Tuesday, October 11, 2016

न्यूक्लियर साइंस में करियर

दुनिया भर में ऊर्जा की जरूरत लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में नाभिकीय ऊर्जा समस्या के समाधान के रूप में उभरकर सामने आई है। उसके माध्यम से जहां ऊर्जा की बचत की जा सकती है, वहीं इसकी लागत को भी कम किया जा सकता है। दुनिया की नाभिकीय ऊर्जा पर निर्भरता बढऩे के साथ तकरीबन हर देश न्यूक्लियर साइंस पर शोध कार्यों को तरजीह देने लगा है। इसके न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स और इंजीनियर्स की मांग में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। 

भारत का 2025 तक विद्युत ऊर्जा के उपयोग को 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। भारत ने 2020 तक 20 हजार मेगावाट बिजली के उत्पादन का लक्ष्य रखा है। विशेषज्ञों की मानें, तो नाभिकीय डील और ऊर्जा की बढ़ती जरूरतों की वजह से आने वाले समय में इस क्षेत्र में एक लाख प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी।


क्यों हैं भविष्य का क्षेत्र

एक अनुमान के मुताबिक, आज पूरे विश्व में पचास मिलियन टन हाइड्रोजन ईंधन का उपयोग किया जाता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें, तो ऊर्जा के रूप में उपयोग करने पर नौ मिलियन टन हाइड्रोजन बीस से तीस मिलियन कार या आठ से नौ मिलियन घरों में ऊर्जा दे सकती है। इसके उपयोग से हमारी तेल के उपर निर्भरता कम हो जाएगी। आज भारत में विद्युत उत्पादन का करीब 3 प्रतिशत नाभिकीय ऊर्जा से होता है। इस क्षेत्र के विकास के लिए भारत सरकार ने कमर कस ली है। ऐसा माना जा रहा है कि अगले दो दशकों में यह कारोबार 100 बिलियन डॉलर का हो जाएगा।
 

इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी और न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप की हरी झंडी मिलने के बाद प्राइवेट सेक्टर की कई कंपनियां भी इस क्षेत्र में आ सकती हैं। जानकारों का मानना है कि न्यूक्लियर इंडस्ट्री अब काफी हद तक ग्लोबल हो चुकी है और कोई भी देश इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए दूसरों से अलग-थलग रहते हुए सिर्फ अपने आप पर निर्भर नहीं रह सकता। यह चीन और भारत जैसे देशों के संदर्भ में भी उतना ही सही है, जितना अमेरिका या यूरोप के संदर्भ में। उनका यह भी कहना है कि इस सेक्टर में शोध की व्यापक संभावनाएं हैं। वैसे देखा जाए, तो भारत पहले ही दुनिया में परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र का दर्जा हासिल कर चुका है। फिलहाल हमारे देश में 17 एटॉमिक पावर स्टेशन हैं। इसके अलावा छह और निर्माणाधीन हैं।

कैसी होनी चाहिए योग्यता

न्यूक्लियर इंजीनियरिंग क्षेत्र में एक अच्छी बात यह है कि यहां काम शुरू करने के लिए आपको न्यूक्लियर इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट होना जरूरी नहीं है। फिजिक्स, केमिस्ट्री या मैथ्स विषय के डिग्रीधारी भी इससे जुड़े कुछ कार्यों के योग्य हो सकते हैं। इसमें विशेषज्ञता हासिल करने के लिए आप अमेरिका या कनाडा जैसे देश के किसी प्रतिष्ठित संस्थान से मास्टर्स डिग्री कर सकते हैं। वर्ल्ड न्यूक्लियर यूनिवर्सिटी जैसे कई अंतरराष्ट्ररीय संस्थान हैं, जो न्यूक्लियर एजुकेशन को मजबूती देने और न्यूक्लियर साइंस व टेक्नोलॉजी में भविष्य का नेतृत्व तैयार करने की दिशा में कार्यरत हैं। इस फील्ड में विज्ञान की मूलभूत जानकारियां, अपग्रेड होती तकनीक, विज्ञान की सामाजिक उपयोगिता के बारे में जानकारी होना जरूरी है। इस कोर्स का मुख्य मकसद ऐसे इंजीनियरों को तैयार करना है, जो नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में विशेषज्ञ हों।


कार्य का स्वरूप

एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट के काम में इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन, प्रोटॉन जैसे सब-एटॉमिक पार्टिकल्स और विज्ञान में उनके प्रभाव और उपयोगिता के बारे में अध्ययन करना शामिल है। वे विभिन्न उद्देश्यों के लिहाज से इन सबएटॉमिक पार्टिकल्स को काम में लाने और इस्तेमाल के तौर-तरीकों का अध्ययन करते हैं। इसके अलावा, नाभिकीय ऊर्जा और नाभिकीय हथियारों के निर्माण के लिए विखंडन प्रक्रिया का अध्ययन करते हैं। परमाणु विज्ञानी सेफ्टी प्रोटोकॉल्स, परिष्कृत तकनीकों को तैयार करते हैं और नाभिकीय रिएक्शनों के नए इस्तेमाल संबंधी परीक्षणों को भी अंजाम देते हैं। दूसरी ओर नाभिकीय इंजीनियर लेबोरेट्रीज, इंडस्ट्रीज और यूनिवर्सिटीज के लिए नाभिकीय प्रक्रियाओं से संबंधित उपकरण और प्रणाली तैयार करते हैं ताकि नाभिकीय ऊर्जा के फायदे समाज तक पहुंच सकें। वे न्यूक्लियर फिजिक्स के सिद्धांतों के आधार पर एटॉमिक न्यूक्लियर के विश्लेषण संबंधी कार्य से जुड़े होते हैं।

इसमें नाभिकीय विखंडन सिस्टम्स और इसके घटकों खासकर नाभिकीय रिएक्टर्स, नाभिकीय पावर प्लांट्स और नाभिकीय हथियारों का उचित रखरखाव भी शामिल है। आज परमाणु विज्ञानी परमाणुओं और परमाणविक पदार्र्थों की विशेषताओं को जांचने के लिए परिष्कृत प्रयोगात्मक व सैद्धांतिक औजारों का इस्तेमाल करते हैं। इसके साथ-साथ वे प्रकृति के बुनियादी संतुलन के आधार, सुपरनोवा की प्रकृति और कॉस्मॉस में पदार्थों की उत्पत्ति जैसे महत्वपूर्ण अंतर्विषयक सवालों के जवाब तलाशने में लगे हैं। नाभिकीय विज्ञान लगातार दूसरे क्षेत्रों पर भी अपना प्रभाव छोड़ रहा है। न्यूक्लियर साइंस में पीएचडी करने वाले आधे से ज्यादा अभ्यर्थी अपनी ट्रेनिंग के लिए मेडिसिन, इंडस्ट्री और नेशनल डिफेंस जैसे अहम क्षेत्रों को चुनते हैं।

शानदार अवसर हैं यहां

इस क्षेत्र में आने वाले समय में करियर की नई संभावनाएं पैदा होंगी। पर्यावरण और चिकित्सा के क्षेत्र में इसका स्कोप तेजी से बढ़ा है। लेकिन इसका सबसे प्रमुख इस्तेमाल ऊर्जा के रूप में है। नाभिकीय विखंडन के द्वारा ऊर्जा का उत्पादन करना एक बड़ी चुनौती है। नाभिकीय शिक्षा के क्षेत्र में डिपॉर्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी बढ़-चढ़ कर काम कर रहा है। भारत में नाभिकीय तकनीक का यह प्रमुख क्षेत्र है और वह सारे नाभिकीय स्टेशनों के डिजाइन, निर्माण और ऑपरेशन का काम देखता है। इसमें भíतयों का काम भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, मुंबई देखता है।

 
डीएई का ट्रेनिंग कोर्स एक वर्ष की समय सीमा का होता है और इसमें इंजीनियर और वैज्ञानिकों का चयन राष्ट्रीय स्तर की लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के माध्यम से होता है। करियर के लिहाज से आप विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर सकते हैं। पावर जनरेशन में न्यूक्लियर रिएक्टर की डिजाइनिंग, कार्य विधि और उसकी सुरक्षा से जुड़े क्षेत्र में भी कई मौके हैं। मेडिसन करियर में डायगोनिस्टक इमेजिंग जैसे एक्सरे, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग, अल्ट्रासाउंड, डायगोनिस्टक फोटोग्राफर के रूप में करियर बना सकते हैं। कृषि तथा खाद्य इंडस्ट्री में नाभिकीय तकनीक के इस्तेमाल द्वारा उन्नत तथा रोगविहीन फसलों के उत्पादन में रोजगार के अवसर बनते हैं।

मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के मुताबिक, अमेरिका में हर साल न्यूक्लियर मेडिकल प्रक्रियाओं के संदर्भ में बीस लाख से ज्यादा विशेषज्ञों की जरूरत रहती है। परमाणु विज्ञानी अस्पतालों और मेडिकल रिसर्च फर्म्स में रोजगार पा सकते हैं। इसके अलावा, अनुसंधान व विकास से जुड़े कई और कार्यक्रमों व संस्थानों में भी उन्हें रोजगार मिल सकता है। यदि वे चाहें, तो न्यूक्लियर पावर प्लांट्स, सरकारी एजेंसियों, राष्ट्ररीय प्रतिरक्षा तंत्र के अलावा विभिन्न न्यूक्लियर व स्पेस संबंधी प्रोग्रामों को संचालित करने वाली राष्ट्ररीय व अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों से भी जुड़ सकते हैं।


शोध में मौका

नई जनरेशन के न्यूक्लियर पावर रिएक्टर डिजाइन तैयार करना, विखंडन के लिए रिएक्टर के डिजाइन तैयार करना, स्पेस एक्सप्लोरेशन के लिए नए पावर सोर्स बनाना सरीखे कई कामों में शोध जारी है। इसके अलावा, विभिन्न क्षेत्रों में रेडियोएक्टिव पदार्थ का उत्पादन, उसके औद्योगिक और चिकित्सकीय प्रयोग के क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी के रिसर्च और डेवलपमेंट के कई प्रोगाम संचालित होते हैं। जिनमें म्यूटेशन ब्रीडिंग, फसलों का जेनेटिक इंप्रूवमेंट, जमीन का आइसोटोप की सहायता से अध्ययन, कीटनाशकों के अवशेषों का विश्लेषण शामिल होता है।

क्या सोचते हैं लोग

इस क्षेत्र के बारे में लोगों की आमतौर पर धारणा यह है कि न्यूक्लियर साइंटिस्ट या न्यूक्लियर इंजीनियर के तौर पर कार्य करना बेहद खतरनाक है। हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। न्यूक्लियर साइंटिस्ट्स को कई मामलों में नाभिकीय पदार्र्थों के सीधे संपर्क में नहीं आना पड़ता। इसके अलावा नाभिकीय पावर प्लांट्स की बात करें तो यहां भी रेडियोएक्टिव उत्सर्जनों की मात्रा बहुत कम होती है और सुरक्षा मानकों का पूरा ध्यान रखा जाता है, लिहाजा किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है। कर्मचारियों के लिए कार्य संबंधी सुरक्षित परिस्थितियां सुनिश्चित करने के लिए ऑक्युपेशनल सेफ्टी व स्वास्थ्य प्रशासन द्वारा नाभिकीय व्यवस्थाओं पर कड़ी निगाह रखी जाती है।


सैलरी पैकेज

न्यूक्लियर साइंस के क्षेत्र में सैलरी अच्छी होती है। अंतरराष्ट्ररीय स्तर पर एक न्यूक्लियर साइंटिस्ट की औसत सैलरी 50,000 डॉलर तक हो सकती है। इस क्षेत्र से जुड़े ज्यादातर कार्यों में आपको आगे बढऩे के भी अच्छे अवसर मिलते हैं। चूंकि न्यूक्लियर साइंटिस्ट की अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काफी मांग है, लिहाजा ग्रेजुएट्स के लिए यहां विकल्प चुनने के भी अनेक अवसर मौजूद हैं।

इंस्टीट्यूट वॉच

u दिल्ली विश्वविद्यालय।
www.du.ac.in
u गुरु जांभेश्वर यूनिवर्सिटी, हिसार।
www.gju.ernet.in

u होमी भाभा नेशनल इंस्टीट्यूट।
www.hbni.ac.in

u आईआईटी, कानपुर, मुंबई, गुवाहाटी, दिल्ली, चेन्नई।
www.iitk.ac.in

u एनआईएसईआर, भुवनेश्वर।
niser.ac.in

u बीएचयू, वाराणसी।
www.bhu.ac.in

u बीआईटीएस, पिलानी।
www.bits-pilani.ac.in

u इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ माइंस, धनबाद।
www.ismdhanbad.ac.in

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