Sunday, January 31, 2016

बेकिंग स्पैशलिस्ट एक उज्जवल भविष्य

बेकिंग दुनिया के सबसे पुराने व्यवसायों में से एक है लेकिन समय के साथ इसके स्वरूप व तकनीक में काफी परिवर्तन आया है । आजकल पूरी दुनिया में लोग बेक की हुई चीजों का बहुत बड़े स्तर पर प्रयोग करते हैं । ऐसे में एक प्रोफैशनल बेकर की डिमांड भी काफी बढ़ी है । यदि आपको भी खाना बनाना पसंद है तो आप एक बेकर के रूप में अपना उज्ज्वल भविष्य देख सकते हैं ।

एक बेकर के लिए बेहद जरूरी है कि उसे भोजन व उससे संबंधित सामग्री से बेहद प्यार हो । इसके अतिरिक्त वह बेकरी प्रॉडक्ट्स और उसकी सामग्री से परिचित हो । उसे सिर्फ खाना पकाना ही नहीं आता हो बल्कि अपनी क्रिएटिविटी के बलबूते वह उसे एक नया रूप देने में सक्षम हो । साथ ही एक अच्छी प्रैजैंटेशन खाने को और भी अधिक लाजवाब बनाती है इसलिए उसमें खाने की प्रस्तुति करने का कौशल भी हो ।
खाना बनाते समय उसे सिर्फ टेस्ट पर ही ध्यान नहीं देना बल्कि सजावट व हाइजीन भी उतनी ही जरूरी है । उसका शारीरिक रूप से मजबूत होना भी आवश्यक है ताकि वह घंटों खड़े होकर काम कर सके व भारी सामान भी आसानी से उठा सके । एक बेकर तभी सफलता के नए मुकाम हासिल कर सकता है जब वह अपने ग्राहक को संतुष्ट कर पाए । इसके लिए उसके खाने में जादू के साथ-साथ उसमें स्वयं कम्युनिकेशन स्किल भी बेहतर होनी चाहिए । कड़ी मेहनत के साथ-साथ अच्छा टीमवर्क व मैनेजमैंट स्किल उसकी सफलता की राह आसान करती है ।

योग्यता 
वैसे तो इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है बस आपको  बेकिंग, आइसिंग व डैकोरेटिंग की जानकारी होनी चाहिए लेकिन अगर आप चाहें तो अपने स्किल्स में निखार लाने के लिए बेकिंग व कन्फैक्शनरी में शॉर्ट टर्म या डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं । इस कोर्स की अवधि 4 से 6 महीने हो सकती है तथा आप 10वीं व 12वीं के बाद यह कोर्स आसानी से कर सकते हैं ।

कोर्स 
कोर्स के दौरान छात्रों को न्यूट्रिशन, फूड सर्विस, बेकिंग के सिद्धांतों, सैनिटेशन, बेकिंग के दौरान काम आने वाली मशीनरी को चलाने आदि के बारे में विस्तार से समझाया जाता है । कोर्स में छात्रों को बेकिंग की बेसिक जानकारी के साथ-साथ एडवांस ट्रेनिंग दी जाती है । इसमें उन्हें इंडस्ट्रीयल इक्विपमैंट के जरिए सारी सामग्री को मिक्स करना व बेक करना सिखाया जाता है। इस ट्रेनिंग के जरिए छात्र सिर्फ बेकिंग के दम पर अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकते हैं ।

अवसर 
आप इस क्षेत्र में किसी होटल, बेकरी शॉप, केटरर आदि के जरिए कदम रख सकते हैं । वैसे आप बेकरी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के साथ भी जुड़ सकते हैं । यदि आप किसी के साथ जुड़कर काम नहीं करना चाहते तो आप खुद की बेकरी शॉप भी खोल सकते हैं । यदि आपके अंदर बेकिंग का हुनर लाजवाब है तो आप विदेश में भी नौकरी तलाश सकते हैं ।

आमदनी 
इस क्षेत्र में आपकी आय का स्रोत सिर्फ आपका हुनर है । वैसे प्रारंभ में एक बेकर को 10 से 15 हजार आसानी से मिल जाते हैं ।  वहीं एक अनुभवी बेकर की आमदनी 35 हजार से 50 हजार रुपए प्रतिमाह हो सकती है । यदि आप घर पर ही बेकिंग करते हैं तो आपकी आमदनी आपको मिलने वाले ऑर्डर पर निर्भर करेगी ।

प्रमुख संस्थान 
- नैशनल काऊंसिल फॉर होटल मैनेजमैंट एंड केटरिंग टैक्नोलॉजी,नोएडा,उत्तरप्रदेश
www.nchmct.org
-एल.बी.आई.आई .एच.एम.,पीतमपुरा,दिल्ली-34
www.Ibiihm.com
- दिल्ली पैरामैडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीच्यूट,दिल्ली
www.dpmiindia.com

Saturday, January 30, 2016

लैइजर मैनेजमेंट में करियर

आमतौर पर लैइजर का अर्थ आराम से लगाया जाता है। जब इसके साथ मैनेजमेंट जुड़ जाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि सारा प्रबंधन आराम से किया जाए। वास्तव में यह प्रबंधन का ऐसा क्षेत्र है, जो ग्राहकों के आराम और मनोरंजन का ख्याल रखता है। इसलिए इसमें इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, रेस्टॉरेंट मैनेजमेंट, डिस्क जोकिइंग जैसे करियर शामिल हैं। जिस तरह आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ी है और वह सप्ताहांत और छुट्टियाँ बिताने के नए-नए साधन ढूँढने लगा है, ऐसे में उसकी सुख-सुविधा का प्रबंध करने वाले लैइजर मैनेजमेंट में अवसर और राय दोनों खासे बढ़े हैं।

कठिन काम लेकिन अच्छे दाम
लैइजर मैनेजमेंट से जुड़े प्रोफेशनल्स को रोजाना उसी तरह भागदौड़ करते हुए काम करवाना पड़ता है, जैसे कि शादी के समय दुल्हन का पिता व्यवस्थाएँ जुटाता है। उन्हें लोगों को खुश करने तथा आराम पहुँचाने के नए-नए तरीकों की खोज करते रहना होता है। उन्हें कंट्री क्लब या रिसॉर्ट का प्रबंधन देखना होता है अथवा मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन उनके दैनिक कार्य का हिस्सा होता है। इसमें प्लानिंग से लेकर एक्जीक्यूशन और पोस्ट इवेंट कार्य भी शामिल होते हैं। इस काम में पैसा भी अच्छा है। लैइजर से करियर आरंभ करने वाले कई लोग तो इतने पारंगत हो जाते हैं कि वे स्वयं अपना व्यवसाय आरंभ कर सेवा प्रदान कर खासी आय अर्जित करने लगते हैं।

आमतौर पर लैइजर का अर्थ आराम से लगाया जाता है। जब इसके साथ मैनेजमेंट जुड़ जाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि सारा प्रबंधन आराम से किया जाए। वास्तव में यह प्रबंधन का ऐसा क्षेत्र है, जो ग्राहकों के आराम और मनोरंजन का ख्याल रखता है। इसलिए इसमें इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, रेस्टॉरेंट मैनेजमेंट, डिस्क जोकिइंग जैसे करियर शामिल हैं। जिस तरह आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ी है और वह सप्ताहांत और छुट्टियाँ बिताने के नए-नए साधन ढूँढने लगा है, ऐसे में उसकी सुख-सुविधा का प्रबंध करने वाले लैइजर मैनेजमेंट में अवसर और राय दोनों खासे बढ़े हैं।

ब्रॉड रेंज है लैइजर मैनेजमेंट की
लैइजर मैनेजमेंट को एक ब्रॉड रेंज वाले करियर के रूप में लिया जाएगा, क्योंकि इसमें बहुत सारे उद्योग जुड़े हुए हैं। इसमें केवल आमोद-प्रमोद की गतिविधियाँ ही शामिल नहीं हैं बल्कि इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, एम्यूजमेंट मैनेजमेंट जैसे नए-नए क्षेत्र भी शामिल हैं। टू टीयर शहरों में पनपती मॉल संस्कृति ने इसे पैर फैलाने का भरपूर अवसर प्रदान किया है।

क्या होता है लैइजर मैनेजमेंट में?
मूल रूप से लैइजर मैनेजमेंट में लोगों के आराम अथवा फुर्सत के समय का प्रबंधन करना शामिल है जिसमें कंट्री क्लब तथा रिसॉर्ट अथवा यहाँ तक कि जिम्नेशियम का प्रबंधन तक शामिल है। इसके अंतर्गत हॉलीडे पैकेजेस की डिजाइनिंग तथा ट्रेकिंग या राफ्टिंग एक्सरसंस अथवा एडवेंचर गेम्स के अन्य रूप के साथ-साथ फैशन शो या प्रदर्शनी, प्रॉडक्ट लांचिंग और सोशल फंक्शन भी आते हैं, जो इन दिनों एक हॉट करियर के रूप में माने जाते हैं।

लैइजर मैनेजमेंट में प्राइवेट पार्टियों, रोड शो, एक्जीबिशंस, कॉन्फ्रेंस, प्रमोशनल कैम्पेन, कांसर्ट्‌स, अवॉर्ड, नाइट्स जैसे आयोजन भी शामिल हैं। इसमें लाइव इवेंट्स की प्लानिंग से लेकर ऑर्गेनाइजेशन तथा एक्जीक्यूशन जैसे कार्य होते हैं, जो प्रॉडक्ट या ब्रांड लांचिंग से लेकर एक्जीबिशन, सेमिनार, प्रेस कॉन्फ्रेंस और यहाँ तक कि वर्कशॉप्स के आयोजन पर आधारित होते हैं। लैइजर मैनेजमेंट में अक्सर होटल मैनेजमेंट के कुछ पहलू भी जुड़े होते हैं, क्योंकि कई इवेंट तथा लैइजर एक्टीविटियों में खाना तथा ड्रिंक्स भी सर्व किया जाता है तथा गेस्ट्स को ठहराने की व्यवस्था भी करनी होती है।

इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स होटलों द्वारा ऑफर की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों का प्रबंधन तथा संचालन करते हैं। इसके अंतर्गत होटल में आयोजित इवेंट के मैनेजमेंट से लेकर उसके प्रमोशन से लेकर पब्लिसिटी का दायित्व भी लैइजर मैनेजरों पर ही होता है। लैइजर मैनेजर ही मीनू तय करता है, स्टाफ का सुपरविजन करता है तथा ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने का कार्य भी करता है।

खूब बढ़ रही है माँग
इन दिनों बड़े शहरों के बाहरी हिस्सों में विभिन्ना क्लब, रिसॉर्ट, जिम तेजी से निर्मित हो रहे हैं, जहाँ समृद्ध परिवार से लेकर आम आदमी अपने मित्रों तथा परिवारों के साथ अपने अवकाश को मौज-मस्ती के साथ बिताना चाहता है। वह इस काम पर पैसा भी खूब खर्च करता है और सुविधा भी अच्छी चाहता है। उसके इस काम में लैइजर सहयोग प्रदान करता है।

आज शहर के बाहर निर्मित रिसॉर्ट या क्लब सारी सुविधाओं तथा साधनों से सुसज्ज्ति हैं। वहाँ नए साल की पार्टियों, संगीत की महफिलों आदि का अपने सदस्यों के लिए आयोजन होता रहता है। लोग तनाव को दूर करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से दूर यहाँ आकर सुकून की तलाश करते हैं और इस व्यवसाय से अच्छी आय को देखते हुए इस पर निवेश भी खूब बढ़ रहा है और करियर निर्माण के अवसर भी खूब मिल रहे हैं।

कौन-सा पाठ्यक्रम होगा उपयोगी
इस समय हमारे यहाँ लैइजर मैनेजमेंट के नाम से कोई विशेष पाठ्यक्रम संचालित नहीं किए जा रहे हैं। ऐसे कोई डिग्री या डिप्लोमा कोर्स भी उपलब्ध नहीं हैं, जो लैइजर मैनेमजेंट या इंटरटेनमेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में प्रवेश की सुनिश्चितता प्रदान करते हों। लेकिन पब्लिक रिलेशंस, एडवरटाइजिंग, मॉस कम्युनिकेशंस, सेल्स एंड मार्केटिंग, होटल मैनेजमेंट अथवा बिजनेस मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम निश्चित रूप से मदद प्रदान करते हैं।

विदेशों में लैइजर मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं जिसे देखते हुए कुछ निजी संस्थानों ने हमारे यह भी लैइजर मैनेजमेंट में प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया है। यदि आप चुनौती लेने के लिए तैयार हैं और आपको कठिन कार्य करने में दिलचस्पी है और आप कल्पनाशीलता, पहल करने के साथ-साथ अच्छी आयोजन क्षमता रखते हैं तो आपके लिए लैइजर मैनेजमेंट का क्षेत्र उस उर्वरा भूमि जैसा है, जो भरपूर आय और सेलिब्रिटियों के बीच रहने का अवसर प्रदान करता है।

प्रमुख संस्थान
हमारे यहाँ सभी आईआईएम तथा प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में एमबीए का कोर्स संचालित किया जाता है। लैइजर मैनेजमेंट का क्षेत्र चुनने वालों के लिए निम्नलिखित संस्थानों द्वारा संचालित विभिन्न प्रबंधन कार्यक्रम उपयोगी हो सकते हैं :

जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, मुंबई
एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च
वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई
टाइम स्कूल ऑफ मैनेजमेंट दरियागंज, नई दिल्ली
लाला लाजपतराय इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई

Friday, January 29, 2016

चार्टर्ड अकाउंटेंट मे करियर

बाजार में सीए प्रोफेशनल्स की मांग हमेशा से रही है। लगभग सभी कंपनियों को एक स्तर के बाद इनकी जरूरत पड़ती है। इस करियर के बारे में बता रही हैं नमिता सिंह-
पिछले कुछ वर्षों में मल्टीनेशनल कंपनियों के देश में आगमन की वजह से जॉब के क्षेत्र की रौनक बढ़ी है। इनके अलावा स्थानीय कंपनियां भी रोजगार के एक बड़े हब के रूप में स्थापित हो चुकी हैं। इसके चलते तेजी से विकास करती भारतीय अर्थव्यवस्था में फाइनेंस एवं अकाउंट्स से जुड़े लोगों की मांग दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। जाहिर है इससे संबंधित करियर भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बनते नजर आ रहे हैं। आर्थिक उदारीकरण के बाद इसमें तेजी से बदलाव देखने को मिले हैं। चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) भी उन्हीं में से एक है। किसी भी संस्थान में सीए का काम बेहद सम्मानजनक एवं चुनौतीपूर्ण होता है। वे उस संस्थान अथवा कंपनी से जुड़े सभी अकाउंट एवं फाइनेंस संबंधी कार्यों के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इसके अलावा इनका कार्य मनी मैनेजमेंट, ऑडिट अकाउंट का एनालिसिस, टैक्सेशन, रिटेनरशिप तथा फाइनेंशियल एडवाइज उपलब्ध कराने से भी संबंधित है।
क्या काम है सीए का
कंपनी एक्ट के अनुसार केवल सीए ही भारतीय कंपनियों में बतौर ऑडिटर नियुक्त किए जा सकते हैं। इसका फायदा देख कर ही कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां चार्टर्ड अकाउंटेंसी के क्षेत्र में कदम रख रही हैं। देश की इकोनॉमी को नियंत्रित करने, इससे जुड़े सिस्टम का ऑडिट और उसे सर्टिफाई करने का काम सीए के जिम्मे होता है। बैंक अपना सालाना ऑडिट सीए से ही कराते हैं। शेयरों की खरीद-फरोख्त में भी बैलेंस शीट देखी जाती है। बैंक व शेयर से अलग हट कर विभिन्न टैक्सों के भुगतान का हिसाब-किताब तक सीए के जिम्मे होता है।
बारहवीं के बाद प्रवेश शुरू
इसके एंट्री लेवल कोर्स सीपीटी में प्रवेश लेने के लिए छात्र के पास बारहवीं की डिग्री होनी आवश्यक है। इसमें कॉमर्स व मैथ्स की जानकारी सम्यक सहायता दिलाती है। सीपीटी के बाद आईपीसीसी व उसके बाद एफसी कोर्स में प्रवेश मिल जाता है। फाइनल कोर्स पूरा करने के बाद छात्र आईसीएआई में एनरोल कराने के योग्य हो जाते हैं।
तीन लेवल के कोर्स मौजूद
दि इंस्टीटय़ूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ही एकमात्र संस्था है, जो सीए का कोर्स कराती है और उसके बाद लाइसेंस प्रदान करती है। सीए का कोर्स तीन लेवल में पूरा होता है, जो निम्न हैं-
कॉमन प्रॉफिशिएंसी कोर्स (सीपीटी)- सीपीटी सीए के एंट्री लेवल का कोर्स है। इसमें चार विषयों जैसे अकाउंटिंग, मर्केटाइल लॉ, जनरल इकोनॉमिक्स एवं क्वांटिटेटिव एप्टीटय़ूड को शामिल किया जाता है। यह 200 मार्क्स का होता है तथा इसके लिए दो घंटे निर्धारित होते हैं। यह एग्जाम ऑब्जेक्टिव टाइप का होता है तथा इसमें गलत उत्तर दिए जाने पर नेगेटिव मार्किंग का प्रावधान है।
इंटिग्रेटेड प्रोफेशनल कॉम्पीटेंस कोर्स (आईपीसीसी)- यह नौ महीने का थ्योरिटिकल कोर्स है। इसमें अकाउंटिंग, बिजनेस एवं कंपनी लॉ, एथिक्स एंड कम्युनिकेशन, कॉस्ट अकाउंटिंग एवं फाइनेंशियल मैनेजमेंट, टैक्सेशन, एडवांस अकाउंटिंग, ऑडिटिंग एंड एश्योरेंस, आईटी एंड स्टैट्रिजिक मैनेजमेंट आदि विषयों को शामिल किया गया है। यह परीक्षा दो ग्रुप व सात पेपरों में संपन्न होती है। इसके बाद सीए के फाइनल कोर्स में दाखिला मिलता है।
फाइनल कोर्स (एफसी)- यह सीए कोर्स की सबसे अंतिम अवस्था है। इसमें छात्रों को फाइनेंशियल रिपोर्टिंग, ऑडिटिंग, प्रोफेशनल एथिक्स, टैक्सेशन, कार्पोरेट लॉ, सिस्टम कंट्रोल, स्ट्रैटिजिक फाइनेंस व एडवांस मैनेजमेंट एकाउंटेंसी के बारे में जानकारी दी जाती है। फाइनल कोर्स कम्प्लीट करने के साथ ही छात्रों को जनरल मैनेजमेंट एंड कम्युनिकेशन स्किल्स (जीएमसीएस) कोर्स भी पूरा करना होता है। यह परीक्षा दो ग्रुप तथा आठ पेपरों में होती है। सभी परीक्षाएं क्लीयर करने के बाद उन्हें आईसीएआई में मेंबरशिप के लिए आवेदन करना होता है।
आवश्यक स्किल्स
सीए बनने के लिए छात्रों को शैक्षिक योग्यता के अलावा अपने अंदर अन्य कई तरह के गुण पैदा करने पड़ते हैं। यह प्रोफेशन खासकर उन लोगों के लिए है, जो दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कठिन मेहनत की क्षमता रखते हों। उन्हें कॉमन सेंस, प्रशासनिक कौशल, अकाउंटिंग व एथिक्स, गणितीय कौशल, निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने के साथ-साथ करेंट अफेयर्स से अपडेट रहना जरूरी है।
फीस की रूपरेखा
सीए की तीनों ही परीक्षाओं में फीस की रूपरेखा अलग-अलग होती है। सीपीटी में जहां छात्रों को प्रॉस्पेक्टस, रजिस्ट्रेशन, जर्नल आदि के रूप में 6,700 रुपए देने होते हैं, वहीं आईपीसीसी की 10,600 रुपए तथा फाइनल कोर्स की फीस 12,250 रुपए तय की गई है। इसके अलावा आर्टिकिलशिप ट्रेनिंग फीस 2000 रुपए,100 घंटे के इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी टेस्ट (आईटीटी) की फीस 4000 रुपए, 35 घंटे के ओरिएंटेशन प्रोग्राम की फीस 3000 रुपए तथा जीएमसीएस की फीस 4000 रुपए तय की गई है। सभी कोर्स व प्रोग्राम मिला कर यह 42,550 रुपए के करीब बैठती है।
रोजगार के भरपूर अवसर
सीए प्रोफेशनल्स के रूप में आप देश-विदेश की कंपनियों में फाइनेंस, अकाउंट्स एवं टैक्स डिपार्टमेंट में फाइनेंस मैनेजर, अकाउंट्स मैनेजर, फाइनेंशियल बिजनेस एनालिस्ट, ऑडिटिंग/इंटरनल ऑडिटर, स्पेशल ऑडिटर सहित चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर, सीईओ, फाइनेंस डायरेक्टर, फाइनेंशियल कंट्रोलर, चीफ अकाउंटेंट, चीफ इंटरनल ऑडिटर जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम कर सकते हैं। इसके साथ ही प्राइवेट प्रैक्टिस व कंसल्टेंसी में रोजगार के अवसर मिलते हैं। अधिकांश सीए कार्पोरेट घरानों को बिजनेस एडवाइज देने तथा प्रोजेक्ट प्लानिंग का काम भी करते हैं।  विदेशों में भी भारतीय प्रोफेशनल्स को अवसर मिल रहे हैं। सभी सरकारी व प्राइवेट बैंकों, पब्लिक लिमिटेड कंपनियों, ऑडिटिंग फर्म्स, फाइनेंशियल कंपनियों, म्यूचुअल फंड, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट कंपनियों, इनवेस्टमेंट हाउस, स्टॉक ब्रोकिंग फर्म्स, लीगल फर्म्स व हाउस आदि में तेजी से नौकरियां सृजित हो रही हैं।
सेलरी
आजकल घरेलू कंपनियों में सीए प्रोफेशनल्स को जूनियर लेवल पर 15,000-20,000 रुपए प्रतिमाह तथा सीनियर लेवल पर 30,000-35,000 रुपए प्रतिमाह मिलते हैं, जबकि दो-तीन साल का अनुभव होने पर यही राशि 55,000-60,000 रुपए प्रतिमाह के करीब पहुंच जाती है। विदेशी कंपनियां इन्हें लाखों के पैकेज पर रख रही हैं।  यदि किसी कंपनी से नहीं जुडम्ना चाहते तो स्वतंत्र रूप से अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
एक्सपर्ट व्यू
हार्डवर्किंग फील्ड है सीए
सीए प्रोफेशन भारतीय परिदृश्य में हमेशा से ही फिट बैठता आया है। देश की अर्थव्यवस्था को विकसित देश की श्रेणी की ओर ले जाने के लिए जो 2020-30 विजन तैयार किया गया है, उसमें सीए की बहुत बड़ी भूमिका है। इसका स्कोप कई कारणों से है। कंपनी लॉ कहता है कि किसी भी ऐसी कंपनी, जिसका टर्नओवर 60 करोड़ है, उसका टैक्स ऑडिट कराना जरूरी है। साथ ही यह भी नियम है कि उसका ऑडिटर सीए होना चाहिए।
आजकल इतने सारे लॉ आ गए हैं, जिनके बारे में जानकारी और उनसे अपडेट रहने की जिम्मेदारी सीए ही उठा सकते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि कंपनियां सही चीज भी गलत तरीके से करती हैं, जिसके चलते उन्हें भारी वित्तीय नुकसान होता है। बतौर सीए उस नुकसान से कंपनी को बचाया जा सकता है। जहां तक इसमें कोर्स करने का सवाल है तो बिना कोर्स के सीए बनने की कल्पना करना भी बेमानी है। इसके कोर्स की संरचना काफी विस्तार लिए हुए है।
छोटी-मोटी असफलता पर इसमें हारने की जरूरत नहीं है। यह लम्बी लड़ाई होती है। ऐसे में इसमें वही छात्र टिके रह सकते हैं, जो पूरी मेहनत और एकाग्रता से इसमें लगे हुए हैं। कोर्स के बाद काम की कोई कमी सामने नहीं आती।
एके गुप्ता, सीए

प्रमुख संस्थान
दि इंस्टीटय़ूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई)
वेबसाइट- www.icai.org
(हेड ऑफिस नई दिल्ली में स्थित है। इसके चार रीजनल ऑफिस मुंबई, कोलकाता, चेन्नई तथा कानपुर में हैं, जबकि पूरे देश में 87 शाखाएं और विदेशों में नौ चैप्टर मौजूद हैं)

Thursday, January 28, 2016

इकोलॉजी: प्रकृति को जानने का हुनर

मनुष्य पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है। पर्यावरण में थोड़ी सी भिन्नता या बदलाव उसके जीवन को तेजी से प्रभावित करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज हर देश पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। वायु, जल, ध्वनि या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अनचाहे परिवर्तन मनुष्य या अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को इसकी भयावहता के प्रति जागरूक किया जा रहा है। आने वाले समय में इसके और विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए इकोलॉजी का अध्ययन आवश्यक है। इसके जरिए पर्यावरण के विभिन्न आयामों व उनके संरक्षण की विधिवत जानकारी मिलती है। विगत कुछ वर्षों से यह तेजी से उभरता हुआ करियर साबित हो रहा है। इससे संबंधित कोर्स में लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही है।
क्या है इकोलॉजी
इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत जीवों व उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जीवन की अनेक जटिल वर्तमान समस्याओं का समाधान पारिस्थितिकी के अध्ययनों द्वारा हुआ है। इसमें निजी पारिस्थितिकी, समुदाय पारिस्थितिकी व इको सिस्टेमोलॉजी आदि भी शामिल हैं। इकोलॉजी को समझने के लिए मानव प्रजातियों का विधिवत अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा जलवायवीय कारक जैसे प्रकाश, ताप, वायु-गति, वर्षा, वायुमंडल की गैसों आदि का अध्ययन भी जरूरी है। पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें समस्त जीव समुदाय सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पर आश्रित रहते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल, पारिस्थितिकी पिरामिड, ऊर्जा का पिरामिड, जैव मंडल, वायु मंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी
यदि कोई छात्र इकोलॉजी से संबंधित कोर्स करना चाहता है तो स्नातक में उसका साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी है। खासकर बॉटनी, बायोलॉजी, जूलॉजी एवं फॉरेस्ट्री संबंधी विषय सहायक साबित होते हैं। इसके बाद मास्टर कोर्स में दाखिला मिलता है। यदि छात्र रिसर्च, टीचिंग तथा अन्य शोध संबंधी कार्य करना चाहते हैं तो उनके लिए मास्टर डिग्री के बाद पीएचडी करना अनिवार्य है।
आवश्यक स्किल्स
इस क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी है कि प्रोफेशनल्स प्रकृति से प्रेम करना सीखें और उसके संरक्षण के लिए उनके दिल में दर्द हो। कार्यक्षेत्र व्यापक होने के कारण जिस क्षेत्र में जा रहे हों, उसका विस्तृत अध्ययन जरूरी है। किसी भी चीज को आंकने का कौशल व कार्यशैली उन्हें औरों से अलग करती है। इसके अलावा उनमें समस्या के त्वरित निर्धारण का गुण, कम्प्यूटर व मैथ्स की अच्छी जानकारी, प्रेजेंटेशन व राइटिंग स्किल, कार्य के प्रति अनुशासन व टीम वर्क आदि का गुण उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बना सकता है।
विस्तृत है कार्यक्षेत्र
अर्बन इकोलॉजी-
अर्बन इकोलॉजी इस क्षेत्र की सबसे नवीनतम विधा है, जिसमें इकोलॉजी का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है, खासकर शहरों में रहने वाले लोगों के जनजीवन व प्राकृतिक परिदृश्य को इसमें भली-भांति परखा जाता है।
फॉरेस्ट इकोलॉजी- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के पौधों, जानवरों और कीड़े-मकौड़ों का अध्ययन व उनका वर्गीकरण किया जाता है। इसके अलावा जंगलों की भूमि और वहां के वातावरण पर मनुष्य और ग्लोबल वार्मिंग के असर का अध्ययन भी करते हैं।
मरीन इकोलॉजी- यह इकोलॉजी की ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत जलीय जन्तुओं और उसमें रहने के दौरान वातावरण के असर को समझा जाता है। इसमें चिडियाघर और एक्वेरियम सेंटर में जलीय जन्तुओं के संरक्षण पर भी काम किया जाता है।
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट- ये प्रोफेशनल्स ऐसी जगह काम करते हैं, जहां पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में (जैसे वनों की कटान, फिर से पौधारोपण की कवायद) हो। रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट प्रोजेक्ट के तहत काम करते हैं।
वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी- इसमें इकोलॉजिस्ट पशुओं व उनकी जनसंख्या तथा उनके संरक्षण का प्रमुखता से अध्ययन करते हैं। साथ ही यह भी ढूंढ़ते हैं कि वे कौन से कारण हैं, जिनसे उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजी- इसमें एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजिस्ट किसी विशेष वातावरण तथा उसमें रहने वाले लोगों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा तथा उसके असंतुलन पर होने वाले दुष्परिणामों से भी लोगों को अवगत कराते हैं।
रोजगार की संभावना
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद छात्रों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। हर साल इकोलॉजिस्टों की मांग बढ़ती जा रही है। कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां, एनजीओ, फर्म व विश्वविद्यालय-कॉलेज हैं, जहां इन प्रोफेशनल्स को विभिन्न पदों पर काम मिलता है। मुख्य रूप से प्रोफेशनल्स को रिसर्च सेंटर जैसे सीएसआईआर, एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, एन्वायर्नमेंटल अफेयर डिपार्टमेंट, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, नेशनल पार्क, म्यूजियम, एक्वेरियम सेंटर में काम मिलता है। इसके अलावा कई प्राइवेट संस्थान प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में आगे आए हैं और वे भी इकोलॉजिस्ट्स को अपने यहां प्रमुखता से नियुक्त कर रहे हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
रिसर्चर
इकोलॉजी साइंटिस्ट
नेचर रिसोर्सेज मैनेजर
वाइल्ड लाइफ मैनेजर
एन्वायर्नमेंटल कंसल्टेंट
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी की ज्यादातर रूपरेखा संस्थान, प्रोफेशनल्स की योग्यता व कार्यशैली पर निर्भर करती है। वैसे इसमें शुरुआती दौर में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। अनुभव बढ़ने के साथ ही सेलरी भी बढ़ती जाती है, जबकि किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज में टीचिंग के कार्य के दौरान उन्हें 40-50 हजार रुपए मिल जाते हैं। यदि स्वतंत्र रूप से या फिर विदेश में जॉब कर रहे हैं तो आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।
एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख और विदेशों में 20 लाख तक का लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी आवश्यक है। हर बैंक का अपना नियम-कानून है। बेहतर होगा कि छात्र लोन लेने से पूर्व संबंधित बैंक जाकर अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लें।
एक्सपर्ट व्यू
समय की मांग है इकोलॉजी

पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने तथा उसमें मौजूद जीवों व संसाधनों में संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। इसके लिए वे अभियान चला कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। इन सब कवायदों के साथ ही देश में इकोलॉजिस्टों की मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा स्नातक स्तर पर पर्यावरण एक अनिवार्य विषय घोषित हो जाने से भी फैकल्टी के रूप में योग्य लोगों की आवश्यकता है। एनजीओ, वर्ल्ड बैंक के प्रोजेक्ट व सरकारी विभागों में इनकी काफी डिमांड है। एक इकोलॉजिस्ट की पहली ड्य़ूटी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रजातियों को खोजना तथा वैज्ञानिक व व्यावहारिक सूचनाएं एकत्र करना है। इन प्रोफेशनल्स का ज्यादा समय रिसर्च, आंकड़ों का अध्ययन करने तथा रिपोर्ट तैयार करने में बीतता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जो छात्रों से किताबी और प्रायोगिक दोनों तरह की जानकारी मांगता है। इसका विषय क्षेत्र व्यापक होने के कारण उन्हीं क्षेत्रों की ओर अपना कदम बढ़ाएं, जिनमें उनकी अधिक रुचि हो तथा जिसमें वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। आजकल इकोलॉजिस्टों के काम का दायरा काफी बढ़ गया है। वे बड़े-बड़े भूखंडों के मालिकों, उद्योगपतियों तथा वॉटर कंपनियों से जुड़ कर उन्हें सलाह देने का काम कर रहे हैं।  
-डॉ. वंदना मिश्रा, सीनियर फैकल्टी, डीयू
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट
- www.jnu.ac.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी, जयपुर
वेबसाइट
- www.nieindia.org
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस (सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस), बेंगलुरू
वेबसाइट-
www.ces.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरू
वेबसाइट-
www.nias.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायर्नमेंटल, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.ecology.edu

Wednesday, January 27, 2016

सीफॉलजी: चुनावी आंकड़ों का ताना-बाना

सीफॉलजी एक आकर्षक करियर है। कड़ी मेहनत के दम पर इस क्षेत्र में सफलता हासिल की जा सकती है। इसके बारे में बता रही हैं नमिता सिंह-
किसी भी लोकतांत्रिक देश में लोगों को वोट देने से लेकर सरकार के गठन की प्रक्रिया तक के बारे में जानने की उत्सुकता रहती है। इसके लिए वे कई माध्यमों से अपनी जिज्ञासा शांत करने की कोशिश करते हैं। अभी हाल ही में हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी कमोबेश यही स्थिति रही। इस चुनाव में जो चीज तेजी से उभर कर सामने आई, वह एग्जिट पोल के नतीजों की विश्वसनीयता थी, क्योंकि चुनाव के बाद जो नतीजे आए, वे काफी हद तक एग्जिट पोल के निष्कर्ष का समर्थन करने वाले थे। न सिर्फ दिल्ली विस चुनाव, बल्कि बीते लोकसभा चुनाव व उप्र विस चुनाव 2012 में भी एग्जिट पोल के संकेत सही साबित हुए थे। ये एग्जिट पोल अथवा इलेक्शन सर्वे आसानी से किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचते। इसके लिए कुछ खास लोगों की महीनों की मेहनत व लम्बी कवायद छिपी होती है। ये खास लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें राजनीतिक, सामाजिक, जातिगत, जनसांख्यिकी व पिछले कुछ चुनावों के आंकड़ों की बारीकी से जानकारी होती है। इन प्रोफेशनल्स को सीफॉलजिस्ट (चुनाव विश्लेषक) तथा इस पूरी विधा को सीफॉलजी (चुनाव विश्लेषण) कहते हैं।
कैसा है यह क्षेत्र
सीफॉलजी तेजी से उभरता हुआ एक आकर्षक करियर है। इसमें विभिन्न स्रेतों से जुटाई गई जानकारियों एवं आंकड़ों का जम कर विश्लेषण करने के बाद कोई निष्कर्ष निकाला जाता है। यह काम बेहद चुनौतीपूर्ण एवं मेहनत वाला है। खासकर चुनाव के दिनों में सीफॉलजिस्टों की सिरदर्दी और बढ़ जाती है। उन्हें चुनाव की पड़ताल करने, आंकड़े एकत्र करने और राजनीतिक सलाह देने जैसे कार्य करने पड़ते हैं। इसके लिए उन्हें कई तरह के रिसर्च कार्य, यात्राएं, लोगों से मेल-मिलाप आदि में जुटना पड़ता है। अपने इन्हीं निष्कर्षों एवं जुटाई गई जानकारियों के आधार पर वे चुनाव परिणाम की धुंधली सी तस्वीर सामने ला पाते हैं। देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों से मीडिया व राजनीतिक दल इन सीफॉलजिस्टों पर पूरी तरह से निर्भर हो गए हैं।
कब कर सकेंगे कोर्स
वैसे तो इसके लिए अलग से किसी खास कोर्स का संचालन नहीं किया जाता, लेकिन पोस्ट ग्रेजुएशन में राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र अथवा सांख्यिकी की डिग्री हासिल कर चुके छात्र इसके लिए उपयुक्त समझे जाते हैं। इस क्षेत्र की कार्यशैली व गंभीरता को देखते हुए इसमें पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स को ही मुफीद माना जाता है। यदि छात्र के पास राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र अथवा सांख्यिकी में से किसी एक में डॉक्टरेट की डिग्री है तो उसे वरीयता दी जाती है।
राजनीतिक समझ आवश्यक
यह ऐसा प्रोफेशन है, जिसमें राजनीतिक आंकड़ों का ताना-बाना बुनने के साथ ही जनसांख्यिकी पैटर्न को गहराई से समझना जरूरी होता है। साथ ही जातिगत समीकरणों व राजनीतिक हलचलों से खुद को अपडेट रखना पड़ता है। एक अच्छा सीफॉलजिस्ट बनने के लिए यह आवश्यक है कि प्रोफेशनल्स जातिगत एवं मतों के ध्रुवीकरण को बखूबी समझें, अन्यथा वे एक स्वस्थ व निर्विवाद निष्कर्ष पर कभी नहीं पहुंच पाएंगे। इन प्रमुख गुणों के साथ-साथ उन्हें परिश्रमी व धर्यवान भी बनना होगा। उनके पास पिछले कुछ चुनावों का आंकड़ा भी होना चाहिए। कम्प्यूटर व इंटरनेट की जानकारी उन्हें कई तरह से लाभ पहुंचा सकती है।
रोजगार के भरपूर अवसर
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद सीफॉलजिस्ट के पास कई अवसर हैं। चुनाव के कुछ दिन पूर्व से लेकर सरकार के गठन होने तक इनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। रिसर्च कराने वाली एजेंसियों, टेलीविजन चैनल, समाचार पत्र-पत्रिकाओं आदि को इन लोगों की जरूरत होती है। इसके अलावा पॉलिटिकल एडवाइज, टीचिंग, संसदीय कार्य तथा पॉलिटिकल रिपोर्टिंग में इन लोगों की बेहद मांग है। यदि प्रोफेशनल्स किसी संस्था अथवा बैनर से जुड़ कर काम नहीं करना चाहते तो वे स्वतंत्र रूप से भी अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
सेलरी
इसमें सेलरी की कोई निश्चित रूपरेखा नहीं होती। चुनावी दिनों में सीफॉलजिस्ट मोटे पैकेज पर एक प्रोजेक्ट विशेष के लिए अपनी सेवाएं देते हैं, जबकि टीचर व एनालिस्ट के रूप में वे आसानी से 30-35 हजार रुपए प्रतिमाह कमा सकते हैं। यदि वे फ्रीलांसर के तौर पर काम कर रहे हैं तो उनके लिए आमदनी के कई रास्ते होते हैं। आज कई ऐसे चुनाव विश्लेषक हैं जो लाखों रुपए महीना कमा रहे हैं तथा उनसे जुड़ कर अन्य कई लोगों को भी काम और पैसा मिल रहा है।
कुछ प्रमुख कोर्स
बीए इन पॉलिटिकल साइंस
बीए इन सोशियोलॉजी
बीए इन स्टैटिस्टिक्स
एमए इन पॉलिटिकल साइंस
एमए इन सोशियोलॉजी
एमए इन स्टैटिस्टिक्स
फायदे व नुकसान
चुनावी विश्लेषणों से बनती है पहचान
कुछ खास दिनों में मिलता है मोटा पैसा
आंकड़ों के उलझने से तनाव की स्थिति
कई बार घंटों सिर खपाने के बाद भी नतीजा शून्य
एक्सपर्ट व्यू
लगातार अध्ययन से कर सकते हैं बेहतर
एग्जिट पोल का सर्वप्रथम चलन 16वें दशक में अमेरिका में उस समय देखने को मिला था, जब वहां व्यवहारवादी आंदोलन चलाया गया था। तर्क यह दिया गया कि जिस तरह से मौसम विज्ञानी अपनी साइंटिफिक एप्रोच के जरिए पूर्वानुमान लगाते हैं, क्यों न राजनीति में भी इस टर्म को प्रयोग में लाया जाए। इसके लिए वहां के दार्शनिकों ने लाइब्रेरी में बैठ कर डाटा कलेक्शन या भविष्यवाणी न कर लोगों के बीच में जाकर डेमोक्रेसी की सफलता व असफलता को परखने का सुझाव दिया। क्योंकि यदि व्यक्ति तत्काल में कोई प्रतिक्रिया देता है तो उसमें 60-70 फीसदी सच्चाई होती है। यहीं से एग्जिट पोल अपने प्रचलन में आया। आज दिन-ब-दिन सच होते एग्जिट पोल के नतीजों ने इस पूरी विधा को सराहनीय मंच दिया है। सही मायने में सेफॉलजी एक ऐसा कार्य है, जिसमें मानवीय व्यवहार को गहराई से परखते हुए किसी निष्कर्ष तक पहुंचा जाता है। युवाओं के लिए सीफॉलजी एक रोचक करियर के रूप में सामने आया है। लड़कियां भी इसमें तेजी से आ रही हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में यह बहुत बड़ा सेक्टर बन जाएगा। इस क्षेत्र में अध्ययन बहुत जरूरी है, तभी इसमें टिके रह सकते हैं। यूजीसी को चाहिए कि इस ट्रेंड को पकड़ते हुए ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन स्तर पर नया कोर्स शुरू करे।
- डॉ. रजनीकांत पाण्डेय,
एसोसिएट प्रोफेसर, दीनदयाल उपाध्याय
विश्वविद्यालय, गोरखपुर

प्रमुख संस्थान
सीफॉलजी एक ऐसी कला है, जिसकी पूरी बुनियाद राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र व सांख्यिकी विषयों की मदद से रखी जाती है। इसलिए जिन विश्वविद्यालयों में उपरोक्त विषयों से संबंधित ग्रेजुएशन व पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स कराए जाते हैं, वे सभी सीफॉलजिस्ट का कौशल सीखने का साधन बनते हैं। कुछ प्रमुख विश्वविद्यालय अथवा संस्थान निम्न हैं-
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
वेबसाइट
- www.bhu.ac.in
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
वेबसाइट
- www.du.ac.in
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली
वेबसाइट
- www.jnu.ac.in
इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीटय़ूट, कोलकाता
वेबसाइट-
www.isical.ac.in
दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर  वेबसाइट- www.ddugu.edu.in
यूनिवर्सिटी ऑफ राजस्थान, जयपुर

Thursday, January 21, 2016

मॉडलिंग

सुंदर-सुंदर पोशाकों में खूबसूरत चेहरे जब दर्शकों के सामने आते हैं तो अपनी नपी-तुली चाल से रैम्प पर चलते हुए उनके दिलों में उतर जाते हैं। फिर चाहे वे किसी फैशन डिजाइनर के लिए मॉडलिंग कर रहे हों या किसी इलेक्ट्रॉनिक गैजेट के लिए। रौशनी, चकाचौंध, नाम-पहचान और ग्लैमर से भरा मॉडलिंग का प्रोफेशन सभी को, खासकर युवाओं को शुरू से ही अपनी ओर काफी आकर्षित करता रहा है, लेकिन इन दिनों दूसरे उद्योगों की फैशन शोज में बढ़ती रुचि के कारण आज उनके सामने बतौर करियर मॉडलिंग में ढेरों विकल्प हैं।
न सिर्फ फैशन, बल्कि आज हर बड़ी कंपनी को अपने नए उत्पादों या सेवाओं को एन्डोर्स करने के लिए खूबसूरत मॉडल्स की जरूरत होती है। नाम और पैसे के साथ-साथ इस क्षेत्र में मॉडल्स को घूमने और नए-नए लोगों के साथ काम करने का मौका मिलता है। ग्लिट्ज मॉडलिंग एजेंसी एंड एकेडमी, नई दिल्ली के संस्थापक प्रणव अवस्थी का कहना है, ‘आज एक फ्रेशर अपने एक शो के लिए 10 से 15 हजार रुपये कमा सकता है, वहीं कुछ जाने-माने चेहरे भारतीय बाजार में भी प्रति शो 60 से 70 हजार रुपये कमाते हैं। नाम के साथ-साथ पैसा एक ऐसा फैक्टर है, जिसकी वजह से युवा मॉडलिंग की ओर आकर्षित होते हैं। वैसे भी पहले के मुकाबले अब मॉडलिंग सिर्फ रैम्प तक सीमित नहीं है। टीवी कॉमर्शियल्स, प्रिंट एडवर्टाइजिंग, टीवी धारावाहिकों आदि के रूप में भी कई विकल्प मौजद हैं।’
कैसे करें शुरुआत
मॉडलिंग की दुनिया से जुड़े लोगों का मानना है कि अगर आप मॉडलिंग की दुनिया में अपना करियर बनाना चाहते हैं तो आपको 12वीं के बाद ही इस दिशा में बढ़ जाना चाहिए, क्योंकि यहां किसी विशेष शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है। लेकिन यहां अपना भविष्य बनाने के लिए जरूरी है कि लड़कियों की लंबाई 5.6 फुट और लड़कों की 5.10 फुट हो। इसके अलावा आपका चेहरा और रंग दोनों साफ होने चाहिए तथा शरीर भी बिल्कुल फिट हो। तभी आप रैम्प मॉडलिंग के बारे में सोचें। मॉडलिंग के क्षेत्र में उतरने से पहले आप स्कूल और कॉलेज के स्तर पर ही फैशन शोज और थिएटर में भाग लें। कम उम्र से ही फोटो शूट्स में भाग लेना भी आपके लिए फायदेमंद रहेगा।
प्रशिक्षण 
इसके लिए कोई आधिकारिक प्रशिक्षण फिलहाल मौजूद नहीं है। बावजूद इसके कुछ प्रशिक्षण केंद्र या संस्थान हैं, जहां मॉडलिंग के क्षेत्र के साथ लंबे समय से जुड़े नाम आपको मॉडलिंग जगत से रूबरू होने में मददगार साबित हो सकते हैं। यह केंद्र मुख्य तौर पर दिल्ली और मुंबई में हैं। ये केंद्र आपको ग्रूमिंग, पर्सनेलिटी डेवलपमेंट, मेकअप टिप्स, कैमरा फेसिंग में प्रशिक्षण मुहैया कराते हैं। फैशन जगत में अपना नाम कमाने के लिए जरूरी है कि इन पाठय़क्रमों के अलावा आपके मॉडलिंग की दुनिया से जुडम्े दूसरों लोगों के साथ संपर्क भी हों।
फीस
15 सेशन के किसी पाठय़क्रम के लिए जहां आपको 15 हजार रुपये तक फीस देनी पड़ सकती है, वहीं 2 महीने के पाठय़क्रम के लिए आपको 50 हजार रुपये तक देने पड़ेंगे।
संभावनाएं 
मॉडलिंग की दुनिया में आप उत्पाद एडवर्टाइजिंग से लेकर लाइव फैशन शोज, म्यूजिक वीडियोज, गार्मेट फेयर्स और टीवी धारावाहिकों या फिल्मों में काम कर सकते हैं। इस उद्योग जगत में लंबे समय तक बने रहने के बाद जब आप काफी अनुभवी हो जाते हैं तो अपना स्कूल, केंद्र या संस्थान भी खोल सकते हैं, जहां मॉडल बनने की इच्छा रखने वाले युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा सकता है। अनुभवी मॉडल्स चाहें तो अपनी मॉडल कोऑर्डिनेटिंग एजेंसी भी शुरू कर सकते हैं।
वेतन 
शुरुआत में आपको प्रति शो 5 से 10 हजार रुपये मिल सकते हैं। वैसे यह शो के स्तर व ब्रांड पर भी निर्भर करता है। वहीं अनुभव के साथ यह बढ़ कर 50 हजार रुपये प्रति शो तक पहुंच सकता है।
प्रमुख संस्थान एवं उनकी वेबसाइट
देश में कई मॉडलिंग एजेंसियां हैं, जिन्होंने मॉडल को-ऑर्डिनेटिंग की अपनी भूमिका को बढ़ाते हुए मॉडल्स को प्रशिक्षित करने का काम शुरू किया है। इनमें प्रमुख रूप से फेस 1, ओजोन मॉडल्स मैनेजमेंट, एलीट मॉडल मैनेजमेंट इंडिया, कैटवॉक, ग्लिट्ज, प्लैटिनम मॉडल्स, ग्लैडरैग्स मीडिया, दी रैम्प आदि शामिल हैं।
क्राफ्ट: सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, दिल्ली
ग्लैडरैग्स मीडिया लिमिटेड, मुंबई
http://www.gladrags.in/careeracademy.php
मेहर भसीन एकेडमी, दिल्ली
www.meyharbhasinacademy.co.in/contact.htm
आर.के. फिल्म एंड मीडिया एकेडमी, दिल्ली
www.rkfma.com/fashion-modelling-for-ramp.html
ग्लिट्ज मॉडलिंग एजेंसी एंड एकेडमी, दिल्ली

Wednesday, January 20, 2016

जोअलॉजी में करियर

जीव-जंतु प्रेमियों को निश्चय ही उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है। आप अपने इसी प्रेम को अपने करियर में भी बदल सकते हैं। प्राणि विज्ञान या जोअलॉजी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें जीव-जंतुओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोटोजोआ, मछली, सरीसृप, पक्षियों के साथ-साथ स्तनपायी जीवों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसमें हम न सिर्फ जीव-जंतुओं की शारीरिक रचना और उनसे संबंधित बीमारियों के बारे में जानते हैं, बल्कि मौजूदा जीव-जंतुओं के व्यवहार, उनके आवास, उनकी विशेषताओं, पोषण के माध्यमों, जेनेटिक्स व जीवों की विभिन्न जातियों के विकास के साथ-साथ विलुप्त हो चुके जीव-जंतुओं के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं।
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि प्राणि विज्ञान में किस-किस प्रकार के जीवों का अध्ययन किया जाता है। जवाब है, इस पाठय़क्रम के तहत आप लगभग सभी जीवों, जिनमें समुद्री जल जीवन, चिडियाघर के जीव-जंतु, वन्य जीवों, यहां तक कि घरेलू पशु-पक्षियों के जीव विज्ञान एवं जेनेटिक्स का अध्ययन करते हैं। आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने का पहला पड़ाव क्या है?
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में आने के लिए सबसे पहले आपको स्नातक स्तर पर जोअलॉजी की डिग्री लेनी होगी। आमतौर पर यह विषय देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विज्ञान के विभिन्न विषयों की तरह ही तीन वर्षीय डिग्री पाठय़क्रम के तहत पढ़ाया जाता है।
योग्यता 
जोअलॉजी या प्राणि विज्ञान में स्नातक में प्रवेश के लिए जरूरी है कि छात्र 12वीं कक्षा विज्ञान विषयों, जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ-साथ गणित से उत्तीर्ण करें। स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए छात्रों का स्नातक स्तर पर 50 प्रतिशत के साथ जोअलॉजी विषय उत्तीर्ण करना जरूरी है।
पाठय़क्रम
बी. एससी. जोअलॉजी (प्राणि विज्ञान)
बी. एससी. जोअलॉजी एंड इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (डबल कोर)
बी. एससी. बायो-टेक्नोलॉजी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
बी. एससी. बॉटनी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
एम. एससी. मरीन जोअलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी विद स्पेशलाइजेशन इन मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी
एम. फिल. जोअलॉजी
पी. एचडी. जोअलॉजी
फीस 
स्नातक स्तर के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में फीस लगभग 6,500-10,000 रुपये तक हो सकती है। स्नातकोत्तर और उससे आगे की शिक्षा के लिए फीस संबंधित जानकारी के लिए संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान से संपर्क करें।
ऋण एवं स्कॉलरशिप 
स्नातक स्तर पर जहां तक ऋण की बात है तो अभी यहां ऋण के लिए कोई खास सुविधा नहीं है, जबकि विभिन्न कॉलेज व विश्वविद्यालय अपने छात्रों के लिए स्कॉलरशिप जरूर मुहैया कराते हैं। स्नातक से आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या यूजीसी के साथ-साथ विभिन्न अनुसंधानों में जुटे विभागों या संस्थानों की ओर से भी स्कॉलरशिप की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।
यह पाठय़क्रम किसी अन्य प्रोफेशनल कोर्स की तरह नहीं है, जहां स्नातक की डिग्री के साथ ही आप काम के लिए तैयार हो जाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ जोअलॉजी की किसी खास शाखा में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद आप इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं देंगे।
शिक्षा सलाहकार अशोक सिंह का कहना है, ‘अगर आप अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो जोअलॉजी में बी.एससी. के बाद आप एम.एससी. और फिर पीएच.डी. करें। लेकिन छात्रों के लिए 12वीं के स्तर पर ही यह निर्णय लेना जरूरी है कि वे अनुसंधान व शोध के क्षेत्र में आगे जाना चाहते हैं या शिक्षा में।’
प्राणि विज्ञान चूंकि जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जो जीव-जंतुओं की दुनिया से संबंधित है, इसलिए यहां पक्षियों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले को पक्षी वैज्ञानिक, मछलियों का अध्ययन करने वाले को मत्स्य वैज्ञानिक, जलथल चारी और सरीसृपों का अध्ययन करने वाले को सरीसृप वैज्ञानिक और स्तनपायी जानवरों का अध्ययन करने वालों को स्तनपायी वैज्ञानिक कहा जाता है। जोअलॉजिस्ट की जिम्मेदारी जानवरों, पक्षियों, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों और कृमियों के विभिन्न लक्षणों और आकृतियों पर रिपोर्ट तैयार करना और विभिन्न जगहों पर उन्हें संभालना भी है। एक जोअलॉजिस्ट अपना काम जंगलों आदि के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में भी करता है, जहां वे उच्च तकनीक की मदद से अपने जमा किए आंकड़ों को रिपोर्ट की शक्ल देता है और एक सूचना के डेटाबैंक को बनाता है। जोअलॉजिस्ट सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों पर भी काम करते हैं।
संभावनाएं
जोअलॉजी में कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद छात्रों के सामने विभिन्न विकल्प हैं। सबसे पहला विकल्प है कि वे बी.एड. करने के बाद आसानी से किसी भी स्कूल में अध्यापक पद के लिए योग्य हो जाते हैं। इस क्षेत्र में विविधता की वजह से छात्रों के सामने काफी संभावनाएं मौजूद हैं। वे किसी जोअलॉजिकल या बोटैनिकल पार्क, वन्य जीवन सेवाओं, संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं, राष्ट्रीय उद्यानों, प्राकृतिक संरक्षण संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, फॉरेंसिक विशेषज्ञों, प्रयोगशालाओं, मत्स्य पालन या जल जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों और फार्मा कंपनियों के साथ जुड़ सकते हैं। इसके अलावा कई टीवी चैनल्स मसलन नेशनल जीअग्रैफिक, एनिमल प्लैनेट और डिस्कवरी चैनल आदि को अक्सर शोध और डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के लिए जोअलॉजिस्ट की जरूरत रहती है।
वेतन 
अगर आप शिक्षा जगत से जुड़ते हैं तो सरकारी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से निर्धारित वेतन पर नौकरी करेंगे। आमतौर पर एक बी. एड. अध्यापक का वेतन 32 से 35 हजार रुपये प्रति माह होता है। अगर आप एक फ्रेशर के रूप में अनुसंधान और शोध क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो आप प्रति माह 10 से 15 हजार रुपये कमा सकते हैं।
नए क्षेत्र
करियर काउंसलर जितिन चावला की राय में आजकल जोअलॉजी के छात्रों में वाइल्ड लाइफ से संबंधित क्रिएटिव वर्क और चैनलों पर काम करने के प्रति काफी रुझान है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। ऐसे काम की डिमांड अभी भी सीमित है। हालांकि इन दिनों निजी स्तर पर चलाए जा रहे फिश फार्म्स काफी देखने में आ रहे हैं। जोअलॉजी के छात्रों के लिए यह एक बढिया व नया करियर विकल्प हो सकता है, खासकर प्रॉन्स फार्मिंग शुरू करने का।
मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के जोअलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर स्मिता कृष्णन का कहना है कि जोअलॉजी के छात्रों के लिए इको टूरिज्म, ह्यूमन जेनेटिक्स और वेटरनरी साइंसेज के क्षेत्र खुल रहे हैं। जोअलॉजी में डिग्री के बाद वेटरनरी साइंसेज या एनिमल साइंस से संबंधित कोर्सेज किए जा सकते हैं।
करियर एक्सपर्ट कुमकुम टंडन के अनुसार कम्युनिकेशन जोअलॉजिस्ट के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक संवाद माध्यमों का उपयोग करते हुए आप जोअलॉजी की जानकारी के प्रसार-विस्तार के क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं। ट्रैवल इंडस्ट्री में प्लानिंग और मैनेजमेंट लेवल पर अहम भूमिका निभा सकते हैं। समुद्री जीवों और पशुओं की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में अपना करियर बनाने की सोचें। यह वक्त की जरूरत है कि जोअलॉजिस्ट को जीअग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम और पशुओं की ट्रैकिंग से संबंधित तकनीकों को मिला कर काम करना आता हो।

साक्षात्कार
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं

जोअलॉजी विषय की बारीकियों और देश-विदेश में इस क्षेत्र की संभावनाओं के बारे में बता रही हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनु गुप्ता
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में किस प्रकार के छात्र अपना भविष्य देख सकते हैं?
जोअलॉजी में वही छात्र प्रवेश लें, जिन्हें जीव-जन्तुओं से प्यार हो, साथ ही साथ वे व्यवहारिक भी हों। पहले तो कॉलेजों में प्रैक्टिकल्स के दौरान चीर-फाड़ भी करनी पड़ती थी, जिसे अब एनिमल एथिक्स के चलते बंद किया जा चुका है, बावजूद इसके छात्र को खुद को इतना मजबूत रखना चाहिए कि वे खून या जीवों से जुड़ी अन्य चीजों को देख कर परेशान न हो जाएं। उन्हें जानवरों से डर नहीं लगना चाहिए।
स्नातक के बाद छात्र किस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं?
स्नातक तो जोअलॉजी की पहली सीढ़ी है। इससे आगे छात्र विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ सकते हैं। जो छात्र शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहते हैं, वे स्नातक के बाद बी.एड. करके 8वीं कक्षा के छात्रों को विज्ञान विषय और स्नातकोत्तर के बाद बी.एड. व एम.एड. करके स्कूल में 10वीं व 12वीं तक के छात्रों को पढ़ा सकते हैं। इसके अलावा स्नातकोत्तर कर वे देश की अनुसंधान एवं शोध संस्थाओं में प्रोजेक्ट फेलो के रूप में शुरुआत कर सकते हैं। आज जोअलॉजी में विशेषज्ञता के लिए इतने विषय हैं कि वे जोअलॉजी विषयों के विशेषज्ञों के साथ-साथ माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड टेक्नोलॉजिस्ट, एनवायर्नमेंटलिस्ट, इकोलॉजिस्ट आदि की भूमिका भी निभा सकते हैं।
इस क्षेत्र में करियर के लिहाज से क्या संभावनाएं हैं?
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं है। आप स्नातक के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके आगे एम. फिल. व पीएच.डी. तक कर सकते हैं। अगर आप स्नातकोत्तर हैं तो वन्य जीवन जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों, शिक्षा क्षेत्र आदि में नाम कमा सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, नई दिल्ली
www.dducollege.du.ac.in/
गार्डन सिटी कॉलेज, इंदिरा नगर, बेंगलुरू
www.gardencitycollege.edu/in/
अचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज, दिल्ली
andcollege.du.ac.in
मैत्रेयी कॉलेज, दिल्ली
www.maitreyi.ac.in/
देशबंधु कॉलेज, दिल्ली
www.deshbandhucollege.ac.in
श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली
www.svc.ac.in/academicpage1.html
सेंट एल्बर्ट्स कॉलेज, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोच्चि
www.alberts.ac.in/ug-courses/
पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ऑफ साइंस, ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
www.osmania.ac.in/oupgcs/
किरोड़ी मल कॉलेज, दिल्ली
www.kmcollege.ac.in/
नफा-नुकसान
प्रकृति के करीब रहने व उसे और करीब से जानने का मौका मिलता है।
इस दिशा में ज्ञान हासिल करने की कोई सीमा नहीं है। आप काफी आगे तक जानकारी के लिए देश-विदेश में शिक्षा हासिल कर सकते हैं।
बाकी क्षेत्रों के मुकाबले शुरुआत में यहां वेतन काफी कम है।

Tuesday, January 19, 2016

सोनोग्राफी में करियर

सोनोग्राफी रेडियोलॉजी की एक ब्रांच है। इसका उपयोग शरीर के विभिन्न अंगों मसलन छाती, दिल, पेट आदि में जांच करने के लिए प्रयोग में लाई जाती है। गर्भस्थ शिशु की सभी प्रक्रियाओं की जानकारी सोनोग्राफी के माध्यम से जान सकते हैं। यदि किसी में शरीर के भीतर चल रही प्रक्रियाओं को जानने की इच्छा है और इसमें  करियर भी बनाना चाहता  है, तो सोनोग्राफी उपयुक्त विकल्प है। प्रत्येक हॉस्पिटल में इससे संबंधित कार्य होने की वजह से इनकी काफी मांग है। ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिक्स के अनुसार, इस क्षेत्र में 2016 तक 19 प्रतिशत ग्रोथ की संभावना है। वर्तमान में ट्रेंड प्रोफेशनल की काफी कमी है। इस प्रकार यदि भविष्य के लिहाज से देखा जाए, तो इस क्षेत्र में करियर काफी ब्राइट है।
योग्यता
सोनोग्राफी से संबंधित कोर्स में एडमिशन के लिए भौतिक, रसायन और जीव विज्ञान में 50 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं पास होना जरूरी है। यदि इन तीनों विषयों को मिलाकर पचास प्रतिशत अंक हैं, तो आप इस कोर्स को कर सकते हैं।
 व्यक्तिगत गुण
एक सोनोग्राफर को अस्पताल की विभिन्न जगहों मसलन ऑपरेशन थियेटर, इंटेसिव केयर यूनिट में डॉक्टरों व नर्सों के साथ काम करना होता है। इस कारण धैर्य होना बहुत जरूरी है। सोनोग्राफर इमरजेंसी केसों में एक अहम् भूमिका निभाते हैं।
साथ ही एक सोनोग्राफर में काम के प्रति लगन, शांत स्वभाव एवं आत्मविश्वास का होना जरूरी है। उसके पास अपनी बात रोगी को अच्छे ढंग से समझाने की क्षमता का होना भी जरूरी है।
 संभावनाएं
विशेषज्ञों के अनुसार, एजुकेशन के बाद हेल्थकेयर ऐसा सेक्टर है, जिसमें नौकरी की संभावनाएं हमेशा बनी रहती है। सोनोग्राफी से संबंधित पढ़ाई करने के पश्चात सरकारी व निजी अस्पतालों, क्लीनिकों, नर्सिंग होम, हेल्थकेयर सेंटरों, टेक्निकल कॉलेज आदि में जॉब की संभावनाएं हैं। यदि इछ्छा हो तो हेल्थकेयर के अतिरिक्त रिसर्च व टीचिंग में भी करियर बना सकते हैं।
कमाई 
यदि सोनोग्राफी से संबंधित कोर्स करने के बाद नौकरी करते हैं, तो बतौर सोनोग्राफर शुरुआत में दस से पंद्रह हजार रुपये प्रतिमाह कमा सकते हैं। अनुभव के बाद सैलरी बढ़ती जाती है।

संस्थान
 1. ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल सांइस, नई दिल्ली
 2. अपोलो इंस्टीट्यूट ऑफ हॉस्पिटल मैनेजमेंट ऐंड एलाइड सांइस, चेन्नई
 3. बीजे मेडिकल कॉलेज, गुजरात
 4. बीआरडी मेडिकल कॉलेज, उत्तरप्रदेश
 5. चेन्नई मेडिकल कॉलेज, चेन्नई
 6. क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, तमिलनाडु
 7. जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल, नई दिल्ली
 8. जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली
 9. गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज, पंजाब
 10. पटना मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, पटना
 11. यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल सांइस एंड जीटीबी हॉस्पिटल, नई दिल्ली
 12. मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, कोलकाता

Monday, January 18, 2016

फ्रंट ऑफिस मैनेजर

फ्रंट ऑफिस मैनेजर पर किसी भी संस्थान को व्यवस्थित रखने की जिम्मेदारी होती है। यदि आप जिम्मेदारियों को निभाने में रुचि रखते हैं तो यह क्षेत्र एक बेहतर करियर प्रदान कर सकता है। बता रहे हैं पंकज घिल्डियाल
करियर काउंसलर डॉं. संजय सिंह बघेल के अनुसार फ्रंट ऑफिस मैनेजर किसी भी कंपनी का वह चेहरा होता है, जो ग्राहक और उपभोक्ता से सीधे जुड़ा होता है। इससे मार्केटिंग, सेल्स और सर्विस के प्रोफेशनल्स भी जुड़े होते हैं और इसका मुख्य काम होता है संबंधित संस्थान के सभी विभागों से कोऑर्डिनेशन स्थापित करते हुए ग्राहक की जरूरतों के हिसाब से उनका मार्गदर्शन करना।
दरअसल फ्रंट ऑफिस मैनेजर ही अपने यहां आने वाले अतिथियों को अपनी विशेषताओं के बारे में बताते और उन्हें जरूरी सूचनाएं देते हैं। इतना ही नहीं, वे बिल संबंधी हिसाब-किताब पर भी नजर रखते हैं। फ्रंट ऑफिस मैनेजर युवाओं के लिए एक उभरता हुआ करियर है। होटल हो, कोई बड़ा हॉस्पिटल या फिर किसी बड़े ईवेंट का आयोजन, फ्रंट ऑफिस मैनेजर ऐसी जगहों के लिए एक जरूरत बन चुके हैं।
आने वाले अतिथियों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो, इसके लिए फ्रंट ऑफिस मैनेजर अपने वॉकी-टॉकी के साथ मुस्तैद नजर आते हैं। कंपनी के मानकों का पालन करते हुए अपनी सेवा से संतुष्ट करने में जी जान से जुटे रहना इनकी कार्यशैली का हिस्सा होता है। होटल के फ्रंट ऑफिस मैनेजर आने वाले गेस्ट का स्वागत करते हैं, उनका रिजर्वेशन करते हैं, उनके चेक इन और चेक आउट की व्यवस्था देखते हैं, सिक्योरिटी विंग व अन्य को चाबी सौंपते और वापस लेते है और ग्राहकों को आवश्यक संदेश देते हैं। एक तरह से वह हॉस्पिटेलिटी इंडस्ट्री का स्माइलिंग फेस होते हैं।
योग्यता
फ्रंट ऑफिस मैनेजर के लिए जिन कोर्सेज में दाखिला लिया जाता है, उसके लिए आपका मान्यता प्राप्त बोर्ड या यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होना जरूरी है। हिंदी-इंग्लिश भाषा के अलावा अन्य भाषाओं के ज्ञान से आपको हमेशा प्राथमिकता मिलेगी। आपकी बेहतर कम्युनिकेशन स्किल आपको तरक्की की राह में आगे बढ़ाएगी।
इस इंडस्ट्री में कामयाब होने के लिए कुछ व्यक्तिगत गुणों का होना भी बहुत आवश्यक है, जिनमें से प्रमुख है मृदुभाषी और विनम्र होना।
कार्यशैली
फ्रंट ऑफिस मैनेजर फ्रंट ऑफिस ऑपरेशन को देखता है और कंपनी के बिजनेस प्लान के अनुसार हर काम को व्यवस्थित रखता है। फ्रंट ऑफिस का लीडर होने के नाते वहां से दी जाने वाली सर्विसेज की अप टू डेट जानकारी रखता है। अतिथियों को वह यह महसूस कराने की कोशिश करता है कि यही वह जगह है, जहां उनका सबसे बेहतर ख्याल रखा जाता है। वह मुस्कुराते हुए अतिथियों का स्वागत करता है। मेहमान उसके लिए बहुत खास होते हैं और वह उन्हें यह अहसास कराने की कोशिश करता है कि वे सही जगह  आए हैं और वहां उनका सबसे अच्छा ख्याल रखने की कोशिश की जा रही है। वह अपनी पूरी टीम को ट्रेनिंग देता है कि किस तरह से फोन पर बात करनी है, आमने-सामने कैसे बात करनी है और यदि कोई शिकायत है तो उसे कैसे सुना और दूर किया जाए। फ्रंट ऑफिस मैनेजर होटल के अन्य विभागों के साथ बेहतर तालमेल बनाए रखने की कोशिश करता है, क्योंकि वह जानता है कि ऐसा न करने पर अतिथि को उसकी मनपसंद सेवा देने में चूक हो सकती है। मैनेजमेंट के पास रूम ऑक्यूपेंसी की रोजाना, साप्ताहिक व मासिक रिपोर्ट यहीं से जाती है। होटल मैनेजमेंट अभ्यर्थियों के लिए फ्रंट ऑफिस भी एक विभागीय विकल्प है, जहां से करियर को ऊंचाई मिलती है।
कोर्सेज
होटल मैनेजमेंट 12वीं के बाद कर सकते हैं। ग्रेजुएशन के बाद और भी रास्ते खुल जाते हैं यानी पोस्ट ग्रेजुएशन, डिप्लोमा, पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा आदि सभी मौजूद हैं। डिप्लोमा, डिग्री और पीजी कोर्सेज में प्रमुख हैं-
बीसएसी इन होटल मैनेजमेंट
एमएससी इन हॉस्पिटैलिटी एडमिनिस्ट्रेशन
होटल रिसेप्शन एंड बुक कीपिंग
काउंटर सर्विस में एक वर्षीय डिप्लोमा
डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट
इसके अलावा पीजी डिप्लोमा इन होटल मैनेजमेंट, फ्रंट ऑफिस एंड टूरिज्म मैनेजमेंट, एकॉमोडेशन ऑपरेशन जैसे कोर्स भी उपलब्ध हैं।
नौकरी के अवसर
होटल मैनेजमेंट कोर्स करने के बाद ही फ्रंट ऑफिस मैनेजर बना जा सकता है, इसलिए इसमें अवसरों की कोई कमी नहीं है। मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, होटल, राज्यों के पर्यटन विभाग से लेकर एविएशन तक में अनगिनत जॉब्स हैं। फास्ट फूड चेन जैसे-केएफसी,पिज्जा हट, मैकडॉनल्ड आदि में ढेर सारे अवसर मौजूद हैं। इसके अलावा  बैंक, रेलवे, बड़े संस्थानों में कैटरिंग, एयरलाइंस, मॉल्स, मल्टीप्लेक्स, हेल्थ क्लब जैसी जगहों पर रोजगार के अनेक अवसर मौजूद हैं। विदेशों में भी होटल मैनेजमेंट में डिग्री या डिप्लोमा कर चुके छात्रों की खूब मांग है। इस कोर्स को करने के बाद आप अपना रोजगार भी शुरू कर सकते हैं।
सेलरी
शुरुआती स्तर पर 12 हजार से लेकर 15 हजार रुपये तक का स्टाइपेंड मिलता है। पर जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता है, वेतन में भी बढ़ोतरी होती रहती है। फ्रंट ऑफिस मैनेजर को मिलने वाली सेलरी इस बात पर निर्भर करती है कि वह किस तरह के होटल या संस्थान से जुड़ा है। इसमें आसानी से 40 हजार मासिक रुपये तक की सेलरी मिल सकती है।
एक्सपर्ट व्यू
करियर की संभावनाओं से भरपूर है यह क्षेत्र
आज फ्रंट ऑफिस मैनेजर की जरूरत छोटे से लेकर बड़े सभी तरह के संस्थानों में महसूस की जा रही है, इसलिए इस क्षेत्र में करियर की अपार संभावनाएं हैं। जिस तरह से सर्विस सेक्टर की डिमांड लगातार बढ़ रही है, ऐसे में इस क्षेत्र में नौकरियों की मांग भी लगातार बढ़ेगी। फ्रंट ऑफिस मैनेजर बनने के लिए आपको संबंधित डिप्लोमा या डिग्री कोर्स तो करना ही होगा, साथ ही पद से जुड़ी स्किल्स को भी विकसित करना होगा। यह पद काफी रोचक है। रोज नए-नए लोगों से मिलना भी कम रोमांचक नहीं है। अगर अवसरों की बात करें तो रिजॉर्ट से लेकर फाइव स्टार होटलों तक, हर राज्य के पर्यटन विभाग से लेकर एविएशन तक फ्रंट ऑफिस के लिए अनगिनत जॉब हैं। खाड़ी के देशों में फ्रंट ऑफिस मैनेजर की भारी मांग है।
-डॉ. संजय सिंह बघेल, करियर काउंसलर 
प्रमुख संस्थान
नेशनल काउंसिल फॉर होटल मैनेजमेंट एंड केटरिंग टेक्नोलॉजी, नोएडा
वेबसाइट:
www.nchmct.org
आईईसी यूनिवर्सिटी, बद्दी, हिमाचल प्रदेश
वेबसाइट:
www.iecuniversity.com
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, टूरिज्म एंड होटल मैनेजमेंट विभाग, कुरुक्षेत्र
वेबसाइट:
www.kuk.ac.in
एपीजी शिमला यूनिवर्सिटी, हिमाचल प्रदेश
वेबसाइट:
www.apg.edu.in
इग्नू, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली
वेबसाइट:
www.ignou.ac.in

Friday, January 15, 2016

लैइजर मैनेजमेंट मे करियर

आमतौर पर लैइजर का अर्थ आराम से लगाया जाता है। जब इसके साथ मैनेजमेंट जुड़ जाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि सारा प्रबंधन आराम से किया जाए। वास्तव में यह प्रबंधन का ऐसा क्षेत्र है, जो ग्राहकों के आराम और मनोरंजन का ख्याल रखता है। इसलिए इसमें इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, रेस्टॉरेंट मैनेजमेंट, डिस्क जोकिइंग जैसे करियर शामिल हैं। जिस तरह आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ी है और वह सप्ताहांत और छुट्टियाँ बिताने के नए-नए साधन ढूँढने लगा है, ऐसे में उसकी सुख-सुविधा का प्रबंध करने वाले लैइजर मैनेजमेंट में अवसर और राय दोनों खासे बढ़े हैं।

कठिन काम लेकिन अच्छे दाम
लैइजर मैनेजमेंट से जुड़े प्रोफेशनल्स को रोजाना उसी तरह भागदौड़ करते हुए काम करवाना पड़ता है, जैसे कि शादी के समय दुल्हन का पिता व्यवस्थाएँ जुटाता है। उन्हें लोगों को खुश करने तथा आराम पहुँचाने के नए-नए तरीकों की खोज करते रहना होता है। उन्हें कंट्री क्लब या रिसॉर्ट का प्रबंधन देखना होता है अथवा मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन उनके दैनिक कार्य का हिस्सा होता है। इसमें प्लानिंग से लेकर एक्जीक्यूशन और पोस्ट इवेंट कार्य भी शामिल होते हैं। इस काम में पैसा भी अच्छा है। लैइजर से करियर आरंभ करने वाले कई लोग तो इतने पारंगत हो जाते हैं कि वे स्वयं अपना व्यवसाय आरंभ कर सेवा प्रदान कर खासी आय अर्जित करने लगते हैं।

आमतौर पर लैइजर का अर्थ आराम से लगाया जाता है। जब इसके साथ मैनेजमेंट जुड़ जाता है तो इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता कि सारा प्रबंधन आराम से किया जाए। वास्तव में यह प्रबंधन का ऐसा क्षेत्र है, जो ग्राहकों के आराम और मनोरंजन का ख्याल रखता है। इसलिए इसमें इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, रेस्टॉरेंट मैनेजमेंट, डिस्क जोकिइंग जैसे करियर शामिल हैं। जिस तरह आम आदमी की क्रयशक्ति बढ़ी है और वह सप्ताहांत और छुट्टियाँ बिताने के नए-नए साधन ढूँढने लगा है, ऐसे में उसकी सुख-सुविधा का प्रबंध करने वाले लैइजर मैनेजमेंट में अवसर और राय दोनों खासे बढ़े हैं।

ब्रॉड रेंज है लैइजर मैनेजमेंट की
लैइजर मैनेजमेंट को एक ब्रॉड रेंज वाले करियर के रूप में लिया जाएगा, क्योंकि इसमें बहुत सारे उद्योग जुड़े हुए हैं। इसमें केवल आमोद-प्रमोद की गतिविधियाँ ही शामिल नहीं हैं बल्कि इवेंट मैनेजमेंट, रिसॉर्ट मैनेजमेंट, एम्यूजमेंट मैनेजमेंट जैसे नए-नए क्षेत्र भी शामिल हैं। टू टीयर शहरों में पनपती मॉल संस्कृति ने इसे पैर फैलाने का भरपूर अवसर प्रदान किया है।

क्या होता है लैइजर मैनेजमेंट में?
मूल रूप से लैइजर मैनेजमेंट में लोगों के आराम अथवा फुर्सत के समय का प्रबंधन करना शामिल है जिसमें कंट्री क्लब तथा रिसॉर्ट अथवा यहाँ तक कि जिम्नेशियम का प्रबंधन तक शामिल है। इसके अंतर्गत हॉलीडे पैकेजेस की डिजाइनिंग तथा ट्रेकिंग या राफ्टिंग एक्सरसंस अथवा एडवेंचर गेम्स के अन्य रूप के साथ-साथ फैशन शो या प्रदर्शनी, प्रॉडक्ट लांचिंग और सोशल फंक्शन भी आते हैं, जो इन दिनों एक हॉट करियर के रूप में माने जाते हैं।

लैइजर मैनेजमेंट में प्राइवेट पार्टियों, रोड शो, एक्जीबिशंस, कॉन्फ्रेंस, प्रमोशनल कैम्पेन, कांसर्ट्‌स, अवॉर्ड, नाइट्स जैसे आयोजन भी शामिल हैं। इसमें लाइव इवेंट्स की प्लानिंग से लेकर ऑर्गेनाइजेशन तथा एक्जीक्यूशन जैसे कार्य होते हैं, जो प्रॉडक्ट या ब्रांड लांचिंग से लेकर एक्जीबिशन, सेमिनार, प्रेस कॉन्फ्रेंस और यहाँ तक कि वर्कशॉप्स के आयोजन पर आधारित होते हैं। लैइजर मैनेजमेंट में अक्सर होटल मैनेजमेंट के कुछ पहलू भी जुड़े होते हैं, क्योंकि कई इवेंट तथा लैइजर एक्टीविटियों में खाना तथा ड्रिंक्स भी सर्व किया जाता है तथा गेस्ट्स को ठहराने की व्यवस्था भी करनी होती है।

इस क्षेत्र के प्रोफेशनल्स होटलों द्वारा ऑफर की जाने वाली विभिन्न गतिविधियों का प्रबंधन तथा संचालन करते हैं। इसके अंतर्गत होटल में आयोजित इवेंट के मैनेजमेंट से लेकर उसके प्रमोशन से लेकर पब्लिसिटी का दायित्व भी लैइजर मैनेजरों पर ही होता है। लैइजर मैनेजर ही मीनू तय करता है, स्टाफ का सुपरविजन करता है तथा ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने का कार्य भी करता है।

खूब बढ़ रही है माँग
इन दिनों बड़े शहरों के बाहरी हिस्सों में विभिन्ना क्लब, रिसॉर्ट, जिम तेजी से निर्मित हो रहे हैं, जहाँ समृद्ध परिवार से लेकर आम आदमी अपने मित्रों तथा परिवारों के साथ अपने अवकाश को मौज-मस्ती के साथ बिताना चाहता है। वह इस काम पर पैसा भी खूब खर्च करता है और सुविधा भी अच्छी चाहता है। उसके इस काम में लैइजर सहयोग प्रदान करता है।

आज शहर के बाहर निर्मित रिसॉर्ट या क्लब सारी सुविधाओं तथा साधनों से सुसज्ज्ति हैं। वहाँ नए साल की पार्टियों, संगीत की महफिलों आदि का अपने सदस्यों के लिए आयोजन होता रहता है। लोग तनाव को दूर करने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी से दूर यहाँ आकर सुकून की तलाश करते हैं और इस व्यवसाय से अच्छी आय को देखते हुए इस पर निवेश भी खूब बढ़ रहा है और करियर निर्माण के अवसर भी खूब मिल रहे हैं।

कौन-सा पाठ्यक्रम होगा उपयोगी
इस समय हमारे यहाँ लैइजर मैनेजमेंट के नाम से कोई विशेष पाठ्यक्रम संचालित नहीं किए जा रहे हैं। ऐसे कोई डिग्री या डिप्लोमा कोर्स भी उपलब्ध नहीं हैं, जो लैइजर मैनेमजेंट या इंटरटेनमेंट मैनेजमेंट के क्षेत्र में प्रवेश की सुनिश्चितता प्रदान करते हों। लेकिन पब्लिक रिलेशंस, एडवरटाइजिंग, मॉस कम्युनिकेशंस, सेल्स एंड मार्केटिंग, होटल मैनेजमेंट अथवा बिजनेस मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम निश्चित रूप से मदद प्रदान करते हैं।

विदेशों में लैइजर मैनेजमेंट के पाठ्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं जिसे देखते हुए कुछ निजी संस्थानों ने हमारे यह भी लैइजर मैनेजमेंट में प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया है। यदि आप चुनौती लेने के लिए तैयार हैं और आपको कठिन कार्य करने में दिलचस्पी है और आप कल्पनाशीलता, पहल करने के साथ-साथ अच्छी आयोजन क्षमता रखते हैं तो आपके लिए लैइजर मैनेजमेंट का क्षेत्र उस उर्वरा भूमि जैसा है, जो भरपूर आय और सेलिब्रिटियों के बीच रहने का अवसर प्रदान करता है।

प्रमुख संस्थान
हमारे यहाँ सभी आईआईएम तथा प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में एमबीए का कोर्स संचालित किया जाता है। लैइजर मैनेजमेंट का क्षेत्र चुनने वालों के लिए निम्नलिखित संस्थानों द्वारा संचालित विभिन्न प्रबंधन कार्यक्रम उपयोगी हो सकते हैं :

जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज, मुंबई
एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड रिसर्च
वेलिंगकर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई
टाइम स्कूल ऑफ मैनेजमेंट दरियागंज, नई दिल्ली
लाला लाजपतराय इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, मुंबई

Thursday, January 14, 2016

बायोमेडिकल इंजीनियर के रूप में करियर

भारत में हेल्थकेयर सेक्टर (Healthcare Sector) में आए उभार ने बायोमेडिकल क्षेत्र (Biomedical Field) को काफी धार दी है। देश-विदेश के हेल्थ एक्सपर्ट (Health Expert) सस्ती दर पर इस तकनीक के जरिए मरीजों को निरोगी बनाने में जुटे हैं। इसके लिए काफी संख्या में मेडिकल प्रोफेशनल (Medical Professional) की जरूरत पडती है। आवश्यकता को देखते हुए देश के प्रमुख अस्पतालों में बायोमेडिकल डॉक्टर और मेडिकल साइंटिस्ट रखे जा रहे हैं। यदि आप भी बायोमेडिकल से संबंधित कोर्स कर लेते हैं, तो बहुत आगे जा सकते हैं।
क्या है बीएमई (Biomedical Engineering)
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग (Biomedical Engineering) यानी बीएमई यांत्रिकी की एक उभरती हुई शाखा है। इसमें ऐसे उपकरणों का डिजाइन और निर्माण करते हैं, जो यांत्रिकी और क्लीनिकल लिहाज से उपयोगी हों, जिसमें क्लिनिकल कम्प्यूटर्स, कृत्रिम हृदय, कॉन्टैक्ट लैंस, व्हील चेयर आदि शामिल हैं। आज चिकित्सा विज्ञान (Medical Science) के क्षेत्र में हम और आप जीन और टिश्यू मेनिपुलेशन, कृत्रिम अंगों (Artificial Organs) के निर्माण, जीवनरक्षक उपकरणों (Life saving equipment) तथा पेसमेकर और डायलीसिस, परिष्कृत सर्जिकल उपकरणों तथा मेडिकल इमेजिंग तकनीकों जैसे कि एमआरआई, सीटी स्केनिंग और सोनोग्राफी जैसे नए-नए शब्द सुनते हैं, ये सब बायोमेडिकल इंजीनियरिंग का ही कमाल है।
योग्यता  (Education Qualification)
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग (Biomedical Engineering) के स्नातक स्तर के पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए गणित या जीवविज्ञान समूह से न्यूनतम 55 प्रतिशत अंकों के साथ बारहवीं उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसके लिए प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण करनी होती है। बायोमेडिकल इंजीनियर बनने के लिए बायोमेडिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट आवश्यक है। बीएमई में पीजी भी किया जा सकता है।
पर्सनल स्किल  (Personal Skills)
बायोमेडिकल प्रोफेशनल (Biomedical Professional) का अच्छा इंजीनियर होना और लाइफ साइंस प्रणाली व तकनीक की तरफ झुकाव होना चाहिए। इंजीनियरिंग की बढिया जानकारी, लिखने व बात करने की संप्रेषण कला (Communication Skills) और बायोलॉजी में रुचि आवश्यक है। इसके अतिरिक्त टीम का सदस्य बनकर कार्य करने और विश्लेषणात्मक सोच (Analytical Thinking) भी जरूरी है।
कार्य
इनका काम अन्य मेडिकल प्रोफेशनल्स (Medical Professional) से अलग है। ये मेडिकल रिसर्च (Medical Research) को आसान बनाने के लिए उपकरणों, प्रणालियों तथा प्रक्रियाओं को विकसित करते हैं। रोजाना के कामकाज में बायो-मेडिकल इंजीनियर मेडिकल, सर्जिकल उपकरण और मेडिकल से जुडे फर्नीचर की देखरेख करते है। इसके अलावा, वे किसी इमरजेंसी ब्रेकडाउन और मेंटेनेंस संबंधी समस्या होने पर खराब हो चुके उपकरणों की मरम्मत करते हैं। इसके विशेषज्ञ बीमारी, उनसे जुडी सटीक दवा और मानव स्वास्थ्य (Human Health) संबंधी दूसरे विषयों पर लगातार शोध करते रहते हैं।
अवसर ही अवसर (Opportunities)
देश में जिस तरह नए-नए अस्पताल खुल रहे हैं और मेडिकल टूरिज्म (Medical Tourism) की अवधारणा आकार ले रही है, उससे बायो-मेडिकल इंजीनियर की मांग बढ रही है। भारत चिकित्सा उपकरणों के निर्माण में अंतरराष्ट्रीय हब बन रहा है, उससे इसके पेशेवरों की जरूरत भी महसूस की जा रही है। बायोमेडिकल इंजीनियर के लिए जॉब के अवसर चिकित्सा उपकरण निर्माण, ऑर्थोपेडिक एवं री-हैब इंजीनियरिंग, मॉलिक्यूलर, सेल्लुलर एवं टिश्यू इंजीनियरिंग के क्षेत्र में हैं। वे कॉरपोरेट सेक्टर में भी कई क्षेत्रों में काम कर सकते हैं। प्रोस्थेटिक्स, कृत्रिम अंग, लिंब्स, हिप्स और अन्य अंग बनाने वाली कंपनियों में अच्छे रोजगार मिल जाते हैं। प्रयोगशालाओं का पर्यवेक्षण करने व मशीनों के व्यवस्थापन में बीएमई काम आते हैं। वे वरिष्ठ शोधकर्ताओं के साथ जुडकर भी काम कर सकते हैं। बीपीएल, लार्सन ऐंड टूब्रो, विप्रो मेडिकल और सीमंस जैसी कंपनियां इन्हें योग्यता के आधार पर अपने आर एंड डी, सेल्स व मार्केटिंग विभाग में जगह देती हैं।
प्रमुख संस्थान (Main Institute)
आईआईटी, मुंबई
एम्स, नई दिल्ली
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी
जेबी इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग, हैदराबाद
जादवपुर यूनिवर्सिटी

Tuesday, January 12, 2016

केमोइन्फॉर्मेटिक में करियर

विज्ञान में इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी के समावेश से कई ऐसे क्षेत्र सामने आए हैं, जिनमें हाल के दिनों में करियर की अच्छी संभावनाएं देखी गई हैं। खासकर बायोटेक्नोलॉजी, बायोइंजीनियरिंग, बायोइन्फॉर्मेटिक आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें देश में ही नहीं, बल्कि देश के बाहर भी करियर के अच्छे स्कोप हैं। अब इसमें एक और नया नाम जुड़ गया है केमोइन्फॉर्मेटिक्स का। यदि आप विज्ञान के क्षेत्र में कुछ नए की तलाश में हैं, तो केमोइन्फॉर्मेटिक्स आपके लिए अच्छा विकल्प हो सकता है।


क्या है केमोइन्फॉर्मेटिक?
केमिकल डाटा को कम्प्यूटर की सहायता से एक्सेस या चेंज करने का काम होता है केमोइन्फॉर्मेटिक्स में। पहले यही कार्य ढेर सारे बुक, जर्नल्स और पिरिडियोकल्स की सहायता से किए जाते थे। जाहिर है यह बेहद जटिल और समय खपाऊ काम रहा होग, लेकिन अब इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने इस प्रक्रिया को बेहद आसान बना दिया है।

केमोइन्फॉर्मेटिक्स का प्रयोग ड्रग डिस्कवरी प्रक्रिया में होता है। इसमें शोधकर्ता अलग-अलग रसायनों का जैविक प्रभाव तलाशते हैं। किस रसायन का कैसा प्रभाव होगा, वह कितना खतरनाक या प्रभावी हो सकता है, इसके लिए केमिकल कंपोनेंट्स का असेसमेंट, रिप्लेसमेंट, डिजाइन आदि जरूरी होता है। एक खास सॉफ्टवेयर पर होने वाली इस पूरी प्रक्रिया के तहत शोधकर्ता केमिकल रिएक्शंस को देख भी सकते हैं। हालांकि केमोइन्फॉर्मेटिक्स का इस्तेमाल खासकर फॉर्मास्युटिकल कंपनियों में होता है, लेकिन इस खास टेक्निक का उपयोग फंक्शनल फूड बनाने के लिए न्यूट्रिशनल प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियां भी कर रही हैं। इससे न केवल दवा बनाने की प्रक्रिया तेज हुई है, बल्कि उसकी गुणवत्ता भी काफी एडवांस होने लगी है।

कितने योग्य हैं आप?
केमोइन्फॉर्मेटिक्स एक एडवांस फील्ड है और इसमें खास विषय यानी केमिस्ट्री में रुचि रखने वाले कैंडिडेट्स अधिक बेहतर कर सकते हैं। चूंकि केमोइन्फॉर्मेटिक्स में कम्प्यूटर पर ही सारे कार्य होते हैं, इसलिए कम्प्यूटर की बेसिक समझ तो जरूर होनी चाहिए। यानी केमोइन्फॉर्मेटिक्स की फील्ड में आने के लिए साइंस बैकग्राउंड का होना जरूरी है।

स्टडी डेस्टिनेशन
इन दिनों ज्यादातर शिक्षण संस्थानों में साइंस की बायोइन्फॉर्मेटिक्स शाखा के तहत ही केमोइन्फॉर्मेटिक्स की पढ़ाई होती है। देश में कुछ खास शिक्षण संस्थान हैं, जहां इस विषय की पढ़ाई एक नए डिसिप्लीन के तौर पर हो रही है। मसलन, मालाबार क्रिश्चन कॉलेज, कोझिकोड, इंस्टीट्यूट ऑफ केमोइन्फॉर्मेटिक्स स्टडी, नोएडा, जामिया हमदर्द डीम्ड यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली, पुणे यूनिवर्सिटी आदि। और जो विदेश से केमोइन्फॉर्मेटिक्स की पढ़ाई करना चाहते हैं, तो उनके लिए भी कई विकल्प हैं। वे यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर, यूके, यूनिवर्सिटी ऑफ शेफिल्ड, यूके, यूनिवर्सिटी ऑफ शेफिल्ड, यूके जैसी यूनिवर्सिटी में इस कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं।

कोर्सेज की बात
ऊपर जिन संस्थानों की चर्चा है, इनसे आप डिप्लोमा और फूल टाइम दोनों तरह के कोर्स कर सकते हैं। दो वर्षीय एमएससी कोर्स पूरा होने के बाद इन्फॉर्मेटिक्स में रिसर्च का विकल्प खुलता है। कहीं-कहीं एक वर्षीय डिप्लोमा और पीजी डिप्लोमा भी कराए जाते हैं। केमोइन्फॉर्मेटिक्स में एमएससी के अंतर्गत विशेष रूप से डाटा बेस प्रोग्रामिंग, वेब टेक्नोलॉजी, डाटा माइनिंग, डाटा कलैक्शन, सैंपलिंग एवं कम्प्यूटर से ड्रग डिजाइनिंग की पढ़ाई होती है। इस फील्ड के कोर्स में प्रायोगिक प्रशिक्षण और प्रबंधन संबंधी कार्य काफी महत्वपूर्ण होते हैं।

अवसर ही अवसर
केमोइन्फॉर्मेटिक्स बेहतर दवा की खोज के लिए शोधकर्ताओं की क्षमता को कई गुना बढ़ा देता है, लेकिन आप सोच रहे हैं कि केवल फॉर्मा के क्षेत्र में ही विकल्प सीमित हो जाता है, तो ऐसा नहीं है। केमिकल, एग्रोकेमिकल, बायोटेक्नोलॉजी से जुड़ी कंपनियां भी बेहतर कैंडिडेट की तलाश में रहती है। इसके अलावा, हॉस्पिटल्स, यूनिवर्सिटी रिसर्च में भी आप मौके तलाश सकते हैं।

एमएससी करने के बाद आपको कई तरह के पद ऑफर हो सकते हैं। लेकिन जो फ्रेश ग्रेजुएट्स हैं, उन्हें भी अच्छे पद मिल सकते हैं। वे विभिन्न कंपनियों में कम्प्यूटेशनल केमिस्ट, केमिकल डाटा साइंटिस्ट, रेगुलेट्री अफेयर्स ऑफिसर, सीनियर इन्फॉर्मेशन एनालिस्ट, डाटा ऑफिसर, ग्रेजएट आईटी ट्रेनी के रूप में नियुक्त हो सकते हैं। केमोइन्फॉर्मेटिक्स से जुड़े कैंडिडेट की मांग विदेशी कंपनियों में भी खूब हैं।

Monday, January 11, 2016

एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस में करियर

एविएशन का नाम आते ही आसमान में उड़ने का मन करता है लेकिन यदि आप बनाना चाहते हो हो एविएशन में अपना करियर तो आप कहाँ पर अपनी लाइफ बना सकते हो। एविएशन सेक्टर (Aviation Sector) में हो रहे लगातार विस्तार से रोजगार के अवसरों में काफी इजाफा हुआ है। ऐसे में बहुत से अवसर हैं कई लोग सोचते हैं केवल पायलट या एयर होस्टेस तक ही एविएशन में जॉब सीमित हैं,  लेकिन ऐसा कतई नही है क्योंकि इनके इलावा भी आप एविएशन में अपना करियर बना सकते हो। इसी लाइन में में एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर (AME) भी बहुत अच्छा विकल्प है।
एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर की कार्य प्रकृति कैसी है उसका क्या काम होता है: किसी भी जहाज की तकनीकी जिम्मेदारी एएमई के ऊपर होती है। हर उड़ान के पहले एएमई जहाज का पूरी तरह से निरीक्षण करता है और सर्टिफिकेट जारी करता है कि जहाज उड़ान भरने को तैयार है। इस काम के लिए उसके पास पूरी तकनीकी टीम होती है। कोई भी विमान एएमई के फिटनेस सर्टिफिकेट के बिना उड़ान नहीं भर सकता। गौरतलब है कि एक हवाईजहाज के पीछे करीब 15-20 इंजीनियर काम करते हैं। इसी से इनकी जरूरत का अनुमान लगाया जा सकता है।
कैसे बन सकते हो आप एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बन सकते हो: जैसे की पायलट बनने के लिए लाइसेंस लेने की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है वैसे ही एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बनने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता है। यह लाइसेंस डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन द्वारा प्रदान किया जाता है। कोई भी संस्थान, जो इससे संबंधित कोर्स कराता है, उसे भारत सरकार के विमानन मंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले डीजीसीए से इसके लिए अनुमति लेनी होती है। जो इंस्टिट्यूट इससे मान्यता प्राप्त हैं उनसे भी आप ये लाइसेंस हासिल कर सकते हैं।
एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर बनने के लिए क्या शैक्षणिक योग्यता की आवश्कयता होनी चाहिए: जो विद्यार्थी इस कोर्स के लिए आवेदन करना चाहते हैं, उनके लिए फिजिक्स, केमिस्ट्री और मैथेमेटिक्स विषयों की पढ़ाई जरूरी है। पीसीएम से 12वीं उत्तीर्ण विद्यार्थी एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियरिंग से संबंधित पाठ्यक्रमों में दाखिला ले सकते हैं। कोर्स के दौरान मैकेनिकल इंजीनियरिंग और वैमानिकी की विभिन्न शाखाओं के बारे में जानकारी दी जाती है।
एविएशन सेक्टर में कहाँ मिलेंगे अवसर: ऐसे तकनीकी प्रोफेशनल्स के लिए देश-विदेश में सभी जगह मौके हैं। एयर इंडिया, इंडिगो, इंडियन एयरलाइन्स, जेट एयरवेज, स्पाइस जेट, गो एयर जैसे एयरलाइंस में तो मौके मिलते ही हैं, इसके अलावा देश के तमाम हवाईअड्डों और सरकारी उड्डयन विभागों में भी रोजगार के बेहतरीन अवसर उपलब्ध होते हैं। भारत में ही करीब 450 कंपनियां हैं, जो इस क्षेत्र में रोजगार प्रदान करती हैं। एएमई का शुरुआती वेतन 20-30 हजार हो सकता है, जिसमें अनुभव और विशेष शिक्षा के साथ बढ़ोतरी होती जाती है। इसके साथ-2 आप विदेशी या प्राइवेट कंपनियो जो प्राइवेट एयरक्राफ्ट की सुविधा उपलब्ध कराती उनमे भी आप अपना करियर चुन सकते हो
देश में कौन कौनसे मुख्य संस्थान हैं जहाँ पर एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस इंजीनियर के लिए कोर्स किया जा सकता है: जो संस्थान संबंधित कोर्स कराने का इच्छुक होता है, उसको डीजीसीए से मान्यता लेनी होती है। ऐसे कुछ प्रमुख संस्थान हैं-
  • जेआरएन इंस्टीट्यूट ऑफ एविएशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली
  • भारत इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स, पटना एयरपोर्ट, पटना
  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स साइंस, कोलकाता
  • एकेडमी ऑफ एविएशन इंजीनियरिंग, बेंगलुरु
  • आंध्र प्रदेश एविएशन एकेडमी, हैदराबाद

Sunday, January 10, 2016

स्पा थेरेपी में करियर

स्वस्थ रहने और स्वस्थ दिखने की चाह सभी की होती है। आज ऐसी कई थेरेपी मौजूद हैं, जिनके इस्तेमाल से न सिर्फ शरीर, बल्कि मन भी स्वस्थ रहता है। यही कारण है कि अब देश में वेलनेस इंडस्ट्री जोर पकड़ रही है और बतौर बिजनेस सामने आ रही है। इसी का एक हिस्सा है स्पा थेरेपी। कुशल लोगों की कमी से जूझ रही इस इंडस्ट्री में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं।
स्पा थेरेपी क्या है?
स्पा थेरेपी के केंद्र में मुख्यत: मसाज, हाइड्रो थेरेपी, हाथों तथा पैरों के उपचार तथा चेहरे के लिए ब्यूटी ट्रीटमेंट शामिल है। इन थेरेपीज के माध्यम से हमारी मांसपेशियां, हड्डियां, पाचन प्रणाली, श्वसन प्रणाली, भावनात्मक, दिमागी और नाड़ी तंत्र बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इनसे थकान, भारीपन, मांसपेशियों की कठोरता आदि समस्याएं खत्म होती हैं।
योग्यता
हालांकि क्वालिफाइड स्पा थेरेपिस्ट बनने के लिए कई कोर्स हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त संस्थानों से प्रशिक्षण लेना ही बेहतर होता है। आप हाईस्कूल करने के बाद भी कोर्सेज में प्रवेश ले सकते हैं।
कौशल
इस फील्ड में वही सफल हो सकता है, जो क्लाइंट की जरूरतों को समझ सके। क्लाइंट से विनम्र भाव से बात करने और उसकी आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर उनकी पूर्ति करने में सफल हो सके। इसके अलावा कपड़े साफ रखने से लेकर चलने-फिरने के स्टाइल तक में आपको ध्यान बरतने की जरूरत है।
कोर्स में क्या करवाया जाता है
छात्रों को विभिन्न तरह की मसाज और स्पा थेरेपी के बारे में पढ़ाया जाता है और मसाज के जरिये उन स्थितियों को जांचने के बारे में भी बताया जाता है, जिनका इलाज करना है। कोर्स में एरोमा थेरेपी, मसल स्टिम्युलेशन, सेनिटेशन आदि को भी शामिल किया जाता है।
कार्य करने की अवधि
फुल टाइम स्पा थेरेपिस्ट का काम आठ से दस घंटे का होता है और सुबह की तुलना में शाम को अधिक काम रहता है। साथ ही वीकएंड में भी काम की अधिकता रहती है।
वेतन
स्पा थेरेपिस्ट में नए प्रशिक्षुओं को 10 से 14 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। कुछ साल अनुभव प्राप्त करने के बाद उन्हें आसानी से 14 से 20 हजार रुपये मासिक मिल जाते हैं। यदि वे प्रबंधन के हिस्से हो जाते हैं तो उन्हें 30-80 हजार रुपये तक मिलते हैं।
अवसर
कोर्स करने के बाद इसमें जॉब की कमी नहीं रहती। ऐसे में जरूरी है कि आप खुद को कैसे अपडेट रखते हैं और क्लाइंट्स को किस तरह प्रभावित कर पाते हैं। स्पा थेरेपिस्ट को मसाज, ब्यूटी सैलून, हॉलिस्टिक हेल्थ क्लिनिक, फिटनेस सेंटर में नियुक्त किया जाता है।
इसके अलावा उन्हें खिलाडियों को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए खेल टीमों और स्पोर्ट्स क्लबों में भी रखा जाता है। नौकरी करने का मन न होने पर स्पा थेरेपिस्ट स्वतंत्र रूप से भी काम कर सकते हैं। अपनी इस भूमिका में वह क्लाइंट के घर जाकर या उसके कार्यस्थल पर पहुंच कर अपनी सेवाएं दे सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
शहनाज हुसैन वुमन वर्ल्ड इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ब्यूटी
राष्ट्रीय नाटय़ विद्यालय, बहावलपुर हाउस, नई दिल्ली
भारती तनेजा एल्प्स एकेडमी ऑफ हेयर डिजाइनिंग एंड ब्यूटी, नई दिल्ली
ब्लॉसम कोचर्स पिवट प्वाइंट, चेन्नई
वीएलसीसी, दिल्ली, मुंबई
इंटरनेशनल फिनिशिंग एकेडमी, मुंबई 
पर्ल एकेडमी ऑफ फैशन
आईटीआई (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीटय़ूट)
आनंदा स्पा इंस्टीटय़ूट्स, हैदराबाद
इस्पा स्पा एकेडमी, कोचीन
एलीट इंटरनेशनल स्कूल ऑफ ब्यूटी एंड स्पा थेरेपी, न्यूजीलैंड

Saturday, January 9, 2016

टैटू आर्ट: कला भी, करियर भी

टैटू आर्ट नये दौर में युवाओं के फैशन स्टेटमेंट का हिस्सा बन चुका है। यूं तो शरीर पर कलात्मक आकृतियां उभारना पुरातन दौर में भी चलन में रहा है, लेकिन तब यह कहीं न कहीं परम्परा से जुड़ा हुआ था। लोग ईश्वर का नाम, उनका चित्र या कोई पारंपरिक धरोहर टैटू के जरिये शरीर पर गुदवाते थे, पर अब इसमें विषयों की भरमार है। इन दिनों टैटू आर्ट चलन में आने से इसमें करियर की संभावनाएं भी बढ़ी हैं। टैटू मेकिंग को व्यवसाय बनाने के लिए आप में कला से लगाव, धर्य और परफेक्शन होना पहली शर्त है, क्योंकि शरीर पर एक बार टैटू बनाने के बाद दोबारा इसमें सुधार की गुंजाइश कम ही बचती है।
कैसे करें शुरुआतटैटू आर्टिस्ट बनने के लिए किसी बड़ी डिग्री या डिप्लोमा का होना बहुत जरूरी नहीं है। इसके लिए कई संस्थानों ने सामान्य ट्रेनिंग के जरिये टैटू मेकिंग सिखा कर लाइसेंस देना शुरू किया है। इसका लाइसेंस पाने के लिए एलायंस ऑफ प्रोफेशनल टैटूइस्ट्स (एपीटी) ने कुछ आधारभूत योग्यता मानक तय किए हैं।
शैक्षिक योग्यतायूं तो टैटू मेकिंग के लिए आपका कलात्मक क्षेत्र में माहिर होना ही काफी है, लेकिन शरीर से सीधे संबंधित कला होने के कारण आपको विज्ञान और स्टर्लाइजेशन का भी पूरा ज्ञान होना चाहिए। टैटू मेकिंग के लिए त्वचा की ऊपरी परत में स्याही द्वारा किसी डिजाइन को उकेरा जाता है। ऐसे में जरूरी है कि आप त्वचा संबंधी बीमारियों और संक्रमण के प्रति संवेदनशील हों।
टैटू आर्टिस्ट बनने के लिए जरूरीएक सफल टैटू आर्टिस्ट बनने के लिए डिजाइनिंग का ज्ञान होना बहुत जरूरी है। इस क्षेत्र में आगे बढ़ने की कुंजी भी सधे हुए हाथों से किसी कल्पना को ज्यों का त्यों किसी बॉडी पर उकेर देना है। यहां जरा-सी गलती आपकी साख को हानि पहुंचा सकती है।
हो सकता है सर्वोत्तम करियर     
इस करियर में अच्छे टैटू आर्टिस्ट करियर की शुरुआत 20 हजार रुपये की मासिक कमाई से कर सकते हैं। इसके बाद अपनी योग्यता और प्रसिद्धि के आधार पर आप अधिक से अधिक कमा सकते हैं। इसमें दो तरह से कमाया जा सकता है। अगर आपके पास निवेश के लिए भारी रकम है तो खुद का स्टूडियो खोल कर यह काम शुरू कर सकते हैं। वहीं दूसरा विकल्प फ्रीलांसर के तौर पर टैटू एक्सपर्ट बनने का है। यहां डिजाइन के हिसाब से प्रति घंटे की कमाई होती है। आप बॉडी आर्ट बना कर एक दिन में 10 हजार रुपये तक कमा सकते हैं।
टैटू आर्टिस्ट बनना है तो
पोर्टफोलियो तैयार रखें:
 जब भी आप कहीं टैटू आर्टिस्ट के तौर पर काम करने जा रहे हैं तो आपका पोर्टफोलियो तैयार होना चाहिए। इसके लिए आपके पास किसी बड़े स्टूडियो से साल-दो साल की अप्रेंटिसशिप का प्रमाण पत्र और आपके द्वारा बनाए गए खास-खास डिजाइन होने चाहिएं।
मशीन और औजारों का ज्ञान हो: एपीटी के मानकों के अनुसार यह अप्रेंटिसशिप कम से कम तीन साल की होनी चाहिए। इस दौरान आर्टिस्ट को एक टैटू डिजाइन सीखने के साथ-साथ प्रोफेशनल तौर-तरीके भी सीखने चाहिए। टैटू मशीन के इस्तेमाल से भी अहम है स्टरलाइज्ड औजारों की उपयोगिता को समझना।
सेमिनार से जुड़ी जानकारियां रखें: टैटू मेकिंग के क्षेत्र में आए दिन त्वचा रोगों और संक्रमण को लेकर सेमिनार होते रहते हैं। एक सफल आर्टिस्ट अगर टैटू मेकिंग के क्षेत्र में आकर भी इस बारे में नहीं जानता तो वह कभी भी इस क्षेत्र में सफलता हासिल नहीं कर सकता। आपको लाइसेंस लेने के लिए भी इससे संबंधित दस्तावेज देने होंगे।
जल्द से जल्द लाइसेंस ले लें: टैटू आर्टिस्ट को 360 घंटे की ट्रेनिंग और 50 सफल टैटू बनाने पर एक स्वीकृत आर्टिस्ट मान लिया जाता है। इसके बाद एक लिखित परीक्षा द्वारा उसके गुणों की जांच की जाती है। इस के बाद ही उसे किसी नामी संस्था की ओर से लाइसेंस दिया जा सकता है।
सफलता के लिए लगातार सीखते रहें: टैटू आर्टिस्ट के लिए हर पल बदलते फैशन से अपडेट रहना जरूरी है। अगर वह इंटरनेट, सेमिनार और वर्कशॉप द्वारा अपने को अपडेट करता रहे, तभी वह सफल आर्टिस्ट बन सकता है।

यहां सीख सकते हैं-
केडीजेड टैटूज
 (www.kdztattoos.com)     
टैटूज बाइ माइक (www.tattoosbymike.com)
डेविल्ज टैटू (www.tattoosnewdelhi.com)

Thursday, January 7, 2016

फूड प्रोसेसिंग के रूप में करियर

फूड प्रोसेसिंग खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों को कई रूपों में सहेजने की एक बेहतर प्रक्रिया है। इस क्षेत्र में स्वरोजगार अच्छे करियर के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
योग्यता
फूड प्रोसेसिंग में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट कोर्सेज के अलावा डिग्री भी प्राप्त की जा सकती है। इस क्षेत्र से स्नातक डिग्री में प्रवेश पाने के लिए केमिस्ट्री, फिजिक्स, मैथमेटिक्स या बायोलॉजी आदि विषयों में 12वीं में कम से कम 50 प्रतिशत अंक जरूरी हैं। एमएससी कोर्स करने के लिए फूड टेक्नोलॉजी से संबंधित विषयों में स्नातक की डिग्री आवश्यक है।
कोर्सेज
फूड प्रोसेसिंग में 3 साल के कोर्सेज में बीएससी इन फूड टेक्नोलॉजी, बीएससी इन फूड न्यूट्रीशियन एंड प्रिजरर्वेशन हैं। 4 साल में बीटेक इन फूड इंजीनियरिंग और 2 साल में एमएससी इन फूड टेक्नोलॉजी के कोर्स कराए जाते हैं।
कॉलेज स्तर पर इस क्षेत्र में बी टेक., बी़ एससी़, एम़ टेक़., एम़ एससी़ और पीएच़ डी इन फूड टेक्नोलॉजी एंड प्रोसेसिंग पाठय़क्रम उपलब्ध हैं। इस क्षेत्र में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा कोर्स भी कराए जाते हैं।
कैसे लें प्रवेश
फूड प्रोसेसिंग की पढ़ाई के लिए प्रवेश प्रक्रिया अलग-अलग है। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए परीक्षा देनी होती है। अखिल भारतीय प्रवेश परीक्षा के आधार पर राज्यों के विश्वविद्यालयों में स्नतकोत्तर कोर्स की पच्चीस प्रतिशत सीटें भरी जाती हैं। बी टेक., बी.एससी पाठय़क्रम में प्रवेश के लिए विज्ञान (फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स, बायोलॉजी) में 12वीं परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। एम.टेक. पाठय़क्रम के लिए खाद्य प्रौद्योगिकी, रसायन इंजीनियरी में बी टेक. परीक्षा उत्तीर्ण होनी चाहिए। खादी ग्रामोद्योग में इसके लिए सर्टिफिकेट कोर्स उपलब्ध है।
शुल्क: सरकारी और प्राइवेट संस्थानों में कोर्स के हिसाब से शुल्क निर्धारित है। फिर भी इस क्षेत्र में 500 रुपए से लेकर एक लाख रुपए तक शुल्क खर्च करके आप शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं।
खर्च: फूड प्रोसेसिंग का काम करीब एक लाख रुपए से शुरू किया जा सकता है।
कच्चा माल - फूड प्रोसेसिंग दो से तीन स्तरों पर चलने वाला स्वरोजगार है। आप अपने सामर्थ्य के मुताबिक इसे शुरू कर सकते हैं। इसमें जैविक फसलें उगाना, जैविक फूड तैयार करना और उसे बाजार में उतारना आदि भी शामिल है। अगर आप केवल फूड प्रोसेसिंग का काम शुरू करते हैं तो कच्चा माल जैविक फसलें उगाने वाले किसानों से खरीद सकते हैं।
बिक्री: आप तैयार माल को बाजार में सीधे उतारने के अलावा एजेंट्स के जरिए भी बिक्री कर सकते हैं। खादी से प्रशिक्षण लेने वाले अगर लोन लेकर काम शुरू करते हैं तो खादी के बिक्री संस्थान तब तक आपका माल खरीदने की जिम्मेदारी उठाएंगे, जब तक कि आप लोन नहीं चुका देते।
आमदनी : एक लाख की लागत से प्रतिमाह 10 से 30 हजार तक कमाए जा सकते हैं। आमदनी आपके द्वारा तैयार माल, उसकी पैकिंग और मार्केटिंग पर भी निर्भर करती है।
ऋण: वैसे तो किसी भी तरह के स्वरोजगार को शुरू करने के लिए आप प्राइवेट और विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत ऋण ले सकते हैं, लेकिन अगर आपने खादी से प्रशिक्षण लिया है तो आप इस संस्थान से भी ऋण के लिए आवेदन कर सकते हैं। खादी में प्रशिक्षण लेने वाले पच्चीस हजार से पच्चीस लाख तक का लोन ले सकते हैं। इसके लिए नजदीकी बैंक से संपर्क करना होगा।
फूड प्रोसेसिंग क्या है
फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री काफी बड़ा क्षेत्र है। इसमें खाद्य सामग्री और पेय पदार्थों को प्रोसेस करके रखा जाता है। फूड प्रोसेसिंग एक तरह की टेक्नोलॉजी है। इस क्षेत्र में करियर बनाने से पहले आपको फूड टेक्नोलॉजिस्ट होना पड़ेगा।
प्रमुख संस्थान
फूड प्रोसेसिंग अथवा प्रिजर्वेशन का प्रशिक्षण आप निम्न संस्थानों में से किसी एक में प्रवेश लेकर प्राप्त कर सकते हैं-
आंचलिक बहु-उद्देशीय प्रशिक्षण केंद्र, खादी और ग्रामोद्योग, गांधी दर्शन, राजघाट, नई दिल्ली-110002
सीएफटीआरआई, मैसूर
जीबी पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, पंतनगर, उत्तराखंड 
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ फूड टेक्नोलॉजी एंड एंटरप्रिन्योर
मां धंतेश्वरी हर्बल प्रोडक्ट, कोडा गांव-494226, मुंबई, महाराष्ट्र
माता फाउंडेशन 23/201, ईस्ट एंड अपार्टमेंट, फेज-1, दिल्ली-110096
राजस्थान ऑग्रेनिक सर्टिफिकेट अथॉरिटी, जयपुर, राजस्थान
स्पाइलिस बोर्ड, कोचीन

Wednesday, January 6, 2016

बायोमैकेनिक्स में करियर

बायोलॉजी के स्टूडेंट्स आमतौर पर डॉंक्टर बनने का ही सपना देखते हैं, लेकिन देश में इस कोर्स की अत्यंत सीमित सीटों के कारण बहुसंख्यक युवाओं का सपना पूरा नहीं हो पाता। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं लगाया जाना चाहिए कि बायोलॉजी सब्जेक्ट की इसके अलावा कोई अन्य करियर उपयोगिता नहीं है। हाल के वर्षों में बायोइंफॉर्मेटिक्स, बायोफिजिक्स, बायो इंजीनियरिंग, बायोकैमिस्ट्री जैसे कई नए विषयों का अस्तित्व सामने आया है। इसी क्रम में सबसे उभरता हुआ नया विषय है बायोमैकेनिक्स का।
क्या है बायोमैकेनिक्स
बुनियादी रूप से इस विषय के अंतर्गत विभिन्न जैविक प्रणालियों के कार्यकलापों का मैकेनिक्स के सिद्धांतों के आधार पर अध्ययन किया जाता है। इन जैविक प्रणालियों में मानव, पशु, वनस्पति, अंग, कोशिका आदि शामिल हैं। यानी भौतिक शास्त्र की परिभाषाओं की नजर से प्राणियों और वनस्पतियों की संरचना एवं विभिन्न अंगों की कार्यप्रणालियों को समझने का प्रयास इसमें शामिल है। दुर्घटनाओं में अंग-भंग होने अथवा कृत्रिम अंगों के विकास एवं उत्पादन से जुड़े कार्यों में इस तरह की विशेषज्ञता वाले लोगों की जरूरत पड़ती है।
एकेडेमिक बैकग्राउंड
इच्छुक युवाओं के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि उनके पास बायोलॉजी, इंजीनियरिंग अथवा सम्बद्ध विज्ञान की शाखाओं में कम से कम बैचलर्स डिग्री अवश्य हो।
एप्टिटय़ूड
फिलहाल इस क्षेत्र में दुनिया भर में अनुसन्धान और शोध कार्यकलाप जारी है, इसलिए ऐसे युवा जो रिसर्च एंड डेवलपमेंट की चुनौतियों में संतुष्टि हासिल करना चाहते हैं, उनके लिए निस्संदेह यह आकर्षक करियर विकल्प हो सकता है। एक और महत्वपूर्ण बात यह कि बायोमैकेनिक्स एक इंटर डिसिप्लिनरी सब्जेक्ट है, इसलिए युवाओं की बायोलॉजी के साथ फिजिक्स, मैथ्स अथवा इंजीनियरिंग में रुचि होनी भी जरूरी है, तभी आगे बढ़ने के रास्ते खुल सकते हैं। मेहनती, सृजनात्मक और नई सोच में आस्था रखने वाले युवाओं के लिए यह चैलेंजिंग फील्ड कहा जा सकता है।
स्पेशलाइजेशन
अन्य कार्यक्षेत्रों की तरह बायोमैकेनिक्स में भी विशेषज्ञता हासिल करने के कई तरह के अवसर हो सकते हैं। इनमें स्पोर्ट्स बायोमैकेनिक्स, बायो ट्रिबोलॉजी, कम्पेरेटिव बायो मैकेनिक्स, प्लांट बायोमैकेनिक्स,कम्प्युटेशनल बायोमैकेनिक्स, इंजरी बायोमैकेनिक्स आदि का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। इस तरह की विशेषज्ञता हासिल करने के लिए मास्टर्स अथवा पीएचडी स्तर के कोर्स करने जरूरी होते हैं।
जॉब्स
बायोमैकेनिक्स का प्रयोग खासतौर पर ऑर्थोपेडिक इंडस्ट्री में कृत्रिम मानव अंगों के निर्माण, डेंटल पार्ट्स तैयार करने आदि में किया जाता है। दुनिया भर में यह इंडस्ट्री काफी तेजी से विकसित हो रही है। इस इंडस्ट्री के आर एंड डी विभागों के अलावा मैन्युफेक्चरिंग यूनिट्स में ऐसे ट्रेंड लोगों को नियुक्त किया जाता है। बायोट्रिबोलॉजी भी इसी की अन्य उपशाखा है, जिसमें ऐसे कृत्रिम अंगों को और उपयोगी एवं प्रभावी बनने के उद्देश्य से अनुसन्धान किये जाते हैं। इसके अलावा रोड एक्सीडेंट्स एवं स्पोर्ट्स से सम्बंधित दुर्घटनाओं की चिकित्सा से सम्बंधित स्पेशलाइज अस्पतालों में ऐसे विशेषज्ञों की सेवाएं काफी महत्वपूर्ण होती हैं। यही नहीं, यूनिवर्सिटी टीचिंग में भी अच्छा स्कोप हो सकता है। विभिन्न कारणों से विकलांग होने वाले लोगों की संख्या देश-दुनिया में बढम् रही है। इसका नुकसान सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उत्पादकता की हानि के तौर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक एवं आर्थिक हानि के रूप में भी देखा जाता है। इस कारण भी इस बहुमूल्य मानव संसाधन को दोबारा मुख्य धारा में शामिल करने के उद्देश्य से समूची दुनिया में बड़े पैमाने पर सरकारी और प्राइवेट सेक्टर द्वारा निवेश किया जा रहा है। एर्गोनॉमिक्स (मशक्कत में कमी करने पर आधारित विज्ञान) पर अनुसन्धान और शोध करने वाली संस्थाएं भी इस तरह के प्रशिक्षित लोगों के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाती हैं।
गुरुमंत्र
इस फील्ड में सफल करियर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि आप सैद्धांतिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभव भी हासिल करें। इसके लिए फैकल्टी मेम्बर/सीनियर के असिस्टेंट के रूप में काम किया जा सकता है। यही नहीं, इस कार्यक्षेत्र से सम्बंधित किसी कम्पनी अथवा उसके आर एंड डी विभाग से भी पार्ट टाइम जुड़ा जा सकता है। बायोमैकेनिक्स की नेशनल और इंटरनेशनल सोसायटीज की मेम्बरशिप लेकर वर्कशॉप/सेमिनार/शॉर्ट टर्म कोर्स आदि अटेंड करने के अलावा इस क्षेत्र के प्रख्यात बायो मैकेनिक एक्सपर्ट्स से संपर्क बना कर रखा जा सकता है।
सीमापार
मास्टर्स तथा पीएचडी स्तर के कोर्सेज देश की चुनिंदा यूनिवर्सिटीज में संचालित किये जा रहे हैं। इन कोर्सेज में मास्टर्स ऑफ साइंस (स्पोर्ट्स बायोमैकेनिक्स)-तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी, चेन्नई के अलावा तमाम प्राइवेट संस्थानों में इस तरह के कोर्सेज संचालित किये जाते हैं। इनके अलावा ऐसे विदेशी संस्थानों की संख्या भी कुछ कम नहीं है। यहां विदेशी संस्थानों द्वारा तमाम तरह के शॉर्ट टर्म सर्टिफिकेट कोर्सेज भी ऑनलाइन संचालित किये जाते हैं।

Tuesday, January 5, 2016

एग्रीकल्चरल साइंस में करियर

एग्रीकल्चरल साइंस एक आकर्षक करियर क्षेत्र है। इस फील्ड में अवसरों की कोई कमी नहीं है। इससे संबंधित कोर्स और करियर के बारे में बता रही हैं नमिता सिंह
मौजूदा केंद्र सरकार ने अपने पहले आम बजट में एग्रीकल्चरल सेक्टर पर जोर देकर हरित क्रांति व देश में कृषि क्षेत्र की सेहत सुधारने की पहल की है। इस बजट की एक खास बात यह भी रही कि इसमें हर खेत तक पानी पहुंचाने के लिए 1000 करोड़, सूखे, कम मानसून, बाढ़ से मुकाबला करने के लिए 100 करोड़ व कृषि उपकरण सस्ते करने व आधुनिक खेती के लिए 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इन सारी कवायदों से एग्रीकल्चर सेक्टर में न सिर्फ बूम आने की संभावना है, बल्कि रोजगार के लिए कृषि पर लोगों की निर्भरता बढ़ेगी। फसलों की हार्वेस्टिंग, प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, स्टोरेज व ट्रांसपोर्टेशन आदि काम रफ्तार पकड़ेंगे। यदि आज देखा जाए तो भारत का एग्रीकल्चर सेक्टर खाद्यान्न के उत्पादन तक ही सीमित न होकर बिजनेस के क्षेत्र की ओर प्रमुखता से कदम बढ़ा रहा है। कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण व नई टेक्नोलॉजी के आने से पारंपरिक खेती के अलावा आर्गेनिक खेती का विकल्प सामने आया है। यही कारण है कि युवाओं ने इसमें तेजी से अपनी रुचि दर्शाई है। इस सेक्टर से संबंधित कई ऐसे कोर्स हैं, जो लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इन्हीं में से एक एग्रीकल्चरल साइंस भी है। कार्यशैली व उपयोगिता के चलते एग्रीकल्चर साइंटिस्टों की मांग सरकारी व प्राइवेट क्षेत्र दोनों में है।
क्या है एग्रीकल्चरल साइंस
एग्रीकल्चरल साइंस, साइंस की ही एक प्रमुख विधा है, जिसमें कृषि उत्पादन, खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, फार्मिग की क्वालिटी सुधारने, क्षमता बढ़ाने आदि के बारे में बताया जाता है। इसका सीधा संबंध बायोलॉजिकल साइंस से है। इसमें बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथमेटिक्स के सिद्धांतों को शामिल करते हुए कृषि क्षेत्र की समस्याओं को हल करने का प्रयास किया जाता है। प्रोडक्शन टेक्निक को बेहतर बनाने के लिए रिसर्च एवं डेवलपमेंट को इसके सिलेबस में शामिल किया गया है। इसकी कई शाखाएं जैसे प्लांट साइंस, फूड साइंस, एनिमल साइंस व सॉयल साइंस आदि हैं, जिनमें स्पेशलाइजेशन कर इस क्षेत्र का जानकार बना जा सकता है।
आंकड़ों की नजर में इंडस्ट्री
भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि एक महत्वपूर्ण सेक्टर बन कर उभरा है। भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है, जिसके पास सर्वाधिक कृषि योग्य भूमि है। यही कारण है कि इसे कृषि प्रधान देश की संज्ञा दी जाती है। यहां की एक बड़ी आबादी (62 प्रतिशत) कृषि आधारित रोजगार पर निर्भर है। वर्तमान समय में भारत ग्लोबल एग्रीकल्चरल मार्केट में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। एक आंकड़े के अनुसार सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र का योगदान 17 प्रतिशत के करीब है, जबकि कुल निर्यात में भारत लगभग 11 प्रतिशत की पूर्ति करता है। आज भारत चावल का सबसे बड़ा निर्यातक देश है और गेहूं निर्यात में दूसरा। 2013-14 के आंकड़ों के अनुसार देश में एग्रीकल्चर सेक्टर 5.2 -5.7 प्रतिशत सालाना की दर से ग्रोथ कर रहा है, जबकि आर्गेनिक खेती की ग्रोथ 20-25 प्रतिशत सालाना है और आर्गेनिक फूड का मार्केट 2000 करोड़ रुपए से ज्यादा का है।
कब ले सकेंगे दाखिला
एग्रीकल्चरल साइंस में करियर बनाने के इच्छुक छात्रों को बॉटनी, फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथ्स का ज्ञान होना जरूरी है। ऐसे कई अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, डिप्लोमा व डॉक्टरल कोर्स हैं, जो एग्रीकल्चरल साइंस की डिग्री प्रदान करते हैं। इसके बैचलर कोर्स (बीएससी इन एग्रीकल्चर)  में दाखिले के लिए साइंस स्ट्रीम में 50 प्रतिशत अंकों के साथ 10+2 पास होना जरूरी है। कोर्स की अवधि चार वर्ष है। दो वर्षीय मास्टर प्रोग्राम के लिए बीएससी अथवा बीटेक की डिग्री आवश्यक है। मास्टर डिग्री (एमएससी/एमटेक) के बाद पीएचडी की राह आसान हो जाती है। कई ऐसे संस्थान हैं, जो पीजी डिप्लोमा कोर्स कराते हैं।
प्रवेश प्रक्रिया
इसके सभी कोर्सों में दाखिला प्रवेश प्रक्रिया के बाद मिलता है। ये प्रवेश परीक्षाएं संबंधित संस्थान, यूनिवर्सिटी अथवा इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा कराई जाती हैं। कुछ चुनिंदा संस्थान आईसीएआर के अंक को आधार बना कर प्रवेश देते हैं। आईसीएआर पोस्टग्रेजुएट के लिए फेलोशिप भी प्रदान करता है।
आवश्यक स्किल्स
एक सफल एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट बनने के लिए छात्र के पास विज्ञान विषय की अच्छी समझ होनी जरूरी है। इसके अलावा उसे फसलों, मिट्टी के प्रकार, प्रमुख केमिकल्स के बारे में जानकारी होनी चाहिए। साथ ही उसके पास तार्किक दिमाग, धर्य, शोध का गुण, टीम के रूप में काम करने का कौशल, घंटों काम करने का जज्बा, लिखने-बोलने का कौशल, कम्युनिकेशन स्किल, प्रजेंटेशन क्षमता आदि गुणों का होना जरूरी है। आजकल इस सेक्टर में भी बायोलॉजिकल, केमिकल, प्रोसेसिंग कंट्रोल करने व डाटा आदि निकालने में कम्प्यूटर का प्रयोग होने लगा है, इसलिए कम्प्यूटर का ज्ञान होना बहुत जरूरी है।
सेलरी
एग्रीकल्चरल साइंस के क्षेत्र में प्रोफेशनल्स की सेलरी उनकी योग्यता, संस्थान और कार्य अनुभव पर निर्भर करती है। सरकारी क्षेत्र में कदम रखने वाले ग्रेजुएट प्रोफेशनल्स को प्रारम्भ में 20-25 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। कुछ साल के अनुभव के बाद यह राशि 40-50 हजार रुपए प्रतिमाह हो जाती है, जबकि प्राइवेट सेक्टर में प्रोफेशनल्स की स्किल्स के हिसाब से सेलरी दी जाती है। यदि आप अपना फर्म या कंसल्टेंसी सर्विस खोलते हैं तो आमदनी की रूपरेखा फर्म के आकार एवं स्वरूप पर निर्भर करती है। टीचिंग व रिसर्च के क्षेत्र में भी पर्याप्त सेलरी मिलती है।
रोजगार की संभावनाएं
सफलतापूर्वक कोर्स करने वाले प्रोफेशनल्स के लिए रोजगार की व्यापक संभावनाएं सामने आती हैं। इसमें सबसे ज्यादा अवसर बिजनेस व साइंस के क्षेत्र में मिलते हैं। केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रालय व विभाग, एग्रीकल्चर फाइनेंस कॉरपोरेशन, रिसर्च इंस्टीटय़ूट, राष्ट्रीयकृत व ग्रामीण बैंक, कृषि विज्ञान केंद्र, एग्रो इंडस्ट्री सेक्टर, कृषि विश्वविद्यालय, मीडिया हाउस में भी इन प्रोफेशनल्स को प्रमुखता के साथ काम मिलता है। इसके अलावा हॉर्टिकल्चर, फ्लोरीकल्चर, डेयरी व पोल्ट्री फार्मिग, फिशरीज व एग्रीकल्चर इंडस्ट्री, फूड प्रोसेसिंग यूनिट व एनजीओ में पर्याप्त संभावनाएं मिलती हैं। इसमें साइंटिस्ट बायोलॉजिस्ट व केमिस्ट के साथ मिल कर प्रोसेसिंग संबंधी कार्य करते हैं। जूनियर फेलो रिसर्चर के रूप में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीटय़ूट जॉइन कर सकते हैं। एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट प्रत्येक राज्य में जिला कृषि अधिकारी, सहायक कृषि निदेशक सरीखे उच्चस्तरीय पदों पर नियुक्ित करता है। यूपीएससी व एसएससी के जरिए कई प्रमुख पदों पर भर्तियां की जाती हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
एग्रीकल्चरल एक्सटेंशन ऑफिसर
रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर
फील्ड ऑफिसर
एग्रीकल्चर क्रेडिट ऑफिसर
एग्रीकल्चर प्रोबेशनरी ऑफिसर
प्लांट प्रोटेक्शन ऑफिसर
सॉयल कंजरवेशन ऑफिसर
सीड प्रोडक्शन ऑफिसर
एग्रीकल्चर असिस्टेंट/टेक्िनकल असिस्टेंट
प्लांट पैथोलॉजिस्ट
एग्रोनॉमिस्ट/एग्रो मटीरियोलॉजिस्ट
इकोनॉमिक बॉटनिस्ट
रिसर्च इंजीनियर
एसोसिएट प्रोफेसर
प्रमुख कोर्स
बीएससी इन एग्रीकल्चर
बीएससी इन एग्रीकल्चर (ऑनर्स)
एमएससी इन एग्रीकल्चर
एमएससी इन एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोटेक्नोलॉजी)
एमएससी इन एग्रीकल्चर (बायोकेमिस्ट्री/इकोनॉमिक्स)
एमटेक इन एग्रीकल्चर वॉटर मैनेजमेंट
पीएचडी इन एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. बिजनेस मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री. मार्केटिंग मैनेजमेंट
पीजी डिप्लोमा इन एग्री वॉटर मैनेजमेंट
नफा-नुकसान
रोजगार पाने के लिए भटकना नहीं पड़ता
आकर्षक सेलरी के साथ मिलता है सुकून
घंटों लगातार काम करने पर शारीरिक थकान
काम के सिलसिले में गांवों में रहना मजबूरी
एक्सपर्ट व्यू
नई तकनीक को आत्मसात करें
एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट का कार्य विविधताओं से भरा हुआ है। वर्तमान समय में इसमें कई क्षेत्रों के जुड़ने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। लोगों को रोजगार भी खूब मिल रहा है। देश के साथ-साथ विदेशों में भी खूब संभावनाएं बन रही हैं। एमएससी व पीएचडी कोर्स करने के लिए विदेशी छात्र काफी अधिक संख्या में भारत आ रहे हैं। सरकारी नीतियां भी इस सेक्टर के प्रति सकारात्मक हैं तथा अधिक संख्या में प्रोफेशनल्स गांवों की ओर रुख कर रहे हैं। सरकारी प्रावधानों से किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है और वे नई तकनीकों का सहारा ले रहे हैं। कोर्स करने वाले छात्रों को यही सलाह दी जाती है कि जो भी नई तकनीक आए, वे उससे भागने की बजाय उसे स्वीकार करें तथा किसानों को भी उसके बारे में बताएं, क्योंकि यदि किसान कम्प्यूटर से जानकारी हासिल करने लग गया तो उसका चहुंमुखी विकास होगा। लड़कियों के लिए भी यह क्षेत्र सुकून पहुंचा रहा है। रिसर्च एवं डेवलपमेंट का क्षेत्र उन्हें काफी रास आ रहा है। इस समय छात्र-छात्राओं का अनुपात 60:40 का है।
- डॉ. एचपी सिंह, प्रोफेसर एंड हेड
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू

प्रमुख संस्थान
नेशनल एकेडमी ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, नई दिल्ली
वेबसाइट
-www.naasindia.org
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, नई दिल्ली, वेबसाइट- www.iari.res.in
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.icar.org.in
इंस्टीटय़ूट ऑफ एग्रीकल्चरल साइंसेज, बीएचयू, वाराणसी
वेबसाइट-
  www.bhu.ac.in/ias
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार
वेबसाइट-
www.hau.ernet.in
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पंजाब
वेबसाइट-
www.pau.edu
जीबी पन्त यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एण्ड टेक्नोलॉजी, उत्तराखण्ड
वेबसाइट-
  www.gbpuat.ac.in