Wednesday, April 26, 2017

साइबर एक्सपर्ट्स में कैरियर

आज लगभग हर क्षेत्र में इंटरनेट या कम्प्यूटर का उपयोग होने लगा है और इस पर लोगों की निर्भरता भी लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन कुछ लोग इसका बेजा इस्तेमाल भी करने लगे हैं। हैकर्स दूसरों के अकाउंट और महत्वपूर्ण डाटा को आसानी से उड़ा ले जाते हैं। हालांकि शुरू-शुरू के दिनों में इंटरनेट का इस्तेमाल महज रिसर्च और महत्वपूर्ण सूचनाओं को हासिल करने के उद्द्ददेश्य से ही किया जा रहा था, पर अब जिस तरह से इंटरनेट का प्रयोग तेजी से बढ़ने लगा है, कुछ उसी रफ्तार से साइबर क्राइम भी बढ़ रहा है। इससे निपटने के लिए साइबर लॉ और इसके एक्सपर्ट्स की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है।
साइबर क्राइम
पूरी दुनिया में साइबर स्पेस का अपना एक कानून है, जिसका मकसद इंटरनेट के माध्यम से होने वाले अपराधों पर लगाम लगाना है। इंटरनेट के जरिए अंजाम दिए जाने वाले अपराधों के हाइटेक रूप को ही साइबर क्राइम कहा जाता है। इसके अंतर्गत इंटरनेट द्वारा क्रेडिट कार्ड चोरी, ब्लैकमेलिंग, स्टॉकिंग, कॉपीराइट और ट्रेडमार्क  फ्रॉड, पोर्नोग्राफी आदि जैसी आपराधिक घटनाओं को अंजाम दिया जाता है।
साइबर लॉ एक्सपर्ट्स की बढ़ती डिमांड
इन दिनों में जैसे-जैसे कम्प्यूटर पर लोगों की निर्भरता बढ़ती जा रही है। साइबर क्राइम बढ़ने की आशंका भी उसी रफ्तार से बढ़ रही है। ऐसी स्थिति में साइबर क्राइम पर लगाम लगाने के लिए एक्सपर्ट्स की आने वाले दिनों में अच्छी खासी डिमांड होगी। सामान्य कानून और पुलिस इस तरह के अपराधों से निपटने में सक्षम नहीं है। साइबर क्राइम से निपटने में वे लोग ही माहिर होते हैं, जो साइबर लॉ केविशेषज्ञ होने के साथ-साथ साइबर क्रिमिनल्स की हाइटेक टेक्निक से भी वाकिफ होते हैं।
साइबर की दुनिया में एंट्री
यदि आप साइबर एक्सपर्ट बनकर साइबर क्राइम पर फंदा कसना चाहते हैं, तो 12वीं के बाद इस तरह के कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं। कानून, टेक्नोलॉजी, मैनेजमेंट, अकाउंट आदि क्षेत्रों से जुड़े स्टूडेंट्स या पेशेवर लोग भी इस तरह के कोर्स कर सकते हैं। जिन छात्रों ने पहले से ही लॉ कोर्स किया है। उन्हें लॉ के केवल बेसिक्स ही नहीं पढ़ने होंगे, बल्कि साइबर क्राइम और इससे निपटने के तरीके सीखने होंगे।
साइबर लॉ कोर्स
साइबर लॉ का क्षेत्र काफी व्यापक है। यहां तकनीकी विषयों के साथ-साथ कानूनी पहलुओं का भी अध्ययन किया जाता है। इसके पाठ्यक्रम में टेक्नोलॉजी और लॉ दोनों विषयों के बारे में विस्तृत रूप से पढ़ाया जाता है। कोर्स स्ट्रक्चर इस प्रकार है :
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राइट आॅफ सिटीजंस और ई-गवर्नेंस
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इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ऐक्ट
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मैनेजमेंट और इससे जुड़े विषय
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लॉ आॅफ डिजिटल कॉन्ट्रैक्ट
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बौद्धिक संपदा अधिकार संबंधी मुद्दे
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साइबर लॉ से जुड़े इंटरनेशनल पहलुओं का अध्ययन
करियर आॅप्शंस
इन दिनों साइबर लॉ के क्षेत्र में करियर आॅप्शंस की कोई कमी नहीं है। आइए जानते हैं, कौन-कौन से वे क्षेत्र हैं, जिनमें आप अपना करियर बना सकते हैं
रिसर्च का क्षेत्र : रिसर्चर के रूप में देश की प्रमुख यूनिवर्सिटी, लॉ-फर्म्स, मल्टीनेशनल कंपनियों, गवर्नमेंट डिपार्टमेंट्स आदि में काम करने का खूब मौके हंै। अब्रॉड यूनिवर्सिटीज में हायर स्टडी के लिए स्कॉलरशिप भी मिल सकती है।
ट्रेनिंग के क्षेत्र : मल्टीनेशनल कंपनियों, बड़े कॉर्पोरेट हाउसेज, सरकारी और पुलिस डिपार्टमेंट्स में ट्रेनर के तौर पर। देश के जाने-माने ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स के फैकल्टी मेंबर के तौर पर। साइबर लॉ को करियर के रूप में अपनाकर संबंधित मुकदमों के निपटाने वाले विशेषज्ञ वकील बन सकते हैं।
मनी मीटर 
भारत में साइबर क्राइम तेजी से उभरता हुआ करियर क्षेत्र है। इस लिए इस क्षेत्र में सैलरी पैकेज भी काफी दमदार है। शुरू-शुरू में आपकी सैलरी प्रति माह 15 से 20 हजार रुपये होती है।
इंस्टीट्यूट्स वॉच
  • सिम्बॉयोसिस सोसायटी लॉ कॉलेज, पुणे
  • आसियान स्कूल आॅफ सायबर लॉ, पुणे
  • सेंटर आॅफ डिस्टेंस एजुकेशन, हैदराबाद
  • इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, इलाहाबाद
  • साइबर लॉ कॉलेज, नावी
  • अमेटी लॉ स्कूल, दिल्ली
  • डिपार्टमेंट आॅफ लॉ, दिल्ली यूनिवर्सिटी


Monday, April 24, 2017

सॉइल साइंस में कॅरिअर

शिक्षण से लेकर रिसर्च और मिट्टी के संरक्षण से लेकर कंसल्टिंग जैसे कई अवसर कॅरिअर विकल्प के रूप में सॉइल साइंटिस्ट के लिए उपलब्ध हैं। एग्रीकल्चरल रिसर्च काउंसिल अपने सभी रिसर्च संस्थानों के साथ मृदा वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी नियोक्ता है। इसके अलावा सॉइल साइंटिस्ट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, विश्वविद्यालयों, कृषि सहकारी समितियों, खाद निर्माताओं और रिसर्च संस्थानों के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। 

एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन के रूप में मृदा एक अहम तत्व है। मृदा विज्ञान में मिट्टी का अध्ययन एक प्राकृतिक संसाधन के रूप में किया जाता है। इसके अंतर्गत मृदा निर्माण, मृदा का वर्गीकरण, मृदा के भौतिक, रासायनिक तथा जैविक गुणों और उर्वरकता का अध्ययन किया जाता है। बीते सालों में फसल उत्पादन, वन उत्पाद और कटाव नियंत्रण में मिट्टी के महत्व को देखते हुए मृदा विज्ञान के क्षेत्र में रोजगार के ढेरों अवसरों का सृजन हुआ है। अब देश भर में बड़ी संख्या में सॉइल टेस्टिंग व रिसर्च लैबोरेट्रीज स्थापित हो रही हैं। इनमें से हरेक को प्रशिक्षित पेशेवरों की जरूरत होती है, जो मिट्टी के मापदंडों का मूल्यांकन कर सकें ताकि उसकी गुणवत्ता को सुधारा जा सके। ऐसे में यह क्षेत्र रोजगार के अवसरों से भरपूर है।
क्या करते हैं सॉइल साइंटिस्ट

सॉइल साइंटिस्ट या मृदा वैज्ञानिक का प्राथमिक काम फसल की बेहतरीन उपज के लिए मृदा का विश्लेषण करना है। मृदा वैज्ञानिक मृदा प्रदूषण का विश्लेषण भी करते हैं, जो उर्वरकों और औद्योगिक अपशिष्ट से उत्पन्न होता है। इन अपशिष्टों को उत्पादक मृदा में परिवर्तित करने के लिए उपयुक्त तरीके और तकनीकियां भी वे विकसित करते हैं। इन पेशेवरों के वर्क प्रोफाइल में बायोमास प्रॉडक्शन के लिए तकनीकियों का इस्तेमाल शामिल है। वनस्पति पोषण, वृद्धि व पर्यावरण गुणवत्ता के लिए भी वे काम करते हैं। उर्वरकों का उपयोग सुझाने में भी मृदा वैज्ञानिक की भूमिका अहम होती है। सॉइल साइंस प्रोफेशनल मृदा प्रबंधन पर मार्गदर्शन करते हैं। चूंकि मृदा वैज्ञानिक रिसर्चर, डवलपर और एडवाइजर होते हैं, इसलिए वे अपने ज्ञान का इस्तेमाल बेहतरीन मृदा प्रबंधन के लिए करते हैं। मिट्टी की उर्वरकता और पानी के सही इस्तेमाल के लिए वे सलाह देते हैं। मिट्टी के अधिकतम सही उपयोग के लिए भी मृदा वैज्ञानिक जिम्मेदार होते हैं। मृदा क्षरण को वे रोकते हैं और यह भी सुनिश्चित करते हैं कि मिट्टी की उर्वरकता बरकरार और बेहतर रहे। मृदा वैज्ञानिक फील्ड के साथ-साथ लैबोरेट्री में काम करते हैं। वे डेटा बैंक, सिम्युलेशन मॉडल्स और कम्प्यूटर का उपयोग करते हैं।
क्या पढ़ना होगा

अध्ययन के मुख्य क्षेत्रों में सॉइल केमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, फिजिक्स, पेडोलॉजी, मिनरोलॉजी, बायोलॉजी, फर्टिलिटी, प्रदूषण, पोषण, बायोफर्टिलाइजर, अपशिष्ट उपयोगिता, सॉइल हेल्थ एनालिसिस शामिल हैं। छात्र सॉइल साइंस में बैचलर या मास्टर डिग्री ले सकते हैं। साथ ही वे सॉइल फॉर्मेशन (वह प्रक्रिया जिससे मिट्टी बनती है।), सॉइल क्लासिफिकेशन (गुणों के अनुसार मिट्टी का वर्गीकरण), सॉइल सर्वे (मिट्टी के प्रकारों का प्रतिचित्रण), सॉइल मिनरोलॉजी (मिट्टी की बनावट), सॉइल बायोलॉजी, केमिस्ट्री व फिजिक्स (मिट्टी के जैविक, रसायनिक व भौतिक गुण), मृदा उर्वरकता (मृदा में कितने पोषक तत्व है), मृदा क्षय जैसे क्षेत्रों में स्पेशलाइजेशन कर सकते हैं।
कॅरिअर के विकल्प

शिक्षण से लेकर रिसर्च और संरक्षण से लेकर कंसल्टिंग जैसे कई अवसर कॅरिअर विकल्प के रूप में मृदा वैज्ञानिकों के लिए उपलब्ध हैं। कृषि, वॉटर रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट्स, सॉइल एंड फर्टिलाइजर टेस्टिंग लैबोरेट्रीज, ट्रांसपोर्टेशन प्लानिंग, आर्कियोलॉजी, मृदा उत्पादकता, लैंडस्केप डवलपमेंट जैसे क्षेत्रों में मृदा वैज्ञानिकों की खासी मांग है। क्रॉप एडवाइजर से लेकर संरक्षणकर्ता बनने तक सॉइल साइंस यानी मृदा विज्ञान में अनगिनत अवसर हैं। पर्यावरण और एग्रो-कंसल्टिंग फर्म्स में इस क्षेत्र के पेशेवरों की प्रबंधकीय और एग्जीक्यूटिव पदों पर खासी जरूरत है। ऐसा चलन न केवल भारत, बल्कि विदेशों में है। इस फील्ड में रिसर्च आपको आईसीएआर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक पहुंचता सकती है। इतना ही नहीं फसल उत्पादकता और मृदा स्वास्थ्य को बरकरार रखने के लिए आने वाले सालों में अधिक रोजगार उत्पन्न होगा।
अवसर

एग्रीकल्चरल रिसर्च काउंसिल अपने सभी रिसर्च संस्थानों के साथ मृदा वैज्ञानिक की सबसे बड़ी नियोक्ता है। इसके अलावा मृदा वैज्ञानिक डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर, विश्वविद्यालयों, कृषि सहकारी समितियों, खाद निर्माताओं और रिसर्च संस्थानों के द्वारा नियुक्त किए जाते हैं। मृदा वैज्ञानिक अपना व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं। वे एनालिस्ट या मृदा सर्वेक्षक और डवलपमेंट कंसल्टेंट के रूप में काम कर सकते हैं। वे अपने सेवाएं एग्रीकल्चरल इंडस्ट्री, डवलपमेंट, कॉपरेटिव, कॉमर्शिलय बैंक के कृषि विभागों को दे सकते हैं।
यहां से करें कोर्स

इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पूसा
http://www.iari.res.in/

तमिलनाडु एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, कोयंबटूर
http://www.tnau.ac.in/

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, लुधियाना
http://www.pau.edu/

यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता, कोलकाता
http://www.caluniv.ac.in/

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
http://www.bhu.ac.in/