ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरपी किस प्रकार का कोर्स है और करिअर बनाने के लिहाज से इसका क्या महत्व है ?
आरती भार्गव , रोहिणी
ऑडियोलॉजिस्ट का काम ऐसे लोगों का इलाज़ करना होता है , जिनकी सुनने की शक्ति में किसी न किसी प्रकार की कमी होती है , जबकि स्पीच थेरपिस्ट उन रोगियों का इलाज करते हैं , जिन्हें बोलने या उच्चारण आदि में कठिनाई होती है या जो हकलाते हैं। ये दोनों स्पेशलाइजेशन एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं। यही कारण है कि एक ही कोर्स के माध्यम से दोनों की ट्रेनिंग दी जाती है। हमारे देश में इस प्रकार की समस्याओं का सामना करने वाली आबादी की तुलना में इलाज़ करने वाले ट्रेंड लोगों की संख्या बेहद कम है , इसलिए आने वाले समय में इनकी मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी। इस प्रकार के कोर्स बीएससी (ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरपी) ,बीएससी (हियरिंग , लैंग्विज ऐंड थेरपी) , बीएससी (स्पीच एंड हियरिंग) आदि के रूप में विभिन्न संस्थानों में चलाए जाते हैं।
इस बारे में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पीजी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (सेक्टर-12 ,चंडीगढ़) से संपर्क कर सकते हैं। मूल रूप से यह पैरामेडिकल कोर्स है और 10 प्लस 2 स्तर पर बायलॉजी की एजुकेशनल बैकग्राउंड वाले युवाओं को इसमें ऐडमिशन दिया जाता है। नामी संस्थानों में ऐडमिशन के लिए एंट्रेन्स एग्ज़ाम होता है , जबकि कई संस्थान 10 प्लस 2 के अंकों के आधार पर दाखिले देते हैं। इम्प्लॉइमंट की संभावनाएं गवर्नमंट और प्राइवेट हास्पिटलों के अलावा एनजीओ में भी हो सकती हैं। कुछ अनुभव हासिल करने के बाद आप अलग से भी प्रैक्टिस कर सकते हैं।
नर्सिन्ग में ट्रेनिंग लेना चाहती हूं। इसके लिए क्या शैक्षणिक योग्यता है ?
रतिका दीवान , गोल मार्किट
इस क्षेत्र में जाने के लिए जीव विज्ञान का एजुकेशनल बैकग्राउंड होनी चाहिए। मुख्य तौर पर बीएससी (नर्सिन्ग) नामक कोर्स है। चार साल के इस कोर्स की शुरुआत ज्यादा पुरानी नहीं कही जा सकती। इससे पहले ट्रेडिशनल मिडवाइफरी ऐंड ऑग्जिलरी नर्सिन्ग सरीखे कोर्स के माध्यम से ही इस विषय में ट्रेनिंग दी जाती थी। इस कोर्स में अमूमन एंट्रंस टेस्ट के माध्यम से ऐडमिशन दिए जाते हैं। कोर्स की समाप्ति पर गवर्नमंट अथवा प्राइवेट हॉस्पिटल में जॉब्स मिलने की संभावनाएं होती हैं। जहां तक नर्सिन्ग के क्षेत्र में भविष्य निर्माण का सवाल है तो यह जानकारी देना उपयुक्त होगा कि विश्व भर में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता देखी जा सकती है। इसी कारणवश मेडिकल के गवर्नमंट और प्राइवेट सेक्टर दोनों में निवेश तेजी से बढ़ा है। दूसरी ओर अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों में इस प्रफेशन में युवाओं के न जाने के ट्रेंड के कारण नर्सिन्ग प्रफेशनल की कमी हो गई है।
यही कारण है कि गल्फ सहित विश्व के अन्य देशों में नर्सिन्ग प्रफेशनलों की मांग में काफी तेजी आई है। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि हर वर्ष 20 से 25 हजार नर्स विदेशों में रोजगार हासिल कर रही हैं। उनके वेतनमान भारतीय नर्सों की तुलना में अधिक आकर्षक होने स्वाभाविक हैं। हमारे देश में भी अन्य प्रफेशनलों की तुलना में नर्सों का वेतनमान कुछ कम नहीं है। इनके अलावा तमाम तरह के भत्ते और शिफ्ट में ड्यूटी व आवास की सुविधाओं के कारण इस क्षेत्र में भी भारत में अन्य प्रफेशनलों की तुलना में बेहतर आय अर्जन के विकल्प हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (नई दिल्ली) , लोक नायक हास्पिटल (नई दिल्ली) , राजकुमारी अमृत कौर कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग(दिल्ली) , अपोलो कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग अपोलो हास्पिटल एजुकेशन ट्रस्ट (चेन्नई) , भारती विद्यापीठ कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग (पुणे) , सीएमसी (लुधियाना ) , पीजी आई (चंडीगढ़) , कस्तूरबा मेडिकल कॉलिज (मनीपाल) , एमएमएस मेडिकल कॉलिज (जयपुर) आदि।
बायोटेक्नॉलजी का प्रयोग किन-किन क्षेत्रों में होता है तथा करिअर की किस प्रकार की संभावनाएं हैं ?
अंकुर जैन , मंडावली
बायोटेक्नॉलजी मूलत: जीवविज्ञान और टेक्नोलाजी का संगम है। इसकी उपशाखाओं में जेनेटिक्स , बायोकैमिस्ट्री ,माइक्रोबायॉलजी , इम्यूनॉलजी , वाइरॉलजी इत्यादि शामिल हैं। इस विषय का उपयोग महज मेडिकल साइंस तक ही सीमित नहीं है। इनके अलावा एग्रीकल्चर , वेटिरिनरी साइंस , इन्वाइरन्मंट साइंस , स्वाइल सांइस , स्वाइल कंजर्वेशन , बायो स्टैटिस्टिक्स , सीड टेक्नॉलजी सहित अन्य विविध विषयों एवं क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल इन्वाइरन्मंट पॉल्यूशन एवं अन्य व्यर्थ पदार्थों का ट्रीटमंट , केमिकल रिएक्शन , टैक्सटाइल डेवलपमंट , कॉस्मेटिक्स एवं जेनेटिक्स एन्जीनियरिंग प्रमुख हैं। देश में यह कोर्स तीन वर्षीय बीएससी (बायोटेक्नॉलजी) और पांच वर्षीय इंटिग्रेटेड एमएससी (बायोटेक्नॉलजी) के रूप में उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए निम्न संस्थानों से संपर्क किया जा सकता है :
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसर
अन्ना यूनिवर्सिटी , अन्नामलाई नगर
मनीपाल इंस्टीटयूट आफ टेक्नॉलजी , मनीपाल
गुरु गोबिन्द सिंह इंदप्रस्थ यूनीवर्सिटी , नई दिल्ली
वेल्लोर इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलजी , वेल्लोर
इन्वाइरन्मंटल साइंस की क्या उपयोगिता है ? कृपया संस्थानों के पते भी बताएं।
सुप्रिया और मधु , द्वारका
यह विज्ञान की अलग ही शाखा है। इसका जन्म बढ़ते औद्योगिकीकरण और इनसे उपजे प्रदूषण के कारण हुआ है। इन विशेष कार्यकलापों में पर्यावरण को प्रदूषण के खतरों और इससे पड़ने वाले मानव जीवन के प्रभावों से बचाना है। इस क्रम में पर्यावरण सुरक्षा हेतु आवश्यक मापदंडों के निर्धारण से लेकर बचाव के विभिन्न वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक उपायों का निर्धारण करना भी इनके कार्य के विस्तृत दायरे में आता है। सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में इस बारे में वृहद कार्य किए जा रहे हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण हेतु काम करने वाले एनजीओ की संख्या एक लाख से अधिक है। इनके लिए रिसर्च के अलावा प्रदूषण नियंत्रण , प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जल प्रदूषण से बचाव , पॉल्यूशन मॉनीटरिंग , कचरे का निबटान इत्यादि कार्य भी होते हैं। बारहवीं के बाद बीएससी (पर्यावरण विज्ञान) कोर्स किया जा सकता है। मुख्य संस्थानों में पटना यूनिवर्सिटी (पटना), दिल्ली यूनिवर्सिटी , यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर (मैसूर) , यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे , मणिपाल यूनिवर्सिटी (मणिपाल) का उल्लेख किया जा सकता है।
आरती भार्गव , रोहिणी
ऑडियोलॉजिस्ट का काम ऐसे लोगों का इलाज़ करना होता है , जिनकी सुनने की शक्ति में किसी न किसी प्रकार की कमी होती है , जबकि स्पीच थेरपिस्ट उन रोगियों का इलाज करते हैं , जिन्हें बोलने या उच्चारण आदि में कठिनाई होती है या जो हकलाते हैं। ये दोनों स्पेशलाइजेशन एक ही सिक्के के दो पहलुओं के समान हैं। यही कारण है कि एक ही कोर्स के माध्यम से दोनों की ट्रेनिंग दी जाती है। हमारे देश में इस प्रकार की समस्याओं का सामना करने वाली आबादी की तुलना में इलाज़ करने वाले ट्रेंड लोगों की संख्या बेहद कम है , इसलिए आने वाले समय में इनकी मांग निश्चित रूप से बढ़ेगी। इस प्रकार के कोर्स बीएससी (ऑडियोलॉजी ऐंड स्पीच थेरपी) ,बीएससी (हियरिंग , लैंग्विज ऐंड थेरपी) , बीएससी (स्पीच एंड हियरिंग) आदि के रूप में विभिन्न संस्थानों में चलाए जाते हैं।
इस बारे में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पीजी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च (सेक्टर-12 ,चंडीगढ़) से संपर्क कर सकते हैं। मूल रूप से यह पैरामेडिकल कोर्स है और 10 प्लस 2 स्तर पर बायलॉजी की एजुकेशनल बैकग्राउंड वाले युवाओं को इसमें ऐडमिशन दिया जाता है। नामी संस्थानों में ऐडमिशन के लिए एंट्रेन्स एग्ज़ाम होता है , जबकि कई संस्थान 10 प्लस 2 के अंकों के आधार पर दाखिले देते हैं। इम्प्लॉइमंट की संभावनाएं गवर्नमंट और प्राइवेट हास्पिटलों के अलावा एनजीओ में भी हो सकती हैं। कुछ अनुभव हासिल करने के बाद आप अलग से भी प्रैक्टिस कर सकते हैं।
नर्सिन्ग में ट्रेनिंग लेना चाहती हूं। इसके लिए क्या शैक्षणिक योग्यता है ?
रतिका दीवान , गोल मार्किट
इस क्षेत्र में जाने के लिए जीव विज्ञान का एजुकेशनल बैकग्राउंड होनी चाहिए। मुख्य तौर पर बीएससी (नर्सिन्ग) नामक कोर्स है। चार साल के इस कोर्स की शुरुआत ज्यादा पुरानी नहीं कही जा सकती। इससे पहले ट्रेडिशनल मिडवाइफरी ऐंड ऑग्जिलरी नर्सिन्ग सरीखे कोर्स के माध्यम से ही इस विषय में ट्रेनिंग दी जाती थी। इस कोर्स में अमूमन एंट्रंस टेस्ट के माध्यम से ऐडमिशन दिए जाते हैं। कोर्स की समाप्ति पर गवर्नमंट अथवा प्राइवेट हॉस्पिटल में जॉब्स मिलने की संभावनाएं होती हैं। जहां तक नर्सिन्ग के क्षेत्र में भविष्य निर्माण का सवाल है तो यह जानकारी देना उपयुक्त होगा कि विश्व भर में लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता देखी जा सकती है। इसी कारणवश मेडिकल के गवर्नमंट और प्राइवेट सेक्टर दोनों में निवेश तेजी से बढ़ा है। दूसरी ओर अमेरिका सहित अन्य पश्चिमी देशों में इस प्रफेशन में युवाओं के न जाने के ट्रेंड के कारण नर्सिन्ग प्रफेशनल की कमी हो गई है।
यही कारण है कि गल्फ सहित विश्व के अन्य देशों में नर्सिन्ग प्रफेशनलों की मांग में काफी तेजी आई है। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि हर वर्ष 20 से 25 हजार नर्स विदेशों में रोजगार हासिल कर रही हैं। उनके वेतनमान भारतीय नर्सों की तुलना में अधिक आकर्षक होने स्वाभाविक हैं। हमारे देश में भी अन्य प्रफेशनलों की तुलना में नर्सों का वेतनमान कुछ कम नहीं है। इनके अलावा तमाम तरह के भत्ते और शिफ्ट में ड्यूटी व आवास की सुविधाओं के कारण इस क्षेत्र में भी भारत में अन्य प्रफेशनलों की तुलना में बेहतर आय अर्जन के विकल्प हैं। अधिक जानकारी के लिए ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ (नई दिल्ली) , लोक नायक हास्पिटल (नई दिल्ली) , राजकुमारी अमृत कौर कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग(दिल्ली) , अपोलो कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग अपोलो हास्पिटल एजुकेशन ट्रस्ट (चेन्नई) , भारती विद्यापीठ कॉलिज ऑफ नर्सिन्ग (पुणे) , सीएमसी (लुधियाना ) , पीजी आई (चंडीगढ़) , कस्तूरबा मेडिकल कॉलिज (मनीपाल) , एमएमएस मेडिकल कॉलिज (जयपुर) आदि।
बायोटेक्नॉलजी का प्रयोग किन-किन क्षेत्रों में होता है तथा करिअर की किस प्रकार की संभावनाएं हैं ?
अंकुर जैन , मंडावली
बायोटेक्नॉलजी मूलत: जीवविज्ञान और टेक्नोलाजी का संगम है। इसकी उपशाखाओं में जेनेटिक्स , बायोकैमिस्ट्री ,माइक्रोबायॉलजी , इम्यूनॉलजी , वाइरॉलजी इत्यादि शामिल हैं। इस विषय का उपयोग महज मेडिकल साइंस तक ही सीमित नहीं है। इनके अलावा एग्रीकल्चर , वेटिरिनरी साइंस , इन्वाइरन्मंट साइंस , स्वाइल सांइस , स्वाइल कंजर्वेशन , बायो स्टैटिस्टिक्स , सीड टेक्नॉलजी सहित अन्य विविध विषयों एवं क्षेत्रों में किया जा सकता है। इन क्षेत्रों में इंडस्ट्रियल इन्वाइरन्मंट पॉल्यूशन एवं अन्य व्यर्थ पदार्थों का ट्रीटमंट , केमिकल रिएक्शन , टैक्सटाइल डेवलपमंट , कॉस्मेटिक्स एवं जेनेटिक्स एन्जीनियरिंग प्रमुख हैं। देश में यह कोर्स तीन वर्षीय बीएससी (बायोटेक्नॉलजी) और पांच वर्षीय इंटिग्रेटेड एमएससी (बायोटेक्नॉलजी) के रूप में उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए निम्न संस्थानों से संपर्क किया जा सकता है :
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी , अमृतसर
अन्ना यूनिवर्सिटी , अन्नामलाई नगर
मनीपाल इंस्टीटयूट आफ टेक्नॉलजी , मनीपाल
गुरु गोबिन्द सिंह इंदप्रस्थ यूनीवर्सिटी , नई दिल्ली
वेल्लोर इंस्टीटयूट ऑफ टेक्नॉलजी , वेल्लोर
इन्वाइरन्मंटल साइंस की क्या उपयोगिता है ? कृपया संस्थानों के पते भी बताएं।
सुप्रिया और मधु , द्वारका
यह विज्ञान की अलग ही शाखा है। इसका जन्म बढ़ते औद्योगिकीकरण और इनसे उपजे प्रदूषण के कारण हुआ है। इन विशेष कार्यकलापों में पर्यावरण को प्रदूषण के खतरों और इससे पड़ने वाले मानव जीवन के प्रभावों से बचाना है। इस क्रम में पर्यावरण सुरक्षा हेतु आवश्यक मापदंडों के निर्धारण से लेकर बचाव के विभिन्न वैज्ञानिक एवं प्राकृतिक उपायों का निर्धारण करना भी इनके कार्य के विस्तृत दायरे में आता है। सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र में इस बारे में वृहद कार्य किए जा रहे हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण हेतु काम करने वाले एनजीओ की संख्या एक लाख से अधिक है। इनके लिए रिसर्च के अलावा प्रदूषण नियंत्रण , प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जल प्रदूषण से बचाव , पॉल्यूशन मॉनीटरिंग , कचरे का निबटान इत्यादि कार्य भी होते हैं। बारहवीं के बाद बीएससी (पर्यावरण विज्ञान) कोर्स किया जा सकता है। मुख्य संस्थानों में पटना यूनिवर्सिटी (पटना), दिल्ली यूनिवर्सिटी , यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर (मैसूर) , यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे , मणिपाल यूनिवर्सिटी (मणिपाल) का उल्लेख किया जा सकता है।
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