Wednesday, January 31, 2018

मॉडर्न बायोलॉजी में करें रिसर्च

विभिन्न छोटी-बड़ी बीमारियों की पहचान करने वाली पैथोलॉजी के तहत आने वाली कई आधुनिक शाखाओं में रिसर्च के हैं अवसर। नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल परिसर में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी, आईसीएमआर ने मॉडर्न बायोलॉजी की इन स्ट्रीम्स में रिसर्च के लिए आवेदन मंगवाए हैं । संस्थान को सिंबायोसिस यूनिवर्सिटी, पुणे, बिट्स पिलानी, जामिया हमदर्द से मान्यता प्राप्त है। यहां अपना शोध कार्य करके बेहतरीन कॅरियर बना सकते हैं। प्रवेश के लिए आपको इंटरव्यू देना होगा। इसमें आवेदन की अंतिम तिथि 15 फरवरी 2016 निर्धारित की गई है।
क्या है योग्यता
लाइफ साइंस की किसी भी ब्रांच में कम से कम 60 फीसदी अंक के साथ एमएससी, एमटेक करने वाले लोग कर सकते हैं आवेदन। आवेदक के पास सीएसआईआर-यूजीसी (जेआरएफ), आईसीएमआर- जेआरएफ, डीएसटी-इंस्पायर फैलोशिप हो। अधिकतम उम्र 28 साल है। एससी, एसटी, ओबीसी, शावि, महिलाओं को छूट है। अहर्ताएं पूरी करने पर ही आवेदन करें।
कैसे होगा चयन
एनआईपी में चयन के लिए आवेदकों को सबसे पहले उनके आवेदनों में दी गई डीटेल्स के आधार पर शॉर्टलिस्ट किया जाएगा। इसके बाद इन शॉर्टलिस्टेड लोगों को ईमेल के माध्यम से इंटरव्यू के लिए बुलाया जाएगा। इंटरव्यू में प्रदर्शन के आधार पर आवेदकों का अंतिम चयन किया जाएगा।
एरियाज ऑफ रिसर्च
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पैथोलॉजी में जिन इंटरडिसीप्लीनरी एरियाज में रिसर्च के अवसर मौजूद हैं, वे इस प्रकार हैं- कैंसर बायोलॉजी, इंफेक्शियस डिसीजेज, एनवायरमेंटल टॉक्सीसिटी, एडल्ट स्टेम सेल बायोलॉजी और मेटाबोलिक सिंड्रोम।
कई हैं अवसर
बदलतीजीवनशैली व अन्य कारणों से पैदा होने वाली नई-नई बीमारियों से निपटने के लिए इस फील्ड में कुशल पेशेवरों की भारी मांग बनी हुई है। इस फील्ड में रुचि रखने वाले लोग इस क्षेत्र में नई-नई खोजें करके स्वास्थ्य क्षेत्र में काफी योगदान दे सकते हैं।
कैसे करें आवेदन
एनआईपी में आवेदन के लिए http://instpath.gov.in से एप्लीकेशन फॉर्म को डाउनलोड करें। फॉर्म में अपनी पर्सनल और एजुकेशनल डिटेल्स भरें। भरे हुए एप्लीकेशन फॉर्म और सर्टिफिकेट्स की प्रमाणित प्रतियों को एनवलप में डालकर नीचे दिए पते पर 15 फरवरी 2016 तक पहुंचाना है। एनवलप पर “NIP Ph.D Program 2016” जरूर लिखें। पता है- Director, National Institute of Pathology-ICMR, Post Box No. 4909, Safdarjung Hospital Campus, New Delhi- 110029

Saturday, January 27, 2018

मानचित्रकला क्रिएटिविटी में करियर

आज क्रिएटिविटी की एक अलग दुनिया है। इसमें  मानचित्रकला भी एक है। पिछले पांच-छह साल से लगातार मानचित्रकला  के क्षेत्र में ग्रोथ दिखाई दे रही है। डिमांड के अनुसार इस फील्ड में ट्रेंड प्रोफेशनल्स के लिए स्कोप भी बढ़ा है, लेकिन यह केवल उन्हीं के लिए है, जो अपने विषय के साथ-साथ इसमें प्रयोग होने वाली नई टेक्नोलॉजी में भी पूरी तरह से निपुण हैं। मानचित्र तथा विभिन्न संबंधित उपकरणों की रचना, इनके सिद्धांतों और विधियों का ज्ञान एवं अध्ययन मानचित्रकला  कहलाता है। मानचित्र के अतिरिक्त तथ्य प्रदर्शन के लिये विविध प्रकार के अन्य उपकरण, जैसे उच्चावचन मॉडल, गोलक, मानारेख आदि भी बनाए जाते हैं। मानचित्रकला में विज्ञान, सौंदर्यमीमांसा तथा तकनीक का मिश्रण है। इसका रूपांतर कार्टोग्राफी है जो कि  ग्रीक शब्द से बना है।
योग्यता
मानचित्रकार बनने के लिए बैचलर ऑफ कार्टोग्राफी करनी होती है। अर्थ साइंस और अन्य फिजिकल साइंस ग्रेजुएट स्टूडेंट्स भी इस क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। उन्हें अपनी बीएससी या बीटेक में एक विषय कार्टोग्राफी रखना चाहिए। अगर आप मानचित्रकार बनना चाहते हैं तो इससे संबंधित डिग्री या डिप्लोमा कोर्स करके इस फील्ड में एंट्री करें। कार्टोग्राफी में बैचलर डिग्री के अलावा ज्योग्राफी, जियोलॉजी, इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, अर्थ साइंस और फिजिकल साइंस के ग्रेजुएट भी इसमें करियर बना सकते हैं।
मानचित्रकार  की खूबियां
मानचित्रकार साइंटिफिकल, टेक्नोलॉजिकल और ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन को डायग्राम, चार्ट, स्प्रेडशीट और मैप के रूप में पेश करता है। इसमें डिजिटल मैपिंग और ज्योग्राफिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) सबसे ज्यादा काम में आता है। साथ ही अन्य कौशल का होना भी जरूरी है, जैसे- भूगोल के लिए जुनून, उत्कृष्ट डिजाइन और आईटी कौशल, अच्छी स्थानिक जागरूकता, विश्लेषणात्मक कौशल आदि।
अवसर
मैप का इस्तेमाल एक इंडिविजुअल से लेकर इंडस्ट्रियल पर्पज तक के लिए किया जाने लगा है, इसलिए प्लानर्स, यूटिलिटी कंपनियों, स्टेट एजेंसीज, कंस्ट्रक्शन कंपनियों, सर्वेयर्स, आर्किटेक्ट्स सभी को मानचित्रकार  की जरूरत पड़ती है। इस तरह वेदर फोरकास्टिंग, ट्रैवल एंड टूरिज्म, ज्योलॉजिकल, मिनिरल एक्सप्लोरेशन, मिल्रिटी डिपार्टमेंट, पब्लिशिंग हाउसेज में जॉब के अच्छे मौके हैं। इस कोर्स को करने के बाद रोजगार की कोई समस्या नहीं होती। बहरहाल मानचित्र के बढ़ते हुए प्रयोग को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह क्षेत्र रोजगार की दृष्टि से काफी सुरक्षित है। साथ ही इससे संबंधित निम्न नौकरियां यह भी हैं-मैपिंग तकनीशियन, मैप लाइब्रेरियन, अधिकारी चार्टिग, भौगोलिक सूचना प्रणाली अधिकारी, भूविज्ञानी, भूभौतिकीविद्, ग्राफिक डिजाइनर, जल सर्वेक्षण सर्वेयर, भूमापक सॉफ्टवेयर इंजीनियर।
टेक्निकल जानकारी
वैसे तो मैप बनाने का आर्ट तकरीबन 7 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। पहले मैप बनाने वाले ज्यादातर वक्त फील्ड में बिताते थे और फिर हाथ से मैप बनाते थे, लेकिन अब यह काम कंप्यूटर के जरिए किया जाता है। इसलिए कंप्यूटर स्किल्स के अलावा ज्योग्राफिकल इंफॉर्मेशन सिस्टम और डिजिटल मैपिंग तकनीकी जानकारी रखनी होगी।
मानचित्रकार  एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स होता है, जिसके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता स्नातक है।
वेतन
शुरुआती दौर में इसमें 15 से 20 हजार रुपये महीना आसानी से कमाया जा सकता है। हालांकि यह संस्थान पर काफी निर्भर करता है। विदेश से अनुभव प्राप्त कार्टोग्राफर 5-10 लाख रुपये प्रति माह भी कमा लेते हैं।
संस्थान
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली 
इंस्टीटय़ूट ऑफ जियोइन्फॉर्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग, कोलकाता
मद्रास विश्वविद्यालय
पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
नेशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइजेशन, कोलकाता
जिम्मेदारियां: मानचित्रकार मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र (स्थानीय अधिकारियों, सरकारी एजेंसियों, रक्षा मंत्रालय, संरक्षण ट्रस्टों और कंपनियों), सर्वेयर और प्रकाशन कंपनियों के लिए काम करते हैं। काम के मुताबिक उन्हें अपना आउटपुट देना होता है।

Wednesday, January 24, 2018

सिविल इंजीनियरिंग में करियर

आज देश प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी विकास की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। रियल एस्टेट के कारोबार में आई चमक ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रोशन किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख क्षेत्र ‘सिविल इंजीनियिरग’ भी है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाले अधिकांश छात्र सिविल इंजीनियरिंग की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। वह रियल एस्टेट के अलावा भी कई सारे कंट्रक्शन कार्य जैसे पुल निर्माण, सड़कों की रूपरेखा, एयरपोर्ट, ड्रम, सीवेज सिस्टम आदि को अपने कौशल द्वारा आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं।
क्या है सिविल इंजीनियरिंग?
जब भी कोई योजना बनती है तो उसके लिए पहले प्लानिंग, डिजाइनिंग व संरचनात्मक कार्यों से लेकर रिसर्च एवं सॉल्यूशन तैयार करने का कार्य किया जाता है। यह कार्य किसी सामान्य व्यक्ति से न कराकर प्रोफेशनल लोगों से ही कराया जाता है, जो सिविल इंजीनियरों की श्रेणी में आते हैं। यह पूरी पद्धति ‘सिविल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों को किसी प्रोजेक्ट, कंस्ट्रक्शन या मेंटेनेंस के ऊपर कार्य करना होता है। साथ ही इस कार्य के लिए उनकी जिम्मेदारी भी तय होती है। ये स्थानीय अथॉरिटी द्वारा निर्देशित किए जाते हैं। किसी भी प्रोजेक्ट एवं परियोजना की लागत, कार्य-सूची, क्लाइंट्स एवं कांट्रेक्टरों से संपर्क आदि कार्य भी सिविल इंजीनियरों के जिम्मे होता है।
काफी व्यापक है कार्य क्षेत्र सिविल
 इंजीनियरिंगका कार्यक्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जरूरत इस बात की होती है कि छात्र अपनी सुविधानुसार किस क्षेत्र का चयन करते हैं। इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में हाइड्रॉलिक इंजी..., मेटेरियल इंजी..., स्ट्रक्चरल इंजी.....,  अर्थक्वेक इंजी., अर्बन इंजी..., एनवायर्नमेंटल इंजी..., ट्रांसपोर्टेशन इंजी... और जियो टेक्निकल इंजीनियरिंग आदि आते हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी कार्य की संरचना बढ़ती जा रही है। प्रमुख कंपनियों के भारत आने से यहां भी संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।
सिविल इंजीनियर बनने की योग्यता सिविल
 इंजीनियर बनने के लिए पहले छात्र को बीटेक या बीई करना होता है, जो 10+2 (भौतिकी, रसायन शास्त्र व गणित) या समकक्ष परीक्षा में उच्च रैंक प्राप्त करने के बाद ही संभव हो पाता है, जबकि एमएससी या एमटेक जैसे पीजी कोर्स के लिए बैचलर डिग्री होनी आवश्यक है। इन पीजी कोर्स में दाखिला प्रवेश परीक्षा के जरिए हो पाता है। इंट्रिग्रेटेड कोर्स करने के लिए 10+2 होना जरूरी है। बारहवीं के बाद पॉलिटेक्निक के जरिए सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स भी कराया जाता है, जो कि डिप्लोमा श्रेणी में आते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया का स्वरूपइस में
 दो तरह से प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। एक पॉलीटेक्निनक तथा दूसरा जेईई व सीईई। इसमें सफल होने के बाद ही कोर्स में दाखिला मिलता है। कुछ ऐसे भी संस्थान हैं, जो अपने यहां अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं। बैचलर डिग्री के लिए आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा जेईई (ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम) के जरिए तथा पीजी कोर्स के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा सीईई (कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम) के आधार पर होती है।
ली जाने वाली फीस सिविल
 इंजीनियरिंग के कोर्स के लिए वसूली जाने वाली फीस अधिक होती है। बात यदि प्राइवेट संस्थानों की हो तो वे छात्रों से लगभग डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिवर्ष फीस लेते हैं, जबकि आईआईटी स्तर के संस्थानों में एक से डेढ़ लाख प्रतिवर्ष की सीमा होती है। इसमें काफी कुछ संस्थान के इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है, जबकि प्राइवेट संस्थानों का प्रशिक्षण शुल्क विभिन्न स्तरों में होता है।
आवश्यक अभिरुचि सिविल
 इंजीनियर की नौकरी काफी जिम्मेदारी भरी एवं सम्मानजनक होती है। बिना रचनात्मक कौशल के इसमें सफलता मिलनी या आगे कदम बढ़ाना मुश्किल है। नित्य नए प्रोजेक्ट एवं चुनौतियों के रूप में काम करना पड़ता है। एक सिविल इंजीनियर को शार्प, एनालिटिकल एवं प्रैक्टिकल माइंड होना चाहिए। इसके साथ-साथ संवाद कौशल का गुण आपको लंबे समय तक इसमें स्थापित किए रखता है, क्योंकि यह एक प्रकार का टीमवर्क है, जिसमें लोगों से मेलजोल भी रखना पड़ता है।
इसके अलावा आप में दबाव में बेहतर करने, समस्या का तत्काल हल निकालने व संगठनात्मक गुण होने चाहिए, जबकि तकनीकी ज्ञान, कम्प्यूटर के प्रमुख सॉफ्टवेयरों की जानकारी, बिल्डिंग एवं उसके सुरक्षा संबंधी अहम उपाय, ड्रॉइंग, लोकल अथॉरिटी व सरकारी संगठनों से बेहतर तालमेल, प्लानिंग का कौशल आदि पाठय़क्रम का एक अहम हिस्सा हैं।
रोजगार से संबंधित क्षेत्र 
एक
 सिविल इंजीनियर को सरकारी विभाग, प्राइवेट और निजी क्षेत्र की इंडस्ट्री, शोध एवं शैक्षिक संस्थान आदि में काम करने का अवसर प्राप्त होता है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसमें संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण रियल एस्टेट में आई क्रांति ही है। इसके चलते हर जगह बिल्डिंग, शॉपिंग, मॉल, रेस्तरां आदि का निर्माण किया जा रहा है। यह किसी भी यूनिट को रिपेयर, मेंटेनेंस से लेकर कंस्ट्रक्शन तक का कार्य करते हैं। बीटेक के बाद रोड प्रोजेक्ट, बिल्डिंग वक्र्स, कन्सल्टेंसी फर्म, क्वालिटी टेस्टिंग लेबोरेटरी या हाउसिंग सोसाइटी में अवसर मिलते हैं। केन्द्र अथवा प्रदेश सरकार द्वारा भी काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से रेलवे, प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी, मिल्रिटी, इंजीनियरिंग सर्विसेज, कंसल्टेंसी सर्विस भी रोजगार से भरे हुए हैं। अनुभव बढ़ने के बाद छात्र चाहें तो अपनी स्वयं की कंसल्टेंसी सर्विस खोल सकते हैं।
इस रूप में कर सकते हैं काम सिविल
इंजीनियरिंग
कंस्ट्रक्शन प्लांट इंजीनियर
टेक्निशियन
प्लानिंग इंजीनियर
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट इंजीनियर
असिस्टेंट इंजीनियर
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
सुपरवाइजर
प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर
साइट/प्रोजेक्ट इंजीनियर
सेलरीइसमें मिलने वाली सेलरी ज्यादातर केन्द्र अथवा राज्य सरकार के विभाग पर निर्भर करती है, जबकि प्राइवेट कंपनियों का हिसाब उससे अलग होता है। बैचलर डिग्री के बाद छात्र को 20-22 हजार रुपए प्रतिमाह तथा दो-तीन साल का अनुभव होने पर 35-40 हजार के करीब मिलने लगते हैं। मास्टर डिग्री करने वाले सिविल इंजीनियरों को 25-30 हजार प्रतिमाह तथा कुछ वर्षों के बाद 45-50 हजार तक हासिल होते हैं। इस फील्ड में जम जाने के बाद आसानी से 50 हजार रुपये तक कमाए जा सकते हैं। विदेशों में तो लाखों रुपए प्रतिमाह तक की कमाई हो जाती है।
एजुकेशन लोनइस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख व विदेशों में अध्ययन के लिए 20 लाख तक लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी
आवश्यक है।
प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट-
 www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खडगपुर, चेन्नई, रुड़की में भी इसकी शाखाएं मौजूद हैं)
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट
www.bitmesra.ac.in
दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.dce.edu
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट
www.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट-
  www.nicmar.ac.in( गुड़गांव, बेंग्लुरू, पुणे, मुंबई, गोवा में भी शाखाएं मौजूद)
 
फायदे एवं नुकसान
बड़े शहरों में अन्य प्रोफेशनल्स की अपेक्षा न्यू कमर को अधिक सेलरी
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बूम आने से प्रोफेशनल्स की भारी मांग
समाज व देश की प्रगति में भागीदार बनने पर अतिरिक्त खुशी
कई बार निर्धारित समय से अधिक काम करने से थकान की स्थिति
चिह्न्ति क्षेत्रों में शिफ्ट के रूप में काम करने की आवश्यकता
जॉब के सिलसिले में अधिक यात्राएं परेशानी का कारण

Friday, January 19, 2018

फर्नीचर डिजाइनिंग में करियर

एक समय तक फर्नीचर डिजाइनिंग का काम कारपेंटर ही करते थे, लेकिन आज के दौर में यह एक अलग प्रोफेशन बन चुका है। अगर आप की भी इसमें रुचि है और आप क्रिएटिव हैं तो फर्नीचर डिजाइनर बनकर करियर संवार सकते हैं। संबंधित ट्रेनिंग हासिल कर आप किसी कंपनी में जॉब कर सकते हैं या फिर अपना कारोबार भी शुरू कर सकते हैं। इस बारे में विस्तार से जानिए

पर्सनल स्किल्स
फर्नीचर डिजाइनिंग के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए आपमें क्रिएटिव और आर्टिस्टिक सेंस का मजबूत होना अति आवश्यक है, साथ ही कम्युनिकेशन स्किल अच्छी होनी चाहिए। मार्केटिंग स्किल्स और बिजनेस की भी समझ अनिवार्य है। फर्नीचर डिजाइनिंग के क्षेत्र में काम करने के लिए मार्केट में डिजाइनिंग को लेकर क्या कुछ नया किया जा रहा है, उस ओर भी पैनी नजर रखनी होती है क्योंकि फर्नीचर डिजाइनर का काम एक बेजान लकड़ी में डिजाइन के जरिए उसे आकर्षक रूप देना होता है।

बढ़ रही है डिमांड
फर्नीचर डिजाइनिंग व्यवसाय अब केवल कारपेंटर का काम नहीं रह गया है, बल्कि इसमें कुशल डिजाइनरों की मांग व्यापक स्तर पर बढ़ी है। बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले पांच वर्षों में बाजार में तकरीबन एक लाख फर्नीचर डिजाइनरों की मांग होगी।उल्लेखनीय है कि फर्नीचर डिजाइनिंग में पैसे कमाने के साथ-साथ अपनी कलात्मक क्षमता को अभिव्यक्त करने का मौका और सृजन की संतुष्टि का अहसास भी मिलता है।

एंट्री प्रोसेस
आमतौर पर फर्नीचर डिजाइनिंग कोर्स में प्रवेश के लिए शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास है, लेकिन कुछ संस्थानों में नामांकन के लिए आवेदन करते समय उम्मीदवार का किसी भी विषय  से 12वीं पास होना आवश्यक है। कुछ समय पहले तक फर्नीचर डिजाइनिंग के विभिन्न कोर्स सामान्यत: डिजाइनिंग केमुख्य कोर्स केअंतर्गत ही कराए जाते थे लेकिन वर्तमान में कई संस्थाओं में फर्नीचर डिजाइनिंग एक स्वतंत्र स्ट्रीम के रूप में भी पढ़ाया जाने लगा है।

मेन कोर्सेस
ट्रेनिंग कोर्सेस की बात करें तो इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए कई तरह के प्रोफेशनल कोर्स उपलब्ध हैं। कंप्यूटर एडेड डिजाइनिंग के जरिए भी फर्नीचर कला सीखी जा सकती हैै। इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए फर्नीचर डिजाइनिंग में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्स, बैचलर डिग्री कोर्स उपलब्ध हैं। सर्टिफिकेट कोर्स की अवधि एक साल की होती है, जबकि डिप्लोमा कोर्स दो साल की अवधि का होता है। फर्नीचर डिजाइनिंग केकई पाठ्यक्रमों केलिए प्रशिक्षण संस्थानों में प्रवेश अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद साक्षात्कार में उत्तीर्ण होने के बाद दिया जाता है। इस परीक्षा में आपकी कलात्मक प्रतिभा और सोच को भी परखा जाता है। देश के प्रतिष्ठित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ डिजाइनिंग, अहमदाबाद में फर्नीचर डिजाइनिंग केपोस्ट ग्रेजुएट कोर्स उपलब्ध हैं। यहां प्रवेश केलिए अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा इंटीरियर डिजाइनिंग के तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स में भी फर्नीचर डिजाइनिंग एक महत्वपूर्ण भाग होता है। इंटीरियर डिजाइनिंग के पाठ्यक्रम में दाखिला लेने के बाद फर्नीचर डिजाइनिंग में अल्पकालिक विशेषज्ञता कोर्स भी किया जा सकता है

जॉब आॅप्शंस
दिनों-दिन बढ़ती मांग और स्वर्णिम भविष्य की कल्पनाओं के कारण फर्नीचर डिजाइनिंग करियर के रूप में आज युवाओं में बहुत तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। किसी प्रतिष्ठित संस्थान से फर्नीचर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद किसी भी डिजाइनर के साथ काम किया जा सकता है। फर्नीचर डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद अपना व्यवसाय भी शुरू किया जा सकता है या इस क्षेत्र में काम कर रही प्रतिष्ठित कंपनियों से जुड़कर काम कर सकते हैं। भारत में फर्नीचर निर्माण के क्षेत्र में कई विदेशी कंपनियाँ भी आ चुकी हैं। रचनात्मकता और नए डिजाइन के लिए कुशलता के साथ-साथ प्रशिक्षण की भी जरूरत होती है इसीलिए क्षेत्र में करियर की असीम संभावनाओं को देखते हुए अनेक संस्थानों ने फर्नीचर डिजाइनिंग के कोर्स शुरू किए हैं।
आप इस क्षेत्र में कई बड़ी कंपनियों के लिए डिजाइनिंग का कार्य कर सकते हैं। कंप्यूटर स्किल्स और कंप्यूटर वर्क की मदद से अपने कार्य को अंजाम दे सकते हैं। अगर आप अपना स्वयं का रोजगार शुरू करना चाहते हैं,तो डिग्री या डिप्लोमा के आधार पर बैंक से लोन मिल जाता है। फर्नीचर की कई बड़ी-बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां समय-समय पर अपने यहां नियुक्तियां निकालती हैं। इसके अलावा कई प्रशिक्षण संस्थान भी इस फील्ड के अनुभवी लोगों को रोजगार केअवसर मुहैया कराते हैं।

इनकम
फर्नीचर डिजाइनिंग के क्षेत्र में अनुभव का महत्व सबसे ज्यादा है। उसी आधार पर बाजार में प्रोफेशनल की मांग बढ़ती है। इस फील्ड में अनुभव के आधार पर ही इनकम का दायरा निर्धारित होता है। आजकल फर्नीचर डिजाइनर्स के लिए स्वतंत्र रूप से कार्य करना काफी महत्वपूर्ण है। इस तरह आप एक साथ कई कंपनियों से जुड़ सकते हैं और उनकेलिए डिजाइनिंग कर सकते हैं। प्रशिक्षुओं से कंप्यूटर स्किल्स और कंप्यूटर वर्क की उम्मीद की जाती है। इंटीरियर  डिजाइनिंग केक्षेत्र में हुए क्रांतिकारी बदलाव ने फर्नीचर डिजाइनिंग को आज अच्छी इनकम वाला व्यवसाय बना दिया है। फर्नीचर डिजाइनर का शुरुआती वेतन दस से बीस हजार रुपए प्रतिमाह तक हो सकता है। इसकेबाद अनुभव के आधार पर वेतन बढ़ता जाता है। अगर आप स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं तो आय लाखों रुपए में हो सकती है।

प्रमुख संस्थान
एनआईडी, अहमदाबाद
गवर्नमेंट पोलीटेक्निक कॉलेज, चंडीगढ़
इंस्टीट्यूट आॅफ फर्नीचर डिजाइनिंग, पटियाला
गवर्नमेंट पॉलीटेक्निक कॉलेज, लखनऊ
इंडियन प्लाइवुड इंडस्ट्रीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, बैंगलुरु

Wednesday, January 17, 2018

फिजिक्स एक्सपर्ट्स

भारत में साइंस के लिए नए दरवाजे लगातार खुलते जा रहे हैं। मेक इन इंडिया, मंगलयान और रक्षा क्षेत्र में किए जा रहे अनुसंधान निरंतर ऐसे वैज्ञानिकों की मांग कर रहे हैं, जो फिजिक्स को गहराई से समझते हों और जिनमें कुछ नया कर दिखाने की ललक हो। इससे पहले भारत को इतने बेहतरीन प्लेटफाॅर्म के तौर पर नहीं देखा जाता था। इस बदलती स्थिति ने फिजिक्स को इस क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए एक बेहतरीन करियर के रूप में तब्दील कर दिया है। वास्तविकता में फिजिक्स को बेसिक साइंस के रूप में देखा जाता है और अंततः यह साइंस की सभी शाखाओं को किसी न किसी तरह प्रभावित करता ही है। अपनी इस विशेषता की वजह से ही अन्य क्षेत्रों में भी फिजिक्स की समझ रखने वाले विशेषज्ञों की भारी मांग पैदा हो गई है। यही वजह है कि स्पेस इंडस्ट्री से लेकर साइकिल उद्योग तक सभी, लगातार खुद को बेहतर बनाने और उपभोक्ताओं के लिए नए उत्पाद खोज निकालने के लिए फिजिक्स एक्सपर्ट्स की तलाश कर रहे हैं।
क्या पढ़ना होगा
भारत में अब इस विषय को लेकर कई स्पेशलाइज्ड कोर्सेज की शुरुआत की जा चुकी है। इस क्षेत्र में बीएससी इन अप्लाइड फिजिक्स, फिजिकल साइंसेज, फिजिक्स विद अलाइड केमिस्ट्री, फिजिक्स विद अलाइड मैथेमेटिक्स, एमएससी इन अप्लाइड फिजिक्स, एमफिल इन फिजिक्स, बायोफिजिक्स, जियोफिजिक्स, मरीन जियोफिजिक्स, रिन्युएबल एनर्जी, एस्ट्रोफिजिक्स, इंजीनियरिंग फिजिक्स, मेडिकल फिजिक्स, साॅलिड स्टेट फिजिक्स, न्यूक्लियर फिजिक्स एंड टेक्नोलाॅजी, केमिकल थर्माेडायनेमिक्स, काइनेमेटिक्स, मटीरिअॅल साइंसेज, न्यूक्लियर फिजिक्स, फाइबर आॅप्टिकल फिजिक्स, फ्लुइड फिजिक्स, माॅलिक्यूलर फिजिक्स और प्लाज्मा फिजिक्स में स्नातकोतर व पीएचडी करके रिसर्च फील्ड में अच्छे अवसर हासिल किए जा सकते हैं।
यहां से कर सकते हैं पढ़ाई
भारत की लगभग सभी यूनिवर्सिटीज फिजिक्स की पढ़ाई करवाती हैं। इसके अलावा प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स के लिए आईआईटीज, टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ फंडामेंटल रिसर्च, इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ साइंस, बेंगलुरु और जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलाॅजिकल युनिवर्सिटी फिजिक्स की अलग-अलग शाखाओं में विशेषज्ञता हासिल करने में मदद करते हैं।
काम के अवसर
फिजिक्स विशेषज्ञों के लिए यूं तो पूरी दुनिया में ही अवसरों की कमी नहीं है, लेकिन भारत में भी अब बेहतरीन करियर अवसर मौजूद हैं। देश के सरकारी क्षेत्र में भाभा एटॉमिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आॅर्गनाइजेशन और उसकी शाखा साॅलिड स्टेट फिजिक्स लैबोरेट्री, इंडियन स्पेस रिसर्च आॅर्गनाइजेशन, स्पेस एप्लीकेशन सेंटर्स, नेशनल एटमाॅस्फेयरिक रिसर्च लैबोरेट्री, इंटर यूनिवर्सिटी एक्सेलरैटर सेंटर, इंदिरा गांधी सेंटर फाॅर एटाॅमिक रिसर्च, राजा रमन्ना सेंटर आॅफ एंडवास्ड टेक्नोलाॅजी, वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रोन सेंटर, यूरेनियम कॉर्पोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड, न्यूक्लियर पावर काॅर्पोरेशन आॅफ इंडिया लिमिटेड, न्यूक्लियर फ्यूल काॅम्प्लेक्स, हेवी वाॅटर बोर्ड और एटाॅमिक मिनरल डायरेक्ट जैसी संस्थाओं को फिजििक्स एक्सपर्ट्स की हमेशा आवश्यकता रहती है।
इसके अलावा शोध संस्थानों - फिजिक्स रिसर्च लैबोरेट्री, इंस्टीट्यूट आॅफ प्लाज्मा रिसर्च, इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फाॅर एस्ट्रोनाॅमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट आॅफ आॅब्जर्वेशनल साइंसेज, सेंटर फाॅर लिक्विड क्रिस्टल रिसर्च में शोधार्थी के तौर पर सुनहरे करियर की तलाश की जा सकती है। निजी क्षेत्र में लैबोरेट्रीज और संबंधित संस्थाओं, शैक्षणिक संस्थाओं, कृषि क्षेत्र उपकरण उद्योग, मेडिकल, पावर जनरेटिंग कंपनीज, एविएशन, कंस्ट्रक्शन और पेट्रोलियम क्षेत्र में काम कर रही संस्थाओं में बेहतरीन पैकेज हासिल किया जा सकता है।

Monday, January 15, 2018

वेस्ट मैनेजमेंट से करियर बनाएं

वेस्ट मैनेजमेंट बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है, इसे लेकर कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, पर सवाल यह है, कि कितने लोग इससे परिचित हैं। कोई भी मैनेजमेंट तभी सक्सेसफुल होता है, जब उसके बारे में लोगों को अधिक से अधिक जानकारी हो। इस क्षेत्र में सफलता तभी मिलेगी जब यूथ इसे अपने करियर में शामिल करेगा। वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर भारत में कोई खास एजुकेशनल संस्थान तो नहीं हैं पर कुछ कॉलेज हैं जहां इससे जुड़े डिप्लोमा कोर्स करवाएं जाते हैं। यूथ हर नए क्षेत्र में कदम बढ़ा रहा है, ऐसे में यह नया विषय करियर बनाने के लिए अच्छा विकल्प हैं। इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के लिए क्या संभावनाएं और क्या टर्नओवर है, बताते हैं आपको –
क्या है वेस्ट मैनेजमेंट
विकासशील देश होने के कारण भारत में वेस्टेज की मात्रा तेजी से बढ़ जा रही है। वेस्ट को उसी अनुपात में दोबारा प्रयोग में लाए जाने की प्रक्रिया वेस्ट मैनेजमेंट है। इसमें रोजाना के कचरे से हर चीज को अलग-अलग व्यवस्थित किया जाता है, इसके बाद उसे रिसाइकिल किया जाता है। जिससे गंदगी तो हटती ही है, साथ ही वेस्ट मेटेरियल का दोबारा प्रयोग हो जाता है। हमारे देश में लगभग 80 प्रतिशत कचरा कार्बनिक उत्पादों, गंदगी और धूलकण का मिश्रण होता है। फिलहाल हमारे देश में वेस्ट को रिसाइकिल करने के लिए पर्याप्त तकनीक नहीं है, न ही इसे लेकर जागरुकता है।
वेस्ट मैनेजमेंट में स्टार्टअप
वेस्ट मैनेजमेंट को लेकर फिलहाल लोगों में जागरुकता नहीं है, पर दिल्ली के 3 युवाओं ने मिलकर इसे अपने स्टार्टअप में शामिल किया। अनुराग, ऋषभ और वेंकटेश ने “रिकार्ट” नाम से अपना स्टार्टअप शुरु किया, जिसमें इन्होंने  12 हजार घरों से कचरा इकट्टठा किया और इस कचरे को रिसाइकिल करने के लिए सही स्थान तक पहुंचाया। इस बिजनेस से सलाना 10 करोड़ का टर्नओवर हुआ। बिजनेस की सफलता को देखते हुए आज उनकी टीम बड़े स्तर पर काम कर रही हैं। इस स्टार्टअप से शहर की गंदगी तो कम हुई साथ ही दूसरे युवाओं को भी इस क्षेत्र के जुड़ी संभावनाओं के बारे में पता चला।
इन इंस्टीट्यूट से करें कोर्स
– इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरमेंट मैनेजमेंट, मुंबई।
– डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद।
– गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी हिसार।
– यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर।
– गुरु गोविन्द सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी नई दिल्ली
इन सभी इंस्टीट्यूट में पर्यावरण मुख्य विषय है, पर इसके साथ वेस्ट मैनेजमेंट के डिप्लोमा और सॉर्ट कोर्स चलाए जाते हैं।
संभावनाओं से भरा क्षेत्र 
बढ़ती जनसंख्या के साथ कचरे में भी वृद्धि होती जा रही है। देश विकास की राह में जितना आगे बढ़ता जा रहा है उतना ही वेस्ट भी एकत्रित होता जा रहा है। यहीं वजह है, कि इस ओर रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। जागरुकता के स्तर पर इस क्षेत्र में फिलहाल कोई काम नहीं हो रहे हैं, पर रोजगार में वृद्धि जरुर हो रही है। हर शहर में वेस्ट मैनेजमेंट का काम शुरु हो गया है, कचरे को रिसाइकिल किया जा रहा है और ये काम करने वाले एक्सपर्ट की मासिक आय 40 से 50 हजार के बीच है। आने वाले दिनों में इस क्षेत्र में युवाओं को और रोजगार मिलेंगे।

Sunday, January 14, 2018

कोशिकाओं की आणविक जीव विज्ञान में पीएचडी

डॉक्टरेट कार्यक्रम 'कोशिकाओं की आणविक जीव विज्ञान "न्यूरोसाइंसेस और आण्विक बायोसाइंसेज के लिए गौटिंगेन ग्रेजुएट स्कूल (GGNB) के एक सदस्य है। यह आणविक बायोसाइंसेज के लिए गौटिंगेन केंद्र (GZMB) द्वारा आयोजित किया जाता है और गौटिंगेन विश्वविद्यालय, biophysical रसायन विज्ञान, प्रायोगिक चिकित्सा के लिए मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट के लिए मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट, और जर्मन प्राइमेट सेंटर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है।

शोध उन्मुख कार्यक्रम और अंग्रेजी में सिखाया जाता है, जो जैव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, चिकित्सा के क्षेत्र में एक मास्टर की डिग्री (या समकक्ष), या संबंधित क्षेत्रों रखने वाले छात्रों के लिए खुला है।

कार्यक्रम है जो कोशिकाओं के अध्ययन के लिए उत्साह का हिस्सा पिछले शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों से छात्रों को स्वीकार करता है। प्रशिक्षण कैसे सेल भाग्य और टोपोलॉजी निर्धारित कर रहे हैं की एक तुलनात्मक समझ प्राप्त करने के उद्देश्य से है, कैसे व्यापक जीनोमिक विश्लेषण उपकरणों को लागू करने का एक महत्वपूर्ण भावना, और स्थापित करने और सेलुलर कार्यों के लिए वैचारिक मॉडल का परीक्षण करने की क्षमता।
अनुसंधान

यह कार्यक्रम किया जा रहा है कि कैसे कोशिकाओं की 'subcellular मॉड्यूल' आनुवंशिक जानकारी, विनियमन, शरीर विज्ञान और टोपोलॉजी के स्तर पर बातचीत और समारोह अग्रणी सवाल के साथ, सेल और उसके विनियामक नेटवर्क के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण के उद्देश्य से अनुसंधान गतिविधियों को एकजुट करती है।

मॉडल प्रणाली, प्रोकीर्योट्स (जीवाणु और आर्किया) और यूकेरियोटिक रोगाणुओं संयंत्र के लिए और रोग मॉडल सहित पशु कोशिकाओं से लेकर संरक्षित सिद्धांतों की पहचान सक्षम करने से। इसके अलावा, प्लेटफार्मों जीनोम, प्रतिलेखन हस्ताक्षर, बड़े पैमाने पर प्रोटीन की पहचान, metabolomics, इमेजिंग, साथ ही बड़े पैमाने पर विश्लेषण और मात्रात्मक मॉडलिंग, संकाय सदस्यों, जो जैव सूचना विज्ञान में विशेषज्ञ हैं के द्वारा कवर के विश्लेषण के लिए उपलब्ध हैं।

दो प्रमुख विषयों के आसपास अनुसंधान केन्द्रों। सेल गुण और सेल भाग्य नियंत्रण, पूछ के साथ पहली सौदों कैसे कोशिकाओं को उनके प्रसार और अस्तित्व, उनके भेदभाव और समारोह, और बाहरी पोषक तत्वों से तनाव को लेकर संकेतों के लिए उनकी प्रतिक्रिया को नियंत्रित। इन परस्पर घटना विनियामक नेटवर्क के आधार पर कर रहे हैं, और उनकी समझ बहुत राज्यों में आम लक्षण की पहचान करने से फायदा होता है। दूसरा विषय टोपोलॉजी और intracellular डिब्बों की गतिशीलता के साथ संबंधित है। एक प्रमुख कार्य, एकीकृत सिद्धांतों और कैसे कोशिकाओं को प्राप्त करने के व्यक्तिगत विवरण की पहचान को बनाए रखने और उनके स्थानिक संगठन को समायोजित करने के लिए है।
अध्ययन

डॉक्टरेट कार्यक्रम 'कोशिकाओं की आणविक जीव विज्ञान "न्यूरोसाइंसेस और आण्विक बायोसाइंसेज के लिए गौटिंगेन ग्रेजुएट स्कूल (GGNB) के एक सदस्य है। ग्रेजुएट स्कूल एक संयुक्त मॉड्यूलर प्रशिक्षण कार्यक्रम है जो GGNB के बारह डॉक्टरेट कार्यक्रमों में योगदान के लिए प्रदान करता है और कहा कि सभी GGNB छात्रों के लिए खुला है। एक व्याख्यान और संगोष्ठी कार्यक्रम के अलावा, प्रशिक्षण (1) थीसिस समितियों द्वारा व्यक्तिगत परामर्श, (2) विशेष प्रशिक्षण प्रयोगशालाओं में 1-3 सप्ताह के गहन तरीकों पाठ्यक्रम, के होते हैं प्रयोगशालाओं में (3) 2-3 दिन विधियों पाठ्यक्रम भाग लेने वाले शिक्षकों की, (4) इस तरह के वैज्ञानिक लेखन, प्रस्तुति कौशल, संचार, परियोजना प्रबंधन, टीम के नेतृत्व कौशल, संघर्ष के संकल्प, नैतिकता, और कैरियर के विकास, और (5) के छात्र का आयोजन वैज्ञानिक बैठकों, उद्योग के रूप में व्यावसायिक कौशल पाठ्यक्रम यात्रा, और सांस्कृतिक घटनाओं। छात्रों के पाठ्यक्रम और घटनाओं की एक बड़ी संख्या में से चुनने के द्वारा अपनी व्यक्तिगत पाठ्यक्रम दर्जी करने में सक्षम हैं।

कार्यक्रम है जो कोशिकाओं के अध्ययन के लिए उत्साह का हिस्सा पिछले शिक्षा के विभिन्न क्षेत्रों से छात्रों को स्वीकार करता है। प्रशिक्षण कैसे सेल भाग्य और टोपोलॉजी निर्धारित कर रहे हैं की एक तुलनात्मक समझ प्राप्त करने के उद्देश्य से है, कैसे व्यापक जीनोमिक विश्लेषण उपकरणों को लागू करने का एक महत्वपूर्ण भावना, और स्थापित करने और सेलुलर कार्यों के लिए वैचारिक मॉडल का परीक्षण करने की क्षमता। एक तुलनात्मक व्याख्यान श्रृंखला, आम तौर पर प्रति सत्र दो या दो से अधिक वक्ताओं द्वारा प्रस्तुत किया, विभिन्न प्रजातियों और यहां तक ​​कि राज्यों में अनुरूप घटनाएं शामिल हैं। विधियों पाठ्यक्रम जीनोम, प्रतिलेखन हस्ताक्षर, बड़े पैमाने पर प्रोटीन की पहचान, सेल आकृति विज्ञान और विनियमन, metabolomics के उच्च सामग्री के विश्लेषण, साथ ही बड़े पैमाने पर विश्लेषण और मात्रात्मक मॉडलिंग प्रतिभागियों जो जैव सूचना विज्ञान में विशेषज्ञता के माध्यम से विश्लेषण में सभी छात्रों की सहायता करेंगे।

प्रायोगिक अनुसंधान डॉक्टरेट के अध्ययन के प्रमुख घटक का गठन किया और डॉक्टरेट कार्यक्रम के एक संकाय सदस्य की प्रयोगशाला  में आयोजित किया जाता है। डॉक्टरेट अनुसंधान परियोजनाओं को एक स्कूल चौड़ा प्रशिक्षण कार्यक्रम, सभी GGNB छात्रों को, जो एक जीवंत अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान समुदाय के सदस्य हैं के लिए पेशकश से पूरित कर रहे हैं। डॉक्टरेट कार्यक्रम की भाषा अंग्रेजी है।

Thursday, January 11, 2018

डर्मेटोलॉजी में करियर

डिसिन में स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विकल्पों में ‘डर्मेटोलॉजी’ काफी लोकप्रिय हो गया है। मौजूदा वक्त में ‘फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन’ कहावत को इतनी गंभीरता से लिया जा रहा है कि व्यक्ति के रूप को व्यक्तित्व का महत्वपूर्ण अंग माना जाने लगा है। इस कारण लोगों में अपने रूप और व्यक्तित्व को लेकर चिंता का स्तर भी तेजी से बढ़ रहा है। यहां तक कि कॉलेज जाने वाले छात्र भी खुद को आकर्षक दिखाने की गरज से काफी रुपये खर्च कर रहे हैं।
अपने रूप को लेकर लोगों में गंभीरता का स्तर इस कदर बढ़ गया है कि वह चेहरे पर छोटा-सा मुंहासा हो जाने भर से परेशान हो उठते हैं। कई बार वह ऐसी परेशानियों को इस कदर अपने ऊपर हावी कर लेते हैं कि घर से बाहर निकलना भी छोड़ देते हैं। ऐसे माहौल में रूप निखारने का दावा करने वाली फेयरनेस क्रीमों की मांग भी तेजी से बढ़ रही है। खुजली और घमौरियों (रैशेज) जैसे त्वचा संबंधी रोग आम हो चुके हैं। गर्मी और बरसात के मौसम में इनकी अधिकता काफी बढ़ जाती है। इनके सही उपचार के लिए डॉंक्टर का परामर्श जरूरी होता है। कई बार उपचार के लिए डॉंक्टर के पास कुछ दिनों या हफ्तों के अंतराल पर बार-बार जाने की जरूरत होती है। ऐसे में लोग अपनी त्वचा के लिए ज्यादा खर्च करने में जरा भी नहीं हिचकते।
त्वचा और रूप के प्रति लोगों के बढ़ती सजगता के कारण डर्मेटोलॉजिस्ट की मांग में इजाफा हो रहा है। डर्मेटोलॉजी मेडिसिन की एक शाखा है, जिसमें त्वचा और उससे संबंधित रोगों के निदान का अध्ययन किया जाता है। यह एक स्पेशलाइज्ड विषय है, जिसकी पढ़ाई एमबीबीएस के बाद होती है। डर्मेटोलॉजिस्ट रोगों के उपचार के अलावा त्वचा, बाल और नाखूनों से संबंधित कॉस्मेटिक समस्याओं का भी निदान करते हैं।
डर्मेटोलॉजिस्ट का काम
इनका मुख्य कार्य लोगों की उन बीमारियों का उपचार करना होता है, जो त्वचा, बाल, नाखूनों और मुंह पर दुष्प्रभाव डालती हैं। एलर्जी से प्रभावित त्वचा, त्वचा संबंधी दागों, सूर्य की रोशनी में झुलसे या अन्य तरह के विकारों से ग्रसित त्वचा को पूर्व अवस्था में लाने में ये रोगियों की मदद करते हैं। इसके लिए वह दवाओं या सर्जरी का इस्तेमाल करते हैं। त्वचा कैंसर और उसी तरह की बीमारियों से जूझ रहे रोगियों के उपचार में भी वह सहयोग करते हैं। क्लिनिक या अस्पताल में वह सबसे पहले मरीजों के रोग प्रभावित अंग का निरीक्षण करते हैं। जरूरी होने पर वह रोग की गंभीरता जांचने के लिए संबंधित अंग से रक्त, त्वचा या टिश्यू का नमूना भी लेते हैं। इन नमूनों के रासायनिक और जैविक परीक्षणों से वह पता लगाते हैं कि रोग की वजह क्या है। रोग का पता लगने के बाद उपचार शुरू कर देते हैं। इस कार्य में वह दवाओं, सर्जरी, सुपरफिशियल रेडियोथेरेपी या अन्य उपलब्ध उपचार विधियों का उपयोग करते हैं।
अन्य कार्य
कई बार शरीर में पोषक तत्वों की कमी के कारण भी त्वचा संबंधी रोग हो जाते हैं। ऐसे में डर्मेटोलॉजिस्ट रोगियों की स्थिति को देखते हुए उनके लिए ‘डाइट प्लान’ भी तैयार करते हैं। इसी तरह वह रोगियों को व्यायाम के साथ त्वचा और बालों की देखरेख से संबंधित सलाह भी देते हैं। इसके अलावा मरीजों के उपचार से संबंधित चिकित्सकीय दस्तावेजों (दी गई दवाओं और पैथोलॉजिकल जांच से संबंधित) का प्रबंधन भी उनके कार्यक्षेत्र का एक हिस्सा है।
करते हैं कॉस्मेटिक सर्जरी: चेहरे और अन्य अंगों को आकर्षक बनाने के लिए डर्मेटोलॉजिस्ट कॉस्टमेटिक सर्जरी भी करते हैं। त्वचा  की झुर्रियों और दाग-धब्बों को खत्म करने के लिए वह डर्माब्रेशन जैसी तकनीक और बोटोक्स इंजेक्शन का इस्तेमाल करते हैं। इन तकनीकों के अलावा वह लेजर थेरेपी का भी उपचार में उपयोग करते हैं। इस तकनीक की मदद से वह झुर्रियों और त्वचा पर होने वाले सफेद दाग का ईलाज करते हैं।
योग्यता: फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी के साथ बारहवीं पास करके एमबीबीएस डिग्री प्राप्त करना डर्मेटोलॉजिस्ट बनने की पहली शर्त है। इसके बाद डर्मेटोलॉजी, वेनेरियोलॉजी और लेप्रोलॉजी में तीन वर्षीय एमडी या दो वर्षीय डिप्लोमा पाठय़क्रम की पढ़ाई की जा सकती है।
स्पेशलाइजेशन के लिए उपलब्ध विषय
मेडिकल डर्मेटोलॉजी         सर्जिकल डर्मेटोलॉजी
डर्मेटोपैथोलॉजी                हेअर एंड नेल डिस्ऑर्डर्स
जेनिटल स्किन डिजीज       पीडियाट्रिक डर्मेटोलॉजी
इम्यूनोडर्मेटोलॉजी             पब्लिस्टरिंग डिस्ऑर्डर्स
कनेक्टिव टिश्यू डिजीज     फोटोडर्मेटोलॉजी
कॉस्मेटिक डर्मेटोलॉजी      जेनेटिक स्किन डिजीज
संभावनाएं
डर्मेटोलॉजी विषय के पोस्ट ग्रेजुएट पाठय़क्रम की पढ़ाई के बाद आप किसी निजी अस्पताल, नर्सिंग होम या सरकारी डिस्पेंसरी में डर्मेटोलॉजिस्ट के तौर पर काम कर सकते हैं। शिक्षण कार्य में रुचि होने पर आप किसी मेडिकल कॉलेज, यूनिवर्सिटी या इंस्टीटय़ूट में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में अध्यापन या शोध-कार्यों का निर्देशन भी कर सकते हैं।
संबंधित शिक्षण संस्थान
एम्स, नई दिल्ली
मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज, नई दिल्ली
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी एंड वेनेरियोलॉजी, दिल्ली यूनिवर्सिटी
एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर
एएफएमसी, पुणे
डिपार्टमेंट ऑफ डर्मेटोलॉजी, पांडिचेरी इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेज
डॉं एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु
जरूरी गुण:
अच्छा सौंदर्यबोध और स्वास्थ्य हो
मरीजों के साथ सहानुभूतिपूर्वक संवाद करने में कुशलता हो
हर तरह की स्थितियों से निपटने का पर्याप्त धैर्य हो
भावनात्मक और मानसिक रूप से मजबूत हो
दूसरों की मदद करने की इच्छा हो

Thursday, January 4, 2018

सीखें प्रोग्रामिंग की भाषा


अगर आप इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी फील्ड में एंट्री करने की प्लानिंग कर रहे हैं, तो आपको सबसे पहले आईटी फील्ड की लैंग्वेज को समझना और सीखना जरूरी है। जानते हैं आईटी इंडस्ट्री में कौन-कौन सी लैंग्वेजेज डिमांड में हैं..
सी-लैंग्वेज
सी को मदर ऑफ ऑल प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज भी कहा जाता है। सभी पॉपुलर प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज सी से ही जन्मी हैं। एटी एंड टी बेल लैब्स में काम करने के दौरान डेनिस रिची ने 1972 में इसे डेवलप किया था। सी सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाली लैंग्वेज है। दुनिया के बेहतरीन कंप्यूटर आर्किटेक्चर्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स सी-लैंग्वेज बेस्ड हैं। सी-लैंग्वेज में स्ट्रक्चर्ड प्रोग्रामिंग के साथ क्रॉस प्लेटफॉर्म प्रोग्रामिंग की भी कैपेबिलिटी है। इसके सोर्स कोड में कुछ बदलाव करके कई कंप्यूटर प्लेटफॉ‌र्म्स और ऑपरेटिंग सिस्टम्स में इस्तेमाल किया जा सकता है। यही वजह है कि माइक्रोकंट्रोलर्स से लेकर सुपरकंप्यूटर्स में सी-लैंग्वेज का इस्तेमाल होता है। 
एचटीएमएल/सीएसएस
एचटीएमएल को हाइपर टेक्स्ट मार्कअप लैंग्वेज कहा जाता है, यह व‌र्ल्ड वाइड वेब के किसी भी कंटेंट की स्ट्रक्चरिंग मार्कअप लैंग्वेज है और इंटरनेट की कोर टेक्नोलॉजी है। एचटीएमएल के जरिए किसी भी वेबसाइट की स्ट्रक्चरिंग की जाती है। इस लैंग्वेज के जरिए इमेजेज और ऑब्जेक्ट्स को इंटरैक्टिव डिजाइनिंग में कनवर्ट किया जाता है। वहीं, कैसकेडिंग स्टाइल शीट्स (सीएसएस) स्टाइल शीट लैंग्वेज है, जो एचटीएमएल में कोडेड किसी भी डॉक्यूमेंट की डिजाइनिंग करने में यूज होती है। आमतौर पर एचटीएमएल और एक्सएचटीएमएल में कोडेड वेब पेजेज को सीएसएस एप्लीकेशन के जरिए ही स्टाइल किया जाता है। इसके अलावा यह किसी भी तरह के एक्सटेंसिबल मार्कअप लैंग्वेज (एक्सएमएल), स्केलेबल वेक्टर ग्राफिक्स (एसवीजी) और एक्सएमएल यूजर इंटरफेस लैंग्वेज (एक्सयूएल) डॉक्यूमेंट्स में यूज की जाती है। टैबलेट्स, स्मार्टफोंस और क्लाउड होस्टेड सर्विसेज की डिमांड बढ़ने से इसकी काफी डिमांड है। 
पीएचपी
हाइपरटेक्स्ट प्री-प्रोसेसर यानी पीएचपी सर्वर स्क्रिप्टिंग लैंग्वेज है, जिसका यूज वेब डेवलपमेंट के साथ आम प्रोग्रामिंग लैंग्वेज में भी होता है। ओपन सोर्स होने की वजह से पीएचपी आज 24 करोड़ से ज्यादा वेबसाइट्स और 20 लाख वेब सर्वर्स में इस्तेमाल हो रहा है। कैहाइ-स्पीड स्क्रिप्टिंग और ऑगमेंटेड कंपाइलिंग कोड प्लग-इंस जैसी खासियतों के चलते इसे लैंग्वेजेज का फ्यूचर भी कहा जा रहा है। फेसबुक, विकीपीडिया और वर्डप्रेस जैसी हाई-प्रोफाइल साइट्स की पॉपुलरिटी के पीछे पीएचपी का ही हाथ है। 
जावा स्क्रिप्ट
जावा स्क्रिप्ट असल में ऑब्जेक्ट-ओरिएंटेड स्क्रिप्टिंग लैंग्वेज है, जो जावा का हल्का वर्जन है। इसे क्लाइंट-साइड लैंग्वेज भी कहा जाता है, क्योंकि ईजी कमांड्स, ईजी कोड्स होने की वजह से यह क्लाइंट-साइड वेब ब्राउजर में इस्तेमाल की जाती है। आज जावा स्क्रिप्ट का इस्तेमाल वेब पेजेज में फॉ‌र्म्स ऑथेंटिकेशन, ब्राउजर डिटेक्शन और डिजाइन इंप्रूव करने में किया जा रहा है। आपके फेवरेट ब्राउजर क्रोम एक्सटेंशंस, एपल का सफारी एक्सटेंशंस, अडोब एक्रोबैट रीडर और अडोब क्रिएटिव सूट जैसी एप्लीकेशंस जावा स्क्रिप्ट कोडिंग के बिना अधूरी हैं। 
पायथन
बेहद ईजी कोड्स होने की वजह से कोई भी इसे बेहद आसानी से सीख सकता है। इसका इस्तेमाल वेबसाइट्स और मोबाइल एप्स की स्क्रिप्ट राइटिंग में काफी किया जाता है। पायथन और थर्ड पार्टी टूल्स की मदद से किसी भी प्रोग्राम को कंपाइल किया जा सकता है। इंस्टाग्राम, पिनटेरेस्ट, गूगल और याहू समेत कई वेब एप्लीकेशंस और इंटरनेट प्लेटफॉ‌र्म्स हैं, जहां पायथन का बखूबी इस्तेमाल हो रहा है। 
एसक्यूएल
स्ट्रक्चर्ड क्वेरी लैंग्वेज यानी एसक्यूएल अपनी ओपन सोर्स होने की खासियतों के चलते डाटाबेस मैनेजमेंट सिस्टम में सबसे ज्यादा यूज की जा रही है, जिससे डाटाबेस को मल्टी-यूजर एक्सेस देना संभव हो पाया है। इस प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को अमेरिकन नेशनल स्टैंड‌र्ड्स इंस्टीट्यूट (एएनएसआइ) और इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन फॉर स्टैंड‌र्ड्स (आउएसओ) ने 1980 में 
डेवलप किया था। आज एसक्यूएल का इस्तेमाल डाटा इंसर्ट, क्वेरी, अपडेट एंड डिलीट, मोडिफिकेशन और डाटा एक्सेस कंट्रोल में किया जा रहा है।
विजुअल बेसिक
माइक्रोसॉफ्ट के डॉट नेट फ्रेमवर्क में विजुअल बेसिक का इस्तेमाल होता है और डॉट नेट फ्रेमवर्क के बिना माइक्रोसॉफ्ट विंडोज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। विजुअल बेसिक माइक्रोसॉफ्ट के डॉट नेट फ्रेमवर्क की रीढ़ की हड्डी है। 1991 में माइक्रोसॉफ्ट ने इस इरादे के साथ इसे डेवलप किया था, ताकि डेवलपर्स आसानी से इसे सीख सकें और इस्तेमाल कर सकें। इसकी मदद से ग्राफिकल यूजर इंटरफेस (जीयूआइ) एप्लीकेशंस, डाटाबेस एक्सेस, रिमोट डाटा ऑब्जेक्ट्स और एक्टिवएक्स कंट्रोल्स को डेवलप किया जा सकता है। 
5
जावा
जावा लैंग्वेज को 1990 में सन माइक्रोसिस्टम्स के जैम्स गॉस्लिंग ने डेवलप किया था। जावा पूरी तरह से ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिंग लैंग्वेज है। आज एमपी3 प्लेयर से लेकर बड़ी से बड़ी एप्लीकेशन जावा के बिना अधूरी है। जावा को दोबारा कंपाइल किए बिना ही एप्लीकेशन डेवलपर्स प्रोग्राम को किसी दूसरे प्लेटफॉर्म पर भी आसानी से चला सकते हैं यानी राइट वंस, रन एनीव्हेयर। इन दिनों जावा का इस्तेमाल एंटरप्राइजेज सॉफ्टवेयर, वेब बेस्ड कंटेंट, गेम्स, मोबाइल एप्स और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में बखूबी किया जा रहा है। 
सी++
मल्टी-पैराडाइम स्पैनिंग लैंग्वेज होने के चलते इसमें हाइ-लेवल और लो-लेवल लैंग्वेज, दोनों के फीचर हैं। सी प्रोग्रामिंग लैंग्वेज को व्यापक बनाने के लिए 1979 में इसे शुरू किया गया था। सिस्टम्स सॉफ्टवेयर, एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर, सर्वर व क्लाइंट एप्लीकेशंस और एंटरटेनमेंट सॉफ्टवेयर्स जैसे वीडियो गेम्स की लोकप्रियता के पीछे इस लैंग्वेज का अहम योगदान है। फायरफॉक्स, विनएंप और अडोबी के कई प्रोग्राम्स इस लैंग्वेज में ही लिखे गए हैं। 
ऑब्जेक्टिव-सी
ऑब्जेक्टिव-सी को ब्रैड कॉक्स और टॉम लव की कंपनी स्टेपस्टोन ने 1980 की शुरुआत में डेवलप किया था। यह ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड प्रोग्रामिग लैंग्वेज है, जिसका इस्तेमाल सी लैंग्वेज के सपोर्ट में किया जाता है। इस लैंग्वेज का सबसे ज्यादा इस्तेमाल एपल आइओएस और मैक ओएस एक्स में हो रहा है।