किसी तरह की सर्जरी से पहले मरीज को पहले बेहोश किया जाता है, ताकि उसे ऑपरेशन के वक्त होने वाले दर्द का एहसास न हो। अब आधुनिक मेडिकल साइंस में शरीर के खास हिस्से को ही सुन्न करने का चलन चल पड़ा है, जिसका उपचार सर्जरी के जरिये किया जाना होता है। इस तरह से मरीज को बेहोश या सुन्न करने के लिए एनिस्थीसिया का प्रयोग आमतौर पर किया जाता है। किस मरीज को उसकी सेहत के अनुसार कितनी कम या ज्यादा मात्रा में एनिस्थीसिया का डोज दिया जाए, इसका निर्धारण विशेषज्ञों द्वारा किया जाता है। एनिस्थीसिया डिप्लोमाधारकों द्वारा इन्हीं विशेषज्ञों की सहायता की जाती है।
महत्व
सर्जरी अथवा उपचार की विभिन्न स्थितियों में एनिस्थीसिया का प्रयोग मजबूरीवश किया जाता है। सामान्य डॉक्टर या सर्जन द्वारा इसकी मात्रा का निर्धारण नहीं किया जाता है, बल्कि इसी फील्ड के ट्रेंड लोगों द्वारा यह जिम्मेदारी निभाई जाती है। जरा सी लापरवाही मरीज को कोमा में ले जाने के लिए काफी होती है। इसलिए मेडिकल स्पेशियलाइजेशन के इस दौर में एनिस्थीसिया के क्षेत्र से जुड़े डॉक्टर्स या पैरा मेडिकल स्टाफ की उपस्थिति को सर्जरी के दौरान नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है
ट्रेनिंग
यह दो वर्षीय डिप्लोमा स्तर का कोर्स है और इसमें बायोलॉजी तथा अन्य साइंस विषयों सहित कम से कम 50 प्रतिशत अंक बारहवीं में लाने वाले युवा प्रवेश ले सकते हैं। अधिकांश संस्थानों द्वारा मेरिट के आधार पर दाखिले दिए जाते हैं। यह कोर्स, विशेष तौर,पर उन युवाओं के लिए अत्यंत उपयोगी कहा जा सकता है, जो अपना भविष्य इसी क्षेत्र में विशेषज्ञ के तौर पर बनाना चाहते हैं। कोर्स के दौरान इस विषय के महत्व और मेडिकल साइंस में इसके विभिन्न प्रकार के उपयोगों से छात्रों को अवगत करवाया जाता है। एनिस्थीसिया की अधिकतम कितनी मात्रा किस तरह के रोगियों में दी जानी चाहिए, इससे जुड़े सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पहलुओं से छात्रों को ट्रेनिंग के दौरान भली-भांति परिचित करवाया जाता है। सिलेबस में ह्यूमन एनाटॉमी एंड फिजियोलॉजी, फार्माकोलॉजी, एनिस्थीसिया मैनेजमेंट, मॉनिटरिंग ऑफ एनिस्थीसिया, रिकॉर्ड कीपिंग इन एनिस्थीसिया, स्टैंडर्ड्स इन एनिस्थीसिया, पेन मैनेजमेंट आदि पहलुओं पर एक्सपर्ट्स द्वारा जानकारी दी जाती है। इसी विषय में आगे पढ़ने के इच्छुक युवाओं के लिए बीएससी और उच्च शिक्षा की संभावनाएं देश-विदेश में हो सकती हैंनौकरियां
कहने की जरूरत नहीं कि बड़े और नामी हॉस्पिटल्स के अलावा ऐसे प्रोफेशनल्स के लिए नर्सिंग होम्स,मैटरनिटी होम्स तथा छोटे- बड़े मेडिकल सेंटर्स में भी नौकरी की संभावनाएं हो सकती हैं। इनकी सेवाएं फ्रीलांस आधार पर कभी-कभी हॉस्पिटल्स द्वारा ली जाती हैं। फार्मास्युटिकल कंपनियों में भी ऐसे एक्सपर्ट्स की जरूरत पड़ती है। प्रोफेशनल अनुभव और कार्यकुशलता के आधार पर इनकी फीस का निर्धारण किया जाता है। हायर एजुकेशन के बाद मेडिकल कॉलेज और यूनिवर्सिटी में भी टीचिंग जॉब्स के अवसर मिल सकते हैं। रिसर्च, एक अन्य कार्यक्षेत्र है, जहां पर ऐसे पारंगत लोगों के लिए करियर संवारने के मौके हो सकते हैं।
चुनौतियां
- अत्यंत जिम्मेदारी भरा पेशा
- दिन-रात कभी भी कॉल पर जाना पड़ सकता है और मनाही की गुंजाइश नहीं के बराबर
- जॉब्स की संख्या बहुत अधिक नहीं
- अधिकतर प्राइवेट हॉस्पिटल्स या मेडिकल संस्थानों में रोजगार
स्किल्स
- बायोलॉजी और साइंस में दिलचस्पी
- मरीज के प्रति सहानुभूतिपूर्ण सोच
- आपात स्थितियों में जान बचाने के लिए तत्परता
- टीम वर्क में विश्वास
- स्वभाव में लापरवाही का न होना
- सॉफ्ट स्किल्स में माहिर
प्रमुख संस्थान
- अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ http://www.amu.acin
- इंटीग्रल यूनिवर्सिटी, लखनऊ www.iul.ac.in
- यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, जयपुर www.
universityoftechnology.edu.in - कोहिनूर कॉलेज ऑफ पैरामेडिकल साइंसेज,मुंबई https://kcps.ac.
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