मनुष्य पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है। पर्यावरण में थोड़ी सी
भिन्नता या बदलाव उसके जीवन को तेजी से प्रभावित करते हैं। इसमें कोई दो
राय नहीं कि आज हर देश पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। वायु, जल, ध्वनि
या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अनचाहे परिवर्तन
मनुष्य या अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं
एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। इन समस्याओं
से निजात पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को इसकी
भयावहता के प्रति जागरूक किया जा रहा है। आने वाले समय में इसके और विस्तार
की जरूरत महसूस की जा रही है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए इकोलॉजी
का अध्ययन आवश्यक है। इसके जरिए पर्यावरण के विभिन्न आयामों व उनके संरक्षण
की विधिवत जानकारी मिलती है। विगत कुछ वर्षों से यह तेजी से उभरता हुआ
करियर साबित हो रहा है। इससे संबंधित कोर्स में लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा
रही है।
क्या है इकोलॉजी
इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत जीवों व उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जीवन की अनेक जटिल वर्तमान समस्याओं का समाधान पारिस्थितिकी के अध्ययनों द्वारा हुआ है। इसमें निजी पारिस्थितिकी, समुदाय पारिस्थितिकी व इको सिस्टेमोलॉजी आदि भी शामिल हैं। इकोलॉजी को समझने के लिए मानव प्रजातियों का विधिवत अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा जलवायवीय कारक जैसे प्रकाश, ताप, वायु-गति, वर्षा, वायुमंडल की गैसों आदि का अध्ययन भी जरूरी है। पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें समस्त जीव समुदाय सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पर आश्रित रहते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल, पारिस्थितिकी पिरामिड, ऊर्जा का पिरामिड, जैव मंडल, वायु मंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।
साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी
यदि कोई छात्र इकोलॉजी से संबंधित कोर्स करना चाहता है तो स्नातक में उसका साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी है। खासकर बॉटनी, बायोलॉजी, जूलॉजी एवं फॉरेस्ट्री संबंधी विषय सहायक साबित होते हैं। इसके बाद मास्टर कोर्स में दाखिला मिलता है। यदि छात्र रिसर्च, टीचिंग तथा अन्य शोध संबंधी कार्य करना चाहते हैं तो उनके लिए मास्टर डिग्री के बाद पीएचडी करना अनिवार्य है।
आवश्यक स्किल्स
इस क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी है कि प्रोफेशनल्स प्रकृति से प्रेम करना सीखें और उसके संरक्षण के लिए उनके दिल में दर्द हो। कार्यक्षेत्र व्यापक होने के कारण जिस क्षेत्र में जा रहे हों, उसका विस्तृत अध्ययन जरूरी है। किसी भी चीज को आंकने का कौशल व कार्यशैली उन्हें औरों से अलग करती है। इसके अलावा उनमें समस्या के त्वरित निर्धारण का गुण, कम्प्यूटर व मैथ्स की अच्छी जानकारी, प्रेजेंटेशन व राइटिंग स्किल, कार्य के प्रति अनुशासन व टीम वर्क आदि का गुण उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बना सकता है।
विस्तृत है कार्यक्षेत्र
अर्बन इकोलॉजी- अर्बन इकोलॉजी इस क्षेत्र की सबसे नवीनतम विधा है, जिसमें इकोलॉजी का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है, खासकर शहरों में रहने वाले लोगों के जनजीवन व प्राकृतिक परिदृश्य को इसमें भली-भांति परखा जाता है।
फॉरेस्ट इकोलॉजी- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के पौधों, जानवरों और कीड़े-मकौड़ों का अध्ययन व उनका वर्गीकरण किया जाता है। इसके अलावा जंगलों की भूमि और वहां के वातावरण पर मनुष्य और ग्लोबल वार्मिंग के असर का अध्ययन भी करते हैं।
मरीन इकोलॉजी- यह इकोलॉजी की ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत जलीय जन्तुओं और उसमें रहने के दौरान वातावरण के असर को समझा जाता है। इसमें चिडियाघर और एक्वेरियम सेंटर में जलीय जन्तुओं के संरक्षण पर भी काम किया जाता है।
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट- ये प्रोफेशनल्स ऐसी जगह काम करते हैं, जहां पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में (जैसे वनों की कटान, फिर से पौधारोपण की कवायद) हो। रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट प्रोजेक्ट के तहत काम करते हैं।
वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी- इसमें इकोलॉजिस्ट पशुओं व उनकी जनसंख्या तथा उनके संरक्षण का प्रमुखता से अध्ययन करते हैं। साथ ही यह भी ढूंढ़ते हैं कि वे कौन से कारण हैं, जिनसे उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजी- इसमें एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजिस्ट किसी विशेष वातावरण तथा उसमें रहने वाले लोगों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा तथा उसके असंतुलन पर होने वाले दुष्परिणामों से भी लोगों को अवगत कराते हैं।
रोजगार की संभावना
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद छात्रों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। हर साल इकोलॉजिस्टों की मांग बढ़ती जा रही है। कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां, एनजीओ, फर्म व विश्वविद्यालय-कॉलेज हैं, जहां इन प्रोफेशनल्स को विभिन्न पदों पर काम मिलता है। मुख्य रूप से प्रोफेशनल्स को रिसर्च सेंटर जैसे सीएसआईआर, एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, एन्वायर्नमेंटल अफेयर डिपार्टमेंट, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, नेशनल पार्क, म्यूजियम, एक्वेरियम सेंटर में काम मिलता है। इसके अलावा कई प्राइवेट संस्थान प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में आगे आए हैं और वे भी इकोलॉजिस्ट्स को अपने यहां प्रमुखता से नियुक्त कर रहे हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
रिसर्चर
इकोलॉजी साइंटिस्ट
नेचर रिसोर्सेज मैनेजर
वाइल्ड लाइफ मैनेजर
एन्वायर्नमेंटल कंसल्टेंट
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी की ज्यादातर रूपरेखा संस्थान, प्रोफेशनल्स की योग्यता व कार्यशैली पर निर्भर करती है। वैसे इसमें शुरुआती दौर में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। अनुभव बढ़ने के साथ ही सेलरी भी बढ़ती जाती है, जबकि किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज में टीचिंग के कार्य के दौरान उन्हें 40-50 हजार रुपए मिल जाते हैं। यदि स्वतंत्र रूप से या फिर विदेश में जॉब कर रहे हैं तो आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।
एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख और विदेशों में 20 लाख तक का लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी आवश्यक है। हर बैंक का अपना नियम-कानून है। बेहतर होगा कि छात्र लोन लेने से पूर्व संबंधित बैंक जाकर अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लें।
एक्सपर्ट व्यू
समय की मांग है इकोलॉजी
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने तथा उसमें मौजूद जीवों व संसाधनों में संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। इसके लिए वे अभियान चला कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। इन सब कवायदों के साथ ही देश में इकोलॉजिस्टों की मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा स्नातक स्तर पर पर्यावरण एक अनिवार्य विषय घोषित हो जाने से भी फैकल्टी के रूप में योग्य लोगों की आवश्यकता है। एनजीओ, वर्ल्ड बैंक के प्रोजेक्ट व सरकारी विभागों में इनकी काफी डिमांड है। एक इकोलॉजिस्ट की पहली ड्य़ूटी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रजातियों को खोजना तथा वैज्ञानिक व व्यावहारिक सूचनाएं एकत्र करना है। इन प्रोफेशनल्स का ज्यादा समय रिसर्च, आंकड़ों का अध्ययन करने तथा रिपोर्ट तैयार करने में बीतता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जो छात्रों से किताबी और प्रायोगिक दोनों तरह की जानकारी मांगता है। इसका विषय क्षेत्र व्यापक होने के कारण उन्हीं क्षेत्रों की ओर अपना कदम बढ़ाएं, जिनमें उनकी अधिक रुचि हो तथा जिसमें वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। आजकल इकोलॉजिस्टों के काम का दायरा काफी बढ़ गया है। वे बड़े-बड़े भूखंडों के मालिकों, उद्योगपतियों तथा वॉटर कंपनियों से जुड़ कर उन्हें सलाह देने का काम कर रहे हैं।
-डॉ. वंदना मिश्रा, सीनियर फैकल्टी, डीयू
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी, जयपुर
वेबसाइट- www.nieindia.org
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस (सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस), बेंगलुरू
वेबसाइट- www.ces.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरू
वेबसाइट- www.nias.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायर्नमेंटल, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.ecology.edu
क्या है इकोलॉजी
इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत जीवों व उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जीवन की अनेक जटिल वर्तमान समस्याओं का समाधान पारिस्थितिकी के अध्ययनों द्वारा हुआ है। इसमें निजी पारिस्थितिकी, समुदाय पारिस्थितिकी व इको सिस्टेमोलॉजी आदि भी शामिल हैं। इकोलॉजी को समझने के लिए मानव प्रजातियों का विधिवत अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा जलवायवीय कारक जैसे प्रकाश, ताप, वायु-गति, वर्षा, वायुमंडल की गैसों आदि का अध्ययन भी जरूरी है। पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें समस्त जीव समुदाय सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पर आश्रित रहते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल, पारिस्थितिकी पिरामिड, ऊर्जा का पिरामिड, जैव मंडल, वायु मंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।
साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी
यदि कोई छात्र इकोलॉजी से संबंधित कोर्स करना चाहता है तो स्नातक में उसका साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी है। खासकर बॉटनी, बायोलॉजी, जूलॉजी एवं फॉरेस्ट्री संबंधी विषय सहायक साबित होते हैं। इसके बाद मास्टर कोर्स में दाखिला मिलता है। यदि छात्र रिसर्च, टीचिंग तथा अन्य शोध संबंधी कार्य करना चाहते हैं तो उनके लिए मास्टर डिग्री के बाद पीएचडी करना अनिवार्य है।
आवश्यक स्किल्स
इस क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी है कि प्रोफेशनल्स प्रकृति से प्रेम करना सीखें और उसके संरक्षण के लिए उनके दिल में दर्द हो। कार्यक्षेत्र व्यापक होने के कारण जिस क्षेत्र में जा रहे हों, उसका विस्तृत अध्ययन जरूरी है। किसी भी चीज को आंकने का कौशल व कार्यशैली उन्हें औरों से अलग करती है। इसके अलावा उनमें समस्या के त्वरित निर्धारण का गुण, कम्प्यूटर व मैथ्स की अच्छी जानकारी, प्रेजेंटेशन व राइटिंग स्किल, कार्य के प्रति अनुशासन व टीम वर्क आदि का गुण उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बना सकता है।
विस्तृत है कार्यक्षेत्र
अर्बन इकोलॉजी- अर्बन इकोलॉजी इस क्षेत्र की सबसे नवीनतम विधा है, जिसमें इकोलॉजी का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है, खासकर शहरों में रहने वाले लोगों के जनजीवन व प्राकृतिक परिदृश्य को इसमें भली-भांति परखा जाता है।
फॉरेस्ट इकोलॉजी- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के पौधों, जानवरों और कीड़े-मकौड़ों का अध्ययन व उनका वर्गीकरण किया जाता है। इसके अलावा जंगलों की भूमि और वहां के वातावरण पर मनुष्य और ग्लोबल वार्मिंग के असर का अध्ययन भी करते हैं।
मरीन इकोलॉजी- यह इकोलॉजी की ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत जलीय जन्तुओं और उसमें रहने के दौरान वातावरण के असर को समझा जाता है। इसमें चिडियाघर और एक्वेरियम सेंटर में जलीय जन्तुओं के संरक्षण पर भी काम किया जाता है।
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट- ये प्रोफेशनल्स ऐसी जगह काम करते हैं, जहां पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में (जैसे वनों की कटान, फिर से पौधारोपण की कवायद) हो। रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट प्रोजेक्ट के तहत काम करते हैं।
वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी- इसमें इकोलॉजिस्ट पशुओं व उनकी जनसंख्या तथा उनके संरक्षण का प्रमुखता से अध्ययन करते हैं। साथ ही यह भी ढूंढ़ते हैं कि वे कौन से कारण हैं, जिनसे उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजी- इसमें एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजिस्ट किसी विशेष वातावरण तथा उसमें रहने वाले लोगों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा तथा उसके असंतुलन पर होने वाले दुष्परिणामों से भी लोगों को अवगत कराते हैं।
रोजगार की संभावना
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद छात्रों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। हर साल इकोलॉजिस्टों की मांग बढ़ती जा रही है। कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां, एनजीओ, फर्म व विश्वविद्यालय-कॉलेज हैं, जहां इन प्रोफेशनल्स को विभिन्न पदों पर काम मिलता है। मुख्य रूप से प्रोफेशनल्स को रिसर्च सेंटर जैसे सीएसआईआर, एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, एन्वायर्नमेंटल अफेयर डिपार्टमेंट, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, नेशनल पार्क, म्यूजियम, एक्वेरियम सेंटर में काम मिलता है। इसके अलावा कई प्राइवेट संस्थान प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में आगे आए हैं और वे भी इकोलॉजिस्ट्स को अपने यहां प्रमुखता से नियुक्त कर रहे हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
रिसर्चर
इकोलॉजी साइंटिस्ट
नेचर रिसोर्सेज मैनेजर
वाइल्ड लाइफ मैनेजर
एन्वायर्नमेंटल कंसल्टेंट
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी की ज्यादातर रूपरेखा संस्थान, प्रोफेशनल्स की योग्यता व कार्यशैली पर निर्भर करती है। वैसे इसमें शुरुआती दौर में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। अनुभव बढ़ने के साथ ही सेलरी भी बढ़ती जाती है, जबकि किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज में टीचिंग के कार्य के दौरान उन्हें 40-50 हजार रुपए मिल जाते हैं। यदि स्वतंत्र रूप से या फिर विदेश में जॉब कर रहे हैं तो आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।
एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख और विदेशों में 20 लाख तक का लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी आवश्यक है। हर बैंक का अपना नियम-कानून है। बेहतर होगा कि छात्र लोन लेने से पूर्व संबंधित बैंक जाकर अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लें।
एक्सपर्ट व्यू
समय की मांग है इकोलॉजी
पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने तथा उसमें मौजूद जीवों व संसाधनों में संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। इसके लिए वे अभियान चला कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। इन सब कवायदों के साथ ही देश में इकोलॉजिस्टों की मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा स्नातक स्तर पर पर्यावरण एक अनिवार्य विषय घोषित हो जाने से भी फैकल्टी के रूप में योग्य लोगों की आवश्यकता है। एनजीओ, वर्ल्ड बैंक के प्रोजेक्ट व सरकारी विभागों में इनकी काफी डिमांड है। एक इकोलॉजिस्ट की पहली ड्य़ूटी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रजातियों को खोजना तथा वैज्ञानिक व व्यावहारिक सूचनाएं एकत्र करना है। इन प्रोफेशनल्स का ज्यादा समय रिसर्च, आंकड़ों का अध्ययन करने तथा रिपोर्ट तैयार करने में बीतता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जो छात्रों से किताबी और प्रायोगिक दोनों तरह की जानकारी मांगता है। इसका विषय क्षेत्र व्यापक होने के कारण उन्हीं क्षेत्रों की ओर अपना कदम बढ़ाएं, जिनमें उनकी अधिक रुचि हो तथा जिसमें वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। आजकल इकोलॉजिस्टों के काम का दायरा काफी बढ़ गया है। वे बड़े-बड़े भूखंडों के मालिकों, उद्योगपतियों तथा वॉटर कंपनियों से जुड़ कर उन्हें सलाह देने का काम कर रहे हैं।
-डॉ. वंदना मिश्रा, सीनियर फैकल्टी, डीयू
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट- www.jnu.ac.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी, जयपुर
वेबसाइट- www.nieindia.org
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस (सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस), बेंगलुरू
वेबसाइट- www.ces.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरू
वेबसाइट- www.nias.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायर्नमेंटल, नई दिल्ली
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