Tuesday, July 28, 2015

फार्मेसी सेक्टर में सुनहरा भविष्य

दवाओं के वितरण से लेकर मार्केटिंग, पैकेजिंग, मैनेजमेंट, सभी फार्मास्युटिकल के अहम हिस्से हैं। क्लिनिकल रिसर्च आउटसोर्सिग यानी ‘ओआरजी’ रिसर्च फर्म के मुताबिक भारतीय फार्मा उद्योग 12-13 फीसदी की दर से वृद्घि कर रहा है। इस बात को मैकिंजे की रिपोर्ट भी पुख्ता करती है। मैकिंजे की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक इस उद्योग में तीन गुणा बढ़ोत्तरी होगी। ये तो रिपोर्ट है। वैसे फिलवक्त भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 24 हजार करोड़ रुपये से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 9 बिलियन डॉलर था, जो वर्ष 2010 तक 25 बिलियन तक पहुंच गया। इसकी वाजिब वजह भी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। आज स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। इतना ही नहीं, फार्मा इंडस्ट्री में भारत का रुतबा अब सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट तक ही सीमित नहीं रह गया है। मैन्युफैक्चरिंग, क्लिनिकल ट्रायल, जेनेटिक ड्रग रिसर्च के क्षेत्र में भी खूब होने लगा है। इतना ही नहीं फार्मास्युटिकल क्षेत्र आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योग में शुमार होने लगा है।
शैक्षणिक योग्यता
सौ से अधिक संस्थानों में डिग्री और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। फार्मा के क्षेत्र में अगर करियर बनाना है तो इसके लिए न्यूनतम योग्यता है 12वीं और न्यूनतम अंक हैं 50 प्रतिशत। यानी विज्ञान विषय (जीव विज्ञान) के साथ 12वीं पास कर चुके हैं तो आप फार्मा के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। दो साल के डीफार्मा या चार साल के बीफार्मा कोर्स में दाखिला ले सकते हैं।
कोर्स
बीफार्मा, डीफार्मा, एमबीए इन फार्मा, बीबीए इन फार्मा, पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एंड हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी चल रहे हैं। फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मा एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं।
समय सीमा
यूं तो किसी भी फैकल्टी के छात्र इस कोर्स के लिए योग्य हैं, लेकिन विज्ञान संकाय बीएससी, बीफार्मा और डीफार्मा वालों को अधिक प्राथमिकता मिलती है। वैसे फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में सिर्फ बीफार्मा और डीफार्मा सरीखी डिग्री धारकों को ही जगह नहीं मिलती है, बल्कि कैमिस्ट्री, जूलोजी और बॉटनी पढ़े युवाओं को भी खूब रोजगार मिल रहे हैं। ये अवसर अनुसंधान, शोध और फार्मा प्रोडक्शन से जुड़े हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में फार्मा मैनेजमेंट में दो वर्षीय एमबीए पाठयक्रमों की शुरुआत की गई है, जिसमें प्रवेश के लिए स्नातक होना जरूरी है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मार्केटिंग में विशेषज्ञता के साथ एमफार्मा कोर्स उपलब्ध है। कुछ जगहों पर बीबीए (फार्मा मैनेजमेंट) कोर्स भी चलाया जा रहा है। यह तीन वर्षीय स्नातक कोर्स है, जिसमें छात्र 12वीं के बाद प्रवेश ले सकते हैं। डीफार्मा और बीफार्मा कोर्स में दवा के क्षेत्र से जुड़ी उन सभी बातों की थ्योरिटिकल और प्रायोगिक जानकारी दी जाती है, जिनका प्रयोग आमतौर पर इस उद्योग के लिए जरूरी होता है। इसके साथ फार्माकोलॉजी, इंडस्ट्रियल कैमिस्ट्री, हॉस्पिटल एंड क्लिनिकल फार्मेसी, फार्मास्युटिकल, हेल्थ एजुकेशन, बायोटेक्नोलॉजी आदि विषयों की जानकारी दी जाती है।
रिसर्च एंड डेवलपमेंट
फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में हिन्दुस्तान की तेजी देखते ही बनती है। यहां नई-नई दवाइयों की खोज व विकास संबंधी कार्य किया जा रहा है। रिसर्च एंड डेवलपमेंट की बात करें तो जेनेटिक उत्पादों के विकास, एनालिटिकल आरएंडडी, एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्स) या बल्क ड्रग आरएंडडी क्षेत्र शामिल हैं।
ड्रग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर
ड्रग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर फार्मा इंडस्ट्री की खास शाखा है, जो छात्रों को आगे बढ़ने के बेहतर अवसर मुहैया कराती है। आप चाहें तो इस क्षेत्र में मॉलिक्युलर बायोलॉजिस्ट, फार्माकोलॉजिस्ट, टॉक्सिकोलॉजिस्ट या मेडिकल इन्वेस्टिगेटर बन कर अपना भविष्य संवार सकते हैं। मॉलिक्युलर बायोलॉजिस्ट जीन संरचना के अध्ययन और मेडिकल व ड्रग रिसर्च संबंधी मामलों में प्रोटीन के इस्तेमाल का अध्ययन करता है, जबकि फार्माकोलॉजिस्ट का काम इंसान के अंगों व उत्तकों पर दवाइयों व अन्य पदार्थो के प्रभाव का अध्ययन करना होता है।
फार्मासिस्ट
फार्मासिस्ट पर दवाइयों और चिकित्सा संबंधी अन्य सहायक सामग्रियों के भंडारण और वितरण का जिम्मा होता है, जबकि रिटेल सेक्टर में फार्मासिस्ट को एक बिजनेस मैनेजर की तरह काम करते हुए दवा संबंधी कारोबार चलाने में समर्थ होना चाहिए।
ब्रांडिंग एंड सेल्स
फार्मास्युटिकल सेक्टर में मार्केटिंग की काफी अहम भूमिका है। फार्मेसी की पृष्ठभूमि से जुड़ा कोई प्रोफेशनल, एमबीए डिग्रीधारी, यहां तक कि साइंस की डिग्री प्राप्त करने वाला भी सेल्स एंड मार्केटिंग में करियर बना
सकता है।
क्लिनिकल रिसर्च
कोई नई दवा ईजाद करने से पहले यह भी ध्यान रखा जाता है कि वह दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार हो सकती है। इसके लिए टीम गठित होती है और फिर क्लिनिकल ट्रायल होता है। खास बात यह कि सस्ते में प्रोफेशनल्स मिल जाते हैं। इसकी वजह से क्लिनिकल के कारोबार में भी तेजी आई है। इतना ही नहीं, इसकी शौहरत अब पूरे विश्व में पहुंच चुकी है। यही कारण है कि कई नामी विदेशी कंपनियां क्लिनिकल रिसर्च के लिए भारत आ रही हैं। दवाइयों की स्क्रीनिंग संबंधी काम में नई दवाओं या फॉर्मुलेशन का पशु मॉडलों पर परीक्षण करना या क्लिनिकल रिसर्च करना शामिल है, जो इंसानी परीक्षण के लिए जरूरी है।
क्वालिटी कंट्रोल
नई-नई दवाओं के संबंध में अनुसंधान व विकास के अलावा यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत होती है कि इन दवाइयों के जो नतीजे बताए जा रहे हैं, वे सुरक्षित, स्थायी और आशा के अनुरूप हैं। यह काम क्वालिटी कंट्रोल के तहत आता है।
फैक्ट फाइल
प्रमुख संस्थान
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फर्मास्युटिकल साइंस एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.dipsar.in
जामिया हमदर्द, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.jamiahamdard.edu/pharma.asp
इनवोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल, दिल्ली
वेबसाइट
www.ipbs.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, मोहाली
वेबसाइट:
 www.niper.ac.in
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरू
वेबसाइट
www.jncasr.ac.in
करियर ऑप्शन/संभावनाएं
भारत में इस समय 30हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं। नए-नए उत्पादों के आने के कारण यह क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। कार्य प्रकृति के आधार पर इसे तीन क्षेत्रों में बांटा गया है। पहला उत्पादन संबंधी कार्य, दूसरा प्रशासनिक कार्य और तीसरा सेल्स व मार्केटिंग। इसमें दक्ष युवा देसी-विदेशी कंपनियों में मार्केटिंग एग्जिक्युटिव, प्रोडक्ट एग्जिक्युटिव, बिजनेस एग्जिक्युटिव, ब्रांड एग्जिक्युटिव, प्रोडक्शन कैमिस्ट, क्वालिटी कंट्रोलर, क्वालिटी इंश्योरेंस ऑफिसर जैसे पदों पर नौकरी हासिल कर सकते हैं।
वेतन
प्रशिक्षित लोगों की मांग देखते हुए इस क्षेत्र में सैलरी भी काफी तेजी से बढ़ रही है। रिसर्च और एंट्री लेवल पर सैलरी डेढ़ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को 3 से 3.5 लाख रुपये वार्षिक मिल जाते हैं। वैसे इस फील्ड में शुरुआती मासिक वेतन 8 से 15 हजार रुपये तक है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद इस प्रकार की नौकरियों में भी काफी पैसा मिलता रहा है। जो अपनी फार्मास्युटिकल यूनिट शुरू करना चाहते हैं, उन्हें भी डिग्री के आधार पर लाइसेंस मिल जाता है।
आने वाले समय में फार्मासिस्टों की काफी मांग होगी
एक्सपर्ट व्यू/ सौरभ गुप्ता
डिप्टी डायरेक्टर
इन्वोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल
भारत में फार्मेसी का भविष्य बहुत अच्छा है। बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आ रही हैं। अगर आपके पास सही शिक्षा और योग्यता है, जिसकी कंपनी में मांग है तो रोजगार कोई समस्या नहीं है। ड्रग रेग्युलेटरी, ड्रग डिस्कवरी, क्लिनिकल फार्मेसी एवं नैनो तकनीकी क्षेत्रों में आने वाले वर्षो में लोगों की खासी जरूरत होगी। जिस तरह आईटी एवं बीपीओ में एक समय रोजगार में बूम आया, अगला बूम फार्मेसी के क्षेत्र में होगा।
फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में रोज नए-नए नियम बनाए जा रहे हैं। नई-नई तकनीक विकसित की जा रही है। लैब्स, सॉफ्टवेयर का विस्तार किया जा रहा है। फार्मास्युटिकल रेग्युलेटरी अफेयर के बारे में जानकारी दी जा रही है। इसे कोर्स में भी शामिल किया गया है। सरकार और सरकारी एजेंसियां भी फार्मेसी के क्षेत्र में बेहतर काम कर रही हैं।
फार्मास्युटिकल साइंस में उच्च अध्ययन करने की चाह रखने वालों के लिए विदेशों में स्कॉलरशिप तथा रोजगार के मौके हो सकते हैं। इसके अलावा अध्यापन और शोध संस्थानों में भी गुंजाइश कुछ कम नहीं है। खास बात यह कि फार्मेसी में सिर्फ बीफार्मा या डीफार्मा वालों के लिए ही द्वार नहीं खुले हैं। अगर आपके पास दो साल का फार्मेसी के क्षेत्र में तजरुबा है तो आप इस फील्ड में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, उच्च से उच्च पदों पर जा सकते हैं।

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