Monday, April 30, 2018

बाॅयोफिजिक्स में कैरियर

बाॅयोफिजिक्स उभरता हुआ क्षेत्र है और इसमें जॉब की संभावनाएं भी काफी अच्छी हैं। कैसी मिल सकती है इस फील्ड में एंट्री और क्या है फ्यूचर प्रॉस्पेक्ट, आइए नजर डालते हैं। बाॅयोफिजिक्स, फिजिक्स और बाॅयोलॉजी के बीच का ब्रिज है, जिसमें जैविक प्रक्रिया में भौतिकी के उपयोग का अध्ययन किया जाता है।
इसके अंतर्गत मोल्यूक्यूलर बाॅयोफिजिक्स, फिजियोलॉजिकल बाॅयोफिजिक्स, मेडिकल फिजिक्स, न्यूक्लियर मेडिसिन, जीन- प्रोटीन इंजीनियरिंग, बायो इंफॉर्मेटिक्स आदि का अध्ययन किया जाता है, जिनके विकास से मेडिसिन और मेडिकल तकनीक के विकास को दिशा मिलती है। इसमें करियर के विषय के बारे में लखनऊ के आईटी कॉलेज के बायोफिजिक्स के प्रोफेसर डॉ रवि कुमार बता रहे हैं...

बीमारियों के इलाज में मिलती है मदद

बाॅयोफिजिक्स से जैविक स्तर पर कैंसर सहित विभिन्न बीमारियों के बढ़ने के संबंध में होने वाले अध्ययन में मदद मिलती है। मोल्यूक्यूलर बाॅयोफिजिक्स का दूसरा क्षेत्र है, जिसमें सैद्धांतिक और कम्प्यूटेशनल तकनीक के प्रयोग से अणु के व्यवहार का प्रतिरूप तैयार किया जाता है।
इसका इस्तेमाल बीमारियों के अध्ययन और उनके इलाज के काम आते हैं। बाॅयोफिजिक्स की मदद से संक्रामक बीमारियों की पावरफुल वैक्सीन तैयार की जाती है। इस फील्ड में जो प्रोफेशनल काम करते हैं, उसे ‘बायोफिजिसिस्ट’ कहते हैं।बॉयोफिजिक्स के खास क्षेत्र
मोल्यूक्यूलर बायोफिजिक्स
इस फील्ड में मोल्यूक्यूल्स और पार्टिक्लस के संबंध मे स्टडी किया जाता है।
रेडिएशन बाॅयोफिजिक्स
इस फील्ड में ऑर्गनिज्म पर रेडिएशन जैसे- अल्फा, बीटा, गामा, एक्सरे और अल्ट्रा वायलेट लाइट का क्या असर होता है, इस पर अध्ययन किया जाता है।
साइकोलॉजिकल बाॅयोफिजिक्स
इसमें फिजिकल मेकेनिज्म द्वारा लिविंग ऑर्गनिज्म के व्यवहार और क्रिया के बारे में स्टडी किया जाता है।
मेडिकल बाॅयोफिजिक्स
इसके अंतर्गत मेडिकल ऐप्लिकेशन के क्षेत्र में बाॅयोलॉजिकल प्रोसेस के प्रभाव को जानने के लिए फिजिक्स का इस्तेमाल किया जाता है।
मैथमैटिकल और थ्योरोटिकल बाॅयोफिजिक्स
इसमें मैथमैटिकल और फिजिक्स के थ्योरी के आधार पर लिविंग ऑर्गनिज्म के व्यवहार के बारे में अध्ययन किया जाता है।

योग्यता

बायोफिजिक्स की स्डटी के लिए जरूरी है कि अंडरग्रेजुएट लेवल पर फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी सब्जेक्ट हो। भारत में ऐसे कुछ ही यूनिवर्सिटीज हैं, जो बायोफिजिक्स के अंडर ग्रेजुएट लेवल कोर्स आॅफर करती हैं। वैसे, अधिकतर बायोफिजिसिस्ट अपने करियर की शुरुआत बायोफिजिक्स की डिग्री के बाद ही की है। इसके बाद मास्टर और पीएचडी कर सकते हैं। बायोफिजिक्स कोर्स के अंतर्गत मोल्यूक्यूलर बायोफिजिक्स, मेंमब्रेंस बायोफिजिक्स, न्यूरोबायोफिजिक्स, बायोफिजिक्ट तकनीक, बायोएनर्जेटिक्स, मेडिकल बायोफिजिक्स आदि आते हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

  • आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस, नई दिल्ली
  • महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी, फैकल्टी आफ अप्लाइड साइंस, कोट्यम, केरला
  • यूनिवर्सिटी आफ कल्यानी, नाडिया, पश्चिम बंगाल
  • मणिपुर यूनिवर्सिटी, मणिपुर
  • पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़
  • यूनिवर्सिटी आफ मद्रास, चेन्नई
  • यूनिवर्सिटी आफ मुंबई, मुंबई

कार्यक्षमता

बाॅयोफिजिसिस्ट के लिए क्रिएटिव सोच होना बहुत जरूरी है। फिजिकल वर्ल्ड के प्रति जिज्ञासा होने के साथ-साथ अच्छी राइटिंग और कम्प्यूटर स्किल जरूरी है। फिजिक्स, बाॅयोलॉजी और मैथमैटिक्स विषय पर अच्छी पकड़ होने के साथ-साथ विज्ञान की दुनिया में हो रहे अद्भुत घटनाओं के प्रति दिलचस्पी रखना आवश्यक है। साथ धैर्य, दृढ़ता और काम के प्रति लगन करियर में बुलंदियों पर ले जा सकती है।

जॉब के अवसर

जो छात्र फिजिक्स और बाॅयोलॉजी में रूचि रखते हैं। वह बाॅयोफिजिक्स के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। इस फील्ड में ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट की तुलना में पीएचडी करने वाले छात्रों के लिए काफी संभावनाएं हैं। बाॅयोफिजिसिस्ट बाॅयोफिजिक्स रिसर्चर और साइंटिस्ट के रूप में गवर्नमेंट ऑर्गनाइजेशन में जॉब की तलाश कर सकते हैं। साथ ही, बाॅयोफिजिक्स से संबंधित कंपनियों में भी जॉब के खूब अवसर हैं। फॉर्मास्यूटिकल और हाईटेक बाॅयोलॉजिकल कंपनियां भी इनको हायर करती हैं। मेडिकल और डेंटल कॉलेज में भी लेक्चरर के रूप में जॉब की तलाश की जा सकती है। इसके अलावा, फॉरेंसिक लैब, केमिकल कंपनिज, फूड प्रोसेसिंग प्लांट्स, ड्रग मैन्यूफैक्चर्स, कॉस्मेटिक इंडस्ट्री, फर्टिलाइजर-पेस्टिसाइड कंपनियों में भी इनके लिए जॉब ऑप्शंस होते हैं।

सैलरी पैकेज

इस फील्ड में सैलरी अनुभव और ऑर्गनाइजेशन पर भी निर्भर करती है। हालांकि एंट्री लेवल पर भी अच्छी सैलरी की उम्मीद की जा सकती है। शुरुआती दौर में प्रतिमाह 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह सैलरी मिल जाती है। अगर आपका परफॉर्मेंस अच्छा रहता है, तो सैलरी और भी अच्छी हो सकती है, लेकिन जो रिसर्च सेक्टर में काम करते हैं, उनकी सैलरी अच्छी होने से साथ-साथ कई तरह का अलाउंस भी मिलता है।

Sunday, April 29, 2018

आधारिक संरचना प्रबंधन में कॅरियर

हमारा देश बहुत तेजी से आर्थिक विकास की डगर पर आगे बढ़ रहा है। क्रयशक्ति क्षमता के आधार पर तो भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है। इसे देखते हुए अपने देश के विकास को गति देने के लिए आधारिक संरचना का द्रुत गति से विकास बहुत जरूरी हो गया है। इस प्रक्रिया में, एक ओर शहरी आधारिक संरचना का विकास तो दूसरी ओर ग्रामीण आधारिक संरचना का विकास जरूरी है। इसमें उन परिष्कृत आधारिक संरचना का विकास तथा प्रबंधन तकनीकों का पता लगाने और उन्हें लागू करने की जरूरत है जो आधुनिकीकरण की बदलती हुई माँग को पूरा करें। दूसरी ओर गाँवों तथा ग्रामीण जनसंख्या को शेष देश से जोड़ने की आवश्यकता है। ग्रामीण परिवहन, ग्रामीण आवास, विद्युत वितरण तथा सिंचाई सुविधाओं की एक सम्पूर्ण नए दृष्टिकोण से समीक्षा की जानी चाहिए।
गौरतलब है कि सार्वजनिक आधारिक संरचना एवं सार्वजनिक-निजी सहभागिता वाली आधारिक संरचना के अतिरिक्त हमारे पास विकसित विश्व के अनुरूप ढलती निजी आधारिक संरचनाएँ जैसे मकान, दुकान, कार्यालय तथा मॉल हैं। इन सबको देखते हुए हमारे देश की केन्द्र सरकार ने निजी संस्थानों तथा विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के लिए आधारिक संरचना उद्योग के दरवाजे खोल दिए हैं जिस पर अब तक सार्वजनिक क्षेत्र का एकाधिकार था। इसे देखते हुए हमारे देश को ऐसे लोगों की जरूरत है जो विभिन्न चुनौतियों का स्थायी समाधान कर सकें। इसके लिए विशेष रूप से आधारिक संरचना प्रबंधकों की जरूरत पड़ती है जो सशक्त तकनीकी विशेषज्ञता तथा व्यवसायिक दक्षता रखते हैं।
सामान्य भाषा में कहें तो आधारिक संरचना प्रबंधन नई भौतिकीय संरचनाओं जैसे सिंचाई सुविधाओं, सड़क एवं रेल नेटवर्क, तेल तथा गैस पाइपलाइनों, ग्रामीण एवं शहरी आवास, विद्युत उत्पादन एवं वितरण एवं दूरसंचार सुविधाएँ स्थापित करने और ऐसी वर्तमान संरचनाओं के रखरखाव के कार्य से संबंधित है। आधारिक संरचना प्रबंधक विभिन्न आधारिक संरचना सेवाओं के साधनों तथा उत्पादन के लिए जिम्मेदार होते हैं। वे संकल्पनात्मक तथा व्यावहारिक स्तर पर आने वाली समस्याओं का समाधान करते हैं। आधारिक संरचना प्रबंधन एक ऐसा विशेषज्ञतापूर्ण क्षेत्र है जो तकनीकी एवं गैर तकनीकी दोनों प्रकार के उम्मीदवारों को अवसर प्रदान करता है। आधारिक संरचना प्रबंधन में एमबीए तथा स्नातकोत्तर डिप्लोमा पाठ्यक्रम भी उपलब्ध हैं। इन पाठ्यक्रमों में स्नातक के उपरांत प्रवेश लिया जा सकता है।
आधारिक संरचना प्रबंधन पाठ्यक्रमों में नई आधारिक संरचनाओं के नियोजन एवं विकास तथा मौजूदा आधारिक संरचनाओं के रखरखाव के साधनों तथा मॉडल का विस्तृत अध्ययन कराया जाता है। इन पाठ्यक्रमों में संसाधनों तथा आधारिक संरचना के प्रभावी उपयोग की पद्धतियाँ भी शामिल की जाती हैं। इन पाठ्यक्रमों में वित्त, मानव संसाधन, विपणन तथा क्षेत्रगत विशिष्ट कौशल का ज्ञान कराया जाता है। पाठ्यक्रमों में शामिल कुछ विषय इस प्रकार हैं- निर्माण प्रबंधन, आधारिक संरचना विकास, संगठनात्मक आचरण, निर्माण प्रबंधन के सिद्धांत, आधारिक संरचना क्षेत्र अर्थव्यवस्था एवं योजना, आधारिक संरचना में आईटी अनुप्रयोग, लेखाकरण तथा संभार तंत्र एवं आपूर्ति चेन।
शैक्षिक पृष्ठभूमि, कार्य अनुभव एवं उद्योग के आधार पर परियोजना प्रबंधक, परियोजना सलाहकार, आईटी प्रबंधक, निर्माण प्रबंधक, सुविधा प्रबंधक, सुविधा कार्य विशेषज्ञ, वित्त प्रबंधक जैसे विभिन्न पदों पर रोजगार के अवसर हैं। इस क्षेत्र में नवोद्योग की भी चमकीली संभावनाएँ हैं। 
आधारिक संरचना प्रबंधन के क्षेत्र में उजला कॅरियर बनाने के लिए व्यापक तकनीकी कौशल तथा संचार कौशल होना आवश्यक है। इस क्षेत्र में अधिकतर कार्यों में सिविल इंजीनियरों, आर्किटेक्ट, वितरकों, लेखाकारों तथा अनुबंध श्रमिकों जैसे अन्य व्यवसायियों से संपर्क स्थापित करना शामिल होता है। इसलिए उम्मीदवार में संचार कौशल होना आवश्यक है। कार्यों में प्रायः विभिन्न साइटों पर कार्य करना तथा कभी-कभी विपरीत माहौल में कार्य करना होता है। इसके लिए लगातार कई घंटों तक कार्य करने के लिए शारीरिक स्वस्थता तथा शारीरिक क्षमता की आवश्यकता होती है। कुछ कार्यों में लगातार स्थान परिवर्तन शामिल होता है। निर्माण के विभिन्न पहलुओं का ज्ञान, समस्या समाधान कौशल, परियोजना प्रबंधन कौशल होना इस क्षेत्र में ऊँचाइयों तक पहुँचाता है। आधारिक संरचना प्रबंधन में उन विद्यार्थियों के लिए बहुत उजले अवसर हैं जो सिविल इंजीनियरी का भी ज्ञान रखते हैं।
गैर इंजीनियरी स्नातक विद्यार्थी वित्त, मानव संसाधन, विधि, विक्रय जैसे विभागों में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। इस क्षेत्र में कॅरियर शीघ्र उन्नति एवं आकर्षक वेतन के अवसर प्रदान करता है। किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह इस क्षेत्र में वेतन पैकेज और अन्य लाभों की बात करें तो वेतन एवं अन्य लाभ पद, कार्य अनुभव आदि पर निर्भर होते हैं। इस क्षेत्र में प्रारंभिक वेतन 15 से 30 हजार रुपये प्रतिमाह के बीच प्राप्त होता है।
आधारिक संरचना प्रबंधन का कोर्स कराने वाले देश के प्रमुख संस्थान इस प्रकार हैं-
  • सिम्बायोसिस प्रबंधन एवं मानव संसाधन विकास केन्द्र, पुणे।
  • ऊर्जा एवं पेट्रोलियम अध्ययन विश्व-विद्यालय, देहरादून।
  • टेरी विश्वविद्यालय, दिल्ली।
  • इनलीड, गुड़गाँव।

Thursday, April 26, 2018

उगाएं धन की वनस्पति

पौधे और फूल न केवल हमारे उद्यानों में सुंदरता फैलाते हैं और हमारे जीवन को ताजगी देते हैं बल्कि हमारी बुनियादी आवश्यकताओं तथा औषधियों के लिए महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक सामग्रियों के रूप में कार्य करते हैं। पौधे ऐसे रासायनिक कारखाने होते हैं जो मनुष्य के लिए उपयोगी सभी प्रकार के उत्पाद देते हैं। भोजन के अतिरिक्त पौधे कागज, भवन सामग्री, द्रव्यों, गोंद, कपड़ों, औषधियों और कई अन्य उत्पादों के लिए कच्चा माल देते हैं। उदाहरण के लिए एलोवेरा पौधा क्रीम तथा चिकित्सा द्रव्यों में प्रयोग में लाया जाता है। इन सब बातों का अध्ययन वनस्पति विज्ञान में किया जाता है। वनस्पति विज्ञान में वनस्पति जगत में पाए जाने वाले सब पेड़-पौधों का अध्ययन होता है। जीव विज्ञान का यह एक प्रमुख अंग है। दूसरा प्रमुख अंग प्राणी विज्ञान है। सभी जीवों को जीवन निर्वाह करने, वृद्धि करने, जीवित रहने और जनन के लिए भोजन या ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। यह ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है। सूर्य में परमाणु के विखंडन या तरंगों के रूप में चलकर यह ऊर्जा पृथ्वी पर आती है। केवल पौधों में ही इस ऊर्जा के ग्रहण करने की क्षमता विद्यमान है। पृथ्वी के अन्य सब प्राणी पौधों से ही ऊर्जा प्राप्त  करते हैं। अतः विज्ञान में वनस्पति के अध्ययन का विशिष्ट और बड़े महत्त्व का स्थान है।
प्रमुख शिक्षण संस्थान
* कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर
* हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी, शिमला
* नौणी विश्वविद्यालय, सोलन (हिप्र)
* अमरावती विश्वविद्यालय, अमरावती
* इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
* आंध्र विश्वविद्यालय वाल्टेयर, विशाखापट्टनम
* गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर (पंजाब)
* अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़
* लखनऊ यूनिवर्सिटी, उत्तरप्रदेश
* कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र
* जम्मू यूनिवर्सिटी, जम्मू
शैक्षणिक योग्यता
साइंस संकाय में बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्स विषयों के साथ दस जमा दो उत्तीर्ण होना अनिवार्य है। स्नातक कोर्स के लिए इस विषय की स्ट्रीम के छात्र दाखिला ले सकते हैं। बीएससी, एमएससी, एमफिल के बाद पीएचडी की उपाधि भी हासिल की जा सकती है।
वेतनमान
वनस्पति विज्ञान में सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। सरकारी क्षेत्र में अध्यापन या शोध के क्षेत्र में सरकारी  मानकों के अनुसार वेतन मिलता है। अध्यापन और शोध के क्षेत्र में आरंभ में लगभग 30 हजार से वेतन शुरू होता है। इसके अलावा प्राइवेट सेक्टर  में  भी कंपनियां अच्छे वेतनमान पर इस फील्ड के एक्सपर्ट्स को रखती हैं।
उत्पत्ति और विकास
वनस्पति जगत के सदस्य अत्यंत सूक्ष्म से लेकर अत्यंत विशालकाय तक होते हैं। इसकी शुरुआत शैवाल पौधे के अध्ययन से शुरू होती है। यह सबसे साधारण और प्राचीनतम वनस्पति है। यह अपना भोजन स्वयं बनाता है। आज कई प्रकार के गूढ़ आकार के भी शैवाल पाए जाते हैं। शैवालों से ही पृथ्वी पर के अन्य सब पौधों के उत्पन्न होने का अनुमान वैज्ञानिकों ने लगाया है। वनस्पतियों के अध्ययन में सबसे पहला कदम पेड़ पौधों का नामकरण और वर्गीकरण है। जब तक उनके नाम का पता न लगे और वे पहचान में न आएं, तब तक उनके अध्ययन का कोई महत्त्व नहीं है। अतः वनस्पति विज्ञान का सबसे पुराना और सबसे अधिक महत्त्व का विभाग वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान है। इसमें केवल नाम का ही पता नहीं लगता, अपितु पेड़ पौधों के पारस्परिक संबंध का अध्ययन कर उन्हें विभिन्न समूहों में रखा भी जाता है।
अवसर कहां-कहां
विश्वविद्यालयों, कालेजों से वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में स्नातक योग्यता प्राप्त करने वाले छात्रों के लिए कई प्रकार के रोजगार उपलब्ध हैं। जैसे कि ब्रीडर के रूप में, पार्क रेंजर, पादप रोग विज्ञानी, पारिस्थितिकीविद, प्रोफेसर, अध्यापक, कृषि परामर्शदाता, अनुसंधानकर्ता, उद्यान विज्ञानी, नर्सरी प्रबंधक।
दीर्घकालीन करियर की संभावना
व्यापक शिक्षा तथा अनुभव के आधार पर वनस्पति विज्ञानी बना जा सकता है। उसके बाद किसी वनस्पति विज्ञानी के रूप में उन्नति की संभावना सामान्यतः उसकी विश्वविद्यालय डिग्री पर निर्भर होती है। व्याख्यात्मक प्रकृति विज्ञानी, पर्यावरण सुधार तकनीशियन अथवा अनुसंधान सुविधाओं में प्रयोगशाला तकनीशियन के रूप में कार्य किया जा सकता है। कई व्यक्ति पर्यावरण, बागबानी या कृषि से जुड़े क्षेत्रों में परामर्शदाता के रूप में कार्य करते हैं जबकि अन्य व्यक्ति अनुसंधान तथा अध्यापन के क्षेत्र में कार्य करने का निर्णय भी ले सकते हैं।
पर्यावरण संरक्षक के साथ रोजगारपरक भी
शहरी इलाकों में तबदील हो रहे गांव हमारे भविष्य के लिए सवाल बन गए हैं। जहां पर्यावरण को लेकर कई बड़ी मुश्किलें खड़ी हो रही हैं, वहीं शहरी इलाकों में तबदील हुए गांवों में युवा कृषि को छोड़कर रोजगार तलाश कर रहे हैं। लेकिन रोजगार के अवसर इतने अधिक नहीं हैं कि युवाओं का भविष्य संवर सके। इसी बीच वनस्पति विज्ञान जहां पर्यावरण को बेहतर करने के लिए एक अहम कदम है, वहीं युवाओं को रोजगार के नए अवसर भी प्रदान कर रहा है।
स्नातक योग्यता डिग्री वालों के लिए अवसर
निजी क्षेत्र- औषधि कंपनियां, नर्सरी, जैव प्रौद्योगिकी फर्में, खाद्य कंपनियां,  तेल उद्योग, फल उत्पादक, बीज कंपनियां, रसायन कंपनियां, कागज कंपनियां, सरकारी क्षेत्र- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय वन सेवा, कृषि।

Wednesday, April 25, 2018

इम्यूनोलॉजी में पीएचडी

हमारे शरीर को बीमारियों से बचाने के लिए इसके अंदर सक्रिय प्रतिरक्षा तंत्र या इम्यून सिस्टम से जुड़ी बारीकियों का अध्ययन करने में रूचि रखने वाले कर सकते हैं, इम्यूनोलॉजी में पीएचडी के लिए आवेदन। बॉयोलॉजी के इस परिष्कृत क्षेत्र में शोध के लिए नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ इम्यूनोलॉजी ने आवेदन मंगवाए हैं। नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ इम्यूनोलॉजी नई दिल्ली में जेएनयू कैंपस के पास ही स्थित है। इसके रिसर्च प्रोग्राम में आवेदन की प्रक्रिया शुरू हो गई है। आवेदन ऑनलाइन है। अंतिम तिथि 31 दिसंबर है।
रिसर्च के विकल्प
नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ इम्यूनोलॉजी ने जिन एरियाज में रिसर्च के लिए पीएचडी के प्रस्ताव मंगवाए हैं, वे इस प्रकार हैं- इंफेक्शन एंड इम्यूनिटी, जेनेटिक्स मॉलिक्यूलर एंड सेलुलर बायोलॉजी, केमिकल, स्ट्रेक्चरल एंड कंप्यूटेशनल बायोलॉजी, रीप्रोडक्शन एंड डेवलपमेंट। रिसर्च के ये सभी एरियाज इंटरडिसीप्लीनरी एरियाज हैं। रूचि होने पर आप अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।
क्या है योग्यता
आवेदक ने साइंस की ब्रांच में एमएससी या एमटेक या एमबीबीएस या एमवीएससी या एमफार्म या समकक्ष कोर्स किया हो। बारहवीं और ग्रेजुएशन में उसके कम से कम 60 फीसदी अंक हों। मास्टर डिग्री में उसे कम से कम 55 फीसदी अंक मिले हों। फाइनल ईयर के छात्र भी इस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं।
कैसे होगा चयन
चयन के लिए कुल दो माध्यम निर्धारित हैं-
1. प्रवेश परीक्षा- यह नई दिल्ली, हैदराबाद, पुणे और कोलकाता में होगी। 2. दिसंबर में होने वाली जेजीईईबीआईएलएस के स्कोर के जरिए। इन आवेदकों को अलग से आवेदन करना होगा।
कैसे करें आवेदन
आवेदन के लिए www.nii.res.in पर जाएं, ऑनलाइन आवेदन करें। आवेदन शुल्क जनरल/ ओबीसी/ शावि के लिए 500 रूपए है। एससी/एसटी के लिए 250 रूपए है। आवेदन 1 नवंबर से 31 दिसंबर तक कर सकते हैं।

Monday, April 23, 2018

सिविल इंजीनियरिंग में करियर

आज देश प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी विकास की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। रियल एस्टेट के कारोबार में आई चमक ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रोशन किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख क्षेत्र ‘सिविल इंजीनियिरग’ भी है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाले अधिकांश छात्र सिविल इंजीनियरिंग की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। वह रियल एस्टेट के अलावा भी कई सारे कंट्रक्शन कार्य जैसे पुल निर्माण, सड़कों की रूपरेखा, एयरपोर्ट, ड्रम, सीवेज सिस्टम आदि को अपने कौशल द्वारा आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं।
क्या है सिविल इंजीनियरिंग?जब भी कोई योजना बनती है तो उसके लिए पहले प्लानिंग, डिजाइनिंग व संरचनात्मक कार्यों से लेकर रिसर्च एवं सॉल्यूशन तैयार करने का कार्य किया जाता है। यह कार्य किसी सामान्य व्यक्ति से न कराकर प्रोफेशनल लोगों से ही कराया जाता है, जो सिविल इंजीनियरों की श्रेणी में आते हैं। यह पूरी पद्धति ‘सिविल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों को किसी प्रोजेक्ट, कंस्ट्रक्शन या मेंटेनेंस के ऊपर कार्य करना होता है। साथ ही इस कार्य के लिए उनकी जिम्मेदारी भी तय होती है। ये स्थानीय अथॉरिटी द्वारा निर्देशित किए जाते हैं। किसी भी प्रोजेक्ट एवं परियोजना की लागत, कार्य-सूची, क्लाइंट्स एवं कांट्रेक्टरों से संपर्क आदि कार्य भी सिविल इंजीनियरों के जिम्मे होता है।
काफी व्यापक है कार्यक्षेत्रसिविल इंजीनियरिंगका कार्यक्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जरूरत इस बात की होती है कि छात्र अपनी सुविधानुसार किस क्षेत्र का चयन करते हैं। इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में हाइड्रॉलिक इंजी..., मेटेरियल इंजी..., स्ट्रक्चरल इंजी.....,  अर्थक्वेक इंजी., अर्बन इंजी..., एनवायर्नमेंटल इंजी..., ट्रांसपोर्टेशन इंजी... और जियो टेक्निकल इंजीनियरिंग आदि आते हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी कार्य की संरचना बढ़ती जा रही है। प्रमुख कंपनियों के भारत आने से यहां भी संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।
सिविल इंजीनियर बनने की योग्यतासिविल इंजीनियर बनने के लिए पहले छात्र को बीटेक या बीई करना होता है, जो 10+2 (भौतिकी, रसायन शास्त्र व गणित) या समकक्ष परीक्षा में उच्च रैंक प्राप्त करने के बाद ही संभव हो पाता है, जबकि एमएससी या एमटेक जैसे पीजी कोर्स के लिए बैचलर डिग्री होनी आवश्यक है। इन पीजी कोर्स में दाखिला प्रवेश परीक्षा के जरिए हो पाता है। इंट्रिग्रेटेड कोर्स करने के लिए 10+2 होना जरूरी है। बारहवीं के बाद पॉलिटेक्निक के जरिए सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स भी कराया जाता है, जो कि डिप्लोमा श्रेणी में आते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया का स्वरूपइसमें दो तरह से प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। एक पॉलीटेक्निनक तथा दूसरा जेईई व सीईई। इसमें सफल होने के बाद ही कोर्स में दाखिला मिलता है। कुछ ऐसे भी संस्थान हैं, जो अपने यहां अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं। बैचलर डिग्री के लिए आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा जेईई (ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम) के जरिए तथा पीजी कोर्स के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा सीईई (कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम) के आधार पर होती है।
ली जाने वाली फीससिविल इंजीनियरिंग के कोर्स के लिए वसूली जाने वाली फीस अधिक होती है। बात यदि प्राइवेट संस्थानों की हो तो वे छात्रों से लगभग डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिवर्ष फीस लेते हैं, जबकि आईआईटी स्तर के संस्थानों में एक से डेढ़ लाख प्रतिवर्ष की सीमा होती है। इसमें काफी कुछ संस्थान के इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है, जबकि प्राइवेट संस्थानों का प्रशिक्षण शुल्क विभिन्न स्तरों में होता है।
आवश्यक अभिरुचिसिविल इंजीनियर की नौकरी काफी जिम्मेदारी भरी एवं सम्मानजनक होती है। बिना रचनात्मक कौशल के इसमें सफलता मिलनी या आगे कदम बढ़ाना मुश्किल है। नित्य नए प्रोजेक्ट एवं चुनौतियों के रूप में काम करना पड़ता है। एक सिविल इंजीनियर को शार्प, एनालिटिकल एवं प्रैक्टिकल माइंड होना चाहिए। इसके साथ-साथ संवाद कौशल का गुण आपको लंबे समय तक इसमें स्थापित किए रखता है, क्योंकि यह एक प्रकार का टीमवर्क है, जिसमें लोगों से मेलजोल भी रखना पड़ता है।
इसके अलावा आप में दबाव में बेहतर करने, समस्या का तत्काल हल निकालने व संगठनात्मक गुण होने चाहिए, जबकि तकनीकी ज्ञान, कम्प्यूटर के प्रमुख सॉफ्टवेयरों की जानकारी, बिल्डिंग एवं उसके सुरक्षा संबंधी अहम उपाय, ड्रॉइंग, लोकल अथॉरिटी व सरकारी संगठनों से बेहतर तालमेल, प्लानिंग का कौशल आदि पाठय़क्रम का एक अहम हिस्सा हैं।
रोजगार से संबंधित क्षेत्रएक सिविल इंजीनियर को सरकारी विभाग, प्राइवेट और निजी क्षेत्र की इंडस्ट्री, शोध एवं शैक्षिक संस्थान आदि में काम करने का अवसर प्राप्त होता है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसमें संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण रियल एस्टेट में आई क्रांति ही है। इसके चलते हर जगह बिल्डिंग, शॉपिंग, मॉल, रेस्तरां आदि का निर्माण किया जा रहा है। यह किसी भी यूनिट को रिपेयर, मेंटेनेंस से लेकर कंस्ट्रक्शन तक का कार्य करते हैं। बीटेक के बाद रोड प्रोजेक्ट, बिल्डिंग वक्र्स, कन्सल्टेंसी फर्म, क्वालिटी टेस्टिंग लेबोरेटरी या हाउसिंग सोसाइटी में अवसर मिलते हैं। केन्द्र अथवा प्रदेश सरकार द्वारा भी काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से रेलवे, प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी, मिल्रिटी, इंजीनियरिंग सर्विसेज, कंसल्टेंसी सर्विस भी रोजगार से भरे हुए हैं। अनुभव बढ़ने के बाद छात्र चाहें तो अपनी स्वयं की कंसल्टेंसी सर्विस खोल सकते हैं।
इस रूप में कर सकते हैं कामसिविल इंजीनियरिंग
कंस्ट्रक्शन प्लांट इंजीनियर
टेक्निशियन
प्लानिंग इंजीनियर
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट इंजीनियर
असिस्टेंट इंजीनियर
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
सुपरवाइजर
प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर
साइट/प्रोजेक्ट इंजीनियर
सेलरीइसमें मिलने वाली सेलरी ज्यादातर केन्द्र अथवा राज्य सरकार के विभाग पर निर्भर करती है, जबकि प्राइवेट कंपनियों का हिसाब उससे अलग होता है। बैचलर डिग्री के बाद छात्र को 20-22 हजार रुपए प्रतिमाह तथा दो-तीन साल का अनुभव होने पर 35-40 हजार के करीब मिलने लगते हैं। मास्टर डिग्री करने वाले सिविल इंजीनियरों को 25-30 हजार प्रतिमाह तथा कुछ वर्षों के बाद 45-50 हजार तक हासिल होते हैं। इस फील्ड में जम जाने के बाद आसानी से 50 हजार रुपये तक कमाए जा सकते हैं। विदेशों में तो लाखों रुपए प्रतिमाह तक की कमाई हो जाती है।
एजुकेशन लोनइस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख व विदेशों में अध्ययन के लिए 20 लाख तक लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी
आवश्यक है।
प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट-
 www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खडगपुर, चेन्नई, रुड़की में भी इसकी शाखाएं मौजूद हैं)
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट
www.bitmesra.ac.in
दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.dce.edu
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट
www.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट-
  www.nicmar.ac.in( गुड़गांव, बेंग्लुरू, पुणे, मुंबई, गोवा में भी शाखाएं मौजूद)
  
फायदे एवं नुकसान
बड़े शहरों में अन्य प्रोफेशनल्स की अपेक्षा न्यू कमर को अधिक सेलरी
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बूम आने से प्रोफेशनल्स की भारी मांग
समाज व देश की प्रगति में भागीदार बनने पर अतिरिक्त खुशी
कई बार निर्धारित समय से अधिक काम करने से थकान की स्थिति
चिह्न्ति क्षेत्रों में शिफ्ट के रूप में काम करने की आवश्यकता
जॉब के सिलसिले में अधिक यात्राएं परेशानी का कारण

Sunday, April 22, 2018

कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में करियर


आज के दौर में संचार जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे मोबाइल हो या टीवी यह हर इनसान की जरूरत है। क्या आप ऐसे जीवन की कल्पना कर सकते हैं जहाँ मोबाइल काम ना करे। अपने मन पंसद प्रोग्रामों को देखने के लिए आपके पास टेलीविजन ही ना हो। ऐसे जीवन की कल्पना करना भी आपको कितना डरावना लगता है ना। 

आपकी सुविधाओं को हकीकत में बदलने का काम किया है इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरों ने। इनकी कला की बदौलत ही आज हर व्यक्ति पूरी दुनिया से जुड़ा हुआ है। अगर आप चाहें तो इस क्षेत्र में अपना भविष्य तलाश सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत व चुनौतीपूर्ण है। इसके अंतर्गत माइक्रोवेव और ऑप्टिकल कम्युनिकेशन, डिजिटल सिस्टंस, सिग्नल प्रोसेसिंग, टेलीकम्युनिकेशन, एडवांस्ड कम्युनिकेशन, माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक जैसे क्षेत्र शामिल हैं। इंजीनियरिंग की यह शाखा रोजमर्रा की जिंदगी में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। साथ ही इन्फार्मेशन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल, पॉवर सिस्टम ऑपरेशंस, कम्युनिकेशन सिस्टम आदि क्षेत्रों में भी इसके महत्व को कम करके नहीं आंका जा सकता।

इस क्षेत्र में करियर बनाने की चाह रखने वाले छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में बीटेक करना होगा। विभिन्न इंस्टिट्यूट छात्रों केलिए ढेर सारे विकल्प प्रस्तुत करता है। इस स्ट्रीम में छात्र विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं या दोहरी डिग्री भी कर सकते हैं। 

कम्युनिकेशन इंजीनियरों का मुख्य काम होता है कि वे न्यूनतम खर्चे पर सर्वश्रेष्ठ संभावित हल उपलब्ध करवाए। इस तरह वे रचनात्मक सुझाव निकालने में सक्षम हो पाते हैं। वे चिप डिजाइनिंग और फेब्रिकेटिंग के काम में शामिल होते हैं, सेटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन जैसे एडवांस्ड कम्युनिकेशन, कम्युनिकेशन नेटवर्क साल्यूशन, एप्लिकेशन ऑफ डिफरेंट इलेक्ट्रॉनिक क्षेत्र में काम करते हैं और इसलिए कम्युनिकेशन इंजीनियरों की सार्वजनिक और निजी दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी खासी मांग होती है।

इंजीनियरिंग की इस ब्रांच में पेशेवरों के लिए नित नए दरवाजे खुलते रहते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियर टेलीकम्युनिकेशन, सिग्नल, सैटेलाइट और माइक्रोवेव कम्युनिकेशन आदि क्षेत्रों में काम की तलाश कर सकते हैं। कम्युनिकेशन इंजीनियरों को टीसीएस, मोटोरोला, इन्फोसिस, डीआरडीओ, इसरो, एचसीएल, वीएसएनएल आदि कंपनियों में अच्छी खासी सैलरी पर नौकरी मिलती है। 

एक सर्वे के मुताबिक इंजीनियरिंग क्षेत्र बहुत तेजी से बढ़ने वाले क्षेत्रों में से एक है। सर्वे के अनुसार अगले 10 सालों में इंजीनियरिंग के क्षेत्र की विकास दर 13.38 प्रतिशत होगी। 2007 में हुए ग्रेजुएट एक्जिट का सर्वे कहता है कि कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग पर मंदी का असर ना के बराबर हुआ है। इस क्षेत्र में अभी भी 86 प्रतिशत इंजीनियर काम कर रहे हैं और आने वाले समय में इनकी भारी माँग रहेगी। ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिक्स की रिपोर्ट का मानना है कि इंजीनियरिंग एक ऐसा क्षेत्र है जो बहुत तेजी से विकास कर रहा है। 

इस क्षेत्र में इंजीनियर को 3.5 से 4 लाख रुपए प्रतिवर्ष औसतन वेतन मिल सकता है। अधिकतम वेतन 12 लाख रुपए प्रतिवर्ष तक हो सकता है।

कम्युनिकेशन इंजीनियर बनने की चाह रखने वाले छात्र इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर, दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कालीकट से प्रोफेशनल कोर्स कर सकते हैं।

Friday, April 20, 2018

एनर्जी इंजीनियरिंग में करियर

एनर्जी इंजीनियरिंग का कोर्स इन दिनों काफी पॉपुलर हो रहा है। यदि भविष्य की बात करें, तो इसकी मांग आगे भी बनी रहेगी। यदि आप इससे संबंधित कोर्स कर लेते हैं, तो करियर के लिहाज से बेहतर हो सकता है।
योग्यता व कोर्स
इस क्षेत्र में करियर की संभावनाएं तलाशने वाले छात्रों को बीई या बीटेक करने के लिए 12वीं में भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान व गणित होना आवश्यक है। अगर आप चाहें, तो बीटेक करने के बाद एमटेक भी कर सकते हैं। अधिकतर संस्थानों में एडमिशन प्रवेश परीक्षाओं द्वारा दिया जाता है। वैसे एनर्जी में दक्षता या स्पेशलाइजेशन अंडर ग्रेजुएट स्तर पर उतना लोकप्रिय नहीं है, जितना पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर। मास्टर्स कोर्स में ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों और ऊर्जा के गैर परंपरागत स्रोतों में सुधार पर अधिक जोर दिया जाता है।
संभावनाएं
जलवायु में बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बढी जागरूकता के चलते नौकरियों के बाजार में ऊर्जा इंजीनियरिंग की बहुत मांग है। विभिन्न सरकारी संस्थानों, खासकर विभिन्न राज्यों की नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसियों में प्रशिक्षित कर्मचारियों की काफी मांग है। सरकार ने उद्योगों के लिए अब ऊर्जा ऑडिटिंग, ऊर्जा सरंक्षण और ऊर्जा प्रबंधन में स्पेशलाइजेशन करने वालों की नियुक्ति को भी अनिवार्य कर दिया है।
कार्य
एक एनर्जी इंजीनियर सिर्फ ऊर्जा के व्यावसायिक उपयोग को ही नहीं समझता, अपितु ऊर्जा खपत के पैटर्न का अनुमान भी लगाता है। करियर काउंसलर मीनाक्षी ठक्कर बताती हैं कि एक सफल एनर्जी इंजीनियर बनने के लिए तार्किक व विश्लेषणात्मक होना जरूरी है। इस क्षेत्र में बहुत अधिक लोगों से संपर्क करने की आवश्यकता नहीं पडती, इसलिए एक अंतर्मुखी व्यक्ति भी आसानी से एनर्जी इंजीनियर बन सकता है। साथ ही आपको कई बार बाहर भी जाना पड सकता है, इसलिए आपको घर से दूर रहने की भी आदत डालनी पडेगी। इसके अतिरिक्त आपको धैर्यशील व हमेशा अपडेट रहना चाहिए।
क्या कहती है रिपोर्ट
एनर्जी इंजीनियर के लिए सिर्फ भारत में ही नहीं, विदेश में भी काफी स्कोप है।

Thursday, April 19, 2018

पॉलिटेक्निक है राइट ऑप्शन

10वीं-12वींके बाद टेक्निकल कोर्स में एडमिशन लेने के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक राइट ऑप्शन हो सकता है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में पॉलिटेक्निक से जुड़े स्टूडेंट्स की जबरदस्त डिमांड है। आइए जानते हैं, पॉलिटेक्निक में कैसे एडमिशन लिया जा सकता है और क्या हैं इसके फायदे?
स्कूल की दुनिया से बाहर निकलते ही हर साल हजारों स्टूडेंट्स इंजीनियर बनने का सपना देखने लगते हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स महंगी फीस और अच्छे मा‌र्क्स नहीं आने की वजह से बड़े संस्थानों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सपना पूरा नहींकर पाते। ऐसे में 12वीं के बाद बीटेक की चार साल की डिग्री की बजाय 10वीं या 12वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा करके भी जॉब मार्केट में कदम रखने का ऑप्शन मौजूद है। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक सुनहरा अवसर लेकर आता है। यह उन्हें तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स का अवसर प्रदान करता है। दरअसल, ये कोर्स ऐसे होते हैं, जिसे पूरा करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए या फिर अच्छी जगह नौकरी करने की स्किल से लैस करता है। 
क्या है पॉलिटेक्निक?
आमतौर पर पॉलिटेक्निक ऑ‌र्ट्स और साइंस से संबंधित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स ऑफर करते हैं। इसे टेक्निकल डिग्री कोर्स के नाम से भी जाना जाता है। पॉलिटेक्निक से संबंधित टेक्निकल कोर्स भी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा संचालित होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल और टेक्निकल स्किल को इंप्रूव करना है। वैसे, पॉलिटेक्निक संस्थान कई तरह के होते हैं। राज्य स्तर पर सरकारी, निजी और महिला पॉलिटेक्निक संस्थान सक्रिय हैं। यहां से आप डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत आमतौर पर फैशन डिजाइन, टेक्सटाइल डिजाइन, इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, होटल मैनेजमेंट आदि से जुड़े कोर्स करवाए जाते हैं। कोर्स की अवधि एक से चार साल तक की होती है। इनमें दाखिला पाकर कम समय में ही अपने करियर में पंख लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कोर्स समाप्त होने के बाद जूनियर इंजीनियर बनने का रास्ता भी खुल जाता है। महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं पर केंद्रित स्किल वाले कोर्स होते हैं।
क्वालिफिकेशन
इस कोर्स में दाखिले के लिए 10वीं में कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है। ऐसे 
स्टूडेंट्स आगे चलकर बीटेक के लिए होने वाली परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें तीन साल के कोर्स के बाद डिग्री भी मिल जाती है। 10वीं पास स्टूडेंट्स को राज्य स्तर पर कई संस्थान मेरिट के आधार पर तो कई राज्य स्तरीय संस्थान कॉमन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए दाखिला देते हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स चाहें, तो आगे पढ़ाई करके बीटेक की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसे स्टूडेंट्स को लैटरल एंट्री के तहत दाखिला दिया जाता है।
खूब है डिमांड 
श्रीवेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी के चांसलर सुधीर गिरि के मुताबिक, सरकारी हो या फिर प्राइवेट सेक्टर्स, हर जगह जूनियर इंजीनियर्स की जबरदस्त डिमांड है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में लाखों डिप्लोमा होल्डर्स जूनियर इंजीनियर्स की जरूरत होगी। पॉलिटेक्निक कई लिहाज से फायदेमंद है। सबसे अहम बात यह है कि पॉलिटेक्निक में दाखिला लेने के लिए किसी बड़े एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो, आज पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा करने के बाद कंपनियों और संस्थानों में कई तरह के अवसर उपलब्ध हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें कंपनियों में आम प्रोफेशनल्स की तुलना में अच्छी सैलरी और सुविधाएं ऑफर की जाती हैं। 
सैलरी पैकेज
पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी स्टूडेंट्स के लिए नौकरी हासिल करना आसान हो जाता है। पॉलिटेक्निक किए हुए प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 15 से 20 हजार रुपये के बीच होती है। अगर आपने कोर्स के दौरान बेहतरीन परफॉर्म किया है, तो कैंपस इंटरव्यू में ही आपको नौकरी के कई अच्छे ऑफर मिल सकते हैं। 
पॉलिटेक्निक के खास कोर्स
मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, पैकेजिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,माइनिंग इंजीनियरिंग, मेटलॉर्जिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग इन प्लास्टिक ऐंड पॉलिमर्स, पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग, लेटर टेक्नोलॉजी, प्रिटिंग टेक्नोलॉजी, फुटवियर टेक्नोलॉजी, आर्किटेक्चर कोर्सेज, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, कॉमर्शियल ऐंड फाइन आर्ट, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, ऑफिस मैनेजमेंट ऐंड कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन, कम्प्यूटर साइंस आदि

Wednesday, April 18, 2018

ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर

मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैथमेटिक्स में दिलचस्पी है, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के साथ करियर को रफ्तार दे सकते हैं। अगर आप इनोवेटिव और क्रिएटिव माइंडेड हैं, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का करियर अपना सकते हैं। इस फील्ड में शानदार पे-पैकेज के अलावा, जॉब की भरपूर संभावनाएं हैं। जानिए इस इनोवेटिव फील्ड में कैसे मिल सकती है आपको एंट्री.. 

भारतीयों की Rय शक्ति और गाç़डयों की सेल्स बढ़ने से ऑटोमोबाइल सेक्टर तेजी से उभरती हुई इंडस्ट्री बन गया है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ऑटो सेक्टर सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देता है। कहते हैं कि किसी भी ऑटो कंपनी में एक जॉब क्रिएटिव होने का मतलब है, तीन से पांच इनडायरेक्ट जॉब ऑप्शंस का खुलना। जिस तरह से मार्केट में देशी-विदेशी कंपनियों की नई इनोवेटिव कारें लॉन्च हो रही हैं, उसे देखते हुए ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। अगर आपको भी कार का पैशन है। मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैथमेटिक्स में दिलचस्पी है, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के साथ करियर को रफ्तार दे सकते हैं। 

ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग

एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर पर कई प्रकार की जिम्मेदारियां होती हैं। उन्हें कम लागत में बेहतरीन ऑटोमोबाइल डिजाइन करना होता है। इसलिए इंजीनियर्स को सिस्टम और मशीनों से संबंधित रिसर्च और डिजाइनिंग में काफी समय देना प़डता है। पहले ड्रॉइंग और ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। इसके बाद इंजीनियर्स उनमें फिजिकल और मैथमेटिकल प्रिंसिपल्स अप्लाई कर उसे डेवलप करते हैं। इस तरह ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स प्लानिंग, रिसर्च वर्क के बाद एक फाइनल प्रोडक्ट तैयार करते हैं, जिसे मैन्युफैक्चरिंग के लिए भेजा जाता है। यहां भी उन्हें पूरी निगरानी रखनी होती है। व्हीकल बनने के बाद उसकी टेस्टिंग करना इनकी ही जवाबदेही होती है, जिससे कि मार्केट से कोई शिकायत न आए। 

स्पेशलाइजेशन फायदेमंद

अगर कोई ऑटोमोबाइल इंजीनियर किसी खास एरिया में स्पेशलाइजेशन करता है, तो इससे उन्हें काफी फायदा होता है। मार्केट में उनकी एक अलग पहचान बनती है, जैसे-ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स एग्जॉस्ट सिस्टम, इंजन और स्ट्रक्चरल डिजाइन में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं। 

बेसिक स्किल्स

ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनने के लिए आपके पास टेक्निकल के साथ-साथ फाइनेंशियल नॉलेज होना भी जरूरी है। आपको जॉब के कानूनी पहलुओं से अपडेट रहना होगा। इसके अलावा, इनोवेटिव सोच और स्ट्रॉन्ग कम्युनिकेशन स्किल आगे बढ़ने में मदद करेंगे। इस फील्ड में ड्यूटी ऑवर्स काफी लंबे होते हैं। इसलिए आपको प्रेशर और डेडलाइंस के तहत काम करना आना चाहिए। 

एजुकेशन
केमिस्ट्री, मैथ्स, फिजिक्स में दिलचस्पी रखने वाले युवा ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर बना सकते हैं। इसके लिए 10वीं के बाद डिप्लोमा भी किया जा सकता है या फिर आप ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। हां, बीई या बीटेक करने के लिए आपका मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, कंप्यूटर साइंस जैसे सब्जेक्ट्स के साथ 12वीं होना जरूरी है। आप ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में स्त्रातक के बाद ऑटोमोटिव्स या ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में एमई या एमटेक भी कर सकते हैं। अगर विशेषज्ञता हासिल करनी हो, तो पीएचडी भी की जा सकती है। बीई या बीटेक में एंट्री के लिए आइआइटी, जेइइ, एआइइइइ, बिटसेट आदि अखिल भारतीय या राज्य स्तर की प्रवेश परीक्षाएं देनी होती हैं। 

नौकरी की संभावनाएं
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में विभिन्न प्रकार की संभावनाएं मौजूद हैं। कार बनाने वाली कंपनी से लेकर सर्विस स्टेशन, इंश्योरेंस कंपनीज, ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स के लिए काफी मौके हैं। इसके अलावा, जिस तरह से स़डकों पर गाç़डयों की संख्या बढ़ रही है, उनकी मेंटिनेंस और सर्विसिंग करने वाले प्रोफेशनल्स की मांग में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। आप ऑटोमोबाइल टेक्निशियन, कार या बाइक मैकेनिक्स, डीजल मैकेनिक्स के रूप में काम कर सकते हैं। आप किसी ऑटो कंपनी में सेल्स मैनेजर, ऑटोमोबाइल डिजाइंस पेन्ट स्पेशलिस्ट भी बन सकते हैं। 

सैलरी पैकेज

एक ग्रेजुएट ऑटोमोबाइल इंजीनियर ट्रेनिंग के समय से ही कमाना शुरू कर देता है। कहने का मतलब यह कि ट्रेनिंग के दौरान कंपनियां उन्हें 15 से 30 हजार रूपये तक का स्टाइपेंड आसानी से दे देती हैं। अगर नौकरी कंफर्म हो गई, तो सैलरी खुद-ब-खुद बढ़ जाती है। वैसे, इंडिया में एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर को सालाना 3 से 8 लाख रूपये मिल जाते हैं। सबसे ज्यादा सैलरी व्हीकल मैन्युफैक्चरर देते हैं। इसके बाद प्रोडक्ट डेवलपमेंट और इंजीनियरिंग फम्र्स भी उन्हें अच्छा पे-पैकेज ऑफर करती हैं। इस फील्ड में अच्छा खासा अनुभव होने के बाद एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर 25 से 35 लाख रूपये सालाना आसानी से कमा सकते हैं।

Monday, April 16, 2018

न्यूट्रिशनिस्ट में करियर

संतुलित डाइट के महत्व से तो हर कोई वाकिफ है लेकिन अपनी उम्र, शारीरिक क्षमता, कार्य की प्रकृति और दैनिक रुटीन के हिसाब से डाइट कैसी होनी चाहिए, इसको लेकर अध‍िकांश लोग भ्रमित रहते हैं। सही डाइट से जुड़ी हमारी शंकाएं दूर करते हैं डायटीशियन और न्यूट्रिशनिस्ट। अगर आप हेल्दी लाइफस्टाइल के साथ रोमांचक करियर चाहते हैं, तो यह फील्ड आपके लिए बढ़िया है। 
लोगों की बदली जीवनशैली और खानपान की खराब आदतों का सबसे ज्यादा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसीलिए हाल के दिनों में लोगों के बीच बैलेंस्ड डाइट को लेकर जागरूकता बढ़ी है। हालांकि बैलेंस्ड डाइट व्यक्ति विशेष की अपनी जरूरतों पर आधारित होती है, इसीलिए इसे लेकर लोगों में अक्सर भ्रम भी रहता है। इसी भ्रम को दूर करके फूड न्यूट्रिएंट्स के हिसाब से हमें सुझाव देते हैं डायटीशियन और न्यूट्रिशनिस्ट। अगर आपको भी फूड साइंस और न्यूट्रिशन में रुचि है, तो आप इसमें करियर प्लान कर सकते हैं।
क्या है न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स?
यह फूड साइंस से जुड़ा एक ऐसा कोर्स है, जिसमें फूड न्यूट्रिएंट्स के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसी के आधार पर बड़े स्तर पर लोगों में न्यूट्रिशन से जुड़ी समस्याओं को पहचानकर उन्हें दूर करने के लिए सामाजिक और तकनीक के स्तर पर समाधान तलाशे जाते हैं। यही नहीं, सरकारी इकाइयों और स्वास्थ्य से जुड़े संस्थानों को भी इन्हीं के अनुसार स्वास्थ्य नीति में बदलाव के सुझाव दिए जाते हैं।
कौन-से कोर्स?
इस फील्ड में करियर प्लान करने के लिए 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी जैसे विषय लेकर पढ़ने वाले विद्यार्थी होम साइंस व फूड साइंस एंड प्रॉसेसिंग में बीएससी, फूड साइंस एंड माइक्रोबायोलॉजी, न्यूट्रिशन, न्यूट्रिशन एंड फूड साइंस और न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स में बीएससी ऑनर्स कर सकते हैं। इसके अलावा डायटेटिक्स एंड न्यूट्रिशन में डिप्लोमा और फूड साइंस एंड पब्लिक हेल्थ न्यूट्रिशन में डिप्लोमा भी किया जा सकता है। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद आप इन्हीं विषयों में एमएससी कर सकते हैं। इस फील्ड में रिसर्च का भी काफी स्कोप है। हायर स्टडीज करने वाले विद्यार्थियों को इस फील्ड में मौके भी बहुत मिलते हैं। 
जरूरी स्किल्स 
अगर आपको फूड इंग्रीडिएंट्स में रुचि है और अलग-अलग पकवानों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में मौजूद न्यूट्रिएंट्स के बारे में पढ़ना व उनके हिसाब से डाइट में परिवर्तन करना पसंद है, तो आप इस फील्ड में जरूर आएं क्योंकि इसमें आपको नियंत्रित डाइट का सही प्लान बनाने का तरीका सिखाया जाता है। बॉडी मास इंडेक्स के हिसाब से आप अपना खुद का फूड चार्ट भी डिजाइन कर सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं 
आप सरकारी क्षेत्र और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे संस्थानों में अपना करियर बना सकते हैं। अमूमन इस फील्ड में चार तरह के न्यूट्रिशनिस्ट काम करते हैं:
क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट 
ये हॉस्पिटल्स, आउटपेशेंट क्लिनिक्स और नर्सिंग होम्स में काम करते हैं। इसमें आपको रोगियों की बीमारियों
के हिसाब से उनका डाइट चार्ट प्लान करना होगा।
मैनेजमेंट न्यूट्रिशनिस्ट 
ये न्यूट्रिशनिस्ट क्लिनिकल और फूड साइंस एक्सपर्ट्स होते हैं। ये बड़े संस्थानों में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का
मैनेजमेंट करते हैं। इसके अलावा इन्हें न्यूट्रिशनिस्ट्स की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जिम्मेदारी भी दी जाती है।
कम्युनिटी न्यूट्रिशनिस्ट 
ये सरकारी स्वास्थ्य एजेंसियों, हेल्थ एंड फिटनेस क्लब्स और डे-केयर सेंटर्स में काम करते हैं। इस क्षेत्र में किसी व्यक्ति विशेष के लिए काम न करके पूरे समुदाय पर फोकस किया जाता है।
मैनेजमेंट न्यूट्रिशनिस्ट 
ये न्यूट्रिशनिस्ट क्लिनिकल और फूड साइंस एक्सपर्ट्स होते हैं। ये बड़े संस्थानों में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का
मैनेजमेंट करते हैं। इसके अलावा इन्हें न्यूट्रिशनिस्ट्स की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जिम्मेदारी भी दी जाती है।
न्यूट्रिशन एडवाइजर 
ये एक्सपर्ट्स बिना किसी संस्थान से जुडे, किसी डॉक्टर की तरह अपनी स्वतंत्र प्रैक्टिस करते हैं और लोगों को न्यूट्रिशन से जुड़ी सलाह व मार्गदर्शन देते हैं। इस तरह की फ्रीलांसिंग में भी अच्छी संभावनाएं हैं। 
प्रमुख संस्थान 
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद
- जेडी बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ होम साइंस, कोलकाता
- लेडी अर्विन कॉलेज, दिल्ली 
- एसएनडीटी विमेंस यूनिवर्सिटी, मुंबई
- ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता
- मुंबई यूनिवर्सिटी

Friday, April 13, 2018

ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में मौका

अगर आप रेडियो या टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग इंजीनियरिंग में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो आप इसके लिए ज्यादा सोचिए मत। आपको बता दें कि ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की ही ब्रांच है। इसे रेडियो, टेलीविजन ब्रॉडकास्टिंग में सिग्नल स्ट्रेंथ, साउंड व कलर्स रेंज के लिए डिवाइस की देखरेख के रूप में परिभाषित किया जाता है। इसमें इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड ऑडियो इंजीनियरिंग भी शामिल हैं। वहीं इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के दो प्रमुख एरिया, ऑडियो इंजीनियरिंग और रेडियो फ्रीक्वेंसी इंजीनियरिंग भी ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग से संबंधित हैं।
योग्यता
ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग अंडरग्रेजुएट इंजीनियरिंग कोर्स में मुख्य विषय के तौर पर नहीं पढ़ाया जाता है। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एंड ऑडियो इंजीनियरिंग में चार वर्षीय बैचलर्स कोर्स कर चुके उम्मीदवार पीजी स्तर पर इसमें स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं। वहीं, सीधे ब्रॉडकास्टिंग फर्म्स के साथ काम शुरू कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ संस्थान इस विषय में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा और पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स भी करवाते हैं। इनमें दाखिला लेने के लिए मैथ्स और फिजिक्स जैसे विषयों सहित साइंस में बारहवीं उत्तीर्ण होना जरूरी है।
कहां से करें कोर्स
> ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग सोसाइटी, नई दिल्ली
> जी इंस्टीट्यूट ऑफ मीडिया आर्ट्स, मुंबई
www.zimainstitute .com
> इंडियन फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट, मेरठ
अवसर
ब्रॉडकास्ट इंजीनियर आमतौर पर प्रोड्यूसर, स्टूडियो मैनेजर, प्रजेंटर और अन्य तकनीकी स्टाफ के साथ काम करते हैं। यहां ब्रॉडकास्ट, डिजाइन इंजीनियर, ब्रॉडकास्ट सिस्टम इंजीनियर, ब्रॉडकास्ट नेटवर्क इंजीनियर, ब्रॉडकास्ट मेंटेनेंस इंजीनियर, वीडियो ब्रॉडकास्ट इंजीनियर, टीवी स्टूडियो ब्रॉडकास्ट इंजीनियर, रिमोट ब्रॉडकास्ट इंजीनियर के रूप में काम किया जा सकता है।

Wednesday, April 11, 2018

सिविल इंजीनियरिंग में करियर

आज देश प्रगति के पथ पर सरपट दौड़ रहा है। बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों में भी विकास की प्रक्रिया तेजी से चल रही है। रियल एस्टेट के कारोबार में आई चमक ने कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों को रोशन किया है। इन्हीं में से एक प्रमुख क्षेत्र ‘सिविल इंजीनियिरग’ भी है। इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखने वाले अधिकांश छात्र सिविल इंजीनियरिंग की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। वह रियल एस्टेट के अलावा भी कई सारे कंट्रक्शन कार्य जैसे पुल निर्माण, सड़कों की रूपरेखा, एयरपोर्ट, ड्रम, सीवेज सिस्टम आदि को अपने कौशल द्वारा आगे ले जाने का कार्य कर रहे हैं।
क्या है सिविल इंजीनियरिंग?जब भी कोई योजना बनती है तो उसके लिए पहले प्लानिंग, डिजाइनिंग व संरचनात्मक कार्यों से लेकर रिसर्च एवं सॉल्यूशन तैयार करने का कार्य किया जाता है। यह कार्य किसी सामान्य व्यक्ति से न कराकर प्रोफेशनल लोगों से ही कराया जाता है, जो सिविल इंजीनियरों की श्रेणी में आते हैं। यह पूरी पद्धति ‘सिविल इंजीनियरिंग’ कहलाती है। इसके अंतर्गत प्रशिक्षित लोगों को किसी प्रोजेक्ट, कंस्ट्रक्शन या मेंटेनेंस के ऊपर कार्य करना होता है। साथ ही इस कार्य के लिए उनकी जिम्मेदारी भी तय होती है। ये स्थानीय अथॉरिटी द्वारा निर्देशित किए जाते हैं। किसी भी प्रोजेक्ट एवं परियोजना की लागत, कार्य-सूची, क्लाइंट्स एवं कांट्रेक्टरों से संपर्क आदि कार्य भी सिविल इंजीनियरों के जिम्मे होता है।
काफी व्यापक है कार्यक्षेत्रसिविल इंजीनियरिंगका कार्यक्षेत्र काफी फैला हुआ है। इसमें जरूरत इस बात की होती है कि छात्र अपनी सुविधानुसार किस क्षेत्र का चयन करते हैं। इसके अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में हाइड्रॉलिक इंजी..., मेटेरियल इंजी..., स्ट्रक्चरल इंजी.....,  अर्थक्वेक इंजी., अर्बन इंजी..., एनवायर्नमेंटल इंजी..., ट्रांसपोर्टेशन इंजी... और जियो टेक्निकल इंजीनियरिंग आदि आते हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी कार्य की संरचना बढ़ती जा रही है। प्रमुख कंपनियों के भारत आने से यहां भी संभावनाएं प्रबल हो गई हैं।
सिविल इंजीनियर बनने की योग्यतासिविल इंजीनियर बनने के लिए पहले छात्र को बीटेक या बीई करना होता है, जो 10+2 (भौतिकी, रसायन शास्त्र व गणित) या समकक्ष परीक्षा में उच्च रैंक प्राप्त करने के बाद ही संभव हो पाता है, जबकि एमएससी या एमटेक जैसे पीजी कोर्स के लिए बैचलर डिग्री होनी आवश्यक है। इन पीजी कोर्स में दाखिला प्रवेश परीक्षा के जरिए हो पाता है। इंट्रिग्रेटेड कोर्स करने के लिए 10+2 होना जरूरी है। बारहवीं के बाद पॉलिटेक्निक के जरिए सिविल इंजीनियरिंग का कोर्स भी कराया जाता है, जो कि डिप्लोमा श्रेणी में आते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया का स्वरूपइसमें दो तरह से प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। एक पॉलीटेक्निनक तथा दूसरा जेईई व सीईई। इसमें सफल होने के बाद ही कोर्स में दाखिला मिलता है। कुछ ऐसे भी संस्थान हैं, जो अपने यहां अलग से प्रवेश परीक्षा आयोजित करते हैं। बैचलर डिग्री के लिए आयोजित होने वाली प्रवेश परीक्षा जेईई (ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जाम) के जरिए तथा पीजी कोर्स के लिए आयोजित होने वाली परीक्षा सीईई (कम्बाइंड एंट्रेंस एग्जाम) के आधार पर होती है।
ली जाने वाली फीससिविल इंजीनियरिंग के कोर्स के लिए वसूली जाने वाली फीस अधिक होती है। बात यदि प्राइवेट संस्थानों की हो तो वे छात्रों से लगभग डेढ़ से दो लाख रुपए प्रतिवर्ष फीस लेते हैं, जबकि आईआईटी स्तर के संस्थानों में एक से डेढ़ लाख प्रतिवर्ष की सीमा होती है। इसमें काफी कुछ संस्थान के इंफ्रास्ट्रक्चर पर निर्भर करता है, जबकि प्राइवेट संस्थानों का प्रशिक्षण शुल्क विभिन्न स्तरों में होता है।
आवश्यक अभिरुचिसिविल इंजीनियर की नौकरी काफी जिम्मेदारी भरी एवं सम्मानजनक होती है। बिना रचनात्मक कौशल के इसमें सफलता मिलनी या आगे कदम बढ़ाना मुश्किल है। नित्य नए प्रोजेक्ट एवं चुनौतियों के रूप में काम करना पड़ता है। एक सिविल इंजीनियर को शार्प, एनालिटिकल एवं प्रैक्टिकल माइंड होना चाहिए। इसके साथ-साथ संवाद कौशल का गुण आपको लंबे समय तक इसमें स्थापित किए रखता है, क्योंकि यह एक प्रकार का टीमवर्क है, जिसमें लोगों से मेलजोल भी रखना पड़ता है।
इसके अलावा आप में दबाव में बेहतर करने, समस्या का तत्काल हल निकालने व संगठनात्मक गुण होने चाहिए, जबकि तकनीकी ज्ञान, कम्प्यूटर के प्रमुख सॉफ्टवेयरों की जानकारी, बिल्डिंग एवं उसके सुरक्षा संबंधी अहम उपाय, ड्रॉइंग, लोकल अथॉरिटी व सरकारी संगठनों से बेहतर तालमेल, प्लानिंग का कौशल आदि पाठय़क्रम का एक अहम हिस्सा हैं।
रोजगार से संबंधित क्षेत्रएक सिविल इंजीनियर को सरकारी विभाग, प्राइवेट और निजी क्षेत्र की इंडस्ट्री, शोध एवं शैक्षिक संस्थान आदि में काम करने का अवसर प्राप्त होता है। अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा इसमें संभावनाएं काफी तेजी से बढ़ी हैं। इसका प्रमुख कारण रियल एस्टेट में आई क्रांति ही है। इसके चलते हर जगह बिल्डिंग, शॉपिंग, मॉल, रेस्तरां आदि का निर्माण किया जा रहा है। यह किसी भी यूनिट को रिपेयर, मेंटेनेंस से लेकर कंस्ट्रक्शन तक का कार्य करते हैं। बीटेक के बाद रोड प्रोजेक्ट, बिल्डिंग वक्र्स, कन्सल्टेंसी फर्म, क्वालिटी टेस्टिंग लेबोरेटरी या हाउसिंग सोसाइटी में अवसर मिलते हैं। केन्द्र अथवा प्रदेश सरकार द्वारा भी काम के अवसर प्रदान किए जाते हैं। इसमें मुख्य रूप से रेलवे, प्राइवेट कंस्ट्रक्शन कंपनी, मिल्रिटी, इंजीनियरिंग सर्विसेज, कंसल्टेंसी सर्विस भी रोजगार से भरे हुए हैं। अनुभव बढ़ने के बाद छात्र चाहें तो अपनी स्वयं की कंसल्टेंसी सर्विस खोल सकते हैं।
इस रूप में कर सकते हैं कामसिविल इंजीनियरिंग
कंस्ट्रक्शन प्लांट इंजीनियर
टेक्निशियन
प्लानिंग इंजीनियर
कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट इंजीनियर
असिस्टेंट इंजीनियर
एग्जीक्यूटिव इंजीनियर
सुपरवाइजर
प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर
साइट/प्रोजेक्ट इंजीनियर
सेलरीइसमें मिलने वाली सेलरी ज्यादातर केन्द्र अथवा राज्य सरकार के विभाग पर निर्भर करती है, जबकि प्राइवेट कंपनियों का हिसाब उससे अलग होता है। बैचलर डिग्री के बाद छात्र को 20-22 हजार रुपए प्रतिमाह तथा दो-तीन साल का अनुभव होने पर 35-40 हजार के करीब मिलने लगते हैं। मास्टर डिग्री करने वाले सिविल इंजीनियरों को 25-30 हजार प्रतिमाह तथा कुछ वर्षों के बाद 45-50 हजार तक हासिल होते हैं। इस फील्ड में जम जाने के बाद आसानी से 50 हजार रुपये तक कमाए जा सकते हैं। विदेशों में तो लाखों रुपए प्रतिमाह तक की कमाई हो जाती है।
एजुकेशन लोनइस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख व विदेशों में अध्ययन के लिए 20 लाख तक लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी
आवश्यक है।
प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
वेबसाइट-
 www.iitd.ernet.in
(मुंबई, गुवाहाटी, कानपुर, खडगपुर, चेन्नई, रुड़की में भी इसकी शाखाएं मौजूद हैं)
बिड़ला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी (बीआईटीएस), रांची
वेबसाइट
www.bitmesra.ac.in
दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.dce.edu
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट
www.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट-
  www.nicmar.ac.in( गुड़गांव, बेंग्लुरू, पुणे, मुंबई, गोवा में भी शाखाएं मौजूद)
  
फायदे एवं नुकसान
बड़े शहरों में अन्य प्रोफेशनल्स की अपेक्षा न्यू कमर को अधिक सेलरी
कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बूम आने से प्रोफेशनल्स की भारी मांग
समाज व देश की प्रगति में भागीदार बनने पर अतिरिक्त खुशी
कई बार निर्धारित समय से अधिक काम करने से थकान की स्थिति
चिह्न्ति क्षेत्रों में शिफ्ट के रूप में काम करने की आवश्यकता
जॉब के सिलसिले में अधिक यात्राएं परेशानी का कारण

Sunday, April 8, 2018

साइबर एक्सपर्ट्स में कैरियर

आज लगभग हर क्षेत्र में इंटरनेट या कम्प्यूटर का उपयोग होने लगा है और इस पर लोगों की निर्भरता भी लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन कुछ लोग इसका बेजा इस्तेमाल भी करने लगे हैं। हैकर्स दूसरों के अकाउंट और महत्वपूर्ण डाटा को आसानी से उड़ा ले जाते हैं। हालांकि शुरू-शुरू के दिनों में इंटरनेट का इस्तेमाल महज रिसर्च और महत्वपूर्ण सूचनाओं को हासिल करने के उद्द्ददेश्य से ही किया जा रहा था, पर अब जिस तरह से इंटरनेट का प्रयोग तेजी से बढ़ने लगा है, कुछ उसी रफ्तार से साइबर क्राइम भी बढ़ रहा है। इससे निपटने के लिए साइबर लॉ और इसके एक्सपर्ट्स की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।

साइबर क्राइम
पूरी दुनिया में साइबर स्पेस का अपना एक कानून है, जिसका मकसद इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराधों पर लगाम लगाना है। इंटरनेट के जरिए अंजाम दिए जाने वाले अपराधों के हाइटेक रूप को ही साइबर क्राइम कहा जाता है। इसके अंतर्गत इंटरनेट द्वारा क्रेडिट कार्ड चोरी, ब्लैकमेलिंग, स्टॉकिंग, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क  फ्रॉड, पोर्नोग्राफी आदि जैसी आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जाता है।
साइबर लॉ एक्सपर्ट्स की बढ़ती डिमांडइन दिनों में जैसे-जैसे कम्प्यूटर पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। साइबर क्राइम बढ़ने की आशंका भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए एक्सपर्ट्स की आने वाले दिनों में अच्छी खासी डिमांड होगी। सामान्य कानून और पुलिस इस तरह के अपराधों से निपटने में सक्षम नहीं है। साइबर क्राइम से निपटने में वे लोग ही माहिर होते हैं, जो साइबर लॉ केविशेषज्ञ होने के साथ-साथ साइबर क्रिमिनल्स की हाइटेक टेक्निक से भी वाकिफ होते हैं।
साइबर की दुनिया में एंट्रीयदि आप साइबर एक्सपर्ट बनकर साइबर क्राइम पर फंदा कसना चाहते हैं, तो 12वीं के बाद इस तरह के कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। कानून, टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट, अकाउंट आदि क्षेत्रों से जुड़े स्टूडेंट्स या पेशेवर लोग भी इस तरह के कोर्स कर सकते हैं। जिन छात्रों ने पहले से ही लॉ कोर्स किया है। उन्हें लॉ के केवल बेसिक्स ही नहीं पढ़ने होंगे, बल्कि साइबर क्राइम और इससे निपटने के तरीके सीखने होंगे।
साइबर लॉ कोर्ससाइबर लॉ का क्षेत्र काफी व्यापक है। यहां तकनीकी विषयों के साथ-साथ कानूनी पहलुओं का भी अध्ययन किया जाता है। इसके पाठ्यक्रम में टेक्नोलॉजी और लॉ दोनों विषयों के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ाया जाता है। कोर्स स्ट्रक्चर इस प्रकार है :
-राइट आॅफ सिटीजंस और ई-गवर्नेंस
-इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट
-मैनेजमेंट और इससे जुड़े विषय
-लॉ आॅफ डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट
-बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी मुद्दे
-साइबर लॉ से जुड़े इंटरनेशनल पहलुओं का अध्ययन

करियर आॅप्शंस

इन दिनों साइबर लॉ के क्षेत्र में करियर आॅप्शंस की कोई कमी नहीं है। आइए जानते हैं, कौन-कौन से वे क्षेत्र हैं, जिनमें आप अपना करियर बना सकते हैं…
रिसर्च का क्षेत्र : रिसर्चर के रूप में देश की प्रमुख यूनिवर्सिटी, लॉ-फर्म्स, मल्टीनेशनल कंपनियों, गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स आदि में काम करने का खूब मौके हंै। अब्रॉड यूनिवर्सिटीज में हायर स्टडी के लिए स्कॉलरशिप भी मिल सकती है।
ट्रेनिंग के क्षेत्र : मल्टीनेशनल कंपनियों, बड़े कॉर्पोरेट हाउसेज, सरकारी और पुलिस डिपार्टमेंट्स में ट्रेनर के तौर पर। देश के जाने-माने ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स के फैकल्टी मेंबर के तौर पर। साइबर लॉ को करियर के रूप में अपनाकर संबंधित मुकदमों के निपटाने वाले विशेषज्ञ वकील बन सकते हैं।

मनी मीटर 

भारत में साइबर क्राइम तेजी से उभरता हुआ करियर क्षेत्र है। इस लिए इस क्षेत्र में सैलरी पैकेज भी काफी दमदार है। शुरू-शुरू में आपकी सैलरी प्रति माह 15 से 20 हजार रुपये होती है।
इंस्टीट्यूट्स वॉच
  • सिम्बॉयोसिस सोसायटी लॉ कॉलेज, पुणे
  • आसियान स्कूल आॅफ सायबर लॉ, पुणे
  • सेंटर आॅफ डिस्टेंस एजुकेशन, हैदराबाद
  • इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद
  • साइबर लॉ कॉलेज, नावी
  • अमेटी लॉ स्कूल, दिल्ली
  • डिपार्टमेंट आॅफ लॉ, दिल्ली यूनिवर्सिटी