Sunday, February 26, 2017

ऑफ बीट करियर

दिल की धडक़नें कैलकुलेट कीजिए। दिमाग में करियर को लेकर चल रहे इंटिग्रेशन और डिफरेंशिएशन को नतीजे तक पहुंचने दीजिए। अगर मन करियर की फिक्स्ड मैग्नेटिक फील्ड से निकलकर कुछ ऑफकरने ​को तैयार है तो टेंशन लेने की जरूरत नहीं। ये साइंस का वक्त है। आपके पास ऑफ बीट करियर की लंबी इलेक्ट्रिक फील्ड है। इंटर में बायॉलजी सब्जेक्ट रहा हो या मैथ्स, दोनों के लिए नई फील्ड्iस में करियर की प्रॉबबिलिटी क्या है और वहां तक पहुंचने का रास्ता किन कोर्स की नब्ज समझने से बनता है। क्या इन कोर्स के लिए तैयारी की जरूरत है, कहां से हो सकते हैं ऐसे कोर्स, जो अच्छी कमाई के साथ-साथ कुछ अलग करने की संतुष्टिi देंगे। ऐसे ही कुछ करियर ऑप्शंस पर पेश है हमारी 
खास रिपोर्ट : 

मरीन इंजीनियरिंग 

बनें समुद्री दुनिया के एक्सपर्ट : मरीन बायॉलजी, ओशनोग्राफी और ओशन इंजीनियरिंग में मरीन साइंस के अंतर्गत काम करने की अधिक संभावनाएं रहती हैं। पढ़ाई के दौरान स्टूडेंट्स को समुद्री जीवों, वनस्पतियों के बारे में बताया जाता है। ओशन इंजीनियरिंग में समुद्र की स्टडी में यूज होने वाले उपकरण बनाने और उनके इस्तेमाल की जानकारी दी जाती है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : मरीन साइंस के क्षेत्र में एंट्री दो लेवल पर होती है। अंडरग्रैजुएट लेवल पर एंट्र्री करने वालों के लिए मरीन साइंस में बीएसएसी या बीटेक की डिग्री होनी चाहिए। वहीं हाई पोस्ट पर जॉब्स के अवसर पोस्टग्रैजुएशन के बाद खुलते हैं। पोस्टग्रैजुएशन स्तर पर एमएससी और एमटेक के ऑप्शन मौजूद हैं। इसके अलावा रिसर्च में करियर बनाने के लिए पीएचडी जरूरी है। 

सैलरी : 30,000 रुपये/माह से शुरुआत। 

यहां से करें कोर्स : 
गोवा यूनिवर्सिटी - www.unigoa.ac.in 
इंडियन इंस्टिट्iयूट ऑफ ट्रॉपिकल मैट्रियोलॉजी, पुणे - www.tropmet.res.in 
नैशनल जियोफि जिकल रिसर्च इंस्टिट्iयूट, हैदराबाद -www.ngri.org.in 

एनवायरनमेंटल एक्सपर्ट 

आबोहवाह के जानकार : कई कंपनियों में पर्यावरण संरक्षण से संबंधित नौकरी की संभावनाएं हैं। इनमें रिसर्च और एडवाइस देने वाले लोग, ऊर्जा की खपत कम करने की दिशा में काम करने वाले एक्सपर्ट आते हैं। इसके अलावा एनवायरनमेंटल साइंस की पढ़ाई करके पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता बरकरार रखने के गुर सिखाने वाले विशेषज्ञ, प्रदूषण कम करने के टिप्स देने वाले एक्सपर्ट की जॉब भी मिल सकती है। ये सभी काम ग्रीन जॉब्स की श्रेणी में आते हैं। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : एनवायरनमेंटल साइंस की फील्ड में अंडरग्रैजुएट लेवल पर एंट्र्री के लिए बीएससी इन एनवायरनमेंटल साइंस या किसी भी साइंस सब्जेक्ट में ग्रैजुएशन और साथ में एनवायरनमेंटल साइंस में डिप्लोमा होना चाहिए। पीजी के लिए एमएससी या एमटेक इन एनवायरनमेंटल साइंस जरूरी। 

सैलरी : 20 हजार रु./ माह से शुरुआत 

यहां से कर सकते हैं कोर्स : 
स्कूल ऑफ एनवायरनमेंटल साइंस, जेएनयू, नई दिल्ली - www.jnu.ac.in 
दी एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टिट्iयूट (टेरी), नई दिल्ली - www.jnu.ac.in 
सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज, इंडियन इंस्टिट्iयूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु- ces.iisc.ernet.in 

कोर्स का समय : ग्रैजुएशन में मई और पीजी कोर्स में अप्रैल में शुरू होते हैं एडमिशन 

न्यूक्लियर साइंटिस्ट 

एटम वल्र्ड में आजमाएं हाथ : न्यूक्लियर साइंस की फील्ड में नौकरी और रिसर्च की काफी संभावनाएं हैं। इसमें ऊर्जा का क्षेत्र अलग है, वहीं न्यूक्लियर रिएक्टर डिजाइन, सेफ्टी जैसे कई सब्जेक्ट इससे जुड़े रहते हैं। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : इसमें करियर बनाने के लिए बीटेक या बीएसएसी इन न्यूक्लियर साइंस होना जरूरी है। इसके अलावा रिसर्च में करियर बनाने के लिए पीएचडी भी कर सकते हैं। 

सैलरी : 50,000 रुपये / माह से शुरुआत 

यहां से करें कोर्स : 
भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई- barcrecruit.gov.in 
दिल्ली यूनिवर्सिटी - www.du.ac.in 
मनिपाल इंस्टिट्iयूट ऑफ टेक्नॉलजी, उडुपी - www.manipal.edu 
सेंटर फॉर न्यूक्लियर मेडिसिन, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ nuclearmedicine.puchd.ac.in 

एडमिशन लेने का वक्त : मई में शुरू होते हैं एडमिशन 

कार्टोग्राफर 

नक्शानवीसी के हुनर : कार्टोग्राफर साइंटिफिकल, टेक्नॉलजिकल और ज्योग्रॉफिकल इन्फर्मेशन को डायग्राम, चार्ट, स्प्रेडशीट और मैप के रूप में पेश करता है। इसमें डिजिटल मैपिंग और ज्योग्रॉफिकल इन्फर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) सबसे ज्यादा काम में आता है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : 
कार्टोग्राफर बनने के लिए बैचलर ऑफ कार्टोग्राफी करना होता है। अर्थ साइंस और अन्य फिजिकल साइंस ग्रैजुएट स्टूडेंट्स भी इस क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। उन्हें अपने बीएससी या बीटेक में एक सब्जेक्ट कार्टोग्राफी रखना चाहिए। 

यहां से करें कोर्स : 
इंस्टिट्यूट ऑफ जियो इन्फ र्मेटिक्स एंड रिमोट सेंसिंग, कोलकाता 
नैशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइजेशन, कोलकाता - natmo.gov.in 

सैलरी : 30 हजार से शुरुआत, विदेश में भी जॉब के ऑप्शन मिलते हैं। 

एडमिशन लेने का वक्त : मई के अंत तक मौका। 

डिजिटल फरेंसिक एक्सपर्ट 

डिजिटल डिटेक्टिव : इस समय साइबर क्राइम के मामले दिनों दिन बढ़ रहे हैं। ऐसे में कंप्यूटर फरेंसिक की फील्ड में काफी संभावनाएं बढ़ी हैं। कंप्यूटर फ रेंसिक एक्सपर्ट को साइबर पुलिस, साइबर इन्वेस्टिगेटर या डिजिटल डिटेक्टिव भी कहा जाता है। इन्हें डिजिटल सबूत जुटाने की ट्रेनिंग दी जाती है। यह फील्ड काफी रोचक मानी जाती है। इस फील्ड में सरकारी और प्राइवेट दोनों जगह जॉब के अच्छे ऑप्शन हैं। 

सैलरी : 25 हजार रुपये / माह से शुरुआत 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : डिजिटल फरेंसिक एक्सपर्ट बनने के दरवाजे डिजिटल फरेंसिक साइंस में बीएससी करने के बाद खुलते हैं। हाई पोस्ट जॉब्स के लिए मास्टर्स डिग्री इन डिजिटल फरेंसिक साइंस जरूरी है। डिजिटल फरेंसिक की डिग्री के साथ साइबर लॉ में बैचलर डिग्री या डिप्लोमा हो तो कहने ही क्या हैं। इसके बाद प्राइवेट डिटेक्टिव के तौर पर हाथ आजमा सकते हैं। 

यहां से करें कोर्स : 
एमिटी यूनिवर्सिटी, नोएडा, यूपी - www.amity.edu 
बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी, झांसी, यूपी - www.bujhansi.org 
उस्मानिया यूनिवर्सिटी, हैदराबाद -www.osmania.ac.in 

एडमिशन लेने का वक्त : मई में शुरुआत 


न्युट्रिशनिस्ट 

खान-पान में ढूंढ़े पैशन : न्युट्रिशनएक्सपर्ट की आवश्यकता गांव से लेकर कॉरपोरेट वल्र्ड और फूड रिसर्च सेंटर तक में है। जीवनशैली और खान-पान की आदतों में बड़ी तेजी से बदलाव आने से न्युट्रिशन साइंस में करियर के अवसर बढ़े हैं। आहार और पोषण से जुड़े एक्सपर्ट लोगों को उम्र, सेक्स, शारीरिक कार्यक्षमता और विभिन्न प्रकार की बीमारियों के अनुसार खान-पान की सलाह देता है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन: न्युट्रिशनिस्ट बनन के लिए आपको न्युट्रिशन या फूड साइंस में बैचलर डिग्री लेनी होगी। होम साइंस और अन्य साइंस सब्जेक्ट के स्टूडेंट भी इसमें करियर बना सकते हैं। उन्हें एक सब्जेक्ट में न्युट्रिशन साइंस रखना होगा या फिर न्युट्रिशन साइंस में डिप्लोमा लेना होगा। 

सैलरी : 25 हजार रुपये / माह से शुरुआत 

यहां से करें कोर्स : 
लेडी इरविन कॉलेज, नई दिल्ली- www.ladyirwin.edu.in 
श्रीमती नत्थीबाई दामोदर ठाकरे महिला 
यूनिवर्सिटी, मुंबई -www.sndt.ac.in 
उस्मानिया यूनिवर्सिटी हैदराबाद - www.osmania.ac.in 

एडमिशन लेने का वक्त : मई में होती है शुरुआत 


साउंड इंजीनियर 

आवाज के जादूगर : इन दिनो फिल्मों में साउंड इफेक्ट्स पर काफी जोर दिया जाने लगा है। खासकर हॉलिवुड फि ल्मों में इसका जमकर इस्तेमाल होता है। विदेशों में भी भारतीय साउंड इंजीनियरों की मांग बढ़ती जा रही है। स्लमडॉग मिलेनियर के लिए साउंड ऐंड म्यूजिक में रसूल पुकुटी के ऑस्कर अवॉर्ड जीतने के बाद यह सेक्टर युवाओं में खासा पॉपुलर हुआ। आप साउंड इंजीनियर, ब्रॉडकास्ट इंजीनियर, साउंड एडिटर एंड मिक्सर, साउंड इफेक्ट एडिटर, म्यूजिक एडिटर, री-रिकॉर्डिंग मिक्सर, स्टूडियो इंजीनियर, डायलॉग एडिटर, लोकेशन साउंड इंजीनियर जैसी पोस्ट पर काम कर सकते हैं। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : साउंड इंजीनियर बनने के लिए साउंड इंजीनियरिंग में सर्टिफिकेट या डिप्लोमा करना होता है। सर्टिफिकेट या 
डिप्लोमा कोर्स किसी भी स्ट्रीम से बैचलर डिग्री पूरी करने के बाद किया जा सकता है। लेकिन 12वीं में फिजिक्स और मैथ्स जैसे सब्जेक्ट होने जरूरी हैं। 

सैलरी : 20 हजार रुपये / माह 
से शुरुआत, अनुभव के साथ बढ़ती है सैलरी 

यहां से करें कोर्स : 
दिल्ली फिल्म इंस्टिट्यूट, दिल्ली- www.delhifilminstitute.com 
फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, पुणे-www.ftiindia.com 
सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट, कोलकाता-www.srfti.gov.in 

एडमिशन लेने का वक्त : जनवरी में शुरू होते हैं एडमिशन 

माइक्रोबायॉलजिस्ट 

माइक्रोस्कोप की बड़ी दुनिया : इस फील्ड में फिजियॉलजी ऑफ माइक्रोब्स, माइक्रोब्स की जैविक संरचना, एग्रीकल्चर माइक्रोबायॉलजी, फूड माइक्रोबायॉलजी, बायोफर्टिलाइजर में माइक्रोब्स, कीटनाशक, पर्यावरण, मानवीय बीमारियों आदि में सूक्ष्म जीवों की स्टडी की जाती है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : माइक्रोबायॉलजिस्ट बनने के लिए माइक्रोबायॉलजी या बायॉटेक्नॉलजी में बैचलर डिग्री जरूरी है। माइक्रोबायॉलजी में रिसर्च के क्षेत्र में काफी जॉब्स के अवसर हैं। रिसर्च के लिए पीएचडी जरूरी। 

सैलरी : 20 हजार रुपये प्रतिमाह से शुरुआत 

यहां से करें कोर्स : 
मनीपाल अकैडमी ऑफ हायर एजुकेशन, कर्नाटक -www.manipal.edu 
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, यूपी- www.amu.ac.in 
दिल्ली यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली - www.du.ac.in 

एडमिशन लेने का वक्त : मई में शुरू होती है प्रक्रिय 


आर्टिफिशल इंटेलिजेंस स्पेशलिस्ट 

कंप्यूटर को बनाइए इंटेलिजेंट : आर्टिफि शल इंटेलिजेंस का मतलब है कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता। इसमें कंप्यूटर को अलग-अलग परिस्थितियों के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया चुनने के लिए प्रोग्राम किया जाता है। कंप्यूटर शतरंज प्रोग्राम इसी का उदाहरण है। इसमें अलग-अलग परस्थितियों के हिसाब से प्रोग्रामिंग की जाती है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : इस फील्ड में करियर बनाने के लिए आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या रोबोटिक्स में बैचलर डिग्री की आवश्यकता होती है। कं प्यूटर साइंस ग्रैजुएट भी इस क्षेत्र में करियर बना सकते हैं। हाईपोस्ट पर अवसर आर्टिफिशल इंटेलिजेंस या रोबोटिक्स में एमटेक के बाद जल्दी मिलते हैं। 

सैलरी : 30 हजार रुपये / माह से शुरुआत 

यहां से करें कोर्स : 
सीएआईआर (सेंटर फॉर आर्टिफि शल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स), बेंगलुरु 
नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग, मैसूर - www.nie.ac.in 
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इन्फर्मेशन टेक्नॉलजी, इलाहाबाद -www.iiita.ac.in 

एडमिशन लेने का वक्त : अप्रैल में शुरू होते हैं एडमिशन

फोटोनिक्स 

लेटेस्ट लेजर : मेडिकल फील्ड हो या फिर कम्युनिकेशन टेक्नॉलजी सभी जगह फोटोनिक्स एक्सपर्ट की डिमांड है। मेडिकल में लेजर सर्जरी और ऑपरेशन में इस्तेमाल होने वाले उपकरण बनाने में फोटोनिक्स एक्सपर्ट की अहम भूमिका होती है। फिजिक्स की इस सब-फील्ड में फोटॉन्स का इस्तेमाल कर नई टेक्नॉलजी विकसित की जाती है। इस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल लेजर सर्जरी, फोटोग्राफी, रोबोट को आंखे देने आदि में होता है। 

मिनिमम क्वॉलिफिकेशन : इसके लिए फोटोनिक्स या ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स में मास्टर्स डिग्री करनी होगी। इसके लिए एमटेक और एमएससी के ऑप्शंस उपलब्ध हैं। आप एमएससी इन फोटोनिक्स करने के बाद एमटेक, एमफिल, पीएचडी कर सकते हैं। 

सैलरी : 40 हजार रु./माह से शुरुआत 

यहां से करें कोर्स : 
कोच्चि यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नॉलजी, केरल www.cusat.ac.in 
आईआईटी, मद्रास www.iitm.ac.in 
राजर्षि साहू कॉलेज, लातूर www.shahucollegelatur.org.in

Wednesday, February 22, 2017

इकोलॉजी में करियर

मनुष्य पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है। पर्यावरण में थोड़ी सी भिन्नता या बदलाव उसके जीवन को तेजी से प्रभावित करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आज हर देश पर्यावरण की समस्या से जूझ रहा है। वायु, जल, ध्वनि या भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाले अनचाहे परिवर्तन मनुष्य या अन्य जीवधारियों, उनकी जीवन परिस्थितियों, औद्योगिक प्रक्रियाओं एवं सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं। लोगों को इसकी भयावहता के प्रति जागरूक किया जा रहा है। आने वाले समय में इसके और विस्तार की जरूरत महसूस की जा रही है। पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए इकोलॉजी का अध्ययन आवश्यक है। इसके जरिए पर्यावरण के विभिन्न आयामों व उनके संरक्षण की विधिवत जानकारी मिलती है। विगत कुछ वर्षों से यह तेजी से उभरता हुआ करियर साबित हो रहा है। इससे संबंधित कोर्स में लोगों की भीड़ भी बढ़ती जा रही है।
क्या है इकोलॉजी
इकोलॉजी (पारिस्थितिकी) जीव विज्ञान की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत जीवों व उनके वातावरण के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन किया जाता है। जीवन की अनेक जटिल वर्तमान समस्याओं का समाधान पारिस्थितिकी के अध्ययनों द्वारा हुआ है। इसमें निजी पारिस्थितिकी, समुदाय पारिस्थितिकी व इको सिस्टेमोलॉजी आदि भी शामिल हैं। इकोलॉजी को समझने के लिए मानव प्रजातियों का विधिवत अध्ययन आवश्यक है। इसके अलावा जलवायवीय कारक जैसे प्रकाश, ताप, वायु-गति, वर्षा, वायुमंडल की गैसों आदि का अध्ययन भी जरूरी है। पृथ्वी पर एक बहुत बड़ा पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें समस्त जीव समुदाय सूर्य से प्राप्त ऊर्जा पर आश्रित रहते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत खाद्य श्रृंखला, खाद्य जाल, पारिस्थितिकी पिरामिड, ऊर्जा का पिरामिड, जैव मंडल, वायु मंडल आदि का अध्ययन किया जाता है।

साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी
यदि कोई छात्र इकोलॉजी से संबंधित कोर्स करना चाहता है तो स्नातक में उसका साइंस बैकग्राउंड होना जरूरी है। खासकर बॉटनी, बायोलॉजी, जूलॉजी एवं फॉरेस्ट्री संबंधी विषय सहायक साबित होते हैं। इसके बाद मास्टर कोर्स में दाखिला मिलता है। यदि छात्र रिसर्च, टीचिंग तथा अन्य शोध संबंधी कार्य करना चाहते हैं तो उनके लिए मास्टर डिग्री के बाद पीएचडी करना अनिवार्य है।
आवश्यक स्किल्स
इस क्षेत्र में सफलता पाने के लिए जरूरी है कि प्रोफेशनल्स प्रकृति से प्रेम करना सीखें और उसके संरक्षण के लिए उनके दिल में दर्द हो। कार्यक्षेत्र व्यापक होने के कारण जिस क्षेत्र में जा रहे हों, उसका विस्तृत अध्ययन जरूरी है। किसी भी चीज को आंकने का कौशल व कार्यशैली उन्हें औरों से अलग करती है। इसके अलावा उनमें समस्या के त्वरित निर्धारण का गुण, कम्प्यूटर व मैथ्स की अच्छी जानकारी, प्रेजेंटेशन व राइटिंग स्किल, कार्य के प्रति अनुशासन व टीम वर्क आदि का गुण उन्हें लंबी रेस का घोड़ा बना सकता है।
विस्तृत है कार्यक्षेत्र
अर्बन इकोलॉजी-
अर्बन इकोलॉजी इस क्षेत्र की सबसे नवीनतम विधा है, जिसमें इकोलॉजी का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया जाता है, खासकर शहरों में रहने वाले लोगों के जनजीवन व प्राकृतिक परिदृश्य को इसमें भली-भांति परखा जाता है।
फॉरेस्ट इकोलॉजी- इसके अंतर्गत विभिन्न प्रजातियों के पौधों, जानवरों और कीड़े-मकौड़ों का अध्ययन व उनका वर्गीकरण किया जाता है। इसके अलावा जंगलों की भूमि और वहां के वातावरण पर मनुष्य और ग्लोबल वार्मिंग के असर का अध्ययन भी करते हैं।
मरीन इकोलॉजी- यह इकोलॉजी की ऐसी शाखा है, जिसके अंतर्गत जलीय जन्तुओं और उसमें रहने के दौरान वातावरण के असर को समझा जाता है। इसमें चिडियाघर और एक्वेरियम सेंटर में जलीय जन्तुओं के संरक्षण पर भी काम किया जाता है।
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट- ये प्रोफेशनल्स ऐसी जगह काम करते हैं, जहां पारिस्थितिकी तंत्र खतरे में (जैसे वनों की कटान, फिर से पौधारोपण की कवायद) हो। रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट प्रोजेक्ट के तहत काम करते हैं।
वाइल्ड लाइफ इकोलॉजी- इसमें इकोलॉजिस्ट पशुओं व उनकी जनसंख्या तथा उनके संरक्षण का प्रमुखता से अध्ययन करते हैं। साथ ही यह भी ढूंढ़ते हैं कि वे कौन से कारण हैं, जिनसे उनकी जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।
एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजी- इसमें एन्वायर्नमेंटल बायोलॉजिस्ट किसी विशेष वातावरण तथा उसमें रहने वाले लोगों की शारीरिक बनावट का अध्ययन करते हैं। ये पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा तथा उसके असंतुलन पर होने वाले दुष्परिणामों से भी लोगों को अवगत कराते हैं।
रोजगार की संभावना
सफलतापूर्वक कोर्स करने के बाद छात्रों को रोजगार के लिए भटकना नहीं पड़ता। हर साल इकोलॉजिस्टों की मांग बढ़ती जा रही है। कई सरकारी और गैर सरकारी एजेंसियां, एनजीओ, फर्म व विश्वविद्यालय-कॉलेज हैं, जहां इन प्रोफेशनल्स को विभिन्न पदों पर काम मिलता है। मुख्य रूप से प्रोफेशनल्स को रिसर्च सेंटर जैसे सीएसआईआर, एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीटय़ूट, एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट, एन्वायर्नमेंटल अफेयर डिपार्टमेंट, फॉरेस्ट्री डिपार्टमेंट, नेशनल पार्क, म्यूजियम, एक्वेरियम सेंटर में काम मिलता है। इसके अलावा कई प्राइवेट संस्थान प्राकृतिक संरक्षण के क्षेत्र में आगे आए हैं और वे भी इकोलॉजिस्ट्स को अपने यहां प्रमुखता से नियुक्त कर रहे हैं।
इन पदों पर मिलता है काम
रिसर्चर
इकोलॉजी साइंटिस्ट
नेचर रिसोर्सेज मैनेजर
वाइल्ड लाइफ मैनेजर
एन्वायर्नमेंटल कंसल्टेंट
रेस्टोरेशन इकोलॉजिस्ट
मिलने वाली सेलरी
इसमें सेलरी की ज्यादातर रूपरेखा संस्थान, प्रोफेशनल्स की योग्यता व कार्यशैली पर निर्भर करती है। वैसे इसमें शुरुआती दौर में कोई संस्थान ज्वाइन करने पर 15-20 हजार रुपए प्रतिमाह मिलते हैं। अनुभव बढ़ने के साथ ही सेलरी भी बढ़ती जाती है, जबकि किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज में टीचिंग के कार्य के दौरान उन्हें 40-50 हजार रुपए मिल जाते हैं। यदि स्वतंत्र रूप से या फिर विदेश में जॉब कर रहे हैं तो आमदनी की कोई निश्चित सीमा नहीं होती।
एजुकेशन लोन
इस कोर्स को करने के लिए कई राष्ट्रीयकृत बैंक देश में अधिकतम 10 लाख और विदेशों में 20 लाख तक का लोन प्रदान करते हैं। इसमें तीन लाख रुपए तक कोई सिक्योरिटी नहीं ली जाती। इसके ऊपर लोन के हिसाब से सिक्योरिटी देनी आवश्यक है। हर बैंक का अपना नियम-कानून है। बेहतर होगा कि छात्र लोन लेने से पूर्व संबंधित बैंक जाकर अच्छी तरह जांच-पड़ताल कर लें।
एक्सपर्ट व्यू
समय की मांग है इकोलॉजी

पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाने तथा उसमें मौजूद जीवों व संसाधनों में संतुलन बनाए रखने की प्रक्रिया से लगभग सभी देश जूझ रहे हैं। इसके लिए वे अभियान चला कर लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं। इन सब कवायदों के साथ ही देश में इकोलॉजिस्टों की मांग तेजी से बढ़ी है। इसके अलावा स्नातक स्तर पर पर्यावरण एक अनिवार्य विषय घोषित हो जाने से भी फैकल्टी के रूप में योग्य लोगों की आवश्यकता है। एनजीओ, वर्ल्ड बैंक के प्रोजेक्ट व सरकारी विभागों में इनकी काफी डिमांड है। एक इकोलॉजिस्ट की पहली ड्य़ूटी पारिस्थितिकी तंत्र में विभिन्न प्रजातियों को खोजना तथा वैज्ञानिक व व्यावहारिक सूचनाएं एकत्र करना है। इन प्रोफेशनल्स का ज्यादा समय रिसर्च, आंकड़ों का अध्ययन करने तथा रिपोर्ट तैयार करने में बीतता है। यह ऐसा क्षेत्र है, जो छात्रों से किताबी और प्रायोगिक दोनों तरह की जानकारी मांगता है। इसका विषय क्षेत्र व्यापक होने के कारण उन्हीं क्षेत्रों की ओर अपना कदम बढ़ाएं, जिनमें उनकी अधिक रुचि हो तथा जिसमें वे अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर सकें। आजकल इकोलॉजिस्टों के काम का दायरा काफी बढ़ गया है। वे बड़े-बड़े भूखंडों के मालिकों, उद्योगपतियों तथा वॉटर कंपनियों से जुड़ कर उन्हें सलाह देने का काम कर रहे हैं।  
-डॉ. वंदना मिश्रा, सीनियर फैकल्टी, डीयू
प्रमुख संस्थान
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
वेबसाइट
- www.jnu.ac.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी, जयपुर
वेबसाइट
- www.nieindia.org
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ साइंस (सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस), बेंगलुरू
वेबसाइट-
www.ces.iisc.ernet.in
नेशनल इंस्टीटय़ूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरू
वेबसाइट-
www.nias.res.in
इंडियन इंस्टीटय़ूट ऑफ इकोलॉजी एंड एन्वायर्नमेंटल, नई दिल्ली
वेबसाइट-
www.ecology.edu

Saturday, February 18, 2017

लिक्विड गोल्ड में करियर

दुनियाभर में एनर्जी के रूप में पेट्रोलियम पदार्थों की उपयोगिया क्या है, इससे हम सभी भलीभांति अवगत हैं। पहले पेट्रोलियम के नाम पर हम सिर्फ पेट्रोल, डीजल, एलपीजी और केरोसिन ऑयल को ही जानते थे, लेकिन अब इसमें सीएनजी भी शामिल हो गई है। दरअसल, ऑयल ऐंड गैस इंडस्ट्री एक विशिष्ट फील्ड है, जिसमें खासतौर पर प्रशिक्षित युवाओं की जरूरत पड़ती है। इनमें इंजीनियर्स की मांग तो हमेशा बनी ही रहती है, अन्य क्षेत्रों के जानकारों के लिए भी भरपूर मौके होते हैं। इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी से जुड़े कोर्स काफी महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं।

क्वालिफिकेशन 
12वीं की परीक्षा भौतिक विज्ञान, गणित और रसायन विज्ञान से 50 प्रतिशत अंकों से पास करने के बाद आप पेट्रोलियम से जुड़े कोर्स के लिए आवेदन कर सकते हैं। केमिकल और पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में बीई और बीटेक कर चुके छात्र पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में एमटेक के लिए आवेदन कर सकते हैं। बीबीए में प्रवेश के लिए 12वीं किसी भी संकाय से उत्तीर्ण होना जरूरी है। पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी संबंधी एमएससी कोर्स में ऐडमिशन के लिए जियोलॉजी (भूगर्भ विज्ञान), पेट्रोलियम, पेट्रोकेमिकल, केमिकल, मैकेनिकल, पॉलिमर साइंस आदि में ग्रेजुएशन डिग्री होनी चाहिए। पेट्रोलियम सेक्टर की पढ़ाई के दौरान यह सिखाया जाता है कि किस तरह गणित, जियोलॉजी और भौतिक विज्ञान के नियम, सूत्र और सिद्घांतों का प्रयोग ईंधन की खोज, विकास और उत्पादन में किया जा सकता है? पेट्रोलियम से जुड़े कोर्स में एडमिशन आमतौर पर लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के आधार पर होते हैं।


कोर्स
पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी ने बीबीए, एमबीए, एमटेक, बीटेक, एमएससी जैसे कोर्स शुरू किए हैं। इसके अलावा देश के चुनिंदा संस्थानों ने पेट्रोलियम के क्षेत्र में बीई, बीटेक, एमई, एमटेक, एमएससी और बीएससी जैसे कोर्स शुरू किए हैं। ये सभी कोर्स पेट्रोकैमिकल इंजीनियरिंग, पेट्रोटेक्नोलॉजी, गैस इंजीनियरिंग, पेट्रोमार्केटिंग आदि में शुरू किए हैं।

स्टडी कोर्स
पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में छात्र जियोलॉजी, भौतिकी और इंजीनियरिंग के सिद्वांतों द्वारा पेट्रोलियम की रिकवरी, डेवलपमेंट और प्रोसेसिंग के बारे में जानते हैं। इसके अलावा ड्रिलिंग, मैकेनिक्स, पर्यावरण संरक्षण और पेट्रोलियम जैसे विषयों पर छात्रों की पकड़ बनाई जाती है। पेट्रोलियम इंडस्ट्री को मुख्य तौर पर दो भागों में बांट कर देख सकते हैं- अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम सेक्टर। अपस्ट्रीम सेक्टर में खोज, उत्पादन व तेल और प्राकृतिक गैसों का दोहन कैसे किया जाए, इसकी शिक्षा व ट्रेनिंग दी जाती है। डाउनस्ट्रीम सेक्टर में रिफाइनिंग, मार्केटिंग और वितरण से संबंधित पूरी जानकारी दी जाती है। पेट्रोलियम के क्षेत्र में टीम की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण होती है। एक पेट्रोलियम इंजीनियर को जियोलॉजिस्ट, अन्वेषणकर्ता, इंजीनियर, पर्यावरण क्षेत्र के विशेषज्ञों के साथ काम करना पड़ता है।


क्या है स्कोप
पहले इस क्षेत्र में जियोलॉजिस्ट की काफी मांग थी, समय बदलने के साथ मैकेनिकल क्षेत्र के विशेषज्ञों ने इस इंडस्ट्री में अपनी धाक जमाई। करियर की अनेक संभावनाओं को देखते हुए इस क्षेत्र में प्रबंधन से लेकर इंजीनियरिंग तक के कोर्स शुरू हुए हैं। खासबात यह है कि प्रफेशनल्स की मांग हमेशा बनी रहती है। विशिष्ट क्षेत्र होने और प्रोफेशनल्स की मांग के मुकाबले उपलब्धता कम होने से इस सेक्टर में सैलरी भी काफी आकर्षक दी जाती है। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, ओएनजीसी, रिलायंस, अदानी एस्सार और केयर्स एनर्जी जैसी कई बडी कंपनियां पेट्रो प्रोफेशनल्स को शानदार सैलरी पैकेज पर नौकरियों के ऑफर दे रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक, भारत में ही हर साल तकरीबन आठ लाख प्रोफेशनल्स की जरूरत है। इस क्षेत्र में यूरोप के साथ ही खाडी़ देशों के भी दरवाजे खुले हैं।

काम और पद

जियोफिजिसिस्ट
इनका काम धरती की आंतरिक और वाह्य संरचना का अध्ययन करना है। इस पद पर काम करने के लिए जियोलॉजी, फिजिक्स, मैथ्स और केमिस्ट्री का बैकग्राउंड होना चाहिए।

ऑयल वेल-लॉग एनालिस्ट
इनका काम ऑयल फील्ड्स से नमूने लेना, खुदाई के दौरान विभिन्न मापों का ध्यान रखना और काम पूरा होने पर माप और नमूनों की जांच करना होता है।

ऑयल ड्रिलिंग इंजीनियर
इनका काम तेल के कुओं की खुदाई के लिए योजना बनाना होता है। इंजीनियर यह भी कोशिश करते हैं कि यह काम कम से कम खर्च में पूर्ण किया जा सके।

प्रॉडक्शन इंजीनियर
तेल के कुओं की खुदाई का काम पूरा होने के बाद प्रॉडक्शन इंजीनियर जिम्मेदारी संभालते हैं। ईंधन को सतह तक लाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका क्या है, इसका निर्णय प्रॉडक्शन इंजीनियर करते हैं।

ऑयल रिजरवॉयर इंजीनियर
इंजीनियर रिजरवॉयर प्रेशर निर्धारित करने के लिए जटिल कंप्यूटर मॉडल्स और गणित के फार्म्यूलों का प्रयोग करते हैं।

ऑयल फैसिलिटी इंजीनियर
ईंधन के सतह पर आने के बाद इसे अलग करने, प्रोसेसिंग और दूसरी जगहों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी ऑयल फैसिलिटी इंजीनियर के कंधों पर होती है।

सैलरी
पेट्रोलियम सेक्टर में फ्रेशर्स की सैलरी की बात करें, तो यह चुने गए फील्ड पर अधिक निर्भर करता है। मोटे तौर पर कह सकते हैं कि प्रशिक्षित युवा शुरुआत में साढ़े तीन से चार लाख रुपये तक का पैकेज हासिल कर सकता है। इस सेक्टर में आकर्षक सैलरी के अलावा अनुभवी व्यक्तियों को दुनियाभर में काम करने का मौका भी मिलता है। इस क्षेत्र की सरकारी कंपनियों में छह से सात लाख सालाना और निजी क्षेत्र में इससे भी ज्यादा सैलरी पैकेज मिलता है।

इंस्टीट्यूट वॉच
u राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम टेक्नोलॉजी, रायबरेली

www.rgipt.ac.in

u लखनऊ यूनिवर्सिटी, लखनऊ

www.lkouniv.ac.in

u पंडित दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी, गांधीनगर

www.pdpu.ac.in

u इंडियन स्कूल ऑफ माइंस धनबाद

www.ismdhanbad.ac.in

u महाराष्ट्र इंडस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी, पुणे,

www.mitpune.com

u अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी

www.amu.ac.in

u पुणे यूनिवर्सिटी

www.unipune.ernet.in

u बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी

www.itbhu.ac.in

u आईआईटी चेन्नई

www.mtechadm.iitm.ac.in

u यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम ऐंड एनर्जी स्टडीज, देहरादून,

www.upes.ac.in