Sunday, November 25, 2018

फॉरेस्टर की दुनिया में बनाएं करियर

एक फॉरेस्टर के ऊपर वन संसाधनों की सुरक्षा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है। वह जंगल को आग, बीमारी, कीड़ों एवं अवैध कब्जे से बचाता है। जंगलों में किस तरह काम किया जाए, कौन-से वृक्ष लगाना सही रहेगा, फिर उन्हें कैसे मार्केट तक पहुंचाया जाए, यह सब एक फॉरेस्टर की निगरानी में होता है। जो लोग जंगलों में काम करते हैं, उन्हें सुपरवाइज करने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की होती है। ये वेस्टलैंड के विकास में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, वन्यजीव या पर्यावरण को आसपास के वातावरण से महफूज रखना, इनका काम होता है। ये ईको-टूरिज्म को प्रोत्साहन देने में भी अहम रोल निभाते हैं।
साइंटिफिक टेम्परामेंट की जरूरत
अगर आप आउटडोर रहना पसंद करते हैं, एडवेंचर में मजा आता है, तो फॉरेस्टर एक बेहतरीन करियर विकल्प हो सकता है। हां, इसके लिए आपको फिजिकली फिट रहना होगा। इसमें धैर्य के साथ साइंटिफिक टेम्परामेंट भी जरूरी है। आपके अंदर ऑर्गनाइजिंग क्षमता के साथ-साथ पब्लिक रिलेशन स्किल होनी चाहिए। अगर फॉरेस्टर में निर्णय लेने की क्षमता नहीं होगी, तो वह वन क्षेत्र की सही तरीके से देख-रेख नहीं कर सकेगा। आपमें रिसर्च को लेकर भी दिलचस्पी होनी चाहिए।
कहां-कहां से कर सकते हैं कोर्स
साइंस स्ट्रीम से 12वीं करने वाले फॉरेस्ट्री में ग्रेजुएशन कर सकते हैं। इसके लिए विभिन्न यूनिवर्सिटीज द्वारा आयोजित किए जाने वाले एंट्रेंस एग्जाम को क्लियर करना होगा। हालांकि कुछ यूनिवर्सिटीज में सीधे मेरिट और सीटों की उपलब्धता के आधार पर दाखिला मिल जाता है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीएआर) के ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जाम उत्तीर्ण करने वाले फॉरेस्ट्री स्टूडेंट्स के लिए भी यूनिवर्सिटीज में अलग से कोटा होता है। कोर्स करने के बाद आप फॉरेस्ट मैनेजमेंट, कॉमर्शियल फॉरेस्ट्री, फॉरेस्ट इकोनॉमिक्स, फूड साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी, वाइल्ड लाइफ साइंस, एग्रो फॉरेस्ट्री में दो साल का मास्टर्स या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल से दो साल का पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन फॉरेस्ट्री मैनेजमेंट कर सकते हैं। यहां दाखिले के लिए ग्रेजुएशन में 50 प्रतिशत अंक होना चाहिए।
गवर्नमेंट-प्राइवेट सेक्टर में मौके
एक फॉरेस्टर अपनी स्पेशलाइजेशन के अनुसार सरकारी संस्थानों, एनजीओ या लैबोरेट्री में काम कर सकता है। आप इंडस्ट्रियल एवं एग्रीकल्चरल कंसल्टेंट के तौर पर भी करियर शुरू कर सकते हैं। इनके अलावा जू, वाइल्ड लाइफ रेंज, पेटा, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ भी काम करने के मौके हैं। अगर सरकारी सेवा में जाना चाहते हैं, तो संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित होने वाले इंडियन फॉरेस्ट सर्विस एग्जाम में शामिल हो सकते हैं। रिटेन एग्जाम क्लियर करने के बाद आपको पर्सनैलिटी टेस्ट, वॉकिंग टेस्ट और स्टैंडर्ड मेडिकल फिटनेस टेस्ट में शामिल होना होगा। इसके अलावा, स्टेट फॉरेस्ट सर्विस भी ज्वाइन कर सकते हैं, जैसे-केरल, कर्नाटक, झारखंड जैसे राज्यों में फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स के लिए रेंज ऑफिसर बनने का मौका होता है। आप सॉयल कंजर्वेशन डिपार्टमेंट में भी काम कर सकते हैं। फॉरेस्ट्री में मास्टर्स करने वाले एग्रीकल्चरल रिसर्च सर्विस एग्जाम क्लियर कर साइंटिस्ट बन सकते हैं। वहीं, जो लोग पीएचडी करते हैं, वे किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान, एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी आदि में फैकल्टी, लेक्चरर, जूनियर रिसर्च ऑफिसर के रूप में अपनी सेवा दे सकते हैं।
और भी हैं ऑप्शंस
-डेंड्रोलॉजिस्ट्स 
-एथनोलॉजिस्ट्स
-एन्टमोलॉजिस्ट्स 
-सिल्वीकल्चरिस्ट्स
-जू क्यूरेटर्स
प्रमुख इंस्टीट्यूट्स
-डॉ. वाइ.एस.परमार यूनिवर्सिटी ऑफ हॉर्टीकल्चर, सोलन
-तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर
-बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
-बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, रांची
-जवाहरलाल a

Thursday, November 22, 2018

पेट्रोलियम इंजीनियरिंग करियर

जिस तेजी से देश विकास की ओर बढ़ रहा है, उसी तेजी से औद्योगिक और निजी कारणों से ऊर्जा जरूरतें भी बढ़ रही हैं। गैस और कच्चे तेल के रूप में आयात किए जाने वाले पेट्रोलियम उत्पाद रिफाइनरियों में परिष्कृत होने के बाद हम तक पहुंचते हैं। देश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक तेल और गैस को पहुंचाने के लिए कई पाइपलाइन परियोजनाएं प्रस्तावित हैं। पेट्रोलियम उद्योग तकनीकी और कारोबारी विकास के क्रम में लगातार मजबूत हो रहा है। विदेशों में भी भारतीय कंपनियां तेल की खोज और उत्पादन में अपने हाथ आजमा रही हैं। इससे उनका कार्य क्षेत्र भी विस्तृत हो रहा है। इस विस्तार में इंजीनियरिंग पेशेवरों विशेषकर पेट्रोलियम इंजीनियरों के लिए काफी मौके हैं।
क्या है पेट्रोलियम इंजीनियरिंगपेट्रोलियम उत्पादों, मसलन कच्चे तेल (क्रूड ऑयल) और प्राकृतिक गैस (नेचुरल गैस) का उत्पादन और उन्हें इस्तेमाल योग्य बनाने का कार्य पेट्रोलियम इंजीनियरिंग की मदद से किया जाता है। इसके माध्यम से यह भी पता लगाया जाता है कि किसी पेट्रोलियम भंडार के स्त्रोत में उत्पादन योग्य पेट्रो पदार्थ की मात्रा कितनी है। यह अनुमान लगाने के लिए पेट्रोलियम इंजीनियर को धरती की गहराइयों में उच्च दाब के बीच मौजूद तेल, गैस और पानी के भौतिक गुणों का अध्ययन करना होता है।
प्रमुख कोर्सबीई/ बीटेक पेट्रोलियम इंजीनियरिंग
बीटेक अप्लाइड पेट्रोलियम इंजीनियरिंग 
बीटेक पेट्रोकैमिकल इंजीनियरिंग
बीटेक पेट्रोलियम रिफाइनिंग एंड पेट्रोकैमिकल्स इंजीनियरिंग
बीटेक पेट्रोलियम रिफाइनिंग इंजीनियरिंग
बीटेक पेट्रोलियम रिजरवॉयर एंड प्रोडक्शन इंजीनियरिंग
एमई/ एमटेक पेट्रोलियम इंजीनियरिंग
एमटेक पेट्रोलियम एक्सप्लोरेशन
एमटेक पेट्रोलियम रिफाइनरी इंजीनियरिंग
एमटेक पेट्रोलियम रिफाइनिंग एंड पेट्रोकैमिकल इंजीनियरिंग
योग्यता
बैचलर कोर्स
बारहवीं में विज्ञान विषयों (फिजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथ्स जरूरी) की पढ़ाई करने वाले छात्र पेट्रोलियम इंजीनियरिंग के बैचलर कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। इसके लिए अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा में शामिल होना होगा। आईआईटी (जेईई) और आईआईटी (एडवांस्ड) की परीक्षा में प्राप्त स्कोर से इस कोर्स में दाखिला मिलेगा।
मास्टर्स कोर्सपेट्रोलियम इंजीनियरिंग या उससे संबंधित विषयों में इंजीनियरिंग की बैचलर डिग्री हासिल करने के बाद मास्टर्स कोर्स में प्रवेश लिया जा सकता है। कैमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद भी इस कोर्स में प्रवेश लिया जा सकता है। इस कोर्स में दाखिले प्रवेश परीक्षा के आधार पर ही होते हैं।
संभावनातेल क्षेत्र की खोज और उत्पादन कार्य में पेट्रोलियम इंजीनियर के लिए नए अवसर उभर रहे हैं। देश की पेट्रोलियम कंपनियां इसके लिए अपना निवेश बढ़ा रही हैं। देश के तटीय इलाकों में तेल और गैस के नए क्षेत्रों के होने की संभावना मौजूद है। तेल आयात में बढ़ोत्तरी के साथ शोधन क्षमता में वृद्धि करने का दबाव भी लगातार बढ़ रहा है। देश की कई तेल कंपनियां अपनी रिफाइनरियों की क्षमता बढ़ाने पर काम रही हैं। ऐसे में तेल उद्योग का यह क्षेत्र पेट्रोलियम इंजीनियरों के लिए आने वाले समय में काफी मांग सृजित करेगा।
इन पदों पर मिलेगा कामरिजरवॉयर इंजीनियर
टेक्निकल सपोर्ट इंजीनियर
पेट्रोलियम टेक्नोलॉजिस्ट एंड ड्रिलिंग इंजीनियर
प्रोसेस इंजीनियर

वेतनकोर्स करने के बाद पहली नौकरी में वेतन का स्तर कंपनी की बाजार स्थिति और कारोबार पर निर्भर करता है। बैचलर डिग्री के बाद औसत वेतन 30 हजार रुपये मासिक होता है। मास्टर्स कोर्स करने या कुछ वर्षो का अनुभव हासिल करने के बाद आसानी से 50 से 60 हजार रुपये के बीच वेतन मिलने लगता है।
प्रमुख संस्थान
राजीव गांधी इंस्टीटय़ूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी, रायबरेली, उत्तर प्रदेश
http://www.rgipt.ac.in/
इंडियन स्कूल ऑफ माइंस, धनबाद, झारखंडhttp://www.ismdhanbad.ac.in/
यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून, उत्तराखंडhttp://www.upes.ac.in/
डॉ. हरिसिंह गौर यूनिवर्सिटी, सागर, मध्य प्रदेशhttp://www.dhsgsu.ac.in/
बीआर अंबेडकर टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटीhttp://dbatuonline.com
भारतीदसन इंस्टीटय़ूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, तमिलनाडुhttp://www.bdu.ac.in/

Sunday, November 18, 2018

रेडियो के साथ करियर

लोगों से बातें करना और उनकी दिलचस्प बातें सुनना पसंद है तो रेडियो जॉकी बनकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. आज रेडियो जॉकी का कार्यक्षेत्र काफी फैल हो गया है. जहां एक रेेडियो जॉकी पूरे प्रोग्राम की तैयारी करता है, वहीं अपनी आवाज का लोहा भी मनवाता है. एफएम चैनलों के आने पर जिस तरह से इसमें करियर की संभावनाएं बढ़ी हैं, उसके चलते युवाओं को यह फील्ड काफी भा रही है. जानें कैसे बन सकते हैं रेडियो जॉकी...
रेडियो जॉकी का काम
एक रेडियो जॉकी का काम सिर्फ रेडियो शो करना ही नहीं होता बल्कि उनके कार्यक्षेत्र में म्यूजिक प्रोग्रामिंग, स्टोरी राइटिंग, रेडियो एडवरटाइजिंग करने से लेकर ऑडियो मैगजीन और डॉक्यूमेंट्री भी पेश करने होते हैं. वहीं आपको बता दें, एक रेडियो जॉकी की जॉब 9 से 5 की रेगुलर जॉब नहीं है. रेडियो में आपको दिन या रात कभी भी शो होस्ट करना होता है.

वहीं ये कहना गलत नहीं होगा कि एक रेडियो जॉकी को एक पत्रकार की भूमिका भी निभाते हैं. वह देश−विदेश में होने वाली गतिविधियों की जानकारी होनी चाहिए बल्कि उसे अपने शहर की सांस्कृतिक गतिविधियों के बारे में भी पता होना चाहिए ताकि वह अपने शो को और भी बेहतर और इंर्फोमेटिव बना सके. इसी के साथ आरजे अपने शो से पहले स्क्रिप्ट लिखते हैं, लेकिन फिर भी आपको शो के दौरान आपको बातों के साथ खेलना आना चाहिए था.
योग्यता
रेडिया जॉकी का कोर्स 12वीं के बाद भी किया जा सकता है. जिसके बाद आप किसी भी मान्यता प्राप्त संस्थान से डिग्री या डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं. आज देश के हर राज्य में ऐसे बहुत से संस्थान हैं जो रेडियो जॉकी बनने के लिए प्रोफेशनल डिग्री और डिप्लोमा कोर्स कराते हैं.
इस क्षेत्र में कमाई
शुरुआती दौर में 15 से 20 हजार रुपए की सैलरी पर नौकरी मिल जाती है. यह अलग बात है कि इसके लिए विभिन्न तरह की परीक्षा से गुजरना पड़ता है जैसे वॉयस चैकअप आदि. जैसे-जैसे आपका एक्सपीरिंस बढ़ेगा आपकी सैलरी भी में भी बढ़ोतरी होगी.

राइटिंग और प्रेजेंटिंग स्किल्स
एक अच्छा आरजे अपनी स्क्रिप्ट भी खुद लिखता है. इसलिए अपने प्रोग्राम या शो को दिलचस्प बनाने के लिए दिलचस्प अंदाज के साथ लिखना भी आना चाहिए और लिखने के बाद उसे उतने ही शानदार अंदाज के साथ प्रस्तुत करना भी आना चाहिए.
सेंस ऑफ ह्यूमर
बोरिंग एंकरिग या होस्टिंग कौन पसंद करता है? लिहाजा अच्छे आरजे में सेंस ऑफ ह्यूमर का होना जरूरी है. ताकि वह अपने प्रोग्राम को मजेदार बना सकता है.
बेहतरीन कम्युनिकेशन स्किल्स
आरजे को आम लोगों से लेकर सेलिब्रिटीज से बातचीत करना होती है लिहाजा कम्युनिकेशन स्किल्स बढ़िया होनी चाहिए, ताकि वह बात को बेहतर ढंग से कह सके.
क्रिएटिविटी का होना जरूरी
बिना क्रिएटिविटी के आपका रेडियो जॉकी बन पाना मुश्किल है. एक रेडियो जॉकी का क्रिएटिव होना जरूरी है. स्क्रिप्ट से लेकर कार्यक्रम प्रस्तुत करने में रचनात्मक होना चाहिए.
यहां मिलेंगे अवसर
इस क्षेत्र में सॉफ्टवेयर प्रोड्यूसिंग कंपनी और एंकरिंग दोनों क्षेत्रों में अच्छा ऑप्शन मिलता है. मुख्य रूप से ऑल इंडिया रेडियो हर तीन महीने पर आरजे यानी रेडियो जॉकी के लिए ऑडिशन कराता रहता है. इसके अलावा कुछ कंपनियां दो महीनों में भी ये ऑडिशन टेस्ट आयोजित करती हैं. इस क्षेत्र में ऑल इंडिया रेडियो एफ एम, टाइम्स एफ एम, रेडियो मिड-डे सॉफ्टवेयर प्रोड्यूसर आदि रेडियो स्टेशन में जॉब अप्लाई कर सकते हैं.
रेडियो जॉकी के कोर्सेज
डिप्लोमा इन रेडियो प्रोग्रामिंग व ब्रॉडकास्ट मैनेजमेंट.
डिप्लोमा इन रेडियो प्रोडक्शन व रेडियो जॉकी.
पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन रेडियो एंड ब्रॉडकास्ट मैनेजमेंट.
सर्टिफिकेट कोर्स इन रेडियो जॉकिंग.

प्रमुख संस्थान
मीडिया एंड फिल्म इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया, मुंबई
करियर फेम, कोलकाता
सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ फिल्म एंड टेलीविजन, नई दिल्ली
इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन, नई दिल्ली
मुद्रा इंस्टीच्यूट ऑफ मॉस कम्युनिकेशन, अहमदाबाद
एजेके एमसीआरसी जामिया, मिलिया, इस्लामिया, नई दिल्ली


Friday, November 16, 2018

Spiritual Theology में करियर

स्पिरिचुअल थियोलॉजी एक ऐसी प्रकार की आध्यात्मिकता है जो साइंस, आर्ट और आस्था पर बेस्ड है। ये एक ऐसा विषय है जिस पर जितनी भी रिसर्च की जाए उतनी कम है। इसलिए बहुत से लोग इस को समझ नहीं पाते हैं और हैरान हो जाते हैं। लेकिन लोग आध्यात्मिकता को पसंद करते हैं वो चाहें तो इसमें अपना करियर भी शुरू कर सकते हैं।
स्पिरिचुअल थियोलॉजी
इस कोर्स में स्टूडेंट्स को पूर्व और पश्चिम की आध्यात्मिकता के बारे में सिखाया जाता है। मनोविज्ञान, चर्च के उपदेश, यूथ एनिमेशन और सिविल लॉ के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है। स्टूडेंट्स को वैज्ञानिक विधिशास्त्र पर बेस्ड रिसर्च निबंध तैयार करना होता है। स्टूडेंट्स आश्रम के जीवन, अलग-अलग धर्मों के कार्यक्रमों और प्रार्थना सभाओं में हिस्सा लेते हैं। और सभी धर्मों में निहित आध्यात्मिक ज्ञान को ग्रहण करते हैं। बेंगलुरु में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्पिरिचुअलिटी से डिप्लोमा कर सकते हैं।
अपॉर्च्युनिटी
इस कोर्स के बाद स्टूडेंट्स को आध्यात्मिक सलाहकार के रूप में नौकरी मिल सकती है। स्कूल में बच्चों को, घर में बड़ी उम्र के लोगों को और किसी कंपनी के कर्मचारियों को ग्रुप में आध्यात्मिक सलाह और उपदेश देने का कार्य कर सकते हैं। आध्यात्मिक कंसल्टेंट फील्ड देश में बढ़ती जा रही है।
इनकम
इस कोर्स के बाद आपको 20-30 हजार रुपये प्रति माह इनकम हो सकती है और धीरे-धीरे ये इनकम बढ़ती जाएगी।
यहां से करें कोर्स
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्प्रिचुअलिटी, बेंगलुरु

Sunday, November 11, 2018

विदेशी भाषाओं में करियर

हिन्दी, अंग्रेजी के बाद अब स्पैनिश, जर्मन और चाइनीज जैसी विदेशी भाषाओं में भी करियर के बेहतर अवसर सामने आ रहे हैं। अनुवादक और दुभाषिये के अलावा विदेशी मेहमानों के गाइड बन कर भी अपना भविष्य संवारा जा सकता है। इस बारे में विस्तार से बता रही हैं प्रियंका कुमारी
हाल में एक कार कंपनी ने अनुवादक और इंटरप्रेटर के रूप में काम करने के लिए विभिन्न विदेशी भाषाएं- स्पैनिश, जर्मन, फ्रेंच और चाइनीज के जानकार युवाओं की तलाश में एक विज्ञापन निकाला। युवाओं के लिए यहां अच्छा पैकेज और काम करने का बेहतर अवसर मुहैया कराया जा रहा था। आज भारत में कार कंपनियां ही नहीं, राष्ट्र्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय कंपनियां, ट्रेवल्स कंपनियां, पांच सितारा होटल और आईटी इंडस्ट्री विदेशी भाषा के अच्छे जानकारों की खोज में हैं। इन कंपनियों और संस्थानों को भारत में अपना व्यवसाय बढ़ाने और देशी-विदेशी मेहमानों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए विदेशी भाषा के जानकारों की अच्छी-खासी जरूरत पड़ रही है। जिस हिसाब से बाजार ऐसे युवाओं की खोज में है, उस संख्या में वे उपलब्ध नहीं हैं।
बात सिर्फ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर की कंपनियां एवं संस्थानों की ही नहीं, शिक्षण संस्थानों की भी है। एमबीए और बीबीए की पढ़ाई कराने वाले संस्थान आज बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों तक फैल रहे हैं। निजी स्कूलों में इन दिनों छात्रों को एक विदेशी भाषा सिखाने का प्रचलन जोरों पर है। इनमें फ्रेंच, स्पैनिश, इटैलियन, जर्मन, रशियन, चाइनीज, जैपनीज और कोरियन जैसी भाषाएं प्रमुख हैं। मैनेजमेंट स्कूलों में छात्रों को मैनेजमेंट के पेपर के साथ एक विदेशी भाषा की पढ़ाई कराई जा रही है। इनमें शिक्षकों की काफी मांग है। 
पिछले दिनों एक खबर यह भी सामने आई कि सीबीएसई से संबद्ध बहुत सारे निजी और केन्द्रीय विद्यालयों में चाइनीज भाषा पढ़ाना इसलिए बंद करना पड़ रहा है, क्योंकि वहां इस भाषा के शिक्षक नहीं हैं। दिल्ली के बड़े निजी स्कूलों को ही देखें तो यहां चार-पांच विदेशी भाषाएं स्कूलों में पढ़ने के लिए विकल्प के रूप में दी जा रही हैं। देश के करीब 70 विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जहां विदेशी भाषा की पढ़ाई होती है, इससे जुड़े कोर्स कराए जाते हैं। इनमें भी अध्ययन-अध्यापन के अवसर सामने आ रहे हैं। सूचना तकनीक या आईटी के केन्द्र बेंगलुरू, हैदराबाद और गुड़गांव जैसे शहरों में विदेशी भाषा के जानकार युवाओं को काम के कई अवसर मिल रहे हैं। छात्रों को कहीं अनुवादक तो कहीं इंटरप्रेटर के रूप में काम दिया जा रहा है। दूतावासों में भी विदेशी भाषा के विशेषज्ञों की जरूरत है।
देश में पर्यटन उद्योग का तेजी से विस्तार हो रहा है। यहां हर साल लाखों की संख्या में आने वाले विदेशी सैलानियों के लिए टूरिस्ट गाइड या टूर ऑपरेटरों की जरूरत पड़ रही है। गाइड के लिए विदेशी भाषा की जानकारी होना एक योग्यता बन गई है। मेडिकल टूरिज्म के तहत खाड़ी देशों के निवासी हर साल यहां निजी अस्पतालों में अपना इलाज कराने आ रहे हैं। इन्हें उचित तरीके से मार्गदर्शन के लिए विदेशी भाषा के विशेषज्ञों की खोज हो रही है। 
वैश्वीकरण के दौर में अनुवाद और पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी ऐसे लोग के लिए निजी व्यवसाय के रूप में काम करने का मौका दे रहा है। विदेशी भाषाओं के जानकार विदेशी मीडिया में भारत से ही रिपोर्टिंग का काम संभाल रहे हैं।
क्या होनी चाहिए स्किल
इस क्षेत्र में आने वाले छात्र को संबंधित विदेशी भाषा पर कमांड होनी चाहिए। बेहतर कम्युनिकेशन स्किल इस क्षेत्र में कामयाबी के कई रास्ते दिखाती है। अगर अनुवादक बनना चाहते हैं तो विदेशी भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी या हिन्दी पर भी पकड़ होनी चाहिए। जिस विदेशी भाषा को सीख रहे हैं, उसकी व्याकरण, वाक्य संरचना और उससे जुड़ी संस्कृति व इतिहास की भी जानकारी होनी चाहिए। आकर्षक व्यक्तित्व भी होना चाहिए, क्योंकि कई जगहों पर इसकी अपेक्षा भी की जाती है। आकर्षक व्यक्तित्व के साथ अगर इस क्षेत्र में टूरिज्म के क्षेत्र में जाना है, आतिथ्य सत्कार या विदेशी प्रतिनिधियों के साथ भ्रमण पर जाना है तो छात्र का मिलनसार होना भी जरूरी है। 
 
योग्यता

इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के लिए यह जरूरी है कि उन्हें वह भाषा अच्छी तरह से बोलना और लिखना आना चाहिए, जिसमें वह करियर बनाना चाहते हैं। छात्र के पास स्नातक या एमए की डिग्री हो। संबंधित विदेशी भाषा में सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री हासिल की हो। डिग्री के साथ-साथ स्रोत और लक्ष्य भाषा, दोनों पर पकड़ होनी चाहिए।
अवसर कहांविदेशी भाषा के जानकारों की सबसे बड़ी मांग होटल उद्योग, टूरिज्म या बहुराष्ट्रीय कंपनियों में है। आज स्कूलों और कॉलेजों में अध्यापन के लिए बड़े पैमाने पर विदेशी भाषा के शिक्षकों की मांग की जा रही है।
मैनेजमेंट से जुड़े स्कूल प्रबंधन के कोर्स में विदेशी भाषा से जुड़े पेपर रखे जा रहे हैं। बीपीओ या कॉल सेंटर में भी विदेशी भाषा के जानकार रखे जा रहे हैं। आमतौर पर अनुवादक, इंटरप्रेटर, पर्सनल सहायक, टूर ऑपरेटर या टूरिस्ट गाइड के रूप में इन्हें नियुक्त किया जा रहा है। विदेशी पत्र-पत्रिकाओं या चैनलों में इस भाषा के जानकारों को विदेश में संवाददाता या रिपोर्टर के रूप में रखा जा रहा है।
कहीं-कहीं संपादन के काम से भी जोड़ा जा रहा है। सरकारी स्तर पर इनके लिए कहीं-कहीं इंटरप्रेटर या अनुवादक के रूप में काम का अवसर मुहैया कराया जाता है। जांच एजेंसियां भी इन्हें काम का अवसर प्रदान करती हैं।
वेतनमान
अनुवादक बनने पर शुरुआती वेतनमान 30-40 हजार रुपये है। यह आगे चल कर वरिष्ठता के क्रम से बढ़ता जाता है। इंटरप्रेटर या दुभाषिये का वेतनमान 40 से 50 हजार रुपये प्रतिमाह है।
निजी एजेंसियों में भी नौकरी करने पर शुरुआती वेतनमान 40 हजार से 50 हजार रुपये हैं। इंटरप्रेटर का वेतनमान 50 हजार रुपये से लेकर लाख रुपये से भी ऊपर जाता है। विदेशी कंपनियों के साथ इस तरह के काम में लोगों को प्रतिमाह लाखों रुपये मिलते हैं।
निजी व्यवसाय के रूप में साहित्य या अन्य अध्ययन सामग्री का अनुवाद करने पर प्रतिमाह घर बैठे लाख से दो लाख रुपये कमाए जा सकते हैं। विदेशी भाषा के शिक्षक को स्कूलों में 30 हजार रुपये और कॉलेज में शुरुआती वेतनमान 40 हजार रुपये है। 
लोन
सर्टिफिकेट या बीए और एमए जैसे कोर्स के लिए बैंक आमतौर पर लोन मुहैया नहीं कराते, लेकिन अगर कोई पीएचडी करता हो या रिसर्च का काम कर रहा हो तो उसके लिए बैंक एजुकेशन लोन के तहत कुछ शर्तो के आधार पर लोन देते हैं। विभिन्न विदेशी विश्वविद्यालयों में स्कॉलरशिप का प्रावधान है।
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली
पांडिचेरी विश्वविद्यालय, पांडिचेरी
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय, हैदराबाद
 
व्यापार बढ़ेगा तो नौकरियां भी बढ़ेंगी
प्रो. विभा मौर्य
जर्मनिक एंड रोमन्स स्टडीज, दिल्ली विश्वविद्यालय
देश में निजी स्कूल और विश्वविद्यालय तेजी से बढ़ रहे हैं। इन स्कूलों में छात्रों को एक पेपर के रूप में विदेशी भाषा का ज्ञान दिया जा रहा है। मैनेजमेंट संस्थान भी अपने यहां मैनेजरों को एक विदेशी भाषा सिखा रहे हैं। देश में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपने व्यवसाय का विस्तार किया है। इनके प्रतिनिधियों से बातचीत और दूसरी भाषाओं के बीच संपर्क के काम के लिए विदेशी भाषा के जानकारों को रखा जा रहा है।
विदेशी भाषा में किन भाषाओं की मांग ज्यादा हो रही है?
वैसे तो हर भाषा अपने आप में महत्वपूर्ण है, लेकिन करियर के लिहाज से स्पैनिश, चाइनीज, कोरियन, जैपनीज, जर्मन और फ्रेंच जैसी भाषाओं के जानकारों को कई अवसर मिल रहे हैं। रशियन, अरेबिक और इटैलियन भाषाएं भी करियर के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
करियर में सफलता के लिए किस तरह की स्किल की जरूरत है? 
डिग्री के साथ-साथ बेहतर कम्युनिकेशन स्किल होना जरूरी है। भाषा और संस्कृति का ज्ञान कोर्स में कराया जाता है। छात्र को भाषा की अच्छी समझ होनी चाहिए। दूसरे के बीच अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रखने की कला आनी चाहिए।
आप भविष्य में इसका विस्तार किस रूप में देखते हैं?
जैसे-जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कंपनियों के व्यवसाय का विस्तार होगा, विदेशी भाषा के जानकारों की मांग बढ़ेगी। आज तकनीकी और फार्मास्यूटिकल कंपनियां हों या कार कंपनियां, सभी जगह विदेशी भाषा के विशेषज्ञों की जरूरत पड़ रही है। इसे पूरा करने के लिए ही आज देश में 60 से भी अधिक विश्वविद्यालयों में विदेशी भाषाओं की पढ़ाई हो रही है।
 
शिक्षण में भी हैं करियर के अवसर
मीना ठाकुर
प्रशासनिक अधिकारी, एम्बेसी ऑफ पेरू
बॉटनी में बीएससी की डिग्री लेने के बाद जब दिल्ली आई तो यहां ऐसे प्रोफेशनल कोर्स की तलाश में जुट गई, जो करियर का बेहतरीन अवसर मुहैया करा सके। दोस्तों ने दिल्ली विश्वविद्यालय में विदेशी भाषा के बारे में जानकारी दी। यहां स्पैनिश में एक साल के इंटेन्सिव एडवांस डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया।
इस कोर्स को पूरा करने के बाद भाषा पर अच्छी पकड़ बनाने के लिए शिक्षकों ने एमए करने की सलाह दी। एमए करने के दौरान स्पैनिश से हिन्दी में अनुवाद का काम शुरू दिया। पत्र-पत्रिकाओं में अनूदित लेख छपे। पढ़ाई के अंतिम चरण में आने पर मेक्सिकन दूतावास में नौकरी की ऑफर मिल गई। यहां एक साल के काम के बाद ही पेरू दूतावास में भी नौकरी की ऑफर मिल गई। यहां सात साल से भी अधिक समय से काम करते हुए बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है। आज दूतावास के अलावा स्पैनिश भाषा के जानकारों के लिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों में भी काम के बहुत सारे अवसर हैं। हर दिन विभिन्न सेक्टरों में बहुत सारे प्रोजेक्ट भी सामने आ रहे हैं, जहां काम किया जा सकता है। अगर आवाज अच्छी है और विदेशी भाषा का ज्ञान है तो शिक्षण के क्षेत्र में भी करियर बनाया जा सकता है।

Thursday, November 8, 2018

आर्कियोलॉजी में करियर

हजारों साल पहले मानव जीवन कैसा रहा होगा? किन-किन तरीकों से जीवन से जुड़े अवशेषों को बचाया जा सकता है? एक सभ्यता, दूसरी सभ्यता से कैसे अलग है? क्या हैं इनकी वजहें? ऐसे अनगिनत सवालों से सीधा सरोकार होता है आर्कियोलॉजिस्ट्स का। 

अगर आप भी देश की धरोहर और इतिहास में रुचि रखते हैं तो आर्कियोलॉजिस्ट के रूप में एक अच्छे करियर की शुरुआत कर सकते हैं। इसमें आपको नित नई चीजें जानने को तो मिलेंगी ही, सैलरी भी अच्छी खासी है। आर्कियोलॉजी के अंतर्गत पुरातात्विक महत्व वाली जगहों का अध्ययन एवं प्रबंधन किया जाता है। 

हेरिटेज मैनेजमेंट के तहत पुरातात्विक स्थलों की खुदाई का कार्य संचालित किया जाता है और इस दौरान मिलने वाली वस्तुओं को संरक्षित कर उनकी उपयोगिता का निर्धारण किया जाता है। इसकी सहायता से घटनाओं का समय, महत्व आदि के बारे में जरूरी निष्कर्ष निकाले जाते हैं। 

जरूरी योग्यता


एक बेहतरीन आर्कियोलॉजिस्ट अथवा म्यूजियम प्रोफेशनल बनने के लिए प्लीस्टोसीन पीरियड अथवा क्लासिकल लैंग्वेज, मसलन पाली, अपभ्रंश, संस्कृत, अरेबियन भाषाओं में से किसी की जानकारी आपको कामयाबी की राह पर आगे ले जा सकती है।

पर्सनल स्किल


आर्कियोलॉजी ने केवल दिलचस्प विषय है बल्कि इसमें कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स के लिए यह चुनौतियों से भरा क्षेत्र भी है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए अच्छी विशेलषणात्मक क्षमता, तार्किक सोच, कार्य के प्रति समर्पण जैसे महत्वपूर्ण गुण जरूर होेने चाहिए। कला की समझ और उसकी पहचान भी आपको औरों से बेहतर बनाने में मदद करेगी। इसके अलावा आप में चीजों और उस देशकाल को जानने की ललक भी होनी चाहिए। 

संभावनाएं व वेतन


आर्कियोलॉजिस्ट की मांग सरकारी और निजी हर क्षेत्र में है। इन दिनों कॉरपोरेट हाउसेज में भी नियुक्ति हो रही है। वे अपने रिकॉर्ड्स के रख-रखाव के लिए एक्सपर्ट की नियुक्ति करते हैं। इसी तरह रिचर्स के लिए भी इसकी मांग रहती है। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया में आर्कियोलॉजिस्ट पदों के लिए संघ लोक सेवा आयोग हर वर्ष परीक्षा आयोजित करता है। राज्यों के आर्कियोलॉजी डिपार्टमेंट में भी असिस्टेंट आर्कियोलॉजिस्ट की मांग भी रहती है। वहीं नेट क्वालीफाई करके लेक्चररशिप भी कर सकते हैं। आर्कियोलॉजी के क्षेत्र में किसी भी पद पर न्यूनतम वेतन 25 हजार रुपए है। उसके बाद वेतन का निर्धारण पद और अनुभव के आधार पर होता है।

कोर्सेज


आर्कियोलॉजी से जुड़े रेगुलर कोर्स जैसे पोस्ट ग्रेजुएशन, एमफिल या पीएचडी देश के अलग-अलग संस्थानों में संचालित किए जा रहे हैं। हालांकि हेरिटेज मैनेजमेंट और आर्किटेक्चरल कंजरवेशन से जुड़े कोर्स केवल गिने-चुने संस्थानों में ही पढ़ाए जा रहे हैं। आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया की फंक्शनल बॉडी इंस्टीट्यूट ऑफ आर्कियोलॉजी में दो वर्षीय डिप्लोमा कोर्स की पढ़ाई होती है। अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षा के आधार पर इस कोर्स में दाखिला दिया जाता है। इसी तरह गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी नई दिल्ली से एफिलिएटेड इंस्टीट्यूट, दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ हेरिटेज रिसर्च एंड मैनेजमेंट, आर्कियोलॉजी और हेरिटेज मैनेजमेंट में दो वर्षीय मास्टर कोर्स का संचालन होता  

Friday, November 2, 2018

वाइल्ड लाइफ में बेहतरीन अवसर

पूरा विश्व लगातार हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों को लेकर चिंतित है। खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में लगातार इज़ाफा हो रहा है, ऐसे में पूरी दुनिया में वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई इस मांग ने इस क्षेत्र को कॅरिअर के एक बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। आने वाले सालों में रिसर्च से लेकर फील्ड में बेहतर माहौल तैयार करने के लिए दुनिया भर के नेशनल पार्क और कंजर्वेशन रिजर्व में ऐसे विशेषज्ञों की भारी मांग होने वाली है।

क्या करते हैं पर्यावरण विशेषज्ञ


मानवीय गतिविधियों की वजह से पूरी दुनिया की जैव विविधता और संतुलन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, पर्यावरण विशेषज्ञ उन प्रभावों के विश्लेषण, उनके दूरगामी असर और उनसे बचाव के रास्ते खोजते हैं। साथ ही वे मौजूदा वन्यजीवन और विविधता को सहेजने की कोशिश भी कर रहे हैं। विश्व के सभी देशों में अब किसी भी बड़ी मानवीय गतिविधि या प्रोजेक्ट को शुरू करने से पहले पर्यावरण संरक्षण संबंधी अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करना होता है। इस काम के लिए सरकार और कंपनियां दोनों ही पर्यावरण विशेषज्ञों को नियुक्त करती हैं। इसके अलावा खतरे में पड़ी प्रजातियों के संरक्षण का काम भी ये विशेषज्ञ करते हैं। दुनिया भर के चिड़ियाघरों में ऐसे विशेषज्ञों को सलाह और काम के लिए बुलाया जाता है। 

योग्यता


वन्यजीव विज्ञान, पारिस्थितिकी विज्ञान और पर्यावरण विज्ञान में स्नातक, स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त उम्मीदवार इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं दे सकते हैं। इसके अलावा कई संस्थान प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी करवाते हैं, जो वन्यजीव वातावरण में व्यावहारिक ज्ञान के साथ इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने की इच्छा रखने वालों के लिए एक बेहतरीन अनुभव है। इन कोर्सेज में प्रवेश लेने के लिए संबंधित विज्ञान विषय में उच्च माध्यमिक या स्नातक उत्तीर्ण होना आवश्यक है। इसके अलावा कुछ संस्थान वन्यजीवन दर्शन में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम संचालित करते हैं जिसमें कला से संबंधित उम्मीदवार भी आवेदन कर सकते हैं। 

अवसर


दुनिया भर की वन्य जीव संरक्षण एजेंसियाँ व संस्थान जैसे वर्ल्डवाइल्ड फंड फॉर नेचर, डब्ल्यूसीएस, डब्ल्यूटीआई और पेटा जैसे एनजीओ तथा राष्ट्रीय पार्कों एवं बाघ अभ्यारण्यों में इस क्षेत्र से जुड़े अवसर उपलब्ध हैं। आप यहां वन्यजीव-जीवविज्ञानी, वन्यजीव पारिस्थितिकी विज्ञानी, वन्यजीव प्रबंधक, वन्यजीव शिक्षक, वन्यजीव संरक्षक, वन्यजीव फॉरेंसिक विशेषज्ञ, वन्यजीव स्वास्थ्य और पशुपालन विशेषज्ञ, वन्यजीव वैज्ञानिक, वन्यजीव शोधकर्ता, वन्यजीव फोटोग्राफर व पत्रकार, पर्यावरणीय प्रभाव विश्लेषक, पक्षीविज्ञानी और वन्यजीव सलाहकार जैसे महत्वपूर्ण दायित्व निभा सकते हैं। दुनिया भर के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म पर इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करने के लिए समय-समय पर आवेदन मांगे जाते हैं।

क्या पढऩा होगा


इस क्षेत्र में कॅरिअर बनाने के लिए वन्यजीव प्रबंधन स्नातकोत्तर डिप्लोमा, पीएचडी, जैविक विज्ञान, एमफिल, वन्यजीव विज्ञान, पर्यावरणीय विज्ञान में एमएससी, बीएससी या बीवीएससी एंड ए.एच, एमएससी, जैविक विज्ञान, वानिकी में बीएससी, पारिस्थितिकी विकास में एमएससी, वन्यजीव?बीएससी डिग्री, प्रबंधन स्नातकोत्तर डिग्री और पारिस्थितिकी एवं प्रबंधन में प्रमाण-पत्र प्राप्त कर आप अपनी सेवाएं दे सकते हैं। 

वेतन


रिसर्च और विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले पर्यावरण विशेषज्ञों का शुरुआती वेतन करीबन 25,000 रुपए प्रतिमाह है। कॉर्पोरेट में यह आंकड़ा 50,000 रुपए से दो लाख के बीच होता है। फील्ड में काम करने के लिए शुरुआत किसी विशेषज्ञ के साथ सहायक के तौर पर जुड़कर की जा सकती है। अनुभव बढऩे के साथ वेतन में भी अच्छी बढ़ोतरी होती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाले विशेषज्ञों को वर्ष भर के लिए 25 लाख रुपए या उससे भी ज्यादा का भुगतान किया जाता है। 

यहां से करें कोर्स


कुवेम्पु विश्वविद्यालय, शिमोगा, कर्नाटक
kuvempu.ac.in/

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, मुंबई
tifr.res.in/index.php/en/

फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट, देहरादून
fri.icfre.gov.in/

नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, बेंगलुरु
ncbs.res.in/

वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून
envfor.nic.in/wii/wii.html

गुरू घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर
ggu.ac.in/
 

Thursday, November 1, 2018

अर्थशास्त्र में भविष्य

अर्थशास्त्र को एक ऐसे विषय के तौर पर देखा जा सकता है, जिसकी उपयोगिता लगभग हर क्षेत्र में होती है। सरल शब्दों में कहें तो अर्थशास्त्र समाज के सीमित संसाधनों का दक्षतापूर्ण ढंग से उपयोग करने की अनेक प्रणालियों का अध्ययन है। इसी बुनियादी नियम पर हमारी व्यावसायिक व आर्थिक इकाइयों की गतिविधियां टिकी होती हैं। अर्थशास्त्री आर्थिक आंकड़ों का विश्लेषण और विभिन्न नीतिगत विकल्पों का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। साथ में इनके भावी प्रभाव पर पैनी नजर रखते हैं, ताकि विकास दर पर नियंत्रण रखा जा सके। अर्थशास्त्री इसी दृष्टिकोण से काम करते हैं। इनका कार्यक्षेत्र एक छोटी कंपनी से लेकर देश की अर्थव्यवस्था जैसा बहुआयामी भी हो सकता है।
छात्र में हों ये विशेषताएं
इस विषय की पढ़ाई करने और अर्थशास्त्रमें सफल पेशेवर बनने के लिए आपमें उपलब्ध डाटा का विश्लेषण कर पाने की क्षमता का बेहतर होना जरूरी है। इसी क्रम में *मैथ्स और स्टैटिस्टिक्स की बुनियादी समझ बेहद जरूरी है। आर्थिक विषमताओं/स्थितियों को समझने-बूझने का निरीक्षण कौशल भी इसमें आगे बढ़ने के लिए जरूरी है।
अध्ययन के रास्ते हैं विविध
अर्थशास्त्र 12वीं स्तर पर एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है,पर इस विषय में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए अर्थशास्त्र से बीए (ऑनर्स) कोर्स से असली शिक्षा की शुरुआत होती है। हालांकि अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन के स्तर पर कई अन्य कोर्सेज भी संचालित किए जाते हैं। इनमें बीए(बिजनेस इकोनॉमिक्स), बीए(डेवलपमेंटल इकोनॉमिक्स) जैसे कोर्स का नाम लिया जा सकता है। देश के कई विश्वविद्यालयों में ये तमाम कोर्स कराये जाते हैं। अर्थशास्त्र से जुड़े विभिन्न कोर्सेज की मांग इसी बात से समझी जा सकती है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के विभिन्न कॉलेजों में इसके ग्रेजुएट स्तर के कोर्स में प्रवेश पाने के लिए 90 फीसदी से अधिक अंक चाहिए होते हैं।
विशेषज्ञता की ओर बढ़ाएं कदम
ग्रेजुएशन में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले छात्रों को मास्टर्स स्तर पर अर्थशास्त्र की कई शाखाओं में विशेषज्ञता अर्जित करने के लिए विकल्प दिए जाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से एनालिटिकल एंड एप्लाइड इकोनॉमिक्स, बिजनेस इकोनॉमिक्स, कॉर्पोरेशन एंड एप्लाइड इकोनॉमिक्स, इकोनॉमेट्रिक्स, इंडियन इकोनॉमिक्स का विशेष रूप से उल्लेख किया जा सकता है। इनके अलावा इंडस्ट्रियल इकोनॉमिक्स ,बिजनेस इकोनॉमिक्स, एग्रीकल्चर इकोनॉमिक्स, एन्वायर्नमेंटल इकोनॉमिक्स, बैंकिंग इकोनॉमिक्स व रूरल इकोनॉमिक्स भी उल्लेखनीय हैं। छात्र चुनिंदा विश्वविद्यालयों में उपलब्ध एमबीए (बिजनेस इकोनॉमिक्स) कोर्स का भी लाभ उठा सकते हैं। अर्थशास्त्र में पीजी डिप्लोमा और पीएचडी की राह भी चुन सकते हैं। देश के ज्यादातर सरकारी विश्वविद्यालयों में अर्थशास्त्र से जुड़े कोर्सेज उपलब्ध हैं।
इंडियन इकोनॉमिक सर्विस
कम ही लोग जानते होंगे कि देश में इंडियन एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस की तरह इंडियन इकोनॉमिक सर्विस भी है। इसमें उपयुक्त प्रत्याशियों के चयन के लिए अखिल भारतीय स्तर पर यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन (यूपीएससी) प्रतियोगी परीक्षा आयोजित करती है। इस परीक्षा में अर्थशास्त्र/स्टैटिस्टिक्स विषय में कम से कम मास्टर्स डिग्रीधारक युवा ही शामिल हो सकते हैं। प्रत्याशी की आयु 21 वर्ष से लेकर 30 वर्ष तक होनी चाहिए। इस परीक्षा में लिखित परीक्षा के बाद इंटरव्यू लिया जाता है। लिखित परीक्षा में जनरल इंग्लिश, जनरल नॉलेज व अर्थशास्त्र पर आधारित अन्य पेपर्स होते हैं। यह केंद्र सरकार की ग्रुप ‘ए' सर्विस है। सफल प्रत्याशियों को इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इकोनॉमिक ग्रोथ, दिल्ली में प्रशिक्षण दिया जाता है। इसके बाद इनकी पहली नियुक्ति सहायक निदेशक के पद पर होती है। कार्यानुभव बढ़ने के साथ पदोन्नति पाते हुए प्रिंसिपल इकोनॉमिक एडवाइजर के पद तक पहुंच सकते हैं। 
विदेश में नौकरी के अवसर 
अर्थशास्त्र के विशेषज्ञों को विदेशी संस्थानों जैसे इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड, वर्ल्ड बैंक, एशियन डेवलपमेंट बैंक के अलावा मल्टी नेशनल कंपनियों में शानदार मौके मिलते हैं। इनकी नियुक्तियां अर्थशास्त्री, नीति-निर्माता, एनालिस्ट, कंसल्टेंट आदि रूपों में होती हैं। विदेशों के सरकारी संस्थानों में भी भारतीय आर्थिक विशेषज्ञों की अच्छी-खासी मांग है। विदेश में बतौर रिसर्च स्कॉलर/प्राध्यापक के पदों पर आकर्षक पैकेज पर नियुक्तियां होती हैं।.
इस विशिष्ट कोर्स का उठाएं लाभ
देश के कुछ चुनिंदा विश्वविद्यालयों में ग्रेजुएशन स्तर पर तीन वर्षीय बैचलर ऑफ बिजनेस इकोनॉमिक्स कोर्स उपलब्ध है। प्राय: परीक्षा के जरिये इस कोर्स की सीमित सीटों पर प्रवेश दिया जाता है। प्रवेश परीक्षा में वर्बल एबिलिटी, क्वांटिटेटिव एबिलिटी, लॉजिकल रीजनिंग, जनरल अवेयरनेस से जुड़े ऑब्जेक्टिव टाइप प्रश्न पूछे जाते हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के दस कॉलेजों में यह विशिष्ट कोर्स कराया जाता है। इनमें लगभग 480 सीटों पर प्रवेश दिया जाता है।.
रोजगार के अवसर
निजी क्षेत्र की तमाम औद्योगिक इकाइयों, बैंकिंग सेक्टर, फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन, कॉमर्स, टैक्सेशन, इंटरनेशनल ट्रेड, एक्चुरियल साइंस आदि में इस क्षेत्र के पेशेवरों की मांग बनी रहती है। हर साल सरकारी क्षेत्र में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, नीति आयोग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पालिसी, नेशनल सैम्पल सर्वे तथा विभिन्न राज्य सरकारों के संबंधित विभागों आदि में बड़ी संख्या में अर्थशा्त्रिरयों की नियुक्तियां की जाती है। अर्थशास्त्र का शिक्षक भी बना जा सकता है।
चुनौतियां
ग्रेजुएशन के बाद ही इस क्षेत्र में रोजगार के विकल्प बनते हैं। लेकिन ज्यादा अवसर उपलब्ध हो पाएं, उसके लिए उच्च अध्ययन की ओर कदम बढ़ाना जरूरी होता है। 
' चूंकि इस क्षेत्र में आर्थिक विश्लेषण के लिए स्टैटिस्टिक्स, कैल्कुलस और ऊंचे दर्जे की गणित का इस्तेमाल होता है, इसलिए छात्रों को अनिवार्य रूप से गणित विषय पसंद होना चाहिए।
अर्थशास्त्र की पढ़ाई को गंभीरता से लें। बीए (ऑनर्स) अर्थशास्त्र के सिलेबस को काफी कठिन माना जाता है।
प्रमुख संस्थान
दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली
यूनिवर्सिटी ऑफ बॉम्बे, मुंबई
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता