Thursday, October 11, 2018

मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में भविष्य

मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में कॅरियर हमारी जरूरतों में वक्त के साथ कई ऐसी चीजें भी जुड़ी हैं, जो प्राकृतिक होकर भी अपने मूल रूप में हम तक नहीं पहुंचतीं। उनमें एक महत्वपूर्ण चीज है मेटल यानी धातु। प्रकृति में कई प्रकार की धातु हैं, जो कई तत्वों (एलीमेंट्स) के रासायनिक संयोग से बनी हैं। इस कारण उनके गुणों (कैरेक्टरीस्टिक) में भी भौतिक और रासायनिक स्तर पर कई तरह की विशेषताएं देखने को मिलती हैं। ये विशेषताएं ही उनकी उपयोगिता (इंसानी जरूरत) का निर्धारण करती हैं। एल्यूमीनियम, तांबा, लोहा और टिन आदि धातुओं का इस्तेमाल वाहन निर्माण, विद्युत उपकरण और मशीनों के निर्माण में बड़े पैमाने पर किया जाता है। प्राकृतिक रूप में ये धातु अयस्क (ओर) के रूप में मिलते हैं। इनमें अशुद्धियों (मिट्टी और अन्य तत्व) की भारी मात्रा होती है। इस कारण इनका तत्काल उपयोग संभव नहीं होता। अयस्क से धातुओं को निकालने और उन्हें उपयोग लायक बनाने का कार्य मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के जरिए होता है। इस विधा के जरिए ही खनन में मिले खनिजों से धातु अयस्क और फिर उससे धातु प्राप्त करने की सुगम प्रक्रियाओं का विकास किया जाता है।
इंजीनियरिंग की इस शाखा के विकास का प्रमाण हैं विभिन्न प्रकार के एलॉय (मिश्रधातु)। औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए विभिन्न धातुओं के मेल से तैयार एलॉय का काफी क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए स्टेनलेस स्टील को लिया जा सकता है, लोहे में निकिल और क्रोमियम के मेल से तैयार यह मिश्रधातु जंगरहित और चमकदार होती है। इसी तरह ड्यूरेलुमिन है, जो एल्युमीनियम के साथ कॉपर, मैंगनीज और मैग्नीशियम के मेल से बना है। इस मिश्रधातु का उपयोग हवाई जहाजों के निर्माण में होता है। इसकी खासियत है हल्का वजन और भारी वहन क्षमता। ऐसे कई मिश्रधातु हैं, जिनका विकास मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के कारण संभव हो पाया है। आने वाले वक्त में भी निर्माण और उत्पादन का क्षेत्र लोगों की बढ़ती भौतिक जरूरतों के कारण बढ़ता रहेगा। स्वाभाविक रूप से इस कारण  सहयोगी के रूप में मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग का क्षेत्र भी विस्तृत होगा। ऐसे में उसके पेशेवरों के लिए यह क्षेत्र आगे भी अवसरों की दृष्टि से आकर्षक बना रहेगा।
क्या है मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
मेटलिक एलीमेंट (धातु तत्व) और उनसे बनने वाले यौगिकों (कंपाउंड्स) व मिश्रणों (मिक्सचर्स) के रासायनिक और भौतिक गुणों का अध्ययन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग के तहत किया जाता है। मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग में धातु अयस्क के प्राकृतिक भंडारों से धातु को प्राप्त करने, उनमें मौजूद अशुद्धियों को दूर करने और औद्योगिक आवश्यकताओं के लिए धातुओं के मेल से मिश्रधातुओं (एलॉय) का निर्माण करने संबंधी प्रकियाओं और सिद्धांतों के बार में बताया जाता है। विभिन्न प्रक्रियाओं की प्रायोगिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप, स्पेक्ट्रोग्राफ्स और एक्स-रे मशीन आदि तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है।  इंजीनियरिंग की यह शाखा मुख्य रूप से तीन भागों में बंटी है। इनके नाम हैं-फिजिकल मेटलर्जी, एक्सट्रेक्टिव मेटलर्जी और मिनरल प्रोसेसिंग। बैचलर डिग्री में इन भागों के आधारभूत सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है, जबकि मास्टर्स में इनमें से किसी एक को स्पेशलाइजेशन का विषय बनाया जा सकता है।
इंजीनियर के कार्य 
- धातुओं को उपयोग के लायक बनाने की कम खर्चीली और तकनीकी दृष्टि से सुविधाजनक प्रक्रियाओं को विकसित करना। अयस्क में से धातु को अलग करने के लिए अयस्क की काफी बड़ी मात्रा को साफ (रिफाइन) करना पड़ता है।
- उपलब्ध धातुओं से विभिन्न उद्योगों (परिवहन, रक्षा, आटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, निर्माण और मशीनरी आदि) की जरूरत के अनुरूप नए उत्पाद विकसित करना।
-  मेटलर्जी के क्षेत्र में हुए नवीनतम शोध और तकनीकी विकास की जानकारी हासिल करते रहना। इसका इस्तेमाल कार्य को बेहतर बनाने में के लिए जरूरी होता है।
- धातु निर्माण कंपनियों में प्रोडक्शन सुपरवाइजर के तौर पर काम करते हुए प्रयोग में लाई जा रही प्रक्रियाओं के पर्यावरणीय प्रभाव और ऊर्जा की खपत आदि पहलुओं पर गौर करते हुए उपयोगी उपाय तलाशना।
योग्यता
डिप्लोमा कोर्स

किसी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी या स्कूल शिक्षा बोर्ड से 10वीं पास करने के बाद इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स में दाखिला लिया जा सकता है। मेटलर्जी में डिप्लोमा कोर्स देश के कई विश्वविद्यालयों और पॉलिटेक्नीक संस्थानों में चल रहा है। इनमें दाखिले आमतौर पर प्रवेश परीक्षा के जरिए होते हैं। कुछ संस्थान दसवीं में प्राप्त अंकों के आधार पर भी दाखिला करते हैं। तीन वर्षीय डिप्लोमा कोर्स करने के बाद लेटरल एंट्री स्कीम के तहत सीधे बीई/ बीटेक कोर्स के दूसरे वर्ष (तीसरा सेमेस्टर) में प्रवेश लिया जा सकता है।
बैचलर कोर्स
विज्ञान विषयों (फिजिक्स और मैथ्स के अलावा केमिस्ट्री जरूरी) के साथ बारहवीं पास करके मेटलर्जी के बीई या बीटेक कोर्स में प्रवेश लिया जा सकता है। शैक्षणिक सत्र 2013-14 से इंजीनियरिंग के सभी कोर्स में प्रवेश के लिए सिंगल एंट्रेंस टेस्ट को माध्यम बनाया गया है। एनआईटी और राज्य स्तरीय इंजीनियरिंग संस्थानों की सीटें भरने के लिए आईआईटी (मेंस) परीक्षा का आयोजन होगा। इसमें प्राप्त अंक और 12वीं के अंक को मेरिट सूची बनाने में क्रमश: 60 और 40 फीसदी की वेटेज (राज्यों में वेटेज का अनुपात बदल भी सकता है) दी जाएगी। आईआईटी सीटों पर दाखिले के लिए आईआईटी (मेंस) के शीर्ष डेढ़ लाख छात्रों में चुने जाने के अलावा आईआईटी (एडवांस्ड) परीक्षा में पास होना होगा। इस परीक्षा में बैठने के लिए संबंधित स्कूल शिक्षा बोर्ड के शीर्ष 20 पर्सेंटाइल में भी आना होगा। 
मास्टर्स कोर्स
मेटलर्जी में इंजीनियरिंग की बैचलर डिग्री हासिल करने या केमिस्ट्री में एमएससी करने के बाद मेटलर्जी या उससे संबंधित विषयों में एमटेक किया जा सकता है। इसके लिए आईआईटी द्वारा आयोजित गेट (ग्रेजुएट एप्टीट्यूड टेस्ट इन इंजीनियरिंग) को पास करना पड़ता है।
स्पेशलाइजेशन के विषय
- फिजिकल मेटलर्जी
- मिनरल प्रोसेसिंग
- एक्सट्रेक्टिव मेटलर्जी
कार्य का दायरा
इंजीनियरिंग के इस क्षेत्र में रोजगार की काफी संभावनाएं हैं। धातु निर्मित उत्पादों के विकास और निर्माण से जुड़ी कंपनियों में मेटलर्जिकल इंजीनियर की काफी मांग होती है। इसके लिए धातुओं का निर्माण करने वाली कंपनियों (टाटा स्टील, सेल, जिंदल स्टील, हिंडाल्को इंडस्ट्रीज) में मेटलर्जिकल कंसल्टेंट के पद पर इंजीनियरों की नियुक्ति की जाती है। निजी और सरकारी कंपनियों की शोध व विकास शाखाओं में रिसर्चर के तौर पर मेटलर्जी के विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाती है। इसके लिए मास्टर्स डिग्री का होना जरूरी होता है। मास्टर्स डिग्री और सीएसआईआर-यूजीसी नेट परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग संस्थानों में लेक्चरर के रूप में भी अपनी योग्यता और अनुभव का उपयोग किया जा सकता है। 
इन पदों पर मिलेगा काम
- मेटलर्जिस्ट
-  रिसर्चर
-  वेल्डिंग इंजीनियर
-  प्रोसेस इंजीनियर
-  प्लांट इक्विपमेंट इंजीनियर
- बैलिस्टिक इंजीनियर
-  क्वालिटी प्लानिंग इंजीनियर
वेतन
कोर्स करने के बाद पहली नौकरी में वेतन का स्तर कंपनी की बाजार स्थिति और कारोबार पर निर्भर करता है। डिप्लोमा कोर्स के बाद शुरुआती वेतन 15 से 18 हजार रुपये के बीच होता है, जबकि बैचलर डिग्री के बाद औसत वेतन 30 हजार रुपये मासिक होता है।
प्रमुख कोर्स
- डिप्लोमा इन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
- बीई/ बीटेक इन मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग
- एमटेक इन मेटलर्जिकल एंड मेटेरियल्स इंजीनियरिंग ऋ एमटेक इन स्टील टेक्नोलॉजी
प्रमुख संस्थान
-  इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (कानपुर, रुड़की, मद्रास)
-  नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (राउरकेला, जमशेदपुर, दुर्गापुर, वारंगल, तिरुचिरापल्ली)
-  इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी, वाराणसी
-  इंडियन स्कूल ऑफ माइंस
-  बंगाल इंजीनियरिंग एंड साइंस यूनिवर्सिटी, हावड़ा
-  बिरसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धनबाद
-  जादवपुर यूनिवर्सिटी, कोलकाता
-  जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद

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