Monday, December 31, 2018
Wednesday, December 26, 2018
जूलॉजी ग्रेजुएट्स
साइंस के हरेक फील्ड की अपनी कॅरिअर संभावनाएं हैं। आपको सिर्फ अपना रुझान पहचानना होगा और काम का क्षेत्र चुनना होगा। जूलॉजी भी एक ऐसा विषय है, जो बेहतरीन कॅरिअर के अवसर उपलब्ध करवाता है, साथ ही प्रकृति से जुड़ने व उसके संरक्षण में अहम भूमिका निभाने का मौका देता है। जंतुओं के अध्ययन से जुड़े इस विषय में पढ़ाई व रिसर्च के लिए अच्छा स्कोप है। पीजी स्तर पर आप बायोटेक्नोलॉजी, बायोइंफॉर्मेटिक्स, मेडिसिन, फार्मेसी, वेटरिनरी साइंस, बायोकेमिस्ट्री, माइक्रोबायोलॉजी, इन्वारॅनमेंटल साइंस, फॉरेस्ट्री, मरीन स्टडीज, ह्यूमन जेनेटिक्स, वाइल्ड लाइफ साइंस, सेरिकल्चर टेक्नोलॉजी, फायटोमेडिकल साइंस एंड टेक्नोलॉजी, इंडस्ट्रियल फिशरीज, मरीन बायोलॉजी, ओशनोग्राफी, एनाटॉमी, एनिमल बायोटेक्नोलॉजी, कोस्टल एक्वाकल्चर में से कोई एक विकल्प चुनकर बेहतर कॅरिअर की राह पकड़ सकते हैं।
जूलॉजी एक विस्तृत विषय है, जो प्रकृति की गोद में पलने वाले जीव जगत के सभी पहलुओं की पड़ताल करता है। यह जीव-जंतुओं के उद्भव और विकास की प्रक्रिया, उनकी संरचना, व्यवहार, क्रिया-कलापों और मानव के लाभ के लिए उनके विभिन्न उपयोगों का अध्ययन करता है। भारत की लगभग सभी यूनिवर्सिटीज जूलॉजी में बीएससी, एमएससी और रिसर्च डिग्री ऑफर करती हैं जहां प्रवेश के लिए मेरिट को आधार बनाया जाता है। वहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस रिसर्च एंड एजुकेशन, एनसीबीएस जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती है। वर्तमान में आईआईटी भी माइक्रोबायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक ऑफर कर रहे हैं जिसके लिए 12वीं में बायोलॉजी और मैथ्स के साथ एंट्रेंस एग्जाम देना आवश्यक है।
एक मल्टीडिसिप्लीनरी विषय की वजह से जूलॉजी नौकरी के लिए कई मौके देता है। इस विषय के साथ आप इन क्षेत्रों में रोजगार हासिल कर सकते हैं।
सरकारी सेवा
जूलॉजी में स्नातक के साथ इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज एग्जाम दे सकते हैं जो आपको बेहतर कॅरिअर के साथ वन्य प्राणियों के संरक्षण का अवसर भी प्रदान करता है। इसके अलावा पीजी या एम.फिल के साथ जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून या द इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन में वैज्ञानिक पद पर काम करने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
प्राणी संरक्षण
पर्यावरण में बदलाव और मानव हस्तक्षेप के चलते पूरी दुनिया में जीव प्रजातियां तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं जिन्हें बचाने के लिए वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फेडरेशन जैसे वैश्विक संगठनों के साथ ही केंद्र व राज्य सरकारें भी जूलॉजी विशेषज्ञों की मदद लेती हैं। प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटना या पशुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट होने की स्थिति में एनिमल रीहैबिलिटेटर्स की सेवाएं ली जाती हैं। इनका काम जानवरों की देखभाल, बीमार जंतुओं का इलाज और ठीक होने पर उन्हें दोबारा प्राकृतिक परिवेश में छोड़ना होता है।
मेडिकल
जेनेटिक्स, बायोटेक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी या पैरासाइट बायोलॉजी जैसी शाखाओं के छात्रों के लिए मेडिकल फॉरेंसिक विभाग, टेस्टिंग लैब और मेडिकल रिसर्च में विकल्पों की कोई कमी नहीं है। इसके अलावा आप मानव और पशुओं के लिए दवा निर्माण करने वाली कंपनियों के साथ जुड़कर भी अपने कॅरिअर को ऊंचाइयां दे सकते हैं।
अकादमिक क्षेत्र
जूलॉजी में ग्रेजुएशन के बाद बीएड के साथ स्कूल और कोचिंग संस्थानों में पढ़ा सकते हैं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढाने के लिए आपको एमएससी के साथ नेट पास करना होगा।
रिसर्च
जूलॉजी में शोध की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। देश और दुनिया की तमाम श्रेष्ठ यूनिवर्सिटीज और अनुसंधान संस्थान जूलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च को महत्व दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े वैश्विक संगठनों में भी जूलॉजी के रिसर्चर्स की मांग है। साथ ही कॉस्मेटिक्स, फार्मेसी और एनिमल प्रॉडक्ट्स से जुड़ी कंपनियों में रिसर्च फेलो के तौर पर अच्छा वेतन हासिल कर सकते हैं।
एनिमल हसबैंड्री
भारत में एनिमल हसबैंड्री से जुड़े सभी क्षेत्रों में रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध हैं। इनमें मछलीपालन, पोल्ट्री, रेशम उत्पादन और कृषि पशुओं के प्रजनन व रख-रखाव से जुड़े काम शामिल हैं।
जू कीपिंग
जीव-जंतुओं से लगाव रखने वाले जूलॉजी छात्रों के लिए जू कीपिंग एक उम्दा विकल्प है। इनका काम प्राणी संग्रहालय (जू) और एक्वेरियम का रख-रखाव और जानवरों की सही तरीके से देखभाल करना है।
वाइल्डलाइफ एजुकेटर/गाइड
ये वनों में आने वाले पर्यटकों को जानवरों के विषय में जानकारी देने का काम करते हैं।
एनिमल बिहेवियरिस्ट
एनिमल बिहेवियरिस्ट का काम जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करना होता है। ये लोग जानवरों के साथ काम करने वाले लोगों को भी प्रशिक्षण देते हैं जिससे वे जानवरों के साथ अच्छे से घुलमिल सकें और उन्हें समझ सकें।
एजुटेनमेंट
लोगों को जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए मीडिया का प्रयोग करने की इच्छा रखते हैं तो एजुटेनमेंट या एजुकेशनल एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री आपके लिए श्रेष्ठ विकल्प है जहां आप डिसक्वरी और नेशनल ज्योग्राफिक जैसे चैनलों के लिए डॉक्यूमेंट्री प्रॉडक्शन, कंटेंट रिसर्च, स्क्रिप्ट राइटिंग, फिल्म मेकिंग, एक्सपर्ट सपोर्ट जैसे काम कर सकते हैं।
यहां से करें कोर्स
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, हैदराबाद
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर
जवाहर लाल नेहरु सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरु
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी, नई दिल्ली
कैसे करें पढ़ाई
जूलॉजी एक विस्तृत विषय है, जो प्रकृति की गोद में पलने वाले जीव जगत के सभी पहलुओं की पड़ताल करता है। यह जीव-जंतुओं के उद्भव और विकास की प्रक्रिया, उनकी संरचना, व्यवहार, क्रिया-कलापों और मानव के लाभ के लिए उनके विभिन्न उपयोगों का अध्ययन करता है। भारत की लगभग सभी यूनिवर्सिटीज जूलॉजी में बीएससी, एमएससी और रिसर्च डिग्री ऑफर करती हैं जहां प्रवेश के लिए मेरिट को आधार बनाया जाता है। वहीं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस या इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस रिसर्च एंड एजुकेशन, एनसीबीएस जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती है। वर्तमान में आईआईटी भी माइक्रोबायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी में बीटेक ऑफर कर रहे हैं जिसके लिए 12वीं में बायोलॉजी और मैथ्स के साथ एंट्रेंस एग्जाम देना आवश्यक है।
काम के अवसर
एक मल्टीडिसिप्लीनरी विषय की वजह से जूलॉजी नौकरी के लिए कई मौके देता है। इस विषय के साथ आप इन क्षेत्रों में रोजगार हासिल कर सकते हैं।
सरकारी सेवा
जूलॉजी में स्नातक के साथ इंडियन फॉरेस्ट सर्विसेज एग्जाम दे सकते हैं जो आपको बेहतर कॅरिअर के साथ वन्य प्राणियों के संरक्षण का अवसर भी प्रदान करता है। इसके अलावा पीजी या एम.फिल के साथ जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट, देहरादून या द इंडियन काउंसिल फॉर फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन में वैज्ञानिक पद पर काम करने का अवसर प्राप्त कर सकते हैं।
प्राणी संरक्षण
पर्यावरण में बदलाव और मानव हस्तक्षेप के चलते पूरी दुनिया में जीव प्रजातियां तेजी से विलुप्त होती जा रही हैं जिन्हें बचाने के लिए वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फेडरेशन जैसे वैश्विक संगठनों के साथ ही केंद्र व राज्य सरकारें भी जूलॉजी विशेषज्ञों की मदद लेती हैं। प्राकृतिक आपदाओं, दुर्घटना या पशुओं के प्राकृतिक आवास नष्ट होने की स्थिति में एनिमल रीहैबिलिटेटर्स की सेवाएं ली जाती हैं। इनका काम जानवरों की देखभाल, बीमार जंतुओं का इलाज और ठीक होने पर उन्हें दोबारा प्राकृतिक परिवेश में छोड़ना होता है।
मेडिकल
जेनेटिक्स, बायोटेक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी या पैरासाइट बायोलॉजी जैसी शाखाओं के छात्रों के लिए मेडिकल फॉरेंसिक विभाग, टेस्टिंग लैब और मेडिकल रिसर्च में विकल्पों की कोई कमी नहीं है। इसके अलावा आप मानव और पशुओं के लिए दवा निर्माण करने वाली कंपनियों के साथ जुड़कर भी अपने कॅरिअर को ऊंचाइयां दे सकते हैं।
अकादमिक क्षेत्र
जूलॉजी में ग्रेजुएशन के बाद बीएड के साथ स्कूल और कोचिंग संस्थानों में पढ़ा सकते हैं। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढाने के लिए आपको एमएससी के साथ नेट पास करना होगा।
रिसर्च
जूलॉजी में शोध की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। देश और दुनिया की तमाम श्रेष्ठ यूनिवर्सिटीज और अनुसंधान संस्थान जूलॉजी के क्षेत्र में रिसर्च को महत्व दे रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण से जुड़े वैश्विक संगठनों में भी जूलॉजी के रिसर्चर्स की मांग है। साथ ही कॉस्मेटिक्स, फार्मेसी और एनिमल प्रॉडक्ट्स से जुड़ी कंपनियों में रिसर्च फेलो के तौर पर अच्छा वेतन हासिल कर सकते हैं।
एनिमल हसबैंड्री
भारत में एनिमल हसबैंड्री से जुड़े सभी क्षेत्रों में रोजगार के भरपूर अवसर उपलब्ध हैं। इनमें मछलीपालन, पोल्ट्री, रेशम उत्पादन और कृषि पशुओं के प्रजनन व रख-रखाव से जुड़े काम शामिल हैं।
जू कीपिंग
जीव-जंतुओं से लगाव रखने वाले जूलॉजी छात्रों के लिए जू कीपिंग एक उम्दा विकल्प है। इनका काम प्राणी संग्रहालय (जू) और एक्वेरियम का रख-रखाव और जानवरों की सही तरीके से देखभाल करना है।
वाइल्डलाइफ एजुकेटर/गाइड
ये वनों में आने वाले पर्यटकों को जानवरों के विषय में जानकारी देने का काम करते हैं।
एनिमल बिहेवियरिस्ट
एनिमल बिहेवियरिस्ट का काम जानवरों के व्यवहार का अध्ययन करना होता है। ये लोग जानवरों के साथ काम करने वाले लोगों को भी प्रशिक्षण देते हैं जिससे वे जानवरों के साथ अच्छे से घुलमिल सकें और उन्हें समझ सकें।
एजुटेनमेंट
लोगों को जीव-जंतुओं के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए मीडिया का प्रयोग करने की इच्छा रखते हैं तो एजुटेनमेंट या एजुकेशनल एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री आपके लिए श्रेष्ठ विकल्प है जहां आप डिसक्वरी और नेशनल ज्योग्राफिक जैसे चैनलों के लिए डॉक्यूमेंट्री प्रॉडक्शन, कंटेंट रिसर्च, स्क्रिप्ट राइटिंग, फिल्म मेकिंग, एक्सपर्ट सपोर्ट जैसे काम कर सकते हैं।
यहां से करें कोर्स
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, हैदराबाद
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च, भुवनेश्वर
जवाहर लाल नेहरु सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च, बेंगलुरु
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
इंस्टीट्यूट ऑफ जीनोमिक्स एंड इंटिग्रेटिव बायोलॉजी, नई दिल्ली
Sunday, December 23, 2018
राजनीतिक विज्ञान से पाएं करियर
राजनीति विज्ञान एक सामाजिक विज्ञान है, जो राजनीति के सिद्धांत और व्यवहार तथा राजनीतिक व्यवस्था के विवेचन एवं विश्लेषण से जुड़ा हुआ है। इस विषय के कई उपभाग हैं । जैसे-राजनीतिक सिद्धांत, लोक नीति, राष्ट्रीय राजनीति, अंतरराष्ट्रीय संबंध, तुलनात्मक राजनीति आदि। इससे पता चलता है कि यह विषय व्यापक क्षेत्र को कवर करता है तथा इस विषय का अध्ययन करने के बाद विविध क्षेत्रों में एवं विभिन्न भूमिकाओं में कार्य करने का अवसर मिल सकता है…
राजनीति अपने पुरातन स्वरूप में बड़े बदलाव कर रही है, जो पूरी दुनिया की सामाजिक संरचनाओं को भी प्रभावित कर रही है। ढेरों ऐसे संगठन इस बदलाव को समझने और नई रणनीतियों को बनाने के लिए बन रहे हैं। भारत भी इससे अछूता नहीं है। तमाम राजनीतिक दल अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए नए तरीके और आइडियाज पर काम कर रहे हैं। थिंक टैंक और संगठन तक में आधुनिक तौर तरीकों से बदलाव किए जा रहे हैं। ऐसे में विशेषज्ञों की बाजार में मांग पैदा हो रही है जो इन बदलावों को बेहतर तरीके से समझते हों या राजनीतिक समझ को बेहतर करने में सक्षम हों। पॉलिटिकल साइंटिस्ट और थिंक टैंक जैसे नए पदनामों के साथ राजनीति विज्ञान ने आधुनिक दुनिया में बेहतर करियर बनाने के ढेरों नए अवसर पैदा किए हैं। राजनीतिक सिद्धांत,लोकनीति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक संबंध और तुलनात्मक राजनीति जैसे क्षेत्र उनका स्वागत करने के लिए हाथ पसारे खड़े हैं।
क्या पढ़ना होगा
राजनीति विज्ञान में स्नातक के अलावा इंटेलेक्चुअल प्रॅपर्टी राइट्स, इंटरनेशनल रिलेशंस, लोकल गवर्नेंस, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, पॉलिटिक्स, पब्लिक पॉलिसी में स्नातकोत्तर, एमफिल और पीएचडी की जा सकती है। क्षेत्र विशेष में अपनी विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए मिनिस्ट्री, पंचायती राज, इंडियन पॉलिटिकल सिस्टम और गुड गवर्नेंस में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सेज भी भारत में उपलब्ध हैं।
सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं
राजनीति विज्ञान सिर्फ विचार समझने और विकसित करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसे प्रचारित और प्रसारित करने तक आगे बढ़ चुकी है। यह जनमत निर्माण के लिए सोचने से आगे लिखने और बेहतर वक्ता होने तक की मांग करती है इसलिए इस क्षेत्र में करियर निर्माण के लिए सोचने वाले युवाओं को अपने पूरे व्यक्तित्व पर भी काम करना होगा। इस विधा में महारत रखने वाले उम्मीदवारों के लिए लॉ फर्म्स, मार्केटिंग रिसर्च फम्स, फील्ड रिसर्च, लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी जैसे पुलिस एवं न्यायालय आदि, पब्लिशिंग फर्म्स, राजनीतिक दल और विभिन्न व्यवसायों में ढेरों बेहतरीन जॉब ऑफर्स इंतजार कर रहे हैं। इसके अलावा वे पॉलिसी एनालिस्ट, पॉलिटिकल कंमेटेटर, पॉलिटिकल राइटर, सर्वे कंडक्टर, प्री पोल एनालिस्ट, पब्लिक अफेयर्स रिसर्च एनालिस्ट, पब्लिक ओपिनियन एनालिस्ट, कैम्पेन वर्कर, कैम्पेन डिजाइनर, विभिन्न मीडिया समूहों या अखबार में पॉलिटिकल कॉरसपॉन्डेंट या बिजनेस एडमिनिस्ट्रेटर जैसे पद संभाल सकते हैं।
यहां से कर सकते हैं कोर्स
* हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला
* पीजी कालेज, धर्मशाला(हिमाचल प्रदेश)
* राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बिलासपुर
* राजकीय सनातकोत्तर महाविद्यालय, सरकाघाट
* राजकीय महाविद्यालय, बैजनाथ
* दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
* हैदराबाद विश्वविद्यालय, हैदराबाद
* कलकत्ता विश्वविद्यालय, प. बंगाल
* पुणे श्विवविद्यालय, पुणे
* बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी
* हिंदू कालेज, दिल्ली
* पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़
राजनीति विज्ञान का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध
समाजशास्त्रों में पारस्परिक अंतर्निर्भरता पाई जाती है। कोई भी एक समाज विज्ञान समाज का उचित एवं समग्र अध्ययन नहीं कर सकता। इसलिए तमाम समाजशास्त्र आपस में संबंधित हैं और अंतर्शास्त्रीय अध्ययन पद्धति ने फिर से समाजशास्त्रों के इस संबंध को उभार दिया है। आज राजनीतिक अर्थशास्त्र, राजनीतिक नैतिकता, राजनीतिक इतिहास, राजनीतिक समाजशास्त्र,राजनीतिक मनोविज्ञान तथा राजनीतिक भूगोल आदि विभिन्न राजनीति विज्ञान की नई शाखाओं का खुलना इस बात का प्रतीक है कि राजनीति विज्ञान अन्य समाज विज्ञानों से संबंध स्थापित किए बिना नहीं चल सकता।
बदलता स्वरूप
यूनानी विचारकों के समय से लेकर आधुनिक काल तक के विभिन्न चिन्तकों, सिद्धांतवेत्ताओं और विश्लेषकों के योगदानों से राजनीति विज्ञान के रूप, अध्ययन सामग्री एवं उसकी परंपराएं समय-समय पर परिवर्तित होती रही हैं। तद्नुरूप इस विषय का निरंतर विकास होता रहा है। इस विकासक्रम में राजनीति विज्ञान के अध्ययन के संबंध में दो प्रमुख दृष्टिकोणों का उदय हुआ है। परंपरागत दृष्टिकोण एवं आधुनिक दृष्टिकोण। पारंपरिक या परंपरागत दृष्टिकोण राज्य प्रधानता का परिचय देता है जबकि आधुनिक दृष्टिकोण प्रक्रिया प्रधानता का।
वेतनमान
इस क्षेत्र में वेतनमान इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस पद पद हैं और क्या आप का क्षेत्र सरकारी है या निजी क्षेत्र में आप कार्यरत हैं। स्कूल में अध्यापन कार्य में आरंभ में 10 से 15 हजार तक वेतन मिलता है। कालेज में 35 से 40 हजार तक वेतनमान है।
महत्त्व
राजनीति विज्ञान का महत्त्व इस तथ्य से प्रकट होता है कि आज राजनीतिक प्रक्रिया का अध्ययन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार की राजनीति को समझने के लिए आवश्यक है। प्रक्रिया के अध्ययन से ही वास्तविक राजनीति एवं उनके भीतर अवस्थित तथ्यों का ज्ञान संभव है।
अवसरों की भरमार
सिविल सेवा
राजनीति विज्ञान सिविल सेवा और राज्य सिविल परीक्षाओं में एक ऑप्शनल विषय के रूप में काफी लोकप्रिय है। पढ़ने में सुविधाजनक होने, आसानी से पाठ्य सामग्री और कोचिंग की सुविधा उपलब्ध होने के कारण कम परिश्रम में अच्छे अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। सामान्य अध्ययन (जनरल स्टडी) प्री एवं मुख्य परीक्षा के 25 फीसदी प्रश्न राजनीति शास्त्र से जुड़े होते हैं। इसके अलावा राजनीति विज्ञान देश-विदेश की घटनाओं के विश्लेषण के साथ ही निबंध लेखन को भी आसान बनाता है।
कानून
पॉलिटिकल साइंस का बैकग्राउंड लॉ करने के लिए अच्छा माना जाता है। एलएलबी करके कानून के क्षेत्र में स्थान बना सकते हैं।
समाज सेवा
राजनीति विज्ञान का अध्ययन समाज के विभिन्न अवयव, राजनीति संगठन आदि को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है और इस प्रकार यह समाज सेवा और राजनीति के क्षेत्र में कार्य करने के लिए बहुत ही सहयोगी साबित हो सकता है। यह एक ऐसा विषय है, जो समाज सेवा के लिए प्रेरित करता है। समाज सेवा के जरिए जनप्रतिनिधि बना जा सकता है और लोकतंत्र को मजबूत करने में एक सशक्त भूमिका अदा की जा सकती है। राजनीति विज्ञान विषय में ग्रेजुएट होने पर एक बेहतर वक्ता तथा जनप्रतिनिधि बनने में सुविधा होती है।
राजनीतिक विश्लेषक
राजनीति विज्ञान में पीजी की डिग्री हासिल करने एवं राजनीतिक दर्शन, अंतरराष्ट्रीय संबंध, संविधान में दिलचस्पी रखने वाला राजनीतिक विश्लेषक बन सकता है। दूतावासों और स्वयंसेवी संगठनों में भी बेहतर अवसर हो सकते हैं। उच्च शिक्षा हासिल करके चुनाव विश्लेषक भी बना जा सकता है। इसके अलावा एमफिल या पीएचडी करने और किसी प्रोजेक्ट का अनुभव हासिल करने के बाद स्वतंत्र रूप से किसी सामाजिक विषय पर प्रोजेक्ट अपने हाथ में ले सकते हैं। कई राजनीतिक अनुसंधान एवं विश्लेषण संस्थानों में प्रतिष्ठित पदों पर कार्य करने का अवसर मिल सकता है।
उच्च शिक्षा में संभावनाएं
यदि राजनीति विज्ञान से बीए ऑनर्स करने के बाद बीएड करते हैं, तो किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्थानों में इस विषय के शिक्षक बन सकते हैं। वहीं एमए करने के बाद नेट व पीएचडी करके किसी भी कालेज में लेक्चरर या प्रोफेसर भी बन सकते हैं।
पत्रकारिता
राजनीति विज्ञान का ज्ञान देश-विदेश की घटनाओं का विश्लेषण एवं समीक्षा करने में सक्षम बनाता है। मास कम्युनिकेशन और पत्रकारिता का कोर्स करके प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में नौकरी की तलाश की जा सकती है।
और भी हैं विकल्प
राजनीति विज्ञान से ऑनर्स करने के बाद बैंक, न्यायिक सेवा, भारतीय प्रशासनिक सेवा, विदेश सेवा,मानवाधिकार, वकालत, एमबीए, रिसर्च इंस्टीच्यूट, वर्ल्ड ट्रेड आर्र्गेनाइजेशन, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक रिलेशन आदि में भी नौकरी की तलाश की जा सकती है।
किस तरह का काम
किसी भी विषय की पढ़ाई करने वाला छात्र राजनीति विज्ञान को अपना सकता है। इसके लिए देश से संबंधित मसलों की गहन खोज-परख तथा जांच-पड़ताल करने की जरूरत होती है। राजनीति विज्ञान विभिन्न सरकारी विभागों की वित्तीय गतिविधियों पर नियंत्रण करने का अवसर देता है। बजट और उसकी प्रक्रिया के निर्धारण, उसकी विशेषताओं, उद्देश्यों तथा बजट के विभिन्न सिद्घांतों तथा बजट लागू करने में राजनीतिक विज्ञान का अपना महत्त्व होता है। यह कर्मचारी को संस्थान की अवधारणा तथा संगठन में मानव व्यवहार के आकलन में भी मदद करता है।
अर्थ एवं परिभाषा
‘राजनीति’ का पर्यायवाची अंग्रेजी शब्द ‘पॉलिटिक्स’ यूनानी भाषा के ‘पॉलिस’ शब्द से बना है जिसका अर्थ नगर अथवा राज्य है। प्राचीन यूनान में प्रत्येक नगर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में संगठित होता था और पॉलिटिक्स शब्द से उन नगर राज्यों से संबंधित शासन की विद्या का बोध होता था। धीरे-धीरे नगर राज्यों का स्थान राष्ट्रीय राज्यों ने ले लिया अतः राजनीति भी राज्य के विस्तृत रूप से संबंधित विद्या हो गई। संक्षेप में राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य, सरकार तथा अन्य सम्बंधित संगठनों व संस्थाओं काए मानव के राजनीतिक जीवन के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।
परिचय
राजनीति विज्ञान का उद्भव अत्यन्त प्राचीन है। यूनानी विचारक अरस्तू को राजनीति विज्ञान का पितामह कहा जाता है। यूनानी चिंतन में प्लेटो का आदर्शवाद एवं अरस्तू का बुद्धिवाद समाहित है। राजनीति शास्त्र या राजनीति विज्ञान अत्यन्त प्राचीन विषय है। प्रारंभ में इसे स्वतंत्र विषय के रूप में नहीं स्वीकारा गया। राजनीति विज्ञान का अध्ययन नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, इतिहास,एवं विधि शास्त्र आदि की अवधारणाओं के आधार पर ही करने की परंपरा थी। आधुनिक समय में इसे न केवल स्वतंत्र विषय के रूप में स्वीकारा गया अपितु सामाजिक विज्ञानों के सन्दर्भों में इसका पर्याप्त विकास भी हुआ।
शैक्षणिक योग्यता
12वीं के बाद राजनीति विज्ञान में स्नातक डिग्री ली जा सकती है और उसके बाद स्नातकोत्तर किया जा सकता है। पीएचडी का विकल्प भी इसमें खुला है। जो विद्यार्थी कला क्षेत्र में स्नातक करना चाहते हैं, वे राजनीति विज्ञान में ऑनर्स कर सकते हैं या पास कोर्स में एक विषय के रूप में इसे रख सकते हैं।
अध्ययन का विस्तृत क्षेत्र
राजनीति विज्ञान एक सामाजिक अध्ययन है जो सरकार और राजनीति के अध्ययन से संबंधित है। राजनीति विज्ञान में ये तमाम बातें शामिल हैं। राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, संस्थागत या संरचनागत ढांचा, तुलनात्मक राजनीति, लोक प्रशासन,अंतरराष्ट्रीय कानून और संगठन आदि।
Tuesday, December 18, 2018
फूड साइंस और न्यूट्रिशन में करियर
संतुलित डाइट के महत्व से तो हर कोई वाकिफ है लेकिन अपनी उम्र, शारीरिक क्षमता, कार्य की प्रकृति और दैनिक रुटीन के हिसाब से डाइट कैसी होनी चाहिए, इसको लेकर अधिकांश लोग भ्रमित रहते हैं। सही डाइट से जुड़ी हमारी शंकाएं दूर करते हैं डायटीशियन और न्यूट्रिशनिस्ट। अगर आप हेल्दी लाइफस्टाइल के साथ रोमांचक करियर चाहते हैं, तो यह फील्ड आपके लिए बढ़िया है।
लोगों की बदली जीवनशैली और खानपान की खराब आदतों का सबसे ज्यादा असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है। इसीलिए हाल के दिनों में लोगों के बीच बैलेंस्ड डाइट को लेकर जागरूकता बढ़ी है। हालांकि बैलेंस्ड डाइट व्यक्ति विशेष की अपनी जरूरतों पर आधारित होती है, इसीलिए इसे लेकर लोगों में अक्सर भ्रम भी रहता है। इसी भ्रम को दूर करके फूड न्यूट्रिएंट्स के हिसाब से हमें सुझाव देते हैं डायटीशियन और न्यूट्रिशनिस्ट। अगर आपको भी फूड साइंस और न्यूट्रिशन में रुचि है, तो आप इसमें करियर प्लान कर सकते हैं।
क्या है न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स?
यह फूड साइंस से जुड़ा एक ऐसा कोर्स है, जिसमें फूड न्यूट्रिएंट्स के बारे में अध्ययन किया जाता है। इसी के आधार पर बड़े स्तर पर लोगों में न्यूट्रिशन से जुड़ी समस्याओं को पहचानकर उन्हें दूर करने के लिए सामाजिक और तकनीक के स्तर पर समाधान तलाशे जाते हैं। यही नहीं, सरकारी इकाइयों और स्वास्थ्य से जुड़े संस्थानों को भी इन्हीं के अनुसार स्वास्थ्य नीति में बदलाव के सुझाव दिए जाते हैं।
कौन-से कोर्स?
इस फील्ड में करियर प्लान करने के लिए 12वीं में फिजिक्स, केमिस्ट्री और बायोलॉजी जैसे विषय लेकर पढ़ने वाले विद्यार्थी होम साइंस व फूड साइंस एंड प्रॉसेसिंग में बीएससी, फूड साइंस एंड माइक्रोबायोलॉजी, न्यूट्रिशन, न्यूट्रिशन एंड फूड साइंस और न्यूट्रिशन एंड डायटेटिक्स में बीएससी ऑनर्स कर सकते हैं। इसके अलावा डायटेटिक्स एंड न्यूट्रिशन में डिप्लोमा और फूड साइंस एंड पब्लिक हेल्थ न्यूट्रिशन में डिप्लोमा भी किया जा सकता है। ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद आप इन्हीं विषयों में एमएससी कर सकते हैं। इस फील्ड में रिसर्च का भी काफी स्कोप है। हायर स्टडीज करने वाले विद्यार्थियों को इस फील्ड में मौके भी बहुत मिलते हैं।
जरूरी स्किल्स
अगर आपको फूड इंग्रीडिएंट्स में रुचि है और अलग-अलग पकवानों में इस्तेमाल होने वाली सामग्री में मौजूद न्यूट्रिएंट्स के बारे में पढ़ना व उनके हिसाब से डाइट में परिवर्तन करना पसंद है, तो आप इस फील्ड में जरूर आएं क्योंकि इसमें आपको नियंत्रित डाइट का सही प्लान बनाने का तरीका सिखाया जाता है। बॉडी मास इंडेक्स के हिसाब से आप अपना खुद का फूड चार्ट भी डिजाइन कर सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
आप सरकारी क्षेत्र और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहे संस्थानों में अपना करियर बना सकते हैं। अमूमन इस फील्ड में चार तरह के न्यूट्रिशनिस्ट काम करते हैं:
क्लिनिकल न्यूट्रिशनिस्ट
ये हॉस्पिटल्स, आउटपेशेंट क्लिनिक्स और नर्सिंग होम्स में काम करते हैं। इसमें आपको रोगियों की बीमारियों
के हिसाब से उनका डाइट चार्ट प्लान करना होगा।
मैनेजमेंट न्यूट्रिशनिस्ट
ये न्यूट्रिशनिस्ट क्लिनिकल और फूड साइंस एक्सपर्ट्स होते हैं। ये बड़े संस्थानों में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का
मैनेजमेंट करते हैं। इसके अलावा इन्हें न्यूट्रिशनिस्ट्स की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जिम्मेदारी भी दी जाती है।
कम्युनिटी न्यूट्रिशनिस्ट
ये सरकारी स्वास्थ्य एजेंसियों, हेल्थ एंड फिटनेस क्लब्स और डे-केयर सेंटर्स में काम करते हैं। इस क्षेत्र में किसी व्यक्ति विशेष के लिए काम न करके पूरे समुदाय पर फोकस किया जाता है।
मैनेजमेंट न्यूट्रिशनिस्ट
ये न्यूट्रिशनिस्ट क्लिनिकल और फूड साइंस एक्सपर्ट्स होते हैं। ये बड़े संस्थानों में काम करने वाले एक्सपर्ट्स का
मैनेजमेंट करते हैं। इसके अलावा इन्हें न्यूट्रिशनिस्ट्स की प्रोफेशनल ट्रेनिंग की जिम्मेदारी भी दी जाती है।
न्यूट्रिशन एडवाइजर
ये एक्सपर्ट्स बिना किसी संस्थान से जुडे, किसी डॉक्टर की तरह अपनी स्वतंत्र प्रैक्टिस करते हैं और लोगों को न्यूट्रिशन से जुड़ी सलाह व मार्गदर्शन देते हैं। इस तरह की फ्रीलांसिंग में भी अच्छी संभावनाएं हैं।
प्रमुख संस्थान
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद
- जेडी बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ होम साइंस, कोलकाता
- लेडी अर्विन कॉलेज, दिल्ली
- एसएनडीटी विमेंस यूनिवर्सिटी, मुंबई
- ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ, कोलकाता
- मुंबई यूनिवर्सिटी
Thursday, December 13, 2018
ओशॅनोग्राफी में कॅरिअर
ओशॅनोग्राफी समुद्र के अनगिनत रहस्यों को समझने, पढ़ने, और शोध करने का बहुआयामी तरीका है। समुद्री पर्यावरण के क्षेत्र में अध्ययन तथा अनुसंधान करने वाले विद्यार्थियों के लिए ओशॅनोग्राफी करियर के रूप में उभरा है। समुद्र में आए दिन तुफानों और आपदा प्रबंधन योजनाओं के बढ़ते महत्व के कारण ओशॅनोग्राफी में विद्यार्थियों की रुची बढ़ती जा रही है। भारत में समुद्र की लम्बाई-चौड़ाई को देखते हुए ओशॅनोग्राफी में बेहतर करियर है।
प्रयोगशाला से लेकर फील्डवर्क तक फैले इस काम का हिस्सा बनने के लिए विज्ञान या इंजीनियरिंग में स्नातक के बाद ओशॅनोग्राफी में मास्टर्स कोर्स जरूरी है।
हाल के वर्षों में ओशॅनोग्राफी एक फायदेमंद करियर के रूप में उभरा है। इसकी एक बड़ी वजह भारत के पास काफी बड़ा समुद्रतट और इसके समुद्रीय पर्यावरण की बड़े पैमाने पर खोज नहीं होना है। यह समुद्रीय पर्यावरण में अध्ययन करने और अनुसंधान करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए बड़े पैमाने पर अवसर उपलब्ध कराती है। हाल में आए कई समुद्री तूफानों में लाखों लोगों की जान गई। इन तूफानों की संभावना के बारे में जानना अनेक बड़ी विपत्तियों को टाल सकता है। यही वजह है कि आपदा प्रबंधन योजनाओं के महत्व बढऩे के कारण ओशॅनोग्राफी में भी रुचि बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धरातलीय संसाधनों की घटती मात्रा और समुद्रीय संसाधनों की प्रचुरता ने इस ओर ध्यान देने के लिए प्रेरणा का काम किया है, साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिकों व उद्यमियों की जागरूकता के कारण समुद्री विज्ञान बहुत तेजी से विकास कर रहा है। परिणाम के रूप में ओशॅनोग्राफर की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है ताकि आने वाले सालों में तटीय पानी और सीमाओं, मौसम की भविष्यवाणी और समुद्री तत्वों के रखरखाव के लिए अधिक से अधिक पेशेवरों की जरूरत को पूरा किया जा सके।
ओशॅनोग्राफी एक बहुआयामी विज्ञान है, जो समुद्र के अनगिनत रहस्यों को समझने की कोशिश करता है। इसका उद्देश्य, समुद्र के बारे में पढऩा और समुद्री संसाधनों को खोजना है। ओशॅनोग्राफी शोध आधारित पेशा है और उन लोगों के लिए उपयुक्त है, जिसमें साहसिक बोध और समुद्र क्षेत्र की अनजानी दुनिया को जानने का जोखिम उठाने की इच्छा के साथ अपने आसपास की दुनिया के प्रति प्राकृतिक जिज्ञासा है। रोमांच के तत्व और मुख्य रूप से आउटडोर में कार्य करना भी ओशॅनोग्राफर के लिए बड़ा आकर्षण साबित हो रहा है।
पूरी तरह से समुद्री दुनिया से जुड़े इस काम की प्रकृति विशेष शाखा के अनुरूप निर्धारित होती है और इसके क्षेत्र में प्रयोगशाला से लेकर फील्ड वर्क यानी समुद्र में नमूनों को इकट्ठा करने, तथ्यों का विश्लेषण करने, सर्वे और अध्ययन करने, सामने आने वाली समस्याओं का हल खोजने तक शामिल है।
निजी क्षेत्र में, समुद्री उत्पादों और शोध से जुड़ी कंपनियां सही योग्यता वाले उम्मीदवार की खोज में रहती हैं। भारत में समुद्री तटों की लम्बाई-चौड़ाई को देखते हुए समुद्री उत्पादों पर निर्भर कंपनियों के लिए अपार अवसर हैं। सरकारी और निजी संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले शोध प्रोजेक्ट, सी फार्मिंग, ऊर्जा उत्पन्न करने वाली लहरों और ज्वार-भाटा का पता लगाने जैसे कामों में फ्रीलांसर या सलाहकार के रूप में भी काम कर सकते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशॅनोग्राफी, गोवा
www.nio.org/
केरल युनिवर्सिटी ऑफ फिशरी एंड ओशियन स्टडीज, केरल
www.kufos.ac.in/
डिपार्टमेंट ऑफ मेरीन साइंस, युनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता
www.caluniv.ac.in/
प्रयोगशाला से लेकर फील्डवर्क तक फैले इस काम का हिस्सा बनने के लिए विज्ञान या इंजीनियरिंग में स्नातक के बाद ओशॅनोग्राफी में मास्टर्स कोर्स जरूरी है।
हाल के वर्षों में ओशॅनोग्राफी एक फायदेमंद करियर के रूप में उभरा है। इसकी एक बड़ी वजह भारत के पास काफी बड़ा समुद्रतट और इसके समुद्रीय पर्यावरण की बड़े पैमाने पर खोज नहीं होना है। यह समुद्रीय पर्यावरण में अध्ययन करने और अनुसंधान करने के इच्छुक विद्यार्थियों के लिए बड़े पैमाने पर अवसर उपलब्ध कराती है। हाल में आए कई समुद्री तूफानों में लाखों लोगों की जान गई। इन तूफानों की संभावना के बारे में जानना अनेक बड़ी विपत्तियों को टाल सकता है। यही वजह है कि आपदा प्रबंधन योजनाओं के महत्व बढऩे के कारण ओशॅनोग्राफी में भी रुचि बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर धरातलीय संसाधनों की घटती मात्रा और समुद्रीय संसाधनों की प्रचुरता ने इस ओर ध्यान देने के लिए प्रेरणा का काम किया है, साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी और वैज्ञानिकों व उद्यमियों की जागरूकता के कारण समुद्री विज्ञान बहुत तेजी से विकास कर रहा है। परिणाम के रूप में ओशॅनोग्राफर की मांग पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रही है ताकि आने वाले सालों में तटीय पानी और सीमाओं, मौसम की भविष्यवाणी और समुद्री तत्वों के रखरखाव के लिए अधिक से अधिक पेशेवरों की जरूरत को पूरा किया जा सके।
क्या है ओशॅनोग्राफी
ओशॅनोग्राफी एक बहुआयामी विज्ञान है, जो समुद्र के अनगिनत रहस्यों को समझने की कोशिश करता है। इसका उद्देश्य, समुद्र के बारे में पढऩा और समुद्री संसाधनों को खोजना है। ओशॅनोग्राफी शोध आधारित पेशा है और उन लोगों के लिए उपयुक्त है, जिसमें साहसिक बोध और समुद्र क्षेत्र की अनजानी दुनिया को जानने का जोखिम उठाने की इच्छा के साथ अपने आसपास की दुनिया के प्रति प्राकृतिक जिज्ञासा है। रोमांच के तत्व और मुख्य रूप से आउटडोर में कार्य करना भी ओशॅनोग्राफर के लिए बड़ा आकर्षण साबित हो रहा है।
क्या काम करते हैं ओशॅनोग्राफर
पूरी तरह से समुद्री दुनिया से जुड़े इस काम की प्रकृति विशेष शाखा के अनुरूप निर्धारित होती है और इसके क्षेत्र में प्रयोगशाला से लेकर फील्ड वर्क यानी समुद्र में नमूनों को इकट्ठा करने, तथ्यों का विश्लेषण करने, सर्वे और अध्ययन करने, सामने आने वाली समस्याओं का हल खोजने तक शामिल है।
निजी क्षेत्र में, समुद्री उत्पादों और शोध से जुड़ी कंपनियां सही योग्यता वाले उम्मीदवार की खोज में रहती हैं। भारत में समुद्री तटों की लम्बाई-चौड़ाई को देखते हुए समुद्री उत्पादों पर निर्भर कंपनियों के लिए अपार अवसर हैं। सरकारी और निजी संगठनों द्वारा चलाए जाने वाले शोध प्रोजेक्ट, सी फार्मिंग, ऊर्जा उत्पन्न करने वाली लहरों और ज्वार-भाटा का पता लगाने जैसे कामों में फ्रीलांसर या सलाहकार के रूप में भी काम कर सकते हैं।
यहां से करें कोर्स
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशॅनोग्राफी, गोवा
www.nio.org/
केरल युनिवर्सिटी ऑफ फिशरी एंड ओशियन स्टडीज, केरल
www.kufos.ac.in/
डिपार्टमेंट ऑफ मेरीन साइंस, युनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता
www.caluniv.ac.in/
Wednesday, December 5, 2018
ज्योग्राफिकल इंर्फोमेशन सिस्टम में करिअर
क्या आपकी भूगोल में दिलचस्पी है और क्या आप मानचित्र वगैरह में खुद को एक्सपर्ट मानते हैं। तो फिर आप ज्योग्राफर्स, ज्योलॉजिस्ट, हाईड्रोग्राफर एवं इंफॉरमेशन टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञता हासिल कर एक अच्छा करिअर विकल्प पा सकते हैं। जी.आई.एस. का कार्यक्षेत्र अब बहुत विस्तृत हो चुका है जिसके तहत कारों के लिए स्मार्ट गाइडेंस सिस्टम तैयार करने से लेकर उपग्रहों की सहायता से प्राकृतिक तेल के स्रोतों का पता लगाने जैसे कार्य भी शामिल हो चुके हैं।
इतना ही नहीं, आजकल तो इस विज्ञान का प्रयोग मोबाइल फोन्स में लोकेशन आधारित एप्स तैयार करने के लिए भी होने लगा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जी.आई.एस. का उपयोग अब विभिन्न उद्योगों तथा सेवाओं में व्यापक रूप से हो रहा है और इसकी बढ़ती उपयोगिता के साथ-साथ इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। इस फील्ड में शुरुआती तनख्वाह 25,000 रुपए प्रतिमाह है।
भौगोलिक एवं जनसांख्यिकी दृष्टि से विविध तथा विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से संपन्न भारत जैसे देश में ज्योग्राफिकल इंफार्मेंशन सिस्टम (जी.आई.एस.) का महत्व काफी अधिक है। यह वह विज्ञान है जिसके द्वारा विशेष उपयोग वाले नक्शे तैयार किए जाते हैं। किसी इलाके के बारे में हर छोटी से छोटी बात तक के संपूर्ण आंकड़े इन नक्शों के साथ उपलब्ध होते हैं।
जी.आई.एस. विभिन्न विषयों का एक सुमेल है जिसके तहत उन विषयों के ज्ञान का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें सबसे पहले ज्योग्राफी तथा डाटा मैनेजमेंट जैसे विषयों का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक विशेषज्ञता प्राप्त क्षेत्र है। यही वजह है कि इसके लाभ पूर्ण तौर पर आम जनता को उपलब्ध नहीं हो सके हैं। इसके बावजूद यह बेहद उपयोगी है तथा योजना बनाने में बेहद महत्वपूर्ण तथा सहायक साबित होता है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि जी.आई.एस. कंपनियों को इस साल के अंत तक करीब 30 हजार प्रशिक्षित पेशेवारों की जरूरत पड़ने वाली है। इसकी वजह भी है कि अब जी.आई.एस. से जुड़ी कमर्शियल एप्लिकेशंस का इस्तेमाल लक्ष्य आधारित मार्केटिंग के लिए जोर-शोर से किया जाने लगा है। इनमें हेल्थ केयर कंपनियां भी शामिल हैं जो जी.आई.एस. डाटा की मदद से नक्शे तैयार करके किसी खास बीमारी से अधिक ग्रस्त रहने वाले लोगों के इलाकों की पहचान कर सकती हैं। इस तकनीक की मदद से ही अब इलेक्शन कमीशन वोटर रजिस्ट्रेशन को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकता है। कृषि उत्पादन के विश्लेषण, माल परिवहन पर नजर रखने के लिए भी कंपनियां इस तकनीक का खूब इस्तेमाल करने लगी हैं।
भारत में अभी भी यह क्षेत्र अपने शुरुआती चरण में है जिस वजह से इस क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों के लिए व्यापक अवसर मौजूद हैं। नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर, इंडियन रिमोट सेंसिंग एजेंसि, प्लानिंग कमीशन, ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा आधार कार्ड तैयार करने वाली यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसे सरकारी संस्थान इस विषय में विशेषज्ञता रखने वाले युवाओं को बड़े स्तर पर नौकरियाँ प्रदान कर रहे हैं। इसके बावजूद मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स से लेकर तेल की खोज करने वाली निजी कंपनियां इस क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार प्रदान कर रही हैं।
सर्वे ऑफ इंडिया, ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, नेशनल इंफॉरेमेटिक्स सेंटर, प्लानिंग कमीशन, पेंटासोफ्ट तथा सीमंस। (फीचरडेस्क)
इंस्टीट्यूट 1. इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेसिंग, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गुइंडी, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई, तमिलनाडु (ज्योइंर्फामेटिक्स में बी.ई.तथा रिमोट सेंसिग में एम.टेक)
2. आई.आई.टी.बॉम्बे, महाराष्ट्र (रिमोट सेंसिंग में बी.टेक/एम.टेक)
3. सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योइंफॉर्मेटिक्स, पुणे, महाराष्ट्र,
4. सेंटर फॉर स्पेशल इंफॉरेमेशन टेक्नोलॉजी, जे.एन.टी.यू, हैदराबाद (जी.आई.एस.में एम टेक)
5. नेशनल पावर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, फ़रीदाबाद (जी.आई.एस.एंड रिमोट सेंसिग में पी.जी. डिप्लोमा)
6. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून, (रिमोट सेंसिंग एंड जी.आई.एस. में एम.टेक/पी.जी डिप्लोमा और ज्योइंफॉर्मेटिक्स में एम.एससी/पी.जी. डिप्लोमा)
इतना ही नहीं, आजकल तो इस विज्ञान का प्रयोग मोबाइल फोन्स में लोकेशन आधारित एप्स तैयार करने के लिए भी होने लगा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जी.आई.एस. का उपयोग अब विभिन्न उद्योगों तथा सेवाओं में व्यापक रूप से हो रहा है और इसकी बढ़ती उपयोगिता के साथ-साथ इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी निरंतर बढ़ते जा रहे हैं। इस फील्ड में शुरुआती तनख्वाह 25,000 रुपए प्रतिमाह है।
फ्यूचर परस्पेक्ट
भौगोलिक एवं जनसांख्यिकी दृष्टि से विविध तथा विभिन्न प्राकृतिक स्रोतों से संपन्न भारत जैसे देश में ज्योग्राफिकल इंफार्मेंशन सिस्टम (जी.आई.एस.) का महत्व काफी अधिक है। यह वह विज्ञान है जिसके द्वारा विशेष उपयोग वाले नक्शे तैयार किए जाते हैं। किसी इलाके के बारे में हर छोटी से छोटी बात तक के संपूर्ण आंकड़े इन नक्शों के साथ उपलब्ध होते हैं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
जी.आई.एस. विभिन्न विषयों का एक सुमेल है जिसके तहत उन विषयों के ज्ञान का इस्तेमाल किया जाता है। इनमें सबसे पहले ज्योग्राफी तथा डाटा मैनेजमेंट जैसे विषयों का इस्तेमाल किया जाता है। यह एक विशेषज्ञता प्राप्त क्षेत्र है। यही वजह है कि इसके लाभ पूर्ण तौर पर आम जनता को उपलब्ध नहीं हो सके हैं। इसके बावजूद यह बेहद उपयोगी है तथा योजना बनाने में बेहद महत्वपूर्ण तथा सहायक साबित होता है।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि जी.आई.एस. कंपनियों को इस साल के अंत तक करीब 30 हजार प्रशिक्षित पेशेवारों की जरूरत पड़ने वाली है। इसकी वजह भी है कि अब जी.आई.एस. से जुड़ी कमर्शियल एप्लिकेशंस का इस्तेमाल लक्ष्य आधारित मार्केटिंग के लिए जोर-शोर से किया जाने लगा है। इनमें हेल्थ केयर कंपनियां भी शामिल हैं जो जी.आई.एस. डाटा की मदद से नक्शे तैयार करके किसी खास बीमारी से अधिक ग्रस्त रहने वाले लोगों के इलाकों की पहचान कर सकती हैं। इस तकनीक की मदद से ही अब इलेक्शन कमीशन वोटर रजिस्ट्रेशन को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकता है। कृषि उत्पादन के विश्लेषण, माल परिवहन पर नजर रखने के लिए भी कंपनियां इस तकनीक का खूब इस्तेमाल करने लगी हैं।
संभावनाएं
भारत में अभी भी यह क्षेत्र अपने शुरुआती चरण में है जिस वजह से इस क्षेत्र में प्रशिक्षित पेशेवरों के लिए व्यापक अवसर मौजूद हैं। नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर, इंडियन रिमोट सेंसिंग एजेंसि, प्लानिंग कमीशन, ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया तथा आधार कार्ड तैयार करने वाली यूनिक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया जैसे सरकारी संस्थान इस विषय में विशेषज्ञता रखने वाले युवाओं को बड़े स्तर पर नौकरियाँ प्रदान कर रहे हैं। इसके बावजूद मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर्स से लेकर तेल की खोज करने वाली निजी कंपनियां इस क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार प्रदान कर रही हैं।
मुख्य नियोक्ता
सर्वे ऑफ इंडिया, ज्योलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, नेशनल इंफॉरेमेटिक्स सेंटर, प्लानिंग कमीशन, पेंटासोफ्ट तथा सीमंस। (फीचरडेस्क)
इंस्टीट्यूट 1. इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेसिंग, कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गुइंडी, अन्ना यूनिवर्सिटी, चेन्नई, तमिलनाडु (ज्योइंर्फामेटिक्स में बी.ई.तथा रिमोट सेंसिग में एम.टेक)
2. आई.आई.टी.बॉम्बे, महाराष्ट्र (रिमोट सेंसिंग में बी.टेक/एम.टेक)
3. सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योइंफॉर्मेटिक्स, पुणे, महाराष्ट्र,
4. सेंटर फॉर स्पेशल इंफॉरेमेशन टेक्नोलॉजी, जे.एन.टी.यू, हैदराबाद (जी.आई.एस.में एम टेक)
5. नेशनल पावर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट, फ़रीदाबाद (जी.आई.एस.एंड रिमोट सेंसिग में पी.जी. डिप्लोमा)
6. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, देहरादून, (रिमोट सेंसिंग एंड जी.आई.एस. में एम.टेक/पी.जी डिप्लोमा और ज्योइंफॉर्मेटिक्स में एम.एससी/पी.जी. डिप्लोमा)
Saturday, December 1, 2018
सॉफ्ट स्किल ट्रेनिंग में करियर
समय के साथ-साथ सॉफ्ट स्किल करियर के निर्माण या उसे दिशा देने में पर्याप्त क्षमता वाले साधन के रूप में उभरकर सामने आया है। अकसर देखा जाता है कि कुछ लोग तकनीकी रूप से बड़े ही प्रतिभावान होते हैं और साथ ही वे अपने क्षेत्र में निपुण भी होते हैं, किंतु उनके करियर में एक निश्चित बिंदु के बाद ठहराव-सा आ जाता है और ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उनमें नेतृत्व क्षमता, समूह में काम करना, सामाजिक सम्प्रेषण तथा संबंध निर्माण कौशलों का अभाव होता है। सॉफ्ट स्किल एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें सम्प्रेषण कौशल, श्रवण कौशल, टीम कौशल, नेतृत्व के गुण, सृजनात्मकता और तर्कसंगति, समस्या निवारण कौशल तथा परिवर्तनशीलता आदि सम्मिलित हैं।
सॉफ्ट स्किल सामान्यतः गुण-स्वरुप होते हैं और इन्हें पुस्तकों से नहीं सीखा जा सकता। लेकिन औपचारिक प्रशिक्षण निश्चित रुप से आपको कुशल बना सकता है और यदि आप विशिष्ट कौशलों में सुधार करना चाहते हैं तो यह कुछ सूत्र और तकनीकों की शिक्षा प्रदान कर सकता है। यदि आप सही अर्थों में अपने व्यक्तित्व में सॉफ्ट स्किलों को जोड़ना चाहते हैं तो आपको एक निकटदर्शी तथा उत्सुकतापूर्ण लर्नर की भूमिका अपनानी होगी और एक श्रमशील कामगार बनकर उन सब बातों को व्यवहार में लाना होगा जो कुछ भी आपने ग्रहण की हैं। यहां कुछ ऐसे सॉफ्ट स्किलों का उल्लेख किया जा रहा है जो आपके रोजगार की संभावनाओं और व्यक्तित्व में सुधार कर सकते हैं।
प्रभावी सम्प्रेषण कौशलों में सार्वजनिक भाषणों, प्रस्तुतिकरण, बातचीत, संघर्ष समाधान ज्ञान-बांटना आदि के लिए मौखिक कौशल, रिपोर्टे, प्रस्ताव, अनुदेश मैनुअल तैयार करना, ज्ञापन, सूचनाएं लिखना, कार्यालयी पत्र-व्यवहार आदि के लिए लेखन कौशल शामिल हैं। इनमें मौखिक और गैर-मौखिक दोनों का सम्मिश्रण भी सम्मिलित है। चूंकि हमारा सम्प्रेषण का अधिकारिक माध्यम अंग्रेजी है, इसलिए इसमें कुछ हद तक दक्षता होना जरूरी है।
अंग्रेजी हमारी द्वितीय भाषा है और यह हमारी मातृभाषा नहीं है, अतः घर/हॉस्टल में सतत प्रैक्टिस और तदुपरांत भाषा-प्रयोगशाला सत्रों की आवश्यकता समय की मांग है। जो संस्थान अपने छात्रों की प्लेसमेंट बहुराष्ट्रीय और प्रतिष्ठित कम्पनियों में करवाना चाहते हैं उन्हें इस विषय पर गहराई के साथ सोच-विचार करने और ध्यान देने की जरूरत है।
गुणवत्ता का रोजगार संबंधित विषय के ज्ञान के साथ-साथ अच्छे सम्प्रेषण कौशल पर निर्भर करता है।
अंतर-वैयक्तिक और सामूहिक-कार्य कौशल उच्चतर उत्पादकता तथा बेहतर वातावरण के लिए योगदान करते हैं। क्योंकि इनसे व्यक्ति संयुक्त लक्ष्य हासिल करने हेतु मिलकर कार्य करते हैं। कुछेक व्यक्ति जन्म से ही अग्रणी प्रकृति के होते हैं अथवा टीम कार्य के लिए अपेक्षित अन्तर्ज्ञान से ओत-प्रोत होते हैं। लेकिन सामान्यतः इन कौशलों को पढ़ाये जाने की आवश्यकता होती है अथवा प्रैक्टिस और जागरुकता से इन्हें सीखा जा सकता है। इस कौशल के चार आयाम होते हैं, जिनके नाम हैः सहयोग, सम्प्रेषण, कार्य, नीतिशास्त्र और नेतृत्व। सहयोग के लिए उनके विचारों पर समझौते की योग्यता को प्रदर्शित करना, टीम सदस्यों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार और टीम में सर्वसम्मति से कार्य करना सम्मिलित होता है। यह सम्प्रेषण टीम-सदस्यों के बीच एक गतिशील पारस्परिक क्रिया की स्थापना और फीडबैक का आमंत्रण तथा उसे प्रदान करना तथा संघर्ष की स्थिति को हल करना अपेक्षित होता है। कार्य नीति-शास्त्र में सौंपे गये कार्य हेतु जिम्मेदारी स्वीकार करना, कोई भी सोंपे गये कार्य को समय पर करना और अन्य टीम सदस्यों को यथापेक्षित सहायता प्रदान करना शामिल है। टीम के सभी सदस्यों के लिए वास्तव में नेतृत्व प्रदर्शित करना अपेक्षित होता है। इसमें कार्रवाई की शुरुआत करना, अवधारणाओं का स्पष्टीकरण और समस्या निदान तथा गतिविधियों तथा परिणामों का संक्षेपण करना सम्मिलित होता है।
बहुत से लोग इस बात को लेकर अचम्भित होते हैं कि वे व्यवसाय में अपेक्षानुसार सफल क्यों नहीं होते हैं। बहुत बार कारण उनके निकट ही होता है परंतु वे इसे देख नहीं पाते हैं। पहली बात, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा पूछा जाना चाहिए, वह है, “क्या मैं अपने वैयक्तिक जीवन और संबंधों में सफल हूं?” व्यक्तिगत कौशल, वे कौशल होते हैं जो आपको न केवल समाज और कार्य क्षेत्र में स्वीकार्य तथा सम्मान योग्य बनाते हैं बल्कि एक अच्छा रोजगार प्राप्त करने और बेहतर करियर विकास में आपकी मदद करते हैं। इनमें निर्णय करने की योग्यता, चौकसी, निश्चयात्मकता, शांति, वचनबद्धता, सहयोग. भावुक स्थिरता, परानुभूति, लचीलापन, उदारता, सहनशीलता, आत्म-विश्वास, आत्म-नियंत्रण, आत्म-निर्भरता, आत्म-सम्मान, ईमानदारी और अन्यों के बीच विनोदशीलता की अनुभूति आदि सम्मिलित हैं।
अपने रोजमर्रा के जीवन में अकसर आपको ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब आप सही फैसले करने में असमर्थ होते हैं। आपके सामने ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने की ज्यादा संभावनाएं उस वक्त होती हैं जब आप किसी संगठन में कार्य करते हैं। ऐसी दबावपूर्ण स्थितियों का मुकाबला करने के वास्ते आपको कुछेक ऐसे कौशल विकसित करने की आवश्यकता है जो आपको निर्णय लेने, सृजनात्मक एवं अन्वेषणात्मक समाधान विकसित करने, व्यावहारिक हल ढूंढने, समस्याओं का स्वतंत्र रूप में पता लगाने और उनको हल करने और विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं के निदान में कार्य-नीतियां लागू करने में मददगार हो सकते हैं।
यह एक सर्व वीदित तथ्य है कि आधुनिक संगठन तीव्रता से अपने अंदर बदलाव ला रहे हैं और औद्योगिक युग के पिछले सौ वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकीय परिवर्तन हुए हैं। फलस्वरूप, किसी आधुनिक संगठन में कार्यरत कोई कर्मचारी न केवल कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार होना चाहिए बल्कि उसमें लचीलेपन के साथ-साथ तेजी से हो रहे परिवर्तनों के अनुरुप ढालने की योग्यता भी होनी चाहिए। नियोक्ता को अनुकूलनशीलता विकसित करने के लिए विभिन्न कौशलों की आवश्यकता होती है, जैसेकि विभिन्न सांस्कृतियों के बीच सम्प्रेषण, अन्यों के साथ बहु-सांस्कृतिक कार्य वातावरण तैयार करना, अन्यों की विश्वास और धारणा संबंधी प्रणालियों का सम्मान करना, कार्य स्थल पर जातीय/सांस्कृतिक भेदभाव से बचना आदि।
कार्य नीतिशास्त्र कड़ी मेहनत और उद्यमशीलता के नैतिक सदगुणों पर आधारित मूल्यों का एक समूह है, जो नियोक्ता या किसी व्यक्ति की नैतिकता के आधार पर उन्हें खरा उतारता है। कार्य नीति-शास्त्र में विश्वसनीय बनना, सामाजिक कौशलों के लिए काम करना और उन्हें बरकरार रखने की कला को शामिल किया जा सकता है। इनके अलावा जिम्मेदारी की अनुभूति, ईमानदारी और वचनबद्धता को भी इनमें शामिल किया जा सकता है।
उपर्युक्त कौशल हासिल करने के वास्ते आपको स्व-जागरुक बनने की आवश्यकता है अर्थात आपको अपने विचारों और दृष्टिकोण में सकारात्मकता लानी होगी। पढ़ना भी आपके लिए अपने कौशलों में सुधार करने का एक अन्य मार्ग हो सकता है और यह आपके आसपास के वातावरण तथा विश्व के बेहतर परिदृश्य के विकास में भी मददगार साबित हो सकते हैं। आपको नए-नए विचारों और अनुभवों को भी ग्रहण करना चाहिए तथा परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए परिवर्तनों को अपनाना चाहिए। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आपको सदैव यह याद रखने की आवश्यकता है कि इन कौशलों को पूरे समर्पण के साथ व्यवहार में लाएं। प्रैक्टिस से आपके कार्य में सुधार होता है और आपको अपनी त्रुटियों और कमियों को जानने तथा उन्हें दूर करने में मदद मिलती है जिससे आप में आत्म-विश्वास की भावना पनपती है।
आजकल ज्यादातर संगठन अपने कर्मचारियों में उनके सकारात्मक, सम्प्रेषण, अंतर-वैयक्तिक और टीम कौशलों, समस्या निदान, अनुकूलनशीलता और कार्य-नीतिशास्त्र में सुधार हेतु प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। इससे एक तरफ जहां उनके व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है वहीं दूसरी तरफ संगठन की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। अतः सॉफ्ट स्किल में पाठ्यक्रम पूरा करने के उपरांत कोई व्यक्ति किसी निजी या सार्वजनिक संगठन में सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षक के रूप में रोजगार प्राप्त कर सकता है और अच्छा वेतन अर्जित कर सकता है।
• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की
• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर
• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, चंडीगढ़
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, कोलकाता
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल
सॉफ्ट स्किल सामान्यतः गुण-स्वरुप होते हैं और इन्हें पुस्तकों से नहीं सीखा जा सकता। लेकिन औपचारिक प्रशिक्षण निश्चित रुप से आपको कुशल बना सकता है और यदि आप विशिष्ट कौशलों में सुधार करना चाहते हैं तो यह कुछ सूत्र और तकनीकों की शिक्षा प्रदान कर सकता है। यदि आप सही अर्थों में अपने व्यक्तित्व में सॉफ्ट स्किलों को जोड़ना चाहते हैं तो आपको एक निकटदर्शी तथा उत्सुकतापूर्ण लर्नर की भूमिका अपनानी होगी और एक श्रमशील कामगार बनकर उन सब बातों को व्यवहार में लाना होगा जो कुछ भी आपने ग्रहण की हैं। यहां कुछ ऐसे सॉफ्ट स्किलों का उल्लेख किया जा रहा है जो आपके रोजगार की संभावनाओं और व्यक्तित्व में सुधार कर सकते हैं।
प्रभावी सम्प्रेषण कौशल
प्रभावी सम्प्रेषण कौशलों में सार्वजनिक भाषणों, प्रस्तुतिकरण, बातचीत, संघर्ष समाधान ज्ञान-बांटना आदि के लिए मौखिक कौशल, रिपोर्टे, प्रस्ताव, अनुदेश मैनुअल तैयार करना, ज्ञापन, सूचनाएं लिखना, कार्यालयी पत्र-व्यवहार आदि के लिए लेखन कौशल शामिल हैं। इनमें मौखिक और गैर-मौखिक दोनों का सम्मिश्रण भी सम्मिलित है। चूंकि हमारा सम्प्रेषण का अधिकारिक माध्यम अंग्रेजी है, इसलिए इसमें कुछ हद तक दक्षता होना जरूरी है।
अंग्रेजी हमारी द्वितीय भाषा है और यह हमारी मातृभाषा नहीं है, अतः घर/हॉस्टल में सतत प्रैक्टिस और तदुपरांत भाषा-प्रयोगशाला सत्रों की आवश्यकता समय की मांग है। जो संस्थान अपने छात्रों की प्लेसमेंट बहुराष्ट्रीय और प्रतिष्ठित कम्पनियों में करवाना चाहते हैं उन्हें इस विषय पर गहराई के साथ सोच-विचार करने और ध्यान देने की जरूरत है।
गुणवत्ता का रोजगार संबंधित विषय के ज्ञान के साथ-साथ अच्छे सम्प्रेषण कौशल पर निर्भर करता है।
अंतर वैयक्तिक और सामूहिक कार्य कौशल
अंतर-वैयक्तिक और सामूहिक-कार्य कौशल उच्चतर उत्पादकता तथा बेहतर वातावरण के लिए योगदान करते हैं। क्योंकि इनसे व्यक्ति संयुक्त लक्ष्य हासिल करने हेतु मिलकर कार्य करते हैं। कुछेक व्यक्ति जन्म से ही अग्रणी प्रकृति के होते हैं अथवा टीम कार्य के लिए अपेक्षित अन्तर्ज्ञान से ओत-प्रोत होते हैं। लेकिन सामान्यतः इन कौशलों को पढ़ाये जाने की आवश्यकता होती है अथवा प्रैक्टिस और जागरुकता से इन्हें सीखा जा सकता है। इस कौशल के चार आयाम होते हैं, जिनके नाम हैः सहयोग, सम्प्रेषण, कार्य, नीतिशास्त्र और नेतृत्व। सहयोग के लिए उनके विचारों पर समझौते की योग्यता को प्रदर्शित करना, टीम सदस्यों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार और टीम में सर्वसम्मति से कार्य करना सम्मिलित होता है। यह सम्प्रेषण टीम-सदस्यों के बीच एक गतिशील पारस्परिक क्रिया की स्थापना और फीडबैक का आमंत्रण तथा उसे प्रदान करना तथा संघर्ष की स्थिति को हल करना अपेक्षित होता है। कार्य नीति-शास्त्र में सौंपे गये कार्य हेतु जिम्मेदारी स्वीकार करना, कोई भी सोंपे गये कार्य को समय पर करना और अन्य टीम सदस्यों को यथापेक्षित सहायता प्रदान करना शामिल है। टीम के सभी सदस्यों के लिए वास्तव में नेतृत्व प्रदर्शित करना अपेक्षित होता है। इसमें कार्रवाई की शुरुआत करना, अवधारणाओं का स्पष्टीकरण और समस्या निदान तथा गतिविधियों तथा परिणामों का संक्षेपण करना सम्मिलित होता है।
व्यक्तिगत कौशल
बहुत से लोग इस बात को लेकर अचम्भित होते हैं कि वे व्यवसाय में अपेक्षानुसार सफल क्यों नहीं होते हैं। बहुत बार कारण उनके निकट ही होता है परंतु वे इसे देख नहीं पाते हैं। पहली बात, जिसे किसी व्यक्ति द्वारा पूछा जाना चाहिए, वह है, “क्या मैं अपने वैयक्तिक जीवन और संबंधों में सफल हूं?” व्यक्तिगत कौशल, वे कौशल होते हैं जो आपको न केवल समाज और कार्य क्षेत्र में स्वीकार्य तथा सम्मान योग्य बनाते हैं बल्कि एक अच्छा रोजगार प्राप्त करने और बेहतर करियर विकास में आपकी मदद करते हैं। इनमें निर्णय करने की योग्यता, चौकसी, निश्चयात्मकता, शांति, वचनबद्धता, सहयोग. भावुक स्थिरता, परानुभूति, लचीलापन, उदारता, सहनशीलता, आत्म-विश्वास, आत्म-नियंत्रण, आत्म-निर्भरता, आत्म-सम्मान, ईमानदारी और अन्यों के बीच विनोदशीलता की अनुभूति आदि सम्मिलित हैं।
समस्या-निदान एवं अन्य ज्ञानात्मक कौशल
अपने रोजमर्रा के जीवन में अकसर आपको ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब आप सही फैसले करने में असमर्थ होते हैं। आपके सामने ऐसी स्थितियां उत्पन्न होने की ज्यादा संभावनाएं उस वक्त होती हैं जब आप किसी संगठन में कार्य करते हैं। ऐसी दबावपूर्ण स्थितियों का मुकाबला करने के वास्ते आपको कुछेक ऐसे कौशल विकसित करने की आवश्यकता है जो आपको निर्णय लेने, सृजनात्मक एवं अन्वेषणात्मक समाधान विकसित करने, व्यावहारिक हल ढूंढने, समस्याओं का स्वतंत्र रूप में पता लगाने और उनको हल करने और विभिन्न क्षेत्रों में समस्याओं के निदान में कार्य-नीतियां लागू करने में मददगार हो सकते हैं।
अनुकूलनशीलता एवं कार्य नीति-शास्त्र
यह एक सर्व वीदित तथ्य है कि आधुनिक संगठन तीव्रता से अपने अंदर बदलाव ला रहे हैं और औद्योगिक युग के पिछले सौ वर्षों में बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकीय परिवर्तन हुए हैं। फलस्वरूप, किसी आधुनिक संगठन में कार्यरत कोई कर्मचारी न केवल कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार होना चाहिए बल्कि उसमें लचीलेपन के साथ-साथ तेजी से हो रहे परिवर्तनों के अनुरुप ढालने की योग्यता भी होनी चाहिए। नियोक्ता को अनुकूलनशीलता विकसित करने के लिए विभिन्न कौशलों की आवश्यकता होती है, जैसेकि विभिन्न सांस्कृतियों के बीच सम्प्रेषण, अन्यों के साथ बहु-सांस्कृतिक कार्य वातावरण तैयार करना, अन्यों की विश्वास और धारणा संबंधी प्रणालियों का सम्मान करना, कार्य स्थल पर जातीय/सांस्कृतिक भेदभाव से बचना आदि।
कार्य नीतिशास्त्र कड़ी मेहनत और उद्यमशीलता के नैतिक सदगुणों पर आधारित मूल्यों का एक समूह है, जो नियोक्ता या किसी व्यक्ति की नैतिकता के आधार पर उन्हें खरा उतारता है। कार्य नीति-शास्त्र में विश्वसनीय बनना, सामाजिक कौशलों के लिए काम करना और उन्हें बरकरार रखने की कला को शामिल किया जा सकता है। इनके अलावा जिम्मेदारी की अनुभूति, ईमानदारी और वचनबद्धता को भी इनमें शामिल किया जा सकता है।
उपर्युक्त कौशल हासिल करने के वास्ते आपको स्व-जागरुक बनने की आवश्यकता है अर्थात आपको अपने विचारों और दृष्टिकोण में सकारात्मकता लानी होगी। पढ़ना भी आपके लिए अपने कौशलों में सुधार करने का एक अन्य मार्ग हो सकता है और यह आपके आसपास के वातावरण तथा विश्व के बेहतर परिदृश्य के विकास में भी मददगार साबित हो सकते हैं। आपको नए-नए विचारों और अनुभवों को भी ग्रहण करना चाहिए तथा परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के लिए परिवर्तनों को अपनाना चाहिए। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि आपको सदैव यह याद रखने की आवश्यकता है कि इन कौशलों को पूरे समर्पण के साथ व्यवहार में लाएं। प्रैक्टिस से आपके कार्य में सुधार होता है और आपको अपनी त्रुटियों और कमियों को जानने तथा उन्हें दूर करने में मदद मिलती है जिससे आप में आत्म-विश्वास की भावना पनपती है।
रोजगार की संभावनाएं
आजकल ज्यादातर संगठन अपने कर्मचारियों में उनके सकारात्मक, सम्प्रेषण, अंतर-वैयक्तिक और टीम कौशलों, समस्या निदान, अनुकूलनशीलता और कार्य-नीतिशास्त्र में सुधार हेतु प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। इससे एक तरफ जहां उनके व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ता है वहीं दूसरी तरफ संगठन की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। अतः सॉफ्ट स्किल में पाठ्यक्रम पूरा करने के उपरांत कोई व्यक्ति किसी निजी या सार्वजनिक संगठन में सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षक के रूप में रोजगार प्राप्त कर सकता है और अच्छा वेतन अर्जित कर सकता है।
व्यक्तित्व विकास
समय के साथ-साथ अब फोकस एक सामान्य व्यक्ति से सुशिक्षित और परिपक्व व्यक्तित्व की ओर हो गया है। विभिन्न संगठनों, खासकर कम्पनियों को ऐसे व्यक्तियों की तलाश रहती है जो कुशाग्र और सुशिक्षित होते हैं। उनमें ऐसे सम्प्रेषण कौशल होने चाहिए कि वे सबसे आगे रहें। इसके लिए वे अपने कर्मचारियों को भर्ती के उपरांत प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। लेकिन वे उन व्यक्तियों को वरीयता देते हैं जो पहले से अपने क्षेत्र में बेहतर होते हैं। चूंकि ज्यादातर लोग प्रतिभाओं के साथ जन्म लेते हैं, परंतु उन्हें परिष्कृत और शिक्षित करने की आवश्यकता होती है। उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए बाजार में बहुत से संस्थान संचालित किए जा रहे हैं। ये संस्थान काफी धन अर्जन कर रहे हैं और इस तरह सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षकों को आकर्षक रोजगार का विकल्प प्रदान कर रहे हैं।शिक्षण
हाल में सॉफ्ट स्किल प्रशिक्षकों के लिए शिक्षण कार्य भी एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरकर सामने आया है क्योंकि सभी इंजीनियरिंग और प्रबंध संस्थानों में तकनीकी कौशल एक अनिवार्य विषय के रूप में शामिल होता है। वहां पर छात्रों को साक्षात्कार और समूह चर्चा में बेहतर प्रदर्शन के लिए अपेक्षित अन्य वैयक्तिक कौशलों के साथ-साथ प्लेसमेंट और सम्प्रेषण कौशलों के लिए प्रशिक्षित और तैयार किया जाता है। चूंकि किसी संस्थान का विकास पूर्णतः उसके छात्रों की रोजगार प्लेसमेंट पर निर्भर करता है, अतः सॉफ्ट-स्किल प्रशिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है।शिक्षा
सॉफ्ट-स्किल में पाठ्यक्रम संचालित करने वाले बहुत से संस्थान हैं और इनमें से सॉफ्ट स्किल में लघु प्रशिक्षण पाठ्यक्रम संचालित करने वाले कुछ संस्थान निम्नानुसार हैं :• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की
• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर
• भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, खड़गपुर
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, चंडीगढ़
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, कोलकाता
• राष्ट्रीय तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल
प्लेसमेंट
पाठ्यक्रम पूरा करने के उपरांत कोई भी व्यक्ति किसी सार्वजनिक या निजी संगठन, शैक्षणिक संस्थान में रोजगार प्राप्त कर सकता है अथवा अपना स्वयं का प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर सकता है
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