Saturday, September 17, 2016

ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग रफ्तार का करियर

अर्थव्यवस्था की रफ्तार का पता इससे भी चलता है कि कौन-कौन से वाहन किस संख्या में सड़कों पर फिलवक्त दौड़ रहे हैं। इस सेक्टर को चलाने व आगे ले जाने वाले लोगों में ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स भी हैं, जो डिजाइन, कम्फर्ट, इकॉनोमी, पावरफुल इंजन के साथ न केवल इस इंडस्ट्री को चलाते हैं, बल्कि अपने करियर को भी एक अनोखी रफ्तार देते हैं। इसी से जुड़ा है ऑटो कम्पोनेंट का तेजी से बढ़ता दायरा और यही वजह है कि ऑटोमोबाइल इंजीनियरों की मांग में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। एक तेज रफ्तार करियर के रूप में इसे चुना जा सकता है।
ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग यानी ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग या व्हीकल इंजीनियरिंग आज का सबसे चुनौती-भरा करियर है, जिसमें संभावनाओं की सीमा नहीं है। इंजीनियरिंग की यह शाखा कार, ट्रक, मोटरसाइकिल, स्कूटर जैसे वाहनों के डिजाइन, विकास, निर्माण, परीक्षण और मरम्मत व सर्विस से जुड़ी होती है। ऑटोमोबाइल के निर्माण व डिजाइनिंग के सम्यक मेल के लिए ऑटोमोबाइल इंजीनियर्स इंजीनियरिंग की विभिन्न शाखाओं जैसे मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक, सॉफ्टवेयर तथा सेफ्टी इंजीनियरिंग की मदद से काम को अंजाम देते हैं।
एक बेहतरीन ऑटोमोबाइल इंजीनियर बनने के लिए विशेष प्रशिक्षण की जरूरत होती है और साथ ही एक खास किस्म का जुनून चाहिए, जो दृढ़ता, मेहनत व लगन के साथ अपने काम को पूरा करने में किसी दबाव व परेशानी को सामने न आने दे।
ऑटोमोबाइल इंजीनियर किसी भी वाहन की कॉन्सेप्ट स्टेज से लेकर प्रोडक्शन स्टेज तक शामिल होते हैं। यानी कागज से लेकर सड़क तक वाहन के आने तक उन्हें यह देखना होता है कि पूरा कॉन्सेप्ट हूबहू असलियत में उतरे। इस इंजीनियरिंग की कई उप-शाखाएं भी हैं जैसे इंजन, इलेक्ट्रॉनिक्स, कंट्रोल सिस्टम, फ्ल्यूड मैकेनिज्म, थर्मोडायनेमिक्स, एयरोडायनेमिक्स, सप्लाई चेन मैनेजमेंट इत्यादि।
ऑटोमोबाइल इंजीनियर को मुख्यत: तीन धाराओं में विभाजित किया जाता है-प्रोडक्ट या डिजाइन इंजीनियर, डेवलपमेंट इंजीनियर और मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियर। प्रोडक्ट या डिजाइन इंजीनियर वह होता है, जो ऑटोमोबाइल्स के कम्पोनेंट और सिस्टम की डिजाइनिंग व टैस्टिंग करता है। वह हर पुर्जे को डिजाइन व टैस्ट करता है, ताकि वह निर्धारित जरूरतों को पूरा कर सके। मेन्युफैक्चरिंग इंजीनियर ऑटोमोबाइल्स के सभी पार्ट्स को जोड़ने का काम करता है। उसे उपकरणों, ऑटोमेशन उपकरणों और सेफ्टी प्रोसीजर्स को डिजाइन  करना होता है, जबकि मैन्युफैक्चरिंग इंजीनियर ऑटोमोबाइल के सभी हिस्सों को जोड़ कर पूरा वाहन तैयार करता है।
नोएडा स्थित ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग डिविजन चला रहे रूपक सखूजा के मुताबिक ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर तभी बना सकते हैं, जब इसमें आपकी रुचि होगी। वैसे प्रोडक्शन से लेकर, डिजाइनिंग, असेम्बलिंग और मैकेनिकल, कई तरह के जॉब हैं। रिसर्च एंड डेवलपमेंट का बहुत बड़ा दायरा है ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में।
पाठय़क्रम
गणित, भौतिकी, रसायन शास्त्र, जैव प्रौद्योगिकी और कम्प्यूटर साइंस में रुचि व अच्छी पकड़ रखने वाले छात्र ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में शानदार करियर बनाने की सोच सकते हैं। इनमें कई पाठय़क्रम कराए जाते हैं, जैसे-
बीई ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
बीटेक ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
सर्टिफिकेट प्रोग्राम इन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
डिप्लोमा इन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
एमटेक इन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
पीजी डिप्लोमा इन ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग
शैक्षिक योग्यता
ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में बीई या बीटेक करने के लिए 12वीं या समकक्ष योग्यता होनी चाहिए, जिसमें गणित, भौतिकी, रसायन शास्त्र, जैव प्रौद्योगिकी और कम्प्यूटर साइंस जैसे विषय हों। ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में स्नातक होने के बाद एमई या एमटेक किया जा सकता है। उसके बाद यदि और विशेषज्ञता हासिल करनी है तो पीएचडी की जा सकती है। दसवीं बाद डिप्लोमा किया जा सकता है।
कैसे होता है चयन
बीई या बीटेक पाठय़क्रमों में दाखिला 12वीं के अंकों व प्रवेश परीक्षाओं (आईआईटीजेईई, एआईईईई, बिटसैट इत्यादि) की मेरिट के आधार पर होता है, जो अखिल भारतीय व राज्य स्तर पर आयोजित की जाती है। एमई या एमटेक के लिए गेट यानी ग्रेजुएट एप्टीटय़ूड टैस्ट इन इंजीनियरिंग के माध्यम से दाखिला मिलता है। जिन्होंने डिप्लोमा कर रखा है, वे एआईएमई परीक्षा देकर डिग्री धारकों के समकक्ष हो सकते हैं। कुछ संस्थान अपनी परीक्षा लेते हैं।
बीई या बीटेक कोर्स 4 साल का होता है, जबकि एमई या एमटेक और पीजी डिप्लोमा 2 साल का होता है। ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग के डिप्लोमा कोर्स 3 साल के होते हैं।
व्यक्तिगत गुण
विषय की जानकारी होने के साथ-साथ कम्युनिकेशन स्किल, कंप्यूटर स्किल, एनालिटिकल व प्रोब्लम सॉल्विंग स्किल होनी चाहिए। किसी भी चीज की बारीकी को पकड़ना आना चाहिए। शारीरिक रूप से स्वस्थ होना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि काम के घंटे लम्बे हो सकते हैं।
करियर विकल्प
बताने की जरूरत नहीं है कि ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री किस तेजी से बढ़ रही है। लिहाजा न सिर्फ निर्माण में, बल्कि मेंटेनेंस व सर्विस में भी लोगों की जरूरतें बढ़ रही हैं। ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की जितनी शाखाएं हैं, उनमें अवसर हैं। जिसे डिजाइन पसंद है, वह उसे चुन सकता है और जिसे मैन्युफैक्चरिंग भाती है, वह उसमें जा सकता है। वाहन बनाने वाली कंपनियों से लेकर सर्विस स्टेशन, स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन, प्राइवेट ट्रांसपोर्ट कंपनियों, इंश्योरेंस कंपनियों जैसी जगहों पर अवसरों की भरमार है। जरूरत है तो कुशल और समर्पित लोगों की, जिन्होंने ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रखी हो। सबकी योग्यता के हिसाब से कोई न कोई काम उपलब्ध है। कंप्यूटर के आ जाने से डिजाइन में क्रांति आ गई है। जो लोग इसमें महारत रखते हैं, वे इसे चुन सकते हैं। इसके अलावा अपना गैरेज, वर्कशॉप या सर्विस सेंटर खोला जा सकता है। जिसके पास मास्टर डिग्री है और ग्रेजुएट स्तर पर पांच साल तक पढ़ाने का अनुभव है, वह लेक्चरर बन सकता है। पीएचडी वाले रिसर्च में जा सकते हैं।
आमदनी का स्रोत
यह उम्मीदवार की योग्यता, अनुभव और उस कंपनी के स्टेटस पर निर्भर करता है कि किसी को क्या वेतन मिलता है। शुरुआत में किसी भी नए ऑटोमोबाइल इंजीनियर को 15,000 से 20,000 रुपए वेतन मिल सकता है। आईआईटी या अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़ने वालों के लिए वेतन की कोई सीमा नहीं है। इसके अलावा जैसे-जैसे अनुभव बढ़ता जाता है, वेतन में भी बढ़ोतरी होती रहती है, जो लाखों रुपये प्रतिमाह तक हो सकती है।
प्रमुख संस्थान
दिल्ली कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट, पलवल, हरियाणा
वेबसाइट
www.dctm.org.in
मणिपाल इंस्टीटय़ूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मणिपाल, कर्नाटक
वेबसाइट-
 www.manipal.edu
गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज, मोडासा, साबरकांठा, गुजरात
वेबसाइट
www.gecmodasa.org
कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड रूरल टेक्नालॉजी, मेरठ उत्तरप्रदेश
वेबसाइट-
 www.cert.ac.in
हिन्दुस्तान कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मथुरा उत्तरप्रदेश
वेबसाइट
www.hcst.edu.in
बेशुमार जॉब्स हैं
डॉक्टर प्रदीप कुमार
(चेयरमैन-दिल्ली कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी एंड मैनेजमेंट)
ट्रेनी इंजीनियर से लेकर ऑपरेशंस रिसर्च, डिजाइन, मैन्युफैक्चरिंग में ऊंचे से ऊंचे पद पर जा सकते हैं। एक ऑटोमोबाइल इंजीनियर अपनी वर्कशॉप खोल सकता है। लघु उद्योग स्थापित कर सकता है या जहां भी ऑटोमेशन हो रहा है या मशीनी काम हो रहा है, वहां वह नौकरी तलाश सकता है। शुरुआत में भले ही सैलरी 10 से 12 हजार होगी, लेकिन 2 से 3 साल के तजुर्बे के बाद उसकी आमदनी तीन गुणा बढ़ जाएगी। मैं तो यही कहूंगा कि छात्र ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में करियर बनाएं। यहां प्रशिक्षित ऑटोमोबाइल इंजीनियरों की बेहद कमी है।

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