सेटेलाइट व नई तकनीक के जरिए मौसम अथवा ग्रह-उपग्रह के बारे में सटीक सूचना दे पाना अब पहले से ज्यादा आसान हो गया है। वायुमंडल अथवा पृथ्वी की हलचलों का पता लगाना भी ज्यादा आसान हो गया है। यह सब संभव हो पाया है ‘स्पेस साइंस’ से। साल दर साल इसमें नई चीजें शामिल होती जा रही हैं। इसमें एडवांस कम्प्यूटर एवं सुपर कम्प्यूटर से डाटा एकत्र करने का कार्य किया जाता है। डाटा न मिलने की स्थिति में आकलन के जरिए किसी निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश की जाती है। इस काम से जुड़े प्रोफेशनल स्पेस साइंटिस्ट कहलाते हैं। समय के साथ यह एक सशक्त करियर का रूप धारण कर चुका है। इस क्षेत्र में युवाओं की दिलचस्पी तेजी से बढ़ रही है। इंडस्ट्री के जानकारों का भी मानना है कि आने वाले पांच सालों में इसमें नौकरियों की संख्या बढ़ेगी।
क्या है स्पेस साइंस
यह साइंस की एक ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत हम ब्रह्मांड का अध्ययन करते हैं। इसमें ग्रह, तारों आदि के बारे में जानकारी होती है। छात्रों को कोर्स के दौरान यह भी जानकारी दी जाती है कि किस तरह से पृथ्वी और सौर मंडल की उत्पत्ति हुई तथा उसके विस्तार की प्रक्रिया किस तरह की है। इसमें प्रयुक्त होने वाले उपकरणों के बारे में भी छात्रों को थ्योरी और प्रैक्टिकल के रूप में जानकारी दी जाती है।
बारहवीं के बाद प्रवेश
इसमें जो भी कोर्स हैं, वे बैचलर से लेकर पीएचडी लेवल तक हैं। बैचलर कोर्स में प्रवेश तभी मिल पाएगा, जब छात्र ने बारहवीं की परीक्षा साइंस विषय के साथ (फिजिक्स, केमिस्ट्री व मैथमेटिक्स) पास की हो। इसमें ऑल इंडिया लेवल पर एक प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसमें सफल होने के बाद ही बैचलर प्रोग्राम में दाखिला मिलता है, जबकि मास्टर प्रोग्राम में बीटेक व बीएससी के बाद दाखिला मिलता है। यदि छात्र किसी क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें पीएचडी की डिग्री लेनी अनिवार्य है।
स्पेस साइंस की शाखाएं
एस्ट्रोनॉमी- यह स्पेस साइंस की एक ऐसी महत्वपूर्ण शाखा है, जिसके अंतर्गत सूर्य, चंद्रमा, तारे, ग्रह आदि का अध्ययन किया जाता है। आमतौर पर इसमें एस्ट्रोनॉमी आकलन पर फोकस होता है।
एस्ट्रोफिजिक्स- यह एक ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत तारों के जन्म-मृत्यु व जीवन, ग्रह, आकाश गंगा एवं सौर मंडल के अन्य तत्वों का अध्ययन भौतिकी व रसायन शास्त्र के नियमों के आधार पर किया जाता है।
कॉस्मॉलजी- कॉस्मॉलजी के अंतर्गत ब्रह्मांड का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है। इसमें ब्रह्मांड की उत्पत्ति से लेकर उसके विस्तार तक की पूरी प्रक्रिया को शामिल किया जाता है।
प्लैनेटरी साइंस- यह शाखा ग्रह, सेटेलाइट और सौर मंडल के अन्य ग्रहों को समझने की क्षमता में विस्तार करती है। इसमें छात्र वायुमंडल, ग्रहों की सतह से आंतरिक भाग तक का अध्ययन करते हैं।
स्टेलर साइंस- सौर मंडल में सभी तारे एक विशेष पैरामीटर के तहत व्यवस्थित होते हैं। ये बहुत कुछ सूर्य की स्थिति पर निर्भर रहते हैं। स्टेलर साइंस में इसका अध्ययन किया जाता है।
रोजगार के भरपूर अवसर
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। प्रोफेशनल्स को नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा), इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (इसरो), डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआडीओ), हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), नेशनल एयरोनॉटिकल लेबोरेटरी (एनएएल) आदि में प्रमुख पदों पर काम मिलता है। इसके अलावा स्पेसक्राफ्ट सॉफ्टवेयर डेवलपिंग फर्म, रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेंटर, स्पेसक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग फर्म, स्पेस टूरिज्म में भी रोजगार की प्रचुरता है। प्रमुख विश्वविद्यालय अथवा कॉलेज, स्पेस साइंटिस्ट को अपने यहां रख रहे हैं। स्पेस रिसर्च एजेंसी, साइंस म्यूजियम एवं प्लैनेटेरियम में भी हर साल बड़े पैमाने पर नियुक्तियां होती हैं। इसरो व नासा बड़े रोजगार प्रदाता के रूप में जाने जाते हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
स्पेस साइंटिस्ट
एस्ट्रोनॉमर
एस्ट्रोफिजिसिस्ट
मैटीरियोलॉजिस्ट
क्वालिटी एश्योरेंस स्पेशलिस्ट
रडार टेक्निशियन
रोबोटिक टेक्निशियन
सेटेलाइट टेक्निशियन
जियोलॉजिस्ट
आकर्षक सेलरी पैकेज
स्पेस इंडस्ट्री में प्रोफेशनल्स को काफी आकर्षक सेलरी मिलती है, बशर्ते उन्हें काम की अच्छी समझ हो। आमतौर पर शुरुआती दौर में एक स्पेस साइंटिस्ट को 25-30 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं, जबकि दो-तीन साल के अनुभव के बाद यही राशि 40-45 हजार रुपए तक पहुंच जाती है। रिसर्च के क्षेत्र में आज कई ऐसे साइंटिस्ट हैं, जो सालाना लाखों के पैकेज पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विदेशों में भी प्रोफेशनल्स को आकर्षक पैकेज दिया जाता है।
फायदे एवं नुकसान
उच्च पदों पर मिलती है जॉब
प्रोजेक्ट कंप्लीट होने पर सुकून
काम के घंटे अधिक
कई बार काम का नतीजा नहीं
एजुकेशन लोन
छात्रों को प्रमुख राष्ट्रीयकृत, प्राइवेट अथवा विदेशी बैंकों द्वारा एजुकेशन लोन प्रदान किया जाता है। छात्र को जिस संस्थान में एडमिशन कराना होता है, वहां से जारी एडमिशन लेटर, हॉस्टल खर्च, ट्यूशन फीस एवं अन्य खर्चो को ब्योरा बैंक को देना होता है। अंतिम निर्णय बैंक को करना होता है।
कुछ प्रमुख कोर्स
बीटेक इन स्पेस साइंस (चार वर्षीय)
बीएससी इन स्पेस साइंस (तीन वर्षीय)
एमटेक इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
एमएससी इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
एमई इन स्पेस साइंस (दो वर्षीय)
पीएचडी इन स्पेस साइंस (तीन वर्षीय)
साइंस पर कमांड जरूरी
एक अच्छा प्रोफेशनल बनने के लिए साइंस
विषयों खासकर फिजिक्स का बेहतर ज्ञान होना जरूरी है। कम्प्यूटर की अच्छी जानकारी व इंजीनियरिंग के बेसिक्स पर मजबूत पकड़ उन्हें काफी आगे तक ले जाती है। कम्युनिकेशन व राइटिंग स्किल्स, प्रेजेंटेशन तैयार करने का कौशल हर मोड़ पर सम्यक सहायता दिलाता है। इसके अलावा प्रोफेशनल्स को परिश्रमी, धर्यवान व जिज्ञासु प्रवृत्ति का बनना होगा, क्योंकि इससे संबंधित अधिकांश कार्य रिसर्च अथवा आकलन पर आधारित
होते हैं।
प्रमुख संस्थान
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ स्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजी, तिरुवनंतपुरम
वेबसाइट- www.iist.ac.in
बिरला इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मेसरा, रांची
वेबसाइट- www.bitmesra.ac.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस, बेंग्लुरू
वेबसाइट- www.iisc.ernet.in
टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई
वेबसाइट- www.univ.tifr.res.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर
वेबसाइट- www.niser.ac.in
आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीटय़ूट ऑफ ऑब्जरवेशनल साइंसेज, नैनीताल
वेबसाइट- www.aries.ernet.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंग्लुरू
वेबसाइट- www.iiap.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, कानपुर
वेबसाइट- www.iitk.ac.in
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