आज रॉकेट साइंस से लेकर नैनो टेक्नोलॉजी तक, स्टूडेंट्स के लिए भविष्य
संवारने के तमाम अवसर हैं। ऎसी ही एक फील्ड है माइक्रोबायोलॉजी -
क्या है माइक्रोबायोलॉजी
यह बायोलॉजी की एक ब्रांच है जिसमें प्रोटोजोआ, ऎल्गी, बैक्टीरिया, वायरस जैसे सूक्ष्म जीवाणुओं (माइक्रोऑर्गेनिज्म) का अध्ययन किया जाता है।
इसमें माइक्रोबायोलॉजिस्ट इन जीवाणुओं (माइक्रोब्स) के इंसानों, पौधों व जानवरों पर पड़ने वाले पॉजीटिव व निगेटिव प्रभाव को जानने की कोशिश करते हैं। बीमारियों की वजह जानने में ये मदद करते हैं।
जीन थेरेपी तकनीक के जरिये वे इंसानों में होने वाले सिस्टिक फिब्रियोसिस, कैंसर जैसे दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर्स के बारे में भी पता लगाते है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट आसपास के एरिया, इंसान, जानवर या फील्ड लोकेशन से सैंपल एकत्र करते हैं। फिर उन पर माइक्रोब्स को ग्रो करते हैं और स्टैंडर्ड लैबोरेट्री टेक्निक से विशेष माइक्रोब को अलग करते हैं। मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट खासतौर पर इस तरह की प्रक्रिया अपनाते हैं।
सैलरी पैकेज
माइक्रोबायोलॉजिस्ट की सैलरी उसके स्पेशलाइजेशन पर डिपेंड करती है। शुरूआत में एक फ्रेशर 15 से 20 हजार रूपये महीना आसानी से कमा सकता है। एक्सपीरियंस और एक्सपर्टाइज होने के साथ सैलरी बढ़ती जाती है।
इसके अलावा एक माइक्रो-बायोलॉजिस्ट कुछ नया इनोवेट करने पर उसका पेटेंट करा सकता है और फिर अपने प्रोडक्ट को बेचकर लाखों रूपये कमा सकता है। इसके अलावा अगर वह चाहे तो अपनी इंडिपेंडेंट लैबोरेट्री भी खोल सकता है।
जरूरी क्वालिफिकेशन
कई यूनिवर्सिटीज में माइक्रोबायोलॉजी में अंडरग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज हैं। इसके लिए स्टूडेंट्स को फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स या बायोलॉजी के साथ 12वीं पास होना चाहिए। वहीं, पोस्टग्रेजुएशन करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी या लाइफ साइंस में बैचलर्स डिग्री जरूरी है।
इसके बाद वे अप्लायड माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, फोरेंसिक साइंस जैसे सब्जेक्ट्स में मास्टर्स कर सकते हैं। जो स्वतंत्र रूप से रिसर्च करना चाहते हैं, वे पीएचडी के बाद ऎसा कर सकते हैं।
जरूरी स्किल्स
आज वही इस फील्ड में सक्सेसफुल है, जो आउट ऑफ बॉक्स इनोवेटिव आइडियाज पर काम करता है, जिसकी इमैजिनेशन पॉवर स्ट्रॉन्ग है। इसके अलावा जो टेक्नोलॉजी में भी दखल रखता हो।
करियर में संभावनाएं
दुनिया भर में नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए कई माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीवाणुओं) का अब भी पता लगाया जाना बाकी है। यह काम माइक्रोबायोलॉजिस्ट बखूबी करते हैं। इसलिए उनके लिए अवसरों की कमी नहीं है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट बैक्टीरियोलॉजिस्ट, एनवायरमेंटल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, माइकोलॉजिस्ट, बायोकेमिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट, सेल बायोलॉजिस्ट, इम्युनोलॉजिस्ट, वायरोलॉजिस्ट, इम्ब्रियोलॉजिस्ट आदि के रूप में कॅरियर बना सकते हैं।
इनकी गवर्नमेंट व प्राइवेट सेक्टर के हॉस्पिटल्स, लैबोरेट्रीज, फूड एंड बेवरेज, फार्मासूटिकल, वॉटर प्रोसेसिंग प्लांट्स, होटल्स आदि में काफी मांग है।
फार्मासूटिकल के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में अवसरों की कमी नहीं है। अगर लेखन में रूचि है, तो साइंस राइटर के तौर पर भी भविष्य बनाया जा सकता है। साथ ही कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका भी है।
कॉलेज में पढ़ाने के लिए मास्टर्स डिग्री के साथ सीएसआईआर-नेट क्वालीफाइड होना जरूरी है, जबकि डॉक्टरेट के बाद ऑप्शंस कई गुना बढ़ जाते हैं। विदेश की बात करें, तो नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की काफी डिमांड है।
क्या है माइक्रोबायोलॉजी
यह बायोलॉजी की एक ब्रांच है जिसमें प्रोटोजोआ, ऎल्गी, बैक्टीरिया, वायरस जैसे सूक्ष्म जीवाणुओं (माइक्रोऑर्गेनिज्म) का अध्ययन किया जाता है।
इसमें माइक्रोबायोलॉजिस्ट इन जीवाणुओं (माइक्रोब्स) के इंसानों, पौधों व जानवरों पर पड़ने वाले पॉजीटिव व निगेटिव प्रभाव को जानने की कोशिश करते हैं। बीमारियों की वजह जानने में ये मदद करते हैं।
जीन थेरेपी तकनीक के जरिये वे इंसानों में होने वाले सिस्टिक फिब्रियोसिस, कैंसर जैसे दूसरे जेनेटिक डिसऑर्डर्स के बारे में भी पता लगाते है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट आसपास के एरिया, इंसान, जानवर या फील्ड लोकेशन से सैंपल एकत्र करते हैं। फिर उन पर माइक्रोब्स को ग्रो करते हैं और स्टैंडर्ड लैबोरेट्री टेक्निक से विशेष माइक्रोब को अलग करते हैं। मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट खासतौर पर इस तरह की प्रक्रिया अपनाते हैं।
सैलरी पैकेज
माइक्रोबायोलॉजिस्ट की सैलरी उसके स्पेशलाइजेशन पर डिपेंड करती है। शुरूआत में एक फ्रेशर 15 से 20 हजार रूपये महीना आसानी से कमा सकता है। एक्सपीरियंस और एक्सपर्टाइज होने के साथ सैलरी बढ़ती जाती है।
इसके अलावा एक माइक्रो-बायोलॉजिस्ट कुछ नया इनोवेट करने पर उसका पेटेंट करा सकता है और फिर अपने प्रोडक्ट को बेचकर लाखों रूपये कमा सकता है। इसके अलावा अगर वह चाहे तो अपनी इंडिपेंडेंट लैबोरेट्री भी खोल सकता है।
जरूरी क्वालिफिकेशन
कई यूनिवर्सिटीज में माइक्रोबायोलॉजी में अंडरग्रेजुएट व पोस्टग्रेजुएट कोर्सेज हैं। इसके लिए स्टूडेंट्स को फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स या बायोलॉजी के साथ 12वीं पास होना चाहिए। वहीं, पोस्टग्रेजुएशन करने के लिए माइक्रोबायोलॉजी या लाइफ साइंस में बैचलर्स डिग्री जरूरी है।
इसके बाद वे अप्लायड माइक्रोबायोलॉजी, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री, फोरेंसिक साइंस जैसे सब्जेक्ट्स में मास्टर्स कर सकते हैं। जो स्वतंत्र रूप से रिसर्च करना चाहते हैं, वे पीएचडी के बाद ऎसा कर सकते हैं।
जरूरी स्किल्स
आज वही इस फील्ड में सक्सेसफुल है, जो आउट ऑफ बॉक्स इनोवेटिव आइडियाज पर काम करता है, जिसकी इमैजिनेशन पॉवर स्ट्रॉन्ग है। इसके अलावा जो टेक्नोलॉजी में भी दखल रखता हो।
करियर में संभावनाएं
दुनिया भर में नई-नई बीमारियां सामने आ रही हैं, उसे देखते हुए कई माइक्रोब्स (सूक्ष्म जीवाणुओं) का अब भी पता लगाया जाना बाकी है। यह काम माइक्रोबायोलॉजिस्ट बखूबी करते हैं। इसलिए उनके लिए अवसरों की कमी नहीं है।
माइक्रोबायोलॉजिस्ट बैक्टीरियोलॉजिस्ट, एनवायरमेंटल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड माइक्रोबायोलॉजिस्ट, इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, मेडिकल माइक्रोबायोलॉजिस्ट, माइकोलॉजिस्ट, बायोकेमिस्ट, बायोटेक्नोलॉजिस्ट, सेल बायोलॉजिस्ट, इम्युनोलॉजिस्ट, वायरोलॉजिस्ट, इम्ब्रियोलॉजिस्ट आदि के रूप में कॅरियर बना सकते हैं।
इनकी गवर्नमेंट व प्राइवेट सेक्टर के हॉस्पिटल्स, लैबोरेट्रीज, फूड एंड बेवरेज, फार्मासूटिकल, वॉटर प्रोसेसिंग प्लांट्स, होटल्स आदि में काफी मांग है।
फार्मासूटिकल के रिसर्च एंड डेवलपमेंट डिपार्टमेंट में अवसरों की कमी नहीं है। अगर लेखन में रूचि है, तो साइंस राइटर के तौर पर भी भविष्य बनाया जा सकता है। साथ ही कॉलेज या यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का मौका भी है।
कॉलेज में पढ़ाने के लिए मास्टर्स डिग्री के साथ सीएसआईआर-नेट क्वालीफाइड होना जरूरी है, जबकि डॉक्टरेट के बाद ऑप्शंस कई गुना बढ़ जाते हैं। विदेश की बात करें, तो नासा जैसे स्पेस ऑर्गेनाइजेशन में माइक्रोबायोलॉजिस्ट की काफी डिमांड है।
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