बढ़ती ही जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि आगामी तीन वर्षों में अधिक संख्या में मैथमेटिक्स प्रोफेशनल्स की जरूरत पड़ेगी।
कब रख सकते हैं कदम
आमतौर पर इससे संबंधित कोर्स बारहवीं (मैथ्स) के पश्चात ही किए जा सकते हैं, लेकिन सबसे अधिक डिमांड बैचलर कोर्स के बाद किए जाने वाले कोर्सों की है। बारहवीं के पश्चात जहां बीए/बीएससी (मैथ्स) अथवा बी मैथ में प्रवेश मिलता है, वहीं बैचलर के पश्चात एमए/एमएससी ( मैथ्स) अथवा एममैथ में दाखिला ले सकते हैं। मास्टर के पश्चात पीएचडी की राह आसान हो जाती है। इससे संबंधित बीटेक और इंट्रिग्रेटेड कोर्स भी अपनी पहचान बनाए हुए हैं। ये बारहवीं के पश्चात किए जाते हैं।
प्रवेश पाने का आधार
कई ऐसे नामी-गिरामी संस्थान हैं, जो विभिन्न कोर्सो के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करते हैं। यह परीक्षा हर साल आयोजित की जाती है, जबकि कई संस्थान मेरिट के आधार पर प्रवेश दे देते हैं। कुछ संस्थान ऐसे भी हैं, जो ग्रेजुएट कोर्स में प्रवेश देने से पहले बारहवीं में उच्च प्रतिशत अंकों की डिमांड करते हैं।
प्रमुख कोर्स एवं अवधि
बीए/बीएससी (मैथ)  तीन वर्षीय
बीमैथ   तीन वर्षीय
बीटेक    चार वर्षीय
एमए/एमएससी (मैथ)  दो वर्षीय
एममैथ   दो वर्षीय
एमटेक   दो वर्षीय
पीएचडी   तीन वर्षीय
आवश्यक स्किल्स
क्रिटिकल थिंकिंग
प्रॉब्लम सॉल्विंग
एनालिटिकल थिंकिंग
क्वांटिटेटिव रीजनिंग
कम्युनिकेशन स्किल्स
टाइम मैनेजमेंट
रोजगार की संभावनाएं
बैचलर अथवा मास्टर के पश्चात रोजगार के कई अवसर सामने आते हैं। कई सरकारी व प्राइवेट विभाग अपने यहां मैथमेटिक्स का कोर्स करने वाले लोगों को रोजगार देते हैं। टेलीविजन नेटवर्क फर्म, फाइनेंस या इंश्योरेंस कंपनी, फार्मास्यूटिकल एजेंसी, केमिकल इंडस्ट्रियल यूनिट आदि जगहों पर डिजाइन, एनालिसिस, सर्वे आदि काम के लिए मैथमेटिक्स प्रोफेशनल्स को रखा जाता है। मार्केट रिसर्च, फाइनेंशियल एनालिसिस, कैपिटल मार्केट्स, एक्चूरियल सर्विस में भी संभावनाएं हैं। देश के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में टीचिंग व रिसर्च के रूप में विकल्प सामने आता है। कुछ लोग विदेश (अमेरिका, यूके व चीन आदि) जाकर सेवा देते हैं तो कुछ खुद का कोचिंग अथवा संस्थान खोलकर अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
सेलरी
शुरुआती दौर में प्रोफेशनल्स को 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह की सेलरी मिलती है। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, सेलरी में भी इजाफा होता जाता है। आज ऐसे कई प्रोफेशनल्स हैं, जो इस क्षेत्र में चार-पांच साल के अनुभव के पश्चात 80-90 हजार रुपए प्रतिमाह कमा रहे हैं। यदि टीचिंग के प्रोफेशन में हैं तो भी उन्हें हर माह 60-70 हजार रुपए आसानी से मिल रहे हैं। खुद का सेटअप लगाने, विदेशों में काम करने के दौरान अथवा रिसर्चर की भूमिका में सेलरी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।
इस रूप में अवसर
चार्टर्ड एकाउंटेंट-
चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम एकाउंटिंग, ऑडिटिंग व टैक्सेशन से जुडम होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी से वृद्धि के चलते फाइनेंस एवं एकाउंट से जुड़े क्षेत्रों में बहार आ गई है। मैथ्स सब्जेक्ट इसमें काफी मददगार साबित होता है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर- सॉफ्टवेयर इंजीनियरों का काम सॉफ्टवेयर डिजाइन करना व उसे डेवलप करना होता है। इस काम में वे कम्यूटर साइंस व मैथ्स की थ्योरी व उनके सिद्धांतों का प्रयोग करते हैं। इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स के लिए अगले 10 वर्षों में काफी संभावनाएं आने वाली हैं।
ऑपरेशन रिसर्च एनालिस्ट- ऑपरेशन रिसर्च को एप्लाइड मैथ्स और फॉर्मल साइंस की एक शाखा के रूप में ही समझा जा सकता है। इसमें आधुनिक तार्किक विधियों (मैथमेटिकल मॉडलिंग, स्टैटिस्टिकल एनालिसिस एवं मैथमेटिकल ऑप्टिमाइजेशन) का प्रयोग किया जाता है। ऑपरेशन रिसर्च एनालिस्ट इन्हीं आधुनिक विधियों के जरिए मैनेजर को सही निर्णय लेने और समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव देते हैं।
बैंकिंग- बैंकिंग सेक्टर में भी मैथमेटिक्स प्रोफेशनल्स की काफी डिमांड है। कोर्स के पश्चात वे एकाउंटेंट, कस्टमर सर्विस, फ्रंट डेस्क, कैश हैंडलिंग, एकाउंट ओपनिंग, करंट एकाउंट, सेविंग एकाउंट, लोन प्रोसेसिंग ऑफिसर, सेल्स एग्जीक्यूटिव, रिकवरी ऑफिसर आदि के रूप में काम कर सकते हैं। इन सभी में मैथमेटिकल स्किल्स का होना जरूरी है।
मैथमेटिशियन- मैथमेटिशियन का संबंध ऐसे प्रोफेशनल्स से है, जो मैथ्स के आधारभूत क्षेत्रों का अध्ययन या शोध संबंधी कार्य करते हैं। इसके अलावा ये लॉजिक, स्पेस, ट्रांसफार्मेशन, नंबर आदि समस्याओं का निर्धारण करते हैं।
टीचर- यदि आपके पास संबंधित विषय क्षेत्र की अच्छी समझ है तो टीचिंग का क्षेत्र बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। स्कूलों में भी मैथ्स टीचरों की डिमांड हमेशा रहती है। ऐसे कई मैथ्स टीचर हैं, जो कोचिंग व टय़ूशन के रूप में अच्छी आमदनी कर रहे हैं।
कम्प्यूटर सिस्टम एनालिस्ट- इससे संबंधित प्रोफेशनल्स आईटी टूल्स का उपयोग करते हुए किसी भी एंटरप्राइजेज को लक्ष्य साधने में मदद पहुंचाते हैं। ज्यादातर सिस्टम एनालिस्ट अपना काम एक विशेष कम्प्यूटर अथवा सॉफ्टवेयर के जरिए करते हैं। इसका सीधा फायदा संस्थान को पहुंचता है।
एजुकेशन लोन
पैसे की कमी छात्रों के आड़े न आए, इसके लिए एजुकेशन लोन का प्रावधान है। कई राष्ट्रीयकृत बैंक औपचारिकताएं पूरी करने के बाद लोन देते हैं। देश व विदेश के लिए यह राशि अलग होती है। छात्रों को इसके लिए ऑफर लेटर, फीस व हॉस्टल के खर्च का ब्योरा व गारंटर के साथ बैंक में संपर्क करना होता है।
एक्सपर्ट व्यू
अपना कांसेप्ट क्लीयर रखना होगा

मैथमेटिक्स एक ऐसा विषय है, जिसका हर जगह इस्तेमाल होता है। यह सब्जेक्ट जितना आसान दिखता है, वास्तव में उतना आसान है नहीं। इसमें तभी आनंद आता है, जब छात्र अपना कांसेप्ट क्लीयर रखें। ये सारी चीजें मेहनत के बाद ही हासिल हो पाती हैं। पहले की अपेक्षा छात्रों का रुझान मैथमेटिक्स की ओर बढ़ा है। खासकर लड़कियों की बड़ी जमात इस सब्जेक्ट की ओर आकर्षित हुई है। आज लड़कों की तुलना में उनकी संख्या बराबर है। अक्सर लोग सांख्यिकी और मैथ्स को एक ही मान बैठते हैं, जबकि दोनों में काफी अंतर है। सांख्यिकी पूरी तरह से मैथ्स पर आधारित है। बिना मैथ्स के सांख्यिकी का कोई वजूद नहीं है। जो भी छात्र इस क्षेत्र में कदम रखना चाहते हैं, उन्हें मन में इस बात की गांठ बांध लेनी होगी कि इसमें जी तोडम् मेहनत के बल पर ही आगे की राह आसान होगी। एक बार सही तरीके से कोर्स कर लिया तो फिर उन्हें बुलंदी तक पहुंचने से कोई रोक नहीं सकता।
प्रो. राधेश्याम श्रीवास्तव
पूर्व हेड, मैथमेटिक्स डिपार्टमेंट, डीडीयू गोरखपुर

फैक्ट फाइल
प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान

इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीटय़ूट, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.isid.ac.in
(कोलकाता, बेंगलुरू, चेन्नई व तेजपुर आदि कई जगहों पर सेंटर मौजूद)
चेन्नई मैथमेटिकल इंस्टीटय़ूट, चेन्नई
वेबसाइट
- www.cmi.ac.in
द इंस्टीटय़ूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज, चेन्नई
वेबसाइट-
www.imsc.res.in
टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बेंगलुरू
वेबसाइट
- www.tifr.res.in
हरीशचन्द्र रिसर्च इंस्टीटय़ूट, इलाहाबाद
वेबसाइट
- www.hri.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू
वेबसाइट
- www.iisc.ernet.in
इंडियन स्कूल ऑफ माइन्स, धनबाद
वेबसाइट
- www.ismdhanbad.ac.in
सेंट स्टीफन्स कॉलेज, नई दिल्ली
वेबसाइट
- www.ststephens.edu

Saturday, October 17, 2015

क्रिमिनोलॉजी के क्षेत्र में करियर की बेहतर संभावनाएं


आज के दौर में अपराध दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे हैं ऐसे में अपराधों की छानबीन के क्षेत्र में करियर र की प्रबल संभावनाएं भी बढ़ रही हैं अगर आप अपराध की जांच-पड़ताल में रूचि रखते हैं तो आपके लिए क्रिमिनोलॉजी बेहतर करियर ऑप्शन हो सकता है कार्यक्षेत्र क्रिमिनोलॉजिस्ट का प्रमुख काम है घटनास्थल से अपराधी के खिलाफ सबूत जुटाने में जांच दल की मदद करना साथ ही, अपराध से संबंधित परिस्थितियों का अध्ययन करना, अपराध करने का कारण तथा समाज पर इसका प्रभाव जानना इनके कार्यक्षेत्र के अंतर्गत आता है यह एक ऐसा करियर विकल्प हैं जो तेजी से लोकप्रिय हो रहा है क्रिमिनोलॉजिस्ट समाज को अपराध से बचाने में मदद भी करता है
वर्तमान में अपराध सभ्य समाज के लिए नित नई चुनौतियाँ पेश कर रहा है
कई बार सबूतों के अभाव, ठीक प्रकार से अन्वेषण न होना और कम समय में ही सबूत के नष्ट हो जाने के कारण अपराधी बच निकलने में कामयाब हो जाते हैं अपराध से निपटने और शातिर अपराधियों द्वारा किए जाने वाले अपराध की गुत्थियों को सुलझाने के नए तौर-तरीके सामने आते रहे हैं अब इस क्षेत्र में भी विशेषज्ञों का सहारा लिया जाने लगा है इन विशेषज्ञों को अपराध विज्ञानी या क्रिमिनोलॉजिस्ट के नाम से जाना जाता है और वह अपराध से जुड़़ी गुत्थियों को सुलझाने में पुलिस की सहायता करते हैं अपराध विज्ञानी या क्रिमिनोलॉजिस्ट का कार्यक्षेत्र लगातार विस्तृत होता जा रहा है किसी भी तरह की आपराधिक घटना घटने पर पुलिस अपराध विज्ञानी की सहायता लेती है देश के कई विश्वविद्यालय फोरेंसिक विज्ञान में पाठ्यक्रम संचालित कर रहे हैं इन पाठ्यक्रमों में डिग्री व डिप्लोमा दोनों ही हैं डिप्लोमा कोर्सेस कम अवधि के लिए हैं वहीं डिग्री पाठ्यक्रमों में इस क्षेत्र से संबंधित नई तकनीकों के अलावा विभिन्न तरह का प्रशिक्षण कोर्स भी उपलब्ध हैं

साइंस में ग्रेजुएट होना जरूरी
क्रिमिनोलॉजी से संबंधित कोर्सेज के लिए ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट (साइंस) होना जरूरी है। यदि आप स्नातक हैं तो दो वर्षीय पीजी डिप्लोमा इन क्रिमिनोलॉजी का कोर्स कर सकते हैं। उसके पश्चात एक वर्षीय मास्टर डिग्री अथवा पीएचडी के मार्ग खुल जाते हैं। ग्रेजुएट लॉ के लिए भी क्रिमिनोलॉजी में स्पेशलाइजेशन कोर्स करवाए जाते हैं। आईएफएस जैसी कई संस्थाएं हैं, जो 2-6 माह के सर्टिफिकेट एवं एडवांस डिप्लोमा कोर्स कराती हैं।
रोजगार के अवसर
इस क्षेत्र में कुशल व प्रशिक्षित लोगों की मांग भी पर्याप्त संख्या में है। सीबीआई, आईबी, निजी चैनलों, सरकारी अपराध प्रयोगशालाओं, पुलिस प्रशासन, न्यायिक एजेंसियों, भारतीय सेना, प्राइवेट डिटेक्टिव कंपनियों, रिसर्च एनालिसिस विंग, एनजीओ, इंश्योरेंस कंपनी, फॉरेंसिक लैब, रेलवे/बैंक, प्राइवेट सिक्योरिटी आदि में रोजगार की भरमार है। चाहें तो अपनी एजेंसी खोल कर स्वतंत्र रूप से काम कर सकते हैं।
आकर्षक सेलरी
इस क्षेत्र में सामान्य तौर पर एक क्रिमिनोलॉजिस्ट को शुरुआत में 20-25 हजार रुपये मिलते हैं। अनुभव बढ़ने पर सेलरी बढ़ कर 40-45 हजार रुपये मासिक हो जाती है।
क्या है क्रिमिनोलॉजी
क्रिमिनोलॉजी साइंस की ही एक शाखा है जिसके अंतर्गत अपराध व उससे बचाव के तौर-तरीकों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। हर अपराधी अपराध करने के दौरान जाने-अनजाने में कोई सुराग अवश्य छोड़ता है। इसमें उंगलियों के निशान, खून के धब्बों की जांच, प्रयुक्त हथियार अथवा अन्य सामग्री, जो उस हत्याकांड में प्रयुक्त की गई हो, आदि सब आते हैं। अपराधियों के इसी तिलिस्म को तोड़ना क्रिमिनोलॉजिस्ट (अपराध विज्ञानी) का काम होता है। इस विषय अथवा पाठ्यक्रम को जिस शाखा के अंतर्गत समेटा गया है, उसे क्रिमिनोलॉजी (अपराध विज्ञान) कहा जाता है।
आवश्यक योग्यता
क्रिमिनोलॉजिस्ट को अपनी आंख और कान दोनों को हर वक्त खुला रखना होता है। खोजी मानसिकता, धैर्यवान और साहसिक गुण रखने वाले युवा इस क्षेत्र विशेष में काफी तरक्की करते हैं। डाटा कलेक्शन का गुण भी इसमें काफी मदद पहुंचाता है।
प्रमुख संस्थान
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी
www.amu.ac.in
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
www.bhu.ac.in
एलएनजेएन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ क्रिमिनोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस, नई दिल्ली
www.nicfs.nic.in
लखनऊ विश्वविद्यालय
 www.lkouniv.ac.in
यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास
www.unom.ac.in
कर्नाटक विश्वविद्यालय
www.kud.ac.in

Friday, October 16, 2015

केमोइंफॉर्मेटिक्स: रासायनिक सूचनाओं का प्रबंधन में करियर

केमोइंफॉर्मेटिक्स केमिस्ट्री की सबसे तेजी से विकसित होने वाली शाखा बन चुकी है। आने वाले समय में केमोइंफॉर्मेटिक्स का कोर्स करने वाले छात्रों को देश और विदेश में पर्याप्त अवसर मिलेंगे। इस बारे में बता रही हैं नमिता सिंह
इस समय हम ग्लोबल विलेज में जी रहे हैं। आईटी ने कई विधाओं को खुद से जोड़ कर उनका कायाकल्प करने का बीड़ा उठाया है। इसी प्रक्रिया के तहत आईटी का रसायन विज्ञान के साथ सम्मिलन दिन-ब-दिन परवान चढ़ता जा रहा है। इसके अंतर्गत रासायनिक सूचनाओं का संग्रहण, प्रबंधन, विश्लेषण एवं उनका समाधान संबंधी कार्य आते हैं। इस प्रचलित एवं कारगर विधा को नाम दिया गया ‘केमोइंफॉर्मेटिक्स’ अर्थात रसायन सूचना विज्ञान। केमोइंफॉर्मेटिक्स का सबसे ज्यादा उपयोग दवा बनाने वाली कंपनियां दवाओं की खोज में करती हैं। बाजार का विश्लेषण यही बता रहा है कि संभावनाओं एवं विस्तार को देखते हुए आने वाले कुछ वर्षों में यह क्षेत्र और अधिक चमकदार एवं रोजगारपरक हो सकता है, क्योंकि इसका ताल्लुक काफी हद तक आईटी से जुड़ा हुआ है।
बायोइंफॉर्मेटिक्स के दो दशक बाद केमोइंफॉर्मेटिक्स शाखा चलन में आई। आमतौर पर लोग बायोइंफॉर्मेटिक्स व केमोइंफॉर्मेटिक्स को एक ही मानते हैं, जबकि दोनों में काफी विविधता है। बायोइंफॉर्मेटिक्स में जहां कई तरह की विधाओं को शामिल किया जाता है, वहीं केमोइंफॉर्मेटिक्स उसी से निकली एक शाखा है, जिसमें ड्रग डिजाइन के प्रयोग व थ्योरी को भली-भांति समझा जाता है।
उच्च शिक्षा की दरकार
रसायन विज्ञान एवं आईटी से संबंधित होने के कारण इसके पाठय़क्रम में दाखिला लेने के लिए छात्रों को रसायन विज्ञान में कम से कम बीएससी होना चाहिए, तभी एमएससी में प्रवेश मिल पाता है। एमएससी दो वर्षीय पाठय़क्रम है। इसके उपरांत रिसर्च एवं एकेडमिक फील्ड में जाने का मार्ग प्रशस्त होता है। अधिकांश संस्थान स्नातक के पश्चात एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा एवं डिप्लोमा जैसे कोर्स भी करवाते हैं। इसकी अवधि एक से लेकर डेढ़ वर्ष तक होती है। विदेशों में सबसे ज्यादा प्रचलित एमएससी इन केमोइंफॉर्मेटिक्स है, जबकि भारत में एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा की अधिक डिमांड है। कई संस्थान डिस्टेंस लर्निंग के जरिए भी पीजी डिप्लोमा कोर्स कराते हैं। योग्यता व कोर्स अवधि रेगुलर की तरह ही होती है।
पाठ्य़क्रम 
एमएससी इन केमोइंफॉर्मेटिक्स के अंतर्गत छात्रों को विशेष रूप से डाटा बेस, प्रोग्रामिंग, वेब टेक्नोलॉजी, डाटा माइनिंग एवं कम्प्यूटर द्वारा ड्रग डिजाइनिंग आदि कार्य शामिल हैं। पाठय़क्रम के दौरान छात्रों से कई तरह के प्रायोगिक प्रशिक्षण एवं प्रबंधन संबंधी कार्य कराए जाते हैं, जबकि पीएचडी आदि पाठय़क्रमों के अंतर्गत रिसर्च वर्क में ड्रग की खोज, डिजाइन एवं उसकी कंपोजिशन का अध्ययन किया जाता है। वैसे भी केमिस्ट्री की निर्भरता दिन-प्रतिदिन कम्प्यूटर पर बढ़ती ही जा रही है। नए आने वाले छात्रों की केमिस्ट्री के प्रति रुचि को देख कर पाठ्य़क्रम की रूपरेखा काफी हद तक उचित भी है। जहां तक पीजी डिप्लोमा के पाठय़क्रम का सवाल है तो वह विभिन्न मॉडय़ूल में बांटा गया है। इसमें केमोइंफॉर्मेटिक्स की बेसिक जानकारी से लेकर मॉडर्न कॉम्बिनेशन ऑफ केमिस्ट्री, ड्रग डिजाइन, केमिकल इंफॉर्मेशन सोर्स, मेडिसिनल केमिस्ट्री आदि को विस्तार से बताया जाता है।
स्वयं से सरोकार
पाठ्य़क्रम अथवा रोजगार के लिए छात्रों को अपने अंदर कई तरह के विशिष्ट गुण लाने पड़ते हैं। सर्वप्रथम उन्हें केमिस्ट्री के प्रति रुचि बढ़ाने, कम्प्यूटर स्किल्स मजबूत करने व रिसर्च वर्क के प्रति उत्साह जागृत करना आवश्यक हो जाता है। इसके अलावा इसमें प्रोफेशनल्स को धैर्यवान व परिश्रमी होना जरूरी है, क्योंकि कई बार किसी रिसर्च अथवा प्रोजेक्ट पर काम के दौरान लंबा समय व्यतीत होता है। साथ ही टीम वर्क, अनुशासन व बाजार में बदलाव को स्वीकार करने का गुण होना भी जरूरी है।
कार्यक्षेत्र का संसार
पिछले तीन वर्षों में इस क्षेत्र में संभावनाएं काफी प्रबल हुई हैं। खासतौर पर फार्मास्यूटिकल, एग्रोकेमिकल एवं बॉयोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्रीज में प्रशिक्षित लोगों की भारी कमी महसूस की गई है। केमोइंफॉर्मेटिक्स में एमएससी करने वाले छात्र प्रारंभ में केमोइंफॉर्मेटिक्स साइंटिस्ट, प्रोजेक्ट मैनेजर, केमोइंफॉर्मेटिक्स डेवलपर, ड्रग डिस्कवरी साइंटिस्ट, एसोसिएट रिसर्च साइंटिस्ट, कम्प्यूशनल केमिस्ट, केमिकल डाटा साइंटिस्ट, रेगुलेटरी अफेयर्स, सीनियर इंफार्मेशनल एनालिस्ट, इंफार्मेशनल ऑफिसर, डाटा ऑफिसर, सॉफ्टवेयर टैस्टर, सपोर्ट एनालिस्ट, बिजनेस एनालिस्ट कार्यक्षेत्र के अवसरों को देखते हुए निम्न क्षेत्रों में सामने आ सकते हैं-
फार्मास्यूटिकल/केमिकल इंडस्ट्री सेक्टर,
आईटी/कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर सेक्टर,
हॉस्पिटल/हेल्थ ऑथारिटी,
शोध के क्षेत्र में
आमदनी
इस क्षेत्र में आमदनी भी भरपूर होती है। शुरुआती दिनों में भले ही कुछ संघर्ष की स्थिति आ जाए, पर एक समय के बाद सब कुछ पटरी पर आ जाता है। प्रारंभ में प्रोफेशनल्स को 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। अनुभव बढ़ जाने पर यही रकम 35-40 हजार रुपए प्रतिमाह तक पहुंच जाती है। इसके अलावा फ्रीलांसिंग में प्रतिदिन या पैकेज के हिसाब से पेमेंट दिया जाता है। विदेशों में काफी आकर्षक पैकेज मिलता है।
संभावनाएं
छात्रों को रोजगार मिलने की आस एवं संभावनाओं को देखते हुए प्रमुख सरकारी एवं गैर सरकारी कंपनियों में अवसर सामने आते रहते हैं। देश के साथ-साथ विदेश में भी रोजगार के पर्याप्त अवसर मौजूद हैं। पार्ट टाइम व स्वतंत्र रूप से भी इस क्षेत्र में काम किया जा सकता है।
एक्सपर्ट्स व्यू/
देश में भी हैं बेशुमार मौकेएक समय ऐसा था, जब कोर्स करने के पश्चात छात्रों को विदेश की ओर रुख करना पड़ता था। लेकिन अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। वर्तमान समय केमोइंफॉर्मेटिक्स के लिए काफी अच्छा है। सफलतापूर्वक कोर्स करने के पश्चात कई भारतीय कंपनियां छात्रों को आकर्षक पैकेज पर काम दे रही हैं। सबसे ज्यादा मौके फार्माकेमिकल में सामने आ रहे हैं, जबकि पढ़ाई के लिहाज से डिस्टेंस लर्निंग का भी चलन बढ़ा है। जिन छात्रों को डिस्टेंस लर्निंग की प्रक्रिया के तहत कोर्स समझ में नहीं आता, उन्हें फैकल्टी उपलब्ध करा कर इसके प्रमुख टॉपिक से अवगत कराया जाता है। इसमें मेल व फीमेल दोनों के लिए समान रूप से अवसर मिलते हैं। छात्रों को सलाह दी जाती है कि वे जो भी पढ़ें, पूरे मन से पढ़ें।
अंशुल कुमार, प्रोग्राम डायरेक्टर,
इंस्टीटय़ूट ऑफ केमोइंफॉर्मेटिक्स,
नोएडा
फैक्ट फाइल
प्रमुख प्रशिक्षण संस्थान
भारतीय संस्थान
मालाबार क्रिश्चियन कॉलेज, कोझिकोड
वेबसाइट
 - www.mcccalicut.org
इंस्टीटय़ूट ऑफ केमोइंफॉर्मेटिक्स स्टडीज, नोएडा
वेबसाइट
 - www.cheminformaticscentre.org
जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
वेबसाइट
 - www.jamiahamdard.ac.in
विदेशी संस्थान
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी,
वेबसाइट
 -  www.jhu.edu
मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी,
वेबसाइट
 - www.manchester.ac.uk
शेफिल्ड यूनिवर्सिटी,
वेबसाइट
 - www.shef.ac.uk/courses
इंडियाना यूनिवर्सिटी,
वेबसाइट
 - www.informatics.indiana.edu

Thursday, October 15, 2015

Career in विज्ञापन

सही दिशा में किये गए विज्ञापन से कई छोटी वस्तुओं को भी बड़ा बनाया गया है"- मार्क ट्वैन

सन्देश को लोगों तक पहुंचने  की कला ही विज्ञापन है. साधारणतः विज्ञापन किसी उत्पाद, सेवा अथवा सामाजिक मुद्दे के बारे में लोगों को जागरूक करते हैं. विज्ञापन विभाग किसी भी उद्योग  के उन प्रमुख विभागों में से एक होता है जो आज के कॉर्पोरेट परिवेश में उद्योग को प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाता है. भारतीय विज्ञापन उद्योग आज प्रगति के उस पथ पर अग्रसर है जहाँ ये अगले कुछ वर्षों में हज़ारों युवाओं को रोज़गार प्रदान करेगा.
तेज़ी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था में विज्ञापन का क्षेत्र रोज़गार की नई  संभावनाओ को लेकर आया है. विज्ञापन एजेंसियों को ऐसे मौलिक एवं प्रतिभावान लोगों की सदैव खोज रहती है जो समूह में काम करने के साथ ही अपने स्वतंत्र विचारों को प्रस्तुत कर सके.

चरणबद्ध प्रक्रिया

विज्ञापन कम्पनियाँ अपने विभागों के विभिन्न स्तरों पर अलग-अलग शैक्षिक पृष्भूमि के लोगों को नियोजित करती हैं. शुरूआत करने के लिए आपके पास किसी विशेष क्षेत्र में पेशेवर डिग्री या डिप्लोमा होना चाहिए. इसके अलावा, भाषा पर मजबूत पकड़ और उच्च कोटि की संवाद क्षमता आपको इस क्षेत्र का महारथी बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

विज्ञापन कम्पनी के किसी विशेष विभाग में नियोजन के लिए के लिए आप निम्न में से कोई एक  पाठ्यक्रम चुन सकते हैं-
(अ) ग्राहक सेवा- मार्केटिंग में पीजी डिप्लोमा अथवा एमबीए
(ब) स्टूडियो- कमर्शियल या फाईन आर्ट में बीफ़ऐ अथवा एम्फ़ऐ
(स) मीडिया- पत्रकारिता, जनसंचार अथवा एमबीए
(द) वित्त- सीए, आईसीडब्ल्यूए अथवा एमबीए (वित्त)
(य) फिल्म- ऑडियो-विजुअल में विशेषज्ञता
(फ) प्रोडक्शन- प्री-प्रेस प्रोसेस और प्रिंटिंग में पाठ्यक्रम
पाठ्यक्रम पूर्ण होने के पश्चात विज्ञापन के क्षेत्र में उतरने के लिए सबसे उत्तम जरिया है- 'ऑन-जॉब ट्रेनिंग’ जिसे लगभग सभी अच्छे संस्थान पाठ्यक्रम के एक महत्त्वपूर्ण भाग के रूप में प्रदान करते हैं.
 

पदार्पण

विज्ञापन जगत में पदार्पण करने  के लिए प्रथम व सबसे आवश्यक है आपका रचनात्मक होना. ये रचनात्मकता किसी भी रूप में हो सकती है- चाहे वह भाषा के रूप में हो या संवाद क्षमता के रूप में, कला के रूप में या नवीन विचारों के रूप में.
विज्ञापन में परास्नातक करने के लिए न्यूनतम योग्यता है किसी भी विषय में 50 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक. अधिकांशतः इन सभी पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा, साक्षात्कार अथवा दोनों को उत्तीर्ण करना आवश्यक है. कुछ संस्थान स्नातक स्तर पर भी विज्ञापन में प्रशिक्षण देते हैं, जिसके लिए अभ्यार्थी का कक्षा 12 उत्तीर्ण करना आवश्यक है.

क्या यह मेरे लिए सही करियर है?

यदि आप उत्साही, स्वतः कार्य करने वाले, रचनात्मक, आशावादी तथा कई कार्यों को एक साथ करने की क्षमता वाले हैं तो विज्ञापन का क्षेत्र आपके लिए एक बेहतरीन करियर विकल्प साबित हो सकता है. जनसंवाद एवं लोगों को समझने की क्षमता विज्ञापन में करियर चाहने वालों के लिए एक आवश्यक कौशल है जो कि ग्राहकों की ज़रूरतों को समझने तथा उसकेआधार पर निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होती  है.  विज्ञापन के क्षेत्र में प्रशिक्षण देने वाले संस्थान निम्न गुणों को अभ्यार्थी में विकसित करते हैं-
(अ) प्रभावशाली संवाद
(ब) प्रस्तुतिकरण एवं प्रबंधन
(स) समूह में कार्य करने एवं उसे नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता
(द) तनाव प्रबंधन
(य) प्रबोधन क्षमता
(र)  आत्मविश्वास
(ल) प्रतिस्पर्धी क्षमता
भारत में कार्यरत विभिन्न राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को विज्ञापन के लिए शैक्षिक रूप से योग्य एवं अनुभवी कामगारों की सदैव आवश्यकता रहती है.  हालाँकि इस तेज़ी से बढ़ते व्यवसाय में शैक्षिक योग्यता से ज्यादा व्यक्ति की रचनात्मकता और हरदम कुछ नया करने की क्षमता को प्राथमिकता दी जाती है.

कितना खर्चा होगा?

मुद्रा इंस्टीटयूट ऑफ कम्युनिकेशन,  अहमदाबाद,  जैसे संस्थानों में वार्षिक फीस लगभग 1 लाख रुपये है.परन्तु कुछ सरकारी तथा निजी संस्थानों में फीस इससे कम है.

छात्रवृत्ति

छात्रवृत्ति प्राप्त करना एक कठिन कार्य है. अधिकांशतः,  छात्रवृत्ति उत्कृष्ट शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर दी जाती है.

रोज़गार के अवसर

विज्ञापन के क्षेत्र में रोज़गार के कई अवसर हैं- निजी विज्ञापन कम्पनियों से लेकर बड़ी सरकारी एवं निजी कंपनियों के विज्ञापन विभाग तक. इसके अलावा आप अखबारों, पत्रिकाओं, रेडियो और टीवी के व्यापारिक विभाग में,  मार्केट रिसर्च कंपनी इत्यादि में भी नियोजित हो सकते हैं. फ्रीलांसिंग भी एक विकल्प हो सकता है.
विज्ञापन प्रबंधक, बिक्री प्रबंधक, पब्लिक रिलेशंस डाईरेक्टर, क्रिएटिव डाईरेक्टर, कॉपी राईटर तथा मार्केटिंग कम्युनिकेशंस डाईरेक्टर विज्ञापन एजेंसी के कुछ महत्वपूर्ण पद हैं जहाँ नियोजित हुआ जा सकता है.

वेतनमान

विज्ञापन एजेंसियों के आकर एवं उनके टर्नओवर के आधार पर वेतनमान निर्भर करता है. बड़ी और नामी-गिरामी एजेंसियां एक सुव्यवस्थित व्यवस्था के अनुसार कार्य करतीं हैं जबकि छोटी और मंझले स्तर की कंपनियों में एक ही व्यक्ति को कई कार्य प्रतिपादित करने होते हैं.
इस क्षेत्र में उचित व्यक्ति के लिए वेतनमान की कोई रुकावट नहीं है. वास्तव में यह व्यक्ति की योग्यता, शिक्षा और उसके अनुभव पर निर्भर करता है. शुरूआत में आपको आधारभूत कार्य सौंपे जाते हैं परन्तु जैसे-जैसे आपका अनुभव बढ़ता जाता है आपको ग्राहकों के साथ डील करने जैसी बड़ी ज़िम्मेदारी भी सौंपी जा सकती है.
आप किसी भी एजेंसी में आसानी से किसी निचले स्तर से शुरूआत कर सकते हैं पर सफलता की सीढ़ी चढ़ने के लिए आपमें उपरोक्त बताये गुणों का होना आवश्यक है. आपके कार्य करने की क्षमता एवं अनुभव बढ़ने के साथ ही आपका वेतनमान भी बढ़ता रहता है. क्रियेटिव विभाग से शुरूआत करने पर आपको आसानी से 8 से 15 हज़ार का मासिक वेतन मिल सकता है.
 

मांग एवं आपूर्ति

भारत में विज्ञापन के क्षेत्र में प्रतिभा शाली व्यक्तियों के लिए अपार संभावनाएं मौजूद हैं विशेषकर उनके लिए जिन्होंने कॉमर्शिअल आर्ट में शिक्षा हासिल की हो. ग्राहक-सेवा के क्षेत्र में एमबीए भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. विज्ञापन जगत में रचनात्मक लोगों की सदैव मांग रहती है. इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए बहुआयामी प्रतिभा होना बहुत आवश्यक है.
 

मार्केट वाच

वैश्विक वित्तीय संकट के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर है तथा विज्ञापन बाज़ार भी लगातार अपने पैर पसार रहा है. लगभग सभी उद्योगों में बढ़ोतरी का सकारात्मक प्रभाव विज्ञापन उद्योग पर पड़ा है.
भारतीय विज्ञापन उद्योग उच्च कोटि का है तथा यहाँ रोचक व नवीन विचारों को उच्च निष्पादन क्षमता के साथ प्रतिपादित करने वाले प्रतिभाशाली व्यक्तिओं की कमी नहीं है. यही कारण है कि आज भारतीय प्रतिभाओं को भर्ती करने के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां लालायित रहती हैं.

अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन

भारतीय विज्ञापन एजेंसियों के विश्वस्तरीय प्रदर्शन को न केवल पहचाना जा रहा है बल्कि उसको  संपूर्ण विश्व में सराहा भी जा रहा है.  भारतीय एजेंसियां आज राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय दोनों प्रकार के प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक निष्पादित कर रही हैं और ऐसा इसलिए संभव हो सका है चूंकि भारतीय एजेंसियां ग्राहकों की हर समस्या का समाधान करती हैं. मीडिया प्लानिंग, सर्विसिंग, मीडिया बायिंग, प्री एंड पोस्ट कैम्पेन एनालिसिस, क्रियेटिव कौन्सेप्चुलायिज़ेशन, मार्केट रिसर्च, मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस और ब्रांडिंग- इन सभी प्रकार सेवाओं को प्रदान करने वाला भारतीय विज्ञापन जगत आज विश्व के अग्रणी विज्ञापन उद्योगों के साथ लगातार आगे बढ़ रहा है.
 

सकारात्मक/नकारात्मक पहलू

सकारात्मक
  1. चुनौतीपूर्ण व संतुष्टिपरक जॉब
  2. देश के अग्रणी उद्योगों में शामिल होने के कारण लगातार आगे बढ़ने कि अपार संभावनाएं
  3. उच्च वेतन के साथ कार्य आधारित इनसेंटिव्स
  4. उद्योग जगत की मशहूर हस्तियों से मिलने का मौका
 नकारात्मक
  1. अत्यंत लम्बे वर्किंग आवर्स के लिए कुख्यात
  2. उच्च तनाव व दबाव वाला कार्यक्षेत्र

भूमिका और पदनाम

विज्ञापन का क्षेत्र कई प्रकार के रोचक व लाभकारी करियर प्रदान करता है. मोटे तौर पर इन्हें दो भागों में बांटा जा सकता है- एग्जीक्यूटिव और क्रिऐटिव.

एग्जीक्यूटिव: इसमें शामिल है- ग्राहक सेवा, मार्केट रिसर्च और मीडिया रिसर्च. एग्जीक्यूटिव विभाग का कार्यक्षेत्र है- ग्राहकों की आवश्यकताओं को समझना तथा अपने स्थापित व्यापार को रखते हुए व्यापार की नयी संभावनाएं खोजना. यह विभाग ग्राहकों के लिए उचित मीडिया विश्लेषण, विज्ञापन की सही जगह व समय का निर्धारण तथा ग्राहक के साथ व्यापारिक सौदे व इससे जुड़े वित्तीय मामलों को अंतिम रूप देता है.
क्रियेटिव: क्रियेटिव टीम में कॉपी राईटर, स्क्रिप्ट राईटर, विज़ुअलाइज़र, क्रियेटिव डाइरेक्टर, फोटोग्राफर, टाइपोग्राफर, एनिमेटर इत्यादि आते हैं. ये विभाग विभिन्न मीडिया फोर्मेट्स में वास्तविक विज्ञापन का निर्माण करता है. इस विभाग के क्रियेटिव लोग ग्राहक की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए विज्ञापन को मूर्तरूप देने का काम करते हैं.
चूंकि विभिन्न मीडिया रूपों ( प्रिंट-अखबार, पत्रिका, बिलबोर्ड आदि;  ब्रोडकास्ट-टीवी, रेडिओ, इंटरनेट आदि) के आधार पर विज्ञापन के विभिन्न प्रकार होते हैं अतः आप अपनी रूचि के अनुसार विशेषज्ञ पाठ्यक्रम चुन सकते हैं.
 

अग्रणी कंपनियों की सूची

विज्ञापन व मीडिया प्लानिंग के क्षेत्र के कुछ बड़े नाम जिनके साथ प्रत्येक विद्यार्थी जुड़ना चाहता है,  इस प्रकार हैं:
हिन्दुस्तान थोमसन एसोसिअट्स (एच टी ए), मैक्कैन एरिक्सन, लिओ बर्नेट, ग्रे, आर के स्वामी (बी बी डी ओ), बेट्स, रीडिफ्यूज़न डीवाई एंड आर, लिंटास इण्डिया लिमिटेड, ऑगिल्वी एंड मादर लिमिटेड एवं मुद्रा कम्युनिकेशंस लिमिटेड.
 

रोज़गार प्राप्त करने के लिए सुझाव

  1. विज्ञापन व पब्लिक रिलेशंस में करियर बनाने की चाहत रखने वालों के लिए इन्टर्नशिप विज्ञापन जगत का दरवाज़ा खोलने वाली कुंजी साबित हो सकती है.
  2. विज्ञापन जगत रचनात्मक व नए विचारों एवं अवधारणाओं का सदैव स्वागत करता है. यद्यपि भारत में ये उद्योग पश्चिमी देशों की तुलना में कम विकसित है तथापि इसने बदलते परिवेश में अपने आपको ढाल लिया है.
  3. उत्कृष्ट संवाद क्षमता के साथ मान्यता प्राप्त संस्थान से किसी विषय में विशेषज्ञता आपको अपने अन्य साथियों की तुलना में लाभ देगी.

कुछ अग्रणी संस्थान

  1. इन्डियन इंस्टीटयूट ऑफ़ मॉस कम्युनिकेशन, अरुणा आसफ अली मार्ग, जेएनयु, न्यू कैम्पस, नई दिल्ली - 110067, (www.iimc.nic.in)
  2. मुद्रा इंस्टीटयूट ऑफ कम्युनिकेशन,  शेला, अहमदाबाद- 380007, गुजरात (www.mica-india.net)
  3. नरसी मोन्जी इंस्टीटयूट ऑफ़ मैनेजमेंट स्टडीज़, वी एल मेहता रोड, विले पार्ले (पश्चिम), मुंबई-400056, महाराष्ट्र (www. nmims.edu)
  4. जेविअर इंस्टीटयूट ऑफ़ कम्युनिकेशन, सेंट जेविअर कॉलेज, 5, महापालिका मार्ग, मुंबई-400001, महाराष्ट्र (www.xaviercomm.org)  
  5. सिम्बोयासिस इंस्टीटयूट ऑफ़ मीडिया कम्युनिकेशन, पुणे (www.simc.edu)

Wednesday, October 14, 2015

केमिस्ट्री में करें रिसर्च वर्क

केमिस्ट्री में रिसर्च करने के इच्छुक लोग दिल्ली यूनिवर्सिटी से पीएचडी के लिए आवेदन कर सकते हैं। प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा और इंटरव्यू को प्रमुख आधार बनाया जाएगा। पीएचडी इन केमिस्ट्री में आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और इसके लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन 11 अक्टूबर 2015 को होना है। आवेदन की अंतिम तिथि 5 अक्टूबर 2015 है।
क्या है योग्यता
आवेदक ने केमिस्ट्री या संबंधित विषय में मास्टर्स/एमफिल/ एमटेक/ एलएलएम/एमडी/ एमएस में कम से कम 55 प्रतिशत अंक हासिल कि ए हों। एससी/एसटी/ओबीसी आवेदकों को इसमें 5 प्रतिशत की छूट हासिल है। आवेदक वेबसाइट पर वर्णित छह कैटेगरीज में से किसी एक कैटेगरी के तहत आवेदन कर सकते हैं। इन कैटेगरीज के जरिए उनकी अहर्ता का निर्घारण भी होगा।
कैसे होगा चयन
डीयू से केमिस्ट्री में पीएचडी करने के इच्छुक लोगों के पास प्रवेश के लिए दो विकल्प हैं- जो लोग फेलोशिप के लिए पहले ही क्वालिफाई कर चुके हैं, उन्हें विभाग में सीधे इंटरव्यू देना होगा। टैस्ट में नहीं बैठना होगा। वहीं जिन लोगों ने किसी फेलोशिप के लिए क्वालिफाई नहीं किया है, उन्हें विभाग द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रवेश परीक्षा में बैठना होगा। इस एंट्रेंस एग्जाम के जरिए कुल 16 फेलोशिप्स दी जा रही हैं। एंट्रेंस एग्जाम 11 अक्टूबर 2015 को आयोजित किया जा एगा। एग्जाम डीयू के कैंपस में ही आयोजित किया जाना है। आवेदन समय रहते कर लेना चाहिए।
छह हैं वर्ग
पीएचडी आवेदन के लिए आवेदकों की छह कैटेगरीज तय की गई हैं। पहले वर्ग में वे लोग आते हैं, जिन्होंने मास्टर्स किया हुआ है और जो पीएचडी की लिखित परीक्षा में बैठ रहे हैं। दूसरा वर्ग उन लोगों का है, जिनके पास पहले से फैलोशिप है और जो लिखित परीक्षा नहीं देंगे। ये सीधे इंटरव्यू देंगे। अन्य वर्ग रिसर्च प्रोजेक्ट्स/ टीचिंग में कार्यरत लोगों के हैं। कैटेगिरी डिटेल्स वेबसाइट से देखें।

Monday, October 12, 2015

Career in इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं रियल-एस्टेट

इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं रियल-एस्टेट जहाँ एक देश की सूरत बदल देता है वहीं एक व्यक्ति को शानदार करियर भी प्रदान करता है. हालांकि यह क्षेत्र चुनौतियों से भरा हुआ है पर साथ ही उच्च पारितोषिक भी देता है. इस क्षेत्र में आपको अपने लिए ढेर सारा धन कमाने के साथ-साथ देश के लिए कुछ करने का संतोष भी प्राप्त होता है.
इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए उन सभी गुणों और कौशल की आवश्यकता होती है जो की एक बिजनेस स्थापित करने के लिए ज़रूरी होते हैं. इसके लिए आपको लगातार लोगों से अपनी जान-पहचान बढ़ाकर कॉन्टेक्ट लिस्ट बढ़ाते रहना चाहिए, यह आगे चलकर आपको बिजनेस बढ़ाने में सहायक सिद्ध होता है. ज़मीन, प्लॉट, फ्लैट, घर और विला खरीदकर बेचने के लिए उच्च दर्जे की सेलिंग स्किल होनी चाहिए.
वर्ष 2009 के दौरान वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते भारतीय रियल-एस्टेट इंडस्ट्री ने अपने निम्नतम बिन्दुओं को छुआ. परिणामस्वरूप कई रियल-एस्टेट कंसल्टेंट्स ने अपनी नौकरियां खोयीं. परन्तु आज स्थिति बदल चुकी है और निर्माण उद्योग ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली है. इन्फ्रास्ट्रक्चर इंडस्ट्री मुख्यतः दो चीज़ों पर निर्भर करती है- कोयला खदानों और टार फैक्ट्रियों से कच्चा माल लेकर सड़क-निर्माण में खपाना; विनिर्माण क्षेत्र से सीमेंट, बालू, ईंट लेकर मल्टी-स्टोरी बनाने में खपाना. इन दोनों तरह के उद्योगों में लागत से अधिक मूल्य पर फ्लैट्स, बड़े-बड़े ब्रिज, कॉमर्शियल स्पेस बेच कर पैसा कमाया जाता है.

चरणबद्ध प्रक्रिया

साधारणतः छात्र 12वीं के उपरान्त दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से इस क्षेत्र में कोर्स करते हैं यदि उन्हें अपना रियल-एस्टेट बिजनेस चलाना हो. परन्तु तकनीकी ज्ञान प्राप्त कर इस क्षेत्र में जॉब करने के लिए आपको देश भर में फैले इंजीनिअरिंग कॉलेजों से सिविल अथवा कंस्ट्रक्शन इंजीनिअरिंग में डिग्री लेनी होगी. तकनीक से जुड़ी नौकरियों के अलावा इस क्षेत्र में आप सेल्स और मार्केटिंग अथवाइंटरनेश्नल रिलेशंस में एमबीए करके या बिजनेस कम्युनिकेशंस में डिग्री प्राप्त कर किसी कंस्ट्रक्शन कम्पनी के साथ अपने करियर की शुरूआत कर सकते हैं. विभिन्न कंपनियों के कार्य के आधार पर आप सेल्स मैनेजर, सेल्स एग्जीक्यूटिव, कंस्ट्रक्शन एग्जीक्यूटिव जैसे पदों से शुरूआत कर सकते हैं.
यहाँ आपको निम्न क्षेत्रों का ज्ञान होना भी ज़रूरी है:
  1. बिल्डिंग और कंस्ट्रक्शन से जुड़े तकनीकी पहलू
  2. विभिन्न क्षेत्रों में घर/प्लॉट/ज़मीनों के बाज़ार भाव व इनसे जुड़ी ख़बरों पर नज़र रखना
  3. विभिन्न कम्पनियों के स्टॉक और शेयर पर नज़र रखना
  4. ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए मार्केटिंग, सेलिंग व प्राइसिंग रणनीतियों का ज्ञान
  5. शेयर होल्डर्स और खरीददारों का बड़ा नेटवर्क
यदि आप इन विषयों में अपनी तैयारी पक्की रखते हैं तो आप अपने लिए इस क्षेत्र में एक विशेष जगह बना सकते हैं.

पदार्पण

यदि आप खुद का रियल-एस्टेट बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो अपने रिस्क पर अपने बनाए गए कोंटेक्ट्स के ज़रिये आप बाज़ार से कच्चा माल व मजदूर प्राप्त कर सकते हैं. आपके व्यापार के आकार के आधार पर बैंक भी आपको लोन दे सकता है. अन्यथा आप सिविल इंजीनिअरिंग में डिग्री लेकर नौकरी भी कर सकते हैं.

क्या यह मेरे लिए सही करियर है?

यदि आपमें ज्यादा पैसा कमाने की इच्छा और लगन है और यदि आप 24 घंटे सातों दिन कठिन परिश्रम करते हुए बिल्डर्स, कंसल्टेंट्स, मजदूर एवं साईट मैनेजर की टीम को मार्गदर्शन दे सकते हैं तो इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं रियल-एस्टेट का क्षेत्र आपके लिए है.
एक बिल्डर के तौर पर आपको सीमेंट, चूना मसाला, ईंट एवं अन्य कच्चा सामान खरीदकर मजदूरों और आर्कीटेक्ट को तय करना होता है. बिल्डर का कार्य पुरानी, गिरवी रखी हुई तथा वाद-विवाद वाली ज़मीन, प्लॉट अथवा घर को कानूनी तौर पर सही बनाकर उसे बेचने योग्य बनाना भी होता है. अब अगला कदम आता है प्रोपर्टी को बेचना जिसके लिए आपको एक अच्छा समन्वयक होना ज़रूरी है.
हालांकि आपको शुरूआत में यह एक कठिन कार्य लगेगा परन्तु दीर्घकालीन दृष्टि से देखने पर यह आपके लिए किसी भी और प्रोफेशन से ज्यादा पैसे कमाने वाला प्रोफेशन साबित होगा. विशेषकर भारत में जहां इण्डिया प्रोपर्टी डोट कॉम, 99 एकड़ डोट कॉम और इण्डिया हाउसिंग डोट कॉम जैसी वेबसाईट सारे देश में प्रोपर्टी खरीदने और बेचने की सुविधा प्रदान कर रही हैं. ये वेबसाइट्स खरीदने वाले और बेचने वाले के बीच माध्यम बनकर प्रक्रिया को सरल बना देती हैं. बिजनेस को बढ़ाने का एक और माध्यम है- समाचार-पत्रों में विज्ञापन देना.

खर्चा कितना होगा?

अपने राज्य के किसी प्राइवेट संस्थान से सिविल इंजीनिअरिंग डिग्री करने पर 60,000 से लेकर 1 लाख रूपये तक वार्षिक खर्चा होगा. परन्तु यदि आप राष्ट्रीय स्तर की किसी प्रवेश परीक्षा को उत्तीर्ण कर आईआईटी या दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनिअरिंग जैसे किसी संस्थान में दाखिला लेते हैं तो फीस अलग होगी.
आपके पास सेल्स एंड मार्केटिंग में एमबीए कर रियल-एस्टेट एजेंसी में नौकरी करने का विकल्प भी है.

छात्रवृत्ति

यदि आप बैंक से लोन लेने के इच्छुक हैं तो स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया से बेहतर विकल्प कोई नहीं है जोकि आपको 7.5 लाख तक का लोन देता है. चूंकि यह एक राष्ट्रीयकृत बैंक है इसलिए क़र्ज़ चुकाने के तरीके भी सुरक्षित हैं.

रोज़गार के अवसर

इन्फ्रास्ट्रक्चर एवं रियल-एस्टेट क्षेत्र में सेल्स एग्जीक्यूटिव, प्रोपर्टी मैनेजर, एस्टेट मैनेजर, आईटी मैनेजर- रियल एस्टेट और प्रोफ़ेसर जैसे पद आपको प्राप्त हो सकते हैं.
ये वेबसाइट्स तकनीकी क्षेत्र में कई अवसर उपलब्ध कराती हैं. यदि आप सिविल इंजीनियर या एक आर्कीटेक्ट हैं तो भी आप कंस्ट्रक्शन टीम का भाग बन सकते हैं. अन्य फील्ड सेल्स की नौकरियों की तुलना में निर्माण क्षेत्र की जॉब ज्यादा थकाऊ होती है.
दूसरी ओर, इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में आते हैं– सिविल इंजीनियर, इन्फ्रास्ट्रक्चर मैनेजर, स्टोर या वेयरहाउस मैनेजर तथा इन्वेंटरी एग्जीक्यूटिव्स.

वेतनमान

बिजनेस लाने की मात्रा के आधार पर  एक रियल-एस्टेट सेल्स एग्जीक्युटिव का शुरूआती मासिक वेतन 15000 से 50000 तक जा सकता है. यदि आप किसी बैंक अथवा प्राइवेट फाइनेंस कंपनी के रिअल्टी या मोर्टगेज डिपार्टमेंट में कमीशन बेस पर काम करते हैं तो व्यापारिक संबंध बनाने के अनुपात में आप असीमित आय प्राप्त कर सकते हैं.
सिविल इंजीनियर के तौर पर आप अग्रणी कंपनियों में 20 से 25 हज़ार मासिक वेतन के साथ स्ट्रक्चर मैनेजर के पद से शुरूआत कर सकते हैं.

मांग एवं आपूर्ति

आईटी, इलेक्ट्रोनिक्स और टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियर की तुलना में सिविल इंजीनियर की मांग हालांकि कम है परन्तु एक बार इन कंपनियों में लग जाने पर आप बहुत अच्छा सेलेरी पैकेज प्राप्त कर सकते हैं तथा आपको जापान जैसे देशों की यात्रा करने का मौका भी मिल सकता है.
इन्फ्रास्ट्रक्चर मार्केटिंग  और इंजीनिअरिंग में नयी तकनीकों एवं मशीनों की खरीददारी करना भी समाहित होता है. इस क्षेत्र में मांग की तुलना में इंजीनियर्स की आपूर्ति ज्यादा है.

मार्केट वॉच

2009 की वैश्विक आर्थिक मंदी जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें तो रियल-एस्टेट एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर बाज़ार हमेशा ऊपर की ओर बढ़ता रहता है. प्रत्येक दिन समाचारपत्रों में नए निर्माण जैसे आईटी पार्क, कौमर्शिअल स्पेस व ग्रुप सोसाइटी के हज़ारों विज्ञापन प्रकाशित होते हैं.  कंस्ट्रक्शन ग्रुप जैसे डीएलएफ, रहेजा तथा हीरानंदानी ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए एक, दो, तीन रूम वाले अपार्टमेंट्स और विला पर प्रति-वर्ग फुट की दर के आधार पर छूट देते हैं.
अभी ये ग्रुप मुंबई और चेन्नई जैसे मेट्रो के उपनगरों में मध्यम-वर्गीय परिवारों के लिए सस्ते विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं.
इसको देखते हुए, इंजीनिअर, आर्कीटेक्ट व कंस्ट्रक्शन मैनेजर की कई नौकरियों का सृजन हो रहा है.

अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन

रहेजा और हीरानंदानी जैसे बड़े बिल्डर्स बिल्डिंग तथा आईटी पार्क के निर्माण में नयी मशीनों, क्रियाओं व उन्नत तकनीकों का प्रयोग करते हैं.  गुडगाँव, बैंगलोर, हैदराबाद या चेन्नई के हाई-टेक शहरों में स्थापित गगनचुम्बी इमारतों को ही ले लें. यह सभी 20 मंजिल से ऊंची हैं तथा नयी उन्नत तकनीक की सहायता से स्टील के मज़बूत खम्भों पर टिकी हैं. ये तकनीकें यूएसए, जापान व जर्मनी जैसे देशों से आयात की गयी हैं. कम शब्दों में कहा  जाए तो आज भारत में शिकागो या न्यूयोर्क जैसे आधुनिक शहर बसाना संभव हो गया है.

सकारात्मक/नकारात्मक पहलू

सकारत्मक
  1. इस क्षेत्र का बहुत तेज़ गति से तकनीकी विकास होने कारण जॉब की संभावनाएं बढ़ गयी हैं.
  2. कमाई के अवसर सभी रियल-एस्टेट प्रोफेशनल्स के लिए हैं चाहे वह बिल्डर, कन्स्ट्रक्टर, सेल्स मैनेजर हो या इंजीनियर. आपको चाहिए तो बस सेलिंग व रिलेशनशिप मैनेजमेंट स्किल.

नकारात्मक 
  1. इस क्षेत्र में बहुत उतार-चढ़ाव होते हैं. 2009 की मंदी में ही बहुत सारे रियल-एस्टेट प्रोफेशनल कंगाल हो गए थे.
  2. यह एक जोखिम वाला कार्य है चूंकि इसमें बहुत बड़े तौर पर आर्थिक निवेश करना होता है तथा ज़्यादा यात्राएं करनी पड़ सकती हैं. यदि आपने शेयर या स्टॉक मार्केट में निवेश किया होता है तो बाज़ार के उतार-चढ़ाव की वजह से रिस्क और बढ़ जाता है.  

भूमिका और पदनाम

रिअल-एस्टेट का अर्थ होता है घर या ऑफिस के लिए संपत्तियों का निर्माण करना. दूसरी ओर, आधारभूत संरचना के व्यापार में निहित होता है- बड़े पुल, मार्ग और आईटी पार्क विकसित करना. दोनों प्रकार के बिजनेस जिन कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं उन सभी को हालांकि एक ही प्रकार के कार्य सौंपे जाते हैं परन्तु उनका कार्य-क्षेत्र छोटा या बड़ा हो सकता है. रिअल-एस्टेट इंडस्ट्री में सेल्स-मैनेजर ठीक उसी प्रकार से संपत्तियां बेचकर अपनी कंपनी के लिए बिजनेस लाता है जिस प्रकार एक बैंक का सेल्स मैनेजर लोन, म्यूचुअल फंड अथवा क्रेडिट कार्ड बेचता है. इस उद्योग की बाज़ार में एक अलग जगह है और यह क्षेत्र दूसरे कई उद्योगों की तुलना में ज़्यादा वेतन देता है खासकर इंजीनियर व सेल्स अफसरों को.

अग्रणी कम्पनिया

भारत की टॉप-टेन रियल-एस्टेट कम्पनियाँ हैं:
  1. अम्बुजा रिअल्टी ग्रुप
  2. डीएलएफ बिल्डिंग
  3. सन सिटी प्रोजेक्ट्स
  4. मर्लिन ग्रुप्स
  5. मैजिक ब्रिक्स
  6. घर4यू
  7. एनके रिअल्टर
  8. 99एकर्स
  9. मित्तल बिल्डर्स
  10. के रहेजा कन्स्ट्रक्टर

रोज़गार प्राप्त करने के लिए सुझाव

किसी रिअल-एस्टेट फर्म में इंजीनियर या सेल्स के पद के लिए साक्षात्कार देते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:
  1. अपने मित्र, जान-पहचान वालों की लिस्ट हमेशा साथ रखें जिनके आधार पर आप कंपनी के लिए बिजनेस ला सकते हैं.
  2. नयी तकनीकों व कंस्ट्रक्शन कम्पनियों के बारे में अपने आपको अपडेट रखें. अपने भावी नियोक्ता को बताएं कि आपको बाज़ार की कीमतों व आने वाली नई तकनीकों के बारे में ज्ञान है .
  3. अच्छी अंग्रेज़ी बोलें तथा सभ्य ड्रेस पहनकर जाएँ चूंकि प्रजेंटेशन इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है चाहे वह सेल्स प्रोफेशनल हों या इंजीनियरिंग प्रोफेशनल.