Wednesday, November 23, 2022

निस्थीसिया असिस्टेंट/टेक्नीशियन

किसी तरह की सर्जरी से पहले मरीज को पहले बेहोश किया जाता है, ताकि उसे ऑपरेशन के वक्त होने वाले दर्द का एहसास न हो। अब आधुनिक मेडिकल साइंस में शरीर के खास हिस्से को ही सुन्न करने का चलन चल पड़ा है, जिसका उपचार सर्जरी के जरिये किया जाना होता है। इस तरह से मरीज को बेहोश या सुन्न करने के लिए एनिस्थीसिया का प्रयोग आमतौर पर किया जाता है। किस मरीज को उसकी सेहत के अनुसार कितनी कम या ज्यादा मात्रा में एनिस्थीसिया का डोज दिया जाए, इसका निर्धारण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। एनिस्थीसिया डिप्लोमाधारकों द्वारा इन्हीं विशेषज्ञों की सहायता की जाती है।
महत्व 
सर्जरी अथवा उपचार की विभिन्न स्थितियों में एनिस्थीसिया का प्रयोग मजबूरीवश किया जाता है। सामान्य डॉक्टर या सर्जन द्वारा इसकी मात्रा का निर्धारण नहीं किया जाता है, बल्कि इसी फील्ड के ट्रेंड लोगों द्वारा यह जिम्मेदारी निभाई जाती है। जरा सी लापरवाही मरीज को कोमा में ले जाने के लिए काफी होती है। इसलिए मेडिकल स्पेशियलाइजेशन के इस दौर में एनिस्थीसिया के क्षेत्र से जुड़े डॉक्टर्स या पैरा मेडिकल स्टाफ की उपस्थिति को सर्जरी के दौरान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है

 ट्रेनिंग 

यह दो वर्षीय डिप्लोमा स्तर का कोर्स है और इसमें बायोलॉजी तथा अन्य साइंस विषयों सहित कम से कम 50 प्रतिशत अंक बारहवीं में लाने वाले युवा प्रवेश ले सकते हैं। अधिकांश संस्थानों द्वारा मेरिट के आधार पर दाखिले दिए जाते हैं। यह कोर्स, विशेष तौर,पर उन युवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी कहा जा सकता है, जो अपना भविष्य इसी क्षेत्र में विशेषज्ञ के तौर पर बनाना चाहते हैं। कोर्स के दौरान इस विषय के महत्व और मेडिकल साइंस में इसके विभिन्न प्रकार के उपयोगों से छात्रों को अवगत करवाया जाता है। एनिस्थीसिया की अधिकतम कितनी मात्रा किस तरह के रोगियों में दी जानी चाहिए, इससे जुड़े सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पहलुओं से छात्रों को ट्रेनिंग के दौरान भली-भांति परिचित करवाया जाता है। सिलेबस में ह्यूमन एनाटॉमी एंड फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी, एनिस्थीसिया मैनेजमेंट, मॉनिटरिंग ऑफ एनिस्थीसिया, रिकॉर्ड कीपिंग इन एनिस्थीसिया, स्टैंडर्ड्स इन एनिस्थीसिया, पेन मैनेजमेंट आदि पहलुओं पर एक्सपर्ट्स द्वारा जानकारी दी जाती है। इसी विषय में आगे पढ़ने के इच्छुक युवाओं के लिए बीएससी और उच्च शिक्षा की संभावनाएं देश-विदेश में हो सकती हैं

नौकरियां
कहने की जरूरत नहीं कि बड़े और नामी हॉस्पिटल्स के अलावा ऐसे प्रोफेशनल्स के लिए नर्सिंग होम्स,मैटरनिटी होम्स तथा छोटे- बड़े मेडिकल सेंटर्स में भी नौकरी की संभावनाएं हो सकती हैं। इनकी सेवाएं फ्रीलांस आधार पर कभी-कभी हॉस्पिटल्स द्वारा ली जाती हैं। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी ऐसे एक्सपर्ट्स की जरूरत पड़ती  है। प्रोफेशनल अनुभव और कार्यकुशलता के आधार पर इनकी फीस का निर्धारण किया जाता है। हायर एजुकेशन के बाद मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी टीचिंग जॉब्स के अवसर मिल सकते हैं। रिसर्च, एक अन्य कार्यक्षेत्र है, जहां पर ऐसे पारंगत लोगों के लिए करियर संवारने के मौके हो सकते हैं।

चुनौतियां 

  • अत्यंत जिम्मेदारी भरा पेशा
  • दिन-रात कभी भी कॉल पर जाना पड़ सकता है और मनाही की गुंजाइश नहीं के बराबर 
  • जॉब्स की संख्या बहुत अधिक नहीं 
  • अधिकतर प्राइवेट हॉस्पिटल्स या मेडिकल संस्थानों में रोजगार 
  • स्किल्स  

    •   बायोलॉजी और साइंस में दिलचस्पी 
    •   मरीज के प्रति सहानुभूतिपूर्ण सोच 
    •   आपात स्थितियों में जान बचाने के लिए तत्परता 
    •   टीम वर्क में विश्वास 
    •   स्वभाव में लापरवाही का न होना 
    •   सॉफ्ट स्किल्स में माहिर  

    प्रमुख संस्थान

    •   अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ http://www.amu.acin
    •   इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ  www.iul.ac.in
    •   यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, जयपुर  www.universityoftechnology.edu.in
    •   कोहिनूर कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज,मुंबई https://kcps.ac.in

Sunday, November 13, 2022

फिजियोथैरेपी में शानदार करियर,

 आजकल पैरा मेडिकल फील्ड युवाओं की रुचि काफी बढ़ रही है. इस वजह से फिजियोथेरेपी में करियर ही काफी संभावनाएं लगातार देखने को मिल रही हैं. कई ऐसी बीमारियों जिनका इलाज सिर्फ फिजियोथेरेपी के इस्तेमाल से किया जा रहा है. इसकी सबसे बाड़ी खासियत यह है कि इसका कोई भी साइड इफेक्ट नहीं है.

बता दें, फिजियोथेरेपी चिकित्सा विज्ञान की एक ऐसी शाखा है जिसकी मदद से शरीर के बाहरी हिस्से का इलाज आसानी से किया जाता है. फिजियोथेरेपी की मदद से कई लोगों के फिसिक को भी ठीक करने की कोशिश की जाती हैं. ये ज़्यादातर शरीर के ऐसे अंगों पर इस्तेमाल होता है जो सही से काम नहीं कर पाते.

फिजियोथेरेपी कोर्स
फिजियोथेरेपी में कैंडिडेट्स डिप्लोमा से लेकर पीएचडी तक की पढ़ाई कर सकते हैं. इसमें बैचलर कोर्स करने के लिए लगभग साढ़े चार साल तक का समय देना होता है. जिसके आखिरी के छह महीने में इस कोर्स के दौरान कैंडिडेट्स की इंटर्नशिप करवायी जाती है. वहीं मास्टर्स की बात करें तो ये कोर्स दो साल का होता है और इसके लिए कैंडिडेट्स के पास फिजियोथेरेपी में बैचलर्स की डिग्री का होना ज़रूरी है. इसमें करियर बनाने के लिए कैंडिडेट्स न्यूरोलॉजिकल फिजियोथेरेपी, स्पोर्ट्स फिजियोथेरेपी, पिडियाट्रिक फिजियोथेरेपी, ऑब्सेक्ट्रिक्स फिजियोथेरेपी, ऑर्थेपेडिक फिजियोथेरेपी, पोस्ट ऑपरेटिव फिजियोथेरेपी, कार्डियोवस्कुलर फिजियोथेरेपी में स्पेशलाइजेशन चुन सकते हैं.

कितनी होगी कोर्स की फीस
फिजियोथेरेपी कोर्स की फीस लगभग 30 हजार से शुरू होती है. जोकि अलग-अलग यूनिवर्सिटीज के नियम अनुसार अलग-अलग है. कई यूनिवर्सिटीज इस कोर्स के लिए स्कॉलरशिप भी प्रदान करवाती हैं. ताकि आर्थिक तंगी के चलते किसी छात्र को अपनी पढ़ाई बीच में न छोड़नी पड़े.

कितनी होगी सैलरी
इस कोर्स को पूरी तरह करने के बाद शुरूआती सैलरी 10 से 15 हजार रुपये महीने के बीच होगी. लेकिन अनुभव साथ इस क्षेत्र में पैसे भी ज्यादा मिलने लगते हैं. कई जगहों पर फिजियोथेरेपी इंटर्नशिप के दौरान ही पैसे मिलने शुरू हो जाते हैं. इसके अलावा एक अच्छा अनुभव होने के बाद खुद का क्लीनिक भी खोला जा सकता है, या फिर किसी बड़े हॉस्पिटल में फिजियोथेरिपिस्ट के तौर पर भी काम कर सकते हैं.

एंट्रेंस एग्जाम 
अगर फिजियोथेरेपी कोर्स में एडमिशन लेना है, तो सबसे पहले एंट्रेंस एग्जाम क्लियर करना होगा. इसमें अलग-अलग यूनिवर्सिटियां अलग-अलग समय पर अपने एंट्रेस एग्जाम आयोजित करती हैं. इसके लिए मार्च से लेकर जून महीने तक के बीच में फॉर्म भरा जाता है. इसके बाद एंट्रेंस एग्जाम में आए मार्क्स के आधार पर कॉलेज और यूनिवर्सिटी में एडमिशन होता है.

फिजियोथेरेपी कोर्स के लिए संस्थान
1. अपोलो फिजियोथेरेपी कॉलेज, हैदराबाद
2. पंडित दीनदयाल उपाध्याय इंस्टिट्यूट फॉर फिजिकली हैंडिकैप्ड, नई दिल्ली
3. इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ एजुकेशन एंड रिसर्च, पटना
4. पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़
5. एसडीएम कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी, कर्नाटक
6. महात्मा गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिकल एजुकेशन, केरल
7. के.जे. सौम्या कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी, मुंबई
8. डिपार्टमेंट ऑफ फिजिकल मेडिसिन एंड रिहैबिलिटेशन, तमिलनाडु
9. जे.एस.एस. कॉलेज ऑफ फिजियोथेरेपी, मैसूर

Tuesday, November 8, 2022

OT कोर्स क्या है

इस कोर्स के माध्यम से विद्यार्थी ऑपरेशन थिएटर में डॉक्टर के सहायक के रूप में कार्य कर सकता है। जिसमें ऑपरेशन थिएटर से संबंधित उपकरणों की जांच कर ऑपरेशन से पहले तैयार रखना तथा ऑपरेशन के दौरान मुख्य डॉक्टर की मदद करना आदि कार्य होते हैं।

विद्यार्थी इस कोर्स को लेकर काफी असमंजस में रहते हैं कि, यह कोर्स डिप्लोमा कोर्स है या डिग्री कोर्स है। इस प्रकार की और भी दुविधा विद्यार्थी के मन में होती हैं। जैसे कि

  • ओटी कोर्स क्या होता है
  • ओटी कोर्स कैसे करें
  • ऑपरेशन थियेटर टेक्निशियन कैसे बने
  • ओटी कोर्स फीस कितनी होती है
  • OT Full Form क्या है
  • OT Technician Course Duration क्या है

इस प्रकार के और भी बहुत सारे प्रश्न होते हैं। जो विद्यार्थी को इस कोर्स का चयन करने से पहले परेशान करते हैं।

इस आर्टिकल में विद्यार्थी के इन्हीं सभी सवालों का हिंदी में ( OT Course Details in Hindi) विस्तार पूर्वक जवाब दिया गया है। OT Assistant Syllabus, ओटी टेक्नीशियन टॉप कॉलेज आदि प्रकार की संपूर्ण जानकारी इस आर्टिकल में दी गई है।

इस आर्टिकल में आगे बढ़ते हुए सबसे पहले मुख्य सवाल कि ओटी कोर्स क्या है यह एक डिप्लोमा कोर्स है या फिर ग्रेजुएशन डिग्री कोर्स है के बारे में विस्तार पूर्वक जानते हैं।

ओटी कोर्स क्या है

Operation theatre technician कोर्स एक ऐसा कोर्स है, जिसे डिप्लोमा और ग्रेजुएशन डिग्री दोनों माध्यमों से किया जा सकता है। इस कोर्स में ऑपरेशन थिएटर से संबंधित कार्यों की शिक्षा प्रदान की जाती है। इस कोर्स को पूरा करने के पश्चात Operation theatre में सहायक के रूप में कार्य कर सकते हैं।

भारत में यह कोर्स डिप्लोमा तथा ग्रेजुएशन डिग्री दोनों में उपलब्ध है। जिन विद्यार्थियों के पास समय की कमी होती है। वह विद्यार्थी ग्रेजुएशन डिग्री की स्थान पर डिप्लोमा कोर्स diploma in operation theatre technology को प्राथमिकता देते हैं। क्योंकि इसमें सिर्फ 2 वर्ष का समय लगता है ।

ओटी टेक्निशियन कोर्स को ग्रेजुएशन डिग्री के रूप में करने के लिए बीएससी ग्रेजुएशन डिग्री में ओटी टेक्नीशियन विशेषज्ञता का चयन करना होता है। इसे करने में 3 वर्ष का समय लगता है।

ओटी टेक्निशियन कोर्स क्या होता है की जानकारी प्राप्त करने के बाद विद्यार्थी के लिए OT Full Form के बारे में विस्तार पूर्वक जानना जरूरी है।

आगे OT Course Details in Hindi में ओटी फुल फॉर्म के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दे रहे हैं।

ओटी कोर्स कौन कर सकता है


जैसा कि आप ऊपर जान ही चुके हैं कि इस कोर्स को दो माध्यमों से किया जा सकता है। भारत में यह कोर्स डिप्लोमा और डिग्री दोनों के रूप में कराया जाता है।
दोनों ही कोर्स में एडमिशन लेने के लिए कुछ मुख्य बिंदु नीचे दिए गए हैं। जिनके आधार पर विद्यार्थी OT Technician Course में प्रवेश ले सकता है।

  • विद्यार्थी का किसी भी मान्यता प्राप्त बोर्ड से बारहवीं कक्षा का उत्तीर्ण होना जरूरी होता है।
  • 11वीं और 12वीं कक्षा में विद्यार्थी के पास विज्ञान के विषयों का होना अनिवार्य है।
  • प्रवेश लेते समय विद्यार्थी की आयु कम से कम 17 वर्ष होनी आवश्यक है।
  • कुछ संस्थान में इस कोर्स में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा भी देनी होती है।
  • अन्य संस्थानों में 12वीं कक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर प्रवेश दिया जाता है।

जो विद्यार्थी ऊपर दिए गए सभी पड़ाव को पार कर लेता है उसको इस कोर्स में प्रवेश ले सकता है।

OT Course Details in Hindi की जानकारी को आगे बढ़ाते हुए अब बात कर लेते हैं OT Technician Course Duration के बारे में। यानी ओटी कोर्स करने में कितना समय लगता है इसके बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

ओटी टेक्निशियन कोर्स में कितना समय लगता है

Operation theatre technician कोर्स की ग्रेजुएशन डिग्री करने में 3 वर्ष का समय लगता है। जबकि ओटी टेक्निशियन कोर्स का डिप्लोमा करने में 2 वर्ष का समय लगता है।

ओटी टेक्नीशियन डिप्लोमा के बाद कोर्स


जो विद्यार्थी OT Technician Diploma Course करने के बाद हायर एजुकेशन के लिए जाना चाहते हैं। उनके लिए भारत में ग्रेजुएशन डिग्री के रूप में बहुत सारे कोर्स उपलब्ध है। कुछ मुख्य कोर्सों के नाम नीचे दिए गए है।

  • बीएससी इन ऑपरेशन थियेटर टेक्नोलॉजी ( Bsc in Operation Theatre Technology)
  • बीएससी इन मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी ( Bsc in Medical Lab Technology)
  • बीएससी इन ऑपरेशन थिएटर एंड एनेस्थेसिया मैनेजमेंट ( Bsc in Anaesthesia Technology)
  • बीएससी इन सर्जरी टेक्नोलॉजी ( Bsc in Surgery Technology)

यह कोर्स उन विद्यार्थियों के लिए थे जो डिप्लोमा के बाद आगे ग्रेजुएशन डिग्री करना चाहते हैं। लेकिन जो विद्यार्थी ऑपरेशन थियेटर टेक्निशियन विशेषज्ञता के साथ बीएससी डिग्री करते हैं। तथा बाद में आगे और पढ़ाई करना चाहते हैं। उन के लिए नीचे जानकारी दी गई है

Friday, November 4, 2022

नेचुरोपैथी में कैरियर

अगर आपका इंजीनियर Career in Naturopathy: अकाउंटेंट न बन कर कुछ हटके कैरियर बनाना private job चाहते हैं तो आज हम career tips आपको बताने जा रहे हैं। एक नए कैरियर लाइन के बारे में। अगर आपका प्राकृतिक चीजों की ओर रूझान है तो आप नेचुरोपैथी में शानदार कैरियर अपना सकते हैं। तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं।

आखिर क्या है नेचुरोपैथी – Naturopathy
यह उपचार की एक ऐसी पद्धति है जिसमें बिना किसी अंग्रेजी दवाई से नहीं बल्कि प्राकृतिक चीजों और औषधियों से गंभीर बीमारी का उपचार किया जाता है। इस नेचुरोपैथी कोर्स में स्नातक करने में साढ़े पांच वर्ष लग जाएंगे। इसकी पढ़ाई में प्राकृतिक औषधियों का अध्ययन कराया जाता है। जिसे सरकार द्वारा भी बढ़ावा दिया जाता है।

नेचुरोपैथी का स्कोप क्या है – what is Naturopathy

  • अगर आपने नेचुरोपैथी का कोर्स पूरा कर लिया है तो समझ जाइए कि आप उन अस्पताल, इंस्टीट्यूट, पर्सनल क्लीनिक, वृद्ध आश्रम, मेडिटेशन और योग सेंटर में काम कर सकते हैं।
  • इन जगहों पर नेचुरोपैथी फिजिशियन बनकर सालाना 8 से 9 लाख रुपये आसानी से कमा सकते हैं।
  • नेचुरोपैथी योगा थेरेपिस्ट ट्रेनर बनके भी 2 से 3 लाख रुपये कमाए जा सकते हैं।
  • पोषण विशेषज्ञ बन 3 से 4 लाख रुपये की कमाई कर सकते हैं।

कोर्स करने के लिए कौन सी योग्यता होनी चाहिए – qualification for Naturopathy course 

  • यदि कोई छात्र नेचुरोपैथी कोर्स में डिप्लोमा करना चाहता है तो उसके लिए, नेचुरोपैथी कोर्स में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट, स्नातक, पोस्ट ग्रेजुएट और मास्टर्स कर सकते हैं।
  • नेचुरोपैथी में स्नातक कोर्स का नाम बैचलर ऑफ नेचुरोपैथी एंड योगिक साइंस बीएनवाईएस है।
  • बीएनवाईएस कोर्स को पूरा करने में 5ः5 साल लगेंगे।
  • जिसमें छह महीने का इंटर्नशिप शामिल है।
  • बीएनवाईएस कोर्स को करने के लिए किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से पीसीबी विषय में कक्षा 12वीं को 50 फीसदी नंबर से पास करना होगा।
  • इस कोर्स को करने में 3 से 4 लाख रुपये खर्च आएंगे।

इन संस्थानों से करें नेचुरोपैथी की पढ़ाई –  institute of Naturopathy

1: इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेजए बनारस हिंदू यूनिवर्सिटीए उत्तर प्रदेश
2: डॉ एनटीआर स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय,आंध्र प्रदेश
3: स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थानए कर्नाटक
4: पंडित दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्वास्थ्य विज्ञान और छत्तीसगढ़ के आयुष विश्वविद्यालय
5: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय जोधपुर, राजस्थान

Monday, October 31, 2022

M.Sc.बायोटेक्नोलॉजी

M.Sc.बायोटेक्नोलॉजी एक postgraduate कोर्स है। जो छात्र विज्ञान और रिसर्च जैसे क्षेत्रों में काम करना चाहते है उनके लिए यह एक अच्छा विकल्प है। इसकी फुल फॉर्म Master of Science in Biotechnology है। यह एक 2 वर्षीय पाठ्यक्रम है जो कि 4 सेमेस्टरों के रूप में आयोजित किया जाता है।

● अनिवार्यता (Eligibility) – M.Sc.बायोटेक्नोलॉजी कोर्स में प्रवेश के लिए छात्र का किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से 12वी में 50 से 60% अंक के साथ उत्तीर्ण होना अनिवार्य है इसके साथ ही छात्र 12वी में विज्ञान संकाय से होना चाहिये और उसके पास physics, chemistry, biology या mathematics विषय होने चाहिए।

आप किसी मान्यता प्राप्त महाविद्यालय से 50% अंको के साथ विज्ञान संबंधित विषय से ग्रेजुएट होने चाहिए।

BAMS, B.pharm, BHMS से ग्रेजुएट छात्र भी इसमें प्रवेश के लिए elligible होते हैं। M.Sc. biotechnology में एडमिशन मेरिट और इंट्रैन्स एग्जाम के आधार पर होता है।

● फीस (Fees) – सरकारी और प्राइवेट कॉलेज के अनुसार आपके कोर्स की फीस निर्धारित होती है। तो आपके पूरे कोर्स की फीस लगभग 40 हजार से 2 लाख तक हो सकती है।

● कैरियर (Job & Career) – अगर आप आगे पढ़ाई करना चाहते है इस क्षेत्र में तो P.hd in biotechnolgy भी कर सकते हैं।

यदि आप जॉब में कैरियर बनाना चाहते हैं तो आप प्राइवेट और सरकारी दोनो सेक्टर में काम कर सकते हैं। M.Sc. biotechnology डिग्री प्राप्त करने के बाद आप biochemist, lab technician, research scientist, biotech analyst आदि की जॉब कर सकते हैं।

इनके अलावा आप मेडिकल, फ़ूड सेक्टर , केमिकल सेक्टर ,रिसर्च सेंटर, लैबोरेटरी, एजुकेशनल इंस्टिट्यूट, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी, एग्रीकल्चर विभाग, एनिमल हसबैंडरी, पर्यावरण विभाग आदि में जॉब कर सकते हैं।

● सैलरी (Income) – M.Sc बायोटेक्नोलॉजी के बाद जॉब में सैलरी प्रत्येक पोस्ट के आधार पर अलग अलग होती है यह सैलरी 3 लाख से 9 लाख या उससे ज्यादा प्रतिवर्ष भी होती है।

Tuesday, October 25, 2022

वॉटर मैनेजमेंट में बनाएं करियर

विश्व का बहुत बड़ा भाग जल संकट से जूझ रहा है। ऐसे में यह तक कहा जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए लड़ा जा सकता है। जल संचयन मौजूदा समय की सबसे बड़ी मांग है। जल संरक्षण व प्रबंधन पर अब सरकारें और औद्योगिक प्रतिष्ठान भी ज्यादा जोर दे रहे हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए वॉटर मैनेजमेंट के प्रोफेशनल्स की जरूरत बढ़ रही है। ये ऐसे प्रशिक्षित लोग होते हैं, जिन्हें वॉटर हार्वेस्टिंग, वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट तथा वॉटर रिसाइक्लिंग की अच्छी समझ होती है। उधर, भूजल के स्तर को सुधारने के लिए आधुनिक तकनीकों की भी मांग बढ़ रही है।

केंद्रीय जल संसाधन विभाग की ओर से जारी राष्ट्रीय जल नीति में भी पानी के कुप्रबंधन पर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में ज्यादा से ज्यादा वैज्ञानिक प्लानिंग पर जोर देने की बात कही गई है। जाहिर-सी बात है कि दिनो-दिन बढ़ते जल संकट को दूर करने के लिए वॉटर साइंटिस्ट, एन्वायर्नमेंट इंजीनियर, ट्रेंड वॉटर कंजर्वेशनिस्ट या कहें विभिन्न प्रकार के वॉटर मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स की मांग बनी रहेगी।

जॉब के अवसर

ग्रीन जॉब्स मार्केट में आकर्षक जॉब्स के अवसर बहुत हैं। वॉटर मैनेजमेंट में ट्रेंड प्रोफेशनल्स की जल प्रबंधन से जुड़े सरकारी विभागों में तथा वॉटर प्रोजेक्ट्स में खूब मांग है। निजी क्षेत्र में भी पेयजल आपूर्ति तथा वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट से संबंध‍ित कार्यों के लिए प्रशिक्षित लोगों को ही हायरिंग में तवज्जो दी जा रही है। बड़े-बड़े उद्योग, रियल एस्टेट सेक्टर और एनजीओ भी वॉटर हार्वेस्टिंग डिजाइनिंग तथा जल संचयन के लिए वॉटर मैनेजमेंट की पृष्ठभूमि वाले प्रोफेशनल्स की सेवाएं ले रहे हैं। आप चाहें, तो कंसल्टेंट बनकर भी करियर बना सकते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की वॉटर ट्रीटमेंट सिस्टम्स के संचालन और देखरेख के लिए मांग लगातार बढ़ रही है।

कोर्स व क्वॉलिफिकेशन

जल प्रबंधन और संरक्षण पर आधारित कई तरह के कोर्स देश के विभिन्न सरकारी और निजी संस्थानों में संचालित हो रहे हैं। युवा वॉटर साइंस, वॉटर कंजर्वेशन, वॉटर मैनेजमेंट, वॉटर हार्वेस्टिंग, वॉटर ट्रीटमेंट तथा वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट जैसी किसी भी स्ट्रीम में कोर्स करके अपना करियर बना सकते हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में वॉटर हार्वेस्टिंग एंड मैनेजमेंट नाम से ऐसा ही एक सर्टिफिकेट कोर्स संचालित हो रहा है। 10वीं पास युवा यह कोर्स कर सकते हैं। अगर आप बायोलॉजी विषय में 12वीं पास हैं, तो एक्वा साइंस या वॉटर साइंस में बीएससी और एमएससी भी कर सकते हैं। एग्रीकल्चर/ सिविल इंजीनियरिंग, केमिकल इंजीनियरिंग, जियोलॉजी, एन्वायर्नमेंटल स्टडीज या बायोलॉजी में बैचलर्स की पढ़ाई करके वॉटर साइंटिस्ट, एन्वायर्नमेंट इंजीनियर, बायोलॉजिस्ट, हाइड्रो जियोलॉजिस्ट या जियोलॉजिस्ट बन सकते हैं।

सैलरी कितनी?

वॉटर मैनेजमेंट में डिप्लोमाधारी युवा शुरूआत में आसानी से 15 से 25 हजार रुपए प्रति माह सैलरी पा सकते हैं। वहीं, वॉटर साइंटिस्ट या इंजीनियर को भी 30 से 40 हजार रुपए प्रति माह की सैलरी मिल जाती है। 

ग्रुप डिस्‍कशन में इन बातों पर अमल करेंगे तो फायदे में रहेंगे

क्या है वॉटर मैनेजमेंट? 

देश-दुनिया में वॉटर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट की कोशिश कई स्तरों पर चल रही है ताकि दिनो-दिन गहराते जल संकट से पार पाया जा सके। इसके लिए नदियों और भूजल में बढ़ रहे प्रदूषण को कम करने से लेकर भूजल स्तर सुधारने, परंपरागत जल स्रोतों को सुरक्षित रखने तथा आधुनिक तकनीकों के सहारे वॉटर हार्वेस्टिंग की विध‍ियां विकसित करने व वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट जैसे अनेक उपायों पर जोर दिया जा रहा है। कम पानी से कृषि की उत्पादकता बनाए रखने का प्रयास भी इसी मुहिम का हिस्सा है। 

प्रमुख संस्थान

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
  • अन्ना यूनिवर्सिटी, तमिलनाडु
  • गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, रायपुर
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की
  • दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली


Sunday, October 16, 2022

आर्किटेक्चर इंजीनियरिंग में करियर

यदि आप आर्किटेक्चर और सिविल इंजीनियरिंग के बीच चुनाव को लेकर बहुत दुवि‍धा में हैं तो हम आपकी मदद कर सकते हैं।

रियल एस्टेट सेक्टर, खास तौर पर कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री इन दोनों प्रोफेशन पर पूरी तरह से आश्रित रहती है: एक आर्किटेक्ट्स और दूसरे सिविल इंजीनियर्स। कंसट्रक्शन बिजनेस का जहां तक संबंध है, आर्किटेक्ट्स और सिविल

इंजीनियर्स इनके अभिन्ना हिस्से हैं। क्योंकि ये दोनों ही खूबसूरत और सुविधाजनक निर्माण कार्य करने में मदद कर सकते हैं। प्रकृति में एक ही जैसे इन दोनों प्रोफेशंस के लिए इसी इंडस्ट्री में काम के अवसर हैं। और शायद इसीलिए विद्यार्थी दोनों में से क्या चुनें इसे लेकर पसोपेश में पड़ जाते हैं।

ऐसे सीख सकते हैं 'आर्ट ऑफ लि‍सनिंग'

एक बात और भी है कि दोनों के बीच बहुत सारी समानताएं भी हैं। लेकिन इसके साथ ही दोनों के बीच बहुत सूक्ष्म लेकिन बहुत महत्वपूर्ण अंतर भी है। इन्हीं समानताओं और असमानताओं के प्रकाश में दोनों में से किसका चयन किया जाना चाहिए और क्यों इसका जवाब हम ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं।

स्टूडेंट्स की मदद करने के लिए और उनकी रुचि के अनुसार निर्णय करने के लिए हमने विषय का क्षेत्र, परिभाषा, काम करने की प्रकृति, संभावित आय, अच्छे कॉलेज और कुछ दूसरी चीजों की सूचनाएं हमने जमा की हैं।

विषय की परिभाषा 

एक तरफ सिविल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर दोनों ही अपने कोर्स और कंटेट में एक जैसी ही लगते हैं, तब बात इनकी परिभाषाओं की होती है। दोनों के बीच बहुत सारे फर्क हैं।

आर्किटेक्चर: आर्किटेक्चर शब्द की उत्पत्ति 'आर्किटेक्टोन" से हुई है। जिसका मतलब है 'चीफ-बिल्डर" या 'मुख्य भवन निर्माता"। जब इस शब्द की उत्पत्ति हुई होगी तब हो सकता है कि आर्किटेक्ट्स ही बिल्डर हुआ करते होंगे। लेकिन जब बात असली परिभाषा की होती है तो आर्किटेक्चर बिल्डिंग बनाने से ज्यादा कलात्मकता की मांग करता है। यह एक सृजनात्मक क्षेत्र हैं और यह किसी बिल्डिंग को बनाने की कला और विज्ञान दोनों से संबंद्ध होता है।

सिविल इंजीनियरिंग: सिविल इंजीनियरिंग एक बहुत वृहद् शब्द है। इसमें भवन के डिजाइन, कंस्ट्रक्शन और

उसके प्राकृतिक और भौतिक पर्यावरण के रखरखाव का काम शामिल है। इसमें सड़कें, पुल, नहरें, बांध और भवन हर चीज शामिल हैं। दूसरे शब्दों में सिविल इंजीनियरिंग भवन निर्माण के दूसरे संरचनात्मक तत्वों पर फोकस करता है। तय करता है कि कौन-सा मटेरियल का इस्तेमाल किया जाना है, संरचना लंबे समय तक कैसे टिकी रह सकती है और उसके लिए क्या-क्या प्रयास करने होंगे?

बहुत साधारण शब्दों में आर्किटेक्ट्स दी हुई जगह का सबसे अच्छा इस्तेमाल करते हुए अपनी कल्पनाशीलता और गणितीय कौशल से ज्यादा सुविधाजनक बनाता है। इसके उलट एक सिविल इंजीनियर असल में आर्किटेक्ट द्वारा दी गई डिजाइन को असेस करता है कि वह समय पर और उस जगह में उसी तरह का निर्माण करते हुए उतना मजबूत हो पाएगा? इस दृष्टि से एक पक्ष कलात्मक है और दूसरा व्यवहारिक।

क्या है दोनों विषयों के क्षेत्र का विस्तार?

विषय का क्षेत्र संभवत: सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अंतर है आर्किटेक्चर और सिविल इंजीनियरिंग के बीच का।

आर्किटेक्चर बिल्डिंग की डिजाइन और संरचना में उसकी व्यवहारिकता और सौंदर्य से संबंध रखता है। आर्किटेक्चर मूलभूत संरचना के तत्वों के साथ बिल्डिंग के सुंदर और व्यावहारिक होने पर जोर देता है।

दूसरी तरफ सिविल इंजीनियर्स उसकी आर्किटेक्चरल डिजाइन के प्लान को लागू करता है और देखता है कि उन्हें किस तरह से एक्जिक्यूट किया जा सकता है। सिविल इंजीनियर उसके संरचनात्मक ढांचे की डिजाइन

पर फोकस करता है और एक्स्ट्रीम कंडीशन्स में उसके रखरखाव और उसकी मजबूती को निश्चित करता है।

कोर्स और एलिजिबिलिटी 

आमतौर पर बी. आर्क का पांच साल का स्नातक कोर्स पूरे देश के आर्किटेक्चर स्कूल में करवाया जाता है। काउंसिल ऑफ आर्किक्टेक्चर द्वारा आयोजित कॉमन इंट्रेंस टेस्ट के माध्यम से एडमिशन होता है। कंपलसरी सब्जेक्ट की जहां तक बात है, वे सब बिल्कुल इंजीनियरिंग की तरह ही होते हैं। बी. आर्क के स्टूडेंट को फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्य जैसे विषयों के साथ 12 वीं बोर्ड की परीक्षा पास करनी होती है। स्नातक कोर्स को पूरा करने के बाद बी. आर्क. के स्टूडेंट्स आर्किटेक्चर में दो साल का स्नातकोत्तर का कोर्स भी कर सकते हैं। सिविल इंजीनियरिंग करने वालों के लिए आमतौर पर दो रास्ते हैं। पहला डिग्री कोर्स कर लें, या फिर कम अवध‍ि का डिप्लोमा कोर्स कर लें। सिविल इंजीनियर बनना चाहने वालों के बीच सिविल इंजीनियरिंग ब्रांच से बी. टेक. करना बहुत लोकप्रिय है।

यह कोर्स पूरे देश के इंजीनियरिंग कॉलेजों में उपलब्‍ध होता है। इन कॉलेजों में एडमिशन जीईई मेन्स, एनआईटी,

आईआईआईटी और जीएफटीआई या फिर आईआईटी और आईएसएम-धनबाद में एडमिशन जेईई एडवांस

के परीक्षा में मेरिट के आधार पर होता है। जो सिविल इंजीनियरिंग करना चाहते हैं उनका 12 वीं बोर्ड में

फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथ्य लेकर पास होना आवश्यक है। 

रोजगार के अवसर व पैकेज

सिविल इंजीनियरिंग और आर्किटेक्चर जैसे विषय को चुनने की एक सबसे बड़ी वजह ही यह है कि इसमें रोजगार के अवसर भी ज्यादा है और पैकेज भी अच्छा मिलता है। फिर भी दोनों कोर्स के बीच कौन-सा कोर्स चुना जाए इसे लेकर कंफ्यूजन भी कम नहीं है। 

आर्किटेक्चर: आर्किटेक्ट अलग-अलग कंस्ट्रक्शन कंपनियों में डिजाइनर के तौर पर काम करता है। उसकी पहली जिम्मेदारी अपने क्लाइंट की जरूरत को समझना और उस हिसाब से व्यावहारिक, सुविधाजनक और सुंदर डिजाइन तैयार करना है। प्राइवेट बिल्डर्स के साथ-साथ सरकारी एजेंसी भी पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट्स, नेशनल बिल्डिंग ऑर्गेनाइजेशन, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर्स और अन्य में भी आर्किटेक्ट्स की जरूरत हुआ करती है। जहां तक वेतन की बात है तो यह 25 से 30 हजार महीने से शुरू होता है और यह आपके कौशल और अनुभव के आध्ाार पर एक आर्किटेक्ट 1 लाख रुपए महीना तक अर्न कर सकता है। 

सिविल इंजीनियरिंग: सिविल इंजीनियरिंग में आर्किटेक्ट्स से ज्यादा स्कोप है। सिविल इंजीनियर्स के पास सरकारी के साथ-साथ प्राइवेट संस्था के लिए भी बेहतरीन काम करने के अवसर होते हैं। रोजगार के अवसरों की जहां तक बात है, प्राइवेट संस्था में तो अवसर हैं ही, सरकारी संस्थाओं में भी जरूरत होती है। सरकारी संस्थाओं के साथ-साथ सिविल इंजीनियर्स की जरूरत तो इंडियन आर्मी में भी होती है। इसके अलावा वे अपनी खुद की इंजीनियरिंग कंसल्टेंसी फर्म भी स्थापित कर सकते हैं। इसके साथ ही टीचिंग में भी बहुत मांग है। जिनके पास स्वयं लिखने का कौशल है वे अपने ही क्षेत्र में तकनीकी लेखन कर सकते हैं। आपका कौशल और आपकी योग्यता के आधार पर एक सिविल इंजीनियर की अर्निंग 4 से 8 लाख रुपए तक हो सकती है। आर्किटेक्ट्स की तरह की सिविल इंजीनियर्स को भी अनुभव और कौशल के आधार पर बेहतर अर्निंग हो सकती है।