Tuesday, February 14, 2017

पॉलीमर साइंस में करियर

आज की जिंदगी में प्लास्टिक कुछ इस तरह रचा-बसा है कि उसके बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं की जा सकती. यदि हम आसपास नजर डालें तो कम से कम दस में से आठ चीजें प्लास्टिक निर्मित मिलेंगी. 

प्लास्टिक, फाइबर और रबर- तीनों ही किसी न किसी रूप में एक ही फैमिली से हैं और इन सभी का निर्माण पॉलीमर की मदद से होता है. प्लास्टिक-पॉलीमर उत्पादों की लिस्ट काफी लंबी है. 

पॉलिमर कपड़े, रेडियो, टीवी, सीडी, टायर, पेंट, दरवाजे और चिपकाने वाले पदार्थ इसी उद्योग की देन हैं. अकेले ऑटोमोबाइल के क्षेत्र में 75 प्रतिशत पार्ट्स इसी उद्योग की मदद से बनाए जाते हैं. 

इतना ही नहीं, हवाई जहाज में भी प्लास्टिक का ही परिमार्जित रूप इस्तेमाल होता है. आंकड़ों पर नजर डालें तो प्लास्टिक की खपत के मामले में चीन के बाद भारत का दूसरा नंबर है. 

प्लास्टिक इंडस्ट्री में भारत का प्रतिवर्ष 4,000 करोड़ रुपये का कारोबार है. अकेले पैकेजिंग इंडस्ट्री में ही बड़ी तादाद में प्लास्टिक का उपयोग होता है. इसमें हर साल 30 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है. 

दुनिया में हर एक व्यक्ति औसतन साल में 30 किलोग्राम प्लास्टिक का उपयोग करता है, जबकि भारत में यह आंकड़ा फिलहाल चार किलो ग्राम प्रतिवर्ष ही है. लेकिन जिस किस्म की पैकेजिंग जागरूकता भारत में भी बढ़ रही है, आने वाले दिनों में प्रति व्यक्ति प्लास्टिक की खपत का औसत कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा. 

कोर्स-

इसकी इसी व्यापकता को देखते हुए कई तरह के कोर्स की शुरुआत हुई है. हालांकि ये कोर्स अभी कुछ चुनिंदा संस्थानों में ही उपलब्ध हैं. कई बार प्रतिभाशाली होने के बावजूद छात्रों को इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश नहीं मिल पाता. 

ऐसे छात्रों के लिए बीएससी पॉलीमर साइंस एक अच्छा विकल्प हो सकता है. कोर्स के बाद छात्र आगे एमएससी या एमटेक कर सकते हैं. अगर नौकरी करना चाहें तो उसके लिए भी काफी बेहतर अवसर हैं यानी आप आईओसी, ओएनजीसी जैसे सरकारी संस्थानों में भी अच्छी नौकरियां पा सकते हैं.

बीएससी पॉलीमर साइंस अवसरों की दृष्टि से उपयोगी कोर्स माना जा रहा है. पॉलीमर और प्लास्टिक के क्षेत्र में डिप्लोमा, बीएससी, एमएससी और इंजीनियरिंग कोर्स उपलब्ध हैं. 

डिप्लोमा कोर्स के लिए अपने राज्य में स्थित पॉलीटेक्निक संस्थानों से संपर्क कर सकते हैं. इंजीनियरिंग कोर्स में बीई (पॉलीमर साइंस), बीटेक (प्लास्टिक एंड पॉलीमर), बीटेक (प्लास्टिक एंड रबर) हैं, जबकि स्नातकोत्तर स्तर पर एमटेक के लिए प्लास्टिक-पॉलीमर कोर्स हैं. 

इसके अलावा, केमिकल पॉलीमर, बीएससी पॉलीमर साइंस, एमएससी पॉलीमर, केमेस्ट्री कोर्स भी देश के कुछ संस्थानों में पढ़ाए जाते हैं. बीई, बीटेक, बीएससी और बीकॉम कोर्स के लिए 102 पीसीएम विषयों में 50 प्रतिशत अंकों में पास छात्र आवेदन कर सकते हैं.

इसमें बीएससी को छोड़ कर तीनों कोर्स चार वर्ष की अवधि के हैं. कुछ संस्थानों में जैसे आईआईटी दिल्ली, मुंबई यूनिवर्सिटी में एमटेक डेढ़ वर्ष की अवधि का है. 
इसमें केवल संबंधित ब्रांच में बीई और बीटेक पास छात्रों को ही दाखिला मिल सकता है. मद्रास यूनिवर्सिटी में पांच वर्षीय एमएससी इंटीग्रेटेड कोर्स में 102 पीसीएम छात्रों को प्रवेश मिल सकता है. 

अन्य संस्थानों के एमटेक दो वर्षीय कोर्स में इंजीनियरिंग स्नातक में ही प्रवेश ले सकते हैं. एमएससी कोर्स में प्रवेश के लिए इंडस्ट्रियल, केमिकल या केमेस्ट्री ऑनर्स के अलावा वे छात्र भी आवेदन कर सकते हैं जिन्होंने बीएससी में केमेस्ट्री को एक विषय के रूप में पढ़ा है. 

रोजगार की अपार संभावनाएं 

भारत में प्लास्टिक उद्योग कोई चार मिलियन डॉलर का है. यह हर साल 15 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है. इस लिहाज से प्लास्टिक विशेषज्ञों के लिए रोजगार की अपार संभावनाएं हैं.

कंप्यूटर इंडस्ट्री हो या इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, सभी में इसकी मांग है. 

रिसर्च और अध्ययन के अलावा प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर की विभिन्न कंपनियों में नौकरी के अच्छे अवसर हैं. विभिन्न जूते की कंपनियों के अलावा, इस क्षेत्र में मार्केटिंग और प्रबंधन में भी काफी संभावनाएं हैं. यदि आप चाहें तो स्वरोजगार भी कर सकते हैं.

संस्थान- 

दिल्ली कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, नई दिल्ली कोर्स- बीई (पॉलीमर साइंस), एमई (डेढ़ वर्ष का), पीएचडी. 
आईआईटी, नई दिल्ली कोर्स- एमटेक (डेढ़ वर्ष का). 
हरकोर्ट बटलर इंस्टीट्यूट, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक टेक). 
बिड़ला इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी, रांची कोर्स- बीई पॉलीमर.
भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ अप्लाइड साइंस, नई दिल्ली कोर्स-बीएससी ऑनर्स (पॉलीमर साइंस) 
डिपार्टमेंट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, मुंबई यूनिवर्सिटी, मुंबई कोर्स- बीकॉम (पॉलीमर), बीएससी, एमटेक (डेढ़ वर्ष). 
लक्ष्मी नारायण इंडस्ट्री ऑफ टेक्नोलॉजी, नागपुर कोर्स- बीटेक. 
संत लोंगोवाल इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, संगरूर, पंजाब कोर्स- बीई (पेपर एंड प्लास्टिक) तीन वर्ष का. 
इंडस्ट्री ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी, कानपुर यूनिवर्सिटी, कानपुर कोर्स- बीटेक (प्लास्टिक), एमटेक (प्लास्टिक). 
बुंदेलखंड यू निवर्सिटी, झांसी कोर्स- एमएससी (इं टीग्रेटेड), एमएससी (पॉलीमर), एससी (पॉलीमर केमिस्ट्री)

Friday, February 10, 2017

एडवेंचर स्पोर्टस में बनाएं करियर

क्या आपको साहसिक खेल पसंद है? अगर आप कुदरत के करीब रहना पसंद करते हैं तो एडवेंचर स्पोर्टस के क्षेत्र में आप करियर बना सकते हैं। घरेलू पर्यटन का विकास होने की वजह से एडवेंचर स्पोर्टस के पेशेवर खिलाड़ियों की मांग में भी कई गुना का इजाफा हुआ है। इसके अलावा नेशनल जियोग्राफिक और डिस्कवरी जैसे चैनल सामान्य यात्राओं की बजाय रोमांचक यात्राओं पर जाने वाले पर्यटकों को विशेष लाभ भी मुहैया कराते हैं।
क्या है एडवेंचर स्पोर्टस
एडवेंचर स्पोर्टस को एक्शन स्पोर्ट्स, एग्रो स्पोर्ट्स और एक्सट्रीम स्पोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह के खेलों में वो गतिविधियां (खेल संबंधी) आती हैं, जिनमें बड़े खतरे अंतर्निहित होते हैं। इन गतिविधियों में गति, उच्च स्तर के शारीरिक दमखम और विशेष कौशल की जरूरत होती है।
कई तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स
इन खेलों को मोटे तौर पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है- एअर स्पोर्ट्स, लैंड स्पोर्ट्स और वॉटर स्पोर्ट्स। खेलों की इन श्रेणियों में ढेर सारे खेल शामिल हैं, इनमें से कुछ प्रमुख हैं-
एअर स्पोर्ट्स-  बंजी जंपिंग, पैराग्लाइडिंग, स्काई डाइविंग और स्काई सर्फिग आदि।
लैंड स्पोर्ट्स-  रॉक क्लाइम्बिंग, स्केट बोर्डिग, माउंटेन बाइकिंग, स्कीइंग, स्नो बोर्डिंग और ट्रैकिंग आदि।
वाटर स्पोर्ट्स-  स्कूबा डाइविंग, व्हाइट वाटर राफ्टिंग, कायकिंग, केनोइंग, क्िलफ डाइविंग,स्नॉर्केलिंग और याट रेसिंग आदि।
पेशेवरों का काम
एडवेंचर स्पोर्टस के क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों का काम भौगोलिक दृष्टि से उन क्षेत्रों की तलाश करना होता है जहां एडवेंचर स्पोर्ट्स की संभावना हो। इसके साथ ही वह उस क्षेत्र में खेल से जुड़े जोखिमों का आकलन भी करते हैं। इन कार्यों को करने के बाद वह खेल गतिविधियों को संचालित करने का प्रारूप तैयार करते हैं और संभावित खतरों से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन की कार्ययोजना भी बनाते हैं। यह पेशा देखने में भले ही बेहद रोमांचक हो, लेकिन असल जिंदगी में यह काफी चुनौतीपूर्ण है। इसके पेशेवरों को हमेशा जोखिम उठाते हुए जिंदगी की महीन डोर के सहारे चलना पड़ता है। उन्हें कई बार घबराए हुए और कई बार उत्साही क्लाइंटों को संभालने की जिम्मेदारी भी उठानी पड़ती है।
रोजगार के मौके
साहसिक खेल के क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनियां देती हैं। हालांकि इस क्षेत्र में कार्यरत लोगों के पास काम में बदलाव करके भी रोजगार और अपनी पेशेवर रुचि को बरकरार रखने का विकल्प होता है। वह स्कूलों के साथ मिलकर छात्रों के लिए आउटडोर एजुकेशन प्रोग्राम संचालित कर सकते हैं, तो पर्सनल ट्रेनर और कैजुअल टूर गाइड के रूप में भी कार्य कर सकते हैं। इसके अलावा वह अपनी निजी एडवेंचर स्पोर्ट्स कंपनी भी शुरू कर सकते हैं। कुछ लोग तो इस क्षेत्र में काम करने के लिए दुनिया की सैर करने का विकल्प भी चुनते हैं।
योग्यता
-एडवेंचर स्पोर्ट्स के क्षेत्र में बतौर पेशेवर काम करने के लिए किसी विषय के साथ बारहवीं या बैचलर डिग्री प्राप्त होना पर्याप्त है। इस योग्यता के आधार पर एडवेंचर स्पोर्ट्स में डिप्लोमा या डिग्री पाठयक्रम संचालित करने वाले संस्थानों में प्रवेश लिया जा सकता है। इन संस्थानों में प्रशिक्षण पाठयक्रम पूरा करने के बाद आसानी से रोजगार प्राप्त किया जा सकता है।
-इसके अलावा शारीरिक रूप से मजबूत और स्वस्थ होना भी आवश्यक होता है।
-इस पेशे में जल आधारित खेलों के लिए तैराकी में निपुण होना जरूरी होता है।
-अंग्रेजी और किसी एक विदेशी भाषा में दक्ष होना भी इस पेशे में मददगार होता है।
ऐसे में अगर आपको भी साहसिक खेल का रोमांच पसंद है तो इस क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं

Wednesday, February 8, 2017

ज्वेलरी डिज़ाइनिंग में करियर

किसी भी पार्टी, फंक्शन आदि में जाने से पहले ख़ूबसूरत कपड़ोेंं के साथ ज्वेलरी का टच पर्सनालिटी को और भी निखारता है. फैशन ने आज ग्लोबल स्तर पर लोगों के जीवन को पूरी तरह से बदल दिया है. ज्वेलरी का बढ़ता ट्रेंड ही आज युवाओं को इसमें करियर बनाने के लिए आकर्षित कर रहा है. फैशन की दुनिया में क़दम रखना चाहते हैं, तो ज्वेलरी डिज़ाइन आपके लिए बेहतर विकल्प हो सकता है. ज्वेलरी डिज़ाइन में करियर बनाने के लिए कैसे करें शुरुआत? आइए, जानते हैं.
क्या है ज्वेलरी डिज़ाइन?
तरह-तरह के गहनों को बनाने की कला को ही ज्वेलरी डिज़ाइन कहते हैं. गोल्ड, सिल्वर, पर्ल, प्लेटिनम, आदि धातुओं को तराशकर उनसे
तरह-तरह के गहने बनाए जाते हैं. इसी तरह हाथी दांत, पत्थर, सीप आदि का भी प्रयोग स्टाइलिश ज्वेलरी बनाने में किया जाता है. ज्वेलरी डिज़ाइनर उन्हें कहते हैं, जो ज्वेलरी की स्टाइल, पैटर्न आदि सेट करते हैं.
शैक्षणिक योग्यता
ज्वेलरी डिज़ाइन में करियर बनाने के लिए 12वीं पास होना बहुत ज़रूरी है. इसके बाद आप आगे के कोर्स कर सकते हैं. दसवीं पास वालों के लिए भी ज्वेलरी डिज़ाइन में बेहतरीन करियर विकल्प है. दसवीं के बाद आप शॉर्ट टर्म कोर्सेस कर सकते हैं. आगे के कोर्स के लिए इच्छुक व्यक्ति को ऐप्टीट्यूड टेस्ट देना पड़ता है. इसके बाद ही आप आगे के कोर्स के लिए आवेदन भर सकते हैं.
क्या हैं कोर्सेस?
ज्वेलरी डिज़ाइन में करियर बनाने के लिए डिप्लोमा, डिग्री या सर्टीफिकेट कोर्स कर सकते हैं.
सर्टीफिकेट कोर्सेस
  • बेसिक ज्वेलरी डिज़ाइन
  • डायमंड आइडेंटीफिकेशन एंड ग्रेडिंग
  • कैड फॉर जेम्स एंड ज्वेलरी
  • कलर्ड जेमस्टोन आइडेंटिफिकेशन
डिग्री कोर्सेस
  • बीएससी इन ज्वेलरी डिज़ाइन
  • बैचलर ऑफ ज्वेलरी डिज़ाइन
  • बैचलर ऑफ एक्सेसरीज़ डिज़ाइन
  • मास्टर्स डिप्लोमा इन ज्वेलरी डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी
डिप्लोमा कोर्सेस
  • डिप्लोमा इन ज्वेलरी डिज़ाइन एंड जैमोलॉजी
  • एडवांस ज्वेलरी डिज़ाइन विद कैड
  • ज्वेलरी मैनुफैक्चरिंग
कोर्स के दौरान
तेज़ी से बढ़ते इस क्षेत्र की डिमांड लोगों को इसमें करियर बनाने के लिए आकर्षित कर रही है. ज्वेलरी डिज़ाइन कोर्स के दौरान अलग-अलग पत्थरों, ज्वेलरी बनाने में कलर कॉम्बिनेशन, डिज़ाइन थीम, प्रेज़ेंटेशन, फ्रेमिंग, कॉस्ट्म ज्वेलरी आदि सिखाया जाता है.
तकनीकी शिक्षा
ज्वेलरी डिज़ाइन कोर्स के दौरान कम्प्यूटर एडेड ज्वेलरी सॉफ्टवेयर, जैसे- ज्वेल कैड, ऑटो कैड, 3 डी स्टूडियो आदि के बारे में टेक्निकल नॉलेज भी दिया जाता है. इसके साथ ही फोटोशॉप, कोरल ड्रॉ, वेट एंड मेटल कम्पोजिशन के बारे में भी बताया जाता है.
प्रमुख संस्थान
  •  जैमोलॉजी इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, मुंबई.
  • सेंट जेवियर्स कॉलेज, मुंबई.
  •  जैमस्टोन्स आर्टिसन्स ट्रेनिंग स्कूल, जयपुर.
  • इंडियन जैमोलॉजी इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली.
  • जैम एंड ज्वेलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल, जयपुर.
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी, नई दिल्ली.
  • ज्वेलरी डिज़ाइन एंड टेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट, नोएडा.
  • एसएनडीटी यूनिवर्सिटी, मुंबई.
पर्सनल स्किल 
ज्वेलरी डिज़ाइन में करियर बनाने के लिए सबसे पहले इस क्षेत्र के प्रति लगाव और ज्वेलरी डिज़ाइन का सेंस होना बहुत ज़रूरी है. इसके साथ ही क्रिएटिव, कल्पनाशील, न्यू ट्रेंड का सेंस, फैशन सेंस आदि के साथ मेहनती होना बहुत आवश्यक है. ज्वेलरी डिज़ाइन में करियर बनाने की सोच रहे हैं, तो धैर्य को अपना साथी बना लें. इस काम में ईमानदारी भी बहुत ज़रूरी होती है. ख़ासतौर पर अगर आप किसी गोल्ड, डायमंड जैसी धातुओं से ज्वेलरी बनाने में लगे हैं, तो थोड़ी सी भी लापरवाही आपके व्यक्तित्व पर प्रश्‍न चिह्न लगा सकती है. ग्लोबल मार्केट और फैशन के प्रति रुचि होना बहुत ज़रूरी है.
रोज़गार के अवसर
ज्वेलरी डिज़ाइन में आगे बढ़ने के लिए बहुत स्कोप है. कोर्स करने के बाद आप फुल टाइम किसी कंपनी के साथ जुड़कर काम शुरु कर सकते हैं. ज्वेलरी डिज़ाइन हाउस, एक्सपोर्ट हाउस, फैशन हाउस आदि जगहों पर आप काम शुरु कर सकते हैं. इसके साथ ही अगर आप आर्थिक रूप से मज़बूत हैं, तो ऑफिस-कम होम से भी काम शुरु कर सकते हैं. घर से काम शुरु करने के कई फ़ायदे होते हैं. घर के काम के अलावा आप अपने करियर को भी संवार सकते हैं. इतना ही नहीं दिन में किसी ऑफिस में काम करके आप घर पर पार्ट टाइम इस काम को जारी रख सकते हैं. आप अगर किसी कंपनी से फुल टाइम नहीं जुड़ना चाहते तो फ्रीलांस के तौर पर काम शुरू कर सकते हैं. इससे आप मनमुताबिक़ पैसा कमा सकते हैं.
सैलरी
पढ़ाई के तुरंत बाद किसी कंपनी में जॉब लगने पर शुरुआत में 7 से 8 हज़ार रुपए प्रति माह आप कमा सकते हैं. अनुभव के साथ इस क्षेत्र में आप उम्मीद से ज़्यादा कमा सकते हैं. अनुभव होने पर 18 से 20 और फिर इसी तरह आगे बढ़ते रहते हैं. प्रसिद्ध ज्वेलरी डिज़ाइनर महीने का लाख रुपए भी लेते हैं.
टॉप कंपनी
ज्वेलरी डिज़ाइन का कोर्स करने के बाद आप नौकरी के लिए इन जगहों पर जा सकते हैं.
  •  तनिष्क
  •  गिली
  • नक्षत्र
  •  ज्वेलरी मेकिंग एंड डिज़ाइनिंग यूनिट्स
  • ज्वेलरी शॉप्स एंड शोरूम
  •  एंटीक एंड आर्ट ऑक्शन हाउसेस

Monday, February 6, 2017

ब्रांड मैनेजमेंट में करियर

हर कंपनी ग्राहकों की मांग को देखते हुए अपने उत्पाद की ब्रांडिंग करना चाहती है ताकि उसका उत्पाद बाजार में सबसे खास लगे। अपने उत्पाद को अलग ढंग से प्रस्तुत करने की यही कला ब्रांडिंग कहलाती है। ब्रांडिंग की इस प्रकिया में ब्रांड मैनेजर अहम भूमिका निभाता है।
प्रतियोगिता के इस दौड़ में निश्चित तौर पर हर कंपनी अपने उत्पाद को अलग ढंग से प्रस्तुत करना चाहती है और यही वजह है कि इस तरह के प्रोफेशनल कोर्स की अब खूब मांग होने लगी है। इस कोर्स को असल में ब्रांड मैनेजमेंट कहा जाता है जिसके अंतर्गत किसी खास उत्पाद को मार्केटिंग तकनीकों के प्रयोग से ग्राहकों के सामने इस ढंग से पेश किया जाता है ताकि उसकी छाप लंबे समय तक बरकरार रहे।
» योग्यता : किसी भी विषय से स्नातक की डिग्री कर, कैट और मैट की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद सीधे आप एमबीए कोर्स में दाखिला ले सकते हैं। वहीं ब्रांड मैनेजमेंट कोर्स में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। यह कोर्स यूं तो दो साल की अवधि का है लेकिन आप चाहें तो इसमें डिप्लोमा कोर्स भी कर सकते हैं जिसकी अवधि एक साल है।
» गुण : बतौर ब्रांड मैनेजर आपमें भाषा की अच्छी पकड़ होनी लाजमी है। वहीं बाजार की पूरी जानकारी होने के साथ-साथ ग्राहकों की उत्पाद को लेकर क्या मांग है उस पर आपकी पैनी नजर होनी जरूरी है। बाजार पर आपकी पूरी तरह से पैंठ हो। इसी के साथ आपमें रचनात्मकता और लोगों से अच्छे संपर्क साधने की कला भी होनी चाहिए।
» संभावनाएं : इस कोर्स को करने के उपरांत आपके पास कई विकल्प हैं जहां से आप अपने करियर की शुरुआत कर सकते हैं। शुरुआती तौर पर आप चाहें तो प्रोडक्ट मैनेजर या ब्रांड डेवलपमेंट मैनेजर के रूप में काम कर सकते हैं। आमतौर पर कोर्स पूरा करने के बाद छात्रों की प्लेसमेंट देश की प्रमुख कपनियों जैसे हिन्दुस्तान लीवर, गोदरेज, मंहिद्रा एंड मंहिद्रा, सन फार्मा, आदित्य बिरला ग्रुप, रिलायंस आदि में हो जाता है।
» वेतन : शुरु में इस कोर्स को कर 10 से 15 हजार रुपए आसानी से कमा सकते हैं । अनुभव के बाद अच्छी कमाई कर सकते हैं।
  • यहां से कर सकते हैं कोर्स
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ प्लानिंग एंड मैनेजमेंट, दिल्ली
बेस लेवल, आईआईपीएम टावर, बी-11, कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया, नई दिल्ली – 110016इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद, गुजरात
19, इंकलाब सोसाइटीए अहमदाबाद, गुजरातइंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड मैनेजमेंट , झारखंड
आईआईएसएम कैंपस, रांची – 834004
संपर्क करें : 91-651-2242060

Thursday, February 2, 2017

ऑप्थैलमोलॉजी में करियर

मेडिकल सेक्टर में डॉक्टर बनने के अलावा अब करियर के अनगिनत विकल्प हैं। अगर आप इसमें एंट्री करना चाहते हैं, तो ऑप्थैलमिक असिस्टेंट एक बेहतर करियर हो सकता है। इस तरह के ट्रेंड प्रोफेशनल अत्याधुनिक उपकरणों की सहायता से आंखों की जांच करके सटीक डायग्नोसिस तक पहुंचते हैं।
मेडिकल फील्ड में पैरामेडिकल साइंस की भूमिका को आज के दौर में कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। डायग्नोस्टिक तकनीक हेल्थकेयर सेक्टर के लिए सबसे बड़ा वरदान साबित हुई है। आज अमूमन सभी स्पेशलिस्ट आम तौर पर लैब टेस्ट, एक्सरे, ईसीजी, अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन की रिपोर्ट्स के नतीजों पर ही निर्भर हैं। एक अनुमान के मुताबिक, 2050 तक देश की आबादी करीब 150 करोड़ हो जाएगी। आज आबादी के लिहाज से देश में
ऑप्थैलमिक असिस्टेंट, लैब टेक्निशियन या रेडियोलॉजिस्ट जैसे ट्रेंड क्वॉलिफाइड स्टाफ की बेहद कमी है। मौजूदा समय में देश में करीब 10 लाख पैरामेडिकल स्टाफ की शॉर्टेज है।
क्या है ऑप्थैलमोलॉजी ?
ऑप्थैलमोलॉजी चिकित्सा विज्ञान की ही एक शाखा है। इसमें आंख संबंधी बीमारियों की जांच व उपचार किया जाता है। ऑप्थैलमिक असिस्टेंट हेल्थकेयर सेक्टर का एंट्री-लेवल जॉब है। ये ऑप्थैलमोलॉजिस्ट, यानी नेत्र चिकित्सक के सह यक के तौर पर अपनी सेवाएं देते हैं। किसी भी अस्‍पताल या नर्सिंग होम में ऑप्‍थैलमिक असिस्‍टेंट मुख्‍य रूप से मरीजों की मेडिकल इंफॉर्मेशन जुटाने, उपचार के बारे में उन्‍हें समझाने से लेकर चिकित्‍सक से पहले मरीजों की कुछ आरंभिक जांच करने तथा उपकरणों को मेंटेन रखने जैसी जिम्‍मेदारियां निभाते हैं।
जॉब के अवसर
ऑप्थैलमोलॉजी में डिप्लोमा कोर्स करने के बाद युवा सरकारी या प्राइवेट दोनों तरह के क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं। ऐसे प्रोफेशनल्स हॉस्पिटल्स, नर्सिंग होम्स, आई क्लीनिक्स, लेजर आई सर्जरी क्लीनिक्स, डायग्नॉस्टिक सेंटर्स आदि में जॉब पा सकते हैं। ऑप्थैलमिक असिस्टेंट अनुभव के बाद टेक्निशियन बनकर खुद का क्लीनिक या आई सेंटर भी खोल सकते हैं।
कोर्स व क्वॉलिफिकेशन
ऑप्थैलमिक असिस्टेंट बनने के लिए देश के कई सरकारी और प्राइवेट संस्थान कोर्स ऑफर कर रहे हैं। फिजिक्स, केमिस्ट्री व बायोलॉजी विषयों से 12वीं पास युवा ऑप्थैलमोलॉजी में 2 वर्ष का डिप्लोमा कोर्स कर सकते हैं।
सैलरी
कोर्स पूरा करने के बाद एक ऑप्थैलमिक असिस्टेंट के रूप में शुरूआत करने पर 10 से 12 हजार रुपए सैलरी आसानी से मिल जाती है। अनुभव बढ़ने पर ऐसे प्रोफेशनल्स 25 से 30 हजार रुपए तक सैलरी पा सकते हैं।
प्रमुख संस्‍थान:
भारती विद्यापीठ डीम्ड यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज, पुणे
पैरामेडिकल कॉलेज, दुर्गापुर (प.बंगाल)
शिवालिक इंस्टीट्यूट ऑफ पैरामेडिकल टेक्नोलॉजी, चंडीगढ़
दिल्ली पैरामेडिकल एंड मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली
ऑप्टोमेट्री रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, बांदा (उप्र)

Wednesday, February 1, 2017

योग में कॅरियर

योग से न सिर्फ आपका मानसिक संतुलन ठीक रहता है बल्कि कसरत, मेडिटेशन से आपकी बॉडी भी फिट रहती है और शारीरिक स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। लोगों के फिट रहने की आदत ने योग में करियर की नई राहें खोल दी हंै। यही वजह है कि युवा योगा इंस्ट्रक्टर के रूप में करियर बना रहे हैं।जब हम बात योग की करते हैं तो हमारे जहन में सिर्फ आसन, प्राणायाम, ध्यान, मुद्राएं ही आती हैं, लेकिन ऐसा नहीं है। योग बहुत ही विस्तृत विषय है। इसका क्षेत्र कर्म योग, ज्ञान योग, हठ योग, मंत्र योग, कुंडली जागृति जैसे कई योग-विषयों तक है।
योग सिखाने के लिए जरूरी स्किल्स
(1) योग में करियर बनाने के लिए जरूरी है कि आप एक अच्छे वक्ता हों। आप में एक व्यक्ति से लेकर ग्रुप तक को अपनी बात योग के जरिए समझाने की क्षमता होनी चाहिए।
(2) योग टीचर बनने से पहले स्वंय भी योग के बारे में विस्तृत जानकारी हो। एक भी गलत आसन, कसरत नई बीमारी का जन्म दे सकती हैं।
योग में करियर से इनकम
योग को करियर चुनने की सोच रहे हैं तो यह अच्छा विचार है। लेकिन करियर बनाने से पहले इससे होने वाली आमदनी के बारे में जान लें। योग आप किसको करा रहे हैं इससे आपकी आमदनी तय होती है। कई योग शिक्षण संस्थान हैं जहां आपको नौकरी मिल सकती है। आप अपना काम शुरू कर सकते हैं। काम कितना मिलेगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप योग को कितना समझते हैं, दूसरों को योग से कितना प्रभावित कर पाते हैं। कुछ कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए स्ट्रेस मैनेजमेंट की क्लास लगाती हैं। इन क्लास को लेने वाले योग गुरु ही होते हैं। अगर आप बड़ी कंपनियों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं तो इनकम ज्यादा होगी। अगर आप किसी अधिक आमदनी वाले परिवार, व्यक्ति या ग्रुप को योग करा रहे हैं तो आपकी इनकम ज्यादा होगी। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करेगा कि आप फीस कितने में तय करा पाते हैं। योग को आप करियर चुन रहे हैं तो ये जान लीजिए कि इस क्षेत्र में काम के घंटे तय नहीं है। इतना तो तय है कि अधिकतर काम सुबह के समय मिलेंगे।
योग की बढ़ती मांग से विदेशों में भी काम के काफी अवसर हैं।
योग कोर्स कराने वाले कुछ संस्थान
आप इन सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों से योग सीख सकते हैं।
(1) मोरारजी देसाई नेशनल इस्टीट्यूट ऑफ योग, दिल्ली
(ग्रेजुएट करने के बाद यहां से 3 साल का बीएससी योगा साइंस, 1 साल का डिप्लोमा और कुछ पार्ट टाइम योग के कोर्स किए जा सकते हैं)
www.yogamdniy.nic.in
(2) बिहार स्कूल ऑफ योगा, मुंगेर
(यहां से 4 महीने और 1 साल का कोर्स कर सकते हैं)
www.biharyoga.net/bihar-yoga-bharati/byb-courses
(3) भारतीय विद्या भवन, दिल्ली
(यहां से आप 6 महीने से लेकर 1 साल तक का कोर्स कर सकते हैं)
www.bvbdelhi.org/yoga.html
(4) अय्यंगर योग सेंटर, पुणे
(यहां से आप योग का प्रशिक्षण ले सकते हैं)
http://iyengaryogakshema.org/
(5) कैवल्यधाम योग इंस्टीट्यूट, पुणे
(यहां से सर्टिफिकेट कोर्स इन योग, पीजी डिप्लोमा इन योग एजुकेशन, पीजी डिप्लोमा इन योग थिरैपी, फाउंडेशन कोर्स इन योग, एडवांस योग टीचर्स ट्रैनिंग, बीए- योग फिलोस्फी, मास्टर क्लास फॉर योग टीचर्स का कोर्स किया जा सकता है।)
http://kdham.com/college/
(6) स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान, बेंगलुरु
(यह डीम्ड यूनिवर्सिटी है। यहां से रेगुलर और डिस्टेंस योगा कोर्स कर सकते हैं। योग में बीएससी, एमएससी, पीएचडी की डिग्री ले सकते हैं।)
  www.svyasa.org
(7) इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ योगिक साइंस एंड रिसर्च
(यहां से योग में कई छोटे अंतराल के कोर्स से लेकर मास्टर डिग्री तक के कोर्स किए जा सकते हैं)
www.iiysar.co.in/
(8) देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड
(यहां से आप योग मे बीएससी से लेकर पीएचडी तक के कोर्स कर सकते हैं)
www.dsvv.ac.in
(9) द योग इंस्टीट्यूट सांताक्रूज, मुंबई
(सन् 1918 में स्थापित इस योग संस्थान से योग की शिक्षा ली जा सकती है।)
http://theyogainstitute.org/
10- गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, उत्तराखंड
(यहां से योग में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स किए जा सकते हैं।
http://gkv.ac.in/diplomayoga-certificate

Sunday, January 29, 2017

जोअलॉजी में कॅरियर

जीव-जंतु प्रेमियों को निश्चय ही उनके साथ समय बिताना अच्छा लगता है। आप अपने इसी प्रेम को अपने करियर में भी बदल सकते हैं। प्राणि विज्ञान या जोअलॉजी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जिसमें जीव-जंतुओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। इसमें प्रोटोजोआ, मछली, सरीसृप, पक्षियों के साथ-साथ स्तनपायी जीवों के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसमें हम न सिर्फ जीव-जंतुओं की शारीरिक रचना और उनसे संबंधित बीमारियों के बारे में जानते हैं, बल्कि मौजूदा जीव-जंतुओं के व्यवहार, उनके आवास, उनकी विशेषताओं, पोषण के माध्यमों, जेनेटिक्स व जीवों की विभिन्न जातियों के विकास के साथ-साथ विलुप्त हो चुके जीव-जंतुओं के बारे में भी जानकारी हासिल करते हैं।
अब आपके मन में सवाल उठ रहे होंगे कि प्राणि विज्ञान में किस-किस प्रकार के जीवों का अध्ययन किया जाता है। जवाब है, इस पाठय़क्रम के तहत आप लगभग सभी जीवों, जिनमें समुद्री जल जीवन, चिडियाघर के जीव-जंतु, वन्य जीवों, यहां तक कि घरेलू पशु-पक्षियों के जीव विज्ञान एवं जेनेटिक्स का अध्ययन करते हैं। आइए जानते हैं कि इस क्षेत्र में प्रवेश करने का पहला पड़ाव क्या है?
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में आने के लिए सबसे पहले आपको स्नातक स्तर पर जोअलॉजी की डिग्री लेनी होगी। आमतौर पर यह विषय देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में विज्ञान के विभिन्न विषयों की तरह ही तीन वर्षीय डिग्री पाठय़क्रम के तहत पढ़ाया जाता है।
योग्यता 
जोअलॉजी या प्राणि विज्ञान में स्नातक में प्रवेश के लिए जरूरी है कि छात्र 12वीं कक्षा विज्ञान विषयों, जीव विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ-साथ गणित से उत्तीर्ण करें। स्नातकोत्तर में प्रवेश के लिए छात्रों का स्नातक स्तर पर 50 प्रतिशत के साथ जोअलॉजी विषय उत्तीर्ण करना जरूरी है।
पाठय़क्रम
बी. एससी. जोअलॉजी (प्राणि विज्ञान)
बी. एससी. जोअलॉजी एंड इंडस्ट्रियल माइक्रोबायोलॉजी (डबल कोर)
बी. एससी. बायो-टेक्नोलॉजी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
बी. एससी. बॉटनी, जोअलॉजी एंड केमिस्ट्री
एम. एससी. मरीन जोअलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी विद स्पेशलाइजेशन इन मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी
एम. एससी. जोअलॉजी
एम. फिल. जोअलॉजी
पी. एचडी. जोअलॉजी
फीस 
स्नातक स्तर के लिए किसी भी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय में फीस लगभग 6,500-10,000 रुपये तक हो सकती है। स्नातकोत्तर और उससे आगे की शिक्षा के लिए फीस संबंधित जानकारी के लिए संबंधित विश्वविद्यालय या संस्थान से संपर्क करें।
ऋण एवं स्कॉलरशिप 
स्नातक स्तर पर जहां तक ऋण की बात है तो अभी यहां ऋण के लिए कोई खास सुविधा नहीं है, जबकि विभिन्न कॉलेज व विश्वविद्यालय अपने छात्रों के लिए स्कॉलरशिप जरूर मुहैया कराते हैं। स्नातक से आगे की पढ़ाई के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग या यूजीसी के साथ-साथ विभिन्न अनुसंधानों में जुटे विभागों या संस्थानों की ओर से भी स्कॉलरशिप की सुविधा प्राप्त की जा सकती है।
यह पाठय़क्रम किसी अन्य प्रोफेशनल कोर्स की तरह नहीं है, जहां स्नातक की डिग्री के साथ ही आप काम के लिए तैयार हो जाते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री के साथ जोअलॉजी की किसी खास शाखा में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद आप इस क्षेत्र में अपनी सेवाएं देंगे।
शिक्षा सलाहकार अशोक सिंह का कहना है, ‘अगर आप अनुसंधान और शोध के क्षेत्र में आना चाहते हैं तो जोअलॉजी में बी.एससी. के बाद आप एम.एससी. और फिर पीएच.डी. करें। लेकिन छात्रों के लिए 12वीं के स्तर पर ही यह निर्णय लेना जरूरी है कि वे अनुसंधान व शोध के क्षेत्र में आगे जाना चाहते हैं या शिक्षा में।
प्राणि विज्ञान चूंकि जीव विज्ञान की ही एक शाखा है, जो जीव-जंतुओं की दुनिया से संबंधित है, इसलिए यहां पक्षियों के अध्ययन में विशेषज्ञता हासिल करने वाले को पक्षी वैज्ञानिक, मछलियों का अध्ययन करने वाले को मत्स्य वैज्ञानिक, जलथल चारी और सरीसृपों का अध्ययन करने वाले को सरीसृप वैज्ञानिक और स्तनपायी जानवरों का अध्ययन करने वालों को स्तनपायी वैज्ञानिक कहा जाता है। जोअलॉजिस्ट की जिम्मेदारी जानवरों, पक्षियों, कीड़े-मकौड़ों, मछलियों और कृमियों के विभिन्न लक्षणों और आकृतियों पर रिपोर्ट तैयार करना और विभिन्न जगहों पर उन्हें संभालना भी है। एक जोअलॉजिस्ट अपना काम जंगलों आदि के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में भी करता है, जहां वे उच्च तकनीक की मदद से अपने जमा किए आंकड़ों को रिपोर्ट की शक्ल देता है और एक सूचना के डेटाबैंक को बनाता है। जोअलॉजिस्ट सिर्फ जीवित ही नहीं, बल्कि विलुप्त हो चुकी प्रजातियों पर भी काम करते हैं।
संभावनाएं
जोअलॉजी में कम से कम स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद छात्रों के सामने विभिन्न विकल्प हैं। सबसे पहला विकल्प है कि वे बी.एड. करने के बाद आसानी से किसी भी स्कूल में अध्यापक पद के लिए योग्य हो जाते हैं। इस क्षेत्र में विविधता की वजह से छात्रों के सामने काफी संभावनाएं मौजूद हैं। वे किसी जोअलॉजिकल या बोटैनिकल पार्क, वन्य जीवन सेवाओं, संरक्षण से जुड़ी संस्थाओं, राष्ट्रीय उद्यानों, प्राकृतिक संरक्षण संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, फॉरेंसिक विशेषज्ञों, प्रयोगशालाओं, मत्स्य पालन या जल जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों और फार्मा कंपनियों के साथ जुड़ सकते हैं। इसके अलावा कई टीवी चैनल्स मसलन नेशनल जीअग्रैफिक, एनिमल प्लैनेट और डिस्कवरी चैनल आदि को अक्सर शोध और डॉक्यूमेंटरी फिल्मों के लिए जोअलॉजिस्ट की जरूरत रहती है।
वेतन 
अगर आप शिक्षा जगत से जुड़ते हैं तो सरकारी और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से निर्धारित वेतन पर नौकरी करेंगे। आमतौर पर एक बी. एड. अध्यापक का वेतन 32 से 35 हजार रुपये प्रति माह होता है। अगर आप एक फ्रेशर के रूप में अनुसंधान और शोध क्षेत्र में प्रवेश करेंगे तो आप प्रति माह 10 से 15 हजार रुपये कमा सकते हैं।
नए क्षेत्र
करियर काउंसलर जितिन चावला की राय में आजकल जोअलॉजी के छात्रों में वाइल्ड लाइफ से संबंधित क्रिएटिव वर्क और चैनलों पर काम करने के प्रति काफी रुझान है, लेकिन यह आसान काम नहीं है। ऐसे काम की डिमांड अभी भी सीमित है। हालांकि इन दिनों निजी स्तर पर चलाए जा रहे फिश फार्म्स काफी देखने में आ रहे हैं। जोअलॉजी के छात्रों के लिए यह एक बढिया व नया करियर विकल्प हो सकता है, खासकर प्रॉन्स फार्मिंग शुरू करने का।
मुंबई के सेंट जेवियर्स कॉलेज के जोअलॉजी डिपार्टमेंट की हेड प्रोफेसर स्मिता कृष्णन का कहना है कि जोअलॉजी के छात्रों के लिए इको टूरिज्म, ह्यूमन जेनेटिक्स और वेटरनरी साइंसेज के क्षेत्र खुल रहे हैं। जोअलॉजी में डिग्री के बाद वेटरनरी साइंसेज या एनिमल साइंस से संबंधित कोर्सेज किए जा सकते हैं।
करियर एक्सपर्ट कुमकुम टंडन के अनुसार कम्युनिकेशन जोअलॉजिस्ट के तौर पर इलेक्ट्रॉनिक संवाद माध्यमों का उपयोग करते हुए आप जोअलॉजी की जानकारी के प्रसार-विस्तार के क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं। ट्रैवल इंडस्ट्री में प्लानिंग और मैनेजमेंट लेवल पर अहम भूमिका निभा सकते हैं। समुद्री जीवों और पशुओं की विलुप्त होती प्रजातियों के संरक्षण की दिशा में अपना करियर बनाने की सोचें। यह वक्त की जरूरत है कि जोअलॉजिस्ट को जीअग्राफिक इन्फॉर्मेशन सिस्टम और पशुओं की ट्रैकिंग से संबंधित तकनीकों को मिला कर काम करना आता हो।

साक्षात्कार
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं
जोअलॉजी विषय की बारीकियों और देश-विदेश में इस क्षेत्र की संभावनाओं के बारे में बता रही हैं दिल्ली विश्वविद्यालय के मैत्रेयी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रेनु गुप्ता
प्राणि विज्ञान के क्षेत्र में किस प्रकार के छात्र अपना भविष्य देख सकते हैं?
जोअलॉजी में वही छात्र प्रवेश लें, जिन्हें जीव-जन्तुओं से प्यार हो, साथ ही साथ वे व्यवहारिक भी हों। पहले तो कॉलेजों में प्रैक्टिकल्स के दौरान चीर-फाड़ भी करनी पड़ती थी, जिसे अब एनिमल एथिक्स के चलते बंद किया जा चुका है, बावजूद इसके छात्र को खुद को इतना मजबूत रखना चाहिए कि वे खून या जीवों से जुड़ी अन्य चीजों को देख कर परेशान न हो जाएं। उन्हें जानवरों से डर नहीं लगना चाहिए।
स्नातक के बाद छात्र किस प्रकार आगे बढ़ सकते हैं?
स्नातक तो जोअलॉजी की पहली सीढ़ी है। इससे आगे छात्र विभिन्न दिशाओं में आगे बढ़ सकते हैं। जो छात्र शिक्षा के क्षेत्र में आना चाहते हैं, वे स्नातक के बाद बी.एड. करके 8वीं कक्षा के छात्रों को विज्ञान विषय और स्नातकोत्तर के बाद बी.एड. व एम.एड. करके स्कूल में 10वीं व 12वीं तक के छात्रों को पढ़ा सकते हैं। इसके अलावा स्नातकोत्तर कर वे देश की अनुसंधान एवं शोध संस्थाओं में प्रोजेक्ट फेलो के रूप में शुरुआत कर सकते हैं। आज जोअलॉजी में विशेषज्ञता के लिए इतने विषय हैं कि वे जोअलॉजी विषयों के विशेषज्ञों के साथ-साथ माइक्रोबायोलॉजिस्ट, फूड टेक्नोलॉजिस्ट, एनवायर्नमेंटलिस्ट, इकोलॉजिस्ट आदि की भूमिका भी निभा सकते हैं।
इस क्षेत्र में करियर के लिहाज से क्या संभावनाएं हैं?
संभावनाओं की यहां कोई कमी नहीं है। आप स्नातक के बाद पोस्ट ग्रेजुएशन और उसके आगे एम. फिल. व पीएच.डी. तक कर सकते हैं। अगर आप स्नातकोत्तर हैं तो वन्य जीवन जगत, अनुसंधान एवं शोध संस्थानों, शिक्षा क्षेत्र आदि में नाम कमा सकते हैं।
प्रमुख संस्थान
दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज, नई दिल्ली
www.dducollege.du.ac.in/
गार्डन सिटी कॉलेज, इंदिरा नगर, बेंगलुरू
www.gardencitycollege.edu/in/
अचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज, दिल्ली
andcollege.du.ac.in
मैत्रेयी कॉलेज, दिल्ली
www.maitreyi.ac.in/
देशबंधु कॉलेज, दिल्ली
www.deshbandhucollege.ac.in
श्री वेंकटेश्वर कॉलेज, दिल्ली
www.svc.ac.in/academicpage1.html
सेंट एल्बर्ट्स कॉलेज, महात्मा गांधी विश्वविद्यालय, कोच्चि
www.alberts.ac.in/ug-courses/
पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज ऑफ साइंस, ओसमानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
www.osmania.ac.in/oupgcs/
किरोड़ी मल कॉलेज, दिल्ली
www.kmcollege.ac.in/
नफा-नुकसान
प्रकृति के करीब रहने व उसे और करीब से जानने का मौका मिलता है।
इस दिशा में ज्ञान हासिल करने की कोई सीमा नहीं है। आप काफी आगे तक जानकारी के लिए देश-विदेश में शिक्षा हासिल कर सकते हैं।
बाकी क्षेत्रों के मुकाबले शुरुआत में यहां वेतन काफी कम है।