Thursday, June 28, 2018

सुगंध चिकित्सा में करियर

करियर के क्षेत्र में आ रहे बदलावों के चलते आज ऐसे विकल्पों का बोलबाला है, जो अपने आप में विशेषज्ञता रखते हैं। यह विकल्प पूरी तरह से प्रोफेशनल होते हैं। इन्हीं में से एक विकल्प है सुगंध चिकित्सा (स्मैल थैरेपी) का। ब्रिटेन और यूरोप में लोकप्रियता हासिल करने के बाद सुगंध चिकित्सा ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। 

जहाँ तक भारत की बात की जाए तो हमारी सभ्यता में प्राचीनकाल से ही सुगंध चिकित्सा का बोलबाला रहा है। भारत इत्र, सुगंधित तेलों और इनका उत्पादन करने वाली इंडस्ट्री का अपना एक विशेष महत्व है। आयुर्वेद में सुगंधित तेलों से शरीर की मालिश करने की विधि का उपयोग होता है इसके अलावा इत्र, धूप, अगरबत्ती जैसी वस्तुएँ भी भारतीय सभ्यता से बहुत लंबे समय से जुड़ी हुई हैं। 

आज सुगंध चिकित्सा न सिर्फ इलाज, बल्कि रोजगार के लिहाज से भी भारत में व्यापक संभावनाओं भरे विकल्प के तौर पर विकसित हो रही है। 

नेचुरल चीजों के प्रति बढ़ते रुझान के कारण आज सेहत सुधार में भी सुगंध चिकित्सा का इस्तेमाल किया जाने लगा है। भारत में सुगंध चिकित्सा के माध्यम से प्रकृति की ओर वापसी की धारणा को फिर से प्रचलित करने का श्रेय अगर किसी को दिया जाए तो इस कतार में शहनाज हुसैन, ब्लॉसम कोचर और भारती तनेजा जैसे नाम उभकर सामने आते हैं, जिन्होंने आम आदमी को ऐसे विकल्प दिए, जिनके चलते वह एक बार फिर से प्राकृतिक उत्पादों में विश्वास करने लगा है। 

प्रकृति के प्रति इसी लगाव के कारण आज भारत के प्राकृतिक उत्पादों की माँग भारत ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब देखने को मिल रही है। वर्तमान में आलम यह है कि विज्ञान के विकास के चलते आज यह क्षेत्र बेहद विस्तृत हो गया है और एक इंडस्ट्री के रूप में तब्दील हो चुका है। 

आज भारी संख्या में लोग अपनी बीमारियों का इलाज प्राकृतिक सुगंध चिकित्सा में खोज रहे हैं। आम और खास आदमी की इसी बढ़ती रूचि के कारण सुगंध चिकित्सा आज एक रोजगार विकल्प का रूप ले चुकी है। 


सुगंध चिकित्सा के लगातार बढ़ते प्रभाव के कारण आज देश के कई शिक्षण संस्थानों ने इस विद्या का व्यावहारिक प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया है। आज न केवल सरकारी, बल्कि कई गैर सरकारी संस्थान भी सुगंध चिकित्सा से जुड़े डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्स चला रहे हैं। इन संस्थानों में दाखिले की प्रक्रिया उसी तरह की होती है, जैसे कि अन्य प्रोफेशनल या परंपरागत कोर्सों के लिए होती है।  
इस थेरेपी से जुड़े सर्टिफिकेट स्तर के पाठक्रम में दाखिले के लिए शैक्षणिक योग्यता बारहवीं है। लेकिन अगर आप डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करना चाहते हैं तो अधिकांश शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए आवेदक के पास बारहवीं कक्षा में रसायन विज्ञान विषय होना जरूरी है। सुगंध चिकित्सा के कई प्रोफेशनल पाठक्रमों में केवल कैमिस्ट्री विषय के साथ स्नातक उत्तीर्ण छात्रों को ही प्रवेश दिया जाता है।

सुगंध चिकित्सा का प्रशिक्षण प्राप्त कर आप एक सुगंध चिकित्सक के रूप में कार्य कर सकते हैं। प्रशिक्षण के उपरांत आप सुगंध चिकित्सक, सुगंधित पदार्थ विक्रेता, परामर्शदाता, सुगंधित पदार्थ के उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस तरह अगर सही मायनों में देखें तो यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें आपको अपनी क्षमताओं और रुचि के अनुसार काम करने का मौका मिलता है। 

सुगंध चिकित्सा का कोर्स करने के उपरांत वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति का इस्तेमाल कर इलाज करने वाले अस्पतालों, अनुसंधान और विकास संगठन, सुगंधित तेल का बड़े पैमाने पर उत्पादन करने वाली कंपनियों, स्पा सेंटर, पांच सितारा होटलों, खानपान के क्षेत्र में, औषधि और पौष्टिक आहार बनाने वाली कंपनियों तथा सौंदर्य प्रसाधन उद्योग में रोजगार की बहुत उजली संभावनाएं हैं। 
किसी प्रतिष्ठित संस्थान से सुगंध विज्ञान में प्रशिक्षण लेने के बाद सुगंध चिकित्सक के रूप में स्वयं का क्लिनिक शुरू किया जा सकता है, जिसमें सौंदर्य की साज-संभाल के अलावा अन्य रोगों का इलाज किया जा सकता है। सुगंध चिकित्सक के अलावा आप सुगंधित पदार्थ परामर्शदाता और इसके उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में भी कार्य कर सकते हैं। 

कहाँ से करे कोर्स-

शहनाज हुसैन वुमंस इंटरनेशनल स्कूल ऑफ ब्यूटी, ग्रेटर कैलाश, नई दिल्ली।

पिवोट पाइंट ब्यूटी स्कूल, कैलाश कॉलोनी, नई दिल्ली।

दिल्ली स्कूल ऑफ मैनेजमेंट सर्विस, आकाशदीप बिल्डिंग, नई दिल्ली।

सुगंध और स्वाद विकास केंद्र, मार्कण्ड नगर, कन्नौज, उत्तर प्रदेश ।

केलर एजुकेशन ट्रस्ट, वीजी वूसे कॉलेज, मुंबई।

Sunday, June 24, 2018

कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में करियर

आज के दौर में संचार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे मोबाइल हो या टीवी यह हर इनसान की जरूरत है। क्या आप ऐसे जीवन की कल्पना कर सकते हैं जहाँ मोबाइल काम ना करे। अपने मन पंसद प्रोग्रामों को देखने के लिए आपके पास टेलीविजन ही ना हो। ऐसे जीवन की कल्पना करना भी आपको कितना डरावना लगता है ना। 

आपकी सुविधाओं को हकीकत में बदलने का काम किया है इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरों ने। इनकी कला की बदौलत ही आज हर व्यक्ति पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है। अगर आप चाहें तो इस क्षेत्र में अपना भविष्य तलाश सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत व चुनौतीपूर्ण है। इसके अंतर्गत माइक्रोवेव और ऑप्टिकल कम्युनिकेशन, डिजिटल सिस्टंस, सिग्नल प्रोसेसिंग, टेलीकम्युनिकेशन, एडवांस्ड कम्युनिकेशन, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इंजीनियरिंग की यह शाखा रोजमर्रा की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। साथ ही इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, पॉवर सिस्टम ऑपरेशंस, कम्युनिकेशन सिस्टम आदि क्षेत्रों में भी इसके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।

इस क्षेत्र में करियर बनाने की चाह रखने वाले छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करना होगा। विभिन्न इंस्टिट्यूट छात्रों केलिए ढेर सारे विकल्प प्रस्तुत करता है। इस स्ट्रीम में छात्र विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं या दोहरी डिग्री भी कर सकते हैं। 

कम्युनिकेशन इंजीनियरों का मुख्य काम होता है कि वे न्यूनतम खर्चे पर सर्वश्रेष्ठ संभावित हल उपलब्ध करवाए। इस तरह वे रचनात्मक सुझाव निकालने में सक्षम हो पाते हैं। वे चिप डिजाइनिंग और फेब्रिकेटिंग के काम में शामिल होते हैं, सेटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन जैसे एडवांस्ड कम्युनिकेशन, कम्युनिकेशन नेटवर्क साल्यूशन, एप्लिकेशन ऑफ डिफरेंट इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काम करते हैं और इसलिए कम्युनिकेशन इंजीनियरों की सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी खासी मांग होती है।

इंजीनियरिंग की इस ब्रांच में पेशेवरों के लिए नित नए दरवाजे खुलते रहते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियर टेलीकम्युनिकेशन, सिग्नल, सैटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन आदि क्षेत्रों में काम की तलाश कर सकते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियरों को टीसीएस, मोटोरोला, इन्फोसिस, डीआरडीओ, इसरो, एचसीएल, वीएसएनएल आदि कंपनियों में अच्छी खासी सैलरी पर नौकरी मिलती है। 

एक सर्वे के मुताबिक इंजीनियरिंग क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है। सर्वे के अनुसार अगले 10 सालों में इंजीनियरिंग के क्षेत्र की विकास दर 13.38 प्रतिशत होगी। 2007 में हुए ग्रेजुएट एक्जिट का सर्वे कहता है कि कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पर मंदी का असर ना के बराबर हुआ है। इस क्षेत्र में अभी भी 86 प्रतिशत इंजीनियर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में इनकी भारी माँग रहेगी। ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिक्स की रिपोर्ट का मानना है कि इंजीनियरिंग एक ऐसा क्षेत्र है जो बहुत तेजी से विकास कर रहा है। 

इस क्षेत्र में इंजीनियर को 3.5 से 4 लाख रुपए प्रतिवर्ष औसतन वेतन मिल सकता है। अधिकतम वेतन 12 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक हो सकता है।

कम्युनिकेशन इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले छात्र इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कालीकट से प्रोफेशनल कोर्स कर सकते हैं।

Sunday, June 17, 2018

चिप डिजाइन में करियर

टेक्‍नोलॉजी ने जहां लोगों के जीवन को सरल और आधुनिक बना दिया है, वहीं टेक्‍नोलॉजी के कई क्षेत्रों में करियर के शानदार विकल्‍प भी उभ्‍ार कर सामने आए हैं। टेक्‍नोलॉजी के क्षेत्र में जो प्रगति हुई है उसमें चिप डिजाइनिंग इंडस्‍ट्री ने महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई है। अगर आप भी इंजीनियरिंग में रूचि रखते हैं और साथ ही चैलेंजिंग काम करना चाहते हैं तो चिप डिजाइनिंग में करियर बना सकते हैं। चिप सिलिकॉन का एक छोटा और पतला टुकड़ा होता है जो मशीनों के लिए इंटीग्रेटेड सर्किट बेस का काम करता है। चिप डिजाइनिंग की मदद से बड़े आकार के उपकरणों को भी छोटे आकार में बदला जा सकता है।
बढ़ रही है डिमांड 
चिप डिजाइन के रूप में आप एक सुनहरा करियर बना सकते हैं। इसकी हर सेक्‍टर में मांग है। एक चिप डिजाइनर का मुख्‍य काम छोटी-बड़ी इलेक्‍ट्रॉनिक डिवाइसेस की कार्यक्षमता को बढ़ाना और उसे आसान बनाना है। मोबाइल, टीवी रिमोट से लेकर कंज्‍यूमर इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स, ऑटोमोबाइल सेक्‍टर तक में चिप का इस्‍तेमाल हो रहा है। आप इस इंडस्ट्री से डिजाइन इंजीनियर, प्रोडक्ट इंजीनियर, टेस्ट इंजीनियर, सिस्टम्स इंजीनियर, प्रॉसेस इंजीनियर, पैकेजिंग इंजीनियर, सीएडी इंजीनियर आदि के रूप में जुड सकते हैं।
योग्‍यता 
चिप डिजानिंग में करियर बनाने के लिए आपके पास इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स, टेली कम्‍यूनिकेशन या कम्‍प्‍यूटर साइंस में बीई या बीटेक डिग्री होना चाहिए। चिप डिजाइनिंग इंडस्‍ट्री में विशेष रूप से डिजाइन, प्रोडक्‍शन, टेस्टिंग, एप्‍लीकेशंस और प्रॉसेस इं‍जीनियरिंग शामिल होता है। वैसे इस क्षेत्र में कुछ संस्थानों द्वारा शॉर्ट टर्मकोर्सेस भी कराए जाते हैं, जिनका संबंध आईसी, सर्किट डिजाइन और माइक्रो प्रोसेसर से होता है।
जरूरी स्किल्‍स 
इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्‍छुक युवाओं को हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का नॉलेज होना जरूरी है। इसके अलावा अच्‍छी कम्‍यूनिकेशन स्किल्‍स, टीम वर्क, प्रॉब्‍लम सॉल्विंग एटिट्यूड बहुत जरूरी है। प्रोग्रामिंग और मैथमेटिकल स्किल्‍स बहुत जरूरी है। इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्‍छुक युवाओं को टेक्‍नोलॉजी डेवलपमेंट्स और लेटेस्‍ट इनोवेशन का ज्ञान होना जरूरी है।
प्रमुख संस्‍थान: 
- बिटमैपर इंट्रीगेशन टेक्नोलजी, पुणे, महाराष्ट्र
- सेंट्रल फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांसड कंप्यूटिंग, बेंगलूर 
- जामिया मिलीया इस्लामिया, नई दिल्ली

Thursday, June 14, 2018

फूड टेक्नोलॉजी में करिअर

खाद्यविज्ञान में खाद्य- सामग्रियों के चुनाव, संरक्षण, प्रसंस्करण, डिब्बाबंद (पैकेजिंग), वितरण और उपभोग की तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाती है। ऐसे में जाहिर सी बात है करियर की संभावनाएं अपार है क्योंकि खाना और खिलाना तो चलता ही रहता है

बदलती जीवनशैली और व्यस्तता के कारण आज लोगों की खानपान की आदतें और शौक भी बदल गए हैं। ऐसे में खाने-पीने की चीजों में जो भी उन्हें आसान जरिया या विकल्प मौजूद मिलता है, उसी को आदत बना लेते हैं। इसी में है डिब्बा बंद भोजन और पेय पदार्थ जिस पर लोग आज निर्भर होने लगे हैं। ऐसी स्थिति में इन खाद्य पदार्थों का चलन बढ़ने के कारण युवाओं के लिए फूड टेक्नोलॉजी बेहतरीन करियर ऑप्शन के रूप में सामने आया है। खाद्यविज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग करते हुए खाद्य-सामग्रियों के चुनाव, संरक्षण, प्रसंस्करण, डिब्बाबंद (पैकेजिंग), वितरण और उपभोग की तकनीकों को ही खाद्य प्रौद्योगिकी (फूड टेक्नोलॉजी) कहते हैं। खाद्य विज्ञान खाद्य के सभी तकनीकी पहलुओं से जुड़ा एक ऐसा विषय क्षेत्र है, जो फसल की कटाई से शुरू होता है तथा इसके पकाने और खपत के साथ समाप्त होता है। योग्यता- फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री बहुत ही व्यापक और फलता- फूलता इंडस्ट्री है, जिसमें जॉब की संभावनाएं भी अपार हैं। भारत में भी कुछ यूनिर्वसटिी फूड टेक्नोलॉजी और फूड साइंस में डिग्री कोर्सेज ऑफर कराते हैं। कुछ ऐसे भी संस्थान हैं, जहां फूड प्रॉसेसिंग में पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज उपलब्ध हैं। फूड टेक्नोलॉजी, फूड साइंस और होम साइंस के अंडरग्रेजुएट कोर्स में दाखिला के लिए 10 अ 2 लेवल में पीसीएम या पीसीबी होना चाहिए। एमएससी/मैनेजमेंट में दाखिला के लिए फूड टेक्नोलॉजी में बीएससी होना जरूरी है, जिसके लिए ग्रेजुएट/पोस्टग्रेजुएट डिग्री अनिवार्य है। होम साइंस ग्रेजुएट्स या न्यूट्रिशन और होटल मैनेजमेंट ग्रेजुएट्स (फूड्स एंड बेवरेज) भी फूड प्रोडक्शन इंडस्ट्रीज, मार्केटिंग, प्रिजर्वेशन आदि में टीम की तरह काम कर सकते हैं। ऐसे में होम साइंस या न्यूट्रिशन में सभी स्नातक छात्रों के सामने कई ऑप्शन मौजूद हैं। फूड टेक्नोलॉजी क्षेत्र में स्नातक डिग्री में प्रवेश पाने के लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी अथवा मैथमेटिक्स विषयों के साथ 10 अ 2 में कम से कम 50 प्रतिशत अंक होने चाहिए। एमएससी कोर्स करने के लिए फूड टेक्नोलॉजी से संबंधित विषयों में स्नातक की डिग्री आवश्यक है।

पढ़ाई में शामिल विषय- फूड टेक्नोलॉजी तथा इससे संबंधित कोर्सेज के अंतर्गत खाद्य पदार्थो के उचित रख-रखाव से लेकर पैकेजिंग, फ्रीजिंग आदि की तकनीकी जानकारियां शामिल होती हैं। इसके अंतर्गत पोषक तत्वों का अध्ययन, फल, मांस, वनस्पति व मछली प्रसंस्करण आदि से संबंधित जानकारियां भी दी जाती हैं।

संभावनाएं- चूंकि भारत में भी अब भारी तादाद में लोग संशोधित व डिब्बाबंद खाद्य-पदार्थ इस्तेमाल करने लगे हैं, यही कारण है कि यह क्षेत्र मल्टीनेशनल कंपनियों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। इसी आकर्षण के कारण कई मल्टीनेशनल कंपनियां जैसे मैक्डोनाल्ड, पेप्सी, कोका कोला के साथ ही कई विदेशी कंपनियां भी अपना कारोबार भारत में बढ़ाती जा रही हैं, जिससे इस फील्ड में शिक्षा हासिल कर रहे छात्रों के लिए ढेरों ऑप्शन व ऑपरच्युनिटी मौजूद है।

प्लेसमेंट और प्रॉस्पेक्ट्स- फूड टेक्नोलॉजिस्ट का कार्य मुख्य रूप से होटल, फूड इंडस्ट्रीज, क्वालिटी कंट्रोल, हॉस्पिटल, पैकेजिंग, इंडस्ट्रीज, डिस्टिलरीज, सॉफ्ट ड्रिंक फैक्टरी, राइस मिल्स आदि में होता है। साथ ही मै नुफैक्चरिंग इंडस्ट्री में भी काम करने का मौका मिलता है। चाहें तो, अपनी विशेषताओं और ज्ञान के जरिए स्टोरेज मॉनिटरिंग, प्रोसेसिंग, हाइजिन टेम्प्रेचर मॉनिटरिंग (जांच व निगरानी करना) और एक्सपेरिमेंटिंग आदि में भी जॉब हासिल कर सकते हैं । फूड टेक्नोलॉजी को र्स करने के बाद खुद का बिजनेस या स्वरोजगार भी शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा तकनीकी संस्थाओं में शैक्षिक या प्रशिक्षक के पद पर भी कार्य कर सकते हैं। साथ ही इस फील्ड में शिक्षा हासिल करने के बाद फूड प्रॉसेसिंग इंडस्ट्री अलग-अलग फील्ड के प्रोफेशनल्स को मैनेजेरियल लेवल पर भी नियुक्ति प्रदान करता है। जैसे कि इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन मैनेजर्स मैनुफैक्चरिंग प्लांट्स के ऑपरेशन को कंट्रोल करने, मार्केटिंग औ र सेल्स कर्मचारी सेल्स प्रमोशन और मार्केटिंग में कार्यरत हो ने के अलावा फूड टेक्नोलॉजिस्ट रिसर्च लैबोरेट्रीज या ऑन प्रोडक्शन लाइंस में भी काम करने का मौका हासिल कर सकते हैं। जिसके तहत नया प्रोडक्ट डेवलप करने के साथ तैयार माल को टेस्ट करना और फूड क्वालिटी को कंट्रोल करने की जिम्मेदारी निभाते हैं। फूड टेक्नोलॉजिस्ट भविष्य पब्लिक सेक्टर के साथ प्राइवेट सेक्टर में भी उज्ज्वल है क्योंकि यहां सैलरी भी अच्छी मिलती है। उद्यम में भी लाभप्रद संभावना है, खासकर फूड प्रोसेसिंग बिजनेस में। जुलाई, 1988 में मिनिस्ट्री ऑफ फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की स्थापना हुई थी, जो फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री के विकास को प्रोत्साहित, नई दिशा देने के लिए स्थापित किया गया था। भारत में भी इन दिनों फॉरेन-टाइ-अप्स के साथ प्रोसेस्ड फूड चेन्स का विकास, फूड टेक्नोलॉजी फील्ड में जॉब प्रॉसपेक्टस को और भी बेहतर कर रहा है।

कार्य विवरण- फूड प्रोसेसिंग सेक्टर के तहत वे सभी कार्य शामिल हैं, जिनसे खाने वाली चीजों की गुणवत्ता, स्वाद और रंग-रूप बरकरार रह सके। जैसे- मक्खन, सॉफ्ट ड्रिंक, जैम व जेली, फ्रूट जूस, बिस्कुट, आइसक्रीम आदि। इसके अलावा कच्चे और बने हुए माल की गुणवत्ता, स्टोरेज तथा हाइजिन आदि की निगरानी भी फूड टेक्नोलॉजिस्ट करते हैं। इसके अलावा फूड टेक्नोलॉजिस्ट मुख्य रूप से मैनुफैक्चरिंग प्रोसेस, फूड और ड्रिंक प्रोडक्ट्स के रेसेपी डेवलप करते हैं। नई रेसेपी और कॉन्सेप्ट को इन्वेंट करने के लिए डिस्कवर किये गये इंग्रीडिएंट्स और टेक्नोलॉ जी पर काम करते हैं। साथ ही फूड को सुधारने व परिवर्तित करने का भी काम करता है जैसे फैट-फ्री प्रोडक्ट्स और रेडी मील्स तैयार करना। इसके अलावा करंट कंज्यूमर मार्केट और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी रिसर्च करना ताकि न्यू प्रोडक्ट कॉन्सेप्ट डेवलप किया जा सके। सप्लायर्स से रॉ मटीरियल और अन्य सामग्री सलेक्ट करना भी इन्हीं का कार्य होता है।

गुण- फूड टेक्नोलॉजिस्ट को साइंटिफिक सोच वाला होना जरूरी है। बेहतरीन ऑब्जर्वेशन, साइंटिफिक और टेक्नोलॉजिकल डेवलपमेंट में रु चि, हेल्थ व न्यूट्रिशन में रु चि, रिसर्च और डे वलपमेंट में खासकर ध्यान देने की क्षमता हो। इसके साथ ही जिम्मेदारी व टीम के साथ काम करने के अलावा कम्युनिकेशन स्किल भी बेहतर होनी चाहिए।

वेतन-शुरुआती स्तर पर फ्रेशर 10 से 15 हजार रुपये प्रतिमाह आसानी से कमा सकते हैं। अनुभवी होने पर 30 से 35 हजार रु पये भी प्रतिमाह वेतन प्राप्त कर सकते हैं।

उपलब्ध कोर्स
बीएससी इन फूड साइंस बीएससी और एमएससी विद फूड एंड न्यूट्रिशन बीएससी इन फूड टेक्नोलॉजी (3 वर्ष) बीएससी विद फूड प्रिजर्वेशन (3वर्ष) बीटेक इन फूड इंजीनियरिंग (4 वर्ष) एमएससी इन फूड टेक्नोलॉजी (2वर्ष) एमएससी इन फूड साइंस फूड एनालिसिस और क्वालिटी एश्योरेंस/फूड साइंस टेक्नोलॉजी में डिप्लोमा कोर्स

संस्थान

इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, मैदानगढ़ी, दिल्ली, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली, दिल्ली जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रिकल्चर ऐंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर, उत्तराखंड बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झांसी, उत्तर प्रदेश कानपुर यूनिवर्सिटी, कानपुर, उत्तर प्रदेश आचार्य एनजी रंगा एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी, राजेन्द्र नगर, हैदराबाद कोलकाता विश्वविद्यालय, कोलकाता महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, प्रियदशर्नी हिल्स, कोट्टयम, केरल, गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर, पंजाब तमिलनाडु एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी कोयम्बटू र मुंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई नागपुर यूनिवर्सिटी, नागपुर सेंट्रल फूड टेक्नोलॉजी रिसर्च इंस्टीट्यूट, मैसूर
(अंशुमाला,राष्ट्रीय सहारा,दिल्ली,1.3.11)

आधारिक संरचना प्रबंधन में कॅरियर

हमारा देश बहुत तेजी से आर्थिक विकास की डगर पर आगे बढ़ रहा है। क्रयशक्ति क्षमता के आधार पर तो भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। इसे देखते हुए अपने देश के विकास को गति देने के लिए आधारिक संरचना का द्रुत गति से विकास बहुत जरूरी हो गया है। इस प्रक्रिया में, एक ओर शहरी आधारिक संरचना का विकास तो दूसरी ओर ग्रामीण आधारिक संरचना का विकास जरूरी है। इसमें उन परिष्कृत आधारिक संरचना का विकास तथा प्रबंधन तकनीकों का पता लगाने और उन्हें लागू करने की जरूरत है जो आधुनिकीकरण की बदलती हुई माँग को पूरा करें। दूसरी ओर गाँवों तथा ग्रामीण जनसंख्या को शेष देश से जोड़ने की आवश्यकता है। ग्रामीण परिवहन, ग्रामीण आवास, विद्युत वितरण तथा सिंचाई सुविधाओं की एक सम्पूर्ण नए दृष्टिकोण से समीक्षा की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि सार्वजनिक आधारिक संरचना एवं सार्वजनिक-निजी सहभागिता वाली आधारिक संरचना के अतिरिक्त हमारे पास विकसित विश्व के अनुरूप ढलती निजी आधारिक संरचनाएँ जैसे मकान, दुकान, कार्यालय तथा मॉल हैं। इन सबको देखते हुए हमारे देश की केन्द्र सरकार ने निजी संस्थानों तथा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए आधारिक संरचना उद्योग के दरवाजे खोल दिए हैं जिस पर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार था। इसे देखते हुए हमारे देश को ऐसे लोगों की जरूरत है जो विभिन्न चुनौतियों का स्थायी समाधान कर सकें। इसके लिए विशेष रूप से आधारिक संरचना प्रबंधकों की जरूरत पड़ती है जो सशक्त तकनीकी विशेषज्ञता तथा व्यवसायिक दक्षता रखते हैं।
सामान्य भाषा में कहें तो आधारिक संरचना प्रबंधन नई भौतिकीय संरचनाओं जैसे सिंचाई सुविधाओं, सड़क एवं रेल नेटवर्क, तेल तथा गैस पाइपलाइनों, ग्रामीण एवं शहरी आवास, विद्युत उत्पादन एवं वितरण एवं दूरसंचार सुविधाएँ स्थापित करने और ऐसी वर्तमान संरचनाओं के रखरखाव के कार्य से संबंधित है। आधारिक संरचना प्रबंधक विभिन्न आधारिक संरचना सेवाओं के साधनों तथा उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। वे संकल्पनात्मक तथा व्यावहारिक स्तर पर आने वाली समस्याओं का समाधान करते हैं। आधारिक संरचना प्रबंधन एक ऐसा विशेषज्ञतापूर्ण क्षेत्र है जो तकनीकी एवं गैर तकनीकी दोनों प्रकार के उम्मीदवारों को अवसर प्रदान करता है। आधारिक संरचना प्रबंधन में एमबीए तथा स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं। इन पाठ्यक्रमों में स्नातक के उपरांत प्रवेश लिया जा सकता है।
आधारिक संरचना प्रबंधन पाठ्यक्रमों में नई आधारिक संरचनाओं के नियोजन एवं विकास तथा मौजूदा आधारिक संरचनाओं के रखरखाव के साधनों तथा मॉडल का विस्तृत अध्ययन कराया जाता है। इन पाठ्यक्रमों में संसाधनों तथा आधारिक संरचना के प्रभावी उपयोग की पद्धतियाँ भी शामिल की जाती हैं। इन पाठ्यक्रमों में वित्त, मानव संसाधन, विपणन तथा क्षेत्रगत विशिष्ट कौशल का ज्ञान कराया जाता है। पाठ्यक्रमों में शामिल कुछ विषय इस प्रकार हैं- निर्माण प्रबंधन, आधारिक संरचना विकास, संगठनात्मक आचरण, निर्माण प्रबंधन के सिद्धांत, आधारिक संरचना क्षेत्र अर्थव्यवस्था एवं योजना, आधारिक संरचना में आईटी अनुप्रयोग, लेखाकरण तथा संभार तंत्र एवं आपूर्ति चेन।
शैक्षिक पृष्ठभूमि, कार्य अनुभव एवं उद्योग के आधार पर परियोजना प्रबंधक, परियोजना सलाहकार, आईटी प्रबंधक, निर्माण प्रबंधक, सुविधा प्रबंधक, सुविधा कार्य विशेषज्ञ, वित्त प्रबंधक जैसे विभिन्न पदों पर रोजगार के अवसर हैं। इस क्षेत्र में नवोद्योग की भी चमकीली संभावनाएँ हैं। 
आधारिक संरचना प्रबंधन के क्षेत्र में उजला कॅरियर बनाने के लिए व्यापक तकनीकी कौशल तथा संचार कौशल होना आवश्यक है। इस क्षेत्र में अधिकतर कार्यों में सिविल इंजीनियरों, आर्किटेक्ट, वितरकों, लेखाकारों तथा अनुबंध श्रमिकों जैसे अन्य व्यवसायियों से संपर्क स्थापित करना शामिल होता है। इसलिए उम्मीदवार में संचार कौशल होना आवश्यक है। कार्यों में प्रायः विभिन्न साइटों पर कार्य करना तथा कभी-कभी विपरीत माहौल में कार्य करना होता है। इसके लिए लगातार कई घंटों तक कार्य करने के लिए शारीरिक स्वस्थता तथा शारीरिक क्षमता की आवश्यकता होती है। कुछ कार्यों में लगातार स्थान परिवर्तन शामिल होता है। निर्माण के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान, समस्या समाधान कौशल, परियोजना प्रबंधन कौशल होना इस क्षेत्र में ऊँचाइयों तक पहुँचाता है। आधारिक संरचना प्रबंधन में उन विद्यार्थियों के लिए बहुत उजले अवसर हैं जो सिविल इंजीनियरी का भी ज्ञान रखते हैं।
गैर इंजीनियरी स्नातक विद्यार्थी वित्त, मानव संसाधन, विधि, विक्रय जैसे विभागों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इस क्षेत्र में कॅरियर शीघ्र उन्नति एवं आकर्षक वेतन के अवसर प्रदान करता है। किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में वेतन पैकेज और अन्य लाभों की बात करें तो वेतन एवं अन्य लाभ पद, कार्य अनुभव आदि पर निर्भर होते हैं। इस क्षेत्र में प्रारंभिक वेतन 15 से 30 हजार रुपये प्रतिमाह के बीच प्राप्त होता है।
आधारिक संरचना प्रबंधन का कोर्स कराने वाले देश के प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं-
  • सिम्बायोसिस प्रबंधन एवं मानव संसाधन विकास केन्द्र, पुणे।
  • ऊर्जा एवं पेट्रोलियम अध्ययन विश्व-विद्यालय, देहरादून।
  • टेरी विश्वविद्यालय, दिल्ली।
  • इनलीड, गुड़गाँव।

Friday, June 8, 2018

कंप्यूटर इंजीनियर में करियर

कंप्यूटर इंजीनियरिंग उन विषयों में से है, जिनमें आज छात्रों का रुझान सबसे ज्यादा है। इसकी एक बड़ी वजह इस क्षेत्र में बहुत अधिक नौकरियों का होना है। कंप्यूटर इंजीनियरिंग दो विषयों पर आधारित है- कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर हार्डवेयर। इंजीनियर इन दोनों के ज्ञान का उपयोग कंप्यूटर का डिजाइन तैयार करने और उसे विकसित करने में करते हैं। जो इंजीनियर कंप्यूटर के उपकरण तैयार करते हैं, वे हार्डवेयर इंजीनियर होते हैं और जो कंप्यूटर के चलाने के लिए विभिन्न प्रोग्राम तैयार करते हैं, वे सॉफ्टवेयर इंजीनियर होते हैं।
कंप्यूटर इंजीनियर के कार्य
हार्डवेयर इंजीनियर को कंप्यूटर के सभी पार्ट्स की जानकारी होना आवश्यक है। सॉफ्टवेयर इंस्टालेशन की जानकारी, पार्ट्स रिपेयरिंग, कंप्यूटर का रखरखाव और कंप्यूटर के साथ जुड़ी अन्य चीजों की जानकारी जैसे प्रिंटर, सीपीयू, मॉडम इत्यादि की जानकारी होनी आवश्यक है।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर सॉफ्टवेयर्स की प्रोग्रामिंग और डिजाइनिंग करते है। कंप्यूटर में इंस्टॉल किए जाने वाले सभी सॉफ्टवेयर्स को सॉफ्टवेयर इंजीनियर ही बनाते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर को हार्डवेयर्स के बारे में अतिरिक्त जानकारी हो सकती है। किसी भी सॉफ्टवेयर के डेवलपमेंट, ऑपरेशन और मेंटिनेंस का काम सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के अंतर्गत आता है। इसके अलावा इसमें सॉफ्टवेयर रिक्वायरमेंट, कंस्ट्रक्शन और सॉफ्टवेयर टेस्टिंग भी शामिल किए जाते हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में इतनी सारी चीजें शामिल होने की वजह से इस फील्ड में रोजगार की संभावनाएं दिनोदिन बढ़ती जा रही हैं।
कंप्यूटर इंजीनियर कैसे बनें
कंप्यूटर इंजीनियर बनने के लिए बीटेक/बीई कंप्यूटर साइंस आदि कोर्स करने की आवश्यकता होती है। लेकिन कई अन्य तरीकों से भी कंप्यूटर क्षेत्र में जाया जा सकता है। ऐसे में आप कंप्यूटर बेसिक लेवल कोर्स शुरू कर सकते हैं या फिर ओ लेवल कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। इसके बाद आप कंप्यूटर प्रोग्राम में डाटा एंट्री करने में सक्षम हो जाएंगे। आगे ट्रेनिंग लेकर आप कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी जॉब हासिल कर सकते हैं। प्रोग्रामिंग जॉब में आप प्रोग्राम को लिखने और टेस्टिंग का काम करेंगे तथा इंप्लिमेंटिंग फेज में आप यूजर की सहायता करेंगे। यदि आप कुछ कंप्यूटर भाषाओं और टेक्नोलॉजी जैसे सी, सी प्लस प्लस, जावा, कोबोल आदि में दक्ष हो जाते हैं तो आप कंप्यूटर टेक्नोलॉजी में सुनहरा भविष्य बना सकते हैं।
डोएक के ए लेवल तथा बी लेवल कोर्स ग्रेजुएशन डिग्री के बराबर ही हैं। इन कोर्सों में ऑपरेटिंग सिस्टम्स जैसे माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस, इंटरनेट एक्सप्लोरर, फोटोशॉप आदि एप्लीकेशन्स के डेवलपमेंट के बारे में सीखते हैं। इन सबको करने के बाद आप नई तथा विकसित टेक्नोलॉजी में काम कर सकते हैं। इस क्षेत्र में करियर संभावनाओं के लिए आप अपनी रुचि तथा योग्यता के अनुसार कई अन्य प्रोग्राम्स, लैंग्वेजिज तथा टेक्नोलॉजी सीख सकते हैं, जिसके बाद आप सिस्टम एनालिस्ट, सिस्टम प्रोग्रामर, एनालिस्ट प्रोग्रामर, डाटाबेस मैनेजमेंट, नेटवर्किंग, कोडर आदि क्षेत्रों में काम कर सकते हैं।
स्किल्स
लॉजिकल दिमाग तथा एकाग्रता के साथ सीखने की चाहत इस क्षेत्र में प्रवेश करने की न्यूतम जरूरत है।
रचनात्मक क्षमता होना बेहद जरूरी है।
मैथ्स में मजबूत होना जरूरी है।
नई तकनीक और अन्य चीजों के प्रति जागरूक होना जरूरी है।
काम में एकाग्रता होनी चाहिए।
तार्किक क्षमता का होना और प्रयेागधर्मी होना भी जरूरी है।
कोई नया प्रोग्राम बनाने की क्षमता।
अंतिम निर्णय तक जाने की क्षमता।
संभावनाएं
नेटवर्किंग इंजीनियर, सिस्टम डिजाइनर, सिस्टम एनालिस्ट, सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर इंजीनियर के लिए भारत में अपार अवसर हैं। इसके अलावा विदेश में भी भारतीय कंप्यूटर इंजीनियर्स की काफी मांग है।
देश में इस क्षेत्र में कुशल इंजीनियर्स की मांग में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। मल्टीनेशनल कंपनियों में नौकरी के अवसर तो मौजूद हैं ही, साथ ही आप खुद का व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं। कंपनियां अपनी जरूरतों के हिसाब से सॉफ्टवेयर डेवलप कराती हैं, इसलिए हर फील्ड में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की डिमांड बढ़ गई है।
फैक्ट फाइल
कुछ प्रमुख संस्थान
आईआईटी, चेन्नई, दिल्ली, गुवाहाटी, कानपुर, मुम्बई, बैंगलोर, रुड़की
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नालॉजी एंड साइंस, पिलानी, राजस्थान
वैल्लोर इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नालॉजी, वैल्लोर, तमिलनाडु
बैंगलोर इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बेंगलुरू
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू
नेताजी सुभाष इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, दिल्ली
दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग
योग्यता
इंजीनियरिंग में डिप्लोमा के लिए कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ 10वीं परीक्षा में पास होना जरूरी है। बैचलर डिग्री कोर्स, बीई/बीटेक के लिए साइंस में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, और गणित में 50 फीसदी के साथ 12वीं पास होना जरूरी है।
प्रवेश प्रक्रिया
विभिन्न राज्यों की यूनिवर्सिटीज और आईआईटी कंप्यूटर इंजीनियरिंग में बीई, बीटेक प्रवेश के लिए परीक्षा आयोजित करती हैं। पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स के लिए बैचलर डिग्री पास होना जरूरी है। एमटेक/एमई में दाखिला लेने के लिए बीटेक/बीई में 60 फीसदी अंकों की जरूरत होती है। आईपी यूनिवर्सिटी में इंटर ग्रेजुएट लेवल प्रोग्राम में कॉमन एंट्रेंस टेस्ट होते हैं। आईआईटी छात्रों को ग्रेजुएट एप्टीटय़ूड टेस्ट फॉर इंजीनियर्स के आधार पर स्नातकोत्तर के लिए प्रवेश मिलता है। सॉफ्टवेयर टेस्टिंग, कंप्यूटर सिस्टम एनालिस्ट और डेटा बेस डेवलपर के लिए कंप्यूटर इंजीनियरिंग या कंप्यूटर साइंस में डिग्री जरूरी है।
कोर्स समय सीमा
12वीं के बाद बीटेक करने के लिए 4 साल का समय लगता है या फिर ग्रेजुएशन के बाद 3 साल की एमसीए भी की जा सकती है। कंप्यूटर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की अवधि 3 साल है। बीई/बीटेक कंप्यूटर साइंस की अवधि चार साल है। एमई/एमटेक कोर्स 2 साल का है।
कोर्स
डिप्लोमा इन कंप्यूटर्स, एडवांस डिप्लोमा इन कंप्यूटर्स, बीएससी कंप्यूटर साइंस, बीटेक इन कंप्यूटर साइंस, बीसीए, एमसीए, एमटेक। आप विभिन्न संस्थानों से डिप्लोमा तथा सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं।
सेलरी
बीसीए कोर्स के बाद 5-6 हजार से लेकर 15 हजार रुपए तक मिल जाते हैं। बीटेक छात्रों को 10 से 35 हजार रुपए तक सेलरी मिलती है। एमसीए करने के बाद शुरुआती सेलरी 15 से 50 हजार के बीचमिलती है। पब्लिक सेक्टर में कंपनियां शुरुआत में सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को 10,000 से 20,000 रुपए प्रति महीना सेलरी देती हैं। निजी कंपनियों में एक योग्य सॉफ्टवेयर इंजीनियर शुरुआत में 20,000 से 25,000 रुपए प्रति महीना सेलरी पा सकता है। अनुभव के आधार पर वह 50,000 से 1 लाख रुपए प्रति माह सेलरी भी प्राप्त कर सकता है।

Wednesday, June 6, 2018

फार्मेसी क्षेत्र में बनाएं करियर


  • फार्मेसी एक ऐसा सेक्टर है जहां आपके पास करियर के कई विकल्प हैं। आज भारत क्लीनिकल रिसर्च आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में भी ग्लोबल हब बन कर उभर रहा है। यदि आपकी दिलचस्पी चिकित्सा और सेहत से जुड़े क्षेत्र में है तो आप फार्मेसी के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। 

शैक्षणिक योग्यता
विज्ञान विषय के साथ बारहवीं परीक्षा पास करने के बाद दो साल के डी फार्मा कोर्स या चार साल के बी फार्मा कोर्स कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में स्थित कई संस्थान/ महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय अंडरग्रेजुएट कोर्स करवाने के अलावा एम. फार्मा कोर्स भी करवाते हैं। बारहवीं के बाद सीधे डिप्लोमा किया जा सकता है। कुछ कॉलेजों में फार्मेसी में फुलटाइम कोर्स संचालित हैं। इसके साथ-साथ पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एवं हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी संचालित किए जा रहे हैं। इन पाठयक्रमों की अवधि छह माह से एक वर्ष के बीच है। इन पाठयक्रमों में प्रवेश के लिए अभ्यर्थी की न्यूनतम योग्यता बीएससी, बीफार्मा अथवा डीफार्मा निर्धारित की गई है।


कोर्स
डीफॉर्मा और बीफॉर्मा कोर्स में दवा के क्षेत्र से जुड़ी उन सभी बातों की थ्योरेटिकल और प्रायोगिक जानकारी दी जाती है, जिनका प्रयोग आमतौर पर इस उद्योग के लिए जरूरी होता है। इसके साथ फार्माकोलॉजी,इंडिस्टि्रयल केमिस्ट्री, हॉस्पिटल एंड क्लीनिकल फार्मेसी, फॉर्मास्यूटिकल, हेल्थ एजुकेशन, बायोटेक्नोलॉजी आदि विषयों की जानकारी दी जाती है।
करियर विकल्प
रिसर्च एंड डेवलपमेंट
भारत आज फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में काफी तेजी के आगे बढ़ रहा है। यहां नई-नई दवाइयों की खोज और विकास संबंधी कार्य किया जा सकता है। आरएंडडी क्षेत्र को जेनेरिक उत्पादों के विकास, एनालिटिकल आरएंडडी, एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्स) या बल्क ड्रग आरएंडडी जैसी श्रेणियों में बांटा जा सकता हैं।
फार्मासिस्ट
हॉस्पिटल फार्मासिस्ट्स पर दवाइयों और चिकित्सा संबंधी अन्य सहायक सामग्रियों के भंडारण, स्टॉकिंग और वितरण का जिम्मा होता है, जबकि रिटेल सेक्टर में फार्मासिस्ट को एक बिजनेस मैनेजर की तरह काम करते हुए दवा संबंधी कारोबार चलाने में समर्थ होना चाहिए।
क्लिनिकल रिसर्च
जब कोई नई दवा लॉन्च करने की तैयारी होती है, तो दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार है, इसके लिए क्लिनिकल ट्रॉयल होता है। आज देश में कई विदेशी कंपनियां क्लिनिकल रिसर्च के लिए आ रही हैं। दवाइयों की स्क्रीनिंग संबंधी काम में नई दवाओं या फॉर्मुलेशन का पशु मॉडलों पर परीक्षण करना या क्लिनिकल रिसर्च करना शामिल है जो इंसानी परीक्षण के लिए जरूरी है।
क्वालिटी कंट्रोल
फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री का यह एक अहम कार्य है। नई दवाओं के संबंध में अनुसंधान और विकास के अलावा यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत होती है कि इन दवाइयों के जो नतीजे बताए जा रहे हैं, वे सुरक्षित और स्थाई हो।
रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट
विदेशों में फार्मासिस्ट को रजिस्टर्ड फार्मासिस्ट कहा जाता है, जिस तरह डॉक्टरों को प्रैक्टिस के लिए लाइसेंस की जरूरत होती है, उसी तरह इन्हें भी फार्मेसी में प्रैक्टिस करने के लिए लाइसेंस चाहिए। उन्हें रजिस्ट्रेशन के लिए एक टेस्ट पास करना होता है। फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया ने इस विषय में ट्रेनिंग के लिए ‘फार्मा डी’ नामक एक छह साल का कोर्स शुरू किया है।
ब्रांडिंग एंड सेल्स
फार्मास्युटिकल सेक्टर में मार्केटिंग की काफी अहम है। मार्केटिंग प्रोफेशनल्स उत्पाद की बिक्री के अलावा बाजार की प्रतिस्पर्धा पर भी निगाह रखते हुए इस बात का पता करते हैं कि किस उत्पाद के लिए बाजार में ज्यादा संभावनाएं हैं। इसी के मुताबिक रणनीति तैयार की जाती है। 
कहां मिलेगी अवसर
दुनिया की बेहतरीन फॉर्मास्युटिकल कंपनियां भारत में अपना कारोबार कर रही हैं। इनके अलावा, रैनबैक्सी, एफडीसी, कैडिला, शिपला, डॉ. रेड्डीज, डाबर, ल्यूपिन आदि कंपनियां भारत में व्यवसायरत हैं। इस क्षेत्र में प्रशिक्षित लोगों की काफी मांग है। नर्सिग होम, अस्पतालों और कंपनियों में आपके लिए नौकरी के अवसर हैं। ड्रग कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन और आर्म्ड फोर्सेज में भी काफी संभावनाएं हैं। बीफॉर्मा करने के बाद आप मैन्युफैक्चरिंग केमिस्ट, एनालिस्ट कैमिस्ट, ड्रग इंस्पेक्टर के रूप में काम कर सकते हैं। 

Sunday, June 3, 2018

रिन्यूएबल एनर्जी मैनेजमेंट में करियर

आज जिस तेजी से दुनिया में विकास हो रहा है, उससे भी कहीं ज्यादा तेजी से एनर्जी की मांग बढ़ रही है। किसी भी इंडस्ट्री या प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले वहां की ऊर्जा की संभावनाओं की पड़ताल जरूरी होती है। जरूरतों के साथ ही अब पर्यावरण से जुड़े मुद्दों को भी देखा जाने लगा है। तमाम पावर प्रोजेक्ट्स पर्यावरण संबंधी विषयों के चलते ही अटके पड़े हैं। इसलिए रिन्यूएबल एनर्जी पर फोकस्ड रहना उनकी मजबूरी है। इस क्षेत्र में भारत ने कई महत्वाकांक्षी योजनाएं बना रखी हैं। इसलिए आज हम आपको बता रहे हैं कि कैसे इस क्षेत्र में अपना करियर बनाएं।
बायोफ्यूल की लगातार कम होती जा रही मात्रा और देश में एनर्जी की मांग को देखते हुए एनर्जी प्रोडक्शन और उसका प्रबंधन पहली प्राथमिकता बन चुका है। सरकारी के साथ-साथ निजी कंपनियां भी इस ओर विशेष जोर दे रही हैं। यही कारण है कि रिन्यूएबल एनर्जी मैनेजमेंट के कोर्स की तेजी से मांग बढ़ रही है। समय के साथ-साथ ऊर्जा की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसलिए ऊर्जा के अतिरिक्त स्रोतों यानी वैकल्पिक ऊर्जा, सौर ऊर्जा, विंड एनर्जी, बायो एनर्जी, हाइड्रो एनर्जी आदि पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा पर्यावरण के मुद्दों को देखते हुए भारत ने रिन्यूएबल एनर्जी के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी योजना बना रखी है, क्योंकि सरकार का इरादा अगले साल तक 55 हजार मेगावॉट बिजली उत्पादन का है। कॉरपोरेट कंपनियां भी इस क्षेत्र में निवेश कर रही हैं।
क्या है रिन्यूएबल एनर्जी मैनेजमेंट
मौजूदा प्रौद्योगिकी के अलावा नई तकनीक को अपना कर रिन्यूएबल एनर्जी (अक्षय ऊर्जा) के उत्पादन पर जोर दिया जा रहा है, ताकि बिजली की मांग के एक बड़े हिस्से की आपूर्ति व प्रदूषण में कमी के साथ-साथ हजारों करोड़ रुपये की बचत भी की जा सके। इसलिए सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देने पर बल दिया है।
कौन से हैं कोर्स
इसमें जो भी कोर्स हैं, वे पीजी अथवा मास्टर लेवल के हैं। छात्र उन्हें तभी कर सकते हैं, जब उन्होंने किसी विश्वविद्यालय या मान्यताप्राप्त संस्थान से बीटेक, बीई या बीएससी सरीखा कोर्स किया हो। एमएससी फिजिक्स के छात्रों को यह क्षेत्र सबसे अधिक भाता है।
एमबीए कोर्स
कई बिजनेस संस्थानों में एनर्जी मैनेजमेंट या पावर मैनेजमेंट जैसे एमबीए कोर्स भी ऑफर किए जा रहे हैं। इनको ग्रेजुएशन के बाद किया जाता है। रिसर्च करने के लिए मास्टर होना जरूरी है।
कौन से हैं प्रमुख कोर्स
  • एमएससी इन रिन्यूएबल एनर्जी
  • एमएससी इन फिजिक्स/एनर्जी स्टडीज
  • एमटेक इन एनर्जी स्टडीज
  • एमटेक इन एनर्जी मैनेजमेंट
  • एमटेक इन एनर्जी टेक्नोलॉजी
  • एमटेक इन रिन्यूएबल एनर्जी मैनेजमेंट
  • एमई इन एनर्जी इंजीनियरिंग
  • पीजी डिप्लोमा इन एनर्जी मैनेजमेंट
  • एमबीए इन रिन्यूएबल एनर्जी मैनेजमेंट
  • एमफिल इन एनर्जी
जरूरी गुण
  • आवश्यक स्किल्स
  • लॉजिकल व एनालिटिकल स्किल्स
  • कठिन परिश्रम से न भागना
  • मेहनती व अनुशासन में रहना
  • नई चीजें सीखने के लिए तत्पर रहना
  • कठिन परिस्थितियों में बेहतर निर्णय लेने की क्षमता
वेतनमान
रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर में डिप्लोमाधारी युवाओं को शुरू-शुरू में 25-30 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी मिलती है। इस क्षेत्र में जैसे-जैसे वे समय व्यतीत करते जाते हैं, उनकी आमदनी भी बढ़ती जाती है।
अनुभव से बढ़ेगी सैलरी
अमूमन 3-4 साल के अनुभव के बाद यह सेलरी बढ़ कर 50-55 हजार रुपये प्रतिमाह हो जाती है। कई ऐसे प्रोफेशनल्स हैं, जो इस समय 5-6 लाख रुपये सालाना सेलरी पैकेज पा रहे हैं। टीचिंग व विदेश जाकर काम करने वाले प्रोफेशनल्स की सेलरी भी काफी अच्छी होती है। इस क्षेत्र के जानकार प्रोफेशनल्स को अकसर सेलरी के लिए ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि आज भी इस क्षेत्र में मांग की तुलना में करियर प्रोफेशनल्स की भारी कमी है।
यहां पर मिल सकता है काम
रिन्यूएबल एनर्जी सेक्टर से संबंधित सरकारी व निजी उद्योगों में करियर के तमाम विकल्प मौजूद हैं।
पर्याप्त संभावनाएं
देश में रिन्यूएबल एनर्जी की पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं। इससे लगभग 1.79 लाख मेगावॉट बिजली पैदा की जा सकती है। इसके अंतर्गत एचआर मैनेजमेंट, ऑपरेशन, फाइनेंस, मार्केटिंग तथा स्ट्रैटिजिक मैनेजमेंट जैसे कार्य शामिल हैं। इसमें प्रोफेशनल्स एनर्जी कॉर्पोरेशन के मैनेजमेंट में बड़ी भूमिका निभाते हैं। यह क्षेत्र भले ही अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर करियर की संभावनाएं मौजूद हैं।
संस्थान
- यूनिवर्सिटी ऑफ लखनऊ, लखनऊ
वेबसाइट- www.lkouniv.ac.in
- यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे, पुणे
वेबसाइट- www.unipune.ac.in
- आईआईटी दिल्ली, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.iitd.ac.in
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, तिरुचिरापल्ली
वेबसाइट- www.nitt.edu
- राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, भोपाल
वेबसाइट- www.rgpv.ac.in
- इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी), इलाहाबाद
वेबसाइट- www.shiats.edu.in
- पेट्रोलियम कंजर्वेशन रिसर्च एसोसिएशन, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.pcra.org

Friday, June 1, 2018

मॉडर्न बायोलॉजी में करें रिसर्च,

विभिन्न छोटी-बड़ी बीमारियों की पहचान करने वाली पैथोलॉजी के तहत आने वाली कई आधुनिक शाखाओं में रिसर्च के हैं अवसर। नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल परिसर में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी, आईसीएमआर ने मॉडर्न बायोलॉजी की इन स्ट्रीम्स में रिसर्च के लिए आवेदन मंगवाए हैं । संस्थान को सिंबायोसिस यूनिवर्सिटी, पुणे, बिट्स पिलानी, जामिया हमदर्द से मान्यता प्राप्त है। यहां अपना शोध कार्य करके बेहतरीन कॅरियर बना सकते हैं। प्रवेश के लिए आपको इंटरव्यू देना होगा। इसमें आवेदन की अंतिम तिथि 15 फरवरी 2016 निर्धारित की गई है।
क्या है योग्यता
लाइफ साइंस की किसी भी ब्रांच में कम से कम 60 फीसदी अंक के साथ एमएससी, एमटेक करने वाले लोग कर सकते हैं आवेदन। आवेदक के पास सीएसआईआर-यूजीसी (जेआरएफ), आईसीएमआर- जेआरएफ, डीएसटी-इंस्पायर फैलोशिप हो। अधिकतम उम्र 28 साल है। एससी, एसटी, ओबीसी, शावि, महिलाओं को छूट है। अहर्ताएं पूरी करने पर ही आवेदन करें।
कैसे होगा चयन
एनआईपी में चयन के लिए आवेदकों को सबसे पहले उनके आवेदनों में दी गई डीटेल्स के आधार पर शॉर्टलिस्ट किया जाएगा। इसके बाद इन शॉर्टलिस्टेड लोगों को ईमेल के माध्यम से इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा। इंटरव्यू में प्रदर्शन के आधार पर आवेदकों का अंतिम चयन किया जाएगा।
एरियाज ऑफ रिसर्च
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी में जिन इंटरडिसीप्लीनरी एरियाज में रिसर्च के अवसर मौजूद हैं, वे इस प्रकार हैं- कैंसर बायोलॉजी, इंफेक्शियस डिसीजेज, एनवायरमेंटल टॉक्सीसिटी, एडल्ट स्टेम सेल बायोलॉजी और मेटाबोलिक सिंड्रोम।
कई हैं अवसर
बदलतीजीवनशैली व अन्य कारणों से पैदा होने वाली नई-नई बीमारियों से निपटने के लिए इस फील्ड में कुशल पेशेवरों की भारी मांग बनी हुई है। इस फील्ड में रुचि रखने वाले लोग इस क्षेत्र में नई-नई खोजें करके स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी योगदान दे सकते हैं।
कैसे करें आवेदन
एनआईपी में आवेदन के लिए http://instpath.gov.in से एप्लीकेशन फॉर्म को डाउनलोड करें। फॉर्म में अपनी पर्सनल और एजुकेशनल डिटेल्स भरें। भरे हुए एप्लीकेशन फॉर्म और सर्टिफिकेट्स की प्रमाणित प्रतियों को एनवलप में डालकर नीचे दिए पते पर 15 फरवरी 2016 तक पहुंचाना है। एनवलप पर “NIP Ph.D Program 2016” जरूर लिखें। पता है- Director, National Institute of Pathology-ICMR, Post Box No. 4909, Safdarjung Hospital Campus, New Delhi- 110029