Thursday, July 30, 2015

फिजियोथेरेपी: पैसा भी, सेवा भी

आज के युग में लोग बीमारी का इलाज करने के लिए दवाइयों का प्रयोग कम से कम करना चाहते हैं, जिसके चलते फिजियोथेरेपिस्ट की माँग में इजाफा हुआ है। फिजियोथेरेपी फिजिकल थेरेपी का दूसरा नाम है। यह एक तेजी से उभरता क्षेत्र है जिसमें बीमारियों का उपचार दवाइयों को छोड़ व्यायाम करके किया जाता है। यह चिकित्सा संबंधित क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। 

फिजियोथेरेपी वह विज्ञान है जिसमें शरीर के अंगों को दवाइयों के बिना ही ठीक ढंग से कार्य कराया जाता है। एक फिजियोथेरेपिस्ट का मुख्य काम शारीरिक कामों का आकलन, मेंटिनेंस और रिस्टोरेशन करना है। फिजियोथेरेपिस्ट वाटर थेरेपी, मसाज आदि अनेक प्रक्रियाओं के द्वारा रोगी का उपचार करता है। 

विज्ञान क्षेत्र के छात्र इस क्षेत्र में बना सकते हैं। फिजियोथेरेपिस्ट बनने के लिए मुख्य रूप से दो कोर्सेस बीपीटी, बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी और एमपीटी, मास्टर ऑफ फिजियोथेरेपी होते हैं। इस कोर्स के आखिरी छह महीने में छात्र को किसी हॉस्पिटल से इंटर्नशिप करवाई जाती है। 

एक प्रेक्टिसिंग फिजियोथेरेपिस्ट या किसी अस्पताल और क्लिनिक में काम करने के लिए कम से कम बीएससी डिग्री होनी आवश्यक है। 12वीं पास छात्र इस क्षेत्र से जुड़ा कोर्स कर सकते हैं बशर्ते उनके भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीवविज्ञान और अंग्रेजी में कम से 50 प्रतिशत अंक हो। इंस्टिट्यूट में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा होती है। 

इस कोर्स के अंतर्गत छात्रों को मानव शरीर की संरचना के बारे में समझाया जाता है। इस कोर्स का प्रमुख हिस्सा इंटर्नशिप है जहाँ छात्र किसी प्रोफेशनल की देखरेख में हॉस्पिटल में काम करते हैं। फिजियोथेरेपिस्ट का क्षेत्र बहुत बड़ा है अतः आप किसी एक क्षेत्र में स्पेशलाइजेशन भी कर सकते हैं।

कैलाश अस्पताल की फिजियोथेरेपिस्ट पल्लवी कहती हैं कि एक फिजियोथेरेपिस्ट को बातचीत करने की कला में माहिर होना आवश्यक है क्योंकि उसका काम लोगों से ही जुड़ा है। इसके अतिरिक्त एक अच्छे फिजियोथेरेपिस्ट को धैर्यशील, लंबे समय तक काम करना, अच्छी याददाश्त तथा लोगों को समझने की कला आनी चाहिए। फिजियाथेरेपिस्ट का काम एक सिस्टमेटिक ढंग से काम करने की माँग करता है। 

पल्लवी बताती हैं कि कोई भी व्यक्ति पहली बार में ही ऑपरेशन करवाना नहीं चाहता, जिसके चलते फिजियोथैरेपी एक अहम्‌ भूमिका अदा करता है। एक फिजियोथेरेपिस्ट म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन तथा मेडिकल इंस्टिट्यूट में काम कर सकता है।
कहाँ से करें कोर्स

नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रिहेबिलिटेशन ट्रेनिंग एंड रिसर्च, उड़ीसा
नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर द आर्थियोपेडिकली हैंडीकैन्ट, कलकत्ता
इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिकली हैंडीकैंट, नई दिल्ली
पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल रिसर्च, चंडीगढ़
सांचती कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी, पुणे
रविनैय्यर कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी, वर्द्धा
वीपीएसम कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी, नागपुर
एसएसबी कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी, अहमदाबाद
के. एम. पटेल इंस्टिट्यूट ऑफ फिजियोथैरेपी, गोकुल नगर
डॉ. डीवाई पटेल कॉलेज ऑफ फिजियोथैरेपी, पु

Wednesday, July 29, 2015

इवेंट मैनेजर

यदि  किसी की पार्टियों को रोशन करने में रूचि है, और वह इसमें करियर भी बनाना चाहता है, तो इवेंट मैनेजर एक अच्च्छा विकल्प है। ग्रेजुएशन के बाद एक साल का कोर्स करके इवेंट मैनेजर बना जा सकता है। पहले इवेंट मैनेजर की मांग केवल कॉर्पोरेट क्षेत्र के आयोजनों में ही होती थी, लेकिन अब छोटे शहरों में भी मैरिज, बर्थ डे, वेडिंग रिसेप्शन, एनिवर्सरीज, प्राइवेट पार्टीज की बढ़ती संख्या को देखते हुए कहा जा सकता है कि इस फील्ड में बेहतर करियर है।

कार्य
इवेंट मैनेजमेंट से जुड़े लोग किसी व्यवसायिक या सामाजिक समारोह को एक खास वर्ग के दर्शकों के लिए आयोजित करते हैं। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से फैशन शो, संगीत समारोह, विवाह समारोह, थीम पार्टी, प्रदर्शनी, कॉर्पोरेट सेमिनार, प्रोडक्ट लॉन्चिंग, प्रीमियर आदि कार्यक्रम आते हैं। एक इवेंट मैनेजर समारोहों का प्रबंधन करता है और क्लाइंट या कंपनी के बजट के अनुरूप सुविधाएं प्रबंध करने का जिम्मा लेता है। इवेंट मैनेजमेंट कंपनी किसी पार्टी या समारोह की प्लानिंग से लेकर उसे इम्प्लीमेंट करने तक का काम करती है। होटल या बैंक्वेट हॉल बुक करने, साज-सज्जा, एंटरटेनमेंट, ब्रेकफास्ट /लन्च/डिनर के लिए खास तरह के मेन्यू तैयार करवाने, अतिथियों का स्वागत, भांति-भांति से सत्कार आदि की व्यवस्था इवेंट मैनेजमेंट ग्रुप में शामिल लोगों को करनी होती है।

कोर्स व योग्यता
इवेंट मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए कई तरह के कोर्स चलाए जा रहे हैं। इनमें डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट (डीईएम) एक वर्ष की अवधि का कोर्स है, जिसमें एडमिशन के लिए कम से कम किसी भी स्ट्रीम में स्नातक होना जरूरी है। पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन इवेंट मैनेजमेंट (पीजीडीईएम) भी एक वर्ष का कोर्स है और इसके लिए भी कंडीडेट का स्नातक होना जरूरी है। इसके अलावा, 6-6 माह के सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी चलाए जा रहे हैं, जिनमें प्रवेश के लिए न्यूनतम योग्यता बारहवीं है। अधिकतर संस्थानों में ये सभी कोर्स पार्ट टाइम में करने की भी सुविधा है, जिसे किसी जॉब या अन्य कोर्स की पढ़ाई के साथ-साथ भी किया जा सकता है। अब इस क्षेत्र में एमबीए की डिग्री भी दी जाने लगी है, जो इवेंट मैनेजमेंट के लिए सबसे असरदार डिग्री है। फिलहाल ये कोर्स हर जगह सुलभ नहीं हैं। ऐसे में किसी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी में ट्रेनिंग लेकर काम सीखा जा सकता है और अनुभव हासिल करने के बाद रेगुलर जॉब या अपनी खुद की इवेंट मैनेजमेंट कंपनी संचालित की जा सकती है।

व्यक्तिगत गुण
इवेंट मैनेजमेंट में किस्मत संवारने के लिए किसी विशेष योग्यता की जरूरत नहीं है। सिर्फ कुशल प्रबंधन क्षमता एवं नेटवर्किग स्किल्स कामयाब बना सकता है। ऐसे स्नातक छात्र, जिनमें जनसंपर्क और संयोजन का हुनर हो, वह आसानी से इस व्यवसाय से जुड़ सकते हैं।

अवसर
वर्तमान समय में 300 से अधिक इवेंट मैनेजमेंट कंपनियां भारत में काम कर रही हैं। अनुमान है कि इस समय देश में इसका कारोबार 60-70 प्रतिशत वार्षिक की दर से बढ़ रहा है।

कमाई
फ्रेशर्स आसानी से कम से कम 10,000 रुपये प्रति माह कमा सकते हैं। और यदि किसी बड़ी कंपनी में नौकरी मिल गई, तो 15,000 रुपये या इससे ज्यादा भी मिल सकते हैं। अनुभव प्राप्त करने के बाद इवेंट मैनेजर के पद पर पहुंच सकते हैं, तब एक महीने में ही एक लाख रुपये कमाया जा सकता है। और यदि कंपनी खोल ली जाय, तो अच्छी कमाई के साथ अपना भविष्य तो बना ही सकते हैं साथ ही दूसरों का भी भविष्य बुलंद कर सकते हैं। सच तो यह है कि यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें वेतन और कमाई की कोई सीमा नहीं है।

संस्थान
 1. एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, नई दिल्ली
 2. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, मुंबई
 3. इवेंट मैनेजमेंट डेवलॅपमेंट इंस्टीट्यूट, मुंबई
 4. नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मीडिया स्टडीज, अहमदाबाद
 5. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
 6. कॉलेज ऑफ इवेंट एंड मैनेजमेंट, पुणे
 7. इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, मुंबई
 8. नेशनल एकेडमी ऑफ इवेंट मैनेजमेंट एंड डेवलॅपमेंट, जयपुर
 9. इंटरनेशनल सेंटर फॉर इवेंट मार्केटिंग एंड मार्केटिंग, नई दिल्ली
 10. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इवेंट मैनेजमेंट, मुंबई

Tuesday, July 28, 2015

फार्मेसी सेक्टर में सुनहरा भविष्य

दवाओं के वितरण से लेकर मार्केटिंग, पैकेजिंग, मैनेजमेंट, सभी फार्मास्युटिकल के अहम हिस्से हैं। क्लिनिकल रिसर्च आउटसोर्सिग यानी ‘ओआरजी’ रिसर्च फर्म के मुताबिक भारतीय फार्मा उद्योग 12-13 फीसदी की दर से वृद्घि कर रहा है। इस बात को मैकिंजे की रिपोर्ट भी पुख्ता करती है। मैकिंजे की रिपोर्ट के मुताबिक 2020 तक इस उद्योग में तीन गुणा बढ़ोत्तरी होगी। ये तो रिपोर्ट है। वैसे फिलवक्त भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग 24 हजार करोड़ रुपये से अधिक का है, जिसमें निर्यात भी शामिल है। वर्ष 2005 में देश की फार्मा इंडस्ट्री का कुल प्रोडक्शन करीब 9 बिलियन डॉलर था, जो वर्ष 2010 तक 25 बिलियन तक पहुंच गया। इसकी वाजिब वजह भी है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान हमारे देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। आज स्वास्थ्य सुविधाओं का तेजी से विस्तार हो रहा है। इतना ही नहीं, फार्मा इंडस्ट्री में भारत का रुतबा अब सिर्फ रिसर्च एंड डेवलपमेंट तक ही सीमित नहीं रह गया है। मैन्युफैक्चरिंग, क्लिनिकल ट्रायल, जेनेटिक ड्रग रिसर्च के क्षेत्र में भी खूब होने लगा है। इतना ही नहीं फार्मास्युटिकल क्षेत्र आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते उद्योग में शुमार होने लगा है।
शैक्षणिक योग्यता
सौ से अधिक संस्थानों में डिग्री और 200 से अधिक संस्थानों में डिप्लोमा कोर्स चलाए जा रहे हैं। फार्मा के क्षेत्र में अगर करियर बनाना है तो इसके लिए न्यूनतम योग्यता है 12वीं और न्यूनतम अंक हैं 50 प्रतिशत। यानी विज्ञान विषय (जीव विज्ञान) के साथ 12वीं पास कर चुके हैं तो आप फार्मा के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। दो साल के डीफार्मा या चार साल के बीफार्मा कोर्स में दाखिला ले सकते हैं।
कोर्स
बीफार्मा, डीफार्मा, एमबीए इन फार्मा, बीबीए इन फार्मा, पीजी डिप्लोमा इन फार्मास्युटिकल एंड हेल्थ केयर मार्केटिंग, डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग, एडवांस डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग एवं पीजी डिप्लोमा इन फार्मा मार्केटिंग जैसे कोर्स भी चल रहे हैं। फार्मा रिसर्च में स्पेशलाइजेशन के लिए एनआईपीईआर यानी नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मा एजुकेशन एंड रिसर्च जैसे संस्थानों में प्रवेश ले सकते हैं।
समय सीमा
यूं तो किसी भी फैकल्टी के छात्र इस कोर्स के लिए योग्य हैं, लेकिन विज्ञान संकाय बीएससी, बीफार्मा और डीफार्मा वालों को अधिक प्राथमिकता मिलती है। वैसे फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में सिर्फ बीफार्मा और डीफार्मा सरीखी डिग्री धारकों को ही जगह नहीं मिलती है, बल्कि कैमिस्ट्री, जूलोजी और बॉटनी पढ़े युवाओं को भी खूब रोजगार मिल रहे हैं। ये अवसर अनुसंधान, शोध और फार्मा प्रोडक्शन से जुड़े हैं। कुछ विश्वविद्यालयों में फार्मा मैनेजमेंट में दो वर्षीय एमबीए पाठयक्रमों की शुरुआत की गई है, जिसमें प्रवेश के लिए स्नातक होना जरूरी है। जामिया मिल्लिया इस्लामिया में मार्केटिंग में विशेषज्ञता के साथ एमफार्मा कोर्स उपलब्ध है। कुछ जगहों पर बीबीए (फार्मा मैनेजमेंट) कोर्स भी चलाया जा रहा है। यह तीन वर्षीय स्नातक कोर्स है, जिसमें छात्र 12वीं के बाद प्रवेश ले सकते हैं। डीफार्मा और बीफार्मा कोर्स में दवा के क्षेत्र से जुड़ी उन सभी बातों की थ्योरिटिकल और प्रायोगिक जानकारी दी जाती है, जिनका प्रयोग आमतौर पर इस उद्योग के लिए जरूरी होता है। इसके साथ फार्माकोलॉजी, इंडस्ट्रियल कैमिस्ट्री, हॉस्पिटल एंड क्लिनिकल फार्मेसी, फार्मास्युटिकल, हेल्थ एजुकेशन, बायोटेक्नोलॉजी आदि विषयों की जानकारी दी जाती है।
रिसर्च एंड डेवलपमेंट
फार्मास्युटिकल्स के क्षेत्र में हिन्दुस्तान की तेजी देखते ही बनती है। यहां नई-नई दवाइयों की खोज व विकास संबंधी कार्य किया जा रहा है। रिसर्च एंड डेवलपमेंट की बात करें तो जेनेटिक उत्पादों के विकास, एनालिटिकल आरएंडडी, एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्स) या बल्क ड्रग आरएंडडी क्षेत्र शामिल हैं।
ड्रग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर
ड्रग मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर फार्मा इंडस्ट्री की खास शाखा है, जो छात्रों को आगे बढ़ने के बेहतर अवसर मुहैया कराती है। आप चाहें तो इस क्षेत्र में मॉलिक्युलर बायोलॉजिस्ट, फार्माकोलॉजिस्ट, टॉक्सिकोलॉजिस्ट या मेडिकल इन्वेस्टिगेटर बन कर अपना भविष्य संवार सकते हैं। मॉलिक्युलर बायोलॉजिस्ट जीन संरचना के अध्ययन और मेडिकल व ड्रग रिसर्च संबंधी मामलों में प्रोटीन के इस्तेमाल का अध्ययन करता है, जबकि फार्माकोलॉजिस्ट का काम इंसान के अंगों व उत्तकों पर दवाइयों व अन्य पदार्थो के प्रभाव का अध्ययन करना होता है।
फार्मासिस्ट
फार्मासिस्ट पर दवाइयों और चिकित्सा संबंधी अन्य सहायक सामग्रियों के भंडारण और वितरण का जिम्मा होता है, जबकि रिटेल सेक्टर में फार्मासिस्ट को एक बिजनेस मैनेजर की तरह काम करते हुए दवा संबंधी कारोबार चलाने में समर्थ होना चाहिए।
ब्रांडिंग एंड सेल्स
फार्मास्युटिकल सेक्टर में मार्केटिंग की काफी अहम भूमिका है। फार्मेसी की पृष्ठभूमि से जुड़ा कोई प्रोफेशनल, एमबीए डिग्रीधारी, यहां तक कि साइंस की डिग्री प्राप्त करने वाला भी सेल्स एंड मार्केटिंग में करियर बना
सकता है।
क्लिनिकल रिसर्च
कोई नई दवा ईजाद करने से पहले यह भी ध्यान रखा जाता है कि वह दवा लोगों के लिए कितनी सुरक्षित और असरदार हो सकती है। इसके लिए टीम गठित होती है और फिर क्लिनिकल ट्रायल होता है। खास बात यह कि सस्ते में प्रोफेशनल्स मिल जाते हैं। इसकी वजह से क्लिनिकल के कारोबार में भी तेजी आई है। इतना ही नहीं, इसकी शौहरत अब पूरे विश्व में पहुंच चुकी है। यही कारण है कि कई नामी विदेशी कंपनियां क्लिनिकल रिसर्च के लिए भारत आ रही हैं। दवाइयों की स्क्रीनिंग संबंधी काम में नई दवाओं या फॉर्मुलेशन का पशु मॉडलों पर परीक्षण करना या क्लिनिकल रिसर्च करना शामिल है, जो इंसानी परीक्षण के लिए जरूरी है।
क्वालिटी कंट्रोल
नई-नई दवाओं के संबंध में अनुसंधान व विकास के अलावा यह सुनिश्चित करने की भी जरूरत होती है कि इन दवाइयों के जो नतीजे बताए जा रहे हैं, वे सुरक्षित, स्थायी और आशा के अनुरूप हैं। यह काम क्वालिटी कंट्रोल के तहत आता है।
फैक्ट फाइल
प्रमुख संस्थान
दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फर्मास्युटिकल साइंस एंड रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.dipsar.in
जामिया हमदर्द, नई दिल्ली
वेबसाइट
www.jamiahamdard.edu/pharma.asp
इनवोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल, दिल्ली
वेबसाइट
www.ipbs.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फार्मास्यूटिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, मोहाली
वेबसाइट:
 www.niper.ac.in
जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरू
वेबसाइट
www.jncasr.ac.in
करियर ऑप्शन/संभावनाएं
भारत में इस समय 30हजार से भी अधिक रजिस्टर्ड फार्मास्युटिकल कंपनियां हैं। नए-नए उत्पादों के आने के कारण यह क्षेत्र आज सर्वाधिक संभावनाओं से भरा है। कार्य प्रकृति के आधार पर इसे तीन क्षेत्रों में बांटा गया है। पहला उत्पादन संबंधी कार्य, दूसरा प्रशासनिक कार्य और तीसरा सेल्स व मार्केटिंग। इसमें दक्ष युवा देसी-विदेशी कंपनियों में मार्केटिंग एग्जिक्युटिव, प्रोडक्ट एग्जिक्युटिव, बिजनेस एग्जिक्युटिव, ब्रांड एग्जिक्युटिव, प्रोडक्शन कैमिस्ट, क्वालिटी कंट्रोलर, क्वालिटी इंश्योरेंस ऑफिसर जैसे पदों पर नौकरी हासिल कर सकते हैं।
वेतन
प्रशिक्षित लोगों की मांग देखते हुए इस क्षेत्र में सैलरी भी काफी तेजी से बढ़ रही है। रिसर्च और एंट्री लेवल पर सैलरी डेढ़ लाख रुपये वार्षिक मिलती है। मार्केटिंग क्षेत्र में एक फ्रेशर को 3 से 3.5 लाख रुपये वार्षिक मिल जाते हैं। वैसे इस फील्ड में शुरुआती मासिक वेतन 8 से 15 हजार रुपये तक है। छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद इस प्रकार की नौकरियों में भी काफी पैसा मिलता रहा है। जो अपनी फार्मास्युटिकल यूनिट शुरू करना चाहते हैं, उन्हें भी डिग्री के आधार पर लाइसेंस मिल जाता है।
आने वाले समय में फार्मासिस्टों की काफी मांग होगी
एक्सपर्ट व्यू/ सौरभ गुप्ता
डिप्टी डायरेक्टर
इन्वोटेक फार्मा बिजनेस स्कूल
भारत में फार्मेसी का भविष्य बहुत अच्छा है। बहुत-सी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत आ रही हैं। अगर आपके पास सही शिक्षा और योग्यता है, जिसकी कंपनी में मांग है तो रोजगार कोई समस्या नहीं है। ड्रग रेग्युलेटरी, ड्रग डिस्कवरी, क्लिनिकल फार्मेसी एवं नैनो तकनीकी क्षेत्रों में आने वाले वर्षो में लोगों की खासी जरूरत होगी। जिस तरह आईटी एवं बीपीओ में एक समय रोजगार में बूम आया, अगला बूम फार्मेसी के क्षेत्र में होगा।
फार्मास्युटिकल के क्षेत्र में रोज नए-नए नियम बनाए जा रहे हैं। नई-नई तकनीक विकसित की जा रही है। लैब्स, सॉफ्टवेयर का विस्तार किया जा रहा है। फार्मास्युटिकल रेग्युलेटरी अफेयर के बारे में जानकारी दी जा रही है। इसे कोर्स में भी शामिल किया गया है। सरकार और सरकारी एजेंसियां भी फार्मेसी के क्षेत्र में बेहतर काम कर रही हैं।
फार्मास्युटिकल साइंस में उच्च अध्ययन करने की चाह रखने वालों के लिए विदेशों में स्कॉलरशिप तथा रोजगार के मौके हो सकते हैं। इसके अलावा अध्यापन और शोध संस्थानों में भी गुंजाइश कुछ कम नहीं है। खास बात यह कि फार्मेसी में सिर्फ बीफार्मा या डीफार्मा वालों के लिए ही द्वार नहीं खुले हैं। अगर आपके पास दो साल का फार्मेसी के क्षेत्र में तजरुबा है तो आप इस फील्ड में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, उच्च से उच्च पदों पर जा सकते हैं।

Monday, July 27, 2015

साइकोलॉजी नो टेंशन फॉर करियर

बदलती जीवनशैली तथा बढती महत्वाकांक्षाओं के कारण तनाव बढ रहे हैं, जिनसे छुटकारा पाने व जीवनशैली से सामंजस्य स्थापित करने के लिए साइकोलॉजिस्ट्स की मदद ली जा रही है। साइकोलॉजी  ट्रीटमेंट बिना दवाइयों का सेवन किए और सोच में परिवर्तन लाने पर आधारित होता है। यही कारण है कि इसकी लोकप्रियता दिनोंदिन बढ रही है।
उपलब्ध कोर्स
बीए/बीए ऑनर्स इन साइकोलॉजी (3 वर्ष)
एमए/एमएससी इन साइकोलॉजी (2 वर्ष)
पीजी डिप्लोमा इन साइकोलॉजी (2 वर्ष)
कैसे मिलेगी एंट्री
बीए या बीए ऑनर्स इन साइकोलॉजी में दाखिले के लिए 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं पास होना अनिवार्य है। इसके अलावा आप पीजी या डिप्लोमा भी कर सकते हैं, जिसके लिए 55 प्रतिशत अंकों के साथ साइकोलॉजी विषय में स्नातक डिग्री आवश्यक है। एमफिल या पीएचडी करने के लिए 55  प्रतिशत अंकों के साथ साइकोलॉजी में पीजी जरूरी है।
क्या हैं विकल्प
इस क्षेत्र में रोजगार की कोई कमी नहीं है। साइकोलॉजिस्ट्स सरकारी व निजी अस्पतालों, क्लीनिकों, यूनिवर्सिटी, स्कूलों, सरकारी एजेंसियों, प्राइवेट इंडस्ट्रीज, रिसर्च आर्गेनाइजेशंस, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और कॉर्पाेरेट हाउसेस में रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। पारंपरिक साइकोलॉजिस्ट्स क्षेत्रों में स्पेशलाइजेशन के अलावा कुछ नए क्षेत्र सामने आए हैं। आपके लिए इनमें भी काफी अवसर हो सकते हैं।
आवश्यक गुण
सफल साइकोलॉजिस्ट्स बनने के लिए अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स, धैर्यशील तथा सभी उम्र के लोगों के साथ काम करने की कला होनी चाहिए। इसके साथ ही साइकोलॉजिस्ट्स के लिए सेंसिटिव, केयरिंग, आत्मविश्वासी होने के साथ क्लाइंट को संतुष्ट करने की योग्यता भी आवश्यक है।
सैलरी पैकेज
इस क्षेत्र में सैलरी आपके कार्य क्षेत्र तथा अनुभव पर निर्भर करती है। शुरुआती दौर में आप लगभग 8,000 से 10,000 रुपये प्रतिमाह कमा सकते हैं। कुछ वर्षों के अनुभव के बाद कमाई 15,000 से 20,000  रुपये प्रतिमाह तक हो सकती है। अगर आप एक्सपीरियंस के बाद खुद की प्रैक्टिस करते हैं, तो कहीं अधिक कमा सकते हैं।
कहां से करें
जामिया मिलिया इस्लामिया, जामिया नगर, नई दिल्ली
दिल्ली यूनिवर्सिटी, दिल्ली
एमिटी इंस्टीट्यूट ऑफ साइकोलॉजी ऐंड अलॉइड साइंसेस, नोएडा
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,अलीगढ
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
यूनिवर्सिटी ऑफ इलाहाबाद, इलाहाबाद
पटना यूनिवर्सिटी, पटना
रांची यूनिवर्सिटी, रांची
गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर
पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ
यूनिवर्सिटी ऑफ पुणे, पुणे
नागपुर यूनिवर्सिटी, नागपुर
यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई, मुंबई
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर
यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता, कोलकाता  
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरो साइंस, बेंगलुरु 
प्रियंका सिंहल
साइकोलॉजी में है बेहतर स्कोप
आज साइकोलॉजिस्ट की डिमांड सभी जगह है। यही कारण है कि यह विषय काफी पॉपुलर हो रहा है।
इसमें किस तरह की पढाई होती है?
यह पाठ्यक्रम केवल किताबी ज्ञान पर आधारित नहीं है, बल्कि इसके अंतर्गत छात्रों को प्रैक्टिकल  नॉलेज भी दी जाती है। इसके लिए छात्रों को आवश्यक जगहों पर ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है। हर उम्र के लोगों के साथ, विभिन्न परिस्थितियों में किस प्रकार भावनात्मक रूप से जुडकर उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए, यह विशेष रूप से सिखाया जाता है। इसके अलावा छात्रों को क्रिमिनल साइकोलॉजी, सोशल ग्रुप, न्यूरो लॉ पढाया जाता है।
आज साइकोलॉजिस्ट की भूमिका में किस तरह का परिवर्तन आया है?
पहले साइकोलॉजिस्ट की भूमिका केवल पागलपन से संबंधित बीमारियों तक सीमित समझी जाती थी। आज बनते-बिगडते रिश्तों, तेजी से तरक्की की लालसा तथा बढती आत्महत्याओं के कारण साइकोलॉजिस्ट  की भूमिका और अधिक बढ गई है। इसके अतिरिक्त परीक्षा के दिनों में छात्रों पर बढ रहे तनाव के कारण स्कूलों व कॉलेजों में भी साइकोलॉजिस्ट विशेषज्ञों की नियुक्ति हो रही है।
साइकोलॉजी में डिग्री लेने के बाद नौकरी की क्या संभावना है?
भारत में इस पाठ्यक्रम की मांग को देखते हुए विशेषज्ञों की संख्या काफी कम है। करियर की बेहतरीन संभावनाओं के कारण ही हाई मेरिट पर इस कोर्स में एडमिशन मिलता है। डीयू के साइकोलॉजी  विषय के छात्रों का प्लेसमेंट रिकार्ड बेहतर रहा है। इसके अलावा छात्र खुद का क्लीनिक सेंटर ख् ाोलकर भी काफी पैसे कमा सकते हैं।

विज्ञान संचार के क्षेत्र में कॅरियर के चमकीले अवसर


विज्ञान संचार वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रचार-प्रसार से संबंधित है। यह पूर्णतः सत्य है कि हमारे देश में वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए बहुत कुछ किया गया है। परंतु यह पर्याप्त नहीं है। इस क्षेत्र में काफी कुछ किया जाना अभी बाकी है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन ने कहा है कि ‘हमारे विश्वविद्यालयों को ऐसे विज्ञान संचारकों का विकास करने में सहायता करनी चाहिए जो आम जनता को स्थानीय भाषा में विज्ञान की महत्वपूर्ण खोजों का महत्व समझा सकें। पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित जनशक्ति के अभाव में विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी की सार्वजनिक समझ विकसित नहीं की जा सकती है।
विज्ञान संचारकर्ताओं के सम्मुख सबसे बड़ी चुनौती विज्ञान संचार को अधिक रुचिकर बनाने की है। विज्ञान के उन छात्रों के लिए विज्ञान संचार में कॅरियर के चमकीले अवसर हैं जो सामान्य व्यक्ति को विज्ञान एवं उसकी उपलब्धियों के बारे में समझा सकें। विज्ञान संचार में कॅरियर बनाने के इच्छुक छात्रों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, स्वास्थ्य, ऊर्जा तथा संबंधित क्षेत्रों में विज्ञान पत्रकार, विज्ञान लेखक, जनसंपर्क अधिकारी, कार्पोरेट कम्युनिकेटर बनने की गहरी ललक होनी चाहिए तथा बोलने एवं लिखने की प्रवृत्ति भी होनी चाहिए। विज्ञान संचार अब वर्तमान समय में शिक्षा के एक अत्यधिक मान्य विषय के रूप में स्थापित हो चुका है। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक शाखा-राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद ने विज्ञान संचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों को मान्यता प्रदान की है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन राष्ट्रीय विज्ञान संग्रहालय परिषद भी विज्ञान संचार में पाठ्यक्रम संचालित करता है।
गौरतलब है कि विज्ञान संचार के विभिन्न शैक्षिक पाठ्यक्रमों का मुख्य लक्ष्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण के प्रसार को ध्यान में रखते हुए विभिन्न मीडिया के माध्यम से प्रभावी संचार के लिए विज्ञान संचार कौशल एवं तकनीक देना, विद्यार्थियों के ज्ञान को अद्यतन करना और विज्ञान संचार के विभिन्न कार्यक्षेत्रों की क्षमता बढ़ाना, उद्योग, अनुसंधान तथा विकास केंद्रों एवं कार्पोरेट संस्थाओं में विज्ञान संचार को बढ़ावा देना और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण मामलों में उन्हें व्यावहारिक अनुभव प्रदान करना है। विज्ञान संचार के पाठ्यक्रम विज्ञान संचार के सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक पहलुओं का व्यवस्थित ज्ञान उपलब्ध कराते हैं तथा विद्यार्थियों को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में सफल संचारक बनने हेतु प्रशिक्षित करते हैं। विद्यार्थी विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी संचार का महत्व तथा भूमिका, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी नीतियों, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का इतिहास, आधुनिक विज्ञान का आविर्भाव, भारत में महान वैज्ञानिकों तथा विज्ञान पत्रकािरता की महत्वपूर्ण उपलब्धियों का अध्ययन करते हैं।
विज्ञान संचार पाठ्यक्रमों में स्वास्थ्य तथा पर्यावरणीय संचार, जल तथा सफाई जागरूकता, मीडिया तथा आपदा प्रबंधन, शांति विषयों पर पत्रकारिता, ग्रामीण संचार, कार्पोरेट संचार, कृषि विस्तार तथा जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, नाभिकीय प्रौद्योगिकी तथा आनुवांशिक दृष्टि से परिष्कृत फसलों आदि विषयों को शामिल किया गया है। टेलीविजन तथा रेडियों के माध्यम से विज्ञान प्रसारण, मल्टीमीडिया तथा विज्ञान डॉक्यूमेंटरी फिल्म का निर्माण आदि इन पाठ्यक्रमों के अन्य आकर्षण हैं। व्यावहारिक समझ डेवलप करने के लिए कुछ संस्थानों में फोटोग्राफी प्रयोगशाला, रिपोर्टिंग कौशल प्रयोगशाला तथा तकनीकी लेखन कौशल प्रयोगशाला भी स्थापित की गई है। विद्यार्थी विज्ञान संचार के माध्यम से विकास संचार, जनसंपर्क, विज्ञापन, मीडिया प्रबंधन तथा विज्ञान न्यूज लैटर्स का प्रबंधन भी सीखते हैं। पाठ्यक्रम के दौरान विद्यार्थियों को किसी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संगठन अथवा मीडिया सेन्टर में इंटर्नशिप पर रखा जाता है जहाँ वे इंटर्नशिप करते हैं।
विज्ञान संचार से जुड़े जो प्रमुख पाठ्यक्रम देश के विभिन्न संस्थानों में उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार हैं- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जन संचार में एमएससी, विज्ञान संचार में पीजी डिप्लोमा, विज्ञान संचार में एमएस, विज्ञान एवं विकास संचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा, विज्ञान पत्रकारिता में प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आदि। विज्ञान संचार के विभिन्न पाठ्यक्रमों में प्रवेश हेतु शैक्षणिक योग्यताएँ भिन्न-भिन्न हंै। सामान्यतः विज्ञान विषय समूह से स्नातक/बी.टेक उत्तीर्ण विद्यार्थियों को प्रवेश दिया जाता है। कुछ पाठ्यक्रमों में किसी भी विषय समूह से स्नातक उत्तीर्ण विद्यार्थियों को भी प्रवेश दिया जाता है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से विज्ञान संचार में पीजी डिप्लोमा कोर्स भी चलाता है। इसी विश्वविद्यालय में विज्ञान संचार में पीएच.डी. भी कराई जाती है।
विज्ञान संचार से संबंधित पाठ्यक्रम सफलतापूर्वक उत्तीर्ण करने वाले विद्यार्थी इलेक्ट्रॉनिक तथा प्रिंट मींडिया में विज्ञान रिपोर्टर, कॉपी एडिटर तथा टेलीविजन प्रोड्यूसर के रूप में अच्छा कॅरियर प्राप्त कर सकते हैं। वे विज्ञान, प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, स्वास्थ्य, कृषि, ग्रामीण तथा विकास संचार के क्षेत्रों में कार्यरत जनसंपर्क एजेंसियों, कार्पोरेट संस्थाओं, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी एजेंसियों एवं अन्य संगठनों में आकर्षक रोजगार प्राप्त कर सकते हैं। सरकारी संगठन, सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम, विज्ञान प्रयोगशालाएँ, अनुसंधान तथा विकास केन्द्र, विज्ञान संग्रहालय एवं विज्ञान केन्द्र भी रोजगार के चमकीले अवसर हैं। विद्यार्थी विज्ञान फिल्म निर्माता के रूप में विज्ञान डॉक्यूमेंटरीज निर्माण के लिए अपना निजी प्रोडक्शन हाउस भी प्रारंभ कर सकते हैं। विज्ञान संचार का कोर्स करके विद्यार्थी इस क्षेत्र में स्वयं भी अच्छा रोजगार प्राप्त करेंगे तथा सामान्य व्यक्ति को भी विज्ञान की चमत्कारी दुनिया से रूबरू कराएँगे।
विज्ञान संचार में कोर्स कराने वाले देश के प्रमुख मान्यताप्राप्त संस्थान इस प्रकार हैं-
- विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जन संचार संस्थान, लखनऊ, उत्तरप्रदेश। 
वेबसाइट www.lkouniv.ac.in
- मीडिया विज्ञान विभाग, अन्ना विश्वविद्यालय, चेन्नै, तमिलनाडु। 
वेबसाइट www.annauniv.edu
- विज्ञान संचार केन्द्र, भविष्य अध्ययन एवं नियोजन विद्यालय, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर, मध्यप्रदेश। 
वेबसाइट www.csc.dauniv.ac.in
- इमेजिंग प्रौद्योगिकी विकास केन्द्र, तिरुवनंतपुरम, केरल। 
वेबसाइट www.cditcourses.org
- भारतीय विज्ञान संचार सोसायटी, लखनऊ, उत्तरप्रदेश। 
वेबसाइट www.iscos.org

Saturday, July 25, 2015

प्रबंधन सलाहकार: करियर का बेहतर विकल्प

कंसल्टेंट के कार्यों के बढ़ते दायरे से प्रबंधन सलाहकार की उपयोगिता बढ़ती जा रही है। आज कई ऐसे एमबीए और अन्य ग्रेजुएट हैं, जो कंसल्टेंट का काम करना पसंद करते हैं।

किसी भी ऑर्गनाइजेशन की तरक्की में मैनेजमेंट कंसल्टेंट का अहम योगदान होता है। मैनेजमेंट कंसल्टेंट ऑर्गनाइजेशन की दशा सुधारने के लिए पहले बिजनेस की मौजूदा समस्याओं का विश्लेषण करते हैं और जरुरत के मुताबिक आगे की योजनाओं का खाका तैयार करते हैं। ऑर्गनाइजेशन को जब बाहर से किसी उद्देश्यपूर्ण सलाह की आवश्यकता होती है तो संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ सलाहकार से संपर्क किया जाता है और उन्हें संगठन की सेहत सुधारने व उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप कार्य का दायित्व सौंपा जाता है। कंसल्टेंसी के माध्यम से संगठनात्मक परिवर्तन, प्रबंधन संबंधी सहायता, कोचिंग स्किल्स के विकास, प्रौद्योगिकी को अपनाने, विकास की रणनीति अपनाने अथवा सुधार संबंधी सेवाएं प्राप्त की जाती हैं। यहां एक बड़ा सवाल है कि एमबीए की डिग्री हासिल करने वाले मैनेजमेंट कसल्टेंट का कार्य करने में इतनी रुचि क्यों लेते हैं। जाहिर-सी बात है कि कंसल्टेंसी से उन्हें एक्सपोजर मिलता है। सीखने और पेशेवर हुनर को तराशने के पहलू काफी महत्वपूर्ण होते हैं। अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि परंपरागत व्यवसाय में लोग जितना कई साल में सीखते हैं, उतना हुनर तो एक साल की मैनेजमेंट कंसल्टेंसी में हासिल कर लेते हैं।

पारिश्रमिक
शुरुआत में 5 से 8 लाख रुपये सालाना कमा सकते हैं और कुछ साल काम करने के बाद 10 लाख से 15 लाख रुपये तक आराम से अर्जित कर सकते हैं। अनुभव प्राप्त करने पर कंसल्टेंट के वेतन में बढ़ोतरी होती है। अगर आप इस बिजनेस में अच्छा काम कर रहे हैं और आप में कामयाबी की बुलंदियों को छूने की तमन्ना है तो फिर कमाई की कोई सीमा ही नहीं है।

कैसे करें मुकाम हासिल 
मैनेजमेंट की डिग्री अगर किसी प्रमुख संस्थान से हासिल की जाए तो कंसल्टेंसी का काम मिलने में आसानी होती है। आप इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करके भी बतौर विश्लेषक इस क्षेत्र में अपनी पारी की शुरुआत कर सकते हैं। एमबीए करने के बाद आपको एसोसिएट अथवा कंसल्टेंट जैसी सीनियर पोजिशन पर काम मिल सकता है। औद्योगिक घरानों के माइंडसेट में बदलाव आया है और वे अच्छे कॉलेजों से फ्रेश ग्रेजुएट को चुन कर सीधे इस कार्यक्षेत्र में ला रहे हैं।

दक्षता
मैनेजमेंट कंसल्टेंट के पास एनालिटिकल माइंड होना जरूरी है। तभी आप उद्योग जगत के मौजूदा ट्रेंड को समझ पाएंगे और कंपनी की समस्याओं को हल करने में दक्ष होंगे। 
विभिन्न क्षेत्रों में रुचि होनी चाहिए, ताकि आप बिलकुल अनजान क्षेत्र के प्रोजेक्ट पर भी अच्छी तरह काम कर सकें। किसी प्रोजेक्ट में आपकी मार्केटिंग की जानकारी की जांच होगी तो किसी में ऑपरेशन स्किल्स का कसौटी पर होगी। 
बेहतर कम्युनिकेशन स्किल्स मैनेजमेंट कंसल्टेंट के लिए जरूरी है, जिससे आप अपने विचार से क्लाइंट को प्रभावित करने में कामयाब हो सकें। क्लाइंट की बातों को सुनना और उसका अच्छा मार्गदर्शन करना भी आवश्यक है। 
उद्योग जगत के विशेषज्ञों को हमेशा सीखने की जरूरत होती है, लिहाजा उनकी लर्निंग स्किल्स बेहतर हो, ताकि वे अपनी जानकारी को अपडेट करते रहें।

प्रबंधन संस्थान 
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम्स)- अहमदाबाद, बैंगलोर, कलकत्ता, लखनऊ और इंदौर
वेबसाइट: www.iimahd.ernet.in

फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय 
वेबसाइट: www.fms.edu

मैनेजमेंट डेवलपमेंट इंस्टीटय़ूट, गुड़गांव
वेबसाइट: www.mdi.ac.in 

आईएमआई, दिल्ली 
वेबसाइट: www.imi.edu

एक्सएलआरआई, जमशेदपुर 
वेबसाइट: www.xlri.ac.in

Thursday, July 23, 2015

जल प्रबंधन में संभावनाएं

समूचे विश्व में पानी की किल्लत के चलते जल संचयन, सरंक्षण जैसे कोर्स की मांग खूब बढ़ गई है। निश्चित तौर पर इनमें भी अब पेशेवरों की मांग है। इसी के मद्देनजर इग्नू में जल संचयन एवं प्रबंधन का कोर्स शुरू किया गया है। इस कोर्स के अंतर्गत पानी का प्रबंधन कैसे किया जाए, पानी का संरक्षण कैसे किया जाए जैसे विषयों के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी जाती है। 

बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण आज समूचा विश्व पानी की किल्लत से जूझ रहा है। ऐसे में लोगों में जल संचयन की जागरूकता फैलाकर उन्हें जल की आवश्यकता बताना समय की मांग है। इसी के मद्देनजर सरकारी और गैर सरकारी संगठनों ने कुछ ऐसे कोर्सों की शुरुआत की है जो जल आपूर्ति से लेकर जल संचयन आदि विषयों की पूर्ण जानकारी देते हैं, साथ ही यह भी बताते हैं कि किस तरह से आप पानी की किल्लत से बच सकते हैं। इसी के मद्देनजर इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी, दिल्ली ने जल संचयन एवं प्रबंधन का सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किया है जिसे करने पर आप इससे जुड़ी अलग-अलग विधाओं में अपने कदम रख सकते हैं।

कोर्स


जल संचयन एवं प्रबंधन नामक यह कोर्स 6 महीने की अवधि का है। इस कोर्स के अंतर्गत छात्रों को जल को किस तरह से संरक्षित किया जाता है, बरसात के पानी को किस तरह से मापा जाता है, वॉटर टेबल का क्या महत्व है और उसे किस तरह से रिचार्ज किया जाए यह सब सिखाया जाता है । डेस्क वर्क के बाद फील्ड की भी जानकारी छात्रों को इसमें दी जाती है ।

विशेषज्ञों की राय


इस कोर्स के समन्वयक संजय पाण्डेय कहते हैं कि निश्चित तौर पर इस कोर्स की आने वाले समय में खूब मांग होने वाली है। इस कोर्स के बलबूते छात्र बहुत सी विधाओं में अपने हाथ आजमा सकते हैं। इस कोर्स के अंतर्गत हम छात्रों को नई-नई तकनीक से रूबरू कराते हैं कि आखिर किस तरह से वह जल को माप सकते हैं आदि। निश्चित तौर पर इस विधा में प्रशिक्षित लोगों की मांग होती है ।

योग्यता


इस कोर्स की खासियत है कि इसमें दाखिला लेने की न्यूनतम योग्यता 10वीं पास है। वहीं यदि आपने इग्नू से बैचलर प्रीपेट्री प्रोग्राम (बीपीपी) किया हुआ है तो आप सीधे इस कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। 6 महीने के लिए इस कोर्स की फीस 1600 रुपए है जिसके अंतर्गत आपको स्टडी मेटेरियल भी मिलता है । 

संभावनाएं


इस कोर्स को कर आप बड़े-बड़े उद्योगों में लग सकते हैं। आजकल हाउसिंग काम्प्लेक्स से लेकर उद्योगों आदि में कुछ पेशेवर लोगों की जरूरत होती है जो वॉटर हारवेस्टिंग से लेकर जल संचयन आदि की तकनीकों को जानते हों। 

यहां से करें कोर्स


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली । संपर्क करें – 01129535924-32 । वेबसाइट :www.ignou.ac.in

Wednesday, July 22, 2015

थलसेना में करियर: देशभक्ति की कदमताल

भारतीय थलसेना में समय-समय पर भर्ती अभियान चलता रहता है। यह अभियान खुली भर्ती के रूप में व सेलेक्शन बोर्डस के माध्यम से चलाया जाता है। थलसेना में करियर की संभावनाओं पर एक नजर-

सेना, बतौर करियर तो अच्छा क्षेत्र है ही, देश के लिए कुछ करने का सशक्त माध्यम भी है। इतना ही नहीं, इससे आपको अच्छी सेलरी और सुविधाओं के साथ-साथ जो सम्मान और सुकून मिलता है, उसकी किसी से कोई तुलना नहीं की जा सकती। दुनियाभर में इंडियन आर्मी को सम्मान की नजरों से देखा जाता है। युद्ध के अलावा शांति के दिनों में भी सीमा की सुरक्षा के साथ-साथ बाढ़, भूकंप और तूफान जैसी आपदाओं के दौरान भी आर्मी की मुस्तैदी देखने को मिलती है। इसमें अच्छी सेलरी के साथ दूसरी कई सुविधाएं भी हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि यह युवाओं के लिए एक बढिया करियर ऑप्शन है।

थलसेना की अनेक शाखाओं में खुली भर्ती के माध्यम से चयन किया जाता है। ये शाखाएं हैं-

थलसेना गैर तकनीकी शाखाएं: इन्फेंटरी आर्म्ड कोर, आर्टिलरी।
तकनीकी शाखाएं: कोर ऑफ इंजीनियर्स, कोर ऑफ इलेक््रिटकल एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स, कोर ऑफ सिगनल्स।
प्रशासनिक एवं सहायक सेवाएं: आर्मी  सर्विस कोर, आर्मी  पोस्टल कोर, आर्मी ऑर्डिनेंस कोर,आर्मी एजुकेशन कोर, रिमाउंट एंड वेटरिनेरि कोर, जज, एडवोकेट, जनरल कोर, कोर ऑफ मिल्रिटी, इंटेलिजेन्स कोर, आर्मी  कैन्टीन सेवा, आर्मी  पायनियर कोर, डिफेन्स सिक्योरिटी कोर।

योग्यता और उम्र
सैनिक- तकनीकी: 10+2/ इंटरमीडिएट परीक्षा विज्ञान में भौतिकी, रसायन, गणित/ जीव विज्ञान और अंग्रेजी के साथ 50 प्रतिशत अंकों में उत्तीर्ण हों और निश्चित ट्रेड के लिए प्रत्येक विषय में कम से कम 40 प्रतिशत अंक हों। आयु सीमा 17 वर्ष 6 माह से 23 वर्ष के बीच।

सैनिक- ट्रेडमैन सामान्य कार्य/ निर्दिष्ट कार्य: इसके लिए मैट्रिक/आईटीआई के साथ-साथ भाषा का ज्ञान होना चाहिए। कुछ ट्रेड्स के लिए आठवीं पास। आयु सीमा 17 वर्ष 6 माह से 23 वर्ष के बीच।

सैनिक- सामान्य कार्य: सेकेंडरी स्कूल सर्टिफिकेट या मैट्रिक 45 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण तथा आयु सीमा 17 वर्ष 6 माह से 21 वर्ष के बीच।

सैनिक/लिपिक/स्टोर कीपर तकनीकी: 10+2/ इंटरमीडिएट परीक्षा (कला, वाणिज्य, विज्ञान) अंग्रेजी के साथ 50 प्रतिशत अंकों में उत्तीर्ण होनी चाहिए। जिन्होंने मैट्रिक स्तर पर अंग्रेजी और गणित, लेखा-जोखा, खातों का रख-रखाव अनिवार्य विषयों के साथ उत्तीर्ण किया हो और 10+2/ इंटरमीडिएट परीक्षा में औसतन 50 प्रतिशत तथा प्रत्येक विषय में कम से कम 40 प्रतिशत अंक प्राप्त किये हों, सिपाही लिपिक (सामान्य कार्य) के लिए योग्य होंगे। यदि आवेदक ने स्नातक या उच्च शिक्षा प्राप्त की हो तो 10+2/ इंटरमीडिएट में केवल उत्तीर्ण अंक ही पर्याप्त होंगे। कम्प्यूटर टाइपिंग में दक्षता प्राप्त प्रार्थियों  के लिए 20 प्रतिशत बोनस अंकों का प्रावधान है। आयु सीमा 17 वर्ष 6 माह से 23 वर्ष के बीच में होनी चाहिए।

सैनिक- नर्सिग सहायक: 10+2/ इंटरमीडिएट परीक्षा विज्ञान में भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान और अंग्रेजी के साथ 50 प्रतिशत अंकों में उत्तीर्ण हो तथा प्रत्येक विषय में कम से कम 40 प्रतिशत अंक होने चाहिए। आयु सीमा 17 वर्ष 6 माह से 23 वर्ष के बीच।

हवलदार शिक्षा: ग्रुप एक्स-स्नातक एवं बीएड/ स्नातकोत्तर एवं बीएड
ग्रुप वाई- बीएससी/बीए/बीसीए(बिना बीएड) और आयु सीमा 20 से 25 वर्ष के बीच में होनी चाहिए।

सर्वेक्षण स्वचालित: बीए/बीएससी गणित के साथ। इंटरमीडिएट (10+2) गणित और विज्ञान के साथ उत्तीर्ण तथा आयु सीमा 20 से 25 वर्ष के बीच।

जेसीओ(धार्मिक शिक्षक): किसी भी विषय में स्नातक आयु सीमा 27 से 34 वर्ष के बीच में होनी चाहिए।
जेसीओ (खान-पान): 10+2 और किसी भी मान्यताप्राप्त फूड क्राफ्ट इंस्टीट्यूट से एक वर्षीय पाक शास्त्र उपाधि प्रमाण-पत्र, आयु 21 से 27 के बीच।

शारीरिक मापदण्ड
सेना पुलिस कोर/ गार्ड ब्रिगेड- कद 173 सेंमी, सीना 77 सेंमी, वजन 50 किलो।
क्लर्क (सामान्य डय़ूटी और कोर) के लिए कद 159 सेंमी, सीना 77 सेंमी, वजन 50 किलो। पश्चिम मैदानी क्षेत्र, पूर्वी मैदानी क्षेत्र के लिए कद 166-167 सेंमी, सीना 77 सेंमी, वजन 50 किलो।
इनके अलावा पूर्वी हिमालयी  क्षेत्र, लद्दाखी, गोरखा (नेपाली और भारतीय आदिवासी) का कद 157 सेंमी, सीना 77 सेंमी, वजन 48 किलो होना चाहिए।

शारीरिक मापदण्ड में छूट
सेवारत सैनिकों या भूतपूर्व सैनिकों के बच्चों के लिए तथा राष्ट्रीय व राज्य स्तर के सर्वोच्च खिलाडियों आदि के लिए कद, छाती व वजन में छूट दी जाती है। जिन आवेदकों की उम्र 18 वर्ष से नीचे है, उनके लिए कद में 1 सेंमी, सीने में1 सेंमी और वजन में 2 किलो छूट का भी प्रावधान है।

शारीरिक योग्यता जांच
1600 मीटर दौड़, जिसके लिए 60 अंक निर्धारित हैं। इस दौड़ को 5 मिनट 40 सेकेंड में पूरा करने पर 60 अंक, 5 मिनट 50 सेकेंड में 48 अंक, 6 मिनट 5 सेकेंड में 36 अंक तथा 6 मिनट 20 सेकेंड में पूरा करने पर 24 अंक दिए जाते हैं।

दस बीम (पुल अप) करने पर 40 अंक, 09 बीम पर 33, 08 बीम पर 27 अंक, 07 बीम पर 21 अंक, तथा 06 बीम पर 16 अंक दिए जाते हैं। इसके अलावा 9 फुट गड्ढा पार करने तथा संतुलन बनाए रखने पर कोई अंक नहीं दिया जाता, लेकिन इसे पास करना आवश्यक होता है।

मेडिकल जांच
शारीरिक मापदंड में फिट होने के बाद डॉंक्टरी जांच की जाती है। जो उम्मीदवार मेडिकल जांच में फिट पाये जाते हैं, उन्हें लिखित परीक्षा में बैठाया जाता है।

पदोन्नति
कुछ शर्तों को पूरा करते हुए सिपाही कमीशंड अधिकारी एनसीओ, जेसीओ बन सकता है।

सम्मान और पुरस्कार
उत्कृष्ट सेवा, वीरता, सहायता पर सम्मान और पुरस्कार जैसे परमवीर चक्र, महावीर चक्र, वीर चक्र प्रदान किए जाते हैं।

भर्ती की तिथियां
भर्ती किस स्थान पर और किन तिथियों में आयोजित की जायेगी, इसकी सूचना शाखा भर्ती कार्यालय तथा अखबारों में दी जाती है। मुख्यत: भर्ती सुबह 7 बजे से शुरू होती है, लेकिन उच्च मुख्यालय द्वारा बदलाव किया जा सकता है।

भर्ती कार्यालय
पूरे देश को 12 भर्ती क्षेत्रों में बांटा गया है और दिल्ली छावनी को स्वतन्त्र रखा गया है। भर्ती कार्यालय नि:शुल्क सेवा करते हैं।

कुछ मुख्य भर्ती कार्यालय
1. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय, दानापुर (बिहार) - भर्ती क्षेत्र मुजफ्फरपुर, गया, दानापुर व रांची ।
2. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय (जयपुर, राजस्थान)- भर्ती क्षेत्र जयपुर, अलवर, जोधपुर, झुंझुनू, कोटा।
3. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय, अम्बाला (हरियाणा, हिमाचल प्रदेश व चंडीगढ़) - भर्ती क्षेत्र अम्बाला, चरखीदादरी, रोहतक, हमीरपुर, हिसार, मंडी, पालमपुर, शिमला।
4. स्वतंत्र भर्ती कार्यालय (दिल्ली कैंट गोपीनाथ बाजार)-भर्ती क्षेत्र दिल्ली तथा हरियाणा के गुडगांव और फरीदाबाद जिले।
5. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड) - भर्ती क्षेत्र लखनऊ, लेंसडाउन, आगरा, अल्मोड़ा, मेरठ, अमेठी, बरेली, वाराणसी, पिथौरागढ़।
6. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय, माल रोड, जबलपुर (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़)- भर्ती क्षेत्र रायपुर भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर, महू।
7. क्षेत्रीय भर्ती कार्यालय, जालंधर  (पंजाब, जम्मू कश्मीर)- भर्ती क्षेत्र अमृतसर, फिरोजपुर, जालंधर, जम्मू और श्रीनगर, लुधियाना, पटियाला।

पर्मानेंट कमीशन से एंट्री
जब आप पर्मानेंट कमीशन का विकल्प चुनते हैं तो इसका अर्थ है कि आप आर्मी में सेवानिवृत्त होने तक देश की सेवा करना चाहते हैं। एनडीए, पुणे व आई एम ए, देहरादून ऐसे दो संस्थान हैं, जहां ट्रेनिंग पूरी करने के बाद आप पर्मानेंट कमीशन पा सकते हैं।

एनडीए
इस परीक्षा में बैठने के लिए आपका 12वीं पास होना आवश्यक है। आप 12वीं कक्षा में पढते हुए भी एनडीए परीक्षा दे सकते हैं। आर्मी विंग के लिए किसी भी विषय में 12वीं पास होना चाहिए, वहीं अन्य फोर्सेज के लिए विज्ञान विषय जरूरी होते हैं। उम्र सीमा 16 वर्ष 6 माह से अधिकतम 19 वर्ष।

परीक्षा का आयोजन
यह परीक्षा साल में दो बार अप्रैल और सितंबर में आयोजित की जाती है। लिखित परीक्षा पास करने के बाद आपको एसएसबी इंटरव्यू के लिए चुना जाता है। यह इंटरव्यू पांच दिन का होता है और इसमें आपकी मेंटल स्ट्रेंथ देखी जाती है। इस इंटरव्यू को पास करने के बाद आपको मेडिकल परीक्षा देनी होती है, जिसमें सफल होते ही आपको एनडीए में दाखिला मिल जाता है।

ट्रेनिंग पीरियड
खड़गवासला स्थित नेशनल डिफेंस एकेडमी में दाखिला मिलता है। यहां चार साल की ट्रेनिंग दी जाती है। तीनों सर्विसेज के कैडेट्स एकेडमी में तीन साल बिताते हैं और फिर सेना के तीनों अंगों में अलग-अलग एक साल का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। इसके बाद आर्मी, नेवी या एयर फोर्स में ऑफिसर बनते हैं।

परीक्षा के लिए आवेदन
एनडीए की परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म देश के सभी बड़े डाकघरों में आसानी से मिल जाते हैं। याद रखें कि आवेदन डाक द्वारा ही पहुंचाएं। स्पीड पोस्ट सेवा का इस्तेमाल कर सकते हैं। फॉर्म भेजते समय उसका नंबर नोट कर लें। इससे आपको यूपीएसी वेबसाइट पर फॉर्म संबंधी जानकारी मिल सकेगी। एनडीए परीक्षा की अधिक जानकारी के लिए इंटरनेट पर यूपीएससी की वेबसाइट http://www.upsconline.nic.in देख सकते हैं। ऑनलाइन एप्लिकेशन भरने की भी सुविधा है।

सीडीएसई
अगर आप स्नातक के अंतिम वर्ष में हैं या स्नातक उत्तीर्ण हैं तो प्रवेश परीक्षा सीडीएसई (कम्बाइंड डिफेंस सर्विसेज एग्जामिनेशन) के लिए आवेदन कर सकते हैं। सीडीएसई प्रवेश परीक्षा साल में दो बार (फरवरी व सितंबर में) आयोजित की जाती है। इसमें आवेदन करने के लिए न्यूनतम आयु सीमा 19 और अधिकतम आयु सीमा 24 वर्ष है। सीडीएसई की परीक्षा विश्लेषणात्मक होती है और इसमें उम्मीदवार की रीजनिंग पावर को जांचा-परखा जाता है। बेसिक एग्जामिनेशन क्लियर करने के बाद चयनित उम्मीदवारों को एसएसबी की इंटरव्यू प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। मानसिक व शारीरिक दक्षता के अलावा नेतृत्व क्षमता की भी जांच की जाती है। उम्मीदवारों को विभिन्न प्रकार के साइकोलॉजिकल टेस्ट यानी कि एसआरटी (सिचुएशन रिएक्शन टेस्ट), सेल्फ अप्रेजल टेस्ट व ग्रुप डिस्कशन आदि से भी गुजरना पड़ता है।

टेक्निकल एंट्री
फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथमेटिक्स विषयों के साथ अगर आपने 10+2 की परीक्षा कम से कम 70 फीसदी अंकों के साथ पास की है तो आप टेक्निकल एंट्री के लिए आवेदन कर सकते हैं। अगर आप आवश्यक योग्यता व दक्षता की शर्तों को पूरा करते हैं तो आपको एसएसबी इंटरव्यू के लिए भेजा जा सकता है। इसमें चयनित उम्मीदवारों को आईएमए में एक साल की बेसिक ट्रेनिंग दी जाती है। इसके बाद पुणे स्थित कॉलेज ऑफ मिल्रिटी इंजीनियरिंग, सिकंदराबाद स्थित कॉलेज ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग या मध्य प्रदेश के महू स्थित मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन में चार साल का डिग्री कोर्स करना पड़ता है।

टेक्निकल ग्रेजुएट कमीशन (टीजीसी)
टेक्निकल ग्रेजुएट उत्तीर्ण व अंतिम वर्ष के वे छात्र भी इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं, जिनकी उम्र सीमा 20-27 होती है। वहीं 23-27 उम्र के ही स्नातकोत्तर इसके लिए आवेदन कर सकते हैं। आप सीधे एडीजी रिक्रूटमेंट को अपना आवेदन भेज सकते हैं। चयन प्रक्रिया में पास होने के बाद आईएमए देहारादून में एक साल की ट्रेनिंग के लिए भेजा जाता है।

यूनिवर्सिटी एंट्री स्कीम
कमांडिंग स्क्रीनिंग टीम टेक्निकल ग्रेजुएट्स के लिए कैम्पस में ही इंटरव्यू आयोजित करती है। अंतिम वर्ष के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए यह एक अच्छा मौका होता है, जहां कुछ चुने हुए छात्रों को एसएसबी इंटरव्यू व मेडिकल चेकअप के लिए बुलाया जाता है। चयन होने पर उन्हें एक साल की ट्रेनिंग दी जाती है।

शॉर्ट सर्विस कमीशन
ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी, चेन्नई: शॉर्ट सर्विस कमीशन में चयन होने के बाद ओटीए, चेन्नई/गया में रिपोर्ट करनी होती है। यहां 49 सप्ताह की ट्रेनिंग दी जाती है। शॉर्ट सर्विस कमीशन के निम्नलिखित विकल्प हैं-
एसएससी(नॉन-टेक्निकल एंट्री) पुरुष/महिला
एसएससी(टेक्निकल एंट्री) पुरुष/महिला
एसएससी(एनसीसी स्पेशल एंट्री) पुरुष/महिला
एसएससी(जेएजी एंट्री) पुरुष/महिला

पर्मानेंट व शॉर्ट सर्विस कमीशन का अंतर
पर्मानेंट या शॉर्ट सर्विस कमीशन्ड ऑफिसर के तौर पर आप आम्र्ड फोर्सेज से जुड़ सकते हैं। पर्मानेंट कमीशन का मतलब यह है कि रिटायरमेंट तक आपका करियर सेना के साथ ही जुड़ा रहेगा, हालांकि 20 साल तक सेवा प्रदान करने के बाद वॉलेंटरी रिटायरमेंट का विकल्प भी खुला रहता है। दूसरी ओर, इस सेवा में जूनियर ऑफिसर की मांगों को शॉर्ट सर्विस कमीशन यानी एसएससी के माध्यम से पूरा किया जाता है। इसके माध्यम से सेना जॉइन करने वालों को 7-10 साल तक काम करने के बाद रेगुलर कमीशन के तौर पर कार्यरत रहने या इस सेवा से अवकाश लेने की स्वतंत्रता होती है। सरकार के पास भी यह अधिकार सुरक्षित होता है कि ऐसे उम्मीदवारों की सेवा आगे बरकरार रखी जाए या उन्हें रिलीज कर दिया जाए।

स्पेशल फोर्सेज
विभिन्न प्रकार की आपातकालीन परिस्थितियों में उच्च दक्षता प्राप्त व विशेष रूप से प्रशिक्षित कमांडोज को पदस्थापित किया जाता है। इसके तीन अंग हैं-मरीन कमांडो, पैरा कमांडो व एनएसजी यानी कि नेशनल सिक्योरिटी ग्रुप या ब्लैक कैट्स कमांडो। आम्र्ड फोर्सेज के ऑफिसर को ही स्पेशल फोर्स में पदस्थापित किया जाता है। इस सेवा के लिए चयनित ऑफिसर्स में से महज 10 फीसदी को ही प्रशिक्षण के लिए अनुशंसित किया जाता है। इसके बाद शुरू होता है कठोर प्रशिक्षण का दौर। इस दौरान इन्हें हाई-रिस्क ड्यूटी में भी अव्वल प्रदर्शन करने के लायक बना दिया जाता है। अगर आपके दिल में जोश है, उमंग है और देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा है तो इंडियन आर्मी का बेहतरीन करियर आपको मनचाही मंजिल दिलाएगा और फिर देश को होगा आप पर नाज।श्‍

महिलाओं के लिए संभावनाएं
इस क्षेत्र में महिलाएं भी अपनी मजबूत स्थिति बनाने लगी हैं। खासतौर पर, मेडिकल कोर या मिलिट्री नर्सिग सर्विसेज में महिलाओं के लिए  संभावनाएं हैं। सबसे पहले नेवी ने लॉजिस्टिक्स, लॉ व एयर ट्रैफिक कंट्रोल के नॉन-कॉम्बेटेंट कैडर्स में महिलाओं के लिए संभावनाओं के द्वार खोले। इसके बाद से बड़ी संख्या में महिलाओं ने टेक्निकल व फ्लाइंग ऑफिसर के तौर पर अपने योगदान दिए हैं। इन सबके अलावा, आर्मी  सर्विस कोर, ऑर्डिनेंस कोर, एजुकेशन कोर, जेएजी, सिग्नल्स व आर्मी इंटेलिजेंस आदि में महिलाओं ने अपनी खास जगह बनाई है। एयर फोर्स में महिलाओं को केवल शॉर्ट सर्विस कमीशन के तौर पर ही नियुक्ति मिलती है।

एक्सपर्ट व्यू
अच्छा वेतन और सुविधाएं हैं थल सेना में

आज भारतीय थल सेना दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। सेना को अत्याधुनिक बनाने के लिए बजट का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है। देश की भीतरी व बाहरी चुनौतियों से निपटने के लिए सेना अहम भूमिका निभा रही है। देश भर में समय-समय पर सेनाओं में अवसरों के बारे में विज्ञापन दिए जाते हैं।

साहसी, सकारात्मक सोच वाले युवाओं के लिए यह क्षेत्र बांहें पसारे खड़ा है। सरकार द्वारा भी पेशे के जोखिमों के मद्देनजर अच्छा वेतन और बेहतर सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। थल सेना में अधिकारी रैंक की भर्ती के लिए यूपीएससी, एसएसबी आदि की ओर से चयन प्रक्रिया आयोजित की जाती है। कॉलेजों में सक्रिय एनसीसी के जरिए भी युवाओं को इसमें आने का मौका मिलता है। उन्हें यूपीएससी की परीक्षा में बैठने से छूट मिलती है। वे सीधे एसएसबी की ओर से आयोजित साक्षात्कार में शामिल होकर सेना में भर्ती होते हैं। अधिकारी के रूप में उन्हें काम करने का मौका मिलता है। इसमें न सिर्फ लगातार आगे बढ़ने के अच्छे मौके मिलते हैं, बल्कि देश सेवा का जज्बा भी इससे जुड़ा रहता है।
सुखदेव प्रसाद नौटियाल


Tuesday, July 21, 2015

Career in शिक्षण

परिचय

एक शिक्षक का बच्चे के प्रति उत्तरदायित्व शायद उसके माता-पिता से भी कहीं ज्यादा होता हैं. चूंकि बच्चा विद्यालय में केवल शिक्षा ही ग्रहण नहीं करता बल्कि अपने शिक्षकों से जीवन के नैतिक मूल्यों को भी ग्रहण करता है.
चाहे वह स्कूल के स्तर पर शिक्षण कार्य हो या कॉलेज के स्तर पर, शिक्षण को करियर के रूप में अपनाने के लिए सबसे आवश्यक है आपमें विचारों के आदान-प्रदान की क्षमता होनी चाहिए . एकतरफ जहाँ स्कूल टीचर के रूप में आप बच्चों के कोमल मन को शिक्षित करते हैं वहीं दूसरी तरफ कॉलेज के वातावरण में आप छात्रों से मित्रवत व्यवहार कर बौद्धिक स्तर पर उनके साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं.
भारत में शिक्षकों के लिए अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान इत्यादि विषयों में बहुत अवसर उपलब्ध हैं. इंटरनेट के इस युग में जहां बच्चों के पास सूचना आवश्यकता से अधिक मात्रा में उपलब्ध हैं, अच्छे अध्यापकों की मांग निश्चित तौर पर ज्यादा बढ़ गयी है. कुछ स्कूलों द्वारा वर्चुअल क्लासरूम टीचिंग की शुरूआत कर देने से शिक्षकों के लिए अवसर और ज्यादा बढ़ गए हैं.
स्नातक के  उपरान्त अथवा इसके साथ-साथ ही शिक्षा में स्नातक की डिग्री हासिल की जा सकती है जिसके बाद आप आसानी से किसी स्कूल में अध्यापक का पद पा सकते हैं. साधारणतः सरकारी स्कूलों में अध्यापक का पद प्रतिष्ठित माना जाता है. परन्तु यदि आप शिक्षण की आधुनिक विधाओं का ज्ञान लेना चाहते हैं तो आपको प्राइवेट स्कूल में नौकरी तलाश करनी चाहिए.
कॉलेज में अध्यापन से करियर की शुरूआत करने के लिए आपको परास्नातक तथा उसके बाद डोक्टरेट की उपाधि प्राप्त करना आवश्यक है. इसके बाद आपको प्रवेश परीक्षा भी पास करनी पड़ेगी.

चरणबद्ध प्रक्रिया

बीएड पाठ्यक्रम भावी शिक्षकों में सैद्धांतिक, प्रायोगिक एवं वैश्लेषिक क्षमता विकसित करने हेतु डिजाईन किया गया है. एक पारंपरिक बीएड पाठ्यक्रम में निम्न विषय समाहित होते हैं:

शिक्षा सिद्धांतशिक्षा एवं विकास मनोविज्ञानसूचना संचार तकनीक एवं निर्देश तंत्रशिक्षा का मूल्यांकन एवं चुनावविषयपरक शिक्षाप्रायोगिक परीक्षासामूहिक चर्चालाईव प्रजेंटेशनछात्रों के साथ संवाद

उपरोक्त वर्णित विषयों में शिक्षकों को ट्रेनिंग देकर कॉलेज उनमें छात्रों को समझने व उनको सँभालने के गुण विकसित करते हैं.  कई कॉलेज छात्रों को प्लेसमेंट भी प्रदान करते हैं.
भारत में कुछ सबसे अच्छे बीएड कॉलेज हैं:  जेएसएस इंस्टीटयूट ऑफ़ एजूकेशन, बैंगलौर; कॉलेज ऑफ़ टीचर एजूकेशन, अगरतला; इंदिरा गांधी बीएड कॉलेज, कर्नाटक; एजी टीचर्स कॉलेज, अहमदाबाद तथा नेशनल काउन्सिल ऑफ़ टीचर एजूकेशन, नयी दिल्ली. इनके अलावा इग्नू (इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय) जैसे संस्थान हैं जिनका एक नियत पाठ्यक्रम है:

इन कॉलेजों  में दाखिला लेने के लिए आपको प्रवेश परीक्षा व साक्षात्कार से गुज़रना होगा.

पदार्पण

यदि आप छात्र हैं और टीचिंग को अपना करियर बनाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको उन कॉलेजों के बारे में पता करना चाहिये जो बीएड कोर्स संचालित कर रहे  हैं. इसके अलावा आपमें छात्रों को पढ़ाने के दौरान भी अपने ज्ञान को बढ़ाने की इच्छा होनी चाहिए. यदि आपको शिक्षण में अपना करियर बनाना है तो आपको अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अथवा कॉलेज के दौरान ही निम्लिखित चरण-बद्ध तरीके से शुरूआत कर सकते हैं:

बीएड कोर्स संचालित करने वाले कॉलेजों के बारे में सूचना एकत्र करिये. उदाहरण के तौर पर, अपने शहर में स्थित विश्वविद्यालय से ही शुरूआत कर सकते हैं.  यदि आप दिल्ली में रहते हैं तो दिल्ली यूनिवर्सिटी की वेबसाईट पर इसके बारे में देख सकते हैं. इसी तरह आप दूसरे विश्वविध्यालयों के बारे में भी सूचना एकत्र कर सकते हैं . कम से कम 4-5 विकल्प ज़रूर तलाशें .कौन-कौन से कॉलेज प्रवेश परीक्षा के द्वारा प्रवेश देते हैं, उनकी सूची बनाइये.  उन सम्भावित विषयों  को लिखिए जो कि परीक्षा में पूछे जा सकते हैं तथा उनकी तैयारी शुरू कर दीजिये. यदि ऐसा नहीं कर सकते तो अपने 12वीं के अंकों पर नज़र डालिए चूंकि ये आपको दाखिला दिला सकते हैं.उन स्कूलों व कॉलेजों की सूची बनाइये जहां आप कोर्स करने के पश्चात आवेदन कर सकते हैं. ऐसा इसलिए ताकि कॉलेज से निकलते ही आपको नौकरी मिल जाए.

क्या यह मेरे लिए सही करियर है?

शिक्षण को करियर के रूप में उन्हें चुनना चाहिए जो दूसरों के साथ सूचना व ज्ञान बांटने के लिए सदैव तत्पर हों. इस करियर का सबसे बड़ा फायदा है इसमें ज्यादा लम्बे वर्किंग आवर्स का नहीं होना. एक अध्यापक 8 या 9 टीचिंग सेशन के बाद घर वापस लौटकर आसानी से घरेलु एवं अन्य वैक्तिगत कम निपटाया जा सकता है. शायद यही वजह है कि महिलाएं इस करियर को सबसे ज्यादा पसंद करती हैं. हालाँकि आजकल तो पुरुष भी पूर्णकालिक शिक्षक के रूप में सामने आ रहे हैं. पारंपरिक विषयों के अलावा, शारीरिक शिक्षा एवं खेल, योग तथा कला एवं शिल्प भी शिक्षण में पसंदीदा विषय बनकर उभरे हैं.

खर्चा कितना होगा?

बीएड कोर्स का खर्चा करीब 10,000 से 30,000 के बीच आयेगा हालाँकि कुछ विश्वविद्यालय इससे कम फीस पर भी यह कोर्स संचालित कर रहे हैं.

छात्रवृत्ति

साधारणतः बीएड के लिए लोन लेने की ज़रुरत नहीं पड़ती है परन्तु फिर भी आप स्टेट बैंक ऑफ़ इण्डिया जैसे बैंकों से 7.5 लाख रूपये तक का लोन ले सकते हैं.

रोज़गार के अवसर

शिक्षकों के लिए रोज़गार के अवसर अच्छे हैं. वर्क टाइमिंग्स भी ठीक हैं. एक अध्यापक साधारणतः 8 बजे से 3 बजे तक क्लास लेता है हालाँकि महाविद्यालयों में शिक्षकों को अपने टाइमिंग्स निर्धारित करने की छूट रहती है परन्तु  वहां भी प्रसिद्ध कॉलेजों में 4-5 बजे तक ही क्लास संचालित होती हैं .

प्रतिष्ठित कॉलेज व यूनिवर्सिटीज़ में अवसरों की भले ही कमी हों परन्तु प्राइवेट कॉलेज एवं स्कूलों में एजूकेशन में डिग्री लेने के पश्चात आसानी से नौकरी प्राप्त की जा सकती है.

वेतनमान

सरकारी स्कूलों व कॉलेजों में वेतनमान अच्छा है. केन्द्रीय विध्यालय में एक प्राथमिक अध्यापक कक्षा के स्तर के अनुसार 20,000 से 25,000 तक आसानी से कमा लेता है. यहाँ इन्हें रहने, आने-जाने  व स्वास्थ्य के लिए भत्ते भी मिलते हैं.  वहीं दूसरी ओर, प्राइवेट स्कूल 15,000 से अधिक वेतन देते हैं जो कि कक्षा के स्तर तथा शिक्षक की योग्यता एवं अनुभव पर निर्भर करता है.

कॉलेजों में पढ़ाने पर आप कम से कम 40,000 रूपये मासिक व उससे ज्यादा  कमा सकते हैं परन्तु लेक्चरर व प्रोफ़ेसर के पद के लिए चयन प्रक्रिया काफी जटिल है तथा आपको इसके लिए कई प्रवेश परीक्षाओं को उत्तीर्ण करना होगा.

मांग एवं आपूर्ति

समाज में शिक्षक का योगदान बहुत महत्वपूर्ण  होता है चूंकि वह देश के भविष्य की नींव रखता है. हाल ही में बना  "शिक्षा का अधिकार"  क़ानून गाँव के बच्चों के लिए शिक्षा के कई अवसर लेकर आया है. भारत में पहले से ही सभी विषयों के शिक्षकों की बहुत कमी है. अब तो मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ेगी ही. कम वेतन की वजह से अब तक शिक्षकों की आपूर्ति कम रहती थी परन्तु हाल ही में सरकार ने स्थिति सुधारने के लिए कुछ कदम उठाये हैं.

मार्केट वॉच

बाज़ार में योग्य शिक्षकों की सदैव कमी रहती है. हर जगह पब्लिक व प्राइवेट स्कूल एवं प्राइवेट कॉलेज तथा यूनिवर्सिटीज़ के खुल जाने से लेक्चरर एवं प्रोफ़ेसर की मांग उच्चतम स्तर पर है.
चाहे वह एमिटी यूनिवर्सिटी, बिरला ग्रुप ऑफ़ इंस्टीट्यूशन  या एमआईटी गाजियाबाद हो या फिर देश भर में फैले हुए कोई और निजी एमबीए कॉलेज, सभी को शिक्षण के लिए योग्य प्रोफेशनल्स की जरूरत है.
आजकल स्कूल वर्चुअल लर्निंग क्लासरूम की शुरूआत कर रहे हैं वहीं अधिकाँश स्कूलों में कक्षा 5 के बाद से ही कंप्यूटर एक अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा है.  ऐसी स्थिति में आईटी प्रोफेशनल्स भी शिक्षण को एक करियर विकल्प के रूप में देख रहे हैं.
इसके अलावा, एनआईआईटी, एप्टेक, सीएससी, सीएमसी जैसे संस्थानों ने प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में ट्रेनर्स के लिए संभावनाएं पैदा कर दी हैं.  कई परास्नातक छात्र अतिरिक्त धन कमाने के उद्देश्य से इन संस्थानों में पार्ट-टाईम जॉब करते हैं.

अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शन

आज शिक्षण आमने-सामने मौखिक रूप में पढ़ाने तक ही सीमित नहीं रह गया है बल्कि ऑनलाईन वेब टीचिंग एवं ई-लर्निंग तक इसका विस्तार हो चुका है. अतः इस क्षेत्र में अवसर कई गुना बढ़  गए  हैं . 20-25  साल के अनुभव वाले सेवानिवृत्त अध्यापक आज ऑनलाईन ट्यूशन दे सकते हैं. ग्रामीण छात्रों के लिए इस माध्यम द्वारा पढ़ाई करना बहुत संभव हो सकता है.
यूके व यूएस जैसे देशों में हालाँकि शिक्षा तंत्र बहुत अलग है परन्तु सभी जगह इस क्षेत्र में अवसर अनेक हैं तथा साथ ही यह सबसे ज़्यादा आदरणीय प्रोफेशन में से एक है.



सकारात्मक/नकारात्मक पहलू

सकारात्मक

शिक्षण का क्षेत्र आपको विचारों के आदान-प्रदान व अपने ज्ञान को बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है. यदि कक्षा में उपस्थित छात्र उत्साही व सीखने के प्रति लगनशील हों तो शिक्षण भी एक मज़ेदार अनुभव होता है.  इस प्रोफेशन में बोर होने के बहुत ही कम अवसर हैं.सभी देशों में शिक्षण एक सम्माननीय प्रोफेशन है. इसकी टाइमिंग्स भी व्यक्ति की सुविधानुसार हैं.

नकारात्मक

दूसरी कॉर्पोरेट नौकरियों की तुलना में  ये जॉब आपको कम पैसे देगा.जहां कुछ स्कूलों व कॉलेजों में वेतन बहुत कम है वहीं कुछ स्कूल व कॉलेज ऐसे भी हैं जहां वेतन बहुत ज्यादा है. वेतन में इस विसंगति की वजह से शिक्षा का स्तर बुरी तरह प्रभावित होता है.भारत में छात्र की विशेष विषय में रूचि को देखते हुए पढ़ाने से ज्यादा अध्यापक का ध्यान पाठ्यक्रम पर रहता है. परिणामस्वरूप, गणित जैसे कठिन विषयों को प्रायोगिक विधियों से पढ़ाने को नज़रंदाज़ कर दिया जाता है. जब ये विषय सैद्धांतिक रूप में पढ़ाए जाते हैं  तो छात्रों को इनको समझने में कठिनाई होती है.

भूमिका एवं पदनाम

किसी संगठन में शिक्षक को लर्निंग एवं डेवलपमेंट प्रोफेशनल, कोच व विश्वसनीय सलाहकार के तौर पर जाना जाता है. जिन्होंने अपना मनोविज्ञान का कोर्स पूरा कर लिया है वो परामर्शदाता के रूप में जीवन की महत्त्वपूर्ण बातों तथा व्यक्ति प्रबंधन की शिक्षा दे सकते हैं.  इस प्रकार एक ही व्यक्ति हालाँकि विभिन्न पदनामों से जाना जाता है परन्तु उसकी सभी जगह भूमिका कमोवेश एक ही होती है. मूलतः शिक्षक का कार्य होता है- दूसरों को शिक्षा प्रदान करना तथा उनका तकनीकी एवं व्यक्तिगत विकास करना.

भारत में शिक्षकों की भर्ती करने वाले कुछ अग्रणी स्कूल व कॉलेज

केन्द्रीय विद्यालय संगठन (सीबीएसई पाठ्यक्रम)
राज्य सरकार अथवा नगर निगम/ पालिका द्वारा संचालित स्कूल
आईसीएसई जैसे अन्य बोर्डों से सम्बद्ध स्कूलविश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा अनुमोदित विश्वविद्यालयअखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद् (एआईसीटीई) द्वारा अनुमोदित तकनीकी विश्वविद्यालय

रोज़गार प्राप्त करने के लिए कुछ सुझाव

यदि आपने शिक्षण कार्य के लिए कहीं आवेदन किया है तो निम्न बातों का ध्यान रखें:

आप ये पेशा क्यों चुनना चाहते हैं  या आज के भारत में इस प्रोफेशन की क्या अहमियत है, ऐसे सवालों के जवाब तैयार रखें. अपने जवाबों को आपकी शिक्षण के पेशे तथा आपके द्वारा चयनित विषय में रूचि एवं शिक्षक और छात्र जीवन को ध्यान में रखकर तैयार करें.चूंकि शिक्षण के कार्य को एक सम्माननीय पेशे के तौर पर देखा जाता है अतः ज़्यादा वेतन की मांग पर जोर ना डालें विशेषकर तब जब आप किसी सरकारी संस्थान में आवेदन कर रहे हों.जिस संस्थान में आवेदन कर रहे हैं, साक्षात्कार से पहले उसके बारे में पूरा अनुसंधान कर लें. यदि स्कूल या विश्वविद्यालय निजी है, तो आप अपनी व्यक्ति-प्रबंधन क्षमता का परिचय दे सकते हैं तथा साथ ही यह भी कह सकते हैं कि आप समय के साथ अपने कौशल को इंटरनेट एवं अन्य पत्रिकाओं जैसे माध्यमों की सहायता से विकसित करने के लिए आप सदैव तैयार रहते हैं. ऐसा इसलिए चूंकि सरकारी संस्थानों की अपेक्षा निजी संस्थान अधिक वैश्विक ज्ञान  की अपेक्षा रखते हैं. अपनी रूचि के अनुसार शिक्षण के कुछ सिद्धांतों को सूचीबद्ध करें तथा साक्षात्कार के दौरान इन्हें उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करें.छात्र जीवन के दौरान अथवा पिछली जॉब में प्राप्त किये गए पुरस्कारों के प्रमाण-पत्र अवश्य साथ ले जाएँ


Monday, July 20, 2015

HOW TO CHOOSE कोर्स AND कॉलेज?

बोर्ड एग्जाम्स के रिजल्ट का जिस बेसब्री से स्टूडेंट्स इंतजार कर रहे हैं, उनमें उतनी ही कुलबुलाहट या बेचैनी इस बात को लेकर भी है कि रिजल्ट के बाद आगे क्या? हर स्ट्रीम के स्टूडेंट अपने तरीके से सोच रहे होंगे। इनमें कुछ का विजन क्लियर होगा और टारगेट फिक्स, जबकि कई इस उधेड़बुन में होंगे कि कौन-सा कोर्स सलेक्ट करूं, जिसमें पढ़ाई के बाद जॉब की गारंटी हो। दोस्त कुछ कह रहे होंगे तो पैरेंट्स कुछ और राय दे रहे होंगे। लेकिन पढ़ाई आपको करनी है, इसलिए फैसला भी आप ही करें। गेंद आपके पाले में है। खुद को तलाशें, परखें और मजबूती से बढ़ाएं कदम...

आगरा के विपुल और अमल दोनों ने साथ-साथ 12वीं किया। अमल ने स्कूल में ही तय कर लिया था कि वह फैशन डिजाइनिंग में करियर बनाएंगे। इसलिए उन्होंने रिजल्ट आने से पहले ही निफ्ट और दूसरे प्रतिष्ठित फैशन इंस्टीट्यूट्स में एडमिशन के लिए तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने फील्ड के कुछेक एक्सपट्र्स, फैशन डिजाइनर्स और सीनियर्स से इस बाबत जानकारी भी हासिल की। इससे काफी फायदा हुआ। अमल ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन डिजाइनिंग का एंट्रेंस एग्जाम क्वालिफाई किया। आज वह मुंबई में एक मशहूर डिजाइनर के अंडर में काम कर रहे हैं। वहीं, विपुल ने दोस्तों की देखा-देखी इंजीनियरिंग के एंट्रेंस एग्जाम्स दिए। इंजीनियर पिता भी चाहते थे कि बेटा उनके पेशे से जुड़े। लेकिन विपुल को सक्सेस नहीं मिली, वह निराश हो गए। किसी तरह इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया, लेकिन वहां भी उनका मन नहीं रमा। उन्होंने डिस्टेंस एजुकेशन से बीए किया। जॉब फिर भी नहीं लगी, तो एक प्राइवेट इंस्टीट्यूट से एमबीए की डिग्री हासिल की। काफी मशक्कत के बाद एक निजी कंपनी में जॉब लगी। इन दोनों उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि जब आपका टारगेट क्लियर होता है, तो आप सही दिशा में आगे बढ़कर प्रयास करते हैं। वहीं, कंफ्यूजन आपको दिशाहीन कर देता है। इस बारे में बीएचयू के वाइस चांसलर गिरीश त्रिपाठी का कहना है कि इस समय देश में जिस तरह से नए-नए इंस्टीटऌ्यूट्स खुल रहे हैं, वहां पढऩे वालों की तादाद बढ़ रही है, उसके मुताबिक शिक्षा का स्तर नहींबढ़ा है। इसलिए हर साल कॉलेजों से हजारों की तादाद में टेक्निकल या नॉन-टेक्निकल ग्रेजुएट्स के निकलने के बाद भी नौकरियां नहींमिलती हैं। जहां तक सही कोर्स चुनने का सवाल है, तो स्टूडेंट्स को सबसे ज्यादा एम्प्लॉयबिलिटी फैक्टर का ध्यान रखना होगा।

सिलीगुड़ी की सोनम महापात्रा को आर्किटेक्चर पढऩा था, इसलिए कोलकाता के एक कॉलेज में बिना जांचे-परखे दाखिला ले लिया। आज उन्हें पछतावा हो रहा है, क्योंकि न तो कॉलेज मान्यताप्राप्त है और न ही वहां रेगुलर फैकल्टी है। सोनम को नहीं मालूम कि कोर्स होने में कितने साल लग जाएंगे। इसके बाद भी आगे जॉब मिलने की कोई गारंटी नहीं है। दरअसल, आज संस्थान तो बहुत खुल गए हैं, लेकिन ज्यादातर कॉलेजों द्वारा न तो क्वालिटी फैकल्टी उपलब्ध कराई जाती है और न ही इंडस्ट्री के साथ इंटरैक्शन होता है। प्लेसमेंट की तो खैर पूछिए ही मत। लिहाजा, कोर्स कंप्लीट करने के बाद स्टूडेंट्स नौकरी के लिए भटकते रहते हैं।?आपके साथ ऐसा न हो, इसलिए समय रहते फैसला कर लें कि करियर की लिहाज से कौन-सा कोर्स और कॉलेज सलेक्ट करना बेहतर होगा...

ऐसे करें कोर्स का सलेक्शन

आज तमाम छोटे-बड़े, गवर्नमेंट और प्राइवेट इंस्टीट्यूशंस में विभिन्न तरह के कोर्सेज अवेलेबल हैं। लेकिन 12वीं के बाद कोई खास कोर्स चुनना एक स्टूडेंट के इंट्रेस्ट और ऑप्शन पर डिपेंड करता है। अगर आप आर्टिस्टिक या क्रिएटिव हैं, तो एडवर्टाइजिंग, डिजाइन, फैशन जैसे कोर्सेज चुन सकते हैं। वहीं, जो एनालिटिकली सोचते हैं, उनके लिए इंजीनियरिंग या टेक्नोलॉजी के क्षेत्र हैं। यहां बहुत सारे स्पेशलाइज्ड कोर्सेज भी हैं, जिन्हें करने के बाद करियर में ऊंची उड़ान भर सकते हैं। ऐसे में स्टूडेंट्स जब भी किसी खास कोर्स या प्रोग्राम में एनरोल कराने जाएं, तो एक बात क्लियर

रखें कि उस प्रोग्राम को सलेक्ट करने का उनका मकसद या पर्पज क्या है? फिर भी अगर कंफ्यूजन बना रहे, तो अपना प्रोफाइलिंग टेस्ट कराएं। इससे आपको अपनी स्ट्रेंथ का पता लग सकेगा और आप उसके मुताबिक कोर्स सलेक्ट कर सकेंगे। कोर्स का सलेक्शन करते समय इन खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है...

पसंदीदा कोर्स चुनें

दिल्ली के अंबेडकर कॉलेज के प्रोफेसर प्रदीप सिंह के अनुसार, स्टूडेंट्स को हमेशा कॉलेज से पहले कोर्स को प्रिफरेंस देना चाहिए। अगर कोई स्टूडेंट बिना इंट्रेस्ट के सब्जेक्ट सलेक्ट कर लेता है, तो उसका परफॉर्मेंस प्रभावित होता है। जब अच्छे ग्रेड्स ही नहीं आएंगे, तो करियर के विकल्प भी सीमित हो जाएंगे। इसलिए अपने पसंदीदा सब्जेक्ट को देखते हुए ही कोर्स चुनें। दूसरों की नकल से बचें, क्योंकि हर स्टूडेंट का लक्ष्य, टैलेंट, वैल्यू और इंट्रेस्ट अलग होता है। जरूरी नहीं कि कंप्यूटर साइंस, इकोनॉमिक्स जैसे सब्जेक्ट्स ही ऑप्ट किए जाएं। आट्र्स, फाइन आट्र्स, डिजाइनिंग, वेब डेवलपमेंट जैसे कोर्सेज भी बेहतर हैं।

सेल्फ असेसमेंट करें

स्टूडेंट्स को कोई भी कोर्स सलेक्ट करने से पहले यह असेस करना चाहिए कि वे किस काम को एंजॉय करते हैं। आप उन करियर ऑप्शंस की लिस्ट बनाएं, जिनमें खुद को प्रूव कर सकते हैं। अगर कोई प्रॉब्लम आ रही हो, तो किसी टीचर, काउंसलर की सलाह लें।

ऑन- लाइन करियर असेसमेंट टेस्ट या पर्सनैलिटी टेस्ट भी दे सकते हैं।

ऑप्शंस एक्सप्लोर करें

जानी-मानी करियर काउंसलर परवीन मल्होत्रा का कहना है कि अब वह दौर नहीं रहा, जब साइंस स्ट्रीम के स्टूडेंट्स के पास सिर्फ मेडिकल या इंजीनियरिंग के ऑप्शन हों। अगर आप किसी कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी की बजाय डायरेक्ट प्रोफेशनल कोर्स करना चाहते हैं, तो अपने पैशन को देखते हुए बायोटेक्नोलॉजी, बायोइंजीनियरिंग, फिजियोथेरेपी, ऑक्युपेशनल थेरेपी, मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन जैसे कोर्सेज कर सकते हैं। इसी तरह आट्र्स से ऌ12वीं करने वाले बिजनेस या होटल मैनेजमेंट कोर्स कर रिटेलिंग, हॉस्पिटैलिटी, टूरिज्म इंडस्ट्री का हिस्सा बन सकते हैं। जो लोग क्रिएटिव हैं, वे फैशन डिजाइनिंग, मर्चेंडाइजिंग, स्टाइलिंग का कोर्स कर सकते हैं। इसके लिए आप फील्ड के एक्सपट्र्स या प्रोफेशनल्स से बात करें। उनसे जॉब, एम्प्लॉयमेंट आउटलुक, प्रमोशन अपॉच्र्युनिटीज की जानकारी लें।

कॉलेज का सलेक्शन

स्टूडेंट्स जब भी किसी कॉलेज या इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने की सोचें, उन्हें पहले यह पता कर लेना चाहिए कि उस संस्थान को समुचित रेगुलेटरी अथॉरिटी से मान्यता हासिल है या नहीं। जैसे टेक्निकल इंस्टीट्यूट्स को ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन से मान्यता लेनी होती है। इसी तरह यूजीसी, एमसीआई आदि भी रेगुलेटरी बॉडीज हैं। अगर प्राइवेट कॉलेज में दाखिला लेने जा रहे हैं, तो इन बातों का विशेष ध्यान रखें :?

1. क्वालिटी ऑफ फैकल्टी

2. फैकल्टी रिसर्च 3. प्रोफेसर, लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर का रेशियो

4. करिकुलम डाइवर्सिटी ऐंड अपडेशन

5. प्लेसमेंट

फैकल्टी की क्वालिटी

कॉलेज में पढ़ाई की क्वालिटी का अंदाजा वहां की फैकल्टी से लगाया जा सकता है। अगर कंप्यूटर साइंस कोर्स करना चाहते हैं, तो यह देखना जरूरी है कि उक्त संस्थान में कितनी क्वालिफाइड फैकल्टी यानी एमसीए या एमटेक होल्डर्स हैं? यह जानकारी वेबसाइट की बजाय कॉलेज जाकर या वहां के स्टूडेंट्स से बात कर हासिल की जा सकती है। जैसे- क्या फैकल्टी वहां रेगुलर एम्प्लॉई हैं या गेस्ट फैकल्टी के तौर पर काम कर रहे हैं।

इंफ्रास्ट्रक्चर देखेें

स्टूडेंट्स और पैरेंट्स को अपनी ओर खींचने के लिए कॉलेजेज के ब्रोशर काफी अट्रैक्टिव बनाए जाते हैं। उनमें लाइब्रेरी, लैब, स्पोट्र्स फैसिलिटीज, क्लासरूम के बारे में बड़े दावे किए जाते हैं। लेकिन कई बार दाखिले के बाद वहां की सच्चाई पता चलती है और तब तक काफी देर हो चुकी होती है। इसलिए एडमिशन से पहले इन सबके बारे में पूरी जांच-पड़ताल कर लें। कभी सिर्फ ब्रांड पर न जाएं।

इंडस्ट्री कनेक्ट

इन दिनों अक्सर यह शिकायत सुनने को मिलती है कि कॉलेज की पढ़ाई से इंटरव्यू में सक्सेस नहीं मिलती। इंडस्ट्री की जो डिमांड है, उस पर स्टूडेंट्स खरे नहीं उतरते। इसलिए किसी भी कॉलेज को चुनने से पहले यह मालूम करें कि उनका इंडस्ट्री के साथ टाई-अप है या नहीं? आज अधिकांश इंस्टीट्यूट्स या कॉलेजेज में इंस्टीट्यूशन-इंडस्ट्री में कनेक्शन को लेकर कोई मैकेनिज्म नहीं है, जबकि मार्केट और इंडस्ट्री की जरूरतों को देखते हुए कॉरपोरेट मेंटरशिप जैसे प्रोग्राम्स होने चाहिए। वैसे, कंपनीज इंटर्नशिप प्रोग्राम्स के जरिए स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल ट्रेनिंग देती हैं। लेकिन यह काम कॉलेज से शुरू हो जाना चाहिए, जैसे आइआइएम, आइआइटी या दूसरे बड़े संस्थानों में होता है।

प्लेसमेंट चेक करें

अमूमन कोई भी प्रोफेशनल कोर्स करने के पीछे स्टूडेंट्स का मकसद सही जगह पर प्लेसमेंट हासिल करना होता है। कॉलेज प्लेसमेंट सेल होने का तो दावा करते हैं, लेकिन आइआइटी, आइआइएम जैसे कुछेक बड़े संस्थानों को छोड़कर अधिकांश का प्लेसमेंट रिकॉर्ड अच्छा नहीं होता। इसलिए कोर्स और कॉलेज चुनने से पहले यह मालूम करें कि किस कोर्स के स्टूडेंट्स का ट्रैक रिकॉर्ड अच्छा रहा है। प्लेसमेंट के दौरान कौन-सी कंपनीज ने पार्टिसिपेट किया, इसकी जानकारी भी आपके पास होनी चाहिए।

प्लान करें करियर

अगर पसंद का कॉलेज या कोर्स न मिले, तो परेशान नहींहोना चाहिए। आज हर जगह कॉम्पि- टिशन बढ़ गया है। प्रोफेशनल कोर्सेज में सीट्स लिमिटेड होती हैं, स्टूडेंट्स की संख्या ज्यादा। बेशक आपमें सारा टैलेंट या क्षमता हो, मेरिट हो, लेकिन मुमकिन है कि पसंद के कोर्स या कॉलेज में दाखिला न मिले। इसके लिए जरूरी है कि एक ऑल्टरनेट एक्शन प्लान तैयार रहे। ऑप्शंस के लिए करियर काउंसलर, टीचर्स, पैरेंट्स, सीनियर्स किसी की भी मदद ली जा सकती है। आप जर्नलिज्म में जाना चाहते हैं, लेकिन आइआइएमसी में एडमिशन नहींमिला, तो दूसरे इंस्टीट्यूट्स और विकल्पों से इस फील्ड में प्रवेश कर सकते हैं।

नेचुरल टैलेंट को पहचानना जरूरी

स्टूडेंट्स को अपनी काबिलियत की पहचान करना जरूरी है। इस टैलेंट की पहचान स्कूल में ही होनी चाहिए। चाहें तो पाठ्यक्रम में शामिल करके या काउंसलिंग के जरिए बच्चों के नेचुरल टैलेंट को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। प्रो. गिरीश त्रिपाठी, वाइस चांसलर, बीएचयू

कैसे चुनें

इंजीनियरिंग ब्रांच?

आपको 12वीं में चाहे कितने ही अच्छे अंक क्यों न मिले हों, लेकिन अगर आइआइटी या एनआइटी में दाखिला नहीं मिल पाता, तो सही इंजीनियरिंग कॉलेज का चुनाव करना मुश्किल हो जाता है क्योंकि मार्केट में आए दिन नए प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेजेज खुल रहे हैं। ऐसे में जरूरी है कि आप पहले खुद को काउंसलिंग के लिए तैयार करें। रैंक के अनुसार, अपनी प्रॉयरिटीज तय कर लें। आइआइटी में स्टूडेंट्स को काउंसलिंग के दौरान ही इंजीनियरिंग के विभिन्न ब्रांचेज की जानकारी दे दी जाती है। इसके बाद स्टूडेंट्स पर निर्भर करता है कि वह अपने एप्टीट्यूड, एम्प्लॉयमेंट अपॉच्र्युनिटीज और इंडस्ट्री की डिमांड को देखते हुए कोई

स्ट्रीम चुनें।

चेक करें दावे

इंस्टीट्यूट/फैकल्टी की क्वालिटी

क्क जहां एडमिशन लेने जा रहे हैं, वहां संचालित कोर्स एआइसीटीई या संबंधित रेगुलेटरी बॉडी से मान्यताप्राप्त है या नहीं? अगर मान्यताप्राप्त है, तो उसकी अवधि कब तक है? इस बारे में रेगुलेटरी बॉडी की साइट पर जाकर चेक कर सकते हैं।

क्क संस्था और डिपार्टमेंट की वेबसाइट है कि नहीं? अगर नहीं है या उस पर पूरी इंफॉर्मेशन नहीं दी गई है, तो वहां एडमिशन लेने का रिस्क न लें।

क्क वहां फैकल्टी का लेवल क्या है? फुलटाइम फैकल्टी मेंबर्स की संख्या का पता करें। स्टूडेंट-फैकल्टी रेशियो की जानकारी भी जरूर हासिल करें। यह भी देखें कि फैकल्टी कितनी अपडेटेड है और उसका इंडस्ट्री से कितना इंटरैक्शन होता है?

क्क फैकल्टी की क्वालिफिकेशन के बारे में जानकारी रखें। कितने एमटेक या पीएचडी हैं? उन्होंने पीएचडी कहां से की है, यह जानना अच्छा रहेगा। ज्यादातर अच्छे संस्थानों में पीएचडी होल्डर ही फैकल्टी मेंबर होते हैं।

क्क अगर किसी कॉलेज में फैकल्टी मेंबर की क्वालिफिकेशन बीटेक या एमसीए से ज्यादा नहीं है, तो वहां जाना सही नहीं रहेगा। वैसे अधिकांश प्राइवेट इंस्टीट्यूट्स में वहींसे पासआउट स्टूडेंट्स को ही पढ़ाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। इसके बारे में जरूर पता कर लें।

क्क कॉलेज के कितने स्टूडेंट्स हायर टेक्निकल स्टडीज के लिए जाते हैं, इसकी भी जानकारी रखें।

क्क हरेक डिपार्टमेंट के रिसर्च आउटपुट और इंडस्ट्री इंटरैक्शन पर भी ध्यान दें।

कैसे चुनें

ऌमैनेजमेंट कोर्स ?

हर स्टूडेंट पढ़ाई के बाद अच्छी सैलरी, अच्छा पे-पैकेज चाहता है। मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद उसे अपने सपने पूरे होते दिखाई देते हैं। लेकिन जरूरी है कि आपका मैथ्स, कॉमर्स

और इकोनॉमिक्स जैसे सब्जेक्ट्स में इंट्रेस्ट हो। इसके बाद ही कॉलेज सलेक्ट करें, क्योंकि इंडिया में मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट्स की बाढ़-सी आई हुई है। इसलिए कहीं भी एडमिशन से पहले उसकी विश्वसनीयता परख लें कि वह एआइसीटीई या यूजीसी से मान्यताप्राप्त है या नहीं। फैकल्टी के बारे में फस्र्ट हैंड इंफॉर्मेशन वहां के स्टूडेंट्स से हासिल करें। उनसे इंटर्नशिप और प्लेसमेंट की जानकारी भी लें। आंख मूंद कर सिर्फ कॉलेज की वेबसाइट पर भरोसा न करें।

कमिटमेंट के साथ आएं

किसी भी ऑर्गेनाइजेशन के लिए सबसे पहले कमिटमेंट मैटर करता है। इसी को सबसे ज्यादा वैल्यू दी जाती है। इसलिए स्टूडेंट्स पूरे डेडिकेशन और पैशन के साथ एजुकेशन या हायर एजुकेशन कंप्लीट कर ही जॉब में आएं। स्मृति सैनी, एचआर मैनेजर, मुंबई

प्लेसमेंट के लिए तैयार

आइआइटी में प्लेसमेंट पर विशेष ध्यान दिया जाता है। स्टूडेंट्स को एकेडमिक्स के साथ-साथ इंडस्ट्री की रिक्वॉयरमेंट के अनुसार ट्रेन किया जाता है। उनके सॉफ्ट स्किल्स को डेवलप किया जाता है।

प्रो.सुधीर बरई, चेयरमैन, सीडीसी, आइआइटी, खडग़पुर

बिजनेस स्कूल्स

को बदलना होगा

बिजनेस स्कूल्स के सामने इंडस्ट्री के मुताबिक अपने करिकुलम को अपग्रेड और स्ट्रॉन्ग करने का बड़ा चैलेंज है। इन स्कूल्स को लाइव प्रोजेक्ट्स, केस स्टडीज, रिसर्च, इंडस्ट्री इंटरैक्शन, लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल जैसे एरियाज पर फोकस करना होगा। कॉरपोरेट टाई-अप्स और स्किल डेवलपमेंट कोर्सेज तैयार करने होंगे, जिससे कि इंडस्ट्री के साथ इंटरैक्शन बढ़े। इसके अलावा, अगर ग्लोबल और डोमेस्टिक स्टैंडड्र्स को मैच करना है, तो इंटरनेशनल यूनिवर्सिटीज और एसोसिएशंस के साथ कोलेबोरेशन एवं फैकल्टी एक्सचेंज जैसे प्रोग्राम्स चलाने होंगे।