Thursday, December 24, 2020

डाटा साइंस में बनाएं अपना करियर

देश-दुनिया में डाटा साइंस प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। जितनी इनकी डिमांड है, उस हिसाब से प्रोफेशनल्स नहीं मिल पा रहे हैं। आउटबाउंड हायरिंग स्टार्टअप बिलॉन्ग की टैलेंट सप्लाई इंडेक्स 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, देश में चार गुना तेजी से डाटा साइंटिस्ट्स की मांग बढ़ी है। पिछले एक साल में डाटा साइंटिस्ट्स की मांग में 417 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। आइए, जानते हैं कैसे इस ग्रोइंग फील्ड में करियर बनाया जा सकता है?

टेक्नोलॉजी की दुनिया तेजी से बदल रही है। आज तकरीबन हर फील्ड में इसका इस्तेमाल होने लगा है। जिसकी वजह से जॉब्स के नए-नए अवसर भी सामने आ रहे हैं। इस फील्ड में खासकर डाटा साइंटिस्ट प्रोफेशनल्स की डिमांड पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ी है।

इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के मुताबिक, 2018 में देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के तहत डाटा साइंटिस्ट सहित डाटा से जुड़े करीब पांच लाख विशेषज्ञों की मांग है, जो 2021 तक बढ़कर 7.5 लाख से ज्यादा हो जाएगी। आईटी मंत्रालय के मुताबिक, एआई के तहत डाटा साइंटिस्ट के अलावा, डाटा आर्किटेक्ट और सॉफ्टवेयर इंजीनियर की मांग भी बढ़ रही है।

सबसे ज्यादा डिमांड डाटा साइंटिस्ट की है, जो खोए हुए डाटा खोजने, गड़बड़ियों को दूर करने और तमाम खामियों से बचाव करने में मददगार होते हैं। फिलहाल सर्विस प्रोवाइडर के बीच 2.5 लाख, स्टार्टअप में 25 हजार, आईटी कंपनियों में 26 हजार, अन्य क्षेत्र की कंपनियों को 1.40 लाख और विदेशी कंपनियों में 92 हजार डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत है।

  

डिमांड है भरपूर

रिपोर्ट के मुताबिक, अगले तीन साल में करीब पांच लाख से ज्यादा डाटा साइंटिस्ट की जरूरत होगी। कंपनियों, संस्थानों और हेल्थकेयर क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में इसकी डिमांड बढ़ी है। आने वाले दिनों में डिजिटल क्षेत्र में भारत दुनिया में अग्रणी भूमिका निभाएगा।

डाटा साइंटिस्ट गायब हुए डाटा को खोजने में मुख्य भूमिका निभाता है। साथ ही, यह तकनीक का इस्तेमाल करके डाटा का अध्ययन और उस पर निर्णय लेता है। वैसे देखा जाए, तो कुल 5.11 लाख डाटा साइंटिस्ट की मांग की तुलना में देश में महज 1.44 लाख कुशल प्रोफेशनल्स मौजूद हैं।

नेचर ऑफ वर्क

डाटा साइंटिस्ट, डाटा से जुड़ी स्टडी करते हैं। इसके तहत डाटा को जुटाकर उनके अध्ययन और एनालिसिस के माध्यम से भविष्य की योजना बनाई जा सकती है। साथ ही, डाटा साइंटिस्ट अपनी कंपनी के लिए डाटा एनालिसिस करते हैं, जिससे उसे बिजनेस में फायदा हो। डाटा साइंस में आंकड़े के विश्लेषण को तीन भागों में बांटा जाता है।

पहले डाटा को जुटाया जाता है और उनको स्टोर किया जाता है। उसके बाद डाटा की पैकेजिंग यानी विभिन्न श्रेणियों के हिसाब से उनकी छंटाई की जाती है और अंत में डाटा की डिलिवरी की जाती है। डाटा साइंटिस्ट के पास प्रोग्रामिंग, स्टेटिस्टिक्स, मैथमेटिक्स और कंप्यूटर की अच्छी जानकारी होती है।

वे डाटा को जमा करके उनका बहुत ही बारीकी से विश्लेषण करते हैं। इसके लिए वे स्टेटिस्टिक्स और मैथ्स के टूल्स का उपयोग करते हैं। इसको वे पॉवर प्वाइंट, एक्सल, गूगल विजुअलाइजेशन के जरिए प्रस्तुत करते हैं। इनके पास किसी भी तरह के डाटा को बेहतर तरीके से विजुअलाइज करने की क्षमता होती है।

साथ ही, विभिन्न सेक्टरों द्वारा दिए गए उलझाऊ और जटिल डाटा में से अहम जानकारियों को बारीकी से खंगालते हैं। वे यह भी पता लगाते हैं कि किस वजह से कंपनी की स्थिति में गिरावट आ रही है या कंपनी के लिए कौन-सा नया उद्यम ज्यादा फायदेमंद होगा।

क्वालिफिकेशन

डाटा साइंटिस्ट बनने के लिए कैंडिडेट के पास मैथ्स, कंप्यूटर साइंस, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, अप्लाइड साइंस, मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एमटेक और एमएस की डिग्री होना जरूरी है। यही नहीं कैंडिडेट्स को सांख्यिकी मॉडलिंग, प्रॉबेबिलिटी की नॉलेज होना बहुत जरूरी है।

इसके अलावा, पाइथन, जावा, आर, एसएएस जैसी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज की समझ होना भी बेहद जरूरी है। एडवांस्ड सर्टिफिकेट और एडवांस्ड प्रोग्राम जैसे कुछ प्रोग्राम के लिए इंजीनियरिंग या मैथ्स या स्टेटिस्टिक्स में बैचलर डिग्री या मास्टर डिग्री होने के साथ-साथ दो वर्ष का अनुभव भी चाहिए। 

मेन कोर्सेस

डाटा साइंटिस्ट की पढ़ाई के लिए देश में कई संस्थानों द्वारा बिजनेस एनालिटिक्स स्पेशलाइजेशन में शॉर्ट टर्म कोर्स कराए जा रहे हैं। आईआईएम कोलकाता, आईएसआई कोलकाता और आईआईटी खड़गपुर ने मिल कर दो वर्षीय फुलटाइम पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स प्रोग्राम की शुरुआत की है।

इसके अलावा, एडवांस्ड सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एग्जिक्युटिव प्रोग्राम इन बिजनेस एनालिटिक्स, एडवांस्ड बिजनेस एनालिटिक्स एंड बिजनेस ऑप्टिमाइजेशन प्रोग्राम, मास्टर्स इन मैनेजमेंट, पोस्ट ग्रेजुएट सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन मार्केट रिसर्च एंड डाटा एनालिटिक्स, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन बिजनेस एनालिटिक्स जैसे कोर्स किए जा सकते हैं।

  

जॉब्स ऑप्शन

इस फील्ड में आप डाटा साइंटिस्ट, डाटा एनालिस्ट, सीनियर इंफॉर्मेशन एनालिस्ट, इंफॉर्मेशन ऑफिसर, डाटा ऑफिसर, सॉफ्टवेयर टेस्टर, सपोर्ट एनालिस्ट और बिजनेस एनालिस्ट के तौर पर करियर बना सकते हैं। इस फील्ड में सरकारी और प्राइवेट दोनों क्षेत्रों में जॉब के बहुत मौके हैं।

अगर प्राइवेट सेक्टर की बात करें, तो आइटी, बैंक्स, इंश्योरेंस, फाइनेंस, टेलीकॉम, ई-कॉमर्स, रिटेल और आउटसोर्सिंग कंपनीज में ऐसे प्रोफेशनल्स की बहुत डिमांड है। इसके अलावा, युवाओं के लिए कंस्ट्रक्शन, यूटिलिटी, ऑयल/गैस/माइनिंग, हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर, ट्रांसपोर्टेशन, कंसल्टिंग और मैन्युफेक्चरिंग कंपनीज में भी काफी संभावनाएं हैं।

अगर चाहें तो कॉलेज या यूनिवर्सिटीज के रिसर्च विंग से भी जुड़ सकते हैं। डाटा प्रोफेशनल्स की डिमांड अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भी बहुत है। कई बड़ी कंपनियों जैसे गूगल, अमेजॉन, माइक्रोसॉफ्ट, ईबे, लिंक्डइन, फेसबुक और ट्विटर जैसी कंपनीज को भी डाटा साइंटिस्ट्स की जरूरत पड़ती है।

सैलरी

डाटा साइंटिस्ट्स की सैलरी उसके अनुभव पर भी निर्भर करती है। लेकिन यह काफी हाई-पेइंग जॉब है। अगर एवरेज सैलरी की बात की जाए, तो डाटा साइंटिस्ट्स को करीब 70-80 लाख रुपए सालाना तक मिल सकता है। हालांकि शुरुआती दौर में प्रोफेशनल्स को 8 से 10 लाख रुपए का सालाना पैकेज आसानी से मिल जाता है। 

प्रमुख संस्थान

आईएसआई, कोलकाता 

वेबसाइट: www.isical.ac.in 

आईआईएम, कोलकाता, लखनऊ

वेबसाइट: www.iimcal/l.ac.in 

आईआईटी, खड़गपुर

वेबसाइट: www,iitkgp.ac.in 

एमआईसीए, अहमदाबाद

वेबसाइट: www.mica.ac.in 

-आईआईएससी, बेंगलुरु 

वेबसाइट: www,iisc.ernet.in 

 

एक्सपर्ट व्यू अनिल सेठी, करियर एक्सपर्ट

डाटा प्रोफेशनल्स की बढ़ेगी मांग 

इंडिया ही नहीं, पूरी दुनिया में बिजनेस एनालिटिक्स का उपयोग बढ़ रहा है। आज बैंकिंग, फाइनेंस, इंश्योरेंस, ई-कॉमर्स और डाटा एनालिटिक्स से जुड़ी स्टार्टअप्स कंपनियां इसे ज्यादा से ज्यादा यूज करने पर जोर दे रही हैं। कंपनियां भी इस क्षेत्र में लगातार इंवेस्टमेंट कर रही हैं। ऐसे में डाटा वॉल्यूम बढ़ने से बहुत-सी कंपनियों के लिए डाटा एनालिस्ट और डाटा साइंटिस्ट्स को हायर करना अनिवार्य हो गया है।

वैसे, देखा जाए, तो आजकल कमोबेश सभी कंपनियां बिजनेस एफिशिएंसी बढ़ाने के लिए डाटा को नए तरीके से यूज करने की कोशिश कर रही हैं। साथ में, बिजनेस प्रोसेस की लागत भी कम करना चाहती हैं और कस्टमर को अच्छा शॉपिंग एक्सपीरिएंस भी फील कराना चाहती हैं। इसलिए डाटा को फिल्टर करके सटीक जानकारी निकालना अब आसान हो गया है। ऐसे में डाटा प्रोफेशनल्स की मांग तेजी से बढ़ रही है।


Sunday, December 13, 2020

डिप्लोमा इन आर्किटेक्चर

किसी इमारत की डिज़ाइन, योजना और उसका निर्माण करने वाले को आर्किटेक्चर कहते है। अगर आप कोई बड़ी बिल्डिंग बनाना चाहते है तो उसके लिए पहले डिज़ाइन बनाई जाती है। जो आर्किटेक्चर के द्वारा ही बनाई जाती है। आर्किटेक्चर उस डिज़ाइन के द्वारा आपको बताता है की वह बिल्डिंग कैसी दिखेगी। आर्किटेक्चर द्वारा पहले किसी इमारत की संरचना के लिए प्लान बनाया जाता है। प्लान बनाने के बाद आर्किटेक्चर द्वारा उसकी डिज़ाइन तैयार की जाती है जिसके बाद वह उसका निर्माण करवाता है।

किसी इमारत का निर्माण करने में आर्किटेक्चर की जरुरत होती है। सामान्य तौर पर आर्किटेक्चर का काम होता है किसी बिल्डिंग या इमारत की प्लानिंग के साथ उसकी डिज़ाइन तैयार करना। इसके साथ ही उसके और भी बहुत से कार्य होते है।

डिज़ाइन बनाना

आर्किटेक्चर का पहला काम किसी इमारत की डिज़ाइन को बनाने का होता है। इसमें बिल्डर जिस तरह की बिल्डिंग का निर्माण करना चाहते है उसके अनुसार डिज़ाइन बनाने के लिए आर्किटेक्ट को नियुक्त करते है और क्लाइंट जिस तरह की डिज़ाइन चाहता है उसके अनुसार इमारत का नक्शा या डिज़ाइन आर्किटेक्ट को बनाना होता ।

दस्तावेज़ बनाना

ग्राहक द्वारा जो डिज़ाइन बताई गयी होती है आर्किटेक्ट उसे पेपर पर उतारता है। डिज़ाइन को समझने के लिए तथा उसकी वास्तविकता को जानने के लिए चित्रों को बनाना होगा। इसमें आर्किटेक्ट को ग्राहक की सुविधा, बजट, आवश्यकता इन सभी के अनुसार दस्तावेज़ में संशोधन करने की आवश्यकता होती है।

निर्माण की भूमिकाएँ

इसमें निर्माण दस्तावेज़ों को बनाना होता है और जो डिज़ाइन बनाई जाती है उसे ठेकेदारों और निर्माण विशेषज्ञों के निर्देशों के अनुसार रूपांतरित किया जाता है। जिससे की वह इसे देखकर ही बिल्डिंग का निर्माण कर सके और जब पूरी तरह से यह परियोजना निर्माण के कार्य तक पहुँच जाती है तो आर्किटेक्ट का काम निर्माण की देखरेख करना, हस्ताक्षर करना, साईट के दौर और बैठकों में शामिल होना रहता है।

आर्किटेक्चर बनने के लिए आपको B.Arch कोर्स करना होता है। बहुत से आर्किटेक्चर कॉलेज NATA (National Aptitude Test in Architecture) के द्वारा एडमिशन करवाते है। तो आर्किटेक्चर बनने के लिए 12 वीं के बाद NATA की एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करना होती है। यह एप्टीट्यूड टेस्ट नेशनल लेवल पर आयोजित किया जाता है।

यह एग्जाम Critical Thinking, Architecture की समझ के लिए आपकी योग्यता को मापता है। इस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने के लिए आपको इस एग्जाम को पास करना होता है और इसके लिए कुछ योग्यताएं भी होती है जिन्हें पूरा करना होता है। तो जानते है

शैक्षिक योग्यता

  • B.Arch कोर्स करने के लिये आपको 12 वीं में गणित विषय से पास होना अनिवार्य है।
  • 12 वीं आपने 50 % से उत्तीर्ण की हो।
  • आपने 10 वीं के बाद किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से 3 वर्ष का डिप्लोमा किया हुआ हो।

आयु सीमा

NATA परीक्षा के आवेदन के लिए किसी तरह की न्यूनतम आयु सीमा नहीं है।

NATA की प्रवेश प्रक्रिया

  1. NATA परीक्षा के लिए ऑनलाइन ही Apply करना होगा।
  2. इस परीक्षा में बहुविकल्पीय प्रश्न पूछे जाएँगे।
  3. परीक्षा ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से होगी।

NATA Syllabus

NATA का Syllabus तीन विषय पर आधारित होता है। इन्हीं विषयों से सम्बन्धित प्रश्न परीक्षा में आपसे पूछे जाते है। जानते है NATA Exam का Syllabus क्या है।

Mathematics

इस विषय में Algebra (बीज-गणित), Matrices (मेट्रिक्स), Trigonometry (त्रिकोणमिति), Statistics & Probability (सांख्यिकी और संभाव्यता) पर आधारित प्रश्न आते है।

General Aptitude

इसमें Mathematical Reasoning (गणितीय तर्क), Sets & Relation (सेट्स और संबंध) से प्रश्न आते है।

Drawing Test

इसमें किसी वस्तु की ड्राइंग करना होती है और साथ ही रंगों का प्रयोग भी करना होता है।

NATA Exam Pattern

NATA का परीक्षा पैटर्न किस तरह का होगा, इसमें कितने प्रश्न आते है और कितने मार्क्स दिए जाते है यह आप आगे जानेंगे।

 

 

कुल मिलाकर आपसे 62 प्रश्न पूछे जाएँगे। जिसमें 20 प्रश्न गणित के होंगे, 40 प्रश्न general aptitude के आएँगे और 2 प्रश्न drawing test के होंगे।

 Architecture Courses

आर्किटेक्चर को कुछ कोर्सेज़ की जानकारी भी होना चाहिए। जिससे आप पूरे काम को कर पाओगे जिससे आप आर्किटेक्चर डिज़ाइन तैयार कर सकते है और किसी बिल्डिंग का डिज़ाइन बना पाएँगे। इनमें से किसी भी कोर्स को करके आप आर्किटेक्चर बन सकते है।
डिग्री कोर्स इन आर्किटेक्चर

  • डिप्लोमा कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • मास्टर डिग्री इन आर्किटेक्चर
  • डिग्री इन आर्किटेक्चर
  • पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • सस्टेनेबल कोर्स इन आर्किटेक्चर
  • एडवांस्ड सर्टिफिकेट कोर्स इन आर्किटेक्चरल
  • बैचलर डिग्री इन आर्किटेक्चर टेक्नोलॉजी एंड कंस्ट्रक्शन
  • मास्टर ऑफ़ लैंडस्केप आर्किटेक्चर कोर्स
  • बेसिक कोर्स इन आर्किटेक्चरल ड्राफ्ट्समैन

यह सारे कोर्स ग्रेजुएशन कोर्स है जिसे करके आप आर्किटेक्चर इंजीनियर बन सकते है।

B.Arch Entrance Exam

B.Arch में एडमिशन के लिए आपको एंट्रेंस एग्जाम देना होती है। यह एग्जाम कॉलेज या किसी इंस्टिट्यूट के द्वारा आयोजित की जाती है लेकिन आर्किटेक्चर में प्रवेश के लिए कुछ मुख्य परीक्षाएं भी होती है।

  • AIEEE
  • AMU Entrance Exam
  • KEAM
  • NATA
  • BEEE
  • IIT-JEE
  • UPTU SEE Exam

B.Arch की फीस

इसकी फ़ीस कॉलेज पर निर्भर करती है की आपने किस कॉलेज में एडमिशन लिया है। अगर आपने सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया है तो आपकी फ़ीस अलग होगी और अगर आपने प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लिया है तो आपकी फ़ीस अलग होगी।

सरकारी कॉलेज

सरकारी कॉलेज में अगर आप एडमिशन लेते है तो आपकी फ़ीस 1.5 लाख से 2.5 लाख तक हो सकती है। यह राज्यों पर भी निर्भर करती है।

प्राइवेट कॉलेज

इस कोर्स की फ़ीस सरकारी कॉलेज के मुकाबले प्राइवेट कॉलेज में ज्यादा होती है। 3 लाख से 6 लाख तक होती है या इससे ज्यादा भी हो सकती है।

Thursday, December 10, 2020

फिजिक्स ऑनर्स और फिजिकल साइंस में क्या फर्क है

अगर स्नातक स्तर पर साइंस की विभिन्न शाखाओं के बीच विचरण करना चाहते हैं, फिजिक्स के साथ-साथ रसायनशास्त्र और गणित जैसे विषयों को भी पढ़ने की तमन्ना है तो बीएससी इन फिजिकल साइंस कोर्स एक बेहतर विकल्प है। जनरल साइंस के रूप में लंबे अरसे तक चलने वाला यह कोर्स आज नाम बदल कर फिजिकल साइंस में तब्दील हो गया है। अब इसे ‘बीएससी जनरल ग्रुप ए’ की जगह बीएससी इन फिजिकल साइंस के नाम से जाना जाता है।

यह कोर्स छात्रों को एमएससी स्तर पर साइंस की विभिन्न शाखाओं में जाने की राह तो दिखाता ही है, उन्हें स्नातक करने के बाद भी करियर की अलग-अलग दिशाओं में जाने का रास्ता अख्तियार कराता है। अगर साइंस ग्रेजुएट बन कर नौकरी करने की इच्छा है तो यह कोर्स ऐसे छात्रों के लिए एक अच्छा विकल्प है।

कोर्स में क्या है
सीधी-सीधी बात कही जाए तो यह साइंस का खिचड़ी कोर्स है, जो बारहवीं तक भौतिकी, गणित, रसायनशास्त्र और कंप्यूटर साइंस जैसे विषय पढ़ने वाले छात्रों को आगे भी विभिन्न विषयों को पढ़ने की छूट देता है। इसमें छात्र भौतिकी और गणित को मुख्य पेपर के रूप में तीनों साल तो पढ़ते ही हैं, इसके अलावा विकल्प के रूप में एक और पेपर को भी तीनों साल पढ़ना होता है। इसमें छात्रों को कई चॉइस दी जाती है। मसलन कोई चाहे तो तीनों साल भौतिकी और गणित के साथ रसायनशास्त्र को मुख्य पेपर के रूप में चुन सकता है।

जो छात्र रसायनशास्त्र नहीं पढ़ना चाहता, उसे इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक को मुख्य पेपर के रूप में चुनने की छूट मिलती है। तीन साल में तीन विषय के अलावा कई और पेपर भी पढ़ने होते हैं। छात्रों को अब टेक्निकल राइटिंग एंड कम्युनिकेशन यानी अंग्रेजी का एक पेपर पहले साल पढ़ना होता है। इसके अलावा कंप्युटेशनल स्किल का एक पेपर और दूसरे साल में इंट्रोडक्शन टू बायोलॉजी और फिर सोलहवें पेपर के रूप में बायोलॉजी पढ़नी होती है। तीन सालों में कुल 24 पेपर पास करने होते हैं।

छात्रों को कंकरेंट कोर्स के तहत भी दो पेपर चुनने होते हैं। अगर किसी ने फिजिकल साइंस में भौतिकी और गणित के अलावा रसायनशास्त्र के 6 पेपर चुने हैं तो उसे कंप्यूटर साइंस से या इलेक्टॉनिक्स से दो कंकरेंट पेपर का चुनाव करना होता है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक या कंप्यूटर साइस से 6 पेपर चुनने वालों को भी दो कंकरेंट पेपरों का चुनाव करना होता है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पहले इस कोर्स को करने के बाद उच्च शिक्षा यानी एमएससी करने में खासी दिक्कत आती थी। उन्हें ऑनर्स कोर्स के मुकाबले काफी नीचे रखा जाता था, लेकिन अब एमएससी में प्रवेश परीक्षा होने के कारण ऐसे छात्रों को भी आगे निकलने का मौका मिलता है। यह कोर्स छात्रों को तीन विषयों को पढ़ने का व्यापक नजरिया प्रदान करता है। इसमें तीन पेपरों पर ज्यादा जोर देने से छात्रों को एमबीए और आइएएस परीक्षा की तैयारी में काफी मदद मिलती है।

शाखाएं 
इसमें मुख्य रूप से बीएससी इन फिजिकल साइंस तो है ही, इसके अलावा स्पेशलाइज्ड पेपर चुनने पर फिजिकल साइंस विद कंप्यूटर साइंस और फिजिकल साइंस विद इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे विषय भी जुड़ जाते हैं।

दाखिला कैसे 
कॉलेजों में इस कोर्स में दाखिला बारहवीं की मेरिट के आधार पर दाखिला दिया जाता है। साइंस के छात्र के लिए बारहवीं में भौतिकी, गणित और रसायनशास्त्र पढ़ा होना जरूरी है, तभी उसे दाखिला दिया जाता है। 

फैक्ट फाइल

कोर्स कराने वाले संस्थान
दिल्ली विश्वविद्यालय के करीब 25 कॉलेज ऐसे  हैं, जहां अलग-अलग रूपों में फिजिकल साइंस कोर्स चल रहा है। 
कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थान: 
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय
आगरा विश्वविद्यालय, आगरा
महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक
पंजाब विश्वविद्यालय
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ

अवसर कहां
स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद छात्रों को आगे की शिक्षा के लिए किसी न किसी क्षेत्र में स्पेशलाइज्ड रास्ता चुनना पड़ता है। यह कोर्स जनरल साइंस है, इसलिए आगे बढ़ने का विकल्प थोड़ा कठिन होता है। लेकिन बहुत सारे छात्र इन बाधाओं को पार कर मौका पाते हैं।

सामान्य तौर पर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होकर बैंक व अन्य निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरी कर सकते हैं। सरकारी क्षेत्र की ओर देखें तो यूपीएससी की परीक्षा में शामिल होकर आईएएस, आईपीएस बन सकते हैं। बैंकिंग सेक्टर में जा सकते हैं। एमबीए या एमसीए कर सकते हैं। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में लैब असिस्टेंट के रूप में कार्य कर सकते हैं। स्कूलों में साइंस के शिक्षक बन सकते हैं।

वेतन

शुरुआती तौर पर 20 से 25 हजार रुपये की नौकरी मिल जाती है। एमएससी के बाद कॉलेज शिक्षण और रिसर्च एसोसिएट के रूप में वेतनमान शुरुआती तौर पर 40 से 45 हजार रुपये है।

एक्सपर्ट व्यू/ डॉ. जीएस चिलाना
दाखिला प्रभारी, फिजिकल साइंस विभाग, 
रामजस कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

तुरंत जॉब मिलती है इसमें

फिजिकल साइंस छात्रों के लिए किस रूप में मददगार है?
आमतौर पर यह कोर्स ऐसे छात्रों के लिए है, जो स्नातक करते ही नौकरी की तलाश में रहते हैं। इसे करने के बाद छात्र सीधे रोजगार के बाजार में उतर सकता है। वह लैब में बतौर सहायक काम कर सकता है। दूसरी बात यह कि इसे करने के बाद बीएड में दो विषयों को चुन कर शिक्षक बनने का मौका मिलता है। सामान्य प्रतियोगी परीक्षाओं में भी यह कोर्स मददगार है। एमएससी स्तर पर कई तरह के स्पेशलाइजेशन चुनने का रास्ता दिखाता है।

इसमें किस तरह के विषयों का कॉम्बिनेशन है?
इसमें भौतिकी और गणित, सभी के लिए अनिवार्य होता है। इसके साथ ही छात्र रसायनशास्त्र भी पढ़ते हैं। अगर कोई रसायनशास्त्र नहीं पढ़ना चाहता तो वह कंप्यूटर साइंस ले सकता है। वह इलेक्ट्रॉनिक्स का चुनाव कर सकता है।

यह कोर्स किस तरह के अवसर मुहैया कराता है?
इस कोर्स के छात्रों के लिए स्नातक के बाद सामान्य स्तर की कई तरह की नौकरियों में जाने का रास्ता निकलता है। कोई चाहे तो एमबीए कर सकता है। कोई एमसीए करके नई राह चुन सकता है। स्नातक में पढ़े गए अपने दो विषयों को लेकर सिविल सर्विस की तैयारी कर सकता है। उसे फिजिक्स, रसायनशास्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, गणित और कंप्यूटर साइंस में से किसी एक में जाने का चुनाव करना होता है। किसी एक में एमएससी करके उच्च शिक्षा के आधार पर मिलने वाली नौकरियों में जा सकता है, चाहे वह साइंटिस्ट का पद हो या रिसर्च एसोसिएट या असिस्टेंट प्रोफेसर का।

इसमें किस तरह के बदलाव आए हैं?

यह कोर्स पहले बीएससी जनरल ग्रुप ए के नाम से जाना जाता था। 2002 के बाद इसे इस तरह का नाम दिया गया। इसमें एप्लायड फिजिकल साइंस विद कंप्यूटर साइंस या इलेक्ट्रॉनिक्स आदि कई कैटेगरी बन गई थीं, जो उलझन पैदा कर रही थीं, लेकिन यह कंफ्यूजन पिछले साल से खत्म कर दिया गया है। अब एप्लायड शब्द हटा दिया गया है। सिर्फ फिजिकल साइंस रह गया है।

फिजिक्स ऑनर्स और फिजिकल साइंस में क्या फर्क है?
फिजिक्स ऑनर्स में तीनों साल भौतिकी से जुड़े पेपर ही पढ़ाए जाते हैं। इसमें तीन विषय मुख्य पेपर के रूप में तीनों साल चलते हैं। यहां स्नातक स्तर की बजाय एमएससी पर स्पेशलाइजेशन चुनना होता है। एमएससी में इस कोर्स के छात्रों की राह ऑनर्स की बजाय थोड़ी कठिन होती है।

Sunday, December 6, 2020

एस्ट्रोनॉमी में कॅरियर

आसमान में लाखों जगमगाते एवं टिमटिमाते तारों को निहारना दिमाग को सुकून से भर देता है। इन्हें देखने पर मन में यही आता है कि अगली रात में पुन: आने का वायदा कर जगमगाते हुए ये सितारे आखिर कहां से आते हैं और कहां गायब हो जाते हैं?  हालांकि,  इसी तरह के कई अन्य सवालों जैसे उल्कावृष्टि, ग्रहों की गति एवं इन पर जीवन जैसे रहस्यों से ओत-प्रोत बातें सोचकर व्यक्ति खामोश रह जाता है। एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) या खगोल विज्ञान वह करियर है, जो इन सभी रहस्यों, सवालों एवं गुत्थियों को सुलझाता है। अगर आप ब्रह्मांड (Universe) के रहस्यों से दो-चार होकर अंतरिक्ष को छूना चाहते हैं तो यह करियर आपके लिए बेहतर है। वैसे भी कल्पना चावला (Kalpana Chawla), राकेश शर्मा (Rakesh Sharma) तथा सुनीता विलियम्स (Sunita Williams) जैसे प्रतिभावान एस्ट्रोनॉट (Astronaut) के कारण आज यह करियर युवाओं के बीच अत्यंत लोकप्रिय है।


एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) क्या है

एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) वह विज्ञान है, जो पृथ्वी के वातावरण से परे अंतरिक्ष (Space) से संबंधित है। यह ब्रह्मांड में उपस्थित खगोलीय पिंडों (Celestial Bodies) की गति, प्रकृति और संघटन का शास्त्र है। साथ ही इनके इतिहास और संभावित विकास हेतु प्रतिपादित नियमों का अध्ययन भी है। यह एस्ट्रोलॉजी (Astrology) या ज्योतिष विज्ञान जिसमें सूर्य, चंद्र और विभिन्न ग्रहों द्वारा व्यक्ति के चरित्र, व्यक्तित्व एवं भविष्य पर पडने वाले प्रभावों का अध्ययन किया जाता है, से पूरी तरह से अलग शास्त्र है। अत्याधुनिक तकनीक एवं गैजेट्स के प्रयोग ने हालांकि एस्ट्रोनॉमी को एक विशिष्ट विधा बना दिया है, परंतु वास्तव में यह बहुत ही पुरानी विधा है। प्राचीन काल से ही मानव ग्रहों (Human Planet) एवं अंतरिक्ष पिंडों (Space Bodies) का अध्ययन करता रहा है, जिनमें आर्यभट्ट (Aryabhatta), भास्कराचार्य (Bhaskaracharya), गैलीलियो (Galileo) और आइजक न्यूटन (Isaac Newton) जैसे महान गणितज्ञों एवं खगोलशास्त्रियों (Astronomers) का महत्वपूर्ण योगदान है। एस्ट्रोनॉमी में अंतरिक्ष पिंडों के बारे में जानकारी संग्रह करने के बाद उपलब्ध आंकडों से तुलना कर निष्कर्ष निकाला जाता है तथा पुराने सिद्घांतों को संशोधित कर नए नियम प्रतिपादित किए जाते हैं।


शैक्षिक योग्यता  (Educational Qualification)

यदि आप भी अंतरिक्ष की रहस्यमय और रोमांचक दुनिया में कदम रखना चाहते हैं, तो एस्ट्रोनॉमी (Astronomy) का कोर्स कर सकते हैं। फिजिक्स या मैथमेटिक्स से स्नातक पास स्टूडेंट्स थ्योरेटिकल एस्ट्रोनॉमी (Theoretical Astronomy) के कोर्स में एंट्री ले सकते हैं। इंस्ट्रूमेंटेशन/ एक्सपेरिमेंटल एस्ट्रोनॉमी में प्रवेश के लिए बीई (बैचलर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक/ इलेक्ट्रिकल/ इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन) की डिग्री जरूरी है। यदि आप पीएचडी कोर्स (फिजिक्स, थ्योरेटिकल व ऑब्जर्वेशनल एस्ट्रोनॉमी, एटमॉस्फेरिक ऐंड स्पेस साइंस आदि) में प्रवेश लेना चाहते हैं, तो ज्वाइंट एंट्रेंस स्क्रीनिंग टेस्ट-जेईएसटी (Joint Entrance Screening Test) से गुजरना होगा। इस एग्जाम में बैठने के लिए फिजिक्स में मास्टर डिग्री या फिर इंजीनियरिंग में बैचलर डिग्री जरूरी है। यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे (University of Pune) में स्पेस साइंस में एमएससी कोर्स उपलब्ध है। बेंगलुरु यूनिवर्सिटी (Bangalore University) और कालीकट यूनिवर्सिटी (University of Calicut) से एस्ट्रोनॉमी में एमएससी कोर्स कर सकते हैं।


एस्ट्रोनॉमी के प्रकार (Type of Astronomy)

एस्ट्रोनॉमी में वैज्ञानिक तरीकों से तारे (Stars), ग्रह (Planets), धूमकेतु (Comets) आदि के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही पृथ्वी (Earth) के वायुमंडल के बाहर किस तरह की गतिविधियां हो रही हैं, यह भी जानने की कोशिश की जाती है। इसकी कई ब्रांचेज हैं..


एस्ट्रोकेमिस्ट्री (Astrochemistry): इसमें केमिकल कॉम्पोजिशन (Chemical Composition) के बारे में अध्ययन किया जाता है। साथ ही विशेषज्ञ स्पेस में पाए जाने वाले रासायनिक तत्व के बारे में गहन अध्ययन कर जानकारियां एकत्र करते हैं।


एस्ट्रोमैटेरोलॉजी (Astro Meteorology): एस्ट्रोनॉमी के इस हिस्से में खगोलीय चीजों की स्थिति और गति के बारे में जानकारी जुटाई जाती है। साथ ही, यह भी जानने की कोशिश की जाती है कि खगोलीय चीजों का पृथ्वी के वायुमंडल पर किस तरह का प्रभाव पडता है। यदि आप वायुमंडल पर पडने वाले खगोलीय प्रभाव को ठीक से समझ गये और इस विद्या का डीप अध्ययन कर लिया तो आपकी डिमांड का ग्राफ बढ जाएगा।


एस्ट्रोफिजिक्स  (Astrophysics): इसके अंतर्गत खगोलीय चीजों की फिजिकल प्रॉपर्टी के बारे में अध्ययन किया जाता है। खगोलीय फिजिकल प्रॉपर्टी को समझना इतना आसान नहीं होता, जितना लोग समझते हैं। इसे समझने में अध्ययन कर रहे स्टूडेंटस को सालों गुजर जाते हैं।


एस्ट्रोजिओलॉजी  (Astrogeology): इसके तहत ग्रहों की संरचना और कॉम्पोजिशन के बारे स्टडी की जाती है। इस क्षेत्र के विशेषज्ञ आप तभी बन सकेंगे जब ग्रहों की तह में जाकर गहन अध्ययन करेंगे। एकाग्रचित होकर की गयी सिस्टमेटिक पढाई ही ग्रहों के फार्मूलों के करीब ले जाएगी। इसे समझने के लिए सोलर सिस्टम, प्लेनेट, स्टार, सेटेलाइट आदि का डीप अध्ययन जरूरी है।

एस्ट्रोबायोलॉजी  (Astrobiology): पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर भी जीवन है? इस बात की पडताल एस्ट्रोबायोलॉजी के अंतर्गत किया जाता है। एस्ट्रोबायोलॉजी के जानकार ही वायुमंडल के बाहर जीवन होने के रहस्य से पर्दा उठा सकते हैं, इसके पीछे छुपी होती है उनकी वर्षो की तपस्या।


Career in Astronomyसंभावनाएं (Opportunities)

एस्ट्रोनॉमी का कोर्स पूरा करने के बाद विकल्पों की कमी नहीं रहती है। यदि सरकारी संस्थाओं की बात करें, तो इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (Indian Space Research Organisation), नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स पुणे (National Centre for Radio Astrophysics), फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी अहमदाबाद (Physical Research Laboratory), विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (Vikram Sarabhai Space Center), स्पेस फिजिक्स लेबोरेटरीज, स्पेस ऐप्लिकेशंस सेंटर, इंडियन रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन बेंगलुरु, एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ऑफ इंडिया आदि में नौकरी की तलाश कर सकते हैं। यदि रिसर्च के क्षेत्र में कुछ वर्षो का अनुभव हासिल कर लें, तो अमेरिका की नासा (नेशनल एरोनॉटिक्स स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) जैसी संस्थाओं में नौकरी हासिल कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त समय-समय पर विभिन्न देशों में आयोजित सेमिनार एवं गोष्ठियों में हिस्सा लेने का भी अवसर प्राप्त होता है।


सैलरी (Salary)

शोध के दौरान जूनियर रिसर्चर (Junior Researcher) को 8 हजार एवं सीनियर रिसर्चर (Senior Researcher) को 9 हजार रूपये मिलते हैं। हॉस्टल में रहने-खाने, चिकित्सा तथा ट्रैवल की सुविधा संस्थान द्वारा दी जाती है। साथ ही विभिन्न राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार एवं कांफे्रंस में भाग लेने का भी मौका मिलता है। शोध पूरा करने के पश्चात् विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थानों में वैज्ञानिक एवं एस्ट्रोनामर या एस्ट्रोनाट के पद पर उच्च वेतनमान के साथ अन्य उत्कृष्ट सुविधाएं भी मिलती हैं।


कहां से करें कोर्स (Course)

रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट, सीवी रमन एवेन्यू, बेंगलुरू

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स,

फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी, अहमदाबाद

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुम्बई

रेडियो एस्ट्रोनॉमी सेंटर, तमिलनाडु

उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद

मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, मदुरै, तमिलनाडु

पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला, पंजाब

महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोट्टयम, केरला