Tuesday, May 16, 2017

एग्रो-फॉरेस्ट्री में करियर

फॉरेस्ट्री के क्षेत्र में अभी बहुत कुछ एक्सप्लोर किया जाना बाकी है। इसमें नए इनोवेटिव रिसर्च की जरूरत है। फॉरेस्ट्री से ही जुड़ा फील्ड है एग्रो-फॉरेस्ट्री, जिसमें कृषि उत्पाद, वन पैदावार और आजीविका के क्रिएशन, कंजर्वेशन और साइंटिफिक मैनेजमेंट की जानकारी दी जाती है। फॉरेस्ट्री या एग्रीकल्चर या प्लांट साइंसेज में ग्रेजुएट एग्रो-फॉरेस्ट्री में मास्टर्स कर सकते हैं। इसके लिए यूनिवर्सिटी का एंट्रेंस एग्जाम देना होगा या फिर मेरिट के आधार पर भी दाखिला मिल सकता है। एग्रो फॉरेस्ट्री प्रोफेशनल्स बैंकिंग सेक्टर के अलावा कृषि विज्ञान केंद्र, आइटीसी जैसी प्लांटेशन कंपनी या बायो-फ्यूअल इंडस्ट्री में काम कर सकते हैं।
डॉ. अरविंद बिजलवान, असि. प्रोफेसर (टेक्निकल फॉरेस्ट्री), आइआइएफएम, भोपाल
लाइफ का सेकंड चांस
भिलाई इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से इलेक्ट्रॉनिक्स ऐंड टेलीकम्युनिकेशन में इंजीनियरिंग करने के बाद मैं टीसीएस मुंबई में जॉब कर रही थी। हर दिन कंप्यूटर के सामने एक-सा काम करते हुए मन नहींलग रहा था। बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट-सी गई थी। तब खुद से सवाल पूछा कि आखिर ये मैं क्या कर रही हूं? मैंने जॉब से इस्तीफा दिया और भोपाल स्थित आइआइएफएम में अप्लाई कर दिया। पहली बार इंटरव्यू में मुझे रिजेक्ट कर दिया गया, लेकिन दूसरी बार मैं सक्सेसफुल रही। इंस्टीट्यूट में पहले हफ्ते के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में हमें फील्ड में जाने का मौका मिला। जंगलों के बीच रहने वाले लोगों, महिलाओं से मिली। वह मेरी लाइफ का सबसे बेहतरीन एक्सपोजर रहा। पूरे कोर्स के दौरान और भी बहुत कुछ अलग जानने और सीखने को मिला। जिंदगी ने मुझे सेकंड चांस दिया था। मैंने डेवलपमेंट मैनेजमेंट में स्पेशलाइजेशन पूरा करने के बाद प्रदान नामक एनजीओ को ज्वाइन किया। फिलहाल मैं बस्तर के दो ब्लॉक में 4000 परिवारों के बीच काम कर रही हूं। वन संपदा को कैसे बचाकर रखना है, किस तरह उनके संरक्षण से मानव का विकास जुड़ा है, इसे लेकर लोगों को जागरूक करना, उन्हें आजीविका के रास्ते बताना हमारे काम का हिस्सा है। यहां लाइफ टफ है और पैसे भी ज्यादा नहींमिलते, लेकिन जमीनी स्तर पर काम करने का जो अनुभव और सुकून मिल रहा है, वह ऑफिस के कमरे में बैठकर कभी हासिल नहींकर सकती थी।
स्नेहा कौशल
प्रोजेक्ट एग्जीक्यूटिव, प्रदान, बस्तर
फॉरेस्ट्री में ऑप्शंस अनलिमिटेड
फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स और फॉरेस्ट मैनेजमेंट प्रोफेशनल्स के लिए गवर्नमेंट के अलावा प्राइवेट सेक्टर में अनेक अपॉच्र्युनिटीज हैं। गवर्नमेंट सेक्टर में स्टेट फॉरेस्ट सर्विस, एकेडेमिक्स और बैंकों में फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स की नियुक्ति होती है। एसबीआइ, नाबार्ड, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक आदि के साथ ही आइसीआइसीआइ और एक्सिस जैसे प्राइवेट बैंकों में एग्रीकल्चर ऑफिसर, रूरल डेवलपमेंट ऑफिसर की जरूरत होती है, जो ग्रामीण विकास से जुड़ी गतिविधियों को देखते हैं। वहीं, विभिन्न फॉरेस्ट डेवलपमेंट कॉरपोरेशन, टाइगर फाउंडेशन, बैंबू मिशन, स्टेट लाइवलीहुड मिशन, वल्र्ड वाइल्डलाइफ फंड, इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च, वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, एनवॉयर्नमेंटल कंसल्टेंसीज, एनजीओ में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट के लिए अवसरों की कमी नहीं है। इन दिनों माइक्रोफाइनेंस सेक्टर, नॉन-टिंबर प्रोसेसिंग और पेपर इंडस्ट्री में भी फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स या फॉरेस्ट मैनेजमेंट के स्पेशलाइज्ड प्रोफेशनल्स की अच्छी डिमांड देखी जा रही है। आइआइएफएम में 100 परसेंट प्लेसमेंट इस तथ्य की पुष्टि करता है। फॉरेस्ट्री ग्रेजुएट्स को शुरू में 25 से 30 हजार रुपये महीने मिल जाते हैं। एसबीआइ जैसे बैंकों में 7 से नौ लाख रुपये का सालाना पैकेज मिल जाता है। स्पेशलाइजेशन के कारण प्रमोशन भी जल्दी मिलता है। वहीं, प्राइवेट सेक्टर की कंपनीज में 10 लाख रुपये तक पैकेज स्टूडेंट्स को मिलता रहा है।
प्रो. अद्वैत एदगांवकर, प्लेसमेंट चेयरपर्सन
आइआइएफएम, भोपाल
कमा लो बूंद-बूंद पानी
प्रकृति को बचाने की मुहिम के परिणामस्वरूप ग्रीन जॉब्स का एक बड़ा मार्केट खड़ा हो रहा है, जहां पे-पैकेज भी अच्छा है। इसमें भी वॉटर कंजर्वेशन का फील्ड इंटेलिजेंट यूथ में काफी पसंद किया जा रहा है....
बिजली की बचत, सोलर व विंड एनर्जी?का मैक्सिमम यूटिलाइजेशन करने वाली इमारतें बनाने वाले आर्किटेक्ट, वॉटर रीसाइकल सिस्टम लगाने वाला प्लंबर, कंपनियों में जल संरक्षण से संबंधित रिसर्च वर्क और सलाह देने वाले, ऊर्जा की खपत कम करने की दिशा में काम करने वाले एक्सपर्ट, पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को कायम रखने के गुर सिखाने वाले एक्सपर्ट, प्रदूषण की मात्रा और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के तरीके बताने वाले एक्सपर्ट...अपने आस-पास नजर दौड़ाइए तो ऐसे अनगिनत प्रोफेशनल्स दिख जाएंगे, जो किसी न किसी रूप में ग्रीन कैम्पेन से जुड़े हुए हैं।?
वॉटर कंर्जवेशन पर जोर
नदियों की सफाई, वर्षाजल का भंडारण, मकानों के निर्माण के साथ ही वाटर हार्वेस्टिंग की प्रणाली की स्थापना, नदियों की बाढ़ से आने वाले पानी को सूखाग्रस्त इलाकों के लिए संग्रहित करना, सीवेज जल का प्रबंधन कर खेती आदि के कार्यकलापों में इस्तेमाल आदि पर आधारित योजनाओं का क्रियान्वयन सभी देशों में किया जा रहा है। जल प्रबंधन एवं संरक्षण पर आधारित कोर्सेज अब औपचारिक तौर पर तमाम देशों में अस्तित्व में आ गए हैं। पहले परंपरागत विधियों एवं प्रणालियों से जल बर्बादी को रोकने तक ही समस्त उपाय सीमित थे। आज देश में स्कूल स्तर से लेकर यूनिवर्सिटीज में एमई और एमटेक तक के कोर्सेज चलाए जा रहे हैं। वॉटर साइंस, वॉटर कंजर्वेशन वॉटर मैनेजमेंट, वॉटर हार्वेस्टिंग, वॉटर ट्रीटमेंट, वॉटर रिसोर्स मैनेजमेंट कई स्ट्रीम्स हैं जिन्हें चुनकर आप इस फील्ड में करियर बना सकते हैं।
वॉॅटर साइंस
हवा और जमीन पर उपलब्ध पानी और उससे जुड़े प्रॉसेस का साइंस वाटर साइंस कहलाता है। इससे जुड़े प्रोफेशनल वॉटर साइंटिस्ट कहलाते हैं।
वॉटर साइंस का स्कोप
केमिकल वॉटर साइंस : वॉटर की केमिकल क्वालिटीज की स्टडी।
इकोलॉजी : लिविंग क्रिएचर्स और वॉॅटर-साइंस साइकल के बीच इंटरकनेक्टेड प्रॉसेस की स्टडी।
हाइड्रो-जियोलॉजी : ग्राउंड वॉटर के डिस्ट्रिब्यूशन तथा मूवमेंट की स्टडी।
हाइड्रो-इन्फॉरमेटिक्स : वॉटर साइंस और वॉटर रिसोर्सेज के एप्लीकेशंस में आइटी के यूज की स्टडी।
हाइड्रो-मीटियोरोलॉजी : वॉटर एड एनर्जी के ट्रांसफर की स्टडी। पानी के आइसोटोपिक सिग्नेचर्स की स्टडी।
सरफेस वॉटर साइंस : जमीन की ऊपरी सतह के पास होने वाली हलचलों की स्टडी।
वॉटर साइंटिस्ट का काम
-हाइड्रोमीट्रिक और वाटर क्वालिटी का मेजरमेंट
-नदियों, झीलों और भूमिगत जल के जल स्तरों, नदियों के प्रवाह, वर्षा और जलवायु परिवर्तन को दर्ज करने वाले नेटवर्क का रख-रखाव।
-पानी के नमूने लेना और उनकी केमिकल एनालिसिस करना।
-आइस तथा ग्लेशियरों का अध्ययन।
-वॉॅटर क्वालिटी सहित नदी में जल प्रवाह की मॉडलिंग।
-मिट्टी और पानी के प्रभाव के साथ-साथ सभी स्तरों पर पानी की जांच करना।
-जोखिम की स्टडी सहित सूखे और बाढ़ की स्टडी।
किससे जुड़कर काम करते हैं
सरकार : पर्यावरण से संबंधित नीतियों को तैयार करना, एग्जीक्यूट करना और मैनेज करना।
अंतरराष्ट्रीय संगठन : टेक्नोलॉजी ट्रांसफर, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आपदा राहत।
एडवाइजरी : सिविल इंजीनियरिंग, पर्यावरणीय प्रबंधन और मूल्यांकन में सेवाएं उपलब्ध कराना।
एकेडमिक ऐंड रिसर्च : नई एनालिटिक टेक्निक्स के जरिए टीचिंग ऐंड रिसर्च वर्क करना।
यूटिलिटी कम्पनियां और पब्लिक अथॉरिटीज : वॉटर सप्लाई और सीवरेज की सर्विसेज देना।
एलिजिबिलिटी
-वॉटर साइंस से रिलेटेड सब्जेक्ट में बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री को वरीयता।
-जियोलॉजी, जियो-फिजिक्स, सिविल इंजीनियरिंग, फॉरेस्ट्री ऐंड एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट्स इनमें शामिल हैं।
स्किल्स
-सहनशीलता, डिटरमिनेशन, ब्रॉडर ऑस्पेक्ट और गुड एनालिटिकल स्किल की जरूरत होती है।
-टीम में काम करने की स्किल
-इन्वेस्टिगेशन की प्रवृत्ति
वॉटर मैनेजमेंट
बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण आज पूरी दुनिया पानी की किल्लत से जूझ रही है। इसे देखते हुए वाटर मैनेजमेंट और कंजर्वेशन से जुड़े प्रोफेशनल्स की डिमांड बढ़ रही है। आजकल हाउसिंग कॉम्प्लेक्सेज से लेकर उद्योगों आदि में ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत होती है, जो वॉटर हार्वेेस्टिंग से लेकर जल संचयन आदि की तकनीकों को जानते हों।
कोर्स
वॉटर हार्वेस्टिंग ऐंड मैनेजमेंट नाम से यह कोर्स करीब 6 महीने का है। इसके तहत सिखाया जाता है कि बारिश के पानी को किस तरह से मापा जाए, वॉटर टेबल की क्या इंपॉर्र्टेंस है और उसे किस तरह से रिचार्ज किया जाए।
एलिजिबिलिटी
इसमें एडमिशन की मिनिमम एलिजिबिलिटी 10वीं पास है। अगर आपने इग्नू से बैचलर प्रिपरेट्री प्रोग्राम (बीपीपी) किया हुआ है, तो आप सीधे इस कोर्स में एडमिशन ले सकते हैं।
एक्वाकल्चर
एक्वाकल्चर में समुद्र, नदियों और ताजे पानी के कंजर्वेशन, उनके मौलिक रूप और इकोलॉजी की सेफ्टी के बारे में स्टडी की जाती है। इन दिनों घटते जल स्रोतों, कम होते पेयजल संसाधनों के चलते इस फील्ड में विशेषज्ञों की मांग बढ़ी है।
कोर्स ऐंड एलिजिबिलिटी
इस फील्ड में बीएससी और एमएससी इन एक्वा साइंस जैसे कोर्स प्रमुख हैं। इनमें एडमिशन के लिए बायोलॉजी सब्जेक्ट के साथ 10+2 पास होना अनिवार्य है। इसके अलावा, वाटर कंजर्वेशन और उसकीइकोलॉजी के बारे में गहरा रुझान जरूरी है।
एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग
एनवॉयर्नमेंट कंजर्वेशन के फील्ड में बढ़ती टेक्नोलॉजी के एक्सपेरिमेंट्स से आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियर्स की मांग बढ़ी है। अलग-अलग सेक्टर्स के कई इंजीनियर्स आज एनवॉयर्नमेंट इंजीनियरिंग में अपना योगदान दे रहे हैं। इनमें एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग, बायोलॉजिस्ट केमिकल इंजीनियरिंग, जियोलॉजिस्ट, हाइड्रो-जियोलॉजिस्ट, वॉटर ट्रीटमेंट मैनेजर आदि कारगर भूमिका निभाते हैं।
इंस्टीट्यूट वॉच
-आइआइटी, रुड़की
(भूजल जल-विज्ञान और वाटरशेड मैनेजमेंट)
-इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली
-अन्ना विश्वविद्यालय (वाटर मैनेजमेंट)
-एम.एस. बड़ौदा विश्वविद्यालय
(वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-आंध्र विश्वविद्यालय, विशाखापत्तनम
-अन्नामलाई विश्वविद्यालय (हाइड्रो-जियोलॉजी)
-दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, दिल्ली
-गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, रायपुर (वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट ऐंड इरिगेशन इंजीनियरिंग)
-आइआइटी, मद्रास (फ्लड साइंस ऐंड वाटर रिसोर्सेज इंजीनियरिंग)
-जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, हैदराबाद
-राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रुड़की

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