एग्रीकल्चरल साइंस एक आकर्षक करियर क्षेत्र है। इस फील्ड में अवसरों
की कोई कमी नहीं है। इससे संबंधित कोर्स और करियर के बारे में बता रही हैं
नमिता सिंह
मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने पहले आम बजट में एग्रीकल्चरल सेक्टर पर जोर देकर हरित क्रांति व देश में कृषि क्षेत्र की सेहत सुधारने की पहल की है। इस बजट की एक खास बात यह भी रही कि इसमें हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए 1000 करोड़, सूखे, कम मानसून, बाढ़ से मुकाबला करने के लिए 100 करोड़ व कृषि उपकरण सस्ते करने व आधुनिक खेती के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इन सारी कवायदों से एग्रीकल्चर सेक्टर में न सिर्फ बूम आने की संभावना है, बल्कि रोजगार के लिए कृषि पर लोगों की निर्भरता बढ़ेगी। फसलों की हार्वेस्टिंग, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज व ट्रांसपोर्टेशन आदि काम रफ्तार पकड़ेंगे। यदि आज देखा जाए तो भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर खाद्यान्न के उत्पादन तक ही सीमित न होकर बिजनेस के क्षेत्र की ओर प्रमुखता से कदम बढ़ा रहा है। कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण व नई टेक्नोलॉजी के आने से पारंपरिक खेती के अलावा आर्गेनिक खेती का विकल्प सामने आया है। यही कारण है कि युवाओं ने इसमें तेजी से अपनी रुचि दर्शाई है। इस सेक्टर से संबंधित कई ऐसे कोर्स हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन्हीं में से एक एग्रीकल्चरल साइंस भी है। कार्यशैली व उपयोगिता के चलते एग्रीकल्चर साइंटिस्टों की मांग सरकारी व प्राइवेट क्षेत्र दोनों में है।
क्या है एग्रीकल्चरल साइंस
एग्रीकल्चरल साइंस, साइंस की ही एक प्रमुख विधा है, जिसमें कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, फार्मिग की क्वालिटी सुधारने, क्षमता बढ़ाने आदि के बारे में बताया जाता है। इसका सीधा संबंध बायोलॉजिकल साइंस से है। इसमें बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स के सिद्धांतों को शामिल करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है। प्रोडक्शन टेक्निक को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च एवं डेवलपमेंट को इसके सिलेबस में शामिल किया गया है। इसकी कई शाखाएं जैसे प्लांट साइंस, फूड साइंस, एनिमल साइंस व सॉयल साइंस आदि हैं, जिनमें स्पेशलाइजेशन कर इस क्षेत्र का जानकार बना जा सकता है।
आंकड़ों की नजर में इंडस्ट्री
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एक महत्वपूर्ण सेक्टर बन कर उभरा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जिसके पास सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि है। यही कारण है कि इसे कृषि प्रधान देश की संज्ञा दी जाती है। यहां की एक बड़ी आबादी (62 प्रतिशत) कृषि आधारित रोजगार पर निर्भर है। वर्तमान समय में भारत ग्लोबल एग्रीकल्चरल मार्केट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र का योगदान 17 प्रतिशत के करीब है, जबकि कुल निर्यात में भारत लगभग 11 प्रतिशत की पूर्ति करता है। आज भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और गेहूं निर्यात में दूसरा। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश में एग्रीकल्चर सेक्टर 5.2 -5.7 प्रतिशत सालाना की दर से ग्रोथ कर रहा है, जबकि आर्गेनिक खेती की ग्रोथ 20-25 प्रतिशत सालाना है और आर्गेनिक फूड का मार्केट 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है।
कब ले सकेंगे दाखिला
एग्रीकल्चरल साइंस में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को बॉटनी, फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथ्स का ज्ञान होना जरूरी है। ऐसे कई अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा व डॉक्टरल कोर्स हैं, जो एग्रीकल्चरल साइंस की डिग्री प्रदान करते हैं। इसके बैचलर कोर्स (बीएससी इन एग्रीकल्चर) में दाखिले के लिए साइंस स्ट्रीम में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 पास होना जरूरी है। कोर्स की अवधि चार वर्ष है। दो वर्षीय मास्टर प्रोग्राम के लिए बीएससी अथवा बीटेक की डिग्री आवश्यक है। मास्टर डिग्री (एमएससी/एमटेक) के बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। कई ऐसे संस्थान हैं, जो पीजी डिप्लोमा कोर्स कराते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया
इसके सभी कोर्सों में दाखिला प्रवेश प्रक्रिया के बाद मिलता है। ये प्रवेश परीक्षाएं संबंधित संस्थान, यूनिवर्सिटी अथवा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा कराई जाती हैं। कुछ चुनिंदा संस्थान आईसीएआर के अंक को आधार बना कर प्रवेश देते हैं। आईसीएआर पोस्टग्रेजुएट के लिए फेलोशिप भी प्रदान करता है।
आवश्यक स्किल्स
एक सफल एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट बनने के लिए छात्र के पास विज्ञान विषय की अच्छी समझ होनी जरूरी है। इसके अलावा उसे फसलों, मिट्टी के प्रकार, प्रमुख केमिकल्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए। साथ ही उसके पास तार्किक दिमाग, धर्य, शोध का गुण, टीम के रूप में काम करने का कौशल, घंटों काम करने का जज्बा, लिखने-बोलने का कौशल, कम्युनिकेशन स्किल, प्रजेंटेशन क्षमता आदि गुणों का होना जरूरी है। आजकल इस सेक्टर में भी बायोलॉजिकल, केमिकल, प्रोसेसिंग कंट्रोल करने व डाटा आदि निकालने में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, इसलिए कम्प्यूटर का ज्ञान होना बहुत जरूरी है।
सेलरी
एग्रीकल्चरल साइंस के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की सेलरी उनकी योग्यता, संस्थान और कार्य अनुभव पर निर्भर करती है। सरकारी क्षेत्र में कदम रखने वाले ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स को प्रारम्भ में 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। कुछ साल के अनुभव के बाद यह राशि 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह हो जाती है, जबकि प्राइवेट सेक्टर में प्रोफेशनल्स की स्किल्स के हिसाब से सेलरी दी जाती है। यदि आप अपना फर्म या कंसल्टेंसी सर्विस खोलते हैं तो आमदनी की रूपरेखा फर्म के आकार एवं स्वरूप पर निर्भर करती है। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में भी पर्याप्त सेलरी मिलती है।
रोजगार की संभावनाएं
सफलतापूर्वक कोर्स करने वाले प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार की व्यापक संभावनाएं सामने आती हैं। इसमें सबसे ज्यादा अवसर बिजनेस व साइंस के क्षेत्र में मिलते हैं। केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रालय व विभाग, एग्रीकल्चर फाइनेंस कॉरपोरेशन, रिसर्च इंस्टीटय़ूट, राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंक, कृषि विज्ञान केंद्र, एग्रो इंडस्ट्री सेक्टर, कृषि विश्वविद्यालय, मीडिया हाउस में भी इन प्रोफेशनल्स को प्रमुखता के साथ काम मिलता है। इसके अलावा हॉर्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, डेयरी व पोल्ट्री फार्मिग, फिशरीज व एग्रीकल्चर इंडस्ट्री, फूड प्रोसेसिंग यूनिट व एनजीओ में पर्याप्त संभावनाएं मिलती हैं। इसमें साइंटिस्ट बायोलॉजिस्ट व केमिस्ट के साथ मिल कर प्रोसेसिंग संबंधी कार्य करते हैं। जूनियर फेलो रिसर्चर के रूप में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटय़ूट जॉइन कर सकते हैं। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट प्रत्येक राज्य में जिला कृषि अधिकारी, सहायक कृषि निदेशक सरीखे उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्ित करता है। यूपीएससी व एसएससी के जरिए कई प्रमुख पदों पर भर्तियां की जाती हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन ऑफिसर
रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर
फील्ड ऑफिसर
एग्रीकल्चर क्रेडिट ऑफिसर
एग्रीकल्चर प्रोबेशनरी ऑफिसर
प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर
सॉयल कंजरवेशन ऑफिसर
सीड प्रोडक्शन ऑफिसर
एग्रीकल्चर असिस्टेंट/टेक्िनकल असिस्टेंट
प्लांट पैथोलॉजिस्ट
एग्रोनॉमिस्ट/एग्रो मटीरियोलॉजिस्ट
इकोनॉमिक बॉटनिस्ट
रिसर्च इंजीनियर
एसोसिएट प्रोफेसर
प्रमुख कोर्स
बीएससी इन एग्रीकल्चर
बीएससी इन एग्रीकल्चर (ऑनर्स)
एमएससी इन एग्रीकल्चर
एमएससी इन एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोटेक्नोलॉजी)
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोकेमिस्ट्री/इकोनॉमिक्स)
एमटेक इन एग्रीकल्चर वॉटर मैनेजमेंट
पीएचडी इन एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. बिजनेस मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. मार्केटिंग मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री वॉटर मैनेजमेंट
नफा-नुकसान
रोजगार पाने के लिए भटकना नहीं पड़ता
आकर्षक सेलरी के साथ मिलता है सुकून
घंटों लगातार काम करने पर शारीरिक थकान
काम के सिलसिले में गांवों में रहना मजबूरी
एक्सपर्ट व्यू
नई तकनीक को आत्मसात करें
एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट का कार्य विविधताओं से भरा हुआ है। वर्तमान समय में इसमें कई क्षेत्रों के जुड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। लोगों को रोजगार भी खूब मिल रहा है। देश के साथ-साथ विदेशों में भी खूब संभावनाएं बन रही हैं। एमएससी व पीएचडी कोर्स करने के लिए विदेशी छात्र काफी अधिक संख्या में भारत आ रहे हैं। सरकारी नीतियां भी इस सेक्टर के प्रति सकारात्मक हैं तथा अधिक संख्या में प्रोफेशनल्स गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। सरकारी प्रावधानों से किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है और वे नई तकनीकों का सहारा ले रहे हैं। कोर्स करने वाले छात्रों को यही सलाह दी जाती है कि जो भी नई तकनीक आए, वे उससे भागने की बजाय उसे स्वीकार करें तथा किसानों को भी उसके बारे में बताएं, क्योंकि यदि किसान कम्प्यूटर से जानकारी हासिल करने लग गया तो उसका चहुंमुखी विकास होगा। लड़कियों के लिए भी यह क्षेत्र सुकून पहुंचा रहा है। रिसर्च एवं डेवलपमेंट का क्षेत्र उन्हें काफी रास आ रहा है। इस समय छात्र-छात्राओं का अनुपात 60:40 का है।
- डॉ. एचपी सिंह, प्रोफेसर एंड हेड
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू
प्रमुख संस्थान
नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, नई दिल्ली
वेबसाइट-www.naasindia.org
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, नई दिल्ली, वेबसाइट- www.iari.res.in
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.icar.org.in
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in/ias
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
वेबसाइट- www.hau.ernet.in
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पंजाब
वेबसाइट- www.pau.edu
जीबी पन्त यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी, उत्तराखण्ड
वेबसाइट- www.gbpuat.ac.in
मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने पहले आम बजट में एग्रीकल्चरल सेक्टर पर जोर देकर हरित क्रांति व देश में कृषि क्षेत्र की सेहत सुधारने की पहल की है। इस बजट की एक खास बात यह भी रही कि इसमें हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए 1000 करोड़, सूखे, कम मानसून, बाढ़ से मुकाबला करने के लिए 100 करोड़ व कृषि उपकरण सस्ते करने व आधुनिक खेती के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इन सारी कवायदों से एग्रीकल्चर सेक्टर में न सिर्फ बूम आने की संभावना है, बल्कि रोजगार के लिए कृषि पर लोगों की निर्भरता बढ़ेगी। फसलों की हार्वेस्टिंग, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज व ट्रांसपोर्टेशन आदि काम रफ्तार पकड़ेंगे। यदि आज देखा जाए तो भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर खाद्यान्न के उत्पादन तक ही सीमित न होकर बिजनेस के क्षेत्र की ओर प्रमुखता से कदम बढ़ा रहा है। कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण व नई टेक्नोलॉजी के आने से पारंपरिक खेती के अलावा आर्गेनिक खेती का विकल्प सामने आया है। यही कारण है कि युवाओं ने इसमें तेजी से अपनी रुचि दर्शाई है। इस सेक्टर से संबंधित कई ऐसे कोर्स हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन्हीं में से एक एग्रीकल्चरल साइंस भी है। कार्यशैली व उपयोगिता के चलते एग्रीकल्चर साइंटिस्टों की मांग सरकारी व प्राइवेट क्षेत्र दोनों में है।
क्या है एग्रीकल्चरल साइंस
एग्रीकल्चरल साइंस, साइंस की ही एक प्रमुख विधा है, जिसमें कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, फार्मिग की क्वालिटी सुधारने, क्षमता बढ़ाने आदि के बारे में बताया जाता है। इसका सीधा संबंध बायोलॉजिकल साइंस से है। इसमें बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स के सिद्धांतों को शामिल करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है। प्रोडक्शन टेक्निक को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च एवं डेवलपमेंट को इसके सिलेबस में शामिल किया गया है। इसकी कई शाखाएं जैसे प्लांट साइंस, फूड साइंस, एनिमल साइंस व सॉयल साइंस आदि हैं, जिनमें स्पेशलाइजेशन कर इस क्षेत्र का जानकार बना जा सकता है।
आंकड़ों की नजर में इंडस्ट्री
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एक महत्वपूर्ण सेक्टर बन कर उभरा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जिसके पास सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि है। यही कारण है कि इसे कृषि प्रधान देश की संज्ञा दी जाती है। यहां की एक बड़ी आबादी (62 प्रतिशत) कृषि आधारित रोजगार पर निर्भर है। वर्तमान समय में भारत ग्लोबल एग्रीकल्चरल मार्केट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र का योगदान 17 प्रतिशत के करीब है, जबकि कुल निर्यात में भारत लगभग 11 प्रतिशत की पूर्ति करता है। आज भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और गेहूं निर्यात में दूसरा। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश में एग्रीकल्चर सेक्टर 5.2 -5.7 प्रतिशत सालाना की दर से ग्रोथ कर रहा है, जबकि आर्गेनिक खेती की ग्रोथ 20-25 प्रतिशत सालाना है और आर्गेनिक फूड का मार्केट 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है।
कब ले सकेंगे दाखिला
एग्रीकल्चरल साइंस में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को बॉटनी, फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथ्स का ज्ञान होना जरूरी है। ऐसे कई अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा व डॉक्टरल कोर्स हैं, जो एग्रीकल्चरल साइंस की डिग्री प्रदान करते हैं। इसके बैचलर कोर्स (बीएससी इन एग्रीकल्चर) में दाखिले के लिए साइंस स्ट्रीम में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 पास होना जरूरी है। कोर्स की अवधि चार वर्ष है। दो वर्षीय मास्टर प्रोग्राम के लिए बीएससी अथवा बीटेक की डिग्री आवश्यक है। मास्टर डिग्री (एमएससी/एमटेक) के बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। कई ऐसे संस्थान हैं, जो पीजी डिप्लोमा कोर्स कराते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया
इसके सभी कोर्सों में दाखिला प्रवेश प्रक्रिया के बाद मिलता है। ये प्रवेश परीक्षाएं संबंधित संस्थान, यूनिवर्सिटी अथवा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा कराई जाती हैं। कुछ चुनिंदा संस्थान आईसीएआर के अंक को आधार बना कर प्रवेश देते हैं। आईसीएआर पोस्टग्रेजुएट के लिए फेलोशिप भी प्रदान करता है।
आवश्यक स्किल्स
एक सफल एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट बनने के लिए छात्र के पास विज्ञान विषय की अच्छी समझ होनी जरूरी है। इसके अलावा उसे फसलों, मिट्टी के प्रकार, प्रमुख केमिकल्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए। साथ ही उसके पास तार्किक दिमाग, धर्य, शोध का गुण, टीम के रूप में काम करने का कौशल, घंटों काम करने का जज्बा, लिखने-बोलने का कौशल, कम्युनिकेशन स्किल, प्रजेंटेशन क्षमता आदि गुणों का होना जरूरी है। आजकल इस सेक्टर में भी बायोलॉजिकल, केमिकल, प्रोसेसिंग कंट्रोल करने व डाटा आदि निकालने में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, इसलिए कम्प्यूटर का ज्ञान होना बहुत जरूरी है।
सेलरी
एग्रीकल्चरल साइंस के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की सेलरी उनकी योग्यता, संस्थान और कार्य अनुभव पर निर्भर करती है। सरकारी क्षेत्र में कदम रखने वाले ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स को प्रारम्भ में 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। कुछ साल के अनुभव के बाद यह राशि 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह हो जाती है, जबकि प्राइवेट सेक्टर में प्रोफेशनल्स की स्किल्स के हिसाब से सेलरी दी जाती है। यदि आप अपना फर्म या कंसल्टेंसी सर्विस खोलते हैं तो आमदनी की रूपरेखा फर्म के आकार एवं स्वरूप पर निर्भर करती है। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में भी पर्याप्त सेलरी मिलती है।
रोजगार की संभावनाएं
सफलतापूर्वक कोर्स करने वाले प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार की व्यापक संभावनाएं सामने आती हैं। इसमें सबसे ज्यादा अवसर बिजनेस व साइंस के क्षेत्र में मिलते हैं। केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रालय व विभाग, एग्रीकल्चर फाइनेंस कॉरपोरेशन, रिसर्च इंस्टीटय़ूट, राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंक, कृषि विज्ञान केंद्र, एग्रो इंडस्ट्री सेक्टर, कृषि विश्वविद्यालय, मीडिया हाउस में भी इन प्रोफेशनल्स को प्रमुखता के साथ काम मिलता है। इसके अलावा हॉर्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, डेयरी व पोल्ट्री फार्मिग, फिशरीज व एग्रीकल्चर इंडस्ट्री, फूड प्रोसेसिंग यूनिट व एनजीओ में पर्याप्त संभावनाएं मिलती हैं। इसमें साइंटिस्ट बायोलॉजिस्ट व केमिस्ट के साथ मिल कर प्रोसेसिंग संबंधी कार्य करते हैं। जूनियर फेलो रिसर्चर के रूप में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटय़ूट जॉइन कर सकते हैं। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट प्रत्येक राज्य में जिला कृषि अधिकारी, सहायक कृषि निदेशक सरीखे उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्ित करता है। यूपीएससी व एसएससी के जरिए कई प्रमुख पदों पर भर्तियां की जाती हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन ऑफिसर
रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर
फील्ड ऑफिसर
एग्रीकल्चर क्रेडिट ऑफिसर
एग्रीकल्चर प्रोबेशनरी ऑफिसर
प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर
सॉयल कंजरवेशन ऑफिसर
सीड प्रोडक्शन ऑफिसर
एग्रीकल्चर असिस्टेंट/टेक्िनकल असिस्टेंट
प्लांट पैथोलॉजिस्ट
एग्रोनॉमिस्ट/एग्रो मटीरियोलॉजिस्ट
इकोनॉमिक बॉटनिस्ट
रिसर्च इंजीनियर
एसोसिएट प्रोफेसर
प्रमुख कोर्स
बीएससी इन एग्रीकल्चर
बीएससी इन एग्रीकल्चर (ऑनर्स)
एमएससी इन एग्रीकल्चर
एमएससी इन एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोटेक्नोलॉजी)
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोकेमिस्ट्री/इकोनॉमिक्स)
एमटेक इन एग्रीकल्चर वॉटर मैनेजमेंट
पीएचडी इन एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. बिजनेस मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. मार्केटिंग मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री वॉटर मैनेजमेंट
नफा-नुकसान
रोजगार पाने के लिए भटकना नहीं पड़ता
आकर्षक सेलरी के साथ मिलता है सुकून
घंटों लगातार काम करने पर शारीरिक थकान
काम के सिलसिले में गांवों में रहना मजबूरी
एक्सपर्ट व्यू
नई तकनीक को आत्मसात करें
एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट का कार्य विविधताओं से भरा हुआ है। वर्तमान समय में इसमें कई क्षेत्रों के जुड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। लोगों को रोजगार भी खूब मिल रहा है। देश के साथ-साथ विदेशों में भी खूब संभावनाएं बन रही हैं। एमएससी व पीएचडी कोर्स करने के लिए विदेशी छात्र काफी अधिक संख्या में भारत आ रहे हैं। सरकारी नीतियां भी इस सेक्टर के प्रति सकारात्मक हैं तथा अधिक संख्या में प्रोफेशनल्स गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। सरकारी प्रावधानों से किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है और वे नई तकनीकों का सहारा ले रहे हैं। कोर्स करने वाले छात्रों को यही सलाह दी जाती है कि जो भी नई तकनीक आए, वे उससे भागने की बजाय उसे स्वीकार करें तथा किसानों को भी उसके बारे में बताएं, क्योंकि यदि किसान कम्प्यूटर से जानकारी हासिल करने लग गया तो उसका चहुंमुखी विकास होगा। लड़कियों के लिए भी यह क्षेत्र सुकून पहुंचा रहा है। रिसर्च एवं डेवलपमेंट का क्षेत्र उन्हें काफी रास आ रहा है। इस समय छात्र-छात्राओं का अनुपात 60:40 का है।
- डॉ. एचपी सिंह, प्रोफेसर एंड हेड
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू
प्रमुख संस्थान
नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, नई दिल्ली
वेबसाइट-www.naasindia.org
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, नई दिल्ली, वेबसाइट- www.iari.res.in
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.icar.org.in
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू, वाराणसी
वेबसाइट- www.bhu.ac.in/ias
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
वेबसाइट- www.hau.ernet.in
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पंजाब
वेबसाइट- www.pau.edu
जीबी पन्त यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी, उत्तराखण्ड
वेबसाइट- www.gbpuat.ac.in
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