Tuesday, May 31, 2016

पॉलिटेक्निक है राइट ऑप्शन?


10वीं-12वींके बाद टेक्निकल कोर्स में एडमिशन लेने के इच्छुक स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक राइट ऑप्शन हो सकता है। वैसे, आज के जॉब मार्केट में पॉलिटेक्निक से जुड़े स्टूडेंट्स की जबरदस्त डिमांड है। आइए जानते हैं, पॉलिटेक्निक में कैसे एडमिशन लिया जा सकता है और क्या हैं इसके फायदे?
स्कूल की दुनिया से बाहर निकलते ही हर साल हजारों स्टूडेंट्स इंजीनियर बनने का सपना देखने लगते हैं, लेकिन कई स्टूडेंट्स महंगी फीस और अच्छे मा‌र्क्स नहीं आने की वजह से बड़े संस्थानों में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का सपना पूरा नहींकर पाते। ऐसे में 12वीं के बाद बीटेक की चार साल की डिग्री की बजाय 10वीं या 12वीं के बाद तीन साल का डिप्लोमा करके भी जॉब मार्केट में कदम रखने का ऑप्शन मौजूद है। ऐसे स्टूडेंट्स के लिए पॉलिटेक्निक सुनहरा अवसर लेकर आता है। यह उन्हें तकनीकी और व्यावसायिक कोर्स का अवसर प्रदान करता है। दरअसल, ये कोर्स ऐसे होते हैं, जिसे पूरा करने के बाद खुद का व्यवसाय शुरू करने के लिए या फिर अच्छी जगह नौकरी करने की स्किल से लैस करता है। 
क्या है पॉलिटेक्निक?
आमतौर पर पॉलिटेक्निक ऑ‌र्ट्स और साइंस से संबंधित डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स ऑफर करते हैं। इसे टेक्निकल डिग्री कोर्स के नाम से भी जाना जाता है। पॉलिटेक्निक से संबंधित टेक्निकल कोर्स भी ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन (एआईसीटीई) द्वारा संचालित होते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य स्टूडेंट्स के प्रैक्टिकल और टेक्निकल स्किल को इंप्रूव करना है। वैसे, पॉलिटेक्निक संस्थान कई तरह के होते हैं। राज्य स्तर पर सरकारी, निजी और महिला पॉलिटेक्निक संस्थान सक्रिय हैं। यहां से आप डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स कर सकते हैं। इसके तहत आमतौर पर फैशन डिजाइन, टेक्सटाइल डिजाइन, इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, होटल मैनेजमेंट आदि से जुड़े कोर्स करवाए जाते हैं। कोर्स की अवधि एक से चार साल तक की होती है। इनमें दाखिला पाकर कम समय में ही अपने करियर में पंख लगा सकते हैं। इतना ही नहीं, कोर्स समाप्त होने के बाद जूनियर इंजीनियर बनने का रास्ता भी खुल जाता है। महिला पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं पर केंद्रित स्किल वाले कोर्स होते हैं।
क्वालिफिकेशन
इस कोर्स में दाखिले के लिए 10वीं में कम से कम 50 फीसदी अंकों के साथ पास होना जरूरी है। ऐसे 
स्टूडेंट्स आगे चलकर बीटेक के लिए होने वाली परीक्षा में भी शामिल हो सकते हैं। उन्हें तीन साल के कोर्स के बाद डिग्री भी मिल जाती है। 10वीं पास स्टूडेंट्स को राज्य स्तर पर कई संस्थान मेरिट के आधार पर तो कई राज्य स्तरीय संस्थान कॉमन एंट्रेंस एग्जाम के जरिए दाखिला देते हैं। इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने वाले स्टूडेंट्स चाहें, तो आगे पढ़ाई करके बीटेक की डिग्री भी हासिल कर सकते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेजों में ऐसे स्टूडेंट्स को लैटरल एंट्री के तहत दाखिला दिया जाता है।
खूब है डिमांड 
श्रीवेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी के चांसलर सुधीर गिरि के मुताबिक, सरकारी हो या फिर प्राइवेट सेक्टर्स, हर जगह जूनियर इंजीनियर्स की जबरदस्त डिमांड है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, आने वाले समय में लाखों डिप्लोमा होल्डर्स जूनियर इंजीनियर्स की जरूरत होगी। पॉलिटेक्निक कई लिहाज से फायदेमंद है। सबसे अहम बात यह है कि पॉलिटेक्निक में दाखिला लेने के लिए किसी बड़े एजुकेशनल क्वालिफिकेशन की जरूरत नहीं है। देखा जाए तो, आज पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा करने के बाद कंपनियों और संस्थानों में कई तरह के अवसर उपलब्ध हैं। बड़ी बात यह है कि उन्हें कंपनियों में आम प्रोफेशनल्स की तुलना में अच्छी सैलरी और सुविधाएं ऑफर की जाती हैं। 
सैलरी पैकेज
पॉलिटेक्निक डिप्लोमाधारी स्टूडेंट्स के लिए नौकरी हासिल करना आसान हो जाता है। पॉलिटेक्निक किए हुए प्रोफेशनल्स की शुरुआती सैलरी 15 से 20 हजार रुपये के बीच होती है। अगर आपने कोर्स के दौरान बेहतरीन परफॉर्म किया है, तो कैंपस इंटरव्यू में ही आपको नौकरी के कई अच्छे ऑफर मिल सकते हैं। 
पॉलिटेक्निक के खास कोर्स
मैकेनिकल इंजीनियरिंग, सिविल इंजीनियरिंग, ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग, पैकेजिंग टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिकल ऐंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग, अप्लाइड इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड इंस्ट्रूमेंटेशन, कम्प्यूटर इंजीनियरिंग, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी,माइनिंग इंजीनियरिंग, मेटलॉर्जिकल इंजीनियरिंग, टेक्सटाइल टेक्नोलॉजी, केमिकल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग इन प्लास्टिक ऐंड पॉलिमर्स, पेट्रोकेमिकल्स इंजीनियरिंग, लेटर टेक्नोलॉजी, प्रिटिंग टेक्नोलॉजी, फुटवियर टेक्नोलॉजी, आर्किटेक्चर कोर्सेज, एयरक्राफ्ट मेंटिनेंस इंजीनियरिंग, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइनिंग, होटल मैनेजमेंट, कॉमर्शियल ऐंड फाइन आर्ट, मास कम्युनिकेशन, इंटीरियर डिजाइन, ऑफिस मैनेजमेंट ऐंड कम्प्यूटर ऐप्लिकेशन, कम्प्यूटर साइंस आदि।

Sunday, May 29, 2016

डिकोडिंग द डिसऑर्डर में करियर


ह्यूमन बॉडी में मौजूद क्रोमोजोम्स में करीब 25 से 35 हजार के बीच जीन्स होते हैं। कई बार इन जीन्स का प्रॉपर डिस्ट्रीब्यूशन बॉडी में नहीं होता है, जिससे थैलेसेमिया, हीमोफीलिया, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, क्लेफ्ट लिप पैलेट, न्यूरोडिजेनेरैटिव जैसी एबनॉर्मलिटीज या हेरेडिटरी प्रॉब्लम्स हो सकती है। इससे निपटने के लिए हेल्थ सेक्टर में ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट और दूसरे इनेशिएटिव्स लिए जा रहे हैं, जिसे देखते हुए जेनेटिक काउंसलिंग का रोल आज काफी बढ गया है। अब जो लोग इसमें करियर बनाना चाहते हैं, उनके लिए स्कोप कहीं ज्यादा हो गए हैं।

जॉब आउटलुक

एक अनुमान के अनुसार, करीब 5 परसेंट आबादी में किसी न किसी तरह का इनहेरेटेड डिसऑर्डर पाया जाता है। ये ऐसे डिसऑर्डर्स होते हैं, जिनका पता शुरुआत में नहीं चल पाता है, लेकिन एक जेनेटिक काउंसलर बता सकता है कि आपमें इस तरह के प्रॉब्लम होने की कितनी गुंजाइश है। काउंसलर पेशेंट की फैमिली हिस्ट्री की स्टडी कर इनहेरेटेंस पैटर्न का पता लगाते हैं। वे फैमिली मेंबर्स को इमोशनल और साइकोलॉजिकल सपोर्ट भी देते हैं।

स्किल्स रिक्वायर्ड

जेनेटिक काउंसलिंग के लिए सबसे इंपॉर्टेट स्किल है कम्युनिकेशन। इसके अलावा, कॉम्पि्लकेटेड सिचुएशंस से डील करने का पेशेंस। एक काउंसलर का नॉन-जजमेंटल होना भी जरूरी है, ताकि सब कुछ जानने के बाद मरीज अपना डिसीजन खुद ले सके। उन्हें पेशेंट के साथ ट्रस्ट बिल्ड करना होगा।

करियर अपॉच्र्युनिटीज

अगर इस फील्ड में ऑप्शंस की बात करें, तो हॉस्पिटल में जॉब के अलावा प्राइवेट प्रैक्टिस या इंडिपेंडेंट कंसलटेंट के तौर पर काम कर सकते हैं। इसी तरह डायग्नॉस्टिक लेबोरेटरीज में ये फिजीशियन और लैब के बीच मीडिएटर का रोल निभा सकते हैं। कंपनीज को एडवाइज देने के साथ टीचिंग में भी हाथ आजमा सकते हैं। वहीं, जेनेटिक रिसर्च प्रोजेक्ट्स में स्टडी को-ओर्डिनेटर के तौर पर काम कर सकते हैं। बायोटेक और फार्मा इंडस्ट्री में भी काफी मौके हैं।

क्वॉलिफिकेशन

जेनेटिक काउंसलर बनने के लिए बायोलॉजी, जेनेटिक्स और साइकोलॉजी में अंडरग्रेजुएट की डिग्री के साथ-साथ लाइफ साइंस या जेनेटिक काउंसलिंग में एमएससी या एमटेक की डिग्री होना जरूरी है।

सैलरी

जेनेटिक काउंसलिंग के फील्ड में फाइनेंशियल स्टेबिलिटी भी पूरी है। हालांकि जॉब प्रोफाइल और सेक्टर के मुताबिक सैलरी वैरी करती है। प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाला प्रोफेशनल महीने में 50 हजार रुपये तक अर्न कर सकता है, जबकि गवर्नमेंट डिपार्टमेंट में काम करने वाले महीने में 25 से 40 हजार के बीच अर्न कर सकते हैं।

ट्रेनिंग

-गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर

-कामिनेनी इंस्टीट्यूट, हैदराबाद

-संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट, लखनऊ

-सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु

-महात्मा गांधी मिशन, औरंगाबाद

-जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली

-सर गंगाराम हॉस्पिटल, नई दिल्ली

एक्सपर्ट बाइट

जेनेटिक काउंसलिंग इंडिया में काफी तेजी से पॉपुलर हो रहा है। एप्लीकेशन के नजरिए से इसमें बहुत स्कोप है। नई लेबोरेटरीज खुल रही हैं, जिनके लिए जेनेटिक काउंसलर्स की काफी डिमांड है। वैसे, ट्रेडिशनल हॉस्पिटल्स के अलावा फार्मा कंपनीज में, कॉरपोरेट एनवॉयरनमेंट के बीच काम करने के पूरे मौके मिलते हैं। अब तक मेडिकल प्रोफेशन से जुडे स्टूडेंट्स ही इसमें आते थे, लेकिन अब नॉन-मेडिकल स्टूडेंट्स भी आ रहे हैं।

Thursday, May 26, 2016

फिलॉसफी के कोर्स

फिलॉसफी के क्षेत्र में वेतनमान ऊंचाइयां छूता है। टीचिंग के क्षेत्र में एक असिस्टेंट प्रोफेसर 30000 रुपए प्रतिमाह से ऊपर वेतनमान प्राप्त करता है। इसके अलावा एक प्रोफेसर 80000 रुपए प्रतिमाह प्राप्त करता है। आरकेएमवी शिमला में हर वर्ष 60 छात्राएं यह कोर्स करके निकल रही हैं। हिमाचल में इस समय 50 से अधिक लोग इस क्षेत्र से जुड़े हैं
फिलॉसफी एक वैज्ञानिक विषय हैजिसमें सच्चाई और वास्तविकता के कारणों का पता लगाने के लिए तर्क का प्रयोग किया जाता है। एक व्यक्ति जो फिलॉसफी सीखता हैउसे फिलॉस्फर कहा जाता है और यह जीवन भर सीखी जाने वाली प्रक्रिया है। जिन्हें मेटाफिजिक्सलॉजिकरेशनलिज्म आदि में रुचि हैफिलॉसफी उन बुद्धिजीवियों के लिए यह उचित प्रोफेशन है। फिलॉसफी दूसरे विषयों की तरह नहीं है। दूसरी कई अकादमिक शिक्षा छात्रों को एक बेहतर कैरियर बनाने के लिए प्रदान करवाई जाती हैलेकिन फिलॉसफी इन सबसे अलग है। यह कोई ट्रेनिंग नहीं हैबल्कि जीवन भर सीखने वाली शिक्षा है। यदि आपकी रुचि इस क्षेत्र में हैतो यह एक बेहतर कैरियर विकल्प बन सकता है। फिलॉसफी की कुछ उप शाखाएं हैंजिनमें से किसी एक को चुनकर आप बेहतर कैरियर बना सकते हैंवे हैं-  एस्थेटिक्स ः यह मुख्य रूप से  सौंदर्यरुचि और भावनात्मक सार्थकता पर आधारित शिक्षा है। एस्थेटिक्स मुख्य रूप से फिलॉसफी आफ आर्ट से संबंधित है। एपिस्टमोलॉजी ः इस शाखा में प्रकृति से लगावविश्वास और ज्ञान के बारे में बताया जाता है। एथिक्स ः यह अच्छेकीमती और सही की शिक्षा है। इसमें अप्लायड नीति शास्त्र की शिक्षा भी दी जाती है। लॉजिक ः इसमें अच्छे तर्क-वितर्क की शिक्षा दी जाती हैवाद-विवाद के जरिए तर्कों को आंका जाता है। मेटाफिजिक्स ः यह शाखा वास्तविकता की असली पहचान की शिक्षा देती है।
शैक्षणिक योग्यता 
फिलॉसफी विषय में प्रवेश के लिए छात्र का बारहवीं पास होना आवश्यक होता है। इस कोर्स को करने की अवधि तीन साल की है। कई संस्थानों द्वारा इस कोर्स में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। फिलॉसफी के मुख्य कोर्सों में आप बीएएमएएमफिल और पीएचडी आदि कर सकते हैं। डाक्टर आफ फिलॉसफी में प्रवेश पाने के लिए छात्र का संबंधित विषय में एमफिल होना आवश्यक है। 
कोर्स 
फिलॉसफी के कोर्स आप दुनिया के किसी भी हिस्से से कर सकते हैं। एथिक्स और एस्थेटिक्स भी इस कोर्स का हिस्सा हैं। लॉजिक एक दूसरा हिस्सा हैजो फिलॉसफी के कोर्स में छात्रों को करवाया जाता है। भारत में कई सरकारी और निजी संस्थानों द्वारा फिलॉसफी में कोर्स करवाए जाते हैं। इसके मुख्य कोर्सों में आप बीए इन फिलॉसफीअंडरग्रेजुएट कोर्स इन फिलॉसफीपोस्ट ग्रेजुएट कोर्स इन फिलॉसफी,  मास्टर डिग्री इन फिलॉसफीपीएचडी इन फिलॉसफीमास्टर आफ फिलॉसफी (लॉ)डाक्टर आफ फिलॉसफी (पार्ट टाइम)मास्टर आफ फिलॉसफी (एमफिल) इन इकोनोमिक्सबीए (ऑनर्स) इन फिलॉसफी और डिप्लोमा इन फिलॉसफी एंड रिलीजन आदि कोर्स भी कर सकते हैं। बीए करने के बाद आप लिंग्विस्टिक्ससोशियोलॉजीसाइकोलॉजी और यहां तक कि इतिहास के क्षेत्रों में आप उच्च शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं। 
रोजगार की संभावनाएं  
इस कोर्स को करने के बाद ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट छात्रों के लिए सरकारीकारपोरेट क्षेत्रों में कई कैरियर विकल्प उपलब्ध रहते हैं। कारपोरेट क्षेत्र में एक फिलॉसफी ग्रेजुएट मैनपावर डिवेलपमेंट मैनेजर और मैनपावर सर्विसेज को-आर्डिनेटर के रूप में नौकरी प्राप्त कर सकता है। सरकारी क्षेत्र में आप एक आर्किविस्ट के रूप में काम कर सकते हैं। एक कंसल्टिंग फिलॉस्फर की मांग उनके विचारों और फिलॉसफी की वजह से पूरी दुनिया में रहती है। इसके अलावा एक फिलॉस्फर जर्नलिज्म और पब्लिशिंग इंडस्ट्री में एक राइटर और एडीटर के रूप में रोजगार प्राप्त कर सकता है। इसके साथ ही आप रिसर्च में भी जा सकते हैं। एक ग्रेजुएट डिग्री प्राप्त करने वाला दूसरे अन्य कई क्षेत्रों में नौकरी प्राप्त कर सकता है। इस क्षेत्र में निपुण व्यक्ति सरकारी और निजी फर्मों में बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। सरकारी और निजी स्कूलों में भी फिलॉसफी के क्षेत्र में ढेरों संभावनाएं हैं। इसके अलावा कालेजों और विश्वविद्यालयों में भी आप बेहतर रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। यहां पर आप एक प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही आप भारत के अलावा विदेशों में अच्छे वेतनमान पर नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। यहां पर आप कारपोरेट क्षेत्रों में नौकरी प्राप्त करके बेहतर कमाई भी कर सकते हैं।
वेतनमान 
फिलॉसफी के क्षेत्र में वेतनमान ऊंचाइयां छूता है। टीचिंग के क्षेत्र में एक असिस्टेंट प्रोफेसर 30000 रुपए प्रतिमाह से ऊपर वेतनमान प्राप्त करता है। इसके अलावा एक प्रोफेसर 80000 रुपए प्रतिमाह प्राप्त करता है। 
कोर्स 
1.    बीए इन फिलॉसफी 
2.    अंडरग्रेजुएट कोर्स इन फिलॉसफी 
3.    पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स इन फिलॉसफी   
4.    मास्टर डिग्री इन फिलॉसफी 
5.    पीएचडी इन फिलॉसफी 
6.    मास्टर आफ फिलॉसफी (लॉ)  
7.    डाक्टर आफ फिलॉसफी (पार्ट टाइम)  
8.    मास्टर आफ फिलॉसफी (एमफिल) इन    इकोनोमिक्स  
9.    बीए (ऑनर्स) इन फिलॉसफी 
10. डिप्लोमा इन फिलॉसफी एंड रिलीजन 
संस्थान 
1.  राजकीय कन्या महाविद्यालयशिमला 
2.  गवर्नमेंट डिग्री कालेजनालागढ़
3. महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटीरोहतक 
4.  एसआर गवर्नमेंट कालेज फार वूमेनअमृतसर 
5.  गुरु नानक देव यूनिवर्सिटीअमृतसर 
6.  पंजाबी यूनिवर्सिटीपटियाला 
7.  देव समाज कालेज फार वूमनफिरोजपुर 
8. डीएवी कालेज फार वूमनअमृतसर 
9. पंजाब यूनिवर्सिटीचंडीगढ़ 
10. कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटीकुुरुक्षेत्र 
11. गवर्नमेंट नेशनल कालेजसिरसा 
12. दिल्ली विश्वविद्यालयदिल्ली

Monday, May 23, 2016

जायके से भरपूर करियर

आज से 10-12 साल पहले तक कुकिंग स्किल्स को ज्यादा इंपॉर्र्टेस नहींदीजाती थी, लेकिन अब टाइम बदल चुका है। शेफ का रोल किचन तक लिमिटेड नहीं रहा। वह टीवी शोज होस्ट करने से लेकर बुक्स लिख रहे हैं, यानी यह एक ग्लैमरस करियर के तौर पर हमारे सामने आया है। आज शेफ का स्टेटस किसी सेलिब्रेटी से कम नहीं रह गया है। चैनल्स पर आने वाले कुकिंग से रिलेटेड रिएलिटी शोज की पॉपुलैरिटी में शेफ की अच्छी खासी भूमिका होती है। मशहूर शेफ कुणाल कपूर इसके एग्जांपल हैं। कुणाल को दूरदर्शन पर आने वाले शो दावत ने शेफ बनने के लिए इंस्पायर किया था। इनका कहना है कि जिनमें भी कुकिंग को लेकर राइट एटीट्यूड और स्पाइसेज की सही पहचान हो, वो शेफ के तौर पर अट्रैक्टिव करियर बना सकते हैं।
लीडरशिप क्वॉलिटीज
शुरुआती दौर में इस इंडस्ट्री में काफी हार्ड वर्क की जरूरत होती है। अलग-अलग कंट्रीज के लोगों की डाइट की जानकारी रखनी होती है कि वे क्या खाना पसंद करते हैं। एक शेफ के लिए यह जानना भी जरूरी होता है कि इंडिया की कौन सी रेसिपीज दूसरे कंट्री की किस रेसिपी से मैच करती है। एक बार यह समझ में आ गया, तो आगे आप खुद ही सक्सेस की नई मंजिलें तय करते जाएंगे। हां, कुणाल की एक बात पर ध्यान देना होगा कि एक अच्छे शेफ का अच्छा लीडर होना जरूरी है क्योंकि जैसे-जैसे वह करियर में आगे बढेगा, उसे फूड के क्वॉलिटी कंट्रोल, फाइनेंस मैनेजमेंट, मेन्यू प्लानिंग, हायरिंग और टीम मैनेजमेंट का भी ध्यान रखना होगा। इस तरह एक बार फील्ड में खुद को स्टैब्लिश कर लेंगे तो किसी सेलिब्रिटी से कम पहचान नहींहोगी आपकी।

ग्रोइंग सेक्टर

ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स के अनुसार, 2016 तक शेफ और फूड प्रोफेशनल्स की एंप्लॉयमेंट रेट में 16 परसेंट का इजाफा हो सकता है। इस इंडस्ट्री में काफी जॉब ऑप्शंस हैं। होटल, रेस्टोरेंट, एयर कैटरिंग यूनिट्स, फूड प्रोसेसिंग कंपनीज, क्रूज लाइनर और कॉरपोरेट कैटरिंग यूनिट्स में शेफ के लिए नई अपॉच्र्युनिटीज क्रिएट हो रही हैं। इसके अलावा सेल्फ एंप्लॉयमेंट के भी ऑप्शन हैं। वैसे, कुणाल की ऐसे लोगों को एडवाइस है कि कोर्स करने के बाद अगर अपना वेंचर स्टार्ट करना चाहते हैं, तो पहले किसी अच्छे होटल में काम करें। एक्सपीरियंस होने पर ही आगे बढें।

इंटरनेशनल फूड का क्रेज

कुकिंग आज कोई डेली रूटीन या एक्टिविटी नहींरही गई। इसमें एक्सपेरिमेंट्स हो रहे हैं। लोगों का टेस्ट चेंज हो रहा है। उनमें इंडियन के अलावा इंटरनेशनल फूड का क्रेज बढा है, जिससे पूरी हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री को फायदा मिला है। कुणाल के अनुसार, कस्टमर्स की इस नई डिमांड को एक प्रोफेशनल शेफ ही पूरा कर सकता है। यह एक शेफ की ही रिस्पॉन्सिबिलिटी है कि वह कस्टमर के टेस्ट के मुताबिक, अलग-अलग तरह के कुजींस प्लान करे, इसलिए एक शेफ को चाइनीज, फ्रेंच, इटैलियन, कॉन्टिनेंटल, मैक्सिकन जैसे तमाम कुजींस की जानकारी होनी जरूरी है। इसी से वे लोगों का दिल जीत पाते हैं और उन्हें सक्सेस मिलती है। इन दिनों तो बहुत सारे इंडियन शेफ मैक्सिकन, मेडिटेरेनियन और सुशी जैसे फॉरेन कुजींस में स्पेशलाइजेशन कर रहे हैं।

हॉस्पिटल में डिमांड

डेवलप्ड कंट्रीज में तो ज्यादातर हॉस्पिटल्स में शेफ काफी पहले से ही रखे जाते रहे हैं। अब यह ट्रेंड इंडिया में भी बढ रहा है। हालांकि अभी यह बडे हॉस्पिटल्स तक ही सीमित है, लेकिन जैसे-जैसे लोग हेल्थ को लेकर कॉन्शियस हो रहे हैं, हॉस्पिटल्स भी अच्छे शेफ्स हायर करने लगे हैं। आने वाले टाइम में इस फील्ड में भी काफी स्कोप देखने को मिलेगा।

गुड इंस्टीट्यूट मैटर्स
कुणाल के अनुसार, शेफ एक आर्टिस्ट की तरह है, जिसे कुकरी क्राफ्ट में स्पेशलाइज्ड ट्रेनिंग लेनी जरूरी है। इसलिए इस फील्ड में एंट्री करनी है, तो अच्छे इंस्टीट्यूट से होटल मैनेजमेंट का कोर्स करें। इसके लिए मिनिमम सीनियर सेकंडरी लेवल तक की एजुकेशन जरूरी है। आप द नेशनल काउंसिल ऑफ होटल मैनेजमेंट ऐंड कैटरिंग टेक्नोलॉजी का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करके भी इसमें एंट्री ले सकते हैं।

सैलरी

एक ट्रेनी को करियर के शुरुआती दौर में 10 से 15 हजार रुपये मिलने लगते हैं। एक्सपीरियंस बढने पर हर महीने 40 से 50 हजार रुपये सैलरी मिलती है। अगर फाइव स्टार होटल में जॉब मिल गई, तो इनकम 1 से 2 लाख रुपये या इससे भी अधिक हो सकती है।


Saturday, May 21, 2016

लैंडस्केपिंग आर्किटेक्चर में करियर

अगर आप बिल्डिंग निर्माण के क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो लैडस्केपिंग आर्किटेक्चर आपके करियर के लिए बेहतर विकल्प होगा. यह क्षेत्र समय के साथ तेजी से विकास कर रहा है. अब बिल्डिंगों के इंटीरियर डिजाइन पर जितना ध्यान दिया जाता है उतना ही बिल्डिंग के आस-पास के आर्किटेक्चर पर.
क्या है लैंडस्केपिंग आर्किटेक्चर?
इसमें मुख्य रूप से बिल्डिंग के आउटडोर पब्लिक एरिया को प्राकृतिक रूप से डिजाइन किया जाता है, जिसमें वाटर बॉडी, स्टोन, टाइल्स, पेड़-पौधे को आकर्षक बनाया जाता है.
संबंधित कोर्स: इस कोर्स को करने के लिए साइंस स्ट्रीम से 12वीं पास होना जरूरी है. जिसके बाद आप इस विषय में ग्रेजुएशन तथा पोस्ट ग्रेजुएशन भी कर सकते हैं. लैंडस्केपिंग कोर्स से जुड़े अन्य कोर्सेज बीआर्क, बीएससी, एग्रीकल्चर में भी एडमिशन ले सकते हैं.
कहां से करें पढ़ाई?
सेंटर फॉर एनवॉयरमेंट प्लानिंग एंड टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी, अहमदाबाद
स्कूल ऑफ प्लानिंग ऐंड आर्किटेक्चर, नई दिल्ली
एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग, नोएडा
डॉ. भानुबेन नानावती कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर फॉर वुमन, पुणे
डॉ. वाईएसपी इंस्टीट्यूट ऑफ हार्टिकल्चर एंड फॉरेस्टी, सोलन (हिमाचल प्रदेश)
कहां मिलेंगे अवसर:
इस क्षेत्र में निजी सेक्टरों में ज्यादा जॉब की संभावना रहती है. इस क्षेत्र में कंस्ट्रक्शन कंपनियों, हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म कंपनियों, फर्म्स में रोजगार पाने के भरपूर मौके हैं. अगर आप चाहें तो कॉन्ट्रैक्ट लेकर भी अपने हिसाब से काम कर सकते हैं. प्राइवेट के साथ-साथ सरकारी विभागों में भी अब अधिक से अधिक में रोजगार मिलने की संभावना बन रही है.

Friday, May 20, 2016

ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर


मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैथमेटिक्स में दिलचस्पी है, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के साथ करियर को रफ्तार दे सकते हैं। अगर आप इनोवेटिव और क्रिएटिव माइंडेड हैं, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग का करियर अपना सकते हैं। इस फील्ड में शानदार पे-पैकेज के अलावा, जॉब की भरपूर संभावनाएं हैं। जानिए इस इनोवेटिव फील्ड में कैसे मिल सकती है आपको एंट्री.. 

भारतीयों की Rय शक्ति और गाç़डयों की सेल्स बढ़ने से ऑटोमोबाइल सेक्टर तेजी से उभरती हुई इंडस्ट्री बन गया है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ऑटो सेक्टर सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देता है। कहते हैं कि किसी भी ऑटो कंपनी में एक जॉब क्रिएटिव होने का मतलब है, तीन से पांच इनडायरेक्ट जॉब ऑप्शंस का खुलना। जिस तरह से मार्केट में देशी-विदेशी कंपनियों की नई इनोवेटिव कारें लॉन्च हो रही हैं, उसे देखते हुए ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। अगर आपको भी कार का पैशन है। मैकेनिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैथमेटिक्स में दिलचस्पी है, तो ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के साथ करियर को रफ्तार दे सकते हैं। 

ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग

एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर पर कई प्रकार की जिम्मेदारियां होती हैं। उन्हें कम लागत में बेहतरीन ऑटोमोबाइल डिजाइन करना होता है। इसलिए इंजीनियर्स को सिस्टम और मशीनों से संबंधित रिसर्च और डिजाइनिंग में काफी समय देना प़डता है। पहले ड्रॉइंग और ब्लूप्रिंट तैयार किया जाता है। इसके बाद इंजीनियर्स उनमें फिजिकल और मैथमेटिकल प्रिंसिपल्स अप्लाई कर उसे डेवलप करते हैं। इस तरह ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स प्लानिंग, रिसर्च वर्क के बाद एक फाइनल प्रोडक्ट तैयार करते हैं, जिसे मैन्युफैक्चरिंग के लिए भेजा जाता है। यहां भी उन्हें पूरी निगरानी रखनी होती है। व्हीकल बनने के बाद उसकी टेस्टिंग करना इनकी ही जवाबदेही होती है, जिससे कि मार्केट से कोई शिकायत न आए। 

स्पेशलाइजेशन फायदेमंद

अगर कोई ऑटोमोबाइल इंजीनियर किसी खास एरिया में स्पेशलाइजेशन करता है, तो इससे उन्हें काफी फायदा होता है। मार्केट में उनकी एक अलग पहचान बनती है, जैसे-ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स एग्जॉस्ट सिस्टम, इंजन और स्ट्रक्चरल डिजाइन में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं। 

बेसिक स्किल्स

ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनने के लिए आपके पास टेक्निकल के साथ-साथ फाइनेंशियल नॉलेज होना भी जरूरी है। आपको जॉब के कानूनी पहलुओं से अपडेट रहना होगा। इसके अलावा, इनोवेटिव सोच और स्ट्रॉन्ग कम्युनिकेशन स्किल आगे बढ़ने में मदद करेंगे। इस फील्ड में ड्यूटी ऑवर्स काफी लंबे होते हैं। इसलिए आपको प्रेशर और डेडलाइंस के तहत काम करना आना चाहिए। 

एजुकेशन
केमिस्ट्री, मैथ्स, फिजिक्स में दिलचस्पी रखने वाले युवा ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर बना सकते हैं। इसके लिए 10वीं के बाद डिप्लोमा भी किया जा सकता है या फिर आप ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। हां, बीई या बीटेक करने के लिए आपका मैथ्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री, कंप्यूटर साइंस जैसे सब्जेक्ट्स के साथ 12वीं होना जरूरी है। आप ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में स्त्रातक के बाद ऑटोमोटिव्स या ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग में एमई या एमटेक भी कर सकते हैं। अगर विशेषज्ञता हासिल करनी हो, तो पीएचडी भी की जा सकती है। बीई या बीटेक में एंट्री के लिए आइआइटी, जेइइ, एआइइइइ, बिटसेट आदि अखिल भारतीय या राज्य स्तर की प्रवेश परीक्षाएं देनी होती हैं। 

नौकरी की संभावनाएं
ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में विभिन्न प्रकार की संभावनाएं मौजूद हैं। कार बनाने वाली कंपनी से लेकर सर्विस स्टेशन, इंश्योरेंस कंपनीज, ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन में ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स के लिए काफी मौके हैं। इसके अलावा, जिस तरह से स़डकों पर गाç़डयों की संख्या बढ़ रही है, उनकी मेंटिनेंस और सर्विसिंग करने वाले प्रोफेशनल्स की मांग में भी बढ़ोत्तरी हो रही है। आप ऑटोमोबाइल टेक्निशियन, कार या बाइक मैकेनिक्स, डीजल मैकेनिक्स के रूप में काम कर सकते हैं। आप किसी ऑटो कंपनी में सेल्स मैनेजर, ऑटोमोबाइल डिजाइंस पेन्ट स्पेशलिस्ट भी बन सकते हैं। 

सैलरी पैकेज

एक ग्रेजुएट ऑटोमोबाइल इंजीनियर ट्रेनिंग के समय से ही कमाना शुरू कर देता है। कहने का मतलब यह कि ट्रेनिंग के दौरान कंपनियां उन्हें 15 से 30 हजार रूपये तक का स्टाइपेंड आसानी से दे देती हैं। अगर नौकरी कंफर्म हो गई, तो सैलरी खुद-ब-खुद बढ़ जाती है। वैसे, इंडिया में एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर को सालाना 3 से 8 लाख रूपये मिल जाते हैं। सबसे ज्यादा सैलरी व्हीकल मैन्युफैक्चरर देते हैं। इसके बाद प्रोडक्ट डेवलपमेंट और इंजीनियरिंग फम्र्स भी उन्हें अच्छा पे-पैकेज ऑफर करती हैं। इस फील्ड में अच्छा खासा अनुभव होने के बाद एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर 25 से 35 लाख रूपये सालाना आसानी से कमा सकते हैं।

Thursday, May 19, 2016

नर्सिग इंफॉर्मेटिक्स


तकनीक की सबसे अच्छी बात है कि उसे किसी भी चीज से जोड़ दीजिए, वह कुछ नया प्रस्तुत कर देती है। हेल्थकेयर में टेक्नोलॉजी के समावेश ने इस सेक्टर को तो तब्दील किया ही है, साथ ही इस फील्ड से जुड़े कॅरिअर में भी विकल्प पैदा किए हैं। नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स इसका एक उदाहरण है। नर्सिंग साइंस, कम्प्यूटर साइंस और इन्फॉर्मेशन साइंस के मिश्रण से बना नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स कोर्स मेडिकल और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर करिअर में आगे बढ़ने का अवसर देता है।
क्या है नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स
नर्सिंग के साथ आईटी के इस्तेमाल ने मरीज से संबंधित सटीक आंकड़ों और उनकी देखभाल से जुड़ी सूचनाओं को एकत्र करना काफी आसान बनाया है। सरल शब्दों में समझें तो नर्सिंग प्रैक्टिस के लिए आंकड़ों, सूचनाओं और नर्सिंग से जुड़ी जानकारियों का प्रबंधन नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स करता है, ताकि बीमारी की पहचान से जुड़े फैसले लेने में आसानी हो सके। ये सभी काम इन्फॉर्मेशन स्ट्रक्चर, इन्फॉर्मेशन प्रोसेस और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की मदद से पूरे होते हैं। संक्षेप में नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स मरीजों/ उपभोक्ताओं की सीधी देखभाल के लिए प्रभावी आंकड़े जुटाने में नर्स की मदद करता है।
नर्सिंग साइंस, कम्प्यूटर साइंस और इन्फॉर्मेशन साइंस के मिश्रण से बना नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स कोर्स, मेडिकल और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर करिअर में आगे बढ़ने का अवसर देता है।
प्रवेश कैसे करें
मान्यता प्राप्त संस्थानों से नर्सिंग में बैचलर डिग्री/डिप्लोमा के आधार पर कई संस्थान इस पढ़ाई के लिए प्रवेश देते हैं।
क्या पढ़ना होगा
क म्प्यूटर हार्डवेयर, सॉ फ्टवेयर, प्रोग्रामिंग लैंग्वेज, नेटवर्क्‍स के साथ नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स के कॉन्सेप्ट व टर्मिनोलॉजी, केयर मैनेजमेंट प्रिंसिपल आदि का अध्ययन इस विषय की पढ़ाई में शामिल है। कहां पढ़ें - संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, लखनऊ स्कूल ऑफ टेलीमेडिसिन एंड बायोमेडिकल इन्फॉर्मेटिक्स में आप नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स में डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया में इंटीग्रेटिड एमएसी एंड पीएचडी में इलेक्टिव विषय के रूप में नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स पढ़ी जा सकती है।
नर्सिंग इन्फॉर्मेटिक्स नर्स, इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी से लैस रजिस्टर्ड नर्स होते हैं, जो नर्सिंग और क म्प्यूटर साइंस के समावेश से स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न योजनाओं के लिए क्लीनिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम को डिजाइन, डेवलप और इम्प्लीमेंट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। अपने नर्सिंग ज्ञान की बदौलत ये पेशेवर हेल्थकेयर सिस्टम की सफल डिजाइनिंग और इ म्पलीमेंटेशन के लिए बेहद अहम होते हैं। दूसरे स्वास्थ्य कर्मियों को सिस्टम के इस्तेमाल के बारे में शिक्षित करना, इस सिस्टम के माध्यम से रोगी का मेडिकल रिकॉर्ड तैयार करना और रोगी से संबंधित सभी जानकारियों को अपडेट रखना भी इन्हीं की जि मेदारी होती है। एक इन्फॉर्मेटिक्स नर्स का लक्ष्य ऐसे सिस्टम को डिजाइन और इ म्पलीमेंट करना होता है, जो डॉक्यूमेंटेशन एक्यूरेसी में सुधार करे, अनावश्यक काम को खत्म करे, एक्यूरेसी बढ़ाए और क्लीनिकल डाटा एनालिसिस को इनेबल बनाए। इन्फॉर्मेटिक्स नर्स ऐसे रिसोर्स, डिवाइस और मेथड तैयार करते हैं, जिससे स्वास्थ्य क्षेत्र में सिक्योरिंग, स्टोरेज, र्रिटीवल और इन्फॉर्मेशन का सही इस्तेमाल हो सके। एक पेशेवर की भूमिकाएं अलग- अलग क्षेत्रों में अलग- अलग होती हैं। वे बतौर प्रोजेक्ट मैनेजर, हेल्थ इन्फॉर्मेशन मैनेजर किसी संस्थान में नियुक्त हो सकते हैं, नर्सो के लिए सॉ फ्टवेयर डिजाइन कर सकते हैं या उसमें मदद कर सकते हैं। इसके अलावा, उनके कामों में नर्सों को प्रशिक्षित करना, किसी संस्थान के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम लिखना या क्लीनिकल इन्फॉर्मेशन सिस्टम इ म्प्लीमेंट करना भी शामिल होता है।

Monday, May 16, 2016

न्यूक्लियर साइंस में करियर

दुनिया भर में ऊर्जा की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा समस्या के समाधान के रूप में उभरकर सामने आई है। उसके माध्यम से जहां ऊर्जा की बचत की जा सकती है, वहीं इसकी लागत को भी कम किया जा सकता है। दुनिया की नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भरता बढऩे के साथ तकरीबन हर देश न्यूक्लियर साइंस पर शोध कार्यों को तरजीह देने लगा है। इसके न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स और इंजीनियर्स की मांग में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। 

भारत का 2025 तक विद्युत ऊर्जा के उपयोग को 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। भारत ने 2020 तक 20 हजार मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। विशेषज्ञों की मानें, तो नाभिकीय डील और ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों की वजह से आने वाले समय में इस क्षेत्र में एक लाख प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी।


क्यों हैं भविष्य का क्षेत्र

एक अनुमान के मुताबिक, आज पूरे विश्व में पचास मिलियन टन हाइड्रोजन ईंधन का उपयोग किया जाता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो ऊर्जा के रूप में उपयोग करने पर नौ मिलियन टन हाइड्रोजन बीस से तीस मिलियन कार या आठ से नौ मिलियन घरों में ऊर्जा दे सकती है। इसके उपयोग से हमारी तेल के उपर निर्भरता कम हो जाएगी। आज भारत में विद्युत उत्पादन का करीब 3 प्रतिशत नाभिकीय ऊर्जा से होता है। इस क्षेत्र के विकास के लिए भारत सरकार ने कमर कस ली है। ऐसा माना जा रहा है कि अगले दो दशकों में यह कारोबार 100 बिलियन डॉलर का हो जाएगा।
 

इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की हरी झंडी मिलने के बाद प्राइवेट सेक्टर की कई कंपनियां भी इस क्षेत्र में आ सकती हैं। जानकारों का मानना है कि न्यूक्लियर इंडस्ट्री अब काफी हद तक ग्लोबल हो चुकी है और कोई भी देश इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए दूसरों से अलग-थलग रहते हुए सिर्फ अपने आप पर निर्भर नहीं रह सकता। यह चीन और भारत जैसे देशों के संदर्भ में भी उतना ही सही है, जितना अमेरिका या यूरोप के संदर्भ में। उनका यह भी कहना है कि इस सेक्टर में शोध की व्यापक संभावनाएं हैं। वैसे देखा जाए, तो भारत पहले ही दुनिया में परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र का दर्जा हासिल कर चुका है। फिलहाल हमारे देश में 17 एटॉमिक पावर स्टेशन हैं। इसके अलावा छह और निर्माणाधीन हैं।

कैसी होनी चाहिए योग्यता

न्यूक्लियर इंजीनियरिंग क्षेत्र में एक अच्छी बात यह है कि यहां काम शुरू करने के लिए आपको न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होना जरूरी नहीं है। फिजिक्स, केमिस्ट्री या मैथ्स विषय के डिग्रीधारी भी इससे जुड़े कुछ कार्यों के योग्य हो सकते हैं। इसमें विशेषज्ञता हासिल करने के लिए आप अमेरिका या कनाडा जैसे देश के किसी प्रतिष्ठित संस्थान से मास्टर्स डिग्री कर सकते हैं। वर्ल्ड न्यूक्लियर यूनिवर्सिटी जैसे कई अंतरराष्ट्ररीय संस्थान हैं, जो न्यूक्लियर एजुकेशन को मजबूती देने और न्यूक्लियर साइंस व टेक्नोलॉजी में भविष्य का नेतृत्व तैयार करने की दिशा में कार्यरत हैं। इस फील्ड में विज्ञान की मूलभूत जानकारियां, अपग्रेड होती तकनीक, विज्ञान की सामाजिक उपयोगिता के बारे में जानकारी होना जरूरी है। इस कोर्स का मुख्य मकसद ऐसे इंजीनियरों को तैयार करना है, जो नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में विशेषज्ञ हों।


कार्य का स्वरूप

एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट के काम में इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन जैसे सब-एटॉमिक पार्टिकल्स और विज्ञान में उनके प्रभाव और उपयोगिता के बारे में अध्ययन करना शामिल है। वे विभिन्न उद्देश्यों के लिहाज से इन सबएटॉमिक पार्टिकल्स को काम में लाने और इस्तेमाल के तौर-तरीकों का अध्ययन करते हैं। इसके अलावा, नाभिकीय ऊर्जा और नाभिकीय हथियारों के निर्माण के लिए विखंडन प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं। परमाणु विज्ञानी सेफ्टी प्रोटोकॉल्स, परिष्कृत तकनीकों को तैयार करते हैं और नाभिकीय रिएक्शनों के नए इस्तेमाल संबंधी परीक्षणों को भी अंजाम देते हैं। दूसरी ओर नाभिकीय इंजीनियर लेबोरेट्रीज, इंडस्ट्रीज और यूनिवर्सिटीज के लिए नाभिकीय प्रक्रियाओं से संबंधित उपकरण और प्रणाली तैयार करते हैं ताकि नाभिकीय ऊर्जा के फायदे समाज तक पहुंच सकें। वे न्यूक्लियर फिजिक्स के सिद्धांतों के आधार पर एटॉमिक न्यूक्लियर के विश्लेषण संबंधी कार्य से जुड़े होते हैं।

इसमें नाभिकीय विखंडन सिस्टम्स और इसके घटकों खासकर नाभिकीय रिएक्टर्स, नाभिकीय पावर प्लांट्स और नाभिकीय हथियारों का उचित रखरखाव भी शामिल है। आज परमाणु विज्ञानी परमाणुओं और परमाणविक पदार्र्थों की विशेषताओं को जांचने के लिए परिष्कृत प्रयोगात्मक व सैद्धांतिक औजारों का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ-साथ वे प्रकृति के बुनियादी संतुलन के आधार, सुपरनोवा की प्रकृति और कॉस्मॉस में पदार्थों की उत्पत्ति जैसे महत्वपूर्ण अंतर्विषयक सवालों के जवाब तलाशने में लगे हैं। नाभिकीय विज्ञान लगातार दूसरे क्षेत्रों पर भी अपना प्रभाव छोड़ रहा है। न्यूक्लियर साइंस में पीएचडी करने वाले आधे से ज्यादा अभ्यर्थी अपनी ट्रेनिंग के लिए मेडिसिन, इंडस्ट्री और नेशनल डिफेंस जैसे अहम क्षेत्रों को चुनते हैं।

शानदार अवसर हैं यहां

इस क्षेत्र में आने वाले समय में करियर की नई संभावनाएं पैदा होंगी। पर्यावरण और चिकित्सा के क्षेत्र में इसका स्कोप तेजी से बढ़ा है। लेकिन इसका सबसे प्रमुख इस्तेमाल ऊर्जा के रूप में है। नाभिकीय विखंडन के द्वारा ऊर्जा का उत्पादन करना एक बड़ी चुनौती है। नाभिकीय शिक्षा के क्षेत्र में डिपॉर्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी बढ़-चढ़ कर काम कर रहा है। भारत में नाभिकीय तकनीक का यह प्रमुख क्षेत्र है और वह सारे नाभिकीय स्टेशनों के डिजाइन, निर्माण और ऑपरेशन का काम देखता है। इसमें भíतयों का काम भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई देखता है।

 
डीएई का ट्रेनिंग कोर्स एक वर्ष की समय सीमा का होता है और इसमें इंजीनियर और वैज्ञानिकों का चयन राष्ट्रीय स्तर की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के माध्यम से होता है। करियर के लिहाज से आप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं। पावर जनरेशन में न्यूक्लियर रिएक्टर की डिजाइनिंग, कार्य विधि और उसकी सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र में भी कई मौके हैं। मेडिसन करियर में डायगोनिस्टक इमेजिंग जैसे एक्सरे, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग, अल्ट्रासाउंड, डायगोनिस्टक फोटोग्राफर के रूप में करियर बना सकते हैं। कृषि तथा खाद्य इंडस्ट्री में नाभिकीय तकनीक के इस्तेमाल द्वारा उन्नत तथा रोगविहीन फसलों के उत्पादन में रोजगार के अवसर बनते हैं।

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक, अमेरिका में हर साल न्यूक्लियर मेडिकल प्रक्रियाओं के संदर्भ में बीस लाख से ज्यादा विशेषज्ञों की जरूरत रहती है। परमाणु विज्ञानी अस्पतालों और मेडिकल रिसर्च फर्म्स में रोजगार पा सकते हैं। इसके अलावा, अनुसंधान व विकास से जुड़े कई और कार्यक्रमों व संस्थानों में भी उन्हें रोजगार मिल सकता है। यदि वे चाहें, तो न्यूक्लियर पावर प्लांट्स, सरकारी एजेंसियों, राष्ट्ररीय प्रतिरक्षा तंत्र के अलावा विभिन्न न्यूक्लियर व स्पेस संबंधी प्रोग्रामों को संचालित करने वाली राष्ट्ररीय व अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से भी जुड़ सकते हैं।


शोध में मौका

नई जनरेशन के न्यूक्लियर पावर रिएक्टर डिजाइन तैयार करना, विखंडन के लिए रिएक्टर के डिजाइन तैयार करना, स्पेस एक्सप्लोरेशन के लिए नए पावर सोर्स बनाना सरीखे कई कामों में शोध जारी है। इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में रेडियोएक्टिव पदार्थ का उत्पादन, उसके औद्योगिक और चिकित्सकीय प्रयोग के क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के रिसर्च और डेवलपमेंट के कई प्रोगाम संचालित होते हैं। जिनमें म्यूटेशन ब्रीडिंग, फसलों का जेनेटिक इंप्रूवमेंट, जमीन का आइसोटोप की सहायता से अध्ययन, कीटनाशकों के अवशेषों का विश्लेषण शामिल होता है।

क्या सोचते हैं लोग

इस क्षेत्र के बारे में लोगों की आमतौर पर धारणा यह है कि न्यूक्लियर साइंटिस्ट या न्यूक्लियर इंजीनियर के तौर पर कार्य करना बेहद खतरनाक है। हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स को कई मामलों में नाभिकीय पदार्र्थों के सीधे संपर्क में नहीं आना पड़ता। इसके अलावा नाभिकीय पावर प्लांट्स की बात करें तो यहां भी रेडियोएक्टिव उत्सर्जनों की मात्रा बहुत कम होती है और सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है, लिहाजा किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। कर्मचारियों के लिए कार्य संबंधी सुरक्षित परिस्थितियां सुनिश्चित करने के लिए ऑक्युपेशनल सेफ्टी व स्वास्थ्य प्रशासन द्वारा नाभिकीय व्यवस्थाओं पर कड़ी निगाह रखी जाती है।


सैलरी पैकेज

न्यूक्लियर साइंस के क्षेत्र में सैलरी अच्छी होती है। अंतरराष्ट्ररीय स्तर पर एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट की औसत सैलरी 50,000 डॉलर तक हो सकती है। इस क्षेत्र से जुड़े ज्यादातर कार्यों में आपको आगे बढऩे के भी अच्छे अवसर मिलते हैं। चूंकि न्यूक्लियर साइंटिस्ट की अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काफी मांग है, लिहाजा ग्रेजुएट्स के लिए यहां विकल्प चुनने के भी अनेक अवसर मौजूद हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

u दिल्ली विश्वविद्यालय।
www.du.ac.in


u गुरु जांभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार।
www.gju.ernet.in


u होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट।
www.hbni.ac.in


u आईआईटी, कानपुर, मुंबई, गुवाहाटी, दिल्ली, चेन्नई।
www.iitk.ac.in


u एनआईएसईआर, भुवनेश्वर।
niser.ac.in


u बीएचयू, वाराणसी।
www.bhu.ac.in


u बीआईटीएस, पिलानी।
www.bits-pilani.ac.in


u इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ माइंस, धनबाद।
www.ismdhanbad.ac.in
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Friday, May 13, 2016

एनजीओ में करियर

एनजीओ- नॉन गवर्नमेंटल ऑर्गनाइजेशन यानी गैर सरकारी संगठन। एनजीओ किसी मिशन के तहत चलाए जाते हैं। सामाजिक समस्याओं को हल करना और विभिन्न क्षेत्रों में विकास की गतिविधियों को बल देना एक एनजीओ का मुख्य उद्देश्य होता है। कार्यक्षेत्र के रूप में कृषि, पर्यावरण, शिक्षा, संस्कृति, मानवाधिकार, स्वास्थ्य, महिला समस्या, बाल-विकास आदि में से कोई भी चुना जा सकता है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां आप नाम और दाम, दोनों कमा सकते हैं।
वह जमाना गया, जब इस क्षेत्र में आमतौर पर वे ही लोग आते थे, जो खुद के संसाधनों या सिर्फ दान वगैरह के बूते समाजसेवा करना चाहते थे। अब एनजीओ रोजगार के बढ़िया साधन बन चुके हैं। कई बार कई दूसरी नौकरियों से भी अच्छे वेतनमान पर काम यहां मिल सकता है। किसी अंतरराष्ट्रीय पहचान वाले एनजीओ में बात बन जाए तो फिर बात ही क्या है। समाज सेवा का सुकून तो इसमें है ही।
इस क्षेत्र की विशिष्टता यही है कि रोजगार का साधन होने के बावजूद समाजहित की भावना इसमें सर्वोपरि होनी चाहिए। यह उन लोगों के लिए अच्छा क्षेत्र है, जो सामाजिक समस्याओं के प्रति संवेदनशील हों, समाज हित के विभिन्न पहलुओं पर गहरी निष्ठा, लगन और रुचि के साथ काम करना चाहते हों और सिर्फ पैसा कमाना ही जिनका मकसद न हो।
बहुत बड़ा है एनजीओ संसार
एनजीओ के प्रति आकर्षण का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मौजूदा समय में हमारे देश में सक्रिय सूचीबद्घ एनजीओ की संख्या एक रिपोर्ट के मुताबिक 33लाख के आसपास है। यानी हर 365 भारतीयों पर एक एनजीओ। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा एनजीओ हैं, करीब 4.8 लाख। इसके बाद दूसरे नंबर पर आंध्रप्रदेश है। यहां 4.6 लाख एनजीओ हैं। उत्तर प्रदेश में 4.3 लाख, केरल में 3.3 लाख, कर्नाटक में 1.9 लाख, गुजरात व पश्चिम बंगाल में 1.7-1.7 लाख, तमिलनाडु में 1.4 लाख, उड़ीसा में 1.3 लाख तथा राजस्थान में एक लाख एनजीओ सक्रिय हैं। इसी तरह अन्य राज्यों में भी बड़ी तादाद में गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। दुनिया भर में सबसे ज्यादा सक्रिय एनजीओ हमारे ही देश में हैं।
धन की बात करें तो दान, सहयोग और विभिन्न फंडिंग एजेंसियों के जरिये एनजीओ क्षेत्र में अरबों रुपया आता है। अनुमान है कि हमारे देश में हर साल सारे एनजीओ मिल कर 40 हजार से लेकर 80 हजार करोड़ रुपये तक जुटा ही लेते हैं। सबसे ज्यादा पैसा सरकार देती है। ग्यारहवीं योजना में सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपये का बजट रखा गया था। दूसरा स्थान विदेशी दानदाताओं का है। सिर्फ सन् 2005 से 2008 के दौरान ही विदेशी दानदाताओं से यहां के गैर सरकारी संगठनों को 28876 करोड़ रुपये (करीब 6 अरब डॉलर) मिले। इसके अलावा कॉरपोरेट सेक्टर से भी सामाजिक दायित्व के तहत काफी धन गैर सरकारी संगठनों को प्राप्त होता है।
कैसे करें पढ़ाई
एनजीओ क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए आसानी से समझा जा सकता है कि अब एनजीओ प्रबंधन कितना महत्त्वपूर्ण काम बन चुका है। देश में कई संस्थान और विश्वविद्यालय हैं, जो बाकायदा एनजीओ प्रबंधन से जुड़े पाठ्यक्रम चला रहे हैं। 50 प्रतिशत अंकों के साथ स्नातक हों तो एनजीओ प्रबंधन के पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रम में दाखिला ले सकते हैं। अनुभवी एनजीओ प्रोफेशनल, सामाजिक कार्यकर्ता और स्वयंसेवी भी अलग-अलग तरह के कोर्स कर सकते हैं। इन पाठ्यक्रमों में जिन विषयों के बारे में खासतौर से बताया जाता है, वे हैं—सामुदायिक विकास, सामाजिक उद्यमशीलता, वैश्विक मुद्दों की समझ, पर्यावरण शिक्षा, सूचना प्रबंधन, प्रशासनिक और वित्तीय प्रबंधन, नेतृत्वशीलता आदि। यों एनजीओ चलाने के लिए किसी खास शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं है, परंतु जब कार्यकुशलता, व्यवस्थित प्रबंधन की बात आती है, खासतौर से रोजगार की संभावनाओं के संदर्भ में, तो एनजीओ प्रबंधन से जुड़े ये कोर्स विशेष उपयोगी हो जाते हैं।
समाज कल्याण में मास्टर डिग्री (एमएसडब्ल्यू), समाजविज्ञान या ग्रामीण प्रबंध में कोई भी मास्टर डिग्री एनजीओ क्षेत्र में आगे बढ़ने की दृष्टि से उपयोगी है। समाज कल्याण में बीए, एमए या बीएसडब्ल्यू भी किए जा सकते हैं। जो युवा अध्ययन जारी रखना चाहते हैं वे एमफिल या पीएचडी भी कर सकते हैं। भारतीय समाज कल्याण एवं व्यवसाय प्रबंधन संस्थान (कोलकाता), टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (मुंबई), दिल्ली विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय आदि डिप्लोमा और डिग्री के कई पाठय़क्रम संचालित कर रहे हैं। जो छात्र एनजीओ क्षेत्र में जाना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि बारहवीं के बाद समाजविज्ञान विषय क्षेत्र से कोई एक विषय चुन कर पढ़ाई करें।
मौके कहां-कहां
एनजीओ प्रबंधन के कोर्सों के बाद ऑपरेशनल और एडवोकेसी, दोनों तरह के एनजीओ में काम के अच्छे अवसर हैं। ऑपरेशन एनजीओ में काम करना उनके लिए बेहतर है, जिनमें वित्त प्रबंधन, मीडिया प्रबंधन वगैरह की खास काबिलियत हो। एनजीओ एडवोकेसी का काम भी इससे कुछ अलग नहीं है, पर जो लोग सामाजिक कामों के लिए लोगों को प्रेरित करने का काम बढ़िया ढंग से संभाल सकते हैं, उनके लिए यह अच्छी जगह है। कुव्वत हो तो इस क्षेत्र में काम की तमाम संभावनाएं हैं।
एनजीओ मैनेजर, कम्युनिटी सर्विस प्रोवाइडर, एनजीओ प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर, एनजीओ ह्यूमन रिसोर्स और फाइनेंस मैनेजर जैसे कई रूपों में आप काम पा सकते हैं। मिनिस्ट्री ऑफ यूथ अफेयर, फिक्की, एसओएस विलेज, एफएआरएम, अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट, प्रयास वगैरह में अच्छे वेतनमान पर काम मिल सकता है। मौजूदा समय में एड्स अवेयरनेस प्रोजेक्ट, ग्रामीण स्वास्थ्य कार्यक्रम, चाइल्ड एब्यूज प्रिवेंशन कमेटी स्ट्रीट चिल्ड्रन एजुकेशन, ड्रग रिहेबिलिटेशन सेंटर, सेक्स वर्कर फोरम आदि में भी काम के काफी अवसर हैं।
रोजगार की संभावना को इस बात से समझिए कि दुनिया भर में लगभग दो करोड़ ऐसे एनजीओ पेशेवर हैं, जिन्हें बाकायदा वेतन दिया जाता है। इस के अलावा उल्लेखनीय काम के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत भी किया जा सकता है।
टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंसेज से पढ़े हुए मैनेजमेंट प्रोफेशनल राहुल सिंह एनजीओ के क्षेत्र में युवाओं के लिए काफी बड़ी संभावनाएं देखते हैं। वे कहते हैं कि वर्तमान में जब बड़ी-बड़ी कंपनियां भी अपना सामाजिक दायित्व महसूस करने लगी हैं तो ग्रासरूट एनजीओ के लिए उनका आर्थिक सहयोग भी बढ़ रहा है। उनका मानना है कि विकास के नए तौर-तरीकों के चलते हमारे मूल्यों में जिस तरह से गिरावट आ रही है, ऐसे में एनजीओ की भूमिका काफी बढ़ गई है। जाहिर है नौजवानों के लिए इस क्षेत्र में संभावनाएं बढ़ेंगी। वे कहते हैं कि बिहार जैसे राज्य में कंपनियों का जाना अब शुरू हो रहा है तो यहां जमीनी तौर पर काम कर रहे एनजीओ के लिए काफी मौके होंगे। ‘नवधान्य’ की कर्ताधर्ता डॉ. वंदना शिवा छोटे आकार वाले जमीनी तौर पर काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों में युवाओं के लिए अच्छे अवसर देखती हैं।
वेतन मिल सकता है बढ़िया
एनजीओ में काम करने वालों को मौजूदा समय में वेतन के अच्छे मौके हैं। यहां वेतन का निर्धारण इस आधार पर होता है कि कार्य का क्षेत्र कैसा है, किस प्रकार का है और उसका स्तर क्या है। फिर भी अंतरराष्ट्रीय किस्म के गैर सरकारी संगठन बढ़िया वेतन दे सकते हैं। ये संगठन विश्व भ्रमण के खूब मौके उपलब्ध कराते हैं। फिलहाल काबिलियत के हिसाब से 10-15 हजार से लेकर एक लाख से ऊपर तक का वेतन एनजीओ क्षेत्र में मिल सकता है। वेतन के अलावा विभिन्न मुद्दों पर किसी एनजीओ से प्रोजेक्ट वर्क के तौर पर रिसर्च, पुस्तक लेखन, फील्ड वर्क संबंधी कुछ काम लेकर भी धन कमाने के यहां काफी अवसर हैं।
बांध लीजिए गांठ
याद रखिए, यदि गैर सरकारी संगठनों के क्षेत्र में अपना भविष्य बनाना है तो आप में सामूहिकता के माहौल में काम करने का अनुभव जरूर होना चाहिए। लोगों से संवाद करने, उन्हें प्रेरित करने का माद्दा तो होना ही चाहिए। स्थानीय भाषा के साथ अंग्रेजी जैसी अंतरराष्ट्रीय संवाद की भाषा का ज्ञान आपके काम को आसान बना सकता है। यानी आप काम में कुशल हों तो इस क्षेत्र में आपका भविष्य उज्ज्वल है।
एनजीओ प्रबंधन के कोर्स कहां-कहां
एनजीओ प्रबंधन का कोर्स कराने वाले प्रमुख संस्थान-
1. टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई
2. दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
3. एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ एनजीओ मैनेजमेंट, नोएडा, उत्तर प्रदेश
4. मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, मदुरै, तमिलनाडु
5 अन्नामलाई विश्वविद्यालय, अन्नामलाई नगर, तमिलनाडु
6. लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
7. सेंटर ऑफ सोशल इनीशिएटिव एंड मैनेजमेंट, हैदराबाद
8. भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान, गांधीनगर, गुजरात
9. जेवियर इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल साइंसेज, रांची
10. ग्रामीण प्रबंधन संस्थान, आणंद
अपना एनजीओ ऐसे बनाएं
एक समूह बना कर आप अपना एनजीओ बना सकते हैं। एनजीओ का निबंधन दरअसल हमारे देश में कई कानूनों के तहत होता है, जैसे कि इंडियन ट्रस्ट एक्ट (1982), पब्लिक ट्रस्ट एक्ट (1950), इंडियन कंपनीज एक्ट (1956-धारा- 25), रिलीजियस एंडोमेंट एक्ट  (1863), चेरीटेबल एंड रिलीजियस ट्रस्ट एक्ट (1920), मुस्लिम वक्फ एक्ट (1923), वक्फ एक्ट (1954), पब्लिक वक्फ—एक्सटेंशन ऑफ लिमिटेशन एक्ट (1959) आदि।
वैसे हमारे देश में एनजीओ बनाना ज्यादा कठिन नहीं है। बिना लाभ-हानि के काम करने वाले एनजीओ कंपनी एक्ट धारा-25 के तहत ट्रस्ट, संस्था, सोसायटी या प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के रूप में पंजीकृत कराए जा सकते हैं।
खूब हैं विदेश जाने के मौके
यह ऐसा क्षेत्र है, जहां विदेशों में भी काम के काफी अवसर हैं। यूनिसेफ, यूनाइटेड नेशन, यूनेस्को, ओसीडी, विश्वबैंक, नाटो, विश्व स्वास्थ्य संगठन, एमनेस्टी इंटरनेशनल, रेडक्रॉस, ग्रीनपीस, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट, एनवायरनमेंट प्रोटेक्शन, यूनाइटेड नेशन एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चरल ऑर्गनाइजेशन जैसी नामी संस्थाओं के अलावा दूसरी अन्य वैश्विक स्तर पर काम कर रही संस्थाओं के साथ जुड़ कर भी काम किया जा सकता है। यदि आप अपने ही देश में काम कर रहे हों तो भी विदेशों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में शामिल होने के बुलावे के तौर पर विदेश यात्रा का अवसर मिल सकता है। जो एनजीओ प्रबंधन की पढ़ाई विदेश में करके अपना करियर संवारना चाहते हैं, उनके लिए कुछ नामी विदेशी संस्थान हैं—टेंपल युनिवर्सिटी (जापान), कैस बिजनेस स्कूल (लंदन), एनजीओ मैनेजमेंट स्कूल (बेसिंस, लंदन)।

Thursday, May 12, 2016

पृथ्वी के रहस्यों में करियर

अगर आपको पृथ्वी के रहस्यों को जानने की उत्सुकता है और आप उससे जुड़े क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो अर्थ साइंस आपके लिए बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। संभावनाओं के लिहाज से देखें तो इस क्षेत्र में अवसरों की कमी नहीं है।
अर्थ साइंस में मुख्यत: भूगोल, जियोलॉजी और ओशियोनोग्राफी जैसे विषय होते हैं। भूगोल में जहां पृथ्वी के एरियल डिफरेंसिएशन के बारे में जानकारी दी जाती है, वहीं इसके दूसरे कारक जैसे कि मौसम, उन्नयन कोण, जनसंख्या, भूमि का इस्तेमाल आदि का अध्ययन किया जाता है। जियोलॉजी में पृथ्वी के फिजिकल इतिहास का अध्ययन किया जाता है, जैसे पृथ्वी किस तरह की चट्टानों से बनी है और इसमें लगातार किस तरह के परिवर्तन होते रहते हैं, इसका अध्ययन किया जाता है। ओशियनोग्राफी में मुख्यत: समुद्रों का अध्ययन किया जाता है।
जियोफिजिक्स का पहली बार इस्तेमाल 1799 में विलियम लेंबटन ने एक सर्वे के लिए किया था। वहीं 1830 में गुरुत्व क्षेत्र का अध्ययन कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट ने किया था। तेल के अन्वेषण के लिए पहली बार जियोफिजिक्स का प्रयोग 1923 में बर्मन ऑयल कॉरपोरेशन ने किया था। इलेक्ट्रिकल सर्वे पहली बार 1933 में भारत में नीलोर और सिंघबम जिले में पीपमेयर और केलबोफ द्वारा किया गया। पहली बार किसी भारतीय, एमबीआर राव ने 1937 में मैसूर में जमे सल्फाइड अयस्क के लिए इसका प्रयोग किया। जियोफिजिक्स की शिक्षा पहली बार 1949 में आंध्र और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने उपलब्ध की थी।
आंध्र विश्वविद्यालय ने शुरुआत में बीएससी और बाद में एमएससी स्तर के कोर्स को प्रारंभ किया। साथ ही इसमें हाइडोस्फीयर, जियोस्फीयर, बायोस्फीयर और क्राइसोस्फीयर के बारे में जानकारी मिलती है। बायोस्फीयर में जंतु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान और इकोलॉजी से जुड़े विषय सम्मिलित होते हैं, वहीं एटमॉस्फिरक साइंस में मौसम, मेटोलॉजी, क्लाइमेटोलॉजी से जुड़ी जानकारी दी जाती है। वहीं इसमें पृथ्वी की परतें कैसे बनीं, इसमें लगातार होने वाली हलचलों, भूकंप, ज्वालामुखी का अध्ययन किया जाता है।
कोर्स : ज्यादातर क्षेत्रों में अर्थ साइंस मास्टर लेवल का कोर्स है। इस क्षेत्र में भूगोल और जियोलॉजी में अवसरों की संभावनाएं ज्यादा हैं। भूगोल और जियोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट प्रोगाम करने के लिहाज से यह आवश्यक है कि आपने स्नातक स्तर पर इन विषयों की पढ़ाई की हो। पोस्टग्रेजुएट स्तर पर इस कोर्स को करने के लिए किसी विशेषज्ञ क्षेत्र को लेते हैं। पढ़ाई के दौरान प्रोजेक्ट वर्क की भूमिका काफी अहम होती है। इसमें करियर बनाने के लिए आप अर्थ साइंस एमएससी टेक अप्लाइड जियोलॉजी, अप्लाइड जियोफिजिक्स में कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए स्नातक स्तर पर आपके पास जियोलॉजी और फिजिक्स होनी चाहिए। वहीं पांच वर्षीय इंटीग्रेटेड एमएससी आप अप्लायड जियोलॉजी, एक्सप्लोरेशन जियोफिजिक्स में कर सकते हैं। इसमें दाखिला बारहवीं के बाद आपको आईआईटी के माध्यम से मिल सकता है। इसके अलावा बीटेक के बाद आप अप्लायड जियोलॉजी में एमटेक कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको गेट परीक्षा का स्कोर कार्ड दिखाना होगा। साथ ही ओशियोनोग्राफी और मेरिन साइंस के भी कई कोर्स संचालित होते हैं।
अवसर : इस कोर्स को करने के बाद अवसरों की कमी नहीं है। प्राइवेट और सरकारी दोनों सेक्टरों में ही जॉब की संभावनाएं मौजूद है। आप जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, ऑयल एंड नेचुरल गैस कमीशन, एटॉमिक मिनरल डिपार्टमेंट, सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, पत्तनों और बंदरगाहों, खदान कंपनियों, स्टेट जियोलॉजिकल डिपार्टमेंट और इंडियन मेटोलॉजिकल डिपार्टमेंट में कर सकते हैं। इसके अलावा आप प्राइवेट कंपनियों जैसे कि रिलायंस, स्कमबर्गर और सेल में काम कर सकते हैं। साथ ही इसके बाद शोधार्थी, शिक्षक के रूप में भी आप अपने करियर को संवार सकते हैं। पर्यावरण से जुड़ी कई कंपनियां उनके क्वांटिटेटिव बैकग्राउंड के कारण उन्हें नौकरी देती है

Wednesday, May 11, 2016

एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस में करियर

एविएशन का नाम आते ही आसमान में उड़ने का मन करता है लेकिन यदि आप बनाना चाहते हो हो एविएशन में अपना करियर तो आप कहाँ पर अपनी लाइफ बना सकते हो। एविएशन सेक्टर (Aviation Sector) में हो रहे लगातार विस्तार से रोजगार के अवसरों में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में बहुत से अवसर हैं कई लोग सोचते हैं केवल पायलट या एयर होस्टेस तक ही एविएशन में जॉब सीमित हैं,  लेकिन ऐसा कतई नही है क्योंकि इनके इलावा भी आप एविएशन में अपना करियर बना सकते हो। इसी लाइन में में एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर (AME) भी बहुत अच्छा विकल्प है।
एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर की कार्य प्रकृति कैसी है उसका क्या काम होता है: किसी भी जहाज की तकनीकी जिम्मेदारी एएमई के ऊपर होती है। हर उड़ान के पहले एएमई जहाज का पूरी तरह से निरीक्षण करता है और सर्टिफिकेट जारी करता है कि जहाज उड़ान भरने को तैयार है। इस काम के लिए उसके पास पूरी तकनीकी टीम होती है। कोई भी विमान एएमई के फिटनेस सर्टिफिकेट के बिना उड़ान नहीं भर सकता। गौरतलब है कि एक हवाईजहाज के पीछे करीब 15-20 इंजीनियर काम करते हैं। इसी से इनकी जरूरत का अनुमान लगाया जा सकता है।
कैसे बन सकते हो आप एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बन सकते हो: जैसे की पायलट बनने के लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है वैसे ही एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बनने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता है। यह लाइसेंस डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन द्वारा प्रदान किया जाता है। कोई भी संस्थान, जो इससे संबंधित कोर्स कराता है, उसे भारत सरकार के विमानन मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले डीजीसीए से इसके लिए अनुमति लेनी होती है। जो इंस्टिट्यूट इससे मान्यता प्राप्त हैं उनसे भी आप ये लाइसेंस हासिल कर सकते हैं।
एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बनने के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता की आवश्कयता होनी चाहिए: जो विद्यार्थी इस कोर्स के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उनके लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथेमेटिक्स विषयों की पढ़ाई जरूरी है। पीसीएम से 12वीं उत्तीर्ण विद्यार्थी एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग से संबंधित पाठ्यक्रमों में दाखिला ले सकते हैं। कोर्स के दौरान मैकेनिकल इंजीनियरिंग और वैमानिकी की विभिन्न शाखाओं के बारे में जानकारी दी जाती है।
एविएशन सेक्टर में कहाँ मिलेंगे अवसर: ऐसे तकनीकी प्रोफेशनल्स के लिए देश-विदेश में सभी जगह मौके हैं। एयर इंडिया, इंडिगो, इंडियन एयरलाइन्स, जेट एयरवेज, स्पाइस जेट, गो एयर जैसे एयरलाइंस में तो मौके मिलते ही हैं, इसके अलावा देश के तमाम हवाईअड्डों और सरकारी उड्डयन विभागों में भी रोजगार के बेहतरीन अवसर उपलब्ध होते हैं। भारत में ही करीब 450 कंपनियां हैं, जो इस क्षेत्र में रोजगार प्रदान करती हैं। एएमई का शुरुआती वेतन 20-30 हजार हो सकता है, जिसमें अनुभव और विशेष शिक्षा के साथ बढ़ोतरी होती जाती है। इसके साथ-2 आप विदेशी या प्राइवेट कंपनियो जो प्राइवेट एयरक्राफ्ट की सुविधा उपलब्ध कराती उनमे भी आप अपना करियर चुन सकते हो
देश में कौन कौनसे मुख्य संस्थान हैं जहाँ पर एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर के लिए कोर्स किया जा सकता है: जो संस्थान संबंधित कोर्स कराने का इच्छुक होता है, उसको डीजीसीए से मान्यता लेनी होती है। ऐसे कुछ प्रमुख संस्थान हैं-
  • जेआरएन इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
  • भारत इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स, पटना एयरपोर्ट, पटना
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स साइंस, कोलकाता
  • एकेडमी ऑफ एविएशन इंजीनियरिंग, बेंगलुरु
  • आंध्र प्रदेश एविएशन एकेडमी, हैदराबाद

Monday, May 9, 2016

मौसम की अनिश्चितताओं ने सदियों से लोगों को प्रभावित किया है। मौसम के व्यवहार पर कई कारणों का असर होता है। धरती के वातावरण के संपर्क में आने वाली हर चीज का प्रभाव मौसम पर पड़ता है जिसकी वजह से विश्वभर में भिन्न-भिन्न जगहों पर भिन्न-भिन्न मौसम दर्ज किया जाता है। 

वातावरण पर पड़े असर और मौसम के बदलाव के अध्ययन को मीटियरोलॉजी कहा जाता है। मीटियरोलॉजिस्ट (मौसम विशेषज्ञ) मौसम का अनुमान लगाकर भविष्यवाणी करते हैं।

धरती और उसके उपग्रहों का अध्ययन, उनकी क्रिया और उनके ट्रैक में बदलाव को दर्ज करके मौसम का अनुमान लगाने का कार्य मीटियरोलॉजिस्ट ही करते हैं। वे विशाल भौगोलिक क्षेत्र तक विस्तारित मौसम के मानचित्रों का अध्ययन करते हैं और मौसम उपग्रहों के आंकड़े हासिल कर उनसे मौसम का अनुमान लगाते हैं। 

एक मीटियरोलॉजिस्ट तापमान, हवा, आर्द्रता, नमी और हवाई जहाजों के उड़ने की स्थितियों का पूर्वानुमान करते हैं। गणित समूह से स्नातक करने के उपरांत किसी मान्यता प्राप्त संस्थान से मीटियरोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकते हैं। मीटियरोलॉजिकल विभाग में ज्वॉइन करने के बाद भी आपको मीटियरोलॉजी में ट्रेनिंग दी जाती है। 

मीटियरोलॉजी का कोर्स करने के बाद आप विशेषज्ञ के रूप में काम कर सकते हैं। एक मीटियरोलॉजिस्ट वेदर फॉरकास्ट या क्लाइमेटोलॉजिस्ट के रूप में काम करते हैं। फिजिकल मीटियरोलॉजिस्ट रिसर्च सेंटर और इंडस्ट्रियल मीटियरोलॉजिस्ट धुएं पर नियंत्रण और वायु प्रदूषण आदि पर कार्य कर सकते हैं। ये कृषि योजना पर भी काम करते हैं।

इन्हें कुछ विशेष जगहों पर विशेष कार्य के लिए नियुक्त किया जाता हैः 

1. मौसम उपग्रहों, मौसम रडार और मौसम मानचित्रों द्वारा दिए गए संकेतों को पहचानकर मौसम का पूर्वानुमान करना।

2. सैनिक बल में पायलट को मौसम संबंधित जानकारियों पर प्रशिक्षण देने।

3. बंदरगाहों पर प्रतिकूल मौसम में जहाजों को सही दिशा बताने।

4. जानकारियों को एकत्रित कर चार्ट्स और मौसम का नक्शा बनाना।

5. कई बार खराब मौसम जैसे तूफान, बाढ़ की तीव्रता व सुनामी जैसी आपदाओं का पूर्वानुमान लगाना।

6. एग्रीकल्चरिस्ट्स, शिपिंग और मरीन क्षेत्र के साथ-साथ मीडिया और आम लोगों के लिए मौसम संबंधी जानकारियां प्रस्तुत करना।

7. योजनकारों के साथ मिलकर योजना, विद्युत, सिंचाई, कृषि व जल प्रबंधन के क्षेत्र के लिए महत्वपूर्ण और उपयोगी योजनाएं बनाना आदि। 

यहां से करें कोर्स 
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियरोलॉजी 
आईआईटी खड़गपुर 
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू 
शिवाजी ूनिवर्सिटी, कोल्हापुर 
 

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