क्या
अनंत आकाश आपको अपनी ओर आकर्षित करता है? क्या आपमें ब्रह्माण्ड के रहस्य
सुलझाने का जज्बा है? क्या धैर्य और बुद्धि आपके प्लस पॉइंट हैं? यदि हां,
तो अंतरिक्ष विज्ञान आपको पुकार रहा है। भारत ने इस क्षेत्र में जो
उपलब्धियां दर्ज की हैं, उन्हें देखते हुए देश ही नहीं, विदेशों में भी
भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की खासी मांग है।
उपग्रह
प्रक्षेपण (सैटेलाइट लॉन्चिंग) का राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार
भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए खुलने से अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र
में रोजगार के बेहतरीन अवसर निर्मित हो गए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान
संगठन (इसरो) न केवल भारत के उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक स्थापित कर
रहा है, बल्कि वह विकसित देशों के उपग्रह भी नियमित रूप से अंतरिक्ष में
सफलतापूर्वक स्थापित कर रहा है। गौरतलब है कि वर्ष 1999 से लेकर अब तक इसरो
ने अलग-अलग देशों के 45 उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किए हैं। इसी
प्रकार 27 अगस्त 2015 को इसरो के वैज्ञानिकों ने स्वदेश निर्मित
जीएसएलवी-डी6 रॉकेट से अपने नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-6 को उसकी कक्षा में
सफलतापूर्वक स्थापित किया। यह प्रक्षेपण जिस जीएसएलवी-डी6 रॉकेट से किया
गया, उसमें स्वदेश निर्मित क्रायोजेनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है।
पिछले वर्ष 24 सितंबर को इसरो के वैज्ञानिकों ने मंगलयान को मंगल ग्रह की
कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। पहले ही प्रयास में यान को मंगल की
कक्षा में स्थापित करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है। यह
करिश्मा भारत के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों द्वारा ही किया गया है। इस प्रकार की
गौरवशाली उपलब्धियों के चलते भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की भारत ही
नहीं, विश्व के विकसित देशों में भी भारी मांग है।
अंतरिक्ष विज्ञान का संसार
अंतरिक्ष
विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत पृथ्वी से
परे करोड़ों ग्रहों, उपग्रहों, तारों, धूमकेतुओं, आकाशगंगाओं एवं अन्य
अंतरिक्षीय पिंडों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा अंतरिक्ष विज्ञान के
अंतर्गत उन नियमों एवं प्रभावों का भी अध्ययन किया जाता है, जो इन्हें
संचालित करते हैं।
अंतरिक्ष
विज्ञान में करियर उन हजारों रहस्यों से पर्दा उठाने का अवसर भी होता है,
जो अभी तक अनसुलझे हैं। यह न केवल वैज्ञानिक स्वभाव की परीक्षा होती है,
बल्कि आपकी जिज्ञासाएं भी स्तर-दर-स्तर शांत होती जाती हैं। इसे अपना करियर
चुनने वाले जहां देश के 'बेस्ट ब्रेन' कैटेगरी में शुमार किए जाते हैं,
वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बुद्धिजीवी के रूप में उनकी विशिष्ट पहचान
बनती है।
कौन-सा कोर्स?
अंतरिक्ष
विज्ञान में करियर बनाने के लिए सबसे पहले आपको 11वीं कक्षा में गणित विषय
समूह लेना होगा। 12वीं गणित समूह से उत्तीर्ण करने के उपरांत आपको बीएससी
की डिग्री लेनी होगी, जहां आपके विषयों में फिजिक्स एवं गणित भी होना जरूरी
है। साइंस से स्नातक होने के बाद आप एस्ट्रोनॉमी थ्योरी या एस्ट्रोनॉमी
ऑब्जर्वेशन कोर्स चुन सकते हैं। वहीं मास्टर्स डिग्री के बाद विशिष्ट
कोर्सेज में प्रवेश लिया जा सकता है।
यदि
आप बारहवीं के बाद इलेक्ट्रिकल/ इलेक्ट्रॉनिक्स/ इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन
में बीई करते हैं, तो आप इंस्ट्रूमेंट एस्ट्रोनॉमी या एक्सपेरिमेंटल
एस्ट्रोनॉमी के क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ने पर
आगे एस्ट्रोनॉमी में पीएचडी भी कर सकते हैं। अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र
में देश में केवल मास्टर स्तर व पीएचडी प्रोग्राम ही विश्वविद्यालयों में
सामान्यत: उपलब्ध हैं। हां, एक वर्षीय ज्वॉइंट एस्ट्रोनॉमी प्रोग्राम
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू चलाती है। यह प्रोग्राम इंडियन
इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट और टाटा
इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई के साथ मिलकर चलाया जाता है। कोर्स
की समाप्ति के बाद आपको इन्हीं इंस्टीट्यूट्स में से एक में पीएचडी की भी
ऑफर दी जाती है। टीआईएफआर, मुंबई और इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर
एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे, ये दोनों ऐसे संस्थान हैं, जहां आप
प्रमुख संस्थान न रमण रिसर्च इंस्टीट्यूट, बेंगलुरू न इंडियन इंस्टीट्यूट
ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलुरू न मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी, मदुरै न पंजाब
यूनिवर्सिटी, पटियाला न फिजिक्स रिसर्च लैब, अहमदाबाद न महात्मा गांधी
यूनिवर्सिटी, कोट्टयम न डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर मराठवाड़ा विश्वविद्यालय,
औरंगाबाद न स्वामी रामानंद तीर्थ यूनिवर्सिटी, नांदेड़ न उस्मानिया
विश्वविद्यालय, हैदराबाद न शिवाजी विश्वविद्यालय, कोल्हापुर न लखनऊ
विश्वविद्यालय, लखनऊ न चेन्नई विश्वविद्यालय, चेन्नई न नेशनल सेंटर फॉर
रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे न इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड
एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे। कॉस्मोलॉजी में रिसर्चर के रूप में करियर बना सकते
हैं।
शुरूआत में आपको 2 वर्षीय जूनियर रिसर्च फैलोशिप और बाद में सीनियर रिसर्च फैलोशिप के लिए चुना जाता है।
ये गुण जरूरी
आकाश
में तारों के पैटर्न, उनकी हलचल आदि का अध्ययन करना एक लंबा, बहुत समय
लेने वाला एवं पेचीदा काम है। इसलिए धैर्य इस पेशे का पहला व सबसे जरूरी
गुण भी है। अगली बेहद जरूरी विशेषता आपका जिज्ञासु होना है। इस फील्ड में
पूरे आत्मविश्वास और उत्साह से रहस्यमयी प्रश्नों के उत्तर तलाशने होते
हैं। आपमें चीजों के प्रति साइंटिफिक एप्रोच के अलावा प्रोग्रामिंग स्किल
भी बेहतरीन होनी जरूरी है।
पढ़ाई के बाद क्या?
अंतरिक्ष
विज्ञान में कोर्स करने के उपरांत आप चाहें तो किसी भी रिसर्च इंस्टीट्यूट
में बतौर रिसर्च साइंटिस्ट काम कर सकते हैं। आपको भारतीय अंतरिक्ष
अनुसंधान संगठन (इसरो) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी रोजगार मिल सकता
है। कुछ-एक नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशंस में स्वयं खगोलीय उपकरण बनाने का
मौका मिलता है, साथ ही साथ एस्ट्रोनॉमी प्रोजेक्ट में भी काम करने का अवसर
मिलता है। अगर आप घूमने के शौकीन हैं, तो आपको देश-विदेश घूमने के बहुत
सारे मौके मिलेंगे, क्योंकि सेमिनार व कांफ्रेंस आयोजनों में आए दिन
विभिन्न स्थानों पर जाना जो होता है। रिसर्च वर्क समाप्ति के बाद रोजगार के
अवसर कहीं अधिक बढ़ जाते हैं। बहुत-से सरकारी संस्थानों में एस्ट्रोनॉमर की
नियुक्ति की जाती है। यहां आपको विभिन्न साइंटिस्ट ग्रेड के पद पर रखा
जाता है, जहां आकर्षक वेतन के अलावा आपको अन्य लाभ भी मिलते हैं।
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